Desitejas
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Shandar Updateमैने मन ही मन सोच लिया था अब मुझे भी
सुनील भैया के लिए कुछ करना चाहिए....)
अध्याय -- 7 -----
अरुण और सुनील भैया की बातें सुनकर इस दौरान मै कई बार बहुत गरम भी हुयी थी! जिसके वजह से मुझे बाथरूम जाकर सबसे पहले अपने आप को ठंडा करना पड़ा था......
बाथरूम से वापस आने के बाद मै कमरे मे जाकर अपने बिस्तर पर लेट गयी, और सुनील भैया की नूतन से फिर से टांका भिड़ाने की सोचने लगी!! मुझे सुनील भैया से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा भाई था. मुझे सुनील भैया से कुछ ज्यादा ही लगाव, प्यार, प्रेम है मुझे आज भी याद है।
एक बार जब मेरे बुआ और फूफा जी हमारे यहाँ रुके हुए थे तब बुआ को मैंने मेरी मम्मी से कहते हुए सुना कि मेरे पापा ने मेरे पैदा होने के बाद शायद उनको चड्डी पहनने का भी समय नहीं दिया होगा, उस से पहले ही दोबारा पेल दिया होगा जिसकी वजह से
रेखा पैदा हो गयी। शायद बुआ को नहीं मालूम कि मैंने उनकी बात सुन ली थी। लेकिन ये बात सच थी कि मेरे और सुनील भैया के पैदा होने बीच एक साल से भी कम का अन्तर था, और इसी वजह से बचपन से ही हम दोनों एक दूसरे के बेहद करीब थे।
मम्मी भी शायद इसी वजह से हमारे लिये थोड़ा ज्यादा प्रोटेक्टिव थीं, जिसकी वजह से हम दोनों एक दूसरे के और ज्यादा करीब आ गये थे। कई बार ऐसा होता कि हमारे स्कूल की छुट्टी होती, और मम्मी को मार्केट जाना होता, तो मम्मी अंजू दीदी को साथ ले जाती और मुझे सुनील भैया को घर में बन्द कर के बाहर से ताला लगा कर चली जाया करती थीं। तो इन सब परिस्थितियों में मैं और सुनील भैया बहुत समय एक दूसरे के साथ बिताया करते थे।
जब हम छोटे छोटे थे शायद .......... साल के होंगे तब तक मम्मी हम तीनो को एक साथ नहलाया करती थीं। स्वाभाविक रूप से मुझे हमेशा ये कौतुहल रहता कि अंजू दीदी और मेरे पास, सुनील भैया की तरह लण्ड नहीं था, हाँलांकि तब मैं उसको लण्ड नहीं कहा करता थी। मम्मी ने मुझे उसको फ़ुन्नी कहना सिखाया था। और मेरे ख्याल से मम्मी ने तब से हम तीनो को एक साथ नहलाना बन्द कर दिया था जब एक बार मैंने उनसे पूछ लिया था कि मेरी फ़ुन्नी किस ने काट ली। बाल सुलभ जिज्ञासायें इतनी जल्दी खतम भी नहीं होतीं, और समय के साथ मेरी भी समझ में आ गया कि सभी लड़कियाँ ऐसी ही होती हैं।
शाम होने को आई थी तभी मम्मी की आवाज आई रेखड़ी ओ रेखड़ी अरे महारानी अगर कमर सीधी हो गयी हो तो कुछ काम में हाथ बँटा???? मम्मी और अंजू दीदी वो दोनों हाथो में थैली पकड़े हुए मार्केट से वापस आई थी!!
(( अक्सर सुनते हैं कि जिनके एक से ज्यादा बच्चे होते है, और माँ सबसे एक सा ही प्यार करती है, बर्ताव करती है, ये बात मेरे अनुभव से गलत है,
मुझे ऐसा लगता था कि मम्मी हम तीनो भाई बहन में सबसे कम मुझे पसंद करती थी, हमेशा मुझे ही ज्यादा लेक्चर सुनाती थी! )) हाहाहा))
मै मम्मी की आवाज सुनकर उनके साथ काम में हाथ बटाने लगी, अंजू दीदी थक हुयी हू बोल कर बिस्तर पर आराम से लेट गयी।
खाना खाने के बाद अक्सर मै कुछ मीठा खाती थी, चाहे वो गुड या बतासे ही क्यो ना हो।और गुड़ का डिब्बा चींटियों की वजह से मम्मी ऊँची अलमारी में रखती थी, मै रोज़ की तरह आज भी मै स्टूल पर खड़ी होकर गुड़ का डिब्बा उठाने लगी जैसे ही अपना एक पाँव स्टूल पर रखा तभी अचानक से मेरा पैर फिसल गया और मै तुरंत पीछे की ओर गिरने लगी तभी एक मज़बूत हाथ ने मेरी बाहें थाम ली.......वो मज़बूत बाहें और किसी की नहीं बल्कि सुनील भैया की थी......वो मुझे अपनी जिस्म की तरफ खीचता है और अगले ही पल मै संभल कर सीधी खड़ी हो गयी ...... इस वक़्त हम दोनो के चेहरों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी.......तभी सुनील भैया आगे बढ़कर कमरे की तरफ चले गए .....और मै गुड़ का डिब्बा लेकर किचिन से बाहर आ गयी।
ये देख कर अंजू बोली - क्यों सही से चढ़ नहीं पाती क्या.....आज सुनील ने अगर सही समय पर तेरा हाथ नहीं पकड़ा होता तो तू तो गयी थी आज उपर......
मुझे अंजू दीदी पर हल्का गुस्सा था - प्लीज़ स्टॉप इट दीदी....तुझे बक बक के सिवा और कुछ नहीं सूझता क्या......
अंजू दीदी - मैं तेरी तरह फालतू नहीं हूँ....जब देखो तब कुछ भी खाने में लगी रहती है
मैं अंजू दीदी की बातों को सुनकर कुछ पल तक यू ही खामोश रही......मैं अच्छे से जानती थी कि मैं बहस में उससे कभी जीत नहीं सकती.....
