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Incest ससुराल की नयी दिशा

prkin

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ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ४४: रहस्योद्घाटन भाग १

********
पल्लू :

भावना ने अपनी बेटी को सीने से लगाया और उसके माथे को चूमा.
“इतने दिन बाद याद आई माँ की?”
“हर दिन करती हूँ और बात भी होती ही रहती है. पर इस बार मन किया कि कुछ दिन साथ भी रह लूँ.” पल्लू ने अपनी माँ के सीने में मुंह छुपा लिया.
“दामाद जी नहीं आये क्या?”
“अभी कार्य में व्यस्त हैं, आ जायेंगे. वैसे भी हम कुछ दिनों से इसी नगर में हैं. पापाजी की बहन के घर आये हुए हैं. गाँव के घर में कुछ काम चल रहा है.” पल्लू ने बताया.
“तू इतने दिन से यहाँ है और हमें बताया तक नहीं?” भावना ने आहत मन से कहा.
“अपना घर नहीं है न माँ, मैं भी व्यस्त हो गई थी.” पल्लू ने उसकी व्यस्तता का कारण बताना उचित नहीं समझा. “पर अब आ ही गई हूँ तो मान भी जाओ. गलती हो गई.”
भावना ने मुस्कुराते हुए बोला, “कोई बात नहीं. जब बेटी अपनी ससुराल में व्यस्त हो और प्रसन्न हो तो माँ बाप को बड़ा ढाढ़स रहता है. अब बता क्या सोचा है?”
“आज गुरुवार है, तो तीन चार दिन तो रहूंगी ही. हो सकता है ये भी आ जाएँ. उसके बाद देखेंगे. पर अब नियमित आती रहूंगी. सप्ताहांत में तो नहीं आ पाऊँगी, पर बीच में आ जाउंगी.”
“चल अच्छा है. इस बार तेरे चाचा चाची के साथ साथ मामा मामी का परिवार भी आ रहा है. अब तो हर सप्ताह आते हैं भैया भाभी. बड़ा अच्छा लगता है.”
“ओह!” पल्लू को अचरज हुआ. क्या उसका सोचना गलत है? क्या रिया व्यर्थ ही ये सब कह रही थी?”
फिर भावना चाय बनाने लगी और पल्लू ऊपर अपने कमरे में अपना बैग रखने चली गई. दोनों माँ बेटी घंटे भर बैठी बातें करती रहीं. फिर भावना ने घड़ी देखी.
“सुन, मुझे कुछ देर के लिए बाहर जाना है तेरी चाची के साथ. एक डेढ़ घंटे में आ जाऊँगी। इनको भी साथ ले आउंगी लौटते समय.”
“शुभम दादा कहाँ हैं?”
“गया है अपने मित्रों के साथ कहीं. वो तो अब रात में ही लौटेगा. अब मैं कपड़े बदल कर निकलती हूँ. आने के बाद खाने की व्यवस्था करुँगी.”
“मैं बना देती हूँ.” पल्लू बोली.
“नहीं, नहीं. अब घर आई है तो माँ के हाथ का ही खाना खा. कितने दिन हो गए हैं. ठीक है?”
“ठीक है, माँ.” ये कहते हुए वो टीवी देखने लगी और भावना अपने कमरे में चली गई.
आधे घंटे में भावना निकली और उसके माथे को चूमकर चली गई. पहले ये सोचा था कि किसी बहाने माँ को बाहर भेजेगी, पर ये कार्य तो स्वयं ही सम्पन्न हो गया. अब पल्लू को अपनी योजना को पूरा करना था. उसने अनुज को फ़ोन लगाया और पंद्रह मिनट में ही वो आ गया. पल्लू ने अपने बैग से आवश्यक उपकरण निकाल लिए थे.
इस बार घर आने के पहले पल्लू, रिया, दिशा की मंत्रणा हुई जिसमे बाद में अनुज को भी मिला लिया गया था. ये निश्चित था कि इस कार्य के लिए अनुज की सहायता लेनी ही होगी. इसके बाद अनुज ने चार अच्छी तकनीक के लघु कैमरों को खरीदा जो मात्र छोटी बैटरी से २४ घंटे तक चल सकते थे. एक छोटी वायरलेस की सहायता से उनकी सीधी प्रसारण भी देखा जा सकता था और उन्हें क्लाउड पर भी भेजा जा सकता था. अत्यंत महंगे होने के कारण उन्हें दुकान वाले ने ही क्लाउड इत्यादि से संबद्ध कर दिया था. बस अब उन्हें वाईफाई से जोड़ना था.
