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कहानी का अगला भाग UPDATE 07 पेज नं 1214 पर पोस्ट कर दिया गया है
KINDLY READ & REVIEW
KINDLY READ & REVIEW
Rony bhai gaali nahi![]()
Tnx bhaiKosis puri rhegi bhaai
Shaandar Mast Hot Kamuk Update![]()
Super amazing update
Jeth aur bahu dono ki chemistry kuch jyada banti ja rhi hai khi aesa n ho murari chhote bhai ki biwi ko ghar le jane aaya tha ye uski chhote bhai ki biwi ko apni nyi biwi bnane lag jaye
Ek no update bhai pr ragini ka to ata pata hi ni h anuj ragini lya jangi ragini laga th hoga pr ni hua
बहुत ही गरमागरम कामुक और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
Super Update Guru JiAwesome
amazing
Keep it up waiting for next update
Bro please write like old ways missing those erotic and incest moments
Wow fantastic update bhai....1 number update...
Humme toh sonal ka intezar hai kab tak apne papa sasur chacha etc ke sath kusti khelegi.....
Waiting
Lajawab jabrdast hot update 🩵
Sab kirdar rangin mijaj ke hai. Romanchak. Pratiksha agle rasprd update ki
Shaandar jabardast super hot Mast Lajwab Kamuk Update![]()
Masaledar update...
erotic
very nice story... please update
Nice update bro
.
Kahani me abhi seen ban raha hai
Agle kuch update ke baad pata chalega sexy sexy seen
.
Bhai ek request thi ek update me ek character pe rah sakte hai kya aapke hisab se sayad nahi but wo kya hai naa update late hota hai to kuchh seen dimaag se nikal jata hai fir back update padna padta hai
Bhai mazedaar update maza aagya 3 update ek se bdhkar ek agle update me ragini ka intzaar h bsss love u from this bhai
Bhai Anuj or uski maa ki ek seduction scene dikhado![]()
Nice update
Bht hi kamuk update Diya bhai ji but aap se ek request h salini chachi ka bhi parichay ho jaye agr anuj k sath to maja aa jayega
Update ka intezar hai bhai
Kamuk update lagta ha rangila apni salhaj sunita per hath saf karne wala ha![]()
Jabardast shuruwat![]()
Excellent update. Waiting for next
NICE UPDATE BRO BUT VERY LATE
Update ka intezar hai bhai
Agle update ka intezar hai guruji
अपडेट की प्रतीक्षा है मित्र।
बहुत ही कामुक गरमागरम और लाजवाब अपडेट है
कहानी का नया अपडेट पोस्ट कर दिया गया हैChup kar harami PATA bhi hai kitne waqt se hum intezar mein hainbaur ek Bhai aur hai Jo Sonal aur uske papa ka pichle 3.5 Saal k Liye bol Raha hai aur tu kalka londa
keep goingअध्याय 02
UPDATE 04
प्रतापपुर
" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।
सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।
दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई
रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।
इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा
रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।
रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा
रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा
बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है
तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया
रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।
बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा
शिला के घर
" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।
रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।
रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था
रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।
वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई
और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे
रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब
रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।
रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।
रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार
चमनपुरा
कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।
कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!
एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!
तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।
कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस
फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।
कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।
कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही
कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?
कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।
फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया
रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी
रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क
रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से
रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।
रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।
वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।
: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।
चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।
राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।
चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।
राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा
राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू
चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।
चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।
अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से
राज ने फोन पिक किया
: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।
मुरारी - मंजू
दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई
मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया
फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।
ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।
फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी
मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।
जारी रहेगी
अध्याय 02
UPDATE 04
प्रतापपुर
" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।
सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।
दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई
रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।
इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा
रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।
रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा
रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा
बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है
तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया
रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।
बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा
शिला के घर
" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।
रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।
रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था
रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।
वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई
और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे
रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब
रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।
रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।
रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार
चमनपुरा
कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।
कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!
एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!
तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।
कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस
फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।
कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।
कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही
कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?
कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।
फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया
रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी
रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क
रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से
रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।
रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।
वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।
: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।
चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।
राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।
चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।
राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा
राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू
चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।
चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।
अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से
राज ने फोन पिक किया
: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।
मुरारी - मंजू
दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई
मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया
फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।
ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।
फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी
मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।
जारी रहेगी
बहुत ही रोचक और कामुक अपडेट था मित्र, एक साथ कई कहानियां आगे चल रहीं हैं और उन्हें पढ़ कर बहुत मज़ा भी आ रहा है, हालांकि व्यक्तिगत रूप से कुछ कुछ पक्षों पर मेरे मन में कुछ मतभेद भी हैं,बहुतअध्याय 02
UPDATE 04
प्रतापपुर
" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।
सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।
दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई
रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।
इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा
रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।
रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा
रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा
बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है
तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया
रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।
बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा
शिला के घर
" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।
रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।
रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था
रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।
वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई
और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे
रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब
रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।
रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।
रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार
चमनपुरा
कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।
कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!
एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!
तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।
कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस
फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।
कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।
कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही
कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?
कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।
फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया
रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी
रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क
रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से
रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।
रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।
वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।
: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।
चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।
राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।
चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।
राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा
राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू
चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।
चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।
अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से
राज ने फोन पिक किया
: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।
मुरारी - मंजू
दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई
मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया
फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।
ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।
फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी
मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।
जारी रहेगी
Thanks For Update Guru Jiकहानी का नया अपडेट पोस्ट कर दिया गया है
पढ़ कर रेवो जरूर करें
Shaandar jabardast super hot Mast Lajwab Updateअध्याय 02
UPDATE 04
प्रतापपुर
" जी बाउजी तो गोदाम पर होंगे , आज राशन बटना था न " , सुनीता ने अपने नंदोई रंगीलाल को जवाब दिया ।
रंगीलाल : और भाई साहब?
सुनीता थोड़ा सोच कर बोली : वो ... भी खेत की ओर गए होंगे गेहूं में आज पानी लगवाना था ।
रंगीलाल की नजर अपनी सहलज के दूधिया कमर पर थी। रंगीलाल अपने साले के अय्याश मिजाज से भली भांति परिचित था और सुनीता के लिए थोड़ा सा मन में संवेदना का भाव आ ही जाता था ।
कुछ देर तक हाल चाल और घर की बातें कुछ सोनल की बातें होने लगी । पहली बार था जब रंगीलाल इतनी देर तक अपनी सलहज से अकेले में बात कर रहा था । सुनीता के रसीले मोटे होठ और कजरारी आंखों पर जब भी रंगीलाल की नजर जाती वो भीतर से सिहर जाता था ।
सुनीता की चंचल नैनो में गजब का आर्कषण था और ब्लाउज के भरे हुए उसके गोल मटोल मम्मे का उभार देख कर रंगीलाल अपने साले की किस्मत को कोश रहा था ।
रंगीलाल खड़ा होता हुआ : गोदाम किस तरफ है , उधर ही चलता हूं बैठूंगा बाउजी के पास
सुनीता ने फिर पता बताया और रंगीलाल पैदल ही निकल गया घर से ।
सालों बाद वो अपने ससुराल आया था तो ज्यादा लोग उसे जानते नहीं थे । वही लोग उससे परिचित थे जिन्होंने उसे शादी में देखा था ।
खैर गांव का माहौल काफी कुछ बदल गया था । सड़के पक्की हो गई थी मकान अब ज्यादातर पक्के और दो मंजिले के हो गई थी
घूमते टहलते वो गांव के उस तिर पहुंच ही गया जहा उसके ससुर बनवारी का गोदाम था । बड़ी चौड़ी जगह और ट्रक की खड़ी कतार देख कर रंगी को भी एक पल के लिए अपने ससुर की सम्पन्नता पर ताज्जुब हुआ और वो मेन गेट से दाखिल हो गया ।
लोड अनलोड का कार्य तो दिन रात चलता रहता था । 40 से ज्यादा आदमी औरत मजदूरी पर लगे थे । ठाकुरों/जमींदारों जैसा अस्तित्व था बनवारी का उसके गांव में । किसी भी आदमी से ना वो परिचित था और ना ही किसी ने उसे रोका । रंगीलाल थोड़ा अजीब भी महसूस कर रहा था कि कैसे वो इन मजदूरों को अपना परिचय देकर अपने ससुर का पता पूछे । इतने सालों में पहली बार वो यहां आया था । अनाज के बोरियो की छल्लीयो की 15 फीट ऊंची गलियारों से होकर गुरजता घूमता हुआ आखिर वो एक किनारे निकला और उसकी नजर सामने 40 फिट दूर दूसरे किनारे एक कमरे पर गई । तो रंगी को अहसास हुआ कि वो गलत ओर आ गया और वो आगे बढ़ रहा था कि उसकी नजर कमरे के पास खिड़की के बाहर खड़ी दो औरतों पर थी । कपड़े और हुलिए से मजदूर ही दिख रही थी । दोनो आपस में हस कर खिड़की से कमरे में झाक रही थी कि इतने में उसमें से एक ने मुझे आता देखा और दोनों दबे पाव दूसरी ओर निकल गए ।
