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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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अपडेट 12


अभय आज भी उस हवेली के ऊपर वाले कमरे को उसी नजरों से देख रहा था, जिस नजर से उस रात देखा था। एक पल के लिए वो अपने आप को शक्तिहीन और बेहद थका हुआ प्यासा महसूस करने लगा। जैसे उस रात वो तुफानो से लड़ता हुआ थक हार कर उस ट्रेन तक पहुंचा से जहां से आखिरी बार उसने हवेली का वो कमरा देखा था।

वो दृश्य याद कर कर अभय का दिमाग उलझन में तो दिल दुख में समा गया । पर तभी ट्रेन रुकी, अभय की तंद्रा भंग हुई, और अब उसे अपनी नजरों के सामने उसके गांव का स्टेशन था। अपने कंधो पर बैग टांगे उसने स्टेशन पर अपना पहला कदम रखा। आज वो बच्चा नहीं था। बच्चा तो वो तब भी नही था जब वो घर छोड़ कर भाग था। खाली कद छोटा था , पर आज वो कद से भी बड़ा था।

गांव में कदम रखते ही, उसके दिल को एक अजीब सा सुकून मिला। उसे ऐसा लग रहा था मानो आज इतने सालो बाद भी उसे अपने गांव में आकर अजनबी नही लग रहा था। अभय ने एक बार चारो तरफ स्टेशन की तरफ देखा और स्टेशन से बाहर निकल कर बाहर सड़क पर आ गया। वो कच्ची सड़क अब पक्की हो गई थी। अभय को वहां से अपना गांव साफ साफ दिखाई दे रहा था। अपने गांव को देखते ही उसके मन में हर्षो उल्लास के कीड़े दौड़ने लगे। और वो बिना देरी किए , अपने कदम पक्की काली सड़क पर बढ़ाते हुए अपने गांव की तरफ चल दिया।

अभय रास्ते पर चलते हुए उन सब जगहों से गुजरा , जहा उसका बचपन खेल कूद रहा था। वो नदी, जिस में वो अपने छोटे दोस्तो के साथ घूमने और नहाने आया करता था। वो आम का बगीचा, जिस बगीचे में अभय अक्सर पायल को घुमाने ले कर आया करता था। और अंत में सड़क के तीन मोहाने पर पहुंच कर, जैसे अपने गांव वाली सड़क पर पैर रखा। उसके सामने अमरूद का बड़ा सा बगीचा नजर आया।

उस अमरूद के बगीचे को देखकर अभि के चेहरे के भाव बदल गए। पल भर में ही खुशनुमा चेहरा क्रोध की अग्नि में भभकने लगा। अभय को न जाने क्या हुआ और वो अपना बैग सड़क के किनारे फेंकते हुए जोर जोर से गुस्से में चिल्लाने लगा। उसके उपर गुस्से का भार बढ़ता जा रहा था। वो इस तरह गुस्से में पगला गया की , तीन मोहाने पर टंगा ठाकुर परम सिंह डिग्री कॉलेज का वो लोखंड का बोर्ड, उखड़ने लगा। क्या हो गया था अभि को, की उसे इतना गुस्सा आया की वो डिग्री कॉलेज का बोर्ड उखाड़ कर फेंकने में जुट गया। हालाकि वो बोर्ड काफी मजबूती से गड़ा था। जो अभी के अकेले उखड़ने के बस से बाहर था। मगर अभी गुस्से में बौखलाया, जब बोर्ड नही उखड़ा तो वही शांति से अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ जाता है। और खुद को समझते हुए खुद कोठी शांत करने लगा।

अभि कुछ देर तक उस मोड़ पर यूं ही बैठा रहा। तभी उसके ख्यालों में पायल का जिक्र आया। और वो तुरंत ही शांति की आगोश में चला गया। एक ठंडी सास लेते हुए, अपने आप को देखते हुए खुद से मन में बोला.....

"क्या कर रहा है तू अभी, खुद को तकलीफ क्यूं दे रहा है। तकलीफ तो तुझे देना है, याद रख, या कहीं लिख ले। यूं हीं छोड़ दिया तो सबक नही मिलेगा। लेकिन अभी तेरा काम है अपने बाप के उन सवालों का पता लगाना। खुद को शांत कर, इन्हे अपनी सच्चाई मत बता। की तू ही अभय है, नही तो शायद तेरे बाप के सवालों को खोजने में तेरे रास्ते में कांटे ही कांटे बीछे मिलेंगे। इसीलिए नॉर्मल बिहेव कर, जैसे तू इस गांव के लिए नया है और सिर्फ पड़ने आया है। मगर पायल का क्या? उससे तो दूर नहीं रह सकता ना? और उससे दूर कहा ही, उसके पास ही तो रहूंगा, बस कुछ समय के लिए उसे अपनी असलियत से बेखबर रखना है। समय आने पर उसे भी पता चलेगा तो जरूर समझेगी, वो।"

अभय खुद से ही सवाल जवाब करने लगा था। तभी उसे गाड़ी की हॉर्न सुनाई दी। पलट कर देखा तो एक सफेद रंग की ह्युंडई क्रेटा कर खड़ी थी जो लगातार हॉर्न बजा रही थी। होश में आया तो अभी पाया की वो रास्ते के बीचों बीच खड़ा है। अभय अपने कदम उस कार की तरफ बढ़ाते हुए कार के नजदीक पहुंचा। और कर के कांच को अपनी हाथ के उंगलियों से खटखटाया....

कुछ ही पल में कांच नीचे घिसकाने लगा , और अभि के नजरों के सामने कार के अंदर का नजारा दृष्मान होने लगा । अभि आधा ही कांच नीचे घिसका था की, अभय के चेहरे कबरंग फिर से गायब हो गया। उसके हाथ पांव में अजीब सिरहन उठाने लगी। दिल जोर जोर से धड़कने लगा। आंखें भी हैरत से चौड़ी हो चुकी थी। तभी उसके कानो में एक आवाज गूंजी...

"कौन हो बेटा? कहा जाना है तुम्हे?"

ये मीठी सी आवाज भी अभय को नीम के पत्तो की तरह कड़वी सी लगी। अभि के आंखो पर यकीन नही हो रहा था की, वो जिसे देखना भी नही चाहता था, वही उसकी आंखो के सामने थी आज। जी हां कर के अंदर ड्राइविंग सीट पर संध्या बैठी थी। बरसो बाद अभि अपनी मां का चेहरा देख रहा था। अगर उसकी यादों में उसकी मां का जरा सा भी प्यार सुमार होता। तो अभि तुरंत पिघल जाता और अपनी मनके गले लग जाता। पर अभी की यादों में उसकी मां की कोई जगह नही थी। आज उसकी मां उसकी आंखो के सामने थी पर फिर भी, अभि के दिल में सिर्फ जलन और गुस्सा ही था अपनी मां के लिए।

अभय की आंखे सीधा संध्या की आंखो मे ही झांक रही थी। और संध्या भी कुछ पल के लिए अभी के आंखो में को से गई। चुटिया थी संध्या इतना भी नही नहीं समझी की उसकी आंखो में झांक कर देखने वाली निगाह गुस्से और जलन की चिंगारी है। पर संध्या भी खामोश एक पल के लिए अभी की आंखो में देखती रही,।

"कौन है दीदी?"

