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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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ho to jata hai........... bas ye ad-redirect ki musibat hai
लॉजिक

अब अभी तो पैसे नही खर्चने वाला।
 

manu@84

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रेखा ने भी इमेजिन किया हो शायद कभी जीवन मे
सच्ची मुच्ची hmmmmm
 

hypernova

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मैं प्रसन्न हूँ कि मैंने जो आशाएँ और अपेक्षाएँ एक लेखिका के रूप में आपसे रखी थीं उनपर अब तक आप खरी उतरी हैं।
आपकी कहानी में धरती से जुड़े रहने की यथार्तता महसूस होती है। मेरा मानना है कि कहानी में काल्पनिक अंश केवल उस सीमा तक होना चाहिए जो कहानी को अधिक रोचक बनाये, जो कहानी के कथानक को अधिक शक्तिशाली और दिलचस्प बनाए परंतु कहानी की आत्मा को, उसके कथानक को बरकरार रखे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कल्पना भी वास्तविकता से जुड़ी होनी चाहिए; गेंद को हाथ से हवा में उछाल कर ये कल्पना करना कि वह चाँद तक पहुंच जाएगी कल्पना नहीं हद दर्जे की मूर्खता होती है। इस फोरम पर लिखी जाने वाली 95+ % कहानियाँ काल्पनिक कहानी के नाम पर इस तरह की मूर्खता परोस रही हैं। आपकी कहानी को मैं अपवाद मानता हूं, आपने इस संतुलन को बखूबी बनाए रखा है।

मैं जानता हूँ कि इस तरह की कहानी आत्मानुभव के बिना नहीं लिखी जा सकती। मैं यह पूछने की अशिष्टता नहीं करूंगा कि यह आत्मानुभव आपका स्वयं का है या किसी अन्य का, कहानी के संदर्भ में यह अप्रासंगिक है।
 
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Rekha rani

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मैं प्रसन्न हूँ कि मैंने जो आशाएँ और अपेक्षाएँ एक लेखिका के रूप में आपसे रखी थीं उनपर अब तक आप खरी उतरीं हैं।
आपकी कहानी में धरती से जुड़े रहने की यथार्ता महसूस होती है। मेरा मानना है कि कहानी में काल्पनिक अंश केवल उस सीमा तक होना चाहिए जो कहानी को अधिक रोचक बनाये, जो कहानी के कथानक को अधिक शक्तिशाली और दिलचस्प बनाए परंतु कहानी की आत्मा को, उसके कथानक को बरकरार रखे। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कल्पना भी वास्तविकता से जुड़ी होनी चाहिए; गेंद को हाथ से हवा में उछाल कर ये कल्पना करना कि वह चाँद तक पहुंच जाएगी कल्पना नहीं हद दर्जे की मूर्खता होती है। इस फोरम पर लिखी जाने वाली 95+ % कहानियाँ काल्पनिक कहानी के नाम पर इस तरह की मूर्खता परोस रही हैं। आपकी कहानी को मैं अपवाद मानता हूं, आपने इस संतुलन को बखूबी बनाए रखा है।

मैं जानता हूँ कि इस तरह की कहानी आत्मानुभव के बिना नहीं लिखी जा सकती। मैं यह पूछने की अशिष्टता नहीं करूंगा कि यह आत्मानुभव आपका स्वयं का है या किसी अन्य का, कहानी के संदर्भ में यह अप्रासंगिक है।
धन्यवाद, गहन विश्लेषण के लिए, आगे भी कोशिस रहेगी आपके विसवास पर खरा उतर पाऊं।
 

Sanju@

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मैने मन ही मन सोच लिया था अब मुझे भी
सुनील भैया के लिए कुछ करना चाहिए....)


अध्याय -- 7 -----

अरुण और सुनील भैया की बातें सुनकर इस दौरान मै कई बार बहुत गरम भी हुयी थी! जिसके वजह से मुझे बाथरूम जाकर सबसे पहले अपने आप को ठंडा करना पड़ा था......

