Bahut bahut mast update ab sandhya ko sachai pata chalne lagi
अपडेट 23
सुबह सुबह उठा कर अभय अपने बेड पर बैठा था। तभी एक आवाज उसके कानो में गूंजी...
"उठ गए बाबू साहेब ,गरमा गर्म चाय पी लो।"
अभय ने अपनी नज़रे उठाई तो पाया, रमिया अपने हाथों में चाय लिए खड़ी थी...
अभय हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभय --"अरे तुम!! तुम कब आई??"
रमिया --"मैं तो कब से आई हूं, बाबू साहेब। आप सो रहे थे तो, जगाना मुनासिब नहीं समझा। ठीक है आप चाय पियो मैं खाना बनाने जा रही हूं।"
ये कहकर रमिया जैसे ही जाने के लिए मुड़ी...अभय की नजरें उसकी गोरी पतली कमर पर अटक गई...
खैर रमिया तो नही रुकी, पर जाते हुए उसके कूल्हे इस कदर थिरक रहे थे की, अभय की नजरें कुछ पल के लिए उस पर थम सी गई। जैसे ही रमिया अभय की आंखो से ओझल होती है। अभय अपना चाय पीने में व्यस्त हो जाता है....
अभय चाय पी ही रहा होता है की, उसके फोन की घंटी बजी...
फोन की स्क्रीन पर नजर डालते हुए पाया की उसे रेखा आंटी कॉल कर रही थी। रेखा का कॉल देखते ही, अभि अपने सिर पे एक चपेत मारते हुऐ....फोन को रिसीव करते हुए...
अभि --"गुड ...मॉर्निंग आंटी!!"
"आंटी के बच्चे, जाते ही भूल गया। कल रात से इतना फोन कर रही हूं तुझे, कहा था तू ? मुझे पता था, की तू मुझसे प्यार नही करता, इसलिए तू फो...."
अभि --"आ...आराम से, सांस तो ले लो आंटी।"
अभि, रेखा की बातों को बीच में ही काटते हुए बोला...
रेखा --"तुझे सांस की पड़ी है, जो तू लाके दिया है। इतना टाइट है की उसकी वजह से सांस भी नही लिया जा रहा है।"
रेखा की बात सुनते ही अभि के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल जाती है।
अभि --"अंदाजे से लाया था, मुझे क्या पता छोटी पड़ जायेगी।"
रेखा --"तो पूछ लेता, की कौन सी साइज लगती है मुझे?"
अभय --"तो फिर सरप्राइज़ कैसे होता...आंटी? वैसे जब छोटी है तो क्यों पहेना आपने?"
रेखा --"क्यूंकि...तूने जो लाया था। मैं भला कैसे नही पहनती?"
अभय --"ओहो...क्या बात है, कसम से दिल खुश हो गया। अभि सुबह उठते ही मेरा मूड खराब था। मगर अब मस्त हो गया। एक काम करो ना आंटी, पिक सेंड करो ना। मैं भी तो देखूं कितना टाइट है??"
रेखा --"क्या...कितना टाइट है??"
अभय --"मेरा मतलब की, कितनी छोटी है?"
कहते अभय मन ही मन मस्त हुए जा रहा था।
रेखा --"o... हो, देखो तो जरा। थोड़ी भी शर्म नही है इन जनाब को। मुझे तो पता ही नही था की तू इतना भी मस्तीखोर हो सकता है??"
अभि --"तो अब पता चल गया ना आंटी, सेंड करो ना प्लीज़।"
रेखा --"तू बेशर्म होगा, मैं नही। मैं नही करने वाली।"
अभि --"अरे करो ना...आंटी। आज तक किसी औरत को ब्रा...पैंटी में नही देखा।"
रेखा --"है भगवान, कहा से सीखा तू ये सब? ऐसा तो नहीं था मेरा अभि, गांव जाते ही हवा लग गई क्या...तुझे भी?"