मै बड़ी उत्सुकता से तेजी से उधर गया और जैसे कमरे के आगे गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था और जब मेरी नजर आधी खुली खीड़की पर गई उसके गैप से मैने भीतर झांका तो हिलते हुए परदों की झुरमुट से जो नजारा दिखा दिल खुश हो गया रंगी का
आस पास जायजा लेकर एक बार फिर उसने भीतर झांका , अंदर उसका ससुर अपनी धोती उतारे नंगा लेता था और एक मोटी गदराई महिला उसके लंड को हाथ में लिए खेल रही थी ।
दोनो बड़े आश्वत थे , हल्की फुल्की आवाजे आ रही थी मगर स्पष्ट नहीं और अगले ही पल वो महिला बिस्तर पर आकर अपनी साड़ी पेटीकोट सहित उठाती हुई रंगीलाल के ससुर के लंड पर बैठ गई
रंगीलाल आंखे फाड़ कर रह गया , अंदर वो औरत उछलती रही और बनवारी के चेहरे के भाव बदलते रहे ।
इससे पहले उसे कोई यहां ताक झांक करता हुआ देख ले इसीलिए वो वहा से सरक लिया और इधर उधर टहलते हुए वो गोदाम से बाहर निकल गया और बगल के एक चाय की दुकान पर बैठ गया ।
रंगीलाल ने वहा बैठे हुए कुछ पकोड़े और चाय के ऑर्डर दिए और 10 मिनट बाद उन्हें बनवारी के गोदाम पहुचाने का बोल कर वापस गोदाम की ओर आ गया ।
इस बार उसने सीधा रास्ता लिया और जल्दी बनवारी के कमरे तक आ गया । कमरे का दरवाजा खुल गया था और वो हरी साड़ी वाली औरत रंगी को बोरियो के रास्ते में ही मिली थी । मगर उसने सर पर पल्लू कर रखा था ।
अंदर बनवारी एक टेबल के पास खड़ा होकर पानी भर रहा था गिलास ने एक छोटे प्याऊ से जिसमें मुश्किल से 5 लीटर पानी आता होगा
रंगी : प्रणाम बाउजी
बनवारी घूंट भर पानी गले तक उतार ही पाया था कि उसने पलट कर रंगी को देखा और पानी हलक में अटक ही गया थोड़ा रुक कर : अरे जमाई बाबू आप , नमस्ते आइए आइए .. आप अचानक , फोन भी नहीं किए ।
रंगी लाल बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठता हुआ : जी थोड़ा फुरसत हुआ था तो सोचा मिल आऊ आपसे
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे बहुत अच्छा किया और बताओ घर पर कैसे है , छोटी , सोनल बिटिया और मेरे दोनों शेर नाती हाहाहाहाहा
रंगी : सब अच्छे है बाउजी और सोनल भी घूमने गई है अपने पति के साथ
बनवारी : अच्छा है थोड़ा घूम फिर ले अच्छा है । और बताओ कैसे हो आप जमाई बाबू , समान वमान कहा है । भई आए हो 4 5 रोज रुकना पड़ेगा ।
रंगी मुस्कुरा कर : बस अच्छा हु बाउजी और समान तो घर पर रख कर आया हु । अब देखते है कितना दिन रुकना हो पाएगा
बनवारी : हो पाएगा नहीं रुकना ही है
तभी वो चाय वाला पकौड़े चाय लेकर आया : सेठ जी चाय लाया हु
बनवारी : अरे कुछ पकोड़े भी रखा है या खाली चाय
दुकानवाला : जी लाया हु सेठ जी ,
बनवारी ( अपने कुर्ते की जेब से पैसे निकालते हुए : रख दे और बता कितना हिसाब हुआ तेरा ?
दुकान वाला रंगी की ओर इशारा करके : सेठ जी पैसे ही भाईसाहब ने पहले ही दे दिए
बनवारी : दे दिए ? कब ?
रंगीलाल : वो मै आते हुए ऑर्डर बोल कर आया था
बनवारी : अरे इसकी क्या जरूरत थी जमाई बाबू , मै मंगवा देता न
रंगी : छोड़िए बाउजी , आप मंगवाए या मैं एक ही बात है , जाओ भाई तुम हो गया हिसाब ।
चायवाला निकल गया ।
बनवारी : अरे लेकिन ये ठीक नहीं है जमाई बाबू ? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।
रंगीलाल : अरे बाउजी मै भी पहले वहा नहीं गया , पहले आपके पास ही आया था मगर तब आप बिजी थे तो सोचा बाहर टहल लूं। फिर चाय वाली दुकान दिखी तो ऑर्डर बोल दिया
रंगीलाल की बातें सुनते ही बनवारी के चेहरे के भाव बदल गए : मतलब आप इससे पहले आए थे ? कब ?
रंगी मुस्कुरा कर : बस यही कोई 20 मिनट पहले , छोड़िए न बाउजी बस खिड़की बंद रखा करिए और भी लोग ताक झांक करते रहते है ।
बनवारी रंगी को मुस्कुरा देख मुस्कुराने लगा
शिला के घर
" हीही अब बस भी करो भाभी हो गया , तुम भी न " , शिला हस्ती हुई रज्जो को रोकते हुए बोली ।
दोनो आगे बढ़ते हुए बाग की ओर निकल रहे थे कि रज्जो की नजर उस किन्नर पर गई जो तेजी से बाग की झाड़ियां फांदता हुआ अपनी साड़ी समेटता जा रहा था ।
रज्जो ने शिला को उस ओर दिखा कर : हे दीदी उसे देखो कहा जा रहा है ?
