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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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बहुत ही बेहतरीन अपडेट, देर से अपडेट आया मगर एक दम मस्त आया। सभी के बारे में लिखा गया। अति उत्तम बस अपडेट जल्दी आते रहे तो और मजा।ससुराल की नयी दिशा
अध्याय 30 : सफलता का पर्व
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अब तक:
सरिता और पंखुड़ी ने कुछ अंतरंग पल बिताये थे. वहीँ अमोल और अविका भी एक दूसरे से सहवास कर चुके थे.
अब आगे:
“पापा, हमें कल जाना होगा, कल हमारे अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जायेंगे. कार्य आरम्भ करने के लिए हमें चार सप्ताह का समय मिलेगा. तो कल ही रात को हम लौट आएंगे. फिर अगले सप्ताह से ठेकेदारों से बातचीत आरम्भ कर देंगे.” रितेश ने महेश को बताया.
नलिनी, “एक बार जीजाजी से भी बात कर लेना. अगर वो किसी अच्छे ठेकेदार को जानते होंगे तो आपका कार्य सरल हो जायेगा.”
रितेश, “हाँ, मैंने उनसे बात की है, वो अगले सप्ताह बुधवार के बाद चार ठेकेदारों को हमारे पास भेजेंगे. उसके बाद उन्हें भी श्रमिकों इत्यादि की व्यवस्था में समय लगेगा. फिर हमें अपने विक्रेताओं से सामग्री इत्यादि के अनुबंध करने होंगे. अगले दो सप्ताह बहुत व्यस्त होने वाले हैं.”
महेश, “घर में इतने लड़के हैं, काव्या भी है. उन्हें भी इसमें सम्मिलित करो. उन्हें भी अनुभव होना चाहिए. और देवेश की सलाह अवश्य लेना. उसे अनुबंध इत्यादि की अच्छी समझ है. उसके और अपने वकील के बिना देखे और सत्यापित किये हुए कोई समझौता मत करना. तुम दोनों ने बहुत परिश्रम किया है, इसे सफलता से पूर्ण करना है.”
रितेश, “जी हाँ, पापा. देवेश भैया भी कल चलने वाले हैं. और फिर ठेकेदारों और विक्रेताओं के अनुबंधों को भी वे देखकर आगे बताएंगे.”
महेश, “बहुत अच्छा. मुझे तुम दोनों पर गर्व है.”
नलिनी, “मुझे भी हर्ष है कि तुम दोनों इस कार्य को पाने में सफल रहे. मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है.” फिर कुछ रुक कर बोली, “तो क्या कल दीदी और लव को लेकर भी आओगे?”
रितेश, “हाँ, आप उन्हें बता दीजिये. अगर समय से सब समाप्त हुआ तो कल, अन्यथा परसों सुबह हम लोग लौट आएंगे.”
नलिनी, “ठीक है, मैं दीदी को बता दूँगी.”
इसके बाद रितेश और जयेश देवेश के पास गए और कुछ अन्य व्यवसायिक बातों में लगे रहे.
कुछ देर में रितेश महेश के पास आया और बोला, “देवेश भैया ने कहा है कि काव्या को भी कल लेकर जाएँ. उसे भी इस अनुभव का लाभ मिलना चाहिए.”
महेश, “ठीक है, ये तो अच्छी बात है. फिर तुम लोग बड़ी गाड़ी ले जाना.”
रितेश, “भैया ने दो गाड़ियाँ ले जाने के लिए कहा है.”
महेश, “ठीक है, देवेश जैसा कहे, वैसा ही करो.”
नलिनी ने रागिनी को बता दिया और रागिनी ने निमिष से अनुमति ली और नलिनी को पुष्टि कर दी.
********
अगले ही दिन सुबह महेश के चारों बच्चे दो गाड़ियों से निकल गए. उड़ती हुई धूल को देखते हुए महेश को उन चारों पर बहुत गर्व हुआ. चारों ने जाकर उस कार्यालय में प्रवेश किया जहाँ अनुबंध पर हस्ताक्षर होने थे. जिन लोगों के साथ उनकी अब तक सभाएं हुई थीं उन्होंने बताया कि इस बार सर्वोच्च अधिकारी भी रहेंगी. उनसे रितेश और जयेश मिल चुके थे. निर्मला नाम की वो अधिकारी पचास वर्ष की आयु के लगभग थीं. अनुबंध की राशि तय करने में उनकी अहम भूमिका रही थी.
ग्यारह बजे के लगभग सभी बैठक में आ चुके थे. निर्मला जी अंत में आयीं और अपने स्थान पर बैठ गयीं. उन्होंने सबका अभिवादन किया और फिर आगे का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. बारह बजे तक ये प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और सब उठे और हाथ मिलाकर बधाई दी. देवेश ने उन्हें उच्च कोटि का कार्य करने का वचन दिया. जब निर्मला जी जाने लगीं तो काव्या ने उनसे कुछ मिनट बात करने की अनुमति माँगी। निर्मला ने उसे अपने साथ उनके कमरे में आने के लिए आमंत्रित किया.
काव्या और निर्मला जाकर बैठ गए और निर्मला ने कॉफी लेकर आने के लिए चपरासी को आदेश दिया. कॉफी आने के बाद निर्मला ने काव्या की ओर देखा.
निर्मला, “बोलिये, क्या कहना चाहती हैं?”
काव्या ने एक गहरी श्वास भरी, “पहले तो मैं आपका धन्यवाद देना चाहती हूँ कि अपने हमें इस कार्य के लिए चुना है. जैसा देवेश भैया ने कहा है, हम इसे उच्च कोटि के कार्य से सम्पन्न करेंगे. पर आगे की बात कहने से पहले मैं जो कहने वाली हूँ, आप वचन दीजिये कि आप क्रोधित नहीं होंगी, और अगर बात आपकी रूचि की न हो, तो मुझे क्षमा कर देंगी. मेरे भाइयों को नहीं पता है कि मैं आपसे ये बात कर रही हूँ तो कृपया उन्हें मत कहियेगा.”
निर्मला सोच में पड़ गई कि ये क्या कहना चाहती है. फिर उसने कहा कि अगर उसे बात ठीक नहीं लगी तो वो इसे भूल जाएगी.
काव्या, “मैं भी एक स्त्री हूँ. और मैं देख रही थी कि जिस प्रकार से आप मेरे भाइयों को देख रही थीं आप उनकी ओर आकर्षित हैं.”
निर्मला का चेहरा लाल हो गया. पर वो जानती थी कि काव्या सत्य बोल रही है.
निर्मला, “तो?”
काव्या, “आप चाहें तो मैं अपने भाइयों से इस बारे में बात कर सकती हूँ और आपको उनके साथ मिलाने का प्रस्ताव भी दे सकती हूँ. इसके आगे जब आप कुछ बोलेंगी तब मैं बताऊँगी।”
निर्मला, “तुम सच में उनकी बहन ही हो न?”
काव्या हंसकर, “जी, सबसे छोटी और सबकी लाड़ली. पर वे ये नहीं जानते कि मैं जानती हूँ कि वे सब क्या क्या खेल खेलते हैं. उन्हें भी वयस्क महिलाओं से मिलना भाता है और यहाँ भी इतने दिनों से वो किसी न किसी का सानिध्य प्राप्त करते रहे हैं.”
काव्या ने ये नहीं बताया कि उनमे से दो तो उनकी संबंधी ही थीं. निर्मला के चेहरे के हावभाव देखकर काव्या को उसके मन में उठे बवंडर का अनुमान था.
“आप चिंता न करें. अभी बताने की आवश्यकता नहीं है. हम सब चार बजे तक यहाँ हैं. अगर आप चाहेंगी तो वे तीनों रात में रुक जायेंगे. मेरे बड़े भैया की सास का घर यहीं है और वो हमारे घर पर हैं. आप बिना किसी का संदेह जगाते हुए उनके घर पर जा सकती हैं. अब मैं चलती हूँ, प्लीज चार बजे तक बता दीजियेगा, अन्यथा हम घर लौट जायेंगे.”
निर्मला ने सिर हिलाया और काव्या चली गई. काव्या से सही ताड़ा था. निर्मला के पति भी उनके ही समान अधिकारी थे और आजकल अन्य नगर में कार्यरत थे. निर्मला अत्यंत कामुक महिला थी और इस दूरी ने उसकी भावनाओं को भड़काया हुआ था. तीनों भाइयों के सुघड़ शरीरों को देखकर वो उत्तेजित हो जाती थी. पुरुष वर्ग उसकी इस भावना को समझ न पाया पर काव्या ने पल भर में ही उसे पढ़ लिया था.
काव्या ने कार में अपने भाइयों से कहा, “आप लोगों की रात आज रंगीन होने वाली है. हम कल तक ही घर जा पाएंगे.”
देवेश, “ए छुटकी, तू क्या गड़बड़ करके आई है. कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ. इतने परिश्रम से ये जो अनुबंध मिला है, कहीं खटाई में न पड़ जाये.”
काव्या, “भैया, छुटकी अब उतनी भी छोटी नहीं है.” सब हंसने लगे. “निर्मला मैडम जिस दृष्टि से आप तीनों को देख रही थीं मुझे विश्वास हो गया था कि वे बहुत प्यासी हैं. पता चला उनके पति अलग स्थान पर पदस्थ हैं. मुझे लगता है वो नलिनी आंटीजी के घर आज आ ही जाएँगी. पर हमें उनके उत्तर की चार बजे तक प्रतीक्षा करनी होगी.”
देवेश, “और नहीं आई तो?”
रितेश, “बेड़ा गर्क.”
काव्या, “भाई लोगों, आप चिंता छोड़ दो. कुछ बुरा नहीं होगा.”
तीनों भाई अभी भी आश्वस्त नहीं थे, पर अब कुछ कर भी नहीं सकते थे. तीनों ने जाकर एक अच्छे से होटल में खाना खाया. अब कुछ करने को तो था नहीं तो वे सभी नलिनी के ही घर चले गए और लेट कर सो गए. काव्या टीवी देखने लगी. दो बजे के बाद काव्या के पास संदेश आया.
“ठीक है.” ये निर्मला ने भेजा था.
“बात कर सकते हैं?” काव्या ने पूछा.
निर्मला का कुछ देर बाद फोन आया.
“आपका धन्यवाद मैडम. पर क्या आप उबर या ओला से आ पाएंगी? मैं नहीं चाहती कि आप अपनी सरकारी कार से आएँ. या मैं आपको लेकर आ जाऊँगी और सुबह छोड़ भी दूँगी।”
“तुम आ जाना, वो ठीक है.” ये कहकर निर्मला ने अपना पता बताया. “सात बजे आ जाना.” ये कहकर वो रुकी, “काव्या, ये ध्यान रहे कि कोई फोटो या वीडियो नहीं बननी चाहिए. अगर ऐसा किया तो मैं तुम सबका सर्वनाश कर दूँगी।”
“नहीं मैम, हमारा ऐसा कोई भी अभिप्राय नहीं है. और न ही हम इस प्रकार की ओछी गतिविधि को स्वयं ही प्रोत्साहित करते हैं. आप बिलकुल निश्चिन्त रहें.” काव्य ने विश्वास दिलाया.
“ठीक है सात बजे मिलेंगे.”
फोन रखकर काव्या ने अंगड़ाई ली और वहीँ सोफे पर पसर कर सो गई. एक घंटे बाद चाय की सुगंध ने उसकी आँख खोलीं. जयेश रसोई में चाय बना रहा था. वो उठकर बाथरूम में गई और मुंह धोकर जयेश के पास आई.
“कुछ करूँ?” काव्या ने पूछा.
“थोड़ी दया, बस और कुछ नहीं.” जयेश ने उत्तर दिया तो काव्या खिलखला उठी.
“मैंने उससे भी अधिक कर दिया, भाई जी. मैडम आने वाली हैं आज आप तीनों के लिए. अब कहो तो मना कर दूँ.”
“अब तुमने इतनी दया कर ही दी है तो आने दो. चलो चाय पीते है.” जयेश ने चार कप में चाय डाली और बैठक में आया. देवेश और रितेश भी आ गए. काव्या ने उन्हें शुभ समाचार सुनाया तो देवेश ने दिशा को फोन करके बता दिया कि वे सब अब कल आयेंगे. फिर महेश को भी बता दिया.
देवेश, “हम चारों यहाँ है और वहाँ न जाने रात में क्या क्या खेल होने वाले हैं?”
काव्या, “कल से देखेंगे. अच्छा मैं निर्मला को छोड़कर बड़ी आंटीजी (रागिनी) के घर चली जाऊँगी, जैसा निश्चित था. वैसे आपकी भी वो राह देखेंगी, पर मैं उन्हें समझा दूँगी।”
देवेश, “नहीं, अगर बताना है तो अभी बता दो, अन्यथा अगर वो खाना बना ली तो फिंकेगा. और जयेश देख लो घर में पीने के लिए कुछ है या नहीं.”
काव्या रागिनी को फोन करने लगी और जयेश ने फ्रिज और रसोई में देखा.
“कुछ नहीं है भैया.”
“ठीक है तो जाकर एक अच्छी व्हिस्की, बियर के डिब्बे और एक अच्छी वाइन भी ले आ. खाने के लिए तुम कहाँ से मंगाते थे?”
“मंगाते नहीं थे. पर दिन में जिस रेस्त्रां से मंगाते थे वो अच्छा है, वहीँ से मंगा लेंगे.”
“सात के पहले लेकर आ जाना. मैडम के आने के बाद कोई नहीं आना चाहिए.” देवेश ने समझाया.
