• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


  • Total voters
    292

brego4

Well-Known Member
2,850
11,104
158
super updates abhay ko abhi gaon aaye 2 din hue hain aur utna kuch ho gya

Raman singh n munshi abhay ke sath uski maa ko bhi target karenege jis ko tackle karne ko abhay ko gaon waon aur ajay jese dostone ki zrurat padega

Sandhya abhay ko apne beta maan chuki hai or ab wo iska solid proof bhi he dhund legi, waise bhi ab wo khud ko balane ke path par hai

waiting for next updates to unfold whats seen by sandhya
 
Last edited:

LOV mis

अलग हूं, पर गलत नहीं..!!👈🏻
503
1,357
139
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update
 

Napster

Well-Known Member
5,085
13,937
188
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
मंगलू के निमंत्रण पर अभी भुमीपुजन समारोह में सामिल होने का मान तो गया तो क्या वहा पर उसकी मुलाखत पायल के साथ होगी
अभी आम के बगीचें में से कहा गायब हो गया और संध्या ने वहा क्या देख लिया
ये साला रमण और मुनिम के खुरापती दिमाग में क्या चल रहा है
गाँव का उत्सव बडा जोरदार होने की संभावना लगती हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
20,767
54,242
259
अपडेट 16

शाम हो गई थी, अभी अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकला ही था की, उसे अपने सामने गांव के दो लोग खड़े दिखे।

अभि ने तो उन दोनो को पहेचान लिया...


"कैसे हो बेटा" - मंगलू ने अभि को देखते हुए कहा।


अभि --"मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो आज उस खेत में...

अभि जानते हुए भी अनजान बनते हुए बोला....

मंगलू --"ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने आज ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

मंगलू की बात अभि सब समझ रहा था। मंगलू ये समझता था की गांव वालो के लिए उनका सब कुछ उनकी जमीन ही थी। जो आज उनसे छीनने वाली थी।

अभि --"मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून भी गलत थी। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।"

अभि की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभि बोला...

अभि --"अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?"

इससे पहले अभि और कुछ बोलता मंगलू झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।"

अभि --"माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।"

अभि की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू --"जिस पेड़ को आज तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव इस भी इस इस उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम्बगांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सी सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।"

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभि का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए तरसता रहा, वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि --"मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।"

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू --"बेटा, आज हमारे यहां आज हम भूमि पूजन का उत्सव करते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए आज रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।"

मंगलू की बात सुनकर, अभि का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

"मैं कैसे भूल सकता हूं आज का दिन....?"

खुद से ही अभि इस तरह से बोला मानो आज का दिन उसके लिए बहुत खास था , और वो भूल गया हो और फिर अचानक याद आने पर मन में जिस तरह का भाव, उत्तेजना, आश्चर्य या बहुत से चीज जो उठाती है वही हाल अभि का था इस समय।

मंगलू --" क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?"

मंगलू की आवाज ने मानो पानी का छोटा मारा हो अभि पर और वो नींद से जाग गया हो।

अभि --" न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं ज़रूर आऊंगा।"

अभि के मुंह से ये सुनकर मंगलू काफी खुश हुआ, और अभि से विदा लेते हुए वहा से जाने के लिए मुड़ा ही था की...

अभि --"वैसे काका...????"

बोलते बोलते अभि रुक गया....मंगलू को लगा की शायद अभी कुछ पूछना चाहता है, इसलिए मंगलू ने ही कहा।


मंगलू --"बोलो बेटा, क्या हुआ...?"

अभि --"नही काका, कुछ नही , वो मैं बस ये कहे न चाहता था की जिस भूमि की आप सब पूजा करते हैं, उसे भला आप सब से कौन छीन सकता है?"

ये सुन कर मंगलू काफी खुश हुआ, हालाकि अभि कुछ और ही बोलना नहीं बल्कि पूछना चाहता था, पर बात बदलते हुए उसने काफी अच्छी बात कह दी...

मंगलू --"काम उम्र में काफी बड़ी बड़ी बाते कर लेते हो बेटा। भगवान तुम्हे हमेशा इसी तरह अच्छी और ध्यान की बातों की रौशनी दे।"

कहते हुए मांगू और उसके साथ वो आदमी दोनो गांव की तारा रुख मोड़ दिया...

मंगलू के जाते ही, अभि ना जाने क्यूं पर इतनी बेचैनी से और तेज गति से वहा से दौड़ा की पूछो मत....

