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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

dhparikh

Well-Known Member
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तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।

इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।

मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।

इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?


ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:

तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”

#145.

चैपटर-1
कल्पना शक्ति:
(19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)

जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।

बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।

एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।

माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।

माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।

माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।

माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।

माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।

इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।

इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।

फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।

कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।

दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।

माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।

इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।

हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।

“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।

मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।

माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।

“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।

“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”

“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।

“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।

माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।

इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।

गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।

माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।

“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”

सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।

“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”

“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।

“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।

“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”

कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।

“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।

“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”

मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।

तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।

उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”

माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।

कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।

कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।

कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।

माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।

क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।

“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।

“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”

यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।

दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।

"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।

"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।

"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।

कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।

माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।

अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।

तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।

इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।

मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।

मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।

माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।

यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”

कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।

माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।

एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।

कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।

“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”

“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।

“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।

कैस्पर ने ऐसा ही किया।

कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।

जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।

कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।

माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।

उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।

कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।

कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”

“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।

“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।



जारी रहेगा..........✍️
Nice update....
 

Ajju Landwalia

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तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।

इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।

मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।

इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?


ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:

तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”

#145.

चैपटर-1
कल्पना शक्ति:
(19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)

जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।

बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।

एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।

माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।

माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।

माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।

माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।

माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।

इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।

इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।

फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।

कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।

दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।

माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।

इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।

हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।

“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।

मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।

माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।

“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।

“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”

“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।

“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।

माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।

इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।

गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।

माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।

“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”

सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।

“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”

“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।

“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।

“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”

कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।

“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।

“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”

मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।

तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।

उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”

माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।

कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।

कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।

कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।

माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।

क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।

“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।

“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”

यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।

दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।

"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।

"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।

"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।

कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।

माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।

अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।

तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।

इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।

मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।

मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।

माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।

यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”

कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।

माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।

एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।

कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।

“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”

“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।

“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।

कैस्पर ने ऐसा ही किया।

कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।

जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।

कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।

माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।

उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।

कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।

कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”

“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।

“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।



जारी रहेगा..........✍️

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Kalpana ki shakti se kya nahi kiya ja sakta..........

Maja aa gaya Bhai............ Maya civilization ke baare me bhi ek nai jankari mili.........

Keep rocking Bro
 
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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।

इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।

मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।

इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?


ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:

तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”

#145.

चैपटर-1
कल्पना शक्ति:
(19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)

जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।

बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।

एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।

माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।

माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।

माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।

माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।

माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।

इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।

इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।

फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।

कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।

दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।

माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।

इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।

हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।

“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।

मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।

माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।

“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।

“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”

“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।

“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।

माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।

इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।

गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।

माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।

“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”

सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।

“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”

“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।

“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।

“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”

कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।

“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।

“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”

मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।

तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।

उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”

माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।

कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।

कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।

कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।

माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।

क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।

“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।

“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”

यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।

दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।

"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।

"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।

"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।

कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।

माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।

अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।

तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।

इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।

मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।

मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।

माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।

यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”

कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।

माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।

एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।

कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।

“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”

“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।

“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।

कैस्पर ने ऐसा ही किया।

कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।

जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।

कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।

माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।

उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।

कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।

कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”

“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।

“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।



जारी रहेगा..........✍️
Ye kya bhai kahan se itna imagine karte ho??? Khair jitna bhi imagination karte ho kamaal ka karte ho.
Hamara universe positive, negative and neutral particles se bana hai ye sahi hai lekin sirf negative particle hi nucleus ke charo aur chakkar lagata hai.
Neutral and positive particles nucleus mein hote hain.
Wonderful update brother!!!
Casper ko apna ghoda mil gaya ab Magna
 

Dhakad boy

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तिलिस्मा
कल्पना- एक ऐसा शब्द जो अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे है। इस ब्रह्मांड में लहराता हुआ सागर भी है और सितारों से भरा आकाश भी।

इस ब्रह्मांड में प्रकृति के सुंदर रंग भी हैं और समस्त जीवों की असीम भावनाएं भी। तो क्यों ना इस कल्पना की कूची से, अपने जीवन को एक नया रंग देकर देखें। यकीन मानिये, वह अहसास बहुत ही खूबसूरत होगा।

