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Adultery सज्जनपुर की कहानी

Luckyloda

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नौवाँ अध्याय


सज्जनपुर की दोपहर धीरे-धीरे अपनी चाल में थी। गाँव की गलियों में धूल उड़ रही थी, और खेतों से हल्की हवा के साथ फसलों की खुशबू आ रही थी। कम्मू के घर का आँगन शांत था, जहाँ सोनू अपने दोस्त को उठाने पहुँचा। कम्मू बिस्तर पर आलस में पड़ा था, आँखें मलते हुए उठा। सोनू को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। “अरे, कब आया यार?” कम्मू ने उत्साह से पूछा, बिस्तर से उठते हुए।
“अभी बस, अभी आया,” सोनू ने जवाब दिया, और दोनों कमरे की खटिया पर बैठकर बातें करने लगे।
कम्मू ने पूछा, “आज हवेली नहीं गया?
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नहीं यार, आज काम कम था। जल्दी छुट्टी मिल गई।
कम्मू: अच्छा हुआ यार बहुत दिन से तुझसे मिलना ही नहीं हो पा रहा था।
सोनू: हां यार सुबह जाता हूं और आते आते अंधेरा हो जाता है।
कम्मू: हां यार वैसे, बता, वो कर्मा और अनुज तुझे परेशान तो नहीं करते?
सोनू का मन एक पल के लिए ठिठका। उसकी आँखों के सामने वह दृश्य कौंध गया—उसकी माँ रजनी और नीलेश, नंगे, एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए। उसने जल्दी से अपने चेहरे को संभाला और बोला, “नहीं यार, सब ठीक है। हम शायद उन्हें ज़्यादा बुरा समझते हैं। कर्मा तो मुझसे अच्छे से बात करता है।

कम्मू ने भौंहें चढ़ाईं। “यकीन नहीं होता। कर्मा बड़ा कमीना लगता है मुझे। पक्का तुझे या तेरी माँ को हवेली में कोई परेशानी तो नहीं?

सोनू ने फिर से उस दृश्य को मन में दबाया और कहा, “नहीं यार, कोई परेशानी नहीं। सब ठीक है।” उसकी आवाज़ में हल्का सा काँपन था, मगर कम्मू का ध्यान उस पर नहीं गया।
कम्मू: चल अच्छा है फिर भी तू सावधान रहियो और मुझसे कुछ मत छुपाना।
अरे, ऐसा नहीं है,” सोनू ने हँसकर जवाब दिया। “वो तो मुझे आज मोटरसाइकिल पर बाज़ार ले गया था। समोसे खिलाए, ठंडा पिलाया, और फिर घर पर भी छोड़ गया।”

कम्मू ने हैरानी से कहा, “अरे वाह! इतनी मेहरबानी? कुछ तो गड़बड़ है। कर्मा ऐसा बिना मतलब के नहीं करता।
सोनू ने कर्मा और मज़दूर औरत की चुदाई का दृश्य अपने मन में दबा रखा था। वह उस बात को कम्मू से छुपाते हुए बोला, “नहीं यार, शायद वो मेरी उम्र का है, तो मुझे दोस्त मानता है।

“अच्छा, तो तेरा नया दोस्त अब कर्मा है, हवेली का लड़का! हमें तो अब तू भूल ही जाएगा,” कम्मू ने हँसते हुए तंज कसा।
सोनू: अबे तू भी न कुछ भी बोलता है, मेरे दोस्त तो तुम दोनों ही रहोगे हमेशा।
इसी बीच सुमन नहाकर कमरे में आई। उसके गीले बाल हवा में झूल रहे थे, और बदन पर सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ था। उसका बदन हल्का गीला था, और ब्लाउज़ उसके भरे हुए सीने को उभार रहा था।

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गाँव के छोटे घरों में दो कमरे होने की वजह से यह आम बात थी। सुमन को बच्चों के सामने कोई संकोच नहीं था, खासकर सोनू के सामने, जिसे वह बचपन से बेटे की तरह मानती थी।
मगर सोनू की नज़रें छुप-छुपकर सुमन के बदन पर पड़ रही थीं। कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं—सुमन चाची का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और मखमली पेट। उसने जल्दी से सिर झटका और सोचा, “नहीं यार, मेरा दोस्त साथ में है, और मैं उसकी माँ को ऐसे देख रहा हूँ। ये गलत है।

सुमन ने साड़ी पहनी और दोनों से पूछा, “चाय पियोगे?”
कम्मू ने दोनों की ओर से तपाक से हाँ बोल दिया। सुमन मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
कम्मू ने फिर सोनू से पूछा, “वैसे, कर्मा ने मेरे या मेरे परिवार के बारे में कुछ बोला? उस दिन मैदान में उससे झड़प हो गई थी न, उसके बाद कुछ तो नहीं कहा?”
सोनू को कर्मा की बात याद आई—कम्मू की माँ और ताई के भरे हुए बदन की तारीफ़, और यह कि उसने उन्हें सोचकर कई बार हिलाया था। मगर सोनू ने यह बात मन में दबाई और बोला, “नहीं यार, सच में कुछ नहीं। तू बेकार में चिंता मत कर।”
कम्मू ने राहत की साँस ली और बोला, “सही है यार। मैं नहीं चाहता कि धीरज भैया के ब्याह के समय कोई शिकायत आए। खासकर हवेली वालों के साथ कोई कांड हो, ये तो बिल्कुल नहीं।”
सोनू ने सिर हिलाया, मगर उसका मन उलझा हुआ था। कर्मा की बातें, उसकी माँ का हवेली में बदला हुआ रूप, और आज का खेत वाला दृश्य—यह सब उसके मासूम मन को भारी कर रहा था। कम्मू ने उसकी उदासी भाँप ली और बोला, “चल, चाय पीते हैं, फिर बाहर मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते हैं। कब से तूने बल्ला नहीं पकड़ा!”
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। दोनों बाहर आँगन में आए, जहाँ सुमन चाय चूल्हे से उतार रही थी
सुमन: बैठो तुम लोग अभी देती हूं,
सोनू और कम्मू दोनों ही छप्पर में पड़ी खाट पर बैठ गए, सोनू जैसे ही बैठा तो उसे पीछे से आवाज़ आई: अरे सोनू लला मां कैसी है तेरी?
उसने पीछे मूड कर देखा तो सामने कम्मू की ताई और सुमन की जेठानी कुसुम थी और अब वो भी नल के पास बैठ कपड़े धो रही थी।
सोनू: ठीक है ताई, अभी हवेली में ही हैं।
सोनू ने कुसुम के भरे बदन को देखते हुए कहा, ब्लाउज उसकी बड़ी चूचियों के उभार को छुपा नहीं पा रहा था, नीचे उसका मांसल पेट, गोल गहरी नाभी, कमर में पड़ी सिलवटें, ये सब देख सोनू को सिहरन हुई अंदर ही अंदर और उसे कर्मा की ये बात फिर से याद आ गई।

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कुसुम: चलो बढ़िया है, अब कोई परेशानी तो नहीं, और तेरे बाप की कोई खबर?
सोनू: नहीं ताई कोई परेशानी नहीं है, और उनकी खबर लेकर क्या ही करना है।
कुसुम: हां लल्ला आने से मुसीबत बढ़े तो इससे अच्छा है वो अलग ही रहे।
सुमन: सही कह रही हो जीजी, वैसे ही दुख कम थोड़े ही हैं जो उन्हें और झेले।
सुमन ने चाय देते हुए कहा,
कुसुम: हां तुम लोग अपना ध्यान रखो, उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोनू: हां ताई अभी वैसे भी न इतना समय है और न ही इतनी हिम्मत कि उनके बारे में सोचें।
चाय खत्म होने तक ऐसे ही बातें चलती रहती हैं, सोनू बीच बीच बीच में सुमन और कुसुम को छुप छुप कर देख लेता था, चाय खत्म कर दोनों घर से निकल गए ।
सोनू: मन्नू को तो बुला ले, वो नहीं खेलेगा?
कम्मू: अरे आज बिंदिया दीदी को देखने वाले आ रहे हैं तो वो नहीं आयेगा।
सोनू: चल ये तो अच्छा है, यार लड़का अच्छा हुआ तो उनका भी ब्याह हो जाए जल्दी।
कम्मू: हां बिल्कुल क्यों नहीं होगा।
दोनों बात करते हुए मैदान की ओर निकल जाते हैं।

तेजपाल के घर में आज एक खास माहौल था। बिंदिया को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। तेजपाल का घर, जो आम तौर पर सादगी और मेहनत की कहानी कहता था, आज सज-धज कर तैयार था। आँगन को गोबर और मिट्टी से लीपकर चमकाया गया था, और घर की चौखट पर रंगोली बनाई गई थी। झुमरी, तेजपाल की बहू, रसोई में मिठाई और नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी, जबकि तेजपाल और उनका बेटा रत्नाकर मेहमानों की आवभगत की तैयारियों में जुटे थे। बिंदिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी, उसका मन उत्साह और घबराहट के बीच झूल रहा था।

लड़के वाला परिवार पास के गाँव से था। परिवार में चार लोग थे: पप्पू, 42 वर्षीय किसान और परिवार का मुखिया,
उनकी पत्नी रज्जो, 38 वर्ष की, जिनका भरा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मखमली पेट, गहरी नाभि, और फैले हुए चूतड़, झुमरी से कम नहीं थे।
उनका बेटा प्यारे, 22 वर्ष का, एक आम गाँव का लड़का, मेहनती और सौम्य स्वभाव का, जिसे आज बिंदिया को देखने आना था।
उनकी बेटी चंदा, 20 वर्ष की, सुंदर और कामुक, अपने भाई के साथ आई थी, ताकि वह भी होने वाली भाभी को देख सके।

दोपहर ढलते ही पप्पू का परिवार तेजपाल के घर की दहलीज़ पर पहुँचा। पप्पू ने अपने कंधे पर गमछा डाला हुआ था, और उनके सादे कुरते-पायजामे में किसान की मेहनत की सादगी झलक रही थी। रज्जो ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भरे हुए बदन को और उभार रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, जिसे वह बार-बार संभाल रही थी। प्यारे एक साफ-सुथरे कुरते में था, उसका चेहरा सौम्य और थोड़ा शर्मीला था। चंदा ने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहना था, जो उसकी जवानी को निखार रहा थी।

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तेजपाल ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। “आइए, आइए, पप्पू भाई, घर में पधारिए,” उन्होंने कहा और आँगन में बिछी दरी पर मेहमानों को बिठाया। रत्नाकर ने तुरंत पानी के गिलास लाकर रखे, और झुमरी रसोई से जल्दी-जल्दी नाश्ते की थाली ले आई। थाली में गुझिया, समोसे, और लड्डू सजे हुए थे, साथ में चाय की केतली थी।
“क्या बात है, चाचाजी, इतना इंतज़ाम कर रखा है,” पप्पू ने हँसते हुए कहा, अपनी मूँछों को ताव देते हुए। “हम तो बस अपनी बेटी को देखने आए हैं, इतनी मेहरबानी की क्या ज़रूरत थी?”
“अरे भाई, आप लोग हमारे मेहमान हैं। बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात है, थोड़ा-बहुत तो बनता है,” तेजपाल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रज्जो ने थाली की ओर देखा और बोली, “वाह, झुमरी बहन, ये गुझिया तो देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। अपने हाथों से बनाई हैं?”
“हाँ, बहनजी, सब घर का बनाया है,” झुमरी ने शर्माते हुए कहा। “आप खाकर बताइए, कैसी बनी हैं।”
चंदा, जो अब तक चुप थी, उसने समोसा उठाया और एक छोटा सा टुकड़ा मुँह में डाला। “हम्म, बहुत स्वादिष्ट है, चाची” उसने कहा, और उसकी मुस्कान ने माहौल को और हल्का कर दिया।

बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पप्पू ने अपने खेतों और फसलों की बात की, जबकि तेजपाल ने गाँव की हाल-चाल और पड़ोस में धीरज की शादी की तैयारियों का ज़िक्र किया। रज्जो और झुमरी औरतों की बातों में मशगूल हो गईं—खाना, साड़ियाँ, और गाँव की चुगलियाँ। प्यारे और रत्नाकर चुपचाप सुन रहे थे, मगर उनकी नज़रें बार-बार एक-दूसरे से मिल रही थीं, जैसे दोनों एक-दूसरे को परख रहे हों।
थोड़ी देर बाद तेजपाल ने कहा, “चलो, अब बिंदिया को बुलाते हैं। आप लोग तो उसी को देखने आए हैं।” उन्होंने झुमरी की ओर इशारा किया, और झुमरी कमरे की ओर गई।
बिंदिया कमरे में तैयार थी। उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे रंग को और निखार रही थी। उसके बाल खुले थे, और माथे पर छोटी सी बिंदी थी। उसका चेहरा घबराहट और शर्म से लाल हो रहा था।

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झुमरी ने उसे प्यार से हाथ पकड़कर बाहर लाया। बिंदिया ने सिर झुकाकर आँगन में कदम रखा और मेहमानों के सामने खड़ी हो गई। उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, और वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू संभाल रही थी।
रज्जो ने बिंदिया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराते हुए पप्पू की ओर देखा। “वाह, बहन जी, आपकी बेटी तो एकदम चाँद का टुकड़ा है,” उसने कहा।
“हाँ, बिल्कुल। सादगी में सुंदरता है इसकी,” पप्पू ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा।
चंदा ने बिंदिया को गौर से देखा और बोली, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत सुंदर है। ये रंग आप पर बहुत जँच रहा है।”
बिंदिया ने शर्माते हुए हल्का सा सिर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा, “धन्यवाद।” उसकी आवाज़ में मिठास थी, जो सभी को भा गई।
तेजपाल ने बिंदिया से कहा, “बेटी, प्यारे को चाय दे दो।” बिंदिया ने सिर हिलाया और एक चाय का कप धीरे से प्यारे की ओर बढ़ाया। प्यारे ने चाय लेते हुए पहली बार बिंदिया को गौर से देखा। उसकी आँखों में एक सादगी थी, और बिंदिया की शर्मीली मुस्कान ने उसके मन में कुछ हलचल मचा दी। उसने चाय का प्याला थामा और धीरे से “धन्यवाद” कहा।
रत्नाकर ने माहौल को और हल्का करने के लिए कहा, “प्यारे, तुम भी कुछ बताओ। खेतों में काम करते हो न? कैसा चल रहा है सब?”
प्यारे ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “हाँ, चाचाजी, खेतों में काम अच्छा चल रहा है। इस बार धान की फसल अच्छी हुई है। बाकी, बस मेहनत करते हैं।”
बहुत मेहनती है हमारा प्यारे,” रज्जो ने गर्व से कहा। “दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। घर में भी सबकी मदद करता है।”
तेजपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो अच्छी बात है। हमारी बिंदिया भी घर के काम में माहिर है। खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सब आता है इसे।”
बातचीत के बीच दोनों परिवार एक-दूसरे को परख रहे थे। पप्पू और रज्जो को बिंदिया की सादगी और सुंदरता पसंद आई, जबकि तेजपाल, रत्नाकर और झुमरी को प्यारे का मेहनती और सौम्य स्वभाव भा गया। चंदा ने बिंदिया से कुछ छोटी-मोटी बातें कीं, जैसे साड़ी का रंग और गाँव की शादियों की रस्में, जिससे बिंदिया थोड़ा सहज हो गई।
थोड़ी देर बाद रज्जो ने पप्पू की ओर देखा और हल्का सा सिर हिलाया। पप्पू ने समझ लिया और तेजपाल से बोला, “चाचाजी, रत्नाकर भाई, हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। सादगी और संस्कार दोनों हैं इसमें। अगर आपको हमारा प्यारे पसंद हो, तो हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहेंगे।”
तेजपाल ने रत्नाकर और झुमरी की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला रहे थे। “पप्पू, हमें भी आपका बेटा बहुत पसंद आया। मेहनती और सज्जन लड़का है। हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं,” तेजपाल ने गर्मजोशी से कहा।
आँगन में खुशी की लहर दौड़ गई। झुमरी ने तुरंत मिठाई की थाली लाकर सभी को लड्डू खिलाए। रज्जो ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, अब तू हमारे घर की बहू बनेगी। हम तेरा बहुत खयाल रखेंगे।”
बिंदिया ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। प्यारे ने भी चुपके से बिंदिया की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक नया सपना जागने लगा। चंदा ने बिंदिया का हाथ पकड़कर कहा, “भाभी, अब तो हमें खूब बातें करनी हैं।”
मेहमानों की आवभगत के बाद पप्पू का परिवार विदा हुआ। तेजपाल और रत्नाकर ने उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ा। झुमरी ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, तुझे अच्छा घर मिला है। प्यारे और उसका परिवार बहुत अच्छे लोग हैं।”
बिंदिया ने सिर हिलाया, मगर उसका मन कहीं और था। कर्मा की वह शरारती मुस्कान और उसकी नज़रें बार-बार उसके दिमाग में कौंध रही थीं। हवेली की चमक और कर्मा का रुतबा उसे आकर्षित तो करता था, मगर घरवालों की हिदायतें और प्यारे की सादगी उसे एक अलग राह पर ले जा रही थी।
लड़के वालों के जाते ही बिंदिया को अनामिका, अंजू, नेहा और मनीषा ने घेर लिया और उसे चिढ़ाते हुए उसके साथ मज़ाक करते हुए उससे सब पूछने लगी, बिंदिया भी उनके साथ बात करके खुश हो रही थी और मज़ाक में साथ दे रही थी। वहीं झुमरी को सुमन और कुसुम ने घेर लिया और उससे सब पूछने लगीं। झुमरी भी खूब चाव से सब बता रही थी।