____________________________

"मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?"

रमन एक पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए बोला...

मुनीम भी रमन के सामने खड़ा थोड़ी घबराहट में बोला...

मुनीम --"अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन की ये यकीन दिला सकी की सब गलती मेरी ही है।"

ये सुनकर रमन गुस्से में बोला......

रमन --"तुझे यह यकीन दिलाने की पड़ी है। उधर हाथ से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के लिए गांव वालो की ज़मीन हथिया लिया था, पर न जाने वो छोकरा कहा....!"

कहते हुए रमन की जुबान एक पल के लिए खामोश हो गई...

रमन --"मुनीम...ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?"

मुनीम --"कैसी बाते करते हो मालिक? आपको लाश नही मिली थी क्या? जो आप ऐसी बाते कर रहे हो? जरूर ये छोकरा आप के ही की दुश्मन का मोहरा होगा। जो चांद अंदर की बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।"

रमन --"और ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।"

मुनीम --"जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।"

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन --"मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भरी पद सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।"

मुनीम हाथ जोड़ते हुए रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन --"गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।"

मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन --"अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं। भाभी का पूरा ध्यान us छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा जो संभाल लेता। एक एक कर के सारे पन्ने पलटते लगेंगे। तू समझा ना मैं क्या कह रह हूं?"

मुनीम --"समझ गया मालिक, मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।"

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया...

_____________________________

हल्का अंधेरा हो गया था...अभि के पैर अभि भी काफी तेजी से आगे बाद रहे थे। गांव की सड़को पर अभि काफी तेजी से भाग रहा था। वो जैसे ही गांव के तीन मोहाने पर पहुंचा उसके पैर रास्ते पर से नीचे उतर गए और पास के ही बगीचे की तरफ बढ़ गए, तभी वहां से एक कर गुजरी। कार में संध्या थी, जो अभी को उस बगीचे की तरफ जाते देख ली थी।

अभि को इस समय उस बाग की तरफ जाते देख, संध्या को हैरत भी हुई और बेचैनी भी। संध्या ने अपनी कार झट से रोक दी, और कार से नीचे उतरते हुए वो भी उसी बाग की तरफ काफी तेजी से बढ़ चली...

संध्या ने सदी पहेनी थी, इसलिए शायद उसे भागने में दिक्कत हो रही थी। बार बार उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से सरक जाती। पर वो उसे अपनी हाथो में पकड़े काफी तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी। संध्या अब उस आम के बगीचे में भटक रही थी। बहुत गहरा अंधेरा था । उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसकी नजरे अभि को ढूंढ रही थी, पर इस अंधेरे में उसे खुद के हाथ नही दिख रहे थे तो अभि कैसे दिखता। पर फिर भी अपनी तेज चल रही धड़कनों पर हाथ रखे वो इधर उधर छटपटाते हुए भटक रही थी। और मन में भगवान से एक ही बात बोल रही थी की उसे अभी दिख जाए......

ढूंढते हुए संध्या बगीचे के काफी अंदर चली आई थी, तभी उसे अचानक बगीचे के अखरी छोर पर एक उजाला नजर आया , उसका दिल धक रह गया, वो बिना कुछ सोचे इस उजाले की तरफ बढ़ चली...जैसे जैसे वो पास आबरा थी, वैसे वैसे उसे उस उजाले पर गिर रही एक परछाई उसे नजर आबरा थी। इसी हैरत और आश्चर्याता में उसके पैर और भी तेजी से चल पड़े।

जब वो बेहद नजदीक पहुंची, तो उसे वहां अभि तो नही, पर कोई और जरूर दिखा....

-----------------------------------

आज की रात गांव पूरा चमक रहा था। गांव वालो की खुशियां टिमटिमाते हुए छोटे बल्ब बयां कर रही थी। सब गांव वाले आज नए नए कपड़े पहन कर एक जगह एकत्रित थे। एक जगह पर पकवान बन रहा था। तो एक जगह पर औरते अपना गीत गा रही थी। कही बुजुर्ग लोग बैठे आपस में बात करवरहे थे, तो कही बच्चे अपना बचपन शोर गुल करते हुए जी रहे थे। अल्हड़ जवानी की पहेली फुहार में भीगी वो लड़किया भी आज हसीन लग रही थी जिसे देख गांव के जवान मर्द अपनी आंखे सेंक रहे थे।