बाथरूम से वापस आने के बाद मै कमरे मे जाकर अपने बिस्तर पर लेट गयी, और सुनील भैया की नूतन से फिर से टांका भिड़ाने की सोचने लगी!! मुझे सुनील भैया से कोई शिकायत नहीं थी. आख़िर वो मेरा भाई था. मुझे सुनील भैया से कुछ ज्यादा ही लगाव, प्यार, प्रेम है मुझे आज भी याद है।

एक बार जब मेरे बुआ और फूफा जी हमारे यहाँ रुके हुए थे तब बुआ को मैंने मेरी मम्मी से कहते हुए सुना कि मेरे पापा ने मेरे पैदा होने के बाद शायद उनको चड्डी पहनने का भी समय नहीं दिया होगा, उस से पहले ही दोबारा पेल दिया होगा जिसकी वजह से
रेखा पैदा हो गयी। शायद बुआ को नहीं मालूम कि मैंने उनकी बात सुन ली थी। लेकिन ये बात सच थी कि मेरे और सुनील भैया के पैदा होने बीच एक साल से भी कम का अन्तर था, और इसी वजह से बचपन से ही हम दोनों एक दूसरे के बेहद करीब थे।

मम्मी भी शायद इसी वजह से हमारे लिये थोड़ा ज्यादा प्रोटेक्टिव थीं, जिसकी वजह से हम दोनों एक दूसरे के और ज्यादा करीब आ गये थे। कई बार ऐसा होता कि हमारे स्कूल की छुट्टी होती, और मम्मी को मार्केट जाना होता, तो मम्मी अंजू दीदी को साथ ले जाती और मुझे सुनील भैया को घर में बन्द कर के बाहर से ताला लगा कर चली जाया करती थीं। तो इन सब परिस्थितियों में मैं और सुनील भैया बहुत समय एक दूसरे के साथ बिताया करते थे।

जब हम छोटे छोटे थे शायद .......... साल के होंगे तब तक मम्मी हम तीनो को एक साथ नहलाया करती थीं। स्वाभाविक रूप से मुझे हमेशा ये कौतुहल रहता कि अंजू दीदी और मेरे पास, सुनील भैया की तरह लण्ड नहीं था, हाँलांकि तब मैं उसको लण्ड नहीं कहा करता थी। मम्मी ने मुझे उसको फ़ुन्नी कहना सिखाया था। और मेरे ख्याल से मम्मी ने तब से हम तीनो को एक साथ नहलाना बन्द कर दिया था जब एक बार मैंने उनसे पूछ लिया था कि मेरी फ़ुन्नी किस ने काट ली। बाल सुलभ जिज्ञासायें इतनी जल्दी खतम भी नहीं होतीं, और समय के साथ मेरी भी समझ में आ गया कि सभी लड़कियाँ ऐसी ही होती हैं।

शाम होने को आई थी तभी मम्मी की आवाज आई रेखड़ी ओ रेखड़ी अरे महारानी अगर कमर सीधी हो गयी हो तो कुछ काम में हाथ बँटा???? मम्मी और अंजू दीदी वो दोनों हाथो में थैली पकड़े हुए मार्केट से वापस आई थी!!

(( अक्सर सुनते हैं कि जिनके एक से ज्यादा बच्चे होते है, और माँ सबसे एक सा ही प्यार करती है, बर्ताव करती है, ये बात मेरे अनुभव से गलत है,
मुझे ऐसा लगता था कि मम्मी हम तीनो भाई बहन में सबसे कम मुझे पसंद करती थी, हमेशा मुझे ही ज्यादा लेक्चर सुनाती थी! )) हाहाहा))
मै मम्मी की आवाज सुनकर उनके साथ काम में हाथ बटाने लगी, अंजू दीदी थक हुयी हू बोल कर बिस्तर पर आराम से लेट गयी।

