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भाग-1
“यार! रिया...जल्दी करो ना। मैं सच में लेट हो जाऊँगा!” संजय ने दूसरे कमरे में मौजा पहनते हुए कहा।
“जल्दी करूँ... मशीन थोड़ी हूँ... और तुम्हारा रोज का है। अगर इतनी ही टेंशन रहती है तो जल्दी क्यों नहीं उठा करते।“ रिया ने किचन से चिल्लाकर कहा।
“अब! मौजे कहाँ है... रिया.... रिया...”
“हाँ! चिल्ला क्यों रहे हो।“
“मेरे मौजे कहाँ है?”
“वही बिस्तर पर है।“
“कहाँ?”
“बिस्तर पर ही, ढंग से देखो।“
“नहीं है यहाँ पर” संजय ने एक बार और बिस्तर पर नजर घुमाते हुए कहा। रिया तुरंत किचन से आई। उधर किचन में तवे पर सेंडविच बन रहे थे। वो उन्हें अकेला छोड़कर कमरे में आती है।
“ये रहे.दिखाई नहीं देता न? पूरा खानदान ही ऐसा है।“ रिया ने एक झटके में बिस्तर के दूसरे कोंने में छुपे मौजों को निकालकर संजय के हाथ पर थमा दिया और वापस अपने सेंडविच के पास चली गई। ये हर रोज होता था। पिछले 5 सालों से हर सुबह यही होता था। संजय रात में मोबाईल चलाता और देर से उठता। रिया, सुबह जल्दी उठकर सारा काम करती रहती। और संजय के उठने के बाद, उसके ऑफिस जाने की तैयारी में जुट जाती। संजय 30 साल का हो गया था लेकिन आज भी एक छोटे बच्चे की तरह उसे तैयार होने में किसी की जरूरत पड़ती थी। शादी से पहले माँ मदद करती है और शादी के बाद, पत्नी। रिया और संजय की शादी को 7 साल हो गए थे। अभी पिछले महीने ही उनकी एनीवर्सरी थी। शादी के पहले साल रिया घर पर संजय के माता-पिता के साथ रुकी थी। संजय और रिया का रोज झगड़ा होता था। रिया कहती, कब मुझे मुंबई ले आओगे, मैं बोर हो गई हूँ यहाँ। संजय कहता, बस बहुत जल्द। और आज 7 साल बाद, रिया कहती है कि मैं गाँव में ही ठीक थी। तुम जैसा बोरिंग पति किसी को न मिले। बड़े शहरों में कम पैसे की नौकरी करने वाले मर्द बोरिंग पति ही हो जाते हैं। दस घंटे की नौकरी और बीस तरीकों के खर्चों से जूझने के बाद, उनमे कुछ नया करने की हिम्मत ही नहीं बचती। बिचारे!
“ये लो! सेंडविच ठूस लो।“ रिया ने सेंडविच संजय को देते हुए कहा। हाथ में थमाती ही वो चली गई। गुस्से में थी शायद। संजय ऑफिस की एक फाइल खोलकर पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते सेंडविच भी खा रहा था।
“तुम ने वापस मिर्ची तेज कर दी ना!” संजय ने दूर से ही चिल्लाते हुए कहा।
“...” रिया कुछ नहीं बोली। उससे वापस ये गलती हो गई थी। उसने दूसरे सेंडविच को खाकर देखा और एक निवाला खाते ही उसे भी पता चल गया कि हाँ, मिर्ची सच में तेज है।
“तुम्हारा हर बार का है यार.. इससे अच्छा जहर ही दे दो।“ संजय ने सेंडविच वैसा-का-वैसा टेबल पर रख दिया और जाने लगा। दरवाजे से बाहर निकलकर जूते पहन रहा था।
“आते वक्त आइसक्रीम लेते आना...” रिया ने किचन से ही जोर से कहा।
“...” संजय का दिमाग खराब था। उसने कुछ जवाब नहीं दिया।
“वरना दरवाजा नहीं खोलूँगी!”
