• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest सीड्स ऑफ़ लस्ट (Seeds Of Lust)

rajputnaboy

New Member
18
19
3
behan ke narm mulayam aur uttejit karne wale jism ke sparsh ne duguni uttejna bhar di hamare hero ke ander. vani jo ke maze lene ke liye hi apni masi ke ghar ayi thi ab roma ke prati ise poori tarah se taiyar kar chuki hai. loha garm hai bas ek chot ki darkar hai aur loha manchahi shape mein dhal jayega. bahut jabardast kahani hai bhai.
Jbrdssst update yaar


Do behno ko ke sath sone ka alag hi Mazza hai
 

sunoanuj

Well-Known Member
3,111
8,302
159
Bahut hi behatareen….,
 

moni2529

New Member
19
17
3
बेहतरीन अपडेट ।
इरोटिक , एंड हाॅट अपडेट ।
 

randeep

Member
119
917
109
UPDATE 10:


अगले दिन मैं वाणी को छोड़ने उसके घर मेरठ चल दिया, हम सुबह ९ बजे घर से निकले थे। रोमा ने अच्छे से वाणी को विदा किया था, रोमा को देखने से कंही भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था के वो रात की घटना से परिचित है। पर मेरे मन में उथल पुथल मची थी, उसके नाज़ुक अंगों का स्पर्श मेरी हथेलियों पर एक यादगार पल के रूप में अंकित था।

रात की घटना को लेकर, बस में साथ सफर करते हुए मैंने वाणी से पूछा "क्या वो रात के बारे में जानती है?" मेरी आवाज़ में फुसफुसाहट थी।

वाणी ने मेरे हाथ में अपनी उंगलियां फंसा दी और मेरे कान के पास अपना मुंह झुका के उसने जवाब दिया "नहीं, उसे लगता है मैं उसकी चूचियां दबा रही थी ?"

"क्या सच में?" मैंने हैरत से पूछा, मेरी आवाज़ बहुत धीमी थी हमारे आगे पीछे बैठे लोग हमे नहीं सुन सकते थे।

"हम्म, तुम्हारे आने से पहले हमने बहुत मस्ती की थी" उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया।

"कैसी मस्ती?" मैंने फुसफुसाते हुए पूछा, "वैसी ही जैसी तुम उसके साथ कर रहे थे" वो मुस्कुरायी, मैं समझ गया के दोनों महिलाएं एक दूसरे के जिस्मो से खेल रहीं थी, वाणी ने मुझे पहले भी बताया था के वो पहले भी ऐसा कर चुकी हैं।

"एक बात बताऊँ, रात जिस तरह से तुम उसके मजे ले रहे थे उसे सोचकर मेरी अभी भी गीली हो रही है" वो मेरे कान में फुसफुसा के बोली और मेरी जांघ पर अपना हाथ रख दिया। "श…श वाणी ठीक से बैठ यार, आस पास तो देख ले?" मैंने थोड़ा झेंपते हुए उसे सतर्क किया।

उसने अपना हाथ मेरी जांघ से वापस खींच लिया। थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही, मुझे रोमा की मदहोश कर देने वाली यादों ने फिरसे घेर लिया। तेज़ गति से दौड़ती बस में मैं खिड़की से बहार झांकते हुए, हरे भरे खेतों को पीछे छूटते देख रहा था।

"क्या हुआ ज़ादा याद आ रही अपनी प्यारी बहन की?" वाणी ने धीमे से मेरे कान में बोलते हुए मुझे छेड़ा, "पता नहीं यार बस उलझा हुआ हूँ, अंजाम को सोचकर" मैंने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा।

"ओह हो! इतना मत सोचो, बस मज़े करो यार, थोड़ी सी हिम्मत और दिखानी है तुम्हे" उसने मुझे दिलासा सी दी। "ऐसा मैं और तू सोच रहे हैं, मुझे डर है के कंही वो बुरा मान गयी तो मुसीबत आ जाएगी" मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा।

"ऐसा कुछ नहीं होगा, मेरी गारंटी है" वाणी ने स्पष्ट किया उसकी आवाज़ में विश्वास था।

"तुम बस उसे एक लड़की की तरह सोचो और उसे रिझाने के लिए जो कर सकते हो वो करो" उसने मुझे समझया "बाकी सारी चिंताए भूल जाओ", मैंने गर्दन हिला के अपनी सहमति जताई।

वो पूरा दिन मेरा सफर में ही गुज़र गया और में वाणी को उसके घर छोड़कर रात ९ बजे अपने घर लौट आया।

रात को खाने की टेबल पर मेरी नज़रें रोमा से मिली पर उसने अपनी नज़रें फेर ली, हमारे बीच एक खामोशी सी छाई रही। माँ ने हमारी खामोशी को शायद महसूस कर लिया था "क्या हुआ? तुम दोनों में झगड़ा हुआ है क्या?" माँ ने पहले मेरी तरफ और फिर रोमा की तरफ देखकर पूछा। "नहीं तो!" हम दोनों एक साथ बोले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। "तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यूँ है?" माँ ने अपना सवाल दोहराया। "कुछ नहीं माँ मैं बस थोड़ा थका हुआ हूँ और एक काली बिल्ली मेरा रास्ता काट गयी थी" मैंने मुस्कुरा के रोमा की तरफ देखते हुए कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी। जैसे ही रोमा को समझ आया के बिल्ली का शब्द उसके लिए था उसने अपनी आँखें बड़ी करके मुझे घूरते हुए कहा "अच्छा हुआ माँ, बिल्ली ने भईया का रास्ता ही काटा, कंही इन्हे काट लेती तो मुश्किल हो जाती" कह कर रोमा माँ की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगी।

"हम्म, अब आयी न घर में रौनक" माँ ने हँसते हुए कहा, "मैं तो कहता हूँ माँ हमे एक कटोरे में दूध भर के रोज़ बहार रख देना चाहिए, बेचारी बिल्लियां भूखी रहती हैं" मैंने बहुत गंभीर स्वर में माँ से कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी।

रोमा के चेहरे पर बनावटी गुस्सा उभर आया "माँ समझा लो अपने लाडले को वर्ना बिल्ली ने अगर पंजा मार दिया तो गंजा कर देगी" उसने मेरी तरफ देखते हुए गुस्से में कहा हालाँकि वो सब बनावटी था।

"देखा माँ, मैंने इसका नाम भी नहीं लिया और बेचारी अपनी बिरादरी के लोगों के लिए कितना फील करती है," मैंने मुस्कुराते हुए रोमा को फिर से छेड़ते हुए कहा, रोमा ने चिढ़ कर अपना गिलास पकड़ा और मेरी तरफ उसका पानी उछाला मैं पानी से बचने के लिए पीछे को झुका और अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचा। वो खिलखिला के हंसने लगी क्यूंकि गिलास खाली था और उसने महज़ दिखावा किया था।

"अरे! पागल अभी गिर जाता मैं" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा, "तभी तो मज़ा आता" उसने हँसते हुए जवाब दिया

"अच्छा अच्छा बहुत हुआ तुम दोनों का, जल्दी खाना ख़त्म करो" माँ ने हस्तक्षेप करते हुए हमे डांटा।

हमने जल्दी से अपना खाना ख़त्म किया, मुझे ख़ुशी थी की अभी भी हमारा भाई बहन वाला प्रेम बरकरार था, ऊपरी तौर पर ही सही। हम दोनों ही अपने रिश्ते की मर्यादा और अपनी अनअपेक्षित भावनाओं से झूझ रहे थे।

अगले दिन सुबह के १० बज चुके थे और मैं आज कुछ ज़ादा ही देर से सो के उठा था, आमतौर पर रोमा मुझे जगा देती थी पर आज उसने भी मुझे जगाने की कोशिश नहीं की थी। मैं जल्दी से फ्रेश होकर नीचे किचन में पहुंचा और कुछ खाने के लिए ढूंढ़ने लगा, रोमा उस वक्त शायद अपने रूम में थी। बर्तनो के खड़कने की आवाज़ सुनकर वो अपने कमरे से बहार आयी और मेरे हाथ से प्लेट छींटे हुए बोली "तुम बैठो मैं नाश्ता लगाती हूँ "

