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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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*Index *
 
Last edited:

Kala Nag

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Shandar update bhai bhairav singh lag raha Vishwa ko nazarandaj nhi kar rha
जी बिलकुल वजह भी उसने पिनाक को बताया है
उस महफ़िल में विश्व की व्यक्तित्व कुछ और था उसमें सबसे अलग एक औरा था
islie usne Roda ko bulwaya hai aur Pinak singh to bs Raja sahab yani ki bhairav ko is baare me chinta na karne ke liye kah rha
यह क्षेत्रपाल का सरनेम ही सब झोल है l
Whi dusri taraf Vishwa roop ke baare me bhi Shayad Jaan chuka hai ki wo kaun hai isliye wo mike ka Shara le ke usse Naa baat krne ka apna faisa suna chuka hai aur ab Roop ka reaction ka aana baki hai kyuki wo to ab phone se kuch kar nhi skti wo block ho chuki hai
Whi dusri taraf Raat me Vikaram se Vishwa ki bhi meeting Hui aur Vishwa ke case ke baare me jyda jankari to nhi hai Vikram ko
Aur shayd ab jald hi ye roop fund scam se nipatne ke liye Raja sahab yani ki Vikram ke pita jld hi use is kaam ke liye kahnege tb shayad dono ka aamna samna achhe se
हाँ भाई आने वाले कुछ अपडेट्स में धीरे धीरे सब क्लियर होता जाएगा
Baki update shandar
Kul mila jula ke aap Roop aur Vishwa ke romance ko khatam karne ka tarika dhund rhe whi dusri taraf Veer aur Annu ke love story ke dikhane ke liye pta nhi kitne udate liye liye
हा हा हा हा
Ye Roop aur Vushwa ke sath nainsafi hui in dono ki baat aane pe romance ki ikscha ham sab jatate tb aap Kahani ke thrill ki baat karne lgte hai
हर एक राह की अपनी मोड़ होती है
हर एक आगाज़ का अपना अंजाम होता है
 

Kala Nag

Mr. X
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Kyaaa baat hai bahott hii badiyaa updatee thaaa maja aagaya padhkee. Vikram aur Vishwa ki mulakat bahot hi kamal ki thi. Ek se ek jabardast dialogue thee maza aagaya.
धन्यबाद Jaguaar भाई बहुत बहुत धन्यबाद
 

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag bhai अति सुन्दर अपडेट था यह पूरे अपडेट मे कुछ घण्टे ही बीते पर इतने समय मे ही बहुत कुछ घट गया भैरव से लेकर रूप और विक्रम तक सबको हिला डाला रे अपने विश्वा ने हाहाहा।
😍❤️😍
भैरव की पारखी आँखें लोगों को पढ़ना Acche से जानती है एक second bhi नहीं lga उसे समझने मे कि chetti और विश्वा के बीच कौन असली रुतबा रखता है उसे चुनौती देने का जो इसने बखान किया chetti का ki उसकी उपस्थिति बस एक बेबसी थी उसकी और उस बेबसी मे किया गया एक आखिरी बार जो घायल करने से ज्यादा खुदको बचाने के लिए किया गया है और अपनी झूठी शान को बनाए रखने के लिए की वो किसी भैरव से नहीं डरता है जो कि बुरी तरह असफल हो गयी h भैरव के सामने वहीँ दूसरी ओर विश्व के कुछ शब्दों ने ही भैरव की सारी इंद्रियां हाई अलर्ट मोड मे ला दी है उसकी आँखों मे जो क्रोध का लावा देखा है भैरव ने जिसमें डर शेष मात्र भी नहीं था काफी है बताने के लिए भैरव को की जो उसके सामने खड़ा था वो कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है आपने क्रोध के कारण का अंत करने के लिए।
हाँ आखिर भैरव सिंह की अपना व्यक्तित्व है l वह भी दुनिया को अपनी पारखी नजर से परखता है l
विश्व ने क्या ही mashka मारा है प्रतिभा पर आज तो उसका "हो गया" उसी पर chipkaya है बड़ी ही सुन्दरता से प्रतिभा भी सोच rhi होगी मेरे से ही देख कर सीखा है और आज मुझ पर ही try kr diya.
हा हा हा हा हा
यह आपने अच्छा मार्क किया
Taapash ji toh बड़े heavy drinker nikle नाग bhai कुछ ड्रिंक्स मे ही झूमने लगे और फिर लुढ़क भी गए कमाल है विश्व के लिए एक काम तो km ho gya uhne सुलाने का। vishva ने जिस तरीके से face ऑफ handle किया है उससे तो प्रतिभा तो fan ही हो गयी है अपने विश्व की विश्व ने उसके हर डर को दूर कर दिया है jiske कारण वो ना जाने कबसे चिंतित थी कि क्या विश्व इस काबिल बन चुका है कि भैरव का मुकाबला सामने से कर सके? और उसका जवाब भी आज उसे मिल चुका है अब उसके अंदर की ममता उसे इतना परेशान नहीं करेगी विश्व को उसके असली मिशन मे भेजते समय।
हाँ भाई यह भी बिलकुल सही जज किया है आपने
शीलू का पढ़कर अच्छा lga backogroud जब बीच बीच मे आते रहते है तो इससे लेखक की मेमोरी और लेखन कला का प्रदर्शन व्यक्त होता है silu को अब सुबह तक handle krna है situation को जो कोई बड़ी बात तो नहीं होनी चाहिए उसके लिए। विश्व तो विक्रम से मिलने के पहले जो रूप को फोन किया क्या ही अद्भुत राइटिंग थी नाग भाई यह एक फोन कॉल slice of life style se jeene wale vishva के लिए farewell thi, aur साथ hi nandini से जो एक रिश्ता बन Rha था जो उसे अपने मार्ग से अपने वादे से भटका सकता था उसको आखिरी प्रणाम था जो य़ह दर्शाता है कि call के एंड होते ही विश्व अब उसी दौर मे जा चुका h जिसके कारण वो विश्वा भाई बना था और विक्रम से मुलाकात के दौरान भी वो उससे विश्वा के रूप मे मिला ना कि विश्वास प्रताप के और जैसा कि आपने, नाग bhai कहा कि वो दोनों एक दूसरे को तौल रहे थे exact same चीज़ aayi thi mere dimag me kitni गहराई h एक दूसरे मे yhi जान ने me लगे थे कि future me kya kya changes Aa skte h inke एक दूसरे के कारण कितना सामर्थ है दोनों की मानसिकता मे भी और sharirikta me bhi kyunki विश्वा जहां एक ऐसे पहाड़ से टकराने वाला h जिससे takra kr aaj tk sb tahesh नहस ही हुए है whin विक्रम अपने आप को झाँकने मे मजबूर होने वाला है विश्व से तकरा कर की क्या वो सही कर Rha है क्या वो सच मे इतना बुरा है जितना वो khud को कह Rha था vishva से?!!
😍🙏❤️
Aur विश्वा और रूप कि बात पर बस इतना बोलूंगा नाग भाई की it was very beautifully written paragraph emotion se भरपूर जो कोई प्यार मे हो असली जिंदगी मे वो सेंटी हो जाए मुस्काने लगे जैसे रूप ने किया गुस्सा इस बात का कि आखिरी बार बात कर रहीं थीं वो प्रताप से और खुसी इस बात की अब बात उसकी अनाम से होगी अपने अनाम से भले ही वो time bht दूर ही क्यूँ ना हो उसे bhrosa h apne अनाम पर बस इससे ज्यादा नहीं कहूँगा दोनों पर यू have done an excellent job on their character, just pure gold.
धन्यबाद धन्यबाद और धन्यबाद
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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159
कमाल है
स्टैंडिंग ओवेशन
यह कुछ अलग था

भाई वो इसलिए, क्योंकि इतना बढ़िया अपडेट था कि और कुछ कहते नहीं बना!
सही मायने में इसी अपडेट में सटीक चरित्र चित्रण किया है सभी मुख्य पात्रों का! सीधे सादे संवाद, लेकिन सटीक!
फालतू का कोई भी पात्र नहीं! सब बढ़िया बढ़िया! 👌
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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👉एक सौ एक अपडेट
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रात गहरी हो चुकी थी l सारा जहान शायद सो चुका था l सहर के घरों में बत्तियां बंद थी सिर्फ सड़कों पर जलने वाले खंबो पर रौशनी चमक रहे थे l
बारंग रिसॉर्ट के एक आलीशान शूट में विजय जेना किसी मुजरिम के तरह हाथ बांधे खड़ा था l पिनाक सिंह एक सोफ़े पर बैठा अपनी ठुड्डी को हाथ पर रगड़ रहा है l वह कभी भैरव सिंह को देख रहा है, तो कभी विजय जेना को l भैरव सिंह एक सोफ़े पर अपनी आँखे मूँद कर बैठा हुआ है, हेड रेस्ट के दोनों तरफ हाथ फैला कर, पैर पर पैर मोड़ कर और सिर पीछे की तरफ लुढ़का कर छत की तरफ मुहँ कर के बैठा हुआ है l

विजय - र... राजा साहब...
भैरव सिंह - (उसी हालत में, विजय के तरफ बिना देखे) हूँ...
विजय - आ.. आई एम... स्स्स.. सॉरी...
पिनाक - अब सॉरी कहने से क्या होगा...
विजय - मु मु.. मुझे मालुम नहीं था... ऐसा कुछ होगा... जो आ.. आ.. आपके दिल को ठेस पहुंचाएगा....

भैरव सिंह अब अपना चेहरा सीधा कर विजय जेना की ओर देखता है l उसकी भाव हीन आँखे देख कर विजय जेना की कपकपि दौड़ जाता है l

विजय जेना - म... म.. मु... मुझसे गलती हो गई... मुझे सिर्फ... नियर एंड डियर को ही बुलाना चाहिए था...
भैरव सिंह - (बहुत गम्भीर आवाज में) नहीं... तुमसे कोई गलती नहीं हुई है... जेना...
विजय - गलती तो... हुई है राजा साहब... कम से कम... मुझे चेट्टी जी... और मिसेज सेनापति जी को... निमंत्रण देना ही नहीं... चाहिए था...
भैरव - चेट्टी.... हा हा हा हा हा... (हल्का सा हँसता है) ओंकार चेट्टी... वह कोई मसला नहीं है... उसकी हैसियत... बरसात की पहली झड़ी के बाद... शाम के वक़्त... उड़ने वाले उन चीटियों की बराबर है... जो आगे चलकर किसी कौवे और गौरैया के निवाले बन जाते हैं... ऐसों के लिए... बाज आसमान से कभी भी नीचे नहीं उतरता... मसला... उस लड़के का है... कौन है वह... कुछ था उसकी आँखों में...
पिनाक - हाँ... आपने ठीक कहा राजा साहब... उस लड़के को... आपसे ऐसे बातेँ नहीं करना चाहिए था...
भैरव - आप अभी भी... समझ नहीं पा रहे हैं.... छोटे राजा जी....
पिनाक - (चुप हो कर हैरानी से भैरव सिंह की ओर देखने लगता है)
भैरव सिंह - (विजय से) बैठ जाओ जेना...

विजय हिचकिचाते हुए सामने पड़ी एक सोफ़े पर बैठ जाता है l

भैरव सिंह - चेट्टी ने जो किया... उसमें हमारे लिए जितनी नफरत थी... उससे कहीं ज्यादा... उसके भीतर तड़प और बेबसी थी... हमें कुछ ना कर पाने की... इसलिए चेट्टी... हमारे लिए... कोई मसला नहीं है... बात... उस लड़के की है....
विजय - (झिझकते हुए) फिर से.. सॉरी राजा साहब... पर बुरा ना माने... तो एक बात पूछूं....
भैरव सिंह - हूँ...
विजय - आप कभी सामने वालों को भाव नहीं देते... हमेशा इग्नोर कर देते हैं... फिर ऐसे में... आज.. उस लड़के से उलझे क्यूँ...
पिनाक - हाँ राजा साहब... यह बात तो... मुझे भी बहुत खली.... आप... अपने सामने ऐसों को कभी कोई भाव नहीं देते... पर आज...

इससे आगे पिनाक कुछ पूछ नहीं पाता l भैरव सिंह पहले नॉर्मल हो कर बैठता है और फिर बाएँ हाथ को हैंड रेस्ट पर रख कर दाएँ पैर को मोड़ कर बाएँ पैर पर रखने के बाद अपने दाहिने हाथ को दाएँ घुटने पर रख कर विजय की तरफ देखता है l

भैरव सिंह - जरूरी नहीं.. कि हमें कोई पहचाने... या हम किसीको पहचाने... मगर किसी किसी की व्यक्तित्व... कुछ ऐसा होता है कि... हम ना चाहते हुए भी... हम उसे इग्नोर नहीं कर सकते.... Ya कर पाते.... वह उस वकील औरत के बगल में खड़ा था... पर उसका औरा... कुछ ऐसा था.. कि वह हमारी नजरों को... चुभने लगा था...
पिनाक - क्या... वह एक नौ जवान... जिससे शायद उसकी माँ की पल्लू भी ना छुटा हो... वह आपकी नजरों में आया... और चुभा....
भैरव सिंह - (विश्व की ख़यालों में खोते हुए) हाँ छोटे राजा जी... हाँ... वह अंग्रेजी में एक कहावत है.... यु कैन लाइक हीम... यु कैन हैट हीम... बट यु कैन नट... इग्नोर हीम.... (अपने ख़यालों में खोते हुए) उस भीड़ में... वह अकेला ऐसा था... जिसे हमारी नजर... इग्नोर ना कर पाया.... (एक पॉज लेकर) उसकी जुबान चल रही थी... उसकी जुबान कुछ कह रही थी... और उसकी आँखे कुछ और कह राही थी... जो आम था... की उसकी आँखे और जुबान... दोनों ही आग उगल रहे थे.. ना आग नहीं... लावा उगल रहे थे... जिसकी ताप... जिसकी आंच हमें दूर से भी... महसूस हो रही थी...


इतना कह कर भैरव सिंह चुप हो जाता है l विजय जेना और पिनाक उससे कुछ पूछ नहीं पाते, एक दुसरे को देखते हैं, फिर भैरव सिंह की ओर देखने लगते हैं l कुछ देरी की चुप्पी के बाद

भैरव सिंह - छोटे राजा जी... उस वकील औरत के साथ... क्या कभी कोई... हमारा किसी तरह का तार जुड़ा हुआ है...
पिनाक - तार.. हाँ पर... कोई चिंता की बात है क्या...
भैरव सिंह - (थोड़ी हैरान हो कर) कौनसा तार जुड़ा हुआ है....
पिनाक - यह वही औरत है... जो रुप फ़ाउंडेशन स्कैम में... विश्व के खिलाफ... सरकारी वकील थी.... फिर... उसके बेटे की मौत के बाद... नौकरी छोड़ दी... प्राइवेट प्रैक्टिस कर... इस मुकाम तक पहुँची है....
भैरव सिंह - (हैरान हो कर) अगर बेटा मर गया था... तो यह...
विजय - यह उनकी दुसरा बेटा है... सुना है... जुड़वा है... कहीं बाहर रहता था... अभी लौट कर आया है....