संजय ने फिर कोई जवाब नहीं दिया। संजय चल दिया अपने ऑफिस की और।
(थोड़ी दूर चौराहे पर)
“अरे! संजय जी... गुड मॉर्निंग!” मकान मालिक ने पीछे से आवाज दी।
(ये भोसड़ीवाला फिर मिल गया।) संजय ने मकान मालिक की आवाज पहचानते हुए मन में कहा।
“जी! नमस्ते अंकल गुड मॉर्निंग... इतनी लेट मॉर्निंग वॉक? अभी तो साढ़े नौ बजने वाले है अंकल”
“अरे! कल रात को तारक मेहता देखते-देखते लेट हो गए, क्या करें। ये सब छोड़िए... वो आज सात तारीख है...तो..”
“हाँ! अंकल मुझे याद है, आज शाम लौटते हुए दे दूँगा।“
“अच्छा! अच्छा! सोचा आपको याद दिला दूँ..”
“जी!” इतना कहते ही संजय मुड़कर चलने लगा।
“और सब बढ़िय....” मकान मालिक और बोलते कि इससे पहले संजय चल दिया। बस में बैठते हुए, उसने किसी को मैसेज किया और अपने सफर का आनंद उठाने लगा।
(घर पर)
संजय के घर से निकलते ही रिया ने अपनी गति बढ़ा ली। उसने दरवाजे बंद किये। कमरे में रोशनी के आने वाले सभी रास्तों को उसने बंद कर दिया। खिड़कियों को जकड़ दिया। एक दो बार खींचकर देखा कि कहीं किसी के धक्के से खुल न जाए। अपने बेडरूम में जाकर उसने बिस्तर को जमाया। बिस्तर पर पड़े हुए कपड़ों, चद्दर को समेटकर एक कोंने में फेंक दिया। थोड़ी देर बिस्तर पर लेटी रही। बिस्तर पर ऐसे लेटी जैसे एक थका हारा इंसान धूप में चलते-चलते छाँव में जाकर लेट जाता है। रिया के जीवन की धूप सुबह होते ही चालू हो जाती। वो दिन भर घर के कामों में तपती और जब भी उसे मौका मिलता, अपने बिस्तर को छाँव समझकर लेट जाती। थोड़ी देर बाद वह उठकर आईने के पास आकर खुद को निहारने लगी। रिया अब अठाईस वर्ष की हो चुकी थी। वो खुद को देखकर ये महसूस कर सकती है कि वो कितनी बदल चुकी है। उसके बाल जो कॉलेज के टाइम पर हमेशा इतराते थे, वो दिन के शुरू होते ही काम की भागदौड़ से मुरझा जाते हैं। उसने अपने बालों को दोनों हाथों से समेटा। कुछ बाल जो अगल-बगल से यूँ ही हवा में उलझे हुए थे, उन्हें भी रिया ने अपनी उँगलियों से कानों के पास पटक दिया। वो देख रही थी अपने गालों को, जो कॉलेज के टाइम पर कोमल फूलों का स्पर्श देते थे, आज उन गालों का बुरा हश्र है। फुंसियाँ अभी भी नहीं है लेकिन उन्हें बार-बार छूने का जी भी नहीं करता। रिया ने खुद को देखते हुए अपने होंठों को चूसा और उसे पता चला अब इन होंठों से वो रस धीरे धीरे जा रहा है। वो चाहती थी कि कोई मर्द इनमे वापस मादकता का रस भर दे। उसके होंठ खाली मटके की तरह हो गए थे जो तरसते रहते हैं कि कोई आकर उनमे जल भर दे। काश! ऐसा संजय कर पाता। संजय करता था लेकिन संजय अपने हथियारों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता था। संजय दारा शिकोंह था और रिया को औरंगजेब चाहिए था। एक दरिंदा जो उसे जी भर के परेशान करे, उसके योवन को निचोड़कर रख दे। वो संजय को सिखाती भी थी लेकिन संजय मादकता का एक बुरा विद्यार्थी था।
रिया ने सारी के पल्लू को जमीन पर पटक दिया। लेकिन वो अभी भी अपने लाल रंग के ब्लाउस में कैद दो कैदियों को देख नहीं पा रही थी। उन दोनों कैदियों को देखकर लग रहा था कि उन्हें जेल का पानी लग रहा हो। वो उम्र के साथ हट्टे-कट्टे हो रहे थे। रिया ने अपने दोनों हाथों से उन्हें नापना चाहा। उसने ब्लाउस के ऊपर से ही अपने हाथों में ले लिया। लेकिन दो हट्टे-कट्टे कैदी उसके हाथों में अब नहीं आ रहे थे। वो ये जानकर हल्की सी मुस्कुराई। उसकी आँखों से यह खुशी छलक रही थी। इतने में ही उसका फोन बजा।
“तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी मैं” रिया ने फोन उठाते ही कहा। अपने पल्लू को सही किया और धम से बिस्तर पर जा लेटी।
“...” दूसरी तरफ की आवाज़ें फोन से बाहर नहीं आ रही थी।
“हाँ! सच में। आज मुझे पता चला कि मेरे बूब्स सच में बड़े। तेरे हाथों में नहीं आएंगे रे अक्षय!”
