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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

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Bhaut he jabardast updates….
 

pussylover1

Milf lover.
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इस तरफ.. शीला अभी भी सोच में डूबी हुई थी.. भरी दोपहर में.. घर पर आई हुई छोटी बहन और उसकी सहेली को छोड़कर.. कविता कहाँ गई? शीला की ये आदत थी.. एक बार उसे किसी बात पर शक हो जाए फिर वह बात की जड़ तक पहुंचे बीना उसे छोड़ती नहीं थी.. वह अनुमौसी के घर पहुँच गई.. वहाँ उसे जो जानने मिला वो बिल्कुल झूठ था ये समझ गई शीला.. अनुमौसी ने कहा की कविता दर्जी की दुकान पर अपने ड्रेस का नाप देने गई थी..

शीला वापिस अपने घर लौट आई.. सोफ़े पर बैठे बैठे वह अपना दिमाग दौड़ा रही थी.. "ड्रेस का नाप देने इतनी दोपहर में कौन जाता है भला? और वो भी बिना मौसम या फाल्गुनी को साथ लिए हुए ? कविता जरूर कुछ खिचड़ी पका रही थी.. !! पर उसने मुझे भी नहीं बताया.. वैसे तो वह अपनी हर बात मुझे बताती है.. कहीं उसे मेरे और पिंटू के बारे में तो पता नहीं चल गया !! पर वैसे उसके पति पीयूष ने भी उसकी हाज़री में मेरे स्तन दबाए थे.. तब तो उसे कोई तकलीफ नहीं हुई थी.. तो भला ओर क्या बात हो सकती है !!"

शीला से ये सारी असमंजस बर्दाश्त नहीं हुई.. उसने सीधा कविता को फोन लगाया.. पर कविता ने फोन नहीं उठाया.. उसे शीला भाभी पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. भाभी ने पिंटू और मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मेरा प्रेमी के साथ फोन पर गुटरगु करने का क्या मतलब हुआ? अगर कहीं मैं उनके पति मदन के साथ ऐसे फोन पर बातें करूंगी तो क्या वो बर्दाश्त करेगी? एक तरफ वैशाली पीयूष के पीछे पड़ी है.. दूसरी तरफ शीला भाभी मेरे पिंटू के पीछे.. मैं क्या करू? कविता का गुस्सा सातवे आसमान पर था.. उसके दिल को जबरदस्त ठेस पहुंची थी..

रेणुका के घर पहुंचकर कविता चुपचाप बैठी रही.. पानी का गिलास भी उसने बिना पिए छोड़ दिया..

रेणुका: "क्या बात है कविता? बिना झिझक बता मुझे.. अब तो हमारे बीच रिश्ता भी बन गया है.. आप दोनों हमारी कंपनी के परिवार का हिस्सा हो.. और हम तो सहेलियों जैसी है.. बिना किसी संकोच के सारी बात बता.. मैं किसी से इस बारे में बात नहीं करूंगी.. तू चिंता मत कर"

रेणुका की बात सुनकर कविता को बहोत अच्छा महसूस हुआ.. उसने सारी बात उसे बताई.. पीयूष और वैशाली के बारे में.. शीला भाभी और पिंटू के बारे में भी.. रेणुका को पिंटू और कविता के संबंधों के बारे में जानकार ताज्जुब हुआ.. काफी सालों से पिंटू राजेश का सेक्रेटरी था.. पर आज तक उसने पिंटू से कभी बात नहीं की थी..

रेणुका: "देख कविता.. मेरा यह मानना है की किसी के संबंधों में दरार आई हो तो आमने सामने बैठ कर बात को खतम करना चाहिए.. वरना बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती.. शीला को मैं अच्छे से जानती हूँ.. वो ऐसा कुछ नहीं कर सकती.. भरोसा रख.. और देख.. तू भी पढ़ी लिखी है.. तुझे इतना संकुचित मन नहीं रखना चाहिए.. विचारों को थोड़ा सा खुला रख.. पिंटू ने एक दो बार बात कर ली.. इसमे कौनसा पहाड़ टूट पड़ा!! और अगर वो तुझे सच में चाहता है तो तेरे पास ही आएगा.. अपने प्रेमी को संभालने अपने ही हाथ में होता है, समझी !! मर्द की अपनी जरूरते होती है.. पूरा दिन घर के काम से थककर कभी कभी हम सीधे सो जाते है.. और यह भूल जाते है की हमारे पति की भी जरूरतें होती है.. इस बारे में हम सोचते ही नहीं.. "

कविता: "ऐसा नहीं है रेणुका जी, मैं पीयूष को सब कुछ देती हूँ जो वो चाहता है.. तो फिर उसे क्या जरूरत पड़ी वैशाली की ओर देखने की?" अपने दिल का दर्द सुनाया उसने

रेणुका: "ऐसा भी तो हो सकता है की जो तू दे रही है वो पीयूष के लिए काफी न हो.. और देख.. मर्दों की तो आदत होती है यहाँ वहाँ मुंह मारने की.. मेरे ही पति की बात ले ले.. बिजनेस टूर पर वह विदेश जाते है.. तब वो भी तो मुंह मारते होंगे.. मैं खुद ही पेकिंग करते वक्त उसकी बेग में कोंडोम का पैकेट रख देती हूँ.. जब मर्द दस पंद्रह दिन के लिए बाहर जाए तब वो अपनी रात की जरूरतों के लिए कुछ कर ले तो उसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है !! ऐसी बातों को मैं अनदेखा कर ही देती हूँ.. तभी संसार आराम से चलता है.. और विश्वास ही सभी संबंधों का स्तम्भ होता है.. जब विश्वास ही डगमगा जाए तब पूरी इमारत ही ढह जाती है.. इसलिए तू ज्यादा मत सोच और पिंटू को मिलकर सारी बातें खुलकर बता.. जो भी बातों पर तुझे शक हो.. या फिर नापसंद हो उसके बारे में बात कर.. तेरे पति को भी तू ओरल-सेक्स का पूरा मज़ा दे.. नहीं तो वो कहीं बाहर ढूंढ लेगा तो गलती तेरी ही होगी.. मेरी बात पर गौर कर और सोचकर कदम उठाना.. बाकी तो तू काफी समझदार है.. अपने पति से ईमानदारी की उम्मीद रख रही है पर तू भी कहाँ दूध की धुली है? क्या तूने पिंटू के साथ अपने संबंधों के बारे में कभी पीयूष को बताया?? नहीं ना !! जीवन में कभी न कभी सभी लोग थोड़ी बहोत बेवफाई तो कर ही लेते है.. और जो बातें प्रतिबंधित होती है उन्ही में सबसे ज्यादा मज़ा भी आता है.. बाकी तो.. ये जीवन एक ही बार मिलता है.. ये याद रखकर.. जहां और जब भी मजे करने का मौका मिले तब चूकना नहीं चाहिए.. "

थोड़ी देर पहले ही पीयूष ने ओरल-सेक्स के बारे में असंतुष्टता जाहीर की थी.. बातों बातों में उसके बारे में भी उसने कविता को बोल ही दिया

