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Thriller वो कौन था?

Arjun007

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वो कौन था?
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ये एक छोटी सी कहानी है एक शादी शुदा स्त्री कि,
कहानी अरवा शर्मा कि
जिसकी जिंदगी मे सब सुख है,अच्छा परिवार अमीर खानदान कि बहु, हैंडसम पति,नौकर चाकर सब कुछ जो एक संपन्न परिवार के पास होता है वो सब कुछ था अरवा के पास बस नहीं था तो सिर्फ एक औलाद.
सिर्फ एक औलाद का ही सुख नहीं था,शादी को 8 साल हो चले थे लेकिन खुशी ने उसके घर पे दस्तक ही ना दी कभी.
यही वो कांटा था जो उसके आलीशान महल मे धब्बे कि तरह था.
इन आठ सालो मे धीरे धीरे सभी का बर्ताव उसके लिए रुखा हो चला था.
अरवा का पति उम्मीद छोड़ चूका था उसका ध्यान सिर्फ अपने बिज़नेस मे था.
हालांकि आज भी अरवा किसी कुवारी कि तरह ही थी, कसा हुआ कामुक बदन 36D -30-38
बहार को निकलती मादक गांड,उभान भरते स्तन,सुडोल लचकती कमर
परन्तु
औलाद ना होने के गम ने उसके पति से मर्दाना ताकत ही खिंच ली थी.
अरवा का पति सिर्फ औलाद कि चाह मे सम्भोग करता, उसका काम सिर्फ अपने वीर्य को अरवा के गर्भ पहुंचाने भर तक था
इसे ही दोनों मियाँ बीबी सम्भोग मान के चलते थे.

खुद अरवा भी उम्मीद छोड़ चुकी थी, शारीरिक सुख क्या होता है उसे पता ही नहीं था.
पता होता तो क्या वो अपने भरे भारी जिस्म से अज्ञान रहती,
36 के बड़े कड़क एक दम तने हुए स्तन कि मालकिन थी अरवा.
कमर एक दम पतली,पेट बिल्कुल सपाट मात्र 30 इंच कि कमर
बाकि रही सही कसर उसकी बहार को निकली टाइट गांड पूरी कर देती थी.
चलती तो 38 इंच कि गांड के पल्ले आपस मे झगड़ पड़ते.
लेकिन क्या मूल्य इन सब का, वो कामदेवी रुपी पत्थर कि मूर्ति ही थी जिसके पास कमसिन जवान मादक बदन तो है लेकिन उसका कोई इस्तेमाल नहीं जानती वो अभागी.

अरवा कि खास बात ये है कि इन सब बदनसीबी के बाद भी उसका भगवान शिव पे अट्टु विश्वास है, शिव भगवान कि बहुत बड़ी भक्त है आज तक ऐसा कोई सोमवार ना हुआ जब वो शिव के दरबार ना गई हो.

उस वजह से उसकी सांस अच्छी खासी नाराज ही रहती उससे,पति भी अब रुखाई से पेश आता था.
आज महाशिवरात्रि का दिन था
महाशिवरात्रि थी ऊपर से सोमवार अरवा आज खूब अच्छे से तैयार हुई थी उसे आज भगवान शिव को ख़ुश करना ही था किसी पंडित कि सलाह से वो ऐसा कर रही थी.
"रामु रामु....उफ़ ये रामु कहाँ चला गया लेट हो रहा है मुझे " अरवा बड़बड़ाती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरी.
"कहाँ चल दी महारानी? रामु बहार गया है काम से " अरवा कि सांस जो हॉल मे ही बैठी थी उसकी नजर अरवा पे पड़ी तो पूछ बैठी.
अरवा :- माँ जी आज महाशिवरात्रि है आज भगवान मेरी इच्छा जरूर पूरी करेंगे.
सांस :- जब कोख ही बंजर है तो भगवान क्या कर लेंगे हुँह...
अरवा कि सांस आज भी ताना मारने से बाज नहीं आई.
अरवा कि आँखों से आँसू फुट पड़े,उसके दिल मे चुभी थी ये बात.
अरवा मुँह नीचे किये बहार को चल दी,
अपनी कार ले वो मंदिर को चल पड़ी. उसके दिमाग़ मे खलबली मची हुई थी "क्या मै बाँझ हूँ,एक बच्चा तक पैदा नहीं कर सकती,भगवान ने मेरे साथ ही क्यों किया ऐसा?"
अपनी सोच मे डूबी अरवा ना जाने कब 20km का सफर तय कर गई उसे खुद पता नहीं चला.
सामने ही मंदिर था,भगवान शिव का प्राचीन मंदिर, चारो ओर से पहाड़ो और जंगल से घिरा सुन्दर पुराना मंदिर.
अरवा गाड़ी से उतर गई उसके जहन मे सिर्फ प्रार्थना थी अपनी कोख भरने कि प्रार्थना.
आस पास बैठे भिखारियों कि नजर उस पे ही थी वो भिखारी उसी का इंतज़ार करते हो जैसे..उस क़यामत को देखने के लिए.
"साली आज सोमवार है देख आ गई विलायती मैडम " पास बैठे एक भिखारी ने कहा
"हाँ यार देख तो सही क्या गांड है एक दम कसी हुई बाहर को निकली हुई " दूसरे भिखारी ने जवाब दिया
पहला भिखारी :- सुना है इसको बच्चा पैदा नहीं होता इसलिए यहाँ आती है.
दूसरा भिखारी :- इसका पति ही नामर्द होगा वरना इस जैसी औरत को तो लंड दिखा भी दो तो पेट से हो जाये देख तो कैसा गदराया बदन है इसका.
दूध देखे इसके?.
"सालो तुम्हारे यही काम है बस सुन्दर औरतों को देख लार टपकाने का , कितनी अच्छी मैडम है वो हर सोमवार हमें 50-50 रुपए दे के जाती है उसके बारे मे गन्दा बोल रहे हो " तीसरे भिखारी ने टोका
पहला भिखारी :- तो क्या हुआ है तो औरत ही ना वो भी ऐसी कामुक मदमस्त जिस्म कि मालकिन अब भला आंखे फोड़ ले क्या अपनी.
इन तीनो कि बातचीत मे अरवा उनके आगे से निकल गई तीनो सिर्फ आहे भरते ही रह गए
अरवा के चलने से उसकी गांड के पल्ले आपस मे रगड़ खा के ऊपर नीचे हो रहे थे.
इस एक दृश्य के लिए ही तीनो भिखारी तरसते थे बेचारे
उनकी किस्मत मे तरसना ही लिखा था

अंदर मंदिर मे

"टन टन टन.......हे भगवान क्यों नहीं सुनते हो, 5साल से सुनी है कोख मेरी.
रेखा के आँसू गिर रहे थे उसके हाथ मंदिर कि घंटी को बजाये जा रहे थे टन टन टन....
"बस करो बेटी भगवान सबकी सुनता है आज तेरी भी सुनेगा "
पीछे से मंदिर के पुजारी ने रेखा का ध्यान भंग किया
"तुम्हे पिछले कई सालो से देख रहा हूँ यहाँ आते हुए, सब मनोकामना पूर्ण होंगी तुम्हारी बेटी ये लो प्रसाद "
पुजारी ने प्रसाद अरवा कि तरफ बड़ा दिया
जिसे बड़े आदर के साथ अरवा ने ग्रहण किया
उसकी आंखे नम थी, ना जाने कब उसकी सुनेगा भगवान.

अरवा आँखों मे आँसू लिए हाथ मे छाले लिए मंदिर के बहार बढ़ चली
बाहर बैठे भिखारियों को वो हमेशा 50 -50 rs दिया करती थी
आज भी वही किया परन्तु आज ना जाने कैसे जैसे ही वो पैसे देने झुकी कही से एक ठंडा हवा का झोका आया और उसके पल्लू को गिराता चला गया.
तीनो भिखारियों के सामने उसके टाइट ब्लाउज मे कैद स्तन उजागर हो गए, आधे से ज्यादा ब्लाउज से बहार निकले हुए थे एक दम गोरे कसे हुए,उनके बीच कि गहरी घाटी साफ झलक रही थी.
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तीनो भिखारी के मुँह खुले के खुले ही रह गए उन तीनो कि नजर अरवा के अर्ध नग्न स्तन पे टीक गई.
अरवा को जैसे ही इस बात का अहसास हुआ वो तुरंत खड़ी हो गई,और पल्लू को सही कर लिया.
परन्तु जैसे ही उसकी नजर उन तीनो भिखारियों पे गई अरवा के तन बदन मे एक अजीब सी हलचल ने जगह ले ली वो तीनो किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गए थे,
मात्र अरवा के स्तन देखने भर से.
"आज एक आदमी कम है क्या " अरवा ने खुद को संभाल पूछा
सामने से कोई जवाब नहीं था
तुम मे आज कोई कम है क्या?मै जितने पैसे लाती हूँ उनमे से 50rs बच रहे है.
पहला भिखारी :- वो...वो.....मैडम....भोला नहीं आया है आज
उसके शब्द बड़ी मुश्किल से निकल पाए थे.
अरवा ना जाने क्यों मुस्कुरा दी इतने समय बाद आज उसके चेहरे पे मुस्कान आई थी ना जाने क्यों उसे अहसास हो चला था कि भिखारी कि हक़लाहतट कि वजह उसके स्तन ही थे.
उसे अजीब तो लगा लेकिन उन भिखारियों कि हालत देख खुद पे गर्व भी महसूस हुआ.
वो अपनी कार कि तरफ बढ़ चली और सड़क पे कार को दौड़ा दिया.
परन्तु जैसे ही उसे घर जाने का ख्याल आया वैसे ही उसकी सांस के कहे शब्द वापस से उसके दिल को चुभने लगे,उसकी मुस्कान गायब हो गई. उसे फिर से दुख और चिंता ने जकड लिया.
उसका घर अभी दूर था करीबन 15km दूर,बीच मे एक छोटा सा जंगल भी पड़ता था.
अरवा अपनी ही धुन मे कार चलाये जा रही थी,उसकी आंखे आँसू से धुंधली थी कि तभी "धममममममम.......कोई उसकी कार से टकरा गया
"चकरररररररम.....अरवा ने कार को जोरदार ब्रेक मारा" कार सड़क पे फिसलती हुई रुक गई थी,अरवा ने सामने देखा तो एक आदमी ओंधे मुँह कच्चे रास्ते पे गिरा पड़ा था
"ओ माय गॉड....ये क्या हुआ "अरवा कार से निकल दौड़ के उस आदमी कि तरफ भागी जो कि औंधे मुँह जमीन पे पड़ा था
"आअह्ह्हम्म्म..उउउमम्मी..कि कराह उसके हलक से निकल रही थी.
अरवा उस आदमी के पास पहुंच के झुक गई,उसने आदमी को पलटा के देखा तो हैरान रह गई उसे कोई खास चोट नहीं थी सर पे हल्का सा किसी चोट का निशान था जैसे कोई आंख हो,बाल ऐसे बिखरे थे जैसे बरसो से नहाया ना हो बिल्कुल आपस मे गूथ गए थे किसी जटा कि तरह लम्बे एक दूसरे मे गूठे हुए.
शरीर पे कपडे का कोई निशान नहीं सिर्फ एक गमछा जैसा लपेटा हुआ था अपनी कमर से नीचे.
"अअअअअ..अअअअअ.....तुम तुम तो वही हो जो मंदिर के बहार बैठते हो " अरवा ने पूछा
"मैंने तुम्हे मंदिर के बहार कई बार देखा है,आज तुम वहा नहीं थे. यह क्या कर रहे हो? घर कहाँ है तुम्हारा?"
अरवा एक ही सांस मे सारी बात कह गई.
"आअह्ह्ह.....मैडम जी " भोला थोड़ा सा कराहा
भोला ने हाथ से सड़क के उस पार इशारा कर दिया.
अरवा ने उसे उठाना चाहा तो उसका पल्लू सरसराता सा नीचे गिर गया एक गोरे सुडोल स्तन कि लाइन उभर के भोला के सामने आ गई
जैसे ही भोला कि निगाह उसके स्तन पे पड़ी अरवा को ऐसे लगा जैसे कुछ चुभा हो उसके स्तन पे,
अरवा चाह कर भी अपना पल्लू नहीं उठा पा रही थी उसे अचानक अपने स्तन भारी होते लग रहे थे.


