Swapnil bombe
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Bohot khoob Writer Sahab, kya khabar li hai aman ki, sandya gusse me ja to rahi hai waha par apna sa muh lekar hi wapas aayegi,अपडेट 24
लम्हा एक पल के लिए थम सा गया था, जब पायल ने अभय के गाल को चूम लिया.....
अभय भी उस पल ये भूल गया की उसके सामने अमन गुस्से में अपने हाथों डंडा लेकर खड़ा था। वही पर खड़े बाकी कॉलेज के लवंडे लापड़ी भी इस बात से हैरान थे। किसीको भी अपनी आंखो पर विश्वास नहीं हो रहा था, की जो उन सब ने अभि चांद लम्हे पहले देखा था क्या वो सच था या सपना?
क्योंकि पायल किस तरह की लड़की थी, ये उन सब से छुपा नहीं था। कभी न हंसने वाली वो लड़की, हमेशा खुद में उलझी सी रहने वाली वो लड़की आज कैसे एक अंजान लड़के के गालों पर अपने गुलाबी होठों का मोहर लगा सकती है? ये सवाल वाकई वहा खड़े सब के अंदर प्रश्न बन कर रह गया था।
ये तो बात थी वहा खड़े कॉलेज के सब विद्यार्थियों की, मगर अमन के दिल पर क्या गुजरी थी? ये तो अमन का चेहरा बखूबी बयां कर रहा था।
अमन गुस्से में झल्लाया अपने हाथ में वो डंडा लिए अभय की तरफ दौड़ा। मगर अभय तो उस खूबसूरत अहसास से बाहर ही नहीं निकला था अभि तक, अपनी नज़रे पायल के मासूम चेहरे पर अटकाए वो दीवाना ये भूल गया की उसके उपर वार करने अमन उसकी तरफ शताब्दी एक्सप्रेस की तरह बढ़ा आ रहा है।
पायल भी इस बात से बेखबर वो भी अभय की आंखो में खुद को भूल बैठी थी। मगर जैसे ही अमन पास पहुंचा और अपना डंडा हवा में उठाकर अभय को मरना चाहा, वहा पर खड़ा अजय किसी चीते की भाती झपट्टा मरते हुए, अभय को एक और धकेल देता है...जिसके वजह से हल्का धक्का पायल को लग जाता है और पायल अपना संतुलन खो बैठती है...और वो उस दिशा में गिराने लगती है जिस दिशा में अमन ने डंडा चलाया था...
अमन का जोरदार प्रहार पायल की हथेलियों पर पड़ा जिसकी वजह से पायल दर्द में चीखते हुए नीचे जमीन पर ढेर हो गई...
पायल अपना हाथ पकड़े दर्द में कराह रही थी, तभी जमीन पर गिरा अभय फुर्ती के साथ उठ खड़ा होता है और पायल की तरफ बढ़ा और उसे संभालते हुए उसकी हथेली को अपने हथेली में ले कर प्यार से सहलाते हुए अमन की तरफ गुस्से में देखता है...
अमन --"इसके साथ यही होना चाहिए था। साला बचपन से इसके पीछे घूम रहा हु, और तू कल का आया हराम का जना तेरे गाल पे चुम्मिया बरसा रही है..."
अब तक अमन बोल ही रहा था की, अभय गुस्से में खड़ा होते हुए...में की तरफ बढ़ा। अमन ने एक बार फिर डंडा हवा में उठाया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अभय थोड़ा झुकाते हुए इतनी जोरदार से घूंसा उसके अमन के पेट में मारा की अमन दर्द में जोर से चिंखा और उसके हाथ से डंडा चूत गया, और दोनो हाथ से अपने पेट को पकड़ते हुए जमीन पर गिर गया और ऐसे दर्द से तड़प रहा था मानो अब मरा की तब...
अभय काफी गुस्से में था, उसे अमांबकी हालत की जरा भी परवाह नहीं, और तड़प रहे अमन पर अपने लात बरसाने लगा...
अमन खुद को अभय से बचाने की कोशिश करता लेकिन अभय लगातार अमन के ऊपर अपने लात बरसा रहा था...
अमन की इस तरह धुलाई होते देख सब का चेहरा फक्क् पद गया था, मगर तभी वहा मुनीम ना जाने कहा से पहुंच गया...
मुनीम के साथ 2 लट्ठेहेर भी थे। अमन को जमीन पड़ा कलाथता और ऊपर से अभय का जोरदार लात का बरसाना देख मुनीम, जीप में से उतरते हुए...
मुनीम --"हे छोकरे, रुक साला...।"
कहते हुए मुनीम अपने लठहेरे को इशारा करता है, वो दोनो लठ्ठहेरे अभय की तरफ अपना लाठी लिए दौड़े, ये देख कर अभय अमन की ओर से अपना रुख मोड़ लिया, और पास में पड़ा वो डंडा उठा कर इतनी जोर से फेक कर मारा की वोदांडा जाकर एक लट्ठेरे के मुंह पर लगा और वो वही ढेर हो गया, मगर दूसरा लट्ठबाज बिना उसकी परवाह किए अभय की तरफ अभि भी बढ़ा आ रहा था। मगर शायद अभय बहुत गुस्से में था, वो भी तेजी के साथ उसकी तरफ दौड़ा, और वही खड़ी एक लड़की के दुपट्टे को पकड़ते हुए अभय हवा हो गया...
वो लट्ठबाज जब तक कुछ समझता, अभय उसके सामने खड़ा था, और जैसे ही उसने अपनी लाठी अभय के ऊपर ताना तब तक अभय ने उस दुपट्टे को उस लट्ठबाज के गले की फांसी का फंदा बना दिया। अभय ने जोर लगाकर उसके गर्दन को उस दुपट्टे से कसा तो वो लठबाज भी छटपटाते हुए खुद को उस दुपट्टे को खुद को आजाद करने की कोशिश करने लगा...
मगर तभी अभय ने एक जोर का घूंसा उसके कनपटी दे मारा और देखते ही देखते वो आदमी धड़ाम से ज़मीन गिरते हुए बेहोश हो गया...
अब अभय ने मुनीम की तरफ मुंह फेरा, अभय का अक्रोश देखकर मुनीम की हवा खिसक गई, और अपना धोती पकड़े इतनी जोर से भगा मानो उसके पीछे मौत पड़ी हो...
मगर अभय के ऊपर शायद खून सवार था, जमीन पर पड़ी लाठी को हाथ में लिए अभय मुनीम के पीछे भागा...
ये देख कर कॉलेज का हर लड़का भी उसी तरफ भागा, मगर तभी अमन के साथ आए दो लड़के अमन की तरफ बढ़े और अमन को सहारा देकर उठते हुए जीप की तरफ ले जाने लगे,
अमन की हालत एकदम खराब थी, उसके शरीर में जरा भी दम ना था, शायद बेहोश हो गया था....
इधर मुनीम की गति शायद अभय की गति से तेज ना थी, और जल्दी ही अभय मुनीम के सामने आकर खड़ा हो गया...
अभय का गुस्सा देखकर, मुनीम डरते हुए बोला...
मुनीम --"अरे छोरे, मैने तेरा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दे, जाने दे मुझे.....आह...आ..आ..आ..
अभय ने एक जोरदार लाठी मुनीम के पैर पर मारा, मुनीम की हालत और चिल्लाहाट देख कर ही पता चल रहा था की उसका पर टूट चुका है...
मुनीम जमीन पर पड़ा चटपटा रहा था, अभय उसकी बराबर में आकर बैठते हुए बोला...
अभय --"कुछ नही किया है, इसी लिए तो एक पैर तोड़ा है। जितनी बार तू मुझे दिखेगा उतनी बार तेरे शरीर का एक एक पुर्जा इसी तरह तोडूंगा...."
कहते हुए अभय उठा, और पायल की तरफ भागा...