कविता ने बड़े ध्यान से रेणुका की बात सुनी.. और अपनी गलती का एहसास होने लगा.. पीयूष जब भी उससे मुंह में लेने के लिए कहता तब वह बड़े ही घिन से वो काम करती.. और वो भी पीयूष की काफी मिन्नतों के बाद.. हो सकता है पीयूष वैशाली की ओर इसलिए भी आकर्षित हुआ हो.. अगर यही बात थी तो फिर आज से वो पीयूष को ये सुख भी पूरे मन से देगी.. पीयूष को और पिंटू दोनों को.. अब पिंटू से भी मीटिंग करनी होगी.. पर कहाँ करू? शीला भाभी के घर एक बार प्रोग्राम बनाया उसमें भाभी ने पिंटू को ही हड़प लिया.. रेणुका जी से ही इस बारे में पूछ कर देखूँ?? पर फिर कहीं ऐसा ना हो की रेणुका ही पिंटू को पटाने की फिराक में लग जाए.. और पिंटू तो उनकी कंपनी में नौकरी भी करता है.. कविता की चिंता ओर बढ़ गई

कविता सोच में डूबी हुई थी तब तक रेणुका ज्यूस को दो ग्लास लेकर आई.. एक ग्लास कविता के हाथ में देकर वह उसके बगल में बैठ गई..

रेणुका: "मेरे हिसाब से तो तुम्हें जल्दी से जल्दी पिंटू से मिलकर सारी बातें क्लीयर कर लेनी चाहिए.. अब तेरे घर मिलना तो मुमकिन नहीं होगा.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो आप दोनों मेरे घर पर मिल सकते है.. वैसे भी राजेश एक बार ऑफिस के लिए निकल जाए फिर रात से पहले वापिस नहीं आता..

पिंटू को फिरसे मिलने के कल्पना मात्र से कविता का चेहरा खिल उठा..

कविता: "रेणुकाजी, वैसे तो हम एकाध बार शीला भाभी के घर पर मिल चुके है.. पर वैशाली के आने के बाद वहाँ मिल पाना भी मुमकिन नहीं है अब.. आप अगर आपके घर हमे मिलने देने के लिए राजी हो तो बड़ी ही मेहरबानी होगी.. हमारा मिलना अब बहुत जरूरी है"

रेणुका: "तो उसे कल ही बुला ले.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. मैं तो सामने से कह रही हूँ तुझे"

कविता: "शुक्रिया आपका.. पर मैं आपसे एक और बात करना चाहती हूँ.. असल में, मैं यहीं बात करने यहाँ आई थी"

रेणुका: "हाँ बता ना.. क्या बात है ?"

कविता: "जी बात दरअसल ऐसी है की मेरी छोटी बहन मौसम और उसकी फ्रेंड वेकेशन में मेरे घर आई हुई है.. उन दोनों को लेकर, मैं और पीयूष कहीं बाहर जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. अब वैशाली भी साथ आने वाली है.. मैं वैशाली को ले जाने के लिए मना करती हूँ तो पीयूष नाराज हो जाएगा क्योंकि उसे वैशाली पसंद है.. वो जिद करके भी वैशाली को साथ लेगा ही लेगा.. मैं अगर खुलकर मना करूंगी तो शीला भाभी बुरा मान जाएगी.. अब शीला भाभी हमारे साथ आने से मना कर रही है.. मुझे डर है, कहीं मेरी गैर-मौजूदगी में वो पिंटू के घर बुला लेगी.. यहाँ पिंटू शीला भाभी के साथ और वहाँ वैशाली पीयूष के साथ .. मेरी हालत आप समझ सकती हो!!"

रेणुका: "हम्म.. समस्या तो गंभीर है.. पर इसमे मैं क्या कर सकती हूँ?"

कविता: "मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है.. इसलिए आपकी मदद मांगने आई हूँ.. रेणुकाजी, आप मुझे कुछ ऐसा तरीका या तरकीब बताइए जिससे मैं पीयूष और पिंटू दोनों को उन माँ-बेटी से बच सकूँ"

कविता के घबराहट के मारे ऊपर नीचे होते हुए कच्चे अमरूद जैसे स्तनों को रेणुका देखती ही रही.. और अपनी जीभ न चाहते हुए भी होंठों पर फेर दी.. मन में आए उस विचार को रेणुका ने दिमाग से निकाल दिया.. फिलहाल ऐसे विचारों के लिए योग्य वक्त नहीं था

रेणुका: "सोचना पड़ेगा.. रास्ता ढूँढने में और सोचने में थोड़ा वक्त तो लगेगा"

कविता: "वक्त ही तो नहीं है मेरे पास.. आज सोमवार है.. गुरुवार और शुक्रवार को छुट्टी लेकर चार दिन घूमने जाने का प्लान है.. कोई तरीका सोचे भी तो उसके अमल के लिए समय तो चाहिए ना"

रेणुका: "तू एक काम कर.. बीमारी का बहाना बनाकर पूरी ट्रिप ही केन्सल कर दे"

कविता: "नहीं नहीं रेणुकाजी, मेरी बहन और उसकी सहेली का बड़ा मन है घूमने जाने का.. उनका दिल टूट जाएगा"

रेणुका: "देख कविता.. तू पिंटू और पीयूष के बारे में डरना छोड़ दे.. अगर वह दोनों सच में तेरे है तो कहीं नहीं जाएंगे.. और जाएंगे भी तो वापिस लौट आएंगे.. अगर नहीं आते तो समझ लेना की वो कभी तेरे थे ही नहीं.. प्यार एक बंधन है.. मन से स्वीकार किया हुआ बंधन.. कोई कैद नहीं.. दूसरी बात.. तू पिंटू के साथ जो कुछ भी करती है.. उस वक्त तुझे पीयूष की याद नहीं आती या कोई अपराधभाव महसूस नहीं होता?? तू पीयूष से ईमानदारी की अपेक्षा तो रखती है पर खुद उस पर अमल तो कर नहीं रही !!!"

यह सुनकर कविता का मुंह इतना सा हो गया..

कविता: "सच कहूँ रेणुकाजी.. पीयूष का खयाल तो मन में बहोत आता है.. पर जब भी मैं पिंटू के साथ होती हूँ तब मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है.. विवश हो जाती हूँ मैं.. अच्छे-बुरे का फरक भी समझ नहीं आता.. और उसके एक बार बुलाने पर दौडी चली जाती हूँ.. पर पिंटू को मिलने के बाद जब घर लौटकर पीयूष का सामना करती हूँ तब जरूर गिल्टी फ़ील होता है.. बुरा लगता है.. और सोचती हूँ की फिर कभी पिंटू से मिलने नहीं जाऊँगी.. पीयूष को धोखा नहीं दूँगी.. पर जैसे ही हफ्ता-दस दिन का समय बीतता है.. दिल फिर से फुदकने लगता है.. ऐसा लगने लगता है की मेरे पास सिर्फ मेरा शरीर है.. आत्मा तो पिंटू के कब्जे में है.. उसके बिना मुझे मेरा जीवन ही अधूरा सा लगता है.. आपको पता नहीं है.. ये प्यार मुझे कितना रुलाता है.. क्या आपने कभी किसी से ऐसा प्यार किया है?"