अभय --"वो कहते है ना...जैसा देश वैसा भेष। पर आप छोड़ो वो सब , सच में मेरा बहुत मन कर रहा है, इसके लिए तो लाया था। अब पाहेनी हो तो फोटो क्लिक करो और सेंड कर दो ना।"
रेखा --"धत्, मुझे शर्म आती है, और वो भी तुझे कैसे सेंड कर सकती हूं? तुझे मैने कभी उस नजर से देखा नही, हमेशा तुझे अपने बेटे की नजर से ही देखा मैने।"
ये सुनकर अभि कुछ सोचते हुए बोला.....
अभि --"हां...तो मैने भी आपको एक मां की तरह ही माना है हमेशा, अब बच्चे को कुछ चाहिए होता है तो अपनी मां के पास ही जाता है ना। तो वैसे मुझे भी जो चाहिए था वो मैने अपनी मां से मांगा। पर शायद आप नाम की ही मां हो, क्योंकि अगर आप सच में मुझे अपना बेटा समझती, तो अब तक जो मैने बोला है वो आप कर देती।"
रेखा --"हो गया तेरा, मुझे मत पढ़ा। मुझे पता है, की तुझे बातों में कोई नही जीत सकता। और वो तो तू दूर है, नही तो आज तेरा कान ऐठ देती, अपनी मां को ब्रा पैंटी में देखते हुए तुझे शर्म नही आयेगी...
अभि --"नही आयेगी, कसम से उल्टा बहुत मजा आएगा। सेंड कर ना मां..."
आज अचानक ही अभय के मुंह से रेखा के लिए मां शब्द निकल गए। और जब तक अभय को ये एहसास हुआ...एक बार अपने सिर पे हल्के से चपेट लगाते हुए दांतो तले जीभ दबा लेता है, और शांत हो कर बस मुस्कुराए जा रहा था। दूसरी तरफ से रेखा भी शांत हो गई थी, अभय समझ गया था की, रेखा इस समय अत्यधिक भाऊक हो चुकी है। ये जान कर वो एक बार फिर बोला...
अभय --"अब अगर इमोशनल ड्रामा करना है तुझे तो, मैं फोन कट कर देता हूं..."
कहकर अभि फिर से मुस्कुराने लगा...
रेखा --"नही.... रुक। फोन कट करने की हिम्मत भी की ना?"
अभय --"तो क्या...?"
रेखा --"तो..तो..?"
अभय --"अरे क्या तो...तो?"
रेखा --"तो क्या? फिर से कर लूंगी और क्या कर सकती हूं।"
इस बात पर दोनो हंस पड़ते है...हंसते हुए रेखा अचानक से रोने लग जाति है। अभय समझ गया की की आखिर क्यूं...?
अभि --"अब तू इस तरह से रोएगी ना, तो मैं सब पढ़ाई लिखाई छोड़ कर तेरे पास आ जाऊंगा।"
अभय की बात सुनकर रेखा कुछ देर तक रोटी रही, फिर आवाज पर काबू पाते हुए बोली...
रेखा --"कान तरस गए थे, तेरे मुंह से मां सुनने के लिए। और उस मां शब्द में अपना पन तूने , मुझे तू बोल कर लगा दिया।"
अभि --"हो गया तेरा भी ड्रामा, आज मेरा कॉलेज का पहला दिन है, मुझे लगा अपनी का को ब्रा पैंटी में देख कर जाऊ, पर तू तो अपने आसू बहाब्रही हैं..."
ये सुनकर रेखा खिलखिला कर हस पड़ी....
रेखा --"शायद मैं तुझे भेज भी देती..., मगर अब जब तूने मुझे मां कह ही दिया है तो... सॉरी बेटा। मां से ऐसी गन्दी बात नही करते।
अभय --"ये तो वही बात हो गई की, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना। ठीक है मेरी मां, मैं भी देखता हूं की, मेरी मां कब तक अपना खज़ाना छुपाती है अपने बेटे से।"
रेखा --"मैं भी देखती हूं....।"
अभय --"अच्छा ठीक है अब, मैं नहाने जा रहा ही, आज पहला दिन है तो एक दम फ्रेश माइंड होना चाहिए।"
रेखा --"अच्छा ... सुन।"
अभय --"अब क्या हुआ...?"
रेखा --"I love you..."
ये सुन कर अभि एक बार फिर मुस्कुराया, और बोला...
