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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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andyking302

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अपडेट --(१)

गाँव के बीचो-बीच खड़ी; ठाकुर रतन सिंह की हवेली वाकई काफी शानदार थी। कहते हैं की ठाकुर परम सिंह काफी दयानीधान कीस्म के इंसान थे। दुखीयों की मदद करना उनका पहला कर्तब्य था। यही वज़ह था, की आज भी इस हवेली की वही इज्जत बरकरार थी। ठाकुर परम सिंह तो नही रहें। पर हवेली को तीन अनमोल रत्न दे कर इस दुनीया से वीदा हुएं।

तो चलिए जानते हैं कुछ कीरदारों के बारे में---


(१) मनन सिंह (परम सिंह के बड़े बेटे)--

अपने पिता के तरह ही, अच्छे विचारो और दुसरों की मदद करने वालो में से थे। मगर शायद इस दुनीयां को उनकी अच्छाई नही भाई, और २६ साल की उम्र में ही चल बसे। कहते हैं की, इनके मौत का कारण कोई गम्भीर बीमारी थी। कम वर्ष की आयू में ही विवाह होने की वज़ह से १९ वर्ष की आयू में ही पिता बन गये।


संध्या सिंह (मनन सिंह की पत्नी)--

संध्या का जब विवाह हुआ तब वो मात्र १८ वर्ष की थी। शादी भी इसी शर्त पर संध्या ने की थी की, वो अपनी पढ़ाई नही छोड़ेगी। और शादी के बाद संध्या ने अपनी बी॰ए॰ की डीग्री की उपाधि हांसिल की। कॉलेज़ भी ठाकुर रमन सिंह का ही था। संध्या की ज़ींदगी में भुचाल तब आया जब अचानक ही उसके पति का देहांत हो गया। पति के मौत के बाद हवेली की सारी जीम्मेदारी संध्या ने ही संभाली। क्यूंकी ठाकुर परम सिंह का यही वसीयत था।

अभय सिंह (मनन सिंह का बेटा)--

हसमुख और पिता की तरह ही जीम्मेदार रहने वाला लड़का। अपने पिता को बहुत प्यार करता था, लेकिन शायद नसीब में ज्यादा दीन के लिए पिता का प्यार नही लीख़ा था। और ७ साल की उम्र में ही पीता का साया छीन गया।


(२) रमन सिंह (परम सिंह का दुसरा बेटा)--

मनन सिंह और रमन सिंह दोनो जुड़वा थे। इन दोनो की शादि भी एक सांथ हुई। और दोनो को बच्चे भी। फर्क सीर्फ इतना था की, मनन सिंह का बेटा रमन सिंह के बेटे से १५ दीन बड़ा था। और दुसरा ये की, रमन सिंह को जुड़वा हुए। एक बेटी भी। रमन सिंह बेहद अय्यास कीस्म का आदमी था। और सीर्फ अपने फ़ायदे के बारे में सोंचता था।


ललिता सिंह (रमन सिंह की पत्नी)--

सांवले रंग की बड़े नैन नक्श वाली औरत थी। काफी मज़ाकीया अंदाज़ था इस औरत का और इसके दीमाग में क्या चलता रहता है, कीसी को भी समझ पाना मुश्किल था।


अमन सिंह (रमन सिंह का बेटा) --

अमन सिंह संध्या का काफी दुलारा था। वो अमन को बहुत चाहती थी। गाँव भर में ये बात उठने लगी थी की, संध्या को अपने बेटे से ज्यादा रमन के बेटे की फीक्र रहती है। अब इस बात का जवाब तो कहानि में ही मीलेगा।


नीधि सिंह (मनन की बेटी) --

निधि अपने बाप के रंग-रुप में ढली थी। इसीलिए अपनी माँ की तरह सांवली ना हो कर, गोरी काया की लड़की थी।


(३) प्रेम सिंह (परम सिंह का तीसरा बेटा)--

प्रेम सिंह दीमाग से थोड़ा पैदल था। उसे घर-समाज़ में क्या हो रहा है, कुछ लेना देना नही था। जीस काम में लगा देते उसी काम में लगा रहता।

मालती सिंह (प्रेम सिंह की पत्नी)--

काफी शांत और अच्छे चरीत्र की औरत। कोई बच्चा नही, इसका कारण कुछ पता नही। पर अभय को जी जान से प्यार करती थी। अभय का हसमुख चेहरा उसे बहुत भाता था।



(बाकी के कीरेदार कहानी के सांथ पेश कीये जायेगें)

**************
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।

पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???