शिला की नजर उसपे पड़ते ही उसके चेहरे के रंग में बदलाव होने लगा : छोड़ो न उस लुच्चे को , चलो हमें इधर जाना है ।
रज्जो को लगा शिला जरूर उससे कुछ छिपा रही है । वरना इतना ईर्ष्या भरी प्रतिक्रिया क्यों देती ।
रज्जो : अरे क्या हुआ , चलो न देखते है कहा जा रहा है ।मुझे लग रहा है कि जरूर उसकी कोई माल आई होगी । हीही
रज्जो ने शिला के कंधे से अपना कंधा टकरा कर उसको चिटकाया ।
शिला उसका हाथ झटक कर झल्लाई : नहीं मुझे नहीं देखना , चलो तुम भाभी ।
रज्जो शरारत भरी मुस्कुराहट से उसको निहारती हुई : मै तो देखूंगी हीही, तुम आओ या न आओ
रज्जो अभी उस तरफ बढ़ रही थी कि शिला भन्नाती हुई आई ।
रज्जो उसको चुप कराते हुए धीरे से एक बड़े से आम के पुराने चौड़े पेड़ के पीछे से झांक कर देखा ।
तो वो किन्नर अपनी साड़ी पेटीकोट कमर तक उठाए हुए था और अपना बड़ा सा खीरे जैसे लंबा मोटा लंड हाथ में लेकर मुठिया रहा था
रज्जो की नजर उसपे पड़ते ही उसके बदन में कंपकपी होने लगी : उफ्फ दीदी देखो तो कितना बड़ा है
शिला तुनकती हुई : तो जाओ चूस लो न हूह
रज्जो शिला को चिढ़ता देख हस कर उसे छेड़ते हुए : सच्ची जाऊ क्या ?
शिला उसको आंख दिखाते हुए : पागल हो क्या , उधर देखो कोई आ रहा है ।
वही दूसरी ओर से खेतों की तरफ से एक मजदूर औरत साड़ी पहने हुए माथे पर गमछे को लपेटे झाड़ियों की ओर जा रही थी । और देखते ही देखते उसने अपनी साड़ी उठा कर अपने चूतड़ खोलती हुई नीचे बैठ गई
और उसके गोल मटोल चूतड़ों को देखकर वो किन्नर और सिहर उठा उसके हाथ अपने मोटे मम्मे को ब्लाउज के ऊपर से मिजते हुए लंड हिलाने लगे
रज्जो : ये तो हिला रहा है , मुझे लगा कि ... हीही
शिला : तो और क्या लगा तुम्हे , चलो अब
रज्जो और शिला जल्दी जल्दी वहां से निकल गए और घर की ओर जाने लगे ।
रज्जो : अच्छा सॉरी बाबा, मुझे नहीं पता था तुम बुरा मान जाओगी
शिला : देखो बात बुरा मानने की नहीं है , यहां गांव में हर कोई उसके हरकतों से परिचित है और अगर कोई हमें उसके आस पास देख जाता तो बदनामी का डर होता है और कुछ नहीं । तुम तो कुछ रोज में चली जाओगी मगर हमें तो यही रहना है न ?
रज्जो को शिला की बातें अजीब और बेतर्की लगी क्योंकि शिला जैसी गर्म और चुदासी औरत ऐसी बातें करे वो समझ से परे थी , जरूर कोई बात होगी ये सोच कर फिलहाल के लिए रज्जो ने उसकी बातों पर सहमति दिखाई ।
रज्जो मुस्कुरा कर शिला को तंग करती हुई : सोच रही हूं कल मै घर के लिए निकलू
शिला के कान खड़े हो गए : क्यों ?
रज्जो : देखो दीदी तुम्हारा तो पता नहीं मगर मुझे तो लंड की बहुत तलब हो रही है , आज 4 रोज हो गए है रागिनी के यहां से आए । तुम तो मुझे बहला फुसला कर ले आई मगर यहां तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मै यहां क्यों हुं
शिला मुस्कुरा कर : अच्छा चलो घर तुम्हारे लिए नया खूंटा निकालती हु वो भी इलेक्ट्रिक वाली हीही
रज्जो अचरज से : इलेक्टिक वाली?
शिला : वही नहीं , एक और बात तुमसे करनी है
रज्जो की उत्सुकता एकदम से बढ़ गई : क्या बताओ न ?
शिला कुछ कहती कि इससे पहले उसके व्हाट्सएप पर एक वॉइस कॉल रिंग होने लगी । शिला ने मोबाइल चेक किया तो देखा उस नम्बर से कई मैसेज भी आए हुए है ।
रज्जो शिला को देखकर : क्या हुआ ?
शिला : अह कुछ नहीं चलो घर चलते है , अरे चलो तो यार
चमनपुरा
कालेज में क्लास खत्म होने की घंटियां बजने लगी थी और सारे स्टूडेंट्स क्लास रूम में हल्ला गुल्ला करते हुए आपस में बातें कर रहे थे । वही क्लास टीचर की टेबल के पास खड़ा हुआ उन्हें किसी को आवाज देता हुआ निहार रहा था ।
कालेज की ड्रेस कोड वाली साड़ी में झांकते अपने टीचर के गुदाज मुलायम नाभि और गोरी कमर को देख अनुज मुस्कुरा रहा था वही टीचर लगातार आवाज दे रही थी भरे हल्ला गुल्ला होते क्लास
टीचर : उफ्फ ये लड़की न , कृतिका ?? लाली !!!!