बड़ा पर्सनल सवाल पूछ लिया कविता ने और फिर उसके मन में आया की उसे ये सवाल पूछना नहीं चाहिए था..

रेणुका: "नहीं.. मैंने कभी किसी से इस तरह प्रेम नहीं किया.. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.. ये तो पिछले एक साल से अकेलेपन से जुज़ रही थी.. सिर्फ जिस्म की जरूरत नहीं है.. राजेश और मैं काफी बातों पर सहमत नहीं है.. काफी बहस होती रहती है हम दोनों के बीच.. मुझे संगीत, ग़ज़ल और डांस का शोख है तो राजेश पूरा औरंगजेब है.. मुझे अपने साथी के साथ आराम से बैठकर प्यार भरी जज्बाती बातें करना बहोत पसंद है.. लेकिन राजेश खाना खाकर अपना लेपटॉप लेकर बैठ जाता है.. उसकी ऐसी अवहेलना को झेलकर मैं बेडरूम में जाकर सो जाती हूँ.. तो वो साढ़े दस बजे मुझे जगाने आ जाता है.. और कहता है की 'तुम औरतों को सोने के अलावा ओर कोई काम ही नहीं है.. मेरे साथ सेक्स करने का तुझे मन ही नहीं करता '

रेणुका लगातार बोलकर अपने दिल की भड़ास निकाल रही थी

रेणुका: "ये मर्द लोग भी हमारा दर्द न जाने कब समझेंगे? हमें क्या चाहिए या फिर क्या पसंद है.. किस बात को लेकर तड़प रहे है.. उन्हे तो बस बिस्तर पर पड़ते ही कपड़े उतारने में दिलचस्पी होती है.. पिछले कुछ वक्त से राजेश लगभग सेक्स-मेनीयाक बन गया है.. मेरे साथ जबरदस्ती भी करने लगा है"

कविता: "जबरदस्ती??? क्या कोई पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती कर सकता है? जरूरत ही क्या है? सेक्स करने के लिए तो पति पत्नी को समाज ने ही तो अनुमति दी हुई है.. दोनों जो चाहे वो कर सकते है इसमे जबरदस्ती की बात कहाँ से आई?"

रेणुका: "मेरी बात को अच्छे से समझ.. हमारा मुड़ रोज एक जैसा तो होता नहीं है.. कभी कभी हम शरीर से.. कभी मन से.. कभी सामाजिक जिम्मेदारियों से थके हुए होते है.. कभी किसी बात से डिस्टर्ब भी हो सकते है.. तब सेक्स का मन नहीं करता.. पर अगर मैं मना करू तो राजेश मेरे ऊपर टूट पड़ता है.. मेरे जिस्म पर काटता है.. अरे कभी कभी तो पिरियड्स के दिनों में भी जिद करता है.. और में मना करू तो कहता है की मुंह में लेकर डिस्चार्ज करवा दे.. ये बिजनेस टूर पर विदेशों में घूम घूम कर ज्यादा जिद्दी हो गया है.. वहाँ की फिरंगी वेश्याओं को तो पैसे मिलते है ये सब करने के.. पर राजेश वहाँ से ये सब उल्टा सीधा सीखकर आते है और मुझपर जबरदस्ती करते है.. " रेणुका जज्बाती हो गई

उसका दर्द समझ सकती थी कविता.. रेणुका के दिल में एक अजीब सी खलिश थी.. जो प्यार और दुलार चाहती थी

रेणुका ने बात आगे चलाई "अब मैंने भी बहस करना छोड़ ही दिया है.. वो जैसे चाहते है वैसा मैं करती हूँ.. पर ऐसी ज़िंदगी से मैं ऊब चुकी हूँ.. इसलिए मुझे किसी ऐसे साथी की तलाश है जो मुझे समझ सके.. तू किस्मत वाली है.. दिल का दुखड़ा सुनाने के लिए तेरे पास पिंटू जो है.. जो है तेरे पास उससे खुश रहना सीख और उसे संभाल कर रख.. मैं तेरी और पिंटू की मीटिंग का बंदोबस्त करती हूँ.. अब खुश !!"

कविता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई.. और पूरा कमरा उस मुस्कान से झगमगा उठा और एक ही पल में वह फिर से उदास हो गई

कविता: "मतलब मैं घूमने जाऊ और वैशाली पीयूष को लाइन मारे यह बर्दाश्त करती रहू.. ?? "

रेणुका: "नहीं.. उसके लिए मैं एक मास्टर प्लान बना रही हूँ.. तू चिंता मत कर.. जिन चार दिन की तू बात कर रही है.. उन चार दिनों में, मैं खुद ही अपनी कंपनी की टूर का आयोजन करूंगी.. हम सब साथ ही जाएंगे.. पिंटू, पीयूष और मैं.. हम सब साथ में ही होंगे.. अगर पीयूष और वैशाली कुछ उल्टा सीधा करे तो तू भी पिंटू के साथ शुरू हो जाना.. कम से कम दोनों तेरी नजर के सामने तो रहेंगे.. !! और शीला के बारे में डरना छोड़ दे.. तू मान रही है उतनी बुरी शीला नहीं है.. मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ.. तुझे पता है.. शीला का तो पहले से ही कहीं और चक्कर चल रहा है?"

कविता के मन के समाधान के लिए रेणुका ने एक ही पल में शीला का राज खोल दिया "वो तुम्हारे यहाँ दूध देने आता है उसका क्या नाम है?"

"रसिक.. " कविता ने जवाब दिया

"हाँ रसिक.. उसके साथ ही शीला का चक्कर चल रहा है.. अब एक औरत कितने चक्कर चलाएगी? इसलिए तू अपने पति और पिंटू की चिंता छोड़ दे.. अगर शीला उनसे बात करती है.. थोड़ा बहोत फ्लर्ट करती है.. तो उसमें हर्ज ही क्या है? इतना तो चलता है यार.. मॉडर्न ज़माना है.. थोड़ा अपनी सोच को खोलना सीख.. और शीला तेरे प्रेमी को छीन लेगी ये मैं नहीं मानती.. और मान ले अगर ऐसा कर भी लिया तो कितने दिन कर पाएगी? कुछ ही दिनों में उसका पति लौटने वाला है.. एक बार मदन के लौटने के बाद शीला को थोड़े ही ऐसे मौके मिलेंगे?"

रेणुका की बातों से कविता की हिम्मत बढ़ गई.. उसे विश्वास हो गया की पिंटू सुरक्षित था। शीला भाभी के पति कुछ ही दिनों में वापिस आने वाले थे उसके बाद तो भाभी कुछ कर ही नहीं पाएगी.. और वैसे भी भाभी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है.. अपने घर पर मेरे और पिंटू के मिलने का सेटिंग किया था.. उस दिन मूवी थीयेटर में भी पिंटू के साथ मजे करने का जुगाड़ सेट किया था.. मुझे उनका उपकार भूलकर उनपर शक नहीं करना चाहिए..

शीला के प्रति जो कड़वाहट कविता के मन में थी वो अब भांप बनकर गायब हो चुकी थी

कविता: "ठीक है रेणुकाजी, मैं अब चलती हूँ.. आपने ये कंपनी ट्रिप की बात करके मेरा मन हल्का कर दिया.. अब हम सब साथ में मजे करेंगे"

रेणुका: "साथ में कहाँ.. तू तो पिंटू के साथ मजे करेगी.. " कविता को चिढ़ाते हुए रेणुका ने कहा

दोनों हंस पड़े..