--------*-----

सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।

संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...

संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"

रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...

रमन -- "तुम चिंता मत करो भाभी, आज का दीन सबको याद रहेगा..."

रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी

मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"

संध्या -- "सो रहा होगा वो, मालती। इतनी सुबह कहां उठता है वो?"

मालती -- "अपने कमरे में तो नही है वो, मैं देख कर आ रही हूँ। मुझे लगा कल की मार की वज़ह से, डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा।"

मालती की बात सुनते ही, संध्या के गुलाबी गाल गुस्से में लाल हो गये। और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चील्लाते हुए बोली...

संध्या -- "बेटा है मेरा वो! कोई दुश्मन नही, जो मैं उसे डरा-धमका कर रखूंगी। हां हो गयी कल मुझसे गलती, गुस्से में मार दी थोड़ा-बहुत तो क्या हो गया?"

संध्या को इस तरह चीखती-चील्लाती देख मालती शीतलता से बोली...

मालती -- "अपने आप को झूंठी दीलासा क्यूँ दे रही हो दीदी? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा-बहुत ही मारा था। और वो शायद पहली बार भी नही था।"

अब तो संध्या जल-भून कर राख सी हो गयी, शायद मालती की सच बात उसे तीखी मीर्ची की तरह लगी या शायद खुद की गलती का अहेसास था जो गुस्से की सीमा की चरम पर था

संध्या -- "तू कहना क्या चाहती है.....? म...मै भला उससे क्यूँ नफरत करुंगी? तूझे लगता है की मुझे उसकी फीक्र नही, सीर्फ तूझे ही है क्या?"

गुस्से खलबलायी संध्या चील्लाते हुए बोली...


मालती -- "मुझे क्या पता दीदी? तुम्हारा बेटा है, मारो चाहे काटो, मुझे उससे क्या? मुझे वो अपने कमरे में नही मीला, तो बस यूं ही पुछने चली आयी।"

कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...

रमन -- "क्या भाभी तुम भी छोटी-छोटी बात को दील..."

रमन अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था की संध्या बीच में ही बोल उठी...

संध्या -- "रमन जाओ यहां से, मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो।"

संध्या की सख्त आवाज़ सुनकर, रमन को लगा, अभी इस समय यहां से जाना ही ठीक होगा।


संध्या अपने सर पर हांथ रखे बैठी गहरी सोंच में डूबी थी। की तभी उसकी दोनो आँखो पर कीसी के हथेली पड़े और संध्या की आँखे बंद हो गयी। अपनी आँखो पर पड़े हथेली को टटोलते हुए संध्या के चेहरे पर एक मुस्कान की लकीरे उमड़ पड़ती है और खुश होते हुए बोली...


संध्या -- "नाराज़ है ना तू अपनी माँ से? एक बार माफ़ कर दे, आगे से ऐसा कुछ नही करुगीं जीससे तूझे तकलीफ़ हो।"

संध्या की बात सुनते हुए अमन खीलखीला कर हंस पड़ा, और अपनी हथेली संध्या की आँखों पर से हटाते हुए उसके सामने खड़ा हो जाता है। संध्या को लगा था की, ये उसका बेटा अभय है पर ये तो अमन था। चेहरे की मुस्कान ऐसे उड़ी जैसे फुदकती चींड़ीया।


अमन --"अरे ताई माँ, आपको क्या लगा? की मैं अभय हूं?"