मैं बिना कुछ बोले टेबल पर आकर बैठ गया, थोड़ी ही देर में वो मुझे कुछ ब्रेड टोस्ट और चाय दे गयी और फिर किचन में जाके अपना अधूरा काम निपटाने लगी।

मैं नाश्ता करते हुए रोमा को ही देख रहा था, वो हरे रंग की एक शर्ट और सफ़ेद लॉन्ग स्कर्ट में बहुत ही सुन्दर और शालीन लग रही थी, उसके शरीर के हिलने से उसकी भारी गांड में कम्पन होता और उसकी ढीली स्कर्ट थिरकने लगती, मुझे ये दृश्य बहुत ही मोहक लग रहा था।

तभी मेरे फ़ोन की तीव्र घंटी हवा में गूंज उठी, ध्वनि ने मुझे मेरे विचारों से झकझोर दिया। मैं कुर्सी से उछल पड़ा, रोमा ने पलट कर मेरी तरफ देखा। जैसे ही मैंने टेबल से फोन उठाया, मेरा दिल जोरों से धड़क गया। स्क्रीन पर लिखा था 'अलाया होटल्स एंड रिसॉर्ट्स'।

"हैल्लो?" मैंने तनाव से कर्कश स्वर में उत्तर दिया।

"रवि, मैं अलाया होटल्स से प्रीती गौर बोल रही हूँ," दूसरी ओर से आवाज आई, "मैं यह जानना चाहती हूँ के क्या आप हमे ज्वाइन कर रहे हैं या नहीं?"

मेरा हाथ फ़ोन के चारों ओर कस गया, दबाव के कारण प्लास्टिक चरमराने लगा। "मुझे... मैम मुझे कुछ और दिन चाहिए," मैंने हकलाते हुए कहा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। "कुछ फॅमिली में इमरजेंसी है।"

लेकिन दूसरी तरफ से मेरी याचना को अनसुना कर दिया गया. "देखो, रवि, हम अब और नहीं रुक सकते हमारी भी अपनी मजबूरियां हैं। यदि आप कल तक ज्वाइन नहीं कर सकते तो हमे फिर किसी और को आपकी जगह कंसीडर करना पड़ेगा।"

उसके शब्दों ने मेरे माथे पर पसीना ला दिया, मेरा वास्तविकता से फिरसे परिचय हुआ। मसूरी में वह नौकरी जिसका हिस्सा बनने के लिए मैं उत्सुक था, जिसने घटनाओं की इस पूरी श्रृंखला को गति दी थी, अब वह मुझे रोमा से दूर होने को विवश कर रही थी। मुझे अपने सीने में एक घबराहट महसूस हुई, "कल तक कैसे होगा मैम, मैं परसों तक कोशिश करूँगा ज्वाइन करने की" मैंने हड़बड़ाहट में कहा।

रोमा स्लैब की सफ़ाई करते हुए रुक गई, उसकी आँखें चिंता और जिज्ञासा के मिश्रण से मेरी ओर देख रही थीं। वह जानती थी कि मेरी नौकरी मेरे लिए महत्वपूर्ण थी, ये मेरे बेहतर जीवन के लिए और मेरे करियर की सफलता का टिकट था। लेकिन वह यह भी जानती थी कि मेरे दूर हो जाने से मैं संभवतः उस उग्र जुनून को भूल सकता था जो हमारे बीच पनप रहा था।

"ओके, परसों आपका इंतज़ार रहेगा पर अगर आप नहीं ज्वाइन कर पाए तो हम क्षमा चाहेंगे" उस महिला के शब्द थोड़े कठोर थे पर लहज़ा सहज था। "नहीं मैम, परसों पक्का मैं ज्वाइन कर लूंगा" मैंने एक बार फिरसे उसे भरोसा दिलाया, "OK Then, we will meet you day after tomorrow, बाई" कह कर उसने कॉल कट कर दी।

मैंने फ़ोन साइड में रखा और कुर्सी पर गिर पड़ा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। मैंने निराश होकर अपना दोपहर का भोजन समाप्त किया और ऊपर अपने कमरे में आ गया।

जैसे ही मैं अपने विचारों के कोलाहल में खो जाने वाला था, मेरे कमरे का दरवाज़ा चरमरा कर खुला। मैंने सर उठा कर ऊपर देखा तो रोमा वहाँ खड़ी थी, उसके हाथ में पानी का गिलास था। उसकी आँखें मेरे चेहरे पर नज़रें गड़ाए हुए थीं, हवा में छाए अचानक तनाव का स्पष्टीकरण ढूँढ़ रही थीं।

"सब ठीक तो है?" उसने धीरे से पूछा, उसकी आवाज में एक सौम्य दुलार था जिसने मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी।



मैंने सिर हिलाया, उससे पानी लिया और एक घूंट में पी लिया। "तुझे बताया था न नए ऑफर के बारे में," मैंने गिलास को साइड टेबल पर खनकते हुए रख दिया। "वे चाहते हैं कि मैं परसों तक ज्वाइन करूँ।"

रोमा के चेहरे के भाव बदल गए, उसके गालों की लाली फीकी पड़ने लगी। "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है? माँ भी अब ठीक हैं, तुम्हें भी आगे बढ़ना चाहिए" उसने विस्तार से समझाकर मुझे सांत्वना देने की कोशिश की।



उसके शब्द मेरी आत्मा पर चाकू की तरह थे। मैं जानता था कि वह सही थी, लेकिन उसे छोड़ने का, उससे अलग होने का विचार असहनीय था। "मैं बस जाना नहीं चाहता," मैंने कबूल किया, कमरे में मेरे शब्दों का बोझ भारी था।

रोमा ने मेरी ओर एक कदम बढ़ाया, उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ तलाश रही थीं। "तुम्हें जाना चाहिए," उसने धीरे से कहा, "यह तुम्हारे अच्छे के लिए है।"

उसके शब्द मुझे वास्तविकता में खींच रहे थे और उन वर्जित भावनाओ को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रहे थे। वो समझ रही थी, हमारे बीच का रहस्य, हमारी इच्छाएँ, वे कभी भी मेरे करियर से बड़ी नहीं हो सकतीं। मैंने सिर हिलाया, मेरे निर्णय का भार मेरे कंधों पर था। "मैं जनता हूँ," मैं बुदबुदाया, ये शब्द मेरे गले में अटक रहे थे।

रोमा ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखें मेरी आँखों से हट ही नहीं रही थीं। फिर वह पीछे हट गई, उसका हाथ मेरे कंधे से हट गया। "तो फिर जाने की तैयारी करो," उसने मुस्कुराहट के साथ कहा जो एकदम बनावटी थी। "तुम्हारे पास केवल एक दिन है।"

मैंने सिर हिलाया, हर गुजरते पल के साथ मेरे सीने में भारीपन बढ़ता जा रहा था। उसने जो शब्द कहे थे वे एक आदेश और एक सांत्वना थे जो सभी एक में समाहित हो गए थे। मैं जानता था कि वह सही थी; मुझे अपने काम और करियर को गंभीरता से लेना था। यह मेरे जीवन को पटरी पर रखने का एकमात्र तरीका था।

रोमा दरवाजे से मुझे आखिरी बार देखती हुई चली गई, उसकी आँखों में मेरी आँखों जैसा दुःख झलक रहा था। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, उस क्षण की अंतिम घड़ी मुझ पर टनों ईंटों की तरह गिरी। ऐसा लग रहा था मानो हमारे बीच एक दीवार खड़ी हो गई हो, जो उसी धूल से बनी हो जिसने हमें स्टोर रूम में घेर रखा था। यह अंतर असहनीय लग रहा था, सन्नाटा बहरा कर देने वाला था।