रोज की तरह खाना खा पीकर हम अपने अपने बिस्तर पर लेट गये..... मैं अपने अपने बिस्तेर पर लेटी हुई आज भी अपनी चिट्ठी में वो बीते हसीन लम्हें लिख रही थी......हालाँकि ऐसा मेरा साथ अभी तक कुछ हुआ नहीं था फिर भी दिल में एक मीठी सी चुभन हमेशा रहती थी........कल ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए है और अब मैं राहत सी महसूस कर रही थी........मगर आज मेरे पास लिखने को ज़्यादा कुछ नहीं था इस लिए मैने अपनी कॉपी बंद कर दी और अपने अरुण के बारे में सोचने लगी........मगर आज पहली बार मैं अपने भाई के लिए सोचने पर मज़बूर हो गयी थी......बार बार मेरे जेहन में बस सुनील भैया का हाथ पकड़ना मुझे याद आ रहा था.......इससे पहले भी वो मेरे हाथ ना जाने कितनी बार पकड़ चुका था मगर मैने इस बारे में कभी ज़्यादा गौर नहीं किया था......मगर आज ऐसा क्या हुआ था मुझे जो ये सब मैं सोच रही थी......
अब मुझे भी ऐसा लग रहा था कि सुनील भैया अब पूरा जवान हो चुके है......उसका जिस्म भी अब पत्थर की तरह मज़बूत और ठोस बन चुका है.......यही तो हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसे कोई मर्द अपनी मज़बूत बाहों में जकड़े और उसके बदन की कोमलता को अपने मज़बूत हाथों में पल पल महसूस करता रहें......शायद आज मेरे अंदर भी ऐसा ही कुछ तूफान अब धीरे धीरे जनम ले रहा था.......मैं भी अब किसी मर्द की बाहों में अपने आप को महसूस करना चाहती थी.....अपना ये जवान जिस्म किसी को सौपना चाहती थी......टूटना चाहती थी किसी की बाहों में.........
समय के साथ साथ अब मैं भी धीरे धीरे सेक्स के तरफ झुक रही थी........वजह ये थी कि मेरी सहेली अर्चना यही सेक्स टॉपिक के बारे में मुझसे बात किया करती थी.......कहीं ना कहीं अब मेरे मन में भी सेक्स की इच्छा अब धीरे धीरे जनम ले रही थी....... देखना ये था कि आने वाले समय में , मै इस तपिश को अपने अंदर संभाल पाती या फिर मै भी इस सेक्स की आँधी में अपने आप को बहा ले जाने वाली थी. यही सोचते हुए मेरी आँख लग गयी!
"रेखा एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, रेखा ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'रेखा, आओ बिस्तर में आ जाओ.' रेखा ने गौर से देखा तो पाया के उसके सुनील भैया बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके सुनील भैया ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'सुनील भैया.' रेखा ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके सुनील भैया मुस्कुरा कर बोले, रेखा से उसके सुनील भैया ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके सुनील भैया ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. सुनील भैया ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, रेखा भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने रेखा को अपनी ओर खींचा. रेखा अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके सुनील भैया ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. रेखा का मन और अशांत हो उठा, उधर सुनील भैया अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, रेखा ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके सुनील भैया ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'सुनील भैया, छोड़ो ना मुझे...' रेखा ने मिन्नत की.
'क्यूँ?' सुनील भैया ने पूछा, रेखा के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके सुनील भैया ने आगे कहा. 'हाँ सुनील भैया, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' रेखा ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' सुनील भैया बोले. रेखा ठिठक गई, क्या सुनील भैया ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि सुनील भैया सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर सुनील भैया आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' रेखा ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' सुनील भैया मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' रेखा ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके सुनील भैया ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'सुनील भैया आआअह्हह्हह... आप...!' रेखा की कंपकंपी छूट गई, उसके सुनील भैया कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से सुनील भैया से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन सुनील भैया ने रेखा को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. रेखा सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'सुनील भैया, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बहन हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' सुनील भैया ने रेखा को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और रेखा उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' सुनील भैया ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' रेखा को यकायक एहसास हुआ कि उसके सुनील भैया सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने सुनील भैया का लंड कस कर पकड़ रखा था."
'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मेरी आँखें एक झटके से खुल गईं, मेरे माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए मुझे समझ नहीं आया कि मै कहाँ हू. कुछ पल बाद मुझे होश आया कि मै अपने बिस्तर पर ही हू और एहसास हुआ कि मै एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल मुझ पर एक और गाज गिरी. मै अपनी बीच की उंगली अपनी कच्ची योनी में डाल कर सो रही थी. और दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.
मैने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, मैने सिरहाने रखे अलार्म घड़ी में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. अंजू दीदी की तरफ देखा, वह पेट के बल गांड खोल कर लेटी सो रही थी. मै लेटे-लेटे सोचने लगी,
'उफ़...अब तो सुनील भैया के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है भैया जवानी...
मैने सुनील भैया के डरावने सपने की याद से बाहर निकल कर अपना दिल दिमाग डाइवर्ट करते हुए अपने अरुण के बारे में सोचने लगी मेरा अरुण के साथ कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है,
मेरे सिर पर तो उससे शादी का भूत सवार है और अरुण के लंड पर शादी से पहले मेरी ठुकाई का. अगर अरुण मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी.
क्या करूँ समझ नहीं आता... मेरी मम्मी थी ना मेरी सपनों की दुश्मन.......उनके रहते तो मेरा अरुण मेरे घर के चौखट के अंदर अपने कदम नहीं रख सकता था तो भला वो मेरे बाहों में क्या खाक आता.......