चारो तरफ शोर गुल और खुशियां ही थी, भूमि पूजन kabye उत्सव वाकई ही गांव वालो के लिए आज खुशियां समेत कर अपनी झोली में लाई थी।
Bohot hi shandar update bhai,
Ye bagiche me sala raman hi hoga, dekhte hai aage kya hota hai aace
 

Alex Xender

Member
271
977
93
अपडेट 16

शाम हो गई थी, अभी अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकला ही था की, उसे अपने सामने गांव के दो लोग खड़े दिखे।

अभि ने तो उन दोनो को पहेचान लिया...


"कैसे हो बेटा" - मंगलू ने अभि को देखते हुए कहा।


अभि --"मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो आज उस खेत में...

अभि जानते हुए भी अनजान बनते हुए बोला....

मंगलू --"ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने आज ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

मंगलू की बात अभि सब समझ रहा था। मंगलू ये समझता था की गांव वालो के लिए उनका सब कुछ उनकी जमीन ही थी। जो आज उनसे छीनने वाली थी।

अभि --"मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून भी गलत थी। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।"

अभि की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभि बोला...

अभि --"अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?"

इससे पहले अभि और कुछ बोलता मंगलू झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।"

अभि --"माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।"

अभि की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू --"जिस पेड़ को आज तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव इस भी इस इस उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम्बगांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सी सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।"

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभि का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए तरसता रहा, वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि --"मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।"

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू --"बेटा, आज हमारे यहां आज हम भूमि पूजन का उत्सव करते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए आज रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।"

मंगलू की बात सुनकर, अभि का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

"मैं कैसे भूल सकता हूं आज का दिन....?"

खुद से ही अभि इस तरह से बोला मानो आज का दिन उसके लिए बहुत खास था , और वो भूल गया हो और फिर अचानक याद आने पर मन में जिस तरह का भाव, उत्तेजना, आश्चर्य या बहुत से चीज जो उठाती है वही हाल अभि का था इस समय।

मंगलू --" क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?"

मंगलू की आवाज ने मानो पानी का छोटा मारा हो अभि पर और वो नींद से जाग गया हो।

अभि --" न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं ज़रूर आऊंगा।"

अभि के मुंह से ये सुनकर मंगलू काफी खुश हुआ, और अभि से विदा लेते हुए वहा से जाने के लिए मुड़ा ही था की...

अभि --"वैसे काका...????"

बोलते बोलते अभि रुक गया....मंगलू को लगा की शायद अभी कुछ पूछना चाहता है, इसलिए मंगलू ने ही कहा।


मंगलू --"बोलो बेटा, क्या हुआ...?"

अभि --"नही काका, कुछ नही , वो मैं बस ये कहे न चाहता था की जिस भूमि की आप सब पूजा करते हैं, उसे भला आप सब से कौन छीन सकता है?"

ये सुन कर मंगलू काफी खुश हुआ, हालाकि अभि कुछ और ही बोलना नहीं बल्कि पूछना चाहता था, पर बात बदलते हुए उसने काफी अच्छी बात कह दी...

मंगलू --"काम उम्र में काफी बड़ी बड़ी बाते कर लेते हो बेटा। भगवान तुम्हे हमेशा इसी तरह अच्छी और ध्यान की बातों की रौशनी दे।"

कहते हुए मांगू और उसके साथ वो आदमी दोनो गांव की तारा रुख मोड़ दिया...

मंगलू के जाते ही, अभि ना जाने क्यूं पर इतनी बेचैनी से और तेज गति से वहा से दौड़ा की पूछो मत....

____________________________

"मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?"

रमन एक पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए बोला...

मुनीम भी रमन के सामने खड़ा थोड़ी घबराहट में बोला...

मुनीम --"अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन की ये यकीन दिला सकी की सब गलती मेरी ही है।"

ये सुनकर रमन गुस्से में बोला......

रमन --"तुझे यह यकीन दिलाने की पड़ी है। उधर हाथ से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के लिए गांव वालो की ज़मीन हथिया लिया था, पर न जाने वो छोकरा कहा....!"

कहते हुए रमन की जुबान एक पल के लिए खामोश हो गई...

रमन --"मुनीम...ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?"

