Dear Readers. ये update मेरी कहानी का खास पार्ट है, इसमें लिखे हर शब्द की अहमियत वो ही समझ सकता है जिसने कभी ना कभी जिंदगी में मोहब्बत की होगी.... और एक छोटी सी भूल, गलती, गुनाह, की सजा भुगती होगी.......
एक निवेदन --- जो रीडर इस update में चोदण्, और, भोसण पढ़ना चाहते है वो इसे स्किप कर अगले आने वाले update का इंतजार करे..... शुक्रिया!!
अध्याय -- 10 ---
तभी एकदम जोर जोर से तालियों के साथ हँसी की गड़गड़ाहट हमारे कानों में गूजने लगी........ हमारी नजर उधर गयी..... तो हमारी आँखे खुली रह गई............ हम दंग रह गये........ सामने मेरी सगी बहन अंजू दीदी खिलखिला कर ताली बजाते हुए
बोली -------
"" वाह रेखा रानी ""
"" मा खावे पताशा बेटी दिखावे तमाशा ""
"" मम्मी के मुह में गोलगप्पा.......... बेटी के मुह में लंड का टोपा ""
मैने खुद को सम्हालते हुए अरुण के प्यार के खुमार में डूबी अपनी लाल आंखे मारे लाज के निचे करते हुए बोली...... अब बस करो दीदी तुम्हारी आवाज मम्मी ने सुन ली तो कयामत हो जायेगी... मै अभी छत से नीचे कूद जाऊंगी, मेरी लाश पर खूब मन भर के ठहके लगाना! दीदी मेरी बात सुनकर सहम गयी और चुप होकर बाथरूम में घुस गयी...... मेरी और अंजू दीदी के बीच की बातो में ही अरुण ऐसे गायब हो गया जैसे ""गधे के सिर पर से सींग...."" पट्ठे की शायद मुझसे ज्यादा गांड फट गयी थी।
बाथरूम से बाहर निकलने के बाद अंजू दीदी मुझसे बोली रेखा .. चलो जाओ पहले तुम पेशाब कर लो !
मैंने कहा- मुझे पेशाब नहीं आई है !
उसने जोर देकर व्यंग भरी हँसी देते हुए कहा- पेशाब कर लो, वरना जो.........भरा है वो .......दर्द करने लगेगा......
"अक्सर जब काम अधूरा रह जाता है तो ज्यादा तकलीफ होती है......." अंजू दी छत से नीचे जाते हुए "मुफ्त की सलाह" देते हुए हस्ती हुयी बोली...! हाहा हाहा हाहा
मै बाथरूम में घुस गयी मेरी पैंटी इस वक़्त लगभग पूरी तरह से भीग चुकी थी..... मै बैठ कर पेशाब करने की कोशिश करने लगी, पर उत्तेजना में माँसपेशियाँ इतनी अकड़ गई थीं कि पेशाब करना मुश्किल हो रहा था। मेरी पेशाब - नहीं निकल रही थी..... मै थोड़ी सी डर गयी और तभी मैने अपनी योनि पर हाथ लगा कर हल्के से योनि को खोल दिया. .. ....
सच बताऊं बड़ा अजीब-सा लगा, धीरे-धीरे मीठा-मीठा दर्द उठने लगा था मैं अपनी योनी अपने हाथों से सहला रही थी। वह मेरे लाइफ का सबसे पहला एहसास था, जहां मैंने शायद ऐसा ही होता होगा सेक्स को महसूस किया था। धीरे-धीरे मैं अपने यौनांगों को एक्सपलोर करने लगी और अपने शरीर को करीब से जानने लगी। यकीन मानिए मुझे बिल्कुल नहीं पता था कि मेरे शरीर की जरुरतें ऐसी भी हो सकती
कुछ समय बाद मुझे अपनी योनी के एक ऐसे हिस्से के बारे में पता चला, जिसे क्लिटोरिस कहते हैं। वो मेरे लिए ऐसी जगह थी, जहां सबसे ज्यादा आनंद महसूस कर रही थी.....
