तब्बसुम - वाह वाह क्या बात है... इरशाद... इरशाद
- शेर पढ़ने वाला शुरू करता है यह बोल कर कि 'अर्ज़ किया है'
- श्रोता कहते हैं, 'इरशाद इरशाद' (मतलब, फरमाएँ या बोलें)
- और जब शेर खत्म हो जाता है, तो श्रोता 'वाह वाह' कह कर बोलते हैं, 'मुक़र्रर' (मतलब, शेर फिर से पढ़ें)
अनु - देखिए राजकुमार जी... आप हमारे अन्न दाता हैं... पर थाली में सजे अन्न... स्वयं माता अन्नपूर्णा हैं... एक बार थाली में आ गए... तो बिना ग्रहण किए मत जाइए... ऐसे में माता अन्नपूर्णा का अपमान होता है... और जिस काम के लिए जाएंगे... वह पूरा नहीं होगा...
क्या सुंदर बात लिखी है! यही बात मेरे मम्मी पापा ने सिखाई है। थाली के सामने बैठे हो, तो अन्न ग्रहण किये बिना न उठो, और एक भी दाना व्यर्थ न जाने दो।
कुछ लोग जूठन इसलिए छोड़ देते हैं कि उन पर दरिद्र होने का इल्ज़ाम न लगे। लेकिन मेरे मम्मी पापा के अनुसार दरिद्रता यह है कि अगर तुम्हारे कारण किसी और का पेट खाली रह जाए।