मुनीम --"कैसी बाते करते हो मालिक? आपको लाश नही मिली थी क्या? जो आप ऐसी बाते कर रहे हो? जरूर ये छोकरा आप के ही की दुश्मन का मोहरा होगा। जो चांद अंदर की बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।"

रमन --"और ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।"

मुनीम --"जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।"

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन --"मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भरी पद सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।"

मुनीम हाथ जोड़ते हुए रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन --"गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।"

मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन --"अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं। भाभी का पूरा ध्यान us छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा जो संभाल लेता। एक एक कर के सारे पन्ने पलटते लगेंगे। तू समझा ना मैं क्या कह रह हूं?"

मुनीम --"समझ गया मालिक, मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।"

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया...

_____________________________

हल्का अंधेरा हो गया था...अभि के पैर अभि भी काफी तेजी से आगे बाद रहे थे। गांव की सड़को पर अभि काफी तेजी से भाग रहा था। वो जैसे ही गांव के तीन मोहाने पर पहुंचा उसके पैर रास्ते पर से नीचे उतर गए और पास के ही बगीचे की तरफ बढ़ गए, तभी वहां से एक कर गुजरी। कार में संध्या थी, जो अभी को उस बगीचे की तरफ जाते देख ली थी।

अभि को इस समय उस बाग की तरफ जाते देख, संध्या को हैरत भी हुई और बेचैनी भी। संध्या ने अपनी कार झट से रोक दी, और कार से नीचे उतरते हुए वो भी उसी बाग की तरफ काफी तेजी से बढ़ चली...

संध्या ने सदी पहेनी थी, इसलिए शायद उसे भागने में दिक्कत हो रही थी। बार बार उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से सरक जाती। पर वो उसे अपनी हाथो में पकड़े काफी तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी। संध्या अब उस आम के बगीचे में भटक रही थी। बहुत गहरा अंधेरा था । उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसकी नजरे अभि को ढूंढ रही थी, पर इस अंधेरे में उसे खुद के हाथ नही दिख रहे थे तो अभि कैसे दिखता। पर फिर भी अपनी तेज चल रही धड़कनों पर हाथ रखे वो इधर उधर छटपटाते हुए भटक रही थी। और मन में भगवान से एक ही बात बोल रही थी की उसे अभी दिख जाए......

ढूंढते हुए संध्या बगीचे के काफी अंदर चली आई थी, तभी उसे अचानक बगीचे के अखरी छोर पर एक उजाला नजर आया , उसका दिल धक रह गया, वो बिना कुछ सोचे इस उजाले की तरफ बढ़ चली...जैसे जैसे वो पास आबरा थी, वैसे वैसे उसे उस उजाले पर गिर रही एक परछाई उसे नजर आबरा थी। इसी हैरत और आश्चर्याता में उसके पैर और भी तेजी से चल पड़े।

जब वो बेहद नजदीक पहुंची, तो उसे वहां अभि तो नही, पर कोई और जरूर दिखा....

-----------------------------------

आज की रात गांव पूरा चमक रहा था। गांव वालो की खुशियां टिमटिमाते हुए छोटे बल्ब बयां कर रही थी। सब गांव वाले आज नए नए कपड़े पहन कर एक जगह एकत्रित थे। एक जगह पर पकवान बन रहा था। तो एक जगह पर औरते अपना गीत गा रही थी। कही बुजुर्ग लोग बैठे आपस में बात करवरहे थे, तो कही बच्चे अपना बचपन शोर गुल करते हुए जी रहे थे। अल्हड़ जवानी की पहेली फुहार में भीगी वो लड़किया भी आज हसीन लग रही थी जिसे देख गांव के जवान मर्द अपनी आंखे सेंक रहे थे।

चारो तरफ शोर गुल और खुशियां ही थी, भूमि पूजन kabye उत्सव वाकई ही गांव वालो के लिए आज खुशियां समेत कर अपनी झोली में लाई थी।
Pay Me Kim Kardashian GIF by GQ
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,218
22,569
173
तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।

जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक बच्चा, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था।

बदन पर एक सफेद रंग का शर्ट और एक पैंट पहने हुए ये लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।

ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...

"जा रहा हूं माँ!!"

और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....


तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....

पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।

उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....


--------------

कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।

उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।

"हो गया तेरा, अब जा अपने कमरे में। मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"

उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--

"जरा छुप-छुपा कर जाना, और हां अभय के कमरे की तरफ से मत जाना।"

उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--

"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"

उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...