कांपते हाथों से, मैंने अपना लैपटॉप खोला, मैंने एक गहरी सांस ली और रोमा की गांड के उभार का मेरे लंड पर रोमांचकारी दबाव, मेरी हथेलियों के नीचे उसकी नरम सुडोल चूचियों के एहसास को दूर करने की कोशिश की। मुझे ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत थी, मुझे एक झूठा इस्तफ़ा टाइप करना था जो मुझे मेरी वर्तमान कंपनी को भेजना था।

मैंने अपना इस्तीफा टाइप किया, एक पारिवारिक आपातकाल की कहानी गढ़ते हुए जिस पर मुझे तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत थी और मैंने ईमेल सेंड कर दिया।

मेरा पूरा दिन नई नौकरी और नयी जगह के लिए जरूरी चीजें पैक करने में बीता।



जैसे ही मैंने अपना सूटकेस पैक किया, मेरे विचार अव्यवस्थित हो गए। मसूरी में एक नया अध्याय शुरू करने का उत्साह रोमा को पीछे छोड़ने के दुःख से धूमिल हो गया था। मैं इस अहसास को भुला नहीं सका कि मैं अपनी भावनाओं का एक हिस्सा अपने ही घर में छोड़ कर जा रहा हूं।

माँ पूरी शाम मेरे कमरे में आती-जाती रही, उसकी आँखों में गर्व और चिंता का मिश्रण भरा हुआ था। उन्होंने रोमा से यह खबर पहले ही सुन ली थी, और हालाँकि उन्होंने सीधे तौर पर नहीं कहा था, मैं उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देख सकता था। वह मंडराई, मुझे सामान पैक करने में मदद करने की पेशकश की, पूछा कि क्या मेरे पास पर्याप्त गर्म कपड़े हैं, मुझे अच्छा खाने और बहुत अधिक मेहनत न करने की याद दिलाती रही। उनका प्यार मन को भर देने वाला था, रोमा के उस स्पर्श से एकदम विपरीत, जिसमे वासना और दबी हुई इच्छाएं शामिल थीं।

रात में 11 बजे, मैंने खुद को अपनी माँ के बिस्तर के पास बैठा पाया, बेडसाइड लैंप की हल्की चमक उनके चिंतित चेहरे पर छाया डाल रही थी। उन्होंने आगे की यात्रा, मसूरी में नौकरी के महत्व और घर का बड़ा जिम्मेदार आदमी होने के साथ आने वाली जिम्मेदारियों के बारे में बात की। उनके शब्द एक मरहम की तरह थे, जो मेरे अपराध और भय के कच्चे किनारों को शांत कर रहे थे।

"अब तुम जाओ बेटा," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ चिंता से भरी हुई थी। "तुम हमारी बिलकुल भी चिंता मत करो, यंहा मैं सब सम्हाल लुंगी" उनकी आँखें बंद हो गईं, उनके चेहरे पर उम्र और थकान की रेखाएँ गहरी हो गईं थीं। "अब जाओ, थोड़ा आराम करो। तुम्हे कल बहुत लम्बा सफर तय करना है।"

मैंने सिर हिलाया, उनके शब्दों का बोझ मुझ पर पड़ रहा था। कमरा दमघोंटू था, हवा अनकहे सच और उसकी दवा की गंध से भरी हुई थी। मैं झुका, उनके माथे को धीरे से चूमा, उनकी त्वचा की गर्माहट महसूस की। "ठीक है माँ, गुड़ नाईट" मैंने फुसफुसाया, मेरी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

मैं माँ के कमरे से बहार आया और उनका दरवाज़ा बंद कर दिया। बहार हाल में हलकी सी रौशनी थी जो एक छोटे Led बल्ब से आ रही थी। मैंने एक गहरी साँस ली और रोमा को देखने के लिए उसके कमरे की ओर चल दिया।

उसका दरवाज़ा खुला था, हॉल के बल्ब की रौशनी उसके कमरे के अंदर धीरे से झाँक रही थी। मैंने उसके दरवाज़े को धीरे से पीछे धकेला, और अंदर कदम रखा। रोमा अपने बिस्तर पर दूसरी तरफ मुंह करके लेटी थी, उसकी द्वारा ओडी हुई चादर उसके जिस्म की सुडौलता को रेखांकित कर रही थी।

वह गहरी नींद में सो रही थी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, कमर तक चादर के नीचे छुपी हुई थी। मैं उसकी छाती के हल्के उभार और गिरावट को देख सकता था, उसकी सांसों की धीमी आवाज कमरे में लोरी की तरह गूंज रही थी। उसके बाल तकिये के ऊपर फैले हुए थे। उसे देखकर मुझमें इतनी तीव्र लालसा भर गई कि यह लगभग असहनीय थी।

उसकी सफेद ढीली टी-शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जो नीचे छिपे हुए उभारों का संकेत दे रही थी। उसके जिस्म पर ब्रा का कोई स्पष्ट संकेत नहीं था, उसका सौम्य चेहरा मासूमियत की मिसाल था। मेरे दिमाग में पिछली रात की घटना किसी चलचित्र की भाँती चलने लगी जब मैंने उसके नरम उभारों का जायज़ा लिया था।

मैं उसके बिस्तर के किनारे पर बैठ गया, मेरा दिल मेरे सीने में धड़क रहा था। गद्दा मेरे वजन के नीचे थोड़ा सा दब गया, और मैं उसके शरीर की गर्मी को कपड़े के माध्यम से फैलते हुए महसूस कर सकता था। उसकी खुशबू - ताज़ी और मीठी, नशीली थी, जिससे मेरा सीधे सोचना मुश्किल हो रहा था।

उसका नाम, 'रोमा', एक गुप्त मंत्र की तरह मेरी जीभ फिसला, कमरे का अँधेरा एक कंबल की तरह हमारे चारों ओर लिपटा हुआ लग रहा था, जो हमें दुनिया की चुभती नज़रों से छिपा रहा था, हमें उस वास्तविकता से थोड़ी राहत दे रहा था जो सुबह होने पर हमारा इंतजार कर रही थी।

मैंने थोड़ा सा हाथ बढ़ाया, मेरी उंगलियाँ उसकी टी-शर्ट के कपड़े को छू रही थीं। रुई की कोमलता मेरी ज़रूरत की कठोरता से बिल्कुल विपरीत थी, मेरी अशुद्ध भावनाओं की गर्मी उसकी त्वचा की ठंडक से बिल्कुल विपरीत थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन मैं खामोशी में उसकी सांसें सुन सकता था, उथली और तेज, जो उसके भीतर उमड़ रही भावनाओं के कोलाहल को जाहिर कर रही थीं।

"रोमा?" मैंने फिर से पुकारा, मेरी आवाज़ पहले से थोड़ी तेज़ थी।

फिर भी वह नहीं हिली. कमरे में एकमात्र आवाज़ छत्त के पंखे और मेरे अपने दौड़ते दिल की लयबद्ध धड़कन थी। अँधेरा एक लबादे की तरह महसूस हो रहा था जो हमारे ऊपर फेंक दिया गया था, जो हमें दुनिया से छिपा रहा था, लेकिन यह एक जेल की तरह भी महसूस हो रहा था जो हर गुजरते पल के साथ मेरा दम घोंट रहा था।

एक गहरी साँस के साथ, मैंने कुछ साहस जुटाया और बिस्तर से उठ गया, गद्दा एक शांत विरोध के साथ अपनी जगह पर वापस आ गया। मैं दबे पाँव दरवाजे की ओर बढ़ा। मेरा हाथ दरवाज़े के हैंडल पर मंडरा रहा था, मेरा दिल मेरे गले में था, मैंने उसके हैंडल को पकड़ के धकेला और ऊपरी कुण्डी लगा दी।

कुण्डी की क्लिक मेरे दूषित इरादों की घोषणा थी, उन नियमों के खिलाफ विद्रोह का आगाज़ था, जिन्होंने इतने लंबे समय तक हमारे जीवन को नियंत्रित किया था।