“ओके, भैया. मैं अभी जाकर आर्डर दे देता हूँ. व्हिस्की, बियर और वाइन भी ले आता हूँ, और साढ़े छह बजे जाकर खाना ले आऊँगा।”
“मैंने उन्हें बता दिया है. वो इस बात से प्रसन्न तो नहीं हैं, पर मान गयीं हैं. कह रही थीं कि कल खाने के बाद उनके घर से ही निकल चलेंगे. मैंने कहा कि खाना हमारे घर ही खा लेंगे, दस बजे के पहले निकल लेंगे तो अच्छा होगा, तो वो इस बात पर भी सहमत हो गयी हैं. नाश्ते के बाद निकलेंगे.”
“चलो, सब प्रबंध अच्छे से हो गया.”
**********
ठीक सात बजे काव्या निर्मला के घर पहुँच गई और उसे लेकर नलिनी के घर पर आ गई. घर में आने के बाद सबने कुछ देर तक औपचारिक बातें कीं. फिर काव्या ने कहा कि उसे जाना है और वो निर्मला से आज्ञा लेकर चली गई.
काव्या ने रागिनी का नाम तो सुना था पर मिलने का अवसर केवल विवाहोपरांत समारोह में ही हुआ था पर वो बहुत ही कम समय का था. जब उसने रागिनी के देखा तो वो सामान्य मेकअप में थी. काव्या को उसकी सुंदरता देखकर कुछ ईर्ष्या सी हुई. रागिनी ने उसे घर में लाया और गले मिलकर उसका स्वागत किया.
उसे एक छोटा सा उपहार दिया, “दिशा की नंद हो और पहली बार आई हो. इसे एक नेग समझकर स्वीकार करो.”
काव्या ने देखा कि वो एक सुंदर कड़ा था जिसे उसने रागिनी के ही सामने पहन लिया और उसका धन्यवाद किया.
“अभी निमिष भी आते ही होंगे, और लव भी अभी आ रहा है. अपना कॉलेज का कुछ कार्य कर रहा है. तब तक हम दोनों बातें करते हैं.”
काव्या रागिनी के इतने ममतामई प्रेम से विव्हल हो गई.
“नलिनी कैसी है. कल उसने फोन तो किया पर अधिक बात नहीं हुई. जबसे गई है कम ही बात हुई है. लगता है आप सब उसे व्यस्त रखते हो.” रागिनी के स्वर में नटखट थी और एक हल्की सी मुस्कुराहट भी.
“आप तो जानती ही हैं. उन्हें बस साँस ही लेने का समय मिलता है. परिवार का हर व्यक्ति उनके स्वभाव से बहुत प्रभावित है. और उनके साथ समय व्यतीत करने की होड़ सी रहती है.”
“हाँ मैं जानती हूँ. वैसे मैंने निमिष से बात की थी. उन्होंने कहा है कि मैं और लव कुछ अधिक समय के लिए रुक सकते हैं. उनके कुछ टूर हैं जो अब तक स्थगित करते रहे हैं, वो उन्हें पूर्ण कर लेंगे.”
“ये तो बहुत अच्छा समाचार है. तो अपने उसी प्रकार से अपना सामान लगाया है न?”
“हाँ. लव का नहीं पता. पर उसे वैसे भी रुकना ही था. और अगर नौ बजे निकलना है तो वो पौने नौ पर लगाना आरम्भ करेगा. और फिर वहाँ जाकर रोयेगा कि ये नहीं लाया, वो भूल गया.”
दोनों इस बात पर हंसने लगीं.
काव्या, “मैं उसे आज ही का समय दूँगी और कहूंगी कि अन्यथा वो नहीं जा सकता.”
रागिनी, “तब तो वो पक्का आज ही लगा लेगा. वो तो दिशा से मिलने के लिए इतना आतुर है कि क्या बताऊँ. वैसे आज तो तुम हमारे ही साथ रहोगी न?”
काव्या ने इस द्विअर्थी कथन का अर्थ समझ लिया.
“हर प्रकार से.”
रागिनी प्रसन्न हो गई.
********
नलिनी का घर:
निर्मला अपना मन बना चुकी थी इसीलिए वो आश्वस्त थी कि अगर उसे आनंद लेना है तो खुल कर बात करनी होगी. अपने सामने खड़े तीनों लड़कों को देखकर उसे अपने बच्चों की आयु का ध्यान आया जो इनके लगभग ही थी. उनकी आयु के लड़कों से चुदवाने में कितना आनंद आ सकता है. अपनी युवावस्था में पति की असीमित चुदाई की क्षमता की स्मृति का ध्यान करते ही उसके शरीर में एक सनसनी सी दौड़ गई.
देवेश आगे बढ़ा और उन्हें बैठने के लिए आमंत्रित किया.
देवेश, “आप कुछ पीना चाहेंगी? रस, शीतल पेय, या वाइन, बियर अथवा व्हिस्की. आपकी रूचि न जानने के कारण हमने सबका प्रबंध कर लिया था.”
“मुझे व्हिस्की अधिक अच्छी लगती है, “ऑन द रॉक्स”, कौन सी व्हिस्की है आपके पास?”
देवेश ने एक मंहगी विदेशी ब्रांड का नाम बताया तो निर्मला पर अनुकूल प्रभाव पड़ा.
“आपका चयन सटीक है. मुझे वो बहुत अच्छी लगती है.”
जयेश तुरंत कार्य पर लग गया और कुछ ही समय में सबके पेग और अल्पाहार लगा दिए.
“देवेश, मैं समझती हूँ कि तुम विवाहित हो, फिर क्या ये तुम्हें शोभा देता है?”
“मेरी पत्नी और मैं कभी कभी इस प्रकार से कर लेते हैं. इससे हमारे संबंध भी नए नए अनुभवों को आत्मसात करते हैं. उसे पता है कि आज मैं यहाँ क्यों रुका हूँ.”
“बहुत रोचक. हम तो पुराने विचारों से पूर्ण रूप से कभी निकल ही न पाए. अब बातें कर रहे हैं क्योंकि न उनके पास समय है न मेरे पास कि एक दूसरे के साथ लम्बे समय तक रह पाएं. तीन वर्ष और इस प्रकार ही रहना होगा, उसके बाद एक ही स्थान पर पदस्थ होने की संभावना है. ये हम दोनों के उन तीन वर्षों के आगे के जीवन का एक प्रकार से प्रारम्भ है.”
“क्या अपने अपने पति को बताया है?”
“हाँ, अन्यथा मैं नहीं आती. जैसा मैंने कहा कि हम दोनों में एक मूक सहमति थी. पर अब तक इस पर कुछ किया नहीं था. आज की रात वो भी हो ही जायेगा.”
निर्मला की बातों से एक भूख तो झलक ही रही थी परन्तु एक पीड़ा भी थी जो अपने पति से दूर रहने की थी. कुछ देर में ये पेग समाप्त हुआ और जयेश ने फिर से नए पेग बनाकर दे दिए. देवेश ने अपने बारे में भी बताया कि वो बाहर पढ़ाई करने के बाद नौकरी कर रहा था पर अब अपने परिवार के व्यवसाय में हाथ बँटा रहा है. उसने ये भी बताया कि वो अपनी पत्नी से विदेश में ही मिला था.
“इसीलिए दोनों सेक्स के बारे में उन्मुक्त विचार रखते हो.”
देवेश ने निर्मला के चेहरे पर झूलती हुई बालों की लट को अपनी उँगलियों में घुमाते हुए ऊपर किया.
“आप ऐसा भी समझ सकती हैं.” ये कहते हुए उसने निर्मला के होंठों पर एक चुंबन जड़ दिया.
“तुम समय व्यर्थ करने में विश्वास नहीं करते? है न?”
“मुझे नहीं लगता कि आप भी रखती हैं. क्यों न हम अपने पेग समाप्त करने के बाद मेरी सासू माँ के शयनकक्ष में चलें. वहाँ भी बातें की जा सकती हैं, या कुछ और भी. आपके मन के अनुसार.”
निर्मला ने एक ही घूँट में अपना पेग समाप्त किया.
“मुझे भी समय गँवाने में रूचि नहीं है. देखूँ तुम तीनों युवा मुझे झेल सकोगे या नहीं.”
“मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ, फिर चलते हैं.”
“पूछो.” निर्मला ने कहा. अब उसे वे बातें व्यर्थ लग रही थीं. उसकी चूत आने वाली चुदाई के लिए गीली हो चुकी थी.”
“क्या आपको मौखिक सम्भोग भाता है?”
“बिलकुल. मुझे मौखिक सुख लेने और देने में बराबर का आनंद आता है.”
“और गुदा मैथुन?”
निर्मला की हंसी छूट गई.”सीधे पूछो न गांड मरवाने में आनंद आता है या नहीं?”
देवेश ने हंसकर कहा, “वही, गांड मरवाने में आनंद आता है?”
“बहुत. और कुछ?”
“नहीं, पर क्या अपने कभी दो दो लंड एक साथ लिए हैं? एक चूत में और एक गांड में?” देवेश ने उसकी आँखों में झांककर पूछा.
निर्मला जानती थी कि अगर वो तीन लड़कों से चुदवायेगी तो ऐसी संभावना बन सकती है. पर इसकी कल्पना मात्र से उसका शरीर सिहर गया.
“अब तक तो नहीं, पर आज वो बाधा भी पार कर लूँगी, अगर तुम उसके योग्य सिद्ध हुए तो.”
“ओह, उस का हमें विश्वास है.”
फिर उन रितेश और जयेश को संकेत किया और वो दोनों नलिनी के कमरे के पास जाकर खड़े हो गए. निर्मला का हाथ लेकर देवेश उस कमरे में चला गया. रितेश और जयेश भी अंदर आये और कमरा बंद कर लिया.
“”मुझे नहीं लगता कि अब वस्त्रों की कोई आवश्यकता है.” देवेश ने अपने कपड़े उतारने प्रारम्भ कर दिए. उसके दोनों भाई भी तत्क्षण में ही नंगे हो गए. तीनों के शरीर और लौडों को देखकर निर्मला को आज की रात पूरी संतुष्टि मिलने की आशा हो गई. तीनों उसके मर्दन में कोई कमी नहीं रखने वाले. उसने भी अपने वस्त्र निकाले और एक ओर समेट कर रख दिए. इसक बाद वो इठलाकर रितेश के पास गई.
“मेरी ढलती आयु पर ध्यान मत देना. मैं चुदाई में कोई कोताही नहीं करती.”
“ढली तो आप कहीं से नहीं दिखतीं.” रितेश ने उसके मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा.
निर्मला को अपनी गांड को भींचते हुए दो हाथों का भी आभास हुआ.
“आप सच में बहुत सुंदर और आकर्षक हैं. मुझे आपकी गांड मारने की तीव्र इच्छा है.”
ये जयेश था जो अब निर्मला के पीछे आ चुका था. देवेश एक ओर बैठा हुआ अपने भाइयों के द्वारा किये जा रहे निर्मला के साथ खेल को देख रहा था. उसने अपने हाथ में अपने लंड को लिया और हल्के हल्के सहलाना आरम्भ किया. सामने चल रहे दृश्य के कारण उसके लंड ने भी खड़े होने में देर न लगाई. जयेश और रितेश ने अपने स्थान बदले और रितेश निर्मला के पीछे आकर उसके मम्मों को मसलने लगा तो जयेश उसके होंठों को चूसते हुए उसकी गांड को अपने हाथों में लेकर दबाने लगा. निर्मला दो ओर से चल रहे इस अनूठे आक्रमण से शीघ्र ही कामोत्तेजित हो गई.
देवेश ने उनको बिस्तर की ओर खींचा और निर्मला को बिस्तर पर लिटा दिया. निर्मला ने जब देवेश के लंड को देखा तो उसका मन ललचा गया. अपने हाथ में लेकर उसने हल्के से उसे ऊपर आने का संकेत दिया. देवेश ने अपने लंड को निर्मला के मुंह के पास जाकर रोक दिया. निर्मला की लहराती जीभ ने उसके सुपाड़े को चाटा और देवेश ने अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया. निर्मला उसके लंड को चूसने में व्यस्त हो गई.
रितेश ने निर्मला के मम्मों पर अपना ध्यान रखा तो जयेश ने निर्मला के पैरों को फैलाकर उसकी कुलबुलाती रस से चिपचिपाती चूत पर अपने मुंह को लगाया और चाटने लगा. निर्मला की चूत इतना रस छोड़ चुकी थी कि कुछ पल तो जयेश को उस रस को ही चाटने में लग गया. इसके बाद उसने अपनी जीभ से निर्मला की चूत, भग्न पर आक्रमण किया तो निर्मला की चूत फिर पानी छोड़ने लगी. जीभ को अंदर सरकाते हुए अब वो निर्मला के अंदरूनी अंग का भी स्वाद लेने लगा.
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रागिनी का घर:
कुछ ही देर में निमिष भी आ गया काव्या से मिलने के बाद वो नहाने चला गया. खाना लगाने के बाद नौकर अपने कमरों में चले गए. लव अपने कमरे से निकला और काव्या को देखकर ठगा सा रह गया. अपनी माँ और मौसी तक सीमित लव को इतनी सुंदर लड़की को देखकर आकर्षित तो होना ही था. फिर काव्या भी उसकी ही आयु श्रेणी में थी. कुछ देर की हिचकिचाहट के बाद वो सामान्य हो गया, इसमें काव्या का भी योगदान था.
खाने के बाद कुछ देर तक बैठकर सबने एक दूसरे के परिवार के बारे में बात की. फिर काव्या ने लव से कहा कि अगर उसने अपना सामान आज रत नहीं लगाया तो वो उसे कल नहीं ले जाएगी.
“वैसे अगर तुम्हारे भाई भी आ जाते तो अधिक आनंद आता.” निमिष ने कहा.
“वो अपने किसी मित्र का मनोरंजन कर रहे हैं. लगता नहीं कि रात भर भी उनके लिए समुचित रहेगी.” काव्या ने कहा.
