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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Game888

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Lib am

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संध्या की आँखों में गुस्से का लावा फूट रहा था। उन दोनो लड़को के सांथ वो कार में बैठ कर कॉलेज़ की तरफ रुक्सद हो चूकी थी...

इधर कॉलेज़ में अभय का गुस्सा अभी भी शांत नही हो रहा था। पायल उसके सीने से चीपकी उसको प्यार से सहलाते हुए बोली...

पायल --"शांत हो जाओ ना प्लीज़। गुस्सा अच्छा नही लगता तुम्हारे उपर।"

पायल की बात सुनकर अभय थोड़ा मुस्कुरा पड़ता है, जीसे देख कर पायल का चेहरा भी खील उठा...

पायल --"ये सही है।"

अभय --"हो गया तुम्हारा, चलो अब डॉक्टर के पास हाथ दीखा दो, कहीं ज्यादा चोट तो नही आयी।"

अभय की बात सुनकर पायल एक बार फीर उसके गाल को चुमते हुए बोली...

पायल --"कैसी चोट? मुझे कहीं लगा ही नही। उसका डंडा मेरे हांथ के कंगन पर लगा था। देखो वो टूट कर गीरा है।"

ये सुनकर अजय चौंकते हुए बोला...

अजय --"तो फीर तू...दर्द में कराह क्यूँ रही थी?"

पायल अपने मासूम से चेहरे पर भोले पन को लाते हुए बोली...

पायल --"मुझे क्या पता? मुझे लगा की, शायद मेरे हांथो पर ही चोट लगा है इसलिए..."

अजय --"बस कर देवी! तेरा ये नाटक उस मुनिम का पैर और अमन की पसली तुड़वा बैठा। मुझे तो डर है की, ठकुराईन और रमन क्या करने वाले है?"

अजय की बात सुनकर, अभय पायल को अपने से अलग करते हुए उसके माथे को चूमते हुए बोला...

अभय --"जाओ तुम क्लास में जाओ, मुझे अजय से कुछ बात करनी है।"

अभय की बात सुनकर, पायल एक बार फीर उससे लीपट कर बड़ी ही मासूमीयत से बोली...

पायल --"रहने दो ना थोड़ी देर, चली जाउगीं बाद में।"

अभय भी पायल को अपनी बाहों में कसते हुए बोला...

अभय --"अरे मेरी जान, मैं तो यहीं हूं तुम्हारे पास। क्लास मत मीस करो जाओ मैं हम आते हैं।"

पायल का जाने का मन तो नही था, पर फीर भी अभय के बोलने पर वो अपने सहेलीयों के सांथ क्लास के लिए चली गयी...

उन लोग के जाने के बाद, अभय और अजय दो कॉलेज़ गेट के बाहर ही बैठ गये। तब तक वहां पप्पू भी आ गया। उसके हांथ में पानी का बॉटल था जीसे वो अभय की तरफ बढ़ा देता है...

अभय पानी पीने के बाद थोड़ा खुद को हल्का महसूस करता है...

अभय --"सून अज़य, तुझे अपना वो पूराना खंडहर के पास वाला ज़मीन याद है?"

अजय --"हां भाई, लेकिन वो ज़मीन तो तारो से चारो तरफ घीरा है। और ऐसा कहा जाता है की, वो ज़मीन कुछ शापित है इसके लिए तुम्हारे दादा जी ने उस ज़मीन के चारो तरफ उचीं दीवाले उठवा दी और नुकीले तारो से घीरवा दीया था..."

अजय की बात सुनकर, अभय कुछ सोंचते हुए बोला...

अभय --"कुछ तो गड़बड़ है वहां। क्यूंकि जीस दीन मैं गाँव छोड़ कर जा रहा था। मैं उसी रास्ते से गुज़रा था, मुझे वहा कुछ अजीब सी रौशनी दीखी थी। तूफान था इसलिए मैं कुछ ध्यान नही दीया। और हां, मैने उस रात उस जंगल में भी कुछ लोगों का साया देखा था। जरुर कुछ हुआ था उस रात, वो बच्चे की लाश जीसे दीखा कर मुझे मरा हुआ साबित कीया मेरे चाचा ने। कुछ तो लफ़ड़ा है?"

