mayanksaxena85
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Happy Diwali rekha ji as always Superb writing but your update process is quite slow be regular
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Rekha bhi Sunil ka lund dekhkar garam ho gayi hai ab to Rekha ki soch ne bhi mummy ke liye Rajamandi de di hai ab lagta hai Sunil ko bhi Rekha chance degiअध्याय -- 52
ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़, घबराहट, बेचैनी, डर, दर्द सब फना हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.
मैं इन्ही ख़यालों मे खोई हुई थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई तो मैं जाग गयी. देखती हूँ कि मेरी जेठानी दरवाज़े पर पर्दे के पीछे खड़ी दरवाज़ा नॉक कर रही है. मैने ये भी देखा कि मेरे पति जा चुके हैं, मैने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 10 बज चुके थे. मुझे ख़याल आया कि ना जाने घर वाले सब क्या सोचते होंगे.मैने अपनी जेठानी को अंदर आने को कहा.वो अंदर आई तो उसके चेहरे पर एक सवालिया निशान था लेकिन जब उसने मेरे चेहरे पर सुकून देखा तो वो थोड़ा सा मुस्कुरा दी. मेरी जेठानी ने अपने हाथ मे रखी चाइ की ट्रे वो बेड के साइड टेबल पर रख कर मेरे करीब बैठ कर सवाल किया.
जेठानी: क्यूँ रेखा आज तो चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा है लगता है सफ़र की सारी थकान मिट गयी है और इसलिए देर तक सोती रही आप.
मैं: क्या मतलब.
जेठानी: रात बड़ी हसीन गुज़री है आप की.
मैं शरमा सी गयी, हलाकी की जेठानी मुझसे उमर मे बड़ी होगी लेकिन अभी भी मैं इनके लिए नयी थी तो थोड़ा झिझक रही थी, इसलिए मैं कुछ बोल ना सकी.
जेठानी: बताओ ना रेखा कल रात क्या हुआ, क्या ये कली फूल बन पाई.
मैं अभी भी सर झुकाए अपने घुटने पर सर रखे अपना सर छुपा रही थी कि अचानक मुझे अपनी सफेद चद्दर पर खून के लाल धब्बे दिखाई दिए. ये वही खून के
धब्बे थे वो रात की कहानी कह रहे थे. ये निशान मेरे कली से फूल बनने की थे. मेरे चेहरे पर बेतहाशा शर्म और थोड़ी घबराहट के आसार नज़र आ गये जिसको
देख कर मेरी जेठानी की नज़रे जैसे मेरी नज़रो को टटोलते हुए उन धब्बो पर पहुँच गयी. मैने उसके चेहरे को देखा तो वो अब खुल कर हंस पड़ी.
जेठानी: तो ये बात है.चलो अच्छा हुआ खैर मैं आपको और परेशान नही करूँगी. आप नहा लीजिए और फिर नाश्ता कर लीजिए. बाद मे बात करेंगे.
मैं अब ये नही जानती थी कि इस चद्दर को बदलू कैसे और इसको छुपाऊ कहाँ. खैर मैं उस पर अपना तालिया रखकर फ्रेश होने चली गयी और जब लौट कर आई तो देखा कि वो चद्दर गायब थी और उसकी जगह एक दूसरी नयी चद्दर बिछी हुई थी. मुझे एक झटका सा लगा. खैर नाश्ता किया और थोड़ा सा लेट गयी.
ये बहार का मौसम था, बाहर ठंडी मीठी हवा चल रही थी. इस घर के चारो तरफ एक बड़ी सी दीवार थी और अंदर बड़े बड़े दरख़्त थे. ये एक बड़ा सा पुश्तैनी घर था. चिड़ियो के चहकने की आवाज़ आ रही थी और ये दिन आम दिनो से अलग बड़ा ही ख़ुशगवार लग रहा था.मैने आँखें बंद कर ली और मैं नींद मे जा चुकी थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई के मैं जाग गयी. ये मेरी सास थी. मैने अपने आप को संभाला और उठ बैठी. मेरी सास मेरे करीब आकर बैठी और उन्होने मेरे माथे को चूम लिया और मेरे सर पर हाथ रख कर बोली "संजय चला गया काम पर ?"