एक और आवाज ने अभि के कानो पर दस्तक दी। अभय देख तो नहीं सका की किसकी आवाज है, पर आवाज से जरूर पहेचान गया था की ये आवाज उसकी चाची मालती की है। पर इससे भी अभि को कोइनफार्क नही पड़ा।

संध्या --"एक लड़का है, कहा जाना है बेटा? नए लगते हो इस गांव में?"

अपनी मां की बात सुनकर, अभि मुस्कुरा पड़ा, और बोला...

अभि --"मुझे तो आप नई लगती है इस गांव में, नही तो मुझे जरूर पहेचान लेती। मैं तो पुराना चावल हूं इस गांव का। आप इस गांव की बदचलन...आ...मेरा मतलब बहुत ही उच्च हस्ती की ठाकुराइन है। हजारों एकड़ की जमीन है। और आपका ना मिस संध्या सिंह है। जो बी ए तक की पढ़ाई की है, और वो भी नकल कर कर के पास हुई है। नकल करने वाला कोई और नहीं बल्कि आपके पतिदेव ठाकुर मनन सिंह जी थे। इतना काफी है मेरे गांव का पुराना चावल होने का की कुछ और भी बताऊं।"

संध्या के कान पर से फड़फड़ाती हुई चिड़िया उड़ गई हो जैसे, मुंह खुला का खुला, आंखो और चेहरे पर आश्चर्य के भाव और सबसे बड़ी बात वो अपने आप में ही नही थी। वो आंखे फाड़े अभि की बस देखती रह गई...अभी ने जब संध्या के भाव देखे तो, उसने कांच के अंदर हाथ बढ़ाते हुए संध्या के आंखो के सामने ले जाकर एक चुटकी बजाते हुए...

अभि --"कहा खो गई मैडम? आपने कहीं सच तो नही मान लिया? मेरी आदत है यूं अजनबियों से मजाक करने की।"

संध्या होश में तो जरूर आती है, पर अभी भी वो सदमे में थी में थी। पीछे सीट पर बैठी मालती, ललिता का भी कुछ यूं ही हाल था। तीनो को समझ में नहीं आ रहा था की, ये सारी बाते इस लड़के को कैसे मालूम? और ऊपर से कह रहा है की ये मजाक था। संध्या का दिमाग काम करना बंद हो गया था,।

संध्या --" ये...ये तुम मजाक कर ...कर रहे थे?

ये सुनकर अभि मन ही मन गुस्से की मुस्कान हंसते हुए मुस्कुरा कर बोला --

अभि --"मैडम कुछ समझा नहीं, आप क्या बोल रही है? वर्ड रिपीट मत करिए, और फिल्मों के जैसा डायलॉग तो मत ही मरिए, साफ साफ स्पष्ट शब्दों में पूछिए।"

संध्या --"मैंकः रही थी की, क्या तुम सच में मजाक कर रहे थे?"

अभि --"मैं तो मजाक ही कर रहा था, मगर अक्सर मेरे जानने वाले लोग कहते है की , मेरा मजाक अक्सर सच होता है।"

संध्या , ललिता और मालती अभि भी सदमे में थे। तीनो अभि के चेहरे को गौर से देख रही थी, पर कुछ समझ नहीं पा रही थी। बस किसी मूर्ति की तरह एकटक अभि को देखे जा रही थी।

अभि --"मुझे देख कर हो गया हो तो, कृपया आप मुझे ये बताएंगी की , ठाकुर परम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज के लिए कौन सा रास्ते पर जाना होगा?"

तिनोंके चेहरे के रंग उड़े हुए थे, पर तभी संध्या ने पूछा...

संध्या --"नए स्टूडेंट हो क्या तुम?"

अभि मुस्कुराते हुए एक बार फिर से बोला...

अभि --"जाहिर सी बात है, आज से कॉलेज स्टार्ट हुए है तो, इस गांव में स्टूडेंट ही आयेंगे ना। कोई टूरिस्ट प्लेस तो है नही ये, जो कंधे पर बैग रख कर घूमने आ जायेगा कोई।"

संध्या --"बाते काफी दिलचस्प करते हो तुम।"

अभि --"अब क्या करू , जब सामने इतनी खूबसूरत औरत हो तो दिलचस्पी खुद ब खुद बढ़ जाती है।, वैसे ,मेरा नाम अभय है। अच्छा लगा आपसे मिलकर।"

ये नाम सुनते ही, पीछे बैठी ललिता और मालती फटक से दरवाजा खोलते हुए गाड़ी से नीचे उतर जाति है। और बहार खड़े अभि को देखने लगती है। संध्या की तो मानो जुबान ही अटक गई हो, गला सुख चला। तीनो की हवाइयां उड़ चुकी थी, और संध्या का चेहरा तो देखन लायक था , इस कदर के भाव चेहरे पर अर्जित थे किं शब्दों में ब्यक्त करना उस भाव की बेइज्जती होगी।

इधर अभि मन ही मन खूब मस्त होते जा रहा था, और खुद से बोला....

"अभि तो शुरुवात है, ठाकुराइन। आगे ऐसे ऐसे सदमे दूंगा की, सदमे को भी सदमा लग जायेगा। बस एक बार मुझे मेरे बाप के जिंदगी का वो पन्ना मिल जाए जिनपर उन्होंने वो सवाल लिखे है। फिर तो तुम लोगो के जिंदगी के पन्नो पर मैं ऐसे सवाल लिखूंगा की कभी सॉल्व ही नही होगा।"

अभि --"क्या हुआ आप को मैडम, कब से देख रहा हूं,बोल कुछ नही रही हो, सिर्फ गिरगिट की तरह चेहरे के रंग बदल रही हो बस। लगता है इस चीज में महारत हासिल है आपको!!"

संध्या सच में गहरी सोच में पड़ गई थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी , उसका सिर भी दुखने लगा था। वो कार के अंदर बैठी होश में आते हुए बोली...

संध्या --"आ जाओ बैठो , मैं तुम्हे...हॉस्टल तक छोड़ देती हूं।"

अभि --"ये हुई न बात, काम की बात आप थोड़ा रंग बदलने के बात करती है, i like it।"

फिर अभि कार में बैठ जाता है, ललिता और मालती भी सदमे में थी। तो वो भी बिना कुछ बोले कार में बैठ गई। कर हॉस्टल की तरफ चल पड़ी। संध्या चला तो रही थी कार, पर उसका ध्यान पूरा अभि पर था। वो बार बार अभि को अपनी नज़रे घुमा कर देखती । और ये बात अभि को पता थी..

