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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#138.

त्रिकाली का विवाह:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:50, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम को सामरा महल में रहते आज दूसरा दिन था। सामरा राज्य का विज्ञान और वहां के लोगों का काम करने का तरीका व्योम को बहुत अच्छा लगा था।

व्योम जब भी महल में कहीं निकलता था, तो सभी सैनिक झुककर व्योम को अभिवादन करते। व्योम को यह सब किसी सपने सरीखा लग रहा था।

धीरे-धीरे व्योम को अपने अंदर की गुरुत्व शक्ति का भी अहसास हो गया था।

व्योम ने इस समय युगाका के शाही कपड़ों को पहन रखा था, जो देखने में तो अच्छे थे, पर थोड़े छोटे थे।

शायद वह कपड़े युगाका सोते समय पहनता था। इन कपड़ों में व्योम इस समय किसी ड्रामा कंपनी का नमूना दिख रहा था।

त्रिकाली ने अभी तक व्योम को अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति से मिलाया नहीं था।

इस समय भी वह महल के एक विशाल शयनकक्ष में बैठा, अपनी पुरानी जिंदगी और इस नयी जिंदगी के परिवर्तनों को आंकने की कोशिश कर रहा था, कि तभी त्रिकाली उसके कमरे में प्रविष्ठ हुई।

त्रिकाली ने इस समय एक नीले रंग का लंबा सा गाउन पहन रखा था। उस नीले गाउन में सुनहरे सितारे जड़े हुए थे।

इस गाउन में त्रिकाली किसी स्वर्ग की अप्सरा सी प्रतीत हो रही थी।

व्योम की नजर जैसे ही त्रिकाली पर पड़ी, वह अपलक उसे निहारने लगा।

“इस तरह क्या देख रहे हो? कभी किसी सुंदर स्त्री को नहीं देखा क्या?” त्रिकाली ने अपने चेहरे पर एक शोख मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

“सुंदर तो बहुत सी स्त्रियों को देखा है, पर किसी अप्सरा को इतने पास से कभी नहीं देखा।” व्योम ने भी अपने भावों को उजागर करते हुए कहा।

“अरे वाह! आप तो प्यार की भाषा भी जानते हैं।” त्रिकाली ने अपने माथे पर आयी लटों को, उंगली से पीछे करते हुए कहा- “अब जरा तुरंत तैयार हो जाइये....आप से मिलने बाबा और भाई आ रहे हैं।”

“मुझसे मिलने?....प...पर मैंने क्या किया है?” व्योम ने घबराते हुए कहा- “मैं उनसे साफ-साफ बोल दूंगा कि तुम ही मुझे जबरदस्ती यहां पर लायी हो।”

“पर...मैंने तो अपने बाबा से बोल दिया है कि मैंने तुम्हारे साथ शादी कर ली।” त्रिशाली ने अपनी आँखों को गोल-गोल नचाते हुए कहा।

“क्याऽऽऽऽऽ? शादी!” शादी की बात सुनकर व्योम एका एक घबरा सा गया- “मैंने नहीं की तुमसे शादी...। तुमने झूठ क्यों बोला?”

“अरे बुद्धू घबराओ नहीं...पहले जाकर 5 मिनट में तैयार हो जाओ... बाबा और भाई बस आते ही होंगे।” त्रिकाली ने व्योम को धक्का देते हुए कहा।

“पर अब तैयार क्या होना? मैं सुबह नहा चुका हूं और यह कपड़े भी मुझे आरामदायक लग रहे हैं। मैं इन्हीं कपड़ों में तुम्हारे बाबा और भाई से मिल लूंगा।”व्योम ने भी जिद पकड़ते हुए कहा।

तभी शयनकक्ष के बाहर खड़े एक सैनिक ने जोर से आवाज लगाकर कलाट और युगाका के आने की पुष्टि की।

त्रिकाली घबराकर व्योम से थोड़ा दूर खड़ी हो गई।

व्योम के चेहरे पर डर के निशान साफ दिख रहे थे।

हमेशा से ही व्योम बडे़-बड़े काम को तो आसानी से अंजाम देता था, पर लड़की के मामले में उसकी आवाज निकलनी बंद हो जाती थी।

तभी शयनकक्ष में कलाट, युगाका, किरीट, रिंजो और शिंजो ने प्रवेश किया।

व्योम ने झुककर सभी का अभिवादन किया, पर रिंजो-शिंजो को वहां देख वह अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था।

सभी वहां रखी आरामदायक कुर्सियों पर बैठ गये। त्रिकाली कलाट की कुर्सी के पीछे जाकर खड़ी हो गयी।

कलाट की अनुभवी निगाहें और युगाका की तीखी नजरें व्योम का ऊपर से नीचे तक एक्स-रे कर रहीं थीं।

उन्हें इस प्रकार से घूरते देख व्योम बोल उठा- “जी मेरा नाम व्योम है। मैं वैसे तो मूलतः भारत का रहने वाला हूं, पर अभी अमेरिका में रह रहा हूं।”

“भारत? तुम भारत के रहने वाले हो?” त्रिकाली ने आश्चर्य से कहा- “तुमने पहले तो नहीं बताया...फिर तो तुम्हें हिन्दी भाषा भी आती ही होगी?”