सज्जनपुर में सूरज ढल चुका था, और गाँव पर शाम की सुनहरी धुंध छा रही थी। खेतों से लौटते मज़दूरों की आवाज़ें धीमी पड़ रही थीं, और नदी के किनारे हल्की ठंडक बस रही थी। सुमन और कुसुम, कुसुम के कहने पर और थोड़ा सा बाहर की हवा खाने के लिए नदी की ओर निकल पड़ीं। दोनों देवरानी-जेठानी की जोड़ी गाँव में अपनी सादगी और मेहनत के लिए जानी जाती थी, मगर उनकी हँसी और आपसी मज़ाक गाँव की गलियों में एक अलग रंग भरता था।
नदी का किनारा शांत था, सिर्फ़ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं भटकती चिड़ियों की आवाज़ें गूँज रही थीं। सुमन और कुसुम ने अपने चप्पल किनारे पर उतारे और नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोकर किनारे की एक चट्टान पर बैठ गईं। सुमन की साड़ी का पल्लू उसकी कमर पर लिपटा था, और कुसुम की साड़ी का आँचल हल्का सा सरककर उसके मांसल कंधे को उघाड़ रहा था। दोनों के चेहरों पर थकान के साथ-साथ एक हल्की सी मुस्कान थी।
“जीजी, आज का दिन तो बड़ा भारी था,” सुमन ने अपने गीले पैरों को पानी में हिलाते हुए कहा। “धीरज के ब्याह की तैयारियाँ, घर का काम, इतने सारे कपड़े धोए आज तो मैने, ऊपर से ये गर्मी। थक गई मैं तो।”
“हाँ, सुमन, पर अब ये ठंडा पानी सारी थकान निकाल देगा,” कुसुम ने हँसते हुए कहा। उसने एक छोटा सा कंकड़ उठाया और पानी में फेंका, जिससे छोटी-छोटी लहरें उठीं। “वैसे, बिंदिया का रिश्ता पक्का हो गया, ये तो अच्छी बात है। प्यारे लड़का सज्जन और मेहनती लगता है।” जैसे झुमरी ने बताया,
“हाँ, जीजी, सही कह रही हो। बिंदिया को अच्छा घर मिलेगा। सुमन ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। “पर मुझे तो अभी भी हँसी आ रही है, जब बिंदिया शर्म से लाल हो गई जब सब लड़कियों ने उसे घेरा तो।”
दोनों हँस पड़ीं। उनकी हँसी नदी के किनारे गूँज उठी, मानो पानी भी उनके मज़ाक में शामिल हो गया हो। कुसुम ने शरारत भरे अंदाज़ में सुमन की ओर देखा और बोली, “अच्छा, तू हँस रही है? जैसे तू नहीं शरमाई थी अपनी बारी में” कहते हुए उसने मज़ाक में सुमन को हल्का सा धक्का दे दिया।
“अरे, जीजी!” सुमन का संतुलन बिगड़ा, और वह हँसते हुए नदी के उथले पानी में फिसल गई। पानी में गिरते ही उसकी साड़ी पूरी तरह गीली हो गई, और वह हँसते हुए खड़ी हो गई। “हाय, जीजी, ये क्या किया!” उसने पानी में छलांग लगाते हुए कहा, मगर उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुसुम पेट पकड़कर हँस रही थी। “अरे, तू तो पूरी भैंस की तरह पानी में कूद गई!” उसने मज़ाक उड़ाया, अपने पैरों को पानी से निकालते हुए।
“अच्छा, भैंस कहा मुझे?” सुमन ने नकली गुस्से में कहा और तेज़ी से कुसुम का हाथ पकड़कर उसे भी पानी में खींच लिया। “अब तुम भी भैंस की जेठानी बनो!” दोनों पानी में एक-दूसरे पर छींटे मारने लगीं, हँसी और चीख-पुकार से नदी का किनारा गूँज उठा। उनकी साड़ियाँ अब पूरी तरह गीली हो चुकी थीं, और कपड़े उनके भरे हुए बदनों से चिपक गए थे। सुमन का ब्लाउज़ उसके मोटे-मोटे उरोजों को उभार रहा था, और कुसुम की साड़ी उसकी गहरी नाभि और मांसल कमर को और निखार रही थी।
कुसुम: अच्छा अब नहा ही रहे हैं तो अच्छे से नहा लेते हैं
ये कह कुसुम ने अपने पल्लू को सीने से हटाया और कमर पर लपेट लिया,
सुमन: अरे जीजी ये क्या कर रही हो कोई आ गया तो,
कुसुम: अरे इधर औरतें ही कपड़े वगैरा धोती हैं मर्द इस ओर नहीं आते, चिंता मत कर।
सुमन: चलो तुम कह रही हो तो ठीक है।
ये कह सुमन भी कुसुम की तरह अपने पल्लू को नीचे ही लपेट लेती है और दोनों फिर से पानी को उछाल कर खेलने लगती हैं।

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दोनों बेखबर होकर नदी के ठंडे पानी में नहाने और मज़ाक करने में व्यस्त थीं। लेकिन नदी के किनारे की यह मासूम हँसी किसी की नज़रों से छुपी नहीं थी। दूर, एक पुराने बरगद के पेड़ की आड़ में, सोमपाल खड़ा था। वह अपनी शाम की सैर के लिए निकला था, मगर सुमन और कुसुम की हँसी ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया। उसकी नज़रें दोनों की गीली साड़ियों में लिपटे कामुक बदनों पर जमी थीं। सुमन की साड़ी उसके भरे हुए चूतड़ों से चिपकी थी, और कुसुम का गीला ब्लाउज़ उसकी चूचियों को इस तरह उभार रहा था मानो कोई मूर्तिकार ने उन्हें तराशा हो, दोनों के मखमली पेट और नाभी तो मानो जैसे मक्खन के ही नजर आ रही थीं। उन्हें देखते हुए सोमपाल की आँखों में वासना की चमक थी, और उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी।
“हाय, ये देवरानी-जेठानी तो एक से बढ़कर एक हैं,” उसने मन ही मन सोचा। उसका लंड धोती के नीचे कड़क होने लगा।

इनके रसीले बदन का स्वाद तो बड़ा मस्त होगा। सुमन की वो गहरी नाभि, और कुसुम की वो भारी चूचियाँ—हाय, क्या नज़ारा है!” उसकी नज़रें एक पल के लिए भी नहीं हटीं। वह पेड़ की आड़ में खड़ा, उनकी हर हरकत को गौर से देख रहा था।

सुमन ने कुसुम पर फिर से पानी का छींटा मारा। “जीजी, अब तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा चिपक गया है बदन से मानो पहना ही न हो” उसने हँसते हुए कहा।
“अरे, होने दे कोई नहीं देख रहा” कुसुम ने जवाब दिया। “मेंरी साड़ी तो देख अब बदन से चिपककर सब कुछ दिखा रही है!” दोनों फिर से हँस पड़ीं, और पानी में एक-दूसरे को छेड़ने लगीं। उनकी हँसी और मासूम शरारतें नदी के किनारे एक अनजाना रंग बिखेर रही थीं, मगर वे इस बात से बेखबर थीं कि उनकी यह मस्ती किसी की वासना को भड़का रही थी।
सोमपाल की साँसें गहरी हो रही थीं। उसने अपनी धोती को और कस लिया, मगर उसका उभार अब छुपाए नहीं छुप रहा था। “इन दोनों को तो हवेली में होना चाहिए दोनों को रानी बना कर रखूंगा, कुछ तो चक्कर चलाना पड़ेगा” उसने सोचा।
पर ये दोनों सती-सावित्री और संस्कारी हैं, आसानी से नहीं फँसेंगीयू ऊपर से इनका परिवार भी समृद्ध है इतनी जल्दी कुछ नहीं होगा। फिर भी, कोशिश तो बनती है।” उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी, मानो वह कोई नया जाल बुनने की सोच रहा हो।
कुसुम ने पानी से बाहर निकलते हुए कहा, “बस, सुमन, अब बहुत हुआ। चल, घर चलते हैं, वरना सर्दी लग जाएगी।” उसने अपनी साड़ी को निचोड़ा, मगर गीले कपड़े अब भी उसके बदन से चिपके थे। सुमन भी हँसते हुए बाहर आई और अपने बालों को निचोड़ने लगी। गाँव की ओर चल पड़ीं, आपस में हँसते-बातें करते हुए

सोमपाल तब तक पेड़ की आड़ में खड़ा रहा, जब तक उनकी आकृतियाँ गाँव की गलियों में ओझल नहीं हो गईं। उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी। “चलो, आज तो नज़ारा मिल गया,” उसने मन ही मन कहा। “कब इन दोनों को हवेली की राह दिखाने का वक्त आएगा।” वह धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ गया, मगर उसके मन में सुमन और कुसुम की गीली साड़ियों में लिपटी छवियाँ अब भी नाच रही थीं।
जारी रहेगी।
Bhut shandaar update..... dekho kon pahle shikar karta hai baap ya beta......



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raj453

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नौवाँ अध्याय


सज्जनपुर की दोपहर धीरे-धीरे अपनी चाल में थी। गाँव की गलियों में धूल उड़ रही थी, और खेतों से हल्की हवा के साथ फसलों की खुशबू आ रही थी। कम्मू के घर का आँगन शांत था, जहाँ सोनू अपने दोस्त को उठाने पहुँचा। कम्मू बिस्तर पर आलस में पड़ा था, आँखें मलते हुए उठा। सोनू को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। “अरे, कब आया यार?” कम्मू ने उत्साह से पूछा, बिस्तर से उठते हुए।
“अभी बस, अभी आया,” सोनू ने जवाब दिया, और दोनों कमरे की खटिया पर बैठकर बातें करने लगे।
कम्मू ने पूछा, “आज हवेली नहीं गया?
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नहीं यार, आज काम कम था। जल्दी छुट्टी मिल गई।
कम्मू: अच्छा हुआ यार बहुत दिन से तुझसे मिलना ही नहीं हो पा रहा था।
सोनू: हां यार सुबह जाता हूं और आते आते अंधेरा हो जाता है।
कम्मू: हां यार वैसे, बता, वो कर्मा और अनुज तुझे परेशान तो नहीं करते?
सोनू का मन एक पल के लिए ठिठका। उसकी आँखों के सामने वह दृश्य कौंध गया—उसकी माँ रजनी और नीलेश, नंगे, एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए। उसने जल्दी से अपने चेहरे को संभाला और बोला, “नहीं यार, सब ठीक है। हम शायद उन्हें ज़्यादा बुरा समझते हैं। कर्मा तो मुझसे अच्छे से बात करता है।

कम्मू ने भौंहें चढ़ाईं। “यकीन नहीं होता। कर्मा बड़ा कमीना लगता है मुझे। पक्का तुझे या तेरी माँ को हवेली में कोई परेशानी तो नहीं?

सोनू ने फिर से उस दृश्य को मन में दबाया और कहा, “नहीं यार, कोई परेशानी नहीं। सब ठीक है।” उसकी आवाज़ में हल्का सा काँपन था, मगर कम्मू का ध्यान उस पर नहीं गया।
कम्मू: चल अच्छा है फिर भी तू सावधान रहियो और मुझसे कुछ मत छुपाना।
अरे, ऐसा नहीं है,” सोनू ने हँसकर जवाब दिया। “वो तो मुझे आज मोटरसाइकिल पर बाज़ार ले गया था। समोसे खिलाए, ठंडा पिलाया, और फिर घर पर भी छोड़ गया।”

कम्मू ने हैरानी से कहा, “अरे वाह! इतनी मेहरबानी? कुछ तो गड़बड़ है। कर्मा ऐसा बिना मतलब के नहीं करता।
सोनू ने कर्मा और मज़दूर औरत की चुदाई का दृश्य अपने मन में दबा रखा था। वह उस बात को कम्मू से छुपाते हुए बोला, “नहीं यार, शायद वो मेरी उम्र का है, तो मुझे दोस्त मानता है।

“अच्छा, तो तेरा नया दोस्त अब कर्मा है, हवेली का लड़का! हमें तो अब तू भूल ही जाएगा,” कम्मू ने हँसते हुए तंज कसा।
सोनू: अबे तू भी न कुछ भी बोलता है, मेरे दोस्त तो तुम दोनों ही रहोगे हमेशा।
इसी बीच सुमन नहाकर कमरे में आई। उसके गीले बाल हवा में झूल रहे थे, और बदन पर सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ था। उसका बदन हल्का गीला था, और ब्लाउज़ उसके भरे हुए सीने को उभार रहा था।

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गाँव के छोटे घरों में दो कमरे होने की वजह से यह आम बात थी। सुमन को बच्चों के सामने कोई संकोच नहीं था, खासकर सोनू के सामने, जिसे वह बचपन से बेटे की तरह मानती थी।
मगर सोनू की नज़रें छुप-छुपकर सुमन के बदन पर पड़ रही थीं। कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं—सुमन चाची का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और मखमली पेट। उसने जल्दी से सिर झटका और सोचा, “नहीं यार, मेरा दोस्त साथ में है, और मैं उसकी माँ को ऐसे देख रहा हूँ। ये गलत है।

सुमन ने साड़ी पहनी और दोनों से पूछा, “चाय पियोगे?”
कम्मू ने दोनों की ओर से तपाक से हाँ बोल दिया। सुमन मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
कम्मू ने फिर सोनू से पूछा, “वैसे, कर्मा ने मेरे या मेरे परिवार के बारे में कुछ बोला? उस दिन मैदान में उससे झड़प हो गई थी न, उसके बाद कुछ तो नहीं कहा?”
सोनू को कर्मा की बात याद आई—कम्मू की माँ और ताई के भरे हुए बदन की तारीफ़, और यह कि उसने उन्हें सोचकर कई बार हिलाया था। मगर सोनू ने यह बात मन में दबाई और बोला, “नहीं यार, सच में कुछ नहीं। तू बेकार में चिंता मत कर।”
कम्मू ने राहत की साँस ली और बोला, “सही है यार। मैं नहीं चाहता कि धीरज भैया के ब्याह के समय कोई शिकायत आए। खासकर हवेली वालों के साथ कोई कांड हो, ये तो बिल्कुल नहीं।”
सोनू ने सिर हिलाया, मगर उसका मन उलझा हुआ था। कर्मा की बातें, उसकी माँ का हवेली में बदला हुआ रूप, और आज का खेत वाला दृश्य—यह सब उसके मासूम मन को भारी कर रहा था। कम्मू ने उसकी उदासी भाँप ली और बोला, “चल, चाय पीते हैं, फिर बाहर मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते हैं। कब से तूने बल्ला नहीं पकड़ा!”
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। दोनों बाहर आँगन में आए, जहाँ सुमन चाय चूल्हे से उतार रही थी
सुमन: बैठो तुम लोग अभी देती हूं,
सोनू और कम्मू दोनों ही छप्पर में पड़ी खाट पर बैठ गए, सोनू जैसे ही बैठा तो उसे पीछे से आवाज़ आई: अरे सोनू लला मां कैसी है तेरी?
उसने पीछे मूड कर देखा तो सामने कम्मू की ताई और सुमन की जेठानी कुसुम थी और अब वो भी नल के पास बैठ कपड़े धो रही थी।
सोनू: ठीक है ताई, अभी हवेली में ही हैं।
सोनू ने कुसुम के भरे बदन को देखते हुए कहा, ब्लाउज उसकी बड़ी चूचियों के उभार को छुपा नहीं पा रहा था, नीचे उसका मांसल पेट, गोल गहरी नाभी, कमर में पड़ी सिलवटें, ये सब देख सोनू को सिहरन हुई अंदर ही अंदर और उसे कर्मा की ये बात फिर से याद आ गई।

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कुसुम: चलो बढ़िया है, अब कोई परेशानी तो नहीं, और तेरे बाप की कोई खबर?
सोनू: नहीं ताई कोई परेशानी नहीं है, और उनकी खबर लेकर क्या ही करना है।
कुसुम: हां लल्ला आने से मुसीबत बढ़े तो इससे अच्छा है वो अलग ही रहे।
सुमन: सही कह रही हो जीजी, वैसे ही दुख कम थोड़े ही हैं जो उन्हें और झेले।
सुमन ने चाय देते हुए कहा,
कुसुम: हां तुम लोग अपना ध्यान रखो, उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोनू: हां ताई अभी वैसे भी न इतना समय है और न ही इतनी हिम्मत कि उनके बारे में सोचें।
चाय खत्म होने तक ऐसे ही बातें चलती रहती हैं, सोनू बीच बीच बीच में सुमन और कुसुम को छुप छुप कर देख लेता था, चाय खत्म कर दोनों घर से निकल गए ।
सोनू: मन्नू को तो बुला ले, वो नहीं खेलेगा?
कम्मू: अरे आज बिंदिया दीदी को देखने वाले आ रहे हैं तो वो नहीं आयेगा।
सोनू: चल ये तो अच्छा है, यार लड़का अच्छा हुआ तो उनका भी ब्याह हो जाए जल्दी।
कम्मू: हां बिल्कुल क्यों नहीं होगा।
दोनों बात करते हुए मैदान की ओर निकल जाते हैं।

