ससुराल की नयी दिशा
अध्याय 31 : रागिनी का आगमन
अब तक:
काव्या ने रागिनी के घर में लव और निमिष से भेंट की और अपने भाइयों के लिए निर्मला को मना लिया था. अब घर लौटने का समय था.
अब आगे:
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काव्या ने लव के सामान को देखा और फिर रागिनी को बताकर कि वो अभी लौटेगी नलिनी के घर चल पड़ी. उसे निर्मला को उसके घर जो छोड़ना था. जब वो नलिनी के घर पहुंची तो निर्मला लौटने के लिए तैयार थी. अधिक न बोलते हुए उसने अपने भाइयों से निकलने के लिए कहा. उन्हें नाश्ते के लिए रागिनी के घर जो जाना था. काव्या निर्मला को लेकर निकल गई और तीनों भाइयों ने भी नहाने के बाद रागिनी के घर जाने के लिए गाड़ी निकाल ली.
काव्या: “मैडम, आशा है सब आपके अनुरूप रहा होगा.”
निर्मला: “उससे भी अच्छा. देवेश ने वचन दिया है कि वो हर दो सप्ताह में इस प्रकार का आयोजन करेगा. परन्तु ये भी कहा कि वो हर बार न होगा, पर तीन तो होंगे ही.”
काव्या ने इस विषय में कुछ न कहा, “अगर भैया ने बोला है तो आप निश्चिन्त रहिये कि ऐसा ही होगा. परन्तु आपको ये भी देखना होगा कि मैं भी आपके लाने लौटाने के लिए नहीं रहूँगी। तो कोई और प्रबंध करना होगा. फिर देवेश भैया की सास लौट आयीं तो ये घर भी नहीं रहेगा. मैं भैया से बात करुँगी कि वो क्या करना चाहते हैं. मैं आपको बता दूँगी।”
कुछ ही देर में निर्मला का घर आ गया और उसे छोड़कर काव्या रागिनी के घर चल पड़ी. वहाँ पहुंचने के साथ ही कुछ देर में तीनों भाई भी आ गए. रागिनी और निमिष ने उनका स्वागत किया. तीनों ने लव को गले लगाया. वो पूरे परिवार का बच्चा जो था, सबसे छोटा. लव को भी अब अपने से बड़े भाइयों का जो प्रेम मिल रहा था उससे उसे बहुत प्रसन्नता मिल रही थी. दिशा के जाने के बाद ये पहली बार था जब उसे इस प्रकार का दुलार मिल रहा था.
नाश्ते के बाद निमिष ने उन्हें यात्रा के लिए शुभकामना दी. फिर रागिनी और लव को गले से लगाकर प्यार किया और फिर सामान को गाड़ियों में रखवाकर उन्हें जाते हुए देखा. फिर वो भी अपने कार्य पर निकल गया.
देवेश की गाड़ी में लव और रागिनी थे. ये रागिनी का ही सुझाव था, वो भी अपने दामाद से मिलना चाहती थी. और लव तो जैसे देवेश की पूँछ सा बन गया था.
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“तो भाई लोगों, कैसी कटी रात?” काव्या ने हँसते हुए पूछा. वे तीनों अब कुछ देर पहले निकले थे और कुछ देर शांति ही थी. काव्या ने ही इसे तोड़ा था.
“निर्मला मैडम तो बिलकुल पटाखा निकली, जैसे कोई लड़ी होती है. एक बार जब उनकी आग जली तो रात भर जलती रही. बहुत प्यासी थी वो. मुझे नहीं लगता कि हम सब दो घंटे से अधिक सो पाए होंगे.”
“गाड़ी चला लोगे, या मैं चला लूँ?” काव्या ने पूछा.
“कुछ देर बाद ले लेना फिर हम दोनों सो लेंगे. घर पर भी कब सोने मिलेगा पता नहीं.”
काव्या: “थोड़ी देर क्यों? चलो मैं चलाती हूँ, मैं रात में ठीक से सोई हूँ. आप दोनों सो जाओ.”
गाड़ी रोककर दोनों भाई पीछे चले गए और काव्या अकेले गुनगुनाती हुई अपने घर की और गाड़ी को लेकर चल दी. कुछ देर में उसने पीछे देखा तो रितेश और जयेश सो चुके थे. एक मुस्कान के साथ उसने उन्हें प्यार से देखा और फिर सड़क पर गाड़ी दौड़ा दी.
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“कैसा संयोग है न देवेश कि हम सब एक ही प्रकार के परिवारों से मिल रहे हैं. जब मैं नलिनी और लव के साथ चुदाई करती थी तो मुझे लगता था कि मैं कितना घ्रणित कार्य कर रही हूँ. परन्तु शरीर की भूख नहीं रुकने देती थी.” रागिनी बोल रही थी. लव भी अपनी माँ की बातें सुन रहा था.
“फिर निमिष ने हमें हमारे ही घर में पकड़ लिया. उस दिन से निमिष में जो परिवर्तन आया वो मेरे जीवन का सबसे सुखद अनुभव है. उन्होंने क्रोधित न होकर हम दोनों का साथ दिया. मेरा जीवन एक नए ही रंग में रंग गया. फिर दिशा और तुम्हारे परिवार के बारे में भी पता चला. रितेश और जयेश के साथ भी चुदाई हुई. जैसे हर क्षण हम लोगों को एक एक करते हुए साथ ला रहा था. कल काव्या ने जिस प्रकार से लव के साथ बड़ी बहन होने का दायित्व निभाया, ये न जाने कब से इसके लिए व्याकुल था. दिशा के जाने के बाद अकेला सा पड़ गया था. और अब इतने सारे भाई, बहन, भाभियाँ और नाना, नानी. एक साथ जैसे उसकी कोई लॉटरी सी खुल गई है.”
लव को आश्चर्य हुआ कि उसकी माँ उसके मन की व्यथा को समझती थीं. इकलौता होना एक प्रकार से अकेलेपन का भी सूचक है. देर से ही सही, अब ये समस्या दूर हो गई थी.
