Zabardast update bhaiशाम को हम बाप बेटी सो गए. पापा तो शायद सो गए थे पर मैं तो इसी सोच में थी कि जल्दी ही मम्मी आ जाएँगी फिर तो पापा को पटा पाना काफी मुश्किल हो जायेगा. और यहाँ तो जब हम दो बाप बेटी ही हैं, तब भी मेरी इतनी कोशिश के बाद भी मैं अभी तक पापा से चुदवाने में सफल नहीं हो पायी.
हालाँकि मुझे ख़ुशी थी कि आज मैंने पापा को अपनी गांड दिखला दी थी और पापा ने भी मुझे अपना लौड़ा दिखला दिया था.
हालाँकि पहले भी पापा मेरी चूत और गांड और मैं पापा का लण्ड देख चुकी थी पर वो सब छुप कर था. पर आज तो हम दोनों ने जानभूझ कर अपने अपने हथियार एक दुसरे को दिखाए थे.
इस तरह से लग तो रहा था की बात आगे बढ़ तो रही है.
पर मुझे मम्मी के आने से पहले चुदना था. क्योंकि मम्मी आ जाएगी तो फिर पापा को चोदने के लिए मम्मी मिल जाएगी फिर शायद पापा मेरी ओर ध्यान न भी दें.
वैसे भी अभी पापा को चुदाई किये कई दिन हो गए थे तो वो भी किसी चूत को चोदने के लिए तड़प रहे थे.
मैंने सोच लिया एक जब तक मम्मी नहीं आ जाती मैं अपनी कोशिश जारी रखूंगी,
सुबह उठ कर मैंने नाश्ता बनाया और स्नान वगैरा करके तैयार हो गयी,
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, तो ऐसे ही पापा को कहा कि पापा चलो आज कहीं घूमने चलते है,
पापा तो आराम से लुंगी और शर्ट पेहने सोफे पर बैठे टीवी देख रहे थे, तो उन्हें भी लगा की टीवी देखने से तो अपनी सेक्सी बेटी के साथ कहीं जाना ज्यादा मजेदार होगा.
तो वो बोले, "सुमन बेटी ! ठीक है. मैं जरा पैंट पहन लूँ, फिर चलते हैं. "
मैं तो पापा का लण्ड देखने को उत्सुक थी और पैंट में कहाँ लौड़ा दिख पायेगा, तो मैंने पापा को मना करते हुए कहा
"अरे पापा हम किसी के घर थोड़े ही न जा रहे हैं. लुंगी ही ठीक है, देखो मैंने भी तो कोई सूट नहीं पहना है, मैं भी सिर्फ स्कर्ट और टी शर्ट में ही हूँ. चलो थोड़ा लॉन्ग ड्राइव पर ही चलते हैं. "
मैंने वैसे आज स्कर्ट के नीचे पैंटी और शर्ट के नीचे ब्रा भी पहनी थी. आखिर हम लोग बाहर जा रहे थे तो बिना ब्रा पैंटी अच्छा नहीं होगा.
पापा राजी हो गए और हम बाप बेटी गाड़ी निकल कर चल पड़े.
गाड़ी में चलते चलते हम लोग शहर के बाहर आ गए थे और अब चारों ओर खेत थे. यहाँ पर सड़क पर यातायात तो बिलकुल न के बराबर था.
थोड़ी थी देर में गाड़ी बिलकुल सुनसान एरिया में आ गयी.
मुझे लगा की यही मौका है, पापा को पटाने का कुछ करना चाहिए.
पर कुछ समज़ नहीं आ रहा था. अचानक मुझे एक आईडिया आया।
मैंने देखा की दूर दूर तक कोई नहीं है , तो मैंने पापा से कहा
"पापा जरा साइड में गाडी रोकिये, मुझे जोर से सूसू आया है. मैं जरा पेशाब कर लूँ। "
पापा ने साइड में गाडी रोकते हुए कहा.