“आपने मुझसे पूछा नहीं और मैंने आपको अंग्रेजी भाषा में बोलते देख, स्वयं भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करने लगा।” व्योम ने त्रिकाली को देखते हुए कहा- “वैसे मुझे हिन्दी भाषा आती है।”

“इसे खुश रख पाओगे?” कलाट ने त्रिकाली की ओर इशारा करते हुए कहा।

“म...म....मैं इसे...मेरा मतलब है कि इन्हें क्यों खुश रखूंगा?” व्योम ने घबराते हुए कहा।

“क्यों शादी के बाद इसे कोई दूसरा खुश रखेगा क्या?” युगाका ने व्योम को घूरते हुए कहा।

“क....किसकी शादी?” पहले व्योम को लगा था कि त्रिकाली उससे हंसी मजाक करके शादी की बात कर रही थी, पर अब उसे सब बातें सीरियस दिखने लगीं थीं।

“अरे तुम्हारी शादी, त्रिकाली के साथ.....तुम शादी कर चुके हो ना त्रिकाली के साथ? तुम्हें कुछ पता भी है या नहीं?” कलाट ने नाराज होते हुए कहा।

“म....म....मैंने कब की शादी?” अब व्योम पूरा घबरा गया।

“तुमने देवी की मूर्ति के सामने इसे रक्षा सूत्र बांधा था ना?” कलाट ने फिर जोर से पूछा- और फिर देवी से आशीर्वाद भी लिया था, फिर तुम क्यों कह रहे हो कि तुम्हारी शादी इसके साथ नहीं हुई?”

अब व्योम को सबकुछ समझ आ गया, जिसे वह रक्षा कवच समझ कर त्रिकाली के गले में बांध रहा था, वह रक्षा कवच नहीं बल्कि शादी का रक्षा सूत्र था और त्रिकाली ने जानबूझकर उसके साथ ऐसा किया था।

वैसे व्येाम को त्रिकाली बहुत पसंद थी, पर इस प्रकार से उसका विवाह होगा, यह बात उसे सपने में भी नहीं पता थी।

व्योम के ऐसे जवाब सुन कलाट त्रिकाली की ओर घूमकर बोला- “देवी ने इस शादी को मंजूरी दी भी थी या नहीं?....इसे तो कुछ मालूम ही नहीं है?... यह तो पूरा नमूना है। कहीं इसकी बिना जानकारी में आये तो तुमने इससे शादी नहीं कर ली?”

“उन्हें कुछ मत कहिये, उन्होंने मुझसे शादी के लिये पूछा था और मेरी मंजूरी के बाद ही हमारा विवाह हुआ था।” अचानक से व्योम का सुर बदल गया- “और हां...मैं नमूना नहीं हूं...और मेरी शादी के बाद आप
मेरी पत्नि को नहीं डांट सकते।”

व्योम के ऐसे शब्द सुन त्रिकाली हैरानी से व्योम को देखने लगी। दोनों की नजरें मिलीं, व्योम ने धीरे से अपनी पलकें झपका कर त्रिकाली को निश्चिंत रहने का इशारा किया।

त्रिकाली अब बहुत खुश थी, एक पल में ही मानों वह आसमान में उड़ने लगी थी।

“तुम कोई हथियार चला भी पाते हो? या फिर खाली हाथ ही इसकी रक्षा करोगे।” यह कहकर युगाका ने खड़े हो कर शयनकक्ष में मौजूद एक भाले को खींचकर व्योम की ओर मारा।

व्योम ने एक तरफ हटकर उस भाले से अपना बचाव किया। अब व्योम के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आयीं और उसके हाथ में अब चमकता हुआ पंचशूल प्रकट हो गया।

पंचशूल से निकल रहे तीव्र प्रकाश ने पूरे कमरे में उजाला फैला दिया। युगाका पंचशूल को देखकर अपनी पलके झपकाना भी भूल गया।

तभी कलाट के मुंह से बुदबुदाहट निकली- “महाशक्तिऽऽऽऽऽ!”

त्रिकाली ने किसी भी अनिष्ट के होने के पहले ही व्योम को चीखकर रोक दिया- “रुक जाओ व्योम, महाशक्ति का प्रयोग मत करना, युगाका मेरा भाई है।

त्रिकाली की चीख सुन व्योम का गुस्सा अब शांत हो गया। इसी के साथ व्योम के हाथ में पकड़ा पंचशूल हवा में विलीन हो गया।

युगाका का सारा घमंड अब चूर हो गया था। अब वह शांत होकर कुर्सी पर बैठ गया, पर उसके चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे। शायद वो समझ चुका था कि त्रिकाली के लिये इससे बेहतर कोई नहीं मिलता।

“बैठ जाओ बेटे...दरअसल हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे।” कलाट ने व्योम को बैठने का इशारा किया- “हम हमेशा से चाहते थे कि त्रिकाली का विवाह किसी योग्य व्यक्ति के साथ हो। वैसे भी तुम्हारे सामरा राज्य में आने की सूचना हमें पहले ही महावृक्ष से मिल चुकी थी। ... तुम भी आकर व्योम के पास बैठ जाओ त्रिकाली ...आज मैं तुम लोगों के सामने कुछ रहस्य की बात बताना चाहता हूं। इस रहस्य को खोलने का ये सर्वोत्तम समय है।”

कलाट की बातें सुन त्रिकाली और युगाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे। वो सोचने लगे कि बाबा आज कौन सा रहस्य उनके सामने खोलने जा रहे हैं? त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के बगल में बैठ गई।