देवेश, “मुझे पहले विश्वास नहीं था कि दिशा हमारे साथ इतनी सरलता से जुड़ जाएगी. मुझे लगता था कि कहीं ऐसा न हो कि वो विचलित होकर बंगलौर जाने का हठ कर बैठे. अगर वो ये कहती तो मैं मना नहीं कर पाता और अपने परिवार को छोड़कर जाना ही पड़ता. पर सौभाग्य से ऐसा नहीं हुआ. फिर मामा का परिवार भी आ गया. पल्ल्वी ने भी दिशा का अच्छा साथ दिया है. अब मामी के परिवार के आने से घर में इतनी चहल पहल है कि एक पल भी सूना नहीं होता. रिया, पल्लू और दिशा बहुत अच्छे से घुल मिल गए हैं. बस अब काव्या अकेली पड़ जाती है. उसके लिए किसी को देखना होगा, जो घर में ही रहने के लिए माने और इस प्रकार के संबंधों से विचलित न हो.”
रागिनी, “वो भी हो जायेगा. सब समय के साथ होगा.”
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दोनों गाड़ियाँ लगभग एक ही समय घर पहुँची। बाहर स्वागत के लिए कोई न था, न ही किसी के होने की अपेक्षा ही थी. सामान गाड़ी में ही छोड़कर सभी घर में अंदर चले गए. दिशा, पल्लू और रिया रसोई में थीं और खाना बनाने में जुटी हुई थीं. बैठक में महेश, भानु और अमोल बैठे बातें कर रहे थे. ललिता, अविका, नलिनी, संध्या और माधवी बाहर के आंगन में बैठी थीं और वो भी अपनी बातों में व्यस्त थीं. अनुज, अनिल, अंकुर, पराग, यश और सत्या बाहर थोड़ी दूर में बैठे हुए थे और बियर पीते हुए गाना इत्यादि चल रहा था. सरिता और पंखुड़ी का कोई अता पता नहीं था. वे अपने कमरे में ही थीं.
जब देवेश, रितेश, जयेश और काव्या ने रागिनी और लव के साथ प्रवेश किया तो सबसे पहले महेश ने ही उन्हें देखा. वो खड़ा हुआ और साथ साथ अमोल और भानु भी खड़े ही गए.
“आ गए तुम लोग?” महेश ने पूछा.
“जी, पापा जी.” काव्या ने आगे बढ़कर अपने पापा के सीने में सिमटते हुए उत्तर दिया. दिशा, पल्लू और रिया रसोई से बाहर आ गयीं. दिशा ने सबसे पहले बढ़कर रागिनी मौसी के पाँव छुए और आशीर्वाद लिया. पल्लू और रिया ने भी यही किया. फिर दिशा ने लव को देखा जो उसे प्रेमभाव से देख रहा था.
“कैसा है मेरा भाई? बहुत बड़ा हो गया है रे तू तो.” दिशा ने उसे गले से लगाते हुए कहा.
“दीदी, आपको तो मेरी याद नहीं आती थी, पर मुझे आपकी बहुत याद आती थी. आप जो कहानियाँ सुनाती थीं न वो मुझे अब भी अच्छे से याद हैं.” लव ने दिशा को जकड़ते हुए उत्तर दिया.
“अब तेरी कहानियाँ सुनने की नहीं, अपनी बनाने का समय है. सुना है तो बहुत लम्बी कहानी लिखता है. माँ और मौसी के साथ.” दिशा ने हँसते हुए कहा, “अब देखें मेरे लिए क्या लिखेगा.”
“अरे दिशा, हमें भी तो मिलने दो तुम्हारे भाई से.” पल्लू ने कहा तो दिशा ने लव को छोड़ा और फिर पल्लू और रिया ने भी उसे गले से लगाकर स्वागत किया. ये करते हुए उन्होंने अपने मम्मों को उसके सीने पर दबाकर उसे आश्वस्त किया कि उसका ध्येय सिद्ध होगा. उनके हाथों ने नीचे जाकर उसके पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया भी.
“हैलो रागिनी. बहुत समय बाद.” महेश ने रागिनी से आँखें मिलाकर पूछा. रागिनी को महेश के साथ बिताई वो दो रातें याद आ गयीं. एक में तो वे दोनों अकेले थे. महेश ने उसे उस दिन बहुत प्रेम और संयम से चोदा था. पर एक अन्य रात में उसके साथ दो और भी लोग थे और उन्होंने उसे जिस निर्ममता से रौंदा था वो उसे आज भी भूला नहीं है. रागिनी उस रात की बात सोच कर काँप गयी.
रागिनी: “जी, बहुत दिन हो गए. आप कैसे हैं?”
महेश: “सब अच्छा है. इनसे मिलो. ये ललिता के भाई भानु हैं. और अमोल इनके साले हैं, इनकी पत्नी अविका के भाई.”
अब तक ललिता के साथ महिला मंडली आ गई और फिर चटर पटर आरम्भ हो गई.
देवेश अपने भाइयों और काव्या के साथ अपने अन्य भाइयों के पास चला गया. जाने के पहले उसने दिशा को अवश्य एक बार चूमकर उसे अपने प्रेम से अवगत करा दिया. देवेश के साथ जब चारों बाहर पहुंचे तो अन्य भाइयों ने उनका स्वागत किया और तुरंत ही उनके हाथ में भी एक एक बियर थमा दी.
“बधाई हो भाई, आपको ये जो काम मिला है, ये बहुत अच्छा हुआ.” अनुज ने कहा.
“सबसे पहले लव से मिलो. ये दिशा का भाई है और उसकी मौसी का बेटा।”
सबने लव को घेर लिया और उसे गले से लगाकर उसका स्वागत किया. लव को अपने भाइयों से इतना प्रेम पाकर बहुत प्रसन्नता हुई.
“धन्यवाद. अब देखा जाये तो और अधिक परिश्रम करना होगा. नहीं तो ठेकेदारों को तो समझते ही हो न?”