अभय की बात बड़े ही गौर से सुन रहा अजय बोला...

अजय --"लफ़ड़ा ज़ायदाद का है भाई, तुम्हारे हरामी चाचा उसी के पीछे पड़े हैं।"

अभय --"नही अजय, लफ़ड़ा सीर्फ ज़ायदाद का नही, कुछ और भी है? और ये बात तभी पता चलेगी जब मुझे मेरे बाप की वो गुप्त चीजें मीलेगीं।"

अभय की बात सुनकर अजय असमंजस में पड़ गया...

अजय --"गुप्त चीजें!!"

अभय --"तू एक काम कर...."

इतना कहकर, अभय अजय को कुछ समझाने लगा की तभी वहां एक कार आकर रुकी...

अजय --"ये लो भाई, लाडले की माँ आ गयी।"

अभय पीछे मुड़ कर उस तरफ देखा भी नही और अजय से बोला...

अभय --"जाओ तुम लोग मै आता हूं। इससे भी नीपट लूं जरा।"

अभय की बात सुनकर, अजय और पप्पू दोने कॉलेज़ में जाने लगे...

कार में से वो दोनो लड़के और संध्या बाहर नीकलती है। संध्या का चेहरा अभी भी गुस्से से लाल था।

संध्या --"कौन है वो?"

उन दोनो लड़कों ने अभय की तरफ इशारा कीया....

अभय कॉलेज़ की तरफ मुह करके बैठा था। संध्या को उसका चेहरा नही दीखा क्यूकी अभय उसकी तरफ पीठ कीये था...

संध्या कीसी घायल शेरनी की तरह गुस्से में अभय के पास बढ़ी, पास आकर वो अभय के पीछ खड़ी होते हुए गुर्राते हुए बोली...

संध्या --"तेरी हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे पर हांथ उठाने की? तूझे पता भी है वो कौन है? वो इस कॉलेज़ का मालिक है जीसमे तू पढ़ रहा है। और तेरी इतनी हीम्मत की तू..."

संध्या बोल ही रही थी की, अचानक अभय उसकी तरफ जैसे ही मुड़ा, संध्या की जुबान ही लड़खड़ा गयी। संध्या कब शेरनी से बील्ली बनी समय को भी पता नही चला। गुस्से से लाल हुआ चेहरा काली अंधेरी रात की चादर ओढ़ ली थी।

अभय --"क्या बात है? इतना गुस्सा? पड़ी उसके पीछवाड़े पर है और दुख रहा तुम्हारा पीछवाड़ा है। आय लाईक दैट, ईसे ही तो दील में बसा कीसी के लीए प्यार कहते हैं। जो तेरे चेहरे पर उस हरामी का प्यार भर-भर के दीख रहा है। जो मेरे लिए आज तक कभी दीखा ही नही। खैर मैं भी कीससे उम्मिद कर रहा हूँ। जीसके सांथ मै सिर्फ नौ साल रहा। और वो १८ साल।"

अभय --"मेरे ९ साल तो तेरी नफ़रत मे बीत गये, तू आती थी पीटती थी और चली जाती थी, उस लाडले के पास। ओह सॉरी...अपने यार के लाडले के पास।"

ये शब्द सुनकर संध्या तुरंत पलटी और वहां से अपना मुह छुपाये जाने के लिए बढ़ी ही थी की...

अभय --"क्या हुआ? शर्म आ रही है? जो मुह छुपा कर भाग रही है?"

संध्या के मुह से एक शब्द ना नीकले, बस दूसरी तरफ मुह कीये अपने दील पर हांथ रखे खुद की कीस्मत को कोस रही थी...