त्रिकाली को बैठते देख कलाट ने बोलना शुरु कर दिया- “बच्चों आज मैं तुम लोगों को एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूं, यह कहानी है हिमालय पर्वत पर स्थित 2 ऐसे राज्यों की, जिनमें आपस में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी। एक राज्य का नाम ‘हिमावत’ था और दूसरे का ‘कालीगढ़’। दोनों ही राज्य साधारण दुनिया से अलग बर्फ की घाटी में बसे थे।

"आज से 26 वर्ष पहले दोनों राज्यों के राजाओं ने इस लड़ाई को खत्म करने के लिये अपने राजकुमार और राजकुमारी की शादी आपस में तय कर दी। हिमावत का राजकुमार त्रिशाल जितना पराक्रमी था, कालीगढ़ की राजकुमारी उतना ही सौंदर्यमती और बुद्धिमान थी।

"इन दोनों की होने वाली संतान अवश्य ही विलक्षण होती, पर नियति को भला कौन रोक पाया है।
दोनों की शादी के 5 वर्ष बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। दोनों इस बात से बहुत परेशान रहने लगे। एक बार उनके राज्य में एक ऋषि विश्वाकु पधारे। विश्वाकु एक बहुत पहुंचे हुए ऋषि थे। त्रिशाल और कलिका ने ऋषि विश्वाकु के सामने अपनी परेशानी को रखा। ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल और कलिका को संतान देने का वचन दिया, परंतु उन दोनों से ऋषि विश्वाकु ने अपना भी एक काम करवाने का वचन ले लिया।

"ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल को एक सुनहरा फल दिया और उसे कलिका को खिलाने को कहा। 9 माह बाद कलिका ने एक खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया। त्रिशाल व कलिका ने अपने नाम के आधे अक्षरों को मिलाकर उसका नाम ‘त्रिकाली’ रखा।” यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोग सन्नाटे में आ गये।

“इसका मतलब मैं आपकी बेटी नहीं हूं बाबा?” त्रिकाली के होंठ यह बोलते हुए कांप रहे थे। उसके पूरे शरीर में भी एक अजीब से आवेश की वजह से थिरकन होने लगी थी।

व्योम ने त्रिकाली का हाथ धीरे से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहला कर त्रिकाली के भावों को कम करने की कोशिश करने लगा।

कलाट ने वहां के माहौल को शांत कराते हुए कहा- “अभी भावनाओं में बहने का समय नहीं है त्रिकाली... पहले पूरी कहानी सुन लो...फिर सभी लोग बैठकर शांति से बात करते हैं।”

कलाट की बात सुन त्रिकाली ने अपना सिर झुका लिया और शांत होकर बैठ गई।

कलाट ने फिर बोलना शुरु कर दिया- “जब त्रिकाली एक वर्ष की हो गई, तो ऋषि विश्वाकु, फिर त्रिशाल और कलिका के पास आये, और उन्हें अपना दिया वचन पूरा करने को कहा। वचन के अनुसार त्रिशाल और कलिका को एक राक्षस कालबाहु को जीवित पकड़ कर लाने को कहा।

"दरअसल कालबाहु ने एक समय अकारण ही ऋषि विश्वाकु के दोनों पुत्र और पत्नि को मार दिया था, तबसे ही ऋषि विश्वाकु कालबाहु को अपने सामने मरता हुआ देखना चाहते थे। परंतु कालबाहु को पकड़कर लाना इतना भी आसान नहीं था। कालबाहु को प्राप्त ब्रह्मदेव के वरदान स्वरुप, उसकी मृत्यु उस रोशनी से होनी थी, जिसमें ध्वनि का समावेश हो, और ऐसा हो पाना लगभग असंभव था। ऋषि विश्वाकु ने बताया कि कालबाहु को मारने के पहले त्रिशाल और कलिका को शक्ति लोक से प्रकाश शक्ति और यक्षलोक से ध्वनि शक्ति प्राप्त करना होगा।

"त्रिशाल और कलिका जानते थे कि इन शक्तियों को प्राप्त करने में कई वर्षों का समय लग सकता है, इसलिये उन्होंने अपनी पुत्री त्रिकाली को अपने गुरु नीमा को सौंप दिया। नीमा एक सिद्ध पुरुष थे, इसलिये वह अधिकतर योग साधना में लीन रहते थे। उनके लिये एक अबोध बालिका की देख-रेख कर पाना बहुत मुश्किल था, इसलिये उन्होंने त्रिकाली को मुझे सौंप दिया। चूंकि नीमा मेरा गुरुभाई था, इसलिये मैंने त्रिकाली को अपनी पुत्री के समान पाला और कभी भी त्रिकाली का यह रहस्य, युगाका और वेगा को पता नहीं चलने दिया।

"उधर 5 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद त्रिशाल और कलिका ने प्रकाश शक्ति और ध्वनि शक्ति को प्राप्त कर लिया। दोनों शक्तियां प्राप्त करते समय त्रिशाल और कलिका ने देवताओं से अपनी पुत्री के लिये 2
वरदान भी मांग लिये। पहले वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली के 20 वर्ष के पूर्ण होते ही उसे हिमालय की बर्फ की शक्तियां स्वतः मिल जातीं, दूसरे वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली का विवाह एक महाशक्ति से होना था, जिसके पास पंचशूल हो।