“...”
“हाहाहा! मुँह में तो आजाएंगे। लेकिन मुझे अच्छा लगता है जब कोई इन्हें मींजता है। कोई जब इन्हें दबाता है। अपनी पांचों उँगलियों से। कोई जब इन्हें ब्लाउस के बाहर से दबाकर मसल देगा तब जाकर शायद में सच में खुश हो पाऊँगी। मेरा मन करता है कि कोई इन्हें अपनी जीभ से गीला करे लेकिन ब्लाउस के ऊपर से ही। जिससे उस इंसान की जावनी की लार से मेरा ब्लाउस गीला हो जाए और फिर धीरे धीरे, मेरे अंदर के इन दो कैदियों को ठंडक पहुचाए।“ वो सब कह रही थी और खुद ही अपने स्तनों को दबा रही थी।
“...”
“गीला बदन किसको नहीं पसंद अक्षय। लेकिन, फ़र्क तब पड़ता है कि जब बदन पानी की वजह से गीला न हो। बल्कि जवानी के वजह से हो। समझे?”
“...”
“अरे! जब कोई इंसान तुम्हारे बदन को एक कुत्ते की तरह चाँटे तब की बात कर रही हूँ.. उम्म... ये सोचकर ही मेरी धड़कने बढ़ जाती है, हर पत्नी का पति को अंदर से कुत्ता होना चाहिए। जितना संजय अपनी बॉस की चांटता है, उतनी अगर उसने मेरी चुत चाँटी होती तो खुश होता वो जीबन में। पर कौन समझाए उसे? कौन समझाए उसे कि मैं अंदर से कितनी तड़पती रहती हूँ। कभी-कभी मन करता है कि काश इन चार दीवारों के कान की बजाए चार लौड़े होते तो मैं चारों लौड़े एक साथ अपने अंदर ले लेती।“
“....”
“हाँ! ले लेती। एक दो नीचे, एक ऊपर और एक हाथ में, हो गए न चार?”
“....”
“तो फिर, तु मुझे जानता ही कहाँ अभी... तेरे जैसे चार अक्षय को एक साथ खा सकती हूँ और वो भी रातभर।“
“....”
“तु अगर अभी मेरे पास होता तो मैं क्या करती? कभी गन्ने का रस पिया है तुने?”
“...”
“अरे! चूतिये वो मार्केट वाली की बात कर रही हूँ मैं। देखा वो मशीन से कैसे निकालते हैं?”
“....”
“हाँ! तो मैं भी ठीक वैसे ही तेरे गन्ने को निचोड़-निचोड़कर, निचोड़-निचोड़कर, निचोड़-निचोड़कर सारा रस निकाल देती।“
“...”
“ मेरे पास मशीन है न.. तीन तीन मशीन है।“
“...”
“एक हाथ, एक मुँह और एक चुत – हो गई तीन मशीनें।“
“...”
“सबसे अच्छी मशीन तो... सोचना पड़ेगा यार, शायद मुँह पता नहीं”
“...”
“संजय का तो बोल से खेलती हूँ तब झड़ जाता है, वो ज्यादा देर तक बेटिंग कर ही नहीं पाता।“
“...”
“मेरी मशीन कैसे काम करती है.. पास में होता तो बताती।“
“...”
“हाहाहा! देख, मैंने सीख है ये वीडियोज़ देख-देखकर। पहले मुझे भी नहीं आता था लेकिन फिर एक दिन मैंने सीखा अच्छे से, और फिर संजय पर ट्राइ किया। बड़ा मज़ा आया था।“
“...”