फिर अपने हाथों से अपनी कुँवारी चूत के क्लीस्टोरील्स को धीरे धीरे सहलाने लगी.......मुझे इस वक़्त कोई होश ना था.......ऐसा पहली बार था जब मैं अपने बाथरूम में इस हालत में बैठी थी...... इस वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैने अपने अंदर कोई बहुत बड़ा तूफान समेटकर रखा हुआ हो.....और अब वो तूफान फुट कर बाहर आने को बेताब था........मेरी हाथों की स्पीड अब धीरे धीरे बहुत बढ़ चुकी थी.......मैंने थोड़ा जोर लगाया तो मेरा कामरस (चासनी) के साथ साथ पेशाब निकलने लगा। जो मेरी चूत से इस कदर बाहर की ओर बह रहा था कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा पूरा बाथरूम का फर्श लबालब हो जाएगा........मगर मुझे उस वक़्त अपने बाथरूम से ज़्यादा अपने छुपे हुयी उस आग को बुझाने की फिकर थी........
करीब 5 मिनिट के अंदर ही मुझे ऐसा लगा कि अब मेरा जिस्म अकड़ने लगा है......मेरे अंदर का तूफान अब बाहर निकलने वाला है.......और आख़िरकार मेरे सब्र टूट गया और मैं वही ज़ोरों से सिसकती हुई अपने बाथरूम में किसी लाश की तरह बिल्कुल ठंडी पड़ गयी..........मैं उस वक़्त एक अलग ही दुनिया में अपने आप को महसूस कर रही थी.......मेरे अंदर का तूफान अब बाहर आ चुका था.......मैं वही हाँफ रही थी और अपनी आँखे बंद किए हुए उस चरम सुख को एहसास कर रही थी.......आज पहली बार मैं उस सुख को इतने करीब से महसूस की थी........
मुझे तो एक पल के लिए ऐसा लगा कि इससे बढ़कर दुनिया में और कोई सुख नहीं.......काफ़ी देर तक मैं वही बाथरूम में उसी हाल में पड़ी रही......मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरा जिस्म अब बहुत हल्का हो गया हो........जो सैलाब मेरे अंदर था वो अब बाहर निकल चुका था......मैं इस वक़्त पसीने से बुरी तरह भीग चुकी थी.......मेरी पजामी भी पहले से ही लगभग पूरी तरह से भीग चुकी थी, मै अपनी पैंटी अच्छे से धो कर, सुखाने के लिए वही डालकर, बिना पैंटी पहने पजामी पहनकर अपने हाथ मुह धोकर छत से नीचे आकर सीधे कमरे में जाकर दूसरी पैंटी और अपना पुराना लेगहा या घाघरा, (long स्कर्ट) पहन अरुण को ढूढ़ने दुकान में गयी लेकिन वो नही था।
सुनील भैया, अंजू और मम्मी आपस में हिसाब किताब की बातें करते देख वापस कमरे में लेट गयी और दुआ कर रही थी अंजू दीदी "" मंथरा "" बनकर मम्मी के कान मे उलटी ना कर दे....... मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था. ...... जिस्म की तपिश शांत करने की खुजली ने मुझे अब ऐसे हालातों पर खड़ा कर दिया था कि अब मै अंजू दीदी से ज्यादा बहस " चू चपड़" नही कर सकती थी।
मै इक गहरी सोच में थी.... "अरुण से बिछड़ते वक्त मैने उसकी आँख में कुछ नहीं देखा....
उसे पल दो पल तो पलकों को भिगोना चाहिए था!"
थोड़ी देर बाद मम्मी की आवाज आई रेखड़ी ओ छोरी आ जा तुम तीनों खाना खा लो..... मै जब तक दुकान पर बैठी हूँ!!
मै उठी और खाना खाने के लिए बैठ गयी, अंजू दी..... सुनील भैया भी आ गये.. हम आपस में बिना कोई बातें किये खाना खाये जा रहे थे...... वैसे भी हमारे बीच बातो की डोरी मम्मी की गैर मौजूदगी में टूटी हुयी सी थी। हम तीनो के बीच एक चुप्पी थी या शायद "एक अधूरा सच".......