एकदम से कृतिका ने पलट कर जवाब दिया : हा दीदी !!
और उसके बेंच की लड़कियां खिलखिला कर हसने लगी ।
टीचर ने उसे आंखे दिखाई : इधर आ दीदी की बहन . कबसे बुला रही हूं कान में क्या डाला है ?
कृतिका शर्माते असहज होते हुए टीचर के पास आई : सॉरी मिस , कहिए
टीचर : तुम्हारे साइंस के प्रोजेक्ट पूरे हो गए है न ?
कृतिका ने एक नजर अपने सामने खड़े अनुज की ओर देखा और हा में सर हिला कर : जी मिस
टीचर : लाई हो ?
कृतिका की निगाहे इस वक्त अनुज की गहरी आंखों में अटक गई थी : जी ?
टीचर : मैने कहा , तुम अपना प्रोजेक्ट के नोट्स लाई हो ?
कृतिका : नहीं दीदी , सॉरी मिस वो घर पर है ?
टीचर : अनुज तुम शाम को घर आकर इससे नोट्स ले लेना ओके और पूजा कहा ? पूजा !!!
तभी क्लास से एक दुबली सी लड़की खड़ी होकर बोली : जी मिस ?
टीचर : अरे यार तुम नहीं वो दूसरी पूजा कहा है ? कृतिका तुम्हारी सहेली कहा है ।
कृतिका मुस्कुरा कर : मिस वो भी मेरी सहेली है ?
टीचर ने उसे डांटते हुए : मार खाओगी , कहा है वो ?
तभी पूजा क्लास में आती हुई : जी मिस कहिए
टीचर : ओह आ गई तुम , कल तुम जरा अपने हिंदी के प्रैक्टिकल नोट्स लेकर आना अनुज के लिए
पूजा ने अनुज को देखा और हा में सर हिला दी ।
टीचर : और कुछ समझ न आए तो पूछ लेना ओके अनुज
अनुज अपने बगल में खड़ी हुई टीचर के बदन से आती मादक परफ्यूम की गंध से सराबोर हो गया था , उसे अपनी मिस के गुदाज गोरे बदन की कोमलता उस परफ्यूम की गंध से महसूस हो रही थी ।
अनुज एक दम से हड़बड़ाया : जी ओके मिस
फिर क्लास डिसमिस हुई और सारे लोग घर के लिए निकलने लगे ।
कृतिका और पूजा एक साथ निकल रहे थे और अनुज अकेला आगे जा रहा था ।
कृतिका : हे चल न जल्दी
पूजा : तू न , उसको बोल क्यों नहीं देती कि तू उसे पसंद करती है ।
कृतिका : हा जैसे उसे पता नहीं होगा , मै करती हूं या नहीं तू चल न और सुन तुझसे एक काम भी है
पूजा : क्या ?
कृतिका ने उसके कान में कुछ कहा और पूजा मुस्कुराने लगी ।
पूजा : ठीक है लेकिन इसकी कीमत लगेगी
कृतिका : क्या ? ( कृतिका ने पूजा की शरारती आंखों को देखा ) नहीं नहीं यार तुझे क्या मजा आता है उसमें । ठीक है लेकिन बस आधा घंटा के लिए ? वो भी संडे को और ... मै आऊंगी तेरे घर इस बार याद है तेरे चक्कर में पिछली बार बाल बाल बचे थे हम लोग।
पूजा बस मुस्कुरा कर कृतिका की सारी बातों पर सहमति दिखाई और आगे अनुज की ओर इशारा किया कि देखो वो तो गेट तक चला गया ।
जिसपर कृतिका भन्नाई और तेजी उसे अनुज के पीछे हो गई।
कृतिका : अनुज अनुज , सुनो तो ?
अनुज ने घूम कर कृतिका को अपनी ओर आते देखा
अनुज : हा लाली बोलो ?
कृतिका उदास होकर : यार घर का नाम है मेरे वो
अनुज मुस्कुरा कर : हा लेकिन सब जानते तो है और मुझे ये नाम ज्यादा पसंद है
कृतिका ने शर्मा कर अपने चेहरे के बाल अपने कान में खोंसते हुए : सच में !!
अनुज उसकी अजीब सी हरकत पर मुस्कुरा कर : हा , कितना प्यारा नाम है लाली और तुम शर्माते हुए लाल भी हो जा हो हीही
कृतिका लाल से हस कर : धत्त तुम भी न , अच्छा कब तक आओगे मेरे घर
पूजा : अरे पहले डीजे बाजा बुक करेगा , फिर घोड़ी पर चढ़ेगा तब न आएगा तुम्हारे घर हाहाहाहाहा
कृतिका खीझ कर : पुजल्ली कमिनी चुप कर तू
पूजा की बात पर अनुज भी थोड़ा झेप सा गया और हसने लगा ।
अनुज : उम्मम 7 बजे बाद ही , क्योंकि पापा है नहीं और दुकान पर बैठना पड़ेगा । नहीं तो कल लेते आना ?