"उठिये बाबा उसने भोला को सहारा दे उठा दिया,भोला अरवा से जा चिपका.
अरवा ने देखा कि भोला मजबूत कद काठी का व्यक्ति था इतनी तेज़ टक्कर लगने के बाद भी उसे कुछ नहीं हुआ था.
अरवा ने जैसे तैसे भोला को खड़ा किया,उसका पल्लू अभी भी नीचे धूल चाट रहा था.
भोला कि बाह अरवा के फुले हुए स्तन मे साइड से जा लगी,अरवा को ऐसे लग जैसे किसी ने उसके नंगे स्तन को छू दिया हो,ब्लाउज के ऊपर से हुए स्पर्श ने ही अरवा को झकझोर के रख दिया.
ऐसा लगा जैसे असीम ऊर्जा भरी हो इस स्पर्श मे.
अरवा ने खुद को हल्का सा अलग करते हुए पल्लू वापस से सही जगह रख लिया,सफ़ेद गोरी गोलाईया छुप गई थी लेकिन अरवा कुछ भारिपन महसूस कर रही थी अपने स्तन मे.
उसे अजीब से सीहरन महसूस हो रही थी, सांसे तेज़ हो गई थी
अब कहना मुश्किल था कि भोला कि छुवन कि वजह से या एक्सीडेंट कि वजह से.
"आइये बाबा मै आपको आपके घर छोड़ देती हूँ " अरवा ने भोला का हाथ उठा अपने कंधे पे रख लिया और चल पड़ी
सड़क से अंदर जाती एक पगडंडी पे अरवा उस भिखारी भोला को सहारा देती हुई चल पड़ी,आस पास झाड़ झंकार बढ़ती ही जा रही थी,अरवा ने पीछे मुड़ के देखा तो सड़क आँखों से ओझल हो चुकी थी.
अरवा का दिल किसी अनजानी शंका से घिरता चला गया,परन्तु ये उसकी जिम्मेदारी थी भोला को उसने ही टक्कर मारी थी.
जल्दी ही भोला का घर आ गया घर क्या था एक टूटी फूटी झोपडी सी थी. घने जंगल मे बनी घास फुस कि झोपडी
भोला जाते ही अपने टूटे फूटे बिस्तर पे गिर पड़ा.
भोला के गिरते ही अरवा ने देखा कि भोला का लंगोट हट गया है उसकी सांसे जहाँ थी वही अटक गई आंखे अपने कटोरे से बहार निकलने पे आतुर हो चली
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उसने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था एक काला सांप कि तरह मोटा लम्बा सा लिंग उस आदमी के जांघो के बीच झूल रहा था उसके नीचे किसी टेनिस बोल कि तरह दो बड़े बड़े टट्टे लटक रहे थे.
दोनों जांघो के बीच काले घने बालो का गुच्छा था, जैसे कोई घोंसला हो और एक काला नाग अपने दो अंडो के साथ उस घोसले मे बैठा हो.
"पानी पियोगी बेटी " भोला ने पूछा
अरवा बूत बनी खड़ी थी "मै मैममम..लेकिन बोल ना सकी उसका गला सुख गया था.
उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी,दिल धाड़ धाड़ कर छाती तोड़ बहार आने को बैचैन था
"मेरा नाम भोला है " भोला ने कहा
"पप्पाप्पल.....पता है " अरवा ने थूक गटकते हुए कहा
"तुझे कैसे पता " भोला मैडम से सीधा तू पे आ गया था.उसने खुद को सँभालने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि उसका लंगोट कमर तक उठा हुआ था
"वो....वो.... वहा के भिखारी ने बताया" अरवा जैसे तैसे बोल तो गई लेकिन उसकी नजरें वही जमीं हुई थी ना नजर हट रही थी ना ही उसके कदम.
"मै तुझे हर सोमवार मंदिर मे देखता था, तू इतनी सुंदर है,ऐसा गदराया जिस्म है फिर भी बच्चा नहीं है तुझे?" भोला सीधा सा बोल गया आखिर था ही भोला
भोला कि ये बात सुन अरवा के पैर काँपने लगे,उसने आज पहली बार अपने बदन कि तारीफ सुनी थी वो भी किस से एक भिखारी से "अअअअअ....आपको कैसे पता?"
भोला :- सब जनता हूँ मै तुझे देख के ही मालूम पड़ गया कि तुझे बच्चा नहीं है,
यही तो दुख था अरवा का आज भोला के मुँह से ये बात सुन उसकी नजरें झुक गई उसकी आंखे नम हो गई.
"अरे पागल रोती क्यों है,इसमें तेरी क्या गलती अब तेरे जैसे बदन को भोगने लायक शक्ति हर किसी के पास थोड़ी ना होती है, आ ले ले बच्चा " भोला ने अपने लंड को हाथ से पकड़ ऊपर कर अपने पेट से चिपका दिया.
भोला कि ये हरकत और बाते सुन अरवा पसीने पसीने हो गई सामने एक काला भयानक लिंग भोला के पेट पे लेटा था, "ककककम.....क्या बोल रहे हो तुम " अरवा ने आँसू पोछते हुए कहा
"वही जो तूने सुना आओ अपनी मनोकामना पूर्ण कर लो"
भोला ने अपने लंड को पकड़ के एक झटका दिया वो किसी चाबुक कि तरह झटके से भोला के पेट से टाकराया, वो चटटटट....कि आवाज़ सीधा अरवा के जहन पे जा लगी
उसके दिमाग़ मे पंडित के बोले गए शब्द गूंजने लगे "आज भगवान तेरी सुन लेगा "
अरवा को ये विचार आते ही ना जाने किस आवेश मे उसके कदम भोला को ओर बढ़ चले,वो ऐसी बदचलन स्त्री नहीं थी, ना जाने किस वशीकरण से बँधी थी उसके दिल मे एक हुक सी जग गई थी,उसका बदन उस मोटे काले लम्बे लंड को देख अपना नियंत्रण खो रहा था.
भोला जिस बिस्तर पे लेटा था अरवा वहा पहुंच चुकी थी उसका दिमाग़ कह रहा था चली जा यहाँ से ये सही नहीं है लेकिन उसका बदन पीछे हटने को तैयार हो तब ना.
भोला ने अरवा का हाथ पकड़ लिया "आआआहहहहब......अरवा के मुँह से हलकी सी सिसकारी फुट गई " भोला के हाथ मे एक अजीब सी गर्माहट थी जो अरवा के बदन मे समाने लगी
अरवा का बदन गर्म होने लगा.
"ये तेरा ही है अरवा पकड़ इसे" भोला ने अरवा के हाथ को पकड़ अपने लंड पे रख दिया
"आआआहहहहह.......इतना गरम " अरवा ने तुरंत हाथ पीछे खिंच लिया
उसका दिल सीना फाड़ देने पे उतारू था, पूरा बदन पसीने से लथपथ हो चला था
परन्तु भोला का हाथ नहीं छूटा " लिंग का अनादर नहीं करते अरवा बेटी ये तो पवित्र चीज है जीवन का संचार है इसमें यही तो नव जीवन कि नीव रखता है "
उस भिखारी भोला कि बातो मे जादू था एक वशीकरण था, उसकी बातो का जादू अरवा पे होने लगा था
वो भूल रही थी कि वो कहाँ है किसके साथ है उसे सिर्फ लिंग दिख रहा था भोला का लिंग.
अरवा ने अपने काँपते हाथो को आगे बड़ा दिया और धीरे से भोला के अर्धमुरछित लिंग पे रख दिया.
"आआआहहहहहब...उफ्फ़फ़फ़ग्ग..." दोनों के मुँह से एक साथ सिसकारी निकल गई.
" वाह बेटी क्या कोमल हाथ है तेरा,क्या मादक काया है तेरी " भोला ने तारीफ के पुल बाँध दिये.
अरवा जो कि पहले ही गरम हो चुकी थी इस तारीफ ने उसका मनोबल कई गुना बड़ा दिया उसके हाथ भोला के लिंग के चारो तरफ कसते चले गए,लंड इतना मोटा था कि पूरी तरह से मुठी मे समा तक नहीं रहा था.
भोला का हाथ अभी भी अरवा के हाथ पे ही था उसने अरवा के हाथ को पकड़ नीचे कि तरफ सरका दिया,फलसरुप भोला का लंड आगे से खुलता चला गया
कमरे मे एक मादक कैसेली गंध फ़ैल गई
अरवा के तो होश ही उड़ गए थे उसके सामने एक गुलाबी रंग का मोटा सा सूपाड़ा उभर आया था,उसमे से निकलती अजीब सी गंध अरवा के नाथूनो मे समाने लगी.
"आआहहहहह..... अरवा अब बिल्कुल होश मे नहीं थी उसकी गवाह उसकी सिसकारी थी,ये अजीब गंध थी.
"पास आ के सूंघ ना " भोला उसके मन को पढ़ रहा था
"कककक....क्या?" अरवा जैसे होश मे आई
भोला :- बच्चे पैदा करने के लिए सबसे पहले काम कला का ज्ञान होना जरुरी है सम्भोग कला आनी चाहिए
सम्भोग आनन्द के लिए हो तो फल जल्दी ही मिलता है.
बोलते हुए भोला ने अपना दूसरा हाथ अरवा के सर के पीछे रख उसे अपने लंड पे धकेल दिया
अरवा कि नाक के पास भोला का लंड झूल रहा था
अरवा ने आज तक ऐसा नहीं किया था उसे पता ही नहीं था इस चीज मे इतना आनन्द है
उसने एक लम्बी सांस भर ली "सससससनणणनईईफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......आआहहहह.....
.अरवा का जिस्म एक पल मे कांप गया
वो पूरी तरह से मदहोश हो चली थी
उसे इस खुसबू ने इस कदर भावशून्य कर दिया था कि ना जाने कैसे उसकी जबान बहार आ गई और सीधा भोला के खुले सुपाडे पे टच हो गई

"आअह्ह्हभ....अरवा बेटी बड़ी जल्दी सिख गई " भोला कि बाते अरवा का हौसला बढ़ा रही थी
सम्भोग मे कोई किसी को कुछ सिखाता नहीं है बस हो जाता है अपने आप यही बात आज अरवा को समझ आ गई थी.
"इसे चुसो बेटी " भोला ने अरवा के सर पे दबाव दे उसे पूरा अपने लंड ले झुका लिया
एक मनमोहक खूसबु से अरवा का बदन गरमानें लगा.
लेकिन सर इंकार मे ही हिल रहा था क्युँकि उसने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया था उसने कभी अपने पति कि लुल्ली भी नहीं चूसी थी.

भोला :- मना नहीं करते बेटी,ये तो प्रसाद है, हर सोमवार को मंदिर आ के मेरे सामने झुक झुक के अपने स्तन दिखाती थी आज शर्म आ रही है.
एक दम से भोला का व्यवहार बदलने लगा था, उसने अरवा के सर को पकड़ उसके होंठो को अपने लंड पे घिस दिया
"आआहहहहह......बाबा....बाबा.....क्या कर रहे है " अरवा भोला को बोल रही थी लेकिन रुक नहीं रही थी उसके होंठ भोला के लंड पे घिस रहे थे
उसे भोला का ये बदला हुआ मिजाज पसंद आ रहा था
"चल मुँह खोल.....चूस इसे " भोला जैसे ऑर्डर चला रहा था
भोला का लंड अरवा के होंठो कि छुवन से बिल्कुल तनतना गया था,एक दम सीधा खड़ा था
अरवा भोला के व्यवहर और लंड मे आये बदलाव को देख भोचक्की रह गई थी.
कहाँ अभी उसे काम कला का ज्ञान मिल रहा था कहाँ अब वो बेबस नजर आ रही थी.
अरवा ने हल्का सा मुँह खोल दिया "पकककककक....से भोला का लंड का सूपाड़ा अरवा के मुँह मे समा गया, एक अजीब सा स्वाद अरवा के मुँह मे घुल गया
"तुझे हर सोमवार देखता था अपनी गांड मटका मटका के बच्चा मांगती थी ना तू,अरे पागल गांड मटकाने से बच्चा पैदा होता है क्या भला.
"गू.गू...गू...गऊऊऊ....अरवा का मुँह सुपाडे से ही पूरा भर गया था.
भोला ने अपनी कमर को हल्का सा ऊपर उछाल दिया था लंड का थोड़ा सा हिस्सा और अंदर समा गया.
"तू मुझे भीख देती थी झुक झुक के अपने दूध दिखा के, स्तन दिखाने से उनमे दूध नहीं उतरता पागल औरत "चरररररररर......" भोला ने एक ही झटके मे अरवा के ब्लाउज को पकड़ के उसके बटन को तोड़ने हुए उसके स्तन को आगे से नँगा कर दिया
काले ब्रा मे कैद अरवा के स्तन पे बहार से आती ठंडी हवा ठोंकर मार रही थी.
परन्तु उसका मुँह भोला के लिंग से नहीं हटा,उसके निप्पल भोला के जाहिल पन से कड़क हो गए थे
वो सालो से इस प्यास मे तड़प रही थी,भोला का जंगलीपन उसे कही ना कही पसंद आ रहा था

"चूस इसे चूस मेरे लंड को....चूसेगी नहीं तो बच्चा कैसे लेगी " भोला ने एक जोरदार झटका मार दिया उसका लंड सीधा अरवा के गले तक समा गया.
"गुउउउउउउउउ......गऊऊऊऊ.....करती अरवा कि आंखे चौड़ी हो गई आंखे बहार आने को बेताब हो चली. जीभ बहार निकल के टट्टो को छू रही थी.
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अरवा के लिए ये सब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था वो भोला के जाँघ पे अपने हाथो को मारने लगी.
"जब तू सीढ़ी उतर के मंदिर जाती है तब सभी लोग तेरी इस मखमली मादक गांड को निहारते है chtttttttttt....से एक थप्पड़ साड़ी के ऊपर से ही अरवा कि गांड पे पड़ गया

"गऊऊऊऊ......करती अरवा के गले मे अभी भी भोला का लंड फसा हुआ था उसकी आँखों से आँसू निकल के गिरने लगे थे.
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भोला को शायद दया आ गई थी उसने होने हाथ को ढीला छोड़ दिया "आआहहहह.....खो खो.....उफ्फ्फग्ग...
खःह्ह्ह्हहोओओओ....अरवा ने अपना सर ऊपर उठा लिया उसके मुँह से ढेर सारा थूक निकल के भोला के लंड पे गिर पड़ा.
भोला का लंड अरवा के थूक से चमक रहा था जैसे अरवा ने उसका जल अभिषेक किया हो.
भोला ने अरवा को पलभर कि फुर्सत भी ना लेने दी और उसे पकड़ के उठा दिया वो अभी भी हांफ रही थी लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी "इसी गांड को मटकाती है ना तू चट...चट...करते दो थप्पड़ उसकी गांड पे पड़ गए.
साड़ी खुल के नीचे पैरो पे एकाट्ठी हो गई थी.
अरवा एक भिखारी के सामने सिर्फ पेटीकोट ब्रा मे हांफ रही थी विरोध करने का तो वक़्त ही नहीं था उसके पास
वक़्त नहीं था या वो चाहती ही नहीं थी.
"क्या बड़ी गांड है रे तेरी " बोलते हुए भोला ने पेटीकोट के नाड़े को पकड़ के खिंच दिया
"सररररररम......करता हुआ पेटीकोट भी अरवा के पैरो मे जमा हो गया "
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सामने का नजारा देख भोला के लंड ने बगावत ही कर दी,सामने अरवा जैसी कामुक मादक जिस्म कि मालकिन मात्र छोटी सी पैंटी और ब्रा मे खड़ी थी.
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ऐसा कामुक गदराया खिला हुआ बदन देख के तो इंद्र का सिंघाहासन भी डोल जाता ये तो भोला था.

