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Incest ससुराल की नयी दिशा

prkin

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ससुराल की नयी दिशा
अध्याय २९: मधुर मिलन


अब तक:

दोनों परिवारों के मिलन हो चुके थे.
अब तक सब एक दूसरे से गले मिल रहे थे. इसके बाद अंदर गए. संध्या ने सबको उनके उपहार दिए. पल्ल्वी और दिशा को सोने के हार और काव्या के लिए एक पूरा हीरे का सेट. अन्य सबको भी उचित उपहार दिए गए. इसके बाद अविका ने अपनी ओर से रिया को एक सेट भेंट किया और संध्या को हार. पंखुड़ी को उसने एक सुंदर साड़ी उपहार में दी. इसके बाद सब बैठे हुए पिछले छह वर्षों में घटित अपने जीवन के बारे में बताने लगे. अविका रह रह कर रोने लगती थी. पर उसे कोई रोक नहीं रहा था. ये हर्ष के आँसू जो थे.
इसके बाद पल्लू ने सबको उनके कमरे बताये और लड़कों ने गाड़ी से सबके सूटकेस सही कमरों में रख दिए. शाम होने को थी तो महेश ने ड्रिंक्स का प्रस्ताव रखा जो सहर्ष स्वीकार किया गया. कुछ ही देर में अल्पाहार और ड्रिंक्स का क्रम आरम्भ हो गया.

अब आगे:

