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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Dhakad boy

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
Bhut hi badhiya update Bhai
To klika ne sabhi darvajo ko par karke prkash shakti hashil kar li or uske tarko ko sunkar yakshraj ne use ek vardan bhi de Diya
Vahi dusri or jenith ki vajah se sabhi ki jaan bach gayi
Dhekte hai ab aage kya hota hai
 

dhparikh

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
Nice update....
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut hi badhiya update Bhai
To klika ne sabhi darvajo ko par karke prkash shakti hashil kar li or uske tarko ko sunkar yakshraj ne use ek vardan bhi de Diya
Vahi dusri or jenith ki vajah se sabhi ki jaan bach gayi
Dhekte hai ab aage kya hota hai
Bilkul bhai, Prakash Shakti hi kya lagbhag sabhi mahatva poorna hai, rahi baat Suyash and Company ki to abhi ke liye to bach gaye hain, ya fir jenith ne bacha liya hai, per kya aage bach payenge? Ye dekhne wali baat hogi :hmm:
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thank_you:
 

Sushil@10

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
Awesome update and nice story
 

Raj_sharma

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 

Raj_sharma

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