भोला से रहा नहीं गया उसने अपने घुटने जमीन पे टिका दिये और अरवा कि दोनों जांघो के बीच अपना मुँह घुसा दिया
अरवा तो अभी तक इन सब से बाहर भी नहीं आई थी कि ये कामुक हमला हो गया उसके पति ने भी आज तक ऐसी हरकत नहीं कि थी
."वाह क्या खुसबू है रे तेरी चुत कि " भोला ने पैंटी के ऊपर से ही अरवा कि चुत कि खुसबू को अपने जिस्म मे भर लिया
अरवा ने जैसे ही चुत शब्द सुना उसकी चुत मे एक कर्रेंट सा दौड़ गया,कितना कामुक शब्द था" चुत " एक औरत का अनमोल खजाना "चुत"
अभी अरवा कुछ समझ पाति कि सररररर.....करती उसकी पैंटी भी जमीन चाटने लगी
भोला कि नजर जैसे ही सामने पड़ी उसके प्राण निकलने को हाजिर हो चले
सामने अरवा कि गोरी जांघो के बीच मात्र एक लकीर थी चुत के नाम पे बारीक़ सी लकीर.फूली हुई कामुक बिल्कुल चिपकी हुई चुत
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"तेरी शादी को इतने साल हो गए तेरी चुत अभी तक खुली ही नहीं " भोला बेकाबू हो गया तुरंत उसने अपने काले होंठो को सीधा उस पतली रस से भीगी लकीर पे रख दिया.
"आआआहहहहह.......करती अरवा अब काबू मे नहीं थी उसने अपने दोनों हाथो को भोला के सर पे रख सहला दिया जैसे तो वो कब से ये सब चाह रही थी.
एक औरत कि खास बात ही यही होती है जब उसे अपने बदन कि कामुकता कि जानकारी होती है तब वो स्वम ही उसका आनन्द लेने के तरीके खोज लेती है
आज अरवा भी ऐसे ही आनन्द को महसूस कर रही थी सम्भोग कला का आनन्द.
भोला चुत चाटे जा रहा था,अरवा के पैर जवाब दे रहे थे जाँघे कांप रही थी बदन पसीने से लथपथ हो चला था
"आआआहहहहह...बाबा...आआआहहहहह....चाटो इसे..आआहहहह....
.अरवा बड़बड़ाने लगी थी.
आआहहहहह......बाबा मै गई..." बोलती अरवा कि चुत से कामरस कि एक तेज़ धार बह गई...चुत से पानी इस कदर निकला जैसे कोई बाँध टूट गया हो भोला का पूरा जिस्म उसके चुत रस से भीग गया.
अरवा धड़ाम से जमीन पे बैठ गई एक दम नंगी पसीने से भीगी हाफती हुई भोला के भीगे बदन को देख रही थी जो उसके चुत से निकले रस से सना हुआ था
उसे खुद को ताज्जुब था कि इतना पानी कैसे निकला
आज तक ऐसा नहीं हुआ था.
इस कदर पहली बार झड़ी थी अरवा,जैसे उसकी आत्मा ही चुत के रास्ते निकली हो.
अभी अरवा कि सांसे काबू मे आई भी नहीं थी कि भोला उसकी और बढ़ चला अरवा कि टांगे फैली हुई थी दोनों जांघो के बीच मात्र एक लकीर थी जो कि बुरी तरह से चिप चिपे पानी से सरोबर थी
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भोला को अपनी तरफ बढ़ता देख उसे समझ आ गया था कि अब क्या होना है इतनी भी अनाड़ी नहीं थी अरवा.
भोला ने उसकी दोनों जांघो के बीच अपने घुटने टेक दिये थे.
उसका भयानक काला लंड अरवा कि लकीर रूपी चुत से जा लगा.
आआहहहह.......मात्र इस छुवन से ही अरवा के हलक से कामुक सिसकारी फुट पड़ी.
भोला अरवा के बदन पे झुकता चला गया साथ ही उसका लंड भी अरवा कि चुत पे दबाव बनाने लगा
चुत और लंड इस कदर गीले थे कि पच..कि आवाज़ के साथ भोला के लंड का सूपड़ा अरवा कि छोटी से बालरहित चुत मे समा गया.
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"आआआहहहहहह.....अरवा भीषण दर्द से कराह उठी,परन्तु भोला ने उसे इस कदर जकड़ लिया था कि वो एक इंच भी ना हिल सकी
भोला :- बस बेटी हो गया बोलते हुए एक जबरजस्त धक्का भोला ने दे मारा
"आआआहहहहह......आआआहहहहह.....अरवा को ऐसे लगा जैसे उसके पेट मे किसी ने चाकू मार दिया हो भीषण दर्द से पूरा जंगल गूंज उठा.
परन्तु भोला को कोई मतलब नहीं था " कुछ पाने के लिए थोड़ा सहना भी पड़ता है अरवा बेटी "
भोला बदस्तूर अपने लंड को पीछे खिंच वापस से जड़ तक अंदर डाल देता.
अरवा के मुँह से सिर्फ दर्द भरी आआहहहहह..सिसकारी निकल पड़ती
परन्तु ना जाने ये दर्द भरी सिसकारी कब आनंद कि सिसकारी मे बदल गई उसे खुद पता ना चला
"आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.....बाबा और जोर से...आअह्ह्ह....अंदर तक...आअह्ह्ह...." अरवा भोला को उकसा रही थी और अंदर डालने के लिए.
अब तक जिस लंड से वो खौफ खा रही थी उसी लंड को पूरा का पूरा अंदर निगल ले रही थी.
हाय रे नारी....भगवान भी ना समझ पाया ये तो था ही भोला
छप छप छप.....ठप ठप ठप....फच फच फच...कि आवाज़ झोपडी मे गूंज रही थी.
भोला के टट्टे अरवा कि गांड से जा टकराते.
अब अरवा भी अपनी कमर को ऊपर उठा उठा के भोला का पूरा सहयोग कर रही थी

लगभग 1घंटे बाद "आआहहहह...बाबा.....जोर से मेरा आने वाला हैऔर जोर से डालो " इस एक घंटे मे ही कितना खुल गई थी अरवा

भोला जो कि खुद भी पसीने से नहा गया था " आआहहब.......आअह्ह्ह.....अरवा बेटी क्या कसी चुत है तेरी आआहहहह....तेरी सारी मनोकामना पूर्ण हो "

आआहहहह......फच...फाचक...करता भोला अरवा कि चुत मे ही झड़ने लगा
साथ ही अरवा कि चुत ने भी एक बार फिर पानी फेंक दिया

झोपडी मे सन्नाटा छा गया था सिर्फ दो जिस्मो कि साँसो कि आवाज़ गूंज रही थी.
आज अरवा का जिस्म तृप्त हो गया था उसे असीम शांति कि अनुभूति हो रही थी.
बाहर सूरज ढलने लगा था.
भोला ने धीरे से अपने लंड को अरवा कि चुत से बाहर खिंच लिया,अरवा को ऐसा लगा जैसा साथ मे उसकी चुत भी खींची चली आएगी.
"आआहहहह....बाबा आराम से "
भोला का लंड पुकककक....से बहार आ गया,
साथ ही ढेर सारा वीर्य और चुत रस का मिला जुला शरबत भी अरवा कि चुत से बहता हुआ जमीन भीगाने लगा.
"जाओ बेटी अब शाम हो चली है तुम्हारे घर वाले तुम्हारी राह देखते होंगे " भोला ने अपने गमछे को वापस अपनी कमर पे लपेटते हुए कहा
परन्तु ना जाने क्यों अरवा उठी नहीं उसकी आँखों मे प्रश्न था कि एक आदमी कभी जंगली तो कभी सभ्य कैसे हो सकता है.वो अभी भी भोला को देखे जा रही थी
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"तुम जैसी कामुक मादक बदन कि स्त्री को भोगने के लिए इस जंगलीपन कि ही आवश्यकता होती है बेटी अब जाओ जल्दी रात होने वाली है " भोला जैसे अरवा कि मन कि बात समझ गया था
अपनी लुंगी लपेटे झोपडी के बाहर चला गया एक बार भी अरवा के नंगे जिस्म कि ओर नहीं देखा
अरवा अपने प्रश्न का उत्तर पा जैसे होश मे आई.
भोला को जाता देखती रही,फटा फट उसने अपने कपडे संभाले और झोपडी से बहार को दौड़ गई भोला आस पास कही भी नहीं था,सूरज ढल रहा था.
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वो अपनी साड़ी और अधखुले ब्लाउज को संभालती हुई पगडंडी पे दौड़ पड़ी.
उसकी कार सामने ही थी,पल भर मे कार सड़क पे दौड़ रही थी उसको यकीन नहीं ही रहा था जो अभी हुआ.
क्या हुआ कैसे हुआ पता नहीं...
इस घटना को 6 दी बीत गए थे.
सोमवर कि सुबह
"आप माँ बनने वाली है,मुबारक हो " अरवा अपने पति और सासु माँ के साथ क्लिनिक मे बैठी थी सामने डॉक्टर उसकी रिपोर्ट हाथ मे थामे खड़ा था
पुरे परिवार का ख़ुशी के मारे बुरा हाल था.
"मुझे मंदिर जाना है " अरवा ने अपने पति को क्लिनिक से बहार आते हुए बोला
"मेरी जान अब तो जो तुम बोलो वो हाजिर है तुम्हारे लिए " पति ने जवाब दिया
अरवा कि कार मंदिर के रास्ते दौड़ चली उसे भगवान का धन्यवाद कहना था उस से भी ज्यादा भोला का जिसकी वजह से उसे ये मान सम्मान उसकी इज़्ज़त प्यार वापस मिला था

अरवा मंदिर पहुंच चुकी थी दर्शन करने के बाद वो मंदिर के बहार बैठे भिखारियों के पास पहुंची.
सभी को 50-50rs दान किये आज फिर एक 50 का नोट बच गया था
"वो भोला नहीं आया आज " अरवा ने दूसरे भिखारी से पूछा
"क्या मेमसाहेब वो तो ना जाने कहा मर गया कब से नहीं आया " भिखारी ने जवाब दिया
अरवा का दिल बैठने लगा उसे बहुत इच्छा थी कि वो भोला को शुक्रिया कह पाति

"आओ चलते है अरवा अब तुम्हे अपना ध्यान रखना चाहिए " अरवा के पति ने उसका हाथ प्यार से थामते हुए कहा
कार वापस से उसी कच्चे रास्ते पे दौड़ चली

"रुको....रुको तो जरा " अरवा ने अपने पति को कार रोकने को कहा उसे वही जगह दिखाई दी जहाँ उसकी गाड़ी से भोला का एक्सीडेंट हुआ था.
"क्या हुआ मेरी जान "
अरवा ने अपनी छोटी ऊँगली उठा के पेशाब का इशारा किया "
"अच्छा जल्दी करो "
अरवा कार से नीचे उतर गई और जंगल मे अंदर उसी पगडंडी पे चल पड़ी जहाँ से उसकी खुशियों कि शुरुआत हुई थी.
वो उसी जगह पहुंच गई लेकिन वहाँ कुछ नहीं था ना झोपडी ना भोला.
वो पलट चली सर झुकाये उसकी आँखों मे आँसू थे परन्तु ख़ुशी के आँसू.
कार मे आ के बैठ गई.
"बड़ी देर लगा दी तुमने "
परन्तु अरवा ने अपने पति के सवाल का जवाब नहीं दिया उसके जहन मे एक ही सवाल बार बार गूंज रहा था

आखिर.....आखिर...
"वो कौन था?"
समाप्त
बहुत ही जबरजस्त कहानी।
कहानी में आपने सब कुछ वर्णन कर दिया।
आपकी लेखनी का जवाब नहीं।🙏🙏🙏🙏🙏
 

Faatboy

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"वो कौन था" कहानी को पसंद करने के लिए धन्यवाद दोस्तों
अब इस सीरीज कि अगली कहानी रहेगी
"लंड कटी लाशें "
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ये कहानी भी आपसे सवाल पूछेगी
समाज मे घूमते मानव रुपी हैवान जो औरत को सिर्फ अपनी अय्याशी और मनमर्ज़ी कि वस्तु समझते है, बलात्कार करते है.
क्या होगा जब हर जगह पाई जाएगी "लंड कटी लाश"

बने रहिये कथा जारी है....
भाई अपनी कहानी में हर किरदार को फेस दो
Kisi bhi bollywood actress ka
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1) Nora fatehi

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2)disha patani

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3)sara Ali Khan

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Yaa koi aur
अगर तुम्हें और चाहिए तो मेरा
Thread dekh lo👇👇👇
 
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andypndy

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भाई अपनी कहानी में हर किरदार को फेस दो
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बिल्कुल दोस्त try करूंगा
अच्छा विचार है
 

andypndy

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कहानी नंबर 3

एनिवर्सरी सरप्राइज
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मेरा नाम मंगेश है मै शादीशुदा मर्द हू, आम भारतीय आदमी कि तरह ही मेरा जीवन भी घड़ी कि टिक टिक के बीच ही चलता है.
सुबह उठो खाओ पियो दुकान निकल जाओ शाम को आओ खाओ पियो सो जाओ
जीवन मे रोमांच,एन्जॉयमेंट सब ख़त्म हो चला था.
मेरी age आज 40 साल है, आम आद
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मी कि तरह तोंद निकल गई है, आलास बदन मे भर गया है.