सभी परिवारजन अपनी रूचि के पेय लेकर, पिछले सात वर्षों की स्मृतियों को साझा कर रहे थे. बच्चों के बड़े होने के बाद भी इतना दूरी ने बहुत कुछ बताने के लिए सुलभ कर दिया था. अविका अपने भाई अमोल के सीने पर सिर रखकर आँखें बंद किये हुए थी. अमोल कुछ कुछ देर में उसके सिर पर हाथ फेर देता था. ऐसा लगता था कि अविका अब उससे दूर चाहती थी. अमोल को भी अपने पुराने व्यवहार पर खेद था, पर अब भविष्य उज्ज्वल था.
महेश एक ओर बैठा अपने इस विस्तृत परिवार को देखकर गर्वित था. पंखुड़ी और सरिता एक दूसरे के पास बैठी हुई और बातों में व्यस्त थीं. माधवी को नलिनी एक ओर लेकर बैठी थी और उन्हें देखकर लग रहा था कि उनकी घनिष्टता बढ़ने लगी थी. महेश के मन में अचानक एक विचार कौंधा. उनके इस परिवार में चार महिलाएं विधवा थीं. उनका जीवन उजड़ने के बाद भी आज वो इस परिवार के परस्पर प्रेम के कारण अपने जीवन से संतुष्ट थीं. उसने अपनी पत्नी की ओर देखा जो संध्या से बैठी बात कर रही थी.
बच्चों ने अपनी मंडली बना ली थी और एक दूसरे को अपनी कहानियां बता रहे थे. काव्या अपने इतने सारे भाइयों के बीच अकेली बहुत ही प्रसन्न दिख रही थी. होती भी क्यों न, वे सब उसे हर प्रकार से प्रोत्साहित कर रहे थे. काव्या को पता था कि अब उसे सुरक्षा देने वाले इतने हैं कि किसी और की आवश्यकता नहीं है. पर इसका विवाह हो गया तो ये चली ही जाएगी. या कोई घर जमाई मिल जाये तो..... महेश का ध्यान अपने साले भानु की ओर गया जो चलकर उसकी ही ओर आ रहा था और उसके हाथ में नए पेग थे.
उसे पेग देकर भानु उसके पास ही बैठ गया.
“बहुत अद्भुत लग रहा है आज. ये तो अच्छा ही कि आपका घर इतना विशाल है कि सब सरलता से रह सकेंगे.”
महेश कुछ देर चुप रहा फिर बोला, “आज मुझे भी इस बात की प्रसन्नता है कि मेरे पिता ने ये महलनुमा घर बनाया था. सारे कमरों का बहुत कम ही उपयोग हो पाया है अब तक. सबके आने के बाद भी पूरे कमरे नहीं उपयोग में आएंगे. रितेश, जयेश या काव्या के विवाह तक तो नहीं ही.” फिर वो कुछ देर और चुप रहा. भानु भी चुपचाप अपनी ड्रिंक पी रहा था.
फिर महेश ने बात आगे बढ़ाई, “हाँ जैसा कि सोचा है, और तुम सब भी यहीं आ रहे हो तो अनिल का विवाह भी उसमे एक कड़ी बनेगा.”
“महेश,” भानु ने उसे जीजाजी कहकर कम ही सम्बोधित किया था, “अगर मैं जो देख रहा हूँ, अगर वो स्वप्न नहीं है तो सम्भव है कि अमोल को भी यहीं आने का आमंत्रण दिया जा सकता है.”
महेश, “मेरा मन भी यही कहता है. पर अभी इसमें समय लगेगा. आज सब मिले हैं तो ऐसा लग रहा है. कुछ दिनों के बाद इस पर विचार करना उचित होगा. हम सब तो वर्षों से मिल जुलकर रह रहे हैं तो वो स्वाभाविक है. अमोल और माधवी के परिवार हमारे लिए नए हैं. क्या पता किस प्रकार से आगे का परिदृश्य बनेगा?”
“हाँ ये भी सही है.”
महेश ने बहुओं की ओर देखा जहाँ पल्लू, दिशा और रिया बैठी हुई बातें कर रही थीं. तीनों सुंदरता में अप्रतिम थीं. क्या इसके बाद भी उन्हें इस प्रकार की बहुएं मिलेंगी? क्या उनके परिवार भी इस प्रकार से उनके साथ मिलन करेंगे? पल्लू के परिवार को उनकी जीवनशैली की भनक भी नहीं थी. महेश यही सोचते हुए तीनों बहुओं को देख रहा था.
तीनों बहुएं अपने अपने रहस्य एक दूसरे से बाँट रही थीं. अचानक रिया ने पल्लू से पूछा, “तुम क्या सदा से ऐसी ही पढ़ाकू थीं? क्या घर में किसी का आना जाना नहीं था?”
“था तो सही, पर मैं अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान देती थी. वैसे चाचा का परिवार अधिकतर शनिवार को आता था, पापा मम्मी और शुभम भैया के साथ हम चाचा, चाची, नीतू और निकुंज भैया के साथ हम बहुत मजा करते थे. पर मैं पहले ही सो जाती थी. सप्ताह भर की थकान के कारण मुझे अन्य दिनों की अपेक्षा पहले नींद आ जाती थी.” पल्लू ने बताया.