अमन की बात सुनकर संध्या अपने गम को छीपाते हुए एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली...

संध्या -- "बदमाश कही का, सच में मुझे ऐसा लगा की ये अभय है।"


अभय -- "आपको लगता है ताई माँ, की अभय ऐसा कर सकता है? वो करता तो अब तक दो-चार थप्पड़ खा चुका होता। और वैसे भी, बेचारा कल रात आपके हांथो से मार खाकर, घर से ऐसा भागा, की वापस ही नही लौटा।"

अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...

संध्या --" क...क्या मतलब? क...कहां भाग ग...गया था? क...कब?"


अमन --"कल रात की पीटाई के बाद, जब आप गुस्से में अपने कमरे में चली गयी। वैसे ही वो घर से भाग गया था। मैने रात को दो-तीन बार उठ कर उसके कमरे में भी देखा था पर वो नही था।"

संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।

संध्या -- "अभय...अभय...अभय!!"


पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा...


ललिता --"क...क्या हुआ दीदी?"

संध्या --"अ...अभय...अभय कहां हैं?"

ये सुनकर मालती बोली...

मालती --"वही तो मैं भी पुछने आयी थी तुमसे। क्यूंकी अभय मुझे सुबह से नही दीख रहा है।"

अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।

ललिता --"दिदी घबराओ मत, इधर ही कहीं होगा आ जायेगा।"

पर मानो संध्या एक जींदा लाश थी, और उसी स्वर में बीना कीसी भाव के बोली...

संध्या --"चला गया वो, अब नही आयेगा.......!"

----------------*---

इधर ट्रेन एक स्टेशन पर आकर कर रुकती है। वो लड़का स्टेशन पर अपने कदम रखते हुए ट्रेन से नीचे उतर जाता है। स्टेशन पर भारी भीड़ थी, लड़का चकमका जाता है। उसे समझ नही आ रहा था, की कीधर जाये। तभी उसे स्टेशन पर ही एक दुकान दीखी और दुकान के अंदर पानी की बॉटल।

वो उसी दुकान की तरफ बढ़ा, और नज़दीक पहुंच कर दुकानदार से बोला-

"भैया थोड़ा पानी मीलेगा? बहुत प्यास लगी है?"

दुकान दार ने उपर से नीचे उस लड़के को गौर से देखा और बोला...

"चल भाग यहां से, भीखारी कहीं का!"

ये सुनकर उस लड़के को गुस्सा आ गया।

"भीखारी होगा तेरा बाप साले, नही देना है तो मत दे, भीखारी कीसे बोल रहा है?"

"ओ...हो, तेवर तो देखो इसके। भीखारी नही तो क्या राजा लग रहा है क्या? खुद की हालत देख पहले।"

दुकानदार की आवाज़ सुनकर लड़का अपने आप को देखने लगा। तो पाया की उसके कपड़े पूरी तरह से गंदे हो गये थे। लड़का मन मान कर वहां से चलते बना और स्टेशन से बाहर नीकलते हुए एक मार्केट में पहुंचा। लड़का ठीक से चल नही पा रहा था। और बार-बार अपना हांथ अपने पेट पर रख लेता। शायद भूंखा था और थका भी।


वो हीम्मत बांधे यूं ही कुछ दूर तक चलता रहा और फीर एक दुकान के सामने आकर उसके पैर रुक गये। नज़र उठाकर दुकान की तरफ देखा और दरवाज़े के उपर लगे बोर्ड को पढ़ने लगा...

"ताराचन्द ज्वेलर्स"

ये पढ़कर उसे कुछ समझ आया की नही आया वो नही पता। पर दुकान के अंदर बैठे एक ३५ साल के सक्श को देखकर समझ गया की ये सोनार है। लड़का अपने कदम दुकान के अंदर की तरफ बढ़ा दीया...