मैं: हां शायद.
सास: अच्छा, और तुम बताओ ठीक हो?
मैं: हां मम्मी जी (दर असल हम लड़कियों के लिए ससुराल में नई नई होने पर एक औरत को मम्मी कहना ऊपर से मम्मी के आगे जी लगाना शुरु के दिनों में एक मजबूरी और बड़ी ही परेशानी का सबब होती हैं)
सास: अच्छा लगा बेटी तुम्हारा चेहरा देख कर, दिल को तसल्ली सी हो गयी. तुमने नाश्ता कर लिया क्या?
मैं: जी
सास: तुम्हारी मा का फोन आया था सुबह,वो तुम्हे बाकी की रस्मो के लिए घर बुलाना चाहती हैं. मैने सोचा पहले तुमसे और संजय से मशविरा ले लिया जाए. संजय शाम को आएगा तो मैं उससे भी पूंछ लूँगी. तुम्हारे ससुर की भी यही राय है. तुम क्या कहती हो इस बारे में?
मैं: जैसा आप लोग ठीक समझें.
सास: तो ठीक है, तुम हो आओ अपने घर और इन्ही रस्मो के बहाने थोड़ा मज़ा भी कर लो.हम बूढो को तो ये सब खेल तमाशा ही लगता है.
मैं: जी
सास: अच्छा,अगर तुम चाहो तो मेरे साथ बैठक मे बैठ सकती हो, वहाँ बड़ी ठंडी हवा आती है और औरतो के सिवा वहाँ कोई आता भी नही है.
मैं: ठीक है......और मैं फिर उनके पीछे चल पड़ी.
रात को संजय आए और वो मुझे मेरे घर भेजने के लिए राज़ी थे. अगले दिन मैं घर पहुँच गयी. घर पर मेरी मा, बहन, मेरा भाई,मेरे पापा और मेरी दादी और उनकी बहू मेरी कजिन भाभी सब मौजूद थे. संजय को बैठक मे बिठाया गया. नाश्ता, खाना पीना होने के बाद फिर वही सब रस्मो रिवाज और वही सब चीज़े. सब लोग बहुत खुश थे. मैं गौर किया कि मेरी मम्मी भी बड़ी खुश थी,बड़े दिनो के बाद उनके माथे की सिलवटें मिट गयी थी और उनका चेहरा ताज़ा ताज़ा सा लग रहा था. इस वक्त तक मुझे नही पता था कि मम्मी की ख़ुशी का वास्तविक रहस्य क्या था....?????
अब मुझे अपना ही घर थोड़ा अंजाना सा लग रहा था. मैं पलट पलट कर हर चीज़ को देख रही थी. आज ये मुझे बेगाना बेगाना सा लगता था. मुझे अपने उपर यकीन नही आ रहा था. मेरे पापा अब भी संजय से बात कर रहे थे और मेरी दादी मेरी मम्मी के साथ बैठ कर बातें कर रही थीं. इसी तरह शाम होते होते पापा, दादी और उनकी बहू को गाँव छोड़ने चले गए, अंजू अपने ससुर की तबियत ठीक है नही है और कल सुबह वापस आने का बोलकर निकल गयी। संजय भी मुझे मेरे घर छोड़ कर अपने घर चले गये. अब घर में हम तीन मेरी मम्मी और मेरा भाई ही बचे। अब मुझे पहले की की तरह अपने भाई (पुरानी फिल्म के विलेन रंजीत) की ओर से कुछ गंदी हरकत होने का भय तो नही लग रहा था, लेकिन एक हलचल सी ज़रूर हो रही थी।
शाम करीब आठ साढ़े आठ बजे किचिन में जाते ही मैने जब अपनी मम्मी और भाई को एक दूसरे के मुँह में मुँह डाले खड़े पाया। मै तो कभी अपने ख्वाब में भी अपनी मम्मी से इस किसम की हरकत की उम्मीद नही कर सकती थी। इसीलिए अपनी खुली आँखों से अपने सामने अपनी मम्मी को यूं अपने सगे बेटे को चूमते हुए और एक हाथ से उसका लंड मसलते देख कर मेरा मुँह हैरत के मारे खुले का खुला रह गया। मैने इस नये प्रेमी जोड़े को कुछ देर डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा। और खामोशी से खड़ी अपनी मम्मी और भाई का एक दूसरे के साथ प्यार का इज़हार देखती रही।