खाना खाने के बाद अक्सर मै कुछ मीठा खाती थी, चाहे वो गुड या बतासे ही क्यो ना हो।और गुड़ का डिब्बा चींटियों की वजह से मम्मी ऊँची अलमारी में रखती थी, मै रोज़ की तरह आज भी मै स्टूल पर खड़ी होकर गुड़ का डिब्बा उठाने लगी जैसे ही अपना एक पाँव स्टूल पर रखा तभी अचानक से मेरा पैर फिसल गया और मै तुरंत पीछे की ओर गिरने लगी तभी एक मज़बूत हाथ ने मेरी बाहें थाम ली.......वो मज़बूत बाहें और किसी की नहीं बल्कि सुनील भैया की थी......वो मुझे अपनी जिस्म की तरफ खीचता है और अगले ही पल मै संभल कर सीधी खड़ी हो गयी ...... इस वक़्त हम दोनो के चेहरों पर एक प्यारी सी मुस्कान थी.......तभी सुनील भैया आगे बढ़कर कमरे की तरफ चले गए .....और मै गुड़ का डिब्बा लेकर किचिन से बाहर आ गयी।


ये देख कर अंजू बोली - क्यों सही से चढ़ नहीं पाती क्या.....आज सुनील ने अगर सही समय पर तेरा हाथ नहीं पकड़ा होता तो तू तो गयी थी आज उपर......

मुझे अंजू दीदी पर हल्का गुस्सा था - प्लीज़ स्टॉप इट दीदी....तुझे बक बक के सिवा और कुछ नहीं सूझता क्या......

अंजू दीदी - मैं तेरी तरह फालतू नहीं हूँ....जब देखो तब कुछ भी खाने में लगी रहती है

मैं अंजू दीदी की बातों को सुनकर कुछ पल तक यू ही खामोश रही......मैं अच्छे से जानती थी कि मैं बहस में उससे कभी जीत नहीं सकती.....

रोज की तरह खाना खा पीकर हम अपने अपने बिस्तर पर लेट गये..... मैं अपने अपने बिस्तेर पर लेटी हुई आज भी अपनी चिट्ठी में वो बीते हसीन लम्हें लिख रही थी......हालाँकि ऐसा मेरा साथ अभी तक कुछ हुआ नहीं था फिर भी दिल में एक मीठी सी चुभन हमेशा रहती थी........कल ही मेरे पीरियड्स ख़तम हुए है और अब मैं राहत सी महसूस कर रही थी........मगर आज मेरे पास लिखने को ज़्यादा कुछ नहीं था इस लिए मैने अपनी कॉपी बंद कर दी और अपने अरुण के बारे में सोचने लगी........मगर आज पहली बार मैं अपने भाई के लिए सोचने पर मज़बूर हो गयी थी......बार बार मेरे जेहन में बस सुनील भैया का हाथ पकड़ना मुझे याद आ रहा था.......इससे पहले भी वो मेरे हाथ ना जाने कितनी बार पकड़ चुका था मगर मैने इस बारे में कभी ज़्यादा गौर नहीं किया था......मगर आज ऐसा क्या हुआ था मुझे जो ये सब मैं सोच रही थी......


अब मुझे भी ऐसा लग रहा था कि सुनील भैया अब पूरा जवान हो चुके है......उसका जिस्म भी अब पत्थर की तरह मज़बूत और ठोस बन चुका है.......यही तो हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसे कोई मर्द अपनी मज़बूत बाहों में जकड़े और उसके बदन की कोमलता को अपने मज़बूत हाथों में पल पल महसूस करता रहें......शायद आज मेरे अंदर भी ऐसा ही कुछ तूफान अब धीरे धीरे जनम ले रहा था.......मैं भी अब किसी मर्द की बाहों में अपने आप को महसूस करना चाहती थी.....अपना ये जवान जिस्म किसी को सौपना चाहती थी......टूटना चाहती थी किसी की बाहों में.........

समय के साथ साथ अब मैं भी धीरे धीरे सेक्स के तरफ झुक रही थी........वजह ये थी कि मेरी सहेली अर्चना यही सेक्स टॉपिक के बारे में मुझसे बात किया करती थी.......कहीं ना कहीं अब मेरे मन में भी सेक्स की इच्छा अब धीरे धीरे जनम ले रही थी....... देखना ये था कि आने वाले समय में , मै इस तपिश को अपने अंदर संभाल पाती या फिर मै भी इस सेक्स की आँधी में अपने आप को बहा ले जाने वाली थी. यही सोचते हुए मेरी आँख लग गयी!

