कहानी दोबारा शुरू करने के लिए आभारUPDATE: 17
अगले दिन सुबह हम तीनों सोनिया, रोमा और मैं डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे और शीतल बुआ हमें खाना परोस रही थीं।
"अरे रोमी, एक बात बता! ये बोलेरो कार का आईडिया तेरा था?" मैंने अपना सिर उसकी ओर घुमाते हुए, बातचीत को हल्का रखने की कोशिश करते हुए पूछा, इस उम्मीद से कि हम दोनों के बीच जो भारीपन आ गया है, उससे उसका ध्यान हट जाए।
जब उसने अपनी थाली से ऊपर देखा तो उसकी आँखें गुस्से से चमक उठीं। "नहीं, यह उस इडियट की चॉइस है," वह दाँत पीसते हुए बोली, उसकी आवाज़ शांत कमरे में एक चाबुक की तरह थी।
सोनिया की हँसी फूट पड़ी, जिससे क्षण भर के लिए माहौल हल्का हो गया। “आकाश?” वह सिर हिलाते हुए हँसी। "उसकी पसंद अलग ही है।"
"ठीक है, हम सभी की अपनी-अपनी पसंद है," मैंने बातचीत को खतरनाक क्षेत्र में जाने से रोकने की कोशिश करते हुए कहा। "लेकिन मुझे लगता है कि तुझे कोई और आरामदायक और स्पोर्टी कार के लिए उसे मनाना चाहिए ।"
रोमा की नज़र मुझ पर टिकी रही, उसका गुस्सा धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा था। "मेरी पसंद कौन पूछता है?" उसने बड़बड़ा के तंज किया, उसकी आवाज़ बमुश्किल सुनाई दे रही थी। " बोलेरो की डिमांड उनकी तरफ से रखी गयी थी ।"
मैंने मुस्कुरा के सोनिया की तरफ देखा, और वह अचानक मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा उठी। "ओह भैया, मुझे स्पोर्ट्स कार बहुत पसंद है," उसने कहा, उसकी आँखें उत्साह से चमक रही थीं। "जो तेज़ हो और स्लीक, जैसे फ़ेरारी या लेम्बोर्गिनी।"
रोमा की निगाहें थोड़ी नरम हो गईं, सोनिया की बात सुनकर उसके होठों के कोनों पर मुस्कुराहट का एक संकेत खेल रहा था। "तुम्हारी पसंद अच्छी है सोनिया," उसने कहा, उसकी आवाज में शरारत की झलक थी। "पर वो बहुत महंगी हैं"
सोनिया ने चंचलता से कहा। "महंगी क्या दी, अपनी तो औकात से ही बाहर है" कहकर सोनिया हंसने लगी, उसे हँसता हुआ देख रोमा भी मुस्कुरा दी।
"देख, सोनी," मैंने कहा, मेरी आवाज़ दृढ़ लेकिन कोमल थी। "मुझे ये बता तुझे इनमें से कौन सी कार पसंद है?" मैंने अपनी जेब से सेल्समैन द्वारा दिया गया कागज का पैम्फलेट निकाला और मेज पर रख दिया।
जैसे ही उसने पन्ने पलटे, उसकी आंखें चमक उठीं और वह बच्चों जैसे उत्साह के साथ विभिन्न मॉडलों की ओर इशारा कर रही थी।
"ये बढ़िया है!" उसने कहा, उसकी उंगली एक काली एसयूवी पर जा कर टिक गयी । "यह बहुत सुन्दर और स्टाइलिश लग रही है।"
मैंने सिर हिलाया, इतने दिनों में पहली बार सचमुच मुस्कुराया। "मुझे भी ये पसंद है," मैंने कहा।
रोमा ने सोनिया के हाथ से कागज लिया और उस कार पर नज़र डाली। उसकी आँखें थोड़ी चौड़ी हो गईं और उसने उसे वापस मुझे सौंप दिया। "अच्छी तो है, पर बोलेरो का क्या होगा ?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ धीमी थी।
