ससुराल की नयी दिशा
अध्याय ४६: रहस्योद्घाटन भाग ३
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पल्लू :
इस बार वो बैठक की गतिविधियाँ देख रही थी. उसे झटका सा लगा जब मदिरा की बोतल फिर बाहर आ गई और इस बार सभी के पेग बनाये गए. उसने अपनी माँ को कभी पीते हुए सोचा भी न था. पर यहाँ तो निकुंज और नीतू भी चुस्कियां ले रहे थे.
“पुराना समय याद आ गया भाईसाहब, जब हमें पल्लू के सोने के लिए रुकना पड़ता था.” ये मामी थीं. उनका आँचल ढलक चुका था. और स्तनमण्डल छलक रहा था.
“हाँ, पर आपको इतनी क्या पड़ी थी उसे सोने भेजने की भाभी? कुछ और देर बैठ लेती तो क्या हो जाता?” भावना ने हल्के क्रोध के साथ पूछा.
“सॉरी, मैंने इतना नहीं सोचा. प्लीज़।” फागुनी ने खेद जताया.
“माँ कैसी हैं?” भावना ने पूछा.
“बहुत अच्छी. कल पल्लू को ले आना मिलाने के लिए.” मामी बोली.
“हाँ ये ठीक रहेगा.” भावना ने उत्तर दिया.
“तो लगे हाथ अमर के घर भी ले जाना और दादी से भी मिलवा देना.” अशोक ने कहा.
“हाँ कल दोनों से मिलवा दूंगी.” भावना बोली.
“ये लड़के कब तक आएँगे?” इस बार चाची ने प्रश्न किया.
निकुंज ने अपना फोन देखा और बोला, "लगभग आधा से एक घंटे में. उन्होंने हमें आरम्भ करने के लिए कहा है.”
“ठीक है, तो ये ग्लास बोतल इत्यादि अंदर ले चलो. अब वे तीनों देर से आएंगे तो गद्दे हमें ही बिछाने होने.” मामा ने हंसकर बोला।
“अरे कभी काम भी कर लिया करो, साले साहब.” अशोक हंसने लगा.
महिलाओं से खाने पीने की वस्तुओं को अंदर लेने का बीड़ा संभाला और पुरुष अंदर गद्दे बिछाने चले गए.
पल्लू ने भी अपने फोन को बैठक पर ही रहने दिया और अपने आई-पैड पर कमरे का दृश्य लगा लिया. अब एक और इयरफोन निकल आया. गुप्तचर पल्लू अब पूरी चौकन्नी थी.
कमरे में देखकर पल्लू को ये संतुष्टि हुई कि उसने कैमरे सही स्थान पर लगाए थे. बिस्तर और गद्दों वाले स्थान दोनों भलीभांति दिखाई दे रहे थे. उसे इस बात की भी संतुष्टि थी कि ये सब रिकॉर्ड हो रहा था एक क्लाउड में. चारों कैमरों की भिन्न वीडियो बन रही थीं, जिन्हें बाद में भी देखा जा सकता था. जब खाने पीने की व्यवस्था हो गई तो भावना ने सबको पल्लू के द्वारा लगाए हुए चित्र दिखाए, जिन्हें देखकर सब प्रसन्न हो गए.
“काश, पल्लू भी हमसे जुड़ सकती.” दीप्ति चाची ने कहा.
इसका कारण जानने की इच्छा तो पल्लू को भी थी.
भावना, “वो पढ़ाई में अधिक व्यस्त रहती थी. और मुझे नहीं लगता कि अगर उसे ये सब पता लगता तो वो हमसे दूर न चली जाती और दोबारा कभी मिलने भी आती.”
पल्लू ने सोचा कि ये सच है. अगर अपनी ससुराल में वो इस प्रकार से व्यभिचार में लिप्त न होती तो आज इस विषय में सोचती भी नहीं. और उस समय तो अवश्य वही करती जो उसकी माँ कह रही थी.