“चूसने में सबसे ज्यादा जरूरी होता है इंसान की आँखों में देखते रहना। वो सबसे ज्यादा काम करता है। आपकी जीभ जब उसके अंडकोशों को चाट रही हो, तब बीच-बीच में आपकी निगाहें उस इंसान की तरफ जाती रहनी चाहिए। अपनी आँखों से उसको बताओ कि मैं आज तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगी। और फिर जरूरी होता है, जीभ की स्पीड। मर्द के लोड़े का सफर चूसते टाइम धीरे करना चाहिए। जल्दी-जल्दी में कुछ मज़ा नहीं। धीरे-धीरे चूसते रहो, चाटते रहो। उसके अंडों को अपनी जीभ से गीला कर दो। एक दम नीचे से शुरू करो और ऊपर तक आहिस्ता-आहिस्ता ले जाओ.... उफ्फ़! मैं पागल हो जाऊँगी।“ रिया ने अपनी आँखें बंद कर ली थी। अब वो अपनी बदन को सहलाने लगी थी।
“...”
“फिर? कुछ नहीं, वहीं रुको जहाँ थे। उसके अंडों के पास। जीभ से चाटने के बाद, अब उन्हें मुँह में लेलो…और चूसो... अअअ...खूब चूसो... जितना हो सके चूसो... चूसते रह जाओ...उमहह..और फिर से अपने मर्द की आँखों में देखो। वो पागल हो जाएगा। इससे आगे संजय जा ही नहीं पाता। इतनी में ही बह जाता।
“...”
“अच्छा एक बात बता अक्षय!” रिया ने अपने बदन को थोड़ी देर के लिए सहलाना बंद कर दिया।
“...”
“तेरा सच में बड़ा है ना?
“...”
“हाँ लेकिन पिक्चर में ढंग से समझ नहीं आता।“ अक्षय की हाँ सुनकर उसने अपने बदन को सहलाना वापस चालू किया। वो इस बार ढलान से होते हुए नीचे जा पहुँची। और अपनी गुफा के द्वार खटखटाने लगी।
“...”
“नहीं, यार विडिओ कॉल में मुझे डर लगता है।“
“..”
“मुझे खुश तो कर पाएगा न तु? पता चले तु भी संजय की तरह निकले।“
“...”
“हम्म! कैसे करेगा?”
“यार! रिया...जल्दी करो ना। मैं सच में लेट हो जाऊँगा!” संजय ने दूसरे कमरे में मौजा पहनते हुए कहा।
“जल्दी करूँ... मशीन थोड़ी हूँ... और तुम्हारा रोज का है। अगर इतनी ही टेंशन रहती है तो जल्दी क्यों नहीं उठा करते।“ रिया ने किचन से चिल्लाकर कहा।
“अब! मौजे कहाँ है... रिया.... रिया...”
“हाँ! चिल्ला क्यों रहे हो।“
“मेरे मौजे कहाँ है?”
“वही बिस्तर पर है।“
“कहाँ?”
“बिस्तर पर ही, ढंग से देखो।“
“नहीं है यहाँ पर” संजय ने एक बार और बिस्तर पर नजर घुमाते हुए कहा। रिया तुरंत किचन से आई। उधर किचन में तवे पर सेंडविच बन रहे थे। वो उन्हें अकेला छोड़कर कमरे में आती है।
“ये रहे.दिखाई नहीं देता न? पूरा खानदान ही ऐसा है।“ रिया ने एक झटके में बिस्तर के दूसरे कोंने में छुपे मौजों को निकालकर संजय के हाथ पर थमा दिया और वापस अपने सेंडविच के पास चली गई। ये हर रोज होता था। पिछले 5 सालों से हर सुबह यही होता था। संजय रात में मोबाईल चलाता और देर से उठता। रिया, सुबह जल्दी उठकर सारा काम करती रहती। और संजय के उठने के बाद, उसके ऑफिस जाने की तैयारी में जुट जाती। संजय 30 साल का हो गया था लेकिन आज भी एक छोटे बच्चे की तरह उसे तैयार होने में किसी की जरूरत पड़ती थी। शादी से पहले माँ मदद करती है और शादी के बाद, पत्नी। रिया और संजय की शादी को 7 साल हो गए थे। अभी पिछले महीने ही उनकी एनीवर्सरी थी। शादी के पहले साल रिया घर पर संजय के माता-पिता के साथ रुकी थी। संजय और रिया का रोज झगड़ा होता था। रिया कहती, कब मुझे मुंबई ले आओगे, मैं बोर हो गई हूँ यहाँ। संजय कहता, बस बहुत जल्द। और आज 7 साल बाद, रिया कहती है कि मैं गाँव में ही ठीक थी। तुम जैसा बोरिंग पति किसी को न मिले। बड़े शहरों में कम पैसे की नौकरी करने वाले मर्द बोरिंग पति ही हो जाते हैं। दस घंटे की नौकरी और बीस तरीकों के खर्चों से जूझने के बाद, उनमे कुछ नया करने की हिम्मत ही नहीं बचती। बिचारे!