मायाजाल- एक ऐसा शब्द, जो हमारी आँखों के सामने रहस्यों से भरी पहेलियों का एक संसार खड़ा कर देता है। जहां एक ओर गणितीय उलझनें होती हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी वैचारिक पहेलियां, जिनमें
उलझना अधिकांशतः लोगों को पसंद होता है। पर क्या हो? जब ऐसी उलझनों और पहेलियों के मध्य आपका जीवन दाँव पर लगा हो। अर्थात अगर आप इन उलझनों को पार ना कर पायें, तो आप हमेशा-हमेशा के लिये इस मायाजाल में कैद हो जाएं।

इस कहानी में कुछ मनुष्यों के सामने, कुछ ऐसी ही मुसीबतें खड़ी हैं। जरा सोचकर देखिये-
1) क्या हो अगर हमें किसी फूल की पहली पंखुड़ी को पहचानना पड़े?
2) क्या हो अगर आप किसी विशाल कछुए की पीठ पर रखे पिंजरे में बंद हो जाएं और वह आपको लेकर समुद्र की गहराई में चला जाए?
3) क्या हो जब आप छोटे हो कर चींटियों के संसार में पहुंच जाएं? और चींटियां आप पर आक्रमण कर दें।
4) क्या हो जब स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी जीवित हो कर आप पर हमला कर दे?
5) क्या हो जब किसान खेत में बारिश की बाट जोह रहा हो? और आपको देवराज इंद्र की भूमिका निभानी हो।
6) क्या हो जब आपके सामने पृथ्वी की रोटेशन रुक जाये? क्या आप पृथ्वी को गति दे सकते है?
7) क्या हो जब आपका टकराव 4 ऋतुओं से हो जाये?
8) क्या हो जब आप किसी वृक्ष में समाकर, किसी ऐसी दुनिया में पहुंच जाएं? जो स्वप्न से भी परे हो।
9) क्या हो जब आपको पेगासस और ड्रैगन जैसे जीवों का निर्माण करना पड़े?
10) क्या हो जब दूसरी आकाशगंगा के शक्तिशाली जीव आपके सामने खड़े हों? और उन पर आपकी पृथ्वी का कोई नियम ना लागू होता हो?


ऐसे ही अनगिनत सवालो का जवाब है यह कहानी। तो आइये इन्हें जानने के लिये पढ़ते हैं, रहस्य, रोमांच, तिलिस्म और साहसिक कार्यों से भरपूर, एक ऐसा किस्सा, जो विज्ञान के इस युग में भी ईश्वरीय शक्ति का अहसास दिलाता है।
तो दोस्तों आईये शुरू करते हैं इस रहस्यमय गाथा को, जिसका इंतजार आप काफी समय से कर रहें है।:

तिलिस्मा- एक अकल्पनीय मायाजाल”

#145.

चैपटर-1
कल्पना शक्ति:
(19125 वर्ष पहले...... माया क्रीड़ा स्थल, माया सभ्यता, बेलिज शहर, सेण्ट्रल अमेरिका)

जैसा की आप पढ़ चुके हैं, मयासुर की पुत्री माया, श्राप के चलते, भारतवर्ष से हजारों किलोमीटर दूर, सेण्ट्रल अमेरिका में आकर बस गई।

बेलिज शहर से 70 किलोमीटर दूर, कैरेबियन सागर में स्थित ‘दि ग्रेट ब्लू होल’ की समुद्री गुफाओं में माया ने अपना निवास स्थान चुना।

एक बार जब माया सागर की गहराइयों से निकलकर, बेलिज शहर के तट पर, सूर्य की सुनहरी धूप का आनन्द उठा रही थी , उसी समय एक प्राचीन अमेरिकी कबीले ‘हांडा’ के एक मनुष्य ‘कबाकू’ की निगाह माया पर जा पड़ी।

माया को देवी समझ, वह माया के समक्ष नतमस्तक हो गया।

माया को यह भोला-भाला आदिवासी बहुत अच्छा लगा।

माया ने कबाकू को हांडा कबीले का सरदार बना दिया और हांडा कबीले के लिये एक नयी सभ्यता का निर्माण किया, जिसे बाद में ‘माया सभ्यता’ के नाम से जाना गया।

माया सभ्यता के लोग माया को देवी की तरह से पूजते थे, पर माया कबाकू के सिवा किसी से मिलती नहीं थी।