बस एक ही बात अच्छी है मेरे जीवन मे वो है मेरी घर्मपत्नी,मेरी बीवी अनुश्री
उसकी उम्र आज कोई 35 बरस होंगी सही सही कौन याद रखता है, गद्दाराये बदन कि मालकिन है मेरी अनुश्री

हम दोनों मे इतनी असमानता है कि पूछो मत.
मै कहाँ दिन पर दिन अलसी होता जा रहा हू, वही मेरी बीवी अनुश्री दिन पर दिन जवान हुए जा रही है.
मै सुबह 8 बजे तम घोड़े बेच के सोता हू वो सुबह उठ के योगा कसरत कर लेती है.
इसी का परिणाम है कि उसका बदन आज भी किसी नवयुवती कि तरह चुस्त दुरुस्त और कसा हुआ है.
स्तन तो मैंने शादी कि शुरुआत मे ही दबा दबा के बढ़े कर दिये थे रही सही कसर मेरे बच्चों ने दूध पी के पूरी कर दि.
आज उसके स्तन 36 का आकर लिए हुए बिल्कुल टाइट है.
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आज भी उसके स्तन पे नजर पढ़ जाती है तो पाजामे मे हलचल सी मच जाती है,
हालांकि ये कुछ भी नहीं है असली चीज तो उसकी पतली कमर के नीचे है दो बढ़े बढ़े आकर के विशालकाय लेकिन कसे हुए नितम्ब आपकि भाषा मे गांड.
एक दम करारी, कसी हुई 38 कि गांड जिसका पूरा हिस्सा ही बाहर को निकला हुआ है.
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आज हमारी शादी को 15 साल हो चुके है फिर भी जब जब उसकी गांड पे नजर जाती है तो मेरा लंड पानी फेंक देता है.
मेरा ये हाल है तो ना जाने बाहर वालो का क्या होता होगा.
खेर मैंने कभी जानने कि कोशिश भी नहीं कि.
शादी के शुरुआती दिनों मे मैंने अनुश्री को खूब भोगा,खूब चोदा लेकिन जहाँ दो बच्चे हुए कि सारा इंट्रेस्ट ख़त्म हो गया,
वैसे भी मै कभी अपनी पत्नी के कामुक बदन के सामने टिक ही नहीं पाया,हद से हद मात्र 5 मिनिट.
अब तो ये भी नामुमकिन सा काम लगता था, अनुश्री ने कभी इस बारे मे मुझसे शिकायत नहीं कि ना कि कोई शिकवा किया
ना जाने कैसी औरत थी इतना कामुक बदन लिए हुए भी काम कि कोई प्यास ही नहीं थी.
ऐसे कैसे? मै कई बार सोचता कि कोई स्त्री बिना सम्भोग के कैसे रह सकती है?
लेकिन हर बार मेरा सोचना व्यर्थ ही जाता,मेरी बीवी अनुश्री पतीव्रता संस्कारी महिला थी जिसने अपना जीवन मुझमे और मेरे परिवार पे निरछावर कर दिया था.
मै कभी कभी सोचता कि उस के लिए कुछ करू लेकिन क्या करू समझ नहीं आता,मै अच्छे से जानता था कि मै उसकी शारीरिक पूर्ति नहीं कर सकता हू.
फिर भी मुझे उस कि चिंता थी,"मुझे कुछ करना चाहिए "
"मंगेश क्या सुबह सुबह ऐसे गहन चिंतन मे डूबे हुए हो, मंदिर नहीं चलना क्या "
अचानक आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ,सामने देखा तो जैसे कोई अप्सरा खड़ी थी लाल लहंगा चोली मे सजी, हाथ मे चुड़ी,माथे पे बिंदी,गले मे लटका मंगलसूत्र. बालो मे खिलता हुआ गजरा,
लगता था जैसे आज शादी हो अनुश्री कि
चोली मे से उभार मारते यौवन के छींटे.
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"क्या हुआ जी "
"कककक......कुछ नहीं happy मैरिज एनिवर्सरी डिअर " मेरे हाथ खुद बा खुद अनुश्री को गले लगाने आगे बढ़ गए.
"अअअअअ....क्या करते हो बच्चे घर मे ही है " अनुश्री पीछे को हटी
"कोई नी पत्नी हो तुम मेरी " मंगेश ने अनुश्री को अपने आगोश मे भींच लिया.
"Happy मैरिज एनिवर्सरी आपको भी " कहती हुई अनुश्री शरमा गई.
"क्या चाहिए आज तुम्हे? आज 15 साल बीत गए हमारी शादी को "
"कुछ नहीं चाहिये आप हो ना " अनुश्री ने वही जवाब दिया जो हर एनिवर्सरी पे देती आई थी
"क्या यार अनु तुम हर वक़्त मना कर देती हो, क्या वाकई तुम्हे कुछ नहीं चाहिए?" मैंने हैरानी से पूछा
"हाँ नहीं चाहिए मेरे लिए आपने ये घर बनाया,इतने सुन्दर बच्चे दिये,प्यार दिया और क्या चाहिए?" अनुश्री ने बड़ी आसानी से सारी बात कह दि.
"प्प्प....प्यार....वो कब दिया " ये प्यार शब्द सुन के ही मुझे मेरी नाकाबिलियत याद आ गई.
"ऑफ़हो...आप भी ना मै शारीरिक प्यार कि बात नहीं कर रही मै आपके मन दिल वाले प्यार कि बात कर ही हू बुद्धू " अनुश्री खिलखिलाती अलग हुई और दरवाजे कि ओर बढ़ गई.
मै ठगा सा खड़ा रहा "कितनी आसानी से इसने मेरी नपुंसकता पे पर्दा डाल दिया,किस मिट्टी कि बनी है ये औरत?, मै जानता हू अनु तुम्हारी भी शारीरिक जरूरते है "
मेरी आंखे नम थी
" कोई बात नहीं अनु आज तुम्हारे लिए एक खास एनिवर्सरी सरप्राइज है,जिसकी उम्मीद तुम्हे बिल्कुल भी नहीं होंगी, आज तुम्हारी बरसो कि इच्छा पूरी हो जाएगी "
मै भी अनुश्री के पीछे पीछे उसकी मदमस्त गांड को देखता हुआ कार कि तरफ बढ़ चला.
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हमारी कार दौड़ चली सड़क पे "तुम ख़ुश तो हो ना अनुश्री ?"
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"क्या हो गया है जी आज आपको बार बार क्यों पूछ रहे है,मै ख़ुश हू आपसे और कुछ नहीं चाहिए "अनुश्री ने सीधा सा जवाब दे दिया और बाहर देखने लगी.
वो मंगेश के चेहरे पे मुस्कान को बिल्कुल भी ना देख सकी.
"अच्छा हुआ बच्चे नानी के चले गए रास्ता लम्बा है आने मे लेट हो जायेगा " मैंने अनुश्री को कहा
"हमममम..अनुश्री सिर्फ इतना ही बोली.
सफर 30km लम्बा था...शहर से दूर,बीच मे घने जंगले से होते हुए जाना पड़ता था.
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"लो जी भाग्यवन आ गया मंदिर,पता नहीं तुम्हे इतना दूर इसी मंदिर पे क्यों आना होता है "
मैंने सहज़ ही पूछ लिया
अनुश्री कुछ नहीं बोली मंदिर के अंदर चली गई.
"मै बाहर ही हू तुम हो के आओ " अनुश्री जैसे ही मंदिर मे गई.
मैंने मोबाइल निकल लिया पिक पिक पिक.....हाँ हेलो..तैयारी हो गई ना, सरप्राइज मे कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, बहुत टाइम है तुम लोगो के पास.... क्लीक के साथ फ़ोन कट गया.
मै आज बहुत ख़ुश था मेरा सरप्राइज तैयार ही था बस अनुश्री के आने कि देर थी.
टाइम लगभग 3 बज गए थे "चले जी शाम होने वाली है " अनुश्री कि आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ
"अअअअअ....हाँ हाँ चलो " हम वापस घर कि ओर निकल चले थे सब कुछ शांत था,अनुश्री के चेहरे पे शांति छाई हुई थी.
दोपहर के समय सड़क बिल्कुल सुनसान थी...

कि तभी चरररररररर.....करते हुए गाड़ी सड़क पे घसीट गई कारण था मैंने ही बुरी तरीके से गाड़ी को ब्रेक लगाए थे
"कक्क.....क्या हुआ मंगेश " अनुश्री कि आँखों मे घबराहट साफ दिख रही थी.
"वो...वो....सामने कोई सड़क पे गिरा हुआ है " मैंने थोड़ा सा आतंकित होते हुए कहा,
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"बीच सुनसान जंगल मे कौन है ये इतनी धुप मे कौन गिरा पड़ा है सड़क पे "अनुश्री व्यथित हो उठी उसका दिल ऐसा ही था किसी को दुखी नहीं देख सकती थी.
"हमें क्या अनु कौन पडे इस लफड़े मे निकल पड़ते है साइड से " मैंने दलील दि मुझे इन सब चककरो मे पड़ना भी नहीं था.
"कैसी बात करते हो मंगेश ,आगे पीछे देखो कोई नहीं है,हम चले गए तो तपती सड़क पे मर जायेगा वो आदमी " अनुश्री का दिल पसिज रहा था.
"क्या यार तुम भी फालतू लफड़े मे पड़ती हो, देखता हू जा के " मुझे नहीं जाना था लेकिन अनु कि बात ना
टाल सका
कार से उतर के तपती सड़क के बीचो बीच एक आदमी ओंधे मुँह पड़ा हुआ था.
जैसे जैसे मै पास जाता गया मालूम.पड़ा कि कोई 24,25 साल का पतला दुबला युवक है.
देखने से मालूम पड़ता था कि सांस चल रही है.
मन मे जिज्ञासा बढ़ने लगी थी, मैंने पलट के एक बार कार कि तरफ देखा जहाँ अनुश्री मुझे ही देख रही थी,उसने इशारा किया "देखो कौन है "
मैंने जैसे ही झुक के उसका कन्धा पकड़ा वो.लड़का एकाएक पलट गया....
मै कुछ समझ ही पाता कि मेरी गर्दन पे एक चाकू लगा हुआ था, मेरे होश फकता हो चले, सांस ही नहीं आ रही थी
कार मे बैठी अनुश्री कि आंखे फटी कि फटी रह गई,
"मांगेशशश्शस......चिल्लाती हुई अनुश्री कार से निकल मेरी ओर दौड़ पड़ी.
वो अभी निकली ही थी कि दो आदमी सड़क के साइड झाड़ियों से भागते हुए आये और धर दबोचा..
"ममममम....मंगेश मंगेश "
अनुश्री चिल्लाये जा रही थी,मेरा डर के मारे बुरा हाल था पैर कांप रहे थे.
कान मे साय साय करती हवा चल रही थी सबकुछ समझ से परे था
"साहब आप अमीर लोगो कि यही समस्या है, बेचारे गरीबो कि मदद करने चले ही आते हो " मेरी गर्दन मे चाकू रखे आदमी ने कहा.
" चलो पैसे निकालो जो कुछ भी है?" चाकू वाले लड़के ने कहाँ.
वो लोग देखने मे लूटेरे नहीं लग रहे थे उनके पास से दारू कि गंध भी आ रही थी.
"अअअअअ...बबबबब....हमारे पास कुछ नहीं है हम तो दर्शन करने आये थे " अनुश्री ने मेरी जान खतरे मे देख गुहार लगाई.
रमेश ये लोग ऐसे नहीं मानेंगे,चला दे चाकू" अनुश्री को पकडे एक आदमी ने कहाँ.
"ननणणन.....नहीं...नहीं...ऐसा मत करना ये कार रख लो " अनुश्री ने फिर से मिन्नत कि
"निकालता है ये जान निकालू तेरी " रमेश नाम का लड़का जो मेरी गर्दन पे चाकू लगाए था बोला
मेरी भी हालत ख़राब होने लगी थी,मैंने झट से अपना पर्स निकाल दिया "यययय....ये लो जाने दो हमें "
"देख तो बिल्लू कितना माल रखा है इस हरामजादे ने " रमेश ने मेरा पर्स बिल्लू कि तरफ उछाल दिया जो कि अनुश्री को दबोचे खड़ा था.

अरे इसमें तो सिर्फ 100rs है इटंर मे क्या होगा हमारा? दारू कि बोत्तल भी नहीं आएगी " सभी के चेहरे पे चिंता कि लकीर खिंच गई थी जैसे ना जाने क्या मुसीबत आन पड़ी हो उन तीनो पे.

देखने से वो तीनो लूटेरे बिल्कुल भी नहीं लग रहे थे अब तो उनकी हरकतों ने भी साबित कर दिया था कि वो पेशेंवार लूटेरे नहीं है,
"साले जेब मे माल है तो चुपचाप निकाल वरना चाकू अंदर डाल दूंगा " रमेश ने चाकू उठा ही लिया था कि
"नाहीउईई......नननन....नहीं...हम लोग मंदिर ही तो आये थे तो पैसो का क्या काम,हमारे पास और कुछ नहीं है आप चाहो तो ये चैन ले सकते हो " अनुश्री बुरी तरह डर गई थी
डर के मारे उसने अनजाने ही सभी का ध्यान अपनी छाती कि और आकर्षित कर दिया, उसके दोनों स्तन डर के मारे साँसो के साथ उठ उठ के गिर रहे थे,साथ ही गहरे ब्लाउज से झाँकती सोने कि चैन जगमगा रही थी या यु कहिए अनुश्री के उन्नत स्तन कि शोभा बड़ा रही थी.
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मैंने देखा तीनो लड़को कि आंखे वही जा के चिपक गई थी, एक पल को भी नहीं हिल पा रहे थे तीनो लड़के.
"ये....चैन ले लो और हमें छोड़ दो " अनुश्री ने एक बार फिर गुहार लगाई
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अनुश्री ने सोचा ही नहीं था कि ऐसा भी होगा,वो आमतौर पे गहरे गले का ब्लाउज ही पहना करती थी परन्तु आज हमारी अनिवर्सरी होने के कारण साड़ी ना पहन के लहंगे चोली पे सिर्फ एक दुप्पटा ही डाला हुआ था.
दुपट्टा कबका अस्त व्यस्त हो चूका था.अनुश्री कि खूबसूरती खुली सुनसान सड़क पे अपनी चमक बिखेर रही थी.
इस मनमोहक आवाज़ से तीनो के ध्यान भंग हुए.
बिल्लू के साथ खड़े आदमी ने उस जगमगाती चैन कि और हाथ बढ़ाया ही था कि " रहने दे यार कल्लू अभी कहाँ चैन बेचने जायेगा,हमें तो नगद कि जरुरत है " बिल्लू ने हताश भरे लफ्जो मे कहाँ.
"वैसे भी बहुत पी ली है हम लोगो ने "
उन तीनो को बाते सुंन के साफ हो गया था कि वो कोई लूटेरे नहीं अपितु सिर्फ दारू के जुगाड़ मे है.
"तो क्या इन्हे जाने दे?" कल्लू कि नजर अनुश्री के उफान भरते स्तन पे ही टिकी हुई थी
बड़े ही कष्ट भरे अंदाज़ मे उसने ये बात पूछी.
"पागल है क्या ऐसे कैसे जाने दे आज दारू ना सही इसकी जवानी का नशा करेंगे " बिल्लू ने एक दम से बम फोड़ दिया
मेरे और अनुश्री के पैरो के तले जमीन खिसक गई.
"ययययई....ये....क्या बोल रहे हो तुम?" मै शादीशुदा हूँ दो बच्चों कि माँ हूँ.
"तो क्या हुआ? लेकिन अभी भी माल है रे तू " बिल्लू ने अनुश्री को अपने आगोश मे दबोच लिया.
अनुश्री चिल्लाने को ही हुई थी कि "ख़बरदार चिखी तो तेरे पति को यही मार देंगे उसके बाद तेरा क्या होगा तू जानती ही है,समझदारी इसी मे ही कि हमारे साथ चलो "
रमेश ने मेरी गर्दन पे चाकू कि पकड़ मजबूत कर सड़क के निचले हिस्से कि ओर धकेल दिया.
अनुश्री बेचारी चुपचाप डरी सहमी पीछे पीछे चली आ रही थी.
"कल्लू तू कार को झाड़ी के पीछे लगा के आ लफड़ा नहीं मांगता अपने को " बिल्लू और रमेश अनुश्री मंगेश को साथ लिए जंगल के अंदर चले जा रहे थे
कोई एक मिनट के बाद ही एक खण्डारनुमा ईमारत सामने थी.
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"लो आ गया जानेमन तेरी अय्याशी का अड्डा "बिल्लू ने अनुश्री को आगे धकेलते हुए कहाँ.
"ममममम......मेरी आअअअअअ....अय्याशी?" अनुश्री ने बड़ी ही हैरानी से पूछा
"अब यहाँ तेरे जवान जिस्म को भोगा जायेगा तो तुझे मजा नहीं आएगा क्या हाहाहाहाहाबा....बिल्लू हॅस पड़ा
"वैसे भी तेरे जिस्म को देख के लगता है तेरा पति किसी काम का नहीं है " पीछे से आते कल्लू ने भी कीचड़ भिगो के दे मारा.
अनुश्री हैरान थी कि कोई आदमी भला कैसे उसके बदन को देख के समझ जाता है कि उसका पति नाकारा है नपुंसक है.
हालांकि अनुश्री के लिए ये वाक्य नये नहीं थे वो इस से पहले भी अपने जिस्म के बारे मे ऐसा सुन चुकी थी.
धक्का दिये जाने से अनुश्री लड़खड़ती आगे को गिरने को हुई लेकिन संभल गई,परन्तु इस लड़खड़हट मे जो चीज तीनो ने देखी उनके कलेजे मुँह को आ गए अनुश्री कि गांड बुरी तरह से साड़ी मे थरथाराई थी.
जैसे गांड के दोनों पाट आपस मे लड़ पडे हो.
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"देखो तो क्या गांड है इसकी"
रमेश ने जैसे मंगेश पे तंज कसा हो