“हम सब भी यही बात कर रहे थे. अगर आपको कोई आपत्ति न हो, तो हमें भी इस कार्य से जोड़ लीजिये. हमें भी कुछ अनुभव हो जायेगा और आपके ऊपर भी कुछ बोझ कम हो पायेगा.”
“पापा ने पहले ही ये बात कही हुई है और ऐसा ही करेंगे भी. मैं चाहूँगा कि सप्ताह के तीन दिन एक एक करके तुम सबको वहाँ रहना होगा. एक महीने के बाद रितेश और जयेश को दो दो दिन के लिए वहाँ से हटाया जायेगा. सत्या, ये तुम्हारे लिए कठिन है क्योंकि तुम्हारा कॉलेज खुल जायेगा.”
“नहीं दादा, मैं शनिवार और रविवार को देख लूँगा। अन्य दिनों में भी जब भी कॉलेज समाप्त होगा मैं आ जाऊँगा।” सत्या ने कहा तो उसके समर्पण पर सबको गर्व हुआ.
“रविवार तो काम नहीं ही होगा, शनिवार अवश्य काम चलेगा.” रितेश ने बताया.
लव ने पूछा, “क्या मैं भी?”
देवेश ने उत्तर दिया, “नहीं लव, तुम नहीं. तुम्हारे पिता के पद के कारण तुम्हें इस कार्य से नहीं जोड़ा जा सकता.”
लव: “ओके, मैं समझ सकता हूँ.”
“तो भैया आप लोग रात में क्यों नहीं आये?” अनिल ने प्रश्न किया.
“अपनी बहन से पूछो, हमें ड्यूटी पर लगा दिया था.” जयेश ने कहा तो काव्या हंस पड़ी.
“रात भर चुदाई करने के बाद अब उसे ड्यूटी का नाम दे रहे हो?”
“सच भाई? कौन थी?”
“अरे जो भी थी, तुम्हें भी चोदने का अवसर मिलेगा. हर दो सप्ताह में वो आएगी.”
“अब ठीक है. काम में भी मन लगेगा अच्छे से.” पराग की ये बात सुनते ही सब खिलखिला कर हंस दिए.
इतने में भोजन के लिए बुला लिया गया तो अपनी बियर समाप्त करने के बाद सब अंदर चले गए.
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खाने के बाद फिर उसी प्रकार से गुट बन गए. बहुएं अब रसोई से निकलकर बार प्राँगण में बैठ गयीं. रागिनी को ललिता ने अपने साथ बैठा लिया और अधिकाँश बातें उसके और लव पर ही केंद्रित हो गयीं. रागिनी को भी इस घनिष्ठता से प्रसन्नता हुई और उसके मन में आया कि क्यों न उसकी बहन अपने एकाकी जीवन को छोड़कर यहीं बस जाये. परन्तु उसने इस समय इस बात को छेड़ने का उचित अवसर नहीं समझा.
युवा अपनी बातों में व्यस्त हो गए. तीनों बहुएँ उन्हें दूर से देखकर आनंदित हो रही थीं. लव तो मानो एक नए रूप में था. हालाँकि सभी उससे बड़े थे परन्तु उसे ऐसा आभास नहीं होने दे रहे थे.
“तो क्या सोचा है तुमने, पल्लू?” रिया ने पूछा.
पल्ल्वी जानती थी कि विषय क्या है.
“मैं सच्चाई जानना चाहती हूँ. सोच रही हूँ कि इस शनिवार को घर जाकर देखूं कि क्या चलता है शनिवार रात में?”
“मम्मीजी जाने देंगी? यहां उन्होंने अवश्य कुछ सोचा होगा.”
“अरे यहाँ अभी हर दिन एक समान है. मैं उनसे विनती करुँगी तो वो मान जाएँगी.”
“पर अगर तुम्हें फिर दूध पिलाकर सुला दिया तो?”
पल्लू मुस्कुराई, “अब मैं भी दूध पीती बच्ची तो नहीं हूँ. हमेशा के समान अपने कमरे में ले जाऊँगी। फिर फेंककर सोने का स्वांग करुँगी।”
“ये हुई न बात! वैसे आज रात का क्या कार्यक्रम है?”
“मैं तो लव के साथ रहूँगी, अकेली. बाकी सब अपनी समझ लें.” ये दिशा थी.
“जिस प्रकार बाबूजी लोग तुम्हारी मौसी के तो आगे पीछे घूम रहे हैं, लगता है कि तीनों उन्हें ही पेलने का निर्णय ले चुके हैं.” पल्लू ने हंसकर कहा तो सबने उसका साथ दिया.
“हाँ, और सरिता नानी ने पहले ही कह दिया था कि जयेश और रितेश उनके पास रहेंगे. पंखुड़ी नानी क्या करेंगी, ये पता नहीं.”
“वो न छोड़ने वाली हैं सरिता नानी को अकेले. पर देखते हैं. अंत में तो मम्मीजी ने ही बताना है.”
“चलो अंदर चलते हैं, कुछ देर सो लें, रात को न जाने इसका अवसर मिले या नहीं?” रिया के कहते ही तीनों उठ खड़ी हुईं. उनके पतियों ने ये देखा तो वो भी आ गए और तीनो जोड़े अपने कमरों में विश्राम करने चले गए. कुछ ही देर में अन्य सबने भी उनका अनुशरण किया.
और घर में कुछ समय के लिए शांति छा गयी.
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शाम होने को आई. सभी अपने कमरों से निकलकर बाहर आ गए थे. जैसे ही ललिता बाहर निकली रिया ने तुरंत उनका हाथ पकड़ा और बोली, “मुझे आपसे कुछ बात करनी है, प्लीज.”
ललिता और रिया बाहर आंगन में चले गए.
“क्या हुआ?”
“मामी, बात ये है कि पल्लू इस शनिवार अपने घर जाना चाहती है.” ये कहते हुए उसने ललिता को कारण बताया. “इसीलिए आप हो सके तो शनिवार को कोई कार्यक्रम मत रखना, मेरा अर्थ समझ रही हैं न?”