अब कविता वहाँ से निकल गई और फटाफट ऑटो पकड़कर घर पहुंची.. शीला ने उसे रिक्शा से उतरते हुए देखा पर कुछ पूछा नहीं.. पर उसकी पारखी नजर ने तुरंत भाप लिया.. कविता जरूर कुछ गुल खिलाने गई थी.. ज्यादा से ज्यादा पिंटू के साथ कहीं चुदवाने गई होगी.. और क्या !!! घर पर उसकी बहन है.. और मेरे घर पर वैशाली आई हुई है.. बेचारी और कर भी क्या सकती है.. !! शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई.. काम करते करते उसकी नजर केलेंडर पर पड़ी.. अभी और ८ दिन बचे थे मदन को लौटने में.. मदन की जुदाई में एक एक दिन भारी पड़ रहा था शीला को.. एक ही प्रकार के इस जीवन से अब ऊब चुकी थी शीला.. वैशाली कहीं बाहर गई हुई थी.. अपनी सहेली फोरम के साथ.. आज बड़े दिनों बाद शीला घर पर अकेली थी.. अकेलेपन में सेक्स के विचार दिमाग पर हावी हो जाते थे..
Nice ipdate
 

vakharia

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वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..

आधे घंटे के बाद रिक्शा से संजय उतरा.. उसे देखते ही शीला की धड़कनें तेज हो गई.. आज से पहले शीला ने कभी भी संजय को इतना ध्यान से नहीं देखा था.. पर आज देखना बेहद जरूरी था..

शीला: "आइए आइए.. कहाँ थे इतने दिन?" शीला ने फर्जी प्यार जताया

वैशाली पानी का ग्लास लेकर आई.. पानी पीते वक्त संजय और शीला की आँखें दो बार टकराई.. शीला संजय की आँखों के भाव को नापना चाहती थी.. एकटक देखती रही वो.. संजय के हावभाव देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था की आधे घंटे पहले वो ऐसा कांड करके गया हो.. शीला सोच में पड़ गई.. कुछ सोचकर वह बोली

"संजय कुमार.. आप मेरे साथ गली के नुक्कड़ तक चलोगे? मुझे दर्जी की दुकान से अपना ब्लाउस लेने जाना है"

संजय: "हाँ बिल्कुल.. क्यों नहीं.. !! वैसे भी मैं फ्री ही बैठा हुआ हूँ"

संजय की इस सौम्य भाषा को सुनकर वैशाली और शीला दोनों को काफी ताज्जुब हुआ.. ऐसा परिवर्तन संजय में आया कैसे? कहीं ये कोई नया नाटक तो नहीं? वैशाली को चिंता होने लगी।

जैसे ही शीला और संजय घर के बाहर निकले, वैशाली ने पीयूष को फोन किया.. और पीयूष के संग प्रेमभरी बातें कर ही रही थी तभी उसके घर पर कविता को आता देख उसने फोन काट दिया.. वैशाली को हड़बड़ाहट में फोन काटते हुए कविता ने देख लिया.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो तो बस थोड़ा सा दहीं मांगने आई थी.. लेकर चली गई

अब शीला ने संजय को अपनी गिरफ्त में लिया.. बिना किसी संदर्भ के ही उसने बात शुरू कर दी

शीला "गुनहगार कितना भी होशियार क्यों न हो.. वह घटनास्थल पर कोई न कोई सुराख जरूर छोड़ जाता है"

संजय चोंक गया.. लेकिन वो भी शातिर था

संजय: "मम्मी जी, किसी भी गुनहगार को ऐसा नहीं लगता की वो गुनाह कर रहा है.. किसी के पास कोई चीज नहीं होती और वो कहीं से ले लेता है तो कायदे के हिसाब से उसे चोरी कहते है और उस व्यक्ति गुनहगार घोषित कर दिया जाता है.. लेकिन उस व्यक्ति के नजरिए से देखें तो वो बस उसकी जरूरत थी.. ठीक कहा ना मैंने !!!"

शीला: "बात तो आपकी सही है दामदजी.. पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों की थाली में हाथ डालकर खा ले?"

संजय: "अरे मम्मी जी, जिसकी थाली में से खाए अगर उसको खिलाने में मज़ा आ रहा हो तो फिर क्या दिक्कत है?"

शीला: "मतलब? कहना क्या चाहते हो?"

संजय: "कुछ नहीं.. बस ऐसे ही.. मैं तो जमाने के बारे में बात कर रहा था.. डॉन्ट माइंड.. !!"

शीला: "हम्म.. संजय कुमार, आपसे एक बात पूछूँ तो बुरा तो नहीं मानोगे?"

संजय: "हाँ पूछिए"

शीला: "आज रात ८ से ९ के बीच आप कहाँ थे?"

संजय ने जवाब देने के बजाए जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट जलाई और हवा में धुआँ छोड़ दिया.. शीला को इस सिगरेट की गंध जानी पहचानी सी मालूम हुई..

संजय: "मैं बस यही था.. बाजार में.. क्यों क्या हुआ?"

शीला: "नहीं बस.. मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी.. " शीला ने बात को वहीं काट दिया.. उसने देखा की संजय तीरछी नज़रों से उसके ब्लाउस में छिपे स्तनों को देख रहा था

शीला मन ही मन सोचने लगी.. "थोड़ी देर पहले तो मसल चुका है.. फिर भी क्या देख रहा है?? एक नंबर का भड़वा है साला.. दामाद होकर अपनी सास को गंदी नज़रों से देखता है"

एक आश्चर्य की बात ये हुई की सिगरेट के धुएं की गंध से शीला को एक विचित्र सी अनुभूति होने लगी.. जो उसे अच्छी लग रही थी.. पता नहीं क्यों पर उसे सिगरेट की गंध बेहद उत्तेजित कर देती थी.. उसे अपना मर्द सिगरेट फूंकते हुए उसे चोदे ऐसा बहोत पसंद था.. वैसे मदन ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की थी.. लेकिन एक बार करने से खतम हो जाए वह इच्छा ही कैसी !! ये भूख है ही ऐसी.. जितना उसको संतुष्ट करो उतना ही ओर भड़कती है..

अपने आप पर कंट्रोल करते हुए शीला ने संजय को दुकान के बाहर खड़ा रखा और खुद अंदर जाकर अपना ब्लाउस लेकर आई.. शीला को ब्लाउस लेकर वापिस आता देख संजय ने चौक मार दिया

संजय: "अजीब है न मम्मी जी!! औरतों को एक दर्जी सेट हो गया फिर बार बार उसी के पास जाती है.. कहती है की उनका फिटिंग अच्छा है.. अरे भाई.. ब्लाउस थोड़ा सा लूस हो या टाइट.. क्या फरक पड़ता है!!! पर नहीं.. औरते दस दस बार ट्रायल लेती है.. वैशाली तो थोड़ा सा भी फिटिंग इधर उधर होने पर अपने दर्जी को झाड देती है.. "

स्तनों को संभालने वाले वस्त्र के बारे में अपने दामाद से चर्चा करना शीला को उचित नहीं लगा.. पर संजय के कहने का मतलब क्या था वो शीला समझ गई..