अभय --"मुझे तब तकलीफ़ नही हुई थी जब तू मुझे मारती थी। पर आज़ हुई है, क्यूकीं आज तेरे चेहरे पर उसके लीए बेइंतहा प्यार दीखा है, जो मेरे लिए तेरे चेहरे पर आज भी वो प्यार का कत...कतरा...!"

कहते हुए अभय रोने लगता है...अभय की रोने की आवाज संध्या के कानो से होते हुए दील तक पहुंची तो उसका दील तड़प कर थम सा गया। छट से अभय की तरफ मुड़ी और पल भर में अभय को अपने सीने से लगा कर जोर जोर से रोते हुए बोली...

संध्या --"मत बोल मेरे बच्चे ऐसा। भगवान के लिए मत बोल। तेरे लीए कीतना प्यार है मेरे दील में मैं कैसे बताऊं तूझे? कैसे दीखाऊं तूझे?"

आज अभय भी ना जाने क्यूँ अपनी मां से लीपट कर रह गया। नम हो चूकी आँखे और सूर्ख आवाज़ मे बोला...

अभय --"क्यूँ तू मुझसे दूर हो गई? क्या तूझे मुझमे शैतान नज़र आता था?"

कहते हुए अभय एक झटके में संध्या से अलग हो जाता था। भाऊक हो चला अभय अब गुस्से की दीवार लाँघ रहा था। खुद को अभय से अलग पा कर संध्या एक बार फीर तड़प पड़ी। इसमें कोई शक नही था की, जब अभय संध्या के सीने से लग कर रोया तब संध्या का दील चाह रहा था की, अपना दील चीर कर वो अपने बेटे को कहीं छुपा ले। मगर शायद उसकी कीस्मत में पल भर का ही प्यार था। वो लम्हा वाकई अभय के उस दर्द को बयां कर गया। जीसे लीए वो बचपन से भटक रहा था...

अभय --"तू जा यहां से, इससे पहले की मै तेरा भी वही हाल करुं जो तेरे लाडले का कीया है, तू चली जा यहां से। तूझे देखता हूं तो ना जाने क्यूँ आज भी तेरी आंचल का छांव ढुंढने लगता हूं। यूं बार बार मेरे सामने आकर मुझे कमज़ोर मत कर तू। जा यहां से..."

संध्या के पास ऐसा कोई शब्द नही था जो वो बदले में बोल सके सीवाय बेबसी के आशूं। फीर भी हीम्मत करके बोल ही पड़ी...

संध्या --"माफ़ कर दे, बहुत प्यार करती हूँ तूझसे। एक मौका दे दे...?"

संध्या की बात सुनकर अभय हसंते हुए अपनी आखं से आशूं पोछते हुए बोला...

अभय --"दुनीया में ना जाने कीतने तरह के प्यार है, उन सब को मौका दीया जा सकता है। मगर एक माँ की ममता का प्यार ही एक ऐसा प्यार है जो अगर बेईमानी कर गया उसे मौका नही मीलता। क्यूंकी दील इज़ाजत ही नही देता। यक़ीन ही नही होता। कभी दर्द से जब रोता था तब तेरा आंचल ढुढता था वो मौका नही था क्या? तेरे आंचल के बदले उस लड़की के कंधे का दुपट्टा मेरी आशूं पोछ गये। भूख से पेट में तड़प उठी तो तेरे हांथ का नीवाला ढुढा क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अपना नीवाला खीलाया। कभी अंधेरे में डर लगा तो सीर्फ माँ बोला पर तू थी ही नही क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अंधेरे को ही रौशन कर दीया। मैं प्यार का भूखा हूं, और वो लड़की मुझसे बहुत प्यार करती है। अगर...मेरे...प्यार...को कीसी ने छेड़ा!! तो उसे मै ऐसा छेड़ुंगा...की शरीर की क्या औकात रुह भी दम तोड़ देगी उसकी। समझी...। अब जा कर अपने लाडले को अच्छे से समझा देना। की नज़र बदल ले, नही तो ज़िंदगी बदल दूंगा मैं उसका।"

और ये कहकर अभय वहां से जाने ही वाला था की एक बार फीर रुका, मगर पलटा नही...

