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Incest शरीफ बाप और उसकी शैतान बेटी

man186

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पापा ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठे थे. तो मैं भी जा कर पापा के पास बैठ गयी,

पापा ने देखा की मैं नहा धो कर और सज धज कर आयी हूँ तो वो समझ गए की मैंने रात की तैयारी की हुई है. पापा बहुत खुश हो गए.

पर मुझे एक लम्बी से मैक्सी पहने देख कर वो थोड़ा मायूस से हो गए. उन्हें तो आशा थी की मैंने कोई सेक्सी सी स्कर्ट पहनी होगी और नीचे ब्रा और पैंटी भी नहीं होगी,
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पर मेरी मैक्सी के नीचे से मेरी ब्रा दिखाई दे रही थी. पापा ने ध्यान से देखा तो मैंने पैंटी भी पहन राखी थी, असल में मैं पापा को छेड़ने और चिढ़ाने के लिए ही उसे पहना था.

पापा मुझे प्यार से बोले

"सुमन! अभी तुम्हारी जांघों की रेशेस कैसी है, मैं अपने वायदे पर कायम हूँ. मैं रात को अपनी मुंह के लार से तुम्हारी रेशेस को चाट कर ठीक कर दूंगा. तुम कोई चिंता मत करो। "

मैं पापा की जल्दबाजी और उत्सुकता को समझ सकती थी, मैं तो खुद तैयार थी ही पर पापा को छेड़ने और तंग करने के लिए बोली

"पापा! वैसे तो मेरी रेशेस अभी दिन से कुछ ठीक लग रही है. दर्द भी थोड़ा कम है, मुझे लगता है की कल तक तो वैसे ही ठीक हो जाएँगी, आप को तकलीफ करने की जरूरत नहीं है,"

पापा मायूस से हो गए। वो बेचारे तो न जाने मन में क्या क्या सोचे बैठे थे और मैं मना कर रही थी, उन्हें लगा की यह तो मामला बिगड़ गया. तो वो बात को सँभालते हुए बोले

"सुमन! बेटी यह ठीक होना कई बार ऐसे ही होता है, यह रेशेस बड़े खतरनाक होते हैं. यदि ठीक न किये जाएँ तो कई बार यह बढ़ जाते है, और जख्म भी हो सकते हैं. तुम इन्हे हलके में मत लो. इनका एक ही और सबसे बढ़िया इलाज है, इंसान का थूक यानि मुंह की लार. मैंने बताया था न की जब भी जंगल में किसी भी जानवर या पक्षी को कोई चोट लग जाती है. तो वो उसे खुद ही चाट चाट कर ठीक कर देता है, वहां जंगल में कोई डॉक्टर तो होता नहीं. तुम्हारे जांघों के जोड़ पर यह रेशेस हुए हैं, तो तुम खुद तो वहां पर चाट नहीं सकती तो एक इलाज है की कोई दूसरा इसे चाट कर ठीक कर दे. तुम्हारी माँ को भी जब कभी ऐसा होता है तो मैं हे तुम्हारी माँ की जांघें और उनके जोड़ पर चाट देता हूँ तो वो ठीक हो जाती है, अब घर में कोई और तो है नहीं तो मुझे ही अपनी प्यारी बेटी की मदद करनी पड़ेगी. मैं तुम्हारा बाप हूँ और कोई भी बाप अपनी बेटी को तकलीफ में नहीं देख सकता. तो तुम कोई विचार मत करो, जाओ अपने कमरे में जा कर लेटो मैं अभी आता हूँ और तुम्हारी जांघें और उनके जोड़ चाट चाट कर ठीक कर दूंगा. "

मैं समझ सकती थी की पापा को जल्दी है की कहीं मैं अपना मन बदल न लूँ और उन्हें अपनी बेटी की जांघें चाटने का मौका गंवाना न पढ़ जाये.

मैं तो खुद पापा से अपने वहां पर चटवाने को मरी जा रही थी तो ज्यादा देर न करते हुए मैं उठ कर अपने बैडरूम की तरफ चल पड़ी.

पापा मुझे कमरे की ओर जाते देख कर खुश हो गए और पीछे से आवाज दे कर बोले

"बेटी. यह तुमने इतनी बड़ी मैक्सी क्यों पहन ली है, इसे उतार कर कुछ छोटे कपडे पहन लेना. चाटने में आसानी होगी,"

मैं पापा का उतावलापन देख कर मुस्कुरा पड़ी और हाँ में गर्दन हिला कर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।

मैंने पापा को और भी ज्यादा तड़पाना और छेड़ना उचित नहीं समझा और कमरे में आ कर अपनी वो मैक्सी उतार कर रख दी और फिर अपनी ब्रा भी उतार दी और एक छोटी और खुली सी टी शर्ट पहन ली
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फिर मैंने पैंटी उतार कर एक स्कर्ट पहनने की सोची. पर फिर मेरे ध्यान में आया कि यदि मेरी पैंटी मेरे प्यारे पापा अपने हाथों से उतारेंगे तो मुझे कितना अच्छा लगेगा. यह सोच कर मैंने अपनी पैंटी पहनी रहने दी और वही पुराणी छोटी सी स्कर्ट पहन कर लेट गयी,

अँधेरा तो हो ही गया था. थोड़ी ही देर में पापा भी आ गए. पापा ने सिर्फ एक लुंगी पहन रखी थी और ऊपर एक बनियान ही थी,

पापा का लौड़ा पहले से ही, या शायद अपनी बेटी की चूत के बारे में सोच सोच कर खड़ा हो गया था और लुंगी के अंदर से पापा के लण्ड का उभार साफ दिखाई दे रहा था.

जब पाप मेरे पास चल कर आये तो उनके चलने से उनका लण्ड लुंगी में इधर उधर झूल रहा था. जो कच्छा न पहना होने के कारण पेंडुलम की तरह दाएं बाएं झूलता साफ दिख रहा था.
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पापा के लण्ड को देखते ही मेरी चूत में पानी आ गया. और वो खूब गीली होने लग गयी.

पापा मेरे पास आ कर बैठ गए।

पापा टी शर्ट के नीचे नाचती मेरी नंगी चूचियों (जिनकी घुंडीआं पतली सी टी शर्ट में साफ़ दिखाई दे रही थी )को देख कर मस्त हो गए.

मैं लेटी हुई थी वो मेरे पास बैठ गए. और प्यार से मेरी नंगी टांगों पर हाथ फेरते हुए बोले

"सुमन! यह स्कर्ट भी उतार दो ताकि मुझे तुम्हरी जांघें चाटने में दिक्कत न हो और काम ठीक से हो सके (पर पापा काम तो ठीक कच्छी उतार कर ही होगा ).
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मैं शर्माने का नाटक करती हुई बोली

"पापा! मुझे शर्म आती है. आप कमरे की लाइट बंद कर दें."

