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कैसे कैसे परिवार: Chapter 72 is posted
पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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पात्र परिचय
अध्याय ७२: जीवन के गाँव में शालिनी ९
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Update Posted.गरमागरम स्टोरी परोसें है आपने भीईया।
अच्छे सस्पेंस पे कहानी रुकी है, पर अपडेट जबरदस्त है...ससुराल की नयी दिशापल्लू :
अध्याय ४८: रहस्योद्घाटन ५
********
जब पापा को लगा कि लंड चूसना बहुत हो गया तो उन्होंने दादी से कहा कि अब बस करें. अब वो उनकी चुदाई करना चाहते हैं. दीपक मामा ने कहा कि वो दोनों पहले चुदाई करें, और वहां से हट गए.
“क्या अमर, क्या चाहता है?” पापा ने पूछा.
“आप बड़े हो तो आप पहले चोदिये, मैं उसके बाद.”
“एक काम करते हैं पाँच पाँच मिनट का समय बाँधते हैं. जैसे हमने ये सब आरम्भ करने के समय किया था.”
“हाँ, वो सही रहेगा.”
दादी उनकी बातें सुन रही थीं.
“अच्छा है मेरे बच्चों जो सब कुछ मिल-बाँट कर करते हो. अब आओ, मेरी चूत तुम्हें पुकार रही है.” ये कहते हुए दादी बिस्तर पर लेट गयीं और अपने पैरों को चौड़ा कर दिया.
कमरे में उपस्थित अन्य सबने अपनी गतिविधि रोक दी. शुभम ने पापा का फोन निकाला और वीडियो बनाने लगा. देखा देखी तीन और फोन निकल आये और बिस्तर को चारों ओर से घेर कर हर कोण से वीडियो बनाने लगे. ये तो भला हुआ कि वे पल्लू के कैमरों के सामने खड़े नहीं हुए. पल्लू की चूत अब बहना नहीं रोक पा रही थी. वो आई-पैड को देखते हुए अपनी चूत में ऊँगली करने लगी.
पल्लू के पापा ने अपना लंड अपनी माँ और पल्लू की दादी की चूत पर रखा. आज वो अपने जन्मस्थान में आंशिक रूप से प्रवेश करने जा रहे थे. सबकी आँखें उन दोनों पर टिकी थीं.
“ओह, माँ!” ये कहते हुए अशोक ने अपना लंड मायादेवी की चूत में धकेल दिया.
“ओह! माँ!” माया देवी के मुंह से निकला, “ओह अशोक, मेरा राजा बेटा!”
अशोक के लंड की यात्रा मायादेवी की चूत में निर्बाध बढ़ती गई. आधे लंड अंदर जाने के बाद अशोक ने अंदर बाहर करना आरम्भ किया. हर प्रयास में लंड कुछ और अंदर जाता. मायादेवी की साँसे रुकी हुई थीं. और अन्य सब मानो एक मनोहारी दृश्य देखकर विस्मित थे. कुछ ही पलों के परिश्रम के बाद अशोक के पूरे लंड ने अपनी माँ की चूत में स्थान बना लिया. इस स्थिति में वो रुक गया.
“बधाई हो! आज आपकी वर्षों की इच्छा पूरी हो गई.” भावना ने उनके पास आकर कहा.
“हाँ, पर तुम्हें कैसे पता. मैंने तो आज ही ये बताया है.”
“ओह, कई बार आप मुझे चोदते समय इनका नाम लेते थे. पर मुझे कभी बुरा नहीं लगा तो मैंने भी कुछ नहीं बोला।”
“अच्छा.” अशोक फिर से लंड अंदर बाहर करने लगा. मायादेवी की मद्धम सिसकारियां निकलने लगीं.
जैसा कि निर्धारित किया गया था, लगभग पांच मिनट के बाद अशोक ने अपना लंड मायादेवी की चूत से बाहर निकाल लिया. मायादेवी अब आनंद की लहरों पर विचरण कर रही थीं तो उन्हें ये व्यवधान रास न आया.
“ऊँह ऊँह, नहीं, मत निकाल!” उन्होंने बोला।
“मैं हूँ न, माँ. मैं आपकी चुदाई करूँगा.” अमर ने अपने लंड को अंदर डालते हुए बोला।
“ओह ओह! आह! ऐसे ही बेटा! आअह!” मायादेवी का आनंद फिर से स्थापित हो गया.
अमर ने भी चुदाई में पूर्ण निष्ठा दिखाई और मायादेवी फिर से आनंद के सागर में हिचकोले खाने लगीं. इसके बाद हर कुछ मिनटों में अशोक और अमर मायादेवी की बारी बारी से चुदाई करते रहे. उनके बीच बीच में रुकने का ये परिणाम हुआ कि वो झड़ने के कहीं निकट भी न थे. बल्कि उनकी प्यारी माँ न जाने कितनी बार झड़ चुकी थीं.
“माँ, अब घुटनों के बल आकर घोड़ी बन जाइये.” ये अशोक ने जब कहा तो मायादेवी को अपनी गांड में एक खुजली का आभास हुआ, जिसको वो अपने बेटों से चुदवाती हुई भूल गयी थीं.
शुभम ने अलमारी से तेल की शीशी निकाली और अपने पापा को दे दी. परिवार के सदस्यों के बीच इस मूक सामंजस्य को देखकर पल्लू को बहुत आश्चर्य हुआ, और कुछ दुःख भी कि वो इस प्रकार से भावनात्मक रूप में नहीं जुड़ पाई. क्या ये सम्भव है कि अब इस कमी को पूरा किया जा सकता है? एक ओर दिन रात का संसर्ग और दूसरा कुछ महीनों के लिए सप्ताह में दो दिन. परन्तु, पल्लू ने प्रयास में कोई कमी न रखने का निर्णय लिया.
दादी ने घोड़ी का आसन अपनाया और बड़े कामुक रूप में अपनी गांड हिलाई. अशोक ने शीशी खोली और चाचा ने दादी की गांड को अपने हाथों से खोला और पापा ने उसमे तेल की धार छोड़ दी. चाचा ने हाथ नहीं हटाए और पापा ने दो उँगलियाँ डालकर दादी की गांड को अच्छे से चिकना दिया. चाचा ने हाथ हटा लिए. दादी ने फिर घोड़ी के समान अपनी गांड हिलाकर अपने ऊपर चढ़ाई करने वाले अपने बेटे रूपी घोड़े को आमंत्रित किया.
“पापा, ताऊजी, दादी गांड मरवाने में चिल्लाती बहुत हैं, पर आप रुकना नहीं, नहीं तो वो आपके ऊपर बहुत गुस्सा हो जाएँगी.” ये सीख हरीश की थी, जिसे सुनकर अशोक और अमर एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये. और अशोक ने अपने तपते लौड़े को अपनी माँ की गांड पर रखा. जिस मटकती गांड को देखकर उसने वर्षों मुठ मारी थी, उसी गांड में आज उसका लौड़ा प्रवेश करने के लिए आतुर था.
“डाल न बेटा, क्यों तड़पा रहा है?” अशोक मानो एक तंद्रा से बाहर निकला जब उसने अपनी माँ की याचना सुनी.
“जी, माँ. अभी लो.” ये कहते हुए पापा ने दादी की गांड में लंड डालना आरम्भ किया. कमरे में हल्की तालियों ने इस अंतिम लक्ष्य के भेदन का स्वागत किया और इसमें दादी की हल्की सी सिसकारी दबी रह गई. तीन पोतों से नियमित गांड मरवाने के कारण दादी की गांड ने अपने बेटे के लंड का स्वागत किया और पापा का लंड सरलता से उनकी गांड में धंसता चला गया.