शीला: "ऐसा है दामदजी, एक बार किसी का फिटिंग सेट हो गया फिर वोही पसंद आता है.. बाकी दूसरों से करवाने में मज़ा ही नहीं आता.. " शीला ने भी चौके के सामने सिक्सर लगा दी

शीला को डबल मीनिंग बातें करते देख संजय जोश में आ गया

संजय: "मम्मी जी, मुझे फ्री माइंड वाले लोग बहोत पसंद है.. उनके साथ मेरी अच्छी जमती है.. ज्यादा सीधे और दकियानूसी लोगों को देखकर मुझे बड़ा गुस्सा आता है.. मैं तो वैशाली से कभी नहीं पूछता की कहाँ जा रही हो.. किससे बात कर रही हो.. वो अपनी मर्जी की मालिक है और मैं अपनी मर्जी का.. हम दोनों एक दूसरे की लाइफ में टांग नहीं अड़ाते"

शीला ध्यानपूर्वक सुनती रही.. मन में सोचती रही.. "तूने वैशाली को आजादी दी तो साथ में अपने माँ-बाप की जिम्मेदारी भी तो थोप दी.. पूरा दिन वो वैशाली के सर पर मधुमक्खी की तरह मंडराते रहते है.. तो वह बेचारी उस आजादी का क्या अचार डालेगी? तुम तो घर से निकलते ही आजाद पंछी बन जाते हो.. जो करना है बेझिझक कर सकते हो.. स्त्री को ऐसी पराधीनता भरी स्वतंत्रता देने का क्या अर्थ? हाथ काटकर फिर पतवार थमा देते हो तो वो बेचारी नाव कैसे चलाएगी?.." शीला को गुस्सा आ गया

दोनों चलते चलते शीला के घर की तरफ आ रहे थे.. रास्ते पर केनाल की छोटी सी दीवार पर बैठते हुए संजय ने कहा

संजय: "बहोत गर्मी लग रही है.. थोड़ी देर यहाँ खुली हवा में बैठते है"

बिना कुछ कहे संजय की बगल में बैठ गई शीला.. थोड़ी देर यूं ही बैठे रहने के बाद संजय ने कहा "मम्मी जी आइसक्रीम खाते है.. वैसे भी अभी खाना तैयार नहीं हुआ होगा.. घर जाकर क्या करेंगे?"

शीला: "हाँ चलिए.. खाते है आइसक्रीम" शीला समझ गई की संजय उसके साथ अकेले में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता है.. शीला भी इसलिए मान गई क्योंकि वह थोड़ा और वक्त जांच करना चाहती थी.. अभी तक वो ठीक से तय नहीं कर पाई थी की उसे पीछे से चोदकर भाग जाना वाला आदमी संजय ही था या कोई ओर??

"आप बैठिए.. मैं सामने की दुकान से आइसक्रीम लेकर आता हूँ" संजय आसक्रीम लेने गया पर मोबाइल वहाँ दीवार पर ही छोड़ गया.. शीला बैठी थी तभी मेसेज का टोन बजाय.. अपने आप को लाख रोकने के बावजूद शीला ने फोन उठाकर मेसेज पढ़ लिया.. वह मेसेज जिस नंबर से आया था वो चेतना के नाम से स्टोर किया था.. शीला ने नंबर चेक किया तो वह वाकई उसकी सहेली चेतना का ही था.. मेसेज पढ़कर शीला की आँखें फट गई

मेसेज में लिखा था..

"डिअर संजय.. तेरे साथ गेस्टहाउस में बिताया समय भूले नहीं भुलाता.. तेरे जैसा मर्द आज तक मेरे बिस्तर पर नहीं आया.. कल मैं अकेली हूँ.. तू शाम के पाँच बजे मेरे घर पर आ जाना.. खूब मजे करेंगे.. बाय"

माय गॉड.. चेतना को मैंने संजय की जानकारी हासिल करने का काम सौंपा था तो ये रंडी उसी के साथ चालू हो गई.. शीला ने मेसेज डिलीट कर दिया.. सामने से आइसक्रीम के दो कोन हाथ में लिए आते संजय को देखकर उसने मोबाइल रख दिया.. लेकिन मोबाइल की डिस्प्ले की लाइट ऑन देखकर संजय को लगा की किसी का फोन आया होगा.. शीला ने अपने चेहरे के हाव भाव बिल्कुल ऐसे ही रखे जैसे उसे कुछ पता ही नहीं था..

आइसक्रीम का कोन चाटती हुई औरत हमेशा आकर्षक लगती है.. शीला को कोन चूसते हुए संजय देखता रहा.. वह ऐसे चूस रही थी जैसे लंड चूस रही हो

संजय: "कैसा लगा मम्मी जी?"

शीला: "हम्म.. अच्छा है" शीला का दिमाग पहले से घुमा हुआ था ऊपर से चेतना का मेसेज पढ़कर और खराब हो गया.. दोनों पहली बार मिले और चुदाई भी कर ली?? कुछ घंटों पहले हुई घटना को याद करते शीला सोचने लगी.. हो सकता है की संजय ने चेतना के साथ भी जबरदस्ती की हो !! नहीं नहीं.. तो फिर चेतना ऐसा मेसेज क्यों करती?? जो भी हुआ था वह चेतना की मर्जी से ही हुआ था.. कल उस चेतना को रिमांड पर लेती हूँ.. कल पाँच बजे मिलने वाले है चेतना और संजय.. तभी मैं चेतना के घर पहुँच जाऊँगी.. तो सब पता चल जाएगा.. पर अब तक ये पता नहीं चला की बागीचे में उसे संजय ने ही चोदा था या किसी ओर ने??

घर आकर संजय ने चेक किया तो कॉल रजिस्टर में चेतना का नाम दिख रहा था पर इनबॉक्स में उसका कोई मेसेज क्यों नहीं दिख रहा था !!!!

शीला और संजय डाइनिंग टेबल पर बैठ गए और वैशाली उन्हे गरम गरम रोटियाँ परोसने लगी.. सासुमाँ के उरोजों को बीच दिख रही लकीर पर बार बार संजय की नजर पड़ जाती थी.. शीला इस नजर को काफी सालों से जानती थी.. वैसे जब से वह जवान हुई तब से उसे मर्दों की इस नजर की आदत सी हो चुकी थी.. अठारह की उम्मर में ही उसके स्तन संतरों से बड़े हो चुके थे.. भीड़ में.. बाजार में.. सब्जी मंडी में.. लोग जान बूझकर उससे टकरा जाते थे वह कोई संयोग नहीं था.. जैसे पतंगा शमा की ओर आकर्षित हो जाता है वैसे ही संजय की नजर बार बार शीला के ब्लाउस के आरपार देखती रहती.. शीला अभी भी असमंजस में थी.. अंधेरे में उसका गेम बजाने वाला वो कौन था??

अचानक शीला को महसूस हुआ की संजय का पैर उसके पैर को छु रहा है.. उसने हल्की नजर से देखा और यकीन हो गया की संजय का पैर ही था.. शीला का शक धीरे धीरे यकीन में बदलता जा रहा था..

