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मैं अपने कमरे में जा कर लेट गयी. बस अब इन्तजार था तो बाबुजी का.
मेरा दिल तो बहुत देर से बहुत तेज तेज धड़क रहा था. पर जब मैं अपने कमरे में जा कर लेट गयी और उनके कमरे की लाइट भी बंद कर दी तो जैसे एक एक पल एक एक दिन की तरह बीत रहा था. मन कर रहा था की बस बाबुजी जल्दी से आ जाएं बस.
मुझे नींद नहीं आ रही थी.इसी तरह रात के ११ बज गए.
अचानक मेरे कमरे के दरवाजे पर कुछ आवाज हुई. मैंने सर घुमा कर देखा तो दरवाजा धीरे धीरे खुल रहा था.
मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की जैसे मेरा तो हार्ट अटैक ही आ जायेगा.
दरवाजे से बाबुजी खड़े थे. उन्होंने एक धोती और शर्ट पहन रखी थी, कमरे में खिड़की से बाहर से थोड़ी रौशनी आ रही थी जिस से सब कुछ ठीक से दिखाई दे रहा था.
बाबुजी धीरे धीरे चलते हुए मेरे बेड के पास आ गए। उन्होंने ओर देखा, मैने अपनी आँखें बाबुजी की आँखों की तरफ की और उनकी आँखों में देखा.
मेरी आँखों में बेइंतेहा शर्मा की लाली थी. मैंने शर्म से अपनी आँखें झुका ली. और मैं ओर ज्यादा देर तक बाबुजी को न देख सकी.
बाबुजी मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे और में उन्हें देख कर शर्मा रही मैंने बाबुजी को बैठने या लेटने के लिए कुछ न कहा और आराम से अपने बेड पर चुप चाप लेटी रही तो बाबुजी बेचारे ऐसे ही खड़े रहे.
जब मैं कुछ न बोली तो बाबुजी ने मुझे देखते हुए कहा।
"बहुरानी थोड़ा परे को तो सरक मुझे भी लेटने के लिए थोड़ी जगह दे. देख कैसे अकेली ही पूरा बेड घेर कर लेती है. मालूम है न आज हम दोनों को इस पर लेटना है, "
कहते हुए बाबुजी के होंठों पर एक शरारती सी मुस्कान थी.
मैंने फटाफट पीछे को हो कर बाबुजी के लेटने के लिए जगह बनाई।
खाली जगह में बाबुजी मेरे साथ लेट गए .
मेरा दिल धड़क रहा था. लगता था मैंने जो निर्णय कर लिया है और हम दोनों बाबुजी और बहु की जिंदगी खुशियों से भरने वाला है.
बाबुजी बिलकुल मेरे साथ ही लेटे थे . हमारे शरीरों के बीच में मुश्किल से ६ इंच का फासला था.
बाबुजी का दिल भी इतने जोर से धड़क रहा था कि उनके दिल के धड़कने की आवाज मुझे साफ सुनाई दे रही थी. शायद मेरे तेज तेज धड़कते दिल की आवाज बाबुजी को भी सुनाई दे रही हो.
यह हमारे जीवन का एक बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण क्षण था. जो हमारे आने वाले जीवन की दिशा बदल देने वाला था.
बाबुजी ने मुझ से प्यार से पूछा
"बहुरानी! तुम ने क्या निर्णय लिया है? एकबार फिर से बता दो ताकि कोई गलतफहमी न रहे "
जवाब में में कुछ नहीं बोली. मेरी गालें शर्म से लाल हो रही थी. शर्म से मुझसे कुछ कहा नहीं जा रहा था. बस मैंने आगे बढ़ कर अपने होंठों बाबुजी के होंठ पर रख दिए और उन्हें चूमने लगी.
मेरा का उत्तर बिलकुल स्पष्ट था.बाबुजी तो मुझे छेड़ रहे थे, आज हरी मैक्सी पहन कर मैंने उन्हें अपना निर्णय बता ही दिया था की मैं उनसे प्यार का खेल खेलने को तैयार हूँ. अब बाबुजी भी अपने होंठ खोल दिए और मेरे होंठों को अपने होंठों के बीच दबा कर चूसने लगे .
बाबुजी ने फिर अपना चेहरा पीछे किया और शरारती सी मुस्कान में कहा
"सुषमा! बताओ न तुम्हारा क्या निर्णय है. क्या मैं तुम्हारी हाँ समझूँ ?"
हालाँकि अब सब स्पष्ट ही था. पर मैं तो आखिर एक औरत ही थी. मुँह से कुछ बोल कैसे सकती थी.
जब बाबुजी ने दोबारा छेड़ते हुए मेरा निर्णय पूछा तो मैंने शर्म से अपना चेहरा बाबूजी की छाती में छुपा लिया और उनसे चिपकते हुए धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा कर बाबुजी की लुंगी में डाल दिया और उनके तने हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ लिया.
फिर मैंने धीमे से अपना मुँह बाबुजी के कान के पास किया और उनके लौड़े को अपने हाथ से आगे पीछे करते हुए, जैसे मैं बाबुजी का मुठ मार रही होऊं धीरे से बोली
"यह है मेरा निर्णय."
और लौड़े को जोर से दबा दिया.बाबुजी की तो जैसे चीख ही निकल गयी.
मैं अब बाबुजी के लौड़े पर अपने हाथ को तेज तेज आगे पीछे करते हुए लण्ड को प्यार से सहला रही थी, और फिर उनके कान में फिर से बोली.
"बाबुजी! मुझे बोलने में बहुत शर्म आ रही है. बस अब कुछ न बोलिये . खुद ही समझ जाइये। और अब देर ना कीजिये ."
बाबुजी को भी अब देर करना बहुत मुश्किल हो रहा था. आखिर उनकी इतने दिन की मेहनत रंग ला रही थी, तो बाबुजी ने मुस्कुराते हुए मुझे कहा..
"बहु सुषमा! अपने कपडे तो खोल दो. ताकि फिर चटवाई और चुसाई का काम शुरू हो सके."
मैंने बाबुजी को कहा "बाबुजी! आपने ही तो कहा था कि आप मेरी हरी मैक्सी खोलना चाहते हैं. अब आप ही अपने हाथ से खोलिये इसे."
बाबुजी ने मुझे नीचे खड़ा कर दिया और मेरी मैक्सी खोल दी, मेरे बड़े बड़े मुम्मे बाहर आ गए क्योंकि वासना के मारे मैंने अपनी ब्रा और पैंटी पहले ही खोल दी थी.
फिर बाबूजी ने जब मुझे पूरी नंगी कर दिया तो बोले
"सुषमा! बहुरानी अब तुम्हारी बारी है. मैं समज गयी और मैंने भी अब शर्म छोड़ कर बाबूजी की कमीज उतार दी और उनकी धोती भी खोल दी.
धोती खोलते ही बाबूजी का एक अजगर जैसा बड़ा और मोटा लण्ड एकदम से बाहर आ गया.
बाबूजी ने भी मेरी तरह अपनी चड्डी पहले ही खोल रखी थी. उन्हें भी अपनी बहु को चोदने की बहुत जल्दी थी,
मैंने कई बार बाबूजी का लण्ड बाथरूम में देखा था और उसदिन तो ऑटो में मुठ भी मारी थी. पैर इतनी पास से बाबूजी का लौड़ा पहली बार देख रही थी.
क्या शानदार लण्ड था. कम से कम 9 इंच लम्बा होगा और 4 इंच मोटा होगा. मेरे पति से दुगना मोटा. इतने पास से देख कर दिल बाग़ बाग़ हो गया. अब यह पहलवानी लण्ड मेरा था. मैं समज गयी की आज मेरी चूत की खैर नहीं है.
खैर अब कुछ नहीं हो सकता था. वैसे भी जब ओखली में सर दे ही दिया तो मुसल का क्या डर?
अब तो मेरी इस मुसल से चुदाई होनी ही थी, जो होगा देखा जायेगा. राम भली करेंगे.
मैंने बाबूजी का लण्ड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलने और धीरे धीरे सहलाने लगी.
बाबुजी ने मुझे प्यार से कहा.
"बहुरानी! मैं तो उस दिन से तुम्हारी आइसक्रीम चाटना चाहता हूँ. तो फिर आइसक्रीम चटवाने को तैयार हो न?"
मैं शर्म से चुप हो गयी. हम दोनों ससुर बहु अब पूरे नंगे बेड पर बैठे थे. मैं उनका लण्ड सेहला रही थी, और मैंने कोई जवाब न देते हुए बाबुजी का सर अपनी गोद की ओर खींच लिया.
सर को आगे खींचने से बाबुजी समज गए कि मैं चूत चटवाना चाहती हूँ.
बाबूजी ने मुझे प्यार से बेड पर लिटा दिया और मेरी दोनों टाँगें अपने हाथ से चौड़ी कर दी. मेरी चूत बाबुजी के सामने ऐसे खुली पड़ी थी जैसे कपडे की दूकान पर कपडे के थान खुले पड़े होते हैं.
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और बाबुजी ने मेरी चूत को अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया.
बाबुजी ने अपना मुंह मेरी चूत के पास लाया और मेरी चूत को सूंघते हुए बोले
"सुषमा! तुम्हारी चूत से तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही है. इसका टेस्ट भी अच्छा होगा."
यह बोल कर बाबुजी ने चूत को सहलाना छोड़ कर अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर मेरी गांड पर रख दिया और अपने मुंह को आगे कर मेरी चूत को चूम लिया।
मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया.
इसके बाद बाबुजी अपने दोनों हाथों को दोबारा आगे लेकर आएं और मेरी उंगलियों से मेरी गीली हो चुकी चूत की दोनों फाँकों को फैला दिया और जीभ से चूत को चाटने लगे।
मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी।
मैं भी अपने कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए चूत चटवाने लगी।
चूत चाटते-चाटते बाबुजी बीच-बीच में अपनी जीभ को मेरी चूत में घुसा कर हिलाने लगते थे।
मुझे तो होश ही नहीं था.
मेरी चूत बाबुजी के मुंह के ठीक सामने थी।
इसके बाद मैंने भी अपनी जाँघों को और फैला दिया और उन्हें चूत चाटने की पूरी जगह दे दी।
बाबुजी ने हाथ से मेरी चूत के दोनों फांकों को फैला दिया और अपने मुँह को मेरी दोनों गोल चिकनी जाघों के बीच लाकर जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने लगे।
कुछ देर बाद वे चूत चाटने हुए ही अपने दोनों हाथ को पीछे लेजाकर मेरी गांड को सहलाने और दबाने लगे।
मैंने अभी तक ऐसा सिर्फ पॉर्न मूवी में देखा था कि कैसे ससुर अपनी बहु की चूत चाटता है और बहु अपने ससुर से चूत चटवाती है।
मगर आज मेरे ही ससुर मेरे सामने घुटनों के बाल बैठ कर अपनी बहुरानी की चूत चाट रहे थे।
यह सोच कर मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई थी कि … चूत चटवाते हुए मुश्किल से 2-3 मिनट हुए होंगे कि मुझे ऐसा लगा कि मेरे शरीर का सारा खून चूत की तरफ जा रहा है; मेरी चूत की नसें एकदम फटने वाली हैं।
मैं तेजी से कमर हिलाने लगी और मेरे मुंह से तेज सिसकारियां निकलने लगीं- आआ आआआ आआह हहह हह हहह!
फिर अचानक मेरा शरीर एकदम अकड़ गया और मेरे मुँह से तेज़ सिसकारी निकली- आआ आआ आह हह हहह!
और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
मैंने एक्साइटमेंट में बाबुजी का मुंह अपनी जांघों के बीच जोर से दबा लिया था … बाबुजी बिना मुंह हटाये मेरी चूत का सारा पानी जीभ से चाट गये।
मैं तेजी से हांफ रही थी … हल्की ठंडी हवा में भी मेरे माथे पर पसीने की बूंदें आ गई थीं।
उधर बाबुजी अभी भी नीचे बैठे रहे और कुछ देर के लिए … उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया ताकि मैं अपनी सांस पर काबू कर लूं।
जब उन्हें लगा कि मैं थोड़ा नॉर्मल हूं गई हूं … तो उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैला कर फिर से मेरी चूत चाटना शुरू कर दिया।
मैं तो जैसे आसमान में उड़ने लगी थी।
मुझे इतना मजा आ रहा था कि मदहोशी में मैंने आंख बंद कर ली और बाबुजी के सिर को पकड़ कर अपनी कमर हिला-हिला कर दोबारा से चूत चटवाने लगी।
करीब 2 मिनट की चूत चटाई से मुझ पर दोबारा चुदाई का नशा चढ़ने लगा।