“ओह, समझा! अच्छा है, इस समय में इस प्रकार के संबंध बनाने से आगे के कार्यों में सरलता रहेगी और सफलता भी मिलेगी.”
काव्या निमिष के संकेत को समझ गई. “यही सोच कर ही मैंने ये प्रबंध किया. भाई तो डरे हुए थे, पर मुझे विश्वास था. और इसके बाद भी हमें उनसे किसी न किसी रूप में मिलते ही रहना है.”
“वैसे अगर मैं सही हूँ तो निर्मला ने ऐसा पहली बार किया होगा. पर ये उन दोनों के लिए अच्छा ही है.”
“आप जानते हैं उनको?”
“उसका पति मेरे ही बैच का है. अभी केंद्र में पदस्थ है, लौटने के तीन वर्ष के पहले कोई संभावना नहीं है. तब तक अगर निर्मला केंद्र में चली गई तो ये दूरी बनी ही रहेगी. वैसे उनकी छोड़ो, अपनी बताओ. मेरी पत्नी का ध्यान तो रखोगे ने अच्छे से?”
निमिष ने रागिनी को देखकर हँसते हुए बोला। “वैसे मुझे ये कार्यक्रम रागिनी से अधिक लव के लिए उपयुक्त लगा. माँ और मौसी के अतितिक्त उसका कोई अनुभव नहीं है. और तुम्हारे विस्तृत परिवार में उसे विभिन्न कलाओं का ज्ञान मिल सकेगा, जो इसके जीवन में अत्यधिक काम आएगा.”
लव ये सुनकर प्रसन्न हो गया. “थैंक यू, पापा.”
“तो क्यों न इस शुभ कार्य का आरम्भ आज से ही किया जाये? क्यों रागिनी? अगर काव्या को स्वीकृत हो तो अपने कक्ष में चलें?”
काव्या ने सहमति दी और उठकर लव के हाथ को पकड़ा, “लव, आज से तुम मेरा दायित्व हो. वैसे तो मेरी मम्मी निर्णय लेंगी, पर तुम्हारी हर समस्या या दुविधा का निराकरण आज से मैं ही करुँगी। दिशा भाभी भी इसमें सहयोग करेंगी, पर तुम मेरे छोटे भाई हो, तो ये मेरा अधिकार है. अब मैं भी किसी से बड़ी हूँ, ये सोचकर भी अच्छा लग रहा है.”
“ओके, दीदी. मुझे भी अब मेरी एक और दीदी मिल गई.”
सब रागिनी और निमिष के शयनकक्ष में आ गए.
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नलिनी का घर:
रितेश का लंड भी अकड़ा हुआ था पर अब तक उसकी ओर निर्मला का ध्यान ही नहीं गया था. इसीलिए रितेश को ही पहल करनी पड़ी और वो भी देवेश के साथ जाकर अपने लंड को निर्मला के सामने लहराने लगा. देवेश ने सुझाव दिया कि अगर निर्मला आसन बदले तो वो उन दोनों के लंड चूस सकती है और जयेश भी उसकी चूत को चाट सकेगा. निर्मला घोड़ी बन गई और अब दोनों भाइयों के लंड को एक एक करके चूसने लगी.
पर जयेश का लक्ष्य अब कुछ और ही था. घोड़ी बनते ही निर्मला की मस्त कासी गांड को देखकर उसके मन में लड्डू फूट पड़े. दोनों नितम्बों को फैलाते हुए उसने अंदर झाँकने का प्रयास किया, पर कई महीनों से बिना चुदे होने के निर्मला की गांड बहुत कस गई थी. ये जयेश के लिए एक चुनौती थी. उसने अपनी जीभ से उस खुरदुरे भूरे तारे को चाटा तो निर्मला की सिसकारी निकली और शरीर में कम्पन हुआ. ये जयेश को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त था.
“भैया,” जयेश ने कहा, उसकी आँखों के सामने निर्मला की गांड उसके परिश्रम से खुल बंद हो रही थी. “अब मुझसे नहीं रुका जा रहा. मेरा मन इस गांड को अभी चटकाने को बेचैन है.”
उसकी बात सुनकर देवेश और रितेश हंस पड़े. निर्मला ने भी अपने मुंह से लंड निकाला और बोली, “ओह, गांड चटकाना, ये तो मैंने पहली बार सुना है. अब इसे रोको मत चटका लेने दो.”
निर्मला ने कहा और रितेश के लंड को मुंह में भर लिया. पर उसका ध्यान अपनी गांड पर ही था. गांड पर जयेश के लंड का आभास होने पर उसने अपनी गांड को ढीला छोड़ दिया. जयेश के टोपे ने प्रवेश किया तो निर्मला को एक सुखद अनुभूति हुई.
“भैया इनकी गांड….” इससे पहले कि जयेश भावावेश में और कुछ कहता देवेश ने उसे रोक दिया, “जानता हूँ. मक्खन से भी अधिक नर्म और भट्टी से भी अधिक गर्म है. तेरा ये डायलॉग पुराना हो गया है.”
जयेश को अपनी भूल का आभास हुआ, वो अगर अपने परिवार की किसी स्त्री के बारे में बोल देता तो लेने के देने पड़ सकते थे.
“जी, भैया वही, अब नए डायलॉग कहाँ से सोचूँ ? पर गांड सच में बहुत तंग है. ऐसा लगता है कि मैडम १८ वर्ष की ही हैं.”
निर्मला की गांड में बहुत समय बाद किसी लौड़े ने प्रवेश किया था तो उसे कुछ असहजता हो रही थी. पीड़ा नहीं थी. पर अपनी तुलना १८ वर्ष की लड़की से सुनकर उसे बहुत अच्छा लगा. जयेश अपने लंड को उसकी गांड में डालते हुए अंतिम छोर तक पहुंच गया. निर्मला जानती थी कि खेल अब आरम्भ होगा. पर पूरा लंड लेने के बाद उसे कोई विशेष कष्ट नहीं था. वो अब अपनी गांड के चटकने का आनंद ले सकती थी.
अपने मुंह से लंड निकालकर निर्मला ने कहा, “तो अब चटकाओ न गांड, देखूँ कितना दम है तुम्हारे लौड़े में.”
ये सुनकर रितेश ने निर्मला के सिर पर हाथ रखकर अपना लंड बाहर निकाल लिया. ये उसकी प्रबुद्ध सोच थी, क्योंकि निर्मला की बात सुनकर जयेश ने अपने लंड को बाहर निकालकर एक शक्तिशाली धक्का मारा कि निर्मला की आत्मा काँप गई. अगर रितेश ने लंड बाहर न निकाला होता तो वो अवश्य ही उसे काट लेती.
“उई उई माँ, मार दिया रे. ऐसे थोड़े हो बोला था.” निर्मला ने सिसकते हुए कहा.
जयेश ने गति कम की और पूछा, “तो कैसे बोला था? अपने दम देखने के लिए कहा था न? तो देखो दम.”
देवेश ने बात संभाली, “जयेश, मैडम का ये अर्थ नहीं था. अच्छे से प्यार से मारो. मैडम ने बताया था न कि कई दिन से किसी ने नहीं मारी है गांड. चलो सॉरी बोलो और प्रेम से गांड मारो.”
“सॉरी मैडम.” जयेश ने कहा और फिर अपने लंड को एक सामान्य गति से निर्मला की गांड के अंदर बाहर करने लगा.
निर्मला के आँसू थम गए और वो रितेश के लंड को चूसते हुए गांड मरवाने का आनंद लेने लगी. वो देवेश और रितेश के लंड बारी बारी से चूसने लगी. जब गांड थोड़ी ढीली होती हुई प्रतीत हुई तो जयेश ने गति बढ़ाई और निर्मला ने भी अपनी गांड को उछालते हुए उसका साथ दिए. बस कुछ ही देर में जयेश के लंड का पिस्टन निर्मला की गांड में धकाधक चलने लगा और निर्मला को भी पूर्ण आनंद आने लगा.
जब जयेश झड़ने लगा तो लंड बाहर निकालकर उसने निर्मला की गांड और पुट्ठों पर अपना रस छोड़ दिया. फिर बाथरूम से एक गिल्ला तौलिया लेकर उसे पोंछ दिया. निर्मला को अपनी गांड खाली होते ही मानो एक शून्य का अनुभव हुआ. उसने बिस्तर पर लेटते हुए अपने पैरों को फैलाया और देवेश को चुदाई के लिए खुला आमंत्रण दिया. देवेश ने भी एक पल की देर किये बिना उसकी चूत पर लंड लगाया और मंथर गति से उसे चोदने लगा.
“थोड़ा तेज करो, प्लीज़।” निर्मला ने विनती की. देवेश एक सभ्य पुरुष के समान उसकी चुदाई अब अधिक गति से करने लगा. निर्मला की कई दिन से चुदाई नहीं हुई थी और उसकी चूत भी कसी हुई थी, और इसी कारण दोनों को इस चुदाई में असीम आनंद मिल रहा था. रितेश अपने लंड को निर्मला के मुंह में डालने का असफल प्रयास कर रहा था.
“भैया, मुंह छोड़ो, मैडम की गांड मारो. बहुत मस्त मखमली गांड है.” जयेश ने अपना अनुभव बताया.
देवेश, “क्या कहती हैं मैडम? दोनों साथ साथ झेल पाएंगी?”
निर्मला को इतने दिनों के बाद ऐसा सुख मिला था तो वो किसी भी सुझाव के लिए तैयार थी.
“ठीक है, पर थोड़ा ध्यान रखना. मैंने ऐसा पहले कभी किया नहीं है.”
“चिंता न करो मैडम, हमने ऐसा कई बार किया है. आप देखना कि आनंद और स्वर्ग की सैर किसे कहते हैं.” देवेश ने विशवास दिलाया।
अब देवेश लेट गया और निर्मला ने उसकी सवारी गाँठ ली. देवेश ने उसकी पीठ पकड़ कर उसे अपने ऊपर झुका लिया.
“जयेश सही कह रहा है. क्या गांड है. ऐसी गांड तो जवान लड़कियां भी नहीं पाती हैं.” रितेश ने अपने लंड को गांड के छेद पर रखते हुए कहा.
निर्मला को ये सुनकर स्वयं पर गर्व हुआ. देवेश ने निर्मला को थोड़ा उठाते हुए अपने लंड को बाहर निकाला और मात्र सुपाडे को ही अंदर रहने दिया. दुहरी चुदाई में कहीं निर्मला को कष्ट न हो इसके लिए ये आवश्यक था. रितेश ने अपने लंड को गांड में डाला और चूँकि जयेश ने उसकी राह सरल कर दी थी तो लंड ने कुछ ही समय में अपना रास्ता तय कर लिया. रितेश को भी निर्मला की गांड के कसाव ने अचम्भित कर दिया. अब देवेश ने अपने लंड को अंदर डाला और दोनों लौड़े निर्मला की चूत और गांड में पूर्ण रूप से स्थापित हो गए.
“ओह माँ, ओह माँ. ये क्या है? ऐसा लग रहा है जैसे मेरी चूत और गांड पूरी भरी हुई हैं. ऐसा पहले कभी नहीं लगा.”
“अपने सही समझा है निर्मला जी. और अब आपको जो आनंद मिलने वाला है वो भी आपको पहले कभी नहीं मिला होगा.”
तीनों भाई दुहरी चुदाई करने में पारंगत थे और एक साथ एक ही लय में दोनों ने एक सधी गति के साथ निर्मला को चोदना आरम्भ किया. निर्मला कुछ समय तक तो सामान्य रही पर उसके बाद उसके शरीर ने उसका साथ छोड़ दिया. आनंद की पराकष्ठा किसे कहते हैं ये उसने आज जाना था. दोनों भाई अपने अनुभव का उपयोग करते हुए उसे भिन्न भिन्न गति और लय से चोदने में जुट गए. निर्मला आनंद के उन्माद में बह गई.
उसकी चूत पानी छोड़ रही थी तो गांड लपलपा रही थी. दोनों विलक्षण लौड़े उसे एक ऐसे धरातल पर ले जा रहे थे जिसकी उसके मन ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. इस कामोन्माद में जब जयेश ने अपने लंड को उसके मुंह के सामने किया तो उसने बिना हिचक उसे मुंह में ले लिया और चूसने लगी. उसे एक क्षण भी ये ध्यान में नहीं आया कि जयेश ने उसकी गांड मारने के बाद लंड को धोया भी था या नहीं.
इसके बाद तो निर्मला ने अपने सादे साधारण रूप को त्यागा और एक चुदक्क्ड़ स्त्री के समान उन तीनों के हाथों (या कहिये लौडों) को समर्पित कर दिया.
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रागिनी का घर:
रागिनी काव्या से बहुत प्रभावित हुई थी. जिस प्रकार से उसने लव को अपने संरक्षण में लिया था वो दिशा ने भी नहीं किया था. हालाँकि तब लव भी छोटा था और दिशा के बाहर जाने से संबंध उतने प्रगाढ़ नहीं रह पाए थे. उसने काव्या को बुलाया.
“काव्या, देखो. मैं चाहती हूँ कि तुम आज इन दोनों के साथ आनंद लो. मैं तो कल से वैसे भी तुम्हारे साथ चल ही रही हूँ.” रागिनी ने फिर अपना त्याग का स्वरूप दिखाया.
“नहीं, जितना कल से आपको मिलन का आनंद मिलेगा उतना ही हम दोनों को भी. मैं तो कहूंगी की पहले हम दोनों अंकल के ऊपर धावा करें. उसके बाद लव को भी जोड़ लेंगे. वैसे भी वो दो सप्ताह आपके बिना रहने वाले हैं?”
काव्या की बात से रागिनी को सहमत होने में कोई आपत्ति नहीं थी.