"बोलेरो की डिलीवरी मैं थोड़ा टाइम लगेगा, रोमी," मैंने उत्तर दिया, "सेल्समैन ने कहा कि अभी वह स्टॉक में नहीं है, और नयी खेप आने में १० दिन का समय लगेगा।"
उसकी आँखें मेरी आँखों में झूठ का संकेत ढूँढ़ रही थीं, लेकिन उसे कोई झूठ नहीं मिला।
'अगर तू चाहे तो हम बोलेरो की जगह इस कार को ले सकते हैं, यह बोलेरो से ज़ादा आरामदायक और महंगी है?' मैंने बातचीत को तटस्थ बनाए रखने की कोशिश करते हुए रोमा से पूछा।
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए रोमा की आँखों ने एक पल के लिए मेरी आँखों को खोजा।
"कार तो अच्छी है भईया, पर तुम्हे और ज़ादा खर्चा करने की ज़रुरत नहीं" उसने जवाब दिया, उसकी आवाज़ अनकही भावनाओं के बोझ से कांप रही थी।
"पैसे की चिंता मत कर, तुझे बस आकाश को मनाने की जरूरत है," मैंने कहा, मेरे दिल में उथल-पुथल के बावजूद मेरी आवाज स्थिर थी। "बाकी सब मैं देख लूंगा।"
रोमा की आँखों ने मेरी आँखों को खोजा, "उससे इजाजत लेने की जरूरत नहीं है, तुम वही करो जो तुम्हें ठीक लगे" उसने गुस्से में कहा।
कमरे में गर्मी की तरह महसूस होने वाले तनाव को महसूस करते हुए सोनिया की आँखें हमारे बीच घूमीं। "सही बात है भईया, सब कुछ आकाश की पसंद का थोड़े ही चलेगा" उसने कहा, उसकी आवाज़ मासूमियत से भरी हुई थी।
"ठीक है फिर, मैं आज ही जाके गाडी रेडी करवाता हूँ" मैंने अपनी आवाज में दृढ़ता लाते हुए उसे आश्वासन दिया। “तुम लोग शादी की बाकी रस्मों पर ध्यान दो।”
रोमा ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में दुःख और क्रोध का मिश्रण था। वह जानती थी कि मैं सही था—अब शादी की दिशा बदलने के लिए हम कुछ नहीं कर सकते थे। हमने अपने रास्ते तय कर लिए थे और हमें उनपर ही चलना था।
नाश्ता करने बाद मैं घर से निकला और कार के शोरूम में जाकर सबसे पहले वो कार परचेस की और पेमेंट और डॉक्यूमेंटेशन का काम निबटा कर दोपहर तक गाडी की डिलीवरी ले ली।
नयी गाडी चलाने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है, मख्खन की तरह गियर शिफ्टिंग, चीते की तरह पिक उप और ऊँगली के इशारे पर नाचता हुआ स्टीयरिंग एक अलग ही फील दे रहा था।
गाड़ी से घूमते हुए मैंने बाकी के सारे काम निबटाये और शाम को 8 बजे के आस पास घर पहुंचा।
घर कंही से भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था के यंहा २ दिन बाद किसी की शादी है। घर के अंदर धीमी रौशनी और सन्नाटा पसरा था।
मेरी आहट सुनकर रोमा अपने कमरे से बाहर आयी, उसके चेहरे पर उदासी और आँखों में अभी भी सूनापन था। "चाची भईया आ गए हैं, मैं खाना लगाती हूँ तुम बर्तन साफ़ कर दो" उसने किचन की तरफ बढ़ते हुए वंहा काम कर रही मंजू चाची से कहा (मंजू चाची को मैंने घर की सफाई और किचन के काम के लिए कुछ दिन के लिए रखा था। वो सुबह से शाम तक घर के काम देखती और रात को अपने घर चली जाती )
मैंने हाथ मुंह धोये और टेबल पर आकर बैठ गया, रोमा ने प्लेट में मुझे खाना दिया, मैंने रोटी का कोर तोड़ते हुए पूछा "बुआ और सोनिया दिखाई नहीं दे रहे ?"
रोमा किचन की तरफ जाते हुए पलटी और जवाब दिया "वो अपने कपडे और कुछ ज़रूरी चीज़ें लेने अपने घर गयी हैं , सुबह तक आएँगी"
"ओके, तूने खाना खा लिया?" मैंने अगला सवाल किया
"नहीं, अभी भूख नहीं है बाद में खाउंगी" कहकर वो किचन के अंदर चली गयी।
खाना ख़त्म करने के बाद में हॉल में बैठ कर टीवी देखने लगा, दिमाग में चल रही उथल पुथल से ये बस थोड़ा ध्यान भटकाने जैसा था। थोड़ी देर बाद रोमा भी मुझसे थोड़ी दुरी पर आकर बैठ गयी और टीवी देखने लगी, कुछ पल के लिए हमारी नज़रें मिली और हम दोनों ही झेंप से गए। हमने अपनी नज़रें टीवी पर स्थिर कर ली।
तभी मंजू चाची हमारे पास आयी, उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछते हुए कहा "रसोई साफ़ कर दी है और बर्तन धो कर रख दिए हैं ," उनकी आवाज़ कमरे में विस्फोटक तनाव के बिल्कुल विपरीत थी।
"ठीक है चाची, कल समय से आ जाना," मैंने जवाब दिया, मेरी आवाज़ में तनाव आ गया।
मंजू चाची ने सिर हिलाया और मुख्य द्वार से बाहर चली गयी । मैं खड़ा हुआ, पूरे दिन की भाग दौड़ से मेरे पैर अकड़ गए थे। मैं मुख्य दरवाज़े के पास गया और रोमा की तरफ देख कर पूछ बैठा "तूने अपनी नयी गाड़ी देखी?", रोमा की नज़रें मेरा पीछा कर रही थीं, "नहीं तो" कहकर वो सोफे से तुरंत उठी और मेरे पास आयी।
उसने दरवाज़े के बाहर पार्क काले रंग की चमचमाती कार की तरफ देखा और उत्सुकता के साथ दरवाज़े से बाहर निकल कर कार के चारों और घूम कर देखने लगी "बढ़िया है," उसने मेरी तरफ देख कर कहा।
उसकी ओर देखते हुए, मुझे लगा कि मेरा दिल मेरे सीने में जोर से धड़क रहा है। मुझे उसे छूने की, उसके होठों को चूमने की प्रबल इच्छा हुई । लेकिन मैं यह भी जानता था कि अगर मैंने ऐसा कुछ किया और अभी अपनी इच्छाओं के सामने हार मान ली, तो पीछे मुड़कर नहीं देखा जाएगा। मैं एक ऐसी रेखा को पार कर लूंगा जिससे वापसी नामुमकिन होगी।
"चल मैं सोने जा रहा हूँ, दरवाज़ा लॉक कर लेना" कहकर मैं अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। रोमा का ज़ादा देर तक सामना करने की हिम्मत मेरे अंदर नहीं थी, सच कहूं तो मैं बस उससे बचने की कोशिश कर रहा था।
मैं भारी मन से ऊपर अपने कमरे में चला गया, मेरे कदमों की आवाज़ खामोश घर में गूँज रही थी।
अगले दिन की शुरुआत एक ख़ूबसूरत धूप के रूप में हुई, पिछली रात की तूफ़ान और बारिश अपने पीछे एक ताज़ा चमक छोड़ गई जो दुनिया को एक उज्जवल रोशनी में रंगती हुई प्रतीत हुई। फिर भी, हवा में भारीपन बना रहा, जो बाहर की प्रसन्नता से बिल्कुल विपरीत था। सूरज खिड़कियों से अंदर आ रहा था, घर पर एक गर्म चमक बिखेर रहा था, लेकिन वह उस ठंडक को भेद नहीं सका जो मेरी आत्मा में घुस गई थी।
"रवि," दरवाज़े पर दस्तक देते हुए मंजू चाची की आवाज़ ने पुकारा । मैं बिस्तर पर थकावट से कराहने लगा, चादर मुझे अपने आलिंगन में कैसे हुए थी । दीवार पर लगी घड़ी में सुबह के 9 बजे थे, और मुझे पता था कि मुझे उठना होगा। यंहा एक शादी की तैयारी थी, एक ऐसी शादी जो मेरी अपनी इच्छाओं के अंतिम संस्कार की तरह महसूस हो रही थी।
भारी आह के साथ, मैंने चादर को एक तरफ फेंक दिया और दरवाज़ा खोल दिया। मंजू चाची बाहर चाय की ट्रे लिए खड़ी थी । "तुम चाय पी कर रोमा को भी उठा दो वो भी अभी तक सो रही है,"
"उसे सोने दो चाची, आज वैसे भी वो बहुत बिजी रहने वाली है," मैंने उनसे चाय लेते हुए जवाब दिया। कप की गर्माहट मेरे हाथों में अच्छी लगी, "आप खाना रेडी रखना जब वो उठे तो उसे कुछ न कुछ खिला देना"
मंजू चाची ने सिर हिलाया और वापस नीचे चली गयीं, और सुबह की शांति में मुझे चाय पीने के लिए छोड़ दिया।
नहाने के बाद और अपनी नीली जींस और सफेद चेक शर्ट पहनने के बाद, मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा, प्रत्येक कदम पिछले से अधिक भारी लग रहा था। बुआ और सोनिया वापस आ चुकी थी और कुछ पड़ोस की महिलाओं से घर में चहल-पहल थी । धूप और मसालों की गंध हवा में भर गई, जो हॉल में एकत्रित हमारे इलाके की महिलाओं की दूर से हँसी और बकबक की धीमी आवाज के साथ मिल गई।
और फिर मैंने उसे देखा- रोमा। वह पीले रंग की कढ़ाई वाले सलवार कुर्ते में अपने कमरे से हॉल की ओर जा रही थी, उसके बाल पीछे की ओर एक पोनीटेल में बंधे हुए थे जिससे वह शुद्ध सुंदरता का दर्शन करा रही थी। वह आम लोगों के उस समुद्र में एक राजकुमारी की तरह लग रही थी, उसकी सुंदरता और मोहकता ने कमरे में मौजूद सभी लोगों का मन मोह लिया था।
लेकिन उसकी चाल में कुछ अजीब बात थी - एक हल्की सी लंगड़ाहट जिसने मुझे चिंतित कर दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे वह दर्द में थी, और मेरा दिल मेरे सीने में जकड़ गया था।
"क्या हुआ दुल्हन?" भीड़ में से ढोलक बजा रही एक महिला ने चिढ़ाते हुए कहा, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थीं। कमरा हँसी से गूंज उठा।
रोमा के गालों पर गहरी लालिमा छा गई और वह जबरन मुस्कुराने लगी। "अरे कुछ नहीं भाभी," उसने कहा, उसकी आवाज़ में तनाव था। "बस पैर में मोच आ गयी है ।"
उन्हें समझाने के बाद रोमा ने मेरी तरफ देखा, उसकी नज़रें मुझसे मिलीं और उसके होठों पर एक शरारती मुस्कान उभर आई।
जैसे ही महिलाएँ उसके चारों ओर इकट्ठा हुईं, मैं उस पर ध्यान दिए बिना नहीं रह सका जिस तरह से वह उनके साथ गपशप में शामिल हो रही थी और कुछ लचर चुटकुलों पर मुस्कुरा रही थी।
हँसी-मज़ाक के बीच, रोमा की नज़रें मुझ पर टिक जाती थीं, एक तेज़, चोरी-छिपे नज़र जिसे कोई और नहीं पकड़ पाता था। ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई राज़ चुरा रही थी, शादी की तैयारियों की आपाधापी के बीच सिर्फ हमारे लिए एक पल।
एक मजबूर मुस्कान के साथ, मैंने उसे सिर हिलाया और घर से बाहर निकल आया। आज नहीं तो कल मैं उसे इस तरह देखना बर्दाश्त नहीं कर सका। मुझे बाहर निकलने की ज़रूरत थी, जो होने वाला था उसके भारी बोझ के अलावा किसी और चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की।
आसमान में सूरज पिछली रात की बारिश की ठंडक को कम करने के प्रयास कर रहा था ।
मैंने एक नंबर डायल किया, मेरी धड़कनें मेरे कानों में गूँज रही थीं। एक, दो बार घंटी बजी, एक नींद भरी आवाज के उत्तर देने से पहले, मैंने कुछ निर्देश दिए।