जब अभय पायल के पास पहुंचा तो, पायल वही बैठी अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी...
अभय झट से पायल के पास पहुंचा, और परेशान होते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर देखते हुए...
अभय --"तू पागल हो गई है क्या, अगर हाथ की जगह कही और लग जाता तो...?"
अभय की की घबराहट देखकर, पायल ने इस बार अभय का हाथ पकड़ा और उसकी एक उंगली को पकड़ते हुए चूम लेती है...
अभय को सारा मामला समझ आ जाता है......
अभय समझ गया की, पायल ने ऐसा क्यूं किया...?
पायल की आंखे भीग चुकी थी...अभय की तरफ नाम आंखो से देखते हुए बोली...
पायल --"बहुत समय लगा दिया, मैं तो पूरी तरह से पागल हो गई थी। हर पल हर घड़ी बस तुम्हे ही याद करती थी। और जब आज तुम आए तो....?मुझसे छुपने की क्या जरूरत थी? मेरी हालत का जरा सा भी अंदाजा है क्या तुम्हे...?"
पायल की बेचैनी देख कर अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो पायल को क्या सफाई दे? अभय बिना कुछ बोले पायल को अपनी बाहों में भर लेता है...। पायल भी इस तरह से अभय से सिमट जाती है मानो आज उसे कोई सुरक्षित जगह मिली हो....
अभय --"हाथ की उंगलियों पर उन 5 तिल को देखकर तुमने मुझे पहेचान लिया, और मैं यह हैरान था की तुम किसी और को कैसे....?
पायल ने अपना हाथ अभय के मुंह पे रखते हुए बोली...
पायल --"तुम्हे पहचानने के लिए मुझे किसी चिन्ह की जरूरत नहीं, पर तुम्हे यकीन दिलाने के लिए मैने वो तिल तुम्हे दिखाया। कहा चले गए थे तुम? गांव के लोग कहते थे की अब तुम कभी नहीं आओगे...?"
अभय ने अपने दोनो हाथो से पायल के कमल के समान गोरे मुखड़े को अपनी हथेलियों में भरते हुए बोला...
अभय --"कैसे नही आता, मेरा दिल तुम्हारे पास है?"
तभी वहा अजय आ जाता है....
अजय --"अरे प्रेमी प्रेमिकाओं, वो अमन कही मर मारा तो नही गया। उपर से मुनीम की टांगे भी तोड़ दी है, कसम से बता रहा हु अभय, तेरा चाचा पागल हो जायेगा ये सब देख के....
अभय --"पागल करने ही तो आया हूं.....।"
_____________________________
इधर हवेली में जीप जैसे ही प्रवेश होती है। अमन के दोनो दोस्त उसे सहारा देते हुए जीप से उतारते हुए हवेली के अंदर ले आते है, जहा हॉल में सब बैठे थे। सब से पहले नजर ललिता की पड़ती है....
"हाय री मेरा बच्चा....क्या हुआ इसे??"
कहते वो भागते हुए अमन के पास आ जाति है और रोते हुए अमन को सहारा देते हुए सोफे पर लिटा देती है, संध्या मलती, भी घबरा जाति है....
संध्या तो झपटते हुए बिना देरी के अमन के पास आकर बैठते हुए...
संध्या--"क....क्या हुआ इसे? कोई डॉक्टर को बुलाओ?"
ये सुनकर मालती भागते हुए, अपने टेलीफोन की तरफ बढ़ी।
सब के चेहरे के रंग उड़ गए थे। ललिता और संध्या अब बहुत ज्यादा घबरा गए थे, कही न कही संध्या सबसे ज्यादा अमन को प्यार करती थी बचपन से तो प्यार उमड़ने में देरी नही लगी। और जल्द ही रोने लगी...
संध्या अमन के चेहरे को सहलाते हुए गुस्से में बोली....
संध्या --"मैने पूछा क्या हुआ इसे?"
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनकर वो दोनो लड़के सहम से गई....
"वो...वो ठाकुराइन, कॉलेज के एक लड़के ने बहुत मारा...."
वो लड़का सहमे से आवाज में बोला...
संध्या गुस्से में तिलमिला कर बोली.....
संध्या --"कॉलेज के लड़के ने?? इतनी हिम्मत। चल मेरे साथ, तुम लोग डॉक्टर को बुलाओ जल्दी.....मैं उस छोकरे की खबर ले कर आती हूं।"
कहते हुए संध्या बहुत ही गुस्से में उन लड़कों के साथ हवेली से चल देती है...
शायद संध्या इस बात से बेखबर थी की जिस लड़के की वो खबर लेने जा रही है, वो कोई और नहीं उसका खुद का बेटा ही है....
Nice updateअपडेट 24
लम्हा एक पल के लिए थम सा गया था, जब पायल ने अभय के गाल को चूम लिया.....
अभय भी उस पल ये भूल गया की उसके सामने अमन गुस्से में अपने हाथों डंडा लेकर खड़ा था। वही पर खड़े बाकी कॉलेज के लवंडे लापड़ी भी इस बात से हैरान थे। किसीको भी अपनी आंखो पर विश्वास नहीं हो रहा था, की जो उन सब ने अभि चांद लम्हे पहले देखा था क्या वो सच था या सपना?
क्योंकि पायल किस तरह की लड़की थी, ये उन सब से छुपा नहीं था। कभी न हंसने वाली वो लड़की, हमेशा खुद में उलझी सी रहने वाली वो लड़की आज कैसे एक अंजान लड़के के गालों पर अपने गुलाबी होठों का मोहर लगा सकती है? ये सवाल वाकई वहा खड़े सब के अंदर प्रश्न बन कर रह गया था।
ये तो बात थी वहा खड़े कॉलेज के सब विद्यार्थियों की, मगर अमन के दिल पर क्या गुजरी थी? ये तो अमन का चेहरा बखूबी बयां कर रहा था।
अमन गुस्से में झल्लाया अपने हाथ में वो डंडा लिए अभय की तरफ दौड़ा। मगर अभय तो उस खूबसूरत अहसास से बाहर ही नहीं निकला था अभि तक, अपनी नज़रे पायल के मासूम चेहरे पर अटकाए वो दीवाना ये भूल गया की उसके उपर वार करने अमन उसकी तरफ शताब्दी एक्सप्रेस की तरह बढ़ा आ रहा है।
पायल भी इस बात से बेखबर वो भी अभय की आंखो में खुद को भूल बैठी थी। मगर जैसे ही अमन पास पहुंचा और अपना डंडा हवा में उठाकर अभय को मरना चाहा, वहा पर खड़ा अजय किसी चीते की भाती झपट्टा मरते हुए, अभय को एक और धकेल देता है...जिसके वजह से हल्का धक्का पायल को लग जाता है और पायल अपना संतुलन खो बैठती है...और वो उस दिशा में गिराने लगती है जिस दिशा में अमन ने डंडा चलाया था...
अमन का जोरदार प्रहार पायल की हथेलियों पर पड़ा जिसकी वजह से पायल दर्द में चीखते हुए नीचे जमीन पर ढेर हो गई...
पायल अपना हाथ पकड़े दर्द में कराह रही थी, तभी जमीन पर गिरा अभय फुर्ती के साथ उठ खड़ा होता है और पायल की तरफ बढ़ा और उसे संभालते हुए उसकी हथेली को अपने हथेली में ले कर प्यार से सहलाते हुए अमन की तरफ गुस्से में देखता है...
अमन --"इसके साथ यही होना चाहिए था। साला बचपन से इसके पीछे घूम रहा हु, और तू कल का आया हराम का जना तेरे गाल पे चुम्मिया बरसा रही है..."
