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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Mahendra Baranwal

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शाम हो गई थी, अभी अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकला ही था की, उसे अपने सामने गांव के दो लोग खड़े दिखे।

अभि ने तो उन दोनो को पहेचान लिया...


"कैसे हो बेटा" - मंगलू ने अभि को देखते हुए कहा।


अभि --"मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो आज उस खेत में...

अभि जानते हुए भी अनजान बनते हुए बोला....

मंगलू --"ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने आज ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

मंगलू की बात अभि सब समझ रहा था। मंगलू ये समझता था की गांव वालो के लिए उनका सब कुछ उनकी जमीन ही थी। जो आज उनसे छीनने वाली थी।

अभि --"मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून भी गलत थी। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।"

अभि की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभि बोला...

अभि --"अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?"

इससे पहले अभि और कुछ बोलता मंगलू झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।"

अभि --"माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।"

अभि की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू --"जिस पेड़ को आज तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव इस भी इस इस उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम्बगांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सी सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।"

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभि का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए तरसता रहा, वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि --"मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।"

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू --"बेटा, आज हमारे यहां आज हम भूमि पूजन का उत्सव करते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए आज रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।"

मंगलू की बात सुनकर, अभि का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

"मैं कैसे भूल सकता हूं आज का दिन....?"

खुद से ही अभि इस तरह से बोला मानो आज का दिन उसके लिए बहुत खास था , और वो भूल गया हो और फिर अचानक याद आने पर मन में जिस तरह का भाव, उत्तेजना, आश्चर्य या बहुत से चीज जो उठाती है वही हाल अभि का था इस समय।

मंगलू --" क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?"

मंगलू की आवाज ने मानो पानी का छोटा मारा हो अभि पर और वो नींद से जाग गया हो।

अभि --" न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं ज़रूर आऊंगा।"

अभि के मुंह से ये सुनकर मंगलू काफी खुश हुआ, और अभि से विदा लेते हुए वहा से जाने के लिए मुड़ा ही था की...

अभि --"वैसे काका...????"

बोलते बोलते अभि रुक गया....मंगलू को लगा की शायद अभी कुछ पूछना चाहता है, इसलिए मंगलू ने ही कहा।


मंगलू --"बोलो बेटा, क्या हुआ...?"

अभि --"नही काका, कुछ नही , वो मैं बस ये कहे न चाहता था की जिस भूमि की आप सब पूजा करते हैं, उसे भला आप सब से कौन छीन सकता है?"

ये सुन कर मंगलू काफी खुश हुआ, हालाकि अभि कुछ और ही बोलना नहीं बल्कि पूछना चाहता था, पर बात बदलते हुए उसने काफी अच्छी बात कह दी...

मंगलू --"काम उम्र में काफी बड़ी बड़ी बाते कर लेते हो बेटा। भगवान तुम्हे हमेशा इसी तरह अच्छी और ध्यान की बातों की रौशनी दे।"

कहते हुए मांगू और उसके साथ वो आदमी दोनो गांव की तारा रुख मोड़ दिया...

मंगलू के जाते ही, अभि ना जाने क्यूं पर इतनी बेचैनी से और तेज गति से वहा से दौड़ा की पूछो मत....

____________________________

"मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?"

रमन एक पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए बोला...

मुनीम भी रमन के सामने खड़ा थोड़ी घबराहट में बोला...

मुनीम --"अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन की ये यकीन दिला सकी की सब गलती मेरी ही है।"

ये सुनकर रमन गुस्से में बोला......

रमन --"तुझे यह यकीन दिलाने की पड़ी है। उधर हाथ से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के लिए गांव वालो की ज़मीन हथिया लिया था, पर न जाने वो छोकरा कहा....!"

कहते हुए रमन की जुबान एक पल के लिए खामोश हो गई...

रमन --"मुनीम...ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?"

मुनीम --"कैसी बाते करते हो मालिक? आपको लाश नही मिली थी क्या? जो आप ऐसी बाते कर रहे हो? जरूर ये छोकरा आप के ही की दुश्मन का मोहरा होगा। जो चांद अंदर की बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।"

रमन --"और ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।"

मुनीम --"जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।"

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन --"मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भरी पद सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।"

मुनीम हाथ जोड़ते हुए रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन --"गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।"

मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन --"अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं। भाभी का पूरा ध्यान us छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा जो संभाल लेता। एक एक कर के सारे पन्ने पलटते लगेंगे। तू समझा ना मैं क्या कह रह हूं?"