अभि --"मैडम अगर मुझे देख कर हो गया हो तो, प्लेस आगे देख कर गाड़ी चला लो, नही तो अभि अभि जवानी में कदम रखा हूं, बिना कच्छी काली तोड़े ही शहीद ना हो जाऊ,।"

ये सुनकर संध्या के चेहरे पर अचानक ही मुस्कान फैल गई। उसके गोरे गुलाबी गाल देख कर अभि बोला...

अभि --"लगता है खूब बादाम और केसर के दूध पिया है आपने?"

ये सुनकर संध्या सकते में आ गई और बोली...

संध्या --"क्यूं? तुम ऐसे क्यूं बोल रहे हो"

अभि --"नही बस आपके गुलाबी गाल देख कर बोल दिया मैने, वैसे इतनी बड़ी जायदाद है, बादाम और केसर क्या चीज है आपके लिए।"

अभि की बात सुनकर संध्या ने कुछ सोचते हुए बोला...

संध्या --"क्यूं क्या तुम्हारी मां तुम्हे बादाम के दूध नही पिलाती है क्या?"

ये सुनकर अभि जोर जोर से हंसने लगा, अभि को इस तरह हंसता देख संध्या आश्चर्य के भाव में बोली...

संध्या --"क्या हुआ कुछ गलत पूंछ लिया क्या?"

अभि --"नही गलत तो नहीं था, पर सवाल पूरा नही था। आप किस मां की मां की बात कर रही है, जिसने मुझे जन्म दिया है या जिसने मुझे सहारा दिया है।"

अभि की बातें संध्या के दिल की धड़कने धीरे धीर बढ़ाए जा रही थी। उसे बेचैनी सी हो रही थी।

संध्या --"मैं कुछ समझी नहीं, जन्म देने वाली कभी तो मां होती है।"

अभि --"इसी लिए आपको बि ए कि डिग्री के लिए नकल करना पड़ा था। मां का कोई रूप नही होता, मैडम। मां किसी भी रूप में अपने बच्चे पर प्यार लुटाने आ जाति है। जैसे मेरी जिंदगी में आई, खैर छोड़ो वो सब , तुम जन्म देने वाली मां किंबात कर रही थी ना। तो बात ये है की अगर मेरी मां का बस चलता तो बादाम और केसर वाली दूध की जगह जहर वालीं दूध दे देती। थोड़ा समय लगा पर मैं समझ गया था। इस लिए तो मैं अपनी मां को ही छोड़ कर भाग गया था।"

अभि अपनी बात खत्म ही किया था की , संध्या ने जोरदार ब्रेक एक झटके में लगाते हुए गाड़ी रोक दिया। उड़ चुके चेहरे के भाव को लिए संध्या ने पूछा।

संध्या --"अपनी मां को छोड़ कर भाग गए, ये ...ये भी तो हो सकता है की तुम्हे अपनी मां को समझने में भूल हुई हो।"

अभि अपनी मां की बात सुनकर, मन ही मन मुस्कुराया, वो समझ गया था की उसे जो काम करना था वो कर दिया है, बस अब एक और दांव बाकी था, जो अब अभि अचलने वाला था। अभि अब गुस्से में थोड़ा गुर्राते हुए बोला...

अभि --"पहेली बार सुन रहा हूं की, एक बच्चे को भी अपनी मां को समझना पड़ता है, कौन है आप, इतनी भी अकल नही है तुम्हे की मां बेटे का प्यार पहले से ही समझा समझाया होता है।"

कहते हुए जब अभि ने अपनी मां की तरफ देखा तो संध्या के आंखो से आसुओं किंधरा फुट रही थी। ये देख कर अभि मन में खुद से बोला...

"कमाल है, ये रोती भी है।"

संध्या --"अगर तुम्हे , बुरा न लगे तो एक बात पूछूं।"

अभि --"नही, कुछ मत पूछो, तुमने ऑलरेडी ऐसे सवाल पूछ कर हद पार कर दी है। मैं यह पढ़ने आया हूं, और मै नही चाहता की मेरा दिमाग किसी भंवर में फंसे।"

संध्या --"मैं तो बस ये कहें चाहती थी की, अगर तुम्हे हॉस्टल में तकलीफ हो तो , मेरे साथ रह सकते हो।"

संध्या की बात सुनकर अभि बोला...

अभि --"जब साल की उम्र में घर छोड़ा था , तब तकलीफ नहीं हुई तो अब क्या होगी? तकलीफों से लड़ना आता है मुझे, मैं दो रोटी में ही खुश हु, आपकी हवेली के बादाम और केसर के दूध मुझे नही पचेंगे। और वैसे भी तुम्हारा कोई बेटा नहीं है क्या? उसे पिलाओ भर भर के।"

संध्या खुद खुद को संभाल नहीं पाई और कर से रोते हुए बाहर निकल जाति है...

ये देख कर अभि भी गुस्से में अपना बैग उठता है और कर से बाहर निकल कर अपने हॉस्टल की तरफ चल पड़ता है, अभि को बाहर जाते देख, खामोश बैठी मालती की भी आंखो में आसुओं की बारिश हो रही थी, वो बस अभी को जाते हुए देखती रहती है.....

पर अभी एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता...
Ab Ispr kya hi kahu bhai maze se Jubaan pr tala lag gya hai or maza itna aaya Ise padh kr li dil amaze ho gya dimag mind blowing ho gya...

Abhay ne jis Tarah se punch pe punch mare hai Sandhya ki Har ek baat pe or last me apna naam Abhay btakr bomb foda hai uske liye :bow:

Malti shock me hai abhi lekin jald hi vo Sandhya ko Abhay ki bato ka dhyan karva karva kr tane jarur maregi ki dekh lo ek bahar ka aaya chhota sa ladka tumhe aina dikha kr chla gya, use Itni samajh hai or tum Itni badi hokr bhi aise jindgi ji rhi ho Jaise koi 8 saal ka baccha...

Superb jabarjast amazing lajavab sandar update bhai :applause:
 

A.A.G.

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Us Bechare naukar ko thappad maar kr Sandhya kya jtana chahti hai ki Vo Jo bol rha hai Vo galat hai ya jo Sandhya ne kiya vo sahi tha, idhar munim ne bina Sandhya ke order ke us naukar ko putva diya pr Sandhya ne us munim ki baat jo uske bete ko leke kahi ki dhup me khda rkha, usko sirf naukari se hi nikala, sahi hai ek gareeb tha to uske pit Jane pr sirf puchha ki kisne order diya or khud ke bete ko dhup me Khada rkha jaankr bas bahar ka rasta dikha diya use...

Ye Kon mahila thi jiske bete ko pit diya hai or vo Sandhya ko galiya bak rhi hai use bhi dur bhaga diya pr uski puri baat to suni hi nhi ki akhir Kisne uske bete ko pita tha...