“ठीक है. एक दिन पहले कर लेंगे. और कुछ?”
“दिशा लव के साथ अकेले सोना चाहती है. अगर आप आज्ञा देंगी तो.”
“इस में कोई आपत्ति हो ही नहीं सकती. देवेश को बता दूँगी।”
“बस इतना ही था.”
“पल्लू को भेजो मेरे पास.” ललिता ने कहा तो रिया ने अंदर जाकर पल्लू को भेज दिया.
“जो भी तुझे अपने घर में पता चले, चाहे हमें बताना या मत बताना, पर हमारे बारे में उन्हें अभी कुछ मत बता देना.” ललिता ने उसे चेतावनी दी.
“जी, बिलकुल.”
“अगर ठीक लगा तो बाद में देखेंगे.” ललिता के इस कथन ने भविष्य को खुला छोड़ दिया.
इसके बाद वे दोनों अंदर गयीं. चाय बनने का समय था. अभी शराब के लिए देर थी. चाय के बाद ललिता ने महेश से बात की और फिर दोनों में कुछ सहमति हुई. दूसरी ओर सरिता ने नलिनी को घेरा हुआ था और उसे रात को आने के लिए कहा. आँखें मटकाते हुए उसने बताया कि आज रितेश और जयेश को भी बुलाया है. नलिनी समझ गई कि सरिता आज क्या करने वाली है. उसने उसकी बात मान ली.
“पर माँ जी, पंखुड़ी माँजी और मेरा क्या होगा?” नलिनी ने पूछा.
“वो मैं रात को बता दूँगी, तुम्हें ऐसे नहीं छोडूँगी।” सरिता ने कहा और ललिता को बुलाकर उसे बता दिया कि आज रितेश और जयेश उनसे साथ ही रहेंगे.
“माँ जी, वैसे दिशा आज लव के साथ है, तो आप चाहो तो देवेश को भी बुला लो.” फिर नलिनी को देखकर बोली, “तुम्हारी बहन के पीछे तो मेरे पति, भानु और अमोल लट्टू हुए घूम रहे हैं. लगता है आज उसे तीनों चोदने का मन बना चुके हैं.” ये कहकर ललिता हँसते हुए चली गई.
नलिनी ने मन में जोड़ा, लव, दिशा, रितेश, जयेश, रागिनी, महेश, भानु, अमोल, उसका और पंखुड़ी की गिनती पूरी हो गई थी. घर के अन्य सदस्यों की भी ललिता कोई न कोई भूमिका बना ही रही होगी. उसे ये पता न था कि संध्या के साथ मिलकर ललिता और अविका ने सब निश्चित कर लिया था. पर इस बार उसकी घोषणा न करते हुए सबको अकेले में बताया जा रहा था.
संध्या ने अविका को अपने पुत्रों अंकुर और पराग के लिए तो अपने लिए अनुज और अनिल सुरक्षित कर लिया था. ललिता ने पल्लू और काव्या के लिए दक्ष और सत्या पर अधिकार जमाया। इस समय माधवी को बुलाकर उसकी राय ली गई. माधवी ने इसका समाधान करने में अधिक देर नहीं लगाई. उसने संध्या से कहा कि वो रिया को अपने साथ रखे. वो स्वयं महेश, भानु और अमोल के साथ चली जाएगी.
“फिर आपका क्या?” माधवी ने ललिता से पूछा.
ललिता ने कहा, “मैंने आज अपने लिए कुछ विशेष सोचा है.”
ये सुनकर अविका आश्चर्य चकित हो गई. पर कुछ बोली नहीं। उसे पता था कि ललिता कोई न कोई प्रबंध अवश्य ही करेगी. ललिता के मन में यही था. जैसा ललिता ने कहा था हर एक को उसके रात्रि के साथी के बारे में बता दिया गया. और जैसे अपेक्षा थी शाम को जब साथ बैठे तो सभी उनके साथी पर ही अधिक केंद्रित थे. सबके लिए उनकी प्रिय ड्रिंक बनाई गई और कुछ ने बैठे हुए तो कुछ ने खड़े खड़े ही उनका सेवन किया. महेश ने ये निर्णय लिया कि वो बैठक के लिए कुछ और सोफे इत्यादि ले लेगा. इसके बारे में उसने ललिता को कहा और ललिता ने भी इसके लिए स्वीकृति दे दी. पर उसका कहना था कि पूरे कमरे को फिर से व्यवस्थित करने की भी आवश्यकता है. महिला मंडली फिर इस बारे में ही विचार करने में गई. आठ बजे खाना लगाया गया. भोजन करने के बाद कुछ देर आंगन में टहलने के बाद सभी अपने निर्धारित कक्ष की ओर अग्रसर हो गए.
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दिशा:
अगर दिशा आज के लिए कुछ चिंतित थी तो लव उतना ही उत्साहित था. उसका एक स्वप्न जो पूरा होने जा रहा था. फिर उसकी आज की अपने भाइयों के साथ हुई गोष्ठी ने भी उसका साहस बढ़ा दिया था. और इसी विचार के साथ वो दिशा के पीछे पीछे उसके मटकते नितम्बों पर आँखें गढ़ाए हुए था. पर उसे आज की रात की ही उत्सुकता नहीं थी. उसने जब से परिवार की अन्य महिलाओं को देखा था तब से वो उन सबके बारे में ही सोच रहा था. अब इस आयु के लड़के से और क्या आशा भी की जा सकती है.
दिशा ने अपने कमरे में जाने के बाद लव को अंदर खींचा और कमरा बंद कर लिया.
दिशा: “देख लव. मैं जानती हूँ कि तुझे लग रहा होगा कि मैं किस प्रकार की स्त्री हूँ जो ये सब करती हूँ. पर इस परिवार में यहाँ आने के पहले मैं ऐसी न थी. परन्तु अब जब मैं इस जीवन शैली में ढह गई हूँ तो मुझे इसमें अपार आनंद आता है.”