अब तक अमन बोल ही रहा था की, अभय गुस्से में खड़ा होते हुए...में की तरफ बढ़ा। अमन ने एक बार फिर डंडा हवा में उठाया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अभय थोड़ा झुकाते हुए इतनी जोरदार से घूंसा उसके अमन के पेट में मारा की अमन दर्द में जोर से चिंखा और उसके हाथ से डंडा चूत गया, और दोनो हाथ से अपने पेट को पकड़ते हुए जमीन पर गिर गया और ऐसे दर्द से तड़प रहा था मानो अब मरा की तब...
अभय काफी गुस्से में था, उसे अमांबकी हालत की जरा भी परवाह नहीं, और तड़प रहे अमन पर अपने लात बरसाने लगा...
अमन खुद को अभय से बचाने की कोशिश करता लेकिन अभय लगातार अमन के ऊपर अपने लात बरसा रहा था...
अमन की इस तरह धुलाई होते देख सब का चेहरा फक्क् पद गया था, मगर तभी वहा मुनीम ना जाने कहा से पहुंच गया...
मुनीम के साथ 2 लट्ठेहेर भी थे। अमन को जमीन पड़ा कलाथता और ऊपर से अभय का जोरदार लात का बरसाना देख मुनीम, जीप में से उतरते हुए...
मुनीम --"हे छोकरे, रुक साला...।"
कहते हुए मुनीम अपने लठहेरे को इशारा करता है, वो दोनो लठ्ठहेरे अभय की तरफ अपना लाठी लिए दौड़े, ये देख कर अभय अमन की ओर से अपना रुख मोड़ लिया, और पास में पड़ा वो डंडा उठा कर इतनी जोर से फेक कर मारा की वोदांडा जाकर एक लट्ठेरे के मुंह पर लगा और वो वही ढेर हो गया, मगर दूसरा लट्ठबाज बिना उसकी परवाह किए अभय की तरफ अभि भी बढ़ा आ रहा था। मगर शायद अभय बहुत गुस्से में था, वो भी तेजी के साथ उसकी तरफ दौड़ा, और वही खड़ी एक लड़की के दुपट्टे को पकड़ते हुए अभय हवा हो गया...
वो लट्ठबाज जब तक कुछ समझता, अभय उसके सामने खड़ा था, और जैसे ही उसने अपनी लाठी अभय के ऊपर ताना तब तक अभय ने उस दुपट्टे को उस लट्ठबाज के गले की फांसी का फंदा बना दिया। अभय ने जोर लगाकर उसके गर्दन को उस दुपट्टे से कसा तो वो लठबाज भी छटपटाते हुए खुद को उस दुपट्टे को खुद को आजाद करने की कोशिश करने लगा...
मगर तभी अभय ने एक जोर का घूंसा उसके कनपटी दे मारा और देखते ही देखते वो आदमी धड़ाम से ज़मीन गिरते हुए बेहोश हो गया...
अब अभय ने मुनीम की तरफ मुंह फेरा, अभय का अक्रोश देखकर मुनीम की हवा खिसक गई, और अपना धोती पकड़े इतनी जोर से भगा मानो उसके पीछे मौत पड़ी हो...
मगर अभय के ऊपर शायद खून सवार था, जमीन पर पड़ी लाठी को हाथ में लिए अभय मुनीम के पीछे भागा...
ये देख कर कॉलेज का हर लड़का भी उसी तरफ भागा, मगर तभी अमन के साथ आए दो लड़के अमन की तरफ बढ़े और अमन को सहारा देकर उठते हुए जीप की तरफ ले जाने लगे,
अमन की हालत एकदम खराब थी, उसके शरीर में जरा भी दम ना था, शायद बेहोश हो गया था....
इधर मुनीम की गति शायद अभय की गति से तेज ना थी, और जल्दी ही अभय मुनीम के सामने आकर खड़ा हो गया...
अभय का गुस्सा देखकर, मुनीम डरते हुए बोला...
मुनीम --"अरे छोरे, मैने तेरा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दे, जाने दे मुझे.....आह...आ..आ..आ..
अभय ने एक जोरदार लाठी मुनीम के पैर पर मारा, मुनीम की हालत और चिल्लाहाट देख कर ही पता चल रहा था की उसका पर टूट चुका है...
मुनीम जमीन पर पड़ा चटपटा रहा था, अभय उसकी बराबर में आकर बैठते हुए बोला...
अभय --"कुछ नही किया है, इसी लिए तो एक पैर तोड़ा है। जितनी बार तू मुझे दिखेगा उतनी बार तेरे शरीर का एक एक पुर्जा इसी तरह तोडूंगा...."
कहते हुए अभय उठा, और पायल की तरफ भागा...
जब अभय पायल के पास पहुंचा तो, पायल वही बैठी अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी...
अभय झट से पायल के पास पहुंचा, और परेशान होते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर देखते हुए...
अभय --"तू पागल हो गई है क्या, अगर हाथ की जगह कही और लग जाता तो...?"
अभय की की घबराहट देखकर, पायल ने इस बार अभय का हाथ पकड़ा और उसकी एक उंगली को पकड़ते हुए चूम लेती है...
अभय को सारा मामला समझ आ जाता है......
अभय समझ गया की, पायल ने ऐसा क्यूं किया...?
पायल की आंखे भीग चुकी थी...अभय की तरफ नाम आंखो से देखते हुए बोली...
पायल --"बहुत समय लगा दिया, मैं तो पूरी तरह से पागल हो गई थी। हर पल हर घड़ी बस तुम्हे ही याद करती थी। और जब आज तुम आए तो....?मुझसे छुपने की क्या जरूरत थी? मेरी हालत का जरा सा भी अंदाजा है क्या तुम्हे...?"
पायल की बेचैनी देख कर अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो पायल को क्या सफाई दे? अभय बिना कुछ बोले पायल को अपनी बाहों में भर लेता है...। पायल भी इस तरह से अभय से सिमट जाती है मानो आज उसे कोई सुरक्षित जगह मिली हो....
अभय --"हाथ की उंगलियों पर उन 5 तिल को देखकर तुमने मुझे पहेचान लिया, और मैं यह हैरान था की तुम किसी और को कैसे....?
पायल ने अपना हाथ अभय के मुंह पे रखते हुए बोली...
पायल --"तुम्हे पहचानने के लिए मुझे किसी चिन्ह की जरूरत नहीं, पर तुम्हे यकीन दिलाने के लिए मैने वो तिल तुम्हे दिखाया। कहा चले गए थे तुम? गांव के लोग कहते थे की अब तुम कभी नहीं आओगे...?"
अभय ने अपने दोनो हाथो से पायल के कमल के समान गोरे मुखड़े को अपनी हथेलियों में भरते हुए बोला...
अभय --"कैसे नही आता, मेरा दिल तुम्हारे पास है?"
तभी वहा अजय आ जाता है....
अजय --"अरे प्रेमी प्रेमिकाओं, वो अमन कही मर मारा तो नही गया। उपर से मुनीम की टांगे भी तोड़ दी है, कसम से बता रहा हु अभय, तेरा चाचा पागल हो जायेगा ये सब देख के....
अभय --"पागल करने ही तो आया हूं.....।"
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इधर हवेली में जीप जैसे ही प्रवेश होती है। अमन के दोनो दोस्त उसे सहारा देते हुए जीप से उतारते हुए हवेली के अंदर ले आते है, जहा हॉल में सब बैठे थे। सब से पहले नजर ललिता की पड़ती है....
"हाय री मेरा बच्चा....क्या हुआ इसे??"
कहते वो भागते हुए अमन के पास आ जाति है और रोते हुए अमन को सहारा देते हुए सोफे पर लिटा देती है, संध्या मलती, भी घबरा जाति है....
संध्या तो झपटते हुए बिना देरी के अमन के पास आकर बैठते हुए...
संध्या--"क....क्या हुआ इसे? कोई डॉक्टर को बुलाओ?"