" अब बस भी करो मम्मीईईईईईईई!" थोड़ी देर अपनी मम्मी और भाई के शो को देखने के बाद मेरा सबर ख़तम हुआ तो मै आखिर कार चिल्ला पड़ी।
"ओह अच्छाआआआआआअ" सुनील और मम्मी मेरी किचिन के दरवाजे पर मौजूदगी का पता चलते ही एक दूसरे से एक दम लग हुए। और जैसे एक छोटा बच्चा अपनी चोरी पकड़े जाने पर घर के बड़े से अपनी नज़रें चुराने लगता है। उसी तरह सुनील और मम्मी भी दोनो ही मुझ से अपनी नज़रें चुराने लगे।
अपने भाई और मम्मी को यूँ घबराता देख कर मैने उन्हे चिढ़ाते हुए एक ज़ोरदार कहकहा लगाया और मूड कर अपने कमरे की तरफ चली गई। और अपने पलंग पर उल्टा लेटकर सोचने लगी।
मेरे जेहन में ख्याल आया। "अच्छा तो ये बात है कि मेरे ब्याह होने के बाद भाई और मम्मी अब एक दूसरे के लिए गरम होने लगे हैं ।" अपनी मम्मी को अपने जवान बेटे के लंड को मसलता आज पहली बार यूँ देख कर मुझ को अपनी मम्मी से एक चुभन सी महसूस हुई और मै बे इंतिहा गुस्से में आ गई। हर मिडिल क्लास फैमिली की तरह मै भी अपने सगे भाई को अपनी ही मम्मी के साथ ये अमर्यादित काम करते हुए कभी भी कबूल नही कर सकती थी।
इसीलिए अब मेरी शकल गुस्से में लाल पीली हो रही थी।
"इस से पहले कि में गुस्से में आ कर कुछ ग़लत गाली गलौज कर बैठू, मुझे कल सुबह ही वापस अपनी ससुराल चले जाना चाहिए ।" मैने अपने गुस्से को अपने दिमाग़ में काबू करते हुए सोचा।
मगर इस वाकये की वजह से आज की रात नींद तो मेरी आँखों से जैसे बहुत दूर भाग गई थी। मै इस वक्त गुस्से से भरी हुई अपने बिस्तर पर लेट कर बार बार करवटें बदल रही थी। और मेरे दिमाग़ में इस वक्त कई तरह की सोचें एक साथ जनम ले रहीं थी। अपनी इन ही सोचो में गुम हो कर मुझको मम्मी और अपने भाई सुनील के दरमियाँ मेरी शादी से पहले होने वाली बात चीत याद आ गई।
मम्मी को अपने बेटे से अपनी बेटी की शादी से पहले ये डर लगा हुआ था। कि कहीं सुनील रेखा की शादी से पहले उसकी आबरू ना लूट ले। इसीलिए मम्मी ने अपने बेटे से वादा लिया था। कि सुनील रेखा की शादी तक उससे दूर ही रहेगा। और रेखा की शादी के बाद उस साथ के जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करेगी।
मगर इस के साथ साथ मेरे दिमाग़ में वो वक्त आ गया। जब पापा के साथ दस साल पहले वो हादसा हुआ था और पापा पूरे तीन साल तक बिसतर् पर थे ठीक से बैठ नही सकते थे। उस हादसे के बाद से पापा की कमर का ऑपरेशन के बाद आज तक मम्मी पापा ने संभोग नही किया है। उस वक्त मम्मी जवान ही थी। अगर मम्मी चाहती तो अपनी जवानी की आग को बुझाने के लिए किसी गैर मर्द का सहारा ढूंड सकती थी। मगर मम्मी ने अपनी जवानी के जज़्बात को भुला कर अपना ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चो की परवरिश पर कर दिया था। और अब भी अगर मम्मी हेल्प ना करतीं, तो ना ही मेरी शादी हो पाती और अपने प्यारे पति संजय का इतना मोटा और सख़्त लंड कभी नसीब ना होता ।" मेरे जेहन में ये ख्याल आया। तो मुझ को अपनी मम्मी के मुतलक अपनी सोचो पर खुद से शरम आने लगी।