मै और अनुश्री बेबस थे,मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था, लाचार आँखों से कभी अनुश्री को देखता तो कभी उन तीनो लफंगो को.
बाहर रात का सन्नाटा पसरने लगा था,कोई भी आवाज़ यहाँ तक नहीं आ पा रही थी इसका मतलब शोर शराबा व्यर्थ था
खंडर मे चलते हुए आगे एक कमरा था,जिसमे एक बड़ा सा गद्दा बिछा हुआ था आस पास दारू कि बोतले,सिगरेट के फेंके गए अवशेष दिखाई पड़ रहे थे.
मुझे समझते देर नहीं लगी कि ये जगह इन लोगो के अय्याशी का डेरा है.
"इधर बैठ रानी हम आते है अभी " बिल्लू ने अनुश्री को नीचे गद्दे पे फेंक दिया.
"आउच....इन्हे कहाँ ले जा रहे हो?" अनुश्री चिल्लाई
"साली चुप रह क्या होने पति के सामने ही चुदेगी हमसे" कल्लू दहाड़ा
ये सुनना था कि अनुश्री कि दिल.कि धड़कन बेकाबू हो गई उसे जिस बात कि शंका थी वही हो रहा था "ये तीनो मेरे जिस्म को भोगना चाहते है हे भगवान कहाँ फस गई मै?"
अनुश्री बेबस थी
"ले जा साले को अंदर बाँध दे " बिल्लू ने जैसे आदेश दिया हो

कल्लू और रमेश मुझे उसी कमरे से जुड़े एक बाथरूमनुमा कमरे मे ले गए जहाँ एक चेयर पड़ी थी.
दोनों मुझर अंदर ले आये और दरवाजा बंद कर दिया
"सालो इतनी भी क्या जोर जबरजस्ती करते हो?"
"सर जैसा आपने कहाँ था वैसा ही तो किया,आपका ही तो प्लान था अपनी बीवी को सरप्राइज देने का " रमेश ने कहा
"हाँ हाँ....ठीक है ठीक है...लेकिन ज्यादा जबरजस्ती मत करना मै,पहले उसे मानना.
मै नहीं चाहता कि उसके के साथ जबरजस्ती हो उसे भी मजा आना चाहिए "
"जी सर "
बोलते हुए रमेश और कल्लू बाहर को आ गए सिर्फ दरवाजा भिड़ा दिया था.
अंदर मंगेश " माफ़ करना मेरी जान अनु,मेरे पास ओर कोई रास्ता नहीं था मै जानता हूँ तुम्हारे जिस्म कि जरुरत मै पूरी नहीं कर सकता,इसलिए ये सरप्राइज प्लान किया,मुझे पूरी उम्मीद है तुम एन्जॉय करोगी हेहेहेहे..." मंगेश के चेहरे पे मुस्कान थी प्यार भरी मुस्कान, प्यार मे कुछ देने कि मुस्कान.
मंगेश वही दरवाजे के पीछे से झिरी नुमा छेद से अंदर देखने लगा.
आखिर उसे भी तो अपनी बीवी अनुश्री को आनंद लेते देखना था यही तो था उसका गिफ्ट "यौन आनंद "
ठाक कि आवाज़ के साथ अनुश्री सहम गई
उसकी नजर यहाँ बंद दरवाजे पे ही थी.
"देख अब तेरा पति तो अंदर है साला बहुत शोर कर रहा रहा बाँध दिया है अंदर " कल्लू ने आते ही कहा
"क्या नाम है तेरा?" बिल्लू ने पूछा
"अअअअअ...अनु...अनुश्री " अनुश्री सहम गई थी जीवन मे इस तरह से पहली बार फसी थी हालांकि ये वाक्य उसके साथ पहली बार नहीं था फिर भी आज तक जो हुआ जसकी मर्ज़ी से ही हुआ था परन्तु हे कुछ नया था 3-3 जवान लड़को के बीच घिरी हुई थी उसका पति अंदर कमरे मे बंद था
क्या करे क्या नहीं समझ नहीं आ रहा था.
"इतना मत सोच अनुश्री आज रात तू यहाँ से कही नहीं जाने वाली, हमारी बात मानेगी तो सही सलामत होने पति के साथ सुबह घर जा पायेगी साथ ही तुझे जो मजा देने वाले है हम वो तुझे जीवन मे कभी नहीं मिला होगा,क्यों भाइयो?
बिल्लू कि बात अनुश्री को समझ आ रही थी शहर से दूर सुनसान खंडर मे विरोध कर के क्या मिलना था उसे.
"लललल.....लेकिन मंगेश " अनुश्री ने जैसे प्रश्न पूछा
"उसकी चिंता मत कर वो अंदर बंद है,कोशिश कर के थक हार जायेगा फिर सो जायेगा तू अपनी बता?"
"मममम....मम्म...मै....उनको कुछ मत करना " अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल पाई
अंदर मेरा दिल पसिज गया कितनी फ़िक्र करती है अनु मेरी खुद कि इज़्ज़त भी दाँव पे लगाने को तैयार है.
कि तभी "तररररररर.....टर्रर्रर्र....इननननन...."किसी का मोबाइल बज उठा.
"ये साला इस समय किसका फ़ोन आ गया?" रमेश ने कूडकुडाते हुए फ़ोन उठाया.
"सालो हरामियों कहा हो आजकल,आज पैसे देने कि बात हुई थी तुम्हारी कोई बंदोबस्त हुआ क्या " सामने से कड़कदार आवाज़ सुन म रमेश कि घिघी बंध गई.
"यार ये तो असलम का फ़ोन है आज उसे पैसे देने का वादा किया था " रमेश ने बिल्लू और कालू को कहा उसके चेहरे पे हवाइया उड़ रही थी.
"एक तो इतनी रिस्क लिया इन अमीरजदो को पकड़ा लेकिन एक रूपए भी इनके पल्ले से हाथ नहीं लगा.
"ला मुझे फ़ोन दे " बिल्लू ने फ़ोन छीन लिया
"असलम भाई.....माफ़ करना पैसो का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया लेकिन उसके बदले कुछ और शानदार माल है आपके लिए" बिल्लू ने अनुश्री के कामुक बदन को ऊपर से नीचे घूरते हुए कहा.
"साले मुझे मेरा 10हज़ार रुपया रोकड़ा चाहिए माल तुम अपनी गांड मे डाल लो " दूसरी तरफ असलम ने घुड़की देते हुए कहा
"मालिक एक बार देख तो लो ऐसा माल अपने आज तक नहीं देखा होगा " बिल्लू अपनी बात पे कायम रहा
अनुश्री हैरानी से कभी बिल्लू को देखती तो कभी बंद दरवाजे कि तरफ जहाँ मै बंद था.
अनुश्री कि मर्जी के बिना उसके जिस्म का सौदा चल रहा था यहां.
"ये ये....ये.....कैसी बात कर रहे हो तुम " अनुश्री गिड़गिड़ाती हुई बोली
"अबे बिल्लू....ये किसकी आवाज़ है कोई रंडी बुलाई है क्या?" दूसरी तरफ असलम कि आवाज़ स्पीकर से कमरे मे गूंज गई
अनुश्री शर्म से सहमी जा रही थी इस तरह उसे किसी ने रंडी नहीं कहा था.
"अरे हजूर आप तो शहर कि सारी रंडी चोद चुके हो ये तो अमीर घरेलु अमीर माल है आपके लिए ही तोहफा समझो "हाहाहाहाहा.....तीनो हॅस पडे
अनुश्री कि तो डर के मारे हालत ही ख़राब होने लगी, उसे अपनी नाभि के नीचे दोनों जांघो के बीच पेशाब का तेज़ प्रेशर महसूस होने लगा दिल धाड़ धाड़ बजने लगा.
"तो असलम भाई एक बोत्तल दारू ले आओ और अपना माल ले लो " कट से बिल्लू ने फ़ोन रख दिया.
चलो भाइयो अपने तो नसीब खुल गए आज असलम भाई का कर्जा चूक जायेगा और हमारी दारू भी आ जाएगी.
"ये...ये......ठीक नहीं है...मै कोई बाजारू नहीं हूँ ' अनुश्री लगभग चिल्लाती हुई बोली उसकी ये आखिरी कोशिश थी अपनी इज़्ज़त बचाने कि
"साली ज्यादा बोली ना तो यही चुत फाड़ दूंगा और तेरे पति के सामने तेरी गांड मरेंगे, कुछ नहीं होगा बस आज रात हमारा साथ दे दे हम मुसीबत मे है समझा कर "
बिल्लू ने गुस्सा और प्यार एक साथ दिखाया.
"मममम....म..ममम....मै ऐसी नहीं हूँ 'अनुश्री और ज्यादा सिमट गई लेकिन कही ना कही अपने बारे मे गन्दी गन्दी बाते सुन के उसके जिस्म ने हल्की सी अंगड़ाई जरूर ली थी
आज बरसो बाद वो किसी ऐसी स्थति मे आई थी.
अंदर मै दरवाजे कि झिरी से सबकुछ देख रहा था "कही मैंने गलत तो नहीं किया?"
नहीं नहीं.....अनुश्री ने कभी कहा नहीं लेकिन वो प्यासी जरूर है "
मंगेश अपने फैसले पे अडिग था.
"क्या नाम है रे तेरा?" कल्लू ने पूछा
"अअअअअ....अनुश्री " अनुश्री सर झुकाये बैठी थी उसका दिल घबरा रहा था.
"देख अनुश्री अब कुछ नहीं हो सकता, हम लोग कोई जोर जबरजस्ती नहीं करना चाहते लेकिन तू मजबूर करेगी तो नुकसान तेरा ही है तुझे चोट लग सकती है तेरे पति का क्या होगा हमें नहीं पता भलाई इसमें है कि अपनी शर्माहट छोड़ और खुल के पेश आ आज रात यहाँ जो भी होगा उसकी भनक किसी को नहीं लगेगी,तेरे पति को भी नहीं समझी? सुबह तुम लोग आराम से घर चले जाना " कल्लू ने उसे अपनी बात ईमानदारी से समझा दी
अनुश्री को उसकी बात वाजिब लगी अब कुछ कर भी नहीं सकती थी, अपनी और मंगेश कि जिंदगी उसके लिए ज्यादा कीमती थी,कल्लू कि बात का असर उसके जहन पे हो रहा था.
"अअअअअअअ.....हाँ....हाँ...." अनुश्री ने हाँ भर दी
"Good हमें यही उम्मीद थी " बिल्लू ने कहा
अनुश्री को पक्का यकीन हो चला था की उसे यहाँ कोई देखने वाला नहीं है, उसका दिल भी कही ना कही इस बात को एन्जॉय कर रहा था, फिर इतने सालो बाद उसके जीवन मे ऐसा पल आया था जब कोई उसके जिस्म.के लिए पागल हुए जा रहा था.
"ममममम.....मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री ने झिझकते हुए कहाँ

"अरे भाई किसे मूत आया है " एक गरजदार आवाज़ पुरे कमरे मे गुज उठी.
अनुश्री इस आवाज़ से ही आतंकित हो गई उसका मूत छूटने कि कगार पे ही था
अनुश्री कि नजर जैसे ही आवाज़ कि दिशा मे घूमी उसके तो प्राण ही हलक मे आ गए सामने किसी दानव आकर का आदमी खड़ा था कुर्ता पजामा पहने सर पे गोल टोपी लगाए.आंखे किसी भड़िये कि तरह लाल.
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अनुश्री सिहर उठी उसके पेशाब का प्रेशर और दिल कि धड़कन दोनों तेज़ हो गई, उसमे अपने पैरो को खुद से चिपका लिया परन्तु चाह कर भी अपने गद्दाराये मादक जिस्म को नहीं छुपा पा रही थी.