मै अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए अंजू दीदी की उभरी हुई गांड देख रही थी. ' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद यकायक मेरे चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...सोचते हुए मै ख़ुशी-ख़ुशी सो गयी, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
अगली सुबह. .....रेखडी.....रेखडी - एरी ओ शहज़ादी......अब तो उठ जा..............ये लड़की का कुछ नहीं हो सकता......पता नहीं इसका आगे क्या होगा.....
मम्मी हमेशा एक ही बात........मैं ये सब सुनकर पक गयी हूँ...... मै चिढ़ते हुए बोली
रेखडी अगर तुझे मेरी बात इतनी ही बुरी लगती है तो फिर अपनी ये आदत क्यों नहीं बदल देती.....नहीं तो फिर सुनती रह बेशरमों की तरह......मुझे मम्मी की बातों पर हँसी आ गयी और मैं मम्मी के पास आई और उनके गले में अपनी बाहें डाल दी........मम्मी मेरी इस अदा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी......
मेरी माँ आख़िर मैने ऐसा कौन सा काम कर दिया जो मैं आपकी नज़र में बेशरम बन गयी हूँ.......अभी तो आपने मेरी शराफ़त देखी है......जिस दिन मैं बेशरामी पर उतर आऊँगी उस दिन आपको भी मुझसे शरम आ जाएगी......
मम्मी मेरे कान पकड़ लेती है- ओये चुप कर......देख रही हूँ आज कल तू बहुत बढ़ चढ़ कर बातें कर रही है.......लगता है अब तेरे हाथ अंजू से पहले पीले करने पड़ेंगे........तेरी ये बेशर्मी की लगाम अब तेरे होने वाले पति के हाथों में जल्दी से थमानी पड़ेगी.......
मैं मम्मी को एक नज़र घूर कर देखी फिर मैं बिना कुछ कहे छत पर अपने बाथरूम में घुस गयी......आज मैं मम्मी से इस बारे में कोई बहस नहीं करना चाहती थी........थोड़ी देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकली तो हमेशा की तरह सुनील भैया बाहर मेरे आने का इंतेज़ार कर रहा था.......आज भी उसके चेहरे पर गुस्सा था......और गुस्सा होता भी क्यों ना....मेरी वजह से उस बेचारे को हस्थमैथुन करना पड़ता था....... हाहाहा हाहाहा
फिर हम रोज़ की तरह अपने अपने काम में लग गये.......फिर से वही बोरियत वाली जिंदगी......जैसे तैसे वक़्त गुज़ारा और दोपहर हुई........मैं आज नूतन से सुनील भैया की दोबारा से सेटिंग कराने के चक्कर में सोच रही थी...तभी मम्मी बोली रेखडी जा थोड़ी देर के लिए दुकान पर बैठ जा..... अंजू और सुनील बैंक में जा रहे है...! मै मम्मी की आज्ञा मानकर दुकान पर बैठ गयी!!!
करीब 10-15 मिनिट बाद नूतन कुछ सामान लेने आई, वो मुझे दुकान पर बैठा देख वापस जाने लगी। मैने उसे पीछे से आवाज दी क्या नूतन वापस क्यो जा रही है??? वो फिर से दुकान पर आ गयी, मैने पूछा क्या चाहिए???
पांच शैंपू के पाउच और एक संतूर साबुन दे दो!!! वो बोली ;
नूतन मुझसे नजर चुरा रही थी,।
मै सुनील भैया से नूतन के दोबारा टांका भिड़ाने से पहले एक बार नूतन के दिल का भी हाल जानना चाहती थी, पर मैने कुछ ज्यादा ही over स्मार्ट बनते हुए नूतन से सीधा सवाल टेढी भाषा में पूछा जो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती बनने वाला था............ ! ! !
मैने सामान थैली में रखते हुए उससे सुनील से दोस्ती की बात ना करते हुए थोड़ा मजा लेते हुए कहा--- नूतन एक बात बता तुझे मेरे सुनील भैया के अलावा कोई और फँसाने को नही मिला, तू उन्हें तो भैया बोलती है???? वो भी तुझे अपनी अपनी बहन मानते है, मेरी और अंजू दीदी की तरह!!!
नूतन खामोश खड़ी रही!!!,
(अगर कोई अपने किये पर शर्मिंदा होता है, और चुप रहकर अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है तो भी कुछ लोगों को सामने वाले की गांड में उंगली में करने में ज्यादा ही मजा आता है,)) ))
"उन लोगो में से मै भी हू, मुझे भी लोगो के उंगली करने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है! हाहाहा हाहाहा"
मैने फिर से वो ही बात दोहराई,???
वो मुझे बोली रेखा तुम पैसें काटो और अपने काम से काम रखो, pls मेरे पिछवाडे उंगली ना करो!!
ये सुनकर मेरा पारा चढ़ गया, मै थोड़ा तुनकते हुयी बोली ओह ओ नूतन उस दिन तो चटाई पर चुसाई बड़े मजे से करवा रही थी, मैने थोड़ी खिचाई क्या कर दी, तो मुझे आँख दिखा रही है, तुझे पता है जो लड़की जिसे भैया बनाती है उसे सैया नही बनाती!! और जो बनाती है उन्हें क्या बोलते है तुझे तो अच्छे से पता है !!
क्या बोलते है रेखा चल बता मुझे ???बोल.... ??? नूतन गुस्से में आकर मुझसे बोली??
मै--- रहन दे, चल जा, ये ले पैसें और जा।
पर वो नहीँ मानी।
मै बोली " छिनाल ""
वो बोली चल मै बोलती हू हाँ हू मै.....
"" छिनाल ""
पर तू क्या है तेरी पतंग कहाँ उड़ रही है, मुझे सब पता है, वो बुलेट वाले के साथ जो तेरा नैन मटका चल रहा है, सब बता दिया है, अर्चना मुझे!!!
तू तो अपने भाई के सामने ही अपनी छातिया दबवाती है तेरे जैसी को पता क्या बोलते है????