"उधर त्रिशाल और कलिका अपने वचन को पूरा करने के लिये राक्षसलोक जा पहुंचे, पर कालबाहु की माता विद्युम्ना ने पहले से अपने पुत्र की सुरक्षा के लिये एक भ्रमन्तिका नाम का मायाजाल तैयार कर रखा था। त्रिशाल और कलिका महाशक्तियों के पास में होने के बाद भी, उस मायाजाल में फंस गये और आज 14 वर्षों से उसी मायाजाल में बंद हैं। मुझे इंतजार था त्रिकाली के दोनों वरदान के पूरे होने का....अब वह दोनों वरदान फलीभूत हो चुके हैं, इसलिये ही मैंने आज इन सारे रहस्यों को तुम्हारे सामने खोल दिया।”

इतना कहकर कलाट चुप हो गया और शांत भाव से त्रिकाली और व्योम को देखने लगा।

यह बातें सुन युगाका थोड़ा भावुक हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा होकर त्रिकाली के पास पहुंच गया।

युगाका ने त्रिकाली के सिर पर पर हाथ फेरते हुए कहा- “आज भले ही हमें सत्य का पता चल गया है, परंतु तुम आजीवन मेरी वैसे ही बहन रहोगी, जैसे कि पहले थी।”

फिर युगाका व्योम के गले लगते हुए बोला- “आज से मेरी बहन पर मुझसे ज्यादा तुम्हारा अधिकार है, परंतु ये याद रहे कि इसे कभी दुख मत देना। और हां....हम सब एक साथ चलेंगे, त्रिकाली के माता और पिता को राक्षसलोक से छुड़ाने के लिये।”

“नहीं भाई...अपने माता और पिता को उस कैद से छुड़ाने के लिये मैं और व्योम जायेंगे बस। यहां अराका में भी कम मुसीबतें नहीं है, आप यहां रहकर सामरा राज्य और बाबा की देखभाल करो। हम आपसे वादा
करते हैं कि जल्द ही अपने माता-पिता को छुड़ाकर वापस लौटेंगे।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है, अगर तुम दोनों जाना चाहते हो तो जाओ, परंतु जाने से पहले हमें एक बार तुम्हारे विवाह का उत्सव तो मना लेने दो।” कलाट ने कहा।

“नहीं बाबा....अगर मेरे माता-पिता किसी कैद में हैं, तो ये सुनने के बाद हम उत्सव कैसे मना सकते हैं?” त्रिकाली ने कहा- “अब उत्सव तो हमारे लौटने के बाद ही मनाया जायेगा।”

त्रिकाली की बातों में सत्यता थी इसलिये कलाट ने उसकी इस बात को स्वीकार कर लिया।

“ठीक है, हम तुम्हारी सारी बात मानते हैं, पर हम चाहते हैं कि जाने से पहले तुम लोग एक बार महावृक्ष से मिलकर उनका भी आशीर्वाद ले लो और एक बार कालबाहु की माँ विद्युम्ना की शक्तियों की जानकारी भी ले लो, मुझे लगता है कि विद्युम्ना के पास कई ऐसी शक्तियां हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता, उसे इतना साधारण तौर पर नहीं लिया जा सकता।”

कलाट के शब्दों में कुछ ऐसे भाव थे कि त्रिकाली ने इस बात के लिये अपनी सहमति जता दी।

“तो फिर ठीक है, कल हम प्रातः काल महावृक्ष से मिलने चलेंगे, तब तक के लिये तुम लोग आराम करो।” यह कहकर कलाट सभी को लेकर शयनकक्ष से बाहर निकल गया।

अब व्योम और त्रिकाली शयनकक्ष में अकेले थे। त्रिकाली ने व्योम की आँखों में देखा, व्योम की आँखों में प्यार का समुन्दर लहरा रहा था।

त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के गले से लग गयी, उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह रही थी, पर यह अश्रु एक ऐसी भावना के लिये थे, जिसने त्रिकाली को अपार शक्ति की अनुभूति कराई थी।

एक ऐसी शक्ति, जिसमें विश्वास की डोर भी थी और प्यार का अहसास भी।

एक नन्हीं तितली आज इंद्रधनुष के सारे रंगों को चुपके-चुपके चुरा रही थी..........।


जारी
रहेगा______✍️
Shaandar Update
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Ye toh sabko pata chal hi gaya tha ki Trikali aur Vyom ka vivah ho gaya hai, kintu Trishal aur Kalika ko bachane ke liye Vyom jane wala hai iska anuman nahi tha, khair Vyom ka lakshya abhi change ho gaya hai, wo yahan supreme ke logo ko bachane ke liye aaya tha aur usko khud hi ek naya uddeshya mil gaya hai.

Khair Shefali ko jaldi hi uske jeevan ka sach pata chalne wala hai kyunki Alex apne mission mein successful ho gaya hai.

Wonderful update brother.
Yahi to pech tha bhai, vyom ka kya kirdaar aur ahamiyat rahne wali hai? Ye suru se hi sabse chupi hui baat thi:D Alex bohot jald sabke saamne aane wala hai, apni Cristy ke paas:approve: Uske baad firse dono ka ilu ilu chalega.
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thankyou:
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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कोई भी कहानी बिना रोमांस के पूरी नहीं बन सकती।
जैसा कि मैंने पहले भी लिखा था, वो सत्य निकला ---



अब बहुत सी छोटी छोटी कहानियाँ आपस में जुड़ती दिखाई देने लगी हैं।
वैसे कालबाहु एक अनावश्यक किरदार लग रहा है - अगर उससे कुछ हासिल न होना है, तो।