“ताऊजी, दादी की गांड अच्छे से मारो. देखना फिर वो कैसे उछल उछल कर गांड मरवाती है.” गिरीश ने अगली सीख दी. अशोक ने मन ही मन आश्चर्य किया कि उसकी माँ किस सीमा तक इन तीनों की चुदाई के परिणाम स्वरूप एक सीधी सादी स्त्री से एक महा चुड़क्कड़ महिला बन चुकी हैं. परन्तु इस विषय में चिंतन बाद में किया जा सकता था, अगर करना भी पड़ा तो. उसने अपने लंड को पूर्ण रूप से मायादेवी की गांड में एक झटके में पेल दिया, मायादेवी ने कोई पीड़ा का भाव नहीं दिखाया.
लंड को वहीँ डाले हुए अशोक कुछ समय रुका और फिर धक्के लगाने आरम्भ किये. कुछ ही धक्कों में उसकी गति बढ़ने लगी और गिरीश के कथन के अनुसार मायादेवी अपनी गांड पीछे उछाल कर और लंड अंदर लेने का प्रयास करने लगीं. अशोक को अपनी माँ की गांड मारने में अत्यधिक आनंद का अनुभव हो रहा था. उधर फागुनी मामी ने शुभम और निकुंज को अपने पास बुलाया. दोनों समझ गए कि मामी का अभिप्राय क्या है. परन्तु बिस्तर पर चल रही चुदाई के अंतिम चरण तक न पहुंचने के पहले वो कुछ भी करने वाले न थे.
अशोक ने मायादेवी की गांड पाँच मिनट मारने के बाद अमर को आमंत्रित किया जो अपने तने लंड को लिए आतुर खड़ा था. अमर ने मायादेवी की गांड में अपने पूरे लंड को डालने में अधिक समय नहीं लगाया और शीघ्रतम वो उनकी गांड को पूरी शक्ति के साथ मार रहा था. मायादेवी की कमर उछल उछल कर उसका साथ दे रही थी. उसके बाद फिर से अशोक उनकी गांड मारने लगा. उसके बाद जब अमर उनकी गांड में लंड डाल चुका था तो हरीश ने आकर अशोक से कुछ बोला। अशोक ने अपना सिर सहमति में हिलाया और भावना को देखकर मुस्कुरा दिया. भावना ने भी उसका उत्तर मुस्कुराकर दिया.
इस बार जब अमर ने मायादेवी की गांड से समय समाप्ति पर लंड निकाला तो अशोक ने उससे कहा, “अमर, नीचे लेट जा.”
अमर के चेहरे पर हर्ष के भाव दर्शनीय थे. उसने देर न करते हुए लेटकर अपने लंड को हाथ में ले लिया.
“माँ, जाओ अमर के ऊपर चढ़ो.” अशोक ने कहा तो मायादेवी को अनुमान हो गया कि क्या होने वाला है. और वो निसंकोच अमर के ऊपर चढ़ीं और उसके लंड से अमर का हाथ हटाते हे अपने हाथ से लंड पकड़ा और अपनी चूत पर लगाया. फिर धीमे से वो उसपर बैठ गयीं और आनंद की एक सिसकारी भरी.
“आपको पता है न क्या होने जा रहा है, माँ जी?” भावना ने पास आकर मायादेवी से पूछा. फिर उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसका उत्तर भी दे ही दिया. “अब आपके दोनों बेटे आपको एक साथ चोदने वाले हैं. एक चूत में तो एक गांड में. आप तो अपने पोतों से ऐसे चुदवा ही चुकी हो न?”
“हाँ, और बहुत आनंद आता है. आजा बेटा अशोक, अब तू भी चढ़ ही जा.”
पल्लू इस दृश्य को देखकर अपनी ऊँगली पर ही झड़ गई. तभी उसके मोबाइल पर एक संदेश आया. उसने उठाकर पढ़ा और मुस्कुरा दी. उसने अपनी उँगलियों को चाटा और फिर से उस दृश्य को देखने लगी जहाँ उसके पिता उसकी दादी की गांड मारने जा रहे थे, वो भी तब जब उनकी चूत में उनके छोटे भाई का लंड पहले से ही उपस्थित था.
अशोक ने अपनी माँ की खुली गांड को देखा जिसमें से उसके भाई का लंड कुछ समय पहले ही निकला था. दोनों भाइयों के परिश्रम के कारण गांड लाल हो चुकी थी. और अब उसके लंड के आगमन की प्रतीक्षा में कुलबुला रही थी. भावना ने आगे बढ़कर अपने पति के लंड को गांड के छेद पर लगाया. चार फोन इस विलक्षण दृश्य को रिकॉर्ड कर रहे थे, इस सच्चाई से अनिभिज्ञ कि इसकी एक और भी रिकॉर्डिंग हो रही है.
अशोक ने भावना को देखा और उसने एक संकेत दिया. उसके पीछे से शुभम ने उसके कान में आकर कुछ कहा. अशोक ने मुड़कर अपने बेटे को देखा, “तू सच कह रहा है, न?”
“यस डैड!”
“फ़ाईन!”
अपने लंड को अंदर धकेलते ही वो बिना अधिक अड़चन के गांड में समाता चला गया. बीच राह में उसे कुछ बाधा मिली, जो अमर के लंड के दूसरी ओर होने के कारण थी. पर उसने लंड को बाहर निकालते हुए एक शक्तिशाली धक्के के साथ उस बाधा पर विजय प्राप्त कर ली. मायादेवी की एक ह्रदयविदारक चीख निकली, पर फिर वो अमर के ऊपर ढह गयीं और हाँफने लगीं.
“ओह! माँ! मार दिया रे!”
तभी कमरा तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा. मायादेवी के मन में एक गर्व की अनुभूति हुई. और वो फिर से यथास्थिति में आ गयीं. अब वो अपने दोनों बेटों से दुहरी चुदाई के लिए पूर्ण रूप से आतुर थीं.
अमर और अशोक एक दूसरे को विस्मित भाव से देख रहे थे. दोनों के लौड़े उनकी माँ के दो छिद्रों में थे और उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था. अब से एक घंटे पूर्व अगर उन्हें कोई कहता कि वे दोनों अपनी ही माँ को चोदने जा रहे हैं तो वो कदापि विश्वास नहीं करते. परन्तु अब, न केवल उन्होंने अपनी माँ की चूत और गांड मारने का आनंद पाया था, बल्कि अब उनकी दुहरी चुदाई के लिए भी लालायित थे. और उनकी माँ! वो अपनी चूत और गांड में उनके लौड़े लेकर कुनमुना रही थी!
“अब चोदो भी, मादरचोदों!” मायादेवी के इस कथन ने दोनों को मानो यथार्थ में लौटाया.
“बिलकुल, माँ!” अमर ने उनके मम्मे अपने मुंह में लेकर हल्के से काटते हुए बोला, “पहले विश्वास तो कर लें कि ये सच ही है कोई स्वप्न नहीं!”
"सच ही है, बेटा। यही सच है! तुम्हारे बच्चों ने मेरी वर्षों पड़ी वासना को जाग्रत कर दिया है. मुझे तो इनके साथ चुदाई में जो आनंद मिला है, उसने तुम्हारे पिता की स्मृति को फिर जगा दिया है. उनका लंड तुम दोनों से कम तो नहीं था. और जब वो मुझे चोदते थे तो मुझे तारे दिखा देते थे. इन तीनों ने उन तारों में कई गुना बढ़ोत्तरी कर दी जब ये मुझे मिलकर चोदने लगे. और आज तुम दोनों से चुदने का भी सौभाग्य मिल गया.”