तेजपाल के घर में आज एक खास माहौल था। बिंदिया को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। तेजपाल का घर, जो आम तौर पर सादगी और मेहनत की कहानी कहता था, आज सज-धज कर तैयार था। आँगन को गोबर और मिट्टी से लीपकर चमकाया गया था, और घर की चौखट पर रंगोली बनाई गई थी। झुमरी, तेजपाल की बहू, रसोई में मिठाई और नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी, जबकि तेजपाल और उनका बेटा रत्नाकर मेहमानों की आवभगत की तैयारियों में जुटे थे। बिंदिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी, उसका मन उत्साह और घबराहट के बीच झूल रहा था।

लड़के वाला परिवार पास के गाँव से था। परिवार में चार लोग थे: पप्पू, 42 वर्षीय किसान और परिवार का मुखिया,
उनकी पत्नी रज्जो, 38 वर्ष की, जिनका भरा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मखमली पेट, गहरी नाभि, और फैले हुए चूतड़, झुमरी से कम नहीं थे।
उनका बेटा प्यारे, 22 वर्ष का, एक आम गाँव का लड़का, मेहनती और सौम्य स्वभाव का, जिसे आज बिंदिया को देखने आना था।
उनकी बेटी चंदा, 20 वर्ष की, सुंदर और कामुक, अपने भाई के साथ आई थी, ताकि वह भी होने वाली भाभी को देख सके।

दोपहर ढलते ही पप्पू का परिवार तेजपाल के घर की दहलीज़ पर पहुँचा। पप्पू ने अपने कंधे पर गमछा डाला हुआ था, और उनके सादे कुरते-पायजामे में किसान की मेहनत की सादगी झलक रही थी। रज्जो ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भरे हुए बदन को और उभार रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, जिसे वह बार-बार संभाल रही थी। प्यारे एक साफ-सुथरे कुरते में था, उसका चेहरा सौम्य और थोड़ा शर्मीला था। चंदा ने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहना था, जो उसकी जवानी को निखार रहा थी।

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तेजपाल ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। “आइए, आइए, पप्पू भाई, घर में पधारिए,” उन्होंने कहा और आँगन में बिछी दरी पर मेहमानों को बिठाया। रत्नाकर ने तुरंत पानी के गिलास लाकर रखे, और झुमरी रसोई से जल्दी-जल्दी नाश्ते की थाली ले आई। थाली में गुझिया, समोसे, और लड्डू सजे हुए थे, साथ में चाय की केतली थी।
“क्या बात है, चाचाजी, इतना इंतज़ाम कर रखा है,” पप्पू ने हँसते हुए कहा, अपनी मूँछों को ताव देते हुए। “हम तो बस अपनी बेटी को देखने आए हैं, इतनी मेहरबानी की क्या ज़रूरत थी?”
“अरे भाई, आप लोग हमारे मेहमान हैं। बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात है, थोड़ा-बहुत तो बनता है,” तेजपाल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रज्जो ने थाली की ओर देखा और बोली, “वाह, झुमरी बहन, ये गुझिया तो देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। अपने हाथों से बनाई हैं?”
“हाँ, बहनजी, सब घर का बनाया है,” झुमरी ने शर्माते हुए कहा। “आप खाकर बताइए, कैसी बनी हैं।”
चंदा, जो अब तक चुप थी, उसने समोसा उठाया और एक छोटा सा टुकड़ा मुँह में डाला। “हम्म, बहुत स्वादिष्ट है, चाची” उसने कहा, और उसकी मुस्कान ने माहौल को और हल्का कर दिया।

बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पप्पू ने अपने खेतों और फसलों की बात की, जबकि तेजपाल ने गाँव की हाल-चाल और पड़ोस में धीरज की शादी की तैयारियों का ज़िक्र किया। रज्जो और झुमरी औरतों की बातों में मशगूल हो गईं—खाना, साड़ियाँ, और गाँव की चुगलियाँ। प्यारे और रत्नाकर चुपचाप सुन रहे थे, मगर उनकी नज़रें बार-बार एक-दूसरे से मिल रही थीं, जैसे दोनों एक-दूसरे को परख रहे हों।
थोड़ी देर बाद तेजपाल ने कहा, “चलो, अब बिंदिया को बुलाते हैं। आप लोग तो उसी को देखने आए हैं।” उन्होंने झुमरी की ओर इशारा किया, और झुमरी कमरे की ओर गई।
बिंदिया कमरे में तैयार थी। उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे रंग को और निखार रही थी। उसके बाल खुले थे, और माथे पर छोटी सी बिंदी थी। उसका चेहरा घबराहट और शर्म से लाल हो रहा था।

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झुमरी ने उसे प्यार से हाथ पकड़कर बाहर लाया। बिंदिया ने सिर झुकाकर आँगन में कदम रखा और मेहमानों के सामने खड़ी हो गई। उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, और वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू संभाल रही थी।
रज्जो ने बिंदिया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराते हुए पप्पू की ओर देखा। “वाह, बहन जी, आपकी बेटी तो एकदम चाँद का टुकड़ा है,” उसने कहा।
“हाँ, बिल्कुल। सादगी में सुंदरता है इसकी,” पप्पू ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा।
चंदा ने बिंदिया को गौर से देखा और बोली, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत सुंदर है। ये रंग आप पर बहुत जँच रहा है।”
बिंदिया ने शर्माते हुए हल्का सा सिर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा, “धन्यवाद।” उसकी आवाज़ में मिठास थी, जो सभी को भा गई।
तेजपाल ने बिंदिया से कहा, “बेटी, प्यारे को चाय दे दो।” बिंदिया ने सिर हिलाया और एक चाय का कप धीरे से प्यारे की ओर बढ़ाया। प्यारे ने चाय लेते हुए पहली बार बिंदिया को गौर से देखा। उसकी आँखों में एक सादगी थी, और बिंदिया की शर्मीली मुस्कान ने उसके मन में कुछ हलचल मचा दी। उसने चाय का प्याला थामा और धीरे से “धन्यवाद” कहा।
रत्नाकर ने माहौल को और हल्का करने के लिए कहा, “प्यारे, तुम भी कुछ बताओ। खेतों में काम करते हो न? कैसा चल रहा है सब?”
प्यारे ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “हाँ, चाचाजी, खेतों में काम अच्छा चल रहा है। इस बार धान की फसल अच्छी हुई है। बाकी, बस मेहनत करते हैं।”
बहुत मेहनती है हमारा प्यारे,” रज्जो ने गर्व से कहा। “दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। घर में भी सबकी मदद करता है।”
तेजपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो अच्छी बात है। हमारी बिंदिया भी घर के काम में माहिर है। खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सब आता है इसे।”
बातचीत के बीच दोनों परिवार एक-दूसरे को परख रहे थे। पप्पू और रज्जो को बिंदिया की सादगी और सुंदरता पसंद आई, जबकि तेजपाल, रत्नाकर और झुमरी को प्यारे का मेहनती और सौम्य स्वभाव भा गया। चंदा ने बिंदिया से कुछ छोटी-मोटी बातें कीं, जैसे साड़ी का रंग और गाँव की शादियों की रस्में, जिससे बिंदिया थोड़ा सहज हो गई।
थोड़ी देर बाद रज्जो ने पप्पू की ओर देखा और हल्का सा सिर हिलाया। पप्पू ने समझ लिया और तेजपाल से बोला, “चाचाजी, रत्नाकर भाई, हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। सादगी और संस्कार दोनों हैं इसमें। अगर आपको हमारा प्यारे पसंद हो, तो हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहेंगे।”
तेजपाल ने रत्नाकर और झुमरी की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला रहे थे। “पप्पू, हमें भी आपका बेटा बहुत पसंद आया। मेहनती और सज्जन लड़का है। हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं,” तेजपाल ने गर्मजोशी से कहा।
आँगन में खुशी की लहर दौड़ गई। झुमरी ने तुरंत मिठाई की थाली लाकर सभी को लड्डू खिलाए। रज्जो ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, अब तू हमारे घर की बहू बनेगी। हम तेरा बहुत खयाल रखेंगे।”
बिंदिया ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। प्यारे ने भी चुपके से बिंदिया की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक नया सपना जागने लगा। चंदा ने बिंदिया का हाथ पकड़कर कहा, “भाभी, अब तो हमें खूब बातें करनी हैं।”
मेहमानों की आवभगत के बाद पप्पू का परिवार विदा हुआ। तेजपाल और रत्नाकर ने उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ा। झुमरी ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, तुझे अच्छा घर मिला है। प्यारे और उसका परिवार बहुत अच्छे लोग हैं।”
बिंदिया ने सिर हिलाया, मगर उसका मन कहीं और था। कर्मा की वह शरारती मुस्कान और उसकी नज़रें बार-बार उसके दिमाग में कौंध रही थीं। हवेली की चमक और कर्मा का रुतबा उसे आकर्षित तो करता था, मगर घरवालों की हिदायतें और प्यारे की सादगी उसे एक अलग राह पर ले जा रही थी।
लड़के वालों के जाते ही बिंदिया को अनामिका, अंजू, नेहा और मनीषा ने घेर लिया और उसे चिढ़ाते हुए उसके साथ मज़ाक करते हुए उससे सब पूछने लगी, बिंदिया भी उनके साथ बात करके खुश हो रही थी और मज़ाक में साथ दे रही थी। वहीं झुमरी को सुमन और कुसुम ने घेर लिया और उससे सब पूछने लगीं। झुमरी भी खूब चाव से सब बता रही थी।




सज्जनपुर में सूरज ढल चुका था, और गाँव पर शाम की सुनहरी धुंध छा रही थी। खेतों से लौटते मज़दूरों की आवाज़ें धीमी पड़ रही थीं, और नदी के किनारे हल्की ठंडक बस रही थी। सुमन और कुसुम, कुसुम के कहने पर और थोड़ा सा बाहर की हवा खाने के लिए नदी की ओर निकल पड़ीं। दोनों देवरानी-जेठानी की जोड़ी गाँव में अपनी सादगी और मेहनत के लिए जानी जाती थी, मगर उनकी हँसी और आपसी मज़ाक गाँव की गलियों में एक अलग रंग भरता था।
नदी का किनारा शांत था, सिर्फ़ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं भटकती चिड़ियों की आवाज़ें गूँज रही थीं। सुमन और कुसुम ने अपने चप्पल किनारे पर उतारे और नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोकर किनारे की एक चट्टान पर बैठ गईं। सुमन की साड़ी का पल्लू उसकी कमर पर लिपटा था, और कुसुम की साड़ी का आँचल हल्का सा सरककर उसके मांसल कंधे को उघाड़ रहा था। दोनों के चेहरों पर थकान के साथ-साथ एक हल्की सी मुस्कान थी।
“जीजी, आज का दिन तो बड़ा भारी था,” सुमन ने अपने गीले पैरों को पानी में हिलाते हुए कहा। “धीरज के ब्याह की तैयारियाँ, घर का काम, इतने सारे कपड़े धोए आज तो मैने, ऊपर से ये गर्मी। थक गई मैं तो।”
“हाँ, सुमन, पर अब ये ठंडा पानी सारी थकान निकाल देगा,” कुसुम ने हँसते हुए कहा। उसने एक छोटा सा कंकड़ उठाया और पानी में फेंका, जिससे छोटी-छोटी लहरें उठीं। “वैसे, बिंदिया का रिश्ता पक्का हो गया, ये तो अच्छी बात है। प्यारे लड़का सज्जन और मेहनती लगता है।” जैसे झुमरी ने बताया,
“हाँ, जीजी, सही कह रही हो। बिंदिया को अच्छा घर मिलेगा। सुमन ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। “पर मुझे तो अभी भी हँसी आ रही है, जब बिंदिया शर्म से लाल हो गई जब सब लड़कियों ने उसे घेरा तो।”
दोनों हँस पड़ीं। उनकी हँसी नदी के किनारे गूँज उठी, मानो पानी भी उनके मज़ाक में शामिल हो गया हो। कुसुम ने शरारत भरे अंदाज़ में सुमन की ओर देखा और बोली, “अच्छा, तू हँस रही है? जैसे तू नहीं शरमाई थी अपनी बारी में” कहते हुए उसने मज़ाक में सुमन को हल्का सा धक्का दे दिया।
“अरे, जीजी!” सुमन का संतुलन बिगड़ा, और वह हँसते हुए नदी के उथले पानी में फिसल गई। पानी में गिरते ही उसकी साड़ी पूरी तरह गीली हो गई, और वह हँसते हुए खड़ी हो गई। “हाय, जीजी, ये क्या किया!” उसने पानी में छलांग लगाते हुए कहा, मगर उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुसुम पेट पकड़कर हँस रही थी। “अरे, तू तो पूरी भैंस की तरह पानी में कूद गई!” उसने मज़ाक उड़ाया, अपने पैरों को पानी से निकालते हुए।
“अच्छा, भैंस कहा मुझे?” सुमन ने नकली गुस्से में कहा और तेज़ी से कुसुम का हाथ पकड़कर उसे भी पानी में खींच लिया। “अब तुम भी भैंस की जेठानी बनो!” दोनों पानी में एक-दूसरे पर छींटे मारने लगीं, हँसी और चीख-पुकार से नदी का किनारा गूँज उठा। उनकी साड़ियाँ अब पूरी तरह गीली हो चुकी थीं, और कपड़े उनके भरे हुए बदनों से चिपक गए थे। सुमन का ब्लाउज़ उसके मोटे-मोटे उरोजों को उभार रहा था, और कुसुम की साड़ी उसकी गहरी नाभि और मांसल कमर को और निखार रही थी।
कुसुम: अच्छा अब नहा ही रहे हैं तो अच्छे से नहा लेते हैं
ये कह कुसुम ने अपने पल्लू को सीने से हटाया और कमर पर लपेट लिया,
सुमन: अरे जीजी ये क्या कर रही हो कोई आ गया तो,
कुसुम: अरे इधर औरतें ही कपड़े वगैरा धोती हैं मर्द इस ओर नहीं आते, चिंता मत कर।
सुमन: चलो तुम कह रही हो तो ठीक है।
ये कह सुमन भी कुसुम की तरह अपने पल्लू को नीचे ही लपेट लेती है और दोनों फिर से पानी को उछाल कर खेलने लगती हैं।

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दोनों बेखबर होकर नदी के ठंडे पानी में नहाने और मज़ाक करने में व्यस्त थीं। लेकिन नदी के किनारे की यह मासूम हँसी किसी की नज़रों से छुपी नहीं थी। दूर, एक पुराने बरगद के पेड़ की आड़ में, सोमपाल खड़ा था। वह अपनी शाम की सैर के लिए निकला था, मगर सुमन और कुसुम की हँसी ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया। उसकी नज़रें दोनों की गीली साड़ियों में लिपटे कामुक बदनों पर जमी थीं। सुमन की साड़ी उसके भरे हुए चूतड़ों से चिपकी थी, और कुसुम का गीला ब्लाउज़ उसकी चूचियों को इस तरह उभार रहा था मानो कोई मूर्तिकार ने उन्हें तराशा हो, दोनों के मखमली पेट और नाभी तो मानो जैसे मक्खन के ही नजर आ रही थीं। उन्हें देखते हुए सोमपाल की आँखों में वासना की चमक थी, और उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी।
“हाय, ये देवरानी-जेठानी तो एक से बढ़कर एक हैं,” उसने मन ही मन सोचा। उसका लंड धोती के नीचे कड़क होने लगा।

इनके रसीले बदन का स्वाद तो बड़ा मस्त होगा। सुमन की वो गहरी नाभि, और कुसुम की वो भारी चूचियाँ—हाय, क्या नज़ारा है!” उसकी नज़रें एक पल के लिए भी नहीं हटीं। वह पेड़ की आड़ में खड़ा, उनकी हर हरकत को गौर से देख रहा था।