अभय --"क्या कहा तूने? हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हांथ लगाने की? हांथों से नही लातो से मारा है उसको।"

कहते हुए अभय कॉलेज़ के अंदर चला जाता है। संध्या के लिए अब मेरे पास शब्द कम पड़ रहें हैं उसकी हालत बयां करने के लिए। हर बार उसकी किस्मत उससे ऐसा कुछ करा रही थी, जो उससे उसके बेटे को और दूर ले जाती। संध्या आज ना जाने कीस मोड़ पर खड़ी थी, ना तो उसके इस तरफ कुआँ था और ना ही उस तरफ खांई। थी तो बस तनहाई, बेटे से जुदाई....
बेचारी संध्या जितना अभय के पास आना चाहती है उतनी ही दूर हो रही है। जिसका बड़ा कारण है अपने बेटे को छोड़ कर बाकी सब की बातो पर विश्वास करना। आज भी अगर वो पहले बात को जानने की कोशिश करती तो उसको सच पता चल जाता मगर नही फिर वही आवेश और गई भैंस पानी में।

मगर आज एक बात अच्छी हुई की आज अभय ने अपने दिल बात कह दी कि वो अभी भी अपनी मां को ढूंढ रहा है संध्या में और शायद ये बात आगे के लिए संध्या को सुधारने और अभय को वापस पाने की उम्मीद दे। बहुत ही इमोशनल अपडेट
 

chudkad baba

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अपने यार के लाडले के पास।"
Ab dekhna hoga ki kya Sandhya ab ye pata lagene ki koshish karegi ki aakhir abhay ko kaise pata chala tha

Agar ab bhi Sandhya ne pata nahi lagta to fir Sandhya ko bewkuf hi samjha jayega
 
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Studxyz

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संध्या के लिए नयी आफ़तें मुँह फाड़ खड़ी हैं अब वो चाह कर भी अपने लाडले हरामी अम्न व पुराने यार रमन का साथ नही दे सकती

इतनी बड़ी ठकुराइन है कि रमन की भी उसकी आगे घिग्गी बंध जाती है अब पीठ पीछे चाहे उसने लाख कामयाब चालें चली हो देर सवेर संध्या को भी बच्चे के क़त्ल की, मुनीम व् रमन की सांठ गांठ की तहकीकात करवानी होगी जैसे कि अलबेला अजय के साथ मिल के कर रहा है ठकुराईन है इसके पुलिस में संबंध होंगे और अपने मुखबिर भी होंगे
 

Battu

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बेहतरीन अपडेट। संध्या गलती तो कर गयी पर अभी प्रायश्चित के बिना माफी की उम्मीद करना बेमानी होगी। यह सही भी है कि उसने आज तक सिर्फ अमन को ही भरपुर प्यार दिया और अभय के लिए अभी उसके दिल मे गिल्ट है जो उसके कर्मो से उससे दूर हुआ था। एक पल में अमन के लिए नफरत पैदा नही हो सकती पर यदि अभय का साथ या माफी चाहिए तो मुनीम रमन ललीता और अमन को जबतक संध्या सज़ा ना दे, गांव वालों के हित मे जब तक काम ना करे तब तक तो माफी संभव नही लगती। अब जब अभय ने पायल संध्या अजय और उसके दोस्तों को बता ही दिया है कि वही अभय है तो अब अपनी पहचान किसके लिए छुपा के बैठा है। पूरे गांव और कॉलेज को मालूम होना चाहिए कि अभय कोन है जिससे उसके बहुत सारे सपोर्टर तैयार हो जाएंगे।
 

Studxyz

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अभय की पहचान लगभग ओपन हो ही गयी है अब सब से महत्वपूर्ण बदलाव ये होगा की वो हवेली की जागीर का अपनी माँ के बाद इकलौता वारिस है इस से कइयों की गांड में राजस्थान की मशहूर लाल मिर्च लगना तय है
 
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