कमरा शांत था, हमारे दिलों के संघर्ष और हमारे दिमागों की लड़ाई का एक प्रमाण। अँधेरा जीवित महसूस हुआ, एक संवेदनशील प्राणी जो हमारे रहस्यों को जानता था और रात के शांत क्षणों में मेरा होंसला बड़ा रहा था।

जब मैं उसके बिस्तर पर वापस गया तो मेरा दिल मेरे सीने में ढोल की तरह बज रहा था, उसकी धड़कन मेरे कानों में गूँज रही थी। वही जगह जहां मैं कुछ देर पहले बैठा था, उसके शरीर की गर्माहट अभी भी किसी छाया के आलिंगन की तरह महसूस हो रही है।

धीरे से, मैंने उसके सिर को सहलाना शुरू कर दिया, मेरी उंगलियाँ उसके रेशमी बालों में फैल गईं। उसके बालों का एक एक कतरा बेहतरीन रेशम के टुकड़े की तरह महसूस हुआ, जो सरसराता हुआ मेरी उँगलियों से फिसल रहा था। मेरा इस तरह से उसे दुलारना सुखद था, ये मेरे मन की उथल-पुथल को शांत कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे छूकर मैं किसी तरह अपना प्यार और भावनाएं ट्रांसफर कर सकता हूं, भले ही वह सोती रहे।

पर मेरे अंदर बैठे वासना रूपी उस शैतान को ये मंज़ूर नहीं हुआ और उसने मुझे आगे बढ़कर उसके उभारों को सहलाने के लिए प्रेरित किया। मन में चल रही कश्मकश से जूझते हुए मैंने अपना हाथ उसके बालों से हटा के उसकी उभरी हुई गांड पर रख दिया। मेरे लंड में एक ही बार में हज़ारों तरंगें सी प्रवाहित होने लगीं, मेरा एक दिमाग अभी भी मुझे रोकने की चेष्टा कर रहा था पर वासना का वो प्रेत मुझपर हावी था।

मैंने धीरे से उसकी गांड को सहलाया, मेरे जिस्म में हज़ारों चींटियों के एक साथ रेंगने का एहसास हुआ।

मैंने एक नज़र रोमा के चेहरे पर डाली वो मुझे सोती हुई किसी अप्सरा सी नज़र आने लगी। उसकी मासूमियत पर जैसे मैं दिल हार गया और मैंने अपना हाथ उसकी गांड से खींच लिया। पहली बार ऐसा लगा जैसे वासना के इस खेल में एक भाई जीत गया और वो सभी अशुद्ध वर्जित इच्छाएं हार गयीं।

मेरा हाथ उसकी टी-शर्ट के कपड़े के ऊपर से उसके कंधे तक पहुंच गया। उसके शरीर की गर्मी मेरी हथेली में समा रही थी। मैंने अपनी उँगलियाँ उसकी बाँह पर फिराईं, किसी पंछी के पंख जैसा हल्का स्पर्श, लगभग ऐसा जैसे मैं कोई जादू कर रहा हूँ।



मुझे नहीं पता कि मुझमें साहस कैसे आया, लेकिन मैंने साहस पाया। मैं झुक गया, मेरा दिल भागती हुई ट्रेन से भी तेज़ दौड़ रहा था। मेरा चेहरा उसके चेहरे पर मंडरा रहा था, और मैं उसकी सांसों की गर्मी को अपनी सांसों के साथ घुलते हुए महसूस कर सकता था। उसके बालों की खुशबू मेरी नाक में भर गई.

एक तेज़ गति के साथ, मैंने अपने होंठ उसके गाल पर रख दिए और एक गहरा चुम्बन लिया जिसमे वासना से अधिक प्रेम का मिश्रण था, मेरे शरीर में बिजली सी कोंध गयी क्यूंकि में उसकी प्रतिक्रिया से डर गया था, मुझे लगने लगा के किसी भी पल वो बस मुझे खुद से दूर धकेल देगी, लेकिन वह शांत रही, अपनी गहरी नींद में खोई रही।

मेरे दिमाग में विचारों का बवंडर उमड़ रहा था, हर एक पिछले से भी अधिक विकृत वासनाओं से भरा हुआ था, लेकिन मेरा दिल स्थिर था, उस महिला के लिए प्यार और करुणा के अलावा कुछ भी नहीं था जो मेरी दुनिया का केंद्र बन गई थी, भले ही वो मेरी सगी बहन थी।

एक कोमल स्पर्श से, मैंने रोमा के नंगे कंधे को सहलाया, मेरी उँगलियाँ उसकी टी-शर्ट की नेकलाइन तक जाने वाली चिकनी त्वचा का पता लगा रही थीं। कपड़ा पतला था, जिससे मुझे उसके शरीर की गर्मी महसूस हो रही थी। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, हर धड़कन मेरे कानों में ढोल की तरह गूँज रही थी, और मुझे डर था कि वह किसी भी समय जाग सकती है। लेकिन वह शांत लेटी रही, नींद के आगोश में खोई हुई। मैं उसे सिर्फ दुलार रहा था, उस से जुदा होने से पहले एक आखरी बार।

रात के सन्नाटे में, मेरा मन मेरे अंदर के मानव और दानव के लिए युद्ध का मैदान था। मानव ने कर्तव्य और पारिवारिक बंधनों के बारे में फुसफुसाया, मुझे उस पवित्र विश्वास की याद दिलाई जो भाई होने के साथ आता है। लेकिन दानव ने जुनून और मेरी आत्मा में जलने वाली उस दबी हुई इच्छा की बात की, जो मुझे रोमा के शरीर को पाने के लिए प्रेरित कर रही थी जो मैं हमेशा से चाहता था।

मैंने एक गहरी साँस ली, अपने आप को भीतर के उग्र तूफ़ान के ख़िलाफ़ मज़बूत करते हुए। धीरे-धीरे, मैंने अपना हाथ रोमा के गर्म कंधे से हटा लिया। मेरी आँखें एक आखिरी बार उसकी गर्दन की कोमल ढलान, उसके कंधे के नरम मोड़ और पतले कपडे के नीचे उसकी भारी मांसल चूचियों के उभारों पर टिक गईं।

कांपती उंगलियों के साथ, मैं आगे बढ़ा और उसके चेहरे से बिखरे बालों को हटा दिया। वह नींद में इतनी शांत, इतनी शांत लग रही थी, मानो उसे स्वयं देवताओं ने गढ़ा हो। मेरा दिल प्यार और लालसा के मिश्रण से दुख गया जो जितना शक्तिशाली था उतना ही गलत भी था। लेकिन मुझे पता था कि समाज ने हमारे लिए जो सीमाएं खींची हैं, उनका सम्मान करने के लिए मुझे उसे छोड़ना होगा, भले ही मेरी आत्मा विरोध में चिल्लाती रहे।

मैं झुक गया, मेरी साँसें गले में अटक रही थीं, और मैंने उसके माथे पर एक नरम, लंबे समय तक चलने वाला चुंबन दिया। " आई लव यू, रोमी" मैंने फुसफुसा के उसके कान में कहा। मेरे शब्द मेरी आत्मा की आवाज़ थे जो बड़ी ही मुश्किल से मेरे होंठों से फूटे थे।

मुझे उस वक्त ये परवाह नहीं थी के उसने सुना या नहीं सुना, मैंने बस अपने दिल का एक बोझ से हल्का कर लिया था।

यह मेरे प्यार की घोषणा थी, उस प्यार की जिसे अलविदा कहना था जो चाहकर भी शायद मुझे उस रूप में नसीब नहीं हो सकता था जिसमे में चाहता था।

अपने आप को खड़े होने के लिए मजबूर करते हुए, मैंने रोमा पर एक आखिरी नज़र डाली, उसका रूप उस अँधेरे कमरे में भी जगमगा रहा था। उसकी छातियां एक स्थिर लय में उठ और गिर रहीं थी। मैंने महसूस किया कि मेरी आँख के एक छोर से एक आंसू का कतरा फिसल कर मेरे गाल को भिगो गया।