"बेटी. यह चलती सड़क है, कोई आ सकता है. तुम इन खेतों में जा कर पेशाब कर लो, "
पर मुझे खेतों में छुप कर पेशाब थोड़े ही करना था.
मैंने इठलाते हुए पापा से कहा
"अरे पापा, मुझे बहुत जोर से पेशाब आया है, यहाँ तो वैसे भी कोई नहीं आता. खेतों में जाने तक तो कहीं मेरा पेशाब निकल ही न जाये. मैं ऐसा करती हूँ की गाडी की ओट में ही बैठ कर पेशाब कर लेती हूँ."
और फिर शरारत से मुस्कुराते हुए बोली
"हम औरतों को आप मर्दों वाली सुविधा तो है नहीं, की खड़े हो कर पेशाब कर लें. मैं तो गाड़ी के पीछे बैठ जाउंगी। आने जाने वाले वाहनों को तो दिखाई भी नहीं दूँगी,बस आप जरा ध्यान रखना। "
(यह ध्यान पता नहीं सड़क पर आने वाले वाहनों का रखना था या पेशाब करती हुई अपनी जवान बेटी का। मेरी बात दो अर्थी थी, )
मैं पापा के साथ ड्राइवर के बराबर वाली सीट पर बैठी थी, तो दरवाजा खोल कर मैं साइड से उतर गयी.
मैंने देखा की पापा साइड मिरर जो खिड़की के पास होता है में से अपनी बेटी को देखने की कोशिश कर रहे थे,
मैं जानभूझ कर गाड़ी के थोड़ा पीछे गयी और ध्यान रखा की मैं गाड़ी की ओट में ऐसी जगह बैठ कर पेशाब करूँ जहाँ से पापा को मेरी नंगी गांड दिखाई दे सके.
पापा का पूरा ध्यान साइड मिरर से मेरी ओर ही था.
मैंने धीरे धीरे पूरा समय ले कर अपनी स्कर्ट ऊपर उठाई ताकि पापा को मेरी नंगी टांगे और पैंटी दिखाई दे सके.
फिर मैंने आराम से अपनी पैंटी नीचे घुटनों तक खींच कर उतारी , और अपनी चूत को नंगा कर दिया।
मैं काफी देर से पापा को पटाने का सोच रही थी तो मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी,
मैंने देखा की मेरी चूत का चिपचिपा सा अमृत मेरी पैंटी में लग चूका था. और चूत की जगह से पैंटी गीली हो गयी थी.
मैं पैंटी को उतार कर , नंगी हो कर अपनी टांगों को पूरा फैला कर पेशाब करने बैठी, ताकि पापा को मेरी नंगी चूत का पूरा और खुल कर दर्शन हो सके.
मैंने कनखीओं से गाड़ी से साइड मिरर को देखा तो पाया की पापा पूरी टकटकी लगाए अपनी प्यारी बेटी की नंगी चूत को ही देख रहे थे.
पेशाब तो मुझे आया ही था. तो मैंने अपनी टांगो को खोल कर अपनी चूत को ठीक पापा की ओर करके जोर से मूतना शुरू कर दिया.
मेरी चूत से शर शर तेज पेशाब निकल रहा था और चूत से सीटी जैसी आवाज निकल रही थी,
उधर पापा भी ध्यान से मेरी चूत को देख रहे थे, और मैं जानभूझ कर मिरर में पापा को नहीं देख रही थी ताकि पापा को ऐसा लगे की मुझे पापा द्वारा देखे जाने का कुछ भी पता नहीं हैं।
मैं काफी देर तक इसी तरह बैठी रही और पापा को जन्नत का नजारा करवाती रही उधर पापा भी शायद अपना लौड़ा मसल रहे होंगे ,
खैर आखिर कितनी देर तक पेशाब करती रह सकती थी,
थोड़ी ही देर में पेशाब की धार धीमी होती होती बंद हो गयी,
अब न चाहते हुए भी मुझे उठना ही पड़ना था.