"ना जाने क्यूँ...कुछ अज़ीब सी बेचैनी हो रही है। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"

"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"

कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
Bohot badiya start 👏👏👏👏👏
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,218
22,569
173
अपडेट --(१)

गाँव के बीचो-बीच खड़ी; ठाकुर रतन सिंह की हवेली वाकई काफी शानदार थी। कहते हैं की ठाकुर परम सिंह काफी दयानीधान कीस्म के इंसान थे। दुखीयों की मदद करना उनका पहला कर्तब्य था। यही वज़ह था, की आज भी इस हवेली की वही इज्जत बरकरार थी। ठाकुर परम सिंह तो नही रहें। पर हवेली को तीन अनमोल रत्न दे कर इस दुनीया से वीदा हुएं।

तो चलिए जानते हैं कुछ कीरदारों के बारे में---


(१) मनन सिंह (परम सिंह के बड़े बेटे)--

अपने पिता के तरह ही, अच्छे विचारो और दुसरों की मदद करने वालो में से थे। मगर शायद इस दुनीयां को उनकी अच्छाई नही भाई, और २६ साल की उम्र में ही चल बसे। कहते हैं की, इनके मौत का कारण कोई गम्भीर बीमारी थी। कम वर्ष की आयू में ही विवाह होने की वज़ह से १९ वर्ष की आयू में ही पिता बन गये।


संध्या सिंह (मनन सिंह की पत्नी)--

संध्या का जब विवाह हुआ तब वो मात्र १८ वर्ष की थी। शादी भी इसी शर्त पर संध्या ने की थी की, वो अपनी पढ़ाई नही छोड़ेगी। और शादी के बाद संध्या ने अपनी बी॰ए॰ की डीग्री की उपाधि हांसिल की। कॉलेज़ भी ठाकुर रमन सिंह का ही था। संध्या की ज़ींदगी में भुचाल तब आया जब अचानक ही उसके पति का देहांत हो गया। पति के मौत के बाद हवेली की सारी जीम्मेदारी संध्या ने ही संभाली। क्यूंकी ठाकुर परम सिंह का यही वसीयत था।

अभय सिंह (मनन सिंह का बेटा)--

हसमुख और पिता की तरह ही जीम्मेदार रहने वाला लड़का। अपने पिता को बहुत प्यार करता था, लेकिन शायद नसीब में ज्यादा दीन के लिए पिता का प्यार नही लीख़ा था। और ७ साल की उम्र में ही पीता का साया छीन गया।


(२) रमन सिंह (परम सिंह का दुसरा बेटा)--

मनन सिंह और रमन सिंह दोनो जुड़वा थे। इन दोनो की शादि भी एक सांथ हुई। और दोनो को बच्चे भी। फर्क सीर्फ इतना था की, मनन सिंह का बेटा रमन सिंह के बेटे से १५ दीन बड़ा था। और दुसरा ये की, रमन सिंह को जुड़वा हुए। एक बेटी भी। रमन सिंह बेहद अय्यास कीस्म का आदमी था। और सीर्फ अपने फ़ायदे के बारे में सोंचता था।


ललिता सिंह (रमन सिंह की पत्नी)--

सांवले रंग की बड़े नैन नक्श वाली औरत थी। काफी मज़ाकीया अंदाज़ था इस औरत का और इसके दीमाग में क्या चलता रहता है, कीसी को भी समझ पाना मुश्किल था।


अमन सिंह (रमन सिंह का बेटा) --

अमन सिंह संध्या का काफी दुलारा था। वो अमन को बहुत चाहती थी। गाँव भर में ये बात उठने लगी थी की, संध्या को अपने बेटे से ज्यादा रमन के बेटे की फीक्र रहती है। अब इस बात का जवाब तो कहानि में ही मीलेगा।


नीधि सिंह (मनन की बेटी) --

निधि अपने बाप के रंग-रुप में ढली थी। इसीलिए अपनी माँ की तरह सांवली ना हो कर, गोरी काया की लड़की थी।


(३) प्रेम सिंह (परम सिंह का तीसरा बेटा)--

प्रेम सिंह दीमाग से थोड़ा पैदल था। उसे घर-समाज़ में क्या हो रहा है, कुछ लेना देना नही था। जीस काम में लगा देते उसी काम में लगा रहता।

मालती सिंह (प्रेम सिंह की पत्नी)--

काफी शांत और अच्छे चरीत्र की औरत। कोई बच्चा नही, इसका कारण कुछ पता नही। पर अभय को जी जान से प्यार करती थी। अभय का हसमुख चेहरा उसे बहुत भाता था।



(बाकी के कीरेदार कहानी के सांथ पेश कीये जायेगें)

**************
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।

पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???