अब हमारे हालात एक जैसे थे, मै सुनील और अंजू का राज जानती थी, अंजू मेरा राज जानती थी......हम तीनो के ही चेहरे
"" हारे हुए जुआरी"" की तरह नजर आ रहे थे। हमारे ऊपर वो कहावत फिट बैठती है--
"" हमाम में सब नंगे हैं ""
खाना खा पी कर हम सब अपने काम करने लगे..... समय निकलता गया और रात हो गयी मैने फिर से अपनी कॉपी निकाली और उस पर अपने अरुण से आज जो हुआ उन सवालों के साथ साथ प्रेम भरे शायरी भरे खत लिखने लगी......इस उम्मीद से कि जब कल वो आयेगा तो उसे दे दूँगी।
सुबह हुयी रोज की तरह नित्य कामों से मुक्त होकर खुद को सज सवार कर मै अपने अरुण का इंतजार करने लगी...... अंजू दीदी से मुझे अब कोई शिकायत या शिकवा नही थी.........शायद उसकी वजह कल मेरी जिंदगी का पहला आत्म सेक्स अनुभव था जो हमेश याद रहेगा. और इसी वजह से एक एक बात मुझे अच्छी तरह याद थी...अंजू दीदी ने मुझे अरुण के जाने के बाद जोर देकर पेशाब करने लिए उकसाया , उससे मैंने एक लड़की की जिंदगी के उस छिपे हुए पहलु को जान लिया था।
((दरसल सच तो ये है उस दौर में छोटी सी उम्र में न तो मैने कोई पॉर्न देखा था और न ही कोई सेक्सुअल जानकारी थी. और न ही मैं हस्तमैथुन के बारें में ज्यादा जानती थी. और यह सब मुझे चिडचिडा बना देता था. क्योंकि सेक्सुअल बातें करने के बाद मेरी चूत तो गीली हो जाती थीं और उस बारें में कुछ भी नहीं जानती थी. मै नहीं जानती थी कि मै अपनी सेक्सुअल फ्रस्ट्रेशन , टेंशन और देस्प्रशन कैसे निकालू?))
मै आज भी अपने ब्लैक ब्रा के अंदर अरुण के नाम का प्रेम पत्र छिपाये उसका बेसब्री से इंतजार कर रही थी...... कभी छत पर... कभी घर के दरवाजे पर..... सड़क पर गुजरने वाली हर बुलेट मोटर साइकिल कि आवाज जैसे ही हमारी दुकान के पास आकर बंद होती तो मेरी दिल धड़कन तेज हो जाती! मै भागकर जाती दुकान के पिछले दरवाजे से झांकर वापस निराश हो कर जाती......
""उसकी हल्की हल्की सी हंसी साफ़ इशारा भी नहीं,,,
जान भी ले गया और जान से मारा भी नहीं...""
अरुण की कोई खबर नही लग रही थी, कभी दिल में उसके लिए गाली निकलती कभी प्यार आता...... पता ही नही चल रहा था वो आयेगा भी नही..????
रह रह कर मुझे बीते हुए कल के अरुण प्यार भरे तीनो किस याद आ रहे थे..... उसके तीनों किस की याद मै कुछ यू बयाँ कर रही हूँ........
""तुमने तो सारी मोहब्बत मुझ पर लुटा दी थी
तो फिर ये तीसरा किस. ..... किस उम्मीद पर टिका
है""
""दिन निकल गया रात होने को आई सब सो गये पर मुझे नींद नही आई"" कहते है कि
""मोहब्बत ज़िन्दगी बदल देती है
मिल जाए तब भी ओर ना मिले तब भी,,
अगली सुबह फिर से बीते दिन की तरह अरुण का इंतजार करते हुए फिर दिन निकल गया....... मेरी खामोशी बेचैनी बढ़ रही थी और चेहरे का नूर कम हो गया.... अरुण की जुदाई में खाना पीना सब बंद हो गया...... दिल से उसे कोसते हुए रात हो जाती और फिर ख्याल आता उसका accident तो नही हो गया, वो बीमार तो नही हो गया.....
""रोयी जरूर उसके लिए बद्दुआ न की...
खुद बन गयी बुरी पर उसको तो बुरा न कहा!""
टीवी पर आने वाले फिल्मी गाने की पसंद बदल गयी..... मुझे अब दर्द और जुदाई भरे गाने अच्छे लगने लगे.... चाहे वो " सनम बेवफा "" का हिट गाना--
ऐसा दर्द दिया है, जीना मुश्किल किया है....
दिल में रहकर दिल को, दिल में जखम दिया है......
सनम बेवफा ओ सनम बेवफा
चाहे वो " खुदा गवाह "" का हिट गाना--
कर दे तू ऐसा कुछ हाल मेरा....
सुनकर आ जाये मेरा मसीहा ...
नजरे तरस गयी..... आँखे बरस गयी...
तेरा दीदार करा दे.... बिछड़ा यार मिला दे..... ओये रब्बा......
दिन बीतने लगे अरुण की कोई खबर नही थी मुझे..........