अभि --"जरा धीरे मेरी प्यारी मां, कही गोबर ने सुन लिया तो। सब गुर गोबर हो जायेगा।"
रेखा --"ये मेरे सवाल का जवाब नही, चल अब जल्दी बोल,, मुझे भी काम करना है...।
अभि --"पहले फोटो फिर जवाब.... बाय मम्मी।"
इससे पहले की रेखा कुछ बोलती, अभि ने फोन कट कर दिया।
अभि मुस्कुराते हुए बेड पर से उठा, और बाथरूम की तरफ बढ़ चला.......
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अमन डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। उसके सामने निधि, उसकी मां ललिता, चाची मालती और ताई मां संध्या भी बैठे नाश्ता कर रहे थे।
अमन नाश्ता करते हुए, मलती की तरफ देखते हुए बोला...
अमन --"क्या बात है चाची, आज कल चाचा नही दिखाई देते। कहा रहते है वो?"
अमन की बात सुनकर, मलती भी अमन को घूरते हुए बोली...
मलती --"खुद ही ढूंढ ले, मुझसे क्यूं पूछ रहा है??"
मलती का जवाब सुनकर, अमन चुप हो गया । और अपना नाश्ता करने लगता है...
इस बीच संध्या अमन की तरफ ही देख रही थी, थोड़ी देर बाद ही संध्या ने अपनी चुप्पी तोडी...
संध्या --"अमन बेटा...आज कल मुझे तेरी शिकायत बहुत आ रही है। तू बेवजह ही किसी ना किसी से झगड़ा कर लेता है। ये गलत बात है बेटा। मैं नही चाहती की तू आगे से किसी से भी झगड़ा करे।"
संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...
अमन --"क्या ताई मां, आप भी ना। मैं भला क्यूं झगड़ा करने लगा किसी से, मैं वैसे भी छोटे लोगो के मुंह नही लगता।"
अमन का इतना कहें था की, मलती झट से बोल पड़ी...
मलती --"दीदी के कहने का मतलब है की, तेरा ये झगड़ा कही तुझ पर मुसीबत ना बन जाए इस लिए वो तुझे झगड़े से दूर रहने के लिए बोल रही है। जो तुझे होगा नही। तू किसी भी लड़के को इस पायल से बात करते हुए देखेगा तो उससे झगड़ पड़ेगा।"
पायल का नाम सुनते ही संध्या खाते खाते रुक जाती है, एक तरह से चौंक ही पड़ी थी...
संध्या --"पायल, पायल से क्या है इसका......
संध्या की बात सुन कर वहा बैठी निधि बोली...
निधी --"अरे ताई मां, आपको नही पता क्या? ये पायल का बहुत बड़ा आशिक है।"
ये सुन कर संध्या को एक अलग ही झटका लगा, उसके चेहरा फक्क् पड़ गया था। हकलाते हुए अपनी आवाज में कुछ तो बोली...
संध्या --"क्या...कब से??"
निधि --"बचपन से, आपको नही पता क्या? अरे ये तो अभय भैया को उसके साथ देख कर पगला जाता था। और जान बूझ कर अभय भैया से झगड़ा कर लेता था। अभय भैया इससे झगड़ा नही करना चाहते थे वो इसे नजर अंदाज भी करते थे, मगर ये तो पायल का दीवाना था। जबरदस्ती अभय भैया से लड़ पड़ता था।"
अब धरती फटने की बारी थी, मगर शायद आसमान फटा जिससे संध्या के कानो के परदे एक पल के लिए सुन हो गए थे। संध्या के हाथ से चम्मच छूटने ही वाला था की मलती ने उस चम्मच को पकड़ लिया और संध्या को झिंझोड़ते हुए बोली...
मालती --"क्या हुआ दीदी? कहा खो गई...?"
संध्या होश में आते ही...
संध्या --"ये अमन झगड़ा करता....?"
"अरे दीदी जो बीत गया सो बीत छोड़ो...l"
मालती ने संध्या की बात पूरी नही होने दी, मगर इस बार संध्या बौखलाई एक बार फिर से कुछ बोलना चाही...
संध्या --"नही...एक मिनट, झगड़ा तो अभय करता था ना अमन के...?"
