#अपडेट ३०
अब तक आपने पढ़ा -
"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"
"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
अब आगे -
ये एक नया बम फूटा था मेरे ऊपर, मगर मैने कोई हैरत नहीं दिखाई। समर ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि कुछ भी सुनने को मिल सकता है, सबके लिए तैयार रहना।
"अच्छा, हमने तो बस ऐसे ही सुना था कि नेहा और संजीव का लव अफेयर था, और इस शादी से आप खुश नहीं थे।" मैने बात सम्हालने की कोशिश की।
"संजीव से उसकी शादी हमने ही करवाई थी, और नेहा के लव अफेयर से अजीज आ कर ही हमने संजीव को चुना था उसके लिए।" अंशुमान जी ने कहा।
समर, "आप अपनी और अपने परिवार के बारे में अच्छे से बताइए, इससे बहुत कुछ क्लियर होगा।"
"हां, ये सही रहेगा।" मैने भी समर की बात का समर्थन करते हुए कहा।
"हम चार लोग का परिवार है, अब तो था हो गया है।" उन्होंने उदासी भरे अंदाज में कहना शुरू किया, "मैं, मेरी पत्नी रीमा, बड़ा बेटा निशांत और बेटी नेहा। छोटी होने के कारण वो बहुत लाड़ प्यार में पली, और शायद उसी से बिगड़ भी गई।"
नेहा का बड़ा भाई, एक और झूठ या कहीं की पूरा सच नहीं बताया।
"मेरा पुश्तैनी घर उज्जैन के पास ही एक गांव सेमरी में है, मेरी नौकरी तबादले वाली है तो जब दोनों बच्चे पढ़ने के काबिल हुए तो रीमा ने उज्जैन में रह कर दोनों को पढ़ने का निर्णय लिया। अब मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में इधर उधर रहने लगा, और दोनो बच्चे रीमा के साथ रह कर पढ़ने लगे। फिर मैने दिल्ली में रह कर अपना प्रमोशन लेना बंद कर दिया, जिससे करीब 7 8 साल मैं वहीं रहा, उधर बच्चे बड़े हो रहे थे, निशांत और नेहा में 4 साल का अंतर है, जब नेहा बारवीं में आई, तब तक निशांत ग्रेजुएशन करके IIM इंदौर से MBA करना शुरू कर चुका था। उसी समय रीमा की तबियत अच्छी नहीं रहने लगी, उसे जोड़ों के दर्द की समस्या शुरू हो गई और कुछ सांस की दिक्कत भी होने लगी , जिससे वो नेहा पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती थी, पर दोनों बच्चे पढ़ने में बहुत काबिल थे, इसीलिए ज्यादा ध्यान की जरूरत भी नहीं लगी हमें। नेहा ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया जिसमें से निशांत ने graduation की थी। जब निशांत का MBA पूरा हुआ, तो उसकी नौकरी एक बड़ी फर्म में लग चुकी थी, और वो कुछ समय के लिए उज्जैन गया था, इस समय नेहा सेकंड ईयर में आ चुकी थी। निशांत के बहुत कॉन्टेक्ट थे उस कॉलेज में, तो एक दिन उसके किसी जानने वाले ने बताया कि नेहा कुछ गलत लोगों के संपर्क में आ गई है, और अच्छा होगा कि हम उसे उज्जैन से कहीं बाहर भेज दें। निशांत ने मुझसे बात की, और अब चूंकि बच्चे भी सैटल हो रहे थे, तो मैंने रीमा को बता कर अपना ट्रांसफर देहरादून ले किया, जिससे नेहा भी उस संगत से दूर हो, रीमा को भी अच्छी आबोहवा मिले, और मैं भी परिवार के साथ रहने लगूं।
नेहा ने पहले तो बहुत विरोध किया इस बात का, मगर निशांत के समझाने पर वो मान गई, इधर मेरी भी कई बड़े लोगों से जान पहुंच थी, बैंक में काम करने के कारण, तो मैने भी सोर्स लगवा कर नेहा का कॉलेज ट्रांसफर ले लिया। एक साल देहरादून में शांति से गुजरे, नेहा की भी कोई शिकायत नहीं आई।"
"पर कैसी गलत सोहबत में वो पड़ गई थी? निशांत ने कभी बोला नहीं आपको?" मैने टोकते हुए पूछा।
"वो कुछ आवारा दोस्त बन गए थे उसके, कुछ उसकी ही क्लास के कुछ सीनियर भी। और वो लोग शराब और पार्टी वगैरा भी करने लगे थे। कुछ तो गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड भी थे। मतलब आप समझ रहे हैं न?"