ये सुनकर मालती भागते हुए, अपने टेलीफोन की तरफ बढ़ी।
सब के चेहरे के रंग उड़ गए थे। ललिता और संध्या अब बहुत ज्यादा घबरा गए थे, कही न कही संध्या सबसे ज्यादा अमन को प्यार करती थी बचपन से तो प्यार उमड़ने में देरी नही लगी। और जल्द ही रोने लगी...
संध्या अमन के चेहरे को सहलाते हुए गुस्से में बोली....
संध्या --"मैने पूछा क्या हुआ इसे?"
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनकर वो दोनो लड़के सहम से गई....
"वो...वो ठाकुराइन, कॉलेज के एक लड़के ने बहुत मारा...."
वो लड़का सहमे से आवाज में बोला...
संध्या गुस्से में तिलमिला कर बोली.....
संध्या --"कॉलेज के लड़के ने?? इतनी हिम्मत। चल मेरे साथ, तुम लोग डॉक्टर को बुलाओ जल्दी.....मैं उस छोकरे की खबर ले कर आती हूं।"
कहते हुए संध्या बहुत ही गुस्से में उन लड़कों के साथ हवेली से चल देती है...
शायद संध्या इस बात से बेखबर थी की जिस लड़के की वो खबर लेने जा रही है, वो कोई और नहीं उसका खुद का बेटा ही है....
Nice updateअपडेट 26
संध्या की आँखों में गुस्से का लावा फूट रहा था। उन दोनो लड़को के सांथ वो कार में बैठ कर कॉलेज़ की तरफ रुक्सद हो चूकी थी...
इधर कॉलेज़ में अभय का गुस्सा अभी भी शांत नही हो रहा था। पायल उसके सीने से चीपकी उसको प्यार से सहलाते हुए बोली...
पायल --"शांत हो जाओ ना प्लीज़। गुस्सा अच्छा नही लगता तुम्हारे उपर।"
पायल की बात सुनकर अभय थोड़ा मुस्कुरा पड़ता है, जीसे देख कर पायल का चेहरा भी खील उठा...
पायल --"ये सही है।"
अभय --"हो गया तुम्हारा, चलो अब डॉक्टर के पास हाथ दीखा दो, कहीं ज्यादा चोट तो नही आयी।"
अभय की बात सुनकर पायल एक बार फीर उसके गाल को चुमते हुए बोली...
पायल --"कैसी चोट? मुझे कहीं लगा ही नही। उसका डंडा मेरे हांथ के कंगन पर लगा था। देखो वो टूट कर गीरा है।"
ये सुनकर अजय चौंकते हुए बोला...
अजय --"तो फीर तू...दर्द में कराह क्यूँ रही थी?"
पायल अपने मासूम से चेहरे पर भोले पन को लाते हुए बोली...
पायल --"मुझे क्या पता? मुझे लगा की, शायद मेरे हांथो पर ही चोट लगा है इसलिए..."
अजय --"बस कर देवी! तेरा ये नाटक उस मुनिम का पैर और अमन की पसली तुड़वा बैठा। मुझे तो डर है की, ठकुराईन और रमन क्या करने वाले है?"
अजय की बात सुनकर, अभय पायल को अपने से अलग करते हुए उसके माथे को चूमते हुए बोला...
अभय --"जाओ तुम क्लास में जाओ, मुझे अजय से कुछ बात करनी है।"
अभय की बात सुनकर, पायल एक बार फीर उससे लीपट कर बड़ी ही मासूमीयत से बोली...
पायल --"रहने दो ना थोड़ी देर, चली जाउगीं बाद में।"
अभय भी पायल को अपनी बाहों में कसते हुए बोला...
अभय --"अरे मेरी जान, मैं तो यहीं हूं तुम्हारे पास। क्लास मत मीस करो जाओ मैं हम आते हैं।"
पायल का जाने का मन तो नही था, पर फीर भी अभय के बोलने पर वो अपने सहेलीयों के सांथ क्लास के लिए चली गयी...
उन लोग के जाने के बाद, अभय और अजय दो कॉलेज़ गेट के बाहर ही बैठ गये। तब तक वहां पप्पू भी आ गया। उसके हांथ में पानी का बॉटल था जीसे वो अभय की तरफ बढ़ा देता है...
अभय पानी पीने के बाद थोड़ा खुद को हल्का महसूस करता है...
अभय --"सून अज़य, तुझे अपना वो पूराना खंडहर के पास वाला ज़मीन याद है?"
अजय --"हां भाई, लेकिन वो ज़मीन तो तारो से चारो तरफ घीरा है। और ऐसा कहा जाता है की, वो ज़मीन कुछ शापित है इसके लिए तुम्हारे दादा जी ने उस ज़मीन के चारो तरफ उचीं दीवाले उठवा दी और नुकीले तारो से घीरवा दीया था..."
अजय की बात सुनकर, अभय कुछ सोंचते हुए बोला...
अभय --"कुछ तो गड़बड़ है वहां। क्यूंकि जीस दीन मैं गाँव छोड़ कर जा रहा था। मैं उसी रास्ते से गुज़रा था, मुझे वहा कुछ अजीब सी रौशनी दीखी थी। तूफान था इसलिए मैं कुछ ध्यान नही दीया। और हां, मैने उस रात उस जंगल में भी कुछ लोगों का साया देखा था। जरुर कुछ हुआ था उस रात, वो बच्चे की लाश जीसे दीखा कर मुझे मरा हुआ साबित कीया मेरे चाचा ने। कुछ तो लफ़ड़ा है?"
अभय की बात बड़े ही गौर से सुन रहा अजय बोला...
अजय --"लफ़ड़ा ज़ायदाद का है भाई, तुम्हारे हरामी चाचा उसी के पीछे पड़े हैं।"
अभय --"नही अजय, लफ़ड़ा सीर्फ ज़ायदाद का नही, कुछ और भी है? और ये बात तभी पता चलेगी जब मुझे मेरे बाप की वो गुप्त चीजें मीलेगीं।"
अभय की बात सुनकर अजय असमंजस में पड़ गया...
अजय --"गुप्त चीजें!!"
अभय --"तू एक काम कर...."
इतना कहकर, अभय अजय को कुछ समझाने लगा की तभी वहां एक कार आकर रुकी...
अजय --"ये लो भाई, लाडले की माँ आ गयी।"
अभय पीछे मुड़ कर उस तरफ देखा भी नही और अजय से बोला...
अभय --"जाओ तुम लोग मै आता हूं। इससे भी नीपट लूं जरा।"
अभय की बात सुनकर, अजय और पप्पू दोने कॉलेज़ में जाने लगे...
कार में से वो दोनो लड़के और संध्या बाहर नीकलती है। संध्या का चेहरा अभी भी गुस्से से लाल था।
संध्या --"कौन है वो?"
उन दोनो लड़कों ने अभय की तरफ इशारा कीया....
अभय कॉलेज़ की तरफ मुह करके बैठा था। संध्या को उसका चेहरा नही दीखा क्यूकी अभय उसकी तरफ पीठ कीये था...
संध्या कीसी घायल शेरनी की तरह गुस्से में अभय के पास बढ़ी, पास आकर वो अभय के पीछ खड़ी होते हुए गुर्राते हुए बोली...
संध्या --"तेरी हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे पर हांथ उठाने की? तूझे पता भी है वो कौन है? वो इस कॉलेज़ का मालिक है जीसमे तू पढ़ रहा है। और तेरी इतनी हीम्मत की तू..."
