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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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L.king

जलना नही मुझसे नही तो मेरी DP देखलो।
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तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।

जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक १0 साल का बच्चा, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था।

बदन पर एक सफेद रंग का शर्ट और एक पैंट पहने हुए ये लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।

ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...

"जा रहा हूं माँ!!"

और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....


तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....

पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।

उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....


--------------

कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।

उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।

"हो गया तेरा, अब जा अपने कमरे में। मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"

उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--

"जरा छुप-छुपा कर जाना, और हां अभय के कमरे की तरफ से मत जाना।"

उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--

"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"

उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...

"ना जाने क्यूँ...कुछ अज़ीब सी बेचैनी हो रही है। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"

"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"

कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
Apane hawas me aaj isane apana beta kho diya .......
Bhai kya kahe ab aapke is updated ko padhne ke baad to abbagale update ka intejar karna muskil hi hogaya hai........
Lajwab update....
 

L.king

जलना नही मुझसे नही तो मेरी DP देखलो।
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अपडेट --(१)

गाँव के बीचो-बीच खड़ी; ठाकुर रतन सिंह की हवेली वाकई काफी शानदार थी। कहते हैं की ठाकुर परम सिंह काफी दयानीधान कीस्म के इंसान थे। दुखीयों की मदद करना उनका पहला कर्तब्य था। यही वज़ह था, की आज भी इस हवेली की वही इज्जत बरकरार थी। ठाकुर परम सिंह तो नही रहें। पर हवेली को तीन अनमोल रत्न दे कर इस दुनीया से वीदा हुएं।

तो चलिए जानते हैं कुछ कीरदारों के बारे में---


(१) मनन सिंह (परम सिंह के बड़े बेटे)--

अपने पिता के तरह ही, अच्छे विचारो और दुसरों की मदद करने वालो में से थे। मगर शायद इस दुनीयां को उनकी अच्छाई नही भाई, और २६ साल की उम्र में ही चल बसे। कहते हैं की, इनके मौत का कारण कोई गम्भीर बीमारी थी। कम वर्ष की आयू में ही विवाह होने की वज़ह से १९ वर्ष की आयू में ही पिता बन गये।


संध्या सिंह (मनन सिंह की पत्नी)--

संध्या का जब विवाह हुआ तब वो मात्र १८ वर्ष की थी। शादी भी इसी शर्त पर संध्या ने की थी की, वो अपनी पढ़ाई नही छोड़ेगी। और शादी के बाद संध्या ने अपनी बी॰ए॰ की डीग्री की उपाधि हांसिल की। कॉलेज़ भी ठाकुर रमन सिंह का ही था। संध्या की ज़ींदगी में भुचाल तब आया जब अचानक ही उसके पति का देहांत हो गया। पति के मौत के बाद हवेली की सारी जीम्मेदारी संध्या ने ही संभाली। क्यूंकी ठाकुर परम सिंह का यही वसीयत था।

अभय सिंह (मनन सिंह का बेटा)--

हसमुख और पिता की तरह ही जीम्मेदार रहने वाला लड़का। अपने पिता को बहुत प्यार करता था, लेकिन शायद नसीब में ज्यादा दीन के लिए पिता का प्यार नही लीख़ा था। और ७ साल की उम्र में ही पीता का साया छीन गया।


(२) रमन सिंह (परम सिंह का दुसरा बेटा)--

मनन सिंह और रमन सिंह दोनो जुड़वा थे। इन दोनो की शादि भी एक सांथ हुई। और दोनो को बच्चे भी। फर्क सीर्फ इतना था की, मनन सिंह का बेटा रमन सिंह के बेटे से १५ दीन बड़ा था। और दुसरा ये की, रमन सिंह को जुड़वा हुए। एक बेटी भी। रमन सिंह बेहद अय्यास कीस्म का आदमी था। और सीर्फ अपने फ़ायदे के बारे में सोंचता था।


ललिता सिंह (रमन सिंह की पत्नी)--

सांवले रंग की बड़े नैन नक्श वाली औरत थी। काफी मज़ाकीया अंदाज़ था इस औरत का और इसके दीमाग में क्या चलता रहता है, कीसी को भी समझ पाना मुश्किल था।


अमन सिंह (रमन सिंह का बेटा) --

अमन सिंह संध्या का काफी दुलारा था। वो अमन को बहुत चाहती थी। गाँव भर में ये बात उठने लगी थी की, संध्या को अपने बेटे से ज्यादा रमन के बेटे की फीक्र रहती है। अब इस बात का जवाब तो कहानि में ही मीलेगा।


नीधि सिंह (मनन की बेटी) --

निधि अपने बाप के रंग-रुप में ढली थी। इसीलिए अपनी माँ की तरह सांवली ना हो कर, गोरी काया की लड़की थी।


(३) प्रेम सिंह (परम सिंह का तीसरा बेटा)--

प्रेम सिंह दीमाग से थोड़ा पैदल था। उसे घर-समाज़ में क्या हो रहा है, कुछ लेना देना नही था। जीस काम में लगा देते उसी काम में लगा रहता।

मालती सिंह (प्रेम सिंह की पत्नी)--

काफी शांत और अच्छे चरीत्र की औरत। कोई बच्चा नही, इसका कारण कुछ पता नही। पर अभय को जी जान से प्यार करती थी। अभय का हसमुख चेहरा उसे बहुत भाता था।



(बाकी के कीरेदार कहानी के सांथ पेश कीये जायेगें)

**************
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।

पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???