"जी, समझ गया, तो क्या नेहा का भी कोई बाय फ्रेंड था वहां?"
"पता नहीं, पर कोई खास दोस्त तो था, क्योंकि वो घर अक्सर लेट भी आती थी, और कई सारे गिफ्ट भी मिले थे उसे। लेकिन रीमा ने कभी किसी लड़के के साथ उसे आते जाते नहीं देखा था, बस एक लड़की ही हमेशा आती थी।"
"फिर क्या हुआ?"
"ग्रेजुएशन करने के बाद नेहा ने दिल्ली से MBA करने को कहा। लेकिन हमने उसका एडमिशन वहीं के एक अच्छे कॉलेज में करवा दिया। वो अक्सर प्रोजेक्ट्स और ट्रेनिंग के सिलसिले में दिल्ली आती जाती रहती थी। MBA खत्म होने से पहले निशांत भी दिल्ली आ चुका था, और वहां पर उसे फिर से नेहा की कुछ हरकतों का पता चला कि वो किसी दो तीन लोग के ग्रुप से ही मिलती है, और कोई ट्रेनिंग वगैरा नहीं होती। ये सुन कर पूरा परिवार एक बार फिर गुस्सा हो गया, और इस बार मैने उसकी शादी कराने की ही ठान ली। संजीव हमारे घर के पास ही रहता था, देखने में अच्छा और फौज की नौकरी भी थी उसकी। घर में कोई नहीं था, जब हम देहरादून गए थे तब उसकी मां थी वहां, मगर कुछ दिनों के बाद वो भी चल बसी। लेकिन हमारे संबंध अच्छे बन गए थे उनसे। बड़ा बेटा अलग हो चुका था, और संजीव ही उनके साथ था। वो भी नेहा को पसंद करता था।"
एक सांस ले कर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया। "जब हमने उनकी शादी तय की तो नेहा ने बहुत तमाशा किया, लेकिन हम सबकी जोर जबरदस्ती से शादी हो गई। और संजीव उसे ले कर अपनी पोस्टिंग पर चला गया। अक्सर हमारी बात दोनो से होती थी और दोनों खुश ही लगे हमे। फिर करीब छह महीने बाद पता नहीं क्या हुआ कि संजीव को सेना से निकला बाहर कर दिया। और दोनो वापस देहरादून आ गए। यहां आ कर नेहा और संजीव छोटी मोटी नौकरी करने लगे। फिर कुछ दिन बाद दोनों की नौकरी उसी चिट फंड कंपनी में लग गई, और वो भी 3 4 महीने बाद फ्रॉड करके भाग गई। कंपनी का ऑफिस संजीव के ही नाम पर लिया गया था, और नेहा को मैनेजर बना दिया गया था। तो लोगों की कंप्लेन पर दोनो को पुलिस ने पकड़ लिया, नेहा एक महीने बाद ही बाहर निकल आई, कैसे वो हमको भी नहीं पता। लेकिन संजीव एक साल बाद बाहर हुआ, और उसके बाद से ही दोनों के बीच कुछ सही नहीं रहा। कुछ दिन पहले ही खुद नेहा ने मुझे मित्तल सर से बात करके यहां नौकरी के लिए बोला, तो मेरी बात पर उन्होंने उसे रख लिया। बाकी का तो आप सबको पता ही है।"। ये सब बोलते बोलते उनकी आंखे भीग चुकी थी।
मैने उनके हाथ को पकड़ लिया।
"बेटा जितना अच्छा निकला, बेटी ने मुझे उतना ही निराश किया। पता नहीं हम पति पत्नी ने कहां चूक कर दी उसके लालन पालन में। किसकी सोहबत में वो ऐसी बन गई कुछ समझ नहीं आता। संजीव भी बहुत अच्छा हुआ करता था, पर उसकी भी जिंदगी शायद मेरे ही कारण बर्बाद हुई।"
"संजीव को सेना से क्यों निकाला गया?" मैने फिर से उनसे पूछा।
