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सब गीला हो गया...
"रात के बादल घने थे, हवा में ठंडक थी, और हल्की-हल्की बूंदें गिर रही थीं... लेकिन मेरे अंदर एक अलग ही आग लगी थी! 
तुम पास थे, बहुत पास...सांसें एक-दूसरे में उलझ रही थीं, और जिस्म की तपिश बारिश की ठंडक को मात दे रही थी... 
तभी एक तेज़ झोंका आया, खिड़की खुल गई, और बारिश की मोटी-मोटी बूँदें हम पर गिरने लगीं... 
मेरे बाल भीग गए, मेरी साँसें भीग गईं, मेरा जिस्म भीग गया...सब गीला हो गया... 
कमरे की हवा में बारिश की महक के साथ हमारी चाहत भी घुलने लगी।तुम्हारी उंगलियां मेरी हथेलियों से फिसलीं, होंठों पर हल्की कंपन दौड़ गई... 
अब बारिश तेज़ हो चुकी थी, पर अंदर जो आग लगी थी, वो भी किसी तूफान से कम नहीं थी! 
तो बोलो... आज की बारिश में तुम भी भीगना चाहोगे? 





