“ये लो! सेंडविच ठूस लो।“ रिया ने सेंडविच संजय को देते हुए कहा। हाथ में थमाती ही वो चली गई। गुस्से में थी शायद। संजय ऑफिस की एक फाइल खोलकर पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते सेंडविच भी खा रहा था।
“तुम ने वापस मिर्ची तेज कर दी ना!” संजय ने दूर से ही चिल्लाते हुए कहा।
“...” रिया कुछ नहीं बोली। उससे वापस ये गलती हो गई थी। उसने दूसरे सेंडविच को खाकर देखा और एक निवाला खाते ही उसे भी पता चल गया कि हाँ, मिर्ची सच में तेज है।
“तुम्हारा हर बार का है यार.. इससे अच्छा जहर ही दे दो।“ संजय ने सेंडविच वैसा-का-वैसा टेबल पर रख दिया और जाने लगा। दरवाजे से बाहर निकलकर जूते पहन रहा था।
“आते वक्त आइसक्रीम लेते आना...” रिया ने किचन से ही जोर से कहा।
“...” संजय का दिमाग खराब था। उसने कुछ जवाब नहीं दिया।
“वरना दरवाजा नहीं खोलूँगी!”
संजय ने फिर कोई जवाब नहीं दिया। संजय चल दिया अपने ऑफिस की और।
(थोड़ी दूर चौराहे पर)
“अरे! संजय जी... गुड मॉर्निंग!” मकान मालिक ने पीछे से आवाज दी।
(ये भोसड़ीवाला फिर मिल गया।) संजय ने मकान मालिक की आवाज पहचानते हुए मन में कहा।
“जी! नमस्ते अंकल गुड मॉर्निंग... इतनी लेट मॉर्निंग वॉक? अभी तो साढ़े नौ बजने वाले है अंकल”
“अरे! कल रात को तारक मेहता देखते-देखते लेट हो गए, क्या करें। ये सब छोड़िए... वो आज सात तारीख है...तो..”
“हाँ! अंकल मुझे याद है, आज शाम लौटते हुए दे दूँगा।“
“अच्छा! अच्छा! सोचा आपको याद दिला दूँ..”
“जी!” इतना कहते ही संजय मुड़कर चलने लगा।
“और सब बढ़िय....” मकान मालिक और बोलते कि इससे पहले संजय चल दिया। बस में बैठते हुए, उसने किसी को मैसेज किया और अपने सफर का आनंद उठाने लगा।
(घर पर)
संजय के घर से निकलते ही रिया ने अपनी गति बढ़ा ली। उसने दरवाजे बंद किये। कमरे में रोशनी के आने वाले सभी रास्तों को उसने बंद कर दिया। खिड़कियों को जकड़ दिया। एक दो बार खींचकर देखा कि कहीं किसी के धक्के से खुल न जाए। अपने बेडरूम में जाकर उसने बिस्तर को जमाया। बिस्तर पर पड़े हुए कपड़ों, चद्दर को समेटकर एक कोंने में फेंक दिया। थोड़ी देर बिस्तर पर लेटी रही। बिस्तर पर ऐसे लेटी जैसे एक थका हारा इंसान धूप में चलते-चलते छाँव में जाकर लेट जाता है। रिया के जीवन की धूप सुबह होते ही चालू हो जाती। वो दिन भर घर के कामों में तपती और जब भी उसे मौका मिलता, अपने बिस्तर को छाँव समझकर लेट जाती। थोड़ी देर बाद वह उठकर आईने के पास आकर खुद को निहारने लगी। रिया अब अठाईस वर्ष की हो चुकी थी। वो खुद को देखकर ये महसूस कर सकती है कि वो कितनी बदल चुकी है। उसके बाल जो कॉलेज के टाइम पर हमेशा इतराते थे, वो दिन के शुरू होते ही काम की भागदौड़ से मुरझा जाते हैं। उसने अपने बालों को दोनों हाथों से समेटा। कुछ बाल जो अगल-बगल से यूँ ही हवा में उलझे हुए थे, उन्हें भी रिया ने अपनी उँगलियों से कानों के पास पटक दिया। वो देख रही थी अपने गालों को, जो कॉलेज के टाइम पर कोमल फूलों का