लव: “दी, पहले तो मैं आपके बारे में कोई ऐसा विचार रखता ही नहीं हूँ. फिर देखा जाये तो मैं भी कोई दूध का धुला नहीं हूँ. आप तो जानती ही हो कि मैं मम्मी और मौसी दोनों को चोद चुका हूँ. और काव्या दी को भी. मैंने कभी आपके बारे में ऐसा नहीं सोचा है. और मुझे भी इस प्रकार के जीवन शैली में आनंद आ रहा है. तो हम एक ही धरातल पर हैं.”
दिशा: “ओह ओ, मेरा छोटा भाई तो बड़ा बुद्दिमान हो गया है. कितनी सरलता से तुमने मेरी चिंता को दूर कर दिया. मैं सोच रही थी कि न जाने तू मेरे बारे में क्या क्या सोच रहा होगा.”
लव: “दी, मम्मी, पापा ने मुझे सब बताया है. मम्मी को पापा ने अपनी उन्नति के लिए जिस प्रकार से उपयोग किया था वो उनकी एक बहुत क्षीण सोच थी. फिर जब पापा उस पद पर पहुंचे तो उन्होंने भी वही करना आरम्भ कर दिया था. न जाने कब उनके अंदर एक जागरूकता आई जो उन्होंने इस सब से किनारा कर लिया. हाँ, वो मौसी और काव्या दी दोनों को चोद चुके हैं. पर अब बाहर किसी स्त्री को नहीं चोदते। उन दोनों की तुलना में आप श्रेष्ठ हैं. और यही मौसी के लिए भी उपयुक्त है. वो भी कॉलेज के लड़कों से चुदवाती थीं.”
लव दिशा के पास गया और उसकी आँखों में झाँककर बोला, “दी, अगर हो सके तो मौसी को अब यहीं रोक लेना. उन्हें अकेले रहने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैंने देखा कि किस प्रकार से यहाँ सब लोग प्रेम से रहते हैं. मात्र शारीरिक आकर्षण नहीं है, एक दूसरे के लिए प्रेम भी है, अथाह प्रेम जिससे वो इतने दिनों तक वंचित रही हैं.”
दिशा ने लव के माथे को चूमा, “मैं भी यही चाहती हूँ. इनकी मम्मी ने भी यही कहा है. मैं भी माँ से बात करूंगी. मुझे विश्वास है वो मना नहीं करेंगी. फिर अगर वो चाहें तो अपने ज्ञान को यहाँ के विद्यालयों में भी उपयोग कर सकती हैं. अब तुम रुको मैं नहा कर आती हूँ. तब तक तुम चाहो तो वहाँ फ्रिज में से बियर ले सकते हो.”
दिशा बाथरूम में गई और लव ने लपक कर एक बियर निकाली और एक ही घूँट में डकार गया.
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अब घर के दूसरे कमरों में भी एक बार झाँक लेते हैं.
रागिनी और माधवी:
कमरे में प्रवेश करते ही महेश ने रागिनी को एक ओर ले जाकर उससे पूछा, “रागिनी, हम दो बार पहले भी मिल चुके हैं. अगर तुम्हें स्मरण हो तो आज तुम किस प्रकार से चुदवाने की इच्छा रखती हो? हमारे पहले समय जैसे या दूसरे?”
रागिनी की चूत में उस दूसरी रात के बारे में सुनते ही पानी आ गया. उस दिन जिस प्रकार से उन तीनों ने उसके शरीर को रौंदा और भोगा था वो अविस्मरणीय था. और अगर महेश इस प्रकार का प्रस्ताव दे रहा था तो उसे ठुकराने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था.
“दूसरी रात जैसे.” रागिनी ने काँपते स्वर में उत्तर दिया.
“मुझे भी यही आशा थी. पर इसका अर्थ भी समझती ही हो. तुम्हें हम तीनों की हर बात माननी होगी और हर इच्छा पूरी करनी होगी. मैं अमोल के बारे में अधिक नहीं जानता, पर भानु अगर चाहे तो बहुत कठोर और निर्मम हो सकता है. अगर किसी भी समय तुम्हें असुविधा हो तो तुम “दिशा, दिशा, दिशा” कहना, तीन बार दिशा. फिर मैं संभाल लूँगा।
रागिनी की ये बात सुनकर गांड फट गयी कि उसने गलत चयन तो नहीं कर लिया. महेश मुस्कुराया.
“चिंता न करो, इसका अवसर नहीं आएगा. पर मैं सावधानी में विश्वास रखता हूँ.”
ये दोनों जब बातें कर रहे थे तब तक अमोल और भानु नहाकर लौट चुके थे. दोनों ने केवल तौलिया पहना था. महेश ने कहा कि वो भी स्नान करने जा रहा है. उसके बाद रागिनी भी जा सकती है.
रागिनी जब नहाकर लौटी तब तक महेश ने भानु और अमोल को रात्रि की योजना समझा दी थी. दोनों उत्साहित थे और आज की रात की चुदाई के लिए उत्सुक भी. तभी माधवी ने लहराते हुए कमरे में प्रवेश किया. उसने सबकी ओर देखा और मुस्कराते हुए गांड मटकाते हुए बाथरूम में घुस गई. और फिर लौटी तो उसके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था.
“मैं इस पार्टी में जुड़ सकती हूँ?” उसने इठला कर पूछा.
“नेकी और पूछ पूछ!” महेश ने उत्तर दिया और उसे निकट आने का निमंत्रण दिया.
माधवी मटकती हुई जाकर महेश को गोद में जा बैठी.
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सरिता, पंखुड़ी और नलिनी:
सरिता और पंखुड़ी अपने कमरे में थे. अभी नलिनी को आने में समय था. कुछ देर तक जयेश और रितेश भी आने वाले नहीं थे. पंखुड़ी को जिज्ञासा थी कि आज का ऐसा क्या विशेष कार्यक्रम है? उसने सरिता से पूछा.
“चलो बाथरूम में, वहाँ बताती हूँ.” ये कहते हुए सरिता ने एक गिलास में व्हिस्की ली और बाथरूम की ओर चल दी. पंखुड़ी उसके पीछे पीछे आई.