भारी मन से, मैं उसके कमरे से बहार आ गया। उससे हर कदम दूर होने पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे शरीर का एक हिस्सा मुझसे किसी ने छीन लिया है और उसकी जगह पर एक खालीपन छोड़ दिया है।


 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
40,528
102,947
304
UPDATE 10:


अगले दिन मैं वाणी को छोड़ने उसके घर मेरठ चल दिया, हम सुबह ९ बजे घर से निकले थे। रोमा ने अच्छे से वाणी को विदा किया था, रोमा को देखने से कंही भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था के वो रात की घटना से परिचित है। पर मेरे मन में उथल पुथल मची थी, उसके नाज़ुक अंगों का स्पर्श मेरी हथेलियों पर एक यादगार पल के रूप में अंकित था।

रात की घटना को लेकर, बस में साथ सफर करते हुए मैंने वाणी से पूछा "क्या वो रात के बारे में जानती है?" मेरी आवाज़ में फुसफुसाहट थी।

वाणी ने मेरे हाथ में अपनी उंगलियां फंसा दी और मेरे कान के पास अपना मुंह झुका के उसने जवाब दिया "नहीं, उसे लगता है मैं उसकी चूचियां दबा रही थी ?"

"क्या सच में?" मैंने हैरत से पूछा, मेरी आवाज़ बहुत धीमी थी हमारे आगे पीछे बैठे लोग हमे नहीं सुन सकते थे।

"हम्म, तुम्हारे आने से पहले हमने बहुत मस्ती की थी" उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया।

"कैसी मस्ती?" मैंने फुसफुसाते हुए पूछा, "वैसी ही जैसी तुम उसके साथ कर रहे थे" वो मुस्कुरायी, मैं समझ गया के दोनों महिलाएं एक दूसरे के जिस्मो से खेल रहीं थी, वाणी ने मुझे पहले भी बताया था के वो पहले भी ऐसा कर चुकी हैं।

"एक बात बताऊँ, रात जिस तरह से तुम उसके मजे ले रहे थे उसे सोचकर मेरी अभी भी गीली हो रही है" वो मेरे कान में फुसफुसा के बोली और मेरी जांघ पर अपना हाथ रख दिया। "श…श वाणी ठीक से बैठ यार, आस पास तो देख ले?" मैंने थोड़ा झेंपते हुए उसे सतर्क किया।

उसने अपना हाथ मेरी जांघ से वापस खींच लिया। थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही, मुझे रोमा की मदहोश कर देने वाली यादों ने फिरसे घेर लिया। तेज़ गति से दौड़ती बस में मैं खिड़की से बहार झांकते हुए, हरे भरे खेतों को पीछे छूटते देख रहा था।

"क्या हुआ ज़ादा याद आ रही अपनी प्यारी बहन की?" वाणी ने धीमे से मेरे कान में बोलते हुए मुझे छेड़ा, "पता नहीं यार बस उलझा हुआ हूँ, अंजाम को सोचकर" मैंने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा।

"ओह हो! इतना मत सोचो, बस मज़े करो यार, थोड़ी सी हिम्मत और दिखानी है तुम्हे" उसने मुझे दिलासा सी दी। "ऐसा मैं और तू सोच रहे हैं, मुझे डर है के कंही वो बुरा मान गयी तो मुसीबत आ जाएगी" मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा।

"ऐसा कुछ नहीं होगा, मेरी गारंटी है" वाणी ने स्पष्ट किया उसकी आवाज़ में विश्वास था।

"तुम बस उसे एक लड़की की तरह सोचो और उसे रिझाने के लिए जो कर सकते हो वो करो" उसने मुझे समझया "बाकी सारी चिंताए भूल जाओ", मैंने गर्दन हिला के अपनी सहमति जताई।

वो पूरा दिन मेरा सफर में ही गुज़र गया और में वाणी को उसके घर छोड़कर रात ९ बजे अपने घर लौट आया।

रात को खाने की टेबल पर मेरी नज़रें रोमा से मिली पर उसने अपनी नज़रें फेर ली, हमारे बीच एक खामोशी सी छाई रही। माँ ने हमारी खामोशी को शायद महसूस कर लिया था "क्या हुआ? तुम दोनों में झगड़ा हुआ है क्या?" माँ ने पहले मेरी तरफ और फिर रोमा की तरफ देखकर पूछा। "नहीं तो!" हम दोनों एक साथ बोले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। "तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यूँ है?" माँ ने अपना सवाल दोहराया। "कुछ नहीं माँ मैं बस थोड़ा थका हुआ हूँ और एक काली बिल्ली मेरा रास्ता काट गयी थी" मैंने मुस्कुरा के रोमा की तरफ देखते हुए कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी। जैसे ही रोमा को समझ आया के बिल्ली का शब्द उसके लिए था उसने अपनी आँखें बड़ी करके मुझे घूरते हुए कहा "अच्छा हुआ माँ, बिल्ली ने भईया का रास्ता ही काटा, कंही इन्हे काट लेती तो मुश्किल हो जाती" कह कर रोमा माँ की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगी।

"हम्म, अब आयी न घर में रौनक" माँ ने हँसते हुए कहा, "मैं तो कहता हूँ माँ हमे एक कटोरे में दूध भर के रोज़ बहार रख देना चाहिए, बेचारी बिल्लियां भूखी रहती हैं" मैंने बहुत गंभीर स्वर में माँ से कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी।

रोमा के चेहरे पर बनावटी गुस्सा उभर आया "माँ समझा लो अपने लाडले को वर्ना बिल्ली ने अगर पंजा मार दिया तो गंजा कर देगी" उसने मेरी तरफ देखते हुए गुस्से में कहा हालाँकि वो सब बनावटी था।

"देखा माँ, मैंने इसका नाम भी नहीं लिया और बेचारी अपनी बिरादरी के लोगों के लिए कितना फील करती है," मैंने मुस्कुराते हुए रोमा को फिर से छेड़ते हुए कहा, रोमा ने चिढ़ कर अपना गिलास पकड़ा और मेरी तरफ उसका पानी उछाला मैं पानी से बचने के लिए पीछे को झुका और अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचा। वो खिलखिला के हंसने लगी क्यूंकि गिलास खाली था और उसने महज़ दिखावा किया था।

"अरे! पागल अभी गिर जाता मैं" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा, "तभी तो मज़ा आता" उसने हँसते हुए जवाब दिया

"अच्छा अच्छा बहुत हुआ तुम दोनों का, जल्दी खाना ख़त्म करो" माँ ने हस्तक्षेप करते हुए हमे डांटा।

हमने जल्दी से अपना खाना ख़त्म किया, मुझे ख़ुशी थी की अभी भी हमारा भाई बहन वाला प्रेम बरकरार था, ऊपरी तौर पर ही सही। हम दोनों ही अपने रिश्ते की मर्यादा और अपनी अनअपेक्षित भावनाओं से झूझ रहे थे।

अगले दिन सुबह के १० बज चुके थे और मैं आज कुछ ज़ादा ही देर से सो के उठा था, आमतौर पर रोमा मुझे जगा देती थी पर आज उसने भी मुझे जगाने की कोशिश नहीं की थी। मैं जल्दी से फ्रेश होकर नीचे किचन में पहुंचा और कुछ खाने के लिए ढूंढ़ने लगा, रोमा उस वक्त शायद अपने रूम में थी। बर्तनो के खड़कने की आवाज़ सुनकर वो अपने कमरे से बहार आयी और मेरे हाथ से प्लेट छींटे हुए बोली "तुम बैठो मैं नाश्ता लगाती हूँ "

मैं बिना कुछ बोले टेबल पर आकर बैठ गया, थोड़ी ही देर में वो मुझे कुछ ब्रेड टोस्ट और चाय दे गयी और फिर किचन में जाके अपना अधूरा काम निपटाने लगी।