मेरी चूत भर भर पानी छोड़ रही थी जिस से कि मेरी चूत के पानी से चूत और फिर भी चिकनी हो गई थी बाबुजी ने अपनी एक उंगली मेरी चूत के ऊपर रख दी मेरी चूत चिकनी होने के कारण उनकी उंगली एकदुम सटाक से मेरी चूत के अंदर चली गई जिसे वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, क्योंकि चूत में तो बाबुजी की ऊँगली थी तो बाबुजी ने अपनी जीभ मेरी भगनासा पर रख दी, ज्योंही बाबुजी की जीभ मेरे चने के दाने पर लगी, मैं तो आनंद से उछल बाबुजी का सर अपनी चूत पर जोर से दबा दिया.
अब मेरी चूत में बाबुजी की ऊँगली घूम रही थी और मेरे स्वर्ग के बटन यानि मेरी भगनासा पर बाबुजी की जीभ। ऐसा डबल हमला मेरे पर कभी नहीं हुआ था. मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी. हम ससुर बहु आज एक दुसरे के होश में मजे कर रहे थे.
जोश में मैं अपने आपको काबू में नहीं रख पा रही थी और बोली, “बाबुजी, प्लीज जल्दी कुछ करो ना। नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगी। प्लीज”
पर बाबुजी कहा मनाने वाले थे बाबुजी ने मेरी चूत पर अपना पूरा कब्ज़ा जमा रखा था और वो मेरी चिकनी चूत बड़े प्यार से सहला रहे थे और बाबुजी खुद नीचे बैठ गए ते और अपने दोनों हाथ उन्होंने अब मेरी गांड पर रख दिए और फिर उन्होंने अपने होठ मेरी भगनासा पर रख दिए और जीभ निकल कर भगनासा को चाटने लगे और कभी मेरी भगनासा पर अपने दांत गड़ा देते मस्ती के कारण अब मुझे से बर्दाश्त करना मुश्किल था.
मैं तड़प रही थी और चिल्ला रही थी
"हाए मां, उफ कितनी गर्म है आपकी जीभ? आ आ उई"
मैं बुरी तरह से सिसकारियां निकलने लगीसी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबुजी ने अपनी लपलपाती हुई जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसा दी और जीभ से चोदने लगे.
मस्ती मैं भी पूरी तरह से गरम हो गई थी तो मैंने आगे को होकर झट से बाबुजी के सर को अपने हाथों में थाम लिया मैं बाबुजी के बालो, मैं अपनी उंगली घुमाते बाबुजी को अपनी चूत पर दबाने लगी मुझे बाबुजी के होठों से अपनी चूत की तेज सुगंध और उसके तीखे नमकीन स्वाद का एहसास हो रहा था.
बाबुजी के हाथ मेरी दोनों चूतड़ों पर थे जिसे वो बड़े ही जोर से दबा रहे थे और सहला रहे थे. मैं इतनी गरम हो उठी थी कि मुझ से अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन था मस्ती, मेरे मुंह से निकला है
"बाबुजी जी आप ने तो मुझे पागल कर दिया ही, कृपया जल्दी से कुछ करो नहीं तो मर जाऊंगी। कितना चाटेंगे कब से ऐसे चाट रहे ही जैसे वहा रसमलाई रखी हो. अब बस कीजिए ना."
मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थी. शायद बाबुजी भी सिसकारियां ले रहे हों पर क्योंकि उनका मुंह तो मेरी चूत पर था तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
थोड़ी देर में फिर मेरा शरीर अकड़ने लगा. दूसरी बार से मेरा निकलने वाला था.
अचानक से मेरा शरीर फिर अकड़ गया और मेरी चूत ने बाबुजी के मुंह पर ही अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.
मैं आह आह आह चिल्ला रही थी और बाबुजी ने अपना मुंह मेरी चूत के बिलकुल छेद पर रख लिया था और बाबुजी मेरी चूत से निकलने वाले रस के एक एक कतरे को पी गए. बाबुजी ने चाट चाट कर मेरी चूत बिलकुल साफ़ कर दी.
मैंने बाबुजी से पूछा.
"बाबुजी आप ने तो अपनी पूरी जीभ अंदर तक डाल कर मेरी साड़ी आइसक्रीम चाट ली है. कैसी लगी अपनी बहु की आइसक्रीम ?"
बाबुजी मुझे बोले
"सुषमा! मैंने तुम्हारी सास की भी बहुत आइसक्रीम चाटी है और कुछ और औरतों की भी, पर जो स्वाद और मजा तुम्हारी चूत के रस में आया, सच बोलूं तो इतनी प्यारी चूत मैंने आज तक नहीं देखी। "
मैं बहुत खुश हो गयी. मैं जोर से हांफ रही थी.
बाबुजी उठ कर खड़े हुए. उन का लौड़ा इतना सख्त हो गया था कि साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था.
मैंने अपना मजा तो ले लिया था, पर अब बाबुजी की भी बारी थी.
बाबुजी का गधे जैसा लौड़ा, जिस के लिए उनकी बहुरानी ना जाने कब से तरस रही थी फुंकारें मार रहा था.
लण्ड झटका मार रहा था और उस पर की नसें भी साफ़ दिखाई दे रही थी .
बाबूजी ने मुझे भी अपने सामने खड़ा कर लिया और फिर बाबुजी ने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर उन्हें नीचे दबाया. मैं समझ गयी कि बाबुजी मुझे बैठने का इशारा कर रहे हैं. मैं बाबुजी के बिलकुल सामने बैठ गयी।
बाबुजी का तना हुआ लौड़ा बिल्कुल मेरी आंखो के सामने मेरे मुंह के करीब था. जो मेरी गरम सांसो से और भी उछलकूद मचा रहा था। मैंने अपनी आंखें ऊंची करके स्माइल करते हुए बाबुजी की आंखें देखीं दी. अब मेरी भी शर्म ख़त्म हो चुकी थी,
उनका काला लम्बा मोटा लंड हवा में किसी मस्त सांड की तरह झूमता मेरी आँखों के सामने था। मुझे आज उनका लंड उस रात के मुकाबले और फिर भी मोटा लग रहा था।
मैंने अपने हाथ बाबुजी के लंड पर रख दिए जैसे ही मेरा मुलायम नरम हाथ बाबुजी के लंड पर पड़ा मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने कोई गरम रॉड पकड़ ली जिससे मेरा हाथ जल जाएगा।
मैं मस्ती मैं बाबुजी के लंड को अपने हाथ से सहलाने लगी जैसे ये मेरा सब से मनपसंद खिलोना हो मैं नीचे बैठी बाबुजी के लंड को सहला रही थी।
फिर बाबुजी ने मुझे कहा
"बहुरानी सुषमा! मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत के हिसाब से काफी बड़ा है, और मोटा भी. इसे मैं जब तुम्हारी चूत में डालूंगा तो हो सकता है तुम्हे दर्द हो. तो तुम एक काम करों कि अपने बाबुजी के लण्ड को मुंह में ले कर थोड़ा चूस दो ताकि वो गीला हो जाये, तुम्हारी चूत तो पहले ही मेरे चाटने से गीली हो गयी है. लण्ड भी गीला होगा तो आसानी होगी. क्या बाबुजी का लण्ड चूस दोगी? वैसे भी मैंने तुमसे वायदा किया है कि तुम्हे एक बड़ी और मोटी सी चॉकोबार चूसने को दूंगा. क्या तुम्हे बाबूजी की चॉकोबार पसंद आयी. क्या चूसोगी इसे?"
अँधा क्या चाहे दो आँखें. और सुषमा क्या चाहे- बाबुजी का लण्ड।
मैंने बाबुजी के लण्ड को हाथ में पकडे बाबुजी की तरफ देखा और शर्म के कारण मेरे मुंह से हाँ तो नहीं निकल सकी और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए, बाबुजी के लण्ड को अपनी तरफ खींचा और अपना मुंह भी आगे किया.
तभी बाबुजी ने अपना एक हाथ बढ़ाया और मेरे कंधे पर रख कर धीरे से बोले- इसे मुंह में लो बेटा!
बाबुजी की आवाज उत्तेजना में हल्का सा कांप रही थी ऐसा लग रहा था जैसे नशे में बोल रहे हों।
वैसे मैं तो खुद भी यही चाह रही थी।
मैं बाबुजी के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड की चमड़ी को पूरा पीछे खींच कर सुपारे को मुंह में भर कर चूसने लगी।
मैंने लंड चूसते हुए हुए ऊपर देखा तो बाबुजी अपने एक हाथ को अपनी कमर पर रखे हुए थे और मुझे देखते हुए अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए मजे से लंड चुसवा रहे थे।
उनका एक हाथ मेरे सिर पर था जिसे वे हल्का सा अपने लंड पर दबा रहे थे.
मुझे लग रहा था कि वे भी शायद अपनी किस्मत पर फूले नहीं समा रहे होंगे कि उनकी मस्त जवान बहुरानी नंगी बैठी अपने ही ससुर का लंड चूस रही है।
जिस तरह बाबुजी अपने कमर हिलाने की स्पीड बढ़ा कर लंड मेरे मुंह में तेजी से आगे पीछे कर रहे थे … मुझे लग रहा था कि वे जल्दी ही झड़ने वाले हैं.
मैं भी लंड के सुपारे को तेजी से अपने सर आगे पीछे कर चूसने लगी थी।
अभी मुश्किल से 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि उनके मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी और वे तेजी से अपनी कमर को हिलाने लगे.
आआआ आहह हहह … बहुरानी आआ … और फिर अचानक उनका शरीर एकदम अकड़ गया और उनके मुँह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआह हह हहह!
और दो-तीन तेज झटके देते हुए मेरे मुंह में अपने लंड का सारा पानी निकाल दिया।
मैंने भी लंड का सारा नमकीन पानी पी लिया।
बाबुजी खड़े-खड़े तेजी से हांफ रहे थे … उनका लंड एकदम ढीला हो गया था.
मगर मैंने अभी भी बाबुजी के लंड को मुंह से नहीं निकाला था और उनके ढीले हो चुके लंड को भी मुंह में लेकर चुपचाप उसी तरह घुटनों की बल बैठी रही।
मैं जान रही थी कि अगर मैं इस तरह बाबुजी के झड़ जाने के बाद खड़ी हो गई तो आज चूत में लंड लेने का सपना अधूरा रह जाएगा और फिर चूत चुदवाने के लिए मुझे दोबारा कोई दूसरा प्लान बनाना पड़ेगा।
वहीं मेरी चूत में फिर से खुजली शुरू हो चुकी थी जो अब लंड से ही शांत होने वाली थी।
इसीलिए जब बाबुजी थोड़े नॉर्मल हुए तो मैंने उनके ढीले पड़ चुके लंड को दोबारा चूसना शुरू कर दिया.
बाबुजी भी मजे से दोबारा कमर हिला-हिला कर लंड चुसवाने लगे.
करीब 2 मिनट तक लंड चुसाई के बाद ही बाबुजी का लंड दोबारा होकर टाइट खड़ा हो गया।
फिर कुछ देर और लंड को चूसने के बाद मैंने लण्ड को मुंह से निकाला और उसे हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी और खड़ी हो गई।
मैं अभी तक लंड को हाथ से पकड़े हुई थी।
मेरी चूत एकदम पनिया चुकी थी और मुझ पर दोबारा मदहोशी छाने लगी थी.
मेरा बेटा तो अपने कमरे मे आराम से सो रहा था. और इधर हम दोनों ससुर बहु अपने मजे कर रहे थे.
अब चुदाई का टाइम था,
बाबूजी ने मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए पूछा
"सुषमा! तो अब फिर क्या ख्याल है. हो जाये?"
मैंने शरारत से पूछा
"अब सब कुछ हो तो गया है. और क्या हो जाये?"
बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले
"बहुरानी! यह तो अभी ट्रेलर था. असली फिल्म तो अभी बाकी है. अभी तो तुम्हे इस लौड़े का असली मजा आएगा. तो फिर चुदाई के लिए तैयार हो ना?"
मैंने शर्माते हुए अपनी गर्दन हिला दी और बेड पर लेट गयी और बाबूजी को अपने पास आने का इशारा किया.
बाबूजी अपना लौड़ा हाथ में पकडे हुए मेरे पास आये. और बोले
"तो चलो बहुरानी अब वो करते हैं जिस के लिए हम दोनों इतने दिनों से तरस रहे थे."
मैंने भी बाबूजी को मुस्कुराते कहा
"बाबूजी! तो फिर जल्दी आईये ना. अब और क्यों तरसा रहे हो आप। "
बस फिर क्या था बाबूजी नंगे ही मेरे पास बैठ गए.

