- 8,182
- 23,055
- 189
अध्याय 02 का अपडेट 18
THE EROTIC SUNDAY
पेज नंबर 1307 पर पोस्ट कर दिया गया है
THE EROTIC SUNDAY
पेज नंबर 1307 पर पोस्ट कर दिया गया है
2 oct baad
Very nice update. This story is amazing one of the best eroticaअध्याय : 02
UPDATE 018
THE EROTIC SUNDAY 02
प्रतापपुर
: मीठी उठ जा न बेटू
: नहीं ( गीता ने गुस्से में अपना कम्बल कस लिया )
सुनीता थोड़ी शांत हो गई , उसके मन वो बातें उठ रही थी जब उसे पता चला कि गीता को उसके और रंगी के बारे में पता है । लेकिन उसको इस बात की खुशी थी कि गीता ने वादा किया था कि वो इस बारे में किसी से नहीं कहेंगी ।
सुनीता मुस्कुरा कर उसके पास बैठ गई और उसके बाल उसके चेहरे से हटाती हुई : अभी भी गुस्सा रहेगी उम्मम , तेरे लिए आलू वाले पराठे बनाने जा रही हूं , खाएगी न मेरा बेटू उम्मम , मेरा बच्चा उठ जा
: नहीं मम्मी जाओ आप , गंदे हो आप , हा नहीं तो ( उसने सुनीता का हाथ झटक दिया )
कुछ सोचने के बाद सुनीता ने एक गहरी सांस ली और बोली : तू जानना नहीं चाहेगी कि मैने ऐसा क्यों किया ?
गीता अब शांत ही गई और चादर से बाहर झांका तो उसने अपनी मां को उदास पाया , डबडबाई आंखों से फर्श निहारती हुई
वो उठ कर बैठ गई बिस्तर में और सुनीता ने उसकी ओर देखा , आंसू बस छलकने को थे
: सॉरी ( गीता ने उदास होकर अपनी मां के मुरझाए चेहरे को देख कर बोली )
सुनीता मुस्कुरा कर उसके पास गई और इसके चबी चिक्स को सहलाते हुए उसके दूसरे गाल को चूम लिया : मेरा बेटू , हग कर ले मुझे
गीता फफक कर अपनी मां की ओर बढ़ गई और घुटने के बल खड़ी होकर उनसे लिपट गई । दोनों के गुदाज मुलायम चूचे आपस में सट गए । दोनों ये महसूस कर पा रहे थे ।
कुछ देर ऐसे रहने के बाद
: मम्मी
: हम्मम
: आपके दूधु बहुत सॉफ्ट है
: धत्त शैतान लड़की , और तेरे देखूं तो ( सुनीता ने नीचे से हाथ ले जाकर उसकी कड़क नारियल सी चूचियों पर हाथ रखते हुए उन्हें टटोला )
: हिहीहीही क्या करती हो मम्मी छोड़ो न गुदगुदी लग रही है हाहाहाहा ( फिर वो भी अपने हाथ अपनी मां के चूचे पर ब्लाउज के ऊपर से रखते हुए ) मै भी पकड़ लूंगी हा नहीं तो
सुनीता खिलखिलाई : पागल , चल जा देख तेरे दादू नहा लिए है तो बता उनको चाय दे दूं
: बाद में बताओगे न सब कुछ ( उंगली दिखाते हुए उसने अपनी मां से सवाल किया )
: हा मेरी मां बताऊंगी सब ( सुनीता हसने लगी )
गीता फिर खुश होकर अपने दादू के पास चली गई , उसने देखा बनवारी और रंगी दोनों साथ में बैठे हुए खूब हस रहे थे और गीता ने वापस अपनी मां को बताया कि दोनों नहा कर बैठे है दादू के कमरे में
कुछ देर में ही सुनीता चाय नाश्ता लेकर उनके पास पहुंची और चाय की प्याली देखते ही बनवारी थोड़ा हैरान हुआ
बनवारी : अरे बहु , बिना दूध के चाय ?
सुनीता थोड़ी असहज होकर : जी बाउजी आज फिर भैंस छटक गई
रंगी थोड़ा अनुमान लगा कर मैटर समझने की कोशिश कर रहा था ।
बनवारी : क्या बताए इसको ,, अच्छा ठीक है बहु तू घर के काम देख मै बैजू को देखता हूं शहर से आया है कि नहीं
फिर वो बैजू को फोन मिला कर कुछ तय करता है और नाश्ता कर अपने नौकरों को भैंस को बैजू के यहां लेकर चलने को कहता है ।
बनवारी रंगी को ऑफर करता है चलने को तो वो मान जाता है , आखिर उसे कुछ काम था भी नहीं ।
बैजू : आओ आओ सेठ जी, अरे कमला चाय लाओ
कमला का नाम सुनते ही रंगी ने बनवारी की ओर देखा तो बनवारी ने उसको आंख मारी
बैजू : सेठ जी जरा आप नाश्ता करो , थोड़ा मै ..