पापा मुस्कुराते बोले

"बेटी लाइट तो जलने दो. वरना मुझे ठीक से दिखाई नहीं देगा और फिर गलती से हो सकता है की तुम्हारी जांघें जहाँ पर रेशेस है, चाटने में कहीं इधर उधर भी जीभ लग जाये। लाइट होगी तो मुझे सब ठीक से दिखेगा न। "
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(जीभ तो मैं जानती ही थी की इधर उधर लगनी ही है ) तो मैं इंकार करते बोली

"पापा नहीं मुझे शर्म आती है. यदि लाइट जलती रखनी है तो मैं सिर्फ स्कर्ट उतरूंगी पर अपनी पैंटी नहीं. आप खुद सोच लो.वैसे थे मेरी पैंटी छोटी सी ही तो है. और जहाँ रेशेस पड़े हैं वो जगह तो पैंटी नहीं है, "

पापा बेचारे मुझे नंगी करने को तो मरे जा रहे थे तो पैंटी पहने रखने को कैसे राजी हो सकते थे. उन्होंने हथियार डाल दिए और बोले

"बेटी देखो. पैंटी पहनी होगी तो रेशेस पर ठीक से थूक से चाटा नहीं जा सकेगा, इसलिए मैं लाइट बंद करके अँधेरा कर देता हूँ. पर फिर न कहना कि पापा अँधेरे में जीभ ठीक से सिर्फ रेशेस पर नहीं फिर पायी।"

मैं तो सिर्फ रेशेस पर जीभ न फिर इसके लिए तैयार थी ही, तो मान गयी।

पापा ने उठ कर लाइट बंद कर दी. कमरे में अँधेरा हो गया. बस ऊपर रोशनदान से बाहर गली की थोड़ी सी लाइट आ रही थी, पर उस में कुछ ख़ास दिखाई नहीं दे रहा था.

पापा मेरी नंगी टांगों पर हाथ रख कर बोले

"अब तो ठीक है न सुमन ! लाइट बंद हो गयी है और खूब अँधेरा हो गया है, अब अपनी स्कर्ट उतार दो. "

मैं तो खुद नंगी होने के लिए मरी जा रही थी तो मैंने भी ज्यादा देर न करते हुए अपनी छोटी सी स्कर्ट तुरंत खोल कर साइड में रख दी और लेट गयी.

पापा नई मेरी टांगों पर हाथ रख दिया और उसे ऊपर की ओर ले जाने लगे.

पापा को मालूम था कि घर में कोई नहीं है तो वो पूरा टाइम ले ले कर और मजे से यह खेल खेल रहे थे.

धीरे धीरे पापा के हाथ मेरी जांघों की जड़ तक पहुँच गए. फिर पापा ने अँधेरे का फ़ायदा उठाते हुए हाथ मेरी चूत की ओर बढ़ाया।

ज्योंही उनका हाथ मेरी जांघों के जोड़ पर पहुंचा तो उनका हाथ उनके अनुमान के विपरीत मेरी नंगी चूत पर नहीं बल्कि मेरी पैंटी पर पड़ा.
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पापा तो मेरी चूत नंगी होने का सोच रहे थे. वो थोड़ा मायूस हो कर बोले

"अरे सुमन बेटी ! अभी तो तुमने नीचे के कपडे उतारने का कहा था. पर तुमने तो सिर्फ स्कर्ट उतारी है. अभी भी चड्डी पहनी हुई है. अभी अँधेरा है और कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा तो तुम यह चड्डी भी उतार दो ताकि ठीक से रेशेस ठीक किये जा सकें. "

मैं तो तैयार थी ही बस पापा के हालात का मजा ले रही थी की पापा अपनी बेटी को नंगा करने को कितने उतावले हैं.

तो मैं फिर उन्हें बहकाती हुई बोली

"पापा रेशेस तो जांघ के जोड़ पर ही हैं, और वहां तो पैंटी का कोई ज्यादा कपडा नहीं है, पर फिर भी यदि आप को लगता है की ठीक से रेशेस ठीक करने के लिए इसे भी उतारना होगा तो आप ही इसे उतार दो. मुझे तो शर्म आती है. एक जवान लड़की कैसे अपने पापा के आगे अपनी कच्छी खोल कर नंगी लेट सकती है, मुझसे तो कच्छी उतारी नहीं जाएगी. आप खुद ही यह काम करो। "

वाकई में छोटी सी चड्डी में मेरी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी जिसे देखकर पापा मदहोश हुआ जा रहे थे , और उनकी आंखों में खुमारी छाने लगी थी,,,।

पापा हँसते से बोले

"अरे सुमन! शर्मा क्यों रही हो। उतार दो अपनी यह छोटी सी चड्डी भी. और इसे उतारने से तुम नंगी कैसे हो जाओगी, तुमने अभी अपनी टी शर्ट भी तो पहनी है, नंगी का मतलब होता है, कि शरीर पर वस्त्र न होना. जब इतनी बड़ी टी शर्ट है तो चड्डी उतरने से नंगी थोड़े ही न होगी तुम."

पापा तो मुझे पटा रहे थे और मैं खुद पटने को तैयार थी ही,

पापा उतावले पन से बोले

"इसे भी उतार तो बेटी, मैं तुम्हें पूरी तरह से रेशेस ठीक कर देनाचाहता हूं",,,,(पापा एकदम से मदहोश जा रहे थे )

मैं फिर न में गर्दन हिलाते बोली

"पापा ,अब सब कुछ मैं हीं करूंगी,,,, यह शुभ काम तो अपने हाथों से करन बहुत अच्छा लगेगा,"

पापा को देर करना मंजूर नहीं था तो बोले

"क्या बेटी सच में यह काम में अपने हाथों से करु,,तो क्या अपने हाथों से उतारकर ही इसे उतार कर देखना होगा कि कितने रेशेस हैं तुम्हारी जांघों पर। "

"पापा , तो वहां क्यों खड़े है आप , आकर उतार दे इसे"

(आंखों के इशारे से पापा को अपने पास बुलाते हुए बोली,,,,पापा आप कहां पीछे हटने वाले थे , उन्हें तो खुला आमंत्रण मिल रहा था उनका दिल जोरों से धड़क रहा था आज पहली बार वो अपनी प्यारी बेटी की चड्डी अपने हाथों से उतारने जा रहे थे.
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पापा उसे अपने हाथों से उतारकर नंगी करने का सुख वह अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहते थे इसलिए मेरी बात सुनते ही उन्होंने धीरे-धीरे अपने हाथ मेरी कमर पर रखे।

पापा के साथ साथ मेरा भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, कईयो बार वह मैं अपने पुराने हरामी बॉयफ्रेंड के साथ इस तरह के अनुभव से गुजर चुकी थी लेकिन आज की बात कुछ और थी आज ऐसा लग रहा था कि मेरी जिंदगी की यह पहली सुनहरी घड़ी थी जिसमे मैं अपने पापा के हाथों से अपनी चड्डी उतरवा रही थी,,, यह सब मेरे लिए बेहद उत्तेजनात्मक पल था जिसमें वह पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी,,,,।