Abhay train me baith gya hai or Aaj bhi Usne Rekha ji se paise nhi liye pr Aaj Usne dono ke pair jarur chhuye jo darsata hai ki muh se chahe Vo Seth ko gobar hi kahta ho pr dil se bahut ijjat karta hai or yha to Rekha ji ko uthne vali chij pr or uthane ka Samay aa gya hai uska bhi, isaro isaro me bta gya ki launda jvan Ho gya hai...

Superb bhai lajvab amazing Jabardast update sandar
bhai mai yaha aapki baat se sehmat hu..matlab uss ballu ko jo sach bol raha tha usko pita jiski koi galti bhi nahi thi lekin jis munim ne sandhya ke bete ko itni gandi saja di usko sirf kaam se nikal diya..apne bete ke sath itna anyay huva sunkar sandhya ko uss munim ko bhi pitna chahiye tha..lekin sandhya ne sirf usko kaam se nikal diya..abhay ab sandhya ko aisi saja dega ki uski bhi rooh kamp jayegi..!!
 

A.A.G.

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Raman ko aise mana ke dena Sandhya ko bhari pad sakta hai dekhte hai, din me munim ko nikala aur raat me Raman ko apne kamse se hi nhi Balki apne sarir ko chhune se bhi dur kr diya, Dekhte hai Raman Ispr kya karta hai aage...
bhai sandhya ne jaise raman ko mana kiya ki woh uske sath koi rishta nahi rakh sakti..iska matlab yeh toh nahi ki abhay ke jane ke baad bhi yeh sandhya iss harami raman se chud rahi ho..agar aisa hai toh sandhya ko uss aurat ne aur abhay ne sahi bola ki yeh badchalan aurat hai..aur uss aurat ne toh randi bhi bol diya..abhay jarur sandhya ko iss baat ka ehsas dilwayega aur yeh bhi ki woh kitni giri huyi aurat hai..!!
 

Mahendra Baranwal

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अपडेट 9

गर्मी के दिन थे, ठंडी हवाएं चल रही थी। अजय गांव के स्कूल के पुलिया पर बैठा था। उसके साथ दो और लड़के बैठे थे, सूर्य डूबने को था और अपनी ठंडी लालिमा धरती पर बिखेरे था।

अजय और वो दोनो लड़के आपस में बाते कर रहे थे।

"यार अजय अब तो छुट्टी के दिन भी बीत गए, कल से कॉलेज शुरू हो रहा है। फिर से उस हराम अमन के ताने सुनने पड़ेंगे।"

इस लड़के की बात सुनकर पास खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"सही कहब्रहा है यार राजू तू। भाई अजय सच में , ये ठाकुर के बच्चो का कुछ न कुछ तोनकारना पड़ेगा।"

उन दोनो की बात सुनकर अजय बोला --

अजय --"क्या कर सकते है, झगड़ा करेंगे, अरे उन लोगो का चक्कर छोड़ो, और जरा पढ़ाई लिखाई में ध्यान लगाओ। हमारे पास कुछ बचा नही है, जो जमीन थी, वो भी उस हराम ठाकुर ने हड़प ली, अब तो सिर्फ पढ़ाई लिखाई का ही भरोसा है। अपना यार आज होता तो जरूर अपने लिए कुछ करता। पर वो भी हमे छोड़ कर उन तारों के बीच चला गया। मुझे तो अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है की, जंगल में मिली वो लाश अभय की थी।"

अजय की बात सुनकर, वहा खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"भाई, मुझे एक बात समझ नही आई?"

अजय --"कैसी बात?"

"यही की अपने अभय की लाश जंगल में पड़ी मिली, पर पुलिस कुछ नही की। कोई जांच पड़ताल कुछ नही। और अभय की मां ने भी पता लगवाने की कोशिश नही की।"

अजय --"अरे लल्ला, इन ठाकुरों की बात मुझे समझ नहीं आती। पर इतना जरूर पता है की अभय की जान किसी जंगली जानवर की वजह से नहीं गई है, बल्कि किसी इंसानी जानवर किंवजः से ही गई है।"

अजय की बात सुनकर वांडोनो लड़के अपना मुंह खोले अजय को देखते हुए पूछे...

लल्ला --"ये तुम कैसे कह सकते हो?"

अजय --"क्यूंकी अभय के पापा ना अभय को...."

कहते हुए अजय रुक गया , और बात पलटते हुए बोला

अजय --" छोड़ो, अब क्या फ़ायदा? अब को रहा ही नही उसके बारे में बात करके अपने और उसके दुखी को क्यूं कुरेदें। चलो घर चलते है, कल से कॉलेज शुरू होने वाला है, आज छुट्टी का अखिरीं दिन है।"

ये कह कर सब अपने अपने घरों के रास्ते पर चल पड़े...

_______________________

अभि आज जब स्कूल से अपना मार्कशीट लेकर घर आया तो, उसका चेहरा उतरा था। वो मायूस लग रहा था। वो घर में प्रवेश करते ही अपने कमरे में चला गया। रेखा घर का काम कर रही थी, उसने अभय को कमरे में जाते हुए देख ली थी, और वो देख कर समझ गई थी की अभय जरूर कुछ उदास है। रेखा झट से किचन की तरफ जाति है, और एक ग्लास में पानी भर कर अभि के कमरे में आ जाती है।

उसने देखा अभि अपने चेहरे को हथेली में भरे नाचे सिर किए हुए बेड पर बैठा है। इस मुद्रा में अभी को बैठा देख कर कोई भी बता सकता था की, अभि कोई न कोई परेशानी में है। रेखा अब घबराने लगी थी। उसका दिल ना जाने क्यूं धड़कने लगा, और अपने आप को रोक न सकी। वो तड़प कर अभि के नजदीक पहुंच गई, और अपने हाथो को अभि के सिर पर प्यार से फेरते हुए अभी के बगल में बैठ गई, और बोली...

रेखा --"क्या हुआ मेरे लाल को? इस तरह से सिर पर हाथ रख कर बैठ कर, मेरे सीने में तूफान क्यूं मचा रहा है। बता अब क्या बात है?"

रेखा का कोमल हाथ अपने सिर पर स्पर्श पाते ही, अभि अपने चेहरा ऊपर उठता है , और रेखा की बातो का जवाब देते हुए बोला...

अभि --"किया बताऊं आंटी, सब कुछ अच्छा चल रहा था, जो जिंदगी मैं पीछे छोड़ कर आगे बढ़ा था, आज वही जिंदगी मुझे फिर से बुला रही है।"

अभि की बाते रेखा को समझ में नहीं आई, वो अभी भी अभि के सिर को प्यार से सहलाते हुए बोली,

रेखा --"पिछली जिंदगी, क्या बात कर रहा है मुझे तो कुछ समझ नहीं आबरा है।"

रेखा की बात सुनकर, अभि बोला...

अभि --"सरस्वती ज्ञान मंदिर की तरफ से मेरी आगे की पढ़ाई के लिए, मेरा एडमिशन जिस कॉलेज में हुआ है। उस कॉलेज का नाम ठाकुर परम सिंह इंटर मीडिएट कॉलेज है।"

अभि किंबाट सुनकर , रेखा थोड़ा हैरान हुई और बोली...

