शीला ने बड़े ध्यान से वैशाली की चाल और उसका चेहरा देखा.. उसकी अनुभवी आँखों ने परख लिया.. संभोग के आनंद के बाद जैसी चमक स्त्री के चेहरे पर होती है.. वही वैशाली के चेहरे पर थी.. जिस तेजी और चपलता से वैशाली घर का काम कर रही थी वो देखकर ही प्रतीत हो रहा था की बेटी ने अपने प्रेमी के संग मजे किए थे
वैशाली: "अरे मम्मी.. आप लोग आ गए? हो गए दर्शन? भीड़ तो नहीं थी ना?" उसने अपनी माँ को पटाना शुरू कर दिया
शीला ने वैशाली के कपड़ों को ध्यान से देखा.. सिलवटें देखकर उसे यकीन हो गया की वैशाली अभी अभी चुदी थी..
शीला: "हाँ बेटा.. आराम से हो गए दर्शन.. भीड़ बिल्कुल नहीं थी..!!"
वैशाली: "अच्छा.. मम्मी.. आज रात को हम डिनर करने होटल चलें?"
शीला: "नहीं बेटा.. मुझे बाहर का खाना राज नहीं आता.. ऐसा करों..तू और कविता चले जाना"
कविता: "हाँ हाँ.. जरूर चलेंगे.. वैसे भी मेरी सास का आज उपवास है और ससुरजी दोस्तों के साथ बाहर गए है.. मैं और पीयूष अकेले ही घर पर खाना खाने वाले थे.. हम तीनों बाहर खाने चलेंगे"
वैशाली ये सुनकर खुश हो गई
कविता अपने घर चली गई और शीला पौधों को पानी देने लगी.. हिम्मत के कामुक स्पर्श और दमदार धक्कों को याद करते हुए वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगी.. कितना मस्त रगड़ा आज हिम्मत ने.. आह्ह.. मज़ा ही आ गया.. जिस तरह उसने ड्रेस में हाथ डाल कर स्तनों को दबाया था.. इशशश.. वैशाली को अपनी दोनों टांगों के बीच गीलापन महसूस होने लगा.. उसने खिड़की से बाहर देखा.. शीला कंपाउंड में बने बगीचे में पानी छिड़क रही थी
वैशाली ने अपनी सलवार के अंदर हाथ डाला और अपनी चुत को सहलाने लगी.. उंगलियों का स्पर्श मिलते ही उसके चुत के होंठ खुल गए.. टीवी पर मस्त सेक्सी गाना चल रहा था.. माहोल सा बन गया.. दो मिनट में ही अपनी क्लिटोरिस को रगड़कर स्खलित हो गई वैशाली.. !! चुत को उंगली करने में व्यस्त वैशाली को ये नहीं पता था की शीला तिरछी नज़रों से उसे देख रही थी.. वैशाली के हाथ और कंधों की हलचल से ये स्पष्ट दिख रहा था की वो अपनी चुत से खेल रही थी.. चेहरे के हावभाव से प्रतीत भी हो गया की वो झड़ रही थी
वैशाली: "अरे मम्मी.. आप लोग आ गए? हो गए दर्शन? भीड़ तो नहीं थी ना?" उसने अपनी माँ को पटाना शुरू कर दिया
शीला ने वैशाली के कपड़ों को ध्यान से देखा.. सिलवटें देखकर उसे यकीन हो गया की वैशाली अभी अभी चुदी थी..
शीला: "हाँ बेटा.. आराम से हो गए दर्शन.. भीड़ बिल्कुल नहीं थी..!!"
वैशाली: "अच्छा.. मम्मी.. आज रात को हम डिनर करने होटल चलें?"