कृतिका : क्या ? नहीं नहीं तुम आ कर शाम को नोट्स ले जाना , नहीं तो ये जो कालेज में मिस है न घर जाते ही दादी अम्मा बन जाएगी और फिर मेरी खैर नहीं ।
कृतिका की बात पर अनुज और पूजा हसने लगे ।
फिर अनुज वहा से ईरिक्शा लेकर अपने बाजार वाले दुकान के लिए निकल गया ।
1 बज रहे थे और दुकान पर रागिनी अनुज की राह ही देख रही थी ।
अनुज बहुत थका हुआ दिख रहा था और वो दुकान में घुसता अंदर रंगी के पुराने कमरे चला गया
रागिनी उसको आवाज देकर बुलाती हुई आई और अनुज को बिस्तर पर पड़ा देखकर : अरे यहां क्या कर रहा है , चल बैठ खाना खा ले
अनुज उठ कर भिनभिना हुआ अपने आगे खड़ी मा से लिपट गया : अहा मम्मा
रागिनी की मुलायम कमर को अपने बाहों में कस कर अपने चेहरे को उसके सीने के पास रख कर वो अपनी मां के जिस्म की नरमी पाकर पूरा सिहर उठा उसके पेट में लंड की नसे फड़कने लगी
रागिनी अपने लाडले के प्यार भरे हग से खुश हो गई और उसके सर को सहलाने लगी : क्या हुआ मेरा बच्चा ?
अनुज रागिनी के उठे हुए कूल्हे पर बड़ी मासूमियत से हाथ फिरते हुए बोला: मम्मा मुझे पढ़ाई नहीं करना , कितना सारा लिखना है अभी बक्क
रागिनी मुस्कुरा कर : अरे पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो कौन ब्याहेगा तुझे अपनी लड़की उम्मम
अनुज : आप हो न तो मुझे शादी नहीं करनी
रागिनी : अच्छा तो सारी उम्र मुझसे रोटियां बनवायेगा उम्मम
अनुज : अरे भाभी आएंगी न, राज भैया की शादी कर देना मै नहीं करूंगा शादी । उनसे खाना बनवाना
रागिनी हस कर अनुज को अलग करती हुई : पागल कही का , चल खाना खा ले
अनुज ने और कस लिया अपनी मां को
रागिनी को हसी आई : अरे ? छोड़ न
अनुज : उम्हू नहीं छोड़ूंगा
रागिनी : धत्त बदमाश छोड़ मुझे
अनुज अपना मुंह उठा कर अपनी मां को देखता हुआ : नहीं हीही
रागिनी हस्ती हुई: अब मार खायेगा , तेरे पापा नहीं हैं तो बदमाशी करेगा
अनुज : मै डरता थोड़ी हु पापा से
रागिनी : अच्छा ? चल छोड़ भाई मुझे ?
अनुज : आप खिलाओगे न मुझे !!
रागिनी : अच्छा ठीक छोड़ अब
अनुज ने ढील दी और रागिनी हसती हुई उससे अलग होकर अपनी साड़ी सही करने लगी : पागल कही का , देख मेरी साड़ी निकल गई पीछे से
रागिनी थोड़ा अंदर होकर अनुज के आगे अपने सीने से साड़ी का पल्लू हटाया और उसे चौकी पर रख कर अपनी कमर में पीछे की ओर हल्की सी पेटीकोट से बाहर आई साड़ी को खोंसती हुई बराबर करने लगी ।
मगर इस दौरान अनुज की नजर अपनी मां के नंगे गोरे पेट और ब्लाऊज में कसी हुई भारी पपीते जैसी बड़ी बड़ी मोटी चूचियो पर थी । रागिनी बड़बड़ाती हुई अनुज के आगे अपना साड़ी सही कर खाना निकालने लगी और अनुज लंड अकड़ गया था ।
रागिनी : चल आ सही से बैठ
अनुज की हालत अब पतली हो लगी क्योंकि जिस तरह वो अपने पैर आपस में चिपका कर बैठा था उससे उसका खड़ा हुआ लंड छिपा था अब अगर वो कोई भी हरकत करेगा तो जाहिर है उसके लंड की अकड़न उसकी मां की नजर ने जरूर आ जाती
इसीलिए वो उठ कर सीधा बाहर निकलता हुआ : मम्मा हाथ धूल कर आता हु
और वो लपक कर ऊपर चला गया ।
वही राज के बर्तन वाले दुकान में केबिन में चंदू और राज बहस हो रही थी ।
: बहनचोद चूतिया है साले तुझे समझाया था न कि पकड़े मत जाना ( राज ने चंदू को हड़काया)
: अबे क्या बक रहा है लेकिन मै कहा पकड़ा गया हु और कब ( चंदू ने सफाई दी )
राज : अभी वो मालती की मम्मी आई थी और मुझे साफ साफ वार्निंग देकर गई है कि अगर अब आगे से तू बिना किसी काम से घर में या फिर मालती के आस पास गया तो तेरी शिकायत सीधा बड़े ठाकुर से होगी ।
चंदू एकदम से सकपका गया : अबे यार कसम से भाई , मैने ऐसा कुछ नहीं किया । पकड़ी तो खुद गई है उसकी मम्मी और साली फंसा मुझे रही है ।
राज के हाव भाव एकदम से बदल गए: मतलब ?