मै क्या???? ""चुप छिनाल""
((("""चुप छिनाल""" बड़ा ही विचित्र शब्द है, , मुझे लगता है इसके सही मायने अविश्वसनीय, अद्भुत, अकल्पनीय है : मेरा मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना कतई नहीं, हर औरत के अंदर ये खास कला होती है इस कला को वो खास वक्त पर, खास जगह पर, खास लोगो के साथ अपनी मन मर्जी से प्रदर्शित करती है!!! अक्सर मर्द औरत की इस खास कला के आगे ही नतमस्तक होकर अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाते है। अपने इस समाज में, अक्सर वही लोग स्त्री का चरित्र ढूंढ़ते हैं जो बचपन से अपने चरित्र को गली गली में बेच चुके होते हैं।)) )
(( छिनाल तो लोग अक्सर बोलते रहते है, पर ""चुप छिनाल""" शरीफ घरों के शरीफ औरत (समाज का भय, जिसकी जंजीर में जकड़ी 95% भारतीय स्त्रियां जी रही हैं)
की भीतर दबी संभोग की इच्छा को प्रदर्शित करता है। जो औरत अंदर से किसी भी मर्द के साथ संभोग करने के लिए लालयित रहती है, ये किसी भी मर्द के सम्मुख अपनी काम पिपाशा शांत करने हेतु बिछ जाने के लिए उत्सुक रहती है, पर सबके सामने बड़ी ही संस्कारी बनती है, इनकी बड़ी आसानी से पहचान नही कर सकते है!! चुप रहना , चुप करना, चुपचाप ही अपना काम कर चुपके से निकल जाना ही इनकी सबसे बड़ी खूबी है!!!
""शायद नूतन ने मुझे सही उपाधि दी थी, या नही ये तो मुझे नही पता??? लेकिन मेरी इस कहानी में छिपी ""चुप छिनाल"" समय आने पर आपको जरूर दिखने लगेगी ""
नूतन के सवाल का मेरे पास कोई जबाब नही था, मै निशब्द थी!!
मुझे खामोश कर नूतन हँसी भरा ताना देते हुए जा रही थी, उसके चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी नजर आ रही थी!!!
मेरी एक चूतियापे वाले सवाल ने मेरे सुनील भैया और नूतन की प्रेम कहानी का सत्यानाश कर दिया था। मै एक उलझन में पड़ गयी थी आखिर सुनील भैया को उनके हिस्से की खुशी कैसे
ThanksShandar Update
Please continue
Waiting for next update
Next udpate coming soonUpdate please
अल्हड़ उम्र का प्यार जहां होश से ज्यादा जोश से काम लेते है वो भी अक्ल पर पत्थर डाल कर। लग तो ऐसा रहा ही कि ये प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खत्म ना हो जाए। मस्त अपडेट।
Kya baat hai, maza a gaya, mahare haryana aale.
Kyaa baat yaad dila di.
Ghani aag laaagri se to bhhooobhal me de le.
माफी चाहूंगा sir पर जो आप four letter words बोल रहे हैं उसके बारे मै जो समझता हूँ आप चार अक्षर वाले शब्द की बात कर रहे है।
जैसे आजकल, आसपास, आत्म मंथन आदि
मैं समझ नहीं पा रहा कि आपने यह व्यंग्य के रूप में लिखा है, lighter vein में लिखा है या गंभीरता से लिखा है। अगर व्यंग्य या हल्के परिहास के रूप में लिखा है तो मैं आपके sense of humour की तारीफ करता हूँ, it's a nice one. यदि आपने गंभीरता से लिखा है तो आप नीचे भेजी लिंक के लेख को पढ़ लें।
Four-letter word - Wikipedia
en.wikipedia.org
ये है असली Hindustani भाषा, लाजवाब
बहुत ही सुंदर रचना है। भाभी सा आपकी ये। लाजवाब
अगले अपडेट का बहुत बेसब्री से इंतजार है
Waiting
जय हो, हमारे हरियाणा की बात ही अलग है कसम से उस दौर की बात ही अलग थी, मुझे लगता है कि कहानी का नाम ये उन दिनों की बात है होना चाहिए था, आप मेरे सामने होती तो उँगलियों को चूम लेता मैं जिनसे आपने ये शब्द लिखे है. काश मैं ऐसा कुछ लिख पाता काश. मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा ये कहानी नहीं है ये जीवन है
Nice update
बहुत ही engaging story... जबरदस्त
मस्त कहानी बनी है अब अरुण का याराना जो सुनील से खिला है वो किसी ना किसी की चुत से ख़ुशी का आंसू बहवा कर ही रुकेगा
अब ये भाग्यशाली चुत किस की होती है रेखा की या अंजू की या नूतन की
Good hot story Rekha rani madam..
वाह रेखा रानी निकाल दिया पाठकों का पानी
रे बेरन मार के छोड़ेगी के, क़तई जमा जहर udpate,
जमा साची लिखना लग री से, ठेठ हरियाणवी
लगी रे
Rekha or Arun ki lovestory bahot jald maa-baap banane ki prakiya me judne wale hai ..
Arun to do tin haryali dekh kar hi daka dala hai ek rekha rani se santust nahi hone wala .