उठते उठते मुझे एक और शरारत सूझी।
मैं जब उठ खड़ी हुई तो मैंने नंगी ही खड़ी हो कर एक लास्ट बार अपनी चूत पापा को दिखाई और अपनी पैंटी घुटनो से ऊपर करने लगी.
मैंने जब पैंटी मेरी जांघो के जोड़ के पास आयी तो मैंने जान भूज कर जोर लगा कर थोड़ा पेशाब और निकाल दिया.
अब पैंटी चूत के पास ही थी तो पेशाब पैंटी के ऊपर गिर गया और पैंटी पेशाब से गीली हो गयी.
मैंने ऐसे पैंटी की ओर देखा की जैसे गलती से पैंटी पर पेशाब हो गया हो (हालाँकि मैंने यह सब जानभूझ कर किया था. और मैं जानती थी की पापा देख रहे हैं. )
फिर मैंने पैंटी को फिर से निकाल दिया और उसे हाथ में ही पकड़ कर पापा की ओर आयी. पापा तुरंत दूसरी ओर देखने लगे.
मैं दरवाजा खोल कर गाड़ी के अंदर आयी और हाथ में पकड़ी गीली पैंटी पापा को दिखती हुई बोली
"पापा देखा मैंने कहा था न कि मुझे जोर से पेशाब आयी है, देखो थोड़ी सी पेशाब पैंटी के ऊपर भी गिर गयी और ये गीली हो गयी है, अब मैं इसे पहन नहीं सकती मैं क्या करूँ। "
पापा ने मेरे हाथ से पैंटी ले ली और उसे देखा.
मेरी पैंटी चूत वाली जगह से चुतरस से चिपचिपी हो रही थी,
बाकि की पैंटी तो चाहे पेशाब से गीली थी पर बीच में चूत का गाढ़ा सा चुतरस अलग ही चमक रहा था.
पापा ध्यान से चुतरस को देख रहे थे.
मुझे शर्म आ रही थी, पापा ने अपनी उँगलियाँ मेरे चिपचिपे चुतरस में घुमाई और बोले
"सुमन बेटी। तुम्हारी कच्छी तो बहुत गीली हो गयी है, इसे न पहनना , वर्ना तुम्हे रैशेस हो जायेंगे. कोई बात नहीं, तुमने स्कर्ट तो पहनी ही है, ऐसा करते हैं की तुम्हारी कच्छी को सीट पर सूखने डाल देते हैं. घर जा कर दूसरी पहन लेना."
पापा यह सब कहते हुए पैंटी के चुतरस पर अपनी उंगलिआ सेहला रहे थे।
शायद पापा को अपनी बेटी का चुतरस अच्छा लग रहा था क्योंकि कहने के बाद भी उन्होंने अभी तक पैंटी को पीछे सीट पर नहीं रखा था.
मुझे लगा की पापा को अपनी बेटी की गीली पैंटी से खेलने का थोड़ा और मौका देना चाहिए ,
मैंने पीछे रिअर व्यू मिरर में देखा की पीछे दूर पर एक नलका लगा था.
मुझे तुरंत एक आईडिया आया और मैंने पापा से कहा.
"पापा देखिये वो पीछे एक नल लगा हुआ है, मेरे हाथ पेशाब से गीले हो गए हैं. आप रुकिए मैं जरा जा कर हाथ धो कर आती हूँ."
यह कहते हुए मैंने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल गयी , बाहर निकलते हुए मैंने एक शरारत और की , और वो यह के मैंने कार से उतरते हुए अपने चूतड़ों से कार का रिअर मिरर (जो दरवाजे के साइड में लगा होता है,) उसे बंद कर दिया.
अब पापा मुझे साइड मिरर से नहीं देख सकते थे.
असल में मेरा पीछे नल तक जाने और हाथ धोने का कोई इरादा नहीं था. मैं तो देखना चाहती थी की मेरे जाने के बाद पापा मेरी पैंटी के साथ क्या करते हैं.