यह सब सुनने के बाद भैरव सिंह फिरसे कुछ सोचने लगता है l यूँ ही अपनी सोच में गुम भैरव सिंह पिनाक से पूछता है l

भैरव - छोटे राजा जी... इन कुछ दिनों में... क्या कुछ ऐसा हुआ है... जिसकी हमें जानकारी होनी चाहिए... पर नहीं है....
पिनाक - राजा साहब... आप तो जानते होंगे... इन कुछ दिनों में... विश्व... जैल से छूट गया है... और रुप फाउंडेशन स्कैम की केस को... फिर से खोलने की जुगाड़ में है.... इससे ज्यादा... हमारे पास और कोई जानकारी नहीं है...
भैरव सिंह - हूँ... यह रोणा और प्रधान... इन्हें खबर कीजिए... हमसे आकर मिलने के लिए...
पिनाक - (थोड़ा हिचकिचाते हुए) वह आए थे... आपसे... इस बारे में बात करने के लिए... की विश्व रुप फाउंडेशन स्कैम की केस को रिओपन करने वाला है... पर कटक और भुवनेश्वर में... वे दोनों विश्व से मुहँ की खाए... तो हमने ही उन्हें... वापस राजगड़ भेज दिया.. ताकि वहाँ पर बैठ कर... ठंडे दिमाग से... विश्व के खिलाफ अच्छे से प्लान करें... और उस पर अमल करें.... ताकि कोई रिजल्ट निकले...

यह सुन कर भैरव सिंह हैरान होता है l और पिनाक सिंह को घूरने लगता है l

भैरव सिंह - रुप फाउंडेशन केस... रिओपन करेगा... (भैरव सिंह के ऐसे पूछने पर पिनाक थोड़ा हड़बड़ा जाता है)
पिनाक - जी... विश्व राजगड़ नहीं गया है... वह या तो कटक में है... या फिर भुवनेश्वर में है... अपना जुगाड़ लगा रहा है... केस को रिओपन करने के लिए...

भैरव सिंह, विजय जेना की तरफ देखता है l विजय जेना कुछ समझ नहीं पाता l

पिनाक - जेना बाबु... क्या कोई सजायाफ्ता मुजरिम... जिस केस में उसे सजा हुई हो... अपनी सजा पुरा कर लेने के बाद... क्या उस केस को खुलवा सकता है...
विजय - केस तो... कभी भी खुलवाया जा सकता है... बशर्ते... अदालत के सामने कोई ठोस दलील पेश हो....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... ठोस दलील... उसके लिए कोई वकील चाहिए... है ना...
विजय - जी... पर एक आम आदमी भी... बिना वकील के अपना केस लड़ सकता है... संविधान की अनुच्छेद उन्नीस और बत्तीस.... उसे यह अधिकार देता है...
पिनाक - क्या... (ऐसे रिएक्ट देता है जैसे उसे शॉक लगा हो) ऐ.. ऐसे कैसे... कैसे हो सकता है...
विजय - क्या मतलब... यह संविधान है... उसमें हम क्या कर सकते हैं... एक आम नागरिक अदालत में.. लॉ शूट कर सकता है... उसे संविधान वह अधिकार देता है...
पिनाक - (विजय से) अगर... वह एक... वकील निकला तो...
विजय - क्या मतलब... वकील निकला तो... (भैरव सिंह की ओर देख कर पूछा था सवाल)

भैरव सिंह भी पिनाक की बात सुन कर हैरान होता है और सवालिया नजर से पिनाक की ओर देखता है l

पिनाक - (भैरव सिंह को देख कर) राजा साहब... विश्व अभी बीए एलएलबी है... (अटक अटक कर) उसने... ज..जैल में रह कर.... लॉ की ...डिग्री हासिल की है...

यह सुनने के बाद भैरव सिंह की भवें सिकुड़ जाते हैं और माथे पर शिकन दिखने लगता है l उसे लगता है जैसे उसके हर ओर अंधेरा ही अंधेरा छा जाती है, उसे हर तरफ एक नहीं अनेकों वैदेही आते दिखाई देने लगती है l उसके कानों में वैदेही दंभ भरी हँसी और बातेँ गूंजने लगती हैं l

पिनाक - राजा साहब...
भैरव सिंह - (पिनाक की आवाज सुन कर भैरव सिंह होश में आता है) रोणा और प्रधान... और क्या क्या बताएं हैं...
पिनाक - यही की... ओड़िशा हाई कोर्ट और होम मिनिस्ट्री के पीआईओ से... आरटीआई के द्वारा... रुप फाउंडेशन के जांच से जुड़े सभी दस्तावेज... और गवाहों के नाम की जानकारी मांगा है...

धीरे धीरे भैरव सिंह की मुट्ठीयाँ कड़ कड़ आवाज़ करते हुए भींच जाती हैं l वह पिनाक सिंह की ओर जिस तरह से देखता है भले चेहरे पर कोई भाव ना हो पर पिनाक समझ जाता है भैरव सिंह उससे नाराज है l

भैरव सिंह - जेना... तुम्हारी बेटी की... शादी की रिसेप्शन पार्टी में जो हुआ... उसे तुम दिल पर मत लो... जाओ... कल खुशी खुशी अपनी बेटी को... उसकी नई जिंदगी के लिए.... आशीर्वाद के साथ विदा करो... शायद आने वाले दिनों में... हमारा और तुम्हारा... काम बढ़ने वाला है...
विजय - जी राजा साहब... बंदा आपकी सेवा में... हरदम हाजिर रहेगा...

कह कर विजय कुमार जेना वहाँ से चला जाता है l उसके जाने के बाद भैरव सिंह अपनी जगह से उठ खड़ा होता है l उसके खड़े होते ही पिनाक भी खड़ा हो जाता है l

पिनाक सिंह - मु.. मुझे... माफ कर दीजिए... राजा साहब... मुझे लगा... उस दो टके विश्व के लिए... आप क्यूँ परेशान होंगे... हम... रोणा और प्रधान के साथ मिल कर... विश्व को संभाल लेंगे... क्यूंकि हमे लगा... आप विश्व के बारे में सोच कर... बेकार में उसका कद और रुतबा बढ़ायेंगे...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देख कर) कोई बात नहीं है... छोटे राजा जी... हम आपके मन की भावनाओं को समझते हैं... पर यह भी सच है... वह हम से टकराने के लिए... खुद को लायक बना लिया है...
पिनाक - तो ठीक है ना... हम उसे मार देते हैं... पहले आप बैठ जाइए... प्लीज...
भैरव सिंह - (पिनाक की ओर देखता है)
पिनाक - चलिए ठीक है... उसने खुद को लायक बना लिया है... पर इसका मतलब यह तो नहीं... की उसने अपना कद.... आपके बराबर ऊंचा कर लिया है.... आप बैठ जाइए प्लीज...
भैरव सिंह - (बैठते हुए) छोटे राजा जी... रोणा और प्रधान... अभी यहीँ भुवनेश्वर में हैं... या राजगड़ चले गए हैं....

पिनाक सिंह अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l


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विश्व घर के बाहर कार को पार्क करता है और डोर खोल कर टुन तापस को अपनी बाहों में उठा कर घर की ओर ले जाता है l जब तक वह घर के दरवाजे तक पहुँचता तब तक प्रतिभा लॉक खोल कर बेड रुम का दरवाजा खोलती है l विश्व बेड पर तापस को बड़े जतन से सुलाता है l विश्व का तापस को यूँ सुलाना प्रतिभा के चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान ले आती है l
प्रतिभा फिर बेड रुम से निकल कर ड्रॉइंग रुम में आती है और सोफ़े पर फैल कर बैठ जाती है, जैसे वह बहुत थकी हुई हो l उसकी आँखे बंद थीं और उसका चेहरा छत की ओर था I उसके चेहरे पर एक मुस्कान वैसे ही सजी हुई थी और रौनक झलक रही थी l वह रास्ते में पुरी तरह से शांत थी l विश्व का भैरव सिंह के साथ कहीं मुलाकात ना हो जाए, इस बात का डर था उसके मन में, पर पार्टी में जो हुआ, उसे देखने के बाद उसके मन में वह डर अब नहीं था l आज विश्व अपने लिए नहीं, उसके लिए, उसके सम्मान के लिए भैरव सिंह से जुबान लड़ाया l

विश्व - माँ...
प्रतिभा - (बिना आँखे खोले और वैसे ही बैठे) हूँ...
विश्व - बुरा लगा...
प्रतिभा - (एक जगमग मुस्कान के साथ सीधी हो कर बैठ जाती है) नहीं रे.. (अपने पास बुलाते हुए) आ मेरे पास बैठ...(विश्व के बैठने के बाद) बिल्कुल भी डर नहीं लगा... आज तो तुने मुझे पंख दे दिया... जी चाह रहा था... उड़ुँ... उड़ती ही फिरुँ...
विश्व - (मुस्कराते हुए) सच में... बुरा तो नहीं लगा ना...
प्रतिभा - (विश्व को ममता भरी नजर से देखते हुए) मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है तुझे... अरे.. तुने मेरे लिए... जिस तरह से जुबानी जंग की... मेरी छाती चौड़ी कर दी तुने... मेरा सिर तब... गर्व से तनी हुई थी... क्या बताऊँ... मुझे कैसा लग रहा था... आख़िर वकील बेटा है मेरा तु... तेरे दलील के आगे... कौन टिक सकता है... तुने देखा नहीं... पाँच मिनट के अंदर ही... उस राजा साहब की औकात... दो कौड़ी की कर दी तुने... कोई महसुस किया हो या ना हो... भैरव सिंह को तो महसुस हुई है... बस... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) एक दुख... रह गया...
विश्व - (हैरान हो कर) क्या... कैसा दुख...
प्रतिभा - भैरव सिंह की बेटी को देखना चाहती थी...रुप... रुप नाम है ना उसका... मैं रुप से मिलना चाहती थी... देखना चाहती थी.... वह नहीं हो पाया...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - खैर... भाश्वती ने बताया कि उसके सारे दोस्त आए हुए हैं... पर...
विश्व - पर... पर क्या माँ...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) पर... आज पार्टी में... नंदिनी भी.... ना दिखी... ना मिली...
विश्व - माँ.. रात बहुत हो गई है... चलो सो जाओ...
प्रतिभा - हाँ... ठीक कहा... रात बहुत हो गई है...

प्रतिभा इतना कह कर उठती है और किचन की ओर जाने लगती है l उसे किचन में जाते देख

विश्व - वहाँ कहाँ जा रही हो माँ..
प्रतिभा - (विश्व की ओर मुड़ते हुए) अरे पानी लेने जा रही हूँ...
विश्व - तुम अपनी कमरे में जाओ... पानी मैं लता हूँ...
प्रतिभा - अरे... इतनी बुढ़ी भी नहीं हो गई हूँ... हाँ...
विश्व - ओह ओ... तुमसे बात करना भी फिजूल है...

इतना कह कर विश्व प्रतिभा के पास आता है और उसे अपनी बाहों में उठा कर बेड रुम में लेजाकर बेड पर बिठा देता है l

विश्व - (प्रतिभा कुछ कहने को होती है) श्श्श्श... तुम यहीं पर बैठो... मैं पानी लाता हूँ... पी कर सो जाना... और हाँ... सुबह जल्दी उठने की कोई जरूरत नहीं...
प्रतिभा - ठीक है मेरे बाप....

कह कर विश्व मुड़ कर किचन में चला जाता है l प्रतिभा की आँखे नम हो जाती है l थोड़ी देर बाद विश्व एक भरी हुई ग्लास के साथ एक पानी का जग भी लाया था l प्रतिभा ग्लास से पानी पी लेती है और खाली ग्लास उसके हाथो में थमा देती है l

प्रतिभा - बेटा है... बाप बनने की कोशिश क्यूँ कर रहा है...
विश्व - हो गया...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - मैंने कहा... हो गया...
प्रतिभा - हाँ हो गया...
विश्व - तो बस... अब तुम... एक छोटी बच्ची की तरह सो जाओ...
प्रतिभा - सो तो जाऊँ... पर अगर तु लोरी सुनाएगा...


विश्व अपने कमर में हाथ रख कर प्रतिभा को देखने लगता है l प्रतिभा हँसते हुए बिना ना नुकुर किए तापस के बगल में लेट जाती है l विश्व वहीँ टेबल पर जग को रख कर उस कमरे से निकल कर अपने कमरे में आता है l आते ही पहले अपने जेब में हाथ डालता है l जेब में से एक मुड़ी हुई काग़ज़ निकालता है l उस काग़ज़ को देख कर विश्व पार्टी में जो हुआ उसे याद करने लगता है l

पार्टी में

विश्व के मुहँ से निडरता से जवाब सुनने के बाद भैरव सिंह अपने चारों तरफ नजर घुमा कर देखता है l कुछ लोग वहाँ पर जो आसपास थे उन दोनों के बीच हो रही जुबानी जंग को आँख और मुहँ फाड़े देख रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह को नजर घुमाते देखते हैं सभी अपनी आसपास खुद को ऐसे व्यस्त कर देते हैं, जैसे वहाँ पर क्या हुआ किसीको उस बारे में कोई मालूमात ही नहीं थी l मगर भैरव सिंह के लिए वह बहुत कुछ था जो हो गया था I वह वहाँ से पलट कर सीधे बाहर निकल जाता है l उसके पीछे पीछे विजय कुमार जेना भी बाहर चला जाता है l विश्व बिना किसी को भाव दिए बफेट काउंटर से अपना और प्रतिभा का थाली बना कर एक टेबल पर बैठ कर खाना खाने लगता है l प्रतिभा थाली लेकर टुन पड़े तापस के पास जाकर बैठ कर खाना खाने लगती है l कुछ देर बाद खाना खाते समय विश्व के पास एक सर्विस बॉय आता है, और वह विश्व से पूछने लगत है

बॉय - सर... और कुछ...
विश्व - नहीं...
बॉय - ठीक है सर... यह पानी लीजिए...

बॉय एक पानी की बोतल वहाँ पर रख देता है और एक टिशू पेपर भी देकर वहाँ से चला जाता है l विश्व का खाना खतम होते ही वही टिशू पेपर उठाता है, वह अपना हाथ पोछने को होता है कि उसकी नजर उस टिशू पेपर पर पड़ता है l देखता है उसमें कुछ लिखा हुआ है l विश्व उसे पढ़ता है

"मिस्टर विश्व प्रताप महापात्र... मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा... 24/7 हाई वे इन रेस्टोरेंट में... टेबल नंबर 27 पर... आ जाना...सुबह तक इंतजार करूंगा... तुमसे मुलाकात करनी है... कुछ बात करनी है... इसलिए आ जाना... मर्द हो... जरूर आओगे... अगर नहीं आए... तो कल सुबह मैं... तुम्हारे घर पर पहुँच जाऊँगा..."