पल्लू सोच रही थी कि ये सब चुदाई के समय भी इतने सामान्य रूप से बातें कैसे कर सकते थे? और तब जब लौड़े चूत और गांड में घुसे पड़े हों. उसने अपने मोबाइल को एक बार देखा जहाँ बैठक के अंधकार के सिवाय कुछ न था, बस एक संदेश था. उसने फोन उठाया और उसका संक्षेप उत्तर दिया. और फिर से कमरे में दादी की चुदाई का दृश्य देखने लगी.
और जैसा अपेक्षित था उसके पिता और चाचा ने अपने लंड अंदर बाहर करना आरम्भ किये, एक धीमी गति से वो अपनी माँ की इस चुदाई का भरपूर आनंद लेना चाहते थे.
कमरे में उनकी चुदाई देखने की इच्छा तो बलवती थी, परन्तु अपनी क्षुधा शांत करने की इच्छा भी प्रखर होती जा रही थी. मामी निकुंज और शुभम के लौड़े पकड़े हुए नीचे बैठ गयीं और उन्हें चूसने लगीं. मम्मी और चाची ने हरीश और गिरीश को पकड़ा और मामा ने नीतू पर अपना आधिपत्य जताया. कोण इस प्रकार से रखा कि वे सभी बिस्तर पर दादी की चुदाई को देख सकें.
“तुम्हारी माँ बहुत लालची हो गयी है.” दीप्ति चाची ने गिरीश के लंड पर जीभ घुमाते हुए बोला, “दोनों को पहले ही हथिया ली.”
“चाची, आप क्यों निराश हो रही हो. आपकी भी हर इच्छा पूरी की जाएगी. दो क्या, तीन तीन से चुदवा लेना. किसने रोका ही है. और अब तो हम आपके घर आकर जब चाहे आपको चोद सकते हैं. हमने इसके लिए राह बना दी है.”
“हाँ, लेकिन मुझे नहीं लगता कि माँ जी, हमारे बीच में नहीं आएंगी, बिना चुदे तो अब वो भी रहने वाली नहीं हैं.” चाची ने दादी की ओर देखकर कहा.
“तो क्या हुआ? आप तो जानती ही हैं कि हम तीनों को सरलता से संभाल पाएँगे और निकुंज भी तो हाथ बँटायेगा। चाचा, निकुंज और हम दोनों मिलकर आप तीनों को पूरा संतुष्ट रखेंगे.” गिरीश ने नीतू को भी जोड़ते हुए कहा.
“हाँ वो तो है. चल अब बहुत देर हो गई, माँ जी ने आकर रुकावट डाल दी नहीं तो अब तक मेरी चूत की आग एक बार बुझ गई होती.”
“एक बार!” गिरीश ने लंड को चाची के मुंह से निकालकर कहा, “एक बार में आपको कहाँ चैन मिलना है चाची.”
दीप्ति बिछे हुए गद्दे पर लेट गयी और गिरीश ने उनकी चूत पर लंड लगाकर एक धक्का मारा और उसका लंड जड़ तक समा गया.
“ऊह आह. वाह, अब चैन मिला. अब रुकना मत और चोद जम कर.” दीप्ति ने बोला और अपने पैरों को गिरीश की कमर पर कस लिया.
ऐसा ही कुछ दृश्य भावना के साथ भी था. भावना भी लंड चूसने के बाद अब घोड़ी बन गयी थी और उसके पीछे आकर हरीश ने अपने लंड को एक ही बार में अंदर पेल दिया था. दोनों सामने चल रही मायादेवी की चुदाई को भी देखने में समर्थ थे और इससे उनको और उत्तेजना का अनुभव भी हो रहा था.
“वाह बेटा वाह! क्या चोदता है तू. और जोर से चोद. इतनी देर से रुकी पड़ी हूँ कि समझ नहीं आता कैसे सह पाई. अब अच्छे से दम लगाकर चोद अपनी ताई को!” भावना बोले जा रही थी और पल्लू उनकी इस भाषा को सुनकर अचंभित भी हो रही थी और संतुष्ट भी.
नीतू की चूत में मामा लौड़ा डालकर पूरी शक्ति से उसे चोदे जा रहे थे. भोली भाली सुकुमारी दिखने वाली नीतू किसी अभ्यस्त चुदक्क्ड़ लड़की का रूप ले चुकी थी. अब पहली बार तो चुद नहीं रही थी, पर अपनी कमर उछाल उछलकर मामा के लंड को निगले जा रही थी अपनी चूत में.
परन्तु फागुनी को कुछ अधिक ही आग लगी हुई थी उसने भी भावना के समान ही बिस्तर की ओर मुँह किया हुआ था, पर उसके नीचे शुभम पड़ा हुआ था जो उसकी चूत में अपना मोटा तगड़ा लंड पूरे परिश्रम के साथ पेल रहा था. पर मामी की गांड भी खाली न थी. उसकी गांड में निकुंज ने अपना लंड जड़ा हुआ था और दोनों चचेरे भाई अपनी मामी को पूरी निष्ठा से चोद रहे थे.
“चोदो मेरे लाल! मामी को चोद चोद के मार दो. और तेज मारो मेरी चूत और गांड. रुकना मत! चाहे मैं मर जाऊँ तब भी मत रुकना.” फागुनी की पुकार पर दोनों भाई हंस रहे थे.
“मामी, कितनी बार तो चुदवा चुकी हो, हर बार मरने की बात क्यों करती हो? अगर आज तक नहीं मरीं तो अब क्या होने वाला है.” निकुंज ने ऊपर से गांड मारते उन्हें छेड़ा.
“बाद में बताऊँगी तुझे मादरचोद, अभी गांड मार सही से.”
निकुंज ने उनके कान के पास जाकर कुछ कहा. तो मामी बोल उठीं, “तब रुक जाना, पर तब तक नहीं, चलो मारो मुझे.”
इतना सुनकर निकुंज ने उनके नितम्बों पर थप्पड़ मारना आरम्भ किया. पहले हल्के चाटों ने उनकी चुदाई के अनुरूप थप्पड़ों का स्वरूप ले लिया. नीचे से शुभम उनके मम्मों पर थप्पड़ मारे जा रहा था. उनके मम्मे और गांड पर लाल छापों को देखा जा सकता था. पल्लू अचरज से देख रह थी. उसकी मामी को इस प्रकार की चुदाई रास आती थी ये तो उसने सोचा भी न था. परन्तु वो जानती थी कि सेक्स के खेल में इतनी विकृतियाँ हैं जिन्हें गिना भी नहीं जा सकता. मामी की दुहरी चुदाई अगर थप्पड़ों के साथ चल रही थी, जिसमें मामी चिल्ला चिल्लाकर और जोश भर रही थीं तो इसका प्रभाव उसके पिता और चाचा द्वारा उसकी दादी की चुदाई पर भी पड़ने लगा था. दोनों अब दादी की जमकर चूत और गांड मार रहे थे. अगर मामी की चिल्लाहट कम थी तो दादी की चिल्लाहट ने उसमे और बढ़ोत्तरी कर दी थी.
पापा और चाचा जिनको अब तक केवल अपनी माँ के साथ सहवास करने की इच्छा भर थी, पर इसे पूरी होने के कारण वो इतनी अधिक तीव्र चुदाई कर रहे थे कि दादी की चीखों के कारण साँसे उखड़ने लगीं. दोनों ने इसका अनुभव करते हुए अपनी गति कम कर दी. और मंथर गति से चोदने लगे.
“क्या हुआ? धीमे क्यों पड़ गए. चोदो मुझे, जैसे पहले चोद रहे थे.” दादी ने डाँटते हुए उन्हें झिड़का.
