- 1,166
- 3,223
- 144
आगे हमने देखा कि राजवैद्य सुमंत मृत्युंजय को अपनी उपचार पद्धति के विषय में बताते हे ओर मृत्युंजय अपनी पद्धति के विषय में। फिर सब जब वहां से चले जाते है तो मृत्युंजय लावण्या से थोड़ा व्यंग करता है और लावण्या क्रोधित होकर उत्तर देने जा रही है तभी उसकी नज़र कक्ष के द्वार पर पड़ती है और उसे आश्चर्य होता है। अब आगे......
मृत्युंजय के व्यंगात्मक शब्दों से लावण्या ज्यादा क्रोधित हो जाती है और वो उसका प्रत्युत्तर देने जा रही है तभी उसे कक्ष के द्वार पर भुजंगा और कुछ सेवक दिखाई पड़ते है। उन सभी के हाथो में पुष्प से भरी टोकरियां हे और वो कक्ष में प्रवेश करते है। सेवक टोकरियां कक्ष में रखकर चले जाते है।
अब ये क्या है? इतने सारे पुष्प की इस कक्ष में क्या आवश्यकता है? लावण्या ने मृत्युंजय की ओर देखते हुए प्रश्न किया। इस कक्ष को शुशोभित करने केलिए तुरंत भुजंगा ने उत्तर दे दिया। मैने आपसे तो प्रश्न नहीं किया? फिर बीच में बोलने का कष्ट क्यों किया आपने? लावण्या ने बड़ी ही ऋष्ट होकर भुजंगा से कहा। उत्तर वो दें या में दूं एक ही बात है लावण्या जी फिर मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा। लावण्या ने मृत्युंजय की ओर देखा और बस मौन हो गई।
मृत्युंजय मौन रहने वाला नहीं था। वो क्या है लावण्या जी की जब इस कक्ष मे साक्षात सुन्दरता की देविया उपस्थित है तो फिर ये बिचारे पुष्प वहा वाटिका में क्यों रहे उनको भी तो आपकी सेवा का अवसर क्यों ना दिया जाए यही सोचकर हमने वाटिका के से पुष्प यहां मंगवा लिए। लावण्या मृत्युंजय के किसी भी व्यंग या कटाक्ष का उत्तर देना नहीं चाहती थी जिस से बात आगे ही ना बढे।
सारिका यहां आओ लो ये औषधि और इसको इतना कुटो के ये जल की भांति प्रवाही बन जाए ओर फिर सेविका को देकर राजकुमारी को पिलाने केलिए कह देना में अब यहां एक क्षण भी नहीं रुक सकती। लावण्या ने मृत्युनजय के सामने क्रोधित होकर देखते हुए कहा ओर हाथ झटकते हुए वहां से चली गई। मृत्युंजय मुस्कुराते हुए उसको जाते हुए देखता रहा।
सारिका औषधि को पीस रही थी। भुजंगा उसके समीप गया, प्रणाम मेरा नाम भुजंगा है और आपका। सारिका, मुंह मरोड़ते हुए सारिका ने उत्तर दिया। हम इस कक्ष को शुसोभित करने हेतु ये पुष्प लेकर आए है क्या आप हमारी इसमें सहायता करेंगी सारिका जी? जी नहीं खुद ही कर लिजिए फिर सारिका ने मुंह बनाकर उत्तर दिया। भुजंगा ने सारिका के चहेरे को ध्यान से देखने का अभिनय किया और बोला हमने तो सुना है और देखा भी है की व्यक्ति अपने माता पिता पर जाते है पर आप तो बिल्कुल अपनी सहेली पर गई है, और जोर जोर से हसने लगा।
सारिका ने थोड़ा क्रोधित होकर भुजंगा की ओर देखा और बोली अच्छा कैसी है मेरी सखी बताइए जरा मैं भी तो जानूं। सौंदर्यवान, गुणवान, मिलनसार। क्या क्या नहीं है आपकी सखी में ये पूछिए। हमारे पास एसे शब्द कहां जो उनका वर्णन कर सके भुजंगा ने बड़े व्यंगात्म शब्दों में उत्तर दिया। सारिका ने भुजंगा को जैसे अभी हाथ में तलवार होती तो उसके दो टुकड़े कर देती, एसी दृष्टि से देखा और वो भी पांव पटककर कुछ भी प्रत्युत्तर दिए बिना चली गई।