बैजू का इशारा अपने काम पर था
कुछ ही देर में कमला चाय लेकर आई और मुस्कुराती हुई दोनो के आगे एक टेबल कर रख दिया
बनवारी : कहो कमला , अरे तबियत कैसी है तुम्हारी । भाई आज दुपहर गोदाम पर चली जाना काम बहुत है
कमला ने आंखे महीन कर बनवारी को घूरा और हुंकारी भर कर बैजू के रहने की वजह से निकल गई ।
रंगी बनवारी आपस में मुस्कुराने लगे
बनवारी चाय की चुस्की लेता हुआ : अह्ह्ह्ह जमाई बाबू , किस्मत हो तो बैजू के भैंसे जैसी
रंगी हस कर : क्यों बाउजी
बनवारी मुस्कुरा कर : हर सीजन में आसपास गांव की 50 भैंसियों पर चढ़ता है , अब मेरे ही घर की 2 पीढ़ी की भैंसीओ की गहराई नापी है इसने
रंगी अचरज से देखता हुआ : क्या सच में ?
बनवारी : और क्या .. अरे तीन साल पहले तक भूरी की माई आती थी और अब भूरी आती है । क्या माई क्या बिटिया ... देखा जाए तो अपनी बेटी पर चढ़ रहा है ससुरा हाहाहाहाहा
रंगी : मतलब
बनवारी थोड़ा रंगी के पास आता हुआ : अरे 8 साल पहले ये हमारे घर ही पैदा हुआ था , बैजू इसे उठा लाया तीसरे साल लगते लगते अपनी मां पर चढ़ गया और फिर अब 3 साल से अपनी ही जनी बेटी को
बनवारी की बाते सुनकर रंगी का लंड अकड़ गया : सच कहा बाउजी , किस्मत इसकी तेज है वरना कौन से बाप को उसकी बेटी मिल पाती है हाहाहाहाहा
बनवारी रंगी की बात पर मुस्कुराने लगा और धीरे से रंगी के कान में बोला : वैसे मै एक आदमी को जानता हूं जिसकी उसकी ही बेटी से रिश्ता है
रंगी ने आंखे बड़ी कर अपने ससुर को देखा : क्या सच में ?
बनवारी : हा, और रहता भी गांव में ही है
रंगी जिज्ञासु होकर : कौन ?
बनवारी : अरे वो नहर वाले रोड पर दो घर है न ? उसमें एक घर एक धोबन का है । सुना था कि ब्याह के बाद ही उन दोनों का रिश्ता हुआ है
रंगी : कैसे ?
बनवारी मुस्कुराया और धीरे से रंगी की ओर झुक कर : लछुआ धोबी की औरत की तबियत बिगड़ी थी और शादियों का सीजन था उन्हीं दिनों उसकी बेटी आई थी । मदद के लिए, पानी में भीगे मटके जैसे चूतड़ों को देख कर मन मचल गया लछुआ का और फुसला लिया उसने
रंगी : क्या सच में , उम्र क्या होगी उसके बेटी की
बनवारी : अरे 40 पार है और बड़ी गदराई मोटी औरत है एक दो बार मैने उसे नहर के पास देखा है पानी में । साड़ी जब उसके चूतड़ों में चिपक जाती है तो सीईईई
रंगी मुस्कुराकर : ओहो बाउजी अब कंट्रोल करिए
बनवारी फिर मुस्कुरा कर खुद को संभालने लगा
रंगी : वैसे सच कहूं तो उसमें लछुआ का दोष नहीं है , ऐसी गाड़ हो तो कौन रिश्ते नाते देख पाएगा और कब तक
बनवारी : सच कहा जमाई बाबू , हवस के अंधे को रिश्ते की डोर नहीं दिखती
आओ चलते है
फिर दोनों उठ कर घर की ओर चल दिए
रंगी के जहन में कुछ सवाल आ रहे थे लेकिन वो हिम्मत नहीं कर पा रहा था और अपने जमाई को चुप देख कर बनवारी बोल पड़ा: किस सोच में पड़ गए जमाई बाबू
रंगी मुस्कुरा कर : अह कुछ नहीं बाउजी , बस वो लछुआ के बारे में सोच रहा हूं
बनवारी हंसता हुआ : अब इतना मत सोचिए जमाई बाबू ,
रंगी : आपको कुछ गलत नहीं लगता बाउजी इसमें
बनवारी मुस्कुरा कर : अरे जब दोनों की सहमति है तो गलत कैसा ? क्या कहना चाहते है साफ साफ कहिए अब हमसे भी छुपाएंगे उम्मम हाहाहाहाहा
रंगी थोड़ा लजाया और मुस्कुराने लगा : नहीं बाउजी ऐसी कोई बात नहीं वो बस लछुआ के बारे में सोच कुछ बाते उठ रही है
बनवारी : जैसे कि
रंगी : अगर आप बुरा न माने तो कहूं
बनवारी : कर दिया न पराया, अब दोस्ती के यही सब सोच के रहेंगे तो हो गई दोस्ती
रंगी हसने लगा : नहीं ऐसी बात नहीं है, बात थोड़ी असहज होने वाली है । पता नहीं आपको कैसा लगेगा
बनवारी : अरे अब कहोगे भी
रंगी : दरअसल बाउजी , ये सब सोनल की शादी के बाद से शुरू हुआ मेरे साथ,
बनवारी : क्या हुआ ?