विश्व चिट्ठी पढ़ने के बाद बिना इधर उधर देखे, उसे मोड़ते हुए अपनी जेब में रख लेता है और वॉशरुम में हाथ धोने के लिए चला जाता है l हाथ धोते हुए वह अपनी चेहरे पर पानी मारता है l फिर अपनी भीगे चेहरे को आईने में देखने लगता है l फिर अपना चेहरा साफ करने के लिए वह अपने शूट के बाएँ जेब से जैसे ही रुमाल निकालता है l वह बड़ी सी गुलाब का फूल नीचे गिरता है जिसे भाश्वती ने उसके जेब पर लगया था l विश्व गिरते फूल को पकड़ने की कोशिश करता है, पर पुल गिर जाता है बस एक दो पंखुड़ियां उसके हाथ में रह जाती हैं l फुल जैसे ही फर्श पर टपकती है उसके भीतर से एक बटन जितनी आकार के एक माइक बाहर आ जाती है l विश्व हैरान हो जाता है, उसकी भवें सिकुड़ जाती हैं, वह झुक कर माइक को हाथ में लेता है l

तभी मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजते ही विश्व अपनी खयाल से बाहर आता है I मोबाइल निकाल कर देखता है मेसेज सीलु का था

"भाई आधे घंटे में पहुँच रहा हूँ, तैयार रहना"

विश्व फौरन उस चिट्ठी को अपने जेब में रख देता है और अपना पर्स निकालता है l पर्स में से एक पचास पैसे की कएन निकाल कर खिड़की के पास पहुँचता है I खिड़की में लोहे की ग्रिल लगी हुई थी जो आठ स्क्रीयु से फ्रेम से जुड़ी हुई थी l विश्व उस कएन से सारी स्क्रीयुस् को खोलने लगता है l सिर्फ पाँच मिनट में सारी स्क्रीयुस् खोल कर ग्रिल निकाल कर कमरे के अंदर रखता है और फिर खिड़की से बाहर आ जाता है l विश्व बाहर आकर बाहर से खिड़की बंद कर वहाँ से भागते हुए मैन रोड पर आता है l इधर उधर नजर घुमाता है l उसे कोई नहीं दिखता अपना घड़ी देखता है सीलु के आने में बीस मिनट बाकी हैं I वह अपना मोबाइल निकालता है और कॉल लिस्ट खंगालता है, नकचढ़ी देख कर उसे क्लिक करता है l अपनी आँखे बंद करने के साथ साथ जबड़े भी भींच लेता है और खुद को नॉर्मल करता है फिर कॉल लगाता है l कॉल जाने की इंतजार कर रहा था कि उधर कॉल लिफ्ट हो जाती है l

रुप - (धीमी आवाज़ में) है.. हैलो...
विश्व - हैलो... (अपने हाथ में माइक को लेकर देखते हुए) नंदिनी जी...
रुप - जी...
विश्व - क्या आपको मालुम था... मैं कॉल करूँगा... रिंग हुआ भी नहीं और... कॉल उठा लिए आपने...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है... असल में... मैं तुम्हें कॉल लगाना चाहती थी... और इत्तेफाक से... तुमने कॉल लगा दिया...
विश्व - अच्छा...
रुप - क्यूँ... मैं तुमसे... झूठ क्यूँ बोलुंगी...
विश्व - वैसे... इस माइक से... क्या जानना चाहती थीं आप...
रुप - क्या.. क्क्क...कौनसी माइक... मैं वह..
विश्व - नंदिनी जी... अब तक आप मेरा नाम... सिर्फ प्रताप जानती थीं... विश्व प्रताप है... यह आप आज जान गई होंगी...
रुप - हाँ... नहीं... मेरा मतलब है... हाँ..

दोनों कुछ देर के लिए ख़ामोश हो जाते हैं l विश्व क्या पूछे कैसे पूछे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था l उधर रुप की भी वही हालत थी l उसे बात कैसे आगे बढ़ानी है वह समझ नहीं पा रही थी l वह अपनी दाहिनी अंगूठे की नाखुन को चबा रही थी l थोड़ी देर की खामोशी के बाद

विश्व - नंदिनी जी...
रुप - हूँ...
विश्व - आप मुझसे... दोस्ती खतम कर दीजिए....
रुप - (झटका खाते हुए) क्यूँ...
विश्व - मैं शायद... भरोसे के लायक नहीं हूँ... मैं शायद... आपकी दोस्ती में... ईमानदार नहीं हो पा रहा हूँ...
रुप - (हैरानी भरे घुटी आवाज में) ये.. यह कैसी बात कर रहे हो... प्रताप...
विश्व - हमारी दोस्ती.. दोस्ती तक ही रहे... रहना ही चाहिए... इसलिए... मैं आज... आपको गवाह बना कर... कुछ फैसला करना चाहता हूँ...
रुप - प्रताप... क्या कह रहे हो...
विश्व - नंदिनी जी... प्लीज... आप... आप बीच में कुछ ना बोलें... प्लीज...
रुप - (चुप हो जाती है)
विश्व - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) नंदिनी जी... हमारी पहली मुलाकात एक थप्पड़ से शुरु हुई थी... याद है... और आखिरी बार थप्पड़ पर ही खतम हुई थी... सत्ताइस दिन हो गए... इन सत्ताइस दिनों में... हमारी दोस्ती हुई... (हल्का सा हँसते हुए) दोस्ती... नोक झोंक तक परवान चढ़ी.... पर ...शायद इसे ...होना नहीं चाहिए था...
रुप - ( सांसे भारी होने लगती है, जिसे विश्व साफ महसूस करता है)
विश्व - नंदिनी जी... इस दोस्ती को लेकर... आपके दिल में क्या... ख्वाहिशें करवटें लेने लगीं... मैं नहीं जानता... पर मैं शायद दोस्ती के राह में... भटकने लगा... नंदिनी जी... मैं.. (पॉज लेकर) मैं.. किसी के जीवन से... वचन से... बंधा हुआ हूँ... मैं उनके साथ सात... साल तक जुड़ा रहा... और फिर आठ साल तक अब उनसे दुर रहा हूँ... पुरे पंद्रह सालों बाद.. जब पहली बार मैंने अपनी दिल की सुनी... एक चेहरा धुँधला सा... मेरे दिल के आईने में तब तब झांकने लगा... जब जब आप मेरे सामने आईं... उनके चेहरे पर गुस्सा बहुत भाता था... बिल्कुल आपकी तरह... जिद उनकी शख्सियत पर... चार चांद लगा देती थीं... नंदिनी जी... जब इस दुनिया में... मेरा कोई नहीं था... मैं किसीका नहीं था... मैं शायद किसीको जरूरत भी नहीं था... तब... तब वह मेरी जिंदगी आईं... मुझ पर हक जमाती थीं... गुस्से से... हक से.. जिद से...मैं उनकी... वह मेरी... हम एक दुसरे के जरूरत बन गए थे... तब मेरी जिंदगी में वह सबसे खास थीं... बहुत खास थीं... पर शायद मैं उन्हें भुला दिया था.. भुला चुका था... पर जब आप आईं... वह याद आने लगीं... मुझे मेरे वादे.. याद आने लगीं... फिर भी... मैं आपकी तरफ फिसलता रहा... हर रोज... मैं खुद से लड़ता रहा... आपसे कभी ना मिलने की कसमें खाता था... यहाँ तक... खैर... मेरे वह सारे कसमें टुट जाते थे... जब आप मेरे सामने आती थीं... मैं आज तक उलझन में था.... पर... आज किसी से मुलाकात हुई... माइक पर आप ने सुना ही होगा... उसके बाद मुझे एहसास हुआ है... मैंने किसी से कुछ वादे किए हैं... मैंने खुद से भी... कुछ वादे किए हैं... अब उन वादों को निभाने का वक़्त आ गया है....
अब मैं निश्चिंत हूँ... अब मैं किसी दो राहे पर नहीं हूँ... नंदिनी जी... अगर मेरी किसी हरकत के वजह से... आपके दिल में... मेरे लिए... दोस्ती से बढ़ कर... कोई एहसास जगाया है... तो वह थप्पड़... जायज था... मैं इस बात के लिए... आपका गुनाहगार रहूँगा... इस बात पर... आप माफ करें या ना करें... यह आपकी मर्जी पर छोड़ रहा हूँ.... मैं आपसे दोबारा... मिलना नहीं चाहता हूँ... और मैं अभी से... अपनी मोबाइल पर... आपका नंबर ब्लॉक कर रहा हूँ.... (विश्व चुप हो जाता है)
रुप - (चुप रहती है, आँखों से उसके आँसू बहते ही जा रहे थे, उसकी साँसें थर्रा जा रही थी, विश्व उसकी हालत को महसूस कर पा रहा था)
विश्व - नंदिनी जी...
रुप - हूँ...
विश्व - आई एम सॉरी....

विश्व कॉल कट कर देता है, अपनी आँखों के किनारे से बहते आंसुओं को पोंछता है और फिर फोन की सेटिंग पर जा कर नकचढ़ी को ब्लॉक कर देता है l तभी उसके सामने एक कार पहुँचती है l कार से सीलु उतरता है l सीलु गाड़ी से उतर कर विश्व को चाबी देता है l

विश्व - कहाँ से जुगाड़ किया...
सीलु - भाई... अपना यहाँ कनेक्शन... तुम तो जानते हो ना...
विश्व - ठीक है... खिड़की बाहर से बंद है... घर पर ही रुकना...
सीलु - ठीक है भाई... पर माँ को तुमने... नींद की गोली दे तो दी ना...
विश्व - हाँ.. दे दी है... फिर भी... तुम मेरे बेड पर लेटे रहना... वैसे थैंक्स...
सीलु - क्या भाई... तुम भी ना...
विश्व - माँ को पानी में मिला कर दे दिया है... अब शायद सुबह तक नहीं जागेगी... उसके लिए भी थैंक्स... मेरे मैसेज करते ही... नींद की पिल्स जुगाड़ कर... तुमने कार पर रख दिया था...
सीलु - क्या भाई... थैंक्स बोल कर खुद से दूर कर रहे हो...
विश्व - सॉरी यार...

कह कर विश्व उसे गले लगा लेता है l थोड़ी देर बाद सीलु विश्व से अलग होता है और विश्व के कमरे की खिड़की की ओर चला जाता है l विश्व गाड़ी स्टार्ट करता है और वहाँ से निकल जाता है l

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फोन पर विश्व की बातेँ सुनने के बाद रुप अपनी दोनों बाहें फैला कर बेड पर लेटी हुई है l उसके आँखों में आंसू हैं पर चेहरे पर एक सुकून भरा रौनक भी है l वह अपनी फोन निकालती है और रिसेंट कॉल लिस्ट में बेवकूफ़ देख कर मुस्कराती है और फिर कॉल करती है l कोई रिंग नहीं जाती, कॉल कट जाती है l रुप अपनी मोबाइल स्क्रीन पर बेवक़ूफ़ को तैरते हुए देखती है, और हँस देती है l तभी उसके कमरे के बाहर दस्तक सुनाई देती है l वह चौंक कर अपनी बेड पर उठ बैठती है

रुप - (उबासी लेने के अंदाज में) कौनन्..
शुभ्रा - मैं... तुम्हारी भाभी...
रुप - ओह... एक मिनट... भाभी...

रुप अपनी आँखे पोंछ कर आँखों के नीचे थोड़ी पाउडर लगा कर खुद को काफी हद तक नॉर्मल करने की कोशिश करती है l फिर जाकर दरवाजा खोलती है l रुप को शुभ्रा बहुत परेशान लगती है l

रुप - क्या हुआ भाभी... आप... इतनी परेशान क्यूँ हैं...
शुभ्रा - मैं... अंदर आऊँ...
रुप - भाभी... घर आपका है... मैं यहाँ मेहमान हूँ... इस कमरे में आने के लिए... आपको मेरी इजाजत लेने की जरूरत नहीं है... यह मैं कितनी बार कह चुकी हूँ...

शुभ्रा कुछ नहीं कहती सीधे जा कर बेड के किनारे बैठ जाती है l रुप थोड़ी हैरान होती है फिर वह चल कर उसके पास आकर बैठती है l

रुप - क्या हुआ है भाभी... भ... भैया ने कुछ कहा है क्या...
शुभ्रा - तुम्हारे भैया... मुझसे कुछ कहते तो... बहुत अच्छा रहता... पर... (सुबकने लगती है)
रुप - क्या हुआ भाभी प्लीज... आप... रोइये मत... प्लीज... क्या आपके और भैया के बीच... फिर से कुछ हुआ है क्या...
शुभ्रा - फिर से मतलब... क्या फिर से नंदिनी...
रुप - आपके बीच तो.... सब कुछ ठीक हो गया था ना भाभी...
शुभ्रा - कहाँ... पहले अलग अलग रहते थे... अब पास पास रहते हैं... तब दूर दूर रहते थे... अब करीब बहुत करीब हैं... पर जब आवाज देती हूँ... तो ऐसा लगता है... जवाब किसी दूर गहरी खाई से आ रही हो... हम एक दुसरे के पास तो हैं... पर फिर भी... हमारे बीच दूरी है... (यह बात सुन कर रुप को झटका सा लगता है)
रुप - अब भैया कहाँ हैं... भाभी...
शुभ्रा - यही तो मैं नहीं जानती... पता नहीं... घर भी नहीं आए हैं अभी तक...
रुप - भाभी... हो सकता है... वीर भैया के पास गए हों...
शुभ्रा - नहीं... वीर चाची माँ के साथ सर्किट हाउस में हैं... वहाँ पर विकी गए नहीं हैं...
रुप - तो आपने... भैया को फोन क्यूँ नहीं किया...
शुभ्रा - किया था... पर उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा है....
रुप - क्या... स्विच ऑफ...

रुप को याद आने लगता है आज पार्टी में प्रताप और विक्रम की मुलाकात हुई थी, दोनों के बीच बातेँ भी हुई थी l उसने सारी बातेँ सुनी भी थी l

शुभ्रा - तुम क्या सोचने लगी नंदिनी...
रुप - हाँ... कु... कुछ नहीं... क्या आपने... महांती से भी पूछा...
शुभ्रा - हाँ... महांती भी बोले... विकी की मोबाइल स्विच ऑफ आ रही है... पर घबराने से मना किया है... एक आध घंटे के भीतर खबर करेंगे... ऐसा कहा है...


फिर कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l दोनों एक दुसरे की देखने लगते हैं l

रुप - भाभी... (अटक अटक कर) मुझे लगता है... शायद भैया... आज थोड़े अपसेट होंगे...
शुभ्रा - अपसेट... क्यूँ... किस लिए...
रुप - भाभी... यह तो आप जानते ही हैं... आज प्रताप भी पार्टी में आया हुआ था... पार्टी में.... आज उन दोनों का आमना सामना हुआ था...
शुभ्रा - (झट से खड़ी हो जाती है) क्या... (फिर अचानक) पर... ओह गॉड... यह मैं कैसे भूल गई...
रुप - हाँ भाभी... शायद... भैया इसलिए... थोड़े अपसेट होंगे...
शुभ्रा - (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद) नंदिनी... तुम्हारे विकी भैया ने मुझसे कहा था... जब तक प्रताप पर... मुझे बचाने जितना कोई बड़ा एहसान नहीं कर लेते... तब तक... प्रताप से दुश्मनी की... बिल्कुल नहीं सोचेंगे...
रुप - हाँ पर... भाभी जरा यह भी सोचो ना... जब प्रताप से भैया का सामना हुआ... तब उनकी मनस्थिति कैसी रही होगी...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... एक तो मेहमान... किसी और की महफिल... अच्छा... क्या बातेँ हुईं उनके बीच...
रुप - कुछ नहीं... बस... जिसे ढूंढ रहे थे... वह आज दिख गई... पर मिली नहीं... वगैरह वगैरह...
शुभ्रा - अच्छा... मैं अपने कमरे में चलती हूँ... (जाने लगती है)
रुप - ठीक है भाभी...
शुभ्रा - (फिर पीछे मुड़ कर) नंदिनी... क्या तुम अभी... प्रताप को फोन लगा सकती हो...
रुप - (चौंक कर) क्या... पर क्यूँ...
शुभ्रा - (रुप के पास आकर) लगाओ ना प्लीज... कहीं यह उसके पास ना चले गए हों....
रुप - (शर्मिंदगी से अपना सिर झुका कर) वह भाभी... प्रताप को माइक के बारे में... पता चल गया... इसलिए उसने मुझे... ब्लॉक कर दिया है...
शुभ्रा - क्या....