संध्या बोल ही रही थी की, अचानक अभय उसकी तरफ जैसे ही मुड़ा, संध्या की जुबान ही लड़खड़ा गयी। संध्या कब शेरनी से बील्ली बनी समय को भी पता नही चला। गुस्से से लाल हुआ चेहरा काली अंधेरी रात की चादर ओढ़ ली थी।
अभय --"क्या बात है? इतना गुस्सा? पड़ी उसके पीछवाड़े पर है और दुख रहा तुम्हारा पीछवाड़ा है। आय लाईक दैट, ईसे ही तो दील में बसा कीसी के लीए प्यार कहते हैं। जो तेरे चेहरे पर उस हरामी का प्यार भर-भर के दीख रहा है। जो मेरे लिए आज तक कभी दीखा ही नही। खैर मैं भी कीससे उम्मिद कर रहा हूँ। जीसके सांथ मै सिर्फ नौ साल रहा। और वो १८ साल।"
अभय --"मेरे ९ साल तो तेरी नफ़रत मे बीत गये, तू आती थी पीटती थी और चली जाती थी, उस लाडले के पास। ओह सॉरी...अपने यार के लाडले के पास।"
ये शब्द सुनकर संध्या तुरंत पलटी और वहां से अपना मुह छुपाये जाने के लिए बढ़ी ही थी की...
अभय --"क्या हुआ? शर्म आ रही है? जो मुह छुपा कर भाग रही है?"
संध्या के मुह से एक शब्द ना नीकले, बस दूसरी तरफ मुह कीये अपने दील पर हांथ रखे खुद की कीस्मत को कोस रही थी...
अभय --"मुझे तब तकलीफ़ नही हुई थी जब तू मुझे मारती थी। पर आज़ हुई है, क्यूकीं आज तेरे चेहरे पर उसके लीए बेइंतहा प्यार दीखा है, जो मेरे लिए तेरे चेहरे पर आज भी वो प्यार का कत...कतरा...!"
कहते हुए अभय रोने लगता है...अभय की रोने की आवाज संध्या के कानो से होते हुए दील तक पहुंची तो उसका दील तड़प कर थम सा गया। छट से अभय की तरफ मुड़ी और पल भर में अभय को अपने सीने से लगा कर जोर जोर से रोते हुए बोली...
संध्या --"मत बोल मेरे बच्चे ऐसा। भगवान के लिए मत बोल। तेरे लीए कीतना प्यार है मेरे दील में मैं कैसे बताऊं तूझे? कैसे दीखाऊं तूझे?"
आज अभय भी ना जाने क्यूँ अपनी मां से लीपट कर रह गया। नम हो चूकी आँखे और सूर्ख आवाज़ मे बोला...
अभय --"क्यूँ तू मुझसे दूर हो गई? क्या तूझे मुझमे शैतान नज़र आता था?"
कहते हुए अभय एक झटके में संध्या से अलग हो जाता था। भाऊक हो चला अभय अब गुस्से की दीवार लाँघ रहा था। खुद को अभय से अलग पा कर संध्या एक बार फीर तड़प पड़ी। इसमें कोई शक नही था की, जब अभय संध्या के सीने से लग कर रोया तब संध्या का दील चाह रहा था की, अपना दील चीर कर वो अपने बेटे को कहीं छुपा ले। मगर शायद उसकी कीस्मत में पल भर का ही प्यार था। वो लम्हा वाकई अभय के उस दर्द को बयां कर गया। जीसे लीए वो बचपन से भटक रहा था...
अभय --"तू जा यहां से, इससे पहले की मै तेरा भी वही हाल करुं जो तेरे लाडले का कीया है, तू चली जा यहां से। तूझे देखता हूं तो ना जाने क्यूँ आज भी तेरी आंचल का छांव ढुंढने लगता हूं। यूं बार बार मेरे सामने आकर मुझे कमज़ोर मत कर तू। जा यहां से..."
संध्या के पास ऐसा कोई शब्द नही था जो वो बदले में बोल सके सीवाय बेबसी के आशूं। फीर भी हीम्मत करके बोल ही पड़ी...
संध्या --"माफ़ कर दे, बहुत प्यार करती हूँ तूझसे। एक मौका दे दे...?"
संध्या की बात सुनकर अभय हसंते हुए अपनी आखं से आशूं पोछते हुए बोला...
अभय --"दुनीया में ना जाने कीतने तरह के प्यार है, उन सब को मौका दीया जा सकता है। मगर एक माँ की ममता का प्यार ही एक ऐसा प्यार है जो अगर बेईमानी कर गया उसे मौका नही मीलता। क्यूंकी दील इज़ाजत ही नही देता। यक़ीन ही नही होता। कभी दर्द से जब रोता था तब तेरा आंचल ढुढता था वो मौका नही था क्या? तेरे आंचल के बदले उस लड़की के कंधे का दुपट्टा मेरी आशूं पोछ गये। भूख से पेट में तड़प उठी तो तेरे हांथ का नीवाला ढुढा क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अपना नीवाला खीलाया। कभी अंधेरे में डर लगा तो सीर्फ माँ बोला पर तू थी ही नही क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अंधेरे को ही रौशन कर दीया। मैं प्यार का भूखा हूं, और वो लड़की मुझसे बहुत प्यार करती है। अगर...मेरे...प्यार...को कीसी ने छेड़ा!! तो उसे मै ऐसा छेड़ुंगा...की शरीर की क्या औकात रुह भी दम तोड़ देगी उसकी। समझी...। अब जा कर अपने लाडले को अच्छे से समझा देना। की नज़र बदल ले, नही तो ज़िंदगी बदल दूंगा मैं उसका।"
और ये कहकर अभय वहां से जाने ही वाला था की एक बार फीर रुका, मगर पलटा नही...
अभय --"क्या कहा तूने? हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हांथ लगाने की? हांथों से नही लातो से मारा है उसको।"
कहते हुए अभय कॉलेज़ के अंदर चला जाता है। संध्या के लिए अब मेरे पास शब्द कम पड़ रहें हैं उसकी हालत बयां करने के लिए। हर बार उसकी किस्मत उससे ऐसा कुछ करा रही थी, जो उससे उसके बेटे को और दूर ले जाती। संध्या आज ना जाने कीस मोड़ पर खड़ी थी, ना तो उसके इस तरफ कुआँ था और ना ही उस तरफ खांई। थी तो बस तनहाई, बेटे से जुदाई....
Nice and beautiful update....अपडेट 26
संध्या की आँखों में गुस्से का लावा फूट रहा था। उन दोनो लड़को के सांथ वो कार में बैठ कर कॉलेज़ की तरफ रुक्सद हो चूकी थी...
इधर कॉलेज़ में अभय का गुस्सा अभी भी शांत नही हो रहा था। पायल उसके सीने से चीपकी उसको प्यार से सहलाते हुए बोली...
पायल --"शांत हो जाओ ना प्लीज़। गुस्सा अच्छा नही लगता तुम्हारे उपर।"
पायल की बात सुनकर अभय थोड़ा मुस्कुरा पड़ता है, जीसे देख कर पायल का चेहरा भी खील उठा...
पायल --"ये सही है।"
अभय --"हो गया तुम्हारा, चलो अब डॉक्टर के पास हाथ दीखा दो, कहीं ज्यादा चोट तो नही आयी।"
अभय की बात सुनकर पायल एक बार फीर उसके गाल को चुमते हुए बोली...
पायल --"कैसी चोट? मुझे कहीं लगा ही नही। उसका डंडा मेरे हांथ के कंगन पर लगा था। देखो वो टूट कर गीरा है।"
ये सुनकर अजय चौंकते हुए बोला...
अजय --"तो फीर तू...दर्द में कराह क्यूँ रही थी?"
पायल अपने मासूम से चेहरे पर भोले पन को लाते हुए बोली...
पायल --"मुझे क्या पता? मुझे लगा की, शायद मेरे हांथो पर ही चोट लगा है इसलिए..."
अजय --"बस कर देवी! तेरा ये नाटक उस मुनिम का पैर और अमन की पसली तुड़वा बैठा। मुझे तो डर है की, ठकुराईन और रमन क्या करने वाले है?"
