Hussainsalman
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But very very nice upload
Upload thoda jaldi jaldi Diya Karo...,
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Sandar update hai bhaiअपडेट 15
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।
संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"
मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...
संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."
कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...
ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"
संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....
संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"
संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...
ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"
संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"
ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...
संध्या --"क्या मतलब??"
"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"
रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"
ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...
रमन --"अभय...!!!"
ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"
ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...
रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."
"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"
संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"
रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...
संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"
रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"
पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...
__________________&______&_
शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"
अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"
"मेरा नाम रमिया है।"
अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"
रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"
अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"
रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...
अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"
रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"
अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"
रमिया --"जी बाबू जी।"
अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"
रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"
अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"
अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"
अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"
"क्या....."
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।
अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"
रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"
रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"
रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
Sooo superb update broअपडेट 15
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।
संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"
मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...
संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."
कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...
ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"
संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....
संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"
संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...
ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"
संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"
ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...
संध्या --"क्या मतलब??"
"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"
रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"
ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...
रमन --"अभय...!!!"
ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"
ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...
रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."
"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"
संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"
रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...
संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"
रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"
पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...
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शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"
अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"
"मेरा नाम रमिया है।"
अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"
रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"
अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"
रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...
अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"
रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"
अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"
रमिया --"जी बाबू जी।"
अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"
रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"
अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"
अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"
अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"
"क्या....."
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।
अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"
रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"
रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"
रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
Nice and awesome update...अपडेट 14
आज संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी से आंखो से बह रहे आंसुओ की धारा को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल। वैसे देखा जाए तो सही भी था। क्युकी इसकी जिम्मेदार वो खुद थी।
सोफे पर बैठी मन लगा कर रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...
"नमस्ते ठाकुराइन..."
संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...
संध्या --"अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?"
तो उस कॉन्ट्रैक्टर का नाम सुजीत था,
सुजीत --"अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।"
संध्या --"क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा मजाक आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग दर गए?"
सुजीत --"मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।"
उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान गया, वो चौंक गई, क्युकी यही मजाक वाली बात का ठीक वैसा ही जवाब अभय ने भी संध्या को दिया था। संध्या के होश उड़ चुके थे, और वो झट से बोल पड़ी...
सांध्य --"ठीक है, आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?
सुजीत --"अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।"
संध्या --"फिर, उसने क्या कहा?"
सुजीत --"अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।"
ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं हल्की सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...
सुजीत --"कमाल है ठाकुराइन, कल का छोकरा आपका काम रुकवा दिया, और आप है की मुस्कुरा रही है।"
कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...
"अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?"
ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे us आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।
सुजीत --"काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।"
ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...
रमन --"क्या!! एक छोकरा?"
सुजीत --"हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।"
रमन --"ऐसे लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा..."
"जबान संभाल के रमन..."
संध्या थोड़ा गुस्से में रमन की बात बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।
रमन --"भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?"
संध्या --"मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। यही काम बचा है अब।"
रमन तो चौकाने के सिवा और कुछ नही कर पाया, और झट से बोल पड़ा...
रमन --"बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।"
संध्या --"हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे, मान जायेगा। और तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है ना। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।"
और फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...
गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...
संध्या --"ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?"
संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...
रमन --"प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।"
संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी। नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और ठाकुर भी आ गए थे।
गांव वालो ने अभय को देखते ही रह गए। वही अजय की भी नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।
रमन --"वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?"
अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...
रमन --"वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?"
ये सुनकर अजय हंसते हुए बोला...
अजय --"अरे क्या ठाकुर साहब आप भी? आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?"
ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी थोड़ा हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...
रमन --"यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?"
रमन की तेज तर्रार बाते संध्या के दिल में चुभ सी गई... और वो भी गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली...
संध्या --"रमन!! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। तुम चुप रहो, मैं बात करती हूं।"
रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।
और इधर संध्या भी अपने आप से बाते करने लगी थी...
"ही भगवान, ना जाने क्यूं मेरा दिल कह रहा है की, यही मेरा अभय है। मेरी धड़कने मुझे ये अहसास करा रही है की यही मेरा अभि है। पर मेरा दिमाग क्यूं नही मान रहा है? वो लाश, इस दिन फिर वो लाश किसकी थी। मैं तो उस लाश को भी नही देख पाई थी, हिम्मत ही नहीं हुई। फिर आज ये सामने खड़ा लड़का कौन है? क्यूं मैं इसके सामने पिघल सी जा रही हूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आवरा है भगवान, तू ही कोई रास्ता दिखा, क्या मेरा दिल जो कह रहा है वही ठीक है? क्या ये मेरा अभय ही है? क्या ये अपनी मां की तड़पते दिल की आवाज सुन कर आया है। अगर ऐसा है तो...."
"अरे मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।"
संध्या अभि खुद से ही बाते कर रही थी की ये आवाज उसके कानो के पड़ी...वो सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए असलियत में आ चुकी थी, और अभय की बात सुनते हुए हिचकिचाते हुए बोली...
संध्या --"म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?"
ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है?
और सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालोंकी तरफ था। उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। अभय मान करते हुए अपनी मां से बोला...
अभय --"भला, मेरी इतनी औकात कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं मैडम। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था बस। और वैसे भी, आप ही समझिए ना मैडम, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारी किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रही हो?"
अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से अंदर ही अंदर झूम उठा। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।
संध्या --"मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।"
ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...
मंगलू --"कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वोभिम चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।"
ये कहें था मंगलू का की, सब गांव वाले हाथ जोड़ते हुए अपने घुटने पर बैठ कर ठाकुराइन से विनती करने लगे...
ये देख कर ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...
संध्या --"ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सोच भी नही सकती...
ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे अपनी मां पर इतना गुस्सा आया की वो अपने मन में ही हजारों बाते करने लगा।"
"जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब सब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।"
ये सब बाते खुद से करते हुए अभय बोला...
अभि --"कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।"
इतना कह कर अभि वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने आकर इतने पास खड़ी देख अभय का खून सुलग गया,।
संध्या --"मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।"
कहते हुए संध्या ने अभि का हाथ पकड़ लिया। अपने हाथ को संध्या की हथेली में देख कर, अभि को न जाने क्या हुआ और गुस्से में संध्या का हाथ झटकते हुए बोला...
अभि --"आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना है, समझी आप। मैं तो यह आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।"
कहते हुए अभि वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभि गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।
संध्या भी वहा से जाते हुए, रमन से बोली...
संध्या --"रमन, ये काम रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...
रमन के होश तो छोड़ो, ये बात सुन कर उसकी दुनियां ही उजड़ गई हो मानो, ऐसा उसके चेहरे पर भाव था।
छोटा अपडेट देने के लिए सॉरी दोस्तो, पर ये वीक में थोड़ा busy hun, to please try to understand
Par update deta rahunga , Chhota hi sahi, story nahi rukegi...
Raman ne to phle hi shandya ki malai kha li aur bete se bhi dur kr diya aur to aur pure gaow mai shandya ki image ki maa behen kr di...raman ka kirdar aayiash batya hai lekhak ne aur usme ye kamyab bhi ho gya shandhya ko bhog hi liya jisse mujhe thoda nirasha jaruri hui ki villain apne ek mansube mai kamyab ho gya aur anjane mai hi uska ek kaam ye bhi ho gya ki uske aur shandhya ke anjayj sambandh abhay ko pta chl gya jis karan wo ghr chhod kr chla gya jisse raman ka kaam aur asan ho gya....aur abhay ke ghar chod kr jane ke baad kya raman ko ab sandhya ki jawani ka ras ni chakhna itne salo mai sandhya ke pas aane ki kosis to ki hi hogi aur kya pta sandhya se dubara sambandh banane lga ho???....lekhak mohaday ek sawal malti ko kya pta h raman aur sandhya ke najayj sambandh ke bare mai kyuki malti kai bar usko giri hui bol chuki hai agr aisa hai to haweli mai sbko hi ye baat pta hogi kyuki aisi baate chupaye ni chupti pr shyad koi apna muh na khol rha ho dar ke mare ya wajh kuch aur bhi ho skti hai...aur raman aur sandhya ka ye najyaj sambandh na jane kitne samay se chl rha ho kisi na kisi ko khabar to hogi hi abhi ke alawa kyuki DEWARO KE BHI KAAN HOTE HAI!!!...AUR iss update ke last mai adhay ko gussa isliye aaya hoga kyuki usko apne bhai Aman ke bare mai pta chla hoga ki kaise wo payal ke piche hath dho kr pda h....aur sandhya ki ankh kb khulegi bc aise to bda thakurain banti ghumti firti hai sali munshi ko aise hi chhod diya???...munshi ko ptk kr pelna chahiye tha aur uske baad uusi trh sale ko kadi dhoop mai bandh dena chahiye tha!!!...shandya ka character bhut jada confusing hai....sari saja abhay hi dega sabko jbki doshi to sb sandhya ke bhi hai....!!!अपडेट 15
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।
संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"
मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...
संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."
कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...
ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"
संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....
संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"
संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...
ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"
संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"
ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...
संध्या --"क्या मतलब??"
"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"
रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"
ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...
रमन --"अभय...!!!"
ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"
ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...
रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."
"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"
संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"
रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...
संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"
रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"
पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...
__________________&______&_
शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"
अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"
"मेरा नाम रमिया है।"
अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"
रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"
अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"
रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...
अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"
रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"
अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"
रमिया --"जी बाबू जी।"
अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"
रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"
अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"
अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"
अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"
"क्या....."
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।
अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"
रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"
रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"
रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
ये सब रमन, ललिता और अमन का खेल है जायदाद हड़पने का, इसीलिए संध्या और अमन को एक दूसरे से दूर किया और अभय को घर से भागने पर मजबूर किया। अभी भी ये खेल चल रहा है। पायल कितने दुख में है फिर भी अभय ने उससे मिलने की कोशिश नही की, कही ऐसा ना हो की अपने मकसद के चक्कर में पायल को भी को बैठे? सुंदर अपडेटअपडेट 15
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।
संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"
मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...
संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."
कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...
ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"
संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....
संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"
संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...
ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"
संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"
ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...
संध्या --"क्या मतलब??"
"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"
रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"
ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...
रमन --"अभय...!!!"
ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"
ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...
रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."
"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"
संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"
रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...
संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"
रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"
पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...
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शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"
अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"
"मेरा नाम रमिया है।"
अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"
रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"
अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"
रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...
अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"
रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"
अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"
रमिया --"जी बाबू जी।"
अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"
रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"
अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"
अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"
अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"
"क्या....."
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।
अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"
रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"
रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"
रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..