“क्या खिचड़ी पक रही है?” निमिष ने सबके लिए पेग बनाते हुए पूछा.
“आपको बता देंगे, थोड़ा धैर्य रखिये.” रागिनी ने हंसकर कहा और उसके हाथ से अपना पेग ले लिया. काव्या ने भी अपना पेग लिया और अंत में लव ने बियर ली और चारों बैठ गए.
“ये अचंभा ही है कि हमारे विस्तृत परिवार में इस प्रकार के संबंध हैं. पर इसका आनंद भी अनूठा है, क्यों रागिनी?” निमिष ने पूछा.
“बिलकुल सही. अब तो जैसे ये जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. जहाँ सपथ में एक दो बार ही चुदाई का मन करता था अब बिना चुदे कुछ घण्टे भी निकालना कठिन होता है.”
“मौसी कैसी हैं?” लव ने पूछा तो सब उसकी ओर देखने लगे.
“अच्छी हैं, तेरी बहुत बात करती हैं. उन्होंने मुझे दस बार कहा कि तेरे बिना न आऊँ. पर अगर आज तुमने बैग नहीं लगाया तो मुझे उन्हें निराश करना होगा.” काव्या ने कहा.
“मैं अभी आया.” ये कहकर लव दौड़कर कमरे इ निकल गया. तीनों एक दूसरे को देखकर हंस पड़े.
“ये तुमने सही युक्ति निकाली,काव्या।” रागिनी ने कहा और निमिष को काव्या और उसके बीच हुई सलाह के बारे में बताया. अब कोई भी पुरुष दो दो स्त्रियों से सम्भोग का स्वप्न तो देखता है पर पूरा कितनों का होता है, ये सर्वविदित है. ऊके चेहरे के हर्ष के भावों ने ही रागिनी और काव्या को भी एक संतोष दिया.
“क्या लव की प्रतीक्षा करें?” काव्या ने पूछा.
“करना ही होगी, पर कपड़ों में नहीं.” रागिनी ने कहते हुए खड़े होकर कपड़े उतारने आरम्भ किए. काव्या और निमिष ने भी अनुशरण किया और फिर अपने पेग पीने लगे.
जिस प्रकार से दौड़कर लव गया था उसी प्रकार से लौटा और काव्या को अपने फोन से अपना अमन दिखाया.
“मेरा अच्छा भाई. पर अब तुम्हें कुछ समय के लिए केवल दर्शक की भूमिका निभानी है. वो क्या है कि तुम्हारे पापा इतने दिन तक अकेले रहेंगे न, तो मैं और तुम्हारी मम्मी पहले उनकी सेवा करेंगी. ठीक है.”
लव ने मन मसोस कर कहा, “जी दीदी. बिलकुल ठीक है.”
अपने लिए एक और बियर ली और बैठ गया. फिर उसे ध्यान आया कि सभी नंगे हैं, तो वो भी आननफानन में नंगा होकर बैठ गया. रागिनी और काव्या ने निमिष के दोनों और बैठते हुए उसे चूमना आरम्भ किया और काव्या ने नीचे झुकते हुए उसके लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी. रागिनी उसके होंठों को चूम रही थी. कुछ समय के बाद दोनों उसे बिस्तर की ओर ले चलीं.
“काव्या ने तो मुझे चूस लिया है, अब मुझे भी उसका स्वाद लेना है.”
“ठीक है, तब तक मैं आपके लंड को खड़ा रखती हूँ.”
पर ये कहना सरल था करना दूभर. तो इसका ये समाधान निकला कि काव्या घोड़ी बन गई और निमिष उसकी चूत चाटने लगा. रागिनी नीचे लेटी और निमिष के लंड को चूसने लगी. काव्या की रसीली चूत के रस के स्वाद और सुगंध से निमिष का मन प्रफुल्लित हो गया. चूत से उसका ध्यान रह रह कर उसकी गांड पर भी जाता जो मानो उसे आमंत्रित कर रही थी. तो निमिष उसे भी चाटने लगा. चूत और गांड दोनों के बीच थिरकती उसकी जीभ दोनों प्रकार के स्वाद और सुगंध का आनंद ले रही थी.
रागिनी को लगने लगा कि कहीं निमिष उसके मुंह में ही न झड़ जाये तो उसने उसकी गांड थपथपाई और नीचे से हट गई. निमिष ने अपने लंड के मुक्त होते ही उसे काव्या की चूत पर लगाया और उसे चोदने लगा. रागिनी जाकर काव्या के आमने बैठ गई और काव्या ने इस बार उसकी चूत को चाटने का दायित्व उठाया. तीनों एक अच्छी लय में चुदाई में लीन हो गए.
सच तो ये था कि निमिष को इस आयु की लड़की को चोदने का कभी अवसर ही नहीं मिला. रागिनी से विवाह के बाद जब तक उसे अन्य त्रियों का सान्निध्य मिला वे भी इतनी कम आयु की नहीं थीं और न ही अविवाहित ही थीं. इसी कारण निमिष को भी एक नया आनंद मिल रहा था. उसका लंड काव्या की चूत में इतना सट के जा रहा था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. उसने मन ही मन रागिनी का धन्यवाद किया कि उन उसे पहले अवसर दिया और अपने पुत्र प्रेम में पड़कर लव को नहीं.
कुछ देर इस आसन में चुदाई के बाद निमिष और काव्या सामान्य आसन में आ गए और निमिष उसके ऊपर चढ़कर उसे चोदने लगा. रागिनी ने जाकर काव्या के मुंह पर अपनी चूत को रखा और काव्या उसके रस से भीगते हुए उसकी चूत को चाटने लगी. लव बैठा ईर्ष्या से देखता रहा.
जब निमिष ने झड़ने की घोषणा की तो रागिनी हटकर उसके सामने आ गई और निमिष ने लंड निकालकर उसके मुंह में दे दिया. रागिनी ने अपने पति के रस की हर बून्द को पी लिया और फिर निमिष के हटने के बाद काव्या की चूत भी चाटकर साफ कर दी. वो अपने बेटे के लिए काव्या की चूत को चाट रही थी.
कुछ देर के विश्राम के बाद ये निर्णय लिया गया कि निमिह अपनी पत्नी की गांड मारे और तब तक लव को काव्या की चूत का आनंद दिया जाये. कुछ ही देर में ये मेल भी घटित हो गया. रागिनी अपने पति के लंड को गांड में लेकर आनंदित हो रही थी तो लव को भी काव्या की चूत का सुख भोगने मिल रहा था.
इस बार भी निमिष ने अपने रस का भोग रागिनी को ही कराया और लव ने काव्या को अपने रस से अनुभूत किया.
“सच में बहुत आनंद आ रहा है, इस प्रकार से. है न मम्मी?” लव ने ख़ुशी से बोला।
“हाँ बेटा पर अभी और भी जोड़ हैं जिन्हें अनुभव करना है.”
ये सुनकर लव की बांछे खिल गयीं. उसे ये तो समझ आ गया था कि चूत हो या गांड जिसमें उसके पिता का लंड नहीं गया होगा वहाँ उसके लंड को भी स्थान नहीं मिलने वाला था. तो इस बार अवश्य उसकी माँ की गांड मारने का सुअवसर मिलना था. और हुआ भी यही. इस बार रागिनी की गांड मारने के लिए लव को बुलावा आया और काव्या की गांड के लिए निमिष को.
तो इसी शृंखला में लव ने अपनी माँ की गांड मारी और काव्या की गांड का आनंद निमिष को मिला. निमिष आज धन्य हो गया था. उन निर्णय किया कि टूर समाप्ति पर वो दिशा की ससुराल जायेगा और सम्भव हो पाया तो दिशा और अन्य बहुओं की भी चुदाई करने का प्रयास करेगा. इसके लिए वो छुट्टी का आवेदन कल ही डाल देगा. रागिनी और काव्या की गांड की सेवा करने के बाद लम्बे विश्राम की आवश्यकता पड़ी. परन्तु विश्राम केवल लौडों को ही चाहिए था जिन्हें खड़े होने के लिए समय चाहिए था.
एक एक पेग और पीने के बाद इस बार रागिनी और निमिष बैठे रहे और अपने लाड़ले को काव्या की गांड मारते हुए देखा और उस पर गर्व किया कि वो अब इतना प्रशिक्षित हो गया है कि काव्या को अच्छे से चोद पाया. रागिनी ने उसके लंड को चाटकर काव्या की गांड को भी फिर से सुगम कर दिया. काव्या समझ गई कि अब बाप बेटे से चुदने का अवसर मिलना है. अब तक तीन घंटे बीत चुके थे पर किसी की भी इस खेल को विराम देने की इच्छा नहीं थी.
रागिनी ने निमिष से कहा कि उसकी दुहरी चुदाई की कोई इच्छा नहीं है और अगर काव्या सहमत हो तो वो दोनों उसे चोद सकते हैं. काव्या ऐसे सुनहरे अवसर को कैसे छोड़ सकती थी. तो अगले बीस मिनट तक दोनों बाप बेटे ने उसकी बदल बदल कर एक साथ चूत और गांड मारी. कभी निमिष गांड मारता और लव चूत तो कभी इसका उल्टा. इतनी बार डबल चुदाई करने के बाद भी काव्या को इस प्रकार से बदल बदल कर चुदने का अवसर ही नहीं मिला था.
इस बार काव्या ने हठ करके दोनों का रस पिया और फिर रागिनी ने उसकी चूत और गांड को साफ किया. इसके बाद लव काव्या को सोने के लिए अपने कमरे में ले गया और निमिष और रागिनी अपने कमरे में सो गए.
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अगले दिन सुबह:
रागिनी का घर:
काव्या ने उठकर लव को उठाया तो वो कुनमुनाने लगा.
“क्या दीदी, कितना बजा है?”
“चल उठ, हमने चलना भी है. अब अपना बैग दिखा क्या रखा है? बाद में मत रोना वहाँ जाकर.”
“मॉम ने कहा ये आपसे, है न?”
“वो भी है, और अब मैं तेरा ध्यान रखने वाली हूँ तो खोल इसे.”
लव उठकर बैग को बिस्तर पर रखने को बाद खोलकर बाथरूम चला गया. लौटा तो काव्या को एक पुस्तक हाथ में लेकर हँसते हुए देखा.
“दीदी!” लव ने झपटकर उसे छीनना चाहा.
“तो ये है तुम्हारे मन में.” काव्या ने पुस्तक को हिलाते हुए पूछा.
“तो क्या आप मुझे वहाँ किसी और उद्देश्य से ले जा रही हैं.”
काव्या ने उसके हाथ में पुस्तक थमाई, “कामसूत्र के ८४ आसन” और बोली, “जब तू यहाँ लौटेगा न तो ऐसी अपनी पुस्तक लिख पायेगा. इतने आसन में चुदाई करने मिलेगी जो इनमें भी नहीं हैं.”
लव ने पुस्तक बैग में रखी, “मुझे यही तो पुष्टि करनी है कि कोई छूट न जाये. वैसे बैग में सब ठीक है न?”
“हाँ, चल अब चलते हैं. नाश्ते के बाद निकलना जो है.
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नलिनी का घर:
निर्मला ने उठकर अंगड़ाई ली और अपने शरीर को देखा. रात भर की कामक्रीड़ा के कारण उसके शरीर पर कई स्थानों पर लालिमा थी. उसके अंग प्रत्यंग में पीड़ा थी, पर एक सुखद पीड़ा. रात भर उसे तीनों भाइयों ने हर प्रकार से चोदा था. कोई भी छेद नहीं था जहाँ तीनों के लौडों ने पदापर्ण न किया हो. वो स्वयं भी अचम्भित थी कि उसने उन्हें लगभग पूरी रात भोगा था. पर उसका तन और मन दोनों प्रसन्न और संतुष्ट थे.
एक बार दुहरी चुदाई आरम्भ होने के बाद उसके तीनों छेदों में लंड बदलते रहे थे. उन न जाने कितना वीर्य पिया था. और हर पेय में उसे अपनी चूत और गांड को चखने का अवसर मिला था. क्या वो इस प्रकार में सच में रात भर चुदी थी? अपने दोनों ओर लेटे उन भाइयों को देखकर उसे विश्वास करना ही पड़ा.
वो धीरे से बिस्तर से उतरने लगी तो किसी ने उसकी बाँह थाम ली.
“मैडम, बाथरूम जाकर लौट आओ, एक बार और हो जाये.” देवेश ने उससे कहा तो वो मुस्कुराते हुए बाथरूम चली गई. इस रात की सुबह नहीं थी. ये तीनों चुदाई की विलक्षण शक्ति रखते थे. बाथरूम से निकलकर उसने देखा तो तीनों के लंड तमतमाए हुए थे. वो मटकते हुए उनके बीच चली गई.
“क्या हम ये हर महीने में दो बार कर सकते हैं?”
“क्यों नहीं, पर हर बार मैं नहीं आ पाऊँगा पर आपके लिए कम से कम तीन लंड का प्रबंध अवश्य कर दूँगा, बस एक दो दिन पहले बता दीजियेगा.”
ये कहते हुए देवेश ने निर्मला को रिष के लंड पर चढ़ाया और पीछे जाकर उसकी गांड मारने लगा.
सुबह का आरम्भ चुदाई से हो तो दिन शुभ ही निकलेगा. यही सोचकर निर्मला आनंद के सागर में हिचकोले खाने लगी.
क्रमशः
Bahut hi behatareen update bhai... Ab love aur ragini ke sath sab ka disha ke sasural bapis jane ka intezar hai... Isi tarah likhte raheinससुराल की नयी दिशा
अध्याय 30 : सफलता का पर्व
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अब तक:
सरिता और पंखुड़ी ने कुछ अंतरंग पल बिताये थे. वहीँ अमोल और अविका भी एक दूसरे से सहवास कर चुके थे.