पल्लू हंसने लगी. इतने बड़े होने के बाद भी दादी उन्हें डाँट सकती हैं ये उसके लिए प्रहसन का विषय लग रहा था. पापा और चाचा ने फिर गति पकड़ी और इस बार उन्होंने किसी प्रकार से कोई दया नहीं दिखाई. दोनों उन्हें एक गुड़िया के समान चोदे जा रहे थे. कोई दस मिनट तक की इस चुदाई में दादी कई बार झड़ी होंगी, पर उनके उत्साह में कोई कमी न थी. चाची, मम्मी और मामी की भी भीषण चुदाई निरंतर चल रही थी. मामी ने अब निकुंज के लंड पर बैठकर शुभम के लंड को गांड में लिया हुआ था. और उनकी दमदार चुदाई चलती ही जा रही थी.
“ओह! मैं झड़ने वाला हूँ, माँ” पापा ने कहा तो चाचा ने भी उनका साथ दिया.
“हाँ हाँ, झड़ लो मेरे ही अंदर. देखूं तुम्हारे पानी से मुझे ठंडक मिलेगी या और लौड़े चाहिए पड़ेंगे.” दादी ने बोला तो पापा आश्चर्य में आ गए. उन्हें लगता था कि इस चुदाई के बाद दादी के छक्के छूट गए होंगे पर यहाँ तो वास्तविकता ही कुछ और थी!
पापा ने दादी की गांड में पानी छोड़ा और अमर चाचा ने उनकी चूत को सींच दिया. पापा ने अपना सिकुड़ता हुआ लंड उनकी गांड से निकाला. पल्लू का ध्यान अपने पापा और दादी पर इतना अधिक था कि उसने अपनी मामी की ओर ध्यान ही नहीं दिया. सम्भवतः जब पापा ने झड़ने की घोषणा की थी तो मामी ने शुभम और निकुंज से स्वयं को मुक्त कर लिया था. जब पल्लू का ध्यान गया तो मामी का मुंह दादी की गांड पर लग चुका था और वो जिस प्रकार से उसे सोख रही थीं उससे कोई शंका नहीं थी कि वो एक बूँद भी गांड में छोड़ने का विचार नहीं रखती थीं. गांड को पूर्ण रूप से चमका देने के बाद उन्होंने पापा के लंड को देखा और फिर भूखी शेरनी के समान उसे भी चाट गयीं.
“ओह, फागुनी. क्या चाटती है तू. अब हट, देख अमर भी पानी छोड़ चुका है. माँ की चूत को भी तुझे ही संभालना है.” पापा ने बोला और अपना लंड उनके मुंह से निकाल लिया.
दादी तो चाचा ने कमर से पकड़ा और पलटी मारी. फिर अपने लंड को बाहर निकाला।
“लो फागुनी, तुम्हारे लिए रसमलाई बनाई है.”
मामी फिर से व्यस्त हो गयीं. इस बार दादी ने उनके सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा लिया. पूरा रस पीने के बाद चाचा के लंड को चाटकर मामी जाकर फिर निकुंज के लंड पर चढ़ गयीं और शुभम को गांड मारने के लिए कहा.
पापा और चाचा दादी को अपनी बाँहों में लेकर वहीं बिस्तर पर बैठकर नीचे गद्दों पर चल रही कामक्रीड़ा को देखने लगे. वो अपने हाथों से दादी के मम्मे सहला रहे थे और दादी उनके पुनर्जीवित होते हुए लंड.
सब अपनी चुदाई में इतने व्यस्त थे कि उन्हें इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि कमरे का द्वार खुला और बंद भी हो गया. वहाँ पर एक आकृति खड़ी थी जो सारे घटनाक्रम का अवलोकन कर रही थी. उसे पता था कि उसके प्रवेश से इस परिवार के संबंधों पर एक जीवनोपरंत अंतर आ जायेगा. और उसके लिए कुछ पलों की प्रतीक्षा में कोई आपत्ति नहीं थी.
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कहीं दूर जब दिन ढल जाए:
दो वृद्ध सोफे पर बैठे हुए बातें कर रहे थे. दोनों के हाथ में मदिरा के ग्लास थे और उनके सामने एक लिफाफा रखा हुआ था.
उन्होंने घड़ी देखी और पहले ने दूसरे से पूछा, "चलकर देखें? क्या चल रहा है?”
“वो तो पता ही है, पर चलो.” दोनों ने अपने ग्लास खाली किये और साथ के कमरे की ओर बढ़े जहाँ से कुछ धीमे स्वर सुनाई दे रहे थे. कमरे के खुलते ही वो स्वर तीव्र हो गए.
“आह, आह, चोदो मुझे.”
“आह फाड़ दी रे, मेरी गांड फाड़ दी.”
“ओह माँ, मर गई रे.”
“रुकना मत माँ के लौडों, सोचना भी मत.”
उन दोनों वृद्धों ने कमरे को फिर से बंद किया और वहाँ पड़ी दो कुर्सियों पर बैठ गए. सामने बिस्तर पर दो वृद्धाएँ चार युवा लड़कों के साथ गुत्थमगुत्था हुई पड़ी थीं. दोनों के चेहरे पर असीम आनंद के भाव थे. और जैसा कि अपेक्षित है, दोनों की चूत और गांड में एक एक लौड़ा था और दुर्दांत गति से उनकी चुदाई कर रहे थे.
दोनों वृद्धाओं के मुंह से आनंद और पीड़ा से मिश्रित चीत्कारें निकल रही थीं. अपनी पत्नियों की इस प्रकार से युवा लौडों से चुदाई होते देख दोनों वृद्ध उत्साहित तो थे परन्तु वर्षों से मधुमेह और उच्च रक्तचाप ने उनके लौडों की शक्ति समाप्त कर दी थी. यही कारण था कि वे अपनी पत्नियों के प्रेम के कारण उन्हें इस प्रकार से चुदने का अवसर देते थे. ये युवा एक पत्नी की सहेली के द्वारा भेजे जाते थे, और इन्हें निर्धारित पारिश्रमिक भी प्रदान किया जाता था.
ये दृश्य लगभग दस मिनट तक यूँ ही चलता रहा था. दोनों महिलाओं की चूत और गांड की जमकर खुदाई हो रही थी.
एक लड़का बोला, “सर, मैडम बहुत शोर मचाती हैं.”
“हाँ, वो तो है. अच्छा सुनो. हम सोने जा रहे हैं. मैंने तुम सबके लिए बाहर टेबल पर एक लिफाफा रख दिया हिअ, पूरी रात के अनुसार. मुझे आशा है कि तुम सब सुबह छह बजे निकल जाओगे.”
इसके बाद उसने उन दोनों महिलाओं को सम्बोधित किया, “ओके, गर्ल्स, यू एन्जॉय. सी यू इन द मॉर्निंग.”
“थैंक यू. लव यू.” उन दोनों वृद्धाओं ने उत्तर दिया.
दोनों वृद्ध उठे और बैठक में जाकर बैठ गए.
“मुझे स्वयं से घृणा होती है कि मैं अपनी पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाता।” पहले ने कहा.
दूसरा: “हाँ, पर ये प्रबंध भी उचित ही है. हाँ, महँगा अवश्य है, पर अब पैसों का करना भी क्या है?”
पहला: “बात पैसे की नहीं है, बात बाहर जाने की है. काश इसका कोई उपाय होता.”
दोनों ने एक पेग और पिया और फिर अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.
एक परछाईं कुछ देर में घर के द्वार को खोलकर बाहर चली गई. उसने पिछले कुछ समय की गतिविधियों को देख लिया था. बाहर आकर वो एक कार में बैठा.
“बहुत देर कर दी.”
“हाँ, मुझे बाथरूम जाना पड़ा था. इसीलिए.”
“ओके, जब इच्छा करे तब बता देना.” कार चालक ने कहा और कार चल पड़ी. उसे आभास था कि जो बताया गया है वो पूर्ण सत्य नहीं था.