"अरे वाह रे, ये लड़कि कौन है? कहाँ से लाये बड़ा ही मस्त माल है "
"आओ....असलम भाई आओ " इसका नाम.अनुश्री है रास्ते मे ही मिले इसका पति अंदर कमरे मे बंद है साले के पास सिर्फ 100 रूपए ही थे लेकिन माल करोड़ो का ले के घूम रहा था,ले आये अंदर " रमेश एक सांस मे पूरी कहानी सुना गया
असलम ने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं उसके तो पैर वही जड़ हो गए थे,उसकी नजर एकटक अनुश्री पे ही टिकी हुई थी अनुश्री जो कि घाघरे चोली मे सिमटी बैठी हुई थी.
उसके कपडे इस कद्र तंग थे कि एक एक काटव उसकेकामुक यौवन कि गाथा गा रहा था.
"उउउउम्म्म्म....क्या हुआ असलम भाई " बिल्लू ने टोका
"सालो ऐसी लड़की तो मैंने आजतक कभी नहीं देखी,इतनी सुन्दर गोरी, मासूम,ऐसा गाडराया बदन वाह लड़को तुमने तो वाकई अपना कर्ज़ा चूका दिया "
अनुश्री अपनी कामुक तारीफ सुन अंदर ही अंदर गुदगुदा गई लेकिन साथ ही डर के मारे उसकी दिल.कि धड़कन भू बेकाबू हो चली,साथ ही पेशाब का प्रेशर भी बढ़ने लगा.
"वो....वो...मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री ने सर झुकाये ही कहा.

"लो बे लौंडो दारू कि बोत्तल मजे करो " असलम ने बोत्तल उन तीनो कि तरफ उछाल दी वैसे वहाँ किसी ने अनुश्री कि व्यथा सुनी ही नहीं
"ममममम......मुझे टॉयलेट आया है " अनुश्री से अब बर्दाश्त के बाहर था लगता था कि थोड़ी देर होते ही बिस्तर गिला हो जायेगा
"लौंडो आज मै तुम्हे एक मस्त दारू पिलाता हूँ,नशा दुगना हो जायेगा " असलम ने कुछ सोच विचार के कहा.
"क्या असलम भाई दूसरी दारू भी लाये हो गया महँगी वाली?" तीनो लड़को कि आँखों मे चमक आ गई
"नहीं बे....इसी दारू को महँगी बना दूंगा " असलम ने अनुश्री कि तरफ नजर घुमाते हुए कहाँ ना जाने क्या था उसके दिमाग़ मे.
"तुझे पेशाब आया है ना?" असलम ने घुड़की देते हुए अनुश्री को कहा
"अअअअअ....आए...हाँ हाँंन्न...जोर से प्लीज जाने दो " अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे बुरी तरह भींच ली थी.
असलम ने दारू कि बोत्तल उठाई और तीन गिलास मे थोड़ी थोड़ी डाल दि.
वहाँ किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है असलम अनुश्री को पेशाब का पूछ के पैग बनाने लगा.
अब अनुश्री के सामने तीन कांच के गिलास आधे दारू से भरे पड़री थे.
"ले मूत दे इन गलसो मे अपना गरम मूत " असलम ने अनुश्री कि भींचे हुए जांघो को घूरते हुए कहाँ.
"ककककक.....क्या कककक..क्या म....मममम...मै नहीं " अनुश्री के माथे पे पसीना आ गया इतनी घिनौनी बात सुन के उसका बदन थारथरा गया.
"मूतना है तो इस गिलास मे ही मूत वरना रहने दे " असलम ने लास्ट फैसला सुना दिया

तीनो लड़के सिर्फ अनुश्री और असलम को ही देखे जा रहे थे, उनके लिए जैसे ये अजूबा था ऐसा कुछ तो उन्होंने ना कभी सोचा था ना कभी देखा.
"सोच मत यदि तूने बिस्तर पे मूता ना तो मार मार के हालत ख़राब कर दूंगा " असलम एक दुम से हत्थे से उखड़ गया.
अनुश्री एक बार को कांप गई असलम का रोन्द्र रूप ही ऐसा था.
अनुश्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था की कैसे करे,उसकी दिमाग़ कि नस फटे जा रही थी, कैसे वो 4 मर्दो के सामने लहंगा उठा दे.
वही चारो कि निगाहेँ अनुश्री पे ही टिकि हुई थी
यहाँ दरवाजे के पीछे मै भी देखना चाहता था अनुश्री क्या करती है.
अनुश्री डरती सहमति खड़ी हुई,हल्का सा आगे को झुकी और अपने लहंगे के अंदर हाथ डाल के कुछ करने लगी.
एक मनमोहक सी खुसबू कमरे मे फ़ैल गई,वहाँ बैठे सभी मर्दो कि हालत पतली हो चली सामने दृश्य ही ऐसा था लाल लहंगा चोली मे अनुश्री जैसी कामुक गोरे जिस्म कि मालकिन झुकी हुई थी,झुकने से उसके स्तन कि सुरक्षा करता दुप्पटा सरक के जमीन चाटने लगा,एक गहरी कामुक खाई सभी के सामने जादू से प्रकट हो गई,अनुश्री के स्तन लगभग बाहर को गिर पडे थे.
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चारो लोग अपनी जगह जम के रह गए थे,सांस रोक के बैठे थे जैसे आने वाले भूचाल का इंतज़ार हो
और हुआ भी वही...जैसे जैसे अनुश्री का हाथ लहंगे से बाहर आता गया सभी को एक काली सी चीज उसके हाथ मे दिखाई दि.
"ये...ये...ये....तो अनुश्री कि ब्लैक पैंटी थी जिसे अनुश्री ने निकाल दिया था, ब्लैक पैंटी अनुश्री कि सबसे फेवरेट चीज है,खेर मैंने आगे देखना शुरू किया.
अनुश्री शर्म से गड़ी जा रही थी परन्तु ना जाने क्यों वो मंद मंद मुस्कुरा भी रही थी,माथे ले पसीना था और होंठो पे हल्की सी स्माइल.
अनुश्री अपनी काली कच्छी को साइड मे रखने ही जा रही थी कि बिल्लू तुरंत उसके पर झापट पड़ा " अरे इसे तो यहाँ दे वहाँ कहाँ रख रही है "
पैंटी छीनते ही बिल्लू ने उसे अपनी नाक से लगा लिया "ससससननणणनईईफ्फ्फ्फग.......आआहहहह.....क्या खुसबू है असलम भाई, दारू का नशा भी फ़ैल है "
अनुश्री का तन बदन बिल्लू कि इस हरकत से कांप उठा.
"इससससस.....कि हल्की सी सिसकारी उसके गले से फुट पड़ी
"अरे दोस्तों ये तो गीली है थोड़ी थोड़ी " बिल्लू ने सभी के सामने एक ऊँगली से पकड़ के पैंटी को नचा दिया..
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"औरत कितनी ही सती सावित्री हो चुदने के नाम.पे पानी छोड़ ही देती है क्यों अनुश्री " असलम ने इस बार सीधा सवाल कर दिया था
"वो...वो....ंन्न..... नहीं टॉयलेट आया है " अनुश्री डरती सहमति मुकर गई.
"हाहाहा....चल कर ले बना इन तीनो के लिए पैग " असलम सामने कुर्सी पे पीछे को पसर गया.
चारो को अब जन्नत देखने कि उम्मीद थी.
अनुश्री ने तुरंत पास पड़े एक ग्लास को उठा लिया और झट से उकड़ू बैठ गई.
गिलास लाल लहंगे के अंदर कही गायब हो चला,चारो कि आंखे बड़ी होती गई उन्होंने तो ऐसी उम्मीद ही नहीं कि थी.
असलम अभी कुछ बोलता ही कि "पप्पीस्स्स्स......सससससस........ईईस्स्स.स....."कि कामुक आवाज़ से कमरा नहा गया
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अनुश्री ने आंखे बंद कर ली
"आअह्ह्हब......उउउफ्फ्फफ्फ्फ़...." अनुश्री को आज पेशाब त्याग के ही असीम सुख मिला था उसका बदन धीरे धीरे हल्का होने लगा.
अनुश्री ने बारी बारी तीनो ग्लास भर दिये.
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उसके चेहरे पे असीम सुकून देखा जा सकता था साथ हूँ एक सीलन भरी मादक खुसबू भी हवा मे फ़ैल गई.
ये गंध इतनी तेज़ थी कि मेरे तक भी पहुंच रही थी और मै इस गंध से अच्छी तरह से वाकिफ था ये अनुश्री कि चुत कि गंध थी जब भी वो उत्तेजित होती थी तो मुझे ऐसी ही किसी चीज कि खुसबू आया करती थी "इस...उसका मतलब अनुश्री उत्तेजित हो रही है,मै हैरान था लेकिन मै चाहता भी तो यही था कि अनुश्री मजा ले.
मै चुपचाप दरवाजे से कमरे मे झाकने लगा.
अनुश्री वही दिवार का सहारा ले के बैठ गई,आंखे बंद सांसे लगातार तेज़ चल रही थी जिस वजह से उसका सीना उठ उठ के गिर रहा था,लाल चोली मे से दो सफ़ेद गोल आकृति बहार निकलने को होती कि अंदर चली जाती.
सामने बैठा असलम ये नजारा सुकून से देख रहा था.
अनुश्री किसी काम मूर्ति कि तरह लग रही थी माथे से बहता पसीना सुराहीदार गर्दन से होता हुआ ब्लाउज मे उभरी घाटियों मे समाता जा रहा था.
"मैंने आज तक तुम जैसी कामुक स्त्री नहीं देखी " असलम से राहा नहीं गया उसके मुँह से तारीफ के दो बोल निकल ही गए.
अनुश्री कि आंखे झट से खुल गई
सामने का नजारा देख उसका पूरा वजूद ही कांप गया
उसके सामने बिल्लू,कल्लू और रमेश तीनो दारू एयर उसके पेशाब से भरे ग्लास को एक ही घूंट मे गट गट कर पी गए.
"आआहहहह......असलम भाई क्या स्वाद था मजा आ गया ऐसी दारू तो हमें आज तक नहीं पी" बिल्लू और बाकि दोस्तों ने गिलास को जमीन पे रखते हुए कहा
अनुश्री का तो कैसे वजूद ही हिल गया था उसकी जांघो के बीच एक सैलाब उमड़ पड़ा उन तीनो ही हरकत देख के
एक मन हिकारात से भर उठा तो दूसरा मन सिहर उठा रखा उन्माद से,एक कामुक उत्तेजना से "कैसे कोई उसका पेशाब पी सकता है,
ये बिल्कुल नया था अनुश्री के लिए भी और मेरे लिए भी.
मैंने भी आज तक किसी आदमी को किसी औरत का पेशाब पीते नहीं देखा था ये पल मुझे भी रोमांचित करने वाला था,आज मुझे खुद को अहसास हो रहा था कि मैंने जिंदगी मे कितना कुछ मिस कर दिया.
मै कभी अनुश्री को यौन सुख दे ही नहीं पाया.
लेकिन आज अनुश्री कि हालत देख के लग रहा था रही सही कसर आज पूरी हो जाएगी.
मेरी नजर अंदर कमरे मे ही बनी हुई थी जहाँ अनुश्री आंखे फाडे हक्की बक्की कभी उन तीनो को देखती तो कभी कुर्सी पे बैठे असलम को.
"ऐसी औरत के मूत मे तो 10 बोत्तल के बराबर नशा होता है बे लड़को " असलम ने अनुश्री कि जांघो के जोड़ को घूरते हुए कहाँ
असलन का ऐसा कहना ही था कि अनुश्री ने अपनी जाँघे आपस मे भींच ली,उसकी धड़कन हज़ार गुना बढ़ गई लगती थी.
उसका हलक सुख गया था,कुछ बोलना चाहती थी लेकिंन उसके अल्फाज़ गले मे ही घुट के रह गए.
"सही कहाँ असलम भाई ऐसे अमृत को तो मुँह लगा के ही पीना चाहिए " बिल्लू ऐसा बोलता हुआ अनुश्री कि तरफ बढ़ चला उसका हाथ अनुश्री के तालवो पे जा लगा.
"ये....ये...ये क्या कर रहे हो तुम?" अनुश्री बोखला गई
"वही जान जिसके लिए तुझे यहाँ लाये है " कल्लू भी नजदीक आ गया.
"और ज्यादा शरीफ मत बन ये देख तेरी चड्डी कैसी गीली है, लगता है तुझे भी लंड कि तलाश है " रमेश भी बोलता हुआ अनुश्री कि दूसरी साइड आ बैठा.
अनुश्री 3 तरफ़ा घिर चुकी थी, सामने पैरो के बीच बिल्लू का कब्ज़ा था और अगल बगल रमेश और कल्लू अपना आसन ले चुके थे रही पीछे दिवार तो वो कहाँ जानी थी,अनुश्री सब तरफ से घिर गई थी
तीनो लड़को के मुँह से दारू और अजीब सी कैसेली गंध निकल रही थी

अनुश्री एक दुम से 3,3.मर्दो को इतना नजदीक पा के कसमसाने लगी कि एक भारी भरकम आवाज़ गूंज उठी
"इतना क्यों इतरा रही है,तेरा बदन तो कुछ और बोल रहा है लड़को को करने दे जो वो करना चाहते है वरना जोर जबरजस्ती तुझे भी पसंद नहीं आएगी ना मुझे " असलम सामने कुर्सी ले बैठा दहाड़ा.
अनुश्री एकदम से शांत हो गई,आंखे बंद कर सर पीछे दिवार को टिका दिया,ना जाने क्या जादू था असलम कि आवाज़ मे कि एक बार मे ही उसकी बात मान ली.
आंखे बंद किये अभी अनुश्री रिलैक्स हुई ही थी एक दम से चीख उठी
"अअअअअअअह्ह्हह्ह्ह्ह......आउच धीरे " अनुश्री कि आंखे खुलती चली गई
"अबे से कल्लू इतना क्या जोर से दबाता है आराम से " बिल्लू ने अनुश्री कि टांगो को घुटने से मोड़ दिया
"अरे यार इतने सुन्दर स्तन देख के रहा नहीं गया देख तो साली के कितने गोरे है " कल्लू ने सभी का ध्यान अनुश्री के स्तन कि तरफ आकर्षित किया
वाकई दुनिया भर कि सुंदरता लिए उसके स्तन उफान पे थे,कल्लू के जोर से दबाने से कुछ कुछ लाल हो चले थे.
सामने असलम को कोई फर्क नहीं पढ़ रहा था इन सब से वो आराम से बैठा देख रहा था ना जाने क्या था उसके मन मे.
अनुश्री कि नजर भी बीच बीच मे उसके से मिल जाती,उसके जहन मे भी यही था कीबाई दूर क्यों बैठा है इन तीनो कि तरह दारू पी के टूट पढ़ना चाहिए था इसे भी.

