हम घर पहुँचे तब तक रात के आठ बज गये थे, जो लोग तिलक लेकर गये थे वो अभी तक नहीं आये थे मगर घर में सब लोगों ने खाना खा लिया था और सोने की तैयारी कर रहे थे। हमारे पहुँचने पर चाची जी पड़ोस के कुछ लोगों को बुला लाई जिनकी मदद से हमने शादी का सामान उतार कर एक कमरे में रखवा दिया।
सारा सामान रखवाने के बाद मैंने भी खाना खाया और अपने लिये सोने की जगह तलाश करने लगा.. क्योंकि घर में कुछ और नये मेहमान आ गये थे और वो उसी जगह पर सो गये थे जहाँ अभी तक मैं सोता आ रहा था। मुझे अब अपने सोने के लिये जगह नही मिल रही थी..
मै अब कुछ देर तो इधर उधर अपने सोने के लिये जगह तलाश करता रहा मगर जब मुझे सोने के लिये कही भी जगह नहीं मिली तो, जिस कमरे में मैने शादी का सामान रखवाया था, उसी कमरे मे नीचे फर्श पर ही बिस्तर लगाकर सो गया। मै एक तो इतना सारा काम करके थक गया था, ऊपर से मुझे बीयर का भी काफी नशा हो रहा था इसलिये लेटते ही मुझे भी अब नींद आ गयी।
रात में करीब दो या फिर तीन बजे होंगे की जोरो से पेशाब लगने के कारण मेरी नींद खुली.. वैसे तो मैं रात में पेशाब करने के लिये बहुत कम ही उठता हूँ मगर उस रात मैं बीयर पीकर सोया था इसलिये पेशाब कुछ ज्यादा ही जोर से लगी थी। अब पेशाब करने के लिये उठा तो मैने देखा कमरे में मेरे पास कोई और भी सो रहा है।
बिजली नहीं होने के कारण बाहर तो अन्धेरा था ही ऊपर से सर्दी की वजह से कमरे के सब खिड़की, दरवाजे भी बन्द किये हुए थे जिससे कमरे में बिल्कुल घुप्प अन्धेरा था। अब इतने अन्धेरे मे ज्यादा कुछ तो दिखाई नहीं दे रहा था मगर ध्यान से देखने पर कुछ साये मेरी बगल में ही नीचे फर्श पर सोये हुए नजर आ रहे थे।
शायद ये लोग तिलक में जाने वाले थे जो देर से आये थे और जगह ना मिलने पर मेरी तरह नीचे ही बिस्तर लगाकर सो गये थे। मैं बियर के नशे में बेसुध होकर सो रहा था इसलिये ये कब आये और कब मेरी बगल मे सो गये मुझे इसका पता ही नहीं चला।
खैर मुझे जोर से पेशाब लगी हुई थी इसलिये मैंने उन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उठकर पेशाब करने के लिये बाहर चला गया। पेशाब करने के बाद जब मैं वापस कमरे में आया तो दरवाजा खुला होने कारण बाहर से हल्का सा उजाला अब कमरे आ रहा था, जो की इतना अधिक तो नहीं था, मैं यह जान सकूँ मेरे पास कौन कौन सो रहा है। मगर हाँ, इतना जरूर था कि मैं देख पा रहा था, कमरे में सात-आठ साये सो रहे थे जिनमें से तीन चार तो शायद लड़कियाँ थी या फिर औरतें थी, ये मुझे नहीं पता, और उनके साथ ही दो-तीन बच्चे भी सो रहे थे।
शायद बिस्तर कम पड़ गये थे इसलिये ये एक-एक रजाई में दो-दो, तीन-तीन घुस कर सो रही थी और मेरी बगल में जो सो रही थी वो लड़की थी, या फिर औरत, जो भी है, उसने तो रजाई भी नहीं ओढ़ रखी थी। शायद उसके साथ में सोने वाली ने सारी रजाई खींच ली थी। शादी ब्याह में मेहमानों की भीड़ में ऐसा अकसर होता भी है।
खैर सर्दी काफी जोर की थी, इतनी देर में ही मुझे कम्पकपी चढ़ गयी थी इसलिये उन सब को पहचानने के लिये मैं ज्यादा देर तक नही खड़ा रहा, ऊपर से इस भीड़ में मुझे अपनी रजाई भी छिन जाने का डर था इसलिये मैं जल्दी से दरवाजा बन्द करके अपनी रजाई में घुस गया...