माया सिर्फ कबाकू से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

पूरी माया सभ्यता में हि.म.न्दू देओं के मंदिर बने थे। माया ने अपनी शक्तियों से सूर्य और चन्द्र के विशाल पिरामिडों का भी निर्माण किया।

इन पिरामिडों में खगोल शास्त्र, ज्योतिष और ज्यामिति का ज्ञान भी दिया जाता था।

इन पिरामिडों में माया की सिर्फ आवाज ही गूंजती थी, किसी ने माया को देखा नहीं था।

फिर विभिन्न परिस्थितियों में, माया को कैस्पर और मैग्ना को पालने की जिम्मेदारी मिली।

कैस्पर और मैग्ना 6 वर्ष के हो गये थे, पर इन बीते 6 वर्षों में माया ने दोनों को सिर्फ एक ही चीज सिखाई थी और वह थी योग के माध्यम से कल्पना करना।

दोनों बच्चों का बचपन बिना किसी भय और बाधा के आराम से बीत रहा था।

माया ने इन दोनों बच्चों को विभिन्न परिस्थितियों में साँस लेने के अनुकूल बनाया था।

इन दोनों बच्चों के मिलने के बाद, माया का समय अच्छे से बीतने लगा, पर ऐसा नहीं था कि माया को नीलाभ और हनुका की याद नहीं आती थी।

हनुका के बाल स्वप्न आज भी माया को विचलित करते थे। आज भी वह अपनी इन्हीं कल्पनाओं में खोई हुई थी कि मैग्ना ने उसे झंझोड़कर उठा दिया।

“क्या माँ आप अभी भी कुछ सोच रहीं हैं? आज तो आपने हमें हमारी शिक्षा का पहला पाठ देना था। देखो हम दोनों कितनी देर से आपके स्वप्न से बाहर आने का इंतजा र कर रहे हैं।” मैग्ना ने भोलेपन से मुंह बनाते हुए कहा।

मैग्ना के झंझोड़ने पर माया उठकर बैठ गई। उसने एक नजर अपने बिस्तर के पास खड़े मैग्ना और कैस्पर पर मारी और फिर उन दोनों के बालों में हाथ फेरकर उनके माथे पर एक चुंबन ले लिया।

माया ने 20,000 वर्ष तक कुछ ना बोलने का कठोर प्रण लिया था, इसलिये वह सभी से मानसिक शक्तियों के द्वारा ही बात करती थी।

“तुम लोग तैयार हो, बाहर चलने के लिये?” माया की आवाज वातावरण में गूंजी।

“क्या माँ...हम तो कब से तैयार बैठे हैं, आप ही सोई हुईं थीं।” मैग्ना ने फिर चटाक से जवाब दिया।

“तुझे बड़ा आता है फटाक से जवाब देना।” माया ने प्यार से मैग्ना के कान उमेठते हुए कहा- “एक कैस्पर को देख कितना शांत रहता है और तू है कि पट्-पट् बोलते जाती है।”

“अरे माँ, वो तो तो भोंदू है...उसे तो थोड़ी देर तक कुछ भी समझ नहीं आता।” मैग्ना ने अपना कान छुड़ाते हुए कहा।

“मैं भोंदू हूं...रुक चुहिया अभी बताता हूं तुझे।” इतना कहकर कैस्पर मैग्ना के पीछे दौड़ पड़ा।

माया इन दोनों की शैतानियां देखकर मुस्कुरा उठी।

इससे पहले कि दोनों कोई और शैतानी कर पाते, माया ने लपक कर दोनों का हाथ पकड़ लिया और गुफा से बाहर आ गई।

गुफा के बाहर एक ब्लू व्हेल खड़ी थी। सभी को आता देख ब्लू व्हेल ने अपना मुंह खोल दिया।

माया, कैस्पर और मैग्ना को लेकर ब्लू व्हेल के खुले मुंह में प्रवेश कर गई।

“क्या माँ, कुछ नयी सवारी ले लो, मुझे इस व्हेल के मुंह में बैठना बिल्कुल भी नहीं पसंद।” मैग्ना ने मुंह बनाते हुए कहा- “इसके दाँत देखो...यह तो अपना मुंह भी साफ नहीं करती। छीःऽऽ!”

सबके बैठते ही व्हेल बेलिज शहर की ओर चल पड़ी।

“ऐसा नहीं बोलते मैग्ना, व्हेल को बुरा लगेगा।” माया ने मुस्कुराते हुए कहा।

“मैं तो बड़ी होकर एक अच्छा सा हाइड्रा ड्रैगन लूंगी, जो पानी में तैर भी सके और आसमान में उड़ भी सके।” मैग्ना ने कल्पना करते हुए कहा- “ओये भोंदू...बड़ा होकर तू क्या लेगा?”