सुमन ने कुसुम पर फिर से पानी का छींटा मारा। “जीजी, अब तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा चिपक गया है बदन से मानो पहना ही न हो” उसने हँसते हुए कहा।
“अरे, होने दे कोई नहीं देख रहा” कुसुम ने जवाब दिया। “मेंरी साड़ी तो देख अब बदन से चिपककर सब कुछ दिखा रही है!” दोनों फिर से हँस पड़ीं, और पानी में एक-दूसरे को छेड़ने लगीं। उनकी हँसी और मासूम शरारतें नदी के किनारे एक अनजाना रंग बिखेर रही थीं, मगर वे इस बात से बेखबर थीं कि उनकी यह मस्ती किसी की वासना को भड़का रही थी।
सोमपाल की साँसें गहरी हो रही थीं। उसने अपनी धोती को और कस लिया, मगर उसका उभार अब छुपाए नहीं छुप रहा था। “इन दोनों को तो हवेली में होना चाहिए दोनों को रानी बना कर रखूंगा, कुछ तो चक्कर चलाना पड़ेगा” उसने सोचा।
पर ये दोनों सती-सावित्री और संस्कारी हैं, आसानी से नहीं फँसेंगीयू ऊपर से इनका परिवार भी समृद्ध है इतनी जल्दी कुछ नहीं होगा। फिर भी, कोशिश तो बनती है।” उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी, मानो वह कोई नया जाल बुनने की सोच रहा हो।
कुसुम ने पानी से बाहर निकलते हुए कहा, “बस, सुमन, अब बहुत हुआ। चल, घर चलते हैं, वरना सर्दी लग जाएगी।” उसने अपनी साड़ी को निचोड़ा, मगर गीले कपड़े अब भी उसके बदन से चिपके थे। सुमन भी हँसते हुए बाहर आई और अपने बालों को निचोड़ने लगी। गाँव की ओर चल पड़ीं, आपस में हँसते-बातें करते हुए

सोमपाल तब तक पेड़ की आड़ में खड़ा रहा, जब तक उनकी आकृतियाँ गाँव की गलियों में ओझल नहीं हो गईं। उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी। “चलो, आज तो नज़ारा मिल गया,” उसने मन ही मन कहा। “कब इन दोनों को हवेली की राह दिखाने का वक्त आएगा।” वह धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ गया, मगर उसके मन में सुमन और कुसुम की गीली साड़ियों में लिपटी छवियाँ अब भी नाच रही थीं।
जारी रहेगी।
Bahut mst likha h bhai aisehi mst update likhte rhyea
 

insotter

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नौवाँ अध्याय


सज्जनपुर की दोपहर धीरे-धीरे अपनी चाल में थी। गाँव की गलियों में धूल उड़ रही थी, और खेतों से हल्की हवा के साथ फसलों की खुशबू आ रही थी। कम्मू के घर का आँगन शांत था, जहाँ सोनू अपने दोस्त को उठाने पहुँचा। कम्मू बिस्तर पर आलस में पड़ा था, आँखें मलते हुए उठा। सोनू को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। “अरे, कब आया यार?” कम्मू ने उत्साह से पूछा, बिस्तर से उठते हुए।
“अभी बस, अभी आया,” सोनू ने जवाब दिया, और दोनों कमरे की खटिया पर बैठकर बातें करने लगे।
कम्मू ने पूछा, “आज हवेली नहीं गया?
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नहीं यार, आज काम कम था। जल्दी छुट्टी मिल गई।
कम्मू: अच्छा हुआ यार बहुत दिन से तुझसे मिलना ही नहीं हो पा रहा था।
सोनू: हां यार सुबह जाता हूं और आते आते अंधेरा हो जाता है।
कम्मू: हां यार वैसे, बता, वो कर्मा और अनुज तुझे परेशान तो नहीं करते?
सोनू का मन एक पल के लिए ठिठका। उसकी आँखों के सामने वह दृश्य कौंध गया—उसकी माँ रजनी और नीलेश, नंगे, एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए। उसने जल्दी से अपने चेहरे को संभाला और बोला, “नहीं यार, सब ठीक है। हम शायद उन्हें ज़्यादा बुरा समझते हैं। कर्मा तो मुझसे अच्छे से बात करता है।

कम्मू ने भौंहें चढ़ाईं। “यकीन नहीं होता। कर्मा बड़ा कमीना लगता है मुझे। पक्का तुझे या तेरी माँ को हवेली में कोई परेशानी तो नहीं?

सोनू ने फिर से उस दृश्य को मन में दबाया और कहा, “नहीं यार, कोई परेशानी नहीं। सब ठीक है।” उसकी आवाज़ में हल्का सा काँपन था, मगर कम्मू का ध्यान उस पर नहीं गया।
कम्मू: चल अच्छा है फिर भी तू सावधान रहियो और मुझसे कुछ मत छुपाना।
अरे, ऐसा नहीं है,” सोनू ने हँसकर जवाब दिया। “वो तो मुझे आज मोटरसाइकिल पर बाज़ार ले गया था। समोसे खिलाए, ठंडा पिलाया, और फिर घर पर भी छोड़ गया।”

कम्मू ने हैरानी से कहा, “अरे वाह! इतनी मेहरबानी? कुछ तो गड़बड़ है। कर्मा ऐसा बिना मतलब के नहीं करता।
सोनू ने कर्मा और मज़दूर औरत की चुदाई का दृश्य अपने मन में दबा रखा था। वह उस बात को कम्मू से छुपाते हुए बोला, “नहीं यार, शायद वो मेरी उम्र का है, तो मुझे दोस्त मानता है।

“अच्छा, तो तेरा नया दोस्त अब कर्मा है, हवेली का लड़का! हमें तो अब तू भूल ही जाएगा,” कम्मू ने हँसते हुए तंज कसा।
सोनू: अबे तू भी न कुछ भी बोलता है, मेरे दोस्त तो तुम दोनों ही रहोगे हमेशा।
इसी बीच सुमन नहाकर कमरे में आई। उसके गीले बाल हवा में झूल रहे थे, और बदन पर सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ था। उसका बदन हल्का गीला था, और ब्लाउज़ उसके भरे हुए सीने को उभार रहा था।

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गाँव के छोटे घरों में दो कमरे होने की वजह से यह आम बात थी। सुमन को बच्चों के सामने कोई संकोच नहीं था, खासकर सोनू के सामने, जिसे वह बचपन से बेटे की तरह मानती थी।
मगर सोनू की नज़रें छुप-छुपकर सुमन के बदन पर पड़ रही थीं। कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं—सुमन चाची का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और मखमली पेट। उसने जल्दी से सिर झटका और सोचा, “नहीं यार, मेरा दोस्त साथ में है, और मैं उसकी माँ को ऐसे देख रहा हूँ। ये गलत है।

सुमन ने साड़ी पहनी और दोनों से पूछा, “चाय पियोगे?”
कम्मू ने दोनों की ओर से तपाक से हाँ बोल दिया। सुमन मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
कम्मू ने फिर सोनू से पूछा, “वैसे, कर्मा ने मेरे या मेरे परिवार के बारे में कुछ बोला? उस दिन मैदान में उससे झड़प हो गई थी न, उसके बाद कुछ तो नहीं कहा?”
सोनू को कर्मा की बात याद आई—कम्मू की माँ और ताई के भरे हुए बदन की तारीफ़, और यह कि उसने उन्हें सोचकर कई बार हिलाया था। मगर सोनू ने यह बात मन में दबाई और बोला, “नहीं यार, सच में कुछ नहीं। तू बेकार में चिंता मत कर।”
कम्मू ने राहत की साँस ली और बोला, “सही है यार। मैं नहीं चाहता कि धीरज भैया के ब्याह के समय कोई शिकायत आए। खासकर हवेली वालों के साथ कोई कांड हो, ये तो बिल्कुल नहीं।”
सोनू ने सिर हिलाया, मगर उसका मन उलझा हुआ था। कर्मा की बातें, उसकी माँ का हवेली में बदला हुआ रूप, और आज का खेत वाला दृश्य—यह सब उसके मासूम मन को भारी कर रहा था। कम्मू ने उसकी उदासी भाँप ली और बोला, “चल, चाय पीते हैं, फिर बाहर मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते हैं। कब से तूने बल्ला नहीं पकड़ा!”
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। दोनों बाहर आँगन में आए, जहाँ सुमन चाय चूल्हे से उतार रही थी
सुमन: बैठो तुम लोग अभी देती हूं,
सोनू और कम्मू दोनों ही छप्पर में पड़ी खाट पर बैठ गए, सोनू जैसे ही बैठा तो उसे पीछे से आवाज़ आई: अरे सोनू लला मां कैसी है तेरी?
उसने पीछे मूड कर देखा तो सामने कम्मू की ताई और सुमन की जेठानी कुसुम थी और अब वो भी नल के पास बैठ कपड़े धो रही थी।
सोनू: ठीक है ताई, अभी हवेली में ही हैं।
सोनू ने कुसुम के भरे बदन को देखते हुए कहा, ब्लाउज उसकी बड़ी चूचियों के उभार को छुपा नहीं पा रहा था, नीचे उसका मांसल पेट, गोल गहरी नाभी, कमर में पड़ी सिलवटें, ये सब देख सोनू को सिहरन हुई अंदर ही अंदर और उसे कर्मा की ये बात फिर से याद आ गई।

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कुसुम: चलो बढ़िया है, अब कोई परेशानी तो नहीं, और तेरे बाप की कोई खबर?
सोनू: नहीं ताई कोई परेशानी नहीं है, और उनकी खबर लेकर क्या ही करना है।
कुसुम: हां लल्ला आने से मुसीबत बढ़े तो इससे अच्छा है वो अलग ही रहे।
सुमन: सही कह रही हो जीजी, वैसे ही दुख कम थोड़े ही हैं जो उन्हें और झेले।
सुमन ने चाय देते हुए कहा,
कुसुम: हां तुम लोग अपना ध्यान रखो, उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोनू: हां ताई अभी वैसे भी न इतना समय है और न ही इतनी हिम्मत कि उनके बारे में सोचें।
चाय खत्म होने तक ऐसे ही बातें चलती रहती हैं, सोनू बीच बीच बीच में सुमन और कुसुम को छुप छुप कर देख लेता था, चाय खत्म कर दोनों घर से निकल गए ।
सोनू: मन्नू को तो बुला ले, वो नहीं खेलेगा?
कम्मू: अरे आज बिंदिया दीदी को देखने वाले आ रहे हैं तो वो नहीं आयेगा।
सोनू: चल ये तो अच्छा है, यार लड़का अच्छा हुआ तो उनका भी ब्याह हो जाए जल्दी।
कम्मू: हां बिल्कुल क्यों नहीं होगा।
दोनों बात करते हुए मैदान की ओर निकल जाते हैं।

तेजपाल के घर में आज एक खास माहौल था। बिंदिया को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। तेजपाल का घर, जो आम तौर पर सादगी और मेहनत की कहानी कहता था, आज सज-धज कर तैयार था। आँगन को गोबर और मिट्टी से लीपकर चमकाया गया था, और घर की चौखट पर रंगोली बनाई गई थी। झुमरी, तेजपाल की बहू, रसोई में मिठाई और नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी, जबकि तेजपाल और उनका बेटा रत्नाकर मेहमानों की आवभगत की तैयारियों में जुटे थे। बिंदिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी, उसका मन उत्साह और घबराहट के बीच झूल रहा था।

लड़के वाला परिवार पास के गाँव से था। परिवार में चार लोग थे: पप्पू, 42 वर्षीय किसान और परिवार का मुखिया,
उनकी पत्नी रज्जो, 38 वर्ष की, जिनका भरा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मखमली पेट, गहरी नाभि, और फैले हुए चूतड़, झुमरी से कम नहीं थे।
उनका बेटा प्यारे, 22 वर्ष का, एक आम गाँव का लड़का, मेहनती और सौम्य स्वभाव का, जिसे आज बिंदिया को देखने आना था।
उनकी बेटी चंदा, 20 वर्ष की, सुंदर और कामुक, अपने भाई के साथ आई थी, ताकि वह भी होने वाली भाभी को देख सके।

दोपहर ढलते ही पप्पू का परिवार तेजपाल के घर की दहलीज़ पर पहुँचा। पप्पू ने अपने कंधे पर गमछा डाला हुआ था, और उनके सादे कुरते-पायजामे में किसान की मेहनत की सादगी झलक रही थी। रज्जो ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भरे हुए बदन को और उभार रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, जिसे वह बार-बार संभाल रही थी। प्यारे एक साफ-सुथरे कुरते में था, उसका चेहरा सौम्य और थोड़ा शर्मीला था। चंदा ने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहना था, जो उसकी जवानी को निखार रहा थी।

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तेजपाल ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। “आइए, आइए, पप्पू भाई, घर में पधारिए,” उन्होंने कहा और आँगन में बिछी दरी पर मेहमानों को बिठाया। रत्नाकर ने तुरंत पानी के गिलास लाकर रखे, और झुमरी रसोई से जल्दी-जल्दी नाश्ते की थाली ले आई। थाली में गुझिया, समोसे, और लड्डू सजे हुए थे, साथ में चाय की केतली थी।
“क्या बात है, चाचाजी, इतना इंतज़ाम कर रखा है,” पप्पू ने हँसते हुए कहा, अपनी मूँछों को ताव देते हुए। “हम तो बस अपनी बेटी को देखने आए हैं, इतनी मेहरबानी की क्या ज़रूरत थी?”
“अरे भाई, आप लोग हमारे मेहमान हैं। बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात है, थोड़ा-बहुत तो बनता है,” तेजपाल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रज्जो ने थाली की ओर देखा और बोली, “वाह, झुमरी बहन, ये गुझिया तो देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। अपने हाथों से बनाई हैं?”
“हाँ, बहनजी, सब घर का बनाया है,” झुमरी ने शर्माते हुए कहा। “आप खाकर बताइए, कैसी बनी हैं।”
चंदा, जो अब तक चुप थी, उसने समोसा उठाया और एक छोटा सा टुकड़ा मुँह में डाला। “हम्म, बहुत स्वादिष्ट है, चाची” उसने कहा, और उसकी मुस्कान ने माहौल को और हल्का कर दिया।

बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पप्पू ने अपने खेतों और फसलों की बात की, जबकि तेजपाल ने गाँव की हाल-चाल और पड़ोस में धीरज की शादी की तैयारियों का ज़िक्र किया। रज्जो और झुमरी औरतों की बातों में मशगूल हो गईं—खाना, साड़ियाँ, और गाँव की चुगलियाँ। प्यारे और रत्नाकर चुपचाप सुन रहे थे, मगर उनकी नज़रें बार-बार एक-दूसरे से मिल रही थीं, जैसे दोनों एक-दूसरे को परख रहे हों।
थोड़ी देर बाद तेजपाल ने कहा, “चलो, अब बिंदिया को बुलाते हैं। आप लोग तो उसी को देखने आए हैं।” उन्होंने झुमरी की ओर इशारा किया, और झुमरी कमरे की ओर गई।
बिंदिया कमरे में तैयार थी। उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे रंग को और निखार रही थी। उसके बाल खुले थे, और माथे पर छोटी सी बिंदी थी। उसका चेहरा घबराहट और शर्म से लाल हो रहा था।

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झुमरी ने उसे प्यार से हाथ पकड़कर बाहर लाया। बिंदिया ने सिर झुकाकर आँगन में कदम रखा और मेहमानों के सामने खड़ी हो गई। उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, और वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू संभाल रही थी।
रज्जो ने बिंदिया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराते हुए पप्पू की ओर देखा। “वाह, बहन जी, आपकी बेटी तो एकदम चाँद का टुकड़ा है,” उसने कहा।
“हाँ, बिल्कुल। सादगी में सुंदरता है इसकी,” पप्पू ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा।
चंदा ने बिंदिया को गौर से देखा और बोली, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत सुंदर है। ये रंग आप पर बहुत जँच रहा है।”
बिंदिया ने शर्माते हुए हल्का सा सिर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा, “धन्यवाद।” उसकी आवाज़ में मिठास थी, जो सभी को भा गई।
तेजपाल ने बिंदिया से कहा, “बेटी, प्यारे को चाय दे दो।” बिंदिया ने सिर हिलाया और एक चाय का कप धीरे से प्यारे की ओर बढ़ाया। प्यारे ने चाय लेते हुए पहली बार बिंदिया को गौर से देखा। उसकी आँखों में एक सादगी थी, और बिंदिया की शर्मीली मुस्कान ने उसके मन में कुछ हलचल मचा दी। उसने चाय का प्याला थामा और धीरे से “धन्यवाद” कहा।
रत्नाकर ने माहौल को और हल्का करने के लिए कहा, “प्यारे, तुम भी कुछ बताओ। खेतों में काम करते हो न? कैसा चल रहा है सब?”
प्यारे ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “हाँ, चाचाजी, खेतों में काम अच्छा चल रहा है। इस बार धान की फसल अच्छी हुई है। बाकी, बस मेहनत करते हैं।”
बहुत मेहनती है हमारा प्यारे,” रज्जो ने गर्व से कहा। “दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। घर में भी सबकी मदद करता है।”
तेजपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो अच्छी बात है। हमारी बिंदिया भी घर के काम में माहिर है। खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सब आता है इसे।”
बातचीत के बीच दोनों परिवार एक-दूसरे को परख रहे थे। पप्पू और रज्जो को बिंदिया की सादगी और सुंदरता पसंद आई, जबकि तेजपाल, रत्नाकर और झुमरी को प्यारे का मेहनती और सौम्य स्वभाव भा गया। चंदा ने बिंदिया से कुछ छोटी-मोटी बातें कीं, जैसे साड़ी का रंग और गाँव की शादियों की रस्में, जिससे बिंदिया थोड़ा सहज हो गई।
थोड़ी देर बाद रज्जो ने पप्पू की ओर देखा और हल्का सा सिर हिलाया। पप्पू ने समझ लिया और तेजपाल से बोला, “चाचाजी, रत्नाकर भाई, हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। सादगी और संस्कार दोनों हैं इसमें। अगर आपको हमारा प्यारे पसंद हो, तो हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहेंगे।”
तेजपाल ने रत्नाकर और झुमरी की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला रहे थे। “पप्पू, हमें भी आपका बेटा बहुत पसंद आया। मेहनती और सज्जन लड़का है। हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं,” तेजपाल ने गर्मजोशी से कहा।
आँगन में खुशी की लहर दौड़ गई। झुमरी ने तुरंत मिठाई की थाली लाकर सभी को लड्डू खिलाए। रज्जो ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, अब तू हमारे घर की बहू बनेगी। हम तेरा बहुत खयाल रखेंगे।”
बिंदिया ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। प्यारे ने भी चुपके से बिंदिया की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक नया सपना जागने लगा। चंदा ने बिंदिया का हाथ पकड़कर कहा, “भाभी, अब तो हमें खूब बातें करनी हैं।”
मेहमानों की आवभगत के बाद पप्पू का परिवार विदा हुआ। तेजपाल और रत्नाकर ने उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ा। झुमरी ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, तुझे अच्छा घर मिला है। प्यारे और उसका परिवार बहुत अच्छे लोग हैं।”
बिंदिया ने सिर हिलाया, मगर उसका मन कहीं और था। कर्मा की वह शरारती मुस्कान और उसकी नज़रें बार-बार उसके दिमाग में कौंध रही थीं। हवेली की चमक और कर्मा का रुतबा उसे आकर्षित तो करता था, मगर घरवालों की हिदायतें और प्यारे की सादगी उसे एक अलग राह पर ले जा रही थी।
लड़के वालों के जाते ही बिंदिया को अनामिका, अंजू, नेहा और मनीषा ने घेर लिया और उसे चिढ़ाते हुए उसके साथ मज़ाक करते हुए उससे सब पूछने लगी, बिंदिया भी उनके साथ बात करके खुश हो रही थी और मज़ाक में साथ दे रही थी। वहीं झुमरी को सुमन और कुसुम ने घेर लिया और उससे सब पूछने लगीं। झुमरी भी खूब चाव से सब बता रही थी।