अजय की बात सुनकर, अभय पायल को अपने से अलग करते हुए उसके माथे को चूमते हुए बोला...
अभय --"जाओ तुम क्लास में जाओ, मुझे अजय से कुछ बात करनी है।"
अभय की बात सुनकर, पायल एक बार फीर उससे लीपट कर बड़ी ही मासूमीयत से बोली...
पायल --"रहने दो ना थोड़ी देर, चली जाउगीं बाद में।"
अभय भी पायल को अपनी बाहों में कसते हुए बोला...
अभय --"अरे मेरी जान, मैं तो यहीं हूं तुम्हारे पास। क्लास मत मीस करो जाओ मैं हम आते हैं।"
पायल का जाने का मन तो नही था, पर फीर भी अभय के बोलने पर वो अपने सहेलीयों के सांथ क्लास के लिए चली गयी...
उन लोग के जाने के बाद, अभय और अजय दो कॉलेज़ गेट के बाहर ही बैठ गये। तब तक वहां पप्पू भी आ गया। उसके हांथ में पानी का बॉटल था जीसे वो अभय की तरफ बढ़ा देता है...
अभय पानी पीने के बाद थोड़ा खुद को हल्का महसूस करता है...
अभय --"सून अज़य, तुझे अपना वो पूराना खंडहर के पास वाला ज़मीन याद है?"
अजय --"हां भाई, लेकिन वो ज़मीन तो तारो से चारो तरफ घीरा है। और ऐसा कहा जाता है की, वो ज़मीन कुछ शापित है इसके लिए तुम्हारे दादा जी ने उस ज़मीन के चारो तरफ उचीं दीवाले उठवा दी और नुकीले तारो से घीरवा दीया था..."
अजय की बात सुनकर, अभय कुछ सोंचते हुए बोला...
अभय --"कुछ तो गड़बड़ है वहां। क्यूंकि जीस दीन मैं गाँव छोड़ कर जा रहा था। मैं उसी रास्ते से गुज़रा था, मुझे वहा कुछ अजीब सी रौशनी दीखी थी। तूफान था इसलिए मैं कुछ ध्यान नही दीया। और हां, मैने उस रात उस जंगल में भी कुछ लोगों का साया देखा था। जरुर कुछ हुआ था उस रात, वो बच्चे की लाश जीसे दीखा कर मुझे मरा हुआ साबित कीया मेरे चाचा ने। कुछ तो लफ़ड़ा है?"
अभय की बात बड़े ही गौर से सुन रहा अजय बोला...
अजय --"लफ़ड़ा ज़ायदाद का है भाई, तुम्हारे हरामी चाचा उसी के पीछे पड़े हैं।"
अभय --"नही अजय, लफ़ड़ा सीर्फ ज़ायदाद का नही, कुछ और भी है? और ये बात तभी पता चलेगी जब मुझे मेरे बाप की वो गुप्त चीजें मीलेगीं।"
अभय की बात सुनकर अजय असमंजस में पड़ गया...
अजय --"गुप्त चीजें!!"
अभय --"तू एक काम कर...."
इतना कहकर, अभय अजय को कुछ समझाने लगा की तभी वहां एक कार आकर रुकी...
अजय --"ये लो भाई, लाडले की माँ आ गयी।"
अभय पीछे मुड़ कर उस तरफ देखा भी नही और अजय से बोला...
अभय --"जाओ तुम लोग मै आता हूं। इससे भी नीपट लूं जरा।"
अभय की बात सुनकर, अजय और पप्पू दोने कॉलेज़ में जाने लगे...
कार में से वो दोनो लड़के और संध्या बाहर नीकलती है। संध्या का चेहरा अभी भी गुस्से से लाल था।
संध्या --"कौन है वो?"
उन दोनो लड़कों ने अभय की तरफ इशारा कीया....
अभय कॉलेज़ की तरफ मुह करके बैठा था। संध्या को उसका चेहरा नही दीखा क्यूकी अभय उसकी तरफ पीठ कीये था...
संध्या कीसी घायल शेरनी की तरह गुस्से में अभय के पास बढ़ी, पास आकर वो अभय के पीछ खड़ी होते हुए गुर्राते हुए बोली...
संध्या --"तेरी हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे पर हांथ उठाने की? तूझे पता भी है वो कौन है? वो इस कॉलेज़ का मालिक है जीसमे तू पढ़ रहा है। और तेरी इतनी हीम्मत की तू..."
संध्या बोल ही रही थी की, अचानक अभय उसकी तरफ जैसे ही मुड़ा, संध्या की जुबान ही लड़खड़ा गयी। संध्या कब शेरनी से बील्ली बनी समय को भी पता नही चला। गुस्से से लाल हुआ चेहरा काली अंधेरी रात की चादर ओढ़ ली थी।
अभय --"क्या बात है? इतना गुस्सा? पड़ी उसके पीछवाड़े पर है और दुख रहा तुम्हारा पीछवाड़ा है। आय लाईक दैट, ईसे ही तो दील में बसा कीसी के लीए प्यार कहते हैं। जो तेरे चेहरे पर उस हरामी का प्यार भर-भर के दीख रहा है। जो मेरे लिए आज तक कभी दीखा ही नही। खैर मैं भी कीससे उम्मिद कर रहा हूँ। जीसके सांथ मै सिर्फ नौ साल रहा। और वो १८ साल।"
अभय --"मेरे ९ साल तो तेरी नफ़रत मे बीत गये, तू आती थी पीटती थी और चली जाती थी, उस लाडले के पास। ओह सॉरी...अपने यार के लाडले के पास।"
ये शब्द सुनकर संध्या तुरंत पलटी और वहां से अपना मुह छुपाये जाने के लिए बढ़ी ही थी की...
अभय --"क्या हुआ? शर्म आ रही है? जो मुह छुपा कर भाग रही है?"
संध्या के मुह से एक शब्द ना नीकले, बस दूसरी तरफ मुह कीये अपने दील पर हांथ रखे खुद की कीस्मत को कोस रही थी...
अभय --"मुझे तब तकलीफ़ नही हुई थी जब तू मुझे मारती थी। पर आज़ हुई है, क्यूकीं आज तेरे चेहरे पर उसके लीए बेइंतहा प्यार दीखा है, जो मेरे लिए तेरे चेहरे पर आज भी वो प्यार का कत...कतरा...!"
कहते हुए अभय रोने लगता है...अभय की रोने की आवाज संध्या के कानो से होते हुए दील तक पहुंची तो उसका दील तड़प कर थम सा गया। छट से अभय की तरफ मुड़ी और पल भर में अभय को अपने सीने से लगा कर जोर जोर से रोते हुए बोली...
संध्या --"मत बोल मेरे बच्चे ऐसा। भगवान के लिए मत बोल। तेरे लीए कीतना प्यार है मेरे दील में मैं कैसे बताऊं तूझे? कैसे दीखाऊं तूझे?"
आज अभय भी ना जाने क्यूँ अपनी मां से लीपट कर रह गया। नम हो चूकी आँखे और सूर्ख आवाज़ मे बोला...
अभय --"क्यूँ तू मुझसे दूर हो गई? क्या तूझे मुझमे शैतान नज़र आता था?"
कहते हुए अभय एक झटके में संध्या से अलग हो जाता था। भाऊक हो चला अभय अब गुस्से की दीवार लाँघ रहा था। खुद को अभय से अलग पा कर संध्या एक बार फीर तड़प पड़ी। इसमें कोई शक नही था की, जब अभय संध्या के सीने से लग कर रोया तब संध्या का दील चाह रहा था की, अपना दील चीर कर वो अपने बेटे को कहीं छुपा ले। मगर शायद उसकी कीस्मत में पल भर का ही प्यार था। वो लम्हा वाकई अभय के उस दर्द को बयां कर गया। जीसे लीए वो बचपन से भटक रहा था...