चंदू : अरे भाई मैने 3 दिन पहले ही बड़े ठाकुर को मालती के मां को उसके कमरे में पीछे से पकड़े हुए देखा था , वो साला बुढ़ा उसका पेट सहला रहा था और कभी कभी पीछे से एड़ी उठा कर अपने लंड को उसकी गाड़ में कोच रहा था ।
चंदू की बात सुनते ही राज को रूबीना की बात याद आई महीनों पहले एक बार रूबीना ने भी इसका जिक्र किया था कि ठकुराइन के बड़े ठाकुर से भी संबंध है मगर तब राज ने उस बात को उतनी तूल नहीं दी थी । मगर आज चंदू ने पूरी तरह से कन्फर्म कर दिया था ।
राज हंसता हुआ : क्या सच में ?
चंदू : हा बे और मै इतना चूतिया थोड़ी हु बे , मालती मेरी जान है उसे यू ही मै बदनाम नहीं करता फिरूँगा । ठकुराइन को डर है कही उसकी हरकत मै किसी से कह न दूं इसीलिए वो मुझे डराना चाहती है । समझा
राज : ओह बहिनचोद ये है ड्रामा , मगर ठकुराइन को पता है न कि तेरा मालती से चक्कर है ?
चंदू : अबे आज क्या कितने महीने से जान रही है वो , उसे कहना होता तो पहले ही कह चुकी होती , साली आवारा अपनी इज्जत बचा रही है ।
राज : अच्छा चल ठीक है लेकिन तू थोड़ा सावधान रहना भाई , देख ऐसे मामलों में बहुत कुछ मै तेरे मदद नहीं कर पाऊंगा समझ रहा है न तू
चंदू : अबे तू टेंशन मत ले और बता आज यहां कैसे ? नाना कहा गए ?
राज : यार पापा तो मामू के यहां गए है घूमने के लिए तो हफ्ते भर यही रहना है ।
चंदू : क्या सच में ?
राज : हा भाई क्यों क्या हुआ ?
चंदू : यार भाई एक काम बोलूं मना तो नहीं करेगा ?
राज : क्या बोल न ? तुझे कभी ना बोला है ?
चंदू : भाई कल मालती को यहां बुला लू? बहुत दिन हो गए उसको पेले ?
राज एकदम से चौक कर : अबे भोसड़ी के पगला गया है क्या ? नहीं भाई मै रिस्क नहीं ले सकता
चंदू : भाई प्लीज
राज : नहीं तो नहीं , देख ठाकुर साहब मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त है और अगर मेरी गलती से कुछ बात बिगड़ी तो सालों की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी और मै ऐसा नहीं करूंगा । तू दूसरी जगह खोज ले ।
अगले आधे घंटे तक बातों में घुमा फिरा कर चंदू राज से मिन्नते करता रहा मगर राज ने सिरे से उसकी बात खारिज करता रहा । कुछ देर बाद चंदू चला गया और तभी राज के मोबाइल पर फोन आने लगा । एक नए नंबर से
राज ने फोन पिक किया
: हैलो राज बेटा , मै मालती की मम्मी बोल रही हूं , तुम्हारे पापा से नम्बर लिया है ।
: जी आंटी कहिए ( राज ने जवाब दिया )
: बेटा वो तुमने चंदू से बात कर ली क्या ? ( ठकुराइन के बात में चिंता साफ झलक रही थी )
: जी नहीं आंटी अभी शाम को करूंगा ( राज ने साफ साफ झूठ बोला )
: अरे नहीं बेटा मत करना , शाम को भी मत करना । ( ठकुराइन एकदम से हड़बड़ा कर बोली )
: क्या हुआ आंटी ( राज ने सवाल किया )
: कुछ नहीं बेटा , प्लीज तुम इस बात को भूल जाओ और कभी उससे इस सब के बारे में मत कहना ।
: मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि एकदम से आप ऐसा क्यों कह रही है कि न समझाऊं उसे । अगर उसे रोका नहीं तो उसकी आदतें और बिगड़ जाएंगी न आंटी
: हा बेटा वो तो है लेकिन तुम रहने दो मै खुद उसे समझा बुझा लूंगी ( ठकुराइन के कहा )
: जी ठीक है जैसा आपको सही लगे , तो ये आपका नंबर है क्या ? ( राज ने बात घुमाई )
: हा बेटा मेरा ही है सेव कर लो ( ठकुराइन ने जवाब दिया और फोन कट हो गया )
और अगले कुछ देर तक जबतक कि बबलू काका ने उसको वापस दुकान में नहीं बुला लिया वो ठाकुराइन और चंदू के बारे में सोचता रहा ।
मुरारी - मंजू
दोनो मंजू के घर पर आ गए थे
दरवाजा खोलकर मंजू ने जैसे ही सामान सारा चौकी पर रखा उसकी नजर तह किए हुए कपड़े पर गई
मंजू मुस्कुरा मुरारी को देखते हुए : ये सब आपने किया ?