सज्जनपुर में सूरज ढल चुका था, और गाँव पर शाम की सुनहरी धुंध छा रही थी। खेतों से लौटते मज़दूरों की आवाज़ें धीमी पड़ रही थीं, और नदी के किनारे हल्की ठंडक बस रही थी। सुमन और कुसुम, कुसुम के कहने पर और थोड़ा सा बाहर की हवा खाने के लिए नदी की ओर निकल पड़ीं। दोनों देवरानी-जेठानी की जोड़ी गाँव में अपनी सादगी और मेहनत के लिए जानी जाती थी, मगर उनकी हँसी और आपसी मज़ाक गाँव की गलियों में एक अलग रंग भरता था।
नदी का किनारा शांत था, सिर्फ़ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं भटकती चिड़ियों की आवाज़ें गूँज रही थीं। सुमन और कुसुम ने अपने चप्पल किनारे पर उतारे और नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोकर किनारे की एक चट्टान पर बैठ गईं। सुमन की साड़ी का पल्लू उसकी कमर पर लिपटा था, और कुसुम की साड़ी का आँचल हल्का सा सरककर उसके मांसल कंधे को उघाड़ रहा था। दोनों के चेहरों पर थकान के साथ-साथ एक हल्की सी मुस्कान थी।
“जीजी, आज का दिन तो बड़ा भारी था,” सुमन ने अपने गीले पैरों को पानी में हिलाते हुए कहा। “धीरज के ब्याह की तैयारियाँ, घर का काम, इतने सारे कपड़े धोए आज तो मैने, ऊपर से ये गर्मी। थक गई मैं तो।”
“हाँ, सुमन, पर अब ये ठंडा पानी सारी थकान निकाल देगा,” कुसुम ने हँसते हुए कहा। उसने एक छोटा सा कंकड़ उठाया और पानी में फेंका, जिससे छोटी-छोटी लहरें उठीं। “वैसे, बिंदिया का रिश्ता पक्का हो गया, ये तो अच्छी बात है। प्यारे लड़का सज्जन और मेहनती लगता है।” जैसे झुमरी ने बताया,
“हाँ, जीजी, सही कह रही हो। बिंदिया को अच्छा घर मिलेगा। सुमन ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। “पर मुझे तो अभी भी हँसी आ रही है, जब बिंदिया शर्म से लाल हो गई जब सब लड़कियों ने उसे घेरा तो।”
दोनों हँस पड़ीं। उनकी हँसी नदी के किनारे गूँज उठी, मानो पानी भी उनके मज़ाक में शामिल हो गया हो। कुसुम ने शरारत भरे अंदाज़ में सुमन की ओर देखा और बोली, “अच्छा, तू हँस रही है? जैसे तू नहीं शरमाई थी अपनी बारी में” कहते हुए उसने मज़ाक में सुमन को हल्का सा धक्का दे दिया।
“अरे, जीजी!” सुमन का संतुलन बिगड़ा, और वह हँसते हुए नदी के उथले पानी में फिसल गई। पानी में गिरते ही उसकी साड़ी पूरी तरह गीली हो गई, और वह हँसते हुए खड़ी हो गई। “हाय, जीजी, ये क्या किया!” उसने पानी में छलांग लगाते हुए कहा, मगर उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुसुम पेट पकड़कर हँस रही थी। “अरे, तू तो पूरी भैंस की तरह पानी में कूद गई!” उसने मज़ाक उड़ाया, अपने पैरों को पानी से निकालते हुए।
“अच्छा, भैंस कहा मुझे?” सुमन ने नकली गुस्से में कहा और तेज़ी से कुसुम का हाथ पकड़कर उसे भी पानी में खींच लिया। “अब तुम भी भैंस की जेठानी बनो!” दोनों पानी में एक-दूसरे पर छींटे मारने लगीं, हँसी और चीख-पुकार से नदी का किनारा गूँज उठा। उनकी साड़ियाँ अब पूरी तरह गीली हो चुकी थीं, और कपड़े उनके भरे हुए बदनों से चिपक गए थे। सुमन का ब्लाउज़ उसके मोटे-मोटे उरोजों को उभार रहा था, और कुसुम की साड़ी उसकी गहरी नाभि और मांसल कमर को और निखार रही थी।
कुसुम: अच्छा अब नहा ही रहे हैं तो अच्छे से नहा लेते हैं
ये कह कुसुम ने अपने पल्लू को सीने से हटाया और कमर पर लपेट लिया,
सुमन: अरे जीजी ये क्या कर रही हो कोई आ गया तो,
कुसुम: अरे इधर औरतें ही कपड़े वगैरा धोती हैं मर्द इस ओर नहीं आते, चिंता मत कर।
सुमन: चलो तुम कह रही हो तो ठीक है।
ये कह सुमन भी कुसुम की तरह अपने पल्लू को नीचे ही लपेट लेती है और दोनों फिर से पानी को उछाल कर खेलने लगती हैं।

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दोनों बेखबर होकर नदी के ठंडे पानी में नहाने और मज़ाक करने में व्यस्त थीं। लेकिन नदी के किनारे की यह मासूम हँसी किसी की नज़रों से छुपी नहीं थी। दूर, एक पुराने बरगद के पेड़ की आड़ में, सोमपाल खड़ा था। वह अपनी शाम की सैर के लिए निकला था, मगर सुमन और कुसुम की हँसी ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया। उसकी नज़रें दोनों की गीली साड़ियों में लिपटे कामुक बदनों पर जमी थीं। सुमन की साड़ी उसके भरे हुए चूतड़ों से चिपकी थी, और कुसुम का गीला ब्लाउज़ उसकी चूचियों को इस तरह उभार रहा था मानो कोई मूर्तिकार ने उन्हें तराशा हो, दोनों के मखमली पेट और नाभी तो मानो जैसे मक्खन के ही नजर आ रही थीं। उन्हें देखते हुए सोमपाल की आँखों में वासना की चमक थी, और उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी।
“हाय, ये देवरानी-जेठानी तो एक से बढ़कर एक हैं,” उसने मन ही मन सोचा। उसका लंड धोती के नीचे कड़क होने लगा।

इनके रसीले बदन का स्वाद तो बड़ा मस्त होगा। सुमन की वो गहरी नाभि, और कुसुम की वो भारी चूचियाँ—हाय, क्या नज़ारा है!” उसकी नज़रें एक पल के लिए भी नहीं हटीं। वह पेड़ की आड़ में खड़ा, उनकी हर हरकत को गौर से देख रहा था।

सुमन ने कुसुम पर फिर से पानी का छींटा मारा। “जीजी, अब तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा चिपक गया है बदन से मानो पहना ही न हो” उसने हँसते हुए कहा।
“अरे, होने दे कोई नहीं देख रहा” कुसुम ने जवाब दिया। “मेंरी साड़ी तो देख अब बदन से चिपककर सब कुछ दिखा रही है!” दोनों फिर से हँस पड़ीं, और पानी में एक-दूसरे को छेड़ने लगीं। उनकी हँसी और मासूम शरारतें नदी के किनारे एक अनजाना रंग बिखेर रही थीं, मगर वे इस बात से बेखबर थीं कि उनकी यह मस्ती किसी की वासना को भड़का रही थी।
सोमपाल की साँसें गहरी हो रही थीं। उसने अपनी धोती को और कस लिया, मगर उसका उभार अब छुपाए नहीं छुप रहा था। “इन दोनों को तो हवेली में होना चाहिए दोनों को रानी बना कर रखूंगा, कुछ तो चक्कर चलाना पड़ेगा” उसने सोचा।
पर ये दोनों सती-सावित्री और संस्कारी हैं, आसानी से नहीं फँसेंगीयू ऊपर से इनका परिवार भी समृद्ध है इतनी जल्दी कुछ नहीं होगा। फिर भी, कोशिश तो बनती है।” उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी, मानो वह कोई नया जाल बुनने की सोच रहा हो।
कुसुम ने पानी से बाहर निकलते हुए कहा, “बस, सुमन, अब बहुत हुआ। चल, घर चलते हैं, वरना सर्दी लग जाएगी।” उसने अपनी साड़ी को निचोड़ा, मगर गीले कपड़े अब भी उसके बदन से चिपके थे। सुमन भी हँसते हुए बाहर आई और अपने बालों को निचोड़ने लगी। गाँव की ओर चल पड़ीं, आपस में हँसते-बातें करते हुए

सोमपाल तब तक पेड़ की आड़ में खड़ा रहा, जब तक उनकी आकृतियाँ गाँव की गलियों में ओझल नहीं हो गईं। उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी। “चलो, आज तो नज़ारा मिल गया,” उसने मन ही मन कहा। “कब इन दोनों को हवेली की राह दिखाने का वक्त आएगा।” वह धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ गया, मगर उसके मन में सुमन और कुसुम की गीली साड़ियों में लिपटी छवियाँ अब भी नाच रही थीं।
जारी रहेगी।
Amazing bro long update superb update
 

Arthur Morgan

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Bhut shandaar update..... dekho kon pahle shikar karta hai baap ya beta......



Wait for update

Bahut mst likha h bhai aisehi mst update likhte rhyea

Amazing bro long update superb update

Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki

Bhai ek aisi kahani likho jisme Hero ek hi ho. Thanks ✌

बहुत ही शानदार अपडेट
आप सभी का बहुत बहुत आभार मित्रों,साथ बनाए रखें ताकि आगे के लिए उत्साह बढ़े।
 
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Arthur Morgan

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दसवाँ अध्याय


सज्जनपुर की शाम अपनी पूरी रंगत में थी। मैदान में लड़कों की चीख-पुकार और बल्ले-गेंद की आवाज़ें धीमी पड़ चुकी थीं। बिंदिया का रिश्ता पक्का होने की खुशी में तेजपाल का घर हँसी-मज़ाक से गूँज रहा था, और सुमन-कुसुम नदी के किनारे अपनी थकान उतार रही थीं। इस बीच, नेहा के घर में बिंदिया, अनामिका, अंजू, नेहा, और मनीषा का जमावड़ा था। चारों लड़कियाँ बिंदिया को घेरकर उसे छेड़ रही थीं, और हँसी-ठिठोली का दौर चल रहा था।

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“देखो तो, प्यारे की प्यारी को!” नेहा ने शरारती लहजे में कहा, अपनी भौंहें ऊपर चढ़ाते हुए।
“हाँ, बिंदिया, अब तो तेरा ब्याह पक्का! जल्दी ही दुल्हन बनकर ससुराल जाएगी,” अंजू ने हँसते हुए जोड़ा।
बिंदिया का चेहरा शर्म से लाल हो गया, मगर वह भी हँसते हुए जवाब दे रही थी। “तुम लोग बड़ी दुष्ट हो! बस, अब बहुत छेड़ लिया,” उसने नकली गुस्से में कहा, और सब फिर से हँस पड़ीं।
“अरे, छेड़ना तो बनता है!” अनामिका ने कहा। “बताओ, प्यारे को देखकर दिल में क्या हुआ? बता ना, बिंदिया!”
“बस-बस, अब चुप हो जाओ,” बिंदिया ने हँसते हुए अपना चेहरा हाथों से ढक लिया। मगर उसकी आँखों में खुशी की चमक साफ़ झलक रही थी।
इसी बीच, बाहर से किसी की आवाज़ आई, “सोनू! अरे, सोनू है क्या?” नेहा ने चौंककर बाहर की ओर देखा और दरवाज़े की ओर बढ़ी। पीछे-पीछे बिंदिया, अनामिका, अंजू, और मनीषा भी उत्सुकता में बाहर आ गईं।


नेहा ने जैसे ही बाहर कदम रखा, उसकी नज़र सामने खड़ी मोटरसाइकिल और उस पर बैठे कर्मा पर पड़ी। वह थोड़ा हैरान रह गई। कर्मा ने उसे देखा और अपनी चिर-परिचित शरारती मुस्कान के साथ बोला, “सोनू है क्या?”
नेहा के लिए यह पल अजीब था। वह पहली बार कर्मा से आमने-सामने बात कर रही थी। हवेली वालों के बारे में उसने हमेशा बुरा ही सुना था—उनका घमंड, उनकी ताकत, और गाँव की औरतों के साथ उनकी हरकतें। अब तक वह हवेली वालों से बचकर ही रहती थी, मगर अब उसकी माँ और छोटा भाई सोनू हवेली में काम करते थे। बचना अब मुमकिन नहीं था। वह सकुचाते हुए बोली, “वो… वो घर पर नहीं है।”

इतने में पीछे से बाकी लड़कियाँ भी बाहर आ गईं। कर्मा की नज़रें एक-एक करके उन सब पर पड़ीं, और जब उसकी नज़र बिंदिया पर रुकी, उसके चेहरे पर मुस्कान और गहरी हो गई। बिंदिया ने उसकी नज़रों को महसूस किया, और उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी उठी। कर्मा ने फिर पूछा, “तो, कहाँ गया है सोनू?”
मनीषा ने तुरंत जवाब दिया, “वो और कम्मू मैदान की ओर गए हैं।”
कर्मा ने एक बार फिर बिंदिया को गौर से देखा, फिर बाकी लड़कियों पर नज़र डाली। उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था, जो सबको एक पल के लिए चुप कर गया। “अच्छा, ठीक है,” उसने कहा और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर गली से बाहर निकल गया। लड़कियाँ उसकी मोटरसाइकिल को गली के मोड़ तक जाते देखती रहीं।
“हाय, जीवन तो हवेली वालों का है!” अनामिका ने आह भरते हुए कहा।
“सच में, किसी चीज़ की कमी नहीं,” अंजू ने सहमति में कहा। “पर सब एक से बढ़कर एक घमंडी हैं।”
नेहा ने हल्के से सिर हिलाया। “हाँ, हो सकता है… पर ये कर्मा थोड़ा अलग लगता है। ऐसा घमंडी नहीं दिखता।”
“अच्छा, तुझे कैसे पता?” अंजू ने भौंहें चढ़ाकर पूछा।
“अरे, सोनू ही बता रहा था,” नेहा ने सफ़ाई दी। “कर्मा उससे बहुत प्यार से पेश आता है। उसे दोस्त की तरह रखता है।”
“हवेली का लड़का और इतना अच्छा?” अनामिका ने अविश्वास में कहा। “बात हज़म नहीं होती।”
मनीषा ने बीच में टोका, “नहीं, जीजी, माँ भी यही कह रही थी। शायद हम लोग ही इन्हें ज़्यादा बुरा मानते हैं। उतने बुरे नहीं हैं।”
“अरे, जैसे भी हो, छोड़ो,” नेहा ने हँसते हुए कहा। “अभी तो अपनी होने वाली दुल्हनिया पर ध्यान दो!” उसने बिंदिया की ओर इशारा किया। बिंदिया अब तक चुप थी, कर्मा की बातें सुन रही थी, और उसके मन में उसके बारे में कुछ अनजाने खयाल कौंध रहे थे। लड़कियों ने फिर से बिंदिया को घेर लिया और उसे छेड़ना शुरू कर दिया।