Zabardast.....90s ke dashak ka kya behtareen chitran kiya hai aapne. Us samay ka daur hi nirala tha. Well Rekha aur Arun ke prem ki gaadi chal to padi hai lekin manzil abhi door hai. Arun ne Sunil se dosti kar li hai, zaahir hai kuch to iska faayda milega hi. Ab dekhna ye hai ki dono taraf lagi huyi aag kab aur kaise bujhti hai. Anju didi kahi villain na ban jaye dono ki Aashiqui me
Shandaar writing skills dear....keep it up
Bahut hi Behtreen likh rhe ho
Keep Going
Waiting For Next Update
Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
कसम से , अब तक जो भी लिखा है बिल्कुल ही रियलिस्टिक लगता है।
मायापुरी मैग्जीन फिल्मी थी। लेकिन ये दौर वो भी था जब एडल्ट कहानी बुक्स स्टाल पर दिखने भी शुरू हो गए थे।
सच्चे प्रेम पर जो पत्र लिखा गया और उस पत्र को फिल्मी अंदाज मे जो देखा सुना उनमे मुझे आज तक का सबसे बेहतर गीत लगा--- " फुल तुम्हे भेजा है खत मे फुल नही मेरा दिल है-"---सरस्वती चंद फिल्म का अद्भुत गीत।
इसके अलावा संगम मूवी का प्रेम गीत--" मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कहीं नाराज न होना " दूसरा मेरा फेवरेट गीत था।
लेकिन रेखा और अरूण का लव लैटर पाक नही , एक दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण और सेक्स की भूख थी। रेखा का आकर्षण अरूण का प्राइवेट पार्ट देखने के बाद शुरू हुआ और अरूण का आकर्षण रेखा एवं अंजु के कामुक शरीर से हुआ। यह प्रेम था ही नही । एक ताजा ताजा जवान होते हुए लड़के लड़कियों का सेक्सुअल आकर्षण मात्र भर था।
वैसे लड़के अक्सर बहाना ढ़ूढते है कि लड़की के घर वो निर्विघ्न आ जा सके और इसलिए वो लड़की के सगे सम्बन्धियों से किसी न किसी बहाने बढ़िया रिलेशन बनाते है और फिर उनके घर मे आना जाना शुरू करते है।
यही काम अरूण ने रेखा के भाई को पटाकर किया।
सब कुछ रियलिस्टिक है और यही इस कहानी को बेस्ट बना रही है। शायद अरूण की वजह से बहुत कुछ रेखा की लाइफ बदल जाने वाली है।
गजब का अपडेट रेखा जी।
बहुत बहुत बढ़िया लिख रही है आप।
Outstanding & too good.
Rekha ka role interesting develop ho raha hai
she has been shades to it of young age
बहुत ही शानदार अपडेट है रेखा की सच्ची नंगी मोहब्बत को अंजू दीदी ने बचा लिया है रेखा और अरुण की प्रेम कहानी की गाड़ी तो चल पड़ी है दोनो ने प्रेम पत्र लिखना शुरू भी कर दिया है लेकिन प्रेम पत्र में प्रेम की बात तो है ही नही दोनो अपने शारीरिक अंगो के बारे में कामुक बाते करते थे जिससे लगता है कि ये तो हवस पत्र है प्रेम पत्र नही ।अरुण ने सुनील से दोस्ती कर ली है इसका फायदा दोनो को ही मिलेगा वही सुनील और अरुण की बाते सुनकर देखते हैं रेखा सुनील और नूतन को फिर से मिलने की सोचती है देखते हैं आगे क्या होता है
नही कोई नही है रेखा जी आपकी लोकल भाषा हरियाणवी अच्छी लगती हैं
yes ...its good for readers .....
thanks
kamdev99008अछि कहानी है...
रेखा जी! ये तो पैंतरा ही उल्टा पड़ गया.............. या रात के सपने का असर था............. जो सुनील भैया की नूतन से जुगाड़ बनवाने की बजाए बिगड़वा दी पूरी तरह सेमैने मन ही मन सोच लिया था अब मुझे भी
सुनील भैया के लिए कुछ करना चाहिए....)
अध्याय -- 7 -----
अरुण और सुनील भैया की बातें सुनकर इस दौरान मै कई बार बहुत गरम भी हुयी थी! जिसके वजह से मुझे बाथरूम जाकर सबसे पहले अपने आप को ठंडा करना पड़ा था......
बाथरूम से वापस आने के बाद मै कमरे मे जाकर अपने बिस्तर पर लेट गयी, और सुनील भैया की नूतन से फिर से टांका भिड़ाने की सोचने लगी!! मुझे सुनील भैया से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा भाई था. मुझे सुनील भैया से कुछ ज्यादा ही लगाव, प्यार, प्रेम है मुझे आज भी याद है।
एक बार जब मेरे बुआ और फूफा जी हमारे यहाँ रुके हुए थे तब बुआ को मैंने मेरी मम्मी से कहते हुए सुना कि मेरे पापा ने मेरे पैदा होने के बाद शायद उनको चड्डी पहनने का भी समय नहीं दिया होगा, उस से पहले ही दोबारा पेल दिया होगा जिसकी वजह से
रेखा पैदा हो गयी। शायद बुआ को नहीं मालूम कि मैंने उनकी बात सुन ली थी। लेकिन ये बात सच थी कि मेरे और सुनील भैया के पैदा होने बीच एक साल से भी कम का अन्तर था, और इसी वजह से बचपन से ही हम दोनों एक दूसरे के बेहद करीब थे।
मम्मी भी शायद इसी वजह से हमारे लिये थोड़ा ज्यादा प्रोटेक्टिव थीं, जिसकी वजह से हम दोनों एक दूसरे के और ज्यादा करीब आ गये थे। कई बार ऐसा होता कि हमारे स्कूल की छुट्टी होती, और मम्मी को मार्केट जाना होता, तो मम्मी अंजू दीदी को साथ ले जाती और मुझे सुनील भैया को घर में बन्द कर के बाहर से ताला लगा कर चली जाया करती थीं। तो इन सब परिस्थितियों में मैं और सुनील भैया बहुत समय एक दूसरे के साथ बिताया करते थे।
जब हम छोटे छोटे थे शायद .......... साल के होंगे तब तक मम्मी हम तीनो को एक साथ नहलाया करती थीं। स्वाभाविक रूप से मुझे हमेशा ये कौतुहल रहता कि अंजू दीदी और मेरे पास, सुनील भैया की तरह लण्ड नहीं था, हाँलांकि तब मैं उसको लण्ड नहीं कहा करता थी। मम्मी ने मुझे उसको फ़ुन्नी कहना सिखाया था। और मेरे ख्याल से मम्मी ने तब से हम तीनो को एक साथ नहलाना बन्द कर दिया था जब एक बार मैंने उनसे पूछ लिया था कि मेरी फ़ुन्नी किस ने काट ली। बाल सुलभ जिज्ञासायें इतनी जल्दी खतम भी नहीं होतीं, और समय के साथ मेरी भी समझ में आ गया कि सभी लड़कियाँ ऐसी ही होती हैं।
शाम होने को आई थी तभी मम्मी की आवाज आई रेखड़ी ओ रेखड़ी अरे महारानी अगर कमर सीधी हो गयी हो तो कुछ काम में हाथ बँटा???? मम्मी और अंजू दीदी वो दोनों हाथो में थैली पकड़े हुए मार्केट से वापस आई थी!!