रंगी : शादी के बाद विदाई से पहले सोनल की सहेलियां और उसकी भाभियों उसकी खूब खिंचाई कर रही थी और मैने उनकी बातें सुन ली थी
बनवारी : क्या सुना
रंगी : वो लोग सोनल को उसके सुहागरात के लिए चिढ़ा रही थी और गंदी गंदी बातें कर रही थी तो मेरे मन में भी ये बात आई कि अब मेरी बेटी की अपने पति से वो सब करेगी
बनवारी : हा तो , ये सब सहज बात है जमाई बाबू इसमें परेशान क्या होना ?
रंगी : क्यों आपके मन में रज्जो जीजी या रागिनी की विदाई के बाद ये बाते नहीं आई थी ।
बनवारी थोड़ा असहज हुआ : हा मतलब आई थी लेकिन इनसब का क्या मतलब , और यही समाज की रीत है इसी से दुनिया आगे बढ़नी है । लेकिन मुझे लग रहा है कि आपकी दिक्कत कुछ और है और आप उसे छिपा रहे है ।
रंगी : जी बाउजी , लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कैसे कहूं आपसे
बनवारी : देखो जमाई बाबू , अगर समाधान चाहते हो तो समस्या साझा करनी ही पड़ेगी , आप कहिए तो मेरे स्तर का कुछ रहेगा तो बिल्कुल सलाह दूंगा ।
रंगी थोड़ा हिचक कर : दरअसल उस रोज सोनल की सहेलियों और उसके भाभियों की बाते मेरे दिमाग में इस कदर बैठ गई कि मुझे कुछ कुछ सपने आने लगे , दिन में भी अजीब अजीब सी झलकियां दिखने लगती है अब तो । जिसमें सोनल और दामाद बाबू एक दूसरे से संभोग कर रहे है और
बनवारी : और क्या ?
रंगी : और वो अब ख्यालों से मुझे नीचे दिक्कत महसूस होने लगी । कभी कभी तो दिल किया कि काश एक बार उन दोनों को ये सब करते देखूं। आखिर कैसे करती होगी सोनल । मैने कभी भी उसके बारे में ऐसा नहीं सोचा कि किसी रोज उसकी शादी करके विदा करूंगा और फिर ये सब वो भी करेगी कि वो भी एक औरत है ।
बनवारी : इसे मोह कहते है जमाई बाबू हाहाहाहाहा, वैसे इसमें कुछ भी बुरा नहीं है मेरी समझ से और मुझे देखो मैने तो रज्जो और कमल बाबू का तो खुल्लम खुल्ला खेल देख कर सब कुछ निपटा भी दिया था ।
अब तक दोनों वापस घर में अपने कमरे में आ गए थे
रंगी : एक बात पूछूं बाउजी
बनवारी मुस्कुरा कर : हा कहिए न
रंगी : आपको थोड़ी जलन नहीं होती कमल भइया से
बनवारी : क्यों ?
रंगी हिचक कर : रज्जो जीजी पर पहला हक आपका होना चाहिए था
बनवारी मुस्कुरा कर : बहुत गहरी बात कर रहे हो जमाई बाबू , समझ रहा हूं मै आपके दिल के अरमान हाहाहाहाहा
रंगी थोड़ा लजाया और चुप रहा
बनवारी : वैसे आपकी बात सही है , जलन तो हुई ही थी जब मै पूरी रात खड़े होकर रज्जो और कमल बाबू का खेल देखा था । जोश में मै तो भूल गया था कि सामने मेरी बेटी है। सच बताऊं तो उस वक्त मन में यही ख्याल आ रहे थे मेरे घर की औरत के मजे कोई और ले रहा है जिस पर मेरा हक होना चाहिए था
रंगी : बस बाउजी , यही भावना मुझे तंग करती है सोनल को लेकर
बनवारी : समझ सकता हूं जमाई बाबू , मै भी एक लड़की का बाप हूं ।
रंगी : फिर आप कंट्रोल कैसे करते है
बनवारी : ईमानदारी बताऊं तो नहीं करता कंट्रोल मै
रंगी : क्या ?
बनवारी : हा सच कह रहा हूं , मै तो रज्जो को सोच कर झाड़ लेता हूं और आराम हो जाता है
रंगी : क्या सच में , कैसे ?