कर्मा मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ाकर सीधा मैदान की ओर गया। मैदान पर खेल खत्म हो चुका था, और सोनू-कम्मू के साथ बाकी लड़के इधर-उधर बिखरे थे। कर्मा ने मोटरसाइकिल को मैदान के किनारे एक पेड़ के पास रोका और खड़ा हो गया। कम्मू ने उसे देख लिया और सोनू से फुसफुसाया, “ये यहाँ क्या कर रहा है?”
सोनू ने कर्मा को देखकर थोड़ा हैरानी से कहा, “पता नहीं, यार।”
खेल खत्म होने के बाद सोनू और कम्मू उसके पास आए। सोनू ने पूछा, “क्या हुआ, भैया? कोई काम था?”
कर्मा ने मुस्कान के साथ जवाब दिया, “अरे, बस यूं ही घूमने निकला था। तुम लोग बताओ, जीत गए आज?”
“हाँ, जीत गए,” सोनू ने हँसते हुए कहा, कम्मू की ओर देखकर। कम्मू भी हल्का सा मुस्कुराया, मगर कर्मा की मौजूदगी से वह थोड़ा सकपकाया हुआ था। आखिरी बार जब दोनों आमने-सामने थे, तो मैदान में उनकी झड़प हो गई थी।
“जीत गए तो खुशी मनानी तो बनती है,” कर्मा ने कहा। “आओ, बैठो।”
“अरे, भैया, इसमें क्या खुशी?” सोनू ने हँसते हुए कहा। “रोज़ ही हार जीत लगी रहती है।”
“अरे, बैठ ना, इतना क्या सोच रहा है?” कर्मा ने ज़ोर देकर कहा।
सोनू ने एक पल सोचा। ज्यादा मना करना ठीक नहीं लगा। उसने कम्मू की ओर देखा, जो हल्का सा सिर हिलाकर बैठने का इशारा कर रहा था। सोनू कर्मा के पीछे मोटरसाइकिल पर बैठ गया। कम्मू मुड़कर अपने घर की ओर जाने लगा, तभी कर्मा ने उसे टोका, “अरे, तू कहाँ चल दिया? बैठ ना।”
कम्मू ने हैरानी से कर्मा की ओर देखा। “मैं? अरे, नहीं, कर्मा भैया, तुम और सोनू जाओ।”

“अरे, यार, तुम दोनों ही बहुत शर्माते हो,” कर्मा ने हँसते हुए कहा। “आ, बैठ। मेरे साथ नहीं, तो अपने दोस्त के साथ तो चल सकता है।”
सोनू ने भी कम्मू को पुकारा, “आ, चल ना, बैठ जा।” उसने सीट पर आगे खिसककर कम्मू के लिए जगह बनाई।
कम्मू को समझ नहीं आया कि क्या करे। मगर दोनों के बार-बार कहने पर वह मोटरसाइकिल पर बैठ गया। कर्मा ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की, और तीनों गाँव के बाहर के बाज़ार की ओर निकल पड़े। कम्मू पहली बार मोटरसाइकिल पर बैठा था, और अंदर ही अंदर वह उत्साहित था। हवा के झोंके उसके चेहरे से टकरा रहे थे, और उसे यह नया अनुभव रोमांचक लगा।
कुछ ही देर में तीनों बाज़ार में एक हलवाई की दुकान के सामने थे। कर्मा ने मोटरसाइकिल रोकी और तीनों के लिए समोसे और चाय मँगवाई। दुकान के सामने एक चबूतरे पर बैठकर तीनों खाने लगे। कम्मू थोड़ा सकुचाया और समोसे-चाय लेने से मना करने लगा, मगर कर्मा ने ज़बरदस्ती उसके हाथ में समोसा थमा दिया। “खा ना, यार, इतना क्या शरमा रहा है?” कर्मा ने हँसते हुए कहा।
कम्मू कर्मा के इस व्यवहार से हैरान था। वह थोड़ा सोचने के बाद सकुचाते हुए बोला, “कर्मा भैया, उस दिन के लिए माफ़ करना। वो खेल-खेल में लड़ाई हो गई थी।”
“अरे, छोड़ ना, वो तो मैं उसी दिन भूल गया,” कर्मा ने बेफिक्री से कहा। “खेल में तो लड़ाई होती रहती है।”
कम्मू ने यह सुनकर राहत की साँस ली और मुस्कुरा दिया। सोनू भी हँस पड़ा। “अरे, मैंने इसे कहा था, ये बेकार में चिंता कर रहा था,” सोनू ने कहा।
“देखो, हम एक ही उम्र के हैं,” कर्मा ने गंभीर लहजे में कहा। “खेल में टकराव तो होगा ही, मगर खेल की बात मैदान तक रखो, तो अच्छा है।”
कर्मा की यह बात सुनकर सोनू और कम्मू दोनों प्रभावित हुए। गरम समोसे और चाय का स्वाद जैसे कर्मा की अच्छाई को और बढ़ा रहा था। कम्मू को यह भी अच्छा लग रहा था कि वह हवेली के लड़के के साथ है। दुकान के आसपास लोग उसे सम्मान की नज़रों से देख रहे थे, और हलवाई ने भी सबसे पहले उनकी ही थाली सजाई थी।
“बिल्कुल सही कहा, कर्मा भैया,” कम्मू ने समोसा खाते हुए कहा। “मैं ही बेकार में सोच रहा था।”
कर्मा ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “समझता हूँ, यार। मुझे पता है, गाँव वाले पीठ पीछे मुझे बुरा-भला कहते हैं। मेरी छवि ही कुछ ऐसी बन गई है। शायद इसीलिए मेरा कोई दोस्त नहीं है। जब से सोनू हवेली आने लगा, तब से थोड़ा मन लगता है। इसीलिए इसे साथ ले लेता हूँ।”
कर्मा की यह बात सुनकर सोनू और कम्मू दोनों सोच में पड़ गए। उन्हें लगा कि शायद वे कर्मा को गलत समझते रहे। उसकी बातों में एक अजीब सी सच्चाई थी। सोनू ने तुरंत कहा, “अरे, ऐसा नहीं है, कर्मा भैया। अब से हम दोस्त हैं ना—मैं हूँ, कम्मू है।”
कम्मू ने भी हाँ में हाँ मिलाई। “हाँ, और क्या? अब से हम पक्के वाले दोस्त!”
कर्मा ने हँसते हुए कहा, “यार, ये तो बढ़िया हुआ। वैसे, तुम्हारा एक और जोड़ीदार है—वो कहाँ है? आज मैदान में भी नहीं दिखा।”
“अरे, आज बिंदिया जीजी को लड़के वाले देखने आए हैं न,” कम्मू ने बताया। “इसलिए वो घर पर काम में हाथ बटा रहा है।”
यह सुनते ही कर्मा के कान खड़े हो गए, मगर उसने चेहरे पर साधारण भाव रखा। “अच्छा, ये तो बढ़िया बात है। वैसे, कहाँ का लड़का है?”
“शायद राजेपुर गाँव का,” सोनू ने कहा। “किसान हैं। लड़के के बाप का नाम… अरे, कुछ ऐसा ही है, याद नहीं।”
“हाँ, पप्पू!” कम्मू ने याद करते हुए कहा। “पापा बता रहे थे, अच्छे लोग हैं।”
कर्मा ने चाय की चुस्की ली और कुछ सोचने लगा। उसकी नज़रें एक जगह पर टिक गईं, और चेहरे पर वही शरारती मुस्कान लौट आई। उसने सोनू और कम्मू को इशारा कर सामने देखने को कहा। दोनों ने उसकी ओर देखा, तो हलवाई की दुकान पर नज़र पड़ी। हलवाई अपनी जगह पर नहीं था, और उसकी जगह उसकी पत्नी चूल्हे के पास बैठी थी। उसका पसीने से भीगा बदन चमक रहा था। साड़ी का पल्लू एक ओर सरक गया था, जिससे उसका मांसल पेट, गहरी नाभि, और ब्लाउज़ से झाँकती मोटी-मोटी चूचियाँ साफ़ दिख रही थीं।। ब्लाउज़ के बटन खुले होने के कारण उसकी चूचियों के बीच की गहरी खाई भी नज़र आ रही थी।

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कर्मा ने धीरे से फुसफुसाया, “आह, ये तो पूरी पिक्चर है, यार! अब समोसे और भी स्वादिष्ट लगेंगे।”
सोनू और कम्मू ने हलवाई की पत्नी को देखा और कर्मा की बात सुनकर अपनी नज़रें हटा लीं। सोनू तो कर्मा का स्वभाव जानता था, मगर कम्मू थोड़ा हैरान हो गया। “अरे, कर्मा भैया, ये क्या बोल रहे हो?” उसने सकुचाते हुए कहा। “वो तो हमसे कितनी बड़ी है, और हलवाई की पत्नी है।”
“अरे, मैं तो सच ही बोल रहा हूँ, जो मन में आया,” कर्मा ने बेफिक्री से कहा। “तुम्हें सुंदर नहीं लग रही? एकदम कामुक!”
सोनू और कम्मू ने फिर से उसकी ओर देखा। मन ही मन में वे जानते थे कि कर्मा गलत नहीं कह रहा था। सोनू, जो कर्मा के साथ पहले भी ऐसी बातें कर चुका था, ने हँसते हुए कहा, “सुंदर तो है, भैया। और… कामुक भी।”
कम्मू ने चुपके से एक बार फिर उस औरत को देखा, और उसके मन में भी कुछ हलचल हुई। मगर वह अपनी शर्मिंदगी छुपाते हुए चुप रहा। कर्मा ने हँसते हुए चाय का आखिरी घूँट भरा और बोला, “देखो, यार, जिंदगी में मज़ा लेना सीखो। सुंदर चीज़ को देखो, तारीफ़ करो, और बस। इसमें क्या गलत है?”


कर्मा ने अपनी बात को और गहरा करते हुए कहा, “देखो, यार, तुम लोगों ने मुझे दोस्त बनाया है, इसलिए खुलकर बता रहा हूँ। दोस्ती में पर्दा नहीं होना चाहिए। मैं खुद को रोकता नहीं। शायद सोनू ये बात समझ गया होगा।”
सोनू ने हल्का सा सिर हिलाकर सहमति जताई, मगर उसका चेहरा अभी भी थोड़ा संकोच से भरा था।
कर्मा ने अपनी आवाज़ को और धीमा किया, जैसे कोई गहरा राज़ खोल रहा हो। “देखो, यार, अभी हम जवान हो रहे हैं। हमारे अंदर क्या-क्या चलता है, ये हम तीनों ही जानते हैं। जब कोई मस्त, भरे बदन वाली औरत दिखती है, तो बदन में क्या-क्या होता है, ये भी हम जानते हैं। और ये लगभग तीनों में एक जैसा ही होता है। बस एक फर्क है।”
सोनू और कम्मू ने एक साथ, आश्चर्य से पूछा, “क्या?”
कर्मा ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ कहा, “यही कि तुम लोग अपनी इच्छाओं को, अपनी भावनाओं को शर्म की वजह से छुपा लेते हो। और मैं? मैं खुलकर बोल देता हूँ।”
दोनों उसकी बात सुनकर एक पल को सोच में पड़ गए। कर्मा की बात कहीं न कहीं सही थी। हलवाई की पत्नी का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और ब्लाउज़ से झाँकती चूचियाँ—ये सब उनके मन और बदन में हलचल मचा रहे थे। मगर जहाँ कर्मा खुलकर अपनी बात कह रहा था, वहीं सोनू और कम्मू अपनी शर्म और झिझक में उलझे थे।
कम्मू ने हल्के से कहा, “पर क्या करें, कर्मा भैया? शर्म आ ही जाती है। फिर सोचते हैं कि ये गलत है। और भी न जाने क्या-क्या खयाल आते हैं।”
“हाँ,” सोनू ने सहमति में कहा। “एक अजीब सी ग्लानि सी होती है।”
कर्मा ने हँसते हुए कहा, “अरे, दुनिया वालों के सामने शर्म करो न! पर दोस्तों के बीच क्यों? दोस्त होते ही इसलिए हैं कि अपने मन की बात खुलकर कह सको। मुझे देखो—मुझे पता है, ये बात अगर मैं किसी और के सामने बोलता, तो वो मुझे गलत समझता। पर तुम्हें मैं दोस्त मानता हूँ, इसलिए खुलकर बोल रहा हूँ।”
सोनू और कम्मू ने उसकी बात समझकर सिर हिलाया। कर्मा ने आगे कहा, “और रही बात ग्लानि और सही-गलत की, तो सच बताऊँ, ये सब समाज पर छोड़ दो। तुम वही करो जो तुम्हें सही लगे, जो तुम्हें अच्छा लगे।”
सोनू को कर्मा की ये बात याद आई, जो उसने पहले भी उसे समझाई थी। वह तुरंत बोला, “सही कह रहे हो, कर्मा भैया। समाज को तो बस बातें बनानी आती हैं। सही-गलत का ठेका उसी ने ले रखा है। पर जब तुम मुसीबत में हो, तो वही समाज अंधा हो जाता है। उसे फर्क नहीं पड़ता कि कोई जिए या मरे। मेरे परिवार को ही देख लो—क्या-क्या नहीं हुआ, पर समाज में से कोई आगे नहीं आया।”
सोनू की बात सुनकर कम्मू भी सोच में पड़ गया। कर्मा की बातें उसके मन पर गहरा असर कर रही थीं। कर्मा ने आगे कहा, “और क्या? और सच बताऊँ, अब जब तेरा परिवार थोड़ा ठीक रास्ते पर आया है, तब भी लोग बातें बनाएँगे। न जाने क्या-क्या कहेंगे।”
“कहने दो,” सोनू ने थोड़ा गुस्से में कहा। “अब मुझे फर्क नहीं पड़ता।”
कर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “और सच कहूँ, अब किसी की हिम्मत नहीं कि तुझे या तेरे परिवार को कुछ कहे। अब तू मेरा दोस्त है, और कर्मा अपनी दोस्ती निभाना जानता है।”
यह सुनकर सोनू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उसे लगा जैसे वह कोई बड़ा आदमी बन गया हो। कर्मा जैसे हवेली वाले लड़के का दोस्त होना, जिसके नाम से गाँव में लोग डरते थे, उसे अपने लिए एक उपलब्धि जैसा लगा। कम्मू भी कर्मा की बातों से प्रभावित था और मन ही मन खुश हो रहा था।
“सच में, कर्मा भैया, जैसा हम लोग सोचते थे, तुम उससे बहुत अलग हो,” सोनू ने कहा।
“हाँ, बिल्कुल,” कम्मू ने सहमति में कहा। “थोड़ा सा जानने के बाद ही समझ आ गया।”
कर्मा ने हँसते हुए कहा, “अरे, यार, ये गंभीर बातें छोड़ो। जब तक नज़ारा मिल रहा है, उसका मज़ा लो!” उसने हलवाई की पत्नी की ओर इशारा किया, जो अब दुकान पर नहीं थी, मगर उसकी छवि तीनों के मन में बसी थी। सोनू और कम्मू के चेहरों पर मुस्कान आ गई, और वे चुपके-चुपके उसकी बात याद कर हँसने लगे।
कुछ देर बाद कर्मा ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की, और तीनों नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ उन्होंने मोटरसाइकिल रोकी और फिर से पानी में पैर डुबोकर बैठ गए। ढलता सूरज और ठंडा पानी माहौल को और सुकून भरा बना रहा था।
“समोसे खाकर मज़ा आ गया,” सोनू ने कहा।
“हाँ, और समोसे वाली को देखकर भी,” कर्मा ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ जोड़ा।
तीनों हँस पड़े। कम्मू ने हँसते हुए कहा, “अरे, यार, तुम्हारे दिमाग में अभी तक वही चल रहा है?”
“अरे, तुझे वो भुलाने वाली चीज़ लग रही है क्या?” कर्मा ने तुरंत जवाब दिया।
“नहीं, भुलाने वाली तो नहीं थी,” सोनू ने हँसते हुए कहा।
“अरे, सोनू, तुझे तो मेरी पसंद पता है न?” कर्मा ने आँख मारते हुए कहा।
“हाँ, भैया, पता है,” सोनू ने जवाब दिया। “हलवाइन बिल्कुल वैसी ही थी।”
कम्मू ने उत्साह से पूछा, “पसंद? कैसी पसंद? मुझे भी बताओ!”
सोनू ने हँसते हुए कहा, “अरे, कर्मा भैया को न, बड़ी उम्र की भरे बदन वाली औरतें बहुत भाती हैं। जैसी हलवाइन थी, वैसी ही। जवान लड़कियों से भी ज़्यादा।”
“हैं? सही में?” कम्मू ने उत्साहित होकर कहा।
“हाँ, यार, सच में,” कर्मा ने बेफिक्री से कहा। “ऐसी औरतों को देखकर तो लंड खड़ा हो जाता है।”
कर्मा की खुली बात सुनकर सोनू और कम्मू मुस्कुरा दिए। कम्मू थोड़ा सकुचाते हुए बोला, “अरे, वैसे सच कहूँ, मुझे भी ऐसी ही पसंद हैं।”
यह सुनकर कर्मा और सोनू थोड़े हैरान हुए, मगर खुश भी। कर्मा ने हँसते हुए कहा, “ये हुई न बात! तेरा और मेरा स्वाद तो एक जैसा है। मिलकर बहुत मज़े करेंगे!”
“मज़े? वो कैसे?” कम्मू ने उत्सुकता से पूछा।
कर्मा ने सोनू की ओर देखकर मुस्कुराया, और सोनू बोला, “अरे, कर्मा भैया के साथ रहने पर खूब अलग-अलग तरह के मज़े लेने का मौका मिलता है।”
“कैसे अलग-अलग तरह के? बता तो सही!” कम्मू ने ज़ोर देकर कहा।
कर्मा ने शरारत भरे लहजे में कहा, “जवानी के मज़े, यार! सिर्फ़ समोसे का स्वाद नहीं, गरम बदन का भी स्वाद दिलवा सकता हूँ।”
कम्मू यह सुनकर हैरान रह गया। “तो क्या, सोनू, तूने लिए हैं ऐसे मज़े?”
कर्मा ने हँसते हुए कहा, “अरे, ये बहुत शर्माता है। पूरा मौका था, मैंने इसे बोला भी, पर ये सकुचाने में रह गया। अरे, भाई, जवानी में अगर शर्म करते रह गए, तो बाद में पछताओगे कि काश उस वक्त झिझका नहीं होता।”
कम्मू ने सोचते हुए कहा, “बात तो सही कह रहे हो। मौका हो तो छोड़ना नहीं चाहिए।”
सोनू ने हँसते हुए कम्मू की ओर देखा। “अच्छा, तू नहीं शर्माता?”
“अरे, थोड़ी झिझक तो होती है,” कम्मू ने हँसते हुए कहा। “पर मौका नहीं गँवाना चाहिए।”
कर्मा ने सोनू की ओर देखकर कहा, “देखा, सोनू, ये तुझसे ज़्यादा तेज़ है। तू अभी भी इतना शरमा रहा है। हमने तो अपनी-अपनी पसंद बता दी, पर तू अभी तक छुपाए बैठा है।”
“हाँ, सोनू, ऐसा क्यों?” कम्मू ने छेड़ते हुए कहा। “दोस्तों से भी छुपाएगा?”
सोनू शर्माते हुए हँस पड़ा। “अरे, यार, तुम लोग भी न!”
मगर कर्मा और कम्मू ने ज़िद पकड़ ली। “बता ना, सोनू!” कम्मू ने कहा। “खुलकर बता, मज़ेदार तरीके से।”
सोनू ने एक पल रुककर, शांत होकर कहा, “अच्छा, ठीक है, बताता हूँ। मुझे भी वैसी औरतें पसंद हैं, जैसी तुम लोगों को। भरे बदन वाली, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, बड़ी सी निकली हुई गाँड, मांसल पेट, गहरी नाभि। अब ठीक है?”
ये सब बोलते हुए उसके बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। कर्मा और कम्मू उसकी बात सुनकर मुस्कुरा रहे थे। कर्मा ने हँसते हुए कहा, “अरे, यार, तूने तो बिल्कुल हलवाइन का ही रूप शब्दों में बता दिया! साला, सोचकर तो लौड़ा कड़क हो गया।”
कर्मा ने अपनी पैंट के ऊपर से लंड को सहलाते हुए कहा। उसकी इस हरकत को देखकर सोनू और कम्मू सकपका गए, मगर कहीं न कहीं उनके मन में भी वही आग सुलग रही थी। कर्मा ने जैसे उनकी सोच को भाँप लिया। “अरे, देखो, तुम भी जानते हो कि तुम मेरी तरह खुलकर बात करना और मज़े लेना चाहते हो। बस, खुद की झिझक तुम्हें रोक रही है। सच कहूँ, तुम्हें सिर्फ़ तुम ही रोक रहे हो, और कोई नहीं।”
कम्मू ने सिर हिलाकर कहा, “बात तो सही कह रहे हो।”
“अरे, मैं सही ही कहता हूँ,” कर्मा ने बेफिक्री से कहा। “लगता है, इस हलवाइन का रस जल्दी चखना पड़ेगा, वरना चैन नहीं आएगा।”
कहते हुए कर्मा थोड़ा पीछे खिसका और अपनी पैंट नीचे खींचकर अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया। उसका मोटा, लंबा लंड देखकर सोनू और कम्मू हैरान रह गए। दोनों एक-दूसरे की ओर देखने लगे, फिर कर्मा की ओर।
“अरे, ऐसे क्या हैरान हो रहे हो?” कर्मा ने हँसते हुए कहा। “मुझमें भी वही है जो तुममें है। कोई अलग चीज़ तो नहीं।”
सोनू ने सकुचाते हुए कहा, “हाँ, भैया, पर ऐसे… खुले में?”
“अरे, यहाँ हम तीनों के सिवा कोई है क्या?” कर्मा ने बेपरवाही से कहा। “और सच कहूँ, जब से हलवाइन को देखा, चैन नहीं पड़ रहा। इसे शांत तो करना पड़ेगा न।” कहते हुए उसने अपने लंड पर हाथ फेरना शुरू कर दिया।
कम्मू ने हैरानी से कहा, “पर ऐसे, यहाँ खुले में?”
“यहीं तो मज़ा है!” कर्मा ने आँख मारते हुए कहा। “तुम लोग भी करो, फिर देखो क्या मज़ा आता है।”
“अरे, नहीं,” सोनू ने तुरंत मना किया।
“मैंने कहा न, इतना सोचोगे तो बाद में पछताओगे,” कर्मा ने कहा। “मैं तो आँखें बंद करके हलवाइन को ही देख रहा हूँ। आह वो मेरा रस चखते हुए कितनी मस्त लगेगी ना यही सोच रहा हूं।”