स्पर्श देते थे, आज उन गालों का बुरा हश्र है। फुंसियाँ अभी भी नहीं है लेकिन उन्हें बार-बार छूने का जी भी नहीं करता। रिया ने खुद को देखते हुए अपने होंठों को चूसा और उसे पता चला अब इन होंठों से वो रस धीरे धीरे जा रहा है। वो चाहती थी कि कोई मर्द इनमे वापस मादकता का रस भर दे। उसके होंठ खाली मटके की तरह हो गए थे जो तरसते रहते हैं कि कोई आकर उनमे जल भर दे। काश! ऐसा संजय कर पाता। संजय करता था लेकिन संजय अपने हथियारों का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता था। संजय दारा शिकोंह था और रिया को औरंगजेब चाहिए था। एक दरिंदा जो उसे जी भर के परेशान करे, उसके योवन को निचोड़कर रख दे। वो संजय को सिखाती भी थी लेकिन संजय मादकता का एक बुरा विद्यार्थी था।
रिया ने सारी के पल्लू को जमीन पर पटक दिया। लेकिन वो अभी भी अपने लाल रंग के ब्लाउस में कैद दो कैदियों को देख नहीं पा रही थी। उन दोनों कैदियों को देखकर लग रहा था कि उन्हें जेल का पानी लग रहा हो। वो उम्र के साथ हट्टे-कट्टे हो रहे थे। रिया ने अपने दोनों हाथों से उन्हें नापना चाहा। उसने ब्लाउस के ऊपर से ही अपने हाथों में ले लिया। लेकिन दो हट्टे-कट्टे कैदी उसके हाथों में अब नहीं आ रहे थे। वो ये जानकर हल्की सी मुस्कुराई। उसकी आँखों से यह खुशी छलक रही थी। इतने में ही उसका फोन बजा।
“तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी मैं” रिया ने फोन उठाते ही कहा। अपने पल्लू को सही किया और धम से बिस्तर पर जा लेटी।
“...” दूसरी तरफ की आवाज़ें फोन से बाहर नहीं आ रही थी।
“हाँ! सच में। आज मुझे पता चला कि मेरे बूब्स सच में बड़े। तेरे हाथों में नहीं आएंगे रे अक्षय!”
“...”
“हाहाहा! मुँह में तो आजाएंगे। लेकिन मुझे अच्छा लगता है जब कोई इन्हें मींजता है। कोई जब इन्हें दबाता है। अपनी पांचों उँगलियों से। कोई जब इन्हें ब्लाउस के बाहर से दबाकर मसल देगा तब जाकर शायद में सच में खुश हो पाऊँगी। मेरा मन करता है कि कोई इन्हें अपनी जीभ से गीला करे लेकिन ब्लाउस के ऊपर से ही। जिससे उस इंसान की जावनी की लार से मेरा ब्लाउस गीला हो जाए और फिर धीरे धीरे, मेरे अंदर के इन दो कैदियों को ठंडक पहुचाए।“ वो सब कह रही थी और खुद ही अपने स्तनों को दबा रही थी।
“...”
“गीला बदन किसको नहीं पसंद अक्षय। लेकिन, फ़र्क तब पड़ता है कि जब बदन पानी की वजह से गीला न हो। बल्कि जवानी के वजह से हो। समझे?”
“...”
“अरे! जब कोई इंसान तुम्हारे बदन को एक कुत्ते की तरह चाँटे तब की बात कर रही हूँ.. उम्म... ये सोचकर ही मेरी धड़कने बढ़ जाती है, हर पत्नी का पति को अंदर से कुत्ता होना चाहिए। जितना संजय अपनी बॉस की चांटता है, उतनी अगर उसने मेरी चुत चाँटी होती तो खुश होता वो जीबन में। पर कौन समझाए उसे? कौन समझाए उसे कि मैं अंदर से कितनी तड़पती रहती हूँ। कभी-कभी मन करता है कि काश इन चार दीवारों के कान की बजाए चार लौड़े होते तो मैं चारों लौड़े एक साथ अपने अंदर ले लेती।“
“....”