इस के साथ ही साथ मुझ को अपनी प्यासी जवानी का वक्त भी याद आने लगा। जवान जिस्म और चूत की ये आग रात की तेन्हाई में कैसे और कितना तंग करती है। मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्करने लगी "अपनी मम्मी पर गुस्सा होने से पहले, तुम वो वक्त याद करो रेखा, जब तुम्हें अपनी प्यासी चूत के लिए एक जवान लंड की तलब हो रही थी, उस टाइम तुमने अपनी सगी बहन के पति के साथ चुदाई कर अपनी प्यास बुझाई थी।
"अगर में अपनी जवानी की आग के हाथों मजबूर हो कर अपनी जवानी अपनी ही सगी बहन के पति को सोन्प सकती हूँ, तो फिर ये ही काम अगर मेरी मम्मी अपने सगे बेटे से कर ले तो इस में हरज ही क्या है, वैसे भी चूत तो चूत होती है, चाहे वो बहन की चूत हो या मम्मी की, और लंड तो लंड ही होता है, चाहे वो सगे भाई का हो या सगे जवान बेटे का!"
मेरे दिल और मन ने ज्यों ही इस ख्याल ने जनम लिया। तो इस ख्याल को अपने जेहन में लाते ही मेरी मोटी फुद्दि नीचे से गरम होने लगी।
"हाईईईईईईईई! मेरा भाई मेरी मम्मी को चोद कर उन्हे मेरी भाभी बना सकता है ।" अपनी ही सग़ी मम्मी को अपनी भाभी बनाने का ख्याल दिल में आते ही मेरी चूत इतनी गरम हुई। के बिना हाथ लगाए मेरी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया।
ज्यों ही चूत ने पानी छोड़ा। तो मुझ को यूँ लगा जैसे अपने भाई के लिए मेरे दिल में भरा हुआ गुस्सा । और अपनी मम्मी के लिए मेरे दिल में जनम लेने वाली नफ़रत और गुस्सा मेरी चूत के पानी के साथ बह कर मेरे जिस्म से बाहर निकल गई हो।
आज अपनी चूत को छुए बगैर ही अपनी फुद्दि के पानी को यूँ रिलीस करने का ये तजुर्बा इतना अच्छा था। कि मै फॉरन अपने आप को पुरसकून महसूस करने लगी। जिस की वजह से मै चन्द लम्हों में ही मीठी नींद सो गई।
मस्त अपडेट ....अध्याय -- 52
ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़, घबराहट, बेचैनी, डर, दर्द सब फना हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.
मैं इन्ही ख़यालों मे खोई हुई थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई तो मैं जाग गयी. देखती हूँ कि मेरी जेठानी दरवाज़े पर पर्दे के पीछे खड़ी दरवाज़ा नॉक कर रही है. मैने ये भी देखा कि मेरे पति जा चुके हैं, मैने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 10 बज चुके थे. मुझे ख़याल आया कि ना जाने घर वाले सब क्या सोचते होंगे.मैने अपनी जेठानी को अंदर आने को कहा.वो अंदर आई तो उसके चेहरे पर एक सवालिया निशान था लेकिन जब उसने मेरे चेहरे पर सुकून देखा तो वो थोड़ा सा मुस्कुरा दी. मेरी जेठानी ने अपने हाथ मे रखी चाइ की ट्रे वो बेड के साइड टेबल पर रख कर मेरे करीब बैठ कर सवाल किया.