"क्यूं गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो दीदी, छोड़ो ना।"
मलती ने फिर संध्या की बात पूरी नही होने दी, इस बार संध्या को मलती के उपर बहुत गुस्सा आया, कह सकते हो की संध्या अपने दांत पीस कर रह गई...!
संध्या की हालत और गुस्से को देख कर ललिता माहौल को भांप लेती है, उसने अपनी बेटी निधि की तरफ देखते हुए गुस्से में कुछ बुदबुदाई। अपनी मां का गुस्सा देखकर निधि भी दर गई...
संध्या --"तू बीच में क्यूं टोक रही है मालती? तुझे दिखाता नही क्या? की मैं कुछ पूछ रही हूं?"
संध्या की बात सुनकर मालती इस बार खामोश हो गई...मलती को खामोश देख संध्या ने अपनी नज़रे एक बार फिर निधि पर घुमाई।
संध्या --"सच सच बता निधि। झगड़ा कौन करता था? अभय या अमन?"
संध्या की बात सुनकर निधि घबरा गई, वो कुछ बोलना तो चाहती थी मगर अपनी मां के दर से अपनी आवाज तक ना निकाल पाई।
"हां मैं ही करता था झगड़ा, तो क्या बचपन की बचकानी हरकत की सजा अब दोगी मुझे ताई मां?"
अमन वहा बैठा बेबाकी से बोल पड़ा..., इस बार धरती हिली थी शायद। इस लिए तो संध्या एक झटके में चेयर पर से उठते हुए...आश्चर्य के भाव अपने चेहरे पर ही नहीं बल्कि अपने शब्दो में भी उसी भाव को अर्जित करते हुए चिन्ह पड़ी...
संध्या--"क्या...? पर तू...तू तो काहेता था की, झगड़ा अभय करता था।"
अमन --"अब बचपन में हर बच्चा शरारत करने के बाद डांट ना पड़े पिटाई ना हो इसलिए क्या करता है, झूठ बोलता है, अपना किया दूसरे पे थोपता है। मैं भी बच्चा था तो मैं भी बचाने के लिए यही करता था। मना जो किया गलत किया, मगर अब इस समय अच्छा गलत का समझ कहा था मुझे ताई मां?"
संध्या को झटके पे झटके लग रहे थे, सवाल था की अगर इसी तरह से झटका उसे लगता रहा तो उसे हार्ट अटैक ना आ जाए। जिस तरह से वो सांसे लेते हुए अपने दिल पर हाथ रख कर चेयर पर बैठी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये पहला हार्ट अटैक तो नही आ गया.....
संध्या के आंखो के सामने आज उजाले की किरणे पद रही थी मगर उसे इस उजाले की रौशनी में उसकी खुद की आंखे खुली तो चुंधिया सी गई...
शायद उसकी आंखो को इतने उजाले में देखने की आदत नही थी, पर कहते है ना, जब सच की रौशनी चमकती है तो अक्सर अंधेरे में रहने वाले की आंखे इसी तरह चौंधिया जाति है....
Lekhak mahoday mera manana hai insan ko sudharne ka mouka jaroor milna chahiyeKasam se yaar, ab kya hi bolu? Sandhya ke hit me koi to khada ho jao yaaro
Sandhya ke hit me Kaise koi khada hoga bhaiKasam se yaar, ab kya hi bolu? Sandhya ke hit me koi to khada ho jao yaaro
Milega jawaab, time se milega।Sandhya ke hit me Kaise koi khada hoga bhai
aapne uska character hi yesa pesh kiya hai ki kisi ko bhi nafart ho jay
Jaise wo ma na hokar ek dayn ho
Yes since beginning I am saying only half truth is known... don't judge a book by it's cover...that's what it seems...a widow woman manipulated by a secret enemy but in reality her nearest relative by telling/showing her a half truth...even Abhay also had been manipulated and forced to leave the village in the same way...if you blame can't only blame Sandhya blame Abhay too... because he left his mom lone eventhough he know everybody around her were faking and manipulating her...also he was only one shed in her life...Kasam se yaar, ab kya hi bolu? Sandhya ke hit me koi to khada ho jao yaaro
Milega jawaab, time se milega।
Kaun kaisa hai, we don't know.