क्रमशः
Nice update broससुराल की नयी दिशापल्लू :
अध्याय ४८: रहस्योद्घाटन ५
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जब पापा को लगा कि लंड चूसना बहुत हो गया तो उन्होंने दादी से कहा कि अब बस करें. अब वो उनकी चुदाई करना चाहते हैं. दीपक मामा ने कहा कि वो दोनों पहले चुदाई करें, और वहां से हट गए.
“क्या अमर, क्या चाहता है?” पापा ने पूछा.
“आप बड़े हो तो आप पहले चोदिये, मैं उसके बाद.”
“एक काम करते हैं पाँच पाँच मिनट का समय बाँधते हैं. जैसे हमने ये सब आरम्भ करने के समय किया था.”
“हाँ, वो सही रहेगा.”
दादी उनकी बातें सुन रही थीं.
“अच्छा है मेरे बच्चों जो सब कुछ मिल-बाँट कर करते हो. अब आओ, मेरी चूत तुम्हें पुकार रही है.” ये कहते हुए दादी बिस्तर पर लेट गयीं और अपने पैरों को चौड़ा कर दिया.
कमरे में उपस्थित अन्य सबने अपनी गतिविधि रोक दी. शुभम ने पापा का फोन निकाला और वीडियो बनाने लगा. देखा देखी तीन और फोन निकल आये और बिस्तर को चारों ओर से घेर कर हर कोण से वीडियो बनाने लगे. ये तो भला हुआ कि वे पल्लू के कैमरों के सामने खड़े नहीं हुए. पल्लू की चूत अब बहना नहीं रोक पा रही थी. वो आई-पैड को देखते हुए अपनी चूत में ऊँगली करने लगी.
पल्लू के पापा ने अपना लंड अपनी माँ और पल्लू की दादी की चूत पर रखा. आज वो अपने जन्मस्थान में आंशिक रूप से प्रवेश करने जा रहे थे. सबकी आँखें उन दोनों पर टिकी थीं.
“ओह, माँ!” ये कहते हुए अशोक ने अपना लंड मायादेवी की चूत में धकेल दिया.
“ओह! माँ!” माया देवी के मुंह से निकला, “ओह अशोक, मेरा राजा बेटा!”
अशोक के लंड की यात्रा मायादेवी की चूत में निर्बाध बढ़ती गई. आधे लंड अंदर जाने के बाद अशोक ने अंदर बाहर करना आरम्भ किया. हर प्रयास में लंड कुछ और अंदर जाता. मायादेवी की साँसे रुकी हुई थीं. और अन्य सब मानो एक मनोहारी दृश्य देखकर विस्मित थे. कुछ ही पलों के परिश्रम के बाद अशोक के पूरे लंड ने अपनी माँ की चूत में स्थान बना लिया. इस स्थिति में वो रुक गया.
“बधाई हो! आज आपकी वर्षों की इच्छा पूरी हो गई.” भावना ने उनके पास आकर कहा.
“हाँ, पर तुम्हें कैसे पता. मैंने तो आज ही ये बताया है.”
“ओह, कई बार आप मुझे चोदते समय इनका नाम लेते थे. पर मुझे कभी बुरा नहीं लगा तो मैंने भी कुछ नहीं बोला।”
“अच्छा.” अशोक फिर से लंड अंदर बाहर करने लगा. मायादेवी की मद्धम सिसकारियां निकलने लगीं.
जैसा कि निर्धारित किया गया था, लगभग पांच मिनट के बाद अशोक ने अपना लंड मायादेवी की चूत से बाहर निकाल लिया. मायादेवी अब आनंद की लहरों पर विचरण कर रही थीं तो उन्हें ये व्यवधान रास न आया.
“ऊँह ऊँह, नहीं, मत निकाल!” उन्होंने बोला।
“मैं हूँ न, माँ. मैं आपकी चुदाई करूँगा.” अमर ने अपने लंड को अंदर डालते हुए बोला।
“ओह ओह! आह! ऐसे ही बेटा! आअह!” मायादेवी का आनंद फिर से स्थापित हो गया.
अमर ने भी चुदाई में पूर्ण निष्ठा दिखाई और मायादेवी फिर से आनंद के सागर में हिचकोले खाने लगीं. इसके बाद हर कुछ मिनटों में अशोक और अमर मायादेवी की बारी बारी से चुदाई करते रहे. उनके बीच बीच में रुकने का ये परिणाम हुआ कि वो झड़ने के कहीं निकट भी न थे. बल्कि उनकी प्यारी माँ न जाने कितनी बार झड़ चुकी थीं.
“माँ, अब घुटनों के बल आकर घोड़ी बन जाइये.” ये अशोक ने जब कहा तो मायादेवी को अपनी गांड में एक खुजली का आभास हुआ, जिसको वो अपने बेटों से चुदवाती हुई भूल गयी थीं.
शुभम ने अलमारी से तेल की शीशी निकाली और अपने पापा को दे दी. परिवार के सदस्यों के बीच इस मूक सामंजस्य को देखकर पल्लू को बहुत आश्चर्य हुआ, और कुछ दुःख भी कि वो इस प्रकार से भावनात्मक रूप में नहीं जुड़ पाई. क्या ये सम्भव है कि अब इस कमी को पूरा किया जा सकता है? एक ओर दिन रात का संसर्ग और दूसरा कुछ महीनों के लिए सप्ताह में दो दिन. परन्तु, पल्लू ने प्रयास में कोई कमी न रखने का निर्णय लिया.
दादी ने घोड़ी का आसन अपनाया और बड़े कामुक रूप में अपनी गांड हिलाई. अशोक ने शीशी खोली और चाचा ने दादी की गांड को अपने हाथों से खोला और पापा ने उसमे तेल की धार छोड़ दी. चाचा ने हाथ नहीं हटाए और पापा ने दो उँगलियाँ डालकर दादी की गांड को अच्छे से चिकना दिया. चाचा ने हाथ हटा लिए. दादी ने फिर घोड़ी के समान अपनी गांड हिलाकर अपने ऊपर चढ़ाई करने वाले अपने बेटे रूपी घोड़े को आमंत्रित किया.
“पापा, ताऊजी, दादी गांड मरवाने में चिल्लाती बहुत हैं, पर आप रुकना नहीं, नहीं तो वो आपके ऊपर बहुत गुस्सा हो जाएँगी.” ये सीख हरीश की थी, जिसे सुनकर अशोक और अमर एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये. और अशोक ने अपने तपते लौड़े को अपनी माँ की गांड पर रखा. जिस मटकती गांड को देखकर उसने वर्षों मुठ मारी थी, उसी गांड में आज उसका लौड़ा प्रवेश करने के लिए आतुर था.
“डाल न बेटा, क्यों तड़पा रहा है?” अशोक मानो एक तंद्रा से बाहर निकला जब उसने अपनी माँ की याचना सुनी.
“जी, माँ. अभी लो.” ये कहते हुए पापा ने दादी की गांड में लंड डालना आरम्भ किया. कमरे में हल्की तालियों ने इस अंतिम लक्ष्य के भेदन का स्वागत किया और इसमें दादी की हल्की सी सिसकारी दबी रह गई. तीन पोतों से नियमित गांड मरवाने के कारण दादी की गांड ने अपने बेटे के लंड का स्वागत किया और पापा का लंड सरलता से उनकी गांड में धंसता चला गया.
“ताऊजी, दादी की गांड अच्छे से मारो. देखना फिर वो कैसे उछल उछल कर गांड मरवाती है.” गिरीश ने अगली सीख दी. अशोक ने मन ही मन आश्चर्य किया कि उसकी माँ किस सीमा तक इन तीनों की चुदाई के परिणाम स्वरूप एक सीधी सादी स्त्री से एक महा चुड़क्कड़ महिला बन चुकी हैं. परन्तु इस विषय में चिंतन बाद में किया जा सकता था, अगर करना भी पड़ा तो. उसने अपने लंड को पूर्ण रूप से मायादेवी की गांड में एक झटके में पेल दिया, मायादेवी ने कोई पीड़ा का भाव नहीं दिखाया.