मुरारी : हा वो सोचा कि थोड़ा काम आसान हो जाएगा तुम्हारा और जल्दी पैकिंग हो जाएगी ।
मंजू मुस्कुरा: थैंक्यू , लेकिन प्लीज ये सब भाभी को मत कहिएगा नहीं तो कहेंगी कि जेठजी से कपड़े फोल्ड करवा रही थी ।
मुरारी : क्या कहा ?
मंजू को जैसे ही समझ आया कि वो क्या बोल गई उसके जीभ दांतों तले आ गई ..: वो मै कह रही थी
मुरारी हस कर : अरे भाई ठीक है समझ गया और मुझे खुशी है कि तुमने इस रिश्ते के लिए पूरी तरह से खुद को तैयार कर किया है । इस बात पर तो ममता को फोन करना बनता है ।
मंजू लजा कर : क्या ? नहीइ, प्लीज न भाई साहब, वो मुझे तंग करेंगी ।
मुरारी : लो अब तो फोन भी उठ गया
फोन स्पीकर पर
मुरारी : कैसी हो अमन की मां
ममता : मै ठीक हूं , लेकिन देख रही हूं आप तो मेरी देवरानी को घर लाने के बजाय सरे बाजार हाथ पकड़ कर घुमा रहे है ।
ममता की बात पर मुरारी हस पड़ा और उसने मंजू को देखा तो वो शर्मा कर मुस्कुराने लगी थी ।
मुरारी : अरे ममता , फोन स्पीकर पर है भई
ममता मजे लेते हुए : स्पीकर पर है तो क्या मै डरती हूं मेरी देवरानी से , सरे बाजार मेरे मर्द के साथ बाहों में बाहें डाले घूम रही हैं। मै तो खुल्लमखुला बोलूंगी ।
मुरारी : अरे दादा तुमको कैसे पता चला ?
ममता : हूह आपको नहीं पता मेरे पास न आपके दिल का रिमोट है , जब भी आपके दिल के कुछ कुछ होता है तो मुझे पता चल जाता है समझे ।
ममता की बात पर मंजू खिलखिला कर हस पड़ी और मुरारी भी झेप कर हसने लगा ।
मुरारी : अरे भाई बस करो अमन की मां , मै तो तुम्हे एक खुशखबरी देने के लिए फोन किया था ।
ममता : अच्छा जी वो क्या ?
मंजू लगातार मुरारी को शर्मा कर ना में सर हिला रही थी और अपने पल्लू को अपने होठों से चबा रही थी ।
मुरारी मुस्कुरा हुआ : अरे भाई आज पहली बार किसी ने मुझे जेठ जी कहा है ? सोचा बता दूं तुम्हे हाहाहाहाहा
मंजू लजा कर हसने लगी।
ममता : अरे वाह सही किया , मेरी देवरानी ने आपको आपकी लिमिट बता दी हाहाहाहाहा अब थोड़ा दूर रहना उससे समझे
ममता की बातों से मुरारी और मंजू दोनों असहज हो रहे थे ।
ममता : हैलो क्या हुआ ?
मुरारी : बोलो सुन रहा हूं
ममता : अच्छा सुनिए सफर लंबा हैं और समान भी होगा ज्यादा तो आप लोग एक गाड़ी बुक कर लीजिए उसे आराम से आ जाएंगे
ममता की बात सुनकर मुरारी ने सहमति दिखाई : हा सही कह रही अमन की मां , मेरे भी दिमाग में ऐसा ही कुछ चल रहा था ।
ममता खिलखिलाती हुई : आपके दिमाग में बस चल रहा था उसको दौड़ाया मैने न हीहीही
मुरारी मंजू को देखकर मुस्कुराते हुए : हा दादा तुम ही तो मेरी आवाज , अब रखें देवी ।
ममता : ठीक है लेकिन कल सुबह जल्दी निकालिएगा
मुरारी : ठीक है , बाय ।
फोन कटा और मुरारी मुस्कुराता हुआ मंजू को देखा : हे भगवान , सही कह रही थी तुम । अमन की मां से कुछ भी नहीं कहने लायक है
मंजू बिना कुछ बोले मुस्कुराती रही और एक ट्रॉली बैग खोलकर उसमें मुरारी के तह किए कपड़े रखने लगी
मंजू : अरे ये सब भी
मंजू का इशारा उसकी साड़ी के नीचे छिपा कर रखी हुई ब्रा पैंटी की ओर था
मुरारी : अह मुझे जो नए लगे उन्हें रखे है बाकी सब वो पोटली में है
मंजू उन ब्रा पैंटी को भी हटा कर उस पोटली में रखने लगी
मुरारी : क्या हुआ ये तो नए दिख रहे थे ?
मंजू एक लाइन में जवाब दिया : साइज छोटे है उनके
फिर चुप रही ।
कुछ देर बाद उसकी पैकिंग होती रही और मुरारी उसे बैठ कर निहारता रहा और बाते करता रहा ।
जारी रहेगी