संजय: "सब्जी बड़ी अच्छी बनी है.. है ना मम्मी जी?"

शीला: "हाँ.. मेरी वैशाली खाना तो बहोत बढ़िया बनाती है" सारा क्रेडिट उसने वैशाली को दे दिया

संजय: "मुझे भी एक बार आपकी चखनी है.. मतलब.. आप के हाथ की बनी सब्जी.. "

शीला के जिस्म से करंट पास हो गया.. "आपकी चखनी है कहने का क्या मतलब ??"

शीला: "संजय कुमार, वैशाली थोड़े दिनों के लिए अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाए तो आपको कोई हर्ज तो नहीं है ना ?? मायके आई है तो थोड़ा घूम फिर भी ले.. ससुराल जाकर वो बेचारी वापिस पिंजरे में बंद हो जाएगी"

संजय: "ऐसी बात भी नहीं है मम्मी जी, मैं उसे घूमने ले जाता हूँ.. पूछिए वैशाली से.. पर फिर भी अगर वो जाना चाहती है तो मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है"

शीला और संजय की बातों से अनजान वैशाली.. किचन में पीयूष और हिम्मत को याद कर रही थी.. संजय के लिए उसके मन में इतनी नफरत बन गई थी की वह उसका चेहरा भी देखना नहीं चाहती थी.. इसका ये मतलब भी नहीं था की वैशाली को गुलछर्रे उड़ाने थे.. पर इतने साल के वैवाहिक जीवन में संजय ने उसे इतने धोखे दिए थे की वह माफ करते करते थक चुकी थी.. आखिर उसने ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करने का मन बना लिया था.. कभी शिकायत भी नहीं करती थी.. वो कहते है ना "दर्द का हद से गुजर जाना.. दवा हो जाना.. " वैसा ही हुआ था वैशाली के साथ.. अब नो तो किसी बात की खुशी थी न ही किसी बात का गम

ऐसी स्थिति में पीयूष और हिम्मत के साथ बिताए कुछ पल.. वैशाली के जीने की वजह बन गए थे.. वरना वैशाली और संजय के बीच इतनी कड़वाहट आ गई थी की वैशाली को उसे दिखते ही घिन आ जाती.. संजय के साथ बैठना ना पड़े इसीलिए वो किचन से बाहर नहीं आ रही थी

संजय की हरकत का शीला ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया.. अब संजय अपने पैर के अंगूठे को शीला के पैर से रगड़ने लगा.. शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. उसने अपनी बेटी के पति को कभी उस नजर से नहीं देखा था.. उसने अपना पैर दूर हटा लिया.. संजय उसके सामने देखकर शातिर तरीके से हंसने लगा.. ए

संजय: "क्यों मज़ा नहीं आया, मम्मी जी ?? मेरे कहने का मतलब है की सब्जी में मज़ा नहीं आया आपको?"

संजय का इशारा क्या था वो शीला समझ रही थी.. लेकिन बिना कुछ उत्तर दिए वह खाना खाती रही.. अपने दामाद की इस हरकत पर उसे बड़ा गुस्सा आया.. पर अगर वह कुछ बोलती तो संजय को बात का बतंगड़ बनाने का मौका मिल जाता.. इसलिए वह बिना कुछ कहे खाना खाती रही..

खाना खतम कर शीला बाहर बरामदे में बैठ गई.. संजय भी आकर उसके बगल में बैठ गया.. तभी वहाँ पीयूष आया.. रात के दस बज रहे थे.. पीयूष के पीछे पीछे कविता, मौसम और फाल्गुनी भी आए.. पूरा घर भर गया.. इन सब के आने से शीला को बहोत अच्छा लगा.. इन सब की मौजूदगी में संजय कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर पाएगा.. दूसरी तरफ संजय अफसोस कर रहा था.. हाथ में आया हुआ गोल्डन चांस चला गया..
 

vakharia

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vakharia

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
शीला की बेटी भी शीला की ही तरह है वैशाली ने अपने सारे राज कविता को बता दिए हैं उसने यह भी बता दिया कि उसकी पहली चूदाई पीयूष ने की थी शीला पति के बिना दुखी हैं और वैशाली पति से दुखी हैं जरूरत दोनो को प्यार की ही है
शुक्रिया भाई ♥️
 

Ajju Landwalia

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वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..

आधे घंटे के बाद रिक्शा से संजय उतरा.. उसे देखते ही शीला की धड़कनें तेज हो गई.. आज से पहले शीला ने कभी भी संजय को इतना ध्यान से नहीं देखा था.. पर आज देखना बेहद जरूरी था..

शीला: "आइए आइए.. कहाँ थे इतने दिन?" शीला ने फर्जी प्यार जताया

वैशाली पानी का ग्लास लेकर आई.. पानी पीते वक्त संजय और शीला की आँखें दो बार टकराई.. शीला संजय की आँखों के भाव को नापना चाहती थी.. एकटक देखती रही वो.. संजय के हावभाव देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लग रहा था की आधे घंटे पहले वो ऐसा कांड करके गया हो.. शीला सोच में पड़ गई.. कुछ सोचकर वह बोली

"संजय कुमार.. आप मेरे साथ गली के नुक्कड़ तक चलोगे? मुझे दर्जी की दुकान से अपना ब्लाउस लेने जाना है"

संजय: "हाँ बिल्कुल.. क्यों नहीं.. !! वैसे भी मैं फ्री ही बैठा हुआ हूँ"

संजय की इस सौम्य भाषा को सुनकर वैशाली और शीला दोनों को काफी ताज्जुब हुआ.. ऐसा परिवर्तन संजय में आया कैसे? कहीं ये कोई नया नाटक तो नहीं? वैशाली को चिंता होने लगी।

जैसे ही शीला और संजय घर के बाहर निकले, वैशाली ने पीयूष को फोन किया.. और पीयूष के संग प्रेमभरी बातें कर ही रही थी तभी उसके घर पर कविता को आता देख उसने फोन काट दिया.. वैशाली को हड़बड़ाहट में फोन काटते हुए कविता ने देख लिया.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो तो बस थोड़ा सा दहीं मांगने आई थी.. लेकर चली गई

अब शीला ने संजय को अपनी गिरफ्त में लिया.. बिना किसी संदर्भ के ही उसने बात शुरू कर दी

शीला "गुनहगार कितना भी होशियार क्यों न हो.. वह घटनास्थल पर कोई न कोई सुराख जरूर छोड़ जाता है"

संजय चोंक गया.. लेकिन वो भी शातिर था

संजय: "मम्मी जी, किसी भी गुनहगार को ऐसा नहीं लगता की वो गुनाह कर रहा है.. किसी के पास कोई चीज नहीं होती और वो कहीं से ले लेता है तो कायदे के हिसाब से उसे चोरी कहते है और उस व्यक्ति गुनहगार घोषित कर दिया जाता है.. लेकिन उस व्यक्ति के नजरिए से देखें तो वो बस उसकी जरूरत थी.. ठीक कहा ना मैंने !!!"