मेरा दिल तो बहुत देर से बहुत तेज तेज धड़क रहा था. पर जब मैं अपने कमरे में जा कर लेट गयी और उनके कमरे की लाइट भी बंद कर दी तो जैसे एक एक पल एक एक दिन की तरह बीत रहा था. मन कर रहा था की बस बाबुजी जल्दी से आ जाएं बस.
मुझे नींद नहीं आ रही थी.इसी तरह रात के ११ बज गए.
अचानक मेरे कमरे के दरवाजे पर कुछ आवाज हुई. मैंने सर घुमा कर देखा तो दरवाजा धीरे धीरे खुल रहा था.
मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की जैसे मेरा तो हार्ट अटैक ही आ जायेगा.

दरवाजे से बाबुजी खड़े थे. उन्होंने एक धोती और शर्ट पहन रखी थी, कमरे में खिड़की से बाहर से थोड़ी रौशनी आ रही थी जिस से सब कुछ ठीक से दिखाई दे रहा था.
बाबुजी धीरे धीरे चलते हुए मेरे बेड के पास आ गए। उन्होंने ओर देखा, मैने अपनी आँखें बाबुजी की आँखों की तरफ की और उनकी आँखों में देखा.
मेरी आँखों में बेइंतेहा शर्मा की लाली थी. मैंने शर्म से अपनी आँखें झुका ली. और मैं ओर ज्यादा देर तक बाबुजी को न देख सकी.
बाबुजी मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे थे और में उन्हें देख कर शर्मा रही मैंने बाबुजी को बैठने या लेटने के लिए कुछ न कहा और आराम से अपने बेड पर चुप चाप लेटी रही तो बाबुजी बेचारे ऐसे ही खड़े रहे.
जब मैं कुछ न बोली तो बाबुजी ने मुझे देखते हुए कहा।
"बहुरानी थोड़ा परे को तो सरक मुझे भी लेटने के लिए थोड़ी जगह दे. देख कैसे अकेली ही पूरा बेड घेर कर लेती है. मालूम है न आज हम दोनों को इस पर लेटना है, "