पापा मेरे बेहद करीब बैठे थे और उनकी आंखों के ठीक सामने मेरी चड्डी नजर आ रही थी जो कि मेरे काम रस से गीली हो चुकी थी,,,।
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उत्तेजना के मारे मेरा गला सूखता जा रहा था पापा के दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि नहीं वे भी पहली बार अपने हाथों से अपनी ही बेटी की चड्डी उतार कर उसे नंगी करने वाले थे।

अपने दोनों हाथों को बढ़ाकर पापा ने मेरी चड्डी पर रख दिया,,,,, पापा की उंगलियों का स्पर्श अपनी चिकनी कमर पर होते ही मैं एकदम से उत्तेजना के मारे सिहर उठी,,,

ऊपर नीचे हो रही सांसों के साथ साथ मेरी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर पापा की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,,,

धीरे-धीरे पापा चड्डी की साइड्स में अपनी उँगलियाँ फँसायी और चड्डी को नीचे खींचने की कोशिश की. पर चड्डी उतर नहीं सकती थी क्योंकि वो मेरे चूतड़ों के कारण उस से नीचे नहीं जा सकती थी,

पापा मुझे मुस्कुराते हुए बोले

"सुमन अपनी गां ... मेरा मतलब अपनी चूतड़। ........ यानि की अपनी कमर ऊपर उठाओ तभी तो मैं कच्छी नीचे कर सकूंगा. "

पापा उत्तेजना के कारण हकला रहे थे और में उनकी स्थिति का आनंद ले रही थी,

मैं पापा को छेड़ते हुए बोली

"पापा क्या उठाऊं ? आप कभी कुछ कहते हो कभी कुछ. एक चीज बोलो तो मैं समज सकूं."
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पापा मेरी शैतानी जानते हुए खुद मजा लेते बोले

"सुमन! तुम मेरी बेटी हो और मैं तुम्हारा बाप (साला जैसे अभी बाप बेटी वाली कुछ बात बाकि रह भी गयी थी,), अब मैं तुम्हे यह कैसे कह सकता हूँ की बेटी अपनी गांड ऊपर को करो ताकि मैं तुम्हारी गांड के नीचे से कच्छी निकाल सकूं। आखिर मैं तुम्हारे आगे गांड या चूत जैसे शब्द थोड़े ही बोल सकता हूँ."

पापा बहुत शरारती थे. उन्होंने खुले तौर पर गांड चूत दोनों बोल भी दिया और बोलने से इंकार भी कर दिया. मैं भी इस बातचीत का मजा ले रही थी,

मैं भी पापा की तरह दो अर्थी पर गंदे शब्दों का प्रयोग करते बोली

"हाँ पापा. हम दोनों बाप बेटी हैं. हम ऐसे गंदे शब्द जैसे गांड, चूत या लण्ड जैसे थोड़े ही बोल सकते हैं. आखिर आपसी संबंधों की भी तो कुछ मर्यादा होती है, आप ऐसे न बोलें की सुमन अपनी गांड ऊपर उठाओ पर ऐसे ही कहें की सुमन अपनी कमर ऊपर करो. "

मैं शरारत से मुस्कुरा रही थी, हम दोनों बाप बेटी गंदे शब्द बोल भी रहे थे और मना भी कर रहे थे.

मैंने मुस्कुराते हुए अपनी कमर ऊपर को उठा दी ताकि पापा मेरी पैंटी उतार सकें।

पापा भी तो मेरे बाप थे. वो कोई कम शरारती थोड़े ही थे. उन्होंने एक नई हरकत की और मेरी पैंटी उतारने के लिए मेरी कमर के साइड में उंगलिया डालने की बजाए एक हाथ मेरी कमर के नीचे ले गए और उसे मेरी गांड की दरार की सीध में चड्डी में फंसा लिया. ऊपर वाले दुसरे हाथ को पापा ने ठीक मेरी नाभी के नीचे यानि एन चूत के ऊपर कच्ची में डाला. मैं थोड़ा हैरान हुई पर कुछ न बोली.

पापा इसी पोजीशन में मेरी चड्डी को नीचे की तरफ सरकाने लगे ,, पापा और मेरे दोनों के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था और एकदम कामोत्तेजना से भरा हुआ जिसका हम पूरा फायदा और मजा ले रहे थे.

धीरे-धीरे पापा चड्डी को नीचे की तरफ करने लगे और जैसे-जैसे चड्डी नीचे की तरफ आ रही थी वैसे वैसे चड्डी के अंदर छुपा खजाना उजागर होता जा रहा था दोनों टांगों के बीच की हुआ वह जगह के ऊपरी भाग काफी उभरा हुआ नजर आ रहा था, और मेरी चूत का वो स्थान पूरा गीला भी हो चूका था. जिससे जाहिर हो रहा था कि मैं कितनी उत्तेजित हो चुकी थी ,,,,,,,
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देखते-देखते पापा मेरी चड्डी को मेरी चूत तक ले आये और मेरी रसीली मद भरी बेशकीमती बुर नंगी हो गई, पर क्योंकि कमरे में अँधेरा था तो पापा को मेरी नंगी होती हुई चूत दिखाई तो दे नहीं रही थी,

अब चड्डी काफी नीचे आ चुकी थी. पापा का नीचे वाला हाथ मेरी गांड की दरार में रगड़ते हुए कच्छी को नीचे कर रहा था. और अब पापा के हाथ की उँगलियाँ मेरी चूतड़ों की दरार में से घुसती हुई नीचे को पैंटी को उतारती हुई आ रही थी, तभी पापा की ऊँगली बिलकुल मेरी गांड के छेद पर आ गयी. और पापा ने ऊँगली के पोर से मेरी गांड के सुराख को सहलाना शुरू कर दिया.

अब तक पापा की ऊपर वाली ऊँगली भी मेरी चूत की फांकों के बीच में घिसती हुई बिलकुल मेरी चूत पर आ गयी, और पापा की उँगलियाँ मेरी भगनासा पर आ कर रुक गयी,

अब स्थिति बहुत ही नाजुक हो गयी थी, नीचे पापा की ऊँगली मेरी गांड के छेद पर रगड़ रही थी और ऊपर मेरी भगनासा पर. यह दो तरफ़ा हमला मेरे लिए असहनीय था. मैं अब समझ गयी थी की पापा ने कमर के साइड से मेरी पैंटी क्यों नहीं उतारी थी और इस अजीब से ढंग से क्यों उसे उतार रहे थे.

मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, पापा मेरे आनंद को समझ रहे थे. वो अपनी दोनों उँगलियों से मेरी गांड और चूत को सहला रहे थे.
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पापा के हाथ की ऊँगली ज्योंही मेरी गांड के छेड़ पर आयी, तो मैं सिसकारी लेते हुए अपने आप मेरी कमर हिल गयी, कमर के हिलते ही पापा की ऊँगली मेरी गांड में घुस गयी, (अब यह पता नहीं की वो पापा ने जानबूझ कर घुसाई थी या मेरे अचानक हिल जाने से हुआ,)


इधर ज्योंही मेरी गांड में ऊँगली घुसी अपने आप मेरी कमर ने ऊपर को झटका खाया. उसका असर यह हुआ की पापा की जो ऊपर वाली ऊँगली मेरी चूत पर सेहला रही थी, एक इंच तक मेरी चूत में घुस गयी, अब मेरी गांड और चूत दोनों में पापा की ऊँगली थी,

मेरे मुंह से आह आह की आवाज निकल रही थी, पापा। .... आह। ...आह मर गयी , इस तरह से मेरे मुंह से अपने आप सिसकारियां निकलने लगी,

मन कर रहा था की पापा देर क्यों कर रहे हैं. अपनी पूरी उंगलिया मेरी गांड और चूत में क्यों नहीं डाल देते और अंदर बाहर करके मुझे चोद दें.
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पर पापा तो खेले खाये हुए और अनुभवी इंसान थे. वो इतनी जल्दी यह सब थोड़े ही करने वाले थे.