(( अक्सर सुनते हैं कि जिनके एक से ज्यादा बच्चे होते है, और माँ सबसे एक सा ही प्यार करती है, बर्ताव करती है, ये बात मेरे अनुभव से गलत है,
मुझे ऐसा लगता था कि मम्मी हम तीनो भाई बहन में सबसे कम मुझे पसंद करती थी, हमेशा मुझे ही ज्यादा लेक्चर सुनाती थी! )) हाहाहा))
मै मम्मी की आवाज सुनकर उनके साथ काम में हाथ बटाने लगी, अंजू दीदी थक हुयी हू बोल कर बिस्तर पर आराम से लेट गयी।
खाना खाने के बाद अक्सर मै कुछ मीठा खाती थी, चाहे वो गुड या बतासे ही क्यो ना हो।और गुड़ का डिब्बा चींटियों की वजह से मम्मी ऊँची अलमारी में रखती थी, मै रोज़ की तरह आज भी मै स्टूल पर खड़ी होकर गुड़ का डिब्बा उठाने लगी जैसे ही अपना एक पाँव स्टूल पर रखा तभी अचानक से मेरा पैर फिसल गया और मै तुरंत पीछे की ओर गिरने लगी तभी एक मज़बूत हाथ ने मेरी बाहें थाम ली.......वो मज़बूत बाहें और किसी की नहीं बल्कि सुनील भैया की थी......वो मुझे अपनी जिस्म की तरफ खीचता है और अगले ही पल मै संभल कर सीधी खड़ी हो गयी ...... इस वक़्त हम दोनो के चेहरों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी.......तभी सुनील भैया आगे बढ़कर कमरे की तरफ चले गए .....और मै गुड़ का डिब्बा लेकर किचिन से बाहर आ गयी।
ये देख कर अंजू बोली - क्यों सही से चढ़ नहीं पाती क्या.....आज सुनील ने अगर सही समय पर तेरा हाथ नहीं पकड़ा होता तो तू तो गयी थी आज उपर......
मुझे अंजू दीदी पर हल्का गुस्सा था - प्लीज़ स्टॉप इट दीदी....तुझे बक बक के सिवा और कुछ नहीं सूझता क्या......
अंजू दीदी - मैं तेरी तरह फालतू नहीं हूँ....जब देखो तब कुछ भी खाने में लगी रहती है
मैं अंजू दीदी की बातों को सुनकर कुछ पल तक यू ही खामोश रही......मैं अच्छे से जानती थी कि मैं बहस में उससे कभी जीत नहीं सकती.....
रोज की तरह खाना खा पीकर हम अपने अपने बिस्तर पर लेट गये..... मैं अपने अपने बिस्तेर पर लेटी हुई आज भी अपनी चिट्ठी में वो बीते हसीन लम्हें लिख रही थी......हालाँकि ऐसा मेरा साथ अभी तक कुछ हुआ नहीं था फिर भी दिल में एक मीठी सी चुभन हमेशा रहती थी........कल ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए है और अब मैं राहत सी महसूस कर रही थी........मगर आज मेरे पास लिखने को ज़्यादा कुछ नहीं था इस लिए मैने अपनी कॉपी बंद कर दी और अपने अरुण के बारे में सोचने लगी........मगर आज पहली बार मैं अपने भाई के लिए सोचने पर मज़बूर हो गयी थी......बार बार मेरे जेहन में बस सुनील भैया का हाथ पकड़ना मुझे याद आ रहा था.......इससे पहले भी वो मेरे हाथ ना जाने कितनी बार पकड़ चुका था मगर मैने इस बारे में कभी ज़्यादा गौर नहीं किया था......मगर आज ऐसा क्या हुआ था मुझे जो ये सब मैं सोच रही थी......
अब मुझे भी ऐसा लग रहा था कि सुनील भैया अब पूरा जवान हो चुके है......उसका जिस्म भी अब पत्थर की तरह मज़बूत और ठोस बन चुका है.......यही तो हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसे कोई मर्द अपनी मज़बूत बाहों में जकड़े और उसके बदन की कोमलता को अपने मज़बूत हाथों में पल पल महसूस करता रहें......शायद आज मेरे अंदर भी ऐसा ही कुछ तूफान अब धीरे धीरे जनम ले रहा था.......मैं भी अब किसी मर्द की बाहों में अपने आप को महसूस करना चाहती थी.....अपना ये जवान जिस्म किसी को सौपना चाहती थी......टूटना चाहती थी किसी की बाहों में.........
समय के साथ साथ अब मैं भी धीरे धीरे सेक्स के तरफ झुक रही थी........वजह ये थी कि मेरी सहेली अर्चना यही सेक्स टॉपिक के बारे में मुझसे बात किया करती थी.......कहीं ना कहीं अब मेरे मन में भी सेक्स की इच्छा अब धीरे धीरे जनम ले रही थी....... देखना ये था कि आने वाले समय में , मै इस तपिश को अपने अंदर संभाल पाती या फिर मै भी इस सेक्स की आँधी में अपने आप को बहा ले जाने वाली थी. यही सोचते हुए मेरी आँख लग गयी!