पापा को लगा कि मैं पीछे नल के पास चली गयी,
पर मैं तो थोड़ा सा ही पीछे तक गयी और फिर दबे पाओं वापिस आ गयी और कार की साइड में खड़ी हो कर पापा की हरकतें देखने लगी,
पापा ने मेरी गीली कच्छी की चिपचिपे चुतरस को सूंघना शुरू कर दिया. पापा ने मेरी पैंटी अपनी नाक पर रख ली और अपनी प्यारी बेटी के कामरस को चाटने लगे.
शायद पापा को अपनी बेटी का रस स्वादिष्ठ लग रहा था.
पापा मेरी पैंटी को पूरी जीभ से चाट रहे थे,
फिर पापा ने अपना दूसरा हाथ अपनी लुंगी में डाल लिया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और उसे सहलाना शुरू कर दिया.
मैंने देखा कि पापा का लण्ड पूरा लोहे की तरह टाइट हो चूका था. कि उस पर लण्ड की नसें भी उभरी हुई दिखाइ दे रही थी,
पापा हवस में अंधे हो कर यह भूल हे गए थे की उनकी बेटी पीछे हाथ धोने गयी है जो किसी भी टाइम वापिस आ सकती है,
अब पापा एक हाथ से अपने मुंह पर मेरी कच्छी रखे उसे चाट रहे थे और दुसरे हाथ से तेज तेज अपना मुठ मार रहे थे.
पापा का लौड़ा बहुत मोटा और लम्बा था.
जब पापा का हाथ नीचे जाता तो लौड़े का टमाटर जैसा सुपाड़ा बाहर आ जाता और जब हाथ ऊपर आता तो सुपाड़ा मांस से ढक जाता।
ऐसा लग रहा था की जैसे कोई चूहा अपने बिल में छुपा हुआ हो और फिर अपनी गर्दन बाहर निकाल कर इधर उधर देखता हो फिर अपनी गर्दन अपनी बिल में छुपा लेता हो, पापा के लौड़े का सुपाड़ा ऐसे ही छुपा छुपी का खेल खेल रहा था.
मुझे पापा का लौड़ा जिसे वो मुठ मार रहे थे इतना सूंदर लग रहा था की मैं तो जैसे किसी सम्मोहन की अवस्था में ही पहुँच गयी और गौर से पापा के लौड़े को ही देखे जा रही थी.
यह सीन मेरे लिए भी इतना कामुक था की मुझे भी पता ही नहीं लगा की कब मेरा अपना हाथ मेरी पैंटी में घुस गया और नंगी चूत (क्योंकि अब पैंटी तो उतर चुकी थी और चूत तो नंगी ही थी ) को सहलाने लगा.
अपने आप मेरी दो उँगलियाँ मेरी चूत में घुस गयी और मैंने भी बाहर सड़क पर खड़े खड़े ही अपनी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया.
मैं पापा के लौड़े को देखने में इतनी मगन थी की मैं तो भूल ही गयी थी कि अभी हम लोग चलती सड़क पर खड़े हैं और किसी भी टाइम कोई भी आ सकता है,
कोई आ जाये तो क्या देखेगा कि एक अधेड़ सा आदमी गाड़ी की ड्राइवर सीट पर बेठा सरेआम मुठ मार रहा है और एक कच्छी को चाट रहा है और एक नौजवान लड़की कार के बाहर खड़ी उसे मुठ मारते हुए देख रही है, और अपनी दो उँगलियों से अपनी चूत को अंदर बाहर करती हुई रगड़ रही है,
खैर वो तो हमारी किस्मत ही अच्छी थी कि कोई आया नहीं,
मुठे मारते और पैंटी चाटते पापा साथ ही बड़बड़ा रहे थे
"ओह मेरी प्यारी बेटी सुमन ! तेरी चूत की सुगंध कितनी मनमोहक है और तुम्हारी चूत का यह रस भी कितना स्वादिष्ठ है, मजा आ गया। कितना खुशकिस्मत होगा वो जो तुम्हारी चूत पर सीधे अपने मुंह को रख कर तुम्हारा चुतरस पियेगा। हे भगवान क्या मेरी किस्मत में सिर्फ मेरी बेटी की पैंटी चाटना ही लिखा है, मुझे अपनी बेटी की चूत चाटने का आशीर्वाद दे दो। कितना शुभ दिन होगा जब मैं अपनी बेटी की चूत को चाट चाट कर उसका रस पियूँगा। "
यह कहते हुए पापा तेज तेज मुठ मार रहे थे.