हमने ऐसी भी क्या खता कर दी...
जो काबिले माफी नही!
तुमको देखा नही है, कई दिन से. ...
क्या यही सजा काफी नही!
मै सुनील से पूछ नही सकती थी... मेरे पास अरुण का टेलीफोन नम्बर और दिल में प्यार था...... लेकिन काल करने की हिम्मत नही थी.... क्योकि वो शख्स अब मेरा नही था.....!
""मैने तेरे बाद किसी के साथ जुड़कर नही देखा. ........ मैने तेरी राह तो देखी पर तूने मुड़कर भी नही देखा!! ""
ऐसे ही विरह जुदाई की अगन में जलते हुए आठ दिन बीत गये...... मै और मेरे जिस्म की तपिश पूरी तरह से बुझ गयी...... और अपनी दुकान पर बैठी हुयी सोच रही थी. ...
लगी दोस्ती को किसकी नजर...
बदल जायेगा तू नही थी खबर!
आधे घंटे बाद मेरी खास सहेली अर्चना देवी जी हस्ती हुई प्रकट हो गयी...... मै एक ग्राहक के जाने के बाद गुमसुम खड़ी थी!!
तभी मेरे सलवार में चमक रहे नितंबों पर एक जोर की चपत लगाते हुए अर्चना बोली रेखड़ी ये तेरे फुटबॉल जैसे चूतड़ को क्या हुआ....... ये कैसे पिचक गये, इनकी चर्बी कैसे कम हो गयी....... मै "दुखियाई मुस्कान" देते हुए बोली.... अर्चू यार कुछ हुआ ही नही....... और सब कुछ हो गया!
ए रेखड़ी ये अपनी आशिकी वाली डाइलोग में नही शुद्ध हिंदी में बता..... अर्चना हस्ती हुयी बोली....... मैने उसे पिछले आठ दिनों की पूरी कहानी बता दी। वो मेरी पूरी बात सुनकर एकदम शांत हो गयी, हमारे चेहरे से हसी गायब हो गयी..... पांच मिनिट कुछ सोचने के बाद मुझसे बोली......
रेखा भूल जा अरुण को.......???
बस ये दिक्कत है भूलने में उसे...
उसके बदले किसको याद करू.........! !!
मै हस्ती हुयी दिलजली लैला की तरह अर्चना से बोली.....
ए हरियाणे की ""अल्ताफ राजा"" बस कर ये चूतियापे वाली बातें......
मुझे ""अल्ताफ राजा"" शब्द सुनकर बड़ी जोर से हँसी आ गयी..... हाहा हाहा हाहा
(अल्ताफ राजा उस दौर के famous singer थे..... तुम तो तेरे परदेशी साथ क्या निभाओगे)
रेखड़ी सुन मेरी बात ध्यान से तुम किसी को अपना क्यो ना मान लो, लेकिन वो तुम्हे एक दिन अजनबी होने का अहसास दिला ही देगा समझी...... !! कुछ रिश्ते किराये के मकान की तरह होते है, उन्हे कितना भी सजा लो अपने नही होते........! दुनिया में सब अपने स्वार्थ के मीत है, बस उतना ही याद
रखते है, जितना उनका स्वार्थ होता है।
मुझे अर्चना की कोई बात समझ नही आ रही थी..... मै तो प्यार में चोट खाई इक दिलजली दिलरुबा की तरह फिर से डाइलोग मारते हुए बोली........
कमाल का हुनर रखते है लोग.....
पहले घंटो बातें करके आदत लगाते है,
फिर इंग्नोर करके रात दिन रुलाते है.......
अर्चना बोली - और कुछ बचा हो तो वो भी बोल दे.... आज में तेरा पूरा "" अरुण पुराण "" सुनकर ही जाऊंगी......
मै प्यार से अर्चना के गाल खीचते हुए बोली... "" मुद्दतों बाद आज फिर परेशां हुआ है दिल....... ना जाने किस हाल में होगा मुझे भूलने वाला...!!
अब तो अर्चना का पारा गर्म हो गया और वो गुस्से में बोली.... ए घोड़ी सुन सच्चा लवर और प्रेमी उसे कहते है "" जो दिल से बात करे, दिल रखने के लिए नही..... " और तो और
जो समय मिलने पर ही नही....
समय निकालकर भी बात करे....!!!