अब आगे:
“पापा, हमें कल जाना होगा, कल हमारे अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जायेंगे. कार्य आरम्भ करने के लिए हमें चार सप्ताह का समय मिलेगा. तो कल ही रात को हम लौट आएंगे. फिर अगले सप्ताह से ठेकेदारों से बातचीत आरम्भ कर देंगे.” रितेश ने महेश को बताया.
नलिनी, “एक बार जीजाजी से भी बात कर लेना. अगर वो किसी अच्छे ठेकेदार को जानते होंगे तो आपका कार्य सरल हो जायेगा.”
रितेश, “हाँ, मैंने उनसे बात की है, वो अगले सप्ताह बुधवार के बाद चार ठेकेदारों को हमारे पास भेजेंगे. उसके बाद उन्हें भी श्रमिकों इत्यादि की व्यवस्था में समय लगेगा. फिर हमें अपने विक्रेताओं से सामग्री इत्यादि के अनुबंध करने होंगे. अगले दो सप्ताह बहुत व्यस्त होने वाले हैं.”
महेश, “घर में इतने लड़के हैं, काव्या भी है. उन्हें भी इसमें सम्मिलित करो. उन्हें भी अनुभव होना चाहिए. और देवेश की सलाह अवश्य लेना. उसे अनुबंध इत्यादि की अच्छी समझ है. उसके और अपने वकील के बिना देखे और सत्यापित किये हुए कोई समझौता मत करना. तुम दोनों ने बहुत परिश्रम किया है, इसे सफलता से पूर्ण करना है.”
रितेश, “जी हाँ, पापा. देवेश भैया भी कल चलने वाले हैं. और फिर ठेकेदारों और विक्रेताओं के अनुबंधों को भी वे देखकर आगे बताएंगे.”
महेश, “बहुत अच्छा. मुझे तुम दोनों पर गर्व है.”
नलिनी, “मुझे भी हर्ष है कि तुम दोनों इस कार्य को पाने में सफल रहे. मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है.” फिर कुछ रुक कर बोली, “तो क्या कल दीदी और लव को लेकर भी आओगे?”
रितेश, “हाँ, आप उन्हें बता दीजिये. अगर समय से सब समाप्त हुआ तो कल, अन्यथा परसों सुबह हम लोग लौट आएंगे.”
नलिनी, “ठीक है, मैं दीदी को बता दूँगी.”
इसके बाद रितेश और जयेश देवेश के पास गए और कुछ अन्य व्यवसायिक बातों में लगे रहे.
कुछ देर में रितेश महेश के पास आया और बोला, “देवेश भैया ने कहा है कि काव्या को भी कल लेकर जाएँ. उसे भी इस अनुभव का लाभ मिलना चाहिए.”
महेश, “ठीक है, ये तो अच्छी बात है. फिर तुम लोग बड़ी गाड़ी ले जाना.”
रितेश, “भैया ने दो गाड़ियाँ ले जाने के लिए कहा है.”
महेश, “ठीक है, देवेश जैसा कहे, वैसा ही करो.”
नलिनी ने रागिनी को बता दिया और रागिनी ने निमिष से अनुमति ली और नलिनी को पुष्टि कर दी.
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अगले ही दिन सुबह महेश के चारों बच्चे दो गाड़ियों से निकल गए. उड़ती हुई धूल को देखते हुए महेश को उन चारों पर बहुत गर्व हुआ. चारों ने जाकर उस कार्यालय में प्रवेश किया जहाँ अनुबंध पर हस्ताक्षर होने थे. जिन लोगों के साथ उनकी अब तक सभाएं हुई थीं उन्होंने बताया कि इस बार सर्वोच्च अधिकारी भी रहेंगी. उनसे रितेश और जयेश मिल चुके थे. निर्मला नाम की वो अधिकारी पचास वर्ष की आयु के लगभग थीं. अनुबंध की राशि तय करने में उनकी अहम भूमिका रही थी.
ग्यारह बजे के लगभग सभी बैठक में आ चुके थे. निर्मला जी अंत में आयीं और अपने स्थान पर बैठ गयीं. उन्होंने सबका अभिवादन किया और फिर आगे का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. बारह बजे तक ये प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और सब उठे और हाथ मिलाकर बधाई दी. देवेश ने उन्हें उच्च कोटि का कार्य करने का वचन दिया. जब निर्मला जी जाने लगीं तो काव्या ने उनसे कुछ मिनट बात करने की अनुमति माँगी। निर्मला ने उसे अपने साथ उनके कमरे में आने के लिए आमंत्रित किया.
काव्या और निर्मला जाकर बैठ गए और निर्मला ने कॉफी लेकर आने के लिए चपरासी को आदेश दिया. कॉफी आने के बाद निर्मला ने काव्या की ओर देखा.
निर्मला, “बोलिये, क्या कहना चाहती हैं?”
काव्या ने एक गहरी श्वास भरी, “पहले तो मैं आपका धन्यवाद देना चाहती हूँ कि अपने हमें इस कार्य के लिए चुना है. जैसा देवेश भैया ने कहा है, हम इसे उच्च कोटि के कार्य से सम्पन्न करेंगे. पर आगे की बात कहने से पहले मैं जो कहने वाली हूँ, आप वचन दीजिये कि आप क्रोधित नहीं होंगी, और अगर बात आपकी रूचि की न हो, तो मुझे क्षमा कर देंगी. मेरे भाइयों को नहीं पता है कि मैं आपसे ये बात कर रही हूँ तो कृपया उन्हें मत कहियेगा.”
निर्मला सोच में पड़ गई कि ये क्या कहना चाहती है. फिर उसने कहा कि अगर उसे बात ठीक नहीं लगी तो वो इसे भूल जाएगी.
काव्या, “मैं भी एक स्त्री हूँ. और मैं देख रही थी कि जिस प्रकार से आप मेरे भाइयों को देख रही थीं आप उनकी ओर आकर्षित हैं.”
निर्मला का चेहरा लाल हो गया. पर वो जानती थी कि काव्या सत्य बोल रही है.
निर्मला, “तो?”
काव्या, “आप चाहें तो मैं अपने भाइयों से इस बारे में बात कर सकती हूँ और आपको उनके साथ मिलाने का प्रस्ताव भी दे सकती हूँ. इसके आगे जब आप कुछ बोलेंगी तब मैं बताऊँगी।”
निर्मला, “तुम सच में उनकी बहन ही हो न?”
काव्या हंसकर, “जी, सबसे छोटी और सबकी लाड़ली. पर वे ये नहीं जानते कि मैं जानती हूँ कि वे सब क्या क्या खेल खेलते हैं. उन्हें भी वयस्क महिलाओं से मिलना भाता है और यहाँ भी इतने दिनों से वो किसी न किसी का सानिध्य प्राप्त करते रहे हैं.”
काव्या ने ये नहीं बताया कि उनमे से दो तो उनकी संबंधी ही थीं. निर्मला के चेहरे के हावभाव देखकर काव्या को उसके मन में उठे बवंडर का अनुमान था.
“आप चिंता न करें. अभी बताने की आवश्यकता नहीं है. हम सब चार बजे तक यहाँ हैं. अगर आप चाहेंगी तो वे तीनों रात में रुक जायेंगे. मेरे बड़े भैया की सास का घर यहीं है और वो हमारे घर पर हैं. आप बिना किसी का संदेह जगाते हुए उनके घर पर जा सकती हैं. अब मैं चलती हूँ, प्लीज चार बजे तक बता दीजियेगा, अन्यथा हम घर लौट जायेंगे.”
निर्मला ने सिर हिलाया और काव्या चली गई. काव्या से सही ताड़ा था. निर्मला के पति भी उनके ही समान अधिकारी थे और आजकल अन्य नगर में कार्यरत थे. निर्मला अत्यंत कामुक महिला थी और इस दूरी ने उसकी भावनाओं को भड़काया हुआ था. तीनों भाइयों के सुघड़ शरीरों को देखकर वो उत्तेजित हो जाती थी. पुरुष वर्ग उसकी इस भावना को समझ न पाया पर काव्या ने पल भर में ही उसे पढ़ लिया था.
काव्या ने कार में अपने भाइयों से कहा, “आप लोगों की रात आज रंगीन होने वाली है. हम कल तक ही घर जा पाएंगे.”
देवेश, “ए छुटकी, तू क्या गड़बड़ करके आई है. कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ. इतने परिश्रम से ये जो अनुबंध मिला है, कहीं खटाई में न पड़ जाये.”
काव्या, “भैया, छुटकी अब उतनी भी छोटी नहीं है.” सब हंसने लगे. “निर्मला मैडम जिस दृष्टि से आप तीनों को देख रही थीं मुझे विश्वास हो गया था कि वे बहुत प्यासी हैं. पता चला उनके पति अलग स्थान पर पदस्थ हैं. मुझे लगता है वो नलिनी आंटीजी के घर आज आ ही जाएँगी. पर हमें उनके उत्तर की चार बजे तक प्रतीक्षा करनी होगी.”
देवेश, “और नहीं आई तो?”
रितेश, “बेड़ा गर्क.”
काव्या, “भाई लोगों, आप चिंता छोड़ दो. कुछ बुरा नहीं होगा.”
तीनों भाई अभी भी आश्वस्त नहीं थे, पर अब कुछ कर भी नहीं सकते थे. तीनों ने जाकर एक अच्छे से होटल में खाना खाया. अब कुछ करने को तो था नहीं तो वे सभी नलिनी के ही घर चले गए और लेट कर सो गए. काव्या टीवी देखने लगी. दो बजे के बाद काव्या के पास संदेश आया.
“ठीक है.” ये निर्मला ने भेजा था.
“बात कर सकते हैं?” काव्या ने पूछा.
निर्मला का कुछ देर बाद फोन आया.
“आपका धन्यवाद मैडम. पर क्या आप उबर या ओला से आ पाएंगी? मैं नहीं चाहती कि आप अपनी सरकारी कार से आएँ. या मैं आपको लेकर आ जाऊँगी और सुबह छोड़ भी दूँगी।”
“तुम आ जाना, वो ठीक है.” ये कहकर निर्मला ने अपना पता बताया. “सात बजे आ जाना.” ये कहकर वो रुकी, “काव्या, ये ध्यान रहे कि कोई फोटो या वीडियो नहीं बननी चाहिए. अगर ऐसा किया तो मैं तुम सबका सर्वनाश कर दूँगी।”
“नहीं मैम, हमारा ऐसा कोई भी अभिप्राय नहीं है. और न ही हम इस प्रकार की ओछी गतिविधि को स्वयं ही प्रोत्साहित करते हैं. आप बिलकुल निश्चिन्त रहें.” काव्य ने विश्वास दिलाया.
“ठीक है सात बजे मिलेंगे.”
फोन रखकर काव्या ने अंगड़ाई ली और वहीँ सोफे पर पसर कर सो गई. एक घंटे बाद चाय की सुगंध ने उसकी आँख खोलीं. जयेश रसोई में चाय बना रहा था. वो उठकर बाथरूम में गई और मुंह धोकर जयेश के पास आई.
“कुछ करूँ?” काव्या ने पूछा.
“थोड़ी दया, बस और कुछ नहीं.” जयेश ने उत्तर दिया तो काव्या खिलखला उठी.
“मैंने उससे भी अधिक कर दिया, भाई जी. मैडम आने वाली हैं आज आप तीनों के लिए. अब कहो तो मना कर दूँ.”
“अब तुमने इतनी दया कर ही दी है तो आने दो. चलो चाय पीते है.” जयेश ने चार कप में चाय डाली और बैठक में आया. देवेश और रितेश भी आ गए. काव्या ने उन्हें शुभ समाचार सुनाया तो देवेश ने दिशा को फोन करके बता दिया कि वे सब अब कल आयेंगे. फिर महेश को भी बता दिया.
देवेश, “हम चारों यहाँ है और वहाँ न जाने रात में क्या क्या खेल होने वाले हैं?”
काव्या, “कल से देखेंगे. अच्छा मैं निर्मला को छोड़कर बड़ी आंटीजी (रागिनी) के घर चली जाऊँगी, जैसा निश्चित था. वैसे आपकी भी वो राह देखेंगी, पर मैं उन्हें समझा दूँगी।”
देवेश, “नहीं, अगर बताना है तो अभी बता दो, अन्यथा अगर वो खाना बना ली तो फिंकेगा. और जयेश देख लो घर में पीने के लिए कुछ है या नहीं.”
काव्या रागिनी को फोन करने लगी और जयेश ने फ्रिज और रसोई में देखा.
“कुछ नहीं है भैया.”
“ठीक है तो जाकर एक अच्छी व्हिस्की, बियर के डिब्बे और एक अच्छी वाइन भी ले आ. खाने के लिए तुम कहाँ से मंगाते थे?”
“मंगाते नहीं थे. पर दिन में जिस रेस्त्रां से मंगाते थे वो अच्छा है, वहीँ से मंगा लेंगे.”
“सात के पहले लेकर आ जाना. मैडम के आने के बाद कोई नहीं आना चाहिए.” देवेश ने समझाया.
“ओके, भैया. मैं अभी जाकर आर्डर दे देता हूँ. व्हिस्की, बियर और वाइन भी ले आता हूँ, और साढ़े छह बजे जाकर खाना ले आऊँगा।”
“मैंने उन्हें बता दिया है. वो इस बात से प्रसन्न तो नहीं हैं, पर मान गयीं हैं. कह रही थीं कि कल खाने के बाद उनके घर से ही निकल चलेंगे. मैंने कहा कि खाना हमारे घर ही खा लेंगे, दस बजे के पहले निकल लेंगे तो अच्छा होगा, तो वो इस बात पर भी सहमत हो गयी हैं. नाश्ते के बाद निकलेंगे.”