शीला: "बात तो आपकी सही है दामदजी.. पर इसका मतलब ये तो नहीं की दूसरों की थाली में हाथ डालकर खा ले?"

संजय: "अरे मम्मी जी, जिसकी थाली में से खाए अगर उसको खिलाने में मज़ा आ रहा हो तो फिर क्या दिक्कत है?"

शीला: "मतलब? कहना क्या चाहते हो?"

संजय: "कुछ नहीं.. बस ऐसे ही.. मैं तो जमाने के बारे में बात कर रहा था.. डॉन्ट माइंड.. !!"

शीला: "हम्म.. संजय कुमार, आपसे एक बात पूछूँ तो बुरा तो नहीं मानोगे?"

संजय: "हाँ पूछिए"

शीला: "आज रात ८ से ९ के बीच आप कहाँ थे?"

संजय ने जवाब देने के बजाए जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट जलाई और हवा में धुआँ छोड़ दिया.. शीला को इस सिगरेट की गंध जानी पहचानी सी मालूम हुई..

संजय: "मैं बस यही था.. बाजार में.. क्यों क्या हुआ?"

शीला: "नहीं बस.. मैं तो ऐसे ही पूछ रही थी.. " शीला ने बात को वहीं काट दिया.. उसने देखा की संजय तीरछी नज़रों से उसके ब्लाउस में छिपे स्तनों को देख रहा था

शीला मन ही मन सोचने लगी.. "थोड़ी देर पहले तो मसल चुका है.. फिर भी क्या देख रहा है?? एक नंबर का भड़वा है साला.. दामाद होकर अपनी सास को गंदी नज़रों से देखता है"

एक आश्चर्य की बात ये हुई की सिगरेट के धुएं की गंध से शीला को एक विचित्र सी अनुभूति होने लगी.. जो उसे अच्छी लग रही थी.. पता नहीं क्यों पर उसे सिगरेट की गंध बेहद उत्तेजित कर देती थी.. उसे अपना मर्द सिगरेट फूंकते हुए उसे चोदे ऐसा बहोत पसंद था.. वैसे मदन ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की थी.. लेकिन एक बार करने से खतम हो जाए वह इच्छा ही कैसी !! ये भूख है ही ऐसी.. जितना उसको संतुष्ट करो उतना ही ओर भड़कती है..

अपने आप पर कंट्रोल करते हुए शीला ने संजय को दुकान के बाहर खड़ा रखा और खुद अंदर जाकर अपना ब्लाउस लेकर आई.. शीला को ब्लाउस लेकर वापिस आता देख संजय ने चौक मार दिया

संजय: "अजीब है न मम्मी जी!! औरतों को एक दर्जी सेट हो गया फिर बार बार उसी के पास जाती है.. कहती है की उनका फिटिंग अच्छा है.. अरे भाई.. ब्लाउस थोड़ा सा लूस हो या टाइट.. क्या फरक पड़ता है!!! पर नहीं.. औरते दस दस बार ट्रायल लेती है.. वैशाली तो थोड़ा सा भी फिटिंग इधर उधर होने पर अपने दर्जी को झाड देती है.. "

स्तनों को संभालने वाले वस्त्र के बारे में अपने दामाद से चर्चा करना शीला को उचित नहीं लगा.. पर संजय के कहने का मतलब क्या था वो शीला समझ गई..

शीला: "ऐसा है दामदजी, एक बार किसी का फिटिंग सेट हो गया फिर वोही पसंद आता है.. बाकी दूसरों से करवाने में मज़ा ही नहीं आता.. " शीला ने भी चौके के सामने सिक्सर लगा दी

शीला को डबल मीनिंग बातें करते देख संजय जोश में आ गया

संजय: "मम्मी जी, मुझे फ्री माइंड वाले लोग बहोत पसंद है.. उनके साथ मेरी अच्छी जमती है.. ज्यादा सीधे और दकियानूसी लोगों को देखकर मुझे बड़ा गुस्सा आता है.. मैं तो वैशाली से कभी नहीं पूछता की कहाँ जा रही हो.. किससे बात कर रही हो.. वो अपनी मर्जी की मालिक है और मैं अपनी मर्जी का.. हम दोनों एक दूसरे की लाइफ में टांग नहीं अड़ाते"

शीला ध्यानपूर्वक सुनती रही.. मन में सोचती रही.. "तूने वैशाली को आजादी दी तो साथ में अपने माँ-बाप की जिम्मेदारी भी तो थोप दी.. पूरा दिन वो वैशाली के सर पर मधुमक्खी की तरह मंडराते रहते है.. तो वह बेचारी उस आजादी का क्या अचार डालेगी? तुम तो घर से निकलते ही आजाद पंछी बन जाते हो.. जो करना है बेझिझक कर सकते हो.. स्त्री को ऐसी पराधीनता भरी स्वतंत्रता देने का क्या अर्थ? हाथ काटकर फिर पतवार थमा देते हो तो वो बेचारी नाव कैसे चलाएगी?.." शीला को गुस्सा आ गया

दोनों चलते चलते शीला के घर की तरफ आ रहे थे.. रास्ते पर केनाल की छोटी सी दीवार पर बैठते हुए संजय ने कहा

संजय: "बहोत गर्मी लग रही है.. थोड़ी देर यहाँ खुली हवा में बैठते है"

बिना कुछ कहे संजय की बगल में बैठ गई शीला.. थोड़ी देर यूं ही बैठे रहने के बाद संजय ने कहा "मम्मी जी आइसक्रीम खाते है.. वैसे भी अभी खाना तैयार नहीं हुआ होगा.. घर जाकर क्या करेंगे?"

शीला: "हाँ चलिए.. खाते है आइसक्रीम" शीला समझ गई की संजय उसके साथ अकेले में ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहता है.. शीला भी इसलिए मान गई क्योंकि वह थोड़ा और वक्त जांच करना चाहती थी.. अभी तक वो ठीक से तय नहीं कर पाई थी की उसे पीछे से चोदकर भाग जाना वाला आदमी संजय ही था या कोई ओर??

"आप बैठिए.. मैं सामने की दुकान से आइसक्रीम लेकर आता हूँ" संजय आसक्रीम लेने गया पर मोबाइल वहाँ दीवार पर ही छोड़ गया.. शीला बैठी थी तभी मेसेज का टोन बजाय.. अपने आप को लाख रोकने के बावजूद शीला ने फोन उठाकर मेसेज पढ़ लिया.. वह मेसेज जिस नंबर से आया था वो चेतना के नाम से स्टोर किया था.. शीला ने नंबर चेक किया तो वह वाकई उसकी सहेली चेतना का ही था.. मेसेज पढ़कर शीला की आँखें फट गई

मेसेज में लिखा था..

"डिअर संजय.. तेरे साथ गेस्टहाउस में बिताया समय भूले नहीं भुलाता.. तेरे जैसा मर्द आज तक मेरे बिस्तर पर नहीं आया.. कल मैं अकेली हूँ.. तू शाम के पाँच बजे मेरे घर पर आ जाना.. खूब मजे करेंगे.. बाय"

माय गॉड.. चेतना को मैंने संजय की जानकारी हासिल करने का काम सौंपा था तो ये रंडी उसी के साथ चालू हो गई.. शीला ने मेसेज डिलीट कर दिया.. सामने से आइसक्रीम के दो कोन हाथ में लिए आते संजय को देखकर उसने मोबाइल रख दिया.. लेकिन मोबाइल की डिस्प्ले की लाइट ऑन देखकर संजय को लगा की किसी का फोन आया होगा.. शीला ने अपने चेहरे के हाव भाव बिल्कुल ऐसे ही रखे जैसे उसे कुछ पता ही नहीं था..