देखते हैं राज भाई ने क्या सोचा हुआ है।
Bilkul sahi kaha aapne, pyar ke palo ke bina har kahani adhuri hi hoti hai☺️ aapne abhi tak ye to samajh hi liya hoga ki hum bina matlab kuch nahi likhte, basarte kisi ko wo samajh me aaye ya na aaye, per kahani ki jarurat ke hisaab se hi character aata hai.🫡 Thank you very much for your valuable review and support bhai :thankyou:
 

Raj_sharma

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romanchak update..kalat ke mooh se shadi ki baat sunke vyom ko pehle to shock hi laga par jab baat trikali par aayi to seena taanke uske liye khada ho gaya .vyom ke paas panchshul ki shakti dekhkar kalat ko ab saari sachchai batani padi ,trishal aur kalika ke baare me .trikali ko sach pata chal gaya ki wo trishal kalika ki beti hai .
ab vyom ke saath milke apne maa baap ko bachane ke liye taiyar hai trishali ..
Vyom ko agar Trikali nahi rokti to ho sakta hai wo gusse me kuch anarth kar deta, and uske pas panchsul 🔱 dekh kar wo samajh gaya ke Vyom uska bhi baap hai, isi liye dubak kar baith gaya☺️
Kalaat ko isi din ka intezaar tha, to usne ye swikaar kiya, aur Trikali aur uske pariwar ki kahani bata di, ab ye dono jsyenge unko bachane:approve:
Thank you very much for your valuable review and support bhai :hug:
 

Sushil@10

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#138.

त्रिकाली का विवाह:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:50, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम को सामरा महल में रहते आज दूसरा दिन था। सामरा राज्य का विज्ञान और वहां के लोगों का काम करने का तरीका व्योम को बहुत अच्छा लगा था।

व्योम जब भी महल में कहीं निकलता था, तो सभी सैनिक झुककर व्योम को अभिवादन करते। व्योम को यह सब किसी सपने सरीखा लग रहा था।

धीरे-धीरे व्योम को अपने अंदर की गुरुत्व शक्ति का भी अहसास हो गया था।

व्योम ने इस समय युगाका के शाही कपड़ों को पहन रखा था, जो देखने में तो अच्छे थे, पर थोड़े छोटे थे।

शायद वह कपड़े युगाका सोते समय पहनता था। इन कपड़ों में व्योम इस समय किसी ड्रामा कंपनी का नमूना दिख रहा था।

त्रिकाली ने अभी तक व्योम को अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति से मिलाया नहीं था।

इस समय भी वह महल के एक विशाल शयनकक्ष में बैठा, अपनी पुरानी जिंदगी और इस नयी जिंदगी के परिवर्तनों को आंकने की कोशिश कर रहा था, कि तभी त्रिकाली उसके कमरे में प्रविष्ठ हुई।

त्रिकाली ने इस समय एक नीले रंग का लंबा सा गाउन पहन रखा था। उस नीले गाउन में सुनहरे सितारे जड़े हुए थे।

इस गाउन में त्रिकाली किसी स्वर्ग की अप्सरा सी प्रतीत हो रही थी।

व्योम की नजर जैसे ही त्रिकाली पर पड़ी, वह अपलक उसे निहारने लगा।

“इस तरह क्या देख रहे हो? कभी किसी सुंदर स्त्री को नहीं देखा क्या?” त्रिकाली ने अपने चेहरे पर एक शोख मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

“सुंदर तो बहुत सी स्त्रियों को देखा है, पर किसी अप्सरा को इतने पास से कभी नहीं देखा।” व्योम ने भी अपने भावों को उजागर करते हुए कहा।

“अरे वाह! आप तो प्यार की भाषा भी जानते हैं।” त्रिकाली ने अपने माथे पर आयी लटों को, उंगली से पीछे करते हुए कहा- “अब जरा तुरंत तैयार हो जाइये....आप से मिलने बाबा और भाई आ रहे हैं।”

“मुझसे मिलने?....प...पर मैंने क्या किया है?” व्योम ने घबराते हुए कहा- “मैं उनसे साफ-साफ बोल दूंगा कि तुम ही मुझे जबरदस्ती यहां पर लायी हो।”

“पर...मैंने तो अपने बाबा से बोल दिया है कि मैंने तुम्हारे साथ शादी कर ली।” त्रिशाली ने अपनी आँखों को गोल-गोल नचाते हुए कहा।

“क्याऽऽऽऽऽ? शादी!” शादी की बात सुनकर व्योम एका एक घबरा सा गया- “मैंने नहीं की तुमसे शादी...। तुमने झूठ क्यों बोला?”

“अरे बुद्धू घबराओ नहीं...पहले जाकर 5 मिनट में तैयार हो जाओ... बाबा और भाई बस आते ही होंगे।” त्रिकाली ने व्योम को धक्का देते हुए कहा।

“पर अब तैयार क्या होना? मैं सुबह नहा चुका हूं और यह कपड़े भी मुझे आरामदायक लग रहे हैं। मैं इन्हीं कपड़ों में तुम्हारे बाबा और भाई से मिल लूंगा।”व्योम ने भी जिद पकड़ते हुए कहा।

तभी शयनकक्ष के बाहर खड़े एक सैनिक ने जोर से आवाज लगाकर कलाट और युगाका के आने की पुष्टि की।

त्रिकाली घबराकर व्योम से थोड़ा दूर खड़ी हो गई।

व्योम के चेहरे पर डर के निशान साफ दिख रहे थे।

हमेशा से ही व्योम बडे़-बड़े काम को तो आसानी से अंजाम देता था, पर लड़की के मामले में उसकी आवाज निकलनी बंद हो जाती थी।