“चलो, सब प्रबंध अच्छे से हो गया.”
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ठीक सात बजे काव्या निर्मला के घर पहुँच गई और उसे लेकर नलिनी के घर पर आ गई. घर में आने के बाद सबने कुछ देर तक औपचारिक बातें कीं. फिर काव्या ने कहा कि उसे जाना है और वो निर्मला से आज्ञा लेकर चली गई.
काव्या ने रागिनी का नाम तो सुना था पर मिलने का अवसर केवल विवाहोपरांत समारोह में ही हुआ था पर वो बहुत ही कम समय का था. जब उसने रागिनी के देखा तो वो सामान्य मेकअप में थी. काव्या को उसकी सुंदरता देखकर कुछ ईर्ष्या सी हुई. रागिनी ने उसे घर में लाया और गले मिलकर उसका स्वागत किया.
उसे एक छोटा सा उपहार दिया, “दिशा की नंद हो और पहली बार आई हो. इसे एक नेग समझकर स्वीकार करो.”
काव्या ने देखा कि वो एक सुंदर कड़ा था जिसे उसने रागिनी के ही सामने पहन लिया और उसका धन्यवाद किया.
“अभी निमिष भी आते ही होंगे, और लव भी अभी आ रहा है. अपना कॉलेज का कुछ कार्य कर रहा है. तब तक हम दोनों बातें करते हैं.”
काव्या रागिनी के इतने ममतामई प्रेम से विव्हल हो गई.
“नलिनी कैसी है. कल उसने फोन तो किया पर अधिक बात नहीं हुई. जबसे गई है कम ही बात हुई है. लगता है आप सब उसे व्यस्त रखते हो.” रागिनी के स्वर में नटखट थी और एक हल्की सी मुस्कुराहट भी.
“आप तो जानती ही हैं. उन्हें बस साँस ही लेने का समय मिलता है. परिवार का हर व्यक्ति उनके स्वभाव से बहुत प्रभावित है. और उनके साथ समय व्यतीत करने की होड़ सी रहती है.”
“हाँ मैं जानती हूँ. वैसे मैंने निमिष से बात की थी. उन्होंने कहा है कि मैं और लव कुछ अधिक समय के लिए रुक सकते हैं. उनके कुछ टूर हैं जो अब तक स्थगित करते रहे हैं, वो उन्हें पूर्ण कर लेंगे.”
“ये तो बहुत अच्छा समाचार है. तो अपने उसी प्रकार से अपना सामान लगाया है न?”
“हाँ. लव का नहीं पता. पर उसे वैसे भी रुकना ही था. और अगर नौ बजे निकलना है तो वो पौने नौ पर लगाना आरम्भ करेगा. और फिर वहाँ जाकर रोयेगा कि ये नहीं लाया, वो भूल गया.”
दोनों इस बात पर हंसने लगीं.
काव्या, “मैं उसे आज ही का समय दूँगी और कहूंगी कि अन्यथा वो नहीं जा सकता.”
रागिनी, “तब तो वो पक्का आज ही लगा लेगा. वो तो दिशा से मिलने के लिए इतना आतुर है कि क्या बताऊँ. वैसे आज तो तुम हमारे ही साथ रहोगी न?”
काव्या ने इस द्विअर्थी कथन का अर्थ समझ लिया.
“हर प्रकार से.”
रागिनी प्रसन्न हो गई.
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नलिनी का घर:
निर्मला अपना मन बना चुकी थी इसीलिए वो आश्वस्त थी कि अगर उसे आनंद लेना है तो खुल कर बात करनी होगी. अपने सामने खड़े तीनों लड़कों को देखकर उसे अपने बच्चों की आयु का ध्यान आया जो इनके लगभग ही थी. उनकी आयु के लड़कों से चुदवाने में कितना आनंद आ सकता है. अपनी युवावस्था में पति की असीमित चुदाई की क्षमता की स्मृति का ध्यान करते ही उसके शरीर में एक सनसनी सी दौड़ गई.
देवेश आगे बढ़ा और उन्हें बैठने के लिए आमंत्रित किया.
देवेश, “आप कुछ पीना चाहेंगी? रस, शीतल पेय, या वाइन, बियर अथवा व्हिस्की. आपकी रूचि न जानने के कारण हमने सबका प्रबंध कर लिया था.”
“मुझे व्हिस्की अधिक अच्छी लगती है, “ऑन द रॉक्स”, कौन सी व्हिस्की है आपके पास?”
देवेश ने एक मंहगी विदेशी ब्रांड का नाम बताया तो निर्मला पर अनुकूल प्रभाव पड़ा.
“आपका चयन सटीक है. मुझे वो बहुत अच्छी लगती है.”
जयेश तुरंत कार्य पर लग गया और कुछ ही समय में सबके पेग और अल्पाहार लगा दिए.
“देवेश, मैं समझती हूँ कि तुम विवाहित हो, फिर क्या ये तुम्हें शोभा देता है?”
“मेरी पत्नी और मैं कभी कभी इस प्रकार से कर लेते हैं. इससे हमारे संबंध भी नए नए अनुभवों को आत्मसात करते हैं. उसे पता है कि आज मैं यहाँ क्यों रुका हूँ.”
“बहुत रोचक. हम तो पुराने विचारों से पूर्ण रूप से कभी निकल ही न पाए. अब बातें कर रहे हैं क्योंकि न उनके पास समय है न मेरे पास कि एक दूसरे के साथ लम्बे समय तक रह पाएं. तीन वर्ष और इस प्रकार ही रहना होगा, उसके बाद एक ही स्थान पर पदस्थ होने की संभावना है. ये हम दोनों के उन तीन वर्षों के आगे के जीवन का एक प्रकार से प्रारम्भ है.”
“क्या अपने अपने पति को बताया है?”
“हाँ, अन्यथा मैं नहीं आती. जैसा मैंने कहा कि हम दोनों में एक मूक सहमति थी. पर अब तक इस पर कुछ किया नहीं था. आज की रात वो भी हो ही जायेगा.”
निर्मला की बातों से एक भूख तो झलक ही रही थी परन्तु एक पीड़ा भी थी जो अपने पति से दूर रहने की थी. कुछ देर में ये पेग समाप्त हुआ और जयेश ने फिर से नए पेग बनाकर दे दिए. देवेश ने अपने बारे में भी बताया कि वो बाहर पढ़ाई करने के बाद नौकरी कर रहा था पर अब अपने परिवार के व्यवसाय में हाथ बँटा रहा है. उसने ये भी बताया कि वो अपनी पत्नी से विदेश में ही मिला था.
“इसीलिए दोनों सेक्स के बारे में उन्मुक्त विचार रखते हो.”
देवेश ने निर्मला के चेहरे पर झूलती हुई बालों की लट को अपनी उँगलियों में घुमाते हुए ऊपर किया.
“आप ऐसा भी समझ सकती हैं.” ये कहते हुए उसने निर्मला के होंठों पर एक चुंबन जड़ दिया.
“तुम समय व्यर्थ करने में विश्वास नहीं करते? है न?”
“मुझे नहीं लगता कि आप भी रखती हैं. क्यों न हम अपने पेग समाप्त करने के बाद मेरी सासू माँ के शयनकक्ष में चलें. वहाँ भी बातें की जा सकती हैं, या कुछ और भी. आपके मन के अनुसार.”
निर्मला ने एक ही घूँट में अपना पेग समाप्त किया.
“मुझे भी समय गँवाने में रूचि नहीं है. देखूँ तुम तीनों युवा मुझे झेल सकोगे या नहीं.”
“मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ, फिर चलते हैं.”
“पूछो.” निर्मला ने कहा. अब उसे वे बातें व्यर्थ लग रही थीं. उसकी चूत आने वाली चुदाई के लिए गीली हो चुकी थी.”
“क्या आपको मौखिक सम्भोग भाता है?”
“बिलकुल. मुझे मौखिक सुख लेने और देने में बराबर का आनंद आता है.”
“और गुदा मैथुन?”
निर्मला की हंसी छूट गई.”सीधे पूछो न गांड मरवाने में आनंद आता है या नहीं?”
देवेश ने हंसकर कहा, “वही, गांड मरवाने में आनंद आता है?”
“बहुत. और कुछ?”
“नहीं, पर क्या अपने कभी दो दो लंड एक साथ लिए हैं? एक चूत में और एक गांड में?” देवेश ने उसकी आँखों में झांककर पूछा.
निर्मला जानती थी कि अगर वो तीन लड़कों से चुदवायेगी तो ऐसी संभावना बन सकती है. पर इसकी कल्पना मात्र से उसका शरीर सिहर गया.
“अब तक तो नहीं, पर आज वो बाधा भी पार कर लूँगी, अगर तुम उसके योग्य सिद्ध हुए तो.”
“ओह, उस का हमें विश्वास है.”
फिर उन रितेश और जयेश को संकेत किया और वो दोनों नलिनी के कमरे के पास जाकर खड़े हो गए. निर्मला का हाथ लेकर देवेश उस कमरे में चला गया. रितेश और जयेश भी अंदर आये और कमरा बंद कर लिया.
“”मुझे नहीं लगता कि अब वस्त्रों की कोई आवश्यकता है.” देवेश ने अपने कपड़े उतारने प्रारम्भ कर दिए. उसके दोनों भाई भी तत्क्षण में ही नंगे हो गए. तीनों के शरीर और लौडों को देखकर निर्मला को आज की रात पूरी संतुष्टि मिलने की आशा हो गई. तीनों उसके मर्दन में कोई कमी नहीं रखने वाले. उसने भी अपने वस्त्र निकाले और एक ओर समेट कर रख दिए. इसक बाद वो इठलाकर रितेश के पास गई.
“मेरी ढलती आयु पर ध्यान मत देना. मैं चुदाई में कोई कोताही नहीं करती.”
“ढली तो आप कहीं से नहीं दिखतीं.” रितेश ने उसके मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा.
निर्मला को अपनी गांड को भींचते हुए दो हाथों का भी आभास हुआ.
“आप सच में बहुत सुंदर और आकर्षक हैं. मुझे आपकी गांड मारने की तीव्र इच्छा है.”
ये जयेश था जो अब निर्मला के पीछे आ चुका था. देवेश एक ओर बैठा हुआ अपने भाइयों के द्वारा किये जा रहे निर्मला के साथ खेल को देख रहा था. उसने अपने हाथ में अपने लंड को लिया और हल्के हल्के सहलाना आरम्भ किया. सामने चल रहे दृश्य के कारण उसके लंड ने भी खड़े होने में देर न लगाई. जयेश और रितेश ने अपने स्थान बदले और रितेश निर्मला के पीछे आकर उसके मम्मों को मसलने लगा तो जयेश उसके होंठों को चूसते हुए उसकी गांड को अपने हाथों में लेकर दबाने लगा. निर्मला दो ओर से चल रहे इस अनूठे आक्रमण से शीघ्र ही कामोत्तेजित हो गई.
देवेश ने उनको बिस्तर की ओर खींचा और निर्मला को बिस्तर पर लिटा दिया. निर्मला ने जब देवेश के लंड को देखा तो उसका मन ललचा गया. अपने हाथ में लेकर उसने हल्के से उसे ऊपर आने का संकेत दिया. देवेश ने अपने लंड को निर्मला के मुंह के पास जाकर रोक दिया. निर्मला की लहराती जीभ ने उसके सुपाड़े को चाटा और देवेश ने अपने लंड को उसके मुंह में डाल दिया. निर्मला उसके लंड को चूसने में व्यस्त हो गई.
रितेश ने निर्मला के मम्मों पर अपना ध्यान रखा तो जयेश ने निर्मला के पैरों को फैलाकर उसकी कुलबुलाती रस से चिपचिपाती चूत पर अपने मुंह को लगाया और चाटने लगा. निर्मला की चूत इतना रस छोड़ चुकी थी कि कुछ पल तो जयेश को उस रस को ही चाटने में लग गया. इसके बाद उसने अपनी जीभ से निर्मला की चूत, भग्न पर आक्रमण किया तो निर्मला की चूत फिर पानी छोड़ने लगी. जीभ को अंदर सरकाते हुए अब वो निर्मला के अंदरूनी अंग का भी स्वाद लेने लगा.
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रागिनी का घर:
कुछ ही देर में निमिष भी आ गया काव्या से मिलने के बाद वो नहाने चला गया. खाना लगाने के बाद नौकर अपने कमरों में चले गए. लव अपने कमरे से निकला और काव्या को देखकर ठगा सा रह गया. अपनी माँ और मौसी तक सीमित लव को इतनी सुंदर लड़की को देखकर आकर्षित तो होना ही था. फिर काव्या भी उसकी ही आयु श्रेणी में थी. कुछ देर की हिचकिचाहट के बाद वो सामान्य हो गया, इसमें काव्या का भी योगदान था.
खाने के बाद कुछ देर तक बैठकर सबने एक दूसरे के परिवार के बारे में बात की. फिर काव्या ने लव से कहा कि अगर उसने अपना सामान आज रत नहीं लगाया तो वो उसे कल नहीं ले जाएगी.
“वैसे अगर तुम्हारे भाई भी आ जाते तो अधिक आनंद आता.” निमिष ने कहा.
“वो अपने किसी मित्र का मनोरंजन कर रहे हैं. लगता नहीं कि रात भर भी उनके लिए समुचित रहेगी.” काव्या ने कहा.
“ओह, समझा! अच्छा है, इस समय में इस प्रकार के संबंध बनाने से आगे के कार्यों में सरलता रहेगी और सफलता भी मिलेगी.”