--------*-----

सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।

संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...

संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"

रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...

रमन -- "तुम चिंता मत करो भाभी, आज का दीन सबको याद रहेगा..."

रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी

मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"

संध्या -- "सो रहा होगा वो, मालती। इतनी सुबह कहां उठता है वो?"

मालती -- "अपने कमरे में तो नही है वो, मैं देख कर आ रही हूँ। मुझे लगा कल की मार की वज़ह से, डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा।"

मालती की बात सुनते ही, संध्या के गुलाबी गाल गुस्से में लाल हो गये। और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चील्लाते हुए बोली...

संध्या -- "बेटा है मेरा वो! कोई दुश्मन नही, जो मैं उसे डरा-धमका कर रखूंगी। हां हो गयी कल मुझसे गलती, गुस्से में मार दी थोड़ा-बहुत तो क्या हो गया?"

संध्या को इस तरह चीखती-चील्लाती देख मालती शीतलता से बोली...

मालती -- "अपने आप को झूंठी दीलासा क्यूँ दे रही हो दीदी? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा-बहुत ही मारा था। और वो शायद पहली बार भी नही था।"

अब तो संध्या जल-भून कर राख सी हो गयी, शायद मालती की सच बात उसे तीखी मीर्ची की तरह लगी या शायद खुद की गलती का अहेसास था जो गुस्से की सीमा की चरम पर था

संध्या -- "तू कहना क्या चाहती है.....? म...मै भला उससे क्यूँ नफरत करुंगी? तूझे लगता है की मुझे उसकी फीक्र नही, सीर्फ तूझे ही है क्या?"

गुस्से खलबलायी संध्या चील्लाते हुए बोली...


मालती -- "मुझे क्या पता दीदी? तुम्हारा बेटा है, मारो चाहे काटो, मुझे उससे क्या? मुझे वो अपने कमरे में नही मीला, तो बस यूं ही पुछने चली आयी।"

कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...

रमन -- "क्या भाभी तुम भी छोटी-छोटी बात को दील..."

रमन अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था की संध्या बीच में ही बोल उठी...

संध्या -- "रमन जाओ यहां से, मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो।"

संध्या की सख्त आवाज़ सुनकर, रमन को लगा, अभी इस समय यहां से जाना ही ठीक होगा।


संध्या अपने सर पर हांथ रखे बैठी गहरी सोंच में डूबी थी। की तभी उसकी दोनो आँखो पर कीसी के हथेली पड़े और संध्या की आँखे बंद हो गयी। अपनी आँखो पर पड़े हथेली को टटोलते हुए संध्या के चेहरे पर एक मुस्कान की लकीरे उमड़ पड़ती है और खुश होते हुए बोली...


संध्या -- "नाराज़ है ना तू अपनी माँ से? एक बार माफ़ कर दे, आगे से ऐसा कुछ नही करुगीं जीससे तूझे तकलीफ़ हो।"

संध्या की बात सुनते हुए अमन खीलखीला कर हंस पड़ा, और अपनी हथेली संध्या की आँखों पर से हटाते हुए उसके सामने खड़ा हो जाता है। संध्या को लगा था की, ये उसका बेटा अभय है पर ये तो अमन था। चेहरे की मुस्कान ऐसे उड़ी जैसे फुदकती चींड़ीया।


अमन --"अरे ताई माँ, आपको क्या लगा? की मैं अभय हूं?"

अमन की बात सुनकर संध्या अपने गम को छीपाते हुए एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली...

संध्या -- "बदमाश कही का, सच में मुझे ऐसा लगा की ये अभय है।"


अभय -- "आपको लगता है ताई माँ, की अभय ऐसा कर सकता है? वो करता तो अब तक दो-चार थप्पड़ खा चुका होता। और वैसे भी, बेचारा कल रात आपके हांथो से मार खाकर, घर से ऐसा भागा, की वापस ही नही लौटा।"

अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...

संध्या --" क...क्या मतलब? क...कहां भाग ग...गया था? क...कब?"


अमन --"कल रात की पीटाई के बाद, जब आप गुस्से में अपने कमरे में चली गयी। वैसे ही वो घर से भाग गया था। मैने रात को दो-तीन बार उठ कर उसके कमरे में भी देखा था पर वो नही था।"

संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।

संध्या -- "अभय...अभय...अभय!!"


पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा...


ललिता --"क...क्या हुआ दीदी?"

संध्या --"अ...अभय...अभय कहां हैं?"

ये सुनकर मालती बोली...