मैं नाश्ता करते हुए रोमा को ही देख रहा था, वो हरे रंग की एक शर्ट और सफ़ेद लॉन्ग स्कर्ट में बहुत ही सुन्दर और शालीन लग रही थी, उसके शरीर के हिलने से उसकी भारी गांड में कम्पन होता और उसकी ढीली स्कर्ट थिरकने लगती, मुझे ये दृश्य बहुत ही मोहक लग रहा था।

तभी मेरे फ़ोन की तीव्र घंटी हवा में गूंज उठी, ध्वनि ने मुझे मेरे विचारों से झकझोर दिया। मैं कुर्सी से उछल पड़ा, रोमा ने पलट कर मेरी तरफ देखा। जैसे ही मैंने टेबल से फोन उठाया, मेरा दिल जोरों से धड़क गया। स्क्रीन पर लिखा था 'अलाया होटल्स एंड रिसॉर्ट्स'।

"हैल्लो?" मैंने तनाव से कर्कश स्वर में उत्तर दिया।

"रवि, मैं अलाया होटल्स से प्रीती गौर बोल रही हूँ," दूसरी ओर से आवाज आई, "मैं यह जानना चाहती हूँ के क्या आप हमे ज्वाइन कर रहे हैं या नहीं?"

मेरा हाथ फ़ोन के चारों ओर कस गया, दबाव के कारण प्लास्टिक चरमराने लगा। "मुझे... मैम मुझे कुछ और दिन चाहिए," मैंने हकलाते हुए कहा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। "कुछ फॅमिली में इमरजेंसी है।"

लेकिन दूसरी तरफ से मेरी याचना को अनसुना कर दिया गया. "देखो, रवि, हम अब और नहीं रुक सकते हमारी भी अपनी मजबूरियां हैं। यदि आप कल तक ज्वाइन नहीं कर सकते तो हमे फिर किसी और को आपकी जगह कंसीडर करना पड़ेगा।"

उसके शब्दों ने मेरे माथे पर पसीना ला दिया, मेरा वास्तविकता से फिरसे परिचय हुआ। मसूरी में वह नौकरी जिसका हिस्सा बनने के लिए मैं उत्सुक था, जिसने घटनाओं की इस पूरी श्रृंखला को गति दी थी, अब वह मुझे रोमा से दूर होने को विवश कर रही थी। मुझे अपने सीने में एक घबराहट महसूस हुई, "कल तक कैसे होगा मैम, मैं परसों तक कोशिश करूँगा ज्वाइन करने की" मैंने हड़बड़ाहट में कहा।

रोमा स्लैब की सफ़ाई करते हुए रुक गई, उसकी आँखें चिंता और जिज्ञासा के मिश्रण से मेरी ओर देख रही थीं। वह जानती थी कि मेरी नौकरी मेरे लिए महत्वपूर्ण थी, ये मेरे बेहतर जीवन के लिए और मेरे करियर की सफलता का टिकट था। लेकिन वह यह भी जानती थी कि मेरे दूर हो जाने से मैं संभवतः उस उग्र जुनून को भूल सकता था जो हमारे बीच पनप रहा था।

"ओके, परसों आपका इंतज़ार रहेगा पर अगर आप नहीं ज्वाइन कर पाए तो हम क्षमा चाहेंगे" उस महिला के शब्द थोड़े कठोर थे पर लहज़ा सहज था। "नहीं मैम, परसों पक्का मैं ज्वाइन कर लूंगा" मैंने एक बार फिरसे उसे भरोसा दिलाया, "OK Then, we will meet you day after tomorrow, बाई" कह कर उसने कॉल कट कर दी।

मैंने फ़ोन साइड में रखा और कुर्सी पर गिर पड़ा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। मैंने निराश होकर अपना दोपहर का भोजन समाप्त किया और ऊपर अपने कमरे में आ गया।

जैसे ही मैं अपने विचारों के कोलाहल में खो जाने वाला था, मेरे कमरे का दरवाज़ा चरमरा कर खुला। मैंने सर उठा कर ऊपर देखा तो रोमा वहाँ खड़ी थी, उसके हाथ में पानी का गिलास था। उसकी आँखें मेरे चेहरे पर नज़रें गड़ाए हुए थीं, हवा में छाए अचानक तनाव का स्पष्टीकरण ढूँढ़ रही थीं।

"सब ठीक तो है?" उसने धीरे से पूछा, उसकी आवाज में एक सौम्य दुलार था जिसने मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी।



मैंने सिर हिलाया, उससे पानी लिया और एक घूंट में पी लिया। "तुझे बताया था न नए ऑफर के बारे में," मैंने गिलास को साइड टेबल पर खनकते हुए रख दिया। "वे चाहते हैं कि मैं परसों तक ज्वाइन करूँ।"

रोमा के चेहरे के भाव बदल गए, उसके गालों की लाली फीकी पड़ने लगी। "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है? माँ भी अब ठीक हैं, तुम्हें भी आगे बढ़ना चाहिए" उसने विस्तार से समझाकर मुझे सांत्वना देने की कोशिश की।



उसके शब्द मेरी आत्मा पर चाकू की तरह थे। मैं जानता था कि वह सही थी, लेकिन उसे छोड़ने का, उससे अलग होने का विचार असहनीय था। "मैं बस जाना नहीं चाहता," मैंने कबूल किया, कमरे में मेरे शब्दों का बोझ भारी था।

रोमा ने मेरी ओर एक कदम बढ़ाया, उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ तलाश रही थीं। "तुम्हें जाना चाहिए," उसने धीरे से कहा, "यह तुम्हारे अच्छे के लिए है।"

उसके शब्द मुझे वास्तविकता में खींच रहे थे और उन वर्जित भावनाओ को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रहे थे। वो समझ रही थी, हमारे बीच का रहस्य, हमारी इच्छाएँ, वे कभी भी मेरे करियर से बड़ी नहीं हो सकतीं। मैंने सिर हिलाया, मेरे निर्णय का भार मेरे कंधों पर था। "मैं जनता हूँ," मैं बुदबुदाया, ये शब्द मेरे गले में अटक रहे थे।

रोमा ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखें मेरी आँखों से हट ही नहीं रही थीं। फिर वह पीछे हट गई, उसका हाथ मेरे कंधे से हट गया। "तो फिर जाने की तैयारी करो," उसने मुस्कुराहट के साथ कहा जो एकदम बनावटी थी। "तुम्हारे पास केवल एक दिन है।"

मैंने सिर हिलाया, हर गुजरते पल के साथ मेरे सीने में भारीपन बढ़ता जा रहा था। उसने जो शब्द कहे थे वे एक आदेश और एक सांत्वना थे जो सभी एक में समाहित हो गए थे। मैं जानता था कि वह सही थी; मुझे अपने काम और करियर को गंभीरता से लेना था। यह मेरे जीवन को पटरी पर रखने का एकमात्र तरीका था।

रोमा दरवाजे से मुझे आखिरी बार देखती हुई चली गई, उसकी आँखों में मेरी आँखों जैसा दुःख झलक रहा था। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, उस क्षण की अंतिम घड़ी मुझ पर टनों ईंटों की तरह गिरी। ऐसा लग रहा था मानो हमारे बीच एक दीवार खड़ी हो गई हो, जो उसी धूल से बनी हो जिसने हमें स्टोर रूम में घेर रखा था। यह अंतर असहनीय लग रहा था, सन्नाटा बहरा कर देने वाला था।

कांपते हाथों से, मैंने अपना लैपटॉप खोला, मैंने एक गहरी सांस ली और रोमा की गांड के उभार का मेरे लंड पर रोमांचकारी दबाव, मेरी हथेलियों के नीचे उसकी नरम सुडोल चूचियों के एहसास को दूर करने की कोशिश की। मुझे ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत थी, मुझे एक झूठा इस्तफ़ा टाइप करना था जो मुझे मेरी वर्तमान कंपनी को भेजना था।