बनवारी : तरीका आसान है लेकिन करना तो आपको ही पड़ेगा
रंगी हसने लगा : ठीक है बताईए
बनवारी : उन्हूं ऐसे नहीं , पहले दरवाजा बंद करके और बत्ती बुझा कर बिस्तर में आइए
रंगी उठ कर कमरे का दरवाजा बंद कर बत्ती बंद कर बिस्तर में आ गया ।
रंगी : हम्म्म अब बताइए
बनवारी मुस्कुरा कर : अब आंखे बंद कीजिए और सोनल के बारे में सोचिए कि आपको उसमें क्या अच्छा लगता है , जैसे मुझे रज्जो के बड़े बड़े चौड़े चूतड़ों को देखना पसंद है , क्या आपने देखे है सोनल बिटिया के चूतड़ कभी
रंगी का लंड एकदम फड़फड़ाने लगा : जबसे बड़ी हुई तबसे नहीं, वो बड़ी संस्कारी लड़की है बाउजी घर सबसे पहले नहा धो लेती थीं और कपड़े भी बहुत लिहाज से पहनती थी लेकिन शादी की शॉपिंग में मुझे उसके ब्रा पैंटी का साइज पता चला था 34C की बड़ा और 36 की पैंटी । उसके गोरे बदन को देखता हूं तो लगता है कि उसके नंगे चूतड़ कितने गोरे और मुलायम होंगे
रंगी की कामुक कल्पनाओं को सुनकर बनवारी का लंड अकड़ गया था और वो सिहर उठा: सीईईई हा जमाई बाबू ऐसे ही , अब सोचिए अगर आपको सोनल को अपने मन पसंद कि ब्रा पैंटी पहनानी हो तो कौन से रंग की पहनाएंगे
रंगी बनवारी की बात सुनकर अपना लंड पकड़ लिया: ओह्ह्ह्ह बाउजी, जबसे सोनल हनीमून पर गई है तबसे मेरे दिल उसे बिकनी सेट में देखने की तमन्ना है , डोरी वाली ब्रा पैंटी आती है एक उफ्फफ सोचता हूं मेरी बेटी समन्दर किनारे फिल्मी हीरोइन के जैसे अदाएं दिखा कर अपने गोरे चूतड़ों को मटका कर रेत में चलते हुए कैसे लगेगी
बनवारी : वाह जमाई बाबू क्या मत सीन होगा , वहां रज्जो को भी ले जाऊंगा मै और डोरी वाली पैंटी तो उसके बड़े चौड़े चूतड़ों के दरारों के घुस जाएगी अह्ह्ह्ह क्या मत नजारा होगा जब वो पानी में नहा कर बाहर निकलेगी अपनी गीली ब्रा में चूचे हिलाते है उसके मोटे मोटे चूचे पूरे साफ साफ झलक रहे होंगे
रंगी सिहर कर : हा बाउजी, मै तो अपनी बिटिया के नंगे चूतड़ों पर सन स्क्रीन लगाऊंगा ताकि वो लाल न पड़ जाए ओह्ह्ह्ह बाउजी कितना मजा आ रहा है ये सब सोच कर
बनवारी : मै तो रज्जो से वही रेत पर लेट कर अपना लंड चुसवाऊंगा ओह्ह्ह्ह मेरी रज्जो क्या मस्त लंड चुस्ती है वो ओह्ह्ह्ह
रंगी : अह्ह्ह्ह बाउजी मै तो सोनल बिटिया के चूतड़ों को फैला कर खूब चाटूंगा , उसकी गुलाबी गाड़ को उम्मम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम
बनवारी : में तो रज्जो से कहूंगा अह्ह्ह्ह कि वो मेरे मुंह पर बैठ जाए अह्ह्ह्ह सीईईईईई मैने देखा था उस रात रज्जो कमल बाबू के मुंह पर बैठ कर अपनी चूत और गाड़ उनके चेहरे पर रगड़ रही थी , उसे कितना मजा आ रहा था
रंगी अपना लंड हिलाते हुए : फिर तो इस मामले में दोनों बहने एक जैसी है अह्ह्ह्ह
बनवारी एकदम से अकड़ गया: तो क्या छुटकी भी
रंगी : हा बाउजी , रागिनी को मेरे मुंह पर बैठ कर मेरा लंड चूसना बहुत पसंद है , आप न रागिनी को भी अपने मुंह पर बिठाना
बनवारी का लंड एकदम फड़फड़ाने लगा था और बनवारी उसे कस कर भींच रखा था : क्या ? रागिनी बिटिया को भी सीईईई सच में जमाई बाबू
रंगी की कल्पनाएं अब सोनल से डायवर्ट हो गई और वो बनवारी को लपेटने लगा और उसे गजब का नशा हो रहा था : क्यों बाउजी , रागिनी भी तो आपकी बेटी है , उसको प्यार नहीं देंगे ।
बनवारी : ओह्ह्ह जमाई बाबू ,
रंगी : बाउजी , आपकी छोटी बेटी भी बहुत चुदक्कड़ है रोज बिना लंड लिए सोती नहीं है और बुर चटवाने में उसे बड़ा सुख मिलता है
बनवारी : उम्ममम क्या सच में जमाई बाबू , रागिनी को इतना पसंद है ये सब
रंगी : एक बार उसको अपने मुंह पर बैठने को कहिए तो , अपने दीदी के साथ मिलकर आपको खुश कर देगी
बनवारी एकदम चरम पर आ गया था : कैसे जमाई बाबू
रंगी : रागिनी आपके मुंह पर बैठेगी और रज्जो जीजी आपके लंड पर
रंगी के दिखाई कामुक कल्पनाओं से बनवारी के सबर का फब्बारा फूट पड़ा और वो सिसक कर झड़ने लगा : ओह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह जमाई बाबू अह्ह्ह्ह मजा आ गया है ओह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह क्या मस्त सीन दिखा दिया आपने ओह्ह्ह्ह
बनवारी झड़ कर अपने गमछे से लंड साफ करने लगा और रंगी अपना लंड मसलने लगा : मजा आया न बाउजी
बनवारी : अरे लेकिन आपका तो अधूरा रह गया न
रंगी मुस्कुरा कर : आप आराम करिए मै बाथरूम में जा रहा हूं ...