परन्तु इससे अधिक कठिन कार्य ये था कि उन्हें लगाया कैसे जाये कि वो किसी को दिखें नहीं? इसका एक सुझाव रिया ने दिया और उसे ही माना गया था. पल्लू अपनी ससुराल में खींचे हुए चित्रों को फ्रेम करके ले आई और उनमे ही इन कैमरों को स्थापित कर दिया गया. घर को एक बार देखने के बाद अनुज ने चारों कैमरों के लिए स्थान चुने और उन स्थानों पर वो चित्र लगा दिए. उसने एक बार फिर पल्लू को समझाया कि कैसे उन्हें आरम्भ करना है, अन्यथा बैटरी समाप्त हो जाएगी और योजना असफल हो जाएगी.
जब दो कैमरों को लगाने के लिए नीचे स्थित अपने माता पिता के कमरे में पल्लू गई तो उसकी आँखें ही फ़ैल गयीं. उस कमरे का विस्तार कर दिया गया था और साथ के अतिथि कक्ष को भी अब उनके शयन कक्ष का ही भाग बना दिया गया था. हालाँकि इसके अतिरिक्त कोई और परिवर्तन नहीं दिख रहा था. एक ओर लम्बी अलमारियों की शृंखला अवश्य बनी हुई थी. अनुज ने भी देखा तो चकित रह गया और उसे विश्वास हो गया कि ये हो न हो एक क्रीड़ांगन ही है. उचित स्थानों पर कैमरे लगाकर उसने पल्लू का हाथ पकड़ा और उन अलमारियों को ओर गया. एक अलमारी खोलते ही उन्हें समझ आ गया कि रिया का अनुमान सही था. उसमे गद्दों और चादरों को कतार लगी हुई थी.
कैमरे की जाँच करने के लिए उन्होंने अपने मोबाइल और आई-पैड पर देखा और सब कुछ अच्छे से दिख रहा था. दूसरे कमरे में जाकर ध्वनि का भी परीक्षण सफल हुआ. कमरे के बाद उन्होंने दो कैमरे बैठक में ही लगा दिए क्योंकि अब अतिथि कक्ष तो बचा ही नहीं था. बैठक का एक कैमरा प्रवेश द्वार की ओर केंद्रित था और दूसरा मुख्य बैठक की ओर। वैसे पहले कमरे से भी बैठक दिख रही थी. पल्लू अपने कमरे में गई और उसने अनुज के द्वारा चारों कैमरों की लाइव प्रसारण देखा. अनुज की बातें भी उसे अच्छे से सुनाई दीं.
नीचे आकर कैमरे बंद किया और फिर अनुज को घर जाने का आग्रह किया. अनुज के जाने के बाद मुख्य द्वार बंद करके उसने नयी अलमारियों का एक बार और निरीक्षण किया. एक खंड में कई प्रकार के तेल और जैल इत्यादि रखे हुए थे. पल्लू का विश्वास अब और अडिग हो गया कि इस कमरे में खेल होता है.
भावना को आने में दो घंटे लगे और उसके साथ उसके पिता अशोक भी आ गए. अंदर आते ही उनको सबसे पहले पल्लू के चित्र दिखाई दिए. भावना अशोक को छोड़कर उसे देखने बढ़ गई और पल्लू आगे जाकर अपने पिता के सीने से लग गई. अशोक ने उसका माथा चूमा.
“बड़े दिन बाद याद आयी हमारी, आँखें थक गई थीं तुझे देखने को.” अशोक के स्वर भावविभोर था.
पल्लू का मन भी भावुक हो गया.
“पापा, अभी हम कई दिनों तक यहीं रहने वाले हैं. अब तो मैं आती रहूँगी। क्या करूँ, मुझे समय ही नहीं मिल पाया आने का.”
“कोई बात नहीं. भावना ने बताया कि अब तुम भी यहीं हो. अब दूरी का आभास नहीं होगा. पर फोन तो कर लिया कर अपने बाप को. तेरे बिना मन नहीं लगता है मेरा.”
“पापा, पक्का. फोन भी करुँगी और आती भी रहूँगी। अब उदास मत हो.”
“ये देखिये, पल्लू ने अपने घर का चित्र लगाया है. कितनी सुंदर और सुखी लग रही है.” भावना ने अपनी ओर ध्यान खींचा.
अशोक ने भी जाकर उसे देखा और आनंदित हुआ.
“पापा, मम्मी. मैंने चार चित्र लगाए हैं. दूसरा वो रहा.” पल्लू ने बैठक में लगे दूसरे चित्र को दिखाया.
अशोक और भावना उसके पास गए और उनका मन और अधिक प्रसन्न हो उठा.
“और दो कहाँ हैं?” भावना ने पूछा.
“वो मैंने आपके कमरे में लगा दिए हैं.”
“ओह! अच्छा!” भावना के चेहरे पर जिज्ञासा के भाव आये. “ये अच्छा किया.”
“मम्मी, अपने अपना कमरा अच्छा बना लिया है. बिलकुल राजा रानी वाला. मुझे उसे देखकर बहुत अच्छा लगा.” पल्लू ने प्रश्न के पहले ही उत्तर भी दे दिया.
“हाँ, तेरे पापा ने करवाया. कहने लगे कि अतिथि कक्ष की आवश्यकता इतनी नहीं है जब तेरा कमरा और चौथा कमरा रिक्त ही रहता है. मैं भी मान गई.”