जेठानी: क्यूँ रेखा आज तो चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा है लगता है सफ़र की सारी थकान मिट गयी है और इसलिए देर तक सोती रही आप.
मैं: क्या मतलब.
जेठानी: रात बड़ी हसीन गुज़री है आप की.
मैं शरमा सी गयी, हलाकी की जेठानी मुझसे उमर मे बड़ी होगी लेकिन अभी भी मैं इनके लिए नयी थी तो थोड़ा झिझक रही थी, इसलिए मैं कुछ बोल ना सकी.
जेठानी: बताओ ना रेखा कल रात क्या हुआ, क्या ये कली फूल बन पाई.
मैं अभी भी सर झुकाए अपने घुटने पर सर रखे अपना सर छुपा रही थी कि अचानक मुझे अपनी सफेद चद्दर पर खून के लाल धब्बे दिखाई दिए. ये वही खून के
धब्बे थे वो रात की कहानी कह रहे थे. ये निशान मेरे कली से फूल बनने की थे. मेरे चेहरे पर बेतहाशा शर्म और थोड़ी घबराहट के आसार नज़र आ गये जिसको
देख कर मेरी जेठानी की नज़रे जैसे मेरी नज़रो को टटोलते हुए उन धब्बो पर पहुँच गयी. मैने उसके चेहरे को देखा तो वो अब खुल कर हंस पड़ी.
जेठानी: तो ये बात है.चलो अच्छा हुआ खैर मैं आपको और परेशान नही करूँगी. आप नहा लीजिए और फिर नाश्ता कर लीजिए. बाद मे बात करेंगे.
मैं अब ये नही जानती थी कि इस चद्दर को बदलू कैसे और इसको छुपाऊ कहाँ. खैर मैं उस पर अपना तालिया रखकर फ्रेश होने चली गयी और जब लौट कर आई तो देखा कि वो चद्दर गायब थी और उसकी जगह एक दूसरी नयी चद्दर बिछी हुई थी. मुझे एक झटका सा लगा. खैर नाश्ता किया और थोड़ा सा लेट गयी.
ये बहार का मौसम था, बाहर ठंडी मीठी हवा चल रही थी. इस घर के चारो तरफ एक बड़ी सी दीवार थी और अंदर बड़े बड़े दरख़्त थे. ये एक बड़ा सा पुश्तैनी घर था. चिड़ियो के चहकने की आवाज़ आ रही थी और ये दिन आम दिनो से अलग बड़ा ही ख़ुशगवार लग रहा था.मैने आँखें बंद कर ली और मैं नींद मे जा चुकी थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई के मैं जाग गयी. ये मेरी सास थी. मैने अपने आप को संभाला और उठ बैठी. मेरी सास मेरे करीब आकर बैठी और उन्होने मेरे माथे को चूम लिया और मेरे सर पर हाथ रख कर बोली "संजय चला गया काम पर ?"
मैं: हां शायद.
सास: अच्छा, और तुम बताओ ठीक हो?
मैं: हां मम्मी जी (दर असल हम लड़कियों के लिए ससुराल में नई नई होने पर एक औरत को मम्मी कहना ऊपर से मम्मी के आगे जी लगाना शुरु के दिनों में एक मजबूरी और बड़ी ही परेशानी का सबब होती हैं)
सास: अच्छा लगा बेटी तुम्हारा चेहरा देख कर, दिल को तसल्ली सी हो गयी. तुमने नाश्ता कर लिया क्या?
मैं: जी
सास: तुम्हारी मा का फोन आया था सुबह,वो तुम्हे बाकी की रस्मो के लिए घर बुलाना चाहती हैं. मैने सोचा पहले तुमसे और संजय से मशविरा ले लिया जाए. संजय शाम को आएगा तो मैं उससे भी पूंछ लूँगी. तुम्हारे ससुर की भी यही राय है. तुम क्या कहती हो इस बारे में?