तभी शयनकक्ष में कलाट, युगाका, किरीट, रिंजो और शिंजो ने प्रवेश किया।

व्योम ने झुककर सभी का अभिवादन किया, पर रिंजो-शिंजो को वहां देख वह अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था।

सभी वहां रखी आरामदायक कुर्सियों पर बैठ गये। त्रिकाली कलाट की कुर्सी के पीछे जाकर खड़ी हो गयी।

कलाट की अनुभवी निगाहें और युगाका की तीखी नजरें व्योम का ऊपर से नीचे तक एक्स-रे कर रहीं थीं।

उन्हें इस प्रकार से घूरते देख व्योम बोल उठा- “जी मेरा नाम व्योम है। मैं वैसे तो मूलतः भारत का रहने वाला हूं, पर अभी अमेरिका में रह रहा हूं।”

“भारत? तुम भारत के रहने वाले हो?” त्रिकाली ने आश्चर्य से कहा- “तुमने पहले तो नहीं बताया...फिर तो तुम्हें हिन्दी भाषा भी आती ही होगी?”

“आपने मुझसे पूछा नहीं और मैंने आपको अंग्रेजी भाषा में बोलते देख, स्वयं भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करने लगा।” व्योम ने त्रिकाली को देखते हुए कहा- “वैसे मुझे हिन्दी भाषा आती है।”

“इसे खुश रख पाओगे?” कलाट ने त्रिकाली की ओर इशारा करते हुए कहा।

“म...म....मैं इसे...मेरा मतलब है कि इन्हें क्यों खुश रखूंगा?” व्योम ने घबराते हुए कहा।

“क्यों शादी के बाद इसे कोई दूसरा खुश रखेगा क्या?” युगाका ने व्योम को घूरते हुए कहा।

“क....किसकी शादी?” पहले व्योम को लगा था कि त्रिकाली उससे हंसी मजाक करके शादी की बात कर रही थी, पर अब उसे सब बातें सीरियस दिखने लगीं थीं।

“अरे तुम्हारी शादी, त्रिकाली के साथ.....तुम शादी कर चुके हो ना त्रिकाली के साथ? तुम्हें कुछ पता भी है या नहीं?” कलाट ने नाराज होते हुए कहा।

“म....म....मैंने कब की शादी?” अब व्योम पूरा घबरा गया।

“तुमने देवी की मूर्ति के सामने इसे रक्षा सूत्र बांधा था ना?” कलाट ने फिर जोर से पूछा- और फिर देवी से आशीर्वाद भी लिया था, फिर तुम क्यों कह रहे हो कि तुम्हारी शादी इसके साथ नहीं हुई?”

अब व्योम को सबकुछ समझ आ गया, जिसे वह रक्षा कवच समझ कर त्रिकाली के गले में बांध रहा था, वह रक्षा कवच नहीं बल्कि शादी का रक्षा सूत्र था और त्रिकाली ने जानबूझकर उसके साथ ऐसा किया था।

वैसे व्येाम को त्रिकाली बहुत पसंद थी, पर इस प्रकार से उसका विवाह होगा, यह बात उसे सपने में भी नहीं पता थी।

व्योम के ऐसे जवाब सुन कलाट त्रिकाली की ओर घूमकर बोला- “देवी ने इस शादी को मंजूरी दी भी थी या नहीं?....इसे तो कुछ मालूम ही नहीं है?... यह तो पूरा नमूना है। कहीं इसकी बिना जानकारी में आये तो तुमने इससे शादी नहीं कर ली?”

“उन्हें कुछ मत कहिये, उन्होंने मुझसे शादी के लिये पूछा था और मेरी मंजूरी के बाद ही हमारा विवाह हुआ था।” अचानक से व्योम का सुर बदल गया- “और हां...मैं नमूना नहीं हूं...और मेरी शादी के बाद आप
मेरी पत्नि को नहीं डांट सकते।”

व्योम के ऐसे शब्द सुन त्रिकाली हैरानी से व्योम को देखने लगी। दोनों की नजरें मिलीं, व्योम ने धीरे से अपनी पलकें झपका कर त्रिकाली को निश्चिंत रहने का इशारा किया।

त्रिकाली अब बहुत खुश थी, एक पल में ही मानों वह आसमान में उड़ने लगी थी।

“तुम कोई हथियार चला भी पाते हो? या फिर खाली हाथ ही इसकी रक्षा करोगे।” यह कहकर युगाका ने खड़े हो कर शयनकक्ष में मौजूद एक भाले को खींचकर व्योम की ओर मारा।

व्योम ने एक तरफ हटकर उस भाले से अपना बचाव किया। अब व्योम के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आयीं और उसके हाथ में अब चमकता हुआ पंचशूल प्रकट हो गया।

पंचशूल से निकल रहे तीव्र प्रकाश ने पूरे कमरे में उजाला फैला दिया। युगाका पंचशूल को देखकर अपनी पलके झपकाना भी भूल गया।

तभी कलाट के मुंह से बुदबुदाहट निकली- “महाशक्तिऽऽऽऽऽ!”