लंड को वहीँ डाले हुए अशोक कुछ समय रुका और फिर धक्के लगाने आरम्भ किये. कुछ ही धक्कों में उसकी गति बढ़ने लगी और गिरीश के कथन के अनुसार मायादेवी अपनी गांड पीछे उछाल कर और लंड अंदर लेने का प्रयास करने लगीं. अशोक को अपनी माँ की गांड मारने में अत्यधिक आनंद का अनुभव हो रहा था. उधर फागुनी मामी ने शुभम और निकुंज को अपने पास बुलाया. दोनों समझ गए कि मामी का अभिप्राय क्या है. परन्तु बिस्तर पर चल रही चुदाई के अंतिम चरण तक न पहुंचने के पहले वो कुछ भी करने वाले न थे.
अशोक ने मायादेवी की गांड पाँच मिनट मारने के बाद अमर को आमंत्रित किया जो अपने तने लंड को लिए आतुर खड़ा था. अमर ने मायादेवी की गांड में अपने पूरे लंड को डालने में अधिक समय नहीं लगाया और शीघ्रतम वो उनकी गांड को पूरी शक्ति के साथ मार रहा था. मायादेवी की कमर उछल उछल कर उसका साथ दे रही थी. उसके बाद फिर से अशोक उनकी गांड मारने लगा. उसके बाद जब अमर उनकी गांड में लंड डाल चुका था तो हरीश ने आकर अशोक से कुछ बोला। अशोक ने अपना सिर सहमति में हिलाया और भावना को देखकर मुस्कुरा दिया. भावना ने भी उसका उत्तर मुस्कुराकर दिया.
इस बार जब अमर ने मायादेवी की गांड से समय समाप्ति पर लंड निकाला तो अशोक ने उससे कहा, “अमर, नीचे लेट जा.”
अमर के चेहरे पर हर्ष के भाव दर्शनीय थे. उसने देर न करते हुए लेटकर अपने लंड को हाथ में ले लिया.
“माँ, जाओ अमर के ऊपर चढ़ो.” अशोक ने कहा तो मायादेवी को अनुमान हो गया कि क्या होने वाला है. और वो निसंकोच अमर के ऊपर चढ़ीं और उसके लंड से अमर का हाथ हटाते हे अपने हाथ से लंड पकड़ा और अपनी चूत पर लगाया. फिर धीमे से वो उसपर बैठ गयीं और आनंद की एक सिसकारी भरी.
“आपको पता है न क्या होने जा रहा है, माँ जी?” भावना ने पास आकर मायादेवी से पूछा. फिर उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही उसका उत्तर भी दे ही दिया. “अब आपके दोनों बेटे आपको एक साथ चोदने वाले हैं. एक चूत में तो एक गांड में. आप तो अपने पोतों से ऐसे चुदवा ही चुकी हो न?”
“हाँ, और बहुत आनंद आता है. आजा बेटा अशोक, अब तू भी चढ़ ही जा.”
पल्लू इस दृश्य को देखकर अपनी ऊँगली पर ही झड़ गई. तभी उसके मोबाइल पर एक संदेश आया. उसने उठाकर पढ़ा और मुस्कुरा दी. उसने अपनी उँगलियों को चाटा और फिर से उस दृश्य को देखने लगी जहाँ उसके पिता उसकी दादी की गांड मारने जा रहे थे, वो भी तब जब उनकी चूत में उनके छोटे भाई का लंड पहले से ही उपस्थित था.
अशोक ने अपनी माँ की खुली गांड को देखा जिसमें से उसके भाई का लंड कुछ समय पहले ही निकला था. दोनों भाइयों के परिश्रम के कारण गांड लाल हो चुकी थी. और अब उसके लंड के आगमन की प्रतीक्षा में कुलबुला रही थी. भावना ने आगे बढ़कर अपने पति के लंड को गांड के छेद पर लगाया. चार फोन इस विलक्षण दृश्य को रिकॉर्ड कर रहे थे, इस सच्चाई से अनिभिज्ञ कि इसकी एक और भी रिकॉर्डिंग हो रही है.
अशोक ने भावना को देखा और उसने एक संकेत दिया. उसके पीछे से शुभम ने उसके कान में आकर कुछ कहा. अशोक ने मुड़कर अपने बेटे को देखा, “तू सच कह रहा है, न?”
“यस डैड!”
“फ़ाईन!”
अपने लंड को अंदर धकेलते ही वो बिना अधिक अड़चन के गांड में समाता चला गया. बीच राह में उसे कुछ बाधा मिली, जो अमर के लंड के दूसरी ओर होने के कारण थी. पर उसने लंड को बाहर निकालते हुए एक शक्तिशाली धक्के के साथ उस बाधा पर विजय प्राप्त कर ली. मायादेवी की एक ह्रदयविदारक चीख निकली, पर फिर वो अमर के ऊपर ढह गयीं और हाँफने लगीं.
“ओह! माँ! मार दिया रे!”
तभी कमरा तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा. मायादेवी के मन में एक गर्व की अनुभूति हुई. और वो फिर से यथास्थिति में आ गयीं. अब वो अपने दोनों बेटों से दुहरी चुदाई के लिए पूर्ण रूप से आतुर थीं.
अमर और अशोक एक दूसरे को विस्मित भाव से देख रहे थे. दोनों के लौड़े उनकी माँ के दो छिद्रों में थे और उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था. अब से एक घंटे पूर्व अगर उन्हें कोई कहता कि वे दोनों अपनी ही माँ को चोदने जा रहे हैं तो वो कदापि विश्वास नहीं करते. परन्तु अब, न केवल उन्होंने अपनी माँ की चूत और गांड मारने का आनंद पाया था, बल्कि अब उनकी दुहरी चुदाई के लिए भी लालायित थे. और उनकी माँ! वो अपनी चूत और गांड में उनके लौड़े लेकर कुनमुना रही थी!
“अब चोदो भी, मादरचोदों!” मायादेवी के इस कथन ने दोनों को मानो यथार्थ में लौटाया.
“बिलकुल, माँ!” अमर ने उनके मम्मे अपने मुंह में लेकर हल्के से काटते हुए बोला, “पहले विश्वास तो कर लें कि ये सच ही है कोई स्वप्न नहीं!”
"सच ही है, बेटा। यही सच है! तुम्हारे बच्चों ने मेरी वर्षों पड़ी वासना को जाग्रत कर दिया है. मुझे तो इनके साथ चुदाई में जो आनंद मिला है, उसने तुम्हारे पिता की स्मृति को फिर जगा दिया है. उनका लंड तुम दोनों से कम तो नहीं था. और जब वो मुझे चोदते थे तो मुझे तारे दिखा देते थे. इन तीनों ने उन तारों में कई गुना बढ़ोत्तरी कर दी जब ये मुझे मिलकर चोदने लगे. और आज तुम दोनों से चुदने का भी सौभाग्य मिल गया.”
पल्लू सोच रही थी कि ये सब चुदाई के समय भी इतने सामान्य रूप से बातें कैसे कर सकते थे? और तब जब लौड़े चूत और गांड में घुसे पड़े हों. उसने अपने मोबाइल को एक बार देखा जहाँ बैठक के अंधकार के सिवाय कुछ न था, बस एक संदेश था. उसने फोन उठाया और उसका संक्षेप उत्तर दिया. और फिर से कमरे में दादी की चुदाई का दृश्य देखने लगी.