मैं: जैसा आप लोग ठीक समझें.
सास: तो ठीक है, तुम हो आओ अपने घर और इन्ही रस्मो के बहाने थोड़ा मज़ा भी कर लो.हम बूढो को तो ये सब खेल तमाशा ही लगता है.
मैं: जी
सास: अच्छा,अगर तुम चाहो तो मेरे साथ बैठक मे बैठ सकती हो, वहाँ बड़ी ठंडी हवा आती है और औरतो के सिवा वहाँ कोई आता भी नही है.
मैं: ठीक है......और मैं फिर उनके पीछे चल पड़ी.
रात को संजय आए और वो मुझे मेरे घर भेजने के लिए राज़ी थे. अगले दिन मैं घर पहुँच गयी. घर पर मेरी मा, बहन, मेरा भाई,मेरे पापा और मेरी दादी और उनकी बहू मेरी कजिन भाभी सब मौजूद थे. संजय को बैठक मे बिठाया गया. नाश्ता, खाना पीना होने के बाद फिर वही सब रस्मो रिवाज और वही सब चीज़े. सब लोग बहुत खुश थे. मैं गौर किया कि मेरी मम्मी भी बड़ी खुश थी,बड़े दिनो के बाद उनके माथे की सिलवटें मिट गयी थी और उनका चेहरा ताज़ा ताज़ा सा लग रहा था. इस वक्त तक मुझे नही पता था कि मम्मी की ख़ुशी का वास्तविक रहस्य क्या था....?????
अब मुझे अपना ही घर थोड़ा अंजाना सा लग रहा था. मैं पलट पलट कर हर चीज़ को देख रही थी. आज ये मुझे बेगाना बेगाना सा लगता था. मुझे अपने उपर यकीन नही आ रहा था. मेरे पापा अब भी संजय से बात कर रहे थे और मेरी दादी मेरी मम्मी के साथ बैठ कर बातें कर रही थीं. इसी तरह शाम होते होते पापा, दादी और उनकी बहू को गाँव छोड़ने चले गए, अंजू अपने ससुर की तबियत ठीक है नही है और कल सुबह वापस आने का बोलकर निकल गयी। संजय भी मुझे मेरे घर छोड़ कर अपने घर चले गये. अब घर में हम तीन मेरी मम्मी और मेरा भाई ही बचे। अब मुझे पहले की की तरह अपने भाई (पुरानी फिल्म के विलेन रंजीत) की ओर से कुछ गंदी हरकत होने का भय तो नही लग रहा था, लेकिन एक हलचल सी ज़रूर हो रही थी।
शाम करीब आठ साढ़े आठ बजे किचिन में जाते ही मैने जब अपनी मम्मी और भाई को एक दूसरे के मुँह में मुँह डाले खड़े पाया। मै तो कभी अपने ख्वाब में भी अपनी मम्मी से इस किसम की हरकत की उम्मीद नही कर सकती थी। इसीलिए अपनी खुली आँखों से अपने सामने अपनी मम्मी को यूं अपने सगे बेटे को चूमते हुए और एक हाथ से उसका लंड मसलते देख कर मेरा मुँह हैरत के मारे खुले का खुला रह गया। मैने इस नये प्रेमी जोड़े को कुछ देर डिस्टर्ब करना मुनासिब ना समझा। और खामोशी से खड़ी अपनी मम्मी और भाई का एक दूसरे के साथ प्यार का इज़हार देखती रही।
" अब बस भी करो मम्मीईईईईईईई!" थोड़ी देर अपनी मम्मी और भाई के शो को देखने के बाद मेरा सबर ख़तम हुआ तो मै आखिर कार चिल्ला पड़ी।
"ओह अच्छाआआआआआअ" सुनील और मम्मी मेरी किचिन के दरवाजे पर मौजूदगी का पता चलते ही एक दूसरे से एक दम लग हुए। और जैसे एक छोटा बच्चा अपनी चोरी पकड़े जाने पर घर के बड़े से अपनी नज़रें चुराने लगता है। उसी तरह सुनील और मम्मी भी दोनो ही मुझ से अपनी नज़रें चुराने लगे।
अपने भाई और मम्मी को यूँ घबराता देख कर मैने उन्हे चिढ़ाते हुए एक ज़ोरदार कहकहा लगाया और मूड कर अपने कमरे की तरफ चली गई। और अपने पलंग पर उल्टा लेटकर सोचने लगी।