अभय --"तू जा यहां से, इससे पहले की मै तेरा भी वही हाल करुं जो तेरे लाडले का कीया है, तू चली जा यहां से। तूझे देखता हूं तो ना जाने क्यूँ आज भी तेरी आंचल का छांव ढुंढने लगता हूं। यूं बार बार मेरे सामने आकर मुझे कमज़ोर मत कर तू। जा यहां से..."
संध्या के पास ऐसा कोई शब्द नही था जो वो बदले में बोल सके सीवाय बेबसी के आशूं। फीर भी हीम्मत करके बोल ही पड़ी...
संध्या --"माफ़ कर दे, बहुत प्यार करती हूँ तूझसे। एक मौका दे दे...?"
संध्या की बात सुनकर अभय हसंते हुए अपनी आखं से आशूं पोछते हुए बोला...
अभय --"दुनीया में ना जाने कीतने तरह के प्यार है, उन सब को मौका दीया जा सकता है। मगर एक माँ की ममता का प्यार ही एक ऐसा प्यार है जो अगर बेईमानी कर गया उसे मौका नही मीलता। क्यूंकी दील इज़ाजत ही नही देता। यक़ीन ही नही होता। कभी दर्द से जब रोता था तब तेरा आंचल ढुढता था वो मौका नही था क्या? तेरे आंचल के बदले उस लड़की के कंधे का दुपट्टा मेरी आशूं पोछ गये। भूख से पेट में तड़प उठी तो तेरे हांथ का नीवाला ढुढा क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अपना नीवाला खीलाया। कभी अंधेरे में डर लगा तो सीर्फ माँ बोला पर तू थी ही नही क्या वो मौका नही था? उस लड़की ने अंधेरे को ही रौशन कर दीया। मैं प्यार का भूखा हूं, और वो लड़की मुझसे बहुत प्यार करती है। अगर...मेरे...प्यार...को कीसी ने छेड़ा!! तो उसे मै ऐसा छेड़ुंगा...की शरीर की क्या औकात रुह भी दम तोड़ देगी उसकी। समझी...। अब जा कर अपने लाडले को अच्छे से समझा देना। की नज़र बदल ले, नही तो ज़िंदगी बदल दूंगा मैं उसका।"
और ये कहकर अभय वहां से जाने ही वाला था की एक बार फीर रुका, मगर पलटा नही...
अभय --"क्या कहा तूने? हीम्मत कैसे हुई मेरे बेटे को हांथ लगाने की? हांथों से नही लातो से मारा है उसको।"
कहते हुए अभय कॉलेज़ के अंदर चला जाता है। संध्या के लिए अब मेरे पास शब्द कम पड़ रहें हैं उसकी हालत बयां करने के लिए। हर बार उसकी किस्मत उससे ऐसा कुछ करा रही थी, जो उससे उसके बेटे को और दूर ले जाती। संध्या आज ना जाने कीस मोड़ पर खड़ी थी, ना तो उसके इस तरफ कुआँ था और ना ही उस तरफ खांई। थी तो बस तनहाई, बेटे से जुदाई....
Jio mere Sher payal ne to Kamaal hi kr diya, mujhe lga ki kahi Abhay ne to chumma nhi liya tha pr yha to payal ne liya tha chumma Abhay ka, aman ko to ek mukke ne hi jamin pe la diya or baki ka jo bacha uska Abhay ki lato ne kaam kr diya...अपडेट 24
लम्हा एक पल के लिए थम सा गया था, जब पायल ने अभय के गाल को चूम लिया.....
अभय भी उस पल ये भूल गया की उसके सामने अमन गुस्से में अपने हाथों डंडा लेकर खड़ा था। वही पर खड़े बाकी कॉलेज के लवंडे लापड़ी भी इस बात से हैरान थे। किसीको भी अपनी आंखो पर विश्वास नहीं हो रहा था, की जो उन सब ने अभि चांद लम्हे पहले देखा था क्या वो सच था या सपना?
क्योंकि पायल किस तरह की लड़की थी, ये उन सब से छुपा नहीं था। कभी न हंसने वाली वो लड़की, हमेशा खुद में उलझी सी रहने वाली वो लड़की आज कैसे एक अंजान लड़के के गालों पर अपने गुलाबी होठों का मोहर लगा सकती है? ये सवाल वाकई वहा खड़े सब के अंदर प्रश्न बन कर रह गया था।
ये तो बात थी वहा खड़े कॉलेज के सब विद्यार्थियों की, मगर अमन के दिल पर क्या गुजरी थी? ये तो अमन का चेहरा बखूबी बयां कर रहा था।
अमन गुस्से में झल्लाया अपने हाथ में वो डंडा लिए अभय की तरफ दौड़ा। मगर अभय तो उस खूबसूरत अहसास से बाहर ही नहीं निकला था अभि तक, अपनी नज़रे पायल के मासूम चेहरे पर अटकाए वो दीवाना ये भूल गया की उसके उपर वार करने अमन उसकी तरफ शताब्दी एक्सप्रेस की तरह बढ़ा आ रहा है।
पायल भी इस बात से बेखबर वो भी अभय की आंखो में खुद को भूल बैठी थी। मगर जैसे ही अमन पास पहुंचा और अपना डंडा हवा में उठाकर अभय को मरना चाहा, वहा पर खड़ा अजय किसी चीते की भाती झपट्टा मरते हुए, अभय को एक और धकेल देता है...जिसके वजह से हल्का धक्का पायल को लग जाता है और पायल अपना संतुलन खो बैठती है...और वो उस दिशा में गिराने लगती है जिस दिशा में अमन ने डंडा चलाया था...
अमन का जोरदार प्रहार पायल की हथेलियों पर पड़ा जिसकी वजह से पायल दर्द में चीखते हुए नीचे जमीन पर ढेर हो गई...
पायल अपना हाथ पकड़े दर्द में कराह रही थी, तभी जमीन पर गिरा अभय फुर्ती के साथ उठ खड़ा होता है और पायल की तरफ बढ़ा और उसे संभालते हुए उसकी हथेली को अपने हथेली में ले कर प्यार से सहलाते हुए अमन की तरफ गुस्से में देखता है...
अमन --"इसके साथ यही होना चाहिए था। साला बचपन से इसके पीछे घूम रहा हु, और तू कल का आया हराम का जना तेरे गाल पे चुम्मिया बरसा रही है..."
अब तक अमन बोल ही रहा था की, अभय गुस्से में खड़ा होते हुए...में की तरफ बढ़ा। अमन ने एक बार फिर डंडा हवा में उठाया लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, अभय थोड़ा झुकाते हुए इतनी जोरदार से घूंसा उसके अमन के पेट में मारा की अमन दर्द में जोर से चिंखा और उसके हाथ से डंडा चूत गया, और दोनो हाथ से अपने पेट को पकड़ते हुए जमीन पर गिर गया और ऐसे दर्द से तड़प रहा था मानो अब मरा की तब...
अभय काफी गुस्से में था, उसे अमांबकी हालत की जरा भी परवाह नहीं, और तड़प रहे अमन पर अपने लात बरसाने लगा...
अमन खुद को अभय से बचाने की कोशिश करता लेकिन अभय लगातार अमन के ऊपर अपने लात बरसा रहा था...
अमन की इस तरह धुलाई होते देख सब का चेहरा फक्क् पद गया था, मगर तभी वहा मुनीम ना जाने कहा से पहुंच गया...
मुनीम के साथ 2 लट्ठेहेर भी थे। अमन को जमीन पड़ा कलाथता और ऊपर से अभय का जोरदार लात का बरसाना देख मुनीम, जीप में से उतरते हुए...