मालती --"वही तो मैं भी पुछने आयी थी तुमसे। क्यूंकी अभय मुझे सुबह से नही दीख रहा है।"

अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।

ललिता --"दिदी घबराओ मत, इधर ही कहीं होगा आ जायेगा।"

पर मानो संध्या एक जींदा लाश थी, और उसी स्वर में बीना कीसी भाव के बोली...

संध्या --"चला गया वो, अब नही आयेगा.......!"

----------------*---

इधर ट्रेन एक स्टेशन पर आकर कर रुकती है। वो लड़का स्टेशन पर अपने कदम रखते हुए ट्रेन से नीचे उतर जाता है। स्टेशन पर भारी भीड़ थी, लड़का चकमका जाता है। उसे समझ नही आ रहा था, की कीधर जाये। तभी उसे स्टेशन पर ही एक दुकान दीखी और दुकान के अंदर पानी की बॉटल।

वो उसी दुकान की तरफ बढ़ा, और नज़दीक पहुंच कर दुकानदार से बोला-

"भैया थोड़ा पानी मीलेगा? बहुत प्यास लगी है?"

दुकान दार ने उपर से नीचे उस लड़के को गौर से देखा और बोला...

"चल भाग यहां से, भीखारी कहीं का!"

ये सुनकर उस लड़के को गुस्सा आ गया।

"भीखारी होगा तेरा बाप साले, नही देना है तो मत दे, भीखारी कीसे बोल रहा है?"

"ओ...हो, तेवर तो देखो इसके। भीखारी नही तो क्या राजा लग रहा है क्या? खुद की हालत देख पहले।"

दुकानदार की आवाज़ सुनकर लड़का अपने आप को देखने लगा। तो पाया की उसके कपड़े पूरी तरह से गंदे हो गये थे। लड़का मन मान कर वहां से चलते बना और स्टेशन से बाहर नीकलते हुए एक मार्केट में पहुंचा। लड़का ठीक से चल नही पा रहा था। और बार-बार अपना हांथ अपने पेट पर रख लेता। शायद भूंखा था और थका भी।


वो हीम्मत बांधे यूं ही कुछ दूर तक चलता रहा और फीर एक दुकान के सामने आकर उसके पैर रुक गये। नज़र उठाकर दुकान की तरफ देखा और दरवाज़े के उपर लगे बोर्ड को पढ़ने लगा...

"ताराचन्द ज्वेलर्स"

ये पढ़कर उसे कुछ समझ आया की नही आया वो नही पता। पर दुकान के अंदर बैठे एक ३५ साल के सक्श को देखकर समझ गया की ये सोनार है। लड़का अपने कदम दुकान के अंदर की तरफ बढ़ा दीया...


"अरे छोरे...कहां घूसा चला आ रहा है? चल बाहर चल।"

दुकान के अंदर बैठा सख्श दुत्कारने जैसी आवाज़ में बोला...


लड़के ने अपना हांथ उठाते हुए गले तक ले कर गया, और शर्ट के अंदर हांथ डालते हुए गले में पहनी मोटी सोने की चैन को बाहर नीकालता है। चमचमाती सोने की चमक जौहरी सेठ की आँखें चौंधीयां दी। लड़का सेठ को देखते हुए सोने की चैन को हवा में उछालते हुए उसे कैच कर के बोला...


"ठीक है सेठ जाता हूँ, ये बता की इधर और कोई दूसरी दुकान है क्या? मुझे ये चैन बेचनी है।"

ये सुनकर सेठ का माथा ठनका और मज़ाकीये अंदाज में बोला...


"अ...अरे भायो, मैं तो मज़ाक कर रहा था। इसे अपनी ही दुकान समझ आ जा बैठ।"

लड़का ये सुन कर मुस्कुराते हुए बोला...

"अब आया ना औकात पे।
Apane eklaute bete ko chhodkar apane yaar ke bete ko adhik mahatv dena aur usake baad aisa dikhawa karna mano usake liye duniya ki sari khusiya usake kadmo me la Dena.......... Ye baate bahut dukh deti hai jo insan apane chehare par mukhauta lagta hai aur khas taur par ma jisake baare me kaha gaya hai ki Mata kabhi bhi kumata nahi ho sakti hai waise ye dekhna kafi intresting hoga ki ab apane ghar me abhay ki intri kaise hota hai aur kya usaki ma sach me use nahi manti ki baat kuchh aur hai kahani me ek silent suspens chhipa hua hai mere andaj se jo aage chalkar khulega jisame abhay ke chacha ek villen ke roop me samne aayenge jisame usaki chachi bhi sath hogi kyoki isake dimag ke baare me intro me btaya gaya hai ..........
Abhay ka dukan Wale ke yaha attitude dekhkar lagta hai ki..... Abhay apane pariwar ki gand achchhe se marne wala hai........ Aur ye scene padhna wakai majedar hoga.....

Waiting for next update..........
 
Last edited:

Maverick_Sam

The DP says it all...Highly Promiscous!
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hum ko bhi achha lagta...... aur ek-do update aap post kar dete .... :wink2:
अवश्य... अति शीघ्र
 
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