रेखा --" हां, तो इसके उदास होने जैसी क्या बात है?"

अभि --"ये मेरे दादा जी का कॉलेज है,। दौलतपुर शहर का सबसे जाना माना कॉलेज।"

रेखा के लिए ये बातें नई थी, क्युकी अभि ने रेखा को अपने अतीत के बारे में कभी नहीं बताया था। वो थोड़ा आश्चर्य होकर बोली...

रेखा --"दादा जी का कॉलेज??"

अभि --" इतना चौकों मत आंटी, ऐसी बहुत सी बाते है मेरे अतीत की, अगर बता दी, तो पैरो तले जमीन खिसक जाएगी। आपको क्या लगता है, इतनी छोटी सी उम्र में मैं घर छोड़ कर क्यूं भागा? जरूर कोई ना कोई वजह तो रही होगी? नही तो जिस उम्र में बच्चे को घर परिवार,, मां बाप का साया चाहिए होता है, उस उम्र में मैं वो साया छोड़ कर दुनिया के वीराने में भटक रहा था। और आज वही साया मुझे फिर से बुला रहा है। मैं समझ नही पा रहा ही आंटी, की ये सिर्फ एक इत्तेफाक है या फिर कुछ और।"

रेखा तो बस अपने कान खड़े किए हुए सुनती जा रही थी।

रेखा --"इसका मतलब , तेरा...भी घर परिवार है, तेरे भी मां बाप है?"

ये सुनकर अभि एक झूठी मुस्कान की छवि अपने चेहरे पर लेट हुए बोला...

अभि --"मां...,, मां तो कब की जा चुकी थी। आज हो कर भी वो नही है। पर मेरे पापा, मेरे पापा इस दुनिया में ना होकर भी मेरे साथ हमेशा रहते है। मां की कभी याद आई ही नहीं, याद आने जैसा हमारे बीच वो प्यार ही नही था। पापा की बहुत याद आती है, वो हमेशा मुझसे कहते थे, की बेटा दुनिया एक माया जाल है, कोइबटेरा नही है, तू खुद का दोस्त है ये समझ कर जिंदगी जिएगा तो हमेशा खुश रहेगा, किसी और की जिंदगी से अपनी जिंदगी जोड़ेगा तो कभी न कभी तकलीफों के भंवर में फस कर दम तोड देगा। क्या करता? छोटा था ना,उनकी बात कभी समझ ही नही पता था। ना जाने कैसी कैसी बाते बोलते थे, जो कई कभी समझ ही नही पता था। पर एक दिन उनके जाने से पहले, वो रात मुझे आज भी याद है। पापा मेरे कमरे में आए, और मुझे अपने गोद में लेकर बड़े ही प्यार से बोले,

"बेटा अभय, मैने तेरे लिए एक सवाल छोड़ा है। जब तू बड़ा हो जायेगा ना, तब वो सवाल तू मेरी जिंदगी के कोरे पन्नो के बीच वाले पन्नो पर लिखा पाएगा। जिस दिन तू वो सवाल ढूंढ लेगा, तुझे तेरे बाप का वो उत्तर मिलेगा की मैं अपने बेटे से क्या चाहता हूं?"

उस रात भी मुझे पापा की बात समझ नही आई, की वो क्या कहें चाहते है? वो रात वो मेरे पास ही सो रहे थे, पर जब अगली सुबह मेरी आंख खुली तो पापा अपनी आंखे बंद कर चुके थे। मैं बहुत रोया था। मुझे उतनी तकलीफ तब भी नही हुई थी जब मैं घर छोड़ कर भाग रहा था।"

रेखा का दिल भर आया, वो अभी अभी की तकलीफ सुन रही थी, वो अंदाजा तो लगा सकती थी की अभि किस तकलीफ में अपने घर से भगा था। मगर पूछ कर अभि की और तकलीफ नहीं बढ़ाना चाहती थीं, इसीलिए वो सामान्य अवस्था में होकर बोली...

रेखा --" तू...तू ये सब सोचना छोड़, हम किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले लेंगे। तुझे वहा जाने की जरूरत नहीं है।"

अभि --" जरूरत है, आंटी। मुझे लगता है पापा के उस सवाल को ढूंढने का वक्त आ गया है। उस रात तो मैं कुछ समझ नहीं पाया। पर आज उस रात को जब भी याद करता हूं तो मुझे पापा का वो मायूस चेहरा याद आता है। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहें चाहते थे। पर शायद मैं बच्चा था इसलिए उनकी जुबान से वो शब्द निकल ना पाए। पर मुझे यकीन है, की वो सारी बातें मुझे उनके सवाल को ढूंढ कर जरूर मिल जायेगा।"

रेखा के दिलनमे बेचैनी बढ़ने लगी थी, वो अभी को रोकने तो चाहती थी, पर वो जानती थी की अभि अब रुकने वाला नही है, क्युकी अगर सिर्फ पढ़ाई की ही बात होती तो एक बार के लिए अभी दुबारा अपने गांव जाने का खयाल भी नही लता। पर अब उसके सामने उसके पिता का एक सवाल था, जो उसकी मंजिल बन कर खड़ी थी...

रेखा --"ठीक है, कब निकलना है? और खाना पीना अच्छे से खाना। पैसे की चिंता मत करना, जीतने जरूरत पड़ने मांग लेना, हां पता है की तू खुद्दार है, अपने दम पर जीना सिखा है पर.....

रेखा बोल ही रही थी की अभि ने ने रेखा को गले से लगा लिया। रेखा का तो दिल दिमाग सब हिल गया। वो पूरी तरह से भाउक हो कर रोने लगी।

अभि --"मैं छोड़ कर कही जा थोड़ी रहा हूं, पता है मुझे तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो आंटी। इतने सालो तक जो प्यार और दुलार मुझे तुमसे मिला उसकी तो आदत ही नही थी मुझे। मैं कभी खुद को अकेला नहीं पाया। तो फिर मैं तुमको कैसे छोड़ सकता हूं, और हां बस कुछ दिनों के लिए जा रहा ही, उसके बाद आ जाऊंगा उस गोबर का सर खाने।"

कहते हुए रेखा और अभि दोनो हंस पड़ते है, रेखा अपने आंख के बहते मोतियों को पूछते हुए बोली...