मुनीम --"हे छोकरे, रुक साला...।"
कहते हुए मुनीम अपने लठहेरे को इशारा करता है, वो दोनो लठ्ठहेरे अभय की तरफ अपना लाठी लिए दौड़े, ये देख कर अभय अमन की ओर से अपना रुख मोड़ लिया, और पास में पड़ा वो डंडा उठा कर इतनी जोर से फेक कर मारा की वोदांडा जाकर एक लट्ठेरे के मुंह पर लगा और वो वही ढेर हो गया, मगर दूसरा लट्ठबाज बिना उसकी परवाह किए अभय की तरफ अभि भी बढ़ा आ रहा था। मगर शायद अभय बहुत गुस्से में था, वो भी तेजी के साथ उसकी तरफ दौड़ा, और वही खड़ी एक लड़की के दुपट्टे को पकड़ते हुए अभय हवा हो गया...
वो लट्ठबाज जब तक कुछ समझता, अभय उसके सामने खड़ा था, और जैसे ही उसने अपनी लाठी अभय के ऊपर ताना तब तक अभय ने उस दुपट्टे को उस लट्ठबाज के गले की फांसी का फंदा बना दिया। अभय ने जोर लगाकर उसके गर्दन को उस दुपट्टे से कसा तो वो लठबाज भी छटपटाते हुए खुद को उस दुपट्टे को खुद को आजाद करने की कोशिश करने लगा...
मगर तभी अभय ने एक जोर का घूंसा उसके कनपटी दे मारा और देखते ही देखते वो आदमी धड़ाम से ज़मीन गिरते हुए बेहोश हो गया...
अब अभय ने मुनीम की तरफ मुंह फेरा, अभय का अक्रोश देखकर मुनीम की हवा खिसक गई, और अपना धोती पकड़े इतनी जोर से भगा मानो उसके पीछे मौत पड़ी हो...
मगर अभय के ऊपर शायद खून सवार था, जमीन पर पड़ी लाठी को हाथ में लिए अभय मुनीम के पीछे भागा...
ये देख कर कॉलेज का हर लड़का भी उसी तरफ भागा, मगर तभी अमन के साथ आए दो लड़के अमन की तरफ बढ़े और अमन को सहारा देकर उठते हुए जीप की तरफ ले जाने लगे,
अमन की हालत एकदम खराब थी, उसके शरीर में जरा भी दम ना था, शायद बेहोश हो गया था....
इधर मुनीम की गति शायद अभय की गति से तेज ना थी, और जल्दी ही अभय मुनीम के सामने आकर खड़ा हो गया...
अभय का गुस्सा देखकर, मुनीम डरते हुए बोला...
मुनीम --"अरे छोरे, मैने तेरा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दे, जाने दे मुझे.....आह...आ..आ..आ..
अभय ने एक जोरदार लाठी मुनीम के पैर पर मारा, मुनीम की हालत और चिल्लाहाट देख कर ही पता चल रहा था की उसका पर टूट चुका है...
मुनीम जमीन पर पड़ा चटपटा रहा था, अभय उसकी बराबर में आकर बैठते हुए बोला...
अभय --"कुछ नही किया है, इसी लिए तो एक पैर तोड़ा है। जितनी बार तू मुझे दिखेगा उतनी बार तेरे शरीर का एक एक पुर्जा इसी तरह तोडूंगा...."
कहते हुए अभय उठा, और पायल की तरफ भागा...
जब अभय पायल के पास पहुंचा तो, पायल वही बैठी अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी...
अभय झट से पायल के पास पहुंचा, और परेशान होते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर देखते हुए...
अभय --"तू पागल हो गई है क्या, अगर हाथ की जगह कही और लग जाता तो...?"
अभय की की घबराहट देखकर, पायल ने इस बार अभय का हाथ पकड़ा और उसकी एक उंगली को पकड़ते हुए चूम लेती है...
अभय को सारा मामला समझ आ जाता है......
अभय समझ गया की, पायल ने ऐसा क्यूं किया...?
पायल की आंखे भीग चुकी थी...अभय की तरफ नाम आंखो से देखते हुए बोली...
पायल --"बहुत समय लगा दिया, मैं तो पूरी तरह से पागल हो गई थी। हर पल हर घड़ी बस तुम्हे ही याद करती थी। और जब आज तुम आए तो....?मुझसे छुपने की क्या जरूरत थी? मेरी हालत का जरा सा भी अंदाजा है क्या तुम्हे...?"
पायल की बेचैनी देख कर अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो पायल को क्या सफाई दे? अभय बिना कुछ बोले पायल को अपनी बाहों में भर लेता है...। पायल भी इस तरह से अभय से सिमट जाती है मानो आज उसे कोई सुरक्षित जगह मिली हो....
अभय --"हाथ की उंगलियों पर उन 5 तिल को देखकर तुमने मुझे पहेचान लिया, और मैं यह हैरान था की तुम किसी और को कैसे....?
पायल ने अपना हाथ अभय के मुंह पे रखते हुए बोली...
पायल --"तुम्हे पहचानने के लिए मुझे किसी चिन्ह की जरूरत नहीं, पर तुम्हे यकीन दिलाने के लिए मैने वो तिल तुम्हे दिखाया। कहा चले गए थे तुम? गांव के लोग कहते थे की अब तुम कभी नहीं आओगे...?"
अभय ने अपने दोनो हाथो से पायल के कमल के समान गोरे मुखड़े को अपनी हथेलियों में भरते हुए बोला...
अभय --"कैसे नही आता, मेरा दिल तुम्हारे पास है?"
तभी वहा अजय आ जाता है....
अजय --"अरे प्रेमी प्रेमिकाओं, वो अमन कही मर मारा तो नही गया। उपर से मुनीम की टांगे भी तोड़ दी है, कसम से बता रहा हु अभय, तेरा चाचा पागल हो जायेगा ये सब देख के....
अभय --"पागल करने ही तो आया हूं.....।"
_____________________________
इधर हवेली में जीप जैसे ही प्रवेश होती है। अमन के दोनो दोस्त उसे सहारा देते हुए जीप से उतारते हुए हवेली के अंदर ले आते है, जहा हॉल में सब बैठे थे। सब से पहले नजर ललिता की पड़ती है....
"हाय री मेरा बच्चा....क्या हुआ इसे??"
कहते वो भागते हुए अमन के पास आ जाति है और रोते हुए अमन को सहारा देते हुए सोफे पर लिटा देती है, संध्या मलती, भी घबरा जाति है....
संध्या तो झपटते हुए बिना देरी के अमन के पास आकर बैठते हुए...
संध्या--"क....क्या हुआ इसे? कोई डॉक्टर को बुलाओ?"
ये सुनकर मालती भागते हुए, अपने टेलीफोन की तरफ बढ़ी।
सब के चेहरे के रंग उड़ गए थे। ललिता और संध्या अब बहुत ज्यादा घबरा गए थे, कही न कही संध्या सबसे ज्यादा अमन को प्यार करती थी बचपन से तो प्यार उमड़ने में देरी नही लगी। और जल्द ही रोने लगी...
संध्या अमन के चेहरे को सहलाते हुए गुस्से में बोली....
संध्या --"मैने पूछा क्या हुआ इसे?"
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनकर वो दोनो लड़के सहम से गई....
"वो...वो ठाकुराइन, कॉलेज के एक लड़के ने बहुत मारा...."
वो लड़का सहमे से आवाज में बोला...
संध्या गुस्से में तिलमिला कर बोली.....
संध्या --"कॉलेज के लड़के ने?? इतनी हिम्मत। चल मेरे साथ, तुम लोग डॉक्टर को बुलाओ जल्दी.....मैं उस छोकरे की खबर ले कर आती हूं।"
कहते हुए संध्या बहुत ही गुस्से में उन लड़कों के साथ हवेली से चल देती है...
शायद संध्या इस बात से बेखबर थी की जिस लड़के की वो खबर लेने जा रही है, वो कोई और नहीं उसका खुद का बेटा ही है....