मेरे जेहन में ख्याल आया। "अच्छा तो ये बात है कि मेरे ब्याह होने के बाद भाई और मम्मी अब एक दूसरे के लिए गरम होने लगे हैं ।" अपनी मम्मी को अपने जवान बेटे के लंड को मसलता आज पहली बार यूँ देख कर मुझ को अपनी मम्मी से एक चुभन सी महसूस हुई और मै बे इंतिहा गुस्से में आ गई। हर मिडिल क्लास फैमिली की तरह मै भी अपने सगे भाई को अपनी ही मम्मी के साथ ये अमर्यादित काम करते हुए कभी भी कबूल नही कर सकती थी।
इसीलिए अब मेरी शकल गुस्से में लाल पीली हो रही थी।
"इस से पहले कि में गुस्से में आ कर कुछ ग़लत गाली गलौज कर बैठू, मुझे कल सुबह ही वापस अपनी ससुराल चले जाना चाहिए ।" मैने अपने गुस्से को अपने दिमाग़ में काबू करते हुए सोचा।
मगर इस वाकये की वजह से आज की रात नींद तो मेरी आँखों से जैसे बहुत दूर भाग गई थी। मै इस वक्त गुस्से से भरी हुई अपने बिस्तर पर लेट कर बार बार करवटें बदल रही थी। और मेरे दिमाग़ में इस वक्त कई तरह की सोचें एक साथ जनम ले रहीं थी। अपनी इन ही सोचो में गुम हो कर मुझको मम्मी और अपने भाई सुनील के दरमियाँ मेरी शादी से पहले होने वाली बात चीत याद आ गई।
मम्मी को अपने बेटे से अपनी बेटी की शादी से पहले ये डर लगा हुआ था। कि कहीं सुनील रेखा की शादी से पहले उसकी आबरू ना लूट ले। इसीलिए मम्मी ने अपने बेटे से वादा लिया था। कि सुनील रेखा की शादी तक उससे दूर ही रहेगा। और रेखा की शादी के बाद उस साथ के जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करेगी।
मगर इस के साथ साथ मेरे दिमाग़ में वो वक्त आ गया। जब पापा के साथ दस साल पहले वो हादसा हुआ था और पापा पूरे तीन साल तक बिसतर् पर थे ठीक से बैठ नही सकते थे। उस हादसे के बाद से पापा की कमर का ऑपरेशन के बाद आज तक मम्मी पापा ने संभोग नही किया है। उस वक्त मम्मी जवान ही थी। अगर मम्मी चाहती तो अपनी जवानी की आग को बुझाने के लिए किसी गैर मर्द का सहारा ढूंड सकती थी। मगर मम्मी ने अपनी जवानी के जज़्बात को भुला कर अपना ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चो की परवरिश पर कर दिया था। और अब भी अगर मम्मी हेल्प ना करतीं, तो ना ही मेरी शादी हो पाती और अपने प्यारे पति संजय का इतना मोटा और सख़्त लंड कभी नसीब ना होता ।" मेरे जेहन में ये ख्याल आया। तो मुझ को अपनी मम्मी के मुतलक अपनी सोचो पर खुद से शरम आने लगी।
इस के साथ ही साथ मुझ को अपनी प्यासी जवानी का वक्त भी याद आने लगा। जवान जिस्म और चूत की ये आग रात की तेन्हाई में कैसे और कितना तंग करती है। मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्करने लगी "अपनी मम्मी पर गुस्सा होने से पहले, तुम वो वक्त याद करो रेखा, जब तुम्हें अपनी प्यासी चूत के लिए एक जवान लंड की तलब हो रही थी, उस टाइम तुमने अपनी सगी बहन के पति के साथ चुदाई कर अपनी प्यास बुझाई थी।
"अगर में अपनी जवानी की आग के हाथों मजबूर हो कर अपनी जवानी अपनी ही सगी बहन के पति को सोन्प सकती हूँ, तो फिर ये ही काम अगर मेरी मम्मी अपने सगे बेटे से कर ले तो इस में हरज ही क्या है, वैसे भी चूत तो चूत होती है, चाहे वो बहन की चूत हो या मम्मी की, और लंड तो लंड ही होता है, चाहे वो सगे भाई का हो या सगे जवान बेटे का!"