"रेखा एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, रेखा ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'रेखा, आओ बिस्तर में आ जाओ.' रेखा ने गौर से देखा तो पाया के उसके सुनील भैया बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके सुनील भैया ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'सुनील भैया.' रेखा ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके सुनील भैया मुस्कुरा कर बोले, रेखा से उसके सुनील भैया ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके सुनील भैया ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. सुनील भैया ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, रेखा भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने रेखा को अपनी ओर खींचा. रेखा अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके सुनील भैया ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. रेखा का मन और अशांत हो उठा, उधर सुनील भैया अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, रेखा ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके सुनील भैया ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'सुनील भैया, छोड़ो ना मुझे...' रेखा ने मिन्नत की.
'क्यूँ?' सुनील भैया ने पूछा, रेखा के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके सुनील भैया ने आगे कहा. 'हाँ सुनील भैया, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' रेखा ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' सुनील भैया बोले. रेखा ठिठक गई, क्या सुनील भैया ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि सुनील भैया सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर सुनील भैया आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' रेखा ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' सुनील भैया मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' रेखा ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके सुनील भैया ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'सुनील भैया आआअह्हह्हह... आप...!' रेखा की कंपकंपी छूट गई, उसके सुनील भैया कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से सुनील भैया से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन सुनील भैया ने रेखा को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. रेखा सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'सुनील भैया, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बहन हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' सुनील भैया ने रेखा को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और रेखा उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' सुनील भैया ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' रेखा को यकायक एहसास हुआ कि उसके सुनील भैया सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने सुनील भैया का लंड कस कर पकड़ रखा था."
'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मेरी आँखें एक झटके से खुल गईं, मेरे माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए मुझे समझ नहीं आया कि मै कहाँ हू. कुछ पल बाद मुझे होश आया कि मै अपने बिस्तर पर ही हू और एहसास हुआ कि मै एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल मुझ पर एक और गाज गिरी. मै अपनी बीच की उंगली अपनी कच्ची योनी में डाल कर सो रही थी. और दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.
मैने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, मैने सिरहाने रखे अलार्म घड़ी में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. अंजू दीदी की तरफ देखा, वह पेट के बल गांड खोल कर लेटी सो रही थी. मै लेटे-लेटे सोचने लगी,
'उफ़...अब तो सुनील भैया के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है भैया जवानी...
मैने सुनील भैया के डरावने सपने की याद से बाहर निकल कर अपना दिल दिमाग डाइवर्ट करते हुए अपने अरुण के बारे में सोचने लगी मेरा अरुण के साथ कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है,
मेरे सिर पर तो उससे शादी का भूत सवार है और अरुण के लंड पर शादी से पहले मेरी ठुकाई का. अगर अरुण मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी.
क्या करूँ समझ नहीं आता... मेरी मम्मी थी ना मेरी सपनों की दुश्मन.......उनके रहते तो मेरा अरुण मेरे घर के चौखट के अंदर अपने कदम नहीं रख सकता था तो भला वो मेरे बाहों में क्या खाक आता.......
मै अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए अंजू दीदी की उभरी हुई गांड देख रही थी. ' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद यकायक मेरे चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...सोचते हुए मै ख़ुशी-ख़ुशी सो गयी, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
अगली सुबह. .....रेखडी.....रेखडी - एरी ओ शहज़ादी......अब तो उठ जा..............ये लड़की का कुछ नहीं हो सकता......पता नहीं इसका आगे क्या होगा.....
मम्मी हमेशा एक ही बात........मैं ये सब सुनकर पक गयी हूँ...... मै चिढ़ते हुए बोली
रेखडी अगर तुझे मेरी बात इतनी ही बुरी लगती है तो फिर अपनी ये आदत क्यों नहीं बदल देती.....नहीं तो फिर सुनती रह बेशरमों की तरह......मुझे मम्मी की बातों पर हँसी आ गयी और मैं मम्मी के पास आई और उनके गले में अपनी बाहें डाल दी........मम्मी मेरी इस अदा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी......
मेरी माँ आख़िर मैने ऐसा कौन सा काम कर दिया जो मैं आपकी नज़र में बेशरम बन गयी हूँ.......अभी तो आपने मेरी शराफ़त देखी है......जिस दिन मैं बेशरामी पर उतर आऊँगी उस दिन आपको भी मुझसे शरम आ जाएगी......
मम्मी मेरे कान पकड़ लेती है- ओये चुप कर......देख रही हूँ आज कल तू बहुत बढ़ चढ़ कर बातें कर रही है.......लगता है अब तेरे हाथ अंजू से पहले पीले करने पड़ेंगे........तेरी ये बेशर्मी की लगाम अब तेरे होने वाले पति के हाथों में जल्दी से थमानी पड़ेगी.......
मैं मम्मी को एक नज़र घूर कर देखी फिर मैं बिना कुछ कहे छत पर अपने बाथरूम में घुस गयी......आज मैं मम्मी से इस बारे में कोई बहस नहीं करना चाहती थी........थोड़ी देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकली तो हमेशा की तरह सुनील भैया बाहर मेरे आने का इंतेज़ार कर रहा था.......आज भी उसके चेहरे पर गुस्सा था......और गुस्सा होता भी क्यों ना....मेरी वजह से उस बेचारे को हस्थमैथुन करना पड़ता था....... हाहाहा हाहाहा
फिर हम रोज़ की तरह अपने अपने काम में लग गये.......फिर से वही बोरियत वाली जिंदगी......जैसे तैसे वक़्त गुज़ारा और दोपहर हुई........मैं आज नूतन से सुनील भैया की दोबारा से सेटिंग कराने के चक्कर में सोच रही थी...तभी मम्मी बोली रेखडी जा थोड़ी देर के लिए दुकान पर बैठ जा..... अंजू और सुनील बैंक में जा रहे है...! मै मम्मी की आज्ञा मानकर दुकान पर बैठ गयी!!!