और जैसा अपेक्षित था उसके पिता और चाचा ने अपने लंड अंदर बाहर करना आरम्भ किये, एक धीमी गति से वो अपनी माँ की इस चुदाई का भरपूर आनंद लेना चाहते थे.
कमरे में उनकी चुदाई देखने की इच्छा तो बलवती थी, परन्तु अपनी क्षुधा शांत करने की इच्छा भी प्रखर होती जा रही थी. मामी निकुंज और शुभम के लौड़े पकड़े हुए नीचे बैठ गयीं और उन्हें चूसने लगीं. मम्मी और चाची ने हरीश और गिरीश को पकड़ा और मामा ने नीतू पर अपना आधिपत्य जताया. कोण इस प्रकार से रखा कि वे सभी बिस्तर पर दादी की चुदाई को देख सकें.
“तुम्हारी माँ बहुत लालची हो गयी है.” दीप्ति चाची ने गिरीश के लंड पर जीभ घुमाते हुए बोला, “दोनों को पहले ही हथिया ली.”
“चाची, आप क्यों निराश हो रही हो. आपकी भी हर इच्छा पूरी की जाएगी. दो क्या, तीन तीन से चुदवा लेना. किसने रोका ही है. और अब तो हम आपके घर आकर जब चाहे आपको चोद सकते हैं. हमने इसके लिए राह बना दी है.”
“हाँ, लेकिन मुझे नहीं लगता कि माँ जी, हमारे बीच में नहीं आएंगी, बिना चुदे तो अब वो भी रहने वाली नहीं हैं.” चाची ने दादी की ओर देखकर कहा.
“तो क्या हुआ? आप तो जानती ही हैं कि हम तीनों को सरलता से संभाल पाएँगे और निकुंज भी तो हाथ बँटायेगा। चाचा, निकुंज और हम दोनों मिलकर आप तीनों को पूरा संतुष्ट रखेंगे.” गिरीश ने नीतू को भी जोड़ते हुए कहा.
“हाँ वो तो है. चल अब बहुत देर हो गई, माँ जी ने आकर रुकावट डाल दी नहीं तो अब तक मेरी चूत की आग एक बार बुझ गई होती.”
“एक बार!” गिरीश ने लंड को चाची के मुंह से निकालकर कहा, “एक बार में आपको कहाँ चैन मिलना है चाची.”
दीप्ति बिछे हुए गद्दे पर लेट गयी और गिरीश ने उनकी चूत पर लंड लगाकर एक धक्का मारा और उसका लंड जड़ तक समा गया.
“ऊह आह. वाह, अब चैन मिला. अब रुकना मत और चोद जम कर.” दीप्ति ने बोला और अपने पैरों को गिरीश की कमर पर कस लिया.
ऐसा ही कुछ दृश्य भावना के साथ भी था. भावना भी लंड चूसने के बाद अब घोड़ी बन गयी थी और उसके पीछे आकर हरीश ने अपने लंड को एक ही बार में अंदर पेल दिया था. दोनों सामने चल रही मायादेवी की चुदाई को भी देखने में समर्थ थे और इससे उनको और उत्तेजना का अनुभव भी हो रहा था.
“वाह बेटा वाह! क्या चोदता है तू. और जोर से चोद. इतनी देर से रुकी पड़ी हूँ कि समझ नहीं आता कैसे सह पाई. अब अच्छे से दम लगाकर चोद अपनी ताई को!” भावना बोले जा रही थी और पल्लू उनकी इस भाषा को सुनकर अचंभित भी हो रही थी और संतुष्ट भी.
नीतू की चूत में मामा लौड़ा डालकर पूरी शक्ति से उसे चोदे जा रहे थे. भोली भाली सुकुमारी दिखने वाली नीतू किसी अभ्यस्त चुदक्क्ड़ लड़की का रूप ले चुकी थी. अब पहली बार तो चुद नहीं रही थी, पर अपनी कमर उछाल उछलकर मामा के लंड को निगले जा रही थी अपनी चूत में.
परन्तु फागुनी को कुछ अधिक ही आग लगी हुई थी उसने भी भावना के समान ही बिस्तर की ओर मुँह किया हुआ था, पर उसके नीचे शुभम पड़ा हुआ था जो उसकी चूत में अपना मोटा तगड़ा लंड पूरे परिश्रम के साथ पेल रहा था. पर मामी की गांड भी खाली न थी. उसकी गांड में निकुंज ने अपना लंड जड़ा हुआ था और दोनों चचेरे भाई अपनी मामी को पूरी निष्ठा से चोद रहे थे.
“चोदो मेरे लाल! मामी को चोद चोद के मार दो. और तेज मारो मेरी चूत और गांड. रुकना मत! चाहे मैं मर जाऊँ तब भी मत रुकना.” फागुनी की पुकार पर दोनों भाई हंस रहे थे.
“मामी, कितनी बार तो चुदवा चुकी हो, हर बार मरने की बात क्यों करती हो? अगर आज तक नहीं मरीं तो अब क्या होने वाला है.” निकुंज ने ऊपर से गांड मारते उन्हें छेड़ा.
“बाद में बताऊँगी तुझे मादरचोद, अभी गांड मार सही से.”
निकुंज ने उनके कान के पास जाकर कुछ कहा. तो मामी बोल उठीं, “तब रुक जाना, पर तब तक नहीं, चलो मारो मुझे.”
इतना सुनकर निकुंज ने उनके नितम्बों पर थप्पड़ मारना आरम्भ किया. पहले हल्के चाटों ने उनकी चुदाई के अनुरूप थप्पड़ों का स्वरूप ले लिया. नीचे से शुभम उनके मम्मों पर थप्पड़ मारे जा रहा था. उनके मम्मे और गांड पर लाल छापों को देखा जा सकता था. पल्लू अचरज से देख रह थी. उसकी मामी को इस प्रकार की चुदाई रास आती थी ये तो उसने सोचा भी न था. परन्तु वो जानती थी कि सेक्स के खेल में इतनी विकृतियाँ हैं जिन्हें गिना भी नहीं जा सकता. मामी की दुहरी चुदाई अगर थप्पड़ों के साथ चल रही थी, जिसमें मामी चिल्ला चिल्लाकर और जोश भर रही थीं तो इसका प्रभाव उसके पिता और चाचा द्वारा उसकी दादी की चुदाई पर भी पड़ने लगा था. दोनों अब दादी की जमकर चूत और गांड मार रहे थे. अगर मामी की चिल्लाहट कम थी तो दादी की चिल्लाहट ने उसमे और बढ़ोत्तरी कर दी थी.
पापा और चाचा जिनको अब तक केवल अपनी माँ के साथ सहवास करने की इच्छा भर थी, पर इसे पूरी होने के कारण वो इतनी अधिक तीव्र चुदाई कर रहे थे कि दादी की चीखों के कारण साँसे उखड़ने लगीं. दोनों ने इसका अनुभव करते हुए अपनी गति कम कर दी. और मंथर गति से चोदने लगे.
“क्या हुआ? धीमे क्यों पड़ गए. चोदो मुझे, जैसे पहले चोद रहे थे.” दादी ने डाँटते हुए उन्हें झिड़का.
पल्लू हंसने लगी. इतने बड़े होने के बाद भी दादी उन्हें डाँट सकती हैं ये उसके लिए प्रहसन का विषय लग रहा था. पापा और चाचा ने फिर गति पकड़ी और इस बार उन्होंने किसी प्रकार से कोई दया नहीं दिखाई. दोनों उन्हें एक गुड़िया के समान चोदे जा रहे थे. कोई दस मिनट तक की इस चुदाई में दादी कई बार झड़ी होंगी, पर उनके उत्साह में कोई कमी न थी. चाची, मम्मी और मामी की भी भीषण चुदाई निरंतर चल रही थी. मामी ने अब निकुंज के लंड पर बैठकर शुभम के लंड को गांड में लिया हुआ था. और उनकी दमदार चुदाई चलती ही जा रही थी.
