अपडेट 16
रमिया के मुंह से निकली अखरी शब्द को सुनकर अभि के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर गई थीं।
अभि --"ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?"
कहते हुए अभि का चेहरा गुस्से से लाल भी होता जा रहा था।
रमिया --"कर वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। और ठकुराइन का दुलारा। सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।"
अभि --"ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?"
रमिया --"जी बाबू साहब!"
अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...
अभि --"वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?"
रमिया --"पायल..."
अभि --"हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?"
अभि की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..
रमिया --"क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है"
रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...
अभि --"मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।"
अभि की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...
अभि --"वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।"
अभि की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...
रमिया --"उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?"
अभि --"अच्छा तो तुम ये कहें चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?"
अभि की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...
रमिया --"नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।"
रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...
अभि --"तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?"
रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...
रमिया --"मैने क्या कहा...?"
अभि --"यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?"
कहते हुए अभि रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभि की ये हरकत देख कर...
रमिया --"धत्...तुंब्भी ना बाबू जी..."
कहते हुए रमिया शर्मा कर कमरे से बाहर निकल जाति है,,
रमिया की शर्माहत अभि के अंदर गर्माहट पैदा कर देती है। अभि एक गहरी सांस लेते हुए खुद से बोला...
"बेटा संभाल कर, नही तो अगर कही तेरी रानी को पता चल गया ना की तू दूसरो के उपर भी लाइन मरता है, तो तेरा हाल बेहाल कर देगी वो।"
कहते हुए अभय बाथरूम की तरफ चल देता है...
__________________________
इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...
मंगलू --"सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे आज एक खास दावत दिया जाए पूरे गांव वालो की तरफ से।"
"सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसाभी करना चाहिए।"
एक आदमी उठते हुए , मंगलू को सहमति देते हुए बोला।
मंगलू --"तो फिर एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है। और तुम सब लोग कार्यक्रम शुरू करो। आज का दिन हमारे लिए किसी त्योहार से कम नहीं है।"
मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल पड़ते है...
पूरे गांव वालो में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। अजय भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।
अजय के साथ खड़ा पप्पू बोला...
पप्पू --" यार अजय, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।"
पप्पू की बात सुनकर अजय बोला...
अजय --"हां यार, ये बात तो मुझे भी नही कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हराम ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में us हराम अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।"
पप्पू --"ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।"
जहा एक तरफ सब गांव वाले खुशियां मना रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक शांत बैठी थी।
पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।
"काम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दी, पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।"
अपनी सहेली की बात सुनकर पायल बोली...
पायल--"क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?"
पायल की बात सुनकर, नूर बोली...
नूर --"तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर..."
नूर आगे कुछ बोलती, उससे पहले ही पायल ने अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए उसकी जुबान को लगाम लगा दी...
पायल --"फिर कभी ऐसा मत बोलना,, नूर।"
और कहते हुए पायल वहा से चली जाति है...
_____________________________
रमिया जब हवेली पहुंचती है तो, संध्या हॉल में ही बैठी थी। रमिया को देख कर, संध्या के चेहरे पर एक गजब की चमक आई, और झट से रमिया से बोली...
संध्या --"क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?"
संध्या की बात सुनकर , रमिया बोली...
रमिया --"समान लेने ही जा रही थी मालकिन, चाय पिला कर आ रही ही बाबू साहेब को।"
रमिया की बातें सुनकर, संध्या बोली...
संध्या --"तू उसकी चिंता मत कर, सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा, मैने बिरजू से कह दिया है।"
संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...
रमिया --"ये क्या कर दिया आपने मालकिन?"
रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....
संध्या --" क्या कर दिया मैने...मतलब?"
रमिया --"अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।"
रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...
संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया कुछ पूछना तो चाहती थी पर उसकी हिम्मत नही पड़ी, और वो वहा से चली गई...
संध्या अपने सिर पर हाथ रखे अभि भी अपने नसीब को कोस रही थी, मन में खुद के ऊपर गुस्सा और चिड़चिड़ापन के भंवर में फंस गई थी। पर बेचारी कुछ कर भी तो नही सकती थी। वो अभी इसी तरह बैठी ही थी की, तभी अचानक उसकी आंखो को किसी ने पीछे से अपने हाथो से ढक लिया...
संध्या को समझते देर नहीं लगी की, ये अमन है। क्युकी ऐसी हरकत अमन बचपन से करता आया था।
संध्या --"हां पता है तू ही है, अब तो हटा ले हाथ।"
"ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।"
कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लेट हुए , वो भी अमन के माथे पर एक चुम्बन जड़ते हुए बोली...
संध्या --"अरे तुझे भला कैसे नही पहचानुगी, तेरी तो हर आहट मेरी सांसे पहेचान जाति है।"
संध्या की बात सुनकर, अमन मुस्कुराते हुए बोला...
अमन --"मेरी प्यारी मां, अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।"
अमन की बात सुनकर संध्या बोली...
संध्या --"ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।"
ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।
संध्या अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देखती रहती है...और खुद से बोली,,
"काश इसी तरह मेरा अभय भी एक बार मुझसे कुछ मांगता, अगर वो मेरी जान भी मांग ले तो वो भी मैं उसके चांद लम्हों के प्यार के लिए मैं खुशी खुशी दे दूं। पर शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं। ऐसा क्या करूं मैं, की वो एक बार मुझे माफ़ कर दे? मेरा दिल ही मुझसे क्यूं कहता है की वो तुझे कभी माफ नहीं करेगा। क्या कर दिया मैने भगवान, बहुत बड़ी गलती कर दी है मैने। ना जाने कितना तड़पाएगा मुझे वो। और मेरी तड़प खत्म भी होगी या नहीं? बहुत जुल्म किए है मैने उसपर, दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार जाता नही पाई। जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती , अगर उसने कह भी दिया की हा वो मेरा अभय ही है तो क्या कहूंगी मैं उससे? क्या सफाई दूंगी मैं उसको? किस मुंह से पूछूंगी की वो मुझे छोड़ कर क्यूं चला गया? उसके पास तो मेरे हर सवालों का जवाब है। मगर मेरे पास...मेरे पास तो सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया..."
कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, जो आज संध्या कर रही थी।
संध्या ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है। या ये भी कह सकते हो न के बराबर, पर फिर भी उसके दिल में , उसके सुबह में , उसकी शाम में या उसके है काम में सिर्फ और सिर्फ अभय की छवि ही नजर आती रहती है....
संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है...
संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......
रमन --"क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?"
संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।
संध्या --"कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।"
संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहें चाहती है...
रमन --"तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।"
रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...
संध्या --"कुछ बातों को पक्की करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती।"
संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...
रमन --"क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।"
रमन की बाते संध्या के दिल पर चोट कर गई...और वो जोर से चिल्ला पड़ी।
संध्या --"चुप कर...और तू जा यह से।"
रमन --"हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।"
ये सुनकर संध्या गुस्से में बोली....
संध्या --"खेल रहा है तू मेरे साथ, एक बार जब बोला मैंने की हमारे बीच जो भी था वो सब खत्म, फिर भी तुझे समझ नही आ रहा है क्या? ये आशिकों जैसा डायलॉग क्यूं मार रहा है? और यह मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है।"
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन --"हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने कियाब्था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।"
इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...
संध्या --"अरे मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू कौन से खेत की मूली है।"
संध्या की ये बात सुनकर, रमन की हवा नैकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला .....