Seen@12
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Update bahut acha h bhai aakriti aur shalaka dono sagi behne h aur shayad dono hi Aaryan se pyar krti h
WOW superb update Raj_sharma bhai#78.
शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।
तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।
सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।
तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।
वह स्थान सोने के समान चमक उठा।
सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।
सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।
“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।
तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।
उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।
उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“
“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।
“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"
शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."
“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।
“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"
शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।
सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।
“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"
“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।
“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।
पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।
“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।
“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-
“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"
“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....
‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।
तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।
उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।
वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।
“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"
शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"
आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-
“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"
देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।
“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।
तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।
“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"
उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।
“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"
आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"
सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।
शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।
उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।
वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।
कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।
आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।
वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।
कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।
आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।
सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।
तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।
आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।
आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।
लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।
उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।
कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।
तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।
सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।
लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।
ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।
हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।
“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।
तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।
वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।
“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।
तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।
“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।
“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।
“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"
आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"
यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।
शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-
“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"
शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।
शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।
अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।
बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।
उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।
बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।
आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।
वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।
तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।
सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।
वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।
जारी रहेगा_______![]()
Kafi majedaar bita kal dikha Suyash ka ab dekht hai kya Suyash wapas ja raha hai apne Body me ya kahee orr#79.
उस तोते ने नन्ही आँखो से आर्यन को देखा।
आर्यन ने उसके सिर पर हाथ फेरा और धीरे से उसे ऊपर उछाल दिया।
उस तोते ने आसमान में अपने पंख फड़फड़ाये और फ़िर से आकर आर्यन के कंधे पर बैठ गया।
यह देख शलाका मुस्कुरा उठी- “लगता है यह तुम्हे अपना दोस्त मानने लगा है और अब यह तुम्हारे ही साथ रहना चाहता है।"
“अरे वाह! ये तो और भी अच्छी बात है। ऐसे मुझे भी एक दोस्त मिल जाएगा।" आर्यन ने कहा- “पर इसका नाम क्या रखूं?"
तभी सुयश ने आर्यन के कान में धीरे से फुसफुसा कर कहा- “ऐमू!"
और आर्यन बोल उठा- “ऐमू नाम कैसा रहेगा?"
“ऐमू ....ये कैसा नाम है? और ऐसा नाम तुम्हारे दिमाग में आया कैसे?" शलाका ने आर्यन से पूछा।
“पता नहीं....... पर मुझे ऐसा लगा जैसे यह नाम किसी ने मेरे कान में फुसफुसाया हो।" आर्यन ने अजीब सी आवाज में कहा।
यह सुन सुयश हैरान रह गया- “क्या मेरी आवाज आर्यन को सुनाई दी है? तो क्या ऐमू का नाम मैंने रखा था?"
“अब अगर दोस्ती हो गयी हो, तो जरा आज की प्रतियोगिता पर भी ध्यान दे लीजिये आर्यन जी।" शलाका ने प्यार भरे अंदाज में आर्यन को छेड़ा।
“हां-हां... क्यों नहीं.... मैंने कब मना किया?" आर्यन ने हंस कर कहा- “तो पहले हमें धेनुका ढूंढनी थी, जिससे स्वर्णदुग्ध लेना है।"
तभी ऐमू आर्यन के हाथ से उड़कर उस आधी बनी गाय की मूर्ति के सिर पर बैठकर जोर-जोर से बोलने लगा- “टेंऽऽ टेंऽऽ टेंऽऽऽ!"
आर्यन की निगाह ऐमू की ओर गयी और इसी के साथ वह खुशी से चीख उठा- “अरे ये भी तो हो सकती है धेनुका?"
“ये और धेनुका .... अरे आर्यन... यह तो पत्थर की बनी आधी गाय है, इससे हमें स्वर्णदुग्ध कैसे मिलेगा ? कुछ तो दिमाग का इस्तेमाल करो?" शलाका ने कहा।
पर आर्यन ने तो जैसे शलाका की बात सुनी ही नहीं। वह अपनी नजर तेजी से इधर-उधर घुमा रहा था।
उस पार्क के कुछ हिस्से में सुनहरी घास लगी थी और वहां पर कागज के कुछ टुकड़े फटे हुए पड़े थे।
इसके अलावा वहां ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे कुछ असाधारण महसूस हो।
पर जाने क्यों आर्यन को वहां कुछ तो अटपटा सा महसूस हो रहा था?
“आर्यन, समय बेकार मत करो किसी दूसरी जगह चलो, यहां धेनुका नहीं है।" शलाका ने फ़िर से आर्यन को समझाने की कोशिश की।
पर आर्यन ने शलाका की एक ना सुनी।
तभी ऐमू उछलकर उस गाय की मूर्ति के मुंह में बैठ गया और फ़िर से चीखने लगा- “टेऽऽ टेऽऽ टेऽऽऽ!"
आर्यन की नजर फ़िर एक बार ऐमू की ओर गयी और कुछ सोचकर आर्यन ने गाय के मूर्ति के खुले मुंह में हाथ डाल दिया।
आर्यन के हाथ, किसी धातु की चीज से स्पर्श हुए। उसने टटोलकर उस चीज को निकाल लिया।
वह एक छेनी और हथौड़ी थे। जिसे देखकर आर्यन खुश हो गया।
उसने तुरंत छेनी और हथौड़ी उठाई और गाय की आधी बनी मूर्ति को तराशने लगा।
अब शलाका भी ध्यान से आर्यन को देख रही थी। सुयश का भी सारा ध्यान आर्यन की ओर ही आ गया।
आर्यन के हाथ छेनी और हथौडी पर किसी सधे हुए मूर्तिकार की तरह तेजी से चल रहे थे।
लगभग आधे घंटे में ही गाय की पूरी मूर्ति आर्यन ने तराश दी।
जैसे ही आर्यन ने गाय के थन को तराशा, तुरंत एक चमत्कारीक तरीके से गाय सजीव हो गयी।
यह देख शलाका ने दौड़कर आर्यन को अपने गले से लगा लिया- “तुम्हारे जैसा दिमाग वाला पूरी पृथ्वी पर दूसरा नहीं मिलेगा। सच में तुम बहुत अच्छे हो।"
“अरे बस करो ... बस करो ... अभी काम पूरा नहीं हुआ है।" आर्यन ने शलाका को अपने से अलग करते हुए कहा।
शलाका यह सुन आश्चर्य में पड़ गयी।
“अरे, अब इसमें क्या बचा है। इसका दूध निकालो और गुरु नीलाभ के पास चलकर उन्हें बता देते हैं कि हम जीत गये।" शलाका ने खुशी का पुरजोर प्रदर्शन करते हुए कहा।
आर्यन ने धेनुका के थन को हाथ लगाकर दूध निकालने की कोशिश की, पर दूध नहीं निकला।
“देख लिया.... दूध नहीं निकला।" आर्यन ने इधर-उधर देखते हुए कहा-
“हमें इसके बछड़े को ढूंढना होगा। बिना बछड़े के ये दूध नहीं देगी।"
अब तो शलाका के साथ सुयश की भी नजरें चारो ओर घूमने लगी। पर वहां दूर-दूर तक बछड़े का नामोनिशान नहीं था।
“अगर धेनुका यहां है तो बछड़े को भी यहीं कहीं होना चाहिए। पर कहां है वह बछड़ा?"
आर्यन बहुत तेजी से सोच रहा था।
तभी आर्यन की नजरें उन फटे पड़े कागज के टुकड़ों की ओर गई।
उसने आगे बढ़कर कुछ टुकड़ों को उठाकर देखा और फ़िर खुश होता हुआ बोला- “शलाका, इन सारे टुकड़ों को इकट्ठा करके मुझे दो।"
शलाका ने अपने हाथ को हवा में हिलाया। सारे टुकड़े हवा में उठकर आर्यन के हाथ में आ गये।
“थोड़ा बहुत हाथ भी प्रयोग में लाया करो। हर समय जादू का प्रयोग करना ठीक नहीं होता।" आर्यन ने कहा।
शलाका ने आर्यन को देख मुस्कुराहाट बिखेरते हुए कहा- “कोशिश करूंगी।"
आर्यन अब सभी फटे कागज के टुकड़ो को ‘जिग्सा-पजल’ की तरह से जोड़ने बैठ गया।
उन कागज के टुकड़ों पर एक बछड़े की तस्वीर ही बनी थी।
जैसे ही आर्यन ने आखरी टुकड़ा जोड़ा, बछड़ा सजीव हो गया और ‘बां-बां‘ की आवाज करता गाय की
ओर दौड़ा। बछड़ा अब गाय के थन से मुंह लगाकर दूध पीने लगा।
शलाका बछड़े को हटाने के लिये धेनुका की ओर बढ़ी, पर आर्यन ने शलाका का हाथ पकड़कर उसे
रोक लिया।
शलाका ने आश्चर्य भरी नजरों से आर्यन को देखा, पर आर्यन प्यार भरी नजरों से बछड़े को दूध पीते देख रहा था।
“उसे मत रोको, दूध पीना बछड़े का अधिकार है। हम अपनी प्रतियोगिता की खातिर किसी बच्चे से उसका अधिकार नहीं छीन सकते।"
आर्यन के शब्दो में जैसे जादू था।
शलाका, आर्यन के पास आकर उसके कंधे पर सिर रखकर खड़ी हो गयी। शलाका ने अपना हाथ अभी भी आर्यन के हाथों से नहीं छुड़ाया था।
वह खुश थी, इस पल के लिये.... आर्यन के लिये.... और उसकी इन असीम भावनाओँ के लिये।
सुयश भी सब कुछ देख और समझ रहा था।
थोड़ी देर में बछड़ा तृप्त होकर गाय से दूर हट गया। तब आर्यन ने अपनी कमर पर बंधे एक छोटे से बर्तन को धेनुका के थन के नीचे लगाकर दूध निकाला।
पर वह दूध सफेद था।
“ये क्या? ये तो स्वर्ण-दुग्ध नहीं है।" आर्यन ने आश्चर्य से कहा-“इसका मतलब अभी कहीं कुछ कमी है। अभी धेनुका का दूध साधारण है.... इसे किसी ना किसी प्रकार से स्वर्ण में बदलना होगा?.....पर कैसे?"
तभी आर्यन की नजर सामने कुछ दूरी में लगी सुनहरी घास पर गयी।
आर्यन यह देख मुस्कुरा उठा। वह उठकर उस सुनहरी घास के पास गया और कुछ घास को हाथों से तोड़ लिया।
फ़िर वो धेनुका के पास आ गया और उसने सुनहरी घास को धेनुका को खिला दिया।
धेनुका ने आर्यन के हाथ में पकड़ी सारी घास को खा लिया।
अब आर्यन ने फ़िर एक बार बर्तन में धेनुका का दूध निकालने की कोशिश की।
अब धेनुका के थनो से सुनहरे रंग का दूध निकलने लगा था। कुछ ही देर में आर्यन का सारा बर्तन भर गया।
शलाका के चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान थी।
आर्यन ने बर्तन का ढक्कन ठीक से बंद किया और उठकर खड़ा हो गया।
शलाका ने अब आर्यन का हाथ थाम लिया और दोनो वापस चल पड़े। ऐमू भी आकर आर्यन के कंधे पर बैठ गया।
कुछ ही देर में वह वापस कैलाश पर्वत के शिखर पर आ गये।
वहां से वह अपने उड़ने वाले घोड़े के रथ पर बैठकर वापस उस स्थान पर आ गये, जहां से वह बर्फ़ के दरवाजे से निकले थे।
सुयश अभी भी दोनो के साथ था। शलाका ने हाथ हिलाकर रथ को गायब कर दिया और आर्यन का हाथ पकड़कर दरवाजे के अंदर की ओर चल दी।
इससे पहले कि वह दरवाजा गायब होता, सुयश भी सरककर उस दरवाजे से अंदर की ओर चला गया।
अंदर एक बहुत विशालकाय बर्फ़ का मैदान था।
कुछ दूरी पर एक ऊंची सी इमारत बनी थी। जिस पर बड़े-बड़े धातु के अक्षरो में लिखा था- “वेदालय"
सभी वेदालय की ओर चल दिये। लेकिन इससे पहले कि आर्यन और शलाका वेदालय में प्रवेश कर पाते, तभी वेदालय से एक लड़की भागती हुई आयी और आर्यन को अपनी बाहों में भर लिया।
उसे देख शलाका ने धीरे से आर्यन का हाथ छोड़ दिया।
“मुझे पता था कि आज की प्रतियोगिता भी तुम ही जीतोगे।“
आकृति ने आर्यन से दूर हटते हुए कहा- “हां थोड़ा सा देर जरूर लगाई आज तुमने, पर अगर मैं आज तुम्हारे साथ होती तो कम से कम आधा घंटा पहले तुम ये प्रतियोगिता जीत जाते और.....और ये तोता कहां से ले आये? मेरे लिये है क्या?“
“पिनाक, शारंगा, कौस्तुभ, धनुषा, धरा और मयूर वापस आये कि नहीं?"
आर्यन ने आकृति की बात का जवाब ना देकर, उससे सवाल ही कर लिया।
“अभी कोई वापस नहीं लौटा और तुम्हें सबकी चिंता रहती है, मेरी छोड़कर।"
कहकर आकृति ने मुंह बनाकर शलाका को देखा और फ़िर आर्यन का हाथ पकड़कर वेदालय के अंदर की ओर चल दी।
शलाका, आर्यन का हाथ पकड़े आकृति को जाते हुए देख रही थी।
उसे आकृति का इस प्रकार आर्यन का हाथ पकड़ना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था।
फ़िर धीरे-धीरे शलाका भी बुझे मन से वेदालय के अंदर की ओर चल दी।
तभी सुयश को अपना शरीर वापस खिंचता नजर आया।
वह वापस आ रहा था, रोशनी को पार करके, ज्ञान का भंडार भरके, एक बार फ़िर वर्तमान में जीने के लिये , या फ़िर किसी की याद में बेचैन होकर जंगलों में भटकने के लिये।
जारी रहेगा_________![]()
Thank you very much for your amazing review and superb support bhaiWah Raj_sharma Bhai Wah..........
Sabhi updates atulniya he Bhai...............
Suyash aur Shalaka ke sath sath aakriti ke bhi baare me pata chal gaya...............
Update padhte samay ek alag hi duniya me pahuch jata hoon....jaise sabkuch meri aankho ke samne chal raha he............
Ek requires he Bhai, jab ye Mahagath puri ho jaye iska PDF bana dena.............jab man chaha padh lenge................
Keep rocking Bro
Bhai hone ko to ye bhi ho sakta hai ki inme se jyada tar yaha se kisi na kisi room me jude ho?Wow kya baat hai suspense, thriller, science, fantasy, civilization aur ab mythology.
Suyash ki ye journey dekhte hain kya kya naya raaz kholti hai.
Suyash ko apna satya jald hi milta hua pata chal raha hai par yadi ye 11 ab jeevit hain toh Inka bhi yahan ki civilization se koi connection hoga kya???
Lekin ek baat jo crystal clear hai ki Shefali iss civilization ka part jarur hone wali hai.
Wonderful update brother.
Sahi pakde hainBhut hi badhiya update
To suyash ko pata chal gaya ki vohi pichle janam me aaryan tha or vah devi shalaka se pyaar karta tha
Or Emu bhi usko isi vajah se dost kah raha tha
Main Kosis karta hu kasyap bhai aaj raat ko dene kiRaj_sharma bhai next update kab tak aayega?
Thank you very much for your valuable review and support bhaiKafi majedaar bita kal dikha Suyash ka ab dekht hai kya Suyash wapas ja raha hai apne Body me ya kahee orr
Awesome writing Raj_sharma bhai
Bilkul ho sakti hai, ya fir prem trikone bhi ho sakta haiBhut hi shandar update
To lagta hai ye aakriti hi aaryan or shalaka ke Prem ke bich ki villain banegi