मैंने अपना इस्तीफा टाइप किया, एक पारिवारिक आपातकाल की कहानी गढ़ते हुए जिस पर मुझे तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत थी और मैंने ईमेल सेंड कर दिया।

मेरा पूरा दिन नई नौकरी और नयी जगह के लिए जरूरी चीजें पैक करने में बीता।



जैसे ही मैंने अपना सूटकेस पैक किया, मेरे विचार अव्यवस्थित हो गए। मसूरी में एक नया अध्याय शुरू करने का उत्साह रोमा को पीछे छोड़ने के दुःख से धूमिल हो गया था। मैं इस अहसास को भुला नहीं सका कि मैं अपनी भावनाओं का एक हिस्सा अपने ही घर में छोड़ कर जा रहा हूं।

माँ पूरी शाम मेरे कमरे में आती-जाती रही, उसकी आँखों में गर्व और चिंता का मिश्रण भरा हुआ था। उन्होंने रोमा से यह खबर पहले ही सुन ली थी, और हालाँकि उन्होंने सीधे तौर पर नहीं कहा था, मैं उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देख सकता था। वह मंडराई, मुझे सामान पैक करने में मदद करने की पेशकश की, पूछा कि क्या मेरे पास पर्याप्त गर्म कपड़े हैं, मुझे अच्छा खाने और बहुत अधिक मेहनत न करने की याद दिलाती रही। उनका प्यार मन को भर देने वाला था, रोमा के उस स्पर्श से एकदम विपरीत, जिसमे वासना और दबी हुई इच्छाएं शामिल थीं।

रात में 11 बजे, मैंने खुद को अपनी माँ के बिस्तर के पास बैठा पाया, बेडसाइड लैंप की हल्की चमक उनके चिंतित चेहरे पर छाया डाल रही थी। उन्होंने आगे की यात्रा, मसूरी में नौकरी के महत्व और घर का बड़ा जिम्मेदार आदमी होने के साथ आने वाली जिम्मेदारियों के बारे में बात की। उनके शब्द एक मरहम की तरह थे, जो मेरे अपराध और भय के कच्चे किनारों को शांत कर रहे थे।

"अब तुम जाओ बेटा," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ चिंता से भरी हुई थी। "तुम हमारी बिलकुल भी चिंता मत करो, यंहा मैं सब सम्हाल लुंगी" उनकी आँखें बंद हो गईं, उनके चेहरे पर उम्र और थकान की रेखाएँ गहरी हो गईं थीं। "अब जाओ, थोड़ा आराम करो। तुम्हे कल बहुत लम्बा सफर तय करना है।"

मैंने सिर हिलाया, उनके शब्दों का बोझ मुझ पर पड़ रहा था। कमरा दमघोंटू था, हवा अनकहे सच और उसकी दवा की गंध से भरी हुई थी। मैं झुका, उनके माथे को धीरे से चूमा, उनकी त्वचा की गर्माहट महसूस की। "ठीक है माँ, गुड़ नाईट" मैंने फुसफुसाया, मेरी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

मैं माँ के कमरे से बहार आया और उनका दरवाज़ा बंद कर दिया। बहार हाल में हलकी सी रौशनी थी जो एक छोटे Led बल्ब से आ रही थी। मैंने एक गहरी साँस ली और रोमा को देखने के लिए उसके कमरे की ओर चल दिया।

उसका दरवाज़ा खुला था, हॉल के बल्ब की रौशनी उसके कमरे के अंदर धीरे से झाँक रही थी। मैंने उसके दरवाज़े को धीरे से पीछे धकेला, और अंदर कदम रखा। रोमा अपने बिस्तर पर दूसरी तरफ मुंह करके लेटी थी, उसकी द्वारा ओडी हुई चादर उसके जिस्म की सुडौलता को रेखांकित कर रही थी।

वह गहरी नींद में सो रही थी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, कमर तक चादर के नीचे छुपी हुई थी। मैं उसकी छाती के हल्के उभार और गिरावट को देख सकता था, उसकी सांसों की धीमी आवाज कमरे में लोरी की तरह गूंज रही थी। उसके बाल तकिये के ऊपर फैले हुए थे। उसे देखकर मुझमें इतनी तीव्र लालसा भर गई कि यह लगभग असहनीय थी।

उसकी सफेद ढीली टी-शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जो नीचे छिपे हुए उभारों का संकेत दे रही थी। उसके जिस्म पर ब्रा का कोई स्पष्ट संकेत नहीं था, उसका सौम्य चेहरा मासूमियत की मिसाल था। मेरे दिमाग में पिछली रात की घटना किसी चलचित्र की भाँती चलने लगी जब मैंने उसके नरम उभारों का जायज़ा लिया था।

मैं उसके बिस्तर के किनारे पर बैठ गया, मेरा दिल मेरे सीने में धड़क रहा था। गद्दा मेरे वजन के नीचे थोड़ा सा दब गया, और मैं उसके शरीर की गर्मी को कपड़े के माध्यम से फैलते हुए महसूस कर सकता था। उसकी खुशबू - ताज़ी और मीठी, नशीली थी, जिससे मेरा सीधे सोचना मुश्किल हो रहा था।

उसका नाम, 'रोमा', एक गुप्त मंत्र की तरह मेरी जीभ फिसला, कमरे का अँधेरा एक कंबल की तरह हमारे चारों ओर लिपटा हुआ लग रहा था, जो हमें दुनिया की चुभती नज़रों से छिपा रहा था, हमें उस वास्तविकता से थोड़ी राहत दे रहा था जो सुबह होने पर हमारा इंतजार कर रही थी।

मैंने थोड़ा सा हाथ बढ़ाया, मेरी उंगलियाँ उसकी टी-शर्ट के कपड़े को छू रही थीं। रुई की कोमलता मेरी ज़रूरत की कठोरता से बिल्कुल विपरीत थी, मेरी अशुद्ध भावनाओं की गर्मी उसकी त्वचा की ठंडक से बिल्कुल विपरीत थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन मैं खामोशी में उसकी सांसें सुन सकता था, उथली और तेज, जो उसके भीतर उमड़ रही भावनाओं के कोलाहल को जाहिर कर रही थीं।

"रोमा?" मैंने फिर से पुकारा, मेरी आवाज़ पहले से थोड़ी तेज़ थी।

फिर भी वह नहीं हिली. कमरे में एकमात्र आवाज़ छत्त के पंखे और मेरे अपने दौड़ते दिल की लयबद्ध धड़कन थी। अँधेरा एक लबादे की तरह महसूस हो रहा था जो हमारे ऊपर फेंक दिया गया था, जो हमें दुनिया से छिपा रहा था, लेकिन यह एक जेल की तरह भी महसूस हो रहा था जो हर गुजरते पल के साथ मेरा दम घोंट रहा था।

एक गहरी साँस के साथ, मैंने कुछ साहस जुटाया और बिस्तर से उठ गया, गद्दा एक शांत विरोध के साथ अपनी जगह पर वापस आ गया। मैं दबे पाँव दरवाजे की ओर बढ़ा। मेरा हाथ दरवाज़े के हैंडल पर मंडरा रहा था, मेरा दिल मेरे गले में था, मैंने उसके हैंडल को पकड़ के धकेला और ऊपरी कुण्डी लगा दी।

कुण्डी की क्लिक मेरे दूषित इरादों की घोषणा थी, उन नियमों के खिलाफ विद्रोह का आगाज़ था, जिन्होंने इतने लंबे समय तक हमारे जीवन को नियंत्रित किया था।

कमरा शांत था, हमारे दिलों के संघर्ष और हमारे दिमागों की लड़ाई का एक प्रमाण। अँधेरा जीवित महसूस हुआ, एक संवेदनशील प्राणी जो हमारे रहस्यों को जानता था और रात के शांत क्षणों में मेरा होंसला बड़ा रहा था।