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चर्र्र्र्र्...
गाड़ी 24/7 हाई वे इन के सामने रुकती है l विश्व इधर उधर देख कर गाड़ी को पार्क करता है और रेस्टोरेंट में घुसता है l टेबल नंबर सत्ताइस ढूंढने लगता है, एक वेटर को पूछता है तो उसे वह वेटर टेबल दिखा देता है l वह सत्ताइस नंबर की टेबल एक कोने पर पड़ा हुआ था, रेस्टोरेंट के भीड़ से अलग l विश्व को वहाँ पर उसे विक्रम बैठा दिख जाता है l विश्व सीधे जा कर उसके सामने बैठ जाता है l उसके बैठते ही दोनों एक दुसरे को देखने लगते हैं l विक्रम के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरती है l

विक्रम - मिस्टर विश्व प्रताप महापात्र... आखिर आ गए...
विश्व - बड़ी तड़प थी तुम्हें... मुझसे मिलने की... अकेले में बुलाया होता.... ऐसे भीड़ वाले जगह पर क्यूँ बुलाया...
विक्रम - हाँ... जानता हूँ... मर्द हो... कहीं पर भी आ सकते हो... बस तुमसे बात करना चाहता था... फेस टु फेस...
विश्व - अच्छा... तो क्या बात करना है तुम्हें...
विक्रम - तुम (सीरियस हो जाता है) विश्व प्रताप महापात्र... बीए एलएलबी... वाकई... बड़े वकील निकले... पहले ज़ख़्म दिए... और उसके बाद ज़मानत भी करवा लिए..
विश्व - क्या मतलब..
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए)(जबड़े भींच कर) ओरायन मॉल की पार्किंग में... तुमने मेरे आदमीओं को मारा... और उसके बाद तुमने मुझे मारा...
विश्व - तो... हर गलती की सजा होती है... मैंने वहाँ पर किसी को मारा नहीं था... सजा दी थी... जिन लोगों ने मेरी माँ के साथ बदतमीजी की थी...
विक्रम - मैं हार जाता... तो चलता... मगर तुम्हारे दिए हुए चोट... मेरे दिल पर छप गए...
विश्व - तो... तुम्हारे आँखों के सामने ही तो था... अपने आदमियों से ढूंढ़ा क्यूँ नहीं...
विक्रम - बात मेरी पर्सनल हो गई थी... खुन्नस निजी हो चुकी थी... किसी को इसमे घुसने की इजाजत नहीं थी... इसलिए खुद ही ढूंढ रहा था...
विश्व - तो... आज मिल गया ना... बातों से वक़्त जाया क्यों कर रहे हो फिर... खुन्नस निकालने में... झिझक महसूस हो रही है...
विक्रम - एक उपकार भी है तुम्हारा मुझपर... मेरी जान... मेरी जिंदगी को बचाया था तुमने... रंगा से...
विश्व - ओ... तो इसलिए मुझ पर... खुन्नस उतार नहीं पा रहे हो...
विक्रम - हाँ...
विश्व - कमाल है... अगर मैं ना आता... तो घर पहुँचने की बात कर रहे थे...
विक्रम - ताकि... तुम... मुझसे... सावधान रहो...
विश्व - सावधान... बड़ा अच्छा लफ्ज़ है...
विक्रम - घबराओ नहीं... हमारे घर में... सिर्फ मैं ही जानता हूँ... तुम क्षेत्रपाल परिवार के खिलाफ अपनी तैयारी में हो.... पहले तुम.. मेरे लिए सिर्फ प्रताप थे...जो मेरे पिता भैरव सिंह से खार खाए हुए है.... मेरे असिस्टेंट जब कहा कि राजा साहब से जुड़े एक केस में... किसी विश्व प्रताप महापात्र की... फिरसे खुजली हुई है... उसे ढूंढने का जिम्मा दे दिया था... और आज तुम जिस तरह से राजा साहब से पेश आए... मैं समझ गया... तुम ही... विश्व प्रताप महापात्र हो...
विश्व - वाव... वैसे... मैं इम्प्रेस जरूर हुआ हूँ तुमसे... तुम मेरे बारे में इतना कुछ जो जानते हो... पुछ सकता हूँ... कैसे...
विक्रम - हाँ... जरूर... कटक या भुवनेश्वर में... अपने कंटेक्ट्स हैं... मुझे खबर मिली... सात साल पहले की रुप फाउंडेशन स्कैम के बारे में... अदालत और होम मिनिस्ट्री में... आर टी आई फाइल किया है... जो कि... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल परिवार की ओर जाता है....
विश्व - ह्म्म्म्म... तो तुमने आपने बाप को बताया क्यूँ नहीं...
विक्रम - (थोड़ी देर चुप रह कर विश्व को घूर कर देखता है) क्यूंकि... जब तक राजा साहब हमें हुकुम नहीं देते... तब तक... हम उनके मैटर में दिमाग या ताकत नहीं खपाते...
विश्व - वाह... बड़े उसूल वाले... फर्माबरदार औलाद हो...
विक्रम - (चुप रहता है)
विश्व - क्या यही सब बताने के लिए... तुमने मुझे यहाँ बुलाया...
विक्रम - नहीं... तुम्हें... मुझसे आगाह करने के लिए...
विश्व - आगाह.... क्यूँ... क्या उखाड़ लोगे मेरा...
विक्रम - (टेबल पर अपने दोनों हाथ रख कर) मुझ पर तुम्हारा एहसान... तुम्हारा ज़मानत है... मेरा सिर और कंधे... उसके लिए तुम्हारे आगे झुका हुआ है... मैंने अपने जान से वादा किया है... जब तक तुम पर उतना बड़ा उपकार ना कर लूँ... के तुम्हारा सर उस एहसान के आगे झुक जाए... तब तक तुमको मुझसे कोई खतरा नहीं होगा...
विश्व - अच्छा... ह्म्म्म्म... तो तुम... बहुत खतरनाक हो... और मुझे... यहाँ डराने के लिए बुलाए हो...
विक्रम - नहीं... तुम किसीसे डरते नहीं हो... यह मैं जानता हूँ... पर यह सच है... के तुम यहाँ डर कर ही आए हो...
विश्व - (पीछे सीट से टिक कर आराम से बैठते हुए) सुनो मिस्टर छोटे क्षेत्रपाल... कैसी दुश्मनी करना चाहते हो... यह पहले तय कर लिया करो... तुमने सुबह तक घर पहुँचने की बात कही... ऐसा फिर कभी सोचने से पहले... अपने घर के दीवारों को इतना ऊँचा... और खिड़की दरवाजों को बुलंद जरूर कर लेना... की कोई लांघ ना पाए... क्यूंकि... परिवार मेरा तो है ही... तुम्हारा भी है...
विक्रम - (मुट्ठीयाँ भींच लेता है) विश्वा... हम वह सात साल पहले वाले क्षेत्रपाल नहीं हैं... हमारा कद रौब और रुतबा... रोज की रोज बढ़ता ही जा रहा है...
विश्व - जब सुरज ढलने को होती है... हर कद की साये बढ़ने ही लगते हैं...
विक्रम - राजा साहब के माथे पर बल ले आओ... इतनी तुम्हारी औकात नहीं है...
विश्व - राजा क्षेत्रपाल के माथे पर चिंता से बल नहीं पड़ेगा... (विश्वास भरी आवाज़ में) खौफ से पसीना बहेगा...
विक्रम - तुम अकेले हो... हम पुरा सिस्टम हैं... तुम तब तक... उछल सकते हो... जब तक... मैं मैदान में नहीं हूँ... जिस दिन राजा साहब का हुकुम हुआ... उसी दिन से... तुम्हारा खेल बिगड़ना शुरु हो जाएगा...
विश्व - तो छोटे क्षेत्रपाल... मुझे धमका रहा है... तो सुनो... तुम सिस्टम हो... तो मैं वायरस हूँ... जिसका आंटी वायरस... नहीं बना है अबतक....
विक्रम - क्षेत्रपालों के खिलाफ... इतना कंफिडेंट...
विश्व - यह क्या क्षेत्रपाल क्षेत्रपाल... लगा रखा है... कौनसा तीर मार लिया है तुम लोगों ने... क्षेत्रपाल बन कर या पैदा हो कर.. मार पड़ेगी तो दर्द होगा... होगा ना... जब हाथ कटेगी खून बहेगा... बहेगा ना... तो कहाँ से... कैसे अलग हो तुम लोग... ( टेबल पर आगे की ओर झुक कर ) तुमको... जो उखाड़ना है... उखाड़ लो...
विक्रम - कितनों से लड़ लोगे... हम सिर्फ लोगों पर नहीं... यहाँ की सरकार पर भी हुकूमत कर रहे हैं... क्यूंकि हम... बुराई के लश्कर हैं...
विश्व - सात साल... बुरे लोगों के बीच रहा... हर तरह की... बुराई के बीच रहा... उनसे लड़ा... फिर... उनपर मैंने हुकूमत की है... पर तुम क्षेत्रपाल... सिर्फ मजलुमों पर हुकूमत किया है...
फिर से कह रहा हूँ... मेरे परिवार पर नजर तब उठाना... जब लगे कि तुम्हारा परिवार महफ़ूज़ है...
विक्रम - (मुस्करा कर) जैल में... मुजरिमों बीच रहकर... मुजरिमों वाली... भाषा बोल रहे हो...
विश्व - मुजरिमों की भाषाएँ तक बदल जाती थीं... मेरे सामने... मेरी हुकूमत में... रंगा... याद तो होगा ना... xxx मॉल में... तुम्हारे जान के सामने...
विक्रम - (चुप रहता है)
विश्व - अब बोलो... किस लिए बुलाया था...
विक्रम - तुम क्या हो... समझने के लिए...
विश्व - (उठते हुए) रात बहुत हो गई है छोटे क्षेत्रपाल... कुछ देर बाद... सुबह हो जाएगी... तुम्हारे घर में.. तुम्हारा इंतजार हो रहा होगा... तुम जाओ... मैं भी जा रहा हूँ.... (कह कर विश्व जाने के लिए मुड़ता है, फिर अचानक रुक जाता है और विक्रम और मुड़ कर) विक्रम... मैं इस बात से हैरान था... उस वक़्त मेरी माँ से बदतमीजी... तुम्हारे लिए जायज था... तुमने कोई भाव नहीं दिया था... पर एक आम सहरी को गाड़ी में लिफ्ट दी... मेरे बारे में सब जानते हो शायद... फिर भी.. अपनी दिए जुबान के खातिर... मुझसे उलझे नहीं... तुम... अपने बाप से अलग हो... बहुत अलग हो... क्षेत्रपाल का सरनेम... तुम पर दाग है.. बोझ है... तुम अच्छे हो... पर एक बात याद रखना... तुम किसीको दिए जुबान से बंधे हो... पर मैं.... मैं आजाद हूँ...
Awesome updates🎉
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉सौवां (मेगा) अपडेट
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रुप कॉलेज में पहुँचते ही सीधे कैन्टीन की ओर रुख करती है, पर जब वह कैन्टीन में पहुँच कर देखती है, वहाँ पर कोई नहीं था l वह हैरान होती है फिर अपना मोबाइल निकाल कर बनानी को फोन लगाती है l

बनानी - हाय... नंदिनी जी... कहिए हम क्या खिदमत कर सकते हैं...
रुप - बनानी की बच्ची... कहाँ हो तुम सब लोग... कैन्टीन में कोई दिख क्यूँ नहीं रहा...
बनानी - हम सब... हड़ताल पर हैं...
रुप - क्या....
बनानी - हा हा हा हा...
दीप्ति - (बनानी से फोन ले कर) सुन एक काम कर... हम छठी गैंग वाले... और यह.. येड़े टेढ़े मेढ़े... वालों के साथ लाइब्रेरी में हैं.... एक जबरदस्त मीटिंग चल रही है...
रुप - क्या... किस बात की मीटिंग...
भाश्वती - (फोन लेकर) अररे... तु आ तो सही...
रुप - ठीक है.. ठीक है... मैं आ रही हूँ...

रुप फोन ऑफ कर थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ जाती है l फिर अपना सिर झटक कर लाइब्रेरी की ओर चल देती है l थोड़ी देर के बाद लाइब्रेरी में पहुँच कर देखती है राउंड टेबल पर रॉकी और उसके दोस्तों के साथ उसकी छठी गैंग बड़ी सीरियस डिस्कशन में लिप्त हैं l उसके पहुँचते ही सब उसकी ओर देख कर हाय का इशारा करते हैं फ़िर डिस्कशन में बिजी हो जाते हैं l
उनका ऐसा व्यवहार से रुप थोड़ी हैरान होती है, फिर भी उनके पास जा कर उनकी डिस्कशन सुनने लगती है l

रुप - यह तुम लोग... किस बारे में बात कर रहे हों...
रॉकी - ओह ओ.. आइए आइए... स्वागत है... बहन जी...
रुप - अच्छा... भाई ने बहन को... अब जा कर पहचाना...
रॉकी - अरे ऐसी बात नहीं है...
रुप - तो कैसी बात है...
बनानी - अरे... नंदिनी जी को बैठने के लिए जगह दो...
दीप्ति - हाँ हाँ... क्यूँ नहीं... यह लो... (कह कर एक अपनी चेयर छोड़ देती है)
रुप - यह कुछ... ज्यादा नहीं हो रहा है....
भाश्वती - (छेड़ते हुए) अरे कहाँ... हम आपके लिए कुछ भी करें... बहुत कम है.... राज कुमारी जी...
रुप - (हैरान होते हुए) यह सब क्या है...
राजु - कुछ नहीं नंदिनी जी... कल के पार्टी में... आप खास मेहमान हैं... तो हम.... मेजबानों के साथ मिलकर... आपका स्वागत करेंगे....
रुप - मतलब...
रॉकी - इसमें मतलब कहाँ है... हमारे सिम्फनी हाइट्स में... लॉ मिनिस्टर विजय कुमार जेना जी की लड़की की शादी की रिसेप्शन है... और उस पार्टी में... सबसे स्पेशल गेस्ट क्षेत्रपाल परिवार है...
रुप - (मुहँ बना कर) तो... इसमें क्या खास बात है...
रॉकी - खास बात यह है कि... हमें जेना फॅमिली की तरफ से... खास हिदायत दी गई है... योर हाईनेस परिवार को स्पेशल अटेंशन देने के लिए....
रुप - व्हाट...
भाश्वती - अरे क्या व्हाट... यह बेचारा...(रॉकी को दिखाते हुए) कितना टेंश्ड है देखो... (रॉकी उसे मुहँ बना कर दिखाता है) इसलिए... हम लोग इसका टेंशन... शेयर करने वाले हैं...
दीप्ति - देख यार... जब से हमें मालुम हुआ है कि तु उस पार्टी में... जा रही है... हम सब ने तय किया... उस पार्टी में... हम तेरे साथ रहेंगे और एंजॉय करेंगे....
रुप - पर मैं जा रही हूँ... यह तुम लोगों को.. किसने बताया....
बनानी - रॉकी ने...
रॉकी - हाँ मैंने... क्यूंकि हमे लॉ मिनिस्टर के तरफ से... गेस्ट लिस्ट मुहैया कराया गया है... उसमें तुम्हारा नाम देख कर.... मैंने इन्हें बताया... तो... इन लोगों ने प्लान किया कि... तुम्हारे साथ पार्टी एंजॉय करेंगे....
रुप - वाव...(खुश होते हुए) मतलब... तुम लोग भी इंवाइटेड हो....
सब - नहीं...
रुप - नहीं...(हैरानी से) तो फिर...
दीप्ति - अरे... होटल... रॉकी एंड फॅमिली का है... और तेरी पार्टी तो तेरे जन्म दिनसे अधूरी है ना... हमें बर्थडे वाला पार्टी... अभी तक मिला भी नहीं है...
बनानी - क्यूंकि... तु पार्टी के लिए... कभी बाहर नहीं जाती...
इतिश्री - इसलिए... हमने तय किया है... की इस लेट नाइट पार्टी में... तेरे पास रहकर... तेरे साथ एंजॉय करेंगे...
रुप - तो... तीन दिन से... यही सब प्लानिंग कर रहे थे क्या...
रॉकी - अरे कहाँ... कल जब लिस्ट में तुम्हारा नाम देखा...
तब मैंने फोन कर सबको लाइब्रेरी में बुलाया.... ताकि मेरी मदत कर सकें...
रुप - वैसे... यह आइडिया... तुम्हारा नहीं लग रहा... किसका है...
सब - बनानी का है...