थोड़ी देर वहीँ पर रुक कर पापा थोड़ी ही ऊँगली से छेद के अंदर मजा लेते रहे. मेरी चूत बहुत पानी बहा रही थी, जिसे देखते ही पापा के तन बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी उनकी आंखों की चमक बढ़ गई काम का नशा बढ़ने लगा,,,,

अपने सूखते गले को अपने थूक से गीला करते हुए पापा ने ऊपर नजर करके मेरी तरफ देखा तो मैं भी उन्ही को ही देख रही थी

आपस में दोनों की नजरें टकराई,,,, आंखों ही आंखों में इशारा हो गया था मैं ने आंखों के इशारों में ही मैं ने उसे अपनी चड्डी उतारने के लिए बोल दी थी,,,,

पापा ने भी मेरे आमंत्रण को स्वीकार करते हुए मेरी चड्डी नीचे घुटनों तक ला दिया,,, लेकिन अब उनमे सब्र बिल्कुल भी नहीं था उनकी आँखों के सामने मेरा बेशकीमती खजाना पड़ा था.

ठीक है की कमरे के अंदर अँधेरा होने के कारण सब साफ़ नहीं था पर अब तक हमारी आँखें अँधेरे की आदि हो चुकी थीं. तो हमें अँधेरे में भी हल्का हल्का दिखाई दे ही रहा था. .

बल्कि यह कहें की हल्का सा यह दर्शन कामुकता को और भी बढ़ा रहा था.

पापा ने मेरी पैंटी उतार कर साइड में रख दी. और वे अब अपना हाथ बढ़ा कर अपनी उंगलियों से मेरी बुर को स्पर्श करने लगे ,,, और एक दम मस्त होने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे पापा वाकई में कोई बेशकीमती खजाना पा गए हो

और उस पर अपनी हथेली रख कर अपने आपको विश्वास दिला रहे हो कि अब यह सब तेरा है,,,।
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पापा की उंगलियों का स्पर्श पाकर मेरा भी सब्र का बांध टूटता हुआ महसूस होने लगा था क्योंकि अब मेरी चूत में से मदन रस की बूंदे अमृतधारा बनकर गिरने लगी थी,,,

उस अमृतधारा को पापा जमीन पर गिर कर जाया नहीं होने देना चाहते थे।

इसलिए वो मुझे बोले

"सुमन अपनी दोनों टांगें चौड़ी करके पूरी तरह से खोल लो ताकि मैं तुम्हारी जांघों के जोड़ पर अपने मुंह की लार से चाट चाट कर तुम्हारी रेशेस ठीक कर दूँ. "

मैं तो कब से इन शब्दों का इन्तजार कर रही थी, तो मैंने तुरंत अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर ली और उन्हें जितना खोल सकती थी खोल कर ऊपर को मोड़ लिया और अपने घुटनों से टांगों को पकड़ लिया. ऐसा लग रहा था की मैं अपने पापा के लिए पूरा पोज़ तैयार कर दिया था.
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अँधेरे का अपना लाभ भी तो है, मैं अब पूरी नंगी अपने पापा के आगे टांगें चौड़ी करके लेटी थी पर मुझे इतनी शर्म नहीं आ रही थी, यदि कमरे में लाइट होती तो मैं लाख चाह कर भी ऐसा न कर पाती.

खैर पापा के लिए भी अब रुक पाना असंभव हो गया था. तो उन्होंने अपनी जीभ मेरी टांगों के जोड़ पर रख कर उन्हें चाटना शुरू कर दिया.

पापा थोड़ी देर मेरी जाँघों के जोड़ पर चाटते रहे.

(आखिर रेशेस ठीक करने का भरम भी तो रखना था. अभी भी हम बाप बेटी के रिश्ते में थोड़ी से दीवार तो बाकि थी ही ). पापा दो तीन मिनट तक मेरी जांघें ही चाटते रहे। मैं तो उनके होंठ अपनी चूत पर पाने के लिए तड़प रही थी पर पापा थे कि मेरी टाँगें ही चाटते जा रहे थे.

(अब पापा अनुभवी थे तो मेरी तड़प बढ़ा रहे थे और इधर मैं बेचैन हुई जा रही थी, हालाँकि घर में हम दोनों बाप बेटी ही थे तो हमारे पास पूरी रात थी मजा लेने के लिए पर मेरे लिए तो एक एक पल निकालना एक एक साल के समान हो रहा था. )

खैर थोड़ी देर बाद पापा ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूत पर रख दिया. चूत पर हाथ आते ही मेरा शरीर अपने आप झटका खा गया.

(अब यह तो पापा जाने कि यह अचानक हुआ या यह उनकी चाल थी पर मेरी कमर के झटका खाते ही उनका मुंह सीधे मेरी चूत पर आ गया और पापा ने मेरी भगनासा अपने होंठों में दबा ली )

अब यह सब तो पापा के लिए भी असहनीय था. इसलिए पापा ने तुरंत अपने होठों को आगे बढ़ा कर मेरी तपती हुई चूत पर रख दिया,,, मैं पापा के इस अद्भुत कार्य शैली को देखकर एकदम से सिहर उठी,,,, पर तुरंत अपने दोनों हाथों को उसके सर पर रख कर उसे अपनी बुर से चिपका दी,,,,,
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पापा मंत्रमुग्ध मदहोश हुआ जा रहे थे ,,, पापा ने अपनी प्यासी जीभ निकालकर,,, तुरंत मेरी रसीली बुर के छेद में डाल दिया और उसे चाटना शुरू कर दिया,,,, शायद मेरी माँ ने उन्हें चूत चाटने की कला में पूरा पारंगत कर दिया था और वे अब अपनी उस कला का उपयोग अपनी बेटी की चूत पर कर रहे थे.

मैं पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी पुराने बॉयफ्रेंड के बाद अब कोई इस तरह से बुर चाट कर मुझे मस्त कर रहा था

मैं भी पागल की तरह पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी गांड को गोल-गोल घुमाते हुए अपनी बुर को पापा के होंठों पर रगड़ रही थी,,,

जिससे मेरे साथ-साथ पापा की भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,।


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Bhai kyu yaha hi kyu roka ye update aaj hone dete yaar bhai next update kb ayega
 

Ramraj

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पापा ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठे थे. तो मैं भी जा कर पापा के पास बैठ गयी,

पापा ने देखा की मैं नहा धो कर और सज धज कर आयी हूँ तो वो समझ गए की मैंने रात की तैयारी की हुई है. पापा बहुत खुश हो गए.