"रेखा एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, रेखा ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'रेखा, आओ बिस्तर में आ जाओ.' रेखा ने गौर से देखा तो पाया के उसके सुनील भैया बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके सुनील भैया ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'सुनील भैया.' रेखा ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके सुनील भैया मुस्कुरा कर बोले, रेखा से उसके सुनील भैया ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके सुनील भैया ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. सुनील भैया ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, रेखा भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने रेखा को अपनी ओर खींचा. रेखा अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके सुनील भैया ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. रेखा का मन और अशांत हो उठा, उधर सुनील भैया अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, रेखा ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके सुनील भैया ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'सुनील भैया, छोड़ो ना मुझे...' रेखा ने मिन्नत की.



'क्यूँ?' सुनील भैया ने पूछा, रेखा के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके सुनील भैया ने आगे कहा. 'हाँ सुनील भैया, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' रेखा ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' सुनील भैया बोले. रेखा ठिठक गई, क्या सुनील भैया ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि सुनील भैया सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर सुनील भैया आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' रेखा ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' सुनील भैया मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' रेखा ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके सुनील भैया ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'सुनील भैया आआअह्हह्हह... आप...!' रेखा की कंपकंपी छूट गई, उसके सुनील भैया कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से सुनील भैया से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन सुनील भैया ने रेखा को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. रेखा सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'सुनील भैया, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बहन हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' सुनील भैया ने रेखा को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और रेखा उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' सुनील भैया ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' रेखा को यकायक एहसास हुआ कि उसके सुनील भैया सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने सुनील भैया का लंड कस कर पकड़ रखा था."

'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मेरी आँखें एक झटके से खुल गईं, मेरे माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए मुझे समझ नहीं आया कि मै कहाँ हू. कुछ पल बाद मुझे होश आया कि मै अपने बिस्तर पर ही हू और एहसास हुआ कि मै एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल मुझ पर एक और गाज गिरी. मै अपनी बीच की उंगली अपनी कच्ची योनी में डाल कर सो रही थी. और दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.

मैने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, मैने सिरहाने रखे अलार्म घड़ी में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. अंजू दीदी की तरफ देखा, वह पेट के बल गांड खोल कर लेटी सो रही थी. मै लेटे-लेटे सोचने लगी,

'उफ़...अब तो सुनील भैया के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है भैया जवानी...

मैने सुनील भैया के डरावने सपने की याद से बाहर निकल कर अपना दिल दिमाग डाइवर्ट करते हुए अपने अरुण के बारे में सोचने लगी मेरा अरुण के साथ कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है,

मेरे सिर पर तो उससे शादी का भूत सवार है और अरुण के लंड पर शादी से पहले मेरी ठुकाई का. अगर अरुण मुझे नंगी देखने के लिए इतना उतावला था तो हालाँकि मैं उसके सामने खुले आम नंगी तो नहीं हो सकती थी पर किसी ना किसी बहाने अपने बदन के दर्शन ज़रूर करा सकती थी.


क्या करूँ समझ नहीं आता... मेरी मम्मी थी ना मेरी सपनों की दुश्मन.......उनके रहते तो मेरा अरुण मेरे घर के चौखट के अंदर अपने कदम नहीं रख सकता था तो भला वो मेरे बाहों में क्या खाक आता.......
मै अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए अंजू दीदी की उभरी हुई गांड देख रही थी. ' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद यकायक मेरे चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...सोचते हुए मै ख़ुशी-ख़ुशी सो गयी, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.

अगली सुबह. .....रेखडी.....रेखडी - एरी ओ शहज़ादी......अब तो उठ जा..............ये लड़की का कुछ नहीं हो सकता......पता नहीं इसका आगे क्या होगा.....

मम्मी हमेशा एक ही बात........मैं ये सब सुनकर पक गयी हूँ...... मै चिढ़ते हुए बोली

रेखडी अगर तुझे मेरी बात इतनी ही बुरी लगती है तो फिर अपनी ये आदत क्यों नहीं बदल देती.....नहीं तो फिर सुनती रह बेशरमों की तरह......मुझे मम्मी की बातों पर हँसी आ गयी और मैं मम्मी के पास आई और उनके गले में अपनी बाहें डाल दी........मम्मी मेरी इस अदा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी......