“हाँ ये भी सच है.” रिया ने कहा और फिर कुछ सोचकर बोली, “आप दूध पीकर सोती थीं न?”
“और क्या? नहीं तो इतना पढ़ना सम्भव न था.”
“और आपको दूध देता कौन था?”
“वैसे तो मैं ही ले लेती थी.....” पल्लू अचानक थम गई. “पर शनिवार को मुझे मम्मी दूध देती थीं. ओह ओह. क्या?”
“क्या, क्या?” रिया ने मुस्कुराकर पूछा.
“क्या वो सब?”
“सम्भव तो है. पर अब इस बात का कोई अर्थ नहीं है.” रिया ने कहा पर दिशा पल्लू के चेहरे के भाव पढ़ चुकी थी. उसने पल्लू से बाद में बात करने का मन बनाया.
उधर बच्चों की मंडली भी टूट गई. देर हो रही थी और अब सोने का मन था. तो अंकुर, देवेश और अनुज उनकी ओर ही आ रहे थे. तीनों बहुएं अपने पति के साथ अपने कमरों में चली गईं. सरिता भी पंखुड़ी को अपने साथ ले गई और नलिनी माधवी को. ललिता उनकी ओर बढ़ी और अविका को हिलाया तो अविका उठ गई और ललिता ने सोने के लिए कहा. महेश और भानु अपने कमरों में उनके साथ चले गए. काव्या अपने कमरे में गई तो अन्य लड़के अपने निर्धारित कमरों में चले गए. संध्या आकर अमोल के पास बैठी और कुछ देर तक बात करने के बाद वे भी अपने कमरे में चले गए. कुछ देर में आकर ललिता ने घर की बत्तियां बंद कर दीं और चली गई.
दिशा ने सोने के पहले अपने फोन से एक संदेश भेजा. और देवेश से लिपटकर चूमा चाटी करती रही और फिर सभी सो गए.
माधवी और नलिनी ने कुछ देर और बातें करीं फिर दोनों सो गयीं. उधर पंखुड़ी और सरिता अपने बदले हुए जीवन के बारे में बहुत देर तक बातें करती रहीं. सरिता ने उसके परिवार के लोगों के बारे में पंखुड़ी को बताया तो पंखुड़ी ने भी अपने परिवार के बारे में. पंखुड़ी ने जब सत्या के बारे में बताया तो सरिता की आँखों की चमक देखकर वो जान गई कि सरिता को भी सम्भवतः मूत्रक्रीड़ा में रूचि है. सरिता ने जब इसे स्वीकारा तो पंखुड़ी सोच में पड़ गई.
“क्या अभी खेलना चाहोगी?” पंखुड़ी ने पूछा तो सरिता ने सिर हिलाकर हामी भरी.
“तो चलो.” पंखुड़ी ने बोला और बाथरूम में चली गई.
बाथरूम में पंखुड़ी को देखकर अचरज नहीं हुआ कि वहां एक योग की चटाई रखी थी. सरिता अंदर आई तो उसने कपड़े उतार दिए थे. वो चटाई को बिछाकर उसपर लेट गई. पंखुड़ी ने उसके मुंह के ऊपर अपनी चूत को रखा तो सरिता उसे चाटने लगी. पंखुड़ी की सिसकारी निकल गई. कई दिनों बाद ऐसा हुआ था कि वो बिना चुदे सोने जा रही थी. उसने अपनी चूत को सरिता के मुंह पर रगड़ते हुए अपनी बढ़ती हुई वासना को ठंडा करने का प्रयास किया. पर जब सरिता ने अपनी जीभ अंदर डाली तो पंखुड़ी रुक न सकी और उसके मुंह में झड़ गई.
झड़ने के बाद वो बस पल भर ही रुकी। इस बीच सरिता ने उसके रस को पी लिया।
“मुंह खोलो.” पंखुड़ी ने कहा और सरिता के मुंह खोलते ही पंखुड़ी ने उसके मुंह में मूत्र त्याग कर दिया. फिर उसने स्वयं को सरिता के मुंह से कुछ ऊपर उठाया और अब उस फुहार ने सरिता के चेहरे को भिगो दिया. क्रीड़ा समाप्त होते ही पंखुड़ी खड़ी हो गई और उसने हाथ देकर सरिता को भी उठाया. सरिता ने मुंह धोया और कुल्ला किया. इसके बाद उसने चटाई को भी धोया और खड़ा कर दिया. पंखुड़ी उसे देख रही थी. फिर दोनों बिस्तर पर आ गयीं.
पर इस बार पंखुड़ी ने सरिता की चूत पर अपने मुंह रखा और उसे चूसने लगी. सरिता जो अब उत्तेजना के शिखर पर थी कुछ ही क्षणों में झड़ गई.
“कल से हमें इस प्रकार का एकांत नहीं मिलेगा. नाती पोते चोद चोद कर भरता बना देंगे. तो आज की रात आनंद ले लें.” सरिता ने कहा तो पंखुड़ी ने भी स्वीकार किया. इसके बाद देर रात तक दोनों एक दूसरे में समाई रहीं और फिर सुख की नींद में सो गयीं.