“हाँ! ले लेती। एक दो नीचे, एक ऊपर और एक हाथ में, हो गए न चार?”
“....”
“तो फिर, तु मुझे जानता ही कहाँ अभी... तेरे जैसे चार अक्षय को एक साथ खा सकती हूँ और वो भी रातभर।“
“....”
“तु अगर अभी मेरे पास होता तो मैं क्या करती? कभी गन्ने का रस पिया है तुने?”
“...”
“अरे! चूतिये वो मार्केट वाली की बात कर रही हूँ मैं। देखा वो मशीन से कैसे निकालते हैं?”
“....”
“हाँ! तो मैं भी ठीक वैसे ही तेरे गन्ने को निचोड़-निचोड़कर, निचोड़-निचोड़कर, निचोड़-निचोड़कर सारा रस निकाल देती।“
“...”
“ मेरे पास मशीन है न.. तीन तीन मशीन है।“
“...”
“एक हाथ, एक मुँह और एक चुत – हो गई तीन मशीनें।“
“...”
“सबसे अच्छी मशीन तो... सोचना पड़ेगा यार, शायद मुँह पता नहीं”
“...”
“संजय का तो बोल से खेलती हूँ तब झड़ जाता है, वो ज्यादा देर तक बेटिंग कर ही नहीं पाता।“
“...”
“मेरी मशीन कैसे काम करती है.. पास में होता तो बताती।“
“...”
“हाहाहा! देख, मैंने सीख है ये वीडियोज़ देख-देखकर। पहले मुझे भी नहीं आता था लेकिन फिर एक दिन मैंने सीखा अच्छे से, और फिर संजय पर ट्राइ किया। बड़ा मज़ा आया था।“
“...”
“चूसने में सबसे ज्यादा जरूरी होता है इंसान की आँखों में देखते रहना। वो सबसे ज्यादा काम करता है। आपकी जीभ जब उसके अंडकोशों को चाट रही हो, तब बीच-बीच में आपकी निगाहें उस इंसान की तरफ जाती रहनी चाहिए। अपनी आँखों से उसको बताओ कि मैं आज तुम्हारा सर्वनाश कर दूँगी। और फिर जरूरी होता है, जीभ की स्पीड। मर्द के लोड़े का सफर चूसते टाइम धीरे करना चाहिए। जल्दी-जल्दी में कुछ मज़ा नहीं। धीरे-धीरे चूसते रहो, चाटते रहो। उसके अंडों को अपनी जीभ से गीला कर दो। एक दम नीचे से शुरू करो और ऊपर तक आहिस्ता-आहिस्ता ले जाओ.... उफ्फ़! मैं पागल हो जाऊँगी।“ रिया ने अपनी आँखें बंद कर ली थी। अब वो अपनी बदन को सहलाने लगी थी।
“...”
“फिर? कुछ नहीं, वहीं रुको जहाँ थे। उसके अंडों के पास। जीभ से चाटने के बाद, अब उन्हें मुँह में लेलो…और चूसो... अअअ...खूब चूसो... जितना हो सके चूसो... चूसते रह जाओ...उमहह..और फिर से अपने मर्द की आँखों में देखो। वो पागल हो जाएगा। इससे आगे संजय जा ही नहीं पाता। इतनी में ही बह जाता।
“...”
“अच्छा एक बात बता अक्षय!” रिया ने अपने बदन को थोड़ी देर के लिए सहलाना बंद कर दिया।
“...”
“तेरा सच में बड़ा है ना?
“...”
“हाँ लेकिन पिक्चर में ढंग से समझ नहीं आता।“ अक्षय की हाँ सुनकर उसने अपने बदन को सहलाना वापस चालू किया। वो इस बार ढलान से होते हुए नीचे जा पहुँची। और अपनी गुफा के द्वार खटखटाने लगी।
“...”
“नहीं, यार विडिओ कॉल में मुझे डर लगता है।“
“..”
“मुझे खुश तो कर पाएगा न तु? पता चले तु भी संजय की तरह निकले।“
“...”
“हम्म! कैसे करेगा?”