आइसक्रीम का कोन चाटती हुई औरत हमेशा आकर्षक लगती है.. शीला को कोन चूसते हुए संजय देखता रहा.. वह ऐसे चूस रही थी जैसे लंड चूस रही हो

संजय: "कैसा लगा मम्मी जी?"

शीला: "हम्म.. अच्छा है" शीला का दिमाग पहले से घुमा हुआ था ऊपर से चेतना का मेसेज पढ़कर और खराब हो गया.. दोनों पहली बार मिले और चुदाई भी कर ली?? कुछ घंटों पहले हुई घटना को याद करते शीला सोचने लगी.. हो सकता है की संजय ने चेतना के साथ भी जबरदस्ती की हो !! नहीं नहीं.. तो फिर चेतना ऐसा मेसेज क्यों करती?? जो भी हुआ था वह चेतना की मर्जी से ही हुआ था.. कल उस चेतना को रिमांड पर लेती हूँ.. कल पाँच बजे मिलने वाले है चेतना और संजय.. तभी मैं चेतना के घर पहुँच जाऊँगी.. तो सब पता चल जाएगा.. पर अब तक ये पता नहीं चला की बागीचे में उसे संजय ने ही चोदा था या किसी ओर ने??

घर आकर संजय ने चेक किया तो कॉल रजिस्टर में चेतना का नाम दिख रहा था पर इनबॉक्स में उसका कोई मेसेज क्यों नहीं दिख रहा था !!!!

शीला और संजय डाइनिंग टेबल पर बैठ गए और वैशाली उन्हे गरम गरम रोटियाँ परोसने लगी.. सासुमाँ के उरोजों को बीच दिख रही लकीर पर बार बार संजय की नजर पड़ जाती थी.. शीला इस नजर को काफी सालों से जानती थी.. वैसे जब से वह जवान हुई तब से उसे मर्दों की इस नजर की आदत सी हो चुकी थी.. अठारह की उम्मर में ही उसके स्तन संतरों से बड़े हो चुके थे.. भीड़ में.. बाजार में.. सब्जी मंडी में.. लोग जान बूझकर उससे टकरा जाते थे वह कोई संयोग नहीं था.. जैसे पतंगा शमा की ओर आकर्षित हो जाता है वैसे ही संजय की नजर बार बार शीला के ब्लाउस के आरपार देखती रहती.. शीला अभी भी असमंजस में थी.. अंधेरे में उसका गेम बजाने वाला वो कौन था??

अचानक शीला को महसूस हुआ की संजय का पैर उसके पैर को छु रहा है.. उसने हल्की नजर से देखा और यकीन हो गया की संजय का पैर ही था.. शीला का शक धीरे धीरे यकीन में बदलता जा रहा था..

संजय: "सब्जी बड़ी अच्छी बनी है.. है ना मम्मी जी?"

शीला: "हाँ.. मेरी वैशाली खाना तो बहोत बढ़िया बनाती है" सारा क्रेडिट उसने वैशाली को दे दिया

संजय: "मुझे भी एक बार आपकी चखनी है.. मतलब.. आप के हाथ की बनी सब्जी.. "

शीला के जिस्म से करंट पास हो गया.. "आपकी चखनी है कहने का क्या मतलब ??"

शीला: "संजय कुमार, वैशाली थोड़े दिनों के लिए अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाए तो आपको कोई हर्ज तो नहीं है ना ?? मायके आई है तो थोड़ा घूम फिर भी ले.. ससुराल जाकर वो बेचारी वापिस पिंजरे में बंद हो जाएगी"

संजय: "ऐसी बात भी नहीं है मम्मी जी, मैं उसे घूमने ले जाता हूँ.. पूछिए वैशाली से.. पर फिर भी अगर वो जाना चाहती है तो मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है"

शीला और संजय की बातों से अनजान वैशाली.. किचन में पीयूष और हिम्मत को याद कर रही थी.. संजय के लिए उसके मन में इतनी नफरत बन गई थी की वह उसका चेहरा भी देखना नहीं चाहती थी.. इसका ये मतलब भी नहीं था की वैशाली को गुलछर्रे उड़ाने थे.. पर इतने साल के वैवाहिक जीवन में संजय ने उसे इतने धोखे दिए थे की वह माफ करते करते थक चुकी थी.. आखिर उसने ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करने का मन बना लिया था.. कभी शिकायत भी नहीं करती थी.. वो कहते है ना "दर्द का हद से गुजर जाना.. दवा हो जाना.. " वैसा ही हुआ था वैशाली के साथ.. अब नो तो किसी बात की खुशी थी न ही किसी बात का गम

ऐसी स्थिति में पीयूष और हिम्मत के साथ बिताए कुछ पल.. वैशाली के जीने की वजह बन गए थे.. वरना वैशाली और संजय के बीच इतनी कड़वाहट आ गई थी की वैशाली को उसे दिखते ही घिन आ जाती.. संजय के साथ बैठना ना पड़े इसीलिए वो किचन से बाहर नहीं आ रही थी

संजय की हरकत का शीला ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया.. अब संजय अपने पैर के अंगूठे को शीला के पैर से रगड़ने लगा.. शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. उसने अपनी बेटी के पति को कभी उस नजर से नहीं देखा था.. उसने अपना पैर दूर हटा लिया.. संजय उसके सामने देखकर शातिर तरीके से हंसने लगा.. ए

संजय: "क्यों मज़ा नहीं आया, मम्मी जी ?? मेरे कहने का मतलब है की सब्जी में मज़ा नहीं आया आपको?"

संजय का इशारा क्या था वो शीला समझ रही थी.. लेकिन बिना कुछ उत्तर दिए वह खाना खाती रही.. अपने दामाद की इस हरकत पर उसे बड़ा गुस्सा आया.. पर अगर वह कुछ बोलती तो संजय को बात का बतंगड़ बनाने का मौका मिल जाता.. इसलिए वह बिना कुछ कहे खाना खाती रही..


खाना खतम कर शीला बाहर बरामदे में बैठ गई.. संजय भी आकर उसके बगल में बैठ गया.. तभी वहाँ पीयूष आया.. रात के दस बज रहे थे.. पीयूष के पीछे पीछे कविता, मौसम और फाल्गुनी भी आए.. पूरा घर भर गया.. इन सब के आने से शीला को बहोत अच्छा लगा.. इन सब की मौजूदगी में संजय कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर पाएगा.. दूसरी तरफ संजय अफसोस कर रहा था.. हाथ में आया हुआ गोल्डन चांस चला गया..

Behad shandar update he vakharia Bhai,

Sanjay hi lag raha he mujhe to sheela ka band bajane wala........

Leking ab sheela ko chetna ka band bajana he pehle........

Keep rocking Bro
 
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