मुनीम --"समझ गया मालिक, मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।"

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया...

_____________________________

हल्का अंधेरा हो गया था...अभि के पैर अभि भी काफी तेजी से आगे बाद रहे थे। गांव की सड़को पर अभि काफी तेजी से भाग रहा था। वो जैसे ही गांव के तीन मोहाने पर पहुंचा उसके पैर रास्ते पर से नीचे उतर गए और पास के ही बगीचे की तरफ बढ़ गए, तभी वहां से एक कर गुजरी। कार में संध्या थी, जो अभी को उस बगीचे की तरफ जाते देख ली थी।

अभि को इस समय उस बाग की तरफ जाते देख, संध्या को हैरत भी हुई और बेचैनी भी। संध्या ने अपनी कार झट से रोक दी, और कार से नीचे उतरते हुए वो भी उसी बाग की तरफ काफी तेजी से बढ़ चली...

संध्या ने सदी पहेनी थी, इसलिए शायद उसे भागने में दिक्कत हो रही थी। बार बार उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से सरक जाती। पर वो उसे अपनी हाथो में पकड़े काफी तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी। संध्या अब उस आम के बगीचे में भटक रही थी। बहुत गहरा अंधेरा था । उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसकी नजरे अभि को ढूंढ रही थी, पर इस अंधेरे में उसे खुद के हाथ नही दिख रहे थे तो अभि कैसे दिखता। पर फिर भी अपनी तेज चल रही धड़कनों पर हाथ रखे वो इधर उधर छटपटाते हुए भटक रही थी। और मन में भगवान से एक ही बात बोल रही थी की उसे अभी दिख जाए......

ढूंढते हुए संध्या बगीचे के काफी अंदर चली आई थी, तभी उसे अचानक बगीचे के अखरी छोर पर एक उजाला नजर आया , उसका दिल धक रह गया, वो बिना कुछ सोचे इस उजाले की तरफ बढ़ चली...जैसे जैसे वो पास आबरा थी, वैसे वैसे उसे उस उजाले पर गिर रही एक परछाई उसे नजर आबरा थी। इसी हैरत और आश्चर्याता में उसके पैर और भी तेजी से चल पड़े।

जब वो बेहद नजदीक पहुंची, तो उसे वहां अभि तो नही, पर कोई और जरूर दिखा....

-----------------------------------

आज की रात गांव पूरा चमक रहा था। गांव वालो की खुशियां टिमटिमाते हुए छोटे बल्ब बयां कर रही थी। सब गांव वाले आज नए नए कपड़े पहन कर एक जगह एकत्रित थे। एक जगह पर पकवान बन रहा था। तो एक जगह पर औरते अपना गीत गा रही थी। कही बुजुर्ग लोग बैठे आपस में बात करवरहे थे, तो कही बच्चे अपना बचपन शोर गुल करते हुए जी रहे थे। अल्हड़ जवानी की पहेली फुहार में भीगी वो लड़किया भी आज हसीन लग रही थी जिसे देख गांव के जवान मर्द अपनी आंखे सेंक रहे थे।

चारो तरफ शोर गुल और खुशियां ही थी, भूमि पूजन kabye उत्सव वाकई ही गांव वालो के लिए आज खुशियां समेत कर अपनी झोली में लाई थी।
Mind blowing
 

Mahendra Baranwal

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शाम हो गई थी, अभी अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकला ही था की, उसे अपने सामने गांव के दो लोग खड़े दिखे।

अभि ने तो उन दोनो को पहेचान लिया...


"कैसे हो बेटा" - मंगलू ने अभि को देखते हुए कहा।


अभि --"मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो आज उस खेत में...

अभि जानते हुए भी अनजान बनते हुए बोला....

मंगलू --"ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने आज ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

मंगलू की बात अभि सब समझ रहा था। मंगलू ये समझता था की गांव वालो के लिए उनका सब कुछ उनकी जमीन ही थी। जो आज उनसे छीनने वाली थी।

अभि --"मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून भी गलत थी। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।"

अभि की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभि बोला...