बनवारी समझ गया और बिस्तर पर लेट गया रंगी उठ कर बाथरूम की ओर चला गया।
वही दूसरी तरफ आज गीता अपनी मां सुनीता के पास बैठी थी रसोई में सब्जियां कटवा रही थी, सुनीता भी थोड़ी लजा और मुस्कुरा रही थी ।
: तेरे पापा ने कहा था
: क्या ? नहीं!!! वो क्यों कहेंगे
: क्यों तुझे तेरे पापा की आदतें नहीं पता , खुद तो बिगड़े थे और मुझे भी बिगाड़ दिया
: मतलब ( गीता जिज्ञासु होकर बोली )
इस सुनीता मुस्कुराने लगी तो गीता जिद करने लगी : बताओ न मम्मी
: तू इतनी जासूसी करती फिरती है तो तुझे तेरे पापा पर गुस्सा नहीं आया उम्मम , वो बाहर कितना मुंह मारते है । मैने तो घर में छिप कर रिश्ता बनाया था न
गीता : हा लेकिन पता नहीं क्यों, फूफा के साथ आपको देखना अजीब लगा था , दादू के साथ आपकी जोड़ी अच्छी लगती है हीहीहीहीही
सुनीता एकदम से चौक कर उसे देखा और वो खिलखिला रही थी
सुनीता : तुझे कैसे ?
गीता : जासूस हूं न , भक्क सच बताओ न पहले जो पूछ रही हूं
सुनीता : बताया तो कि तेरे पापा ने ही मुझे बिगाड़ा है
गीता : कैसे ?
सुनीता इस पर फिर मुस्कुराने लगी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे समझाए अपनी बेटी को
गीता रिरिकने लगी : बताओ न प्लीज
सुनीता : तेरे पापा को वो सब करने का ज्यादा मन होता है और शादी के शुरुआत में उन्होंने कई साल तक रोज मेरे साथ सोते थे । फिर जब तुम दोनों पेट में आई तो उनका जुगाड़ घर से बंद हो गया और वो बाहर जाने लगे । फिर जब तुम दोनों पैदा हुई तो धीरे धीरे फिर हमने शुरू किया , साल बीतते गए लेकिन उनकी बाहर जाने वाली आदत नहीं छुटी। नए नए औरतों के साथ सोने के लिए वो मुझे छोड़ जाते अकेला , फिर मेरी भी जरूरत थी तो...
गीता : हा लेकिन दादू जब थे तो छोटे फूफा से क्यों ?