फिर मैं बैंक गया और माँ के सारे फंड्स अपने खाते में स्थानांतरित करवा लिए क्योंकि मैं उनका एकमात्र नामांकित व्यक्ति था। फिर मैंने उनके लॉकर में पड़े सारे कीमती गहने निकाल लिए।
कैटरिंग से लेकर वेन्यू की साज सजावट में पूरा दिन बर्बाद हो गया। मेरे मन में रोमा, हमारे गुप्त प्रेम और उस अपराधबोध के विचार दौड़ रहे थे जिनसे बचने की मैं भरसक कोशिश कर रहा था ।
रात को लगभग 8 बजे जैसे ही मैं मुख्य दरवाज़े से अंदर गया, घर की रोशनी से रात में बाहर फैल गई, जिससे सड़क रोशन हो उठी। जैसे-जैसे मैं अंदर पहुँचा, हँसी और संगीत की आवाज़ तेज़ हो गई। मैंने एक गहरी साँस ली, आगे जो होने वाला था उसके लिए खुद को मजबूत किया।
जब मैंने हॉल में कदम रखा, तो मैंने शीतल बुआ और सोनिया को स्पीकर के म्यूजिक पर थिरकते हुए पाया, वो हँसते हुए किसी बॉलीवुड गाने पर झूम रही थी । मोहल्ले की कुछ अन्य महिलाएँ भी उनके साथ शामिल हो गई थीं, उनकी रंग-बिरंगी साड़ियाँ उनके शरीर के झटकों के साथ लहरा रही थीं। यह दृश्य आश्चर्यजनक था, पूरे दिन मुझ पर छाए रहे उदासी भरे मूड से एकदम विपरीत।
रोमा एक कोने में कुर्सी पर बैठी थी, उसका ध्यान नाचती हुई महिलाओं पर था। वह लाल रंग के सलवार सूट में किसी दुल्हन सी लग रही थी, उसकी भारी चूचियां कपड़े में कासी हुई थीं । उसकी त्वचा खुशी और उत्साह की चमक से दमक रही थी, जो उस उदासी से बिल्कुल विपरीत थी जो एक रात पहले उसके चेहरे पर छाई हुई थी।
हमारी नजरें मिलीं, और उसने मुझे एक शरारती मुस्कान दी, उसकी नजरें फिर से मेरी नजरों से मिलने से पहले फर्श की ओर झुक गईं। कमरा हमारे चारों ओर घूम गया, हँसी और संगीत पृष्ठभूमि में लुप्त हो गए क्योंकि मुझे रोमा के प्रति एक खिंचाव सा महसूस हुआ।
जैसे ही मैं महिलाओं के पास से गुजरा, सोनिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया "भैया, तुम्हें भी हमारे साथ डांस करना होगा" उसने विनती करते हुए कहा। मैंने सिर हिलाया और उनके साथ शामिल हो गया। हमने डांस करना शुरू किया, थोड़ी देर के संकोच के बाद में उनके साथ थिरकने लगा ।
सोनिया ने अपने सामान्य उत्साह के साथ रोमा का हाथ पकड़ा और उसे भी डांस के लिए खींच लिया। रोमा की आँखें आश्चर्य से फैल गईं, लेकिन उसने खुद को डांस कर रहे लोगों के घेरे में आने दिया, म्यूजिक की धुन पर थिरकते हुए वो अपनी लंगड़ाहट भूल गयी ।
संगीत हमारे चारों ओर गूंज रहा था, ताल हमारी रगों में घूम रही थी और हम नाच रहे थे, हमारे शरीर पूर्ण सामंजस्य में चल रहे थे। सारे तनावों को भूलकर हम संगीत की लय में खो गए, हमारी मुस्कुराहटें वास्तविक थी, हमारी हंसी सामान्य थी।
लेकिन जैसे-जैसे रात बढ़ती गई, मेरे और रोमा द्वारा साझा किए गए रहस्य के बोझ से मेरा दिल भारी होता गया। महिलाओं के साथ 30 मिनट बिताने के बाद, मैंने अपने बहाने बनाए, मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं क्योंकि मैं उत्सव की गर्मी से दूर हो गया। "मैं थक गया हूँ," मैंने कहा, मेरी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी।
महिलाओं ने मुझे अनुमति दी और मैं उनकी भीड़ से बहार आ गया, मैंने पलट कर नाचती हुई रोमा की तरफ देखा, वो डांस में मशगूल थी पर वो मेरी ही और देख रही थी।
मैंने रोमा को अपने पास आने का इशारा किया। उसने अपने डांस को विराम दिया और अपने कूल्हे मटकती हुई मेरी ओर आने लगी । मैं उसके कमरे के अंदर चला गया और वह मेरे पीछे आ गई।
कमरे में एक लेद बल्ब की धीमी रोशनी थी, जिससे उसके बिस्तर पर गर्म चमक आ रही थी, जिसमें हमारे रहस्यों की यादें थीं। हवा प्रत्याशा से भरी हुई थी, हमारे बीच की खामोशी शब्दों से भी अधिक जोर से बोल रही थी।
रोमा की नज़रें मेरी नज़रों से मिल कर झुक गयी , उसकी नज़रें मेरी नज़रों से दोबारा मिलने से पहले बिस्तर पर टिक गईं। उसकी नज़रों में एक भूख थी जो मेरी नज़रों को प्रतिबिंबित करती थी, उस इच्छा की एक मूक स्वीकृति जो इतने लंबे समय से सतह के नीचे उबल रही थी।
उसने आगे बढ़कर मेरा हाथ थाम लिया, जिसने मुझे हमारी स्थिति की वास्तविकता से परिचित कराया। उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया, उसकी पकड़ लगभग दर्दनाक थी, मानो उसे डर हो कि मैं हाथ खींच लूँगा। लेकिन मैं कहीं नहीं जा रहा था. मैं उसके करीब गया, हमारे शरीर लगभग छू रहे थे, और मैं उसके शरीर से निकलने वाली गर्मी को महसूस कर सकता था।
मैंने उसके हाथ पर एक छोटा सा बैग रख दिया "यह सब तुम्हारा है रोमी, इसे सुरक्षित रखना"
"इसमें क्या है?" रोमा फुसफुसाई, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और उसने अपने हाथ में रखे बैग को देखा।
"ये माँ ने तेरे लिए रखे थे," मैंने कहा, मेरी आवाज भावना से भर्राई हुई थी। "माँ के गहने हैं।"
रोमा की आँखें गीली हो गईं क्योंकि उसे उस चीज़ की गंभीरता का एहसास हुआ जो मैंने उसे उपहार में दी थी। उसने मेरी ओर देखा, उसकी निगाहों में कृतज्ञता झलक रही थी। "थैंक्स, भैया" उसने सांस ली, उसकी आवाज़ कांप रही थी। "यह तो बहुत कीमती है।"
"हाँ कीमती तो हैं, पर तुझसे ज़ायदा नहीं" मैंने कहा, मेरी आवाज़ भावुकता से भरी हुई थी।
उसकी आँखें मेरी तलाश कर रही थीं, उसके गालों पर लाली गहरी हो रही थी। "हम्म," वह बड़बड़ाई, उसके होठों पर एक हल्की मुस्कान तैर रही थी।
मैंने सिर हिलाया, मेरे भीतर उमड़ रहे भावनाओं के कोलाहल को समझाने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। हमारे आसन्न अलगाव का भार मेरे सीने पर एक चट्टान की तरह महसूस हुआ, जो किसी भी क्षण मुझे कुचलने की धमकी दे रहा था।
जैसे ही मैं रोमा के कमरे से बाहर निकला, वह मेरे पीछे आ गई, उसकी आँखें मुझसे हट ही नहीं रही थीं। वह नरम रोशनी में बिल्कुल आश्चर्यजनक लग रही थी, उसकी लाली और मुस्कुराहट उस उदासी के बिल्कुल विपरीत थी जो पहले उसकी आँखों में भर गई थी। उसकी निगाहें एक मूक स्वीकारोक्ति थी, एक वादा कि कल चाहे कुछ भी हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा .
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यही तोRoma ke chehre par sararati muskan aur uska langda na kuch aur rahasya paida kar raha hai