पर मुझे एक लम्बी से मैक्सी पहने देख कर वो थोड़ा मायूस से हो गए. उन्हें तो आशा थी की मैंने कोई सेक्सी सी स्कर्ट पहनी होगी और नीचे ब्रा और पैंटी भी नहीं होगी,
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पर मेरी मैक्सी के नीचे से मेरी ब्रा दिखाई दे रही थी. पापा ने ध्यान से देखा तो मैंने पैंटी भी पहन राखी थी, असल में मैं पापा को छेड़ने और चिढ़ाने के लिए ही उसे पहना था.

पापा मुझे प्यार से बोले

"सुमन! अभी तुम्हारी जांघों की रेशेस कैसी है, मैं अपने वायदे पर कायम हूँ. मैं रात को अपनी मुंह के लार से तुम्हारी रेशेस को चाट कर ठीक कर दूंगा. तुम कोई चिंता मत करो। "

मैं पापा की जल्दबाजी और उत्सुकता को समझ सकती थी, मैं तो खुद तैयार थी ही पर पापा को छेड़ने और तंग करने के लिए बोली

"पापा! वैसे तो मेरी रेशेस अभी दिन से कुछ ठीक लग रही है. दर्द भी थोड़ा कम है, मुझे लगता है की कल तक तो वैसे ही ठीक हो जाएँगी, आप को तकलीफ करने की जरूरत नहीं है,"

पापा मायूस से हो गए। वो बेचारे तो न जाने मन में क्या क्या सोचे बैठे थे और मैं मना कर रही थी, उन्हें लगा की यह तो मामला बिगड़ गया. तो वो बात को सँभालते हुए बोले

"सुमन! बेटी यह ठीक होना कई बार ऐसे ही होता है, यह रेशेस बड़े खतरनाक होते हैं. यदि ठीक न किये जाएँ तो कई बार यह बढ़ जाते है, और जख्म भी हो सकते हैं. तुम इन्हे हलके में मत लो. इनका एक ही और सबसे बढ़िया इलाज है, इंसान का थूक यानि मुंह की लार. मैंने बताया था न की जब भी जंगल में किसी भी जानवर या पक्षी को कोई चोट लग जाती है. तो वो उसे खुद ही चाट चाट कर ठीक कर देता है, वहां जंगल में कोई डॉक्टर तो होता नहीं. तुम्हारे जांघों के जोड़ पर यह रेशेस हुए हैं, तो तुम खुद तो वहां पर चाट नहीं सकती तो एक इलाज है की कोई दूसरा इसे चाट कर ठीक कर दे. तुम्हारी माँ को भी जब कभी ऐसा होता है तो मैं हे तुम्हारी माँ की जांघें और उनके जोड़ पर चाट देता हूँ तो वो ठीक हो जाती है, अब घर में कोई और तो है नहीं तो मुझे ही अपनी प्यारी बेटी की मदद करनी पड़ेगी. मैं तुम्हारा बाप हूँ और कोई भी बाप अपनी बेटी को तकलीफ में नहीं देख सकता. तो तुम कोई विचार मत करो, जाओ अपने कमरे में जा कर लेटो मैं अभी आता हूँ और तुम्हारी जांघें और उनके जोड़ चाट चाट कर ठीक कर दूंगा. "

मैं समझ सकती थी की पापा को जल्दी है की कहीं मैं अपना मन बदल न लूँ और उन्हें अपनी बेटी की जांघें चाटने का मौका गंवाना न पढ़ जाये.

मैं तो खुद पापा से अपने वहां पर चटवाने को मरी जा रही थी तो ज्यादा देर न करते हुए मैं उठ कर अपने बैडरूम की तरफ चल पड़ी.

पापा मुझे कमरे की ओर जाते देख कर खुश हो गए और पीछे से आवाज दे कर बोले

"बेटी. यह तुमने इतनी बड़ी मैक्सी क्यों पहन ली है, इसे उतार कर कुछ छोटे कपडे पहन लेना. चाटने में आसानी होगी,"

मैं पापा का उतावलापन देख कर मुस्कुरा पड़ी और हाँ में गर्दन हिला कर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी।

मैंने पापा को और भी ज्यादा तड़पाना और छेड़ना उचित नहीं समझा और कमरे में आ कर अपनी वो मैक्सी उतार कर रख दी और फिर अपनी ब्रा भी उतार दी और एक छोटी और खुली सी टी शर्ट पहन ली
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फिर मैंने पैंटी उतार कर एक स्कर्ट पहनने की सोची. पर फिर मेरे ध्यान में आया कि यदि मेरी पैंटी मेरे प्यारे पापा अपने हाथों से उतारेंगे तो मुझे कितना अच्छा लगेगा. यह सोच कर मैंने अपनी पैंटी पहनी रहने दी और वही पुराणी छोटी सी स्कर्ट पहन कर लेट गयी,

अँधेरा तो हो ही गया था. थोड़ी ही देर में पापा भी आ गए. पापा ने सिर्फ एक लुंगी पहन रखी थी और ऊपर एक बनियान ही थी,

पापा का लौड़ा पहले से ही, या शायद अपनी बेटी की चूत के बारे में सोच सोच कर खड़ा हो गया था और लुंगी के अंदर से पापा के लण्ड का उभार साफ दिखाई दे रहा था.

जब पाप मेरे पास चल कर आये तो उनके चलने से उनका लण्ड लुंगी में इधर उधर झूल रहा था. जो कच्छा न पहना होने के कारण पेंडुलम की तरह दाएं बाएं झूलता साफ दिख रहा था.
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पापा के लण्ड को देखते ही मेरी चूत में पानी आ गया. और वो खूब गीली होने लग गयी.

पापा मेरे पास आ कर बैठ गए।

पापा टी शर्ट के नीचे नाचती मेरी नंगी चूचियों (जिनकी घुंडीआं पतली सी टी शर्ट में साफ़ दिखाई दे रही थी )को देख कर मस्त हो गए.

मैं लेटी हुई थी वो मेरे पास बैठ गए. और प्यार से मेरी नंगी टांगों पर हाथ फेरते हुए बोले

"सुमन! यह स्कर्ट भी उतार दो ताकि मुझे तुम्हरी जांघें चाटने में दिक्कत न हो और काम ठीक से हो सके (पर पापा काम तो ठीक कच्छी उतार कर ही होगा ).
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मैं शर्माने का नाटक करती हुई बोली

"पापा! मुझे शर्म आती है. आप कमरे की लाइट बंद कर दें."