सुनीता : तुझे नहीं पता जैसे कि तेरे दादा जी की तबियत बिगड़ जाती है और फिर तेरे फूफा आए है कुछ दिनों के लिए तो सोचा तेरे दादा जी को आराम मिल जाएगा तब तक हाहाहाहाहा
गीता हसने लगी : मम्मी तुम कितनी हरामन हो
सुनीता आंखे बड़ी कर : क्या बोली तू गाली दे रही है
गीता : फूफा भी तो देर रहे थे
सुनीता शर्मा कर मुस्कुराने लगी : मार खाएगी अब , मैने मना भी किया था तब उनको
गीता : वैसे पापा भी देते हैं लेकिन तब आप उन्हें नहीं रोकती
सुनीता : अब सारे हक सबको नहीं न दे दूंगी पागल, चल ये सब्जी धूल दे अच्छे से
चमनपुरा
: देख तू अब ये अपनी आदत सुधार भाई , वरना किसी रोज तू नप जायेगा
: अबे छोड़ न , तू ये जलेबी खा ( चंदू ने कल्लू की दुकान पर बैठे हुए राज को ऑफर किया )
: तू ये बता , कितना चाहता है तू उसे
: अपनी जान से ज्यादा भाई
: और वो ? ( राज ने आंखे ततेर कर कहा )
: अबे वो प्यार नहीं करती तो क्या वो सब करती
: भोसड़ी के लैला मजनू के ख्याली दुनिया से निकल , चुदवाती तो तेरी दीदी भी है तुझसे तो क्या शादी करेगा अब उससे
चंदू ने मुंह बना कर देखा
राज : समझदारी की बत्ती बना कर कान साफ करके सुन , हो सकता है कि अगले हफ्ते तक ठकुराइन मालती को कही भेज दें , एग्जाम आने तक
चंदू की आंखे एकदम बड़ी हो गई , गुस्सा और भड़ास साफ झलकने लगे , राज को समझते देर नहीं लगी कि लौंडा सीरियस हो गया ।
राज : शांत हो बे, मैने क्या बोला हो सकता है
चंदू थोड़ा हल्का होकर : देख ऐसा हुआ तो उस ठकुराइन की गाड़ मार लूंगा मै
राज : अबे थोड़ा ठंडे दिमाग से सुन , जहां तक मैने उस घर को देखा समझा है तो वो घर के लोग आपस में चीजे बहुत देर तक छिपा नहीं पाते ।
मालती को पता है कि उसकी मां और उसके दादा जी का अफेयर । ये तुझे पता था
चंदू एकदम सही शॉक्ड होकर : नहीं उसने नहीं बताया ऐसा कुछ
राज : फिर लौड़े की मुहब्बत है तेरी , और सुन बहुत ज्यादा गुंजाइश है कि जिस तरह का संजीव अंकल का व्यवहार है बाहर मौज मस्ती करने का मुझे नहीं लगता कि अगर आगे जाकर उन्हें इस बारे में भनक होती है कि उनका बाप ही उनकी बीवी चोदता है तो उन्हें बहुत दिक्कत आएगी । लेकिन
चंदू बड़े गौर से सुन रहा था
राज : लेकिन अगर उन्हें तेरी भनक हुई तो , देख जात से वो बड़े घर के है , इतिहास रहा है इन लोगों का बाकी तू समझदार है
चंदू का चेहरा फीका पड़ने लगा लेकिन न जाने क्या उसको अंदर से ताकत दे रहा था : कुछ भी हो भाई , लेकिन मालती मेरी मुहब्बत है उसके प्यार के लिए मर जाना भी मुनासिब होगा
राज एकदम से चिड़चिड़ा गया : अबे हट बहनचोद , तुझे समझाना बेकार है और सुन वो इसी हफ्ते जा रही है अपने मामा के घर
ये बोलकर राज भन्नाता हुआ उठ कर निकल दिया चौराहे वाले घर के लिए
इन सब अलग अनुज की पढ़ाई आज लंबी खींच गई थी ,जैसे आज उसका लंड कुछ ज्यादा बड़ा महसूस हो रहा था उसे
बाथरूम के गेट पर हल्के से गैप से अनुज अंदर देख रहा था ,
अंदर रागिनी पूरी नंगी होकर बाल्टी से पानी अपने देह पर गिरा रही थी और अनुज उसके पीछे से उसके फैले हुए गोल मटोल चूतड़ों के दरारों से पानी रिस कर फर्श पर जाता टपटकता रहा था
" अनुज , बेटा तौलिया दे दे "
तौलिया तो अनुज के हाथ में हाथ था और उसकी मां उसे नहाते हुए आवाज दे रहे थी ।
क्या उसे अंदर चले जाना चाहिए
क्या उसे अंदर चले जाना चाहिए था
ओह्ह्ह्ह सीईईई काश वो अपना खड़ा लंड बाहर निकाल कर उसे वक्त अंदर चला गया होता , वो दिखाता अपनी मां को देखो तुम्हारा बेटा कितना बड़ा हो गया है ।
ओह्ह्ह्ह मम्मी तुम कितनी सेक्सी हो ओह्ह्ह्ह उम्ममम तुम्हारा बदन कितना मुलायम है , अपनी कल्पनाओं में खोया हुआ कम्बल में अपना लंड का सुपाड़ा मिजता हुआ अनुज कनखियो से अपनी मां को कमरे में देखा था ।