में पापा को मुठ मारते देखने में इतनी मस्त हो गयी थी कि मेरे को इतना भी ध्यान नहीं रहा कि मैं बाहर सड़क पर खड़ी हूँ और अचानक से कोई वाहन भी आ सकता है,
हम दोनों बाप बेटी अपना अपना मुठ मारने में मस्त थे.
अचानक पापा का शरीर जोर से अकड़ गया और पापा की मुठ मारने की स्पीड बिजली की तरह तेज हो गयी,
पापा का काम तमाम होने वाला था. इधर अपने आप मेरी भी उँगलियों की स्पीड बढ़ गयी.
एक जोर की आह की आवाज के साथ पापा का माल निकल गया.
पापा वीर्य छूटने से एकदम हड़बड़ा गए. उन्हें कुछ नहीं सूझा की वो पिचकारी मार रहे अपने लौड़े को क्या करें.
अनजाने में पापा ने अपने दुसरे हाथ में पकड़ी मेरी पैंटी को तुरंत अपने लौड़े पर रख लिए और सारा माल मेरी पैंटी में निकाल दिया.
इधर ज्यों ही मैंने देखा की मेरी पैंटी में पापा ने माल भर दिया है तो मेरा भी पानी छूट गया. और मेरा भी पूरा हाथ मेरे चूत के पानी से गीला हो गया.
शुक्र तो यह था की मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी. तो मेरी चूत का अमृत मेरी टांगो से बहता हुआ मेरे पैरों के ओर चला गया.
मैंने अपनी टांगों पर हाथ फेर कर अपने चुतरस टांगों पर ही मल लिया.
इधर अब पापा का भी वीर्य निकलना बंद हो चूका था.
पापा के हाथ में मेरी पैंटी पापा के माल के तर बर तर हो चुकी थी.
मैं डर गयी की अब पापा पीछे मुड कर मुझे देखेंगे।
तो मैंने थोड़ा पीछे जा कर कुछ आवाज करी जिस से पापा को लगे कि मैं आ रही हूँ.
पापा ने मेरी आवाज सुनी तो उन्हें एकदम मेरा ध्यान आया.
उनके हाथ में मेरी पैंटी थी जो अब उनके वीर्य से भरी हुई थी,
घबराहट में उन्हें कुछ नहीं सूझा की उसका क्या करें, तो उन्होंने उसे फटाफट अपनी सीट के नीचे छुपा लिया।
इतने में मैं भी कार के पास आ गयी और दरवाजा खोल कर अंदर घुस गयी,
मैंने बिलकुल भी ऐसा शो नहीं होने दिया की मैंने पापा का मुठ मरने का देख लिया है,
जबकि मेरा खुद का भी इतना पानी निकल गया था की मेरे शरीर से जैसे सारी ताकत ही निकल गयी थी,
पर मेरी शैतानी ख़तम कैसे हो सकती थी,
मैंने पापा से गाड़ी चलाने और घर को चलने को कहा।
फिर मैंने शरारत से पूछा
"पापा मेरी पैंटी दिखाई नहीं दे रही. वो जो मेरी गीली पैंटी थी वो कहाँ है,"
पापा बेचारे एकदम से हड़बड़ा गए , वो क्या बोलते कि बेटी तुम्हारी पैंटी में तो मैंने मुठ मारा है और इस समय वो मेरे माल से लथपथ सीट के नीचे पड़ी है,
वो हड़बड़ाए से बोले "अरे वो गीली हो गयी थी, और उस में से तुम्हारे पेशाब की गंध आ रही थी तो मैंने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया. छोड़ो उसे मैं तुम्हे नयी पैंटी ले दूंगा। "