काव्या निमिष के संकेत को समझ गई. “यही सोच कर ही मैंने ये प्रबंध किया. भाई तो डरे हुए थे, पर मुझे विश्वास था. और इसके बाद भी हमें उनसे किसी न किसी रूप में मिलते ही रहना है.”
“वैसे अगर मैं सही हूँ तो निर्मला ने ऐसा पहली बार किया होगा. पर ये उन दोनों के लिए अच्छा ही है.”
“आप जानते हैं उनको?”
“उसका पति मेरे ही बैच का है. अभी केंद्र में पदस्थ है, लौटने के तीन वर्ष के पहले कोई संभावना नहीं है. तब तक अगर निर्मला केंद्र में चली गई तो ये दूरी बनी ही रहेगी. वैसे उनकी छोड़ो, अपनी बताओ. मेरी पत्नी का ध्यान तो रखोगे ने अच्छे से?”
निमिष ने रागिनी को देखकर हँसते हुए बोला। “वैसे मुझे ये कार्यक्रम रागिनी से अधिक लव के लिए उपयुक्त लगा. माँ और मौसी के अतितिक्त उसका कोई अनुभव नहीं है. और तुम्हारे विस्तृत परिवार में उसे विभिन्न कलाओं का ज्ञान मिल सकेगा, जो इसके जीवन में अत्यधिक काम आएगा.”
लव ये सुनकर प्रसन्न हो गया. “थैंक यू, पापा.”
“तो क्यों न इस शुभ कार्य का आरम्भ आज से ही किया जाये? क्यों रागिनी? अगर काव्या को स्वीकृत हो तो अपने कक्ष में चलें?”
काव्या ने सहमति दी और उठकर लव के हाथ को पकड़ा, “लव, आज से तुम मेरा दायित्व हो. वैसे तो मेरी मम्मी निर्णय लेंगी, पर तुम्हारी हर समस्या या दुविधा का निराकरण आज से मैं ही करुँगी। दिशा भाभी भी इसमें सहयोग करेंगी, पर तुम मेरे छोटे भाई हो, तो ये मेरा अधिकार है. अब मैं भी किसी से बड़ी हूँ, ये सोचकर भी अच्छा लग रहा है.”
“ओके, दीदी. मुझे भी अब मेरी एक और दीदी मिल गई.”
सब रागिनी और निमिष के शयनकक्ष में आ गए.
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नलिनी का घर:
रितेश का लंड भी अकड़ा हुआ था पर अब तक उसकी ओर निर्मला का ध्यान ही नहीं गया था. इसीलिए रितेश को ही पहल करनी पड़ी और वो भी देवेश के साथ जाकर अपने लंड को निर्मला के सामने लहराने लगा. देवेश ने सुझाव दिया कि अगर निर्मला आसन बदले तो वो उन दोनों के लंड चूस सकती है और जयेश भी उसकी चूत को चाट सकेगा. निर्मला घोड़ी बन गई और अब दोनों भाइयों के लंड को एक एक करके चूसने लगी.
पर जयेश का लक्ष्य अब कुछ और ही था. घोड़ी बनते ही निर्मला की मस्त कासी गांड को देखकर उसके मन में लड्डू फूट पड़े. दोनों नितम्बों को फैलाते हुए उसने अंदर झाँकने का प्रयास किया, पर कई महीनों से बिना चुदे होने के निर्मला की गांड बहुत कस गई थी. ये जयेश के लिए एक चुनौती थी. उसने अपनी जीभ से उस खुरदुरे भूरे तारे को चाटा तो निर्मला की सिसकारी निकली और शरीर में कम्पन हुआ. ये जयेश को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त था.
“भैया,” जयेश ने कहा, उसकी आँखों के सामने निर्मला की गांड उसके परिश्रम से खुल बंद हो रही थी. “अब मुझसे नहीं रुका जा रहा. मेरा मन इस गांड को अभी चटकाने को बेचैन है.”
उसकी बात सुनकर देवेश और रितेश हंस पड़े. निर्मला ने भी अपने मुंह से लंड निकाला और बोली, “ओह, गांड चटकाना, ये तो मैंने पहली बार सुना है. अब इसे रोको मत चटका लेने दो.”
निर्मला ने कहा और रितेश के लंड को मुंह में भर लिया. पर उसका ध्यान अपनी गांड पर ही था. गांड पर जयेश के लंड का आभास होने पर उसने अपनी गांड को ढीला छोड़ दिया. जयेश के टोपे ने प्रवेश किया तो निर्मला को एक सुखद अनुभूति हुई.
“भैया इनकी गांड….” इससे पहले कि जयेश भावावेश में और कुछ कहता देवेश ने उसे रोक दिया, “जानता हूँ. मक्खन से भी अधिक नर्म और भट्टी से भी अधिक गर्म है. तेरा ये डायलॉग पुराना हो गया है.”
जयेश को अपनी भूल का आभास हुआ, वो अगर अपने परिवार की किसी स्त्री के बारे में बोल देता तो लेने के देने पड़ सकते थे.
“जी, भैया वही, अब नए डायलॉग कहाँ से सोचूँ ? पर गांड सच में बहुत तंग है. ऐसा लगता है कि मैडम १८ वर्ष की ही हैं.”
निर्मला की गांड में बहुत समय बाद किसी लौड़े ने प्रवेश किया था तो उसे कुछ असहजता हो रही थी. पीड़ा नहीं थी. पर अपनी तुलना १८ वर्ष की लड़की से सुनकर उसे बहुत अच्छा लगा. जयेश अपने लंड को उसकी गांड में डालते हुए अंतिम छोर तक पहुंच गया. निर्मला जानती थी कि खेल अब आरम्भ होगा. पर पूरा लंड लेने के बाद उसे कोई विशेष कष्ट नहीं था. वो अब अपनी गांड के चटकने का आनंद ले सकती थी.
अपने मुंह से लंड निकालकर निर्मला ने कहा, “तो अब चटकाओ न गांड, देखूँ कितना दम है तुम्हारे लौड़े में.”
ये सुनकर रितेश ने निर्मला के सिर पर हाथ रखकर अपना लंड बाहर निकाल लिया. ये उसकी प्रबुद्ध सोच थी, क्योंकि निर्मला की बात सुनकर जयेश ने अपने लंड को बाहर निकालकर एक शक्तिशाली धक्का मारा कि निर्मला की आत्मा काँप गई. अगर रितेश ने लंड बाहर न निकाला होता तो वो अवश्य ही उसे काट लेती.
“उई उई माँ, मार दिया रे. ऐसे थोड़े हो बोला था.” निर्मला ने सिसकते हुए कहा.
जयेश ने गति कम की और पूछा, “तो कैसे बोला था? अपने दम देखने के लिए कहा था न? तो देखो दम.”
देवेश ने बात संभाली, “जयेश, मैडम का ये अर्थ नहीं था. अच्छे से प्यार से मारो. मैडम ने बताया था न कि कई दिन से किसी ने नहीं मारी है गांड. चलो सॉरी बोलो और प्रेम से गांड मारो.”
“सॉरी मैडम.” जयेश ने कहा और फिर अपने लंड को एक सामान्य गति से निर्मला की गांड के अंदर बाहर करने लगा.
निर्मला के आँसू थम गए और वो रितेश के लंड को चूसते हुए गांड मरवाने का आनंद लेने लगी. वो देवेश और रितेश के लंड बारी बारी से चूसने लगी. जब गांड थोड़ी ढीली होती हुई प्रतीत हुई तो जयेश ने गति बढ़ाई और निर्मला ने भी अपनी गांड को उछालते हुए उसका साथ दिए. बस कुछ ही देर में जयेश के लंड का पिस्टन निर्मला की गांड में धकाधक चलने लगा और निर्मला को भी पूर्ण आनंद आने लगा.
जब जयेश झड़ने लगा तो लंड बाहर निकालकर उसने निर्मला की गांड और पुट्ठों पर अपना रस छोड़ दिया. फिर बाथरूम से एक गिल्ला तौलिया लेकर उसे पोंछ दिया. निर्मला को अपनी गांड खाली होते ही मानो एक शून्य का अनुभव हुआ. उसने बिस्तर पर लेटते हुए अपने पैरों को फैलाया और देवेश को चुदाई के लिए खुला आमंत्रण दिया. देवेश ने भी एक पल की देर किये बिना उसकी चूत पर लंड लगाया और मंथर गति से उसे चोदने लगा.
“थोड़ा तेज करो, प्लीज़।” निर्मला ने विनती की. देवेश एक सभ्य पुरुष के समान उसकी चुदाई अब अधिक गति से करने लगा. निर्मला की कई दिन से चुदाई नहीं हुई थी और उसकी चूत भी कसी हुई थी, और इसी कारण दोनों को इस चुदाई में असीम आनंद मिल रहा था. रितेश अपने लंड को निर्मला के मुंह में डालने का असफल प्रयास कर रहा था.
“भैया, मुंह छोड़ो, मैडम की गांड मारो. बहुत मस्त मखमली गांड है.” जयेश ने अपना अनुभव बताया.
देवेश, “क्या कहती हैं मैडम? दोनों साथ साथ झेल पाएंगी?”
निर्मला को इतने दिनों के बाद ऐसा सुख मिला था तो वो किसी भी सुझाव के लिए तैयार थी.
“ठीक है, पर थोड़ा ध्यान रखना. मैंने ऐसा पहले कभी किया नहीं है.”
“चिंता न करो मैडम, हमने ऐसा कई बार किया है. आप देखना कि आनंद और स्वर्ग की सैर किसे कहते हैं.” देवेश ने विशवास दिलाया।
अब देवेश लेट गया और निर्मला ने उसकी सवारी गाँठ ली. देवेश ने उसकी पीठ पकड़ कर उसे अपने ऊपर झुका लिया.
“जयेश सही कह रहा है. क्या गांड है. ऐसी गांड तो जवान लड़कियां भी नहीं पाती हैं.” रितेश ने अपने लंड को गांड के छेद पर रखते हुए कहा.
निर्मला को ये सुनकर स्वयं पर गर्व हुआ. देवेश ने निर्मला को थोड़ा उठाते हुए अपने लंड को बाहर निकाला और मात्र सुपाडे को ही अंदर रहने दिया. दुहरी चुदाई में कहीं निर्मला को कष्ट न हो इसके लिए ये आवश्यक था. रितेश ने अपने लंड को गांड में डाला और चूँकि जयेश ने उसकी राह सरल कर दी थी तो लंड ने कुछ ही समय में अपना रास्ता तय कर लिया. रितेश को भी निर्मला की गांड के कसाव ने अचम्भित कर दिया. अब देवेश ने अपने लंड को अंदर डाला और दोनों लौड़े निर्मला की चूत और गांड में पूर्ण रूप से स्थापित हो गए.
“ओह माँ, ओह माँ. ये क्या है? ऐसा लग रहा है जैसे मेरी चूत और गांड पूरी भरी हुई हैं. ऐसा पहले कभी नहीं लगा.”
“अपने सही समझा है निर्मला जी. और अब आपको जो आनंद मिलने वाला है वो भी आपको पहले कभी नहीं मिला होगा.”
तीनों भाई दुहरी चुदाई करने में पारंगत थे और एक साथ एक ही लय में दोनों ने एक सधी गति के साथ निर्मला को चोदना आरम्भ किया. निर्मला कुछ समय तक तो सामान्य रही पर उसके बाद उसके शरीर ने उसका साथ छोड़ दिया. आनंद की पराकष्ठा किसे कहते हैं ये उसने आज जाना था. दोनों भाई अपने अनुभव का उपयोग करते हुए उसे भिन्न भिन्न गति और लय से चोदने में जुट गए. निर्मला आनंद के उन्माद में बह गई.
उसकी चूत पानी छोड़ रही थी तो गांड लपलपा रही थी. दोनों विलक्षण लौड़े उसे एक ऐसे धरातल पर ले जा रहे थे जिसकी उसके मन ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. इस कामोन्माद में जब जयेश ने अपने लंड को उसके मुंह के सामने किया तो उसने बिना हिचक उसे मुंह में ले लिया और चूसने लगी. उसे एक क्षण भी ये ध्यान में नहीं आया कि जयेश ने उसकी गांड मारने के बाद लंड को धोया भी था या नहीं.
इसके बाद तो निर्मला ने अपने सादे साधारण रूप को त्यागा और एक चुदक्क्ड़ स्त्री के समान उन तीनों के हाथों (या कहिये लौडों) को समर्पित कर दिया.
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रागिनी का घर:
रागिनी काव्या से बहुत प्रभावित हुई थी. जिस प्रकार से उसने लव को अपने संरक्षण में लिया था वो दिशा ने भी नहीं किया था. हालाँकि तब लव भी छोटा था और दिशा के बाहर जाने से संबंध उतने प्रगाढ़ नहीं रह पाए थे. उसने काव्या को बुलाया.
“काव्या, देखो. मैं चाहती हूँ कि तुम आज इन दोनों के साथ आनंद लो. मैं तो कल से वैसे भी तुम्हारे साथ चल ही रही हूँ.” रागिनी ने फिर अपना त्याग का स्वरूप दिखाया.
“नहीं, जितना कल से आपको मिलन का आनंद मिलेगा उतना ही हम दोनों को भी. मैं तो कहूंगी की पहले हम दोनों अंकल के ऊपर धावा करें. उसके बाद लव को भी जोड़ लेंगे. वैसे भी वो दो सप्ताह आपके बिना रहने वाले हैं?”
काव्या की बात से रागिनी को सहमत होने में कोई आपत्ति नहीं थी.
“क्या खिचड़ी पक रही है?” निमिष ने सबके लिए पेग बनाते हुए पूछा.
“आपको बता देंगे, थोड़ा धैर्य रखिये.” रागिनी ने हंसकर कहा और उसके हाथ से अपना पेग ले लिया. काव्या ने भी अपना पेग लिया और अंत में लव ने बियर ली और चारों बैठ गए.