“पहले मेरा मुंह मीठा करो. और इस ग्लास को भी भरो.” सरिता ने पंखुड़ी को कमोड पर बैठाते हुए कहा.
पंखुड़ी समझ गई कि सरिता की क्या इच्छा थी. और उसे उसकी ये इच्छा पूरी करने में कोई आपत्ति नहीं थी. उसने अपनी साड़ी को उठाया और कमोड पर फिर से बैठी. सरिता ने उसकी चूत पर मुंह लगाया और उसे हल्के से चाटा। पंखुड़ी की चूत से मूत्र की एक धार निकली और सरिता के मुंह में समा गई. कुछ घूंट पीकर सरिता ने मुंह हटाया और उसके चेहरे पर वो धार गिरने लगी. सरिता ने ग्लास को उठाया और व्हिस्की से भरे ग्लास को पंखुड़ी के मूत्र से भर लिया.
एक दो घूंट में अपने ग्लास को रिक्त करने के बाद सरिता ने कहा कि वो और व्हिस्की लेकर आती है. कमरे में जाकर उसे फिर भर लाई.
“कुछ बचा है?”
“हा हा हा, अधिक तो नहीं पर इसे तो भर ही सकती हूँ.” पंखुड़ी ने उत्तर दिया. ग्लास को पंखुड़ी की चूत पर लगाने के बाद पंखुड़ी ने उसे किसी प्रकार से भर ही दिया.
“इसे बाद में पियूँगी.”
फिर अपने मुंह को साबुन से धोकर सरिता ने पंखुड़ी से कहा, “आज मेरे दोनों नाती मेरी गांड मारने वाले हैं.”
पंखुड़ी को इसमें कोई अचरज नहीं हुआ. पर जो सरिता ने आगे बोला उसे सुनकर उसकी ऑंखें फ़ैल गयीं.
“एक साथ. दोनों मेरी गांड एक साथ मारने वाले हैं. गांड में दो दो लंड लेने वाली हूँ मैं आज.”
“क्या कह रही हो, सरिता? क्या ऐसा भी हो सकता है?”
“हाँ. चूत में तो पिछले सप्ताह तुम लोगों के आने के पहले ले ही लिए हैं. इसीलिए भी नलिनी को बुलाया है. वो इस खेल में पारंगत है. उसके निर्देशन में ही दोनों मेरी गांड मारने वाले हैं.”
“हाय दैया। क्या री सरिता तू तो महा चुड़क्कड़ हो गई है री.”
सरिता खिलखिलाने लगी.
“अब जीवन शेष ही कितना है कि मैं जो मिले उस सुख को न भोगूँ? वैसे आनंद बहुत आया था चूत में दो दो लंड लेकर. आज अगर उतना ही आनंद आ जाये तो क्या बात होगी.”
“हम्म, चलें अब? वो तीनों भी आते ही होंगे.” पंखुड़ी ने कहा.
सरिता ने अपना ग्लास उठाया और इस बार भी दो घूँट में ही पी लिया.
“उनको तेरे मुंह से दुर्गंध नहीं आएगी, जो ऐसा कर रही है?”
सरिता ने कुछ न कहा. कमरे में जाकर फिर से ग्लास में व्हिस्की भरी और इस बार कुल्ला सा किया और गुटक गई.
“दुर्गंध? कैसी दुर्गंध?” सरिता ने इतराते हुए कहा.
“ला अब मुझे भी एक पेग बना दे.” पंखुड़ी ने कहा.
“और मेरे लिए भी.” ये नलिनी थी.
सरिता ने नलिनी को अपनी ओर देखते हुए कुछ भिन्न भाव देखे. नलिनी पहले ही आई थी और उन्हें कमरे में न पाकर बाथरूम में भी गई थी. जहाँ उसने सरिता को मूत्र पीते और मूत्र मिश्रित व्हिस्की पीते हुए देख लिया था. वो वहाँ से चली गई थी और अब लौटी थी. उसे इस बूढी की विकृत मानसिकता ने अचंभित कर दिया था. उन्होंने एक एक पेग पिया ही था कि रितेश और जयेश भी आ धमके. उनके लिए भी पेग बने और सब बैठकर पीने लगे.
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अविका:
अंकुर और पराग बहुत उत्साहित थे. अपनी बुआ अविका के साथ वो अकेले एक एक बार चुदाई कर चुके थे और उसका आनंद उन्हें याद था. पर आज की रात विशेष थी. आज दोनों भाइयों को अपनी बुआ की चुदाई एक साथ करने का अवसर जो मिला था. उन्हें अपनी मम्मी का निर्देश भी मिला था कि वो बुआ को पूर्ण रूप से संतोष करें. अब ऐसा निर्देश युवा लड़कों के लिए एक आशीर्वाद से कम न था. अविका में कमरे में गए तो अविका वहाँ नहीं थी पर कुछ ही पलों में वो नहाकर अपने बाल सुखाते हुए निकली। अविका को ये आभास नहीं था कि वे दोनों आ चुके हैं, तो वो नंगी ही निकली थी.
पर जब उसने दोनों को देखा तो अपने शरीर को छुपाने का कोई प्रयास भी नहीं किया. अब जिनसे चुदना हो, उनसे छुपना कैसा? वो और अधिक कामुक ढंग से अपने बाल सुखाने लगी और घूम घूम कर अपने शरीर का प्रदर्शन करने लगी. उसे पता था कि जितना भी उन्हें लुभाएगी, उतनी ही तत्परता से दोनों आज रात उसे छेदेंगे। अंकुर और पराग ने यही किया. दोनों देखते ही देखते नंगे हो गए और पहल अंकुर ने ही की. उसने जाकर बुआ के मम्मों को अपने हाथ में लिया और उन्हें मसलने लगा.
“कुछ देर रुक जाता, बाल तो सुखाने देता.” अविका ने इठलाते हुए कहा.