कहते हुए बाबुजी के होंठों पर एक शरारती सी मुस्कान थी.
मैंने फटाफट पीछे को हो कर बाबुजी के लेटने के लिए जगह बनाई।
खाली जगह में बाबुजी मेरे साथ लेट गए .
मेरा दिल धड़क रहा था. लगता था मैंने जो निर्णय कर लिया है और हम दोनों बाबुजी और बहु की जिंदगी खुशियों से भरने वाला है.
बाबुजी बिलकुल मेरे साथ ही लेटे थे . हमारे शरीरों के बीच में मुश्किल से ६ इंच का फासला था.
बाबुजी का दिल भी इतने जोर से धड़क रहा था कि उनके दिल के धड़कने की आवाज मुझे साफ सुनाई दे रही थी. शायद मेरे तेज तेज धड़कते दिल की आवाज बाबुजी को भी सुनाई दे रही हो.
यह हमारे जीवन का एक बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण क्षण था. जो हमारे आने वाले जीवन की दिशा बदल देने वाला था.
बाबुजी ने मुझ से प्यार से पूछा
"बहुरानी! तुम ने क्या निर्णय लिया है? एकबार फिर से बता दो ताकि कोई गलतफहमी न रहे "
जवाब में में कुछ नहीं बोली. मेरी गालें शर्म से लाल हो रही थी. शर्म से मुझसे कुछ कहा नहीं जा रहा था. बस मैंने आगे बढ़ कर अपने होंठों बाबुजी के होंठ पर रख दिए और उन्हें चूमने लगी.