करीब 10-15 मिनिट बाद नूतन कुछ सामान लेने आई, वो मुझे दुकान पर बैठा देख वापस जाने लगी। मैने उसे पीछे से आवाज दी क्या नूतन वापस क्यो जा रही है??? वो फिर से दुकान पर आ गयी, मैने पूछा क्या चाहिए???
पांच शैंपू के पाउच और एक संतूर साबुन दे दो!!! वो बोली ;
नूतन मुझसे नजर चुरा रही थी,।
मै सुनील भैया से नूतन के दोबारा टांका भिड़ाने से पहले एक बार नूतन के दिल का भी हाल जानना चाहती थी, पर मैने कुछ ज्यादा ही over स्मार्ट बनते हुए नूतन से सीधा सवाल टेढी भाषा में पूछा जो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती बनने वाला था............ ! ! !
मैने सामान थैली में रखते हुए उससे सुनील से दोस्ती की बात ना करते हुए थोड़ा मजा लेते हुए कहा--- नूतन एक बात बता तुझे मेरे सुनील भैया के अलावा कोई और फँसाने को नही मिला, तू उन्हें तो भैया बोलती है???? वो भी तुझे अपनी अपनी बहन मानते है, मेरी और अंजू दीदी की तरह!!!
नूतन खामोश खड़ी रही!!!,
(अगर कोई अपने किये पर शर्मिंदा होता है, और चुप रहकर अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है तो भी कुछ लोगों को सामने वाले की गांड में उंगली में करने में ज्यादा ही मजा आता है,)) ))
"उन लोगो में से मै भी हू, मुझे भी लोगो के उंगली करने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है! हाहाहा हाहाहा"
मैने फिर से वो ही बात दोहराई,???
वो मुझे बोली रेखा तुम पैसें काटो और अपने काम से काम रखो, pls मेरे पिछवाडे उंगली ना करो!!
ये सुनकर मेरा पारा चढ़ गया, मै थोड़ा तुनकते हुयी बोली ओह ओ नूतन उस दिन तो चटाई पर चुसाई बड़े मजे से करवा रही थी, मैने थोड़ी खिचाई क्या कर दी, तो मुझे आँख दिखा रही है, तुझे पता है जो लड़की जिसे भैया बनाती है उसे सैया नही बनाती!! और जो बनाती है उन्हें क्या बोलते है तुझे तो अच्छे से पता है !!
क्या बोलते है रेखा चल बता मुझे ???बोल.... ??? नूतन गुस्से में आकर मुझसे बोली??
मै--- रहन दे, चल जा, ये ले पैसें और जा।
पर वो नहीँ मानी।
मै बोली " छिनाल ""
वो बोली चल मै बोलती हू हाँ हू मै.....
"" छिनाल ""
पर तू क्या है तेरी पतंग कहाँ उड़ रही है, मुझे सब पता है, वो बुलेट वाले के साथ जो तेरा नैन मटका चल रहा है, सब बता दिया है, अर्चना मुझे!!!
तू तो अपने भाई के सामने ही अपनी छातिया दबवाती है तेरे जैसी को पता क्या बोलते है????
मै क्या???? ""चुप छिनाल""
((("""चुप छिनाल""" बड़ा ही विचित्र शब्द है, , मुझे लगता है इसके सही मायने अविश्वसनीय, अद्भुत, अकल्पनीय है : मेरा मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना कतई नहीं, हर औरत के अंदर ये खास कला होती है इस कला को वो खास वक्त पर, खास जगह पर, खास लोगो के साथ अपनी मन मर्जी से प्रदर्शित करती है!!! अक्सर मर्द औरत की इस खास कला के आगे ही नतमस्तक होकर अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाते है। अपने इस समाज में, अक्सर वही लोग स्त्री का चरित्र ढूंढ़ते हैं जो बचपन से अपने चरित्र को गली गली में बेच चुके होते हैं।)) )
(( छिनाल तो लोग अक्सर बोलते रहते है, पर ""चुप छिनाल""" शरीफ घरों के शरीफ औरत (समाज का भय, जिसकी जंजीर में जकड़ी 95% भारतीय स्त्रियां जी रही हैं)
की भीतर दबी संभोग की इच्छा को प्रदर्शित करता है। जो औरत अंदर से किसी भी मर्द के साथ संभोग करने के लिए लालयित रहती है, ये किसी भी मर्द के सम्मुख अपनी काम पिपाशा शांत करने हेतु बिछ जाने के लिए उत्सुक रहती है, पर सबके सामने बड़ी ही संस्कारी बनती है, इनकी बड़ी आसानी से पहचान नही कर सकते है!! चुप रहना , चुप करना, चुपचाप ही अपना काम कर चुपके से निकल जाना ही इनकी सबसे बड़ी खूबी है!!!
""शायद नूतन ने मुझे सही उपाधि दी थी, या नही ये तो मुझे नही पता??? लेकिन मेरी इस कहानी में छिपी ""चुप छिनाल"" समय आने पर आपको जरूर दिखने लगेगी ""
नूतन के सवाल का मेरे पास कोई जबाब नही था, मै निशब्द थी!!
मुझे खामोश कर नूतन हँसी भरा ताना देते हुए जा रही थी, उसके चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी नजर आ रही थी!!!
मेरी एक चूतियापे वाले सवाल ने मेरे सुनील भैया और नूतन की प्रेम कहानी का सत्यानाश कर दिया था। मै एक उलझन में पड़ गयी थी आखिर सुनील भैया को उनके हिस्से की खुशी कैसे मिलेगी????
देखते है रेखा के कंधों पर तिहरा भार है , अंजू का, सुनील का और अरुण का अब किसका उतार पाती हैरेखा जी! ये तो पैंतरा ही उल्टा पड़ गया.............. या रात के सपने का असर था............. जो सुनील भैया की नूतन से जुगाड़ बनवाने की बजाए बिगड़वा दी पूरी तरह से
अब सुनील भैया का इंतजाम तो आपको ही करना पड़ेगा......... आखिर कब तक हाथ से गुजारा करेंगे वो
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