आपके परिचय का लेंन देन समाप्त हुआ हो तो अब कुछ कार्य करले मित्र? पीछे से मृत्युंजय ने कहा। हा... हा... अवश्य मित्र। मैं तो कार्य ही कर रहा था सोचा अगर सारिका जी भी थोड़ी सहायता कर देगी तो कार्य जल्द संपन्न हो जाएगा अन्य कुछ नहीं और दोनों मित्र एक दूसरे की ओर देखकर हसने लगे।
महाराज अपने कक्ष में चहलकदमी कर रहे है। उनके मन में कुछ संशय चलता देख राजगुरु कहते है, महाराज कोई द्विधा हो तो कहिए मैं संभवतः उसके निवारण का प्रयास करूंगा। राजगुरु मेरे मन में यही प्रश्न उठ रहा है कि क्या मृत्युंजय ने कहा एसी भी उपचार पद्धति है।
हा महाराज अथर्ववेद मे इस उपचार पद्धति को दर्शाया गया है। जैसे मंत्र उपचार पद्धति, हम जब ओमकार का उच्चारण करते है तो हमारा रक्तचाप ठीक रहता है। मस्तिष्क में रक्तप्रवाह ओर वायु पर्याप्त मात्रा में पहुंचते है। कंठ की कोशिका एवम् स्वर वाहिनी के संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है और ह्रदय की गति भी नियंत्रित रहती है। एसे ही सूर्यदेव के सामने खड़े रहकर सूर्य मंत्रका जाप करने से त्वचा संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है। आप निश्चिंत रहिए ये सब उपचार पद्धति औषधि से भी ज्यादा लाभदाई है।
राजगुरु महाराज को आश्वस्त कर रहे है तभी एक सेवक आकर कहता है कि महाराज एक अनुचर आपसे मिलने की आज्ञा मांग रहा है। महाराज ने शिर हिलाकर अनुमति दी और कुछ ही पल में अनुचर कक्ष में आकर महाराज और राजगुरु को हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। हमे आशा है की तुम जरूर कोई शुभ सूचना लेके आए होंगे।
क्षमा कीजिए महाराज किन्तु कोई शुभ समचार नहीं है। अथाग प्रयत्न के बाद भी हम कुमारी चारूलता को खोजने में असफल रहे है। हमने दूर दूर पड़ोसी राज्य, मित्र राज्य, दुश्मन राज्य,। और हमारे आश्रित राज्य, सभी जगह ढूंढा लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला महाराज। अनुचरने शिश झुकाकर खेद से कहा। अच्छा.... तुम प्रयास जारी रखो महाराज ने कहा और वो अनुचर प्रणाम करके चला गया।
महाराज फिर किसी विषय में सोचने लगे। महाराज चिंता ना करे कुमारी चारुलता की खबर मिल जाएगी। राजगुरु हम कैसे महाराज है जो ना अपनी बेटी को स्वस्थ कर सकते है ना ही हमारे मित्र और हमारे प्रधान सेनापति वज्रबाहु की पुत्री को खोजने में सफल हुए है। जब हमारी पुत्रियों को ही हम सुरक्षित नहीं रख सकते तो प्रजा की सुरक्षा क्या कर सकेंगे। हमारी प्रजा हमारे बारे में क्या सोचती होंगी।