“मम्मी, मुझे लगता है, इससे उल्टा ही हुआ होगा. पापा ने आपकी बात मानी होगी.” ये कहते हुए वो खिलखिलाने लगी. अशोक ने उसका साथ दिया तो कुछ क्षणों बाद भावना भी हंसने लगी.
“देखा, विवाह के बाद कितनी सयानी हो गई है.” अशोक ने भावना को छेड़ा.
“चलो जी! आप तो रहने हो दो. देखें हमारे कमरे में क्या लगाया है पल्लू ने.”
पल्लू को ये डर था कि कहीं उससे ये न पूछ बैठें कि उसने अकेले या सब कैसे किया. पर माँ बाप उसके ससुराल के चित्र देखकर इतने प्रसन्न थे कि प्रश्न उनके मन में आया ही नहीं.
“भैया कब आएंगे?” पल्लू ने पूछा.
“मैंने उससे पूछा था. पर वो नौ बजे तक ही आ पायेगा. कह रहा था कि अगर पहले बताती तो वो जाता ही नहीं.”
“कोई बात नहीं. अब तो वो मेरे पास भी आ सकता है रहने के लिए.”
“हाँ, ये भी सच है. चल अब मैं खाना बनाती हूँ, तेरे मन की सब्जी लाई हूँ.” भावना रसोई ओर चल दी.
“आ बैठ मेरे पास, कैसा चल रहा है तेरा घर बार?” अशोक ने पल्लू को सोफे पर बैठते हुए पूछा.
इसके बाद बाप बेटी बातों में व्यस्त हो गए. खाने के समय भावना भी उन बातों में जुड़ गई. अशोक तो जैसे पल्लू से एक पल भी दूर जाने को सहमत न था. दोनों शाम तक बैठे बात करते रहे. भावना बीच बीच में जाकर उन चित्रों के सामने खड़ी हो जाती और आनंदित हो जाती. पल्लू के मन में ग्लानि हुई कि माँ बाप की प्रेम की आड़ में उनकी गुप्तचरी कर रही थी. पर वो अपने पथ से विचलित नहीं होने वाली थी.
नौ बजे शुभम भी आ गया और सब बैठे फिर बातें करने लगे. भावना ने खाना लगाया और बातें चलती रहीं. साढ़े दस बजे कल सुबह के लिए सबने अपने अपने कमरों में जाने का विचार बनाया.
पल्लू: “माँ, मुझे अपने हाथ से दूध दे दो. मुझे आपके हाथ से पिए दूध के बाद अच्छी नींद आती है.”
पल्लू को लगा कि उसकी माँ के चेहरे पर एक अपराध बोध का भाव आया. फिर वो मुस्कुरा दी.
“ठीक है, मैं गर्म करती हूँ, तब तक कपड़े भी बदल लेती हूँ. तू अपने कमरे में चल मैं लेकर वहीँ आती हूँ.”
“आप जब तक गर्म करो मैं आपके बाथरूम से आती हूँ.”
पल्लू ने उत्तर मिले बिना अपने माता पिता के कमरे में प्रवेश किया. उसके पापा अभी भी बाथरूम में थे. उसने तुरंत दोनों कैमरे ऑन किये और बाहर आ गई.
“पापा अंदर हैं, मैं अपने ही कमरे में जाती हूँ.” ये कहते हुए वो अपने कमरे में चली गई और कपड़े बदल लिए. कुछ ही देर में भावना उसका दूध लेकर आ गई.
“पी ले. और शांति से सो जा.”
“जब तक मैं यहाँ हूँ, तब तक आप ही मुझे दूध दोगी। ठीक है न?” पल्लू ने लाड़ दिखाते हुए कहा.
“ठीक है. पर अब मैं जाती हूँ. बहुत देर हो चली है.” भावना ने कमरे को बंद किया और चली गई.
पल्लू ने कुछ पल प्रतीक्षा की और फिर दूध को अपने होंठों से लगाया और फिर बाथरूम में जाकर उसे फेंक दिया. अब ये देखना था कि क्या खिचड़ी पक रही थी. अपने कमरे की चिटखनी लगाकर उसने अपना फोन निकाला और इयरफोन लगाकर आई-पैड पर कैमरे वाला ऍप निकाला. अपने माँ बाप के कमरे में झांकते हुए इस समय उसे कोई झिझक नहीं हुई.

क्रमशः
 

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Bhai...der aaye par ekdum durust aaye...isiliye aapka story/update kaa intezaar rehta hain...
hope next update jaldi hi aayega :)
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Bhai....maza aagaya itne din k baad.....esa feel ho raha h jese maine apne bhai se gand marwai h....
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Behatareen update bhai, chudai bhari raat jari hai.. keep it up. Nani to khatro ki Khiladi nikali.
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