“मैं एक ऐसा घोड़ा लूंगा, जिसके पंख हों और पानी में वह समुद्री घोड़ा बन जाए।” कैस्पर ने भी अपनी कल्पनाओं में एक तस्वीर को उकेरा।

“अरे वाह! तुम दोनों की कल्पनाएं तो काफी अच्छी हो गईं हैं।” माया ने खुश होते हुए कहा।

“अरे माँ...हमने आज तक कल्पना करने के सिवा किया ही क्या है?” मैग्ना ने किसी बड़े के समान बोलते हुए कहा- “पिछले 5 वर्ष से हम अभी तक बस कल्पना ही तो कर रहे हैं। मैंने तो अब तक इस भोंदू के सिर की जगह भी, 100-200 जानवरों के चेहरे की कल्पना कर ली है।”

कैस्पर ने घूरकर मैग्ना को देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“कोई बात नहीं मैग्ना...यह कल्पना शक्ति ही अब तुम्हारे काम आने वाली है।” माया ने मैग्ना के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा।

“कैसे माँ?” मैग्ना ने ना समझने वाले अंदाज में कहा।

“चलो अभी बताती हूं, कुछ देर की बात और है बस?”

मैग्ना ने अभी यह कहा ही था कि तभी व्हेल पानी के बाहर आ गई।
व्हेल ने अपना मुंह खो लकर सभी को बेलिज के तट पर उतार दिया।

तट पर कबाकू पहले से ही खड़ा था। उसके पास 4 सफेद घोड़ों का
रथ भी था।

उसने झुककर तीनों को प्रणाम किया और फिर बोला- “आपके कहे अनुसार आज कोई भी क्रीड़ा स्थल पर नहीं है देवी। क्रीड़ा स्थल पूर्णतया खाली है।”

माया ने सिर हिलाकर कबाकू को आगे चलने का आदेश दिया।

कबाकू ने आगे बढ़कर दोनों बच्चों को रथ पर बैठाया और फिर माया को भी बैठने का इशारा कर, स्वयं आगे कोचवान वाली जगह पर जाकर बैठ गया। माया के बैठते ही कबाकू ने रथ को आगे बढ़ा दिया।

कैस्पर की निगाह तो बस उन सफेद घोड़ों पर ही थी। वह अपलक उन घोड़ों को निहार रहा था, लेकिन यह बात मैग्ना की निगाह से छिपी नहीं थी।

कुछ ही देर में रथ क्रीड़ा स्थल तक पहुंच गया। कबाकू ने रथ को क्रीड़ा स्थल के बाहर ही रोक दिया और क्रीड़ा स्थल का द्वार खोल माया को अंदर जाने का इशारा किया।

माया, मैग्ना और कैस्पर को लेकर क्रीड़ा स्थल के अंदर प्रविष्ठ हो गई। तीनों के अंदर प्रवेश करते ही कबाकू ने द्वार को बंद कर दिया और स्वयं वहीं बाहर बैठकर उन तीनों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा।

क्रीड़ा स्थल किसी विशाल स्टेडियम की भांति बड़ा था। उसमें चारो ओर लोगों के बैठने के लिये सीटें लगीं थीं। इस क्रीड़ा स्थल का प्रयोग विशाल आयोजनों के लिये माया ने ही करवाया था। इस समय उस स्थान पर कोई भी नहीं था।

“सबसे पहले मैं, कैस्पर को सिखाऊंगी।” माया ने यह कहकर कैस्पर की ओर देखा।

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपने तैयार होने की पुष्टि कर दी।

“देखो कैस्पर अब मैं जो कुछ भी बता रहीं हूं, उसे ध्यान से सुनना।” माया ने कैस्पर की ओर देखते हुए कहा- “मेरा एक-एक शब्द पूरी जिंदगी तुम्हारे काम आने वाला है।”

यह पाठ मैग्ना के लिये नहीं था, फिर भी मैग्ना सारी बातें ध्यान से सुन रही थी।

दोनों को ध्यान से सुनते देख माया ने बोलना शुरु कर दिया-
“समस्त ब्रह्मांड कणों से बना है और प्रत्येक कण में त्रिकण शक्ति होती है। प्रथम कण धनात्मक, द्वितीय कण ऋणात्मक और तृतीय कण तटस्थ होता है। तटस्थ कण नाभिक में स्थित होता है और वही इन दोनों कणों को बांधे रखता है।