रुप बनानी की ओर देखने लगती है l बनानी झिझक और शर्म के मारे अपना सिर नीचे कर लेती है l रुप अब रॉकी के तरफ देखती है I रॉकी भी चेहरा घुमा लेता है l

रुप - ह्म्म्म्म... तो यह कहानी... शुरु हो कर पटरी पर दौड़ने कब लगी...
सुशील - ओह.. कॉम ऑन... नंदिनी... यह सब रॉकी के मेडिकल एडमिट होने के बाद शुरू हुआ... अब यह मत कहना... तुम्हें मालूम नहीं था...
रुप - (बनानी को देख कर) ओके ओके... अब शर्माओ भी मत... (बनानी की हाथ को पकड़ कर) आई एम हैप्पी वीथ यू...
वह कहते हैं ना...
हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता...
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता....
अपना प्यार मुबारक हो....

सभी ताली बजाने लगते हैं l

तब्बसुम - वाह वाह वाह... क्या बात है... कितना सच कहा है... किसी को जमीन नहीं मिलता... किसीको आसमान नहीं मिलता वाह...
रुप - बड़ी देर लगी तुझे... वाह वाह जाताने में...
तब्बसुम - बस तूने शेर ही अर्ज़ ऐसा किया कि... रहा ना गया... बरबस मुहँ से निकल गया... आखिर जिंदगी की सच्चाई जो है इस में...
रुप - तब्बु... तु ठीक तो है ना...
तब्बसुम - हाँ... कोई शक...
रुप - अच्छा ठीक है... अब बोलो... एक्चुयली... तुम लोगों का क्या प्रॉब्लम है...
दीप्ति - अरे कुछ नहीं सच में... देख तेरी बर्थ डे वाली पार्टी... अधुरी थी... और अब तीन दिन से गायब रही... पता नहीं क्यूँ... हम भी रॉकी की मदत इसी शर्त पर कर रहे हैं... ताकि हम सब तेरे आसपास ही रहें... तुझसे बातेँ करते रहें और पार्टी का लुफ्त उठाते रहें...
रुप - यह कोई लॉजिक नहीं हुआ... इस में मेरे थोड़े ना पैसे खर्च हो रहे हैं...
भाश्वती - तेरे ना सही... पर किसी के तो खर्च हो रहे हैं ना... हम बस तेरे साथ... पार्टी का लुफ्त उठाने जा रहे हैं...

जवाब में रुप कुछ नहीं कहती है l एक उदासी सी छा जाती है उसके चेहरे पर l उसे यूँ चुप देख कर

दीप्ति - क्यूँ तु खुश नहीं है... हमारे वहाँ जाने पर...
रुप - बात ऐसी नहीं है.... मैं... और मेरे भाई भाभी होते तो बात अलग होती... मेरे साथ...(चुप हो जाती है) (फिर) राजा साहब होंगे... तुम लोग शायद मेरे आसपास भी ना फटक पाओगे... (यह सब सुन कर सभी कुछ देर के लिए अपना काम रोक देते हैं और चुप हो जाते हैं)

रॉकी - हम जानते हैं नंदिनी... इसीलिए हम सब... सर्विस बॉय और सर्विस गर्ल की तरह वहाँ पर मौजूद होंगे...
रुप - (हैरान हो कर)क्या... पर क्यूँ..
भाश्वती - (चहकते हुए) अरे लाइफ में... थोड़ी एडवेंचर होनी चाहिए कि नहीं... हम वहाँ बिन बुलाए मेहमान होंगे... और उस लॉ मिनिस्टर की जेब से खा जाएंगे...

यह सुनते ही सभी हँस देते हैं और उनके साथ साथ रुप भी हँस देती है l

रुप - ओके... देन... मुझे भी लिस्ट दिखाओ... देखते हैं... और कौन कौन आ रहे हैं...

रॉकी उसे एक लिस्ट देता है l रुप उस लिस्ट में नाम देखते देखते हैं के जगह रुक जाती है l क्यूँकी वहाँ पर मिस्टर एंड मिसेज तापस प्रतिभा सेनापति एंड फॅमिली दिख जाती है l वह नाम देखते ही उसकी आँखे बड़ी हो जाती हैं l


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कमरे में खामोशी छा चुकी थी l वीर ने जिस लहजे से लड़के वालों को हड़काया था उससे कमरे में मौजूद सभी चुप हो गए थे I कोई डर के वजह से, कोई गुस्से से कोई हैरानी से और कोई खुशी से I पर अनु एक आत्म संतोष से गर्व से वीर की ओर देखते हुए ख़ामोश थी l अनु को वीर अपने से अलग करता है l
खामोशी का असर ऐसा था कि कमरे में घुम रही पंखे की आवाज के साथ साथ साथ दीवारों पर फड़फड़ाते कैलेण्डर की आवाज भी सुनाई दे रही थी l
वीर देखता है सदमे से दादी अपनी जबड़े भींच कर कुर्सी पर बैठी हुई है, उनकी आँखे फैली हुई है, गाल और होंठ थरथरा रहे थे और सांस जोर जोर से ले रही थी l वीर कमरे में मौजूद सभी को हाथ जोड़ कर इशारे से बाहर जाने को कहता है l सभी कमरे से ही नहीं घर से बाहर चले जाते हैं l वीर आगे बढ़ता है और दादी के सामने घुटनों पर बैठ जाता है l अपने दोनों हाथों से दादी के हाथ पकड़ लेता है l

वीर - दादी... (दादी अपना मुहँ घुमा लेती है) तुम्हारा नफरत जायज है दादी... अरे.. जब जानवर... पंछी तक... अपने बच्चों को बचाने के लिए... किसी भी हद तक जा सकते हैं... तब तुम तो... दादी हो... अनु की... तुमसे कोई गलती नहीं हुई है....

हाँ... मैं कोई... अच्छा लड़का नहीं हूँ... यह सच है... शायद... बुराई की किताब में... कोई बुराई ऐसी हो... जो मुझ में न हो... पर... मैं जो भी था... जैसा भी था... वह सब अनु से मिलने से पहले था... दादी... अनु की कसम है...अनु की कसम है दादी... अनु के मेरी जिंदगी में आने के बाद... बुराई मेरे पास फटकी नहीं है....(दादी की हाथ को हिलाते हुए) इतनी अच्छी है अनु... (कुछ देर चुप रह कर, अपना चेहरा झुका कर) हाँ दादी... यह भी सच है... मेरे अंदर की हवशी ने... अनु को नोचने खाने की ख्वाहिश पाली थी... पर जब जब अनु मेरे सामने आती थी... वह हवशी मारा जाता था... अनु की भोले पन और मासूमियत के आगे टिक नहीं पाता था.... (अपना सिर उठा कर) आज अनु से... मुझे सच्चा प्यार है... प्यार है दादी... प्यार... इतना... की अगर वह ना मिली... तो मैं मर जाऊँगा...
दादी... ऐ दादी...(आवाज भर्रा जाता है) मैं सच कह रहा हूँ... मुझे अनु से जितना प्यार है... अनु को मुझसे उतना ही प्यार है... अगर आप उसकी शादी कहीं और कर देती हो... तो शायद वह जी ले... पर वह कभी... खुश नहीं रह पाएगी... तुम तो दादी हो उसकी... उसे उम्र भर रोने के लिए... कैसे छोड़ सकती हो... मैं जानता हूँ... मुझसे कई सौ.. हजार गुना... अच्छे लड़के मिल जाएंगे... पर अनु... सच में दादी... किसी के साथ.. कभी भी खुश नहीं रह पाएगी... वह... वह सिर्फ मेरे लिए... इस दुनिया में आई है... उसके बिना मेरे वज़ूद का... कोई मतलब ही नहीं रह जाता.... अपने जिस भगवान को पूजती हो... उस भगवान से पुछ कर देख लो... वह भी मेरे लिए गवाही देंगे... प्लीज दादी... मुझे तुम्हारी अनु चाहिए... देदो मुझे... चाहे तो... मेरी सच्चाई का इम्तिहान लेलो...
दादी - (वीर की हाथों को झटक कर झिड़कते हुए) क्या... क्या इम्तिहान लूँ मैं तेरा.... क्या कर सकता है तु...
वीर - जान दे सकता हूँ...
दादी - हूँह्ह्ह्ह्ह...
वीर - आजमाके देख लो...

दादी की जबड़े भींच जाती हैं l वह वीर की और गुस्से से देखती है l फिर खुद को संभालते हुए

दादी - मुकर तो नहीं जाएगा...
वीर - अपनी अनु की कसम कसम... मांग कर तो देखो... अगर मर ना गया... तो थूक देना मुझ पर...

दादी कुछ निश्चय करते हुए अपना सिर हिला कर अनु की ओर देखती है I अनु की आँखे हैरानी और डर के मारे फैल गई थी और वह कुछ कहने की कोशिश करती है, पर दादी उसकी कोशिश को धता बता कर वहाँ से उठ जाती है और किचन के अंदर चली जाती है l किचन में से बर्तन वगैरह की आवाज बाहर आने लगती है l वीर उठ खड़ा होता है, अनु देखती है वीर के चेहरे पर कोई भाव नहीं है l वीर का चेहरा धीरे धीरे धुँधला होने लगती है l अनु अपनी आँखे झटक कर आँसू पोंछती है l तभी लाल कपड़े में ढक कर एक थाली हाथ में लेकर दादी कमरे में आती है l दादी वीर की आँखों में देखती है l वीर के आँखों में लेश मात्र डर नहीं था I

दादी - (आपना सिर हाँ में हिलाते हुए, जैसे फिर से कुछ निश्चय कर लिया हो, वीर से) हटाओ... इस कपड़े को

वीर कपड़ा हटाता है, अनु अपने दोनों हाथों से कानों को ढक कर अपनी आँखे बंद कर लेती है l वीर थाली में कुमकुम और हल्दी में भीगे धागों में बंधे सुखे हल्दी का एक टुकड़ा देख कर हैरान हो जाता है l

वीर - यह... यह क्या है दादी...
दादी - (मुस्कराते हुए) शगुन है बेटा... यह शगुन है... (यह सुन कर अनु भी हैरान हो कर अपनी दादी को देखने लगती है)
वीर - श.. शगुन...
दादी - हाँ...(शगुन की थाली को एक स्टूल पर रखते हुए) शगुन... मुझे अनु के लिए... तुम मंजूर हो... भगवान से क्या पूछूं... इतने छुपा कर रखने के बाद भी... उस बच्ची के जरिए... तुम्हें यहाँ पहुँचा दिया... बच्चे तो भगवान की मुरत होते हैं... तुमने बेशक... मंगनी की रस्म में अड़ंगा डाला... इसपर... लोग तरह तरह की बातेँ भी करते... पर... तुमने... उन्हें अपनी और अपने परिवार की पहचान से... उनका मुहँ बंद करा दिया... और मेरे सामने घुटनों पर आकर... अपने लिए अनु को मांगा... हाँ तुम्हारे बारे में... मेरा खयाल अच्छी नहीं है... पर... तुम्हारे आँखों में... बातों मैं.. जज्बातों में आज पुरी सच्चाई और ईमानदारी देखी है... बुढ़ी हो चुकी हूँ... ज़माना देखा है मैंने... आज अपनी उम्र की अनुभव से कह सकती हूँ... तुम ही अनु के लायक ही... और तुम ही अनु के लिए बने हो...

इतना सुनने के बाद अनु अपनी दादी के गले लग जाती है और फुट फुट कर रोने लगती है l दादी भी अनु को गले से लगा कर l

दादी - अब क्यूँ रो रही है... तुझे तो खुश होना चाहिए... तेरा विश्वास जीत गया है...

दादी अनु को खुद से अलग करती है और अनु के चेहरे को उठा कर देखती है, अनु भी अपनी दादी की ओर देखती है, दादी की विश्वास भरी मुस्कराता चेहरा देख कर फिर से दादी के गले लग जाती है l

दादी - तु सच कह रही थी... मेरी बच्ची... तुम दोनों का रिश्ता... वाकई उतना ही पवित्र है... जितना कि दुनिया की नजरों से छुपा कर... एक माँ... अपने बच्चे को दुध पिलाती है... (कह कर दादी अनु के सिर दिलासा देते हुए हाथ फेरती है)

दादी और पोती का यह प्यार देख कर वीर के आँखों में भी पानी आ जाती है l

दादी - (वीर को देखते हुए) राजकुमार...
वीर - (भर्राइ आवाज में) प्लीज दादी... राजकुमार नहीं... वीर कहो...

दादी अपनी कुर्सी पर बैठ जाती है और दोनों को अपने पास बैठने को कहती है l अनु और वीर दोनों दादी के अगल बगल बैठ जाते हैं l

दादी - जानते हो वीर... अनु की माँ... इसके दुसरे साल में ही बीमारी के चलते चल बसी... तब अनु को उसके पिता ने अपने सीने से लगा कर पाला... इसे आलसी और पढ़ाई से भागने वाली बना रहा था.... मैं हमेशा उसे... गाली देती थी... क्यूँ इसे पढ़ने नहीं दे रहा है... बड़ी हो कर क्या करेगी... कौन व्याह करेगा... (हँसते हुए) इसके बाबा... मुझे जवाब में कहा करता था... मेरी बेटी लाखों में नहीं... करोड़ों में एक है... देखना इसे ब्याहने.... एक राजकुमार आएगा....

कह कर चुप हो जाती है, पहले अनु के चेहरे पर हाथ फ़ेरने के बाद वह वीर के चेहरे पर हाथ फेरते हुए l

दादी - (भर्राइ आवाज में) आज सच में... अनु के लिए... एक राजकुमार आया है.... (आँखों से आंसू छलक पड़ते हैं) वीर... मेरी अनु का खयाल रखेगा ना...
वीर - (दादी के दोनों हाथों को पकड़ कर) अपनी जान से भी ज्यादा...
दादी - कभी... उसका साथ नहीं छोड़ेगा ना...
वीर - मरते दम तक नहीं... जन्म जन्म तक नहीं छोडूंगा...
दादी - क्या तुम्हारे घर वाले.... (रुक जाती है)
वीर - (समझ जाता है) दादी... तुम यहाँ जो शगुन लाई थी... उसे लड़के की माँ को लेनी चाहिए ना... तो वादा रहा... मेरी माँ.... तुम्हारे पास अनु की हाथ मांगने आएगी... उसके बाद ही तुम अनु को... नौकरी के लिए भेजना... तब तक मैं भी वादा करता हूँ... मैं अनु से नहीं मिलूंगा....
दादी - (चौंक कर) क्या... रानी जी आयेंगी...
वीर - (खड़े हो कर) हाँ... अनु के बाबा का सपना पुरा होगा... सच होगा...