जब मैं उसके बिस्तर पर वापस गया तो मेरा दिल मेरे सीने में ढोल की तरह बज रहा था, उसकी धड़कन मेरे कानों में गूँज रही थी। वही जगह जहां मैं कुछ देर पहले बैठा था, उसके शरीर की गर्माहट अभी भी किसी छाया के आलिंगन की तरह महसूस हो रही है।

धीरे से, मैंने उसके सिर को सहलाना शुरू कर दिया, मेरी उंगलियाँ उसके रेशमी बालों में फैल गईं। उसके बालों का एक एक कतरा बेहतरीन रेशम के टुकड़े की तरह महसूस हुआ, जो सरसराता हुआ मेरी उँगलियों से फिसल रहा था। मेरा इस तरह से उसे दुलारना सुखद था, ये मेरे मन की उथल-पुथल को शांत कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे छूकर मैं किसी तरह अपना प्यार और भावनाएं ट्रांसफर कर सकता हूं, भले ही वह सोती रहे।

पर मेरे अंदर बैठे वासना रूपी उस शैतान को ये मंज़ूर नहीं हुआ और उसने मुझे आगे बढ़कर उसके उभारों को सहलाने के लिए प्रेरित किया। मन में चल रही कश्मकश से जूझते हुए मैंने अपना हाथ उसके बालों से हटा के उसकी उभरी हुई गांड पर रख दिया। मेरे लंड में एक ही बार में हज़ारों तरंगें सी प्रवाहित होने लगीं, मेरा एक दिमाग अभी भी मुझे रोकने की चेष्टा कर रहा था पर वासना का वो प्रेत मुझपर हावी था।

मैंने धीरे से उसकी गांड को सहलाया, मेरे जिस्म में हज़ारों चींटियों के एक साथ रेंगने का एहसास हुआ।

मैंने एक नज़र रोमा के चेहरे पर डाली वो मुझे सोती हुई किसी अप्सरा सी नज़र आने लगी। उसकी मासूमियत पर जैसे मैं दिल हार गया और मैंने अपना हाथ उसकी गांड से खींच लिया। पहली बार ऐसा लगा जैसे वासना के इस खेल में एक भाई जीत गया और वो सभी अशुद्ध वर्जित इच्छाएं हार गयीं।

मेरा हाथ उसकी टी-शर्ट के कपड़े के ऊपर से उसके कंधे तक पहुंच गया। उसके शरीर की गर्मी मेरी हथेली में समा रही थी। मैंने अपनी उँगलियाँ उसकी बाँह पर फिराईं, किसी पंछी के पंख जैसा हल्का स्पर्श, लगभग ऐसा जैसे मैं कोई जादू कर रहा हूँ।



मुझे नहीं पता कि मुझमें साहस कैसे आया, लेकिन मैंने साहस पाया। मैं झुक गया, मेरा दिल भागती हुई ट्रेन से भी तेज़ दौड़ रहा था। मेरा चेहरा उसके चेहरे पर मंडरा रहा था, और मैं उसकी सांसों की गर्मी को अपनी सांसों के साथ घुलते हुए महसूस कर सकता था। उसके बालों की खुशबू मेरी नाक में भर गई.

एक तेज़ गति के साथ, मैंने अपने होंठ उसके गाल पर रख दिए और एक गहरा चुम्बन लिया जिसमे वासना से अधिक प्रेम का मिश्रण था, मेरे शरीर में बिजली सी कोंध गयी क्यूंकि में उसकी प्रतिक्रिया से डर गया था, मुझे लगने लगा के किसी भी पल वो बस मुझे खुद से दूर धकेल देगी, लेकिन वह शांत रही, अपनी गहरी नींद में खोई रही।

मेरे दिमाग में विचारों का बवंडर उमड़ रहा था, हर एक पिछले से भी अधिक विकृत वासनाओं से भरा हुआ था, लेकिन मेरा दिल स्थिर था, उस महिला के लिए प्यार और करुणा के अलावा कुछ भी नहीं था जो मेरी दुनिया का केंद्र बन गई थी, भले ही वो मेरी सगी बहन थी।

एक कोमल स्पर्श से, मैंने रोमा के नंगे कंधे को सहलाया, मेरी उँगलियाँ उसकी टी-शर्ट की नेकलाइन तक जाने वाली चिकनी त्वचा का पता लगा रही थीं। कपड़ा पतला था, जिससे मुझे उसके शरीर की गर्मी महसूस हो रही थी। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, हर धड़कन मेरे कानों में ढोल की तरह गूँज रही थी, और मुझे डर था कि वह किसी भी समय जाग सकती है। लेकिन वह शांत लेटी रही, नींद के आगोश में खोई हुई। मैं उसे सिर्फ दुलार रहा था, उस से जुदा होने से पहले एक आखरी बार।

रात के सन्नाटे में, मेरा मन मेरे अंदर के मानव और दानव के लिए युद्ध का मैदान था। मानव ने कर्तव्य और पारिवारिक बंधनों के बारे में फुसफुसाया, मुझे उस पवित्र विश्वास की याद दिलाई जो भाई होने के साथ आता है। लेकिन दानव ने जुनून और मेरी आत्मा में जलने वाली उस दबी हुई इच्छा की बात की, जो मुझे रोमा के शरीर को पाने के लिए प्रेरित कर रही थी जो मैं हमेशा से चाहता था।

मैंने एक गहरी साँस ली, अपने आप को भीतर के उग्र तूफ़ान के ख़िलाफ़ मज़बूत करते हुए। धीरे-धीरे, मैंने अपना हाथ रोमा के गर्म कंधे से हटा लिया। मेरी आँखें एक आखिरी बार उसकी गर्दन की कोमल ढलान, उसके कंधे के नरम मोड़ और पतले कपडे के नीचे उसकी भारी मांसल चूचियों के उभारों पर टिक गईं।

कांपती उंगलियों के साथ, मैं आगे बढ़ा और उसके चेहरे से बिखरे बालों को हटा दिया। वह नींद में इतनी शांत, इतनी शांत लग रही थी, मानो उसे स्वयं देवताओं ने गढ़ा हो। मेरा दिल प्यार और लालसा के मिश्रण से दुख गया जो जितना शक्तिशाली था उतना ही गलत भी था। लेकिन मुझे पता था कि समाज ने हमारे लिए जो सीमाएं खींची हैं, उनका सम्मान करने के लिए मुझे उसे छोड़ना होगा, भले ही मेरी आत्मा विरोध में चिल्लाती रहे।

मैं झुक गया, मेरी साँसें गले में अटक रही थीं, और मैंने उसके माथे पर एक नरम, लंबे समय तक चलने वाला चुंबन दिया। " आई लव यू, रोमी" मैंने फुसफुसा के उसके कान में कहा। मेरे शब्द मेरी आत्मा की आवाज़ थे जो बड़ी ही मुश्किल से मेरे होंठों से फूटे थे।

मुझे उस वक्त ये परवाह नहीं थी के उसने सुना या नहीं सुना, मैंने बस अपने दिल का एक बोझ से हल्का कर लिया था।

यह मेरे प्यार की घोषणा थी, उस प्यार की जिसे अलविदा कहना था जो चाहकर भी शायद मुझे उस रूप में नसीब नहीं हो सकता था जिसमे में चाहता था।

अपने आप को खड़े होने के लिए मजबूर करते हुए, मैंने रोमा पर एक आखिरी नज़र डाली, उसका रूप उस अँधेरे कमरे में भी जगमगा रहा था। उसकी छातियां एक स्थिर लय में उठ और गिर रहीं थी। मैंने महसूस किया कि मेरी आँख के एक छोर से एक आंसू का कतरा फिसल कर मेरे गाल को भिगो गया।

भारी मन से, मैं उसके कमरे से बहार आ गया। उससे हर कदम दूर होने पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे शरीर का एक हिस्सा मुझसे किसी ने छीन लिया है और उसकी जगह पर एक खालीपन छोड़ दिया है।
Shandar jabardast romantic update 🔥
 
Top