"टक टक....टक...तड़क...कि आवाज़ के साथ अनुश्री के ब्लाउज के बटन एक एक कर टूटने लगे.
अनुश्री ने झट से अपने बहार अति खूबसूरती को थामाना ही चाहा था कि "ना..ना...ना....अनुश्री ऐसा ना करना वरना....." असलम ने फिर से घुड़की दि
शायद अनुश्री इस वरना का मतलब अच्छे से समझ चुकी थी.
"तू बेफिक्र रह तुझे भी मजा आएगा देख आ भी रहा है तेरे रोंगटे खड़े हो रहे है " असलम कुर्सी पे और पीछे कि ओर झुक गया जैसे कोई फ़िल्म शुरू होने वाली हो.
"फड़क....फड़ाक....कि आवाज़ के साथ अनुश्री के ब्लाउज के दोनों हिस्से दो तरफ झूल गए.
"आआहहहह.....नहीं....आउच " अनुश्री सिर्फ गुर्रा के रह गई.
कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छा गया,जैसे वहाँ सब मुर्दे हो मैंने तो हज़ारो बार इन अनमोल खजाने को देखा था परन्तु मेरी भी हालत उसके अजूबे को देख के ख़राब हो चली.
अंदर कमरे मे अनुश्री ऊपर से सम्पूर्ण नग्न अवस्था मे बैठी थी उसके दोनों हाथ पलंग पे टिके थे सर पीछे को था आंखे बंद थी शायद वो खुद अपनी इस हालत को नहीं देखना चाह रही होंगी.
"ककककक.....क्या....दूध है दोस्तों आअह्ह्ह....." चारो कि नजर अनुश्री के स्तन पे ही थी एक दम कड़क,उभार लिए हुए जरा भी झुकाव नहीं.
निप्पल किसी कील कि तरह पैने हो गए थे.
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"अरे असलम भाई इसने तो अंदर ब्रा ही नहीं पहना है" रमेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा उसके हाथ कांप रहे थे ना जाने किस अजूबे को छूने जा रहा हो.
"साले इसे ब्रा कि क्या जरूररत देख नहीं रहा कैसे तने हुए है " असलम खुद हक्का बक्का मुँह बाये उसके खूबसूरती को देखे जा रहा था.
"मैं खुद हैरान था कि अनुश्री के स्तन आजतक इतने कड़क नहीं हुए थे या मैंने ही काफ़ी ध्यान नहीं दिया था कैसा आदमी हूँ मै " मंगेश आज खुद को लानते दे रहा था
अंदर कमरे मे तो जैसे कोई पारस कि मणि जगमगा रही थी.
अनुश्री आंखे बंद किये आने वाले पल कि प्रतीक्षा मे थी,शायद वो सहज़ हो गई थी
कि तभी दो मजबूत लेकिन मुलायम हाथ उसके दोनों स्तन को छू गए.
"आआआहहहह.....उफ्फ्फ्फ़...."अनुश्री कि गर्दन और पीछे को हो गई मुँह खुल गया.
रमेश और कल्लू के हाथो ने उसके दो अनमोल रत्नो को दबोच लिया था.
"देख साली को कैसे मजे ले रही है " बिल्लू से भी अब रहा नहीं जा रहा था अनुश्री कि कामुक सिसकारी सुंन के, उसने भी बिना देरी किये अनुश्री के दोनों पैर विपरीत दिशा मे फैला दिये.
अनुश्री का लहंगा जांघो टक चढ़ गया था दो गद्दाराई मोटी गोरी बाल रहित जाँघे उजागर हो गई.
बिल्लू पहले से ही नशे मे था उसके सहन के बहार था ये नजारा, झट से उसने अपना सर अनुश्री के लहंगे मे घुसा दिया उसे किसी चीज कि तलाश थी.
"आआहहहह......नहीं....हीहीहीबी......उगफ.....फ़फ़फ़..." अनुश्री कि मादक कामुक चीख एक बार फिर से गूंज उठी
अनुश्री कि ये सिसकारी इस बात कि सबूत थी कि बिल्लू को अपनी मंजिल मिल गई है.
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"वाह....क्या चूत है तेरी " बिल्लू कि नशे से भारी लप लापती जीभ अनुश्री कि चिकनी साफ सुथरी चुत पे तैरने लगी.
अनुश्री कि आंखे खुल गई सर आगे को आ गया तीन जवान लड़के उसके जिस्म के साथ खेल रहे थे, अब उसका जिस्म किसी गर्म भट्टी कि तरह तप रहा था.
इंकार का तो सवाल ही नहीं था आंख खोले सामने कभी वो बिल्लू को आपने लहंगे मे घुसी देखती तो कभी स्तन चबाते कल्लू और रमेश को.
उसके बदन मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी.
सामने बैठा असलम जैसे कोई फ़िल्म देख रहा था. एक बार को अनुश्री और असलम कि नजर आपस मे टकरा गई.
"जानता हूँ तुझे भी मजा आ रहा है,कोई नहीं आएगा खुल के मजे कर " असलम धीरे से फुसफुसाया जिसे अनुश्री ने साफ सुना
ये सुनते ही ना जाने क्या जादू हुआ कि अनुश्री कि आंखे एक पल को झुकी और फिर असलम से जा मिली जैसे उसने हाँ बोला हो.
अनुश्री के दोनों हाथ ऊपर को उठ गए और कल्लू रमेश के सर पे पीछे को जा टिके,अनुश्री उनके सर का दबाव अपने स्तन पे बना रही थी,कमर अपने आप ऊँची हो के नीचे गिर जाती..जैसे वो खुद अपनी चुत को बिल्लू के मुँह पे रगड़ रही हो.
अंदर मै इस नज़ारे को देख हैरान था अनुश्री का ये रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था, वो कुछ बोल नहीं रही थी बस सामने बैठे असलम को देखे जा रही थी जैसे उसे उकसा रही हो, उत्तेजित कर रही हो.
"आआआहहहहह......और अंदर " अचानक ही अनुश्री ने अपने होंठो को दाँत तले काट लिया कमर हवा मे झूल गई,कमर के साथ साथ बिल्लू का मुँह भी ऊपर को आ गया.
बिल्लू ने हार ना मानते हुए वापस से मुँह को नीचे कि और झटका दिया, अनुश्री के मुँह से आहहहह.....सी निकल गई

"काटो मत....आराम से " अनुश्री पहली बार इन सब के बीच बोली

"अरे मेरी जान ऐसी सुंदर चुत रोज़ रोज़ कहा मिलती है " बोलता हुआ बिल्लू फिर से टूट पड़ा
"चप..चप..चप....चाट...कि आवाज़ से कमरा गूंजने लगा इस आवाज़ ने अनुश्री कि सिसकारी भी शामिल हो चली.
"उफ्फ्फ्फ़......आआउच.....आअह्ह्ह......जोर से " अनुश्री भी इस चुसाई और चटाई मे उन तीनो का साथ देने लगी कभी उसके हाथ बिल्लू को अपनी जांघो के बीच धकेलते तो कभी रामर्श और कल्लू को आपने स्तन पे दबोच लेते.
अनुश्री बुरी तरह से पसीने से नहा गई थी, उसका शरीर थूक और पसीने से सन गया था.
बिल्लू से राहा नहीं गया उसने अपनी जीन्स को नीचे सरका दिया, उसका लंड उजागर हो हो गया..वो गांड पीछे किये अनुश्री कि चुत मे मुँह घुसाए पड़ा था.
अनुश्री कि नजर जैसे ही बिल्लू के लंड पे पड़ी उसकी कमर जोर से ऊपर को उछल पड़ी जैसे उसके लंड को पकड़ लेना चाहती हो.
तीनो लड़के नशे मे धुत सिर्फ अनुश्री के जिस्म को चूसने चाटने मे लगे थे लेकिन सामने बैठा असलम हर एक चीज को नोटिस कर रहा था.
उसका हाथ अपने पाजामे मे कुछ टटोल रहा था.ध्यान से देखने पे पाया कि उसकी जांघो के बीच एक बड़ा सा उभार बना हुआ था उसे ही वो सहला रहा था,मै खुद हैरान था कि क्या ये वाकई असलम का लंड है या कुछ और क्यूंकि जैसा लम्बा मोटा उभार तो वो तो मेरे सोच के भी परे था.
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खेर अंदर बिल्लू के देखा देख रमेश और कल्लू ने भी अपनी पैंट को निकल फेका.
अनुश्री के सामने अब तीन तीन मुस्तडे जवान लंड उछल रहे थे,जिसे देख ना जाने अनुश्री कि क्या हालत हो रही थी वो कभी अपने सर को पीछे कि तरफ पटकती तो कभी आगे आ के तीनो के कारनामें देखती.
मेरी हैरानी कि सीमा ही नहीं रही जब मैंने देखा कि अनुश्री के हाथ खुद कि चलते हुए रमेश और कल्लू के लंड पे जा टिके.
उसके हटने तुरंत हरकत मे आ गए, उसकी नजरें असलम कि जांघो के बीच बने उभार पे थी लेकिन उसके हाथ रमेश और कल्लू के लंड से खेलने लगे.
वो लगातार उन दोनों के लंड को ऊपर नीचे किये जा रही थी.
"आआहहहहह......उफ्फफ्फ्फ़.....ऐसे ही जोर से " कभी अपने दाँत पीस लेती तो कभी अपने होंठो को दाँत तले दबा लेती.
नीचे बिलकुल लगतरा उसकी चुत को चुभलाये जा रहा था,ऊपर दोनों उसके स्तन को चाट चाट के लाल.कर चुके थे.
अनुश्री अब किसी योद्धा कि तरह अकेली ही तीन मर्दो से लड़ रही थी.
आआहहहहह.......और चाटो......ऐसे ही " अनुश्री जैसे उनका हौसला बड़ा रही हो.
स्त्री का ये रूप देख के मै हैरान था,मै इतने सालो मे अनुश्री का ये रूप देख ही नहीं पाया.
रमेश और कल्लू कि तो जैसे जान पे बन आई हो वो अनुश्री के रहमों करम पे थे.
अनुश्री लगातार उनके लंड को भींचे जा रही थी सामने आलसम होने लंड को पाजामे के ऊपर से ही सहला राहा था,नीचे बिल्लू चुत चाटता हुआ आपने लंड को रगड़ रहा था.
अभी 2मिनट ही नहीं बिता था कि बिल्लू किसी भैसे कि तरह हांफ उठा....आअह्ह्ह.....पच..पच...पचाक.....करता हुए उसके लंड से वीर्य निकल अनुश्री के पैरो पे गिर पड़ा.
आआहहहह......मै गया " बिल्लू वही अनुश्री के पैरो के पास ढह गया.
अनुश्री गर्म वीर्य के अहसास से सिसकर उठी उसका खोलता जिस्म जैसे उफान पे था उसके हाथ कल्लू और रमेश के कुंड पे दबाव बनाते गए....
"हहहहआआ......अअअअअ..हहहह.....उग्ग......" एक गर्म गाड़े रस कि पिचकारी से अनुश्री कि दोनों हथेली भर गई.
उसके स्तन ले से दबाव हटता चला गया.
रमेश और कल्लू भी अपना वीर्य त्याग चुके थे.
अंदर मै हैरान था कि अनुश्री एक बार भी नहीं झड़ी और ये तीनो ढेर हो गए,क्या मेरी बीवी अनुश्री इतनी गर्म औरत है कि तीन तीन मर्द भी उसे संभाल ना सके.
तीनो लड़के हांफ रहे थे जैसे उनके प्राण ही निकल गए हो.अनुश्री दिवार से टेक लगाए अभी भी अपनी टांगे फैलाये असलम को एक टक देखे जा रही थी,
अनुश्री का बदन थूक और पसीने से चमक रहा था.क्या गोरा बदन था उसका मै आज खुद आनंदित था लेकिन मलाल भी था कि तीन तीन लफके उसे चोदे बिना ही गंहार मान गए.
अनुश्री कि निगाहेँ शून्य मे थी जैसे उसे किसी बात कि कमी हो.
हो भी क्यों ना उसका बदन काम कि आग मे जाल रहा था बरसो कि काम अग्नि मे जिसे मै नहीं बुझा पाया था,मुझे नहीं पता था मेरी बीवी अनुश्री इस कद्र गरम औरत है.
"तू इन नाजुक लड़को कि औकात से बहार कि चीज है अनुश्री,तेरे लिए तो ऐसे लंड चाहिए " असलम बोलता हुआ एकदम से कुर्सी से खड़ा हो गया और उसका पजामा सरसराता हुआ नीचे धूल चाटने लगा, सामने एक भयंकर काला मोटा सा करीब 10इंच ला लंड किसी सांप कि तरह फूफाकार रहा था. रह रह के झटके ले रहा था जैसे अपने शिकार को तलाश रहा हो.

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मै खुद इस नज़ारे को देख के सकते मे आ गया मैंने आज तक सिर्फ पोर्न मे ही ऐसे लंड देखे थे,कभी कल्पना भी नहीं कि थी कि असली मे ऐसा होता होगा.
लेकिन अंदर अनुश्री के चेहरे मे कोई भय नहीं था,सिर्फ एक मुस्कान सी तैर गई,ना जाने क्यों मेरे मन मे एक शक कि घंटी बज उठी.
अनुश्री आजतक मेरे छोटे से लंड से चुदी थी उसके लिए ऐसा भयानक मोटा कला लम्बा लंड तो अजूबे से कम नहीं होना चाहिए था लेकिन अनुश्री बिल्कुल भी भयभीत नहीं दिख रही थी अपितु उसे देख के ऐसा लग रहा था जैसे उसे इसी का इंतज़ार हो.