त्रिकाली ने किसी भी अनिष्ट के होने के पहले ही व्योम को चीखकर रोक दिया- “रुक जाओ व्योम, महाशक्ति का प्रयोग मत करना, युगाका मेरा भाई है।

त्रिकाली की चीख सुन व्योम का गुस्सा अब शांत हो गया। इसी के साथ व्योम के हाथ में पकड़ा पंचशूल हवा में विलीन हो गया।

युगाका का सारा घमंड अब चूर हो गया था। अब वह शांत होकर कुर्सी पर बैठ गया, पर उसके चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे। शायद वो समझ चुका था कि त्रिकाली के लिये इससे बेहतर कोई नहीं मिलता।

“बैठ जाओ बेटे...दरअसल हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे।” कलाट ने व्योम को बैठने का इशारा किया- “हम हमेशा से चाहते थे कि त्रिकाली का विवाह किसी योग्य व्यक्ति के साथ हो। वैसे भी तुम्हारे सामरा राज्य में आने की सूचना हमें पहले ही महावृक्ष से मिल चुकी थी। ... तुम भी आकर व्योम के पास बैठ जाओ त्रिकाली ...आज मैं तुम लोगों के सामने कुछ रहस्य की बात बताना चाहता हूं। इस रहस्य को खोलने का ये सर्वोत्तम समय है।”

कलाट की बातें सुन त्रिकाली और युगाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे। वो सोचने लगे कि बाबा आज कौन सा रहस्य उनके सामने खोलने जा रहे हैं? त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के बगल में बैठ गई।

त्रिकाली को बैठते देख कलाट ने बोलना शुरु कर दिया- “बच्चों आज मैं तुम लोगों को एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूं, यह कहानी है हिमालय पर्वत पर स्थित 2 ऐसे राज्यों की, जिनमें आपस में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी। एक राज्य का नाम ‘हिमावत’ था और दूसरे का ‘कालीगढ़’। दोनों ही राज्य साधारण दुनिया से अलग बर्फ की घाटी में बसे थे।

"आज से 26 वर्ष पहले दोनों राज्यों के राजाओं ने इस लड़ाई को खत्म करने के लिये अपने राजकुमार और राजकुमारी की शादी आपस में तय कर दी। हिमावत का राजकुमार त्रिशाल जितना पराक्रमी था, कालीगढ़ की राजकुमारी उतना ही सौंदर्यमती और बुद्धिमान थी।

"इन दोनों की होने वाली संतान अवश्य ही विलक्षण होती, पर नियति को भला कौन रोक पाया है।
दोनों की शादी के 5 वर्ष बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। दोनों इस बात से बहुत परेशान रहने लगे। एक बार उनके राज्य में एक ऋषि विश्वाकु पधारे। विश्वाकु एक बहुत पहुंचे हुए ऋषि थे। त्रिशाल और कलिका ने ऋषि विश्वाकु के सामने अपनी परेशानी को रखा। ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल और कलिका को संतान देने का वचन दिया, परंतु उन दोनों से ऋषि विश्वाकु ने अपना भी एक काम करवाने का वचन ले लिया।

"ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल को एक सुनहरा फल दिया और उसे कलिका को खिलाने को कहा। 9 माह बाद कलिका ने एक खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया। त्रिशाल व कलिका ने अपने नाम के आधे अक्षरों को मिलाकर उसका नाम ‘त्रिकाली’ रखा।” यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोग सन्नाटे में आ गये।

“इसका मतलब मैं आपकी बेटी नहीं हूं बाबा?” त्रिकाली के होंठ यह बोलते हुए कांप रहे थे। उसके पूरे शरीर में भी एक अजीब से आवेश की वजह से थिरकन होने लगी थी।

व्योम ने त्रिकाली का हाथ धीरे से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहला कर त्रिकाली के भावों को कम करने की कोशिश करने लगा।

कलाट ने वहां के माहौल को शांत कराते हुए कहा- “अभी भावनाओं में बहने का समय नहीं है त्रिकाली... पहले पूरी कहानी सुन लो...फिर सभी लोग बैठकर शांति से बात करते हैं।”

कलाट की बात सुन त्रिकाली ने अपना सिर झुका लिया और शांत होकर बैठ गई।

कलाट ने फिर बोलना शुरु कर दिया- “जब त्रिकाली एक वर्ष की हो गई, तो ऋषि विश्वाकु, फिर त्रिशाल और कलिका के पास आये, और उन्हें अपना दिया वचन पूरा करने को कहा। वचन के अनुसार त्रिशाल और कलिका को एक राक्षस कालबाहु को जीवित पकड़ कर लाने को कहा।

"दरअसल कालबाहु ने एक समय अकारण ही ऋषि विश्वाकु के दोनों पुत्र और पत्नि को मार दिया था, तबसे ही ऋषि विश्वाकु कालबाहु को अपने सामने मरता हुआ देखना चाहते थे। परंतु कालबाहु को पकड़कर लाना इतना भी आसान नहीं था। कालबाहु को प्राप्त ब्रह्मदेव के वरदान स्वरुप, उसकी मृत्यु उस रोशनी से होनी थी, जिसमें ध्वनि का समावेश हो, और ऐसा हो पाना लगभग असंभव था। ऋषि विश्वाकु ने बताया कि कालबाहु को मारने के पहले त्रिशाल और कलिका को शक्ति लोक से प्रकाश शक्ति और यक्षलोक से ध्वनि शक्ति प्राप्त करना होगा।