रेखा --"तुझे पता है, एक बार मैं भी मां बनी थी, बहुत खुश थी, ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी मिल गई । पर एक रात वो रोने लगा, 1 साल का था। उसकी रोने की आवाज मैंस नही पाई, रोता वो था पर जान मेरी निकल रही थीं। हॉस्पिटल लेकर पहुंचे तो उसका रोना बंद हो गया । पर क्या पता था की वो आखिरी बार रोया था। मां थी ना, पागल हो गई थी, उसकी वो रोने की आवाज आज भी मुझे चैन से सोने नहीं देती। Khokh सुनी हुई तो जैसे दुनिया ही सुनी हो गई। फिर तू आया, ऐसा लगा वही वापस आ गया मेरी जिंदगी में, हमने भी औलाद की लालच वश तुझे घर में बिना कुछ जाने सोचे विचारे रख लिया। पर ये लालच नहीं, ये तो एक मां का प्यार है जो तुझ पर बरसाने के लिए तड़प रही थी।"

अभि अपनी गहरी निगाहों से रेखा की तरफ देखते हुए बोला...


अभि --"क्या सच में मां इतनी प्यारी होती है?"

अभि की बातो को सुनते हुए, रेखा अपने हाथो को उसके सिर पर रखते हुए बोली...

रेखा --"मां ऐसी ही होती है, बस अपनी मां को एक बार समझने की कोशिश करना। हो सके तो अपनी मां को एक मौका जरूर देना।"

ये सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला.....

अभि --"फिर तो तुम्हारा पत्ता कट जायेगा.।"

ये कह कर अभि और रेखा दोनो हंसने लगते है।

अभि --"अच्छा आंटी, वो जो औरत मार्केट में चूड़ियां लेकर आती थीं। कुछ महीनो से दिखाई नहीं दी, आपको पता है की वो कहा रहती है??"

अभि की बात सुनकर, रेखा अभि की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली...

रेखा --"क्या बात है? आखिर ये चूड़ियां किसके लिए? कौन है वो, जो मेरे बेटे को फंसा ली?"

ये सुनकर अभि शर्मा गया और हंसते हुए बोला...

अभि --"अरे आंटी तुम भी ना, मुझे भला कौन फसाएगी? वो तो बचपन की एक दोस्त है गांव की, उसे चूड़ियां बहुत पसंद है, कभी कभी मैं मां की चूड़ियां चुरा कर उसके लिए ले कर जाता था।"

रेखा --"अच्छा...! तो बचपन का प्यार है। तब तो चूड़ियां लेनी पड़ेगी, ठीक है मैं ले कर आ जाऊंगी । पर अभी तू चल और कुछ खा पी ले, सुबह से भूखे पेट घूम रहा है..."

उसके बाद अभि और रेखा दोनो एक साथ कमरे से बाहर निकल जाते है......
Bahut hi emotional update
 

Hemantstar111

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वो तो है अलबेला
रास्ते पर चल रहा अभि, खुद से ही कुछ न कुछ सवाल कर रहा था , पर उसके सवाल का जवाब ना ही उसका दिल दे रहा था और ना ही उसका दिमाग। इतने सालो बाद अपनी मां को देखकर, उसे इतना गुस्सा आखिर क्यूं आ गया? अभय भी कभी कभी सोचता इसके बारे में, लेकिन फिर अपनी मां की वो छवि उसकी आंखो के सामने दृश्यमान हो जाती, जिस छवि से वो बचपन से वाकिफ था। फिर उसको दिल को एक सुकून मिलता, की जो किया वो सही किया।

अभि रात भर सोया नही था, उसका सिर दुखने लगा था। उसकी आंखे भारी होने लगी थी, उसे नींद का एहसास होने लगा था। कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो 11:३० है रहे थे, अभी ने रात से कुछ खाया भी नही था। तो उसे भूख तो लगी थी, पर नींद उसे अपने पास बुला रही थी। वो जल्द ही कॉलेज हॉस्टल के सामने पहुंच गया था। वो हॉस्टल में कदम रखने ही वाला था की, उसके नजर हॉस्टल से थोड़ी दूर वाले खेत पर पड़ी। जहां कुछ आदमी काम कर रहे थे, वो उस खेत में फावड़ा लेकर खुदाई कर रहे थे। ये देख कर ना जाने अभि को क्या हुआ, इसके चेहरे पर गुस्से के भाव उमड़ पड़े।

वो करीब करीब भागते हुए वहा पहुंचा जिस खेत में खुदाई हो रही थी।

"ऐ रुक, क्या कर रहा है तू ये? ये पेड़ क्यूं काट रहा है? तुझे पता नही की हरे भरे पेड़ को काटना किसी के मर्डर करने के बराबर है।"

अभि एक दम गुस्से में बोला...

अभि की गुस्से भरी आवाज सुनकर, बहा काम कर रहे सभी मजदूर सकते में आ गए, और अभि को प्रश्नवाचक की तरह देखने लगे। उन मजदूरों में से एक आदमी , को शायद वह खड़ा हो कर काम करवा रहा था वो बोल...

"और छोरे, क्यूं हमारा समय खोटी कर रहा है। तुम्हें पता नही की यह एक डिग्री कॉलेज बनना है। और हम उसी की नीव खोद रहे है। अब जाओ यह से, पढ़ाई लिखाई करो, और हमे हमारा काम करने दो।"

उस आदमी की बात सुनकर, अभय भी सकते में आ गया, और हैरत भरी नजरो से देखते हुए बोला...

अभि --"अरे तुम लोग पागल हो गए हो क्या? ये सारी ज़मीन उपजाऊं है। कोई ऊसर नही जो कोई भी आएगा और खोद कर डिग्री कॉलेज खड़ा कर देगा। अब अगर एक भी फावड़ा इस धरती पर पड़ा, कसम से बोल रहा ही, जो पहला फावड़ा चलाएगा, उसके ऊपर मेरा दूसरा फावड़ा चलेगा।"

अभि की गुर्राती हुई बात सुनकर, वो सब मजदूर एक दूसरे का मुंह देखने लगते है, अपने मजदूरों को यूं अचंभित देखकर वो काम करवाने वाला आदमी बोला...

"अरे वो छोरे, जा ना यह से, क्यूं मजाक कर रहा है? खोदो रे तुम लोग।"

अभि --"मेरे जानने वाले लोग कहते है की, कर मेरा मजाक सच होता है। अब ये तुम लोगो के ऊपर है, की इसे मजाक मानते हो या इस मजाक को सच होता देखना चाहते हो। मेरा mind set क्लियर है, जो पहला फावड़ा मरेगा। उसके उपर दूसरा फावड़ा जरूर पड़ेगा।"

अभि की बात सुनते ही, उन मजदूरों के हाथ से फावड़ा छूट गया, ये देखकर वो आदमी गुस्से में बोला...

"तुम सब पागल हो गए क्या? ये छोरा मजाक की दो बातें क्या बोल दिया तुम लोग तो दिल पर ले लिए।"

अभि --"ओ भाई साहब, तो तू ही फावड़ा चला ले। तुझे तो मेरी बात मजाक लग रही है ना, तूने तो दिल पर नही लिया है ना।"

अभि की बेबाकी सुनकर, वो आदमी भी हक्का बक्का रह गया, और अपना बैग उठते हुए अपनी कांख दबाते हुए बोला...