शीला: "नहीं बेटा.. मुझे बाहर का खाना राज नहीं आता.. ऐसा करों..तू और कविता चले जाना"
कविता: "हाँ हाँ.. जरूर चलेंगे.. वैसे भी मेरी सास का आज उपवास है और ससुरजी दोस्तों के साथ बाहर गए है.. मैं और पीयूष अकेले ही घर पर खाना खाने वाले थे.. हम तीनों बाहर खाने चलेंगे"
वैशाली ये सुनकर खुश हो गई
कविता अपने घर चली गई और शीला पौधों को पानी देने लगी.. हिम्मत के कामुक स्पर्श और दमदार धक्कों को याद करते हुए वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देखने लगी.. कितना मस्त रगड़ा आज हिम्मत ने.. आह्ह.. मज़ा ही आ गया.. जिस तरह उसने ड्रेस में हाथ डाल कर स्तनों को दबाया था.. इशशश.. वैशाली को अपनी दोनों टांगों के बीच गीलापन महसूस होने लगा.. उसने खिड़की से बाहर देखा.. शीला कंपाउंड में बने बगीचे में पानी छिड़क रही थी
वैशाली ने अपनी सलवार के अंदर हाथ डाला और अपनी चुत को सहलाने लगी.. उंगलियों का स्पर्श मिलते ही उसके चुत के होंठ खुल गए.. टीवी पर मस्त सेक्सी गाना चल रहा था.. माहोल सा बन गया.. दो मिनट में ही अपनी क्लिटोरिस को रगड़कर स्खलित हो गई वैशाली.. !! चुत को उंगली करने में व्यस्त वैशाली को ये नहीं पता था की शीला तिरछी नज़रों से उसे देख रही थी.. वैशाली के हाथ और कंधों की हलचल से ये स्पष्ट दिख रहा था की वो अपनी चुत से खेल रही थी.. चेहरे के हावभाव से प्रतीत भी हो गया की वो झड़ रही थी
शीला मन में सोच रही थी की बेटी मेरे ऊपर ही गई है.. इसकी शरीर की भूख भी बड़ी तेज है.. !!
शाम को कविता और पीयूष तैयार होकर डिनर के लिए वैशाली को बुलाने आए.. पीयूष को देखकर वैशाली ने हाई कहा.. कविता टेढ़ी आँख से उन दोनों का निरीक्षण कर रही थी की कहीं पुरानी यादें तो ताज़ा नहीं करने लगे ये दोनों!! पर उसे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया
दोनों सीटी बस में बैठे.. बस में थोड़ी भीड़ थी.. इसलिए कविता और वैशाली को बैठाकर पीयूष खड़ा रहा.. वैशाली ने पीली टीशर्ट और काला टाइट पेंट पहना था.. खड़े हुए पीयूष को वैशाली के टीशर्ट के अंदर का नजारा साफ दीख रहा था.. वो बार बार उन उछल रहे स्तनों को ताड़ता रहा
पीयूष की नजर के बारे में वैशाली जान चुकी थी.. फिर भी अनदेखा कर वो खिड़की के बाहर ट्राफिक को देखने लगी.. स्टैन्ड आते ही तीनों नीचे उतरे.. उतरते वक्त वैशाली का कंधा पीयूष के कंधे से टकराया.. वह थोड़ी सी असंतुलित हुई.. और बस में चढ़ रहे एक पेसेन्जर के साथ टकरा गई.. उस आदमी की छाती से टकराकर वैशाली के दोनों स्तन चपटे हो गए.. देखकर पीयूष को होश उड़ गए
पीयूष सोच रहा था.. भेनचोद.. जब मैंने इसे चोदा था तब इतने बड़े बड़े होते तो कितना मज़ा आता यार.. !! क्या वैशाली को वो सब पुरानी बातें याद होगी? या भूल चुकी होगी? साली माल लग रही है एकदम.. बबले कितने बड़े बड़े हो गए है.. आखिर अपनी माँ पर ही गई है ये.. पीयूष अब उत्तेजित हो रहा था
पीयूष के इन विचारों से बेखबर कविता और वैशाली एक दूसरे से मज़ाक मस्ती करते हुए आगे चल रहे थे.. पीयूष अपनी पत्नी और वैशाली के थिरकते चूतड़ों को देखते हुए पीछे चला आ रहा था.. अचानक ठोकर लगने से पीयूष का बेलेन्स चला गया.. कविता ने पीछे मुड़कर देखा
कविता: "ध्यान कहाँ है तेरा .. !! जरा देखकर चला कर.. "
पीयूष: "अरे हो जाता है कभी कभी यार.. तू तो ऐसे बात कर रही है जैसे तुझे कभी ठोकर लगी ही नहीं कभी"
कविता: "मुझे भी लगती है.. पर काम करते वक्त.. तेरी तरह नहीं.. जो ना देखने वाली चीजों को ताकने में ठोकर खाते हो!!"
पति पत्नी के इस मीठे झगड़े को देखकर वैशाली हंसने लगी.. वो सोच रही थी.. पीयूष मेरे बॉल को तांक रहा है ये बात कविता ने भी नोटिस तो की होगी.. इसीलिए तो कहीं ताने नहीं मार रही.. !! पक्का ऐसा ही है.. मेरी मटकती गांड को तांकने के चक्कर में उसे ठोकर लग गई.. हा हा हा हा
वो लोग होटल सुरभि के दरवाजे पर पहुंचे तभी पीयूष के मोबाइल पर शीला का फोन आया
पीयूष: "हैलो.. हाँ भाभी.. बताइए!!"