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विश्व अपने बेड पर लेटा हुआ था l वह नज़रें घुमा कर दीवार पर लगे घड़ी को देखा l शाम हो चुकी थी l वह वार्डरोब की ओर जाता है और उस में रखे एक वुडन बॉक्स को निकाल कर उसे खोलता है l उसमें रखे तलवार की मुठ जो उसे उसकी रिहाइ के दिन डैनी ने भेंट करी थी l विश्व उस तलवार की मुठ को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर उठाता है l उस तलवार की मुठ को अपने आँखों के सामने लाकर मुठ की बारीकियों को देखने लगता है l यह मुठ डैनी की तरफ से उसे मिला था, पर यह एक भेंट से कहीं ज्यादा एक मिशन था l मिशन जो उसकी जिंदगी का एक मात्र लक्ष और उद्देश था l विश्व उस मुठ देखते हुए अपनी खयालों में खो जाता है

विंगचुन पर विश्व अपना हाथ तेजी से चला रहा था l दुर से डैनी उसे देख रहा था l विश्व हिट्स और ब्लॉक्स की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी l स्पीड के साथ साथ हर हिट्स पर उसकी ताकत का इम्पैक्ट अनुरुप बढ़ता ही जा रहा था l कुछ ही देर बाद विंगचुन का बायां हैंड टुट कर गिर जाता है l वह हैंड टुट कर गिरते ही विश्व लंबी लंबी सांसे भरते हुए विंगचुन पर मुहँ के बल टिक कर खड़ा रहता है l

डैनी - यह क्या है विश्व...
विश्व - डैनी भाई आप... आप कब आए...
डैनी - कुछ ही देर हुए....

विश्व विंगचुन से अलग होता है और पास रखे टावल से अपने चेहरे से पसीना पोछने लगता है l डैनी रिंग के अंदर आता है और अपना पोजीशन लेता है l

डैनी - आओ... दिखाओ... कितने तेज हो...
विश्व - रहने दीजिए डैनी भाई....
डैनी - थके हुए हो... या डर रहे हो...
विश्व - दोनों नहीं...
डैनी - तो फिर हाथ आजमाने से... पीछे क्यूँ हट रहे हो....
विश्व - कुछ नहीं डैनी भाई... मैं नहीं चाहता... आपसे लड़ते वक़्त... मैं काबु से बाहर हो जाऊँ...
डैनी - चलो दिखाओ फिर... तुम कितने बेकाबु हो...

विश्व अपना टावल फेंकता है और रिंग के अंदर आ कर डैनी के सामने पोजिशन लेता है l डैनी हमला करता है विश्व कभी डॉज तो कभी ब्लॉक करते हुए अपना बचाव करता है l फिर भी डैनी की एक हिट उसके जबड़े पर पड़ती है l विश्व टर्न बक्कल पर जा गिरता है l फिर खुद पर खीज जाता है, वह जल्दी से उठता है और पोजिशन बनाकर अटैक शुरु कर देता है l कुछ देर बाद फिर उसे डैनी हिट करता है और परिणाम वही I

डैनी - ना जाने कितनी बार कहा है... आज भी कहता हूँ... अपने जज्बातों पर काबु रखो.... यह जो गुस्सा है.... यह एक जानवर है... उसे छोड़ने के लिए नहीं कह रहा हूँ... बस ... उस पर काबु रखो... उसे पालो... के वह तुम्हारे ऊपर कभी... हावी ना हो पाए...
विश्व - (अपना सिर हाँ में हिलाते हुए उठता है)
डैनी - गुस्सा एक हथियार है... एक कांच का हथियार... फ्राजिल... ऑलवेज हैंडल विथ केयर.... क्यूंकि यह अगर टुटा... तुम्हें भी नुकसान पहुंचाएगी....

विश्व फिर अटैक शुरु करता है l कुछ देर बाद उसका एक हिट डैनी को लगता है l डैनी कुछ दूर जा कर टर्न बक्कल पर गिरता है l

डैनी - (संभलने के बाद) हाँ... यही... मैं तुम्हें... यही समझाना चाहता था... इंसानी फितरतों में... गुस्सा और गुरूर सामिल रहता है... बहुत से लोगों का यह होता है... जिसे वे अपना हथियार बना कर जीते हैं... और जीतते भी हैं... तुम्हें उनके इसी हथियार को... जो उनकी ताकत बनी हुई है... कमजोर करना है... क्यूंकि इंसान से गलतियां तभी होती है... जब उसपर... उसका गुरुर और गुस्सा चरम पर होता है...
विश्व - (अपना सिर ऐसे हिलाता है जैसे कुछ समझ गया)
डैनी - देखो विश्व... तुम जब जब जिससे भी भिड़ोगे... उसकी ताकत को.. उसीके खिलाफ इस्तमाल करना... क्यूंकि गुस्सा इंसान को कमजोर कर देता है... याद रखना.... अगर दुश्मन की कमजोरी को भेद गए... समझो अपना लक्ष को साध गए...

अपनी खयालों से बाहर आता है l और अपनी हाथ में लिए मुठ को फिरसे देखता है और मुस्कराते हुए

विश्व - अब लक्ष सामने है... साधना बाकी है... मुझे याद है... बस उसे याद दिलाना है...

- अपने आप में क्या बड़बड़ा रहा है...

यह प्रतिभा की आवाज़ थी l विश्व मुठ को वुडन बॉक्स के अंदर रख कर वार्डरोब बंद करते हुए और बिना पीछे देखे

विश्व - तुम कब आई माँ...
प्रतिभा - बस अभी अभी... पर तु यह मन ही मन... क्या बड़बड़ा रहा था...
विश्व - (पीछे मुड़ कर प्रतिभा को देख कर) माँ... क्या तुम नर्वस हो...
प्रतिभा - क्यूँ... मैं क्यूँ नर्वस होउंगी भला...
विश्व - (प्रतिभा के पास पहुँच कर) सच सच बताओ माँ...
प्रतिभा - (विश्व की आँखों में झांकते हुए) क्या तुझे लगता है... मुझे देख कर बोल...
विश्व - (अपनी आँखे फ़ेर लेता है) नहीं... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... सबकी आँखे पढ़ लेता है... अपनी माँ की आँखे पढ़ने से डर लगता है...
विश्व - (अपनी बेड पर बैठ कर) हाँ... डरता हूँ... तुम्हारी आँखों में... मेरे लिए... अगर कहीं डर और झिझक दिख गया... तो मैं... कमजोर पड़ जाऊँगा...
प्रतिभा - (एक चेयर को खिंच कर विश्व के पास बैठती है) तो फिर इतना कहूँगी... की तु मुझे समझ नहीं पाया.... मेरे आँखों में तेरे लिए चिंता दिखेगी... पर डर हरगिज़ नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गया....
विश्व - चिंता और डर के बीच... बहुत ही पतली रेखा होती है माँ...
प्रतिभा - अच्छा.... तो तु मुझे समझायेगा...
विश्व - ठीक है माँ... सॉरी... पर तुम कल... उस भैरव सिंह के सामने डर मत जाना...
प्रतिभा - ओ.. तो इसी बात लेकर तु डर में था...
विश्व - मैं नहीं डर रहा था...
प्रतिभा - मुझे तो लगा तु डर रहा है...
विश्व - ओ.. हो माँ.. तुमसे बात करना ही फिजूल है...
प्रतिभा - अब हारने लगा तो बात फिजूल हो गई...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) सॉरी... माँ गलती हो गई...
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसते हुए) बहुत जल्दी हथियार डाल दिया...
विश्व - मैं तुमसे जितना ही नहीं चाहता...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... बहुत फर्माबर्दार बेटा हो गया है... वैसे तुने बताया नहीं...
विश्व - क्या...
प्रतिभा - यही... की सबकी आँखे पढ़ लेने वाला मेरा बेटा... अपनी माँ की आँखे क्यूँ नहीं पढ़ पा रहा है...
विश्व - माँ... अभी तक सिर्फ दो ही जन है... जिनकी आँखे नहीं पढ़ पा रहा...
प्रतिभा - क्या... एक तो मैं हुई... दुसरा... वेट.. वेट.. वेट... कहीं नंदिनी तो नहीं...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... इसका मतलब नंदिनी ही है....
विश्व - (अपना चेहरा मोड़ कर झुका लेता है)
प्रतिभा - वैसे... (चेयर से उठ कर) तुझे एक... इंफॉर्मेशन देने आई थी... (कह कर जाने लगती है)
विश्व - (हैरानी से) क्या... कैसी इंफॉर्मेशन माँ...
प्रतिभा - (दरवाजे पर विश्व की ओर मुड़ते हुए) जो जो भी इंवाइटेड हैं... वह सब अपने अपने परिवार समेत आ रहे हैं...

विश्व की आँखे फैल जाती है l वह हैरानी भरे नजरों से प्रतिभा की ओर देखने लगता है l प्रतिभा अपनी मुस्कराते हुए अपनी भवें नचाते हुए विश्व को देखती है l

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अगली शाम बारंग रिसॉर्ट
ड्रॉइंग रुम में विक्रम, वीर और पिनाक तीनों बैठे भैरव सिंह का इंतजार कर रहे हैं l
कुछ देर बाद भैरव सिंह अपने कमरे से निकल कर सीढ़ियों उतरते हुए आता है l उसे सीढ़ियों से उतरता देख तीनों अपनी अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं l
भैरव सिंह एक सिंहासन नुमा सोफ़े पर बैठ जाता है और इशारे से इन लोगों को बैठने के लिए कहता है l तीनों बैठ जाते हैं l

भैरव सिंह - युवराज...
विक्रम - जी.. राजा साहब...
भैरव सिंह - तो आपने दुश्मन को ढूंढ लिया...
विक्रम - जी... वह आज पार्टी में... मेहमान भी है...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो चींटी निकला है.. बाज से लड़ने...
वीर - फिर भी... कुछ दिनों के लिए ही सही... हमारे नाक में दम तो कर रखा था... हमारे ऊपर हमले करवा कर... मीडिया में... हमारे बारे में आलोचना करवा कर... हमारी साख भी गिरा दिया था...
पिनाक - युवराज ने... उसे... उसके घर में घुस कर... उसकी हालत बिगाड़ कर रख दिया....

भैरव सिंह देखता है विक्रम कुछ शायद पुछना चाह रहा है पर पुछ नहीं पा रहा है l

भैरव सिंह - क्या बात है... युवराज... क्या आपसे कुछ छूट गया है...
विक्रम - (झिझकते हुए) जी... अगर आप बुरा ना माने तो...
भैरव सिंह - जी कहिए...
विक्रम - (अटक अटक कर) यह.. वि.. वि. विश्व... कौन है...

विश्व का नाम सुनते ही भैरव सिंह की भवें पहले तन जाते हैं और फिर सिकुड़ जाते हैं l वह जवाब देने के वजाए विक्रम को घुर कर देखने लगता है l विक्रम उसे अपनी ओर घुरता हुआ देख कर सिर नीचे कर लेता है l कुछ देर बाद

भैरव सिंह - क्यूँ... क्या हुआ...
पिनाक - (इससे पहले विक्रम कुछ कहता) वह कुछ नहीं है राजा साहब... विश्व अब जैल से छूट गया है... और रुप फाउंडेशन स्कैम की केस को रीओपन करवाने की जुगाड़ में है... हमने प्रधान और रोणा को... उसे संभालने के लिए लगा दिया है...
वीर - (उत्सुकता वश) विश्व... यह... विश्व कौन है...
पिनाक - (दांत चबाते हुए) आप हमारे बराबर बैठे हैं... मतलब यह नहीं कि... हर मामलों में आपनी नाक घुषेड़े..
भैरव - बस... (पिनाक चुप हो जाता है) (विक्रम से) आपकी क्या उत्सुकता है... उसके बारे में जानने की...
विक्रम - कुछ नहीं... महांती कह रहा था... कोई पुरानी दुश्मनी है... अभी अभी जैल से छुटा है... खुन्नस पाले हुए है.... वही शायद निकालने वाला है....
भैरव - (चेहरा एकदम सपाट हो जाता है, पर आवाज़ में गंभीरता बढ़ जाती है) वह... हमारे टुकड़ों में पलने वाला... एक कुत्ता था... हम ही पर भौंकने की कोशिश की थी... तो उसकी सजा सात साल की हुई... आगे अगर उससे कोई गुस्ताख़ी हुई... तो ....
पिनाक - तब उसे रंग महल की जहन्नुम में फेंक दिया जाएगा... राजा साहब....

कमरे में कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l भैरव सिंह बात बदलते हुए

भैरव सिंह - आपने... युवराणी जी को समझा दिया है ना... राजकुमारी रुप को लेकर सही समय पर पहुँचने के लिए....
विक्रम - जी... वे लोग... सर्किट हाउस में पहुँच कर... छोटी रानी माँ को साथ में लेकर... पहुँच जाएंगे...
वीर - जब निमंत्रण पुरे परिवार के लिए था... तो हम अलग अलग क्यूँ जा रहे हैं...
पिनाक - आप फिर से बीच में घुसे...

वीर कुछ कहने को होता है कि विक्रम उसे इशारे से रोक देता है l

भैरव सिंह - उन्हें कहिए... हम सब... एंट्रेंस में... एक साथ मिलकर अंदर प्रवेश करेंगे... इसलिए आपसे तालमेल बिठा कर पहुँचने के लिए उनसे कह दीजिए....
विक्रम - जी कह दिया है....
वीर - तो... हमें कब निकलना है...
पिनाक - आपसे सब्र क्यूँ नहीं हो रहा है... क्षेत्रपाल परिवार वहाँ पर ना सिर्फ मुख्य अतिथि हैं... बल्कि अति विशेष व प्रमुख अतिथि भी हैं... इसलिए... हम देर से पहुंचेंगे....

उधर द हैल में सीढ़ियों के पास शुभ्रा खड़ी रुप का इंतजार कर रही थी l थोड़ी देर के बाद रुप सीढ़ियों से उतर कर नीचे आने लगती है l शुभ्रा देखती है, आज रुप के चेहरे पर एक अलग सा रौनक था, एक अलग सा आकर्षण दिख रहा था l रुप के नीचे आते ही

शुभ्रा - (हैरानी से) वाव क्या बात है नंदिनी... आज तुमने खुदको... खुब सजाया है... यह लहंगा चोली पर आँचल... हाथों में चूड़ियाँ... हर हिस्सा छुपा हुआ है... पर ख़ूबसूरती दमक रही है... (छेड़ते हुए) किसी पर बिजली गिराने का इरादा है क्या...
रुप - (मुस्कराते हुए) हाँ भाभी.... अखिर पार्टी में हम जा रहे हैं... वह भी स्पेशल गेस्ट बन कर... तो सब की नजर हम पर होनी चाहिए कि नहीं...
शुभ्रा - एक मिनट... तुम्हारे मन में क्या चल रहा है नंदिनी...
रुप - क्या चल रहा है.... मतलब...
शुभ्रा - देखो नंदिनी... आज से पहले जितनी भी पार्टियाँ हुई है... राजा साहब कभी भी... अपने घर की औरतों को इजाजत नहीं दी थी.... मैं सिर्फ उन्हीं पार्टियों में शिरकत की थी... जहां तुम्हारे भैया लेकर गए थे... तुम अच्छी तरह से जानती हो.. आज हम क्यूँ जा रहे हैं... क्यूंकि उद्योग व परिवहन मंत्री... गजेंद्र नाथ सिंह देव अपने परिवार के साथ आ रहे हैं... उनके बेटे जो अगले इलेक्शन में खड़े होने वाले हैं... उनके साथ तुम्हारा रिश्ता तय किया है.... क्या तुम...(हैरान हो कर) उनके लिए खुद को सजाया है...
रुप - (मुस्कराते हुए) भाभी... आप जब सजती हो... तो किसके लिए सजती हो....
शुभ्रा - यह भी कोई पूछने वाली बात है... (अचानक उसकी आँखे फैल जाती है) क्या... इसका मतलब... प्रताप... उर्फ़ तुम्हारा अनाम आ रहा है....
रुप - (मुस्कराते हुए शर्मा कर अपना सिर झुका लेती है)
शुभ्रा - क्या...(हैरान हो कर) पर कैसे...
रुप - क्या कैसी भाभी... लॉ मिनिस्टर की बेटी की शादी की रिसेप्शन है... और प्रतिभा आंटी... स्टेट की बहुत बड़ी वुमन एक्टिविस्ट और लॉयर हैं...
शुभ्रा - ओ... पर तुम्हें कब मालूम हुआ... प्रताप आ रहा है...
रुप - (शर्माते हुए) कल ही... वह एक्चुयली... पार्टी रॉकी के होटल में हो रही है... यह पहला मौका है... उसके पापा ने उसे... यह पार्टी मैनेज करने के लिए जिम्मेदारी दे दी... उसके मदत के लिए... स्टाफ के लिबास में... मेरे दोस्त भी होंगे वहाँ पर...
शुभ्रा - व्हाट...
रुप - चले भाभी... हम लेट हो रहे हैं...
शुभ्रा - हाँ हाँ चलो...