मेरा का उत्तर बिलकुल स्पष्ट था.बाबुजी तो मुझे छेड़ रहे थे, आज हरी मैक्सी पहन कर मैंने उन्हें अपना निर्णय बता ही दिया था की मैं उनसे प्यार का खेल खेलने को तैयार हूँ. अब बाबुजी भी अपने होंठ खोल दिए और मेरे होंठों को अपने होंठों के बीच दबा कर चूसने लगे .

बाबुजी ने फिर अपना चेहरा पीछे किया और शरारती सी मुस्कान में कहा
"सुषमा! बताओ न तुम्हारा क्या निर्णय है. क्या मैं तुम्हारी हाँ समझूँ ?"
हालाँकि अब सब स्पष्ट ही था. पर मैं तो आखिर एक औरत ही थी. मुँह से कुछ बोल कैसे सकती थी.
जब बाबुजी ने दोबारा छेड़ते हुए मेरा निर्णय पूछा तो मैंने शर्म से अपना चेहरा बाबूजी की छाती में छुपा लिया और उनसे चिपकते हुए धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा कर बाबुजी की लुंगी में डाल दिया और उनके तने हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ लिया.

फिर मैंने धीमे से अपना मुँह बाबुजी के कान के पास किया और उनके लौड़े को अपने हाथ से आगे पीछे करते हुए, जैसे मैं बाबुजी का मुठ मार रही होऊं धीरे से बोली
"यह है मेरा निर्णय."
और लौड़े को जोर से दबा दिया.बाबुजी की तो जैसे चीख ही निकल गयी.

मैं अब बाबुजी के लौड़े पर अपने हाथ को तेज तेज आगे पीछे करते हुए लण्ड को प्यार से सहला रही थी, और फिर उनके कान में फिर से बोली.
"बाबुजी! मुझे बोलने में बहुत शर्म आ रही है. बस अब कुछ न बोलिये . खुद ही समझ जाइये। और अब देर ना कीजिये ."
बाबुजी को भी अब देर करना बहुत मुश्किल हो रहा था. आखिर उनकी इतने दिन की मेहनत रंग ला रही थी, तो बाबुजी ने मुस्कुराते हुए मुझे कहा..
"बहु सुषमा! अपने कपडे तो खोल दो. ताकि फिर चटवाई और चुसाई का काम शुरू हो सके."
मैंने बाबुजी को कहा "बाबुजी! आपने ही तो कहा था कि आप मेरी हरी मैक्सी खोलना चाहते हैं. अब आप ही अपने हाथ से खोलिये इसे."
बाबुजी ने मुझे नीचे खड़ा कर दिया और मेरी मैक्सी खोल दी, मेरे बड़े बड़े मुम्मे बाहर आ गए क्योंकि वासना के मारे मैंने अपनी ब्रा और पैंटी पहले ही खोल दी थी.

फिर बाबूजी ने जब मुझे पूरी नंगी कर दिया तो बोले
"सुषमा! बहुरानी अब तुम्हारी बारी है. मैं समज गयी और मैंने भी अब शर्म छोड़ कर बाबूजी की कमीज उतार दी और उनकी धोती भी खोल दी.
धोती खोलते ही बाबूजी का एक अजगर जैसा बड़ा और मोटा लण्ड एकदम से बाहर आ गया.

