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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Raman ne Thakurain ki halat ka fayda uthane ki puri planning Pahle se hi bna li thi or ab to ganv valo ki jamin bhi hathiya rha hai college bnane ke liye...

Abhi to apna bita hua kal yaad kr rha hai or unko yaad kr ansu baha rha hai ab Dekhte hai Rekha ji uske dukho ko kam kr paati hai Ya or bhi badha deti hai...

Superb update bhai sandar jabarjast

अपडेट 4

__वो तो है अलबेला__

अभि कल से स्कूल जाने की तैयारी मे था। वो अपने कमरे में बैठा स्कूल की कताबों को देखते हुऐ कुछ सोचने लगा...

"मैं कह रही हूं ना, की तू स्कूल जा।"

"आज रहने ने दे ना मां, तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही हैं, बड़ी जोर से मेरा सर दुख रहा है, और आज अमन भी तो नहीं गया है स्कूल।"

"अमन की तो सच में तबियत ख़राब है, मैं देख कर आ रही हूं। वो तेरी तरह बदमाश और झूंठा नही है। चुप चाप से स्कूल जा, नही तो पिटाई करना शुरू करूं।"

"नहीं मां, तू मार मत, मैं जा रहा हूं स्कूल। तू मरती है तो मुझे अच्छा नहीं लगता,, एक बात पूंछू मां??"

"हां पूंछ, मगर ढंग की बात पूंछना।"

"तू मुझसे ज्यादा अमन को चाहती है ना?"

"मैं बोली थी ना तुझसे, ढंग का सवाल पूछना। मगर तेरे खोपड़ी में कोई बात घुसती नहीं है, अब इससे पहले की मेरी खोपड़ी घूमे, तू जा जल्दी स्कूल।"

..।l. अभि बेटा आकार खाना खा ले।"

ये आवाज सुनते ही, अभि अपने सपनो की दुनियां से वापस वर्तमान में आ जाता है। उसे रेखा ने आवास लगाई थी , खाना खाने के लिए ।
अभि अपने किताबों को स्कूल बैग में डालते हुए, अपने कमरे से बाहर निकल कर हाल के आ जाता है खाना खाने के लिए । अभि टेबल पर बैठा चुप चाप खाना खा रहा था और रेखा , उसे प्यार से खाना परोस रही था । अभि ने एक नजर रेखा की तरफ देखा और चुप चाप खाना खाने लगा ।


रेखा --"आज मैने तेरे लिए आलू के पराठे बनाए है, कैसे हैं। बता ना?"

अभि पराठा खाते हुऐ बोला....

अभि --" हम्मम.....वाकई काफी बढ़िया बना हैं। मेरी मां भी मेरे लिए पराठा बनाया करती थी, मुझे उनके हाथों का पराठा बहुत पसंद था, पर फिर धीरे-धीरे उन हाथों से पराठा बननबने हों गया, जो हाथ मुझे नवाला खिलाने के लिए उठते थे , वही हाथ मेरे धीरे -धीरे मुझ पर उठने लगे।"

रेखा वहीं खड़ी अभि की बात सुन रही थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी । इसलिये वो आश्चर्य भारी आवाज में बोल पड़ी...

रेखा --" तू क्या कह रहा है मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है अभि।"

ये सुन कर अभी अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लेट हुए बोलो....

अभि --"कुछ बातें ना समझ में आए , वही बेहतर होता है आंटी। नहीं तो दिल में किसी कांटे की तरह ऐसे चुभता है की , उसकी चुभन जिंदगी भर असर करती रहती है।"

अभी की बातें रेखा के लिए समझ पाना बहुत मुश्किल था। तभी उसने देखा की अभि का चेहरा काफी उदासी में मुरझा सा गया है। वो अभी से इन सब सवालों का जवाब जानने की कोशिश पहले दिन ही की था, मगर अभी भड़क गया था। इसी लिए वो अभी को और परेशान नहीं करना चाहती थी। मगर वो अभी का उदास चेहरा देख कर साफ तौर पर समझ चुकी थी की सरूर अभी किसी बात से दुखी है। इसलिए रेखा ने बात को घुमाते हुए बोली...

रेखा --"अरे तू भी ना, ना जाने कौन सी बातें ले कर बैठ गया है, छोड़ती वो सब और चुप बाप खाना खा। मैं पूछूंगी तो नही, क्यूंकि मुझे पता है तू बताएगा नही, तो फिर उन बाटोंपा मिट्टी डाल दे बेटा, जो हो गया से हो गया , अब उन बातो को याद कर के तकलीफ क्यूं सहनी??"

अभि ने रेखा की बात तो सुनी जरूर मगर कुछ बोला नहीं, और चुप छापने अपना पराठा खाने लगा....


क्या बता बेचारा, वो बातें, या वो यादें, जो हर पल याद आते ही अभि के दिल को अंदर ही अंदर रुला देती थी। क्या कहे वो किसी से? वो तो खुद अपने आप से कुछ नहीं कह पा रहा था। हर पल, है घड़ी बस यही अपने आप से कहेता रहता था की, जरूर ये कोई सपना है। पर अब तो उसे भी लगने लगा था की , शायद सपने भी अपनी मां से इतना प्यार करते है की , वो किसी को ऐसा सपना नही दिखते, जिन सपनो में मां बुरी हो। अभि की आंखे नाम थी, उसकी आंखों के समंदर में हजारों सवाल उस किनारे पर बैठे, लहरों से जवाब मांगने के इंतजार में थे , जिस किनारे पर वो लहरें कभी आती ही नहीं....