“बुआ, बाल सुखाकर क्या करोगी? रहने दो यूँ ही.” अंकुर ने उसके होंठों को देखते हुए कहा और फिर उसके होंठों से होंठ जोड़ दिए.
पराग को लगा कि कहीं वो पीछे न रह जाये तो उसने अविका के पीछे जाकर उसके नितम्बों को अपने हाथों से मसलते हुए उसकी गर्दन और कानों को चूमना और चूसना आरम्भ कर दिया. अविका शीघ्र ही उन दोनों के हाथों की कठपुतली बन गई. माधवी जैसी महा चुड़क्कड़ सास से अंकुर ने बहुत कुछ सीखा था. और इसकी शिक्षा पराग को भी कुछ अनुपात में मिली थी. तो दोनों ने अपनी बुआ को उस आनंद से अनुभूत करने का मन बनाया हुआ था. अविका के हाथ भी अब आगे पीछे जाकर उनके तनते हुए लौडों को सहलाने लगे थे. अविका का मन तो था बिस्तर पर जाने का पर वो इन दोनों के आगे लाचार थी. और दोनों भाई ये जानते थे. वो जब भी इस रूप में रहते थे तो उनकी माँ संध्या भी उनके हाथों में कच्ची मिट्टी के समान हो जाती थी.
अंकुर ने मम्मों को छोड़ा और नितम्बों को दबाया तो पीछे से पराग के हाथों ने उसके हाथों का स्थान ले लिया. इस स्थिति में दबाव की मात्रा बढ़ गयी और उसकी गांड और मम्मों पर हो रहे मीठे अत्याचार से अविका की चूत पानी छोड़ने लगी. कमरे में उसके रस की गंध बसने लगी थी. पराग ने अपने एक हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसमें ऊँगली डाली और उसे खड़े हुए ही चोदने लगा. अविका का शरीर हिलने लगा. पर अंकुर ने उसके नितम्बों को थामा हुआ था तो वो अधिक कुछ कर न पा रही थी.
“बुआ को उनकी चूत का स्वाद तो कराओ.” अंकुर ने कहा तो पराग ने ऊँगली को निकाल कर संध्या के मुंह में डाला.
“भैया, आप भी चखोगे? पराग ने पूछा. उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने ऊँगली को फिर उस जलाशय में डुबोया और इस बार ऊँगली को अंकुर के मुंह में दे दिया. फिर वही ऊँगली उसने बुआ के मुंह में डाली. एक बार फिर से चूत में ऊँगली डालकर इस बार उसने भी उस रस का स्वयं आनंद लिया.
“बुआ का स्वाद और सुगंध दोनों मस्त हैं न भैया?”
“हाँ, तो इसका रस श्रोत से ही पीना चाहिए. क्यों बुआ? पिलाओगी न?”
अविका ने मात्र अपने सिर को ऊपर नीचे करते हुए स्वीकृति दी.
“पराग, चल बुआ को उठा और बिस्तर पर ले चल.”
दोनों ने अविका को किसी गुड़िया के समान उठाया और बिस्तर पर ले गए जहाँ उसे बहुत प्रेम से लिटा दिया. अब अंकुर के सामने बुआ की खिली, कुलबुलाती और बहती हुई चूत थी. पराग भी उसके साथ आ खड़ा हुआ और दोनों अविका की चूत को भूखी आँखों से ताकने लगे. फिर एक दूसरे को देखा और मुस्कुराये.
“मैं इनके पाँव संभालता हूँ, आप चूत सम्भालो.” पराग ने कहा तो अविका को समझ न पड़ा. पर तुरंत ही उसे इसका अर्थ समझ आ गया. पराग ने उसके दोनों पैरों को पकड़ा और फैला दिया. स्वाभाविक रूप से उन्हें इतनी दूर ले जाना सम्भव न था. पर पैरों को अपने शक्तिशाली हाथों से फैलाकर पराग ने लगभग १२० अंश का कोण बना दिया. अब अंकुर के लिए बुआ की चूत पूर्ण रूप से खुली हुई थी. वो बैठा और चूत पर जीभ फिराने लगा.
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संध्या, रिया:
देवेश, अनुज और अनिल संध्या के कमरे में बैठे थे. संध्या और रिया स्नान करने गई हुई थीं. अनिल की उत्सुकता देखते ही बनती थी. देवेश और अनुज पूरे संयम के साथ बैठे अनिल को सोफे पर कसमसाते हुए देख रहे थे. अब विवाह के बाद संयम स्वयं ही आ जाता है. दोनों के चेहरों पर एक मुस्कान थी अपने भाई की स्थिति को देखकर. तभी संध्या और रिया कमरे में आयीं. दोनों नंगी ही आई थीं, वैसे भी उन्हें अपने घर में नंगे रहने की अभ्यास जो हो चुका था. अनुज ने सीटी बजाई और फिर हंस पड़ा.
“क्या हुआ?” संध्या को लगा कि उन्होंने कुछ गड़बड़ कर दी है.
“कुछ भी नहीं, मामी. मुझे पल्लू की याद आ गई. उसका प्रिय धारावाहिक है: सास, बहू और साजिश.”
ये सुनकर सब हंस पड़े.
“अच्छा है, दिशा को ये सब में कोई रूचि नहीं है.” देवेश ने कहा.
“तो तुम्हें इसमें क्या साजिश दिख रही है, देवरजी?” रिया ने मुस्कुराकर अपनी कमर पर एक हाथ रखते हुए पूछा.
“अब देखिये न, भाभी. आप दोनों इस प्रकार से हमारे सामने आएंगी तो हम सीधे साधे लड़कों का मन मचलेगा ही न? फिर हमें आप दोनों को रगड़ रगड़ कर चोदना पड़ेगा. अब ये साजिश नहीं है तो क्या है?”
“हम्म्म, इसकी बात तो सही लग रही है, है न मम्मीजी?”
“हाँ. अब अगर बात सही है तो इस पर कुछ आगे बढ़ने में कोई हानि नहीं है. क्यों देवेश? क्या कहते हो?”