मेरे दिल और मन ने ज्यों ही इस ख्याल ने जनम लिया। तो इस ख्याल को अपने जेहन में लाते ही मेरी मोटी फुद्दि नीचे से गरम होने लगी।
"हाईईईईईईईई! मेरा भाई मेरी मम्मी को चोद कर उन्हे मेरी भाभी बना सकता है ।" अपनी ही सग़ी मम्मी को अपनी भाभी बनाने का ख्याल दिल में आते ही मेरी चूत इतनी गरम हुई। के बिना हाथ लगाए मेरी चूत ने अपना पानी छोड़ दिया।
ज्यों ही चूत ने पानी छोड़ा। तो मुझ को यूँ लगा जैसे अपने भाई के लिए मेरे दिल में भरा हुआ गुस्सा । और अपनी मम्मी के लिए मेरे दिल में जनम लेने वाली नफ़रत और गुस्सा मेरी चूत के पानी के साथ बह कर मेरे जिस्म से बाहर निकल गई हो।
आज अपनी चूत को छुए बगैर ही अपनी फुद्दि के पानी को यूँ रिलीस करने का ये तजुर्बा इतना अच्छा था। कि मै फॉरन अपने आप को पुरसकून महसूस करने लगी। जिस की वजह से मै चन्द लम्हों में ही मीठी नींद सो गई।
Yaar manu ji ek baat batao ki khane ke liye teyar sabji seene par fekne se fafole ho jayenge or vo bhi chut, gaand agal bagal me ek katori sabji se yaar tum bhi kamal karte ho,भाई साहब रेखा ने अरुण की "बहनों के तीन भात"" वाली बात सुनकर उत्सुकता वश पूछा था और उसका वरन भी कहानी में है।
अरुण की मम्मी के साथ हुयी घटना के बारे में कुछ कहा है....
भाई जी अरुण ने ये बात बोली है घटना 5-6 साल पुरानी है और उस समय अरुण की उम्र महज उतनी होगी जो xfourm पर नही लिख सकते है। और उस उम्र में 22 साल पहले अरुण माँ की नजर में बच्चा ही था। और उस घटना को वो अब रेखा को बता रहा है, जब वो दुनिया दारी समझ चुका है।
भाई वो बहुत पुरानी बात हो गयी, फिर भी आप एक बार गरम रसीली सब्जी को अपने निजी अंगो पर उढ़ेल कर चेक कर सकते हैYaar manu ji ek baat batao ki khane ke liye teyar sabji seene par fekne se fafole ho jayenge or vo bhi chut, gaand agal bagal me ek katori sabji se yaar tum bhi kamal karte ho,
Or papa ne arun ki mammy ko kaise pataya kyu jhagda karte ye arun ko uski mammy ne bataya arun ke papa shak nhi karte sach jante the the.
दोनों आई डी इसी भाई की हैंInvitation to tujhe bhi nhi aaye lagta hai bro, tabhi maidam ke badle tum lge ho reply dene ko, aur shayad maidam se kuchh jyada hi close ho jo sb bato ka pata hai