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"ये क्या बात हुई मुखिया जी, किं ठाकुराइन ने हमे हमारा खेत देने से इंकार कर रही है। हम खाएंगे क्या? एक हमारा खेत ही तो था। जिसके सहारे हम सब गांव वाले अपना पेट पालते है। अब्बागर ठाकुराइन ने वो भी ले लिया तो , हम क्या करेंगे ?"

गांव में बैठी पंचायत के बीच एक 45 सालबका आदमी खड़ा होकर बोल रहा था। पंचायत में भीड़ काफी ज्यादा थी। सब लोग की नज़रे मुखिया जी पर ही अटकी था।

"और ये मुखिया क्या बोलेगा? मुखिया थोड़ी ना तुम लोग को कर्ज दिया है, चना खिला के!! अरे कर्ज तो तुम लोग ने ठाकुरानी से लिया था। तो फैसला भी ठाकुराणी ही करेंगी ना। चना खिला के!!
और ठाकुराइन ने फैसला कर लिया है। की अब वो जमीन उनकी हुई, जिनपर वो एक कॉलेज बनवाना चाहती है....समझे तुम लोग....चना खिलाने ।"

"पर मुनीम जी, ठाकुराइन ने तो हम्बाब गांव वालोंसे ऐसा कुछ नही कहा था"

"तुम लोगो को ये सब बात बताना जरूरी नहीं, समझे!!"

इस अनजान आवाज़ ने गांव वालोंका ध्यान केंद्रित किया, और जैसे ही अपनी अपनी नज़रे घुमा कर देखें, तो पाया की ठाकुर रमन सिंह खड़ा था। ठाकुर को देखते ही सब गांव वाले अपने अपने हाथ जोड़ते हुए गिड़गिड़ाने लगे...

"ऐसा जानकारी मालिक, भूखे मार जायेंगे। हमारे बच्चे का क्या होगा? क्या खिलाएंगे हम उन्हे? जरा सोचिए मालिक।??"

"तू चिंता बनकर सोहन,, हम्बकिसी के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। हमने तुम सब के बारे में पहले से ही सोच रखा था।"

ठाकुर के में से ये शब्द सुनकर, गांवनवालोंके चहरेवपर एक आशा की किरण उभरने लगीं थी की तभी ....

" आज से तुम सब लोग, हमारे खेतो, बाग बगीचे और स्कूलों काम करोगे। मैं तुमसे वादा करता हूं,की दो वक्त की रोटी हर दिन तुम सब के थाली में पड़ोसी हुई मिलेगी।"

गांव वालो ये सुन कर सन्न्न रह गए, उन्हे लगा था की , ठाकुर रत्न सिंह उन्हे इनकी जमीन लौटने आया है, मगर ये तो कुछ और ही था। ठाकुर की बात सुनकर विहान गुस्से में तिलबिला पड़ा l और अपने सर बंधी पगड़ी को अपने गांठने खोलकर एक झटके में नीचे फेंकते हुए बोला....


सोहन --"शाबाश! ठाकुर, दो वक्त के रोटी बदले हमसे गुलामिंकरवान चाहते हो, मगर याद रखना ठाकुर, सोहन ना आज तक कभी किसी की गुलामी की हैं.... ना आगे करेगा।"

सोहन की बात सुनकर, ठाकुर रत्न सिंह हंसते हुए बोला....

"और भाई, मैं तो बस गांव की भलाई के बारे में सोच रहा था, भला हम्बक्यू गुलाम पालने लगे? जैसी तुंबलोगी की मर्जी, अगर तुम लोग को अपनी जमीन चाहिए, तो लाओ ब्याज सहित मुद्दल पैसा, और छुड़वा lo apni zameen।


"पर हां, सिर्फ तीन महीने, सिर्फ तीन महीने के समय देता हूं...उसके बाद जमीन हमारी। चलता हूं मुखिया जी...राम राम"


ये बोलकर ठाकुर रमन, अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से चला जाता हैं....गांव वाले अभि भी अपना हाथ जोड़े खड़े थे, फर्क सिर्फ इतना था की, अब उन सब की आंखे भी बेबसी और लाचारी के वजह से नाम थी.....
 

Game888

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Waiting.....
 

Raj_sharma

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लाश प्लांट करके और साधारण बना दी गई है, भगाया तो कोई बात नही कम से कम उसके घरवालों को ये भरोसा रहना चाहिए था की अभय जिंदा है।
मै भी ऐसा मानता हूं की समय नहीं करना चाहिए था, उसकी मा को ये एहसास होना चाहिए था की वो उसकी वजह से घर से भागा है, ओर एक दिन बड़ा होकर हीरो वापस गावों जाये पर हवेली मे ना जाकर आम गाव वालो के साथ रहे जबकी उसकी मा को पटा हो की वो उसका बेटा हैं, पर वो कुछ ना कर पाये।
तभी तो हिसाब बराबर होता।।
 

Raj_sharma

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भाई अगले अपडेट का इंतजार हे।।
पिछले अपडेट जितना टाइम मत लगा देना,
वरना कहानी से लगाव कम होता हैं,
आप खाली अपडेट परर ध्यान दे बाकी
व्यू अपने आप आएंगे
 

Jerry

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Awsm story bro
 
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