--------*-----

सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।

संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...

संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"

रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...

रमन -- "तुम चिंता मत करो भाभी, आज का दीन सबको याद रहेगा..."

रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी

मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"

संध्या -- "सो रहा होगा वो, मालती। इतनी सुबह कहां उठता है वो?"

मालती -- "अपने कमरे में तो नही है वो, मैं देख कर आ रही हूँ। मुझे लगा कल की मार की वज़ह से, डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा।"

मालती की बात सुनते ही, संध्या के गुलाबी गाल गुस्से में लाल हो गये। और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चील्लाते हुए बोली...

संध्या -- "बेटा है मेरा वो! कोई दुश्मन नही, जो मैं उसे डरा-धमका कर रखूंगी। हां हो गयी कल मुझसे गलती, गुस्से में मार दी थोड़ा-बहुत तो क्या हो गया?"

संध्या को इस तरह चीखती-चील्लाती देख मालती शीतलता से बोली...

मालती -- "अपने आप को झूंठी दीलासा क्यूँ दे रही हो दीदी? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा-बहुत ही मारा था। और वो शायद पहली बार भी नही था।"

अब तो संध्या जल-भून कर राख सी हो गयी, शायद मालती की सच बात उसे तीखी मीर्ची की तरह लगी या शायद खुद की गलती का अहेसास था जो गुस्से की सीमा की चरम पर था

संध्या -- "तू कहना क्या चाहती है.....? म...मै भला उससे क्यूँ नफरत करुंगी? तूझे लगता है की मुझे उसकी फीक्र नही, सीर्फ तूझे ही है क्या?"

गुस्से खलबलायी संध्या चील्लाते हुए बोली...


मालती -- "मुझे क्या पता दीदी? तुम्हारा बेटा है, मारो चाहे काटो, मुझे उससे क्या? मुझे वो अपने कमरे में नही मीला, तो बस यूं ही पुछने चली आयी।"

कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...

रमन -- "क्या भाभी तुम भी छोटी-छोटी बात को दील..."

रमन अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था की संध्या बीच में ही बोल उठी...

संध्या -- "रमन जाओ यहां से, मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो।"

संध्या की सख्त आवाज़ सुनकर, रमन को लगा, अभी इस समय यहां से जाना ही ठीक होगा।


संध्या अपने सर पर हांथ रखे बैठी गहरी सोंच में डूबी थी। की तभी उसकी दोनो आँखो पर कीसी के हथेली पड़े और संध्या की आँखे बंद हो गयी। अपनी आँखो पर पड़े हथेली को टटोलते हुए संध्या के चेहरे पर एक मुस्कान की लकीरे उमड़ पड़ती है और खुश होते हुए बोली...


संध्या -- "नाराज़ है ना तू अपनी माँ से? एक बार माफ़ कर दे, आगे से ऐसा कुछ नही करुगीं जीससे तूझे तकलीफ़ हो।"

संध्या की बात सुनते हुए अमन खीलखीला कर हंस पड़ा, और अपनी हथेली संध्या की आँखों पर से हटाते हुए उसके सामने खड़ा हो जाता है। संध्या को लगा था की, ये उसका बेटा अभय है पर ये तो अमन था। चेहरे की मुस्कान ऐसे उड़ी जैसे फुदकती चींड़ीया।


अमन --"अरे ताई माँ, आपको क्या लगा? की मैं अभय हूं?"

अमन की बात सुनकर संध्या अपने गम को छीपाते हुए एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली...

संध्या -- "बदमाश कही का, सच में मुझे ऐसा लगा की ये अभय है।"


अभय -- "आपको लगता है ताई माँ, की अभय ऐसा कर सकता है? वो करता तो अब तक दो-चार थप्पड़ खा चुका होता। और वैसे भी, बेचारा कल रात आपके हांथो से मार खाकर, घर से ऐसा भागा, की वापस ही नही लौटा।"

अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...

संध्या --" क...क्या मतलब? क...कहां भाग ग...गया था? क...कब?"