"आरोप लगा कि उसने दारू पी कर अपने किसी सीनियर की बीवी के साथ बतमीजी कर दी थी, और बहुत नशे में था वो। पर जब मैने उससे पूछा, तो उसका कहना था कि उसने तो बस दो या तीन पैग ही पीए थे, जो नॉर्मल था, पर एकदम से क्या हुआ, उसे भी समझ नहीं आया। और उसे कुछ याद भी नहीं था कि क्या हुआ था उस समय।"
"और नेहा का क्या रिएक्शन था उस बात पर?" अब समर ने सवाल।किया।
"नेहा ने तो संजीव का बहुत साथ दिया। वो थी तो उस पार्टी में ही, मगर जब वो कांड हुआ, उस समय वो भी वाशरूम में थी। संजीव पर उसे भरोसा था। और उसने संजीव की ही बात मानी। उस बात से हम सबको बहुत राहत मिली कि अब दोनों के बीच सब सही रहेगा। फिर वो वापस देहरादून आ गए, वहां कुछ दिन बाद दोनों ने वो चिटफंड कंपनी ज्वाइन की, और वो जेल वाला कांड हुआ। संजीव का कहना था कि नेहा खुद तो एक महीने में ही बाहर हो गई, और उसको बाहर करने की कोई कोशिश नहीं की। इसी बात पर दोनो के बीच तनाव बढ़ा और बात तलाक तक पहुंच गई, इसी बीच नेहा ने ही मुझे एक दिन मित्तल साहब से बात करके यहां काम करने को कहा।"
" वो चिटफंड कंपनी किसकी थी?" समर ने पूछा
"पुलिस ये कभी पता ही नहीं कर पाई, संजीव का कहना था कि कोई सतनाम सिंह नाम का सरदार था, जिससे नेहा ने ही उसे मिलवाया था। और वही उसका मालिक था, मगर उसके कागजात फर्जी निकले, पैसा भी कई अकाउंट्स से घुमाया गया तो किसके पास गया वो पैसा, पता ही नहीं चल पाया।"
"उज्जैन में उसकी संगत किन लोगों के साथ थी वो नहीं पूछा आपने? और दिल्ली में किन लोग से मिलती थी, वो सब अपने नहीं पता किया?" इस बार मैने पूछा।
"बेटा मैं अपनी नौकरी में और मेरी पत्नी की बीमारी के चलते ज्यादा तो नहीं पता कर पाए, लेकिन निशांत को भी ये सारी जानकारी उसके बहुत अच्छे जानने वालों ने ही दी थी, और उसने नेहा से इस बारे में पूछा तो उसने अपनी गलती मानते हुए उससे माफी मांग ली, और दुबारा उन लोगों से न मिलने की कसम भी खाई। इसीलिए उसने भी ज्यादा जानकारी नहीं ली।"
अब हमारे पास ज्यादा कुछ पूछने को था नहीं। तो समर उनको लेकर चला गया।
नेहा ने मुझसे कितने झूठ बोले थे उसका कोई अंत नहीं था, न सिर्फ शादी, बल्कि अपने प्यार, और यहां तक की अपने भाई के बारे में भी। मैं यही सब विचार करते हुए डिनर का ऑर्डर दे दिया।
थोड़ी देर बाद समर भी वापस आया, और हम डिनर पर इस बात पर विचार करने लगे कि आगे क्या किया जाय।
समर ने कहा कि वो उज्जैन जाएगा, आगे का पता करने। उसने मुझे जाने से रोका, क्योंकि वो पुलिस वाला था, इसीलिए वो जानकारी आराम से निकलवा सकता था। दूसरा उसका घर भी इंदौर में ही था तो उसने छुट्टी भी ली हुई थी वहां जाने के लिए तो उसका भी उपयोग कर लेगा वो।
फिर यही तय हुआ, और अगले दिन शाम में उसको निकलना था। अगला दिन भी होटल में रह कर ही बिताया मैने, समर ने मुझे ज्यादा बाहर न घूमने की सलाह दी थी। शाम को जाने से पहले वो मुझसे मिलने आया, और जाते जाते उसने मुझे एक चिट्ठी पकड़ाई....