शीला: "पीयूष, तुम तीनों को लौटने में कितना वक्त लगेगा ??
पीयूष: "एक मिनट रुकिए भाभी.. " फिर उसने कविता से पूछा "खाना खाने के बाद कहीं और जाने का प्लान तो नहीं है ना?"
कविता: "खाना खाकर थोड़ी देर गार्डन में बैठेंगे आराम से.. फिर देर से घर जाएंगे.. "
पीयूष ने फोन पर शीला को बताया "भाभी, अभी ८ बज रहे है.. हमे आते आते ११ बज जाएंगे"
शीला: "ठीक है, कोई बात नहीं.. आराम से खाना खाकर आना तुम सब" शीला ने फोन रख दिया
पीयूष, कविता और वैशाली तीनों होटल के टेबल पर बैठे.. वैशाली की पीली टीशर्ट के अंदर ब्रा में कैद बड़े बड़े स्तन टेबल की धार से दबते हुए देख पीयूष का लंड उछलने लगा था.. यार.. वैशाली को पता भी नहीं होगा की मैं उसके बारे में अभी क्या सोच रहा हूँ.. एक बार ये बड़े बड़े पपीते दबाने को मिल जाए तो मज़ा ही आ जाएँ.. कितने बड़े है यार.. इसकी निप्पलें कितनी रसीली होगी.. लंबी लंबी.. गुलाबी गुलाबी
पीयूष का मन खाने में कम और वैशाली के बबलों में ज्यादा था.. ये परखने में वैशाली को देर नहीं लगी। हर स्त्री की छठी इंद्रिय उन्हे मर्द की नज़रों के प्रति सजाग रखती है.. स्वयं की रक्षा के लिए कुदरत की दी हुई शक्ति है ये.. वैशाली को बस कविता की मौजूदगी खटक रही थी अभी.. पीयूष के साथ तो पहले से ही अच्छी पटती थी उसकी..
कविता मन ही मन सोच रही थी.. ऐसे रोमेन्टीक माहोल में अगर पिंटू साथ होता तो कितना मज़ा आता.. !! काश जीवन में एक बार .. अपने प्रेमी पिंटू के हाथ में हाथ डालकर ऐसी ही किसी होटल में खाना खाने जाने का मौका मिल जाएँ.. बस मज़ा ही आ जाएँ.. ख्वाब देखने तक तो ठीक था पर हकीकत में इस बात को मुमकिन बनाना सिर्फ शीला भाभी के बस की बात थी.. उनके अलावा ये काम और कोई नहीं कर सकता
वैशाली आराम से खाना खा रही थी.. अचानक उसे अपने पैर पर किसी चीज का स्पर्श महसूस हुआ.. उसने नीचे देखा तो पीयूष का पैर उसके पैर से टकराया था.. उसने तुरंत अपना पैर पीछे खींच लिया.. पीयूष ने जान बूझकर पैर लगाया था ? वैशाली ही नहीं.. दुनिया के सारी महिलायें ये जानती है की टेबल के नीचे पुरुष का पैर गलती से कभी नहीं टकराता..
वैशाली और पीयूष की नजर एक होते हुए वैशाली ने एक शरारत भारी मुस्कान दी और नजर फेर ली.. दोनों बचपन से लेकर जवानी तक साथ खेलकर बड़े हुए थे.. पर जैसे ही वैशाली की छातियों पर स्तन उभरने लगे.. शीला सावधान हो गई.. वो पीयूष और वैशाली को कभी अकेले में खेलने नहीं देती थी.. फिर भी जो होना था वो तो होकर ही रहा.. वैशाली की पुरानी यादों का सफर.. दोनों के बीच हुए सेक्स पर आकर रुक गया.. क्या पीयूष भी उसी के बारे में सोच रहा होगा !! याद होगा उसे? पक्का याद होगा.. पहला सेक्स तो हर किसी को याद होता है.. उसकी छोटी सी लुल्ली मेरे हाथ में देकर कैसे आगे पीछे करवाता था वो !! वैशाली के पैर के साथ फिर कुछ टकराया.. इस बार उसने नीचे नहीं देखा.. उसे पता था की वो पीयूष का ही पैर था.. वैशाली के पूरे जिस्म में सनसनी सी फैल गई.. खाने का निवाला गले में ही अटक गया... खाँसते हुए उसने पानी का एक घूंट पीया..
