अपने एकलौते सगे बेटे के साथ जैसा व्यवहार संध्या ने किया वैसा कोई भी मां नही करती। कहा ही जाता है , पुत्र कपुत तो हो सकता है लेकिन माता कुमाता नही हो सकती।
मान लेते है कि अभय के खिलाफ उसके चाचा , चाची और चचेरे भाई बहन ने काफी भड़काया होगा लेकिन फिर भी ऐसा सौतेला व्यवहार कोई मां अपने बच्चे के साथ नही करती। न उन्होने कभी सच्चाई जानने की कोशिश की और न ही अपने पुत्र को अपने सफाई मे कुछ कहने का मौका दिया।
कहां से यह सब वो करती ! उनके दिमाग पर अपने ही देवर के साथ अय्याशी का नशा जो चढ़ा हुआ था। देवर उनकी शारीरिक भूख जो शांत कर रहा था। ऐसे मे देवर के पुत्र को कैसे अपनी ममता से मरहूम कर सकती थी वो ! यही कारण था जो अमन उन्हे अपने सगे बेटे से भी प्यारा लगने लगा।
स्वर्ण साहूकार और उनकी पत्नी रेखा की जितनी तारीफ की जाए कम है। इन्होने अभय को न सिर्फ आश्रय दिया बल्कि मां बाप के प्रेम से भी नवाजा। ऐसे ही लोगों से तो इंसानियत आज भी जिंदा है।
संध्या ना ही अच्छी मां बन सकी और ना ही आदर्श भाभी। और शायद ना ही अच्छी पत्नि ।
गलतियों का पश्चाताप किया जाता है , गुनाहों का नही । उन्होने एक नही कई गुनाह किए हैं।
मालती चाची पुरे परिवार मे सही औरत लगी मुझे। लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी। उनकी सीमाएं सीमित थी। पति किसी काम का नही और पुरी सम्पति संध्या के नाम पर । उन्होने सब समय संध्या को उसकी गलती का एहसास कराने की कोशिश की।
अभय सिंह सच मे ही अलबेला है। समाज के दबे कुचले लोगों के लिए उसके दिल मे जो भावनाएं है वो उसे अलबेला ही बनाती है।
अब तक कहानी फैमिली सागा और रोमांस से भरपूर ही लगा मुझे। इन्सेस्ट और सेक्स कहीं दिखा ही नही । संध्या रमन सिंह के नाजायज सम्बन्धों को अपवाद मान लिया जाए तो।
लेकिन ऐसा लग रहा है , रेखा के साथ अंतरंग संबंध स्थापित कर इसकी भी शुरुआत हो जायेगी। शायद बाद मे कुछ और किरदार भी शामिल हो जाए !
अब तक की कहानी बहुत ही खूबसूरत लिखा है आप ने। इमोशंस का लाजवाब इस्तेमाल किया गया है। डायलॉग , अलंकार का जब तब प्रयोग , परिवेश का बेहतरीन क्रिएशन सब कुछ जबरदस्त लिखा है आप ने। शायद अब सस्पेंस का भी प्रयोग हो चुका है।
कमी की बात करें तो सिर्फ इरोटिका का अभाव रहा है। बाकी सब कुछ वाह वाह है।
आपके बड़े दादाजी के देहांत पर मेरी हार्दिक संवेदना। प्रभु उनकी आत्मा को शांति दे।