फिर शुभ्रा और रुप हैल से निकल कर दोनों गाड़ी में बैठ कर सर्किट हाउस की निकलते हैं l फिर अचानक शुभ्रा को कुछ याद आता है, वह अपनी वैनिटी बैग से एक छोटा सा बॉक्स निकाल कर रुप की ओर बढ़ाती है l

रुप - यह...
शुभ्रा - तुम्हारे भैया ने दी है...
रुप - ओ.. अच्छा...
शुभ्रा - एक बात पुछूं...
रुप - पूछिये ना...
शुभ्रा - मैंने खोल कर देखा है... इसमें एक माइक्रो माइक और माइक्रो ईयर फोन है... तुम इसे विकी से क्यूँ मांगा... और इसका क्या करोगी...
रुप - भाभी.. झूठ तो आपसे बोलूंगी नहीं... पर भैया से आधा झूठ बोला...
शुभ्रा - क्या... क्या झूठ बोला...
रुप - यही की... मेरा रिश्ता जहां तय हो गई है... मुझे उनके डिस्कशन सुननी है... के मेरे बारे में... क्या राय रखते हैं...
शुभ्रा - (हैरान हो कर) विकी तैयार भी हो गये...
रुप - कहाँ... बहुत मिन्नतें की.. तब जा कर पिघले...
शुभ्रा - पर मैं जानती हूँ... तुम शायद इसे... प्रताप की बातेँ सुनने के लिए इस्तमाल करोगी...

रुप का चेहरा एकदम से गंभीर हो जाती है l उसका सीरियस चेहरा देख कर शुभ्रा को अचम्भा होती है l

शुभ्रा - नंदिनी...
रुप - हूँ... (चौंक कर देखती है) क्या हुआ...
शुभ्रा - तुम बताओ... तुम्हारा चेहरा.. यूँ उतर गया... अचानक से तुम इतनी... सीरियस कैसे हो गई... और क्यूँ...
रुप - (कुछ देर चुप रहने के बाद) भाभी... जिस मॉल में... विक्रम भैया... और प्रताप की झड़प हुई थी... याद है...
शुभ्रा - हाँ...
रुप - आपने मुझे... किस तरह झिड़का था... आपने क्या देखा... क्या समझा मैं नहीं जानती... पर मुझे इतना समझ में आ गया कि... प्रताप कोई पुरानी खुन्नस.... राजा साहब से है...
शुभ्रा - तो...
रुप - आज हो ना हो... राजा साहब से उसकी मुलाकात होगी....
शुभ्रा - हो सकती है... और शायद नहीं भी हो सकती...
रुप - नहीं भाभी... अगर वह आएगा... तो सिर्फ़ राजा साहब के लिए ही आयेगा...
शुभ्रा - वह तुम्हारे लिए भी आ सकता है...
रुप - हाँ शायद... पर राजकुमारी जी... आज उससे नहीं मिलने वाली...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - क्यूँ की मुझे उसके बारे में... बहुत कुछ जानना है... अगर क्षेत्रपाल परिवार से उसकी दुश्मनी है... तो राजा साहब के सामने... उसकी दुश्मनी में कितना ताप है... यह मुझे आज देखना है....
शुभ्रा - तो फिर तुमने खुद को इतना क्यूँ सजाया है....
रुप - मैं खुद जानना चाहती थी... की मैं कितनी खूब सूरत हूँ....
शुभ्रा - हे भगवान कभी कभी मुझे लगता है... तुम पागल हो...
रुप - हाँ शायद...
शुभ्रा - ओह गॉड... ओके... लेट चेंज द टॉपिक... तुम्हें क्या लगता है... उन दोनों का आमना सामना होगा...
रुप - पता नहीं... पर अगर होगी... तो मुझे प्रताप का रिएक्शन देखना है...
शुभ्रा - वह देख कर क्या करोगी...

रुप, शुभ्रा की ओर एक सपाट भाव से देखती है l उसकी बड़ी बड़ी आँखों में ना सिर्फ सवाल बल्कि आशाओं का गहरा समंदर को महसूस कर पा रही थी l

रुप - भाभी... आने वाले कल में.... दो चीजें में कुछ भी हो सकता है.... पहला प्यार और यार के लिए बगावत... या फिर दुसरा... क्षेत्रपाल परिवार की अहंकार की बेदी पर... खुद की बलि....

उधर विश्व धीरे धीरे गाड़ी चला रहा था l पीछे प्रतिभा और तापस दोनों बैठे हुए थे I तापस अपने में मस्त कभी गुनगुना रहा था तो कभी सिटी बजा रहा था l

प्रतिभा - (थोड़ी चिढ़ते हुए) हम एक शादी की रिसेप्शन में जा रहे हैं... किसी बारात में नहीं...
तापस - (अपनी सिटी बजाना छोड़ कर) लो... मुझे आज ही मालुम हुआ... बारात में सिटी बजायी जाती है..
प्रतिभा - तो फिर किस खुशी में आप सिटी बजा रहे हैं...
तापस - अरे भाग्यवान... यह भाग्य की बात है... की मैं आज तुम्हारे बगल में बैठा हुआ हूँ...
प्रतिभा - इसमें भाग्य कहाँ से आ गया...
विश्व - ओ हो माँ... आज डैड खुश हैं... इसी दिन के लिए तो उन्होंने... मुझे ड्राइविंग स्कुल भेजा था...
प्रतिभा - अच्छा... तो इस खुशी में सिटी बज रही थी...
तास - और नहीं तो... तुम माँ बेटे... हमेशा मुझे ही ड्राइवर बना देते थे... हा हा हा... (अपनी हाथ मलते हुए) आज मैं बहुत खुश हूँ...
प्रतिभा - अच्छा तो यह बात है...
तापस - कोई शक़... (विश्व से) क्यूँ बेटा... तुझे बुरा लग रहा है क्या...
विश्व - नहीं डैड... बिल्कुल भी नहीं...
तापस - (प्रतिभा से) देखा... तुम खामखा बात को खिंचती हो...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - हाँ बिल्कुल...
प्रतिभा - कब से कह रही थी... चलो चलो... पर यह (विश्व की ओर इशारा करते हुए) आज घर से हिल भी नहीं रहा था... अब देखो गाड़ी चला भी रहा है.. कछुए की तरह...
विश्व - माँ.. तुमने कभी ट्रैफ़िक के स्लोगन पढ़े हैं कि नहीं...
प्रतिभा - कौन सा...
तापस - अरे वही... स्पीड थ्रिल्स बट इट ऑलसो कील्स...
प्रतिभा - अच्छा... तो आज बाप बेटे... टीम बनाए हुए हैं... सच सच बताओ... क्या माजरा है...
तापस - अरे भाग्यवान... इसमें माजरा कहाँ से आ गया...
प्रतिभा - तो फिर तुम दोनों... इस बात को यूँ घुमा क्यूँ रहे हो.. ह्म्म्म्म..
विश्व - कुछ नहीं माँ... वीआईपी गेस्ट जो होते हैं... वह जितनी देर से जाते हैं... उन्हें उतनी तवज्जो मिलती है...
प्रतिभा - बुल शीट... मैं हमेशा वक़्त की पाबंद रही हूँ... मुझे यह लेट लतीफी बिल्कुल पसंद नहीं...
विश्व - यह मैं जानता हूँ माँ... पर आज देर से हम पहुँचेंगे...
प्रतिभा - देखो... वक़्त ही हमारी कीमत और हैसियत तय करती है... मैंने यही सीखा है... वक़्त का सम्मान करो... तो वक़्त भी तुम्हारा सम्मान करेगा... तुम अगर वक़्त को छोड़ दोगे... तो वक़्त तुम्हें छोड़ देगा...
तापस - वाह भाग्यवान वाह... इस बात पर एक शेर अर्ज़ है...
विश्व - इरशाद इरशाद...
प्रतिभा - खबरदार... अगर आप कोई सड़ी गली शायरी की तो... (विश्व से) और तु... जल्दी गाड़ी भगा...
विश्व - माँ... रोज जल्दबाजी तो करते हैं... चलो आज थोड़ी देर कर के देख लेते हैं...
प्रतिभा - ओह ओ... आज तुम दोनों को क्या हो गया है...

उधर सिम्फनी हाईट्स के पार्किंग में रॉल्स रॉयल्स के दो दो बड़ी पहुँचती है l कानून मंत्री विजय कुमार जेना खुद जा कर सबसे आगे वाली गाड़ी का दरवाजा खोलता है l गाड़ी से पहले भैरव सिंह उतरता है, उसके पीछे पिनाक सिंह उतरता है l दुसरी तरफ से सिर्फ विक्रम उतरता है, वीर आया नहीं था l वहाँ पर मौजूद सभी लोग राजा भैरव सिंह का अभिवादन करते हैं l उनके बीच उद्योग मंत्री गजेंद्र सिंह देव भी मौजूद था वह आगे बढ़ कर भैरव सिंह से गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाता है l यह देख कर कुछ लोग "राजा भैरव सिंह की जय" का नारा लगाते हैं l

गजेंद्र - (बड़े उत्साह से) राजा साहब... क्या... हमारी बहु आयी हैं...
भैरव सिंह - जी राजा जी...
गजेंद्र - अगर आप बुरा ना माने तो क्या हम... अपनी बहु का स्वागत करें...
भैरव - बेशक...

गजेंद्र सिंह आगे बढ़ जाता है और जा कर दुसरी गाड़ी की दरवाजा खोलता है l गाड़ी से पहले सुषमा उतरती है l

गजेंद्र - नमस्कार समधन जी...
सुषमा - नमस्कार समधी जी...

उसके बाद शुभ्रा उतरती है वह गजेंद्र सिंह को नमस्कार करती है l बदले में गजेंद्र भी प्रति नमस्कार करता है l अंत में रुप उतरती है l

गजेंद्र - स्वागत है राजकुमारी जी...

जवाब में रुप मुस्करा देती है l उधर विजय जेना क्षेत्रपाल पुरुषों के लिए और गजेंद्र क्षेत्रपाल औरतों के लिए रास्ता बनाते हुए होटल के फंक्शन हॉल में ले जाते हैं l हॉल के दरवाजे पर ही रुप को उसके सारे दोस्त मिल जाते हैं सिवाय तब्बसुम के l सभी साड़ी में थीं शायद होटल की ड्रेस कोड थी l हॉल के अंदर आकर, धीरे धीरे सभी बिखरते हुए मर्द अपनी अपनी जगह बना लेते हैं और औरतों को गजेंद्र अपने परिवार के पास ले जाता है l
भैरव सिंह के आने से पहले माहौल जितना खुशनुमा था, भैरव सिंह की उपस्थिति वहाँ पर मौजूद सबको टेन्शन दे रहा था l भैरव सिंह के लिए एक खास कुर्सी की व्यवस्था की गई थी, और उसके साथ बैठ कर बातेँ करने के लिए एक सोफा भी डाली गई थी l भैरव सिंह के वहाँ बैठ जाने के बाद पार्टी में फिरसे माहौल बन रहा था l कुछ जाने माने लोग आ कर भैरव सिंह को अभिवादन कर रहे थे l कुछ देर बाद भैरव सिंह के कानों में एक आवाज़ सुनाई देती है l

- कैसे हो राजा क्षेत्रपाल....

भैरव सिंह की भवें तन जाती हैं l वह उस आवाज की तरफ देखता है, वह ओंकार चेट्टी था l भैरव सिंह के जबड़े भींच जाते हैं l ओंकार सीधे आ कर भैरव सिंह के बगल वाले सोफ़े पर बैठ जाता है और अपने पैर को मोड़ कर अपने दुसरे पैर पर रख देता है l वहाँ पर मौजूद सभी लोग हक्केबक्के रह जाते हैं l ओंकार सबको नजर अंदाज करते हुए भैरव सिंह के आँखों में आँखे डाल कर देखता है l पिनाक सिंह से देखा नहीं जाता, वह ओंकार की ओर बढ़ता है l भैरव सिंह हाथ उठा कर पिनाक को रुकने के लिए इशारा करता है l पिनाक रुक जाता है l फिर भी ओंकार बेफिक्र हो कर भैरव सिंह को देखता है l

ओंकार - राजा क्षेत्रपाल... बुरा लग रहा है ना... होता है... कभी कभी ऐसा होता है... पर यह हकीकत है... देर से ही सही... स्वीकार कर लेना चाहिए... बहुत कुछ... अपने बस में नहीं होता है ना...
पिनाक - (कड़क पर धीमी आवाज में) चेट्टी... तु अपना हद लांघ रहा है...
ओंकार - डरा रहा है... ले... मैं डर गया...
पिनाक - चेट्टी...
ओंकार - श्श्श... मेहमान हो... मेजबान की इज़्ज़त का खयाल रखो... गुंडई... हर किसी की बस में होती है... पर राजनीति सबकी बस की बात नहीं होती... कुछ भी करोगे... मीडिया वालों के लिए... मसाला परोसोगे... सोच लो....

पिनाक सिंह अपनी चारों तरफ नजर घुमाता है l कुछ दुर पर मीडिया वाले उसे दिख जाते हैं l इसलिए वह संभल जाता है l

ओंकार - हाँ तो राजा क्षेत्रपाल... लंगड़े थे तुम लोग... मुझे बैसाखी बना कर... भुवनेश्वर में जम गए.... और अपनी मतलब निकल जाने के बाद... मुझे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिए.... (भैरव सिंह चुप रहता है) अब तक मैं पर्दे के पीछे था.... लेकिन अब.... मैं बाहर आ गया हूँ... अब मेरी जिंदगी का एक ही लक्ष है... जो तुम लोगों ने... मुझे सीढ़ी बना कर हासिल किया है... मैं उसे छिन लूँगा...
विजय जेना - ओंकार साहब...
ओंकार - घबराओ मत जेना बाबु... घबराओ मत... इसके बेटे ने मुझे... मेरे ही निवास में संदेशा दिया था... मैंने उसके बाप को... आज किसी तीसरे जगह पर ही सही... संदेशा दे दिया... वह भी उसके मुहँ पर... हिसाब में... मैं एक पायदान ऊपर हूँ अब.... (भैरव सिंह से) चलता हूँ...

कह कर ओंकार अपने आदमियों के साथ वहाँ से उठ कर बाहर निकल जाता है l भैरव सिंह अपने गुस्से को पी जाता है l

विजय - सॉरी राजा साहब... मुझे नहीं मालुम था यह आदमी... ऐसा कुछ करेगा...
भैरव सिंह - भूल जाओ.... जो हुए... एक एक्सीडेंट था... भूल जाओ....