"अरे छोरे...कहां घूसा चला आ रहा है? चल बाहर चल।"

दुकान के अंदर बैठा सख्श दुत्कारने जैसी आवाज़ में बोला...


लड़के ने अपना हांथ उठाते हुए गले तक ले कर गया, और शर्ट के अंदर हांथ डालते हुए गले में पहनी मोटी सोने की चैन को बाहर नीकालता है। चमचमाती सोने की चमक जौहरी सेठ की आँखें चौंधीयां दी। लड़का सेठ को देखते हुए सोने की चैन को हवा में उछालते हुए उसे कैच कर के बोला...


"ठीक है सेठ जाता हूँ, ये बता की इधर और कोई दूसरी दुकान है क्या? मुझे ये चैन बेचनी है।"

ये सुनकर सेठ का माथा ठनका और मज़ाकीये अंदाज में बोला...


"अ...अरे भायो, मैं तो मज़ाक कर रहा था। इसे अपनी ही दुकान समझ आ जा बैठ।"

लड़का ये सुन कर मुस्कुराते हुए बोला...

"अब आया ना औकात पे।
Nice update
 

andyking302

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अपडेट २

ताराचंद जौहरी था, उसे खरे सोने की पहचान अच्छी तरह थी। इसलिए, वो उस सोने की चैन को देख कर उसकी आँखें चौंधिया गयी।

"अरे बेटा, मैं तो मज़ाक कर रहा था। बैठ जा, आजा...आजा बैठ।"

वो लड़का मुस्कुराते हुए, नीचे फर्श पर बीछे सफदे रंग के साफ गद्दे पर बैठ जाता है।

ताराचंद --"तुम्हारा नाम क्या है बेटा?"

"मेरा नाम? अभी तक कुछ सोचा नही है। चलो तुम ही कोई अच्छा सा नाम बता दो?"

उस लड़के की करारी बाते सुनकर ताराचंद अचंभीत होते हुए बोला...

ताराचंद --"अरे बेटा...क्यूँ मज़ाक करते हो? तूम्हारे माँ-बाप ने, तुम्हारा नाम कुछ ना कुछ तो रखा ही होगा?"

ताराचंद की बात सुनकर वो लड़का एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला...

"हां याद आया, मेरा नाम अभीनव है। पर तुम मुझे प्यार से अभि बुला सकते हो। अच्छा अब मेरे नाम करण के बारे में छोड़ो, और ये बताओ की इस चैन का कीतना मीलेगा?"

कहते हुए वो लड़का जीसने अपना नाम सेठ को अभीनव बताया था, चैन को सेठ की तरफ बढ़ा दीया। सेठ ने आगे हांथ बढ़ाते हुए सोने की चैन को अपने हांथ में लीया तो उसे काफी वज़न दार लगा।

सेठ ने तराजू नीकालते हुए सोने का वज़न कीया और फीर तराजू को नीचे रखते हुए चश्मे की आड़ से देखते हुए बोला।

सेठ --"वाह...बेटा! ये चैन तो वाकई वज़नदार है। कहीं से चूरा कर तो नही लाये?"

सेठ की बात पर अभि के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान फैल गयी।

अभि --"कमाल करता है तू भी? सेठ होकर पुलिस वालों की भाषा बोल रहा है। ला मेरा चैन वापस कर।"

सेठ --"अरे...अरे बेटा! मज़ाक था। सच बोलूं तो...तीन २ लाख तक दे सकता हूँ। पर तुम इतने सारे पैसों का करोगे क्या...?"

अभि --"ऐ गोबर चंद, अपने काम से काम कर तू। लेकिन...बात तो तेरी ठीक है, की इतने सारे पैसों का करुगां क्या? एक बात बता सेठ? यहां रहने के लीए कोई कमरे का इंतज़ाम है क्या?"

अभि की बात सुनकर वो सेठ अपना चश्मा उतारते हुए उस अभि को असंमजस भरी नीगाहों से देखते हुए बोला...