सामने से थोड़ा दाएं तरफ उसकी मां रागिनी ब्लाउज पेटीकोट में थी और अपनी जांघो को बेड पर रखे थे अपने पैरों को मॉश्चराइज कर रही थी , उनके हाथ उसकी जांघों को रगड़ कर अच्छे से मालिश दे रहे थे और उसके पेटीकोट ऊपर तक चढ़ा हुआ था ।
जैसे अनुज की नजर उसकी मां के गदराये जांघ पर गई तो उसके भीतर की बेचैनी और बढ़ने लगी । उसके मा की जांघें अंदर से और भी दूधिया गोरी और मुलायम थी । वो मॉश्चराइजर की महक उसकी मां के देह की गंध से मिल कर और भी मादक गंध छोड़ रही थी ।
: क्या खायेगा नाश्ते में उम्मम
: कुछ भी बना दो मम्मी ( अनुज ने अपनी मां का मुस्कुराता चेहरा देखकर बोला )
: ठीक है मटर आलू की सुखी सब्जी और पराठे
नाम सुनते ही अनुज की जीभ पानी छोड़ने लगी
: और चाय ? ( ललचाई जुबान से वो बोला )
: हा हा चाय भी , तू उठ और नहा ले मै बना देती हूं
फिर धीरे से अपना लंड लोवर में सेट कर उठा और अपने कमरे में चला गया और फिर नहाने के लिए ऊपर वाले बाथरूम में चला गया
ओह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू मम्मीइ ओह्ह्ह्ह कितनी सेक्सी हो आप अह्ह्ह्ह सीईईईईई ओह्ह्ह्ह , आपके मोटे मोटे चूतड़ उम्मम कितने मुलायम है ओह्ह्ह्ह काश मैं अपनी गाड़ के नीचे होता और मेरे मुंह पर बैठ कर नहाती उम्ममम कितना मजा अह्ह्ह्ह सीईईईईई ओह्ह्ह्ह उम्ममम मै नीचे से अपनी चूत और गाड़ को चाट लेता उम्मम ओह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह मम्मीइई ओह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह लेलो ओह्ह्ह लेलो ओह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह अब मौका मिला तो आपकी गाड़ पर झडूंगा ओह्ह्ह भले ही मार पड़ेगी तो ओह्ह्ह्ह खा लूंगा ओह्ह्ह्ह मम्मीईइई ओह्ह्ह्ह उम्ममम अह्ह्ह्ह
एक के बाद एक मोटी गाढ़ी पिचकारियां अनुज ने बाथरूम की दिवालो पर छोड़ी और फिर नहा कर नीचे आया ।
झड़ने के बाद उसका दिमाग शांत हो गया था वासना का खुमार कुछ पल के लिए ही सही उतर गया था लेकिन जब आपको ये पता हो कि पूरे घर में आप अपनी पसंदीदा औरत के साथ हो और आप जैसे चाहो उसे चुपके घूर सकते हो उसके पीछे से उसके मोटे चूतड़ों को देख कर अपना लंड मसल सकते हो और आपको कोई देखने रोकने वाला नहीं है तो ये मजा भला कौन छोड़ेगा ।
अनुज ने देखा उसकी मां साड़ी पहन कर तैयार थी और खाना बना रही थी
वो पानी पीने गया और फिर उसकी मां ने उसके लिए नाश्ता लगा दिया
: हम्ममम ले खा ले ( रागिनी ने खाने की प्लेट उसके आगे की )
उफ्फ बिना ब्रा के ब्लाउज में ठूंसे हुए उसके मुलायम दूध और पल्लू के बगल से झांकते उसके दूधिया दरार , उभरे हुए कूल्हे और नर्म गुदाज चर्बीदार नाभि जो उसके पल्लू से झांक रही थी ।
अनुज को सेकंड नहीं लगा और उसका लंड फड़क उठा उसके पेंट में
: आप भी खाओ न
: अरे अभी मैं बना रही हूं न बेटा
: ठीक है तो कई खिला देता हूं
ये बोलके अनुज वही अपनी मां के पास खड़े होके निवाले बना कर अपनी मां को खिलाने लगा
: उम्मम तू भी तो खा ( चबाते हुए वो बोली )
अनुज मुस्कुरा कर खुद भी खाने लगा
: वाव थैंक्यू मम्मी , कितना टेस्टी है
ये बोलकर अनुज ने वापस निवाला बना कर खिलाने लगा ये वाला निवाला बड़ा था
: उम्मम इतना बड़ा ( रागिनी अच्छे से बोल भी नहीं पाई और चबा कर खाने लगी
अनुज हस कर खुद खाने लगा और वो अपनी मां के लिए आलू और मटर के दाने जिनपर पर मसाले लगे हुए थे अच्छे से निवाला बना कर खिला रहा था और ऊपर से भी निवाले पर मटर की टॉपिंग करने खिलाता , जिससे रागिनी और खुश हो रही थी ।
अगला निवाला
: मम्मी लो
रागिनी ने पराठा सेकते हुए नजर उधर रखे हुए ही मुंह खोल दिया और अनुज ने उसे खिलाया लेकिन इस बार टॉपिंग से कुछ मटर के दाने बिखर गए क्योंकि रागिनी का ध्यान पराठे सेकने में था और एक दाना सीधा रागिनी की ब्लाउज से झांकती दरारें में आ गिरा