बाबूजी ने भी मेरी तरह अपनी चड्डी पहले ही खोल रखी थी. उन्हें भी अपनी बहु को चोदने की बहुत जल्दी थी,
मैंने कई बार बाबूजी का लण्ड बाथरूम में देखा था और उसदिन तो ऑटो में मुठ भी मारी थी. पैर इतनी पास से बाबूजी का लौड़ा पहली बार देख रही थी.

क्या शानदार लण्ड था. कम से कम 9 इंच लम्बा होगा और 4 इंच मोटा होगा. मेरे पति से दुगना मोटा. इतने पास से देख कर दिल बाग़ बाग़ हो गया. अब यह पहलवानी लण्ड मेरा था. मैं समज गयी की आज मेरी चूत की खैर नहीं है.
खैर अब कुछ नहीं हो सकता था. वैसे भी जब ओखली में सर दे ही दिया तो मुसल का क्या डर?

अब तो मेरी इस मुसल से चुदाई होनी ही थी, जो होगा देखा जायेगा. राम भली करेंगे.
मैंने बाबूजी का लण्ड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे प्यार से मसलने और धीरे धीरे सहलाने लगी.

बाबुजी ने मुझे प्यार से कहा.
"बहुरानी! मैं तो उस दिन से तुम्हारी आइसक्रीम चाटना चाहता हूँ. तो फिर आइसक्रीम चटवाने को तैयार हो न?"
मैं शर्म से चुप हो गयी. हम दोनों ससुर बहु अब पूरे नंगे बेड पर बैठे थे. मैं उनका लण्ड सेहला रही थी, और मैंने कोई जवाब न देते हुए बाबुजी का सर अपनी गोद की ओर खींच लिया.
सर को आगे खींचने से बाबुजी समज गए कि मैं चूत चटवाना चाहती हूँ.

बाबूजी ने मुझे प्यार से बेड पर लिटा दिया और मेरी दोनों टाँगें अपने हाथ से चौड़ी कर दी. मेरी चूत बाबुजी के सामने ऐसे खुली पड़ी थी जैसे कपडे की दूकान पर कपडे के थान खुले पड़े होते हैं.

मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और बाबुजी ने मेरी चूत को अपनी उँगलियों से सहलाना शुरू कर दिया.
बाबुजी ने अपना मुंह मेरी चूत के पास लाया और मेरी चूत को सूंघते हुए बोले

"सुषमा! तुम्हारी चूत से तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही है. इसका टेस्ट भी अच्छा होगा."
यह बोल कर बाबुजी ने चूत को सहलाना छोड़ कर अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर मेरी गांड पर रख दिया और अपने मुंह को आगे कर मेरी चूत को चूम लिया।

मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया.
इसके बाद बाबुजी अपने दोनों हाथों को दोबारा आगे लेकर आएं और मेरी उंगलियों से मेरी गीली हो चुकी चूत की दोनों फाँकों को फैला दिया और जीभ से चूत को चाटने लगे।
मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी।
मैं भी अपने कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए चूत चटवाने लगी।

चूत चाटते-चाटते बाबुजी बीच-बीच में अपनी जीभ को मेरी चूत में घुसा कर हिलाने लगते थे।
मुझे तो होश ही नहीं था.
मेरी चूत बाबुजी के मुंह के ठीक सामने थी।
इसके बाद मैंने भी अपनी जाँघों को और फैला दिया और उन्हें चूत चाटने की पूरी जगह दे दी।

बाबुजी ने हाथ से मेरी चूत के दोनों फांकों को फैला दिया और अपने मुँह को मेरी दोनों गोल चिकनी जाघों के बीच लाकर जीभ निकाल कर मेरी चूत को चाटने लगे।
कुछ देर बाद वे चूत चाटने हुए ही अपने दोनों हाथ को पीछे लेजाकर मेरी गांड को सहलाने और दबाने लगे।
मैंने अभी तक ऐसा सिर्फ पॉर्न मूवी में देखा था कि कैसे ससुर अपनी बहु की चूत चाटता है और बहु अपने ससुर से चूत चटवाती है।

मगर आज मेरे ही ससुर मेरे सामने घुटनों के बाल बैठ कर अपनी बहुरानी की चूत चाट रहे थे।
यह सोच कर मैं इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गई थी कि … चूत चटवाते हुए मुश्किल से 2-3 मिनट हुए होंगे कि मुझे ऐसा लगा कि मेरे शरीर का सारा खून चूत की तरफ जा रहा है; मेरी चूत की नसें एकदम फटने वाली हैं।
मैं तेजी से कमर हिलाने लगी और मेरे मुंह से तेज सिसकारियां निकलने लगीं- आआ आआआ आआह हहह हह हहह!

फिर अचानक मेरा शरीर एकदम अकड़ गया और मेरे मुँह से तेज़ सिसकारी निकली- आआ आआ आह हह हहह!
और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।
मैंने एक्साइटमेंट में बाबुजी का मुंह अपनी जांघों के बीच जोर से दबा लिया था … बाबुजी बिना मुंह हटाये मेरी चूत का सारा पानी जीभ से चाट गये।

मैं तेजी से हांफ रही थी … हल्की ठंडी हवा में भी मेरे माथे पर पसीने की बूंदें आ गई थीं।
उधर बाबुजी अभी भी नीचे बैठे रहे और कुछ देर के लिए … उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया ताकि मैं अपनी सांस पर काबू कर लूं।
जब उन्हें लगा कि मैं थोड़ा नॉर्मल हूं गई हूं … तो उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैला कर फिर से मेरी चूत चाटना शुरू कर दिया।

मैं तो जैसे आसमान में उड़ने लगी थी।
मुझे इतना मजा आ रहा था कि मदहोशी में मैंने आंख बंद कर ली और बाबुजी के सिर को पकड़ कर अपनी कमर हिला-हिला कर दोबारा से चूत चटवाने लगी।
करीब 2 मिनट की चूत चटाई से मुझ पर दोबारा चुदाई का नशा चढ़ने लगा।

मेरी चूत भर भर पानी छोड़ रही थी जिस से कि मेरी चूत के पानी से चूत और फिर भी चिकनी हो गई थी बाबुजी ने अपनी एक उंगली मेरी चूत के ऊपर रख दी मेरी चूत चिकनी होने के कारण उनकी उंगली एकदुम सटाक से मेरी चूत के अंदर चली गई जिसे वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे, क्योंकि चूत में तो बाबुजी की ऊँगली थी तो बाबुजी ने अपनी जीभ मेरी भगनासा पर रख दी, ज्योंही बाबुजी की जीभ मेरे चने के दाने पर लगी, मैं तो आनंद से उछल बाबुजी का सर अपनी चूत पर जोर से दबा दिया.