अभि --"अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?"

इससे पहले अभि और कुछ बोलता मंगलू झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।"

अभि --"माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।"

अभि की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू --"जिस पेड़ को आज तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव इस भी इस इस उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम्बगांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सी सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।"

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभि का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए तरसता रहा, वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि --"मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।"

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू --"बेटा, आज हमारे यहां आज हम भूमि पूजन का उत्सव करते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए आज रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।"

मंगलू की बात सुनकर, अभि का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

"मैं कैसे भूल सकता हूं आज का दिन....?"

खुद से ही अभि इस तरह से बोला मानो आज का दिन उसके लिए बहुत खास था , और वो भूल गया हो और फिर अचानक याद आने पर मन में जिस तरह का भाव, उत्तेजना, आश्चर्य या बहुत से चीज जो उठाती है वही हाल अभि का था इस समय।

मंगलू --" क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?"

मंगलू की आवाज ने मानो पानी का छोटा मारा हो अभि पर और वो नींद से जाग गया हो।

अभि --" न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं ज़रूर आऊंगा।"

अभि के मुंह से ये सुनकर मंगलू काफी खुश हुआ, और अभि से विदा लेते हुए वहा से जाने के लिए मुड़ा ही था की...

अभि --"वैसे काका...????"

बोलते बोलते अभि रुक गया....मंगलू को लगा की शायद अभी कुछ पूछना चाहता है, इसलिए मंगलू ने ही कहा।


मंगलू --"बोलो बेटा, क्या हुआ...?"

अभि --"नही काका, कुछ नही , वो मैं बस ये कहे न चाहता था की जिस भूमि की आप सब पूजा करते हैं, उसे भला आप सब से कौन छीन सकता है?"

ये सुन कर मंगलू काफी खुश हुआ, हालाकि अभि कुछ और ही बोलना नहीं बल्कि पूछना चाहता था, पर बात बदलते हुए उसने काफी अच्छी बात कह दी...

मंगलू --"काम उम्र में काफी बड़ी बड़ी बाते कर लेते हो बेटा। भगवान तुम्हे हमेशा इसी तरह अच्छी और ध्यान की बातों की रौशनी दे।"

कहते हुए मांगू और उसके साथ वो आदमी दोनो गांव की तारा रुख मोड़ दिया...

मंगलू के जाते ही, अभि ना जाने क्यूं पर इतनी बेचैनी से और तेज गति से वहा से दौड़ा की पूछो मत....

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"मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?"

रमन एक पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए बोला...

मुनीम भी रमन के सामने खड़ा थोड़ी घबराहट में बोला...

मुनीम --"अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन की ये यकीन दिला सकी की सब गलती मेरी ही है।"

ये सुनकर रमन गुस्से में बोला......

रमन --"तुझे यह यकीन दिलाने की पड़ी है। उधर हाथ से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के लिए गांव वालो की ज़मीन हथिया लिया था, पर न जाने वो छोकरा कहा....!"

कहते हुए रमन की जुबान एक पल के लिए खामोश हो गई...

रमन --"मुनीम...ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?"

मुनीम --"कैसी बाते करते हो मालिक? आपको लाश नही मिली थी क्या? जो आप ऐसी बाते कर रहे हो? जरूर ये छोकरा आप के ही की दुश्मन का मोहरा होगा। जो चांद अंदर की बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।"

रमन --"और ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।"

मुनीम --"जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।"

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन --"मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भरी पद सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।"

मुनीम हाथ जोड़ते हुए रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन --"गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।"

मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन --"अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं। भाभी का पूरा ध्यान us छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा जो संभाल लेता। एक एक कर के सारे पन्ने पलटते लगेंगे। तू समझा ना मैं क्या कह रह हूं?"

मुनीम --"समझ गया मालिक, मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।"

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया...