अमन --"कल रात की पीटाई के बाद, जब आप गुस्से में अपने कमरे में चली गयी। वैसे ही वो घर से भाग गया था। मैने रात को दो-तीन बार उठ कर उसके कमरे में भी देखा था पर वो नही था।"

संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।

संध्या -- "अभय...अभय...अभय!!"


पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा...


ललिता --"क...क्या हुआ दीदी?"

संध्या --"अ...अभय...अभय कहां हैं?"

ये सुनकर मालती बोली...

मालती --"वही तो मैं भी पुछने आयी थी तुमसे। क्यूंकी अभय मुझे सुबह से नही दीख रहा है।"

अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।

ललिता --"दिदी घबराओ मत, इधर ही कहीं होगा आ जायेगा।"

पर मानो संध्या एक जींदा लाश थी, और उसी स्वर में बीना कीसी भाव के बोली...

संध्या --"चला गया वो, अब नही आयेगा.......!"

----------------*---

इधर ट्रेन एक स्टेशन पर आकर कर रुकती है। वो लड़का स्टेशन पर अपने कदम रखते हुए ट्रेन से नीचे उतर जाता है। स्टेशन पर भारी भीड़ थी, लड़का चकमका जाता है। उसे समझ नही आ रहा था, की कीधर जाये। तभी उसे स्टेशन पर ही एक दुकान दीखी और दुकान के अंदर पानी की बॉटल।

वो उसी दुकान की तरफ बढ़ा, और नज़दीक पहुंच कर दुकानदार से बोला-

"भैया थोड़ा पानी मीलेगा? बहुत प्यास लगी है?"

दुकान दार ने उपर से नीचे उस लड़के को गौर से देखा और बोला...

"चल भाग यहां से, भीखारी कहीं का!"

ये सुनकर उस लड़के को गुस्सा आ गया।

"भीखारी होगा तेरा बाप साले, नही देना है तो मत दे, भीखारी कीसे बोल रहा है?"

"ओ...हो, तेवर तो देखो इसके। भीखारी नही तो क्या राजा लग रहा है क्या? खुद की हालत देख पहले।"

दुकानदार की आवाज़ सुनकर लड़का अपने आप को देखने लगा। तो पाया की उसके कपड़े पूरी तरह से गंदे हो गये थे। लड़का मन मान कर वहां से चलते बना और स्टेशन से बाहर नीकलते हुए एक मार्केट में पहुंचा। लड़का ठीक से चल नही पा रहा था। और बार-बार अपना हांथ अपने पेट पर रख लेता। शायद भूंखा था और थका भी।


वो हीम्मत बांधे यूं ही कुछ दूर तक चलता रहा और फीर एक दुकान के सामने आकर उसके पैर रुक गये। नज़र उठाकर दुकान की तरफ देखा और दरवाज़े के उपर लगे बोर्ड को पढ़ने लगा...

"ताराचन्द ज्वेलर्स"

ये पढ़कर उसे कुछ समझ आया की नही आया वो नही पता। पर दुकान के अंदर बैठे एक ३५ साल के सक्श को देखकर समझ गया की ये सोनार है। लड़का अपने कदम दुकान के अंदर की तरफ बढ़ा दीया...


"अरे छोरे...कहां घूसा चला आ रहा है? चल बाहर चल।"

दुकान के अंदर बैठा सख्श दुत्कारने जैसी आवाज़ में बोला...


लड़के ने अपना हांथ उठाते हुए गले तक ले कर गया, और शर्ट के अंदर हांथ डालते हुए गले में पहनी मोटी सोने की चैन को बाहर नीकालता है। चमचमाती सोने की चमक जौहरी सेठ की आँखें चौंधीयां दी। लड़का सेठ को देखते हुए सोने की चैन को हवा में उछालते हुए उसे कैच कर के बोला...


"ठीक है सेठ जाता हूँ, ये बता की इधर और कोई दूसरी दुकान है क्या? मुझे ये चैन बेचनी है।"

ये सुनकर सेठ का माथा ठनका और मज़ाकीये अंदाज में बोला...


"अ...अरे भायो, मैं तो मज़ाक कर रहा था। इसे अपनी ही दुकान समझ आ जा बैठ।"

लड़का ये सुन कर मुस्कुराते हुए बोला...

"अब आया ना औकात पे।
Superb update
 
Top