दूसरी तरफ पीयूष वैशाली के स्तन देखकर बावरा स हो गया था.. इस बार वैशाली ने अपना पैर नहीं हटाया.. पीयूष के मन में लड्डू फूटने लगे.. उसने वैशाली के पैर के अंगूठे पर अपना अंगूठा दबा दिया.. वैशाली को दर्द हो रहा था पर वो कुछ नहीं बोली.. नहीं तो कविता को भनक लग जाती..
इन सारी बातों से बेखबर कविता ने अपना खाना खतम किया और बाउल में हाथ धोकर खड़ी हो गई और बोली "मज़ा आ गया आज तो.. अच्छा हुआ वैशाली तूने डिनर का आइडीआ दिया.. घर का खाना खा खा कर मैं बोर हो छुकी थी.. क्यों पीयूष.. सही कहा ना मैंने?"
अचानक उछले इस सवाल से पीयूष हड़बड़ा सा गया.. जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो.. उसने हँसते हुए अपनी मुंडी हिलाई..
कविता: "मैं बाथरूम जाकर आती है.. आप दोनों आराम से खाओ "
कविता टेबल से काफी दूर चली गई और उसने पिंटू को फोन लगाया..
इस तरफ वैशाली और पीयूष अब अकेले रह गए.. पत्नी की गैरमौजूदगी में पीयूष की हिम्मत खुल गई.. ये भँवरा अब वैशाली नाम के फुल पर मंडराने लगा था..
पीयूष: "याद है वैशाली.. जब हम छोटे थे तब साथ में कितनी मस्ती किया करते थे??"
वैशाली: "हाँ .. और मैं तुम्हें बहोत मारती थी.. याद है एक बार मैंने तुम्हें क्रिकेट के बेट से मारा था और तुम्हारा हाथ लाल लाल हो गया था.. !!"
पीयूष: "हम्ममम.. तुझे और कुछ भी याद है की नहीं?"
वैशाली शरमा गई "हट्ट साले बदमाश.. "
पीयूष: "बता न यार.. जब से तुझे देखा है मुझे कुछ कुछ हो रहा है.. मैं जानना चाहता हूँ की क्या तुझे भी ऐसा कुछ हो रहा है या नहीं??"
वैशाली: "पीयूष.. वो सब हमने जवानी की नासमझ में किया था.. तब हम नादान थे पर अब हम बड़े हो चुके है.. ये बात तुझे समझनी चाहिए"
पीयूष नाराज होकर बोला "ठीक है, ठीक है यार.. लेक्चर मत दे" पीयूष चुप हो गया
वैशाली: "अरे पीयूष. ये क्या लड़कियों की तरह रूठ गया तू?? हाँ सब कुछ याद है.. पर अभी उस बात को क्यों याद किया?"
पीयूष: "वैशाली.. अगर हम फिर से पहले जैसे ही नासमझ और नादान बन जाएँ तो कैसा रहेगा??"
वैशाली स्तब्ध हो गई.. दिमाग चकरा गया उसका.. पर पीयूष का इस तरह प्रपोज करने का अंदाज उसे बेहद पसंद आया..
वैशाली: "तू भूल रहा है की मैं अब किसी की पत्नी हूँ.. मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती"
पीयूष: "तो मैं भी तुझे कहाँ कुछ गलत करने के लिए बोल रहा हूँ?"
वैशाली को समझ में नहीं आया "तो फिर क्या करना चाहता है तू?"
पीयूष: "मुझे तो बस एक बार.. सिर्फ एक बार.. " बोलते बोलते पीयूष अटक गया पर जिस तरह उसकी ललचाई नजर उसके स्तनों पर चिपकी थी ये देखकर वैशाली समझ गई
वैशाली: "तू खुल कर बता तो कुछ पता चले मुझे"
पर पीयूष चुप रहा
वैशाली: "कविता बाहर हमारा इंतज़ार कर रही होगी.. हमें चलना चाहिए... वरना उसे शक होगा.. बाकी बातें फिर कभी करेंगे.. " वो खड़ी हो गई
पीयूष की नाव किनारा आने से पहले ही डूब गई.. वैशाली के मदमस्त स्तनों को एक बार दबाने की.. छुने की और मौका मिल तो चूसने की इच्छा थी पीयूष की.. अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था उसे.. जब वैशाली ने पूछा तब उसे बता देना चाहिए था.. पर अब पछताए होत क्या.. जब चिड़िया चुद गई खेत में..
दोनों होटल के दरवाजे पर पहुंचे तब उन्हे आते हुए देख कविता ने पिंटू को "बाय" कह कर फोन काट दिया..