सेठ --"जान पड़ता है की, तुम्हारे सांथ जरुर कुछ बुरा हुआ है। पर मैं आगे कुछ पूछूंगा नही। मन करे तो कभी बताना जरुर। रही बात रहने की जगह की, तो तुम मेरे घर में रह सकते हो। बड़ा घर है मेरा, पर रहने वाले सीर्फ दो, मैं और मेरी जोरु।"

सेठ की बात सुनकर, अभि कुछ सोंचते हुए बोला...

अभि --"वो तो ठीक है गोबर चंद। पर भाड़ा १ हज़ार से ज्यादा ना दे सकूं।"

अभि की बात बार सेठ हसं पड़ा, और हसंते हुए बोला...

सेठ --"अरे छोरे...मैनें तो भाड़े की बात छेंड़ी ही नही। तुम अभी बेसहारे हो, तो बस इसांनीयत के नाते मैं तुम्हारी मदद कर रहा था। मुझे भाड़ा नही चाहिए।"

अभि --"इसे मदद नही एहसान कहते है सेठ, और एहसान के तले दबा हुआ इंसान एक कर्ज़ के तले दबे हुए इसांन से ज्यादा कर्ज़दार होता है। कर्ज़ा तो उतार सकते है एहसान नही। तो मुझे एहसान की ज़िदंगी नही ऐशो-आराम की ज़िंदगी चाहिए। हज़ार रुपये नक्की है तो बोल सेठ? वरना कहीं और चलूं।"


सेठ के कान खड़े हो गये, शायद सोंच में पड़ गया था, की इतनी कम उम्र में ये लड़का ऐसी बाते कैसे बोल सकता है?

सेठ --"क्या बात है छोरे? क्या खुद्दारी है तेरे अंदर! एक दीन ज़रुर ज़माने में सीतारा बन कर चमकेगा।"

सेठ की बात पर अभि ने एक बार फीर अपने चेहरे पर मुस्कान की छवि लीए बोला...

अभि --"मुझे अंधेरे में चमकने वाला वो सीतारा नही बनना, जो सीर्फ आँखों को सूकून दे, सेठ। बल्कि मुझे तो दीन में चमकने वाला वो सूरज बनना है, जो चमके तो धरती पर उज़ाला कर दे, अगर भड़के तो मीट्टी को भी राख का ढेर कर दे।"

सेठ तो बस अपनी आँखे हैरतगेंज, आश्चर्यता से फैलाए अभि के शब्द भेदी बाड़ों की बोली को बस सुनता ही रह गया...

-------------**

गाँव के बीचो-बीच खड़ी ठाकुर परम सिंह की आलीशान हवेली में अफरा-तफरा मची थी। पुलिस की ज़िप आकर खड़ी थी। हवेली के बैठके(हॉल) में । संध्या सिंह जोर से चींखती चील्लाती हुई बोली...

संध्या --"मुझे मेरा बेटा चाहिए....! चाहे पूरी दुनीया भर में ही क्यूँ ना ढ़ूढ़ना पड़ जाये तुम लोग को? जीतना पैसा चाहिए ले जाओ....!! पर मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्च्च्च्चे...."।

कहते हुए संध्या जोर-जोर से रोने लगी। सुबह से दोपहर हो गयी थी, पर संध्या की चींखे रुकने का नाम ही नही ले रही थी। गाँव के लोग भी ये खबर सुनकर चौंके हुए थे। और चारो दिशाओं मे अभय के खोज़ खबर में लगे थे। ललिता और मालति को, संध्या को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। संध्या को रह-रह कर सदमे आ रहे थें। कभी वो इस कदर शांत हो जाती मानो जिंदा लाश हो, पर फीर अचानक इस तरह चींखते और चील्लाते हुए सामन को तोड़ने फोड़ने लगती मानो जैसे पागल सी हो गयी हो।