"त्रिशाल और कलिका जानते थे कि इन शक्तियों को प्राप्त करने में कई वर्षों का समय लग सकता है, इसलिये उन्होंने अपनी पुत्री त्रिकाली को अपने गुरु नीमा को सौंप दिया। नीमा एक सिद्ध पुरुष थे, इसलिये वह अधिकतर योग साधना में लीन रहते थे। उनके लिये एक अबोध बालिका की देख-रेख कर पाना बहुत मुश्किल था, इसलिये उन्होंने त्रिकाली को मुझे सौंप दिया। चूंकि नीमा मेरा गुरुभाई था, इसलिये मैंने त्रिकाली को अपनी पुत्री के समान पाला और कभी भी त्रिकाली का यह रहस्य, युगाका और वेगा को पता नहीं चलने दिया।

"उधर 5 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद त्रिशाल और कलिका ने प्रकाश शक्ति और ध्वनि शक्ति को प्राप्त कर लिया। दोनों शक्तियां प्राप्त करते समय त्रिशाल और कलिका ने देवताओं से अपनी पुत्री के लिये 2
वरदान भी मांग लिये। पहले वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली के 20 वर्ष के पूर्ण होते ही उसे हिमालय की बर्फ की शक्तियां स्वतः मिल जातीं, दूसरे वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली का विवाह एक महाशक्ति से होना था, जिसके पास पंचशूल हो।

"उधर त्रिशाल और कलिका अपने वचन को पूरा करने के लिये राक्षसलोक जा पहुंचे, पर कालबाहु की माता विद्युम्ना ने पहले से अपने पुत्र की सुरक्षा के लिये एक भ्रमन्तिका नाम का मायाजाल तैयार कर रखा था। त्रिशाल और कलिका महाशक्तियों के पास में होने के बाद भी, उस मायाजाल में फंस गये और आज 14 वर्षों से उसी मायाजाल में बंद हैं। मुझे इंतजार था त्रिकाली के दोनों वरदान के पूरे होने का....अब वह दोनों वरदान फलीभूत हो चुके हैं, इसलिये ही मैंने आज इन सारे रहस्यों को तुम्हारे सामने खोल दिया।”

इतना कहकर कलाट चुप हो गया और शांत भाव से त्रिकाली और व्योम को देखने लगा।

यह बातें सुन युगाका थोड़ा भावुक हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा होकर त्रिकाली के पास पहुंच गया।

युगाका ने त्रिकाली के सिर पर पर हाथ फेरते हुए कहा- “आज भले ही हमें सत्य का पता चल गया है, परंतु तुम आजीवन मेरी वैसे ही बहन रहोगी, जैसे कि पहले थी।”

फिर युगाका व्योम के गले लगते हुए बोला- “आज से मेरी बहन पर मुझसे ज्यादा तुम्हारा अधिकार है, परंतु ये याद रहे कि इसे कभी दुख मत देना। और हां....हम सब एक साथ चलेंगे, त्रिकाली के माता और पिता को राक्षसलोक से छुड़ाने के लिये।”

“नहीं भाई...अपने माता और पिता को उस कैद से छुड़ाने के लिये मैं और व्योम जायेंगे बस। यहां अराका में भी कम मुसीबतें नहीं है, आप यहां रहकर सामरा राज्य और बाबा की देखभाल करो। हम आपसे वादा
करते हैं कि जल्द ही अपने माता-पिता को छुड़ाकर वापस लौटेंगे।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है, अगर तुम दोनों जाना चाहते हो तो जाओ, परंतु जाने से पहले हमें एक बार तुम्हारे विवाह का उत्सव तो मना लेने दो।” कलाट ने कहा।

“नहीं बाबा....अगर मेरे माता-पिता किसी कैद में हैं, तो ये सुनने के बाद हम उत्सव कैसे मना सकते हैं?” त्रिकाली ने कहा- “अब उत्सव तो हमारे लौटने के बाद ही मनाया जायेगा।”

त्रिकाली की बातों में सत्यता थी इसलिये कलाट ने उसकी इस बात को स्वीकार कर लिया।

“ठीक है, हम तुम्हारी सारी बात मानते हैं, पर हम चाहते हैं कि जाने से पहले तुम लोग एक बार महावृक्ष से मिलकर उनका भी आशीर्वाद ले लो और एक बार कालबाहु की माँ विद्युम्ना की शक्तियों की जानकारी भी ले लो, मुझे लगता है कि विद्युम्ना के पास कई ऐसी शक्तियां हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता, उसे इतना साधारण तौर पर नहीं लिया जा सकता।”

कलाट के शब्दों में कुछ ऐसे भाव थे कि त्रिकाली ने इस बात के लिये अपनी सहमति जता दी।

“तो फिर ठीक है, कल हम प्रातः काल महावृक्ष से मिलने चलेंगे, तब तक के लिये तुम लोग आराम करो।” यह कहकर कलाट सभी को लेकर शयनकक्ष से बाहर निकल गया।

अब व्योम और त्रिकाली शयनकक्ष में अकेले थे। त्रिकाली ने व्योम की आँखों में देखा, व्योम की आँखों में प्यार का समुन्दर लहरा रहा था।

त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के गले से लग गयी, उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह रही थी, पर यह अश्रु एक ऐसी भावना के लिये थे, जिसने त्रिकाली को अपार शक्ति की अनुभूति कराई थी।

एक ऐसी शक्ति, जिसमें विश्वास की डोर भी थी और प्यार का अहसास भी।

एक नन्हीं तितली आज इंद्रधनुष के सारे रंगों को चुपके-चुपके चुरा रही थी..........।


जारी
रहेगा______✍️
Beautiful update and nice story
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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