अब मेरी चूत में बाबुजी की ऊँगली घूम रही थी और मेरे स्वर्ग के बटन यानि मेरी भगनासा पर बाबुजी की जीभ। ऐसा डबल हमला मेरे पर कभी नहीं हुआ था. मैं तो जैसे आसमान में उड़ रही थी. हम ससुर बहु आज एक दुसरे के होश में मजे कर रहे थे.
जोश में मैं अपने आपको काबू में नहीं रख पा रही थी और बोली, “बाबुजी, प्लीज जल्दी कुछ करो ना। नहीं तो मैं पागल हो जाऊंगी। प्लीज”

पर बाबुजी कहा मनाने वाले थे बाबुजी ने मेरी चूत पर अपना पूरा कब्ज़ा जमा रखा था और वो मेरी चिकनी चूत बड़े प्यार से सहला रहे थे और बाबुजी खुद नीचे बैठ गए ते और अपने दोनों हाथ उन्होंने अब मेरी गांड पर रख दिए और फिर उन्होंने अपने होठ मेरी भगनासा पर रख दिए और जीभ निकल कर भगनासा को चाटने लगे और कभी मेरी भगनासा पर अपने दांत गड़ा देते मस्ती के कारण अब मुझे से बर्दाश्त करना मुश्किल था.
मैं तड़प रही थी और चिल्ला रही थी
"हाए मां, उफ कितनी गर्म है आपकी जीभ? आ आ उई"
मैं बुरी तरह से सिसकारियां निकलने लगीसी सी आह आह उई मां उई उई उफ बाबुजी ने अपनी लपलपाती हुई जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसा दी और जीभ से चोदने लगे.

मस्ती मैं भी पूरी तरह से गरम हो गई थी तो मैंने आगे को होकर झट से बाबुजी के सर को अपने हाथों में थाम लिया मैं बाबुजी के बालो, मैं अपनी उंगली घुमाते बाबुजी को अपनी चूत पर दबाने लगी मुझे बाबुजी के होठों से अपनी चूत की तेज सुगंध और उसके तीखे नमकीन स्वाद का एहसास हो रहा था.
बाबुजी के हाथ मेरी दोनों चूतड़ों पर थे जिसे वो बड़े ही जोर से दबा रहे थे और सहला रहे थे. मैं इतनी गरम हो उठी थी कि मुझ से अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल ही नहीं नामुकिन था मस्ती, मेरे मुंह से निकला है

"बाबुजी जी आप ने तो मुझे पागल कर दिया ही, कृपया जल्दी से कुछ करो नहीं तो मर जाऊंगी। कितना चाटेंगे कब से ऐसे चाट रहे ही जैसे वहा रसमलाई रखी हो. अब बस कीजिए ना."
मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थी. शायद बाबुजी भी सिसकारियां ले रहे हों पर क्योंकि उनका मुंह तो मेरी चूत पर था तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.
थोड़ी देर में फिर मेरा शरीर अकड़ने लगा. दूसरी बार से मेरा निकलने वाला था.
अचानक से मेरा शरीर फिर अकड़ गया और मेरी चूत ने बाबुजी के मुंह पर ही अपना अमृत छोड़ना शुरू कर दिया.
मैं आह आह आह चिल्ला रही थी और बाबुजी ने अपना मुंह मेरी चूत के बिलकुल छेद पर रख लिया था और बाबुजी मेरी चूत से निकलने वाले रस के एक एक कतरे को पी गए. बाबुजी ने चाट चाट कर मेरी चूत बिलकुल साफ़ कर दी.

मैंने बाबुजी से पूछा.
"बाबुजी आप ने तो अपनी पूरी जीभ अंदर तक डाल कर मेरी साड़ी आइसक्रीम चाट ली है. कैसी लगी अपनी बहु की आइसक्रीम ?"
बाबुजी मुझे बोले
"सुषमा! मैंने तुम्हारी सास की भी बहुत आइसक्रीम चाटी है और कुछ और औरतों की भी, पर जो स्वाद और मजा तुम्हारी चूत के रस में आया, सच बोलूं तो इतनी प्यारी चूत मैंने आज तक नहीं देखी। "
मैं बहुत खुश हो गयी. मैं जोर से हांफ रही थी.
बाबुजी उठ कर खड़े हुए. उन का लौड़ा इतना सख्त हो गया था कि साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था.

मैंने अपना मजा तो ले लिया था, पर अब बाबुजी की भी बारी थी.
बाबुजी का गधे जैसा लौड़ा, जिस के लिए उनकी बहुरानी ना जाने कब से तरस रही थी फुंकारें मार रहा था.
लण्ड झटका मार रहा था और उस पर की नसें भी साफ़ दिखाई दे रही थी .

बाबूजी ने मुझे भी अपने सामने खड़ा कर लिया और फिर बाबुजी ने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर उन्हें नीचे दबाया. मैं समझ गयी कि बाबुजी मुझे बैठने का इशारा कर रहे हैं. मैं बाबुजी के बिलकुल सामने बैठ गयी।
बाबुजी का तना हुआ लौड़ा बिल्कुल मेरी आंखो के सामने मेरे मुंह के करीब था. जो मेरी गरम सांसो से और भी उछलकूद मचा रहा था। मैंने अपनी आंखें ऊंची करके स्माइल करते हुए बाबुजी की आंखें देखीं दी. अब मेरी भी शर्म ख़त्म हो चुकी थी,

उनका काला लम्बा मोटा लंड हवा में किसी मस्त सांड की तरह झूमता मेरी आँखों के सामने था। मुझे आज उनका लंड उस रात के मुकाबले और फिर भी मोटा लग रहा था।
मैंने अपने हाथ बाबुजी के लंड पर रख दिए जैसे ही मेरा मुलायम नरम हाथ बाबुजी के लंड पर पड़ा मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने कोई गरम रॉड पकड़ ली जिससे मेरा हाथ जल जाएगा।