धीरज धरे महाराज विधाता आपकी कसौटी कर रहा है। आपको हिम्मत बनाय रखनी है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। राजगुरु ने महाराज को आश्वाशन दिया। महाराज आसन पर विराजते हुए बोले ईश्वर करे सब जल्द ही ठीक हो जाएं। हम आज हमारे मित्र वज्रबाहु से भेंट करने उनके निवास पर जाएंगे। उचित है महाराज।
मृत्युंजय के व्यंगात्मक शब्दों से लावण्या ज्यादा क्रोधित हो जाती है और वो उसका प्रत्युत्तर देने जा रही है तभी उसे कक्ष के द्वार पर भुजंगा और कुछ सेवक दिखाई पड़ते है। उन सभी के हाथो में पुष्प से भरी टोकरियां हे और वो कक्ष में प्रवेश करते है। सेवक टोकरियां कक्ष में रखकर चले जाते है।
अब ये क्या है? इतने सारे पुष्प की इस कक्ष में क्या आवश्यकता है? लावण्या ने मृत्युंजय की ओर देखते हुए प्रश्न किया। इस कक्ष को शुशोभित करने केलिए तुरंत भुजंगा ने उत्तर दे दिया। मैने आपसे तो प्रश्न नहीं किया? फिर बीच में बोलने का कष्ट क्यों किया आपने? लावण्या ने बड़ी ही ऋष्ट होकर भुजंगा से कहा। उत्तर वो दें या में दूं एक ही बात है लावण्या जी फिर मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा। लावण्या ने मृत्युंजय की ओर देखा और बस मौन हो गई।
मृत्युंजय मौन रहने वाला नहीं था। वो क्या है लावण्या जी की जब इस कक्ष मे साक्षात सुन्दरता की देविया उपस्थित है तो फिर ये बिचारे पुष्प वहा वाटिका में क्यों रहे उनको भी तो आपकी सेवा का अवसर क्यों ना दिया जाए यही सोचकर हमने वाटिका के से पुष्प यहां मंगवा लिए। लावण्या मृत्युंजय के किसी भी व्यंग या कटाक्ष का उत्तर देना नहीं चाहती थी जिस से बात आगे ही ना बढे।
सारिका यहां आओ लो ये औषधि और इसको इतना कुटो के ये जल की भांति प्रवाही बन जाए ओर फिर सेविका को देकर राजकुमारी को पिलाने केलिए कह देना में अब यहां एक क्षण भी नहीं रुक सकती। लावण्या ने मृत्युनजय के सामने क्रोधित होकर देखते हुए कहा ओर हाथ झटकते हुए वहां से चली गई। मृत्युंजय मुस्कुराते हुए उसको जाते हुए देखता रहा।
सारिका औषधि को पीस रही थी। भुजंगा उसके समीप गया, प्रणाम मेरा नाम भुजंगा है और आपका। सारिका, मुंह मरोड़ते हुए सारिका ने उत्तर दिया। हम इस कक्ष को शुसोभित करने हेतु ये पुष्प लेकर आए है क्या आप हमारी इसमें सहायता करेंगी सारिका जी? जी नहीं खुद ही कर लिजिए फिर सारिका ने मुंह बनाकर उत्तर दिया। भुजंगा ने सारिका के चहेरे को ध्यान से देखने का अभिनय किया और बोला हमने तो सुना है और देखा भी है की व्यक्ति अपने माता पिता पर जाते है पर आप तो बिल्कुल अपनी सहेली पर गई है, और जोर जोर से हसने लगा।
सारिका ने थोड़ा क्रोधित होकर भुजंगा की ओर देखा और बोली अच्छा कैसी है मेरी सखी बताइए जरा मैं भी तो जानूं। सौंदर्यवान, गुणवान, मिलनसार। क्या क्या नहीं है आपकी सखी में ये पूछिए। हमारे पास एसे शब्द कहां जो उनका वर्णन कर सके भुजंगा ने बड़े व्यंगात्म शब्दों में उत्तर दिया। सारिका ने भुजंगा को जैसे अभी हाथ में तलवार होती तो उसके दो टुकड़े कर देती, एसी दृष्टि से देखा और वो भी पांव पटककर कुछ भी प्रत्युत्तर दिए बिना चली गई।