तभी हमारे बातों के बीच में अंजू दीदी भी दुकान पर आ गयी..... क्या हुआ अर्चू क्यो चिल्ला रही है, अंदर तक आवाज जा रही है... ???
अंजू तू अपनी बहना से पूछ वो तो गरीबो की ""पंकज उदास"" बन कर दे शायरी - दे शायरी, पेल रही है....!
मै अर्चना से बोली सब इसी अंजू की वजह से ही हुआ है....? ये सुनकर अंजू दीदी भी जोर से हस्ती हुयी बोली रेखा राणी
"" तेरी सब कोशिसो के बाबजूद, मुझ पर इल्जाम रह गया,
सब काम में मेन काम (चुदाई) रह गया।""
ओह मुशायरा हो रहा से...... अर्चना हस्ती हुयी बोली.... लागी रह छोरियों मै तो चली अपने घर.....!
मैने उसका हाथ पकड़ कर बैठा दिया और बोली बस अब मै कुछ नही बोलूँगी... अब जो तू बोलेगी वो ही मै करूँगी.....??
अर्चना बोली मै क्या बोलू.... तेरी बहन अंजू है ना सबसे बड़ी लव गुरू.... ये ही बताएगी।
अंजू दीदी हसने लगी..... नही अर्चना तू वैसे तो ठीक कह रही है, पर में लव गुरु नही
"" लौड़ा गुरु "" हू...... मै किसी भी लड़की की चूतडो में चांटा लगा कर बता सकती हू इसने कितने लौड़ा लिये........
हाहा हाहा हाहा
हम तीनो ही हँसने लगे..... तभी अर्चना अंजू से बोली क्यो .... तू जब लड़की के चूतडो पर चांटा मारती है तो क्या लौड़ा झड़ने लगते है.......?????
हाहा हाहा हाहा
पूरा माहौल हसी से भरा हो गया..... मेरी उदासी भी अब काफी हद तक दूर हो गयी थी!!
अंजू दीदी मुझसे बोली रेखड़ी वैसे हम सगी बहन है, पर सहेली की तरह ही है, जबसे वो छोरा क्या नाम है उसका अरुण..... उससे तेरा टांका फिट हुआ था तू एकदम से बदल गयी..... मुझे सब कुछ पता था जो रात भर तू अपनी कॉपी में चिठ्ठिया लिखती थी। पर मैने सब इग्नोर कर दिया...?? और तुझसे कुछ नही पूछा और ना ही रोका- टोका....?
लेकिन अब वो कहाँ है, किधर गया कुछ पता नहीं..... तो तुझसे कुछ पूछूँ तो अपना मुह मत फुलाना pls......!!
और गांड भी मत फुलाना
अंजू दीदी की बात बीच में काटते हुए हस्ती हुयी अर्चना बोली.... हाहा हाहा हाहा
मै तो अब उन दोनों की हँसी भरी बातों को सुनकर अब अरुण को खुद गुस्से में गालियाँ देना चाहती थी..... तो मै अंजू दीदी से बोली जो पूछना है पूछो.....??
अंजू दी --- रेखड़ी मुझे एक बात बता तूने अरुण के साथ मेरे वाला motto (पहले काटो फिर बांटो) फॉलो किया था या मुफ्त में देने के लिए तैयार हो गयी थी....??
मुझे ये सुनकर जोर से हँसी आ गयी और मै हस्ती हुई बोली..... उसने मुझे एक भारी कीमती गिफ्ट दिया है लेकिन अभी तक खोला नही है, उसमे अरुण की चिट्ठी थी कि वो जब आये तब में उसे उसको पहन कर दिखाऊ.....!! वैसे भी अंजू दीदी मै तुम्हारी छोटी बहन हू मुफ्त में, मै किसी को अपना ""मूत "" ना दू तो "" चूत "" कैसे दे देती.....
हाहा हाहा हाहा हाहा
मेरी बात सुनकर हम तीनों ही खिल खिला कर जोर से हँसने लगे.......
हाहा हाहा हाहा हाहा
तभी हमारे कानों में दहड़ती हुई मम्मी की गालियों की आवाज सुनाई देने लगी......
((रे छोकरी चोद की, चुपकी रण्डी बस कर इतनी के आग लाग री है भोसड़े में, कोई सुन लेगा तो किमी तो शर्म राख))
अरे छोरी चोद की, चुप छिनारो बस कर ज्यादा ही भोसडे में आग लागी है.... कोई सुन लेगा तो. .... कुछ तो शर्म करो.......