मेरी माँ आख़िर मैने ऐसा कौन सा काम कर दिया जो मैं आपकी नज़र में बेशरम बन गयी हूँ.......अभी तो आपने मेरी शराफ़त देखी है......जिस दिन मैं बेशरामी पर उतर आऊँगी उस दिन आपको भी मुझसे शरम आ जाएगी......

मम्मी मेरे कान पकड़ लेती है- ओये चुप कर......देख रही हूँ आज कल तू बहुत बढ़ चढ़ कर बातें कर रही है.......लगता है अब तेरे हाथ अंजू से पहले पीले करने पड़ेंगे........तेरी ये बेशर्मी की लगाम अब तेरे होने वाले पति के हाथों में जल्दी से थमानी पड़ेगी.......

मैं मम्मी को एक नज़र घूर कर देखी फिर मैं बिना कुछ कहे छत पर अपने बाथरूम में घुस गयी......आज मैं मम्मी से इस बारे में कोई बहस नहीं करना चाहती थी........थोड़ी देर बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकली तो हमेशा की तरह सुनील भैया बाहर मेरे आने का इंतेज़ार कर रहा था.......आज भी उसके चेहरे पर गुस्सा था......और गुस्सा होता भी क्यों ना....मेरी वजह से उस बेचारे को हस्थमैथुन करना पड़ता था....... हाहाहा हाहाहा

फिर हम रोज़ की तरह अपने अपने काम में लग गये.......फिर से वही बोरियत वाली जिंदगी......जैसे तैसे वक़्त गुज़ारा और दोपहर हुई........मैं आज नूतन से सुनील भैया की दोबारा से सेटिंग कराने के चक्कर में सोच रही थी...तभी मम्मी बोली रेखडी जा थोड़ी देर के लिए दुकान पर बैठ जा..... अंजू और सुनील बैंक में जा रहे है...! मै मम्मी की आज्ञा मानकर दुकान पर बैठ गयी!!!

करीब 10-15 मिनिट बाद नूतन कुछ सामान लेने आई, वो मुझे दुकान पर बैठा देख वापस जाने लगी। मैने उसे पीछे से आवाज दी क्या नूतन वापस क्यो जा रही है??? वो फिर से दुकान पर आ गयी, मैने पूछा क्या चाहिए???
पांच शैंपू के पाउच और एक संतूर साबुन दे दो!!! वो बोली ;
नूतन मुझसे नजर चुरा रही थी,।

मै सुनील भैया से नूतन के दोबारा टांका भिड़ाने से पहले एक बार नूतन के दिल का भी हाल जानना चाहती थी, पर मैने कुछ ज्यादा ही over स्मार्ट बनते हुए नूतन से सीधा सवाल टेढी भाषा में पूछा जो मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती बनने वाला था............ ! ! !

मैने सामान थैली में रखते हुए उससे सुनील से दोस्ती की बात ना करते हुए थोड़ा मजा लेते हुए कहा--- नूतन एक बात बता तुझे मेरे सुनील भैया के अलावा कोई और फँसाने को नही मिला, तू उन्हें तो भैया बोलती है???? वो भी तुझे अपनी अपनी बहन मानते है, मेरी और अंजू दीदी की तरह!!!
नूतन खामोश खड़ी रही!!!,

(अगर कोई अपने किये पर शर्मिंदा होता है, और चुप रहकर अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है तो भी कुछ लोगों को सामने वाले की गांड में उंगली में करने में ज्यादा ही मजा आता है,)) ))

"उन लोगो में से मै भी हू, मुझे भी लोगो के उंगली करने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है! हाहाहा हाहाहा"

मैने फिर से वो ही बात दोहराई,???
वो मुझे बोली रेखा तुम पैसें काटो और अपने काम से काम रखो, pls मेरे पिछवाडे उंगली ना करो!!
ये सुनकर मेरा पारा चढ़ गया, मै थोड़ा तुनकते हुयी बोली ओह ओ नूतन उस दिन तो चटाई पर चुसाई बड़े मजे से करवा रही थी, मैने थोड़ी खिचाई क्या कर दी, तो मुझे आँख दिखा रही है, तुझे पता है जो लड़की जिसे भैया बनाती है उसे सैया नही बनाती!! और जो बनाती है उन्हें क्या बोलते है तुझे तो अच्छे से पता है !!