अलगे दिन:

जब सुबह हुई तो ललिता और अविका ने रसोई संभाली हुई थी. पुरुष अपने व्यायाम में व्यस्त थे और उनके साथ बहुएँ भी थीं. काव्या ने आकर फलों का रस पिया और दौड़ने के लिए चली गई. आठ बजे तक सब नहा धोकर बैठक में आ चुके थे. अविका अब भी अमोल के पास बार बार जाकर उसके सीने में समा जाती थी.
“मामा, क्यों न आप मम्मी को लेकर अपने कमरे में चले जाते. वो इतने वर्षों से इसकी आस लगाए बैठी हैं. जाकर उनसे अच्छे से भेंट कर लीजिये. हम सब यहीं मिलेंगे.” अनुज ने कहा.
“धत्त, शैतान. कुछ भी बोलता है.” अविका ने उसे प्रेम से झिड़की दी.
संध्या आगे आई और बोली, “नहीं, सच कह रहा है.” फिर अमोल से बोली, “आप जाओ अविका को लेकर. और उसे बहुत प्यार करना. आपके प्रेम की वो सात वर्ष से प्यासी है.”
अमोल ने अविका को देखा तो अविका ने सिर झुका लिया.
“गो गो गो! हैव फन!” सारे बच्चे एक स्वर में बोले.
अमोल ने ही पहल की और अविका का हाथ लेकर अपने कमरे में चला गया. माधवी और नलिनी अब ललिता का हाथ बताने लगीं।
“मम्मी जी नहीं आयीं?” नलिनी ने पूछा.
“आने ही वाली होंगी.” ललिता ने कहा और इतने में ही पंखुड़ी और सरिता आ गए. धम्म से सोफे पर बैठे और सरिता ने ललिता से चाय माँगी।
चाय देकर ललिता ने पूछा, “लगता है कल रात बहुत देर तक जागते रहे आप दोनों.”
सरिता, “हाँ, सोचा कि आज से तो कोई न कोई हम दोनों की चुदाई कर ही रहा होगा रात को तो एक ही रात हम दोनों को अकेली मिली थी.”
“चलो अच्छा किया. वैसे आज से हम सबके मिलन का उत्सव आरम्भ होने वाला है.”