मैं मस्ती मैं बाबुजी के लंड को अपने हाथ से सहलाने लगी जैसे ये मेरा सब से मनपसंद खिलोना हो मैं नीचे बैठी बाबुजी के लंड को सहला रही थी।
फिर बाबुजी ने मुझे कहा
"बहुरानी सुषमा! मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत के हिसाब से काफी बड़ा है, और मोटा भी. इसे मैं जब तुम्हारी चूत में डालूंगा तो हो सकता है तुम्हे दर्द हो. तो तुम एक काम करों कि अपने बाबुजी के लण्ड को मुंह में ले कर थोड़ा चूस दो ताकि वो गीला हो जाये, तुम्हारी चूत तो पहले ही मेरे चाटने से गीली हो गयी है. लण्ड भी गीला होगा तो आसानी होगी. क्या बाबुजी का लण्ड चूस दोगी? वैसे भी मैंने तुमसे वायदा किया है कि तुम्हे एक बड़ी और मोटी सी चॉकोबार चूसने को दूंगा. क्या तुम्हे बाबूजी की चॉकोबार पसंद आयी. क्या चूसोगी इसे?"

अँधा क्या चाहे दो आँखें. और सुषमा क्या चाहे- बाबुजी का लण्ड।
मैंने बाबुजी के लण्ड को हाथ में पकडे बाबुजी की तरफ देखा और शर्म के कारण मेरे मुंह से हाँ तो नहीं निकल सकी और मैंने हाँ में गर्दन हिलाते हुए, बाबुजी के लण्ड को अपनी तरफ खींचा और अपना मुंह भी आगे किया.

तभी बाबुजी ने अपना एक हाथ बढ़ाया और मेरे कंधे पर रख कर धीरे से बोले- इसे मुंह में लो बेटा!
बाबुजी की आवाज उत्तेजना में हल्का सा कांप रही थी ऐसा लग रहा था जैसे नशे में बोल रहे हों।
वैसे मैं तो खुद भी यही चाह रही थी।
मैं बाबुजी के सामने घुटनों के बल बैठ गई और उनके लंड की चमड़ी को पूरा पीछे खींच कर सुपारे को मुंह में भर कर चूसने लगी।

मैंने लंड चूसते हुए हुए ऊपर देखा तो बाबुजी अपने एक हाथ को अपनी कमर पर रखे हुए थे और मुझे देखते हुए अपनी कमर को हल्का-हल्का हिलाते हुए मजे से लंड चुसवा रहे थे।
उनका एक हाथ मेरे सिर पर था जिसे वे हल्का सा अपने लंड पर दबा रहे थे.
मुझे लग रहा था कि वे भी शायद अपनी किस्मत पर फूले नहीं समा रहे होंगे कि उनकी मस्त जवान बहुरानी नंगी बैठी अपने ही ससुर का लंड चूस रही है।

जिस तरह बाबुजी अपने कमर हिलाने की स्पीड बढ़ा कर लंड मेरे मुंह में तेजी से आगे पीछे कर रहे थे … मुझे लग रहा था कि वे जल्दी ही झड़ने वाले हैं.
मैं भी लंड के सुपारे को तेजी से अपने सर आगे पीछे कर चूसने लगी थी।
अभी मुश्किल से 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि उनके मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी और वे तेजी से अपनी कमर को हिलाने लगे.

आआआ आहह हहह … बहुरानी आआ … और फिर अचानक उनका शरीर एकदम अकड़ गया और उनके मुँह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआह हह हहह!
और दो-तीन तेज झटके देते हुए मेरे मुंह में अपने लंड का सारा पानी निकाल दिया।

मैंने भी लंड का सारा नमकीन पानी पी लिया।

बाबुजी खड़े-खड़े तेजी से हांफ रहे थे … उनका लंड एकदम ढीला हो गया था.
मगर मैंने अभी भी बाबुजी के लंड को मुंह से नहीं निकाला था और उनके ढीले हो चुके लंड को भी मुंह में लेकर चुपचाप उसी तरह घुटनों की बल बैठी रही।

मैं जान रही थी कि अगर मैं इस तरह बाबुजी के झड़ जाने के बाद खड़ी हो गई तो आज चूत में लंड लेने का सपना अधूरा रह जाएगा और फिर चूत चुदवाने के लिए मुझे दोबारा कोई दूसरा प्लान बनाना पड़ेगा।
वहीं मेरी चूत में फिर से खुजली शुरू हो चुकी थी जो अब लंड से ही शांत होने वाली थी।
इसीलिए जब बाबुजी थोड़े नॉर्मल हुए तो मैंने उनके ढीले पड़ चुके लंड को दोबारा चूसना शुरू कर दिया.

बाबुजी भी मजे से दोबारा कमर हिला-हिला कर लंड चुसवाने लगे.
करीब 2 मिनट तक लंड चुसाई के बाद ही बाबुजी का लंड दोबारा होकर टाइट खड़ा हो गया।
फिर कुछ देर और लंड को चूसने के बाद मैंने लण्ड को मुंह से निकाला और उसे हाथ से पकड़ कर हिलाने लगी और खड़ी हो गई।

मैं अभी तक लंड को हाथ से पकड़े हुई थी।
मेरी चूत एकदम पनिया चुकी थी और मुझ पर दोबारा मदहोशी छाने लगी थी.
मेरा बेटा तो अपने कमरे मे आराम से सो रहा था. और इधर हम दोनों ससुर बहु अपने मजे कर रहे थे.
अब चुदाई का टाइम था,
बाबूजी ने मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए पूछा
"सुषमा! तो अब फिर क्या ख्याल है. हो जाये?"
मैंने शरारत से पूछा
"अब सब कुछ हो तो गया है. और क्या हो जाये?"

बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले
"बहुरानी! यह तो अभी ट्रेलर था. असली फिल्म तो अभी बाकी है. अभी तो तुम्हे इस लौड़े का असली मजा आएगा. तो फिर चुदाई के लिए तैयार हो ना?"
मैंने शर्माते हुए अपनी गर्दन हिला दी और बेड पर लेट गयी और बाबूजी को अपने पास आने का इशारा किया.
बाबूजी अपना लौड़ा हाथ में पकडे हुए मेरे पास आये. और बोले
"तो चलो बहुरानी अब वो करते हैं जिस के लिए हम दोनों इतने दिनों से तरस रहे थे."
मैंने भी बाबूजी को मुस्कुराते कहा
"बाबूजी! तो फिर जल्दी आईये ना. अब और क्यों तरसा रहे हो आप। "
बस फिर क्या था बाबूजी नंगे ही मेरे पास बैठ गए.