“ओह! मैं झड़ने वाला हूँ, माँ” पापा ने कहा तो चाचा ने भी उनका साथ दिया.
“हाँ हाँ, झड़ लो मेरे ही अंदर. देखूं तुम्हारे पानी से मुझे ठंडक मिलेगी या और लौड़े चाहिए पड़ेंगे.” दादी ने बोला तो पापा आश्चर्य में आ गए. उन्हें लगता था कि इस चुदाई के बाद दादी के छक्के छूट गए होंगे पर यहाँ तो वास्तविकता ही कुछ और थी!
पापा ने दादी की गांड में पानी छोड़ा और अमर चाचा ने उनकी चूत को सींच दिया. पापा ने अपना सिकुड़ता हुआ लंड उनकी गांड से निकाला. पल्लू का ध्यान अपने पापा और दादी पर इतना अधिक था कि उसने अपनी मामी की ओर ध्यान ही नहीं दिया. सम्भवतः जब पापा ने झड़ने की घोषणा की थी तो मामी ने शुभम और निकुंज से स्वयं को मुक्त कर लिया था. जब पल्लू का ध्यान गया तो मामी का मुंह दादी की गांड पर लग चुका था और वो जिस प्रकार से उसे सोख रही थीं उससे कोई शंका नहीं थी कि वो एक बूँद भी गांड में छोड़ने का विचार नहीं रखती थीं. गांड को पूर्ण रूप से चमका देने के बाद उन्होंने पापा के लंड को देखा और फिर भूखी शेरनी के समान उसे भी चाट गयीं.
“ओह, फागुनी. क्या चाटती है तू. अब हट, देख अमर भी पानी छोड़ चुका है. माँ की चूत को भी तुझे ही संभालना है.” पापा ने बोला और अपना लंड उनके मुंह से निकाल लिया.
दादी तो चाचा ने कमर से पकड़ा और पलटी मारी. फिर अपने लंड को बाहर निकाला।
“लो फागुनी, तुम्हारे लिए रसमलाई बनाई है.”
मामी फिर से व्यस्त हो गयीं. इस बार दादी ने उनके सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा लिया. पूरा रस पीने के बाद चाचा के लंड को चाटकर मामी जाकर फिर निकुंज के लंड पर चढ़ गयीं और शुभम को गांड मारने के लिए कहा.
पापा और चाचा दादी को अपनी बाँहों में लेकर वहीं बिस्तर पर बैठकर नीचे गद्दों पर चल रही कामक्रीड़ा को देखने लगे. वो अपने हाथों से दादी के मम्मे सहला रहे थे और दादी उनके पुनर्जीवित होते हुए लंड.
सब अपनी चुदाई में इतने व्यस्त थे कि उन्हें इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि कमरे का द्वार खुला और बंद भी हो गया. वहाँ पर एक आकृति खड़ी थी जो सारे घटनाक्रम का अवलोकन कर रही थी. उसे पता था कि उसके प्रवेश से इस परिवार के संबंधों पर एक जीवनोपरंत अंतर आ जायेगा. और उसके लिए कुछ पलों की प्रतीक्षा में कोई आपत्ति नहीं थी.
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कहीं दूर जब दिन ढल जाए:
दो वृद्ध सोफे पर बैठे हुए बातें कर रहे थे. दोनों के हाथ में मदिरा के ग्लास थे और उनके सामने एक लिफाफा रखा हुआ था.
उन्होंने घड़ी देखी और पहले ने दूसरे से पूछा, "चलकर देखें? क्या चल रहा है?”
“वो तो पता ही है, पर चलो.” दोनों ने अपने ग्लास खाली किये और साथ के कमरे की ओर बढ़े जहाँ से कुछ धीमे स्वर सुनाई दे रहे थे. कमरे के खुलते ही वो स्वर तीव्र हो गए.
“आह, आह, चोदो मुझे.”
“आह फाड़ दी रे, मेरी गांड फाड़ दी.”
“ओह माँ, मर गई रे.”
“रुकना मत माँ के लौडों, सोचना भी मत.”
उन दोनों वृद्धों ने कमरे को फिर से बंद किया और वहाँ पड़ी दो कुर्सियों पर बैठ गए. सामने बिस्तर पर दो वृद्धाएँ चार युवा लड़कों के साथ गुत्थमगुत्था हुई पड़ी थीं. दोनों के चेहरे पर असीम आनंद के भाव थे. और जैसा कि अपेक्षित है, दोनों की चूत और गांड में एक एक लौड़ा था और दुर्दांत गति से उनकी चुदाई कर रहे थे.
दोनों वृद्धाओं के मुंह से आनंद और पीड़ा से मिश्रित चीत्कारें निकल रही थीं. अपनी पत्नियों की इस प्रकार से युवा लौडों से चुदाई होते देख दोनों वृद्ध उत्साहित तो थे परन्तु वर्षों से मधुमेह और उच्च रक्तचाप ने उनके लौडों की शक्ति समाप्त कर दी थी. यही कारण था कि वे अपनी पत्नियों के प्रेम के कारण उन्हें इस प्रकार से चुदने का अवसर देते थे. ये युवा एक पत्नी की सहेली के द्वारा भेजे जाते थे, और इन्हें निर्धारित पारिश्रमिक भी प्रदान किया जाता था.
ये दृश्य लगभग दस मिनट तक यूँ ही चलता रहा था. दोनों महिलाओं की चूत और गांड की जमकर खुदाई हो रही थी.
एक लड़का बोला, “सर, मैडम बहुत शोर मचाती हैं.”
“हाँ, वो तो है. अच्छा सुनो. हम सोने जा रहे हैं. मैंने तुम सबके लिए बाहर टेबल पर एक लिफाफा रख दिया हिअ, पूरी रात के अनुसार. मुझे आशा है कि तुम सब सुबह छह बजे निकल जाओगे.”
इसके बाद उसने उन दोनों महिलाओं को सम्बोधित किया, “ओके, गर्ल्स, यू एन्जॉय. सी यू इन द मॉर्निंग.”
“थैंक यू. लव यू.” उन दोनों वृद्धाओं ने उत्तर दिया.
दोनों वृद्ध उठे और बैठक में जाकर बैठ गए.
“मुझे स्वयं से घृणा होती है कि मैं अपनी पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाता।” पहले ने कहा.
दूसरा: “हाँ, पर ये प्रबंध भी उचित ही है. हाँ, महँगा अवश्य है, पर अब पैसों का करना भी क्या है?”
पहला: “बात पैसे की नहीं है, बात बाहर जाने की है. काश इसका कोई उपाय होता.”
दोनों ने एक पेग और पिया और फिर अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.
एक परछाईं कुछ देर में घर के द्वार को खोलकर बाहर चली गई. उसने पिछले कुछ समय की गतिविधियों को देख लिया था. बाहर आकर वो एक कार में बैठा.
“बहुत देर कर दी.”
“हाँ, मुझे बाथरूम जाना पड़ा था. इसीलिए.”
“ओके, जब इच्छा करे तब बता देना.” कार चालक ने कहा और कार चल पड़ी. उसे आभास था कि जो बताया गया है वो पूर्ण सत्य नहीं था.
क्रमशः
Thanks Bhai.Vehtari se bhi super excited story hai bhai
Thanks Bhai.Nice update bro
Pallu ko dhire dhire apni family ke raj kA pata chal raha hai
Intjar hai dono family ke ek sath enjoy kab karte hai
Thanks Bhai.Gajab update bro.next ka bahut besabri se pratiksha rahegi.dekhna hai kon kamre mai aaya hai.superb outstanding.