: ओह सॉरी गिरा गया वो ( अनुज ने अपनी मासूमियत जाहिर की )
दोनों मां बेटे से ये महसूस किया , और रागिनी ने मुस्कुरा कर हल्का ब्लाउज का सिरा पकड़ा के आगे झुक कर अपनी चूचियों को झटके देकर उसके दरार से मटर का दाना बाहर उछालना चाह रहे थी लेकिन जैसे ही उसकी चुस्त ब्लाउज़ में ठूंसी हुई छातियों को अतिरिक्त जगह मिली और वो आपसे से थोड़ा सा अलग हुई और वो मटर का दाना बाहर निकलने के बजाय अंदर चला गया
अनुज को हसी आई और रागिनी भी मुस्कुराई : हस क्या रहा है बदमाश , निकाल न
रागिनी : हा तो कौन , झूठा अन्न थोड़ी न छुउंगी मै
अनुज के कान खड़े हो गए , उसके बदन में अजीब सी बेचैनी होने लगी और उसने अपना हाथ धुला और सामने देखा तो उसकी मां ने अपने सीने से आंचल हटा दिया था
अनुज की नजरे उसकी मां के बड़े बड़े रसीले नर्म चूचों को देख कर ललचा रही थी वो थूक गटक कर अपनी गिले उंगलियों से ही अपनी मां के सामने से बड़ी तत्परता से उसकी छातियों के दरारों में उंगली डाली
जैसे जैसे अनुज की उंगलियां उसकी मां के चूचियों के दरार में उस मटर के दाने तक जाती , दरार चौड़ी होकर मटर के दाने को और नीचे गिरा देती
इधर रागिनी को थोड़ी गुदगुदी सी हो रही थी क्योंकि अनुज की उंगली उसकी चूचियों के दरारों में उस मटर के दाने को निकालने के बजाज अंदर उसे गोल गोल घुमा रही थी ।
तभी रागिनी को हंसी आई और उसने अनुज का हाथ पकड़ कर निकाल दिया और खुद उसके सामने अपने ब्लाउज खोलने लगी और तीन हुक खोलते ही उसे मटर मिल गया और उसको हंसी में उसको देती हुई : ले पकड़ , निकाल नहीं पा रहा था कबसे
अनुज आवाक होकर अपनी मां के फ्रैंक व्यव्हार को देख रहा था और देख रहा था उन रसीली छातियो को जो ब्लाउज खोलने से थोड़ी नंगी दिख रही थी
तभी दरवाजे पर बेल बजी
: जा देख भैया आया होगा
अनुज का ध्यान हटा और वो मटर का दाना मुंह में डाल कर निकलने वाला था कि रागिनी ने उसे टोका : ये पागल ये क्या किया
अनुज वो मटर चबाते हुए : खा गया
रागिनी : छीईई गंदा , जा दरवाजा खोल
अनुज चिल मूड में दरवाजा खोलने के लिए चला गया ।
सामने देखा तो राज है
: मेरे लिए क्या लाए
: मैने कब बोला कि कुछ लाऊंगा
: क्या क्या खाना ( अनुज उसके पीछे चलता हुआ बोला )
: समोसे , कचौरी , गुलाब जामुन , क्रीम रोल वाली मिठाई , काजू कटली , पनीर , मशरूम और हा कलौंजी भी थी , वो एक क्या था नया आइटम । उसमें पापड़ी कचालू और खट्टी मीठी चटनी डाल कर ऊपर से दही और सेव अनार सब पड़ा था ।
: पापड़ी चाट रही होगी ( अनुज मुंह उतार कर बोला )
रागिनी राज को देखते हुए हसने लगी क्योंकि वो जानती थी कि राज अनुज की खिंचाई कर रहा है उसे ललचा कर , खाने पीने को लेकर अनुज अभी भी बच्चा ही था ।
: तू बस कर करेगा , उसे ललचाना बंद कर और जा नहा ले और नाश्ता कर ले
राज अनुज को देख कर वापस उसे चिढ़ाते हुए : नहीं मम्मी , वो आंटी ने नाश्ता करा दिया था । ब्रेड पकोड़े बने थे
रागिनी हसने लगी अनुज को देख कर और अनुज का मन उदास हो गया ।
रागिनी टिफिन पैक करती हुई : ठीक है फिर तू आराम से नहा धो कर दुकान चले जाना , हम लोग भी दुकान जा रहे है ।
अनुज : मम्मी रुको मैं अपने नोट्स लेकर आ रहा हूं
रागिनी : ठीक है जल्दी आ जा
फिर थोड़ी देर में दोनों ई रिक्शे से दुकान की ओर निकल गए , रास्ते में अनुज का उतरा हुआ मुंह देख कर रागिनी मुस्कुरा कर : ठीक है शाम को दुकान पर हम भी टिक्की चाट और फुल्की खायेंगे , भैया को नहीं बताया जाएगा
अनुज खुश हो गया और उसने अपनी मां को देखा जो उसके सामने बैठी थी , सड़क के हचके से रिक्शे में बैठी रागिनी के बिना ब्रा के ब्लाउज में ठूंसे हुए रसीले चूचे खूब हिल रहे थे और अनुज उसे निहारते हुए मुस्कुरा कर दुकान की ओर जा रहा ।
जारी रहेगी