*****

अमोल जब अविका के साथ कमरे में पहुँचा तो अविका फिर उसके सीने से लग गई. उसने सिर उठाया तो अमोल ने देखा कि उसकी आँखें भीगी हुई थीं.
“भैया!” अविका का गला भरा हुआ था.
“शशशश, अविका. अब सब ठीक है. अब हमारे बीच में कोई मतभेद भी नहीं है. और अब कोई दूरी ही रहने वाली है. हमने ये सात वर्ष व्यर्थ में गवाँ दिए, मेरे हठ के कारण.” अमोल ने उसे बिस्तर पर बैठाया और उसके साथ बैठ गया.
“संध्या ने मुझे कई बार कहा, समझाया. पर मैं ही डटा रहा. पिछले दो वर्षों में तो मैंने कितनी ही बार तुम्हें फोन करने का मन बनाया पर कर न सका. पर इस बार संध्या नहीं मानी. और देखो, हम साथ हैं.”
“हाँ, भाभी बहुत अच्छी हैं.”
अमोल ने आगे बढ़कर अविका के माथे को चूमा, तो अविका ने सिर उठा लिया. दोनों के होंठ टकराये और एकाएक एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे. चुंबन लेते हुए एक दूसरे के शरीर पर हाथ चलने लगे. कब वस्त्र निकल गए दोनों को आभास ही नहीं हुआ और जब अविका बोध हुआ तो वो बिस्तर पर लेटी हुई थी और अमोल उसके मम्मे चूस रहा था. अपने भाई के सिर पर हाथ रखते हुए उसने एक तृप्ति की श्वास भरी.
अमोल उसकी चूत पर हाथ सहला रहा था. अविका केवल अपने भाई के सान्निध्य से ही अति उत्तेजित हो चुकी थी. अमोल ने अविका के चेहरे को देखा और फिर नीचे सरक कर उसकी चूत पर अपनी जीभ फिराई। वर्षों से थमा अविका का बाँध टूट गया और उसने स्पर्श मात्र से ही अपना रस अमोल के मुंह पर छोड़ दिया.
“बड़ी स्वादिष्ट हो तुम.” ये कहते हुए अमोल ने पूरी जीभ को अंदर डाला और अविका के चूत की बहती नदी में डुबकी लगा दी. वो पागलों के समान उसकी चूत को चाट रहा था. पोर पोर को अपनी जीभ से चाटने के प्रयत्न में वो इतना खो गया कि उसे ये भी आभास नहीं हुआ कि अविका छटपटा रही थी.
“भैया, अब बस करो. बहुत गुदगुदी हो रही है अब.” जब उसने दूर से आती हुई इस विनती को सुना तब उसे ज्ञान हुआ कि वो कहाँ खोया हुआ था. अपना चेहरा उठाया तो अविका ने अपने भाई के भीगे हुए चेहरे को देखा तो उसका मन फिर से उद्वेलित हो उठा.
“भैया, अब ........
अब ........ अब ........ अब ........ देर न करो. चोद दो मुझे. अब मुझे आपसे दूर नहीं रहना. दूरी मिटा दो. अब और मत देर करो.
अमोल अपनी बहन के इस अनुरोध को कैसे टाल सकता था. उसने सही स्थिति में आकर अपने लंड को अविका की चूत पर लगाया और धीरे से अंदर डाल दिया. धीमी ही गति से वो आगे बढ़ता रहा और फिर पूरे लंड को अंदर डालकर अविका के ऊपर लेट गया और दोनों एक दूसरे को चूमने लगे. कई मिनट तक यूँ ही वो जुड़े रहे. होंठों से होंठ, जीभ से जीभ और चूत में लंड. हर रोम एक दूसरे में समाने की चेष्टा कर रहा था.
यूँ तो दोनों इसी प्रकार से संतुष्ट थे, परन्तु तन की भी अपनी आवश्यकता होती है. अमोल ने अपने लंड को धीरे धीरे अंदर और बाहर करना आरम्भ किया तो अविका उससे और अधिक लिपट गई. अपने कूल्हे घुमाकर मानो वो और भी एक होना चाह रही थी. अपने भाई की गले में हाथ डालकर उसे चूमते हुए वो भी अमोल का अब साथ देने लगी. अमोल इसी प्रकार से उसे चोदने में जुट गया. ये मिलन की चुदाई थी, तन के साथ मन का भी मिलन था. लंड और चूत इस मिलन के साधन मात्र थे.
दोनों में से किसी ने शीघ्रता नहीं दिखाई, न उन्हें थी ही. वे एक दूसरे में समा कर ही संतुष्ट थे. एक और दूरी अब मिट गई थी. जिन कारणों से वे सात वर्ष एक दूसरे से दूर हुए थे, ये कैसी विडंबना थी कि उसी कारण ने उन्हें फिर से एक साथ मिलाया था. अविका की आँखों से बहते हुए आँसुओं ने जब अमोल के होंठों को छुआ तब उसे पता लगा कि अविका उसके पुराने निर्णय से कितनी व्यथित थी.
उसके होंठों को छोड़ कर अमोल ने उसके आँसुओं को अपनी जीभ से चाटा तो अविका सिसक पड़ी.
“अब मैं तुझसे दूर नहीं जाऊँगा। अब दोबारा वो गलती नहीं करूँगा. काश मैंने संध्या की बात पहले मान ली होती, तो हम इतने दिनों एक दूसरे से दूर न रहते।”
अविका ने भरे स्वर में कहा, “भैया, अब जो बीत गया है, उसे भूलने में ही भलाई है. नहीं तो हम अतीत के दुःख को याद करके भविष्य के सुख से वंचित हो जाएंगे। आज हम सब एक साथ हैं. घर कितना भरा पूरा और खुशियों से खिला हुआ लग रहा है. अब मेरे आँसू नहीं निकलेंगे. अब मेरी प्रार्थना स्वीकार हो गई है. मेरे भैया मुझे मिल गए हैं.”
अमोल इस पूरी बातों के समय भी हल्के हल्के अविका को चोदे जा रहा था, जैसे कोई नाविक अपनी नाव के चप्पू चलाता है. चुदाई करते हुए दोनों अपने भावनाओं को एक दूसरे के साझा कर रहे थे.
समय बहुत बलवान होता है. आज उनके परिवार मिले थे तो जैसे जीवन के दूसरे छोर पर. सब बदल चुका था. परिवार में और सदस्य भी जुड़ चुके थे, और एक दूसरे के साथ सम्भोग एक सामान्य कृत्य बन चुका था. आज से और भी नए नए लौडों, चूतों और गाँडों का समागम होना था. अमोल और अविका इस कड़ी के सूत्रधार थे.
अमोल को अब अपने वीर्यपात का समय निकट अनुभव हो रहा था, उसने अपनी गति को कुछ बढ़ाया और अविका भी अपने कूल्हे उछालकर उसके साथ हो गई. कुछ ही देर के परिश्रम के साथ ही दोनों झड़ कर एक दूसरे से लिपट गए. एक दूसरे को चूमते हुए, दोनों कुछ देर के लिए सो भी गए.
जब उठे तो वे एक नए धरातल पर थे. बाहर एक नया जीवन उनकी परीक्षा कर रहा था. अन्य परिवारजन अब इस कड़ी में सम्मिलित होने के लिए व्याकुल थे. दोनों ने कपड़े पहने और एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से निकलकर बैठक में आ गए. दोनों के चेहरे दमक रहे थे. उपस्थित सबने उनका तालियों से स्वागत किया. महिलाओं ने अविका को घेर लिया और उस पर चुबंनों की बौछार कर दी.
अमोल ने सबको देखा और उसे एक अकथनीय आनंद ने भाव विभोर कर दिया. उसने चारों ओर आनंद के साम्राज्य को देखा. अब उत्सव आरम्भ होना था.
और आज का पूरा दिन शेष था.

क्रमशः
 
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अति उत्तम, अब और कॉम्बिनेशन बनेंगे, सब को पूरा आनंद आने वाला है। कामुकता की परिकाष्ठा ।
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Wow...super update bhai...Shaayad naye characters bhi Disha ke ghar pahunch jaaye... :)
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