रह-रह कर सदमे आना, संध्या का पछतावा था? या अपने बेटे से बीछड़ने का गम? या फीर कुछ और? कुछ भी कह पाना इस समय कठीन था। अभय ने आखिर घर क्यूँ छोड़ा? अपनी माँ का आंचल क्यूँ छोड़ा? इस बात का जवाब सिर्फ अभय के पास था। जो इस आलीशान हवेली को लात मार के चला गया था, कीसी अनजान डगर पर, बीना कीसी मक्सद के और बीना कीसी मंज़ील के।

अक्सर हमारे घरो में, कहा जाता है की, घर में बड़ो का साया होना काफी ज़रुरी है। क्यूंकी उन्ही के नक्शे कदम से बच्चो को उनको उनकी ज़िंदगी का मक्सद और मंज़िल ढुंढने की राह मीलती है। मगर आज अभय अपनी मज़िल की तलाश में एक ऐसी राह पर नीकल पड़ा था, जो शायद उसके लिए अनजाना था, पर शुक्र है, की वो अकेला नही था कम से कम उसके सांथ उसकी परछांयी तो थी।

कहते हैं बड़ो की डाट-फटकार बच्चो की भलाई के लिए होता है। शायद हो भी सकता है, पर मेरे दोस्त जो प्यार कर सकता है। वो डाट-फटकार नही। प्यार से रिश्ते बनते है। डाट-फटकार से रिश्ते बीछड़ते है, जैसे आज एक बेटा अपनी माँ से और माँ एक बेटे से बीछड़े थे। रीश्तो में प्यार कलम में भरी वो स्याही है, जब तक रहेगी कीताब के पन्नो पर लीखेगी। स्याही खत्म तो पन्ने कोरे रह जायेगें। उसी तरह रीश्तो में प्यार खत्म, तो कीताब के पन्नो की तरह ज़िंदगी के पन्ने भी कोरे ही रह जाते हैं।


खैर, हवेली की दीवारों में अभी भी संध्या की चींखे गूंज रही थी की तभी, एक आदमी भागते हुए हवेली के अंदर आया और जोर से चील्लाया...

"ठ...ठाकुर साहब!!"

आवाज़ काभी भारी-भरकम थी, इसलिए हवेली में मौजूद सभी लोगों का ध्यान उस तरफ केंद्रीत कर ली थी। सबसे पहली नज़र उस इंसान पर ठाकुर रमन की पड़ी। रमन ने देखा वो आदमी काफी तेजी से हांफ रहा था, चेहरे पर घबराहट के लक्षणं और पसीने में तार-तार था।

रमन --"क्या हुआ रे दीनू? क्यूँ गला फाड़ रहा है?"

दीनू नाम का वो सख्श अपने गमझे से माथे के पसीनो को पोछते हुए घबराहट भरी लहज़े में बोला...

दीनू --"मालीक...वो, वो गाँव के बाहर वाले जंगल में। ए...एक ब...बच्चे की ल...लाश मीली है।"

रमन --"ल...लाश क...कैसी लाश?"

उस आदमी की आवाज़ ने, संध्या के अंदर शरीर के अंदरुनी हिस्सो में खून का प्रवाह ही रोक दीया था मानो। संध्या अपनी आँखे फाड़े उस आदमी को ही देख रही थी...

दीनू --"वो...वो मालिक, आप खुद ही देख लें। ब...बाहर ही है।"

दीनू का इतना कहना था की, रमन, ललिता, मालती सब लोग भागते हुए हवेली के बाहर की तरफ बढ़े। अगर कोई वही खड़ा था तो वो थी संध्या। अपनी हथेली को महलते हुए, ना जाने चेहरे पर कीस प्रकार के भाव अर्जीत कीये थी, शारिरीक रवैया भी अजीबो-गरीब थी उसकी। कीसी पागल की भाती शारीरीक प्रक्रीया कर रही थी। शायद वो उस बात से डर रही थी, जो इस समय उसके दीमाग में चल रहा था।

शायद संध्या को उस बात की मंजूरी भी मील गयी, जब उसने बाहर रोने-धोने की आवाज़ सुनी। संध्या बर्दाश्त ना कर सकी और अचेत अवस्था में फर्श पर धड़ाम से नीचे गीर पड़ती है....