"बहुत चर्बी चढ़ी है ना तुझे, रुक अभि मालिक को लेकर आता हूं, फिर देखना क्या होता है?"

ये बोलकर वो आदमी वहा से जाने लगा, तभी अभि ने एक और आवाज लगाई...

अभि --"अबे वो छिले हुए अंडे, रानी को लेकर आ, प्यादो की बस की बात नहीं को मेरी चर्बी उतार सेके।"

आदमी --"क्या मतलब??"

अभि --"abe ठाकुराइन को लेकर आना।"

वहा खड़ा एक मजदूर अभि की बेबाक बाते ध्यान से सुन रहा था। जैसे ही काम करवाने वाला आदमी हवेली के लिए रूकसद हुआ। वो मजदूर भी चुपके से वहा से गांव की तरफ बढ़ा.....

वो आदमी थोड़ी दूर ही चला था की, अचानक से ही गांव की तरफ तेजी से भागने लगा। उसे भागते हुए किसी ने देखा होता तो शायद यही समझता की जैसे अपनी जान बचा कर भाग रहा हो, वो आदमी इतनी तेज गति से भाग रहा था। वो आदमी भागते भागते गांव तक पहुंच गया, और वो मुखी या की घर की तरफ भागने लगा।

इधर गांव का एक झुंड, सरपंच के घर पर एकत्रित थी। सरपंच कुर्सी लगा कर उन गांव वालो के सामने बैठा था।

सरपंच --"देखो मंगलू, मुझे भी दुख है इस बात का। पर अब कुछ नही हो सकता, ठाकुर साहब से बात की मैने मगर कुछ फायदा नहीं हुआ। अब उन खेतो पर कॉलेज बन कर ही रहेगा, अब तो मान्यता भी मिल गई है डिग्री की।"

ये सुनकर मंगलू बेबसी की बोली बोला...

मंगलू --"नही देखा जा रहा है मालिक, वो सिर्फ खेत ही नही, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने वाला अन्न का खजाना है, सब कुछ है हमारे लिए, उन खेतो में फावड़ा सिर्फ अनाज उगाने के लिए पड़ते थे मालिक, मगर आज जब उन्ही खेतों में फावड़ा कालेज बनाने के लिए पद रहे है तो, ऐसा लग रहा है वो फावड़ा हमारी किस्मत और साइन पर पद रहा है। कुछ तो करिए मालिक!!"

सरपंच अपनी कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में बोला...

सरपंच --"तुम सब को एक बार बोलने पर समझ नही आता क्या? बोला ना अब कुछ नही हो सकता। जब देखो मुंह उठा कर चले आते है..."

ये कह कर सरपंच अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ा....

गांव वाले हांथ जोड़े इसी आस में थे की शायद कुछ होगा , मगर सरपंच की बात सुनकर अनलोगो का दिल पूरी तरह से टूट गया और जमीन पर बैठे हुए गांव के वो भोले भाले लोग, निराश मन से उठे और पिन घर की तरफ जाने के लिए मुड़े ही थे की...


"मंगलू काका.... मंगलू काका...."

गांव वालो ने देखा की गांव का एक आदमी सातब्दी एक्सप्रेस की तरह मंगलू का नाम लेते हुए भागा चला आबरा था। ये देख कर गांव वाले थोड़ा चकित हो गए, और आपस में ही बड़बड़ाने लगी...

"अरे ई तो कल्लू है, ऐसा कहे चिल्लाते हुए भागे आ रहा है?"

वो आदमी जो भागते हुए आ रहा था गांव वालो ने उसका नाम कल्लू बोला था, तो मतलब उसका नाम कल्लू था। अब वो कल्लू , गांव वालो के पास पहुंचते हुए रुक गया और अपने पेट पर हाथ रख कर जोर जोर से हाफने लगा...

कल्लू की ऐसी हालत देख कर गांव वाले भी हैरान थे, तभी मंगलू ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कल्लू को झिंझोड़ते हुए पूछा.....

मंगलू --"अरे का हुआ, मंगलू? तू इतनी तेजी से कहे भाग रहा है? का बात है?"

कल्लू ने अपनी तेज चल रही सांसों को काबू करने की कोशिश की , मगर शायद जिंदगी में पहेली बार इतनी लगन के साथ भागा था इसलिए उसका शरीर उसकी सांसे को काबू ना कर सकी, वो फिर भी अपनी उखड़ी सांसों में बोला...

कल्लू --"वो खेतों... खेतों में खुदाई...खुदाई..."

हांफते हुए कल्लू की बात सुनकर, मंगलू ने दबे मन से कहा...

मंगलू --"पता है कल्लू, पर अब कुछ नही हो सकता, खेतो की खुदाई अब नही रुकेगी।"

"और काका...खुदाई रुक गई... ई ई ई है..."

कल्लू ने चिल्लाते हुए बोला....

कल्लू की ये बात से गांव वालो के शरीर में सिरहन पैदा हो गई... आश्चर्य से कल्लू की तरफ देखते हुए, अपनी आंखे बड़ी करते हुए सब गांव वालो में अफरा तफरी मच गई, घर के अंदर जा रहा सरपंच भी कल्लू की वाणी सुनकर सकते में आ गया। और पीछे मुड़ते हुए कल्लू की तरफ देखते हुए बोला...

सरपंच --"खुदाई रुक गई, पागल है क्या तू?"

कल्लू --"अरे सच कह रहा हूं सरपंच जी, एक 17 , 18 साल का लवंडा, आकर खुदाई रुकवा दी। कसम से बता रहा हूं सरपंच जी, क्या लड़का है? एक दम निडर, ऐसी बाते बोलता है की पूछो मत। अरे वो गया है अपना कॉन्ट्रैक्टर ठाकुर के पास, ठाकुर को बुलाने।"

सरपंच के साथ साथ गांव वालो के भी होश उड़ गए थे, सब गांव वालो में खलबली मच गई, और उस लड़के को देखने के लिए सारा झुंड उस खेतों की तरफ़ टूट पड़ा। फिर क्या था? औरते भी पीछे कहा रहने वाली थी, वो लोग भी अपना घूंघट चढ़ाए पीछे पीछे चल दी।

वहा पर खड़ा अजय और उसके दोस्त भी इस बात से हैरान थे। अजय भी अपने दोस्त के साथ साइकल पर बैठ कर चल दिया, पर गांव वालो की भीड़ जो रास्ते पर चल रही थी, उसकी वजह से अजय का सायकिल क्रॉस नही हो पा रहा था। अजय के अंदर , बहुत ज्यादा उत्सुकता थी उस जगह पहुंचने की, मगर रास्ता तो जाम था। इस पर वो थोड़ा चिड़चिड़ाते हुऐ आगे चल रही औरतों को चिल्लाते हुए बोला...

अजय --"अरे देवियों, तुम लोगों कब्वाहा क्या काम, सगाई गीत नही गाना है, जो सिर पर घूंघट ताने चल दिए..."