मैं पापा की हड़बड़ाहट और फंस जाने का घबराहट का आनंद लेते हुए बोली
"अरे पापा , तो क्या हुआ, जरा सा पेशाब ही तो लगा था. मैं उसे घर जा कर धो लूंगी, जरा रुकिए मैं उसे उठा लेती हूँ। "
मन ही मन मुस्कुराते और पापा की हालत पे मन में हँसते हुए मैंने खिड़की खोलने का उपक्रम किया। मुझे खिड़की खोलते देख कर पापा घबरा उठे. क्योंकि वो तो जानते थे कि मेरी पैंटी कहीं बाहर तो फेंकी नहीं है, वो तो उनके माल में लथपथ पड़ी है,
मैं पापा की हालत पर मन में हँसते हुए मजे ले रही थी,
पापा ने फटाफट गाड़ी स्टार्ट कर दी और बोले
"अरे सुमन छोडो. तुम भी क्या पुरानी कच्छी के पीछे ही पड गयी हो, मैंने कहा न की मैं तुम्हे नयी और इस से कहीं बढ़िया दिला दूंगा. तो अब चुपचाप बैठी रहो."
और इस डर से की कहीं मैं गाड़ी से उतर न जाऊ पापा ने तुरंत गाड़ी चालू कर दी और आगे बढ़ा दी,
मैंने भी पापा की और खिंचाई न करते हुए, चुप रहना ही बेहतर समझा.
पर फिर भी मैंने पापा को और तंग करने की सोची और बोली.
"पापा यह गाड़ी में से एक अजीब सी लेकिन बहुत ही बढ़िया सी खुशबू कैसी आ रही है, क्या आप ने कोई इत्र छिड़का है या कोई सेंट लगाया है,"
असल में गाड़ी में पापा के वीर्य की खुशबू फैली हुई थी,
मैं तो अपनी शैतानी कर रही थी , पर बेचारे पापा घबरा गए वो क्या बोलते कि यह तो उनके लण्ड रस की खुशबू है,
पापा को कुछ नहीं सूझा तो बोले
"अरे कहाँ कोई खुशबू नहीं है, हाँ अभी तुम कार के अंदर आयी तो यह एक सुगंध आने लगी है, शायद तुम्हारी गंध हो."
यह कह कर पापा ने बात को टालना चाहा, पर मैं इतनी जल्दी अपनी शैतानी थोड़े ही ख़तम करने वाली थी,
मैंने फिर बात को खींचा और कहा
"पापा मैं तो बस पेशाब करके ही आयी हूँ. मैंने तो कोई सुगंध नहीं लगाई है,"
पापा को अचानक बात को टालने का ढंग सूझ गया और वो बोले
"सुमन बेटी , तो यह शायद तुम्हारे ही पेशाब की गंध है, तुमने इस टाइम पैंटी नहीं पहनी हुई है तो तुम्हारे पेशाब की सुगंध ही आ रही है,"
मैंने फिर इस बात में भी मौका ढूंढते हुए बात को आग बढ़ाया और कहा
"पापा ठीक है कि इस समय मैंने कच्छी नहीं पहनी है पर यह जो सुगंध है वो पेशाब की नहीं है. आप कोई बात छुपा तो नहीं रहे हैं."
पापा फिर बोले (बेचारे किसी तरह अपनी वीर्य से भरी मेरी पैंटी की बात को टालना जो चाह रहे थे.)
"अरे सुमन ! यह तुम्हारे पेशाब की ही गंध है, चाहे तो चेक कर लो"
अब यह तो मेरी शैतानी के लिए एक सुनहरा मौका था.
मैंने तुरंत अपना हाथ अपनी स्कर्ट के अंदर अपनी चूत पर फेरा और अपनी चूत की दरार में उसे फेरा. मेरी चूत को कामरस से भरी पड़ी थी, तो मेरी ऊँगली मेरी चूत के रस से गीली हो गयी.