पापा मुस्कुराते बोले

"बेटी लाइट तो जलने दो. वरना मुझे ठीक से दिखाई नहीं देगा और फिर गलती से हो सकता है की तुम्हारी जांघें जहाँ पर रेशेस है, चाटने में कहीं इधर उधर भी जीभ लग जाये। लाइट होगी तो मुझे सब ठीक से दिखेगा न। "
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(जीभ तो मैं जानती ही थी की इधर उधर लगनी ही है ) तो मैं इंकार करते बोली

"पापा नहीं मुझे शर्म आती है. यदि लाइट जलती रखनी है तो मैं सिर्फ स्कर्ट उतरूंगी पर अपनी पैंटी नहीं. आप खुद सोच लो.वैसे थे मेरी पैंटी छोटी सी ही तो है. और जहाँ रेशेस पड़े हैं वो जगह तो पैंटी नहीं है, "

पापा बेचारे मुझे नंगी करने को तो मरे जा रहे थे तो पैंटी पहने रखने को कैसे राजी हो सकते थे. उन्होंने हथियार डाल दिए और बोले

"बेटी देखो. पैंटी पहनी होगी तो रेशेस पर ठीक से थूक से चाटा नहीं जा सकेगा, इसलिए मैं लाइट बंद करके अँधेरा कर देता हूँ. पर फिर न कहना कि पापा अँधेरे में जीभ ठीक से सिर्फ रेशेस पर नहीं फिर पायी।"

मैं तो सिर्फ रेशेस पर जीभ न फिर इसके लिए तैयार थी ही, तो मान गयी।

पापा ने उठ कर लाइट बंद कर दी. कमरे में अँधेरा हो गया. बस ऊपर रोशनदान से बाहर गली की थोड़ी सी लाइट आ रही थी, पर उस में कुछ ख़ास दिखाई नहीं दे रहा था.

पापा मेरी नंगी टांगों पर हाथ रख कर बोले

"अब तो ठीक है न सुमन ! लाइट बंद हो गयी है और खूब अँधेरा हो गया है, अब अपनी स्कर्ट उतार दो. "

मैं तो खुद नंगी होने के लिए मरी जा रही थी तो मैंने भी ज्यादा देर न करते हुए अपनी छोटी सी स्कर्ट तुरंत खोल कर साइड में रख दी और लेट गयी.

पापा नई मेरी टांगों पर हाथ रख दिया और उसे ऊपर की ओर ले जाने लगे.

पापा को मालूम था कि घर में कोई नहीं है तो वो पूरा टाइम ले ले कर और मजे से यह खेल खेल रहे थे.

धीरे धीरे पापा के हाथ मेरी जांघों की जड़ तक पहुँच गए. फिर पापा ने अँधेरे का फ़ायदा उठाते हुए हाथ मेरी चूत की ओर बढ़ाया।

ज्योंही उनका हाथ मेरी जांघों के जोड़ पर पहुंचा तो उनका हाथ उनके अनुमान के विपरीत मेरी नंगी चूत पर नहीं बल्कि मेरी पैंटी पर पड़ा.
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पापा तो मेरी चूत नंगी होने का सोच रहे थे. वो थोड़ा मायूस हो कर बोले

"अरे सुमन बेटी ! अभी तो तुमने नीचे के कपडे उतारने का कहा था. पर तुमने तो सिर्फ स्कर्ट उतारी है. अभी भी चड्डी पहनी हुई है. अभी अँधेरा है और कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा तो तुम यह चड्डी भी उतार दो ताकि ठीक से रेशेस ठीक किये जा सकें. "

मैं तो तैयार थी ही बस पापा के हालात का मजा ले रही थी की पापा अपनी बेटी को नंगा करने को कितने उतावले हैं.

तो मैं फिर उन्हें बहकाती हुई बोली

"पापा रेशेस तो जांघ के जोड़ पर ही हैं, और वहां तो पैंटी का कोई ज्यादा कपडा नहीं है, पर फिर भी यदि आप को लगता है की ठीक से रेशेस ठीक करने के लिए इसे भी उतारना होगा तो आप ही इसे उतार दो. मुझे तो शर्म आती है. एक जवान लड़की कैसे अपने पापा के आगे अपनी कच्छी खोल कर नंगी लेट सकती है, मुझसे तो कच्छी उतारी नहीं जाएगी. आप खुद ही यह काम करो। "

वाकई में छोटी सी चड्डी में मेरी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी जिसे देखकर पापा मदहोश हुआ जा रहे थे , और उनकी आंखों में खुमारी छाने लगी थी,,,।

पापा हँसते से बोले

"अरे सुमन! शर्मा क्यों रही हो। उतार दो अपनी यह छोटी सी चड्डी भी. और इसे उतारने से तुम नंगी कैसे हो जाओगी, तुमने अभी अपनी टी शर्ट भी तो पहनी है, नंगी का मतलब होता है, कि शरीर पर वस्त्र न होना. जब इतनी बड़ी टी शर्ट है तो चड्डी उतरने से नंगी थोड़े ही न होगी तुम."

पापा तो मुझे पटा रहे थे और मैं खुद पटने को तैयार थी ही,

पापा उतावले पन से बोले

"इसे भी उतार तो बेटी, मैं तुम्हें पूरी तरह से रेशेस ठीक कर देनाचाहता हूं",,,,(पापा एकदम से मदहोश जा रहे थे )

मैं फिर न में गर्दन हिलाते बोली

"पापा ,अब सब कुछ मैं हीं करूंगी,,,, यह शुभ काम तो अपने हाथों से करन बहुत अच्छा लगेगा,"

पापा को देर करना मंजूर नहीं था तो बोले

"क्या बेटी सच में यह काम में अपने हाथों से करु,,तो क्या अपने हाथों से उतारकर ही इसे उतार कर देखना होगा कि कितने रेशेस हैं तुम्हारी जांघों पर। "

"पापा , तो वहां क्यों खड़े है आप , आकर उतार दे इसे"

(आंखों के इशारे से पापा को अपने पास बुलाते हुए बोली,,,,पापा आप कहां पीछे हटने वाले थे , उन्हें तो खुला आमंत्रण मिल रहा था उनका दिल जोरों से धड़क रहा था आज पहली बार वो अपनी प्यारी बेटी की चड्डी अपने हाथों से उतारने जा रहे थे.
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पापा उसे अपने हाथों से उतारकर नंगी करने का सुख वह अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहते थे इसलिए मेरी बात सुनते ही उन्होंने धीरे-धीरे अपने हाथ मेरी कमर पर रखे।

पापा के साथ साथ मेरा भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, कईयो बार वह मैं अपने पुराने हरामी बॉयफ्रेंड के साथ इस तरह के अनुभव से गुजर चुकी थी लेकिन आज की बात कुछ और थी आज ऐसा लग रहा था कि मेरी जिंदगी की यह पहली सुनहरी घड़ी थी जिसमे मैं अपने पापा के हाथों से अपनी चड्डी उतरवा रही थी,,, यह सब मेरे लिए बेहद उत्तेजनात्मक पल था जिसमें वह पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी,,,,।

पापा मेरे बेहद करीब बैठे थे और उनकी आंखों के ठीक सामने मेरी चड्डी नजर आ रही थी जो कि मेरे काम रस से गीली हो चुकी थी,,,।
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उत्तेजना के मारे मेरा गला सूखता जा रहा था पापा के दिल की धड़कन भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि नहीं वे भी पहली बार अपने हाथों से अपनी ही बेटी की चड्डी उतार कर उसे नंगी करने वाले थे।