"अभी तक तो बच्चों से खेल रही थी तुम अब मर्द कि बारी है " असलम अपना कुर्ता भी निकाल चूका था सर्फ एक सफ़ेद गोल जालीदार टोपी ही थी सर पे,उसकी छाती बालो से भारी हुई,पूरा कला आदमी था.
लंड किसी काले सांप कि तरह फूंकार रहा था.
मेरी हालत यहाँ ख़राब थी इस मंजर को देख के लेकिन अनुश्री शांत सिर्फ मुस्कुरा रही थी जैसे उसके लिए ये कोई नयी बात नहीं थी.
असलम अनुश्री के बिल्कुल नजदीक पहुंच गया इतना कि उसका लंड नीचे बैठी अनुश्री के मुँह के सामने था.
"चल अब तेरी बारी..चटाक....चट " असलम ने अपना लंड अनुश्री के चेरे पे दे मारा
अनुश्री के गाल पे लंड पड़ते ही उसकी मुस्कुराहट गायब हो गई. मुस्कुराहट कि जगह उसके चेहरे मे एक हवास दिखाई देने लगी.
अगले ही पल वो हुआ जो मैंने सपने मे भी नहीं सोचा था अनुश्री ने अपने प्यारा छोटा सा मुँह खोल बिना असलम के बोले उसके मोटे लंड के सुपडे को पने होंठो मे भींच लिया
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"आआहहहह.....शाबास मै शुरू से जानता था तू खूब खेली खाई है" अनुश्री मुँह मे लंड दबाये असलम को देखे जा रही थी.
जैसे उसकी तारीफ कि गई हो.
अभी ये कम ही था कि अनुश्री ने थोड़ा और मुँह खोल असलम के लंड न आधे हिस्से को अंदर ले किया
अंदर मै हैरान था, कहाँ मै अनुश्री को सरप्राइज देने आया था और कहाँ अनुश्री पल पल मुझे ही सरप्राइज दिये जा रही थी.
"शाबास मे जानता हूँ तू कर सकती है " असलम ने अपने लंड को और अंदर धकेलना चाहा लेकिन शायद अंदर नहीं जा राहा रहा.
"ॉफ्फफ्फ्फ़.....आअह्ह्ह.....क्या करते हो आराम से "अनुश्री ने अपना सर पीछे को खींच लिया
सर पीछे खिंचते ही एक थूक कि धार साथ ही खिंचती चली गई.
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अनुश्री ने बिना कोई समय व्यर्थ किये उसके थूक को चाटते हुए वापस से अपने होंठ असलम के लंड के इर्द गिर्द जमा दिये.
"आआह्हबब्ब......क्या औरत है रे तू " असलम और मेरे मुँह से एक साथ निकल गया.
आज मै अनुश्री का एक अलग ही अंदाज़ देख रहा था.
अनुश्री के होंठ धीरे धीरे असलम के लंड पर आगे बढ़ने लगे, ना जाने कैसे अनुश्री असलम के लंड को अपने मुँह मे लिए जा रही थी.
कभी अपना सर पीछे को खिंचती तो कभी आगे को बढ़ा देती.
असलम मुँह खोले सर पीछे लटकाये झूले जा रहा था.लगता था जैसे ऐसा असीम सुख उसने कभी पाया ही ना हो.
अनुश्री के होंठो के किनारे से थूक लगातार गिरता चला जा रहा था.
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उसका हाथ अनुश्री के सर के पीछे चला गया,
दोनों मुँह से कुछ नहीं बोल रहे थे बस उनका बदन बोल रहा था उनकी उत्तेजना काम कर रही थी.
तभी अनुश्री कमावेश उत्तेजना से भर के पूरी जीभ निकाल के नीचे से ऊपर कि तरफ पूरा लंड चाट लेती है.
मदहोश कर देने वाला स्वाद महसूस हो रहा था अनुश्री को, वो अब पागल हो चुकी थी, स्थति ऐसी हो चुकी थी कि मै कमरे से बहार निकल भी आता तो वो लंड ना छोड़ती.
असलम थोड़ी सी आंखे खोल कर देखता है तो दंग रह जाता है कि उसका लंड पूरा गिला था अनुश्री के थूक से. थूक निकल निकल के पुरे चेहरे को भिगो चूका था,अनुश्री किसी वहशी कि तरह बर्ताव कर रही थी.
मेरा कलेजा आश्चर्य और उत्तेजना से फटा जा रहा था.
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अब मै भी इस नज़ारे को जी भर के देखना चाहता था अनुश्री कि नजर असलम कि आँखों से मिली हुई थी और असलम अनुश्री के सुन्दर होंठ से निकली लपलपाति जीभ देख रहा था जो लगातार उनका लंड ऊपर नीचे चाटी जा रही थी जैसे किसी बच्चे को सालो बाद उसकी फेवरेट मिठाई मिली हो.
असलम अपने हाँथ से अनुश्री के सर के पीछे थोड़ा दबाव बढ़ाने लगा.
अनुश्री ने स्वतः ही अपना सुन्दर मुँह खोल दिया और पुरे लंड को बिना किसी हिचकिचाहट के अपने गरम मुँह मे भर लिया.
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यहाँ मेरे आश्चर्य कि कोई सीमा ही नहीं थी मेरी संस्कारी घरेलु बीवी इतनी आसानी से मोटे काले लौड़े को चूस रही थी जैसे उसका रोज़ का काम हो

उसे असलम का लंड चूसने मे इतना पसंद आ रहा था कि वो सुपडे को मुँह मे लिए अंदर से सुपाडे के चारो तरफ जीभ चला रही थी
असलम का हाल बहुत बुरा था उनके मुँह से जोरदार आअह्ह्ह... हुंकार निकलने लगी,मेरी बीवी अनुश्री एक भारी भरकम मर्द पे भी भारी पड़ रही थी.

हुंकार सुन के अनुश्री लंड मुँह मे पकडे ही ऊपर देखती है असलम तो नीचे ही देख रहा था इस टकराव मे इस मिलन मे सिर्फ हवास थी और कुछ नहीं,और अनुश्री इस हवस को बढ़ावा दे रही थी.
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दोनों ही नजरों नजरों मे एक दूसरे को स्वस्कृति दे चुके थे, बोल चुके थे कि ये लंड तुम्हारा है अनुश्री और ये मुँह तुम्हारा है असलम.

तभी अनुश्री अपना पूरा मुँह खोल लंड अंदर धकेल लेती है.
आहाहाहा........क्या आनंद था, जितनी गरम अनुश्री थी उस से कही ज्यादा उसका मुँह गरम था बिल्कुल कोई भट्टी जिसमे असलम का लंड आज पिघलने का था.
अनुश्री अपनी ऐड़ी के बल पूरी गांड फैलाये बैठी थी,उसका लहंगा कमर मे सिमटा हुआ था उसकी बड़ी मतवाली गांड मेरी ही तरफ थी.जिसे मै उछलते कूदते साफ देख रहा था इस गांड को मैंने हज़ारो बार देखा था परन्तु आज कुछ नया था आज कुछ ज्यादा ही बहार को खुल के आ गई थी गांड के बीच कि लकीर मे से कभी वो सुरमई खजाना दिखता तो कभी छुप जाता मै खुद अपनी बीवी कि मादक जिस्म का दीवाना हुआ जा रहा था.
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देखते ही देखते उत्तेजना से भरी अनुश्री का एक हाँथ नीचे अपनी चुत के करीब पहुंच गया . और लकीर के बीच मौजूद दाने को सहलाने लगा .
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उफ्फ्फ्फ़ .. करती अनुश्री असलम के लंड को जड़तक़ मुँह मे भर ले रही थी,उसके होंठ असलम के भारी टट्टो से टकरा रहे थे.
मेरी नजर जैसे ही असलम के टट्टो पे पड़ी मै दंग रह गया "इतने बड़े टट्टे?"
मेरे खुद के मुश्किल से किसी अंटी के सामान थे लेकिन असलम के टट्टे किसी टेनिस बॉल कि यारह लग रहे थे जो कि अनुश्री के थूक से सने हुए थे.

शायद अनुश्री को अपनी सांसे थमती महसूस होने लगी थी, वो अपना सर पीछे कि और खिंचती है परन्तु लंड मुँह से बाहर नहीं निकालती.
अब एक हाथ चुत पे चल रहा था, दूसरे हाथ से वो असलम के बड़े भारी टट्टो को पकड़ के जोर दार झटके से वापस लंड गले तक़ उतार रही थी

असलम और यहाँ मै हौरान थे कि ऐसा भी हो सकता है कोई औरत इस कदर कामुक हो सकती है

उधर असलम और यहाँ मै एकटक अनुश्री कि काम क्रीड़ा को देखे जा रहे थे,
अब अनुश्री इतनी गरम हो चुकी थी कि जोर जोर से धचा धच अपनी दो ऊँगली चुत मे चला रही थी वो अब रुकना नहीं चाहती थी उसे कैसे भी स्सखलित होना था.
नीचे चुत मे चलता हाथ, ऊपर मुँह मे सटासट जाता लंड और दूसरा हाथ टट्टो को मसल रहा था.
ऐसा कारनामा, ऐसी कामुक औरत नसीब वालो को ही मिलती है लेकिन जिसके नसीब मे थी वो मै था जो आज तक अपनी बीवी को पहचान ही नहीं पाया.

जिसको ऐसे खजाने कि कद्र नहीं वो खजाना कोई और लूट लेता है, जबकि यहाँ तोअनुश्री खुद अपने यौवन का खजाना लूटाने पे आतुर हो गई थी....और जी भर के लूटा भी रही थी.
अब लंड पूरी रफ़्तार से मुँह मे जा रहा था,असलम ने अपने दोनों हांथो से अनुश्री का सर पकड़ के अपने लंड पे धकेले जा रहा था , अनुश्री भी क्या कम थी वो भी असलम के टट्टे पकडे धचा धच मुँह जड़ तक़ मारे जा रही थी.
एक बार मे लंड गले तक अंदर जाता एक बार मे बाहर.
अनुश्री के थूक से लंड लिसलिसा गया था थूक टपक टपक के स्तन के रास्ते चुत तक पहुंच रहा था जहाँ रतीवती कि उंगलियां उस थूक का फायदा उठा के फचा फच चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी...
फच फच फच.... आअह्ह्हह्ह्ह्ह....
अब वो पल आ चूका था जब इस गर्मी का अंत हो, असलम और अनुश्री इस रगड़ाई को ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाए
और एक साथ भलभला के झड़ने लगे

अनुश्री कि चुत से सफ़ेद पानी का जोरदार फाव्वारा निकल के सीधा असलम के पैर पे चोट मर देता है.
"आआह्हबब्ब........उगगग....हे भगवान....आआहहहह.....असलम...मै गई" अनुश्री दहाड़ उठी.

असलम भी गर्मी बर्दास्त नहीं कर आया पीच पीच पीछाक.... के साथ पहली धार वो अनुश्री के मुँह के अंदर ही मार बैठा.....आआआह्हःब्ब......अनुश्री....." असलम बेकाबू था

अनुश्री ससखलित होते ही धम्म...से गांड के बल बैठ गई .. असलम कि पिचकारी एक के बाद एक अनुश्री के बदन को भिगोने लगी.
अनुश्री अभी भी असलम का लंड पकडे हुई थी, उसका हाथ और असलम का काला भयानक लंड वीर्य से भीगा हुआ था

इतना वीर्य था कि पूरा शरीर नहा गया..... अनुश्री ने जैसे ही गरम वीर्य का स्पर्श अपने जलते बदन पे महसूस किया"आआहहहहह...आउच....उफ्फ्फग......आअह्ह्ह.....करती अनुश्री कि चुत से एक तेज़ पेशाब कि धर फुट पड़ी जो सीधा असलम के पैर से जा टकराई.

मैंने अनुश्री कि हालत आजतक कभी ऐसी नहीं देखी थी उसकी तो जान ही निकल गई, वो दिवार के सहारे निढाल बैठी अपनी टांग फैलाये लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी, वीर्य जो मुँह मे था वो गले से नीचे जा चूका था.
"आआहहहहह......क्या गरम औरत है रे तू मै आज तक सिर्फ चूसने से नहीं झाड़ा उफ्फ्फ्फ़.....आआआहहहह...." असलम हांफ रहा था उसके बोल मेरे का तक भी पहुचे थे.
मेरे तो आश्चर्य कि सीमा ही ख़त्म हो गई थी ये चौथा आदमी था जो अनुश्री को चोदे बिना ही ढेर हो गया था.
असलम पीछे दिवार के साहरे खड़ा हांफ रहा था.
दोनों मे से अभी भी कोई कुछ नहीं बोल रहा था बस एक दूसरे को लम्बी लम्बी सांस लिए देखे जा रहे थे.
अनुश्री कि जीभ अपने होंठो के चारो तरफ चल रही थी उसे वीर्य का स्वाद पसंद आया था. सारा चाट जाना चाहती थी..

मुझे काटो तो खून नहीं,इस नज़ारे को देख मैंने अपना बैलेंस खो दिया और कुर्सी से गिर पड़ा.
"धाजड़ड़ड़ड़ड़ह्म्मम्म्म्म.......कि आवाज़ के साथ कमरा गूंज उठा.
मै मुँह के बल जमीन पे गिर पड़ा था.
आअह्ह्ह......

"क्या हुआ है.....अंदर क्या हुआ..? बहार बैठी अनुश्री हक्की बक्की रह गई साथ ही असलम और बाकि के तीनो लड़के भी होश मे आ गए इस आवाज़ से.
सभी कमरे मे आ गए.
असलम धीरे से "क्या हुआ सर?"

"कुछ नहीं....बस बैलेंस बिगड गया था " तुम लोग अपना काम जारी रखो.
"सर आपकी बीवी बहुत गरम है " असलम बोलता हुआ उठ खड़ा हुआ.
मैंने उन्हें वापस बहार भेज दिया मै आगे देखना चाहता था.
दरवाजा वापस से बंद हो गया.
"क्या...क्या...हुआ मंगेश को....?
अनुश्री घबराइए हुई थी
"ऐ कुछ नहीं हुआ....नींद मे कुर्सी से गिर पड़ा अब सो रहा है फर्श पे नीचे " असलम ने अनुश्री कि जिज्ञासा शांत कर दि.
अनुश्री के चेहरे पे ना जाने क्यों एक मुस्कुराहट सी दौड़ पड़ी.

मेरा सरप्राइज का प्लान मुझे ही सरप्राइज कर गया था

समाप्त😍.
 
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andypndy

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दोस्तों pics अपलोड़े मे दिक्कत आ रही है.
स्टोरी पे pics बाद मे डाल देता हूँ.🙏🏼
 
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