मैंने अपना हाथ स्कर्ट से बाहर निकाला और पापा की ओर करके कहा
"पापा देखो मेरे पेशाब का यह गंध नहीं है."
मेरी ऊँगली मेरे कामरस से चमक रही थी,
पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने मुंह के पास किया और मेरी गीली उँगलियों को सूंघते हुए बोले
"सुमन! यह तुम्हारी उँगलियों से शहद जैसी सुगंध क्यों आ रही है,"
और यह कहते हुए पापा मेरी चूत के माल को सूंघते रहे.
यह एक बहुत ही कामुक दृश्य था. मेरी तो चूत में जैसे फिर से पानी की भाड़ ही आ गयी,
मैं बात को टालते हुए बोली
"पापा आप बात को टालो मत. मेरे हाथ से शहद की गंध कैसे आ सकती है देखो मैं फिर से दिखती हूँ."
यह कह कर मैंने फिर से अपना हाथ अपनी स्कर्ट के अंदर करके अपनी दो उँगलियाँ अपनी चूत में डाल ली और, उन्हें अच्छे से अपने पानी से गीला कर लिया और फिर उन्हें बाहर निकल कर पापा के आगे करके कहा
"पापा देखो ऐसा कुछ भी नहीं है,"
पापा को मेरा चुतरस उँगलियों पर चमकता दिखाई दे रहा था.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने मुंह के पास किया और अचानक से मेरी दोनों गीली उँगलियाँ अपने मुंह में डाल ली और उन्हें चूसना शुरू कर दिया।
और मेरी चुतरस को मेरे सामने ही चाटते हुए बोले
"सुमन! तुम बहुत शरारती हो, तुमने जरूर अपनी टांगो के बीच कोई शहद की शीशी छुपा रखी है, देखो तो तुम्हारी उँगलियों पर कितना मीठा मीठा रस लगा है, मैंने इतना मीठा और स्वादिष्ठ रस कभी नहीं चखा। "
यह कहते हुए पापा ने मेरी दोनों उँगलियों को ऐसे चूसना शुरू कर दिया कि जैसे बच्चे कोई कुल्फी चूसते हैं.
यह देख कर कि मेरे सामने ही मेरे पापा मेरी चूत का पानी चाट रहे है, मैं तो वासना से अंधी ही हो गयी.
मेरा मन कर रहा था थी बस तुरंत पापा का मोटा सा लौड़ा उनकी लुंगी से बाहर निकाल लूँ और चूसना शुरू कर दूँ.
पर मैं यह नहीं कर सकती थी, आखिर हम लोग चलती सड़क पर खड़े थे.
आखिर हम दोनों बाप बेटी कोई बच्चे तो थे नहीं कि हमे शहद और चुतरस में कोई फर्क न कर सकें.
हम दोनों ही जानते थे की यह चुतरस है उन की बेटी का, और मैं भी जान भुज कर अपने पापा को अपनी चूत का रस चटवा रही थी. बहुत ही कामुक दृश्य था यह.
मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी की मेरी चूत के पानी ने पूरी सीट गीली कर दी थी,
मैंने पापा के मुंह से अपनी उँगलियाँ खींच कर बाहर निकाली और कहा
"पापा कोई शहद वहद नहीं है, आप शरारत न करो और गाडी चलाओ। हमें देर हो रही है, और सड़क पर कोई आ सकता है,"
पापा भी जैसे किसी प्यारे से सपने से जागे और गाड़ी घर की ओर बढ़ा दी,
घर पहुँच कर मैं तुरंत दौड़ कर बाथरूम में चली गयी क्योंकि मेरी चूत में पेशाब की बाढ़ आयी हुई थी,
वहां मैंने पेशाब करने के बाद अपनी चूत में उँगलियाँ डाल कर फिर से पानी निकला.
फिर बाहर आ कर घर के काम में लग गयी।