दुसरी तरफ रुप और सुषमा गजेंद्र सिंह की पत्नी के साथ बात कर रहे थे l शुभ्रा कहीं और थी कुछ दुसरे औरतों से बातेँ कर रही थी l रुप को उनकी बातों से बोरियत महसुस हो रही थी l फिर भी हँसते हुए उनकी बातों का जवाब दे रही थी l तभी उसके मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजती है l रुप मैसेज खोल कर देखती है I भाश्वती का मैसेज था l

भाश्वती - वह लोग आ गए

मैसेज पढ़ते ही रुप अंदर ही अंदर खुश हो जाती है l वह अपनी भाभी के पास जाने की बात कह कर उनसे इजाजत लेकर अपनी वहाँ से चल देती है l

दरवाजे पर रुप के सभी दोस्त वहाँ पर थे l प्रतिभा और विश्व गाड़ी से उतर कर दरवाजे तक आते आते उन्हें वहाँ पर देख कर हैरान हो जाते हैं l उन सब में भाश्वती विश्व को देख कर छोटी बच्ची की तरह चहक रही थी l विश्व दरवाज़े पहुँचते ही भाश्वती भाग कर "भैया" कह कर चिल्लाते हुए विश्व के गले लग जाती है l सभी लड़कियाँ प्रतिभा और तापस को नमस्कार करते हैं l

विश्व - अरे यह क्या कर रही हो... और तुम सब यहाँ... इस हालत में...
भाश्वती - (अलग होते हुए) भैया... असल में यह हमारे एक दोस्त का होटल है.. उसके पिताजी... उसे आज की प्रोग्राम का... जिम्मा दे दिए... बेचारा नर्वस था... इसलिए हम सब उसका हौसला बढ़ाने... यहाँ आ गए...
विश्व - अच्छा... (सब पर नजर डालता है) ह्म्म्म्म... तुम्हारे और दोस्त कहाँ हैं...
भाश्वती - अच्छा और दोस्त... वह लोग... अंदर गेस्ट्स को देख रहे हैं... अटेंड कर रहे हैं....
प्रतिभा - अच्छा... तुम लोगों को... यहीं रुकना है... या अंदर भी चलना है...
दीप्ति - हम थोड़ी देर और रुकेंगे आंटी... आप अंदर चलिए...
प्रतिभा - ठीक है...
भाश्वती - (विश्व को रोक कर) वाह भैया... क्या लग रहे हो... वाव... कहीं किसी की नजर ना लग जाये... एक मिनट... (कह कर एक बड़ा सा गुलाब का फूल निकाल कर विश्व की पॉकेट में लगा देती है) अब जाओ...

विश्व उसके सिर पर टफली मार कर प्रतिभा और तापस के साथ अंदर चला जाता है l उनके अंदर जाते ही भाश्वती अपना मोबाइल निकाल कर मैसेज करती है

- हो गया...

ओके.. थैंक्यू... और कुछ - नंदिनी

भाश्वती - हाँ... बाकी दोस्तों के बारे में... पूछ रहे थे...

ओ.. आई सी... ठीक है.. - नंदिनी

हॉल के अंदर आते ही विजय कुमार जेना की नजर उन पर पड़ती है l वह तुरंत इन लोगों के पास आता है l

विजय - आइए.. आइए... सेनापति महोदया... आइए...
प्रतिभा - माफ कीजिएगा मंत्री जी... हमें आने में देर हो गई...
तापस - वह एक्चुयली... बीच रास्ते में... हमारी गाड़ी थोड़ी खराब हो गई थी....
विजय - कोई ना... आप आए... यही बहुत है... आइए... मेरे साथ... कुछ खास लोगों से आपका परिचय करा दूँ...
प्रतिभा - नहीं नहीं...
विजय - ठीक है... फिर पार्टी का लुफ्त उठाएं...

कह कर विजय वहाँ से चला जाता है l तापस भी कुछ पुलिसिया दोस्त देख कर उनके पास चला जाता है l वहाँ पर सिर्फ प्रतिभा और विश्व खड़े रह जाते हैं l

प्रतिभा - चल हम पहले... स्टेज पर बैठे... नए कपल को... गिफ्ट दे देते हैं...
विश्व - हाँ माँ... ठीक कह रही हो... फिर उसके बाद हम... स्टार्टर काउंटर पर चले जाते हैं...

दोनों जा कर दूल्हे और दुल्हन को गिफ्ट दे देते हैं फिर दोनों स्टार्टर काउंटर की ओर जाने लगते हैं l विश्व रह रह कर चारों तरफ अपनी नजर घुमा रहा था कि तभी उसकी किसी से टक्कर हो जाती है l दोनों एक-दूसरे को सॉरी कहने ही वाले थे कि एक दूसरे को देख कर हैरानी से देखने लगते हैं l वह कोई और नहीं, वह विक्रम था जो विश्व को देख कर हैरान रह गया था l

प्रतिभा - अरे तुम...
(विक्रम हैरानी के साथ प्रतिभा को देखता है) अरे... मुझे नहीं पहचाना... (विक्रम विश्व को देखते हुए सिर हिला कर ना कहता है) अरे बेटा... हम वही हैं... जिन्हें तुम दो महीने पहले... अपनी गाड़ी से... xxx कॉलेज कटक में छोड़ा था...
विक्रम - ओ हाँ हाँ... याद आया... हमारी एक ही मुलाकात हुई थी... तब से आपको मैं याद हूँ...
प्रतिभा - लो कर लो बात... अरे.. मदत की थी तुमने हमारी... कैसे भूल सकती थी.... (विश्व को दिखाते हुए) यह मेरा बेटा... प्रताप... इसी का तो उस दिन इम्तिहान था... हम लिंगराज मंदिर से लौट रहे थे... तब हमारी गाड़ी खराब हो गई थी... तुमने हमें लिफ्ट दे कर... xxx कॉलेज में ड्रॉप किया था...
विक्रम - (विश्व की ओर देखते हुए) जी...
प्रतिभा - अच्छा बेटा... तुम उस दिन... दिवानों की तरह जिसे ढूंढ रहे थे... मिली वह...
विक्रम - हाँ... आंटी... आज दिख गई... आपकी दुआ ओं में... वाकई बहुत ताकत है...
विश्व - (अपना हाथ बढ़ा कर) कंग्राचुलेशन...
विक्रम - (हाथ मिलाते हुए) थैंक्यू... पर हासिल अभी हुई नहीं है...
प्रतिभा - कोई नहीं... वह भी मिल जाएगी...
विक्रम - जी आंटी...

दोनों एक दूसरे के हाथ अलग करते हैं l विक्रम वहाँ से चला जाता है l उसके जाते ही

प्रतिभा - यह तुम्हें देख कर इतना शॉक्ड क्यूँ था...
विश्व - पता नहीं... शायद मुझे देख कर... कुछ शॉकींग... याद आ गया होगा...
प्रतिभा - अच्छा चल... हम स्टार्टर काउंटर के पास चलते हैं...

दोनों स्टार्टर काउंटर की ओर जाने लगते हैं कि प्रतिभा को तापस ग्लास से कुछ पीते हुए दिखता है l प्रतिभा विश्व को वहीँ खड़ा रहने के लिए कह कर तापस की ओर चली जाती है l विश्व के पास तभी कार्पोरेट शूट में एक खूबसूरत लड़की आती है l

लड़की - हैलो... मिस्टर...
विश्व - (अपनी दाएं बाएं देखता है) मी..
लड़की - येस.. यु आर...
विश्व - ओ.. हैलो...
लड़की - अगर यह पार्टी... बोरिंग लग रही है... आई कैन गिव यु... कंपनी...
विश्व - नो.. थैंक्यु...
लड़की - तो... तुम मुझे कंपनी दे दो...
विश्व - देखिए मोहतरमा... पार्टी में बहुत से लोग हैं.. किसी और को ढूंढ लीजिए...
लड़की - पर मेरे मतलब कि... तो... तुम्हारे पास है... मिस्टर विश्व प्रताप...

विश्व हैरानी भरे नजरों से उस लड़की को घूरने लगता है l उसके कपड़े, उसके स्टाइल सब अच्छी तरह से जज करता है I

विश्व - आप... किस मीडिया से ताल्लुक रखती हैं.... मिस...
लड़की - वाव... नाइस गेस... वैल... माई सेल्फ सुप्रिया... मिस सुप्रिया रथ... नभ वाणी... नभ वाणी न्यूज एजेंसी से...
विश्व - आप... अचानक मुझ में... इतना इंट्रेस्ट क्यूँ ले रही हैं...
सुप्रिया - इसलिए... की आपने... हाल ही में.. कुछ ऐसा किया है... जो कुछ ही दिनों में... पुरे राज्य में तहलका मचाने वाला है....
विश्व - (हैरान हो जाता है) यह... आपको कैसे मालुम हुआ...
सुप्रिया - हम मीडिया वाले हैं... बहुत कुछ ढूंढ निकालते हैं...
विश्व - चलिए मान लिया... पर आपने मुझे कैसे ढूंढ निकाला...
सुप्रिया - यह लो मेरा कार्ड... जब वक़्त निकाल सको... मिलने आ जाना...

विश्व कार्ड रख लेता है l कार्ड देने के बाद सुप्रिया वहाँ से चली जाती है l तभी विश्व के मोबाइल पर मैसेज ट्यून बजती है l विश्व मोबाइल खोल कर देखता है

कौन है वह लड़की... - नकचढ़ी

विश्व इधर उधर नजर घुमाता है l पर उसे नंदिनी कहीं नहीं दिखती l

विश्व - (मैसेज टाइप करता है) आप हो कहाँ पर...

मैं कहीं भी रहूँ... पर शर्म नहीं आती... एक लड़की से इस तरह घुलते हुए - नकचढ़ी

विश्व - अररे.. वह एक न्यूज रिपोर्टर थी....

क्यूँ तुम कोई सिलेब्रिटी हो... - नकचढ़ी

विश्व - यह कुछ ज्यादा नहीं हो रहा है...

व्हाट.. डु यु मीन बाय... ज्यादा... - नकचढ़ी

विश्व - आई मीन... सम थिंग पर्सनल...

उसके बाद नंदिनी अचानक ऑफ लाइन हो जाती है l विश्व मुस्कराते हुए फिर से अपनी नजरें दौड़ाता है l इस बार भी उसे नंदिनी नहीं दिखती है l तभी उसके पास प्रतिभा पहुँचती है I

प्रतिभा - चल... हम जल्दी खाना खतम कर निकलते हैं...
विश्व - क्यूँ... क्या हुआ... डैड कहाँ हैं
प्रतिभा - तेरे डैड ने कुछ पेग ले ली है... ज्यादा देर रुके... तो उन्हें यहाँ से ले जाना मुस्किल हो जाएगा...
विश्व - पर डैड हैं कहाँ...
प्रतिभा - मैं उन्हें बिठा कर.. वॉर्निंग दे कर आयी हूँ.. इसलिए चलो... जल्दी...

प्रतिभा खिंचते हुए विश्व को काउंटर की ओर ले जाती है l तभी रास्ते पर विजय जेना भैरव सिंह को भी काउंटर की ले कर आ रहा था l विजय जेना प्रतिभा को देख कर

विजय - अरे सेनापति महोदया... यह देखिए... यह हैं.. हमारी सरकार की कर्ता धर्ता... श्री श्री... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी... पुरा राज्य उन्हें... राजा साहब कह कर बुलाती है... (प्रतिभा भैरव सिंह को नमस्कार करती है) (विजय जेना भैरव सिंह से) और यह हैं... हमारे राज्य की हर एक काम काजी महिलाओ की रक्षक... श्रीमति प्रतिभा सेनापति महोदया...

भैरव सिंह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता उसके हाथ वैसे ही उसके आस्तीन के जेब में था l विश्व यह सब देख रहा था l भैरव सिंह भी विश्व की ओर देख रहा था l विश्व भी अपनी जेब में हाथ डालकर भैरव सिंह को देख रहा था l

भैरव सिंह - (अपने चेहरे से इशारा करते हुए) इनकी तारीफ...
प्रतिभा - यह... यह मेरा बेटा... प्रताप...
भैरव - (विश्व से) लगता है.... हम से मिल कर तुम खुश नहीं हुए...
विश्व - जी यही बात... मैं आपसे पूछना चाहता था... हमसे मिलकर... आपको कोई खुशी नहीं हुई...
विजय जेना - लड़के... इन्हें राजा साहब कहते हैं... इनसे मिलना... और बातेँ करना... बड़े भाग्य की बात होती है...
विश्व - जी... शायद...
भैरव - शायद का मतलब....
विश्व - दसियों राजा हैं... पुरे राज्य में... कनीका राजा... हिंदोल राजा... मयुरभंज राजा... पारलाखेमुंडी राजा... भंजनगर राजा... दसपल्ला राजा... ढेंकानाल राजा... पर राज्य में सभी... पुरी राजा गजपती दिव्य सिंह देव जी की दर्शन को... गौरव और भाग्य की बात मानते हैं.... क्यूंकि उन्हें ओड़िशा के अराध्य भगवान जगन्नाथ जी की जिवंत प्रतिमा कहा जाता है... आज पहली बार मुझे मालुम हुआ... राजा क्षेत्रपाल जी भी वही सम्मान रखते हैं.... या फिर पाले हुए हैं....
पिनाक - जब मालुम हो गया... तो अदब से... झुक कर अपनी माँ की तरह... सम्मान भी कर सकते थे...
विश्व - जी जरूर करता... अगर मेरी माँ को राजा साहब से... प्रति नमस्कार मिला होता....

इतना सुनते ही भैरव सिंह की बायां भवां तन जाता है l

भैरव सिंह - (दांत पिसते हुए) बहुत अकड़ है तुम में...
विश्व - जिंदा हूँ... इसलिए जहां झुकने को मन करता है... वहाँ अदब से झुकता भी हूँ... क्यूंकि अकड़.... मुर्दों की निशानी होती है... जो सर और दर मेरी माँ की सम्मान का हक रखता हो... उनके आगे घुटनों के बल भी झुक सकता हूँ...

भैरव सिंह के मुट्ठीयाँ उसके जेब के अंदर भींच जाती हैं l पर चेहरे पर वह भाव आने नहीं देता l

भैरव सिंह - (आवाज में कड़क पन लाते हुए) सम्मान का हक... हम सिर्फ उन्हें देते हैं... जिन्हें हम अपनी निगाहों के बराबर... या बुलंद रखते हैं...
विश्व - इस दुनिया में... मेरी निगाहों से बुलंद... मेरे लिए कुछ भी नहीं है... और वहाँ पर मेरी माँ है... (अब भैरव सिंह की जबड़े भी भींच जाती है, यह किसी से नहीं छुपता) समाज में आपकी रुतबा खानदानी है... रौब आपकी पुस्तैनी है.... पर मेरी माँ की... रौब और रुतबा.. उन्होंने हासिल करी है... वह सेल्फ मेड है.... इसीलिए तो.... नेताजी खास तौर पर... मेरी माँ को निमंत्रण दिए थे... एक नहीं... दो दो बार....
भैरव सिंह - (भैरव सिंह पैनी नजर से विश्व को देखते हुए) क्या हम.... पहले कहीं मिले हैं... क्या तुम्हें... हम जानते हैं...
विश्व - (कुछ देर के लिए भैरव सिंह को घूरते हुए चुप हो जाता है, फिर) मेरे आज से..... तो बिल्कुल नहीं... बिल्कुल भी नहीं....
very very extraordinary update
 
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