अजय की बात सुनकर, एक मोटी औरत अजय की तरफ घूमती हुई अपनी सारी का पल्लू जैसे ही हटती है...

अजय --"अम्मा तू भी।"

"हा, जरा मैं भी तो देखी उस छोर को, जो nna जाने कहा से हमारे लिए भगवान बनकर आ गया है, और ठाकुर के लिए शैतान।"

अजय --"वो तो ठीक है, पहले इन भैंसो को थोड़ा साइड कर हम लोगो को जाने दे।"

अजय की बात सुनकर, गांव की सभी औरते रुक कर अजय की तरफ मुड़ी...और वो औरते कुछ बोलने ही वाली थी की, अजय को एक गली दिखी...

अजय --"उस गली से निकल पप्पू...जल्दी नही तो भैंसे अटैक कर देंगी।"

और कहते हुए वो औरतों को चिढ़ाने लगा पर तब्बतक बल्लू ने गली में साइकिल मोड़ दी थी...

"सच बता रही हूं दीदी, अगर तुम्हरा छोरा गांव का चहेता नही होता ना, तो बताती इसे।"

तभी दूसरी औरत बोली...

"हाय री दईया, इसको तो कुछ बोलना भी हमको खुद को बुरा लगता है।"

तभी अजय की मां बोली...

"अरे मुन्नी...हमारे बेटे की तारीफ बाद में कर लियो, अभि तो अपने प्यार जरा तेजी से चला। इस छोरे को देखने को दिल मचल रहा है, कौन है वो? कहा से आया है? और कहे कर रहा है ये सब?

-----------&&--------------

इधर हवेली में जैसे ही संध्या की कार दस्तक देती है। संध्या कार से नीचे उतरती हुई, अपने नौकर भानु से बोली...

संध्या --"भानु, तू अंदर आ जल्दी।"

संध्या की बात और कदमों की रफ्तार देख कर मालती और ललिता दोनो थोड़े आश्चर्य रह गई, और वो दोनो भी संध्या के पीछे पीछे हवेली के अंदर चल दी। संध्या हवेली में घुस कर सोफे के आगे पीछे अपना हाथ मलते घूमने लगी...

संध्या --"भानु...."

संध्या जोर से चीखी...

"आया मालकिन...."

भानु करीब - करीब भागते हुए हवेली के अंदर पहुंचा।

भानू --"जी कहिए मालकिन।"

संध्या --"सुनो भानू, अपने हॉस्टल में एक लड़का आया है। तो आज से तुम उस हॉस्टल में ही रहोगे और उसे जिस भी चीज की जरूरत पड़ेगी, वो हर एक चीज उसे मिल जानी चाहिए।"

ये सुनकर भानू बोला...

भानू --"जी मालकिन,,"

संध्या -"ठीक है, जाओ और रमिया को भेज देना।"

ये सुनकर भानू वहा से चला जाता है। मलती बड़े गौर से संध्या को देख रही थी, पर संध्या का ध्यान मालती किंतारफ नही था। वोब्तो ना जाने क्या सोचते हुए इधर उधर बस हाथ मलते हुए चहल कदमी करवरही थी, उसे देख कर ऐसा लगब्रह था मानो किसी चीज की छटपटाहट में पड़ी है। तभी वहां पर रमिया भी आ गई।

रमिया --"जी मालकिन, आपने बुलाया हमको?"

संध्या रमिया को देख कर झट से बोल पड़ी...

संध्या --"हां सुन रमिया, आज से तू हर रोज सुबह और शाम हॉस्टल में जायेगी, और वहा पर जो एक नया लड़का आया है, उसके लिए खाना बनाना है। और हां याद रखना खाना एकदम अच्छा होना चाहिए। समझी।"

रमिया --"जैसा आप कहे मालकिन।"

संध्या की हरकते बहुत देर से देख रही मालती अचानक हंस पड़ी, मलती को हंसते देख संध्या का ध्यान अब जाकर मालती पर पड़ी...

संध्या --"मलती प्लीज़, मैं इस पर कुछ बात नही करना चाहती। मुझे पता है तुम्हारी हंसी का कारण क्या है? पर...

"पर...पर क्या दीदी?"
मलती ने संध्या की बात बीच में ही काटते हुए बोली...

मलती --"कही आपको ये तो नहीं लग रहा की, वो अभय है? वैसे भी आपकी बेताबी देख कर तो यही समझ आ रहा है मुझे। दीदी आपने शायद उस लड़के को ध्यान से परखा नही, वो लड़का जरा हट के था। कैसी कैसी बातें बोल रहा था देखा नही आपने? बिलकुल निडर, सच कहूं तो अगर वो अभय होता तो, तो तुम्हे देखते ही भीगी बिल्ली बन जाता। पर ऐसा हुआ नहीं, उसने तो आपको ही भीगी बिल्ली बना दीया, हा... हा... हा।"

संध्या --"देखो मालती, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, मुझे बक्श दो।"

मलती --"क्या हुआ दीदी? मैने ऐसा क्या कह दिया? जोभिया वही तो बोल रही हूं। चलो एक पल के लिए मान भी लेते है की, वो अभी है। तो आपको क्या लगता है, नौकरी को भेज कर उसकी देखभाल करा कर क्या साबित करना चाहती हो आप? आप ये सब करोगी और आप को लगता है, वो पिघलकर ma.. मां... मां करते हुए आपके गले से लिपट जायेगा। इतना आसान नहीं है दीदी। मैं ख़ुद भगवान से दुआ कर रही हूं की ये हमारा अभि ही हो, पर एक बात याद रखना अगर ये हमारा अभि हुआ, तो एक बात पर गौर जरूर करना की, वो घर छोड़ कर भागा था, और आपको पता है ना की घर छोड़ कर कौन भागता है? वो जिसे उस घर में अपने सब बेगाने लगते है। अरे वो तो बच्चा था, जब भागा था। ना जाने कैसे जिया होगा, किस हाल में रहा होगा। कितने दिन भूखा रहा होगा? रोया होगा, अपनी के प्यार के लिए तड़पा होगा। अरे जब उस हाल में वो खुद को पाल लिया, तो आज आपकी ये दो टके का प्यार दिखा कर, सब कुछ इतना आसानी से ठीक करना चाहती हो।"

मलती की बात संध्या के दिल को चीरते हुए उसकें दिल में घुस गई.....संध्या की आंखे थी या नदियां, आशुओं की धारा रुक ही नही रही थी।

संध्या --"मैं कुछ ठीक नहीं करना चाहती, और...और ये भी जानती हूं की ये इतना आसान नहीं है। मैं वही कर रही हूं जो मेरे दिल ने कहा है।"

मलती --"दिल ही तो है दीदी, कुछ भी कहता रहता है। वो लड़का थोड़ा अलबेला है, पहेली मुलाकात में ही घाव कर गया....

कहते हुए मालती अपने कमरे की तरफ चल देती है, और संध्या रोते हुए धड़ाम से सोफे पर गिर जाती है.....
 
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