चाची, “पढ़ने में तो नीतू भी कम न थी, पर उसका ध्यान लड़कों पर अधिक रहता था. इसीलिए सध गई.”
फागुनी मामी, “हाँ, बहुत प्यारी है, सबकी दुलारी भी है. अब जो ज्ञान पा चुकी है, तो उसके लिए लड़का और परिवार देखकर ढूँढना होगा. नहीं तो अधिक दिन तक नहीं टिकेगी.”
चाची, “हम क्या कर सकते हैं. वैसे उसकी कुंडली में स्थाई परिवार सुख है, तो ऐसा परिवार मिल ही जायेगा.”
“हमारे जैसा?”
“क्या पता? जो होगा, जब होगा, तब देखेंगे.” चाची का स्वर गंभीर था.
“चलो इनको पेग बना दें नहीं तो बेचैन हो जायेंगे.”
परन्तु निकुंज और नीतू इस कार्य को पूर्ण कर चुके थे. पल्लू का ध्यान अब उस ओर गया. गद्दों को सुनियोजित ढंग से सजाया गया था, अर्थात ये एक नियमित कार्य था. एक ओर कुछ गद्दे लगे थे, पर अधिकतर दूसरी ओर। कम गद्दों के ऊपर पीने और खाने की वस्तुएं निकुंज और नीतू ने सजा रखी थीं और अब सबके पेग बनाये जा रहे थे.
“मुझे तो इन कपड़ों में बड़ी अड़चन हो रही है.” फागुनी मामी बोलीं और कपड़े उतारने लगीं. जब उनका नंगा शरीर सामने आया तो पल्लू भी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकी।
दीपक मामा ने अपनी पत्नी की देखा देखी अपने कपड़े भी उतार कर एक ओर रख दिए. नीतू उठी और उन दोनों के कपड़ों को एक अलमारी में सजाकर रखने लगी. पर एक एक करके सभी नंगे हो गए और उसका कार्य बढ़ता गया. निकुंज उसे कपड़े लेकर देता और वो लगा देती. अंत में पल्लू के पापा, मम्मी, चाचा, चाची, मामा, मामी सब नंगे होकर अपने पेग लेकर बैठ गए. निकुंज और नीतू भी अपने कपड़े अलमारी में रखकर उनके साथ जा बैठे.
पल्लू को पुरुषों के लंड देखकर सांत्वना मिली कि वे सभी स्वस्थ आकार के थे. स्त्रियां भी उसी अनुसार अब तक सुंदरता बनाये हुए थीं. और नीतू, उसे देखकर तो पल्लू में मुंह में पानी ही आ गया. उसने एक बात और देखी कि पुरुष हों या स्त्री, सबके लंड, चूत पर कोई भी बाल न था.
“हम्म्म, तो मेरी चिकनी चूत भी इन्हें अवश्य अच्छी लगेगी.” उसने मन में सोचा.
बातों में अब चुदाई की ही बातें अधिक हो रही थीं. अधिकतर बातें मामी को लेकर थीं.
“वैसे फागुनी, तेरी तो हर दिन चुदाई करते हैं तीनों, कैसे चुप रख पाती है? यहाँ तो चीख चीख कर आकाश हिला देती है. बाबूजी और माँ जी को सब सुनाई दे जाता होगा.”
“नहीं, उनका कमरा तो जानते हो कि नीचे ही है. और वो रात्रि में ऊपर नहीं आते. और घर में मैं इतना शोर नहीं मचाती.”
सब इस बात पर हंस पड़े.
“वैसे अब नीतू के लिए भी लड़का देखने लगो. शीघ्र ही इसका भी विवाह करना ही होगा.”
“सोच तो रहे हैं. अब लगता है कि इस विषय में कोई कार्य करना ही होगा.” चाची ने कहा तो चाचा ने भी स्वीकृति में सिर हिलाया.