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कम्मू ने कर्मा की बात सुनी और थोड़ा सकुचाते हुए अपनी पैंट नीचे खिसकाई। उसने भी अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया, जो झूल रहा था। सोनू यह देखकर हैरान रह गया। दोनों की नज़रें मिलीं, और फिर सोनू ने भी हिम्मत करके अपनी पैंट नीचे खिसकाई और अपने लंड को बाहर निकाला।
तीनों अब नदी के किनारे, ढलते सूरज की रोशनी में, अपनी जवानी के उफान में डूबे थे। कर्मा की बेपरवाही और खुलापन सोनू और कम्मू को एक नई दुनिया की ओर खींच रहा था। हलवाइन की छवि उनके मन में थी, और नदी से बहती ठंडी हवा उनके चेहरे पर लग रही थी।


तीनों अपने अपने लंड अपने हाथ में लिए थे, कर्मा ने तो अपना हाथ चलाना शुरू भी कर दिया था, वहीं सोनू और कम्मू सकुचा रहे थे,
कर्मा: अरे डर क्यों रहे हो दोनों, यूं समझो कि तुम योद्धा हो और हाथ में तुम्हारी तलवार है और लड़ाई से पहले तलवार में धार लगाई जाती है वैसे ही हमें लगानी है।
कर्मा का अटपटा और अलग सा विचार सुनकर दोनों ही हंसने लगे और सहज हो गए, और फिर तीनों अपनी कल्पना में हलवाई की पत्नी को नंगा करते हुए लंड पर हाथ चलाने लगे, कुछ देर में हलवाइन के नाम की मलाई तीनों ने जमीन पर गिरा दी और जमीन को उपजाऊ कर दिया। तीनों शांत हुए और अपनी अपनी पैंट ऊपर चढाई, कर्मा उठते हुए बोला: चलें योद्धाओं?
ये सुनकर दोनों हंसने लगे,
कर्मा मोटरसाइकल पर बैठा और बाकी दोनों उसके पीछे, और स्टार्ट कर चल दिया,
कर्मा: अरे सुनो आज रात के लिए तैयार हो?
सोनू: आज रात ऐसा क्या है?
कर्मा: अरे मस्तीपुर में आज प्रोग्राम है नाच का, चलो देख कर आते हैं मजा आएगा।
कम्मू: रात को कहां घरवाले मानेंगे।
सोनू: हां यार नहीं मानेगा कोई।
कर्मा: अरे कुछ बहाना मार देना, मस्त नचनिया आने वाली है नहीं देखा तो पछताओगे।
दोनों सोच में पड़ गए क्योंकि गांव में टीवी वगैरा तो था नहीं मनोरंजन के नाम पर नाटकों और नाच का ही सहारा था, दोनों का ही मन था पर घरवालों की समस्या थी।
सोनू: पर जाएं कैसे?
कर्मा: सोनू तेरे लिए तो मैं चाची से बोल दूंगा कि हम दोनों आज साथ में रुकेंगे हवेली पर तो वो मान जाएंगी, कम्मू तुझे कुछ सोचना होगा।
कम्मू भी सोच रहा था ऐसा क्या बहाना बनाया जाए, ये सोचते हुए गांव के पास आकर कर्मा ने दोनों को उतार दिया और वो हवेली की ओर निकल गया, सोनू घर पहुंचा तो रजनी तब तक घर आ चुकी थी,
रजनी: कहां था तू? हवेली से जल्दी आ गया था।
सोनू: कर्मा के साथ था मां,
रजनी: बहुत घूमने लगा है उसके साथ।
विक्रम: हां वो वैसे भी बिगड़ा हुआ है तुझे भी बिगाड़ देगा।
सोनू: अब उसे मना तो नहीं कर सकता न? हवेली का लड़का है वहीं काम करते हैं हम।
उसकी बात भी सबको सही लगी और चुप हो गए,
सोनू: और मां आज वो बोल रहा था कि मैं उसके साथ हवेली में रुकूं।
रजनी: अरे क्यों हवेली में क्या काम है? और उसे तुझसे इतना लगाव क्यों हो रहा है।
नेहा: सही में मां, आज वो इसे ढूंढते हुए घर भी आया था,
ये सुन रजनी कुछ सोचने लगती है,
रजनी: उसने कुछ कहा क्या?
नेहा: नहीं बस सोनू का पूछ कर चला गया।
सोनू: अरे वो मुझे अपना दोस्त मानता है साथ खेलते आए हैं इसलिए तुम लोग ज्यादा सोच रहे हो।
रजनी: सोनू जा तू हाथ पैर धो आ तब तक खाना लगाती हूं।
सोनू हाथ पैर धोने चला जाता है तो विक्रम कहता है: हवेली का लड़का हम जैसे गरीब परिवार के लड़के से दोस्ती क्यों करेगा? मुझे तो ये सब सही नहीं लग रहा।
रजनी अपने बारे में भी सोचती है कि वो भी तो क्या क्या कर रही है हवेली जाकर और सोच कर बोलती है,
रजनी: छोड़ अगर सोनू खुश है उसके साथ से तो रहने दे, वैसे भी इतनी सी उमर में बहुत दुख देख लिए उसने।
विक्रम उसकी बात सुन सिर हिलाता है उतने में सोनू भी आ जाता है।

उधर हवेली में पहुंच कर कर्मा सीधा अपने पापा यानि नीलेश के पास जाता है,
कर्मा: पापा मुझे कुछ पूछना है.
नीलेश: हां पूछ क्या बात है?
कर्मा: राजेपुर गांव में हमारे जानने वाले हैं न?
नीलेश: हां बहुत है? क्यों किसी से झगड़ा हुआ क्या तेरा?
कर्मा: नहीं बस कुछ पता करना था।
इतने में बिमला पीछे से आती है और कहती है: मालिक, छोटे मालिक, मालकिन खाने के लिए बुला रही हैं। कुछ देर में सब खाने की मेज पर होते हैं और खाना खा रहे होते हैं,
सोमपाल: बहू, अनुज लल्ला कब आएगा अपने ननिहाल से?
सरोज: अरे बाउजी, अभी दो दिन तो हुए गए उसे अभी से याद करने लगे।
सोमपाल: अरे हमारे पोतों में ही तो हमारी जान बसती है, इन्हें तो याद करेंगे ही।
सरोज: कहो तो भैया को बोल दूं छोड़ जाएंगे कल ही?
सोमपाल: अरे नहीं रह लेने दे थोड़े दिन।
कर्मा: पापा, मुझे थोड़ी देर के लिए जीप चाहिए, मस्तीपुर तक जाना है,
नीलेश: मस्तीपुर क्यों वो भी इस समय?
कर्मा: अरे पापा वहां न आज नाच का प्रोग्राम है, वो देखने।
सरोज: अच्छा नाच देखने तू इतनी रात को दूसरे गांव जाएगा?
कर्मा: हां मां अच्छा प्रोग्राम है।
नीलेश: अरे रहने दे सही कह रही है तेरी मां।
सोमपाल: अरे जाने दो न इस उम्र में ये नाच नाटक नहीं देखेगा तो कब देखेगा।

सरोज: बस बाउजी आपकी सह में रहकर ही इनकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं,
सरोज हंसते हुए कहती है।
सोमपाल: अरे बहू, अगर अपने पोतों की इच्छा न पूरी कर पाऊं तो मेरा क्या फायदा?
कर्मा: अरे बाबा तुम दुनिया के सबसे अच्छे बाबा हो।
नीलेश: चल चुपचाप खाना खा, मेरे बाप को मक्खन लगा रहा है।
सब हंसने लगते हैं। खाने के बाद कर्मा जीप लेकर निकल जाता है,
कुछ देर बाद सोमपाल उठे और बोले, “अरे, बिमला, तेरा काम निपट जाए तो थोड़ी मालिश कर देना पैरों की।” यह कहकर वह अपने कमरे की ओर बढ़ गए।
“जी, मालिक,” बिमला ने जवाब दिया। उसकी नज़र सरोज से मिली, और उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान तैर गई। हवेली में सब जानते थे कि सोमपाल की ‘मालिश’ का मतलब क्या है। बिमला ऐसी नौकरानी थी, जिसने हवेली के हर मर्द का स्वाद चखा था।

सोमपाल के जाते ही सरोज ने नीलेश को इशारे से कहा, “बाउजी को आजकल मालिश की ज़्यादा ज़रूरत पड़ रही है।” वह हँसने लगी।
“अरे, बाउजी किसके हैं?” नीलेश ने हँसते हुए कहा। “ऐसी मालिश तो वो हमेशा से करते आए हैं। वैसे, तेरा क्या खयाल है? तेरी मालिश कर दूँ मैं आज?” यह कहकर नीलेश ने सरोज को अपनी ओर खींच लिया।
“अरे, क्या कर रहे हो?” सरोज ने नकली गुस्से में कहा। “कम से कम कमरे में तो चलो!”
“अरे, शरमाती क्यों है?” नीलेश ने हँसते हुए कहा। “बाउजी अपने कमरे में हैं, बच्चे हैं नहीं, नौकर जा चुके हैं।” यह कहकर वह सरोज के होंठों को चूसने लगा। सरोज भी उसका साथ देने लगी। नीलेश ने सरोज का ब्लाउज़ खोल दिया, और वह ज़मीन पर गिर गया। फिर उसने ब्रा को खींचकर उतार दिया, जो कंधे से लटक गई। सरोज की मोटी-मोटी चूचियाँ अब नीलेश के सामने थीं।
दोनों के होंठ अलग हुए तो सरोज ने झूठमूठ के गुस्से में कहा, “देखो तो, तुम्हें भी बिल्कुल सब्र नहीं है!” उसने पल्लू अपने सीने पर डाल लिया।
“अरे, तुम सामने हो तो सब्र कैसा?” नीलेश ने हँसते हुए कहा। “पल्लू मत डालो, जो देखने वाली चीज़ है, उसे तो देखने दो।”
सरोज हँस पड़ी और पल्लू हटाकर अपनी चूचियों को दिखाने लगी।


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“आह, ये तो दिन-प्रतिदिन और सुंदर होती जा रही हैं,” नीलेश ने कहा और उन्हें मुँह में भर लिया।
ऊपर वाले कमरे में सोमपाल बिस्तर पर बैठा बिमला का इंतज़ार कर रहा था। दरवाज़ा खुला, और बिमला अंदर आई। उसने पहले ही अपना ब्लाउज़ उतार दिया था और सिर्फ़ साड़ी में थी, जो उसके भरे हुए बदन को और उभार रही थी।


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सोमपाल की आँखों में हवस की चमक थी। वह बिस्तर से उठा और अपनी धोती खोल दी।