अपने दोनों हाथों को बढ़ाकर पापा ने मेरी चड्डी पर रख दिया,,,,, पापा की उंगलियों का स्पर्श अपनी चिकनी कमर पर होते ही मैं एकदम से उत्तेजना के मारे सिहर उठी,,,

ऊपर नीचे हो रही सांसों के साथ साथ मेरी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर पापा की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,,,

धीरे-धीरे पापा चड्डी की साइड्स में अपनी उँगलियाँ फँसायी और चड्डी को नीचे खींचने की कोशिश की. पर चड्डी उतर नहीं सकती थी क्योंकि वो मेरे चूतड़ों के कारण उस से नीचे नहीं जा सकती थी,

पापा मुझे मुस्कुराते हुए बोले

"सुमन अपनी गां ... मेरा मतलब अपनी चूतड़। ........ यानि की अपनी कमर ऊपर उठाओ तभी तो मैं कच्छी नीचे कर सकूंगा. "

पापा उत्तेजना के कारण हकला रहे थे और में उनकी स्थिति का आनंद ले रही थी,

मैं पापा को छेड़ते हुए बोली

"पापा क्या उठाऊं ? आप कभी कुछ कहते हो कभी कुछ. एक चीज बोलो तो मैं समज सकूं."
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पापा मेरी शैतानी जानते हुए खुद मजा लेते बोले

"सुमन! तुम मेरी बेटी हो और मैं तुम्हारा बाप (साला जैसे अभी बाप बेटी वाली कुछ बात बाकि रह भी गयी थी,), अब मैं तुम्हे यह कैसे कह सकता हूँ की बेटी अपनी गांड ऊपर को करो ताकि मैं तुम्हारी गांड के नीचे से कच्छी निकाल सकूं। आखिर मैं तुम्हारे आगे गांड या चूत जैसे शब्द थोड़े ही बोल सकता हूँ."

पापा बहुत शरारती थे. उन्होंने खुले तौर पर गांड चूत दोनों बोल भी दिया और बोलने से इंकार भी कर दिया. मैं भी इस बातचीत का मजा ले रही थी,

मैं भी पापा की तरह दो अर्थी पर गंदे शब्दों का प्रयोग करते बोली

"हाँ पापा. हम दोनों बाप बेटी हैं. हम ऐसे गंदे शब्द जैसे गांड, चूत या लण्ड जैसे थोड़े ही बोल सकते हैं. आखिर आपसी संबंधों की भी तो कुछ मर्यादा होती है, आप ऐसे न बोलें की सुमन अपनी गांड ऊपर उठाओ पर ऐसे ही कहें की सुमन अपनी कमर ऊपर करो. "

मैं शरारत से मुस्कुरा रही थी, हम दोनों बाप बेटी गंदे शब्द बोल भी रहे थे और मना भी कर रहे थे.

मैंने मुस्कुराते हुए अपनी कमर ऊपर को उठा दी ताकि पापा मेरी पैंटी उतार सकें।

पापा भी तो मेरे बाप थे. वो कोई कम शरारती थोड़े ही थे. उन्होंने एक नई हरकत की और मेरी पैंटी उतारने के लिए मेरी कमर के साइड में उंगलिया डालने की बजाए एक हाथ मेरी कमर के नीचे ले गए और उसे मेरी गांड की दरार की सीध में चड्डी में फंसा लिया. ऊपर वाले दुसरे हाथ को पापा ने ठीक मेरी नाभी के नीचे यानि एन चूत के ऊपर कच्ची में डाला. मैं थोड़ा हैरान हुई पर कुछ न बोली.

पापा इसी पोजीशन में मेरी चड्डी को नीचे की तरफ सरकाने लगे ,, पापा और मेरे दोनों के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था और एकदम कामोत्तेजना से भरा हुआ जिसका हम पूरा फायदा और मजा ले रहे थे.

धीरे-धीरे पापा चड्डी को नीचे की तरफ करने लगे और जैसे-जैसे चड्डी नीचे की तरफ आ रही थी वैसे वैसे चड्डी के अंदर छुपा खजाना उजागर होता जा रहा था दोनों टांगों के बीच की हुआ वह जगह के ऊपरी भाग काफी उभरा हुआ नजर आ रहा था, और मेरी चूत का वो स्थान पूरा गीला भी हो चूका था. जिससे जाहिर हो रहा था कि मैं कितनी उत्तेजित हो चुकी थी ,,,,,,,
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देखते-देखते पापा मेरी चड्डी को मेरी चूत तक ले आये और मेरी रसीली मद भरी बेशकीमती बुर नंगी हो गई, पर क्योंकि कमरे में अँधेरा था तो पापा को मेरी नंगी होती हुई चूत दिखाई तो दे नहीं रही थी,

अब चड्डी काफी नीचे आ चुकी थी. पापा का नीचे वाला हाथ मेरी गांड की दरार में रगड़ते हुए कच्छी को नीचे कर रहा था. और अब पापा के हाथ की उँगलियाँ मेरी चूतड़ों की दरार में से घुसती हुई नीचे को पैंटी को उतारती हुई आ रही थी, तभी पापा की ऊँगली बिलकुल मेरी गांड के छेद पर आ गयी. और पापा ने ऊँगली के पोर से मेरी गांड के सुराख को सहलाना शुरू कर दिया.

अब तक पापा की ऊपर वाली ऊँगली भी मेरी चूत की फांकों के बीच में घिसती हुई बिलकुल मेरी चूत पर आ गयी, और पापा की उँगलियाँ मेरी भगनासा पर आ कर रुक गयी,

अब स्थिति बहुत ही नाजुक हो गयी थी, नीचे पापा की ऊँगली मेरी गांड के छेद पर रगड़ रही थी और ऊपर मेरी भगनासा पर. यह दो तरफ़ा हमला मेरे लिए असहनीय था. मैं अब समझ गयी थी की पापा ने कमर के साइड से मेरी पैंटी क्यों नहीं उतारी थी और इस अजीब से ढंग से क्यों उसे उतार रहे थे.

मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, पापा मेरे आनंद को समझ रहे थे. वो अपनी दोनों उँगलियों से मेरी गांड और चूत को सहला रहे थे.
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पापा के हाथ की ऊँगली ज्योंही मेरी गांड के छेड़ पर आयी, तो मैं सिसकारी लेते हुए अपने आप मेरी कमर हिल गयी, कमर के हिलते ही पापा की ऊँगली मेरी गांड में घुस गयी, (अब यह पता नहीं की वो पापा ने जानबूझ कर घुसाई थी या मेरे अचानक हिल जाने से हुआ,)


इधर ज्योंही मेरी गांड में ऊँगली घुसी अपने आप मेरी कमर ने ऊपर को झटका खाया. उसका असर यह हुआ की पापा की जो ऊपर वाली ऊँगली मेरी चूत पर सेहला रही थी, एक इंच तक मेरी चूत में घुस गयी, अब मेरी गांड और चूत दोनों में पापा की ऊँगली थी,

मेरे मुंह से आह आह की आवाज निकल रही थी, पापा। .... आह। ...आह मर गयी , इस तरह से मेरे मुंह से अपने आप सिसकारियां निकलने लगी,

मन कर रहा था की पापा देर क्यों कर रहे हैं. अपनी पूरी उंगलिया मेरी गांड और चूत में क्यों नहीं डाल देते और अंदर बाहर करके मुझे चोद दें.
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पर पापा तो खेले खाये हुए और अनुभवी इंसान थे. वो इतनी जल्दी यह सब थोड़े ही करने वाले थे.