“क्या आप सबको मैं इतनी खटक रही हूँ?” नीतू ने मुंह बनाते हुए कहा.
“नहीं, पर विवाह तो करना ही है, और अधिक देरी भी भली नहीं.” चाची ने कहा, “वैसे भाभी,” उसने पल्लू की माँ से बोला, “पल्लू की ससुराल में लड़के अच्छे दिख रहे हैं. तुम पल्लू से बोलो न?”
“तुम्हारी ही बेटी है, तुम स्वयं बोलो. उसे तो अच्छा लगेगा. दोनों बहनें एक ही घर में ब्याहेंगी तो.”
पल्लू ने सोचा, “अच्छा तो लगेगा ही. ऐसी चुदाई होगी कि नानी याद आ जाएगी नीतू को.”
पर ये बात उसे जंच भी गई. समय रहते बात करनी होगी.
“वैसे बात तो मम्मी आप सही कह रही हो. क्या हॉट देवर हैं जिज्जी के. और वैसे ससुर आदि भी कोई कम नहीं.”
“ए बदमाश, वहाँ जाकर कुछ उल्टा सुलटा मत कर बैठना. हमारे साथ पल्लू पर भी कलंक लगेगा.” भावना ने उसे डाँटा।
“अरे ताई, मैं तो यूँ ही बोल रही थी. आप आज बहुत गुस्से में हो. जिज्जी को सुलाकर आपको अच्छा नहीं लग रहा न?”
भावना चुप रही. पर सबको समझ आ गया कि नीतू सच कह रही है. और पल्लू को भी उनके मन के दुःख का आभास हो रहा था.
“चलो दीदी, मन मत दुखाओ. निकुंज, इधर आ अपनी ताई के पास.”
निकुंज तो मानो इसी की प्रतीक्षा में था. वो तुरंत भावना के पास जा बैठा और उन्हें अपने गले से लगा लिया. उनकी पीठ सहलाते हुए उन्हें धीमे धीमे चूमने लगा.
“चलो भाई, भतीजे ने तो अपना लक्ष्य पा लिया.” अशोक हँसते हुए बोला तो नीतू उनकी गोद में आ बैठी.
“तो ताऊजी, आपका मन मैं बहलाती हूँ न.”
“मेरी गुड़िया.” अशोक ने उसे चूमना आरम्भ कर दिया.
निकुंज और भावना अब एक दूसरे से गुंथे पड़े थे और वहीँ पर लेट कर चूमा चाटी करने लगे. अमर और दीपक उठे और अमर फागुनी के सामने जा खड़ा हुआ तो दीपक दीप्ति के सामने. दोनों के लंड तने हुए थे. उनके लंड अपने मुंह में लेने के बाद दोनों चूसने में जुट गयीं. आज रात्रि के खेल का शुभारम्भ हो चुका था. परन्तु अभी इस नाटक के तीन पात्र अब तक मंच पर नहीं आये थे. पल्लू अपनी चूत को सहलाने लगी. रिया का अनुमान सही सिद्ध हो चुका था. पर अब आगे क्या? कुछ देर तक अपनी माँ को निकुंज और पिता को नीतू के साथ और अपने चाचा को मामी के और मामा को चाची के साथ देखते हुए उसका शरीर भी वासना से उत्तेजित हो गया था.
तभी उसे अपने मोबाइल पर कुछ गतिविधि दिखाई दी. सम्भवतः उसके भाई आ गए थे. उसने इयरफोन बदला और मोबाइल को देखने लगी. और जो देखा तो उसकी ऑंखें फटी रह गयीं. उसका भाई शुभम, और ममेरे भाई गिरीश और हरीश घर में प्रवेश कर चुके थे.
पर वो अकेले नहीं थे. और जो उनके साथ था उसकी कल्पना पल्लू ने स्वप्न में भी नहीं की थी.
क्रमशः