-------------**
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann
 
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Himanshu kumar1

Attitude bhi gratitude bhi
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Umid da kar bardas karna bol deta ho shabra nhi hai Bhai roj kol kar dekhta ho update aaya ki nhi khani bhout achi lagi isliye bol Raha hu
 
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MAD. MAX

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Puri stories hi confused hai
1. Sandhya abhay se chhoti chhoti baat par marpit aur gussa kyun karti thi aur dusro par vishwas kyun karti thi kuchh pata nahi chala
2. Ab ja yaha se main nhi chahti ki kisi ko kuchh pata chale isse lag raha hai dono Kai baar chudai kar chuke hai
3. Sandhya ne Raman se apne riste ke baare me puchha ki abhay ko un dono ke riste ke baare me pata ya shak hai isse bhi jahir ho raha hai ki dono me chudai phale se chal raha hai
4. Jab Sandhya pump house me chudi to fir Raman se kyun kaha ki abhay ke room ki taraf se na Jay
5. Jab pump house me hi chudi to Raman ne kyun kaha thik hai bhabhi ab tu so jao to kya Sandhya pump house me hi soi
6. Jab ghar se Khushi Khushi chudne gai thi to kyun kaha ki anjane me hua fir kahi bahak gai thi
7. Abhay kab ghar se bhaga chudai dekh kar ya usse pehle ki maar se
Aur bhi bahut sa confusion hai yesa lagta hai ki Sandhya ko na abhay ke jane ka gum hai na wapas aane ki Kushi

Pure update me Sandhya ko chutiya aur bevkuf hi dikhaya hai
Bro ab ye to aane wale update me clear krega apna Hemantstar111 bro
.
ASLIYT ky hai or Q hua kis ki chal or kn main villain hai
 

Sharma

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Puri stories hi confused hai
1. Sandhya abhay se chhoti chhoti baat par marpit aur gussa kyun karti thi aur dusro par vishwas kyun karti thi kuchh pata nahi chala
2. Ab ja yaha se main nhi chahti ki kisi ko kuchh pata chale isse lag raha hai dono Kai baar chudai kar chuke hai
3. Sandhya ne Raman se apne riste ke baare me puchha ki abhay ko un dono ke riste ke baare me pata ya shak hai isse bhi jahir ho raha hai ki dono me chudai phale se chal raha hai
4. Jab Sandhya pump house me chudi to fir Raman se kyun kaha ki abhay ke room ki taraf se na Jay
5. Jab pump house me hi chudi to Raman ne kyun kaha thik hai bhabhi ab tu so jao to kya Sandhya pump house me hi soi
6. Jab ghar se Khushi Khushi chudne gai thi to kyun kaha ki anjane me hua fir kahi bahak gai thi
7. Abhay kab ghar se bhaga chudai dekh kar ya usse pehle ki maar se
8. Jb abhay ne dekha to chudai chal raha tha to condom lene kab gya, jab abhay ka amrud bagiche me gira to uthane ke liye niche chukar uthya to amrud uski ma ki sadi ke upar gira tha to kya Sandhya bahar hi sadi nikal kar chudne gai room ke ander
9. Itni badi thakurain ko ek gaov ki aurat randi bol kar gali di aur Sandhya chup rahi.
Aur bhi bahut sa confusion hai jaise yesa lagta hai ki Sandhya ke liye abhay ka hona ya na hona barabar hai use koi fark nhi hua na use abhay ke mar jane ka gum hua, abhay ke ghar chhod ke jane ke baad na kabhi uske room me gai na abhay ke wapas aane ki Kushi

Pure update me Sandhya ko chutiya aur bevkuf hi dikhaya hai
Ye sari Raaz sirf writer hi janta tha lekin.......

ye-raaz-bhi-usike-saath-chala-gaya-nana-patekar
 
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