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हल्का अंधेरा हो गया था...अभि के पैर अभि भी काफी तेजी से आगे बाद रहे थे। गांव की सड़को पर अभि काफी तेजी से भाग रहा था। वो जैसे ही गांव के तीन मोहाने पर पहुंचा उसके पैर रास्ते पर से नीचे उतर गए और पास के ही बगीचे की तरफ बढ़ गए, तभी वहां से एक कर गुजरी। कार में संध्या थी, जो अभी को उस बगीचे की तरफ जाते देख ली थी।

अभि को इस समय उस बाग की तरफ जाते देख, संध्या को हैरत भी हुई और बेचैनी भी। संध्या ने अपनी कार झट से रोक दी, और कार से नीचे उतरते हुए वो भी उसी बाग की तरफ काफी तेजी से बढ़ चली...

संध्या ने सदी पहेनी थी, इसलिए शायद उसे भागने में दिक्कत हो रही थी। बार बार उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से सरक जाती। पर वो उसे अपनी हाथो में पकड़े काफी तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी। संध्या अब उस आम के बगीचे में भटक रही थी। बहुत गहरा अंधेरा था । उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसकी नजरे अभि को ढूंढ रही थी, पर इस अंधेरे में उसे खुद के हाथ नही दिख रहे थे तो अभि कैसे दिखता। पर फिर भी अपनी तेज चल रही धड़कनों पर हाथ रखे वो इधर उधर छटपटाते हुए भटक रही थी। और मन में भगवान से एक ही बात बोल रही थी की उसे अभी दिख जाए......

ढूंढते हुए संध्या बगीचे के काफी अंदर चली आई थी, तभी उसे अचानक बगीचे के अखरी छोर पर एक उजाला नजर आया , उसका दिल धक रह गया, वो बिना कुछ सोचे इस उजाले की तरफ बढ़ चली...जैसे जैसे वो पास आबरा थी, वैसे वैसे उसे उस उजाले पर गिर रही एक परछाई उसे नजर आबरा थी। इसी हैरत और आश्चर्याता में उसके पैर और भी तेजी से चल पड़े।

जब वो बेहद नजदीक पहुंची, तो उसे वहां अभि तो नही, पर कोई और जरूर दिखा....

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आज की रात गांव पूरा चमक रहा था। गांव वालो की खुशियां टिमटिमाते हुए छोटे बल्ब बयां कर रही थी। सब गांव वाले आज नए नए कपड़े पहन कर एक जगह एकत्रित थे। एक जगह पर पकवान बन रहा था। तो एक जगह पर औरते अपना गीत गा रही थी। कही बुजुर्ग लोग बैठे आपस में बात करवरहे थे, तो कही बच्चे अपना बचपन शोर गुल करते हुए जी रहे थे। अल्हड़ जवानी की पहेली फुहार में भीगी वो लड़किया भी आज हसीन लग रही थी जिसे देख गांव के जवान मर्द अपनी आंखे सेंक रहे थे।

चारो तरफ शोर गुल और खुशियां ही थी, भूमि पूजन kabye उत्सव वाकई ही गांव वालो के लिए आज खुशियां समेत कर अपनी झोली में लाई थी।
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sumimaster

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aap jo bol rahe hai yeh koi problem hai hi nahi..aap galat tarike se soch rahe hai..raman ka beta hai aman isliye usko negative dikhaya hai aisi baat hai hi nahi..balki sandhya ke dimag me aisa dala gaya ki abhay uska beta galat harkate karta hai aur isliye sandhya abhay ko saja deti rahi..lekin wahi sandhya ke dimag me aisa dala gaya ki aman bahot sahi ladka hai lekin woh bachpan se abhay se jalta aaya hai..woh bachpan se galat harkate kar ke abhay ko fasata aaya hai..lekin abhay par bharosa na kar ke sandhya uss harami aman pe bharosa karte aayi hai..aman abhay ki premika payal ke bhi pichhe pada huva hai..niche jaati ke logo ko kam samajhta hai jaise uska baap hai..aur isme kuchh galat nahi huva hai kyunki aman ko uske baap ne aisi hi sikh di hai tabhi toh aisa bana hai..toh jo aman ka harami character hai woh kahani me justify ho raha hai..problem ki koi baat hi nahi hai..!!
And yet it is shown that Abhay was nurtured by Sandhya...and she even didn't taught him to be good... neither she understood Abhay at the time nor she really loved and did care for Aman...she is the whore who just saw her bil's dick....
 
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