“ये अचंभा ही है कि हमारे विस्तृत परिवार में इस प्रकार के संबंध हैं. पर इसका आनंद भी अनूठा है, क्यों रागिनी?” निमिष ने पूछा.
“बिलकुल सही. अब तो जैसे ये जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. जहाँ सपथ में एक दो बार ही चुदाई का मन करता था अब बिना चुदे कुछ घण्टे भी निकालना कठिन होता है.”
“मौसी कैसी हैं?” लव ने पूछा तो सब उसकी ओर देखने लगे.
“अच्छी हैं, तेरी बहुत बात करती हैं. उन्होंने मुझे दस बार कहा कि तेरे बिना न आऊँ. पर अगर आज तुमने बैग नहीं लगाया तो मुझे उन्हें निराश करना होगा.” काव्या ने कहा.
“मैं अभी आया.” ये कहकर लव दौड़कर कमरे इ निकल गया. तीनों एक दूसरे को देखकर हंस पड़े.
“ये तुमने सही युक्ति निकाली,काव्या।” रागिनी ने कहा और निमिष को काव्या और उसके बीच हुई सलाह के बारे में बताया. अब कोई भी पुरुष दो दो स्त्रियों से सम्भोग का स्वप्न तो देखता है पर पूरा कितनों का होता है, ये सर्वविदित है. ऊके चेहरे के हर्ष के भावों ने ही रागिनी और काव्या को भी एक संतोष दिया.
“क्या लव की प्रतीक्षा करें?” काव्या ने पूछा.
“करना ही होगी, पर कपड़ों में नहीं.” रागिनी ने कहते हुए खड़े होकर कपड़े उतारने आरम्भ किए. काव्या और निमिष ने भी अनुशरण किया और फिर अपने पेग पीने लगे.
जिस प्रकार से दौड़कर लव गया था उसी प्रकार से लौटा और काव्या को अपने फोन से अपना अमन दिखाया.
“मेरा अच्छा भाई. पर अब तुम्हें कुछ समय के लिए केवल दर्शक की भूमिका निभानी है. वो क्या है कि तुम्हारे पापा इतने दिन तक अकेले रहेंगे न, तो मैं और तुम्हारी मम्मी पहले उनकी सेवा करेंगी. ठीक है.”
लव ने मन मसोस कर कहा, “जी दीदी. बिलकुल ठीक है.”
अपने लिए एक और बियर ली और बैठ गया. फिर उसे ध्यान आया कि सभी नंगे हैं, तो वो भी आननफानन में नंगा होकर बैठ गया. रागिनी और काव्या ने निमिष के दोनों और बैठते हुए उसे चूमना आरम्भ किया और काव्या ने नीचे झुकते हुए उसके लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी. रागिनी उसके होंठों को चूम रही थी. कुछ समय के बाद दोनों उसे बिस्तर की ओर ले चलीं.
“काव्या ने तो मुझे चूस लिया है, अब मुझे भी उसका स्वाद लेना है.”
“ठीक है, तब तक मैं आपके लंड को खड़ा रखती हूँ.”
पर ये कहना सरल था करना दूभर. तो इसका ये समाधान निकला कि काव्या घोड़ी बन गई और निमिष उसकी चूत चाटने लगा. रागिनी नीचे लेटी और निमिष के लंड को चूसने लगी. काव्या की रसीली चूत के रस के स्वाद और सुगंध से निमिष का मन प्रफुल्लित हो गया. चूत से उसका ध्यान रह रह कर उसकी गांड पर भी जाता जो मानो उसे आमंत्रित कर रही थी. तो निमिष उसे भी चाटने लगा. चूत और गांड दोनों के बीच थिरकती उसकी जीभ दोनों प्रकार के स्वाद और सुगंध का आनंद ले रही थी.
रागिनी को लगने लगा कि कहीं निमिष उसके मुंह में ही न झड़ जाये तो उसने उसकी गांड थपथपाई और नीचे से हट गई. निमिष ने अपने लंड के मुक्त होते ही उसे काव्या की चूत पर लगाया और उसे चोदने लगा. रागिनी जाकर काव्या के आमने बैठ गई और काव्या ने इस बार उसकी चूत को चाटने का दायित्व उठाया. तीनों एक अच्छी लय में चुदाई में लीन हो गए.
सच तो ये था कि निमिष को इस आयु की लड़की को चोदने का कभी अवसर ही नहीं मिला. रागिनी से विवाह के बाद जब तक उसे अन्य त्रियों का सान्निध्य मिला वे भी इतनी कम आयु की नहीं थीं और न ही अविवाहित ही थीं. इसी कारण निमिष को भी एक नया आनंद मिल रहा था. उसका लंड काव्या की चूत में इतना सट के जा रहा था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. उसने मन ही मन रागिनी का धन्यवाद किया कि उन उसे पहले अवसर दिया और अपने पुत्र प्रेम में पड़कर लव को नहीं.
कुछ देर इस आसन में चुदाई के बाद निमिष और काव्या सामान्य आसन में आ गए और निमिष उसके ऊपर चढ़कर उसे चोदने लगा. रागिनी ने जाकर काव्या के मुंह पर अपनी चूत को रखा और काव्या उसके रस से भीगते हुए उसकी चूत को चाटने लगी. लव बैठा ईर्ष्या से देखता रहा.
जब निमिष ने झड़ने की घोषणा की तो रागिनी हटकर उसके सामने आ गई और निमिष ने लंड निकालकर उसके मुंह में दे दिया. रागिनी ने अपने पति के रस की हर बून्द को पी लिया और फिर निमिष के हटने के बाद काव्या की चूत भी चाटकर साफ कर दी. वो अपने बेटे के लिए काव्या की चूत को चाट रही थी.
कुछ देर के विश्राम के बाद ये निर्णय लिया गया कि निमिह अपनी पत्नी की गांड मारे और तब तक लव को काव्या की चूत का आनंद दिया जाये. कुछ ही देर में ये मेल भी घटित हो गया. रागिनी अपने पति के लंड को गांड में लेकर आनंदित हो रही थी तो लव को भी काव्या की चूत का सुख भोगने मिल रहा था.
इस बार भी निमिष ने अपने रस का भोग रागिनी को ही कराया और लव ने काव्या को अपने रस से अनुभूत किया.
“सच में बहुत आनंद आ रहा है, इस प्रकार से. है न मम्मी?” लव ने ख़ुशी से बोला।
“हाँ बेटा पर अभी और भी जोड़ हैं जिन्हें अनुभव करना है.”
ये सुनकर लव की बांछे खिल गयीं. उसे ये तो समझ आ गया था कि चूत हो या गांड जिसमें उसके पिता का लंड नहीं गया होगा वहाँ उसके लंड को भी स्थान नहीं मिलने वाला था. तो इस बार अवश्य उसकी माँ की गांड मारने का सुअवसर मिलना था. और हुआ भी यही. इस बार रागिनी की गांड मारने के लिए लव को बुलावा आया और काव्या की गांड के लिए निमिष को.
तो इसी शृंखला में लव ने अपनी माँ की गांड मारी और काव्या की गांड का आनंद निमिष को मिला. निमिष आज धन्य हो गया था. उन निर्णय किया कि टूर समाप्ति पर वो दिशा की ससुराल जायेगा और सम्भव हो पाया तो दिशा और अन्य बहुओं की भी चुदाई करने का प्रयास करेगा. इसके लिए वो छुट्टी का आवेदन कल ही डाल देगा. रागिनी और काव्या की गांड की सेवा करने के बाद लम्बे विश्राम की आवश्यकता पड़ी. परन्तु विश्राम केवल लौडों को ही चाहिए था जिन्हें खड़े होने के लिए समय चाहिए था.
एक एक पेग और पीने के बाद इस बार रागिनी और निमिष बैठे रहे और अपने लाड़ले को काव्या की गांड मारते हुए देखा और उस पर गर्व किया कि वो अब इतना प्रशिक्षित हो गया है कि काव्या को अच्छे से चोद पाया. रागिनी ने उसके लंड को चाटकर काव्या की गांड को भी फिर से सुगम कर दिया. काव्या समझ गई कि अब बाप बेटे से चुदने का अवसर मिलना है. अब तक तीन घंटे बीत चुके थे पर किसी की भी इस खेल को विराम देने की इच्छा नहीं थी.
रागिनी ने निमिष से कहा कि उसकी दुहरी चुदाई की कोई इच्छा नहीं है और अगर काव्या सहमत हो तो वो दोनों उसे चोद सकते हैं. काव्या ऐसे सुनहरे अवसर को कैसे छोड़ सकती थी. तो अगले बीस मिनट तक दोनों बाप बेटे ने उसकी बदल बदल कर एक साथ चूत और गांड मारी. कभी निमिष गांड मारता और लव चूत तो कभी इसका उल्टा. इतनी बार डबल चुदाई करने के बाद भी काव्या को इस प्रकार से बदल बदल कर चुदने का अवसर ही नहीं मिला था.
इस बार काव्या ने हठ करके दोनों का रस पिया और फिर रागिनी ने उसकी चूत और गांड को साफ किया. इसके बाद लव काव्या को सोने के लिए अपने कमरे में ले गया और निमिष और रागिनी अपने कमरे में सो गए.
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अगले दिन सुबह:
रागिनी का घर:
काव्या ने उठकर लव को उठाया तो वो कुनमुनाने लगा.
“क्या दीदी, कितना बजा है?”
“चल उठ, हमने चलना भी है. अब अपना बैग दिखा क्या रखा है? बाद में मत रोना वहाँ जाकर.”
“मॉम ने कहा ये आपसे, है न?”
“वो भी है, और अब मैं तेरा ध्यान रखने वाली हूँ तो खोल इसे.”
लव उठकर बैग को बिस्तर पर रखने को बाद खोलकर बाथरूम चला गया. लौटा तो काव्या को एक पुस्तक हाथ में लेकर हँसते हुए देखा.
“दीदी!” लव ने झपटकर उसे छीनना चाहा.
“तो ये है तुम्हारे मन में.” काव्या ने पुस्तक को हिलाते हुए पूछा.
“तो क्या आप मुझे वहाँ किसी और उद्देश्य से ले जा रही हैं.”
काव्या ने उसके हाथ में पुस्तक थमाई, “कामसूत्र के ८४ आसन” और बोली, “जब तू यहाँ लौटेगा न तो ऐसी अपनी पुस्तक लिख पायेगा. इतने आसन में चुदाई करने मिलेगी जो इनमें भी नहीं हैं.”
लव ने पुस्तक बैग में रखी, “मुझे यही तो पुष्टि करनी है कि कोई छूट न जाये. वैसे बैग में सब ठीक है न?”
“हाँ, चल अब चलते हैं. नाश्ते के बाद निकलना जो है.
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नलिनी का घर:
निर्मला ने उठकर अंगड़ाई ली और अपने शरीर को देखा. रात भर की कामक्रीड़ा के कारण उसके शरीर पर कई स्थानों पर लालिमा थी. उसके अंग प्रत्यंग में पीड़ा थी, पर एक सुखद पीड़ा. रात भर उसे तीनों भाइयों ने हर प्रकार से चोदा था. कोई भी छेद नहीं था जहाँ तीनों के लौडों ने पदापर्ण न किया हो. वो स्वयं भी अचम्भित थी कि उसने उन्हें लगभग पूरी रात भोगा था. पर उसका तन और मन दोनों प्रसन्न और संतुष्ट थे.
एक बार दुहरी चुदाई आरम्भ होने के बाद उसके तीनों छेदों में लंड बदलते रहे थे. उन न जाने कितना वीर्य पिया था. और हर पेय में उसे अपनी चूत और गांड को चखने का अवसर मिला था. क्या वो इस प्रकार में सच में रात भर चुदी थी? अपने दोनों ओर लेटे उन भाइयों को देखकर उसे विश्वास करना ही पड़ा.
वो धीरे से बिस्तर से उतरने लगी तो किसी ने उसकी बाँह थाम ली.
“मैडम, बाथरूम जाकर लौट आओ, एक बार और हो जाये.” देवेश ने उससे कहा तो वो मुस्कुराते हुए बाथरूम चली गई. इस रात की सुबह नहीं थी. ये तीनों चुदाई की विलक्षण शक्ति रखते थे. बाथरूम से निकलकर उसने देखा तो तीनों के लंड तमतमाए हुए थे. वो मटकते हुए उनके बीच चली गई.
“क्या हम ये हर महीने में दो बार कर सकते हैं?”
“क्यों नहीं, पर हर बार मैं नहीं आ पाऊँगा पर आपके लिए कम से कम तीन लंड का प्रबंध अवश्य कर दूँगा, बस एक दो दिन पहले बता दीजियेगा.”
ये कहते हुए देवेश ने निर्मला को रिष के लंड पर चढ़ाया और पीछे जाकर उसकी गांड मारने लगा.
सुबह का आरम्भ चुदाई से हो तो दिन शुभ ही निकलेगा. यही सोचकर निर्मला आनंद के सागर में हिचकोले खाने लगी.
क्रमशः
Aisa zulm naa karo bhaiतीन दिनों में केवल Lib am और Mass भाइयों ने कुछ कहने की आवश्यकता समझी।
ये कहना कि मैं निराश हूँ अतिश्योक्ति नहीं होगी।
अब चूँकि ओखली में सिर डाला है तो इस कहानी को समाप्त करने के बाद नई का विचार त्याग दिया है.
मेरा समय इतना भी व्यर्थ का नहीं है कि बिना किसी के चाहे हुए भी मैं आगे लिखता रहूँ।
इस कहानी के पहले मैं दस और अध्याय लिखना चाहता था, पर अब चार या पाँच में ही इसकी विदाई कर दूँगा।