थोड़ी देर वहीँ पर रुक कर पापा थोड़ी ही ऊँगली से छेद के अंदर मजा लेते रहे. मेरी चूत बहुत पानी बहा रही थी, जिसे देखते ही पापा के तन बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी उनकी आंखों की चमक बढ़ गई काम का नशा बढ़ने लगा,,,,

अपने सूखते गले को अपने थूक से गीला करते हुए पापा ने ऊपर नजर करके मेरी तरफ देखा तो मैं भी उन्ही को ही देख रही थी

आपस में दोनों की नजरें टकराई,,,, आंखों ही आंखों में इशारा हो गया था मैं ने आंखों के इशारों में ही मैं ने उसे अपनी चड्डी उतारने के लिए बोल दी थी,,,,

पापा ने भी मेरे आमंत्रण को स्वीकार करते हुए मेरी चड्डी नीचे घुटनों तक ला दिया,,, लेकिन अब उनमे सब्र बिल्कुल भी नहीं था उनकी आँखों के सामने मेरा बेशकीमती खजाना पड़ा था.

ठीक है की कमरे के अंदर अँधेरा होने के कारण सब साफ़ नहीं था पर अब तक हमारी आँखें अँधेरे की आदि हो चुकी थीं. तो हमें अँधेरे में भी हल्का हल्का दिखाई दे ही रहा था. .

बल्कि यह कहें की हल्का सा यह दर्शन कामुकता को और भी बढ़ा रहा था.

पापा ने मेरी पैंटी उतार कर साइड में रख दी. और वे अब अपना हाथ बढ़ा कर अपनी उंगलियों से मेरी बुर को स्पर्श करने लगे ,,, और एक दम मस्त होने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे पापा वाकई में कोई बेशकीमती खजाना पा गए हो

और उस पर अपनी हथेली रख कर अपने आपको विश्वास दिला रहे हो कि अब यह सब तेरा है,,,।
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पापा की उंगलियों का स्पर्श पाकर मेरा भी सब्र का बांध टूटता हुआ महसूस होने लगा था क्योंकि अब मेरी चूत में से मदन रस की बूंदे अमृतधारा बनकर गिरने लगी थी,,,

उस अमृतधारा को पापा जमीन पर गिर कर जाया नहीं होने देना चाहते थे।

इसलिए वो मुझे बोले

"सुमन अपनी दोनों टांगें चौड़ी करके पूरी तरह से खोल लो ताकि मैं तुम्हारी जांघों के जोड़ पर अपने मुंह की लार से चाट चाट कर तुम्हारी रेशेस ठीक कर दूँ. "

मैं तो कब से इन शब्दों का इन्तजार कर रही थी, तो मैंने तुरंत अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर ली और उन्हें जितना खोल सकती थी खोल कर ऊपर को मोड़ लिया और अपने घुटनों से टांगों को पकड़ लिया. ऐसा लग रहा था की मैं अपने पापा के लिए पूरा पोज़ तैयार कर दिया था.
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अँधेरे का अपना लाभ भी तो है, मैं अब पूरी नंगी अपने पापा के आगे टांगें चौड़ी करके लेटी थी पर मुझे इतनी शर्म नहीं आ रही थी, यदि कमरे में लाइट होती तो मैं लाख चाह कर भी ऐसा न कर पाती.

खैर पापा के लिए भी अब रुक पाना असंभव हो गया था. तो उन्होंने अपनी जीभ मेरी टांगों के जोड़ पर रख कर उन्हें चाटना शुरू कर दिया.

पापा थोड़ी देर मेरी जाँघों के जोड़ पर चाटते रहे.

(आखिर रेशेस ठीक करने का भरम भी तो रखना था. अभी भी हम बाप बेटी के रिश्ते में थोड़ी से दीवार तो बाकि थी ही ). पापा दो तीन मिनट तक मेरी जांघें ही चाटते रहे। मैं तो उनके होंठ अपनी चूत पर पाने के लिए तड़प रही थी पर पापा थे कि मेरी टाँगें ही चाटते जा रहे थे.

(अब पापा अनुभवी थे तो मेरी तड़प बढ़ा रहे थे और इधर मैं बेचैन हुई जा रही थी, हालाँकि घर में हम दोनों बाप बेटी ही थे तो हमारे पास पूरी रात थी मजा लेने के लिए पर मेरे लिए तो एक एक पल निकालना एक एक साल के समान हो रहा था. )

खैर थोड़ी देर बाद पापा ने अपना एक हाथ मेरी नंगी चूत पर रख दिया. चूत पर हाथ आते ही मेरा शरीर अपने आप झटका खा गया.

(अब यह तो पापा जाने कि यह अचानक हुआ या यह उनकी चाल थी पर मेरी कमर के झटका खाते ही उनका मुंह सीधे मेरी चूत पर आ गया और पापा ने मेरी भगनासा अपने होंठों में दबा ली )

अब यह सब तो पापा के लिए भी असहनीय था. इसलिए पापा ने तुरंत अपने होठों को आगे बढ़ा कर मेरी तपती हुई चूत पर रख दिया,,, मैं पापा के इस अद्भुत कार्य शैली को देखकर एकदम से सिहर उठी,,,, पर तुरंत अपने दोनों हाथों को उसके सर पर रख कर उसे अपनी बुर से चिपका दी,,,,,
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पापा मंत्रमुग्ध मदहोश हुआ जा रहे थे ,,, पापा ने अपनी प्यासी जीभ निकालकर,,, तुरंत मेरी रसीली बुर के छेद में डाल दिया और उसे चाटना शुरू कर दिया,,,, शायद मेरी माँ ने उन्हें चूत चाटने की कला में पूरा पारंगत कर दिया था और वे अब अपनी उस कला का उपयोग अपनी बेटी की चूत पर कर रहे थे.

मैं पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी पुराने बॉयफ्रेंड के बाद अब कोई इस तरह से बुर चाट कर मुझे मस्त कर रहा था

मैं भी पागल की तरह पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी गांड को गोल-गोल घुमाते हुए अपनी बुर को पापा के होंठों पर रगड़ रही थी,,,

जिससे मेरे साथ-साथ पापा की भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,।


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Absolutely stunning and extremely erotic writings!
 

Elafanto

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Uff, mast update
 

rajeshsurya

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Waah kya ilaaj kar raha hain Baap beti ka. Mast update hain. Aage aise hi dono Baap beti gandi gandi baate kare ek dusre se.
 

SSNJ99

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Superb and blockbuster update
 
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