फूल सिंह का घर
उधर, फूल सिंह के घर में खाना बन रहा था। कम्मू घर पहुँचा तो उसका दिमाग सिर्फ़ नाच के प्रोग्राम में अटका था। वह सोच रहा था कि कैसे इजाज़त माँगी जाए। उसने भैंसों और गायों को चारा-पानी देकर सारे काम निपटा लिए थे।
सुमन खाना परोसने की तैयारी कर रही थी, और कुसुम रसोई में खाना बना रही थी। गर्मी के कारण कुसुम ने अपना पल्लू कमर में लपेट रखा था। उसका पसीने से भीगा मांसल पेट, गहरी नाभि, और ब्लाउज़ में कसी बड़ी-बड़ी चूचियाँ साफ़ नज़र आ रही थीं। कुसुम घर की बड़ी बहू थी और थोड़ी बेबाक थी, इसलिए उसे घरवालों के सामने संकोच नहीं था।
कम्मू की नज़र एक-दो बार अपनी ताई के बदन पर गई, मगर उसने ध्यान नहीं दिया। यह उसके लिए आम था। अजीत, उसका पिता, चुपके-चुपके अपनी भाभी के बदन को देख रहा था। कुसुम का पसीने से चमकता मखमली पेट, गहरी नाभि, और ब्लाउज़ को तानती चूचियाँ उसके मन में कामुक खयाल जगा रही थीं।


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जल्द ही खाना तैयार हो गया। अनामिका और अंजू ने खाना परोसना शुरू किया। खाने के बाद कम्मू ने हिम्मत जुटाई और अपने ताऊ फूल सिंह के पास जा बैठा। वह जानता था कि ताऊ ही उसकी मदद कर सकते हैं।

फूल सिंह का कम्मू से खास लगाव था, क्योंकि वह सबसे छोटा था और उनके छोटे भाई का बेटा था।
“ताऊजी, एक बात पूछनी है,” कम्मू ने हल्के से कहा।
“हाँ, पूछ, लल्ला,” फूल सिंह ने प्यार से कहा।
“वो, दूसरे गाँव में आज नाटक और नाच का प्रोग्राम है। मैं देखने जाऊँ क्या? सोनू और दोस्त भी जा रहे हैं।”
“रात में दूसरे गाँव जाना सही होगा?” फूल सिंह ने चिंता से पूछा।
“अकेला नहीं जा रहा, दोस्त भी जा रहे हैं,” कम्मू ने जवाब दिया।
पीछे से अजीत बोला, “अच्छा, बताऊँ? अभी कहीं जाने की ज़रूरत नहीं। काम-धंधा कुछ नहीं, बस मस्ती करवा लो इस नालायक से!”
कम्मू का मुँह लटक गया। कुसुम ने तुरंत टोका, “अरे, क्यों चिल्ला रहे हो बेचारे पर? ऐसा क्या माँग लिया?”
“दूसरे गाँव में नाच-नाटक का प्रोग्राम है, वो देखने जाना चाहता है,” फूल सिंह ने बताया।
सुमन चुपचाप सुन रही थी। वह जानती थी कि कम्मू का भला-बुरा सोचने के लिए उसके ताऊ-ताई हैं। धीरज ने कहा, “हाँ, मैंने भी सुना। कुछ लोग गाँव में बात कर रहे थे।”
“ठीक है, चला जा, कम्मू,” फूल सिंह ने कहा। “पर समय से आ जाना।”
“अरे, दादा, तुम्हारे लाड़ ने ही इसे बिगाड़ा है,” अजीत ने तंज कसा।
“चुप कर,” फूल सिंह ने हँसते हुए कहा। “अपने दिन भूल गया? तू तो चुपके-चुपके नौटंकी देखने जाता था। कम से कम ये पूछकर जा रहा है।”
यह सुनकर अजीत मुस्कुरा दिया, और बाकी सब हँस पड़े। कम्मू खुश था कि उसे इजाज़त मिल गई।


मस्तीपुर
थोड़ी देर बाद चारों—कर्मा, सोनू, कम्मू, और मन्नू—जीप में सवार होकर मस्तीपुर की ओर निकल पड़े। सोनू और कम्मू ने मन्नू को भी साथ ले लिया था, क्योंकि उन्होंने पहले ही कह दिया था कि सारे दोस्त जा रहे हैं। मन्नू के घरवालों ने भी यही सोचकर इजाज़त दे दी।

मन्नू को कर्मा के साथ अपने दोस्तों की अचानक दोस्ती समझ नहीं आ रही थी, मगर उसे नाच देखने और जीप में बैठने का मौका मिल रहा था, तो वह चुपचाप खुश था।
कर्मा ने जीप मस्तीपुर के मैदान में रोकी, जहाँ प्रोग्राम हो रहा था। मैदान में अच्छी-खासी भीड़ थी। आसपास के कई गाँवों से लोग नाच देखने आए थे। जीप रुकते ही लोग खुसुर-फुसुर करने लगे। इन गाँवों में जीप कोई आम चीज़ नहीं थी। लोग प्रभावित हुए बिना न रह सके।
सोनू, कम्मू, और मन्नू जीप से उतरे, और कर्मा उनके पीछे। कई लोग स्टेज की बजाय उनकी ओर देख रहे थे। कोई बोला, “ये सज्जनपुर के जमींदार का बेटा है।” कोई और कुछ कह रहा था। चारों स्टेज के पास पहुँचे, और बिना कुछ कहे उनके लिए चार आसन लगा दिए गए। चारों बैठ गए। सोनू, कम्मू, और मन्नू को पहली बार इतना सम्मान मिल रहा था। लोग उनकी आवभगत कर रहे थे, और उन्हें यह सब बहुत अच्छा लग रहा था। वे जानते थे कि यह सब कर्मा की वजह से है।
कुछ देर बाद नाच शुरू हुआ। एक भरे बदन वाली, सजी-धजी नचनिया स्टेज पर आई। उसने लाल रंग का घाघरा-चोली पहना था, जिसमें उसका गोरा, मांसल पेट और गहरी नाभि साफ़ दिख रही थी। चोली में उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ सबका ध्यान खींच रही थीं। जैसे ही उसने ठुमके लगाना शुरू किया, उसकी कमर की थिरकन और सिलवटों ने माहौल में आग लगा दी। लोग आहें भरने लगे, और कर्मा, सोनू, कम्मू, और मन्नू की नज़रें भी उस पर टिक गईं।


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मस्तीपुर के मैदान में नाच का प्रोग्राम अपने चरम पर था। नचनिया के ठुमकों ने भीड़ को झुमा रखा था। उसकी हिलती कमर, भरे हुए चूतड़, और चोली में कसी मोटी-मोटी चूचियाँ हर किसी की नज़रों को बाँधे हुए थीं।
कर्मा बार-बार खड़ा होता और स्टेज के पास जाकर लाली पर नोट उड़ा देता। उसकी हरकतों से भीड़ में खुसुर-फुसुर होने लगती, मगर कर्मा को इसकी परवाह कहाँ थी? उसने कई बार सोनू, कम्मू, और मन्नू को भी पैसे थमाकर स्टेज की ओर भेजा। लाली की हिलती कमर और चूतड़ों को देखकर कर्मा कभी सोनू, कभी कम्मू के कान में फुसफुसाता, “इसे देखकर तो लौड़ा खड़ा हो गया, यार!” दोनों उसकी हाँ में हाँ मिलाकर हँस पड़ते, हालाँकि उनकी आँखों में भी वही उत्तेजना चमक रही थी।
खैर, कुछ देर बाद नाच खत्म हुआ। लाली ने आखिरी ठुमका लगाया और स्टेज के पीछे चली गई। कर्मा तुरंत उठा और उसी ओर बढ़ गया। सोनू, कम्मू, और मन्नू उसे जाते देख एक-दूसरे से पूछने लगे, “अरे, ये कहाँ चला गया?”

स्टेज के पीछे पर्दे के पास एक आदमी खड़ा था, जिसने कर्मा को रोकने की कोशिश की। मगर जैसे ही उसे अंदाज़ा हुआ कि यह सज्जनपुर का जमींदार का बेटा है, वह तुरंत रास्ते से हट गया। कर्मा बेधड़क टेंट में बने एक छोटे से कमरेनुमा जगह में घुस गया, जहाँ लाली कपड़े बदल रही थी।
लाली की नंगी पीठ और कमर की सिलवटें कर्मा की आँखों में समा गईं। उसने बेपरवाही से कहा, “बहुत अच्छा नाचती हो तुम!”
लाली ने आवाज़ सुनकर पलटकर देखा और एक पल के लिए हैरान रह गई। “तुम… तुम अंदर कैसे?” वह कुछ बोलने जा रही थी, मगर रुक गई। उसने कर्मा को पहचान लिया—वही लड़का जो उस पर नोट उड़ा रहा था। लाली समझ गई कि यह कोई आम गाँव वाला नहीं है। इतनी हिम्मत वही कर सकता है, जो बड़ा रसूख वाला हो। मगर लाली घबराई नहीं। वह सालों से नाच का प्रोग्राम कर रही थी। अनगिनत मर्द उसकी अदाओं के दीवाने थे, और उसने ऐसे लोगों को संभालना सीख लिया था।
“धन्यवाद,” लाली ने मुस्कुराते हुए कहा। “वैसे, आपने जो नोट उड़ाए, उसी से अंदाज़ा हो गया था कि आपको मेरा नाच पसंद आ रहा है।”
कर्मा ने अपनी शरारती मुस्कान के साथ जवाब दिया, “पर तुम्हारी जैसी कलाकार को तो सामने से उत्साहित करना चाहिए। इसलिए खुद को रोक ही नहीं पाया।”
लाली कर्मा की बातों से प्रभावित हो रही थी। वह सोच रही थी कि यह लड़का उससे आधी उम्र का होगा, मगर बातें ऐसी करता है जैसे कोई बड़ा आदमी। जरूर किसी रईस घर का है। उसका लहजा, उसका आत्मविश्वास—सब कुछ यही बता रहा था। “धन्यवाद इतनी तारीफ के लिए,” लाली ने पल्लू सीने पर डालते हुए कहा।
“वैसे, बुरा न मानो तो नाम जान सकता हूँ?” कर्मा ने पूछा। “मेरा नाम कर्मा है। मैं सज्जनपुर के जमींदार सोमपाल जी का पोता और नीलेश जी का बेटा हूँ।”
कर्मा ने अपना परिचय देकर साफ़ कर दिया कि वह कितना प्रभावशाली है। अगर लाली के मन में उसे मना करने का कोई खयाल था, तो वह अब खत्म हो चुका था। लाली पहले ही अंदाज़ा लगा चुकी थी, और अब परिचय सुनकर बोली, “कर्मा? बहुत अच्छा नाम है। मुझे लाली कहते हैं।”
“लाली, बहुत ही रोचक नाम है,” कर्मा ने तारीफ करते हुए कहा। “वैसे, तुम कहाँ से हो?”
“शहर के भी आगे, मेरा गाँव है—पीत नगर,” लाली ने जवाब दिया।
“अरे, काफी दूर है,” कर्मा ने कहा। “कब जाओगी तुम?”
“जाना तो अभी था, पर साथ के लोग जब तक सामान नहीं समेटेंगे, तब तक रुकना पड़ेगा। उनके साथ ही जाऊँगी।”
कर्मा ने तुरंत मौके का फायदा उठाया। “अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें अपनी जीप से छोड़ देता हूँ।”
“अरे, आप क्यों तकलीफ लेंगे?” लाली ने नकली संकोच दिखाते हुए कहा।
“अरे, इसमें तकलीफ कैसी?” कर्मा ने अपनी चिर-परिचित शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा। “हमें तो तकलीफ तब होगी, जब तुम जैसी सुंदरी को तकलीफ में देखेंगे।”
लाली उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी। “बातें अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ी नहीं करते आप?”
“काफी कुछ उम्र से बड़ा और अच्छा कर लेता हूँ,” कर्मा ने आँख मारते हुए कहा। “बस तुम सेवा का मौका दो।”
लाली को कर्मा की बातें भा रही थीं। वह बाकी मर्दों की तरह सीधे अश्लील बातें नहीं करता था। उसकी बातें मीठी चाशनी में डूबी थीं, जो सुनने वाले को लुभा लेती थीं। “अच्छा, किराया तो नहीं लोगे मुझे छोड़ने का?” लाली ने मज़ाक में पूछा।
“माँगूँगा नहीं,” कर्मा ने हँसते हुए कहा। “पर तुम दोगी, तो मना भी नहीं करूँगा।”
लाली हँस पड़ी। “अच्छा, सुनो। तुम जीप के पास इंतज़ार करो। मैं अपने साथियों को बता कर आती हूँ।”
“ठीक है, इंतज़ार रहेगा,” कर्मा ने कहा और बाहर निकल गया।
जीप के पास
सोनू, कम्मू, और मन्नू जीप के पास खड़े कर्मा का इंतज़ार कर रहे थे। सोनू ने पूछा, “अरे, भैया, कहाँ चले गए थे? वैसे ही देर हो गई है।”
कर्मा ने शरारत भरे लहजे में कहा, “अरे, उसी नाचने वाली से बात कर रहा था। एक अच्छी खबर है—वो हमारे साथ चल रही है।”
“क्या? हमारे साथ? कहाँ?” कम्मू ने हैरानी से पूछा।
“अरे, उसे शहर जाना है। मैंने बोला कि चलो, मैं छोड़ दूँगा,” कर्मा ने बेपरवाही से कहा।
मन्नू ने चिंता जताई, “पर इसमें हमें देर नहीं हो जाएगी?”
“अरे, बोल देंगे कि प्रोग्राम देर से खत्म हुआ,” कर्मा ने जवाब दिया। “इसी बहाने उसके साथ समय बिताएँगे, तो पटाने का मौका मिलेगा।”
मन्नू कुछ कहने वाला था, मगर कम्मू और सोनू ने उसे इशारे से चुप करा दिया। कुछ ही पल बाद लाली जीप के पास आई। उसने अब साड़ी पहन रखी थी, मगर उसका भरा हुआ बदन और कामुकता पहले जैसी ही थी। उसकी गहरी नाभि और साड़ी में लिपटी चूचियाँ तीनों की नज़रों को खींच रही थीं। सोनू, कम्मू, और मन्नू चुपके-चुपके उसे देख रहे थे।
कर्मा ने परिचय कराया, “लाली जी, ये मेरे दोस्त हैं—कम्मू, सोनू, और मन्नू।”
लाली ने तीनों को देखकर सिर हिलाया और मुस्कुराई। तीनों ने सकुचाते हुए उसे नमस्ते किया। फिर सब जीप में बैठ गए। कर्मा जीप चला रहा था, लाली उसके बगल में बैठी थी, और बाकी तीनों पीछे की सीट पर। कर्मा और लाली बातें कर रहे थे। सोनू, कम्मू, और मन्नू बीच-बीच में कुछ पूछे जाने पर जवाब देते, मगर उनकी झिझक साफ़ दिख रही थी। लाली की हँसी और मज़ाक से धीरे-धीरे उनकी शर्म कम हो रही थी।
कर्मा जीप चलाते हुए चुपके से लाली के हाथ पर हाथ रख लेता, कभी उसकी जाँघ को हल्के से छू लेता। लाली को समझ थी कि कर्मा क्या चाहता है, मगर वह अभी कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। कर्मा का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था। अगर कोई और होता, तो वह अब तक बहाना बनाकर या साफ़ मना कर चुकी होती। खैर, रास्ता कटता गया, और वे लाली के गाँव पीत नगर पहुँच गए।
लाली के उतरने से पहले कर्मा ने कहा, “फिर कब दर्शन होंगे?”
लाली ने शरारत भरे लहजे में जवाब दिया, “देखेंगे। मेरा समय मुफ्त में नहीं मिलता, कीमत चुकानी पड़ती है।”
“तुम्हारे लिए तो हर कीमत चुकाने को तैयार हूँ,” कर्मा ने तुरंत कहा। “बस तुम हाँ तो करो।”
“हाँ तो कर दूँ,” लाली ने हँसते हुए कहा। “पर तुमने ज़्यादा माँग लिया तो?”
“हाँ, ये भी सही है,” कर्मा ने आँख मारते हुए कहा। “माँगूँगा तो ज़्यादा ही, क्योंकि तुम्हें देखकर खुद को रोक नहीं पाऊँगा।”
“अच्छा, अब जाओ,” लाली ने हँसते हुए कहा। “बहुत बातें बन गई।”
कर्मा ने उससे विदा ली, और चारों जीप में बैठकर वापस निकल पड़े। रास्ते में लाली की बातें करते हुए कर्मा ने बेपरवाही से कहा, “जल्दी ही लाली मेरे नीचे होगी।”
सोनू, कम्मू, और मन्नू ने हैरानी से उसकी ओर देखा। कम्मू ने पूछा, “ऐसा कैसे होगा, भैया?”
कर्मा ने हँसते हुए कहा, “अरे, यार, तुम लोग अभी बच्चे हो। देखना, कर्मा जब ठान ले, तो कोई नहीं बचता। लाली को भी मैं अपने नीचे की सैर जरूर करवाऊँगा।”
मन्नू ने संदेह भरे लहजे में कहा, “पर वो इतनी आसानी से कैसे मानेगी?”
“आसानी से नहीं मानेगी, तो थोड़ा ज़ोर लगाएँगे,” कर्मा ने शरारती मुस्कान के साथ कहा। “तुम लोग बस मेरे साथ रहो, सब मज़े मिलेंगे।”
सोनू और कम्मू कर्मा की बातों से प्रभावित थे, मगर मन्नू के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। वह चुप रहा। जीप गाँव की ओर बढ़ रही थी, और चारों अपनी-अपनी सोच में डूबे थे।

जारी रहेगी।
 
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