क्या बोलते है रेखा चल बता मुझे ???बोल.... ??? नूतन गुस्से में आकर मुझसे बोली??
मै--- रहन दे, चल जा, ये ले पैसें और जा।
पर वो नहीँ मानी।
मै बोली " छिनाल ""
वो बोली चल मै बोलती हू हाँ हू मै.....
"" छिनाल ""

पर तू क्या है तेरी पतंग कहाँ उड़ रही है, मुझे सब पता है, वो बुलेट वाले के साथ जो तेरा नैन मटका चल रहा है, सब बता दिया है, अर्चना मुझे!!!
तू तो अपने भाई के सामने ही अपनी छातिया दबवाती है तेरे जैसी को पता क्या बोलते है????
मै क्या???? ""चुप छिनाल""

((("""चुप छिनाल""" बड़ा ही विचित्र शब्द है, , मुझे लगता है इसके सही मायने अविश्वसनीय, अद्भुत, अकल्पनीय है : मेरा मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना कतई नहीं, हर औरत के अंदर ये खास कला होती है इस कला को वो खास वक्त पर, खास जगह पर, खास लोगो के साथ अपनी मन मर्जी से प्रदर्शित करती है!!! अक्सर मर्द औरत की इस खास कला के आगे ही नतमस्तक होकर अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाते है। अपने इस समाज में, अक्सर वही लोग स्त्री का चरित्र ढूंढ़ते हैं जो बचपन से अपने चरित्र को गली गली में बेच चुके होते हैं।)) )

(( छिनाल तो लोग अक्सर बोलते रहते है, पर ""चुप छिनाल""" शरीफ घरों के शरीफ औरत (समाज का भय, जिसकी जंजीर में जकड़ी 95% भारतीय स्त्रियां जी रही हैं)
की भीतर दबी संभोग की इच्छा को प्रदर्शित करता है। जो औरत अंदर से किसी भी मर्द के साथ संभोग करने के लिए लालयित रहती है, ये किसी भी मर्द के सम्मुख अपनी काम पिपाशा शांत करने हेतु बिछ जाने के लिए उत्सुक रहती है, पर सबके सामने बड़ी ही संस्कारी बनती है, इनकी बड़ी आसानी से पहचान नही कर सकते है!! चुप रहना , चुप करना, चुपचाप ही अपना काम कर चुपके से निकल जाना ही इनकी सबसे बड़ी खूबी है!!!

""शायद नूतन ने मुझे सही उपाधि दी थी, या नही ये तो मुझे नही पता??? लेकिन मेरी इस कहानी में छिपी ""चुप छिनाल"" समय आने पर आपको जरूर दिखने लगेगी ""

नूतन के सवाल का मेरे पास कोई जबाब नही था, मै निशब्द थी!!
मुझे खामोश कर नूतन हँसी भरा ताना देते हुए जा रही थी, उसके चेहरे पर एक जंग जीतने वाली खुशी नजर आ रही थी!!!
मेरी एक चूतियापे वाले सवाल ने मेरे सुनील भैया और नूतन की प्रेम कहानी का सत्यानाश कर दिया था। मै एक उलझन में पड़ गयी थी आखिर सुनील भैया को उनके हिस्से की खुशी कैसे मिलेगी????
रेखा का अल्हड मन भटक रहा है सपने में ताना बाना बुना जा रहा है देखते हैं किस की बाहों में टूटकर बिखरता है सुनील भैया का नुतन से टांका जुड़ने की बजाय बिगड़वा दिया बेचारे सुनील भैया को फिर से हाथ से काम चलाना पड़ेगा
 

Rekha rani

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रेखा का अल्हड मन भटक रहा है सपने में ताना बाना बुना जा रहा है देखते हैं किस की बाहों में टूटकर बिखरता है सुनील भैया का नुतन से टांका जुड़ने की बजाय बिगड़वा दिया बेचारे सुनील भैया को फिर से हाथ से काम चलाना पड़ेगा
Dhnyawad
 
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