“हाँ, अब हम क्या करें, मामी. आप हम सबको विवश जो कर रही हैं.” हँसते हुए देवेश ने कहा और फिर अपने कपड़े उतारने लगा. अनुज और अनिल ने उसकी देखा देखी अपने कपड़े भी उतार फेंके.
इसके बाद तीनों आगे बढ़े और उन्होंने संध्या और रिया को तीन दिशाओं से घेर लिया.
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पल्लू, काव्या:
दक्ष और सत्या अभी आये नहीं थे. दोनों पुरानी सहेलियाँ बातों में व्यस्त थीं.
काव्या: “पल्लू, मुझे लगता नहीं था कि तुम इतनी सरलता से हमारे परिवार के रंग ढंग में ढल जाओगी. इसीलिए मैं इस विवाह का विरोध कर रही थी. मुझे हर्ष है कि मेरा अनुमान सही नहीं निकला.”
पल्लू: “कोई बात नहीं. वैसे मैं इस सप्ताह घर जा रही हूँ. रिया ने कुछ ऐसा कहा है जिसने मुझे सोचने पर विवश कर दिया है. मेरे चाचा का परिवार अधिकतर शनिवार को आता था, पापा मम्मी और शुभम भैया के साथ हम चाचा, चाची, नीतू और निकुंज भैया के साथ हम बहुत मजा करते थे. फिर मेरे परिवार वाले भी जिस सप्ताह वो नहीं आते थे, तो उनके घर चले जाते थे, मुझे छोड़कर. उनका कहना था कि मुझे पढ़ाई जो करनी है, जो सही भी था. पर अब लगता है कि मुझे वो किसी कारण से नहीं ले जाते थे.”
काव्या: “तो क्या तेरे घर में भी?”
पल्लू: “पता नहीं. यही जानना है. पहले मुझे माँ दूध दे देती थी और मैं उसे पीने के बाद सो जाती थी. अब लगता है कि वो उसमें कुछ मिला देती थीं. देखती हूँ, इस शनिवार क्या होता है? अगर चाचा का परिवार आया तो पता चल ही जायेगा, अन्यथा मैं लौट आऊंगी और अगले सप्ताह फिर से जाऊँगी।”
काव्या हतप्रभ रह गई.
पल्लू: “तू अधिक चिंतन मत कर. यश और सत्या के बारे में सोच. रिया ने कहा है कि सत्या का लौड़ा बहुत बड़ा है. रिया तो उससे गांड मरवाने में डरती है. हालाँकि मुझे कोई और कारण लगता है. और दक्ष भी चुदाई में बहुत निपुण है. आज की रात हम दोनों सहेलियों की अच्छी चुदाई होनी है.”
काव्या: “सहेलियाँ भी और नन्द भाभी भी.”
ये कहते हुए दोनों एक दूसरे से लिपट गईं. और वो इसी अवस्था में थीं जब दक्ष और सत्या ने कमरे में प्रवेश किया.
“वाओ” दक्ष ने कहा तो दोनों अलग हो गयीं और हंसने लगीं.
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ललिता:
सब अपने अपने कमरों में जा चुके थे. ललिता बैठक में अकेली बैठी हुई थी. उसके हाथ में एक पेग था जिसकी वो चुस्कियाँ ले रही थी. सामने रखी बोतल से ये लगता था कि वो दो तीन पेग मार चुकी थी. ललिता का मन प्रफुल्लित था. उसका घर भरा हुआ था. इतने बड़ा महल जैसा घर अब इतना रिक्त नहीं लग रहा था.
महेश के पिता ने ये घर न जाने क्या सोचकर बनवाया था. उनकी इच्छा कई संतानों की रही होगी. पर उनका एकमात्र उत्तराधिकारी महेश ही था. महेश की माँ का देहांत उसके जन्म के बारह वर्ष बाद ही हो गया था. कई लोगो ने उनसे एक और विवाह करने की याचना की, पर उन्होंने महेश को सौतेली माँ के हाथों से पलना ठीक न समझा था. महेश को पालने के लिए तीन दाइयाँ थीं. समय के साथ उन्होंने महेश को सेक्स का ज्ञान भी दे दिया था. महेश को ये संदेह था कि ये उसके पिता के कहने पर ही हुआ था. सम्भवतः वो तीनों उसके पिता के भी बिस्तर की शोभा बढ़ाती थीं. पर उसने कभी ये सही में न देखा न जाना.
अब इस घर में इतने लोगों के आने के बाद भी आधे कमरे यूँ ही पड़े थे. आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्याप्त स्थान था. कितने इस में रहेंगे, ये अब किसी को पता न था. पर इस पीढ़ी को तो यहां रहने में किसी प्रकार से भी असुविधा नहीं लग रही थी. अब और भी विवाह होने थे. काव्या, रितेश, जयेश, अनिल अब शीघ्र ही विवाह करने की आयु में पहुंच रहे थे.
दो घूँट पीते हुए उसने निकटतम संबंधियों के बारे में भी विचार किया. पराग, दक्ष और सत्या भी लगभग उसी आयु के थे. और लव. उसके बारे में सोचकर ललिता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई. परिवार का सबसे छोटा सदस्य था. और उसके विवाह तक हो सकता है कि परिवार में नए नन्हे मुन्ने सदस्य जुड़ने लगें. उसकी माँ और पंखुड़ी कितनी आनंदित होंगी. उनके बारे में सोचकर उसके मन में एक हूक से उठी. कब तक हैं वो साथ?
अपना पेग समाप्त किया. और फिर वो उठ खड़ी हुई. सोफे पर रखे वीडियो कैमरे को अपने हाथ में लिया. आज वो अपने परिवार के सदस्यों के बीच के व्यभिचार की स्मृतियों को सहेजना चाहती थी. अपने बाल ठीक किये. कैमरे को ऑन किया. फिर एक और पेग बनाकर गटागट पी लिया. और अपने मिशन पर निकल पड़ी.
रात अभी शेष थी और लम्बी भी.
क्रमशः