आपके परिचय का लेंन देन समाप्त हुआ हो तो अब कुछ कार्य करले मित्र? पीछे से मृत्युंजय ने कहा। हा... हा... अवश्य मित्र। मैं तो कार्य ही कर रहा था सोचा अगर सारिका जी भी थोड़ी सहायता कर देगी तो कार्य जल्द संपन्न हो जाएगा अन्य कुछ नहीं और दोनों मित्र एक दूसरे की ओर देखकर हसने लगे।
महाराज अपने कक्ष में चहलकदमी कर रहे है। उनके मन में कुछ संशय चलता देख राजगुरु कहते है, महाराज कोई द्विधा हो तो कहिए मैं संभवतः उसके निवारण का प्रयास करूंगा। राजगुरु मेरे मन में यही प्रश्न उठ रहा है कि क्या मृत्युंजय ने कहा एसी भी उपचार पद्धति है।
हा महाराज अथर्ववेद मे इस उपचार पद्धति को दर्शाया गया है। जैसे मंत्र उपचार पद्धति, हम जब ओमकार का उच्चारण करते है तो हमारा रक्तचाप ठीक रहता है। मस्तिष्क में रक्तप्रवाह ओर वायु पर्याप्त मात्रा में पहुंचते है। कंठ की कोशिका एवम् स्वर वाहिनी के संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है और ह्रदय की गति भी नियंत्रित रहती है। एसे ही सूर्यदेव के सामने खड़े रहकर सूर्य मंत्रका जाप करने से त्वचा संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है। आप निश्चिंत रहिए ये सब उपचार पद्धति औषधि से भी ज्यादा लाभदाई है।
राजगुरु महाराज को आश्वस्त कर रहे है तभी एक सेवक आकर कहता है कि महाराज एक अनुचर आपसे मिलने की आज्ञा मांग रहा है। महाराज ने शिर हिलाकर अनुमति दी और कुछ ही पल में अनुचर कक्ष में आकर महाराज और राजगुरु को हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। हमे आशा है की तुम जरूर कोई शुभ सूचना लेके आए होंगे।
क्षमा कीजिए महाराज किन्तु कोई शुभ समचार नहीं है। अथाग प्रयत्न के बाद भी हम कुमारी चारूलता को खोजने में असफल रहे है। हमने दूर दूर पड़ोसी राज्य, मित्र राज्य, दुश्मन राज्य,। और हमारे आश्रित राज्य, सभी जगह ढूंढा लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला महाराज। अनुचरने शिश झुकाकर खेद से कहा। अच्छा.... तुम प्रयास जारी रखो महाराज ने कहा और वो अनुचर प्रणाम करके चला गया।
महाराज फिर किसी विषय में सोचने लगे। महाराज चिंता ना करे कुमारी चारुलता की खबर मिल जाएगी। राजगुरु हम कैसे महाराज है जो ना अपनी बेटी को स्वस्थ कर सकते है ना ही हमारे मित्र और हमारे प्रधान सेनापति वज्रबाहु की पुत्री को खोजने में सफल हुए है। जब हमारी पुत्रियों को ही हम सुरक्षित नहीं रख सकते तो प्रजा की सुरक्षा क्या कर सकेंगे। हमारी प्रजा हमारे बारे में क्या सोचती होंगी।
धीरज धरे महाराज विधाता आपकी कसौटी कर रहा है। आपको हिम्मत बनाय रखनी है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। राजगुरु ने महाराज को आश्वाशन दिया। महाराज आसन पर विराजते हुए बोले ईश्वर करे सब जल्द ही ठीक हो जाएं। हम आज हमारे मित्र वज्रबाहु से भेंट करने उनके निवास पर जाएंगे। उचित है महाराज।