"धनात्मक और ऋणात्मक कण नाभिक के चारो ओर चक्कर लगातें हैं। यह कण वातावरण में भी फैले हैं और हमारा शरीर भी इन्हीं कणों से बना है। हम वातावरण में उपस्थित कणों को नियंत्रित नहीं कर सकते, परंतु अपने शरीर में उपस्थित जीवद्रव्य और जीवऊर्जा की मदद से, अपने शरीर के कणों को बांधे रखते हैं। अब ब्रह्मांड में एक ऐसी शक्ति है, जो इन प्रत्येक कणों को नियंत्रित कर सकती है और वह शक्ति है ब्रह्मशक्ति।

"हां...यह वही शक्ति है जिसके द्वारा ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की रचना की। उन्हों ने अपनी शक्ति से इन कणों का नियंत्रण किया और ग्रहों के साथ समस्त वातावरण व प्राकृतिक पदार्थों की रचना की। आज मैं तुम्हें उसी ब्रह्मशक्ति का ज्ञान देने जा रही हूं। इस ब्रह्मशक्ति के माध्यम से तुम निर्जीव व सजीव सभी चीजों की रचना कर सकते हो । परंतु ये ध्यान रखना कि इस ब्रह्मशक्ति से उत्पन्न जीव स्वयं की वंशवृद्धि नहीं कर सकते। वह जिस कार्य के लिये उत्पन्न किये जायेंगे, उस कार्य को समाप्त करने के बाद वह स्वयं वातावरण में विलीन हो जायेंगे।

"ठीक उसी प्रकार तुम इनसे जिन इमारतों, भवनों और शहरों का निर्माण करोगे, उनकी आयु भी
निश्चित होगी। हां उनकी आयु को निश्चित करने का अधिकार तुम्हारे ही पास होगा, लेकिन वह तुम्हें निर्माण के समय ही सोचना होगा। अब इसके बाद मैं तुम्हें बताती हूं कि मैंने 5 वर्षों तक तुम लोगों को कल्पना करना क्यों सिखाया?..... ब्रह्मशक्ति के प्रयोग में सबसे विशेष स्थान कल्पना का ही है। जिस समय तुम किसी चीज का निर्माण करोगे, वह सभी कुछ कल्पना के ही आधार पर होगा। जितनी अच्छी कल्पना होगी, उतना ही अच्छा निर्माण करने में तुम सफल होगे। तो कैस्पर... क्या अब तुम तैयार हो ब्रह्मशक्ति प्राप्त करने के लिये?”

कैस्पर ने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी।

कैस्पर को तैयार देख माया ने अपनी दोनों आँखों को बंद कर,
अपना दाहिना हाथ आगे कर लिया और मन ही मन किसी मंत्र का उच्चारण करने लगी।

माया के मंत्र का उच्चारण करते ही अचानक से, आसमान में घने काले बादल घिर आये और मौसम बहुत खराब दिखने लगा।

अब बादलों में ब्रह्म.. का चेहरा नजर आने लगा।

तभी आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और सीधे आकर माया के फैलाये हाथ पर जा गिरी।

इसी के साथ ही बादल सहित देव.. का चेहरा भी आसमान से गायब हो गया।

मौसम अब फिर सामान्य हो गया था, परंतु अब माया के हाथों में एक पीले रंग की मणि चमक रही थी।

मणि से निकल रही रोशनी बहुत तेज थी।

माया ने अब अपनी आँखें खोल दीं और बोली- “कैस्पर पुत्र...मेरे
साथ-साथ अब हाथ जोड़कर इस मंत्र को तेज-तेज तीन बार दोहराओ।

यह कहकर माया ने मंत्र बोलना शुरु कर दिया- “ऊँ चतुर-मुखाया विद्महे............. तन्नो ब्र...ह्मा प्रचोदयात्।”

कैस्पर ने ..देव के मंत्र को तीन बार दोहराया।

माया ने अब उस पीले रंग की मणि को कैस्पर के मस्तक से स्पर्श करा दिया।

एक तीव्र रोशनी फेंकते हुए वह मणि कैस्पर के मस्तक में समा गई।

कैस्पर घबराकर अपने चेहरे को देखने लगा, पर वहां पर अब किसी भी प्रकार का कोई निशान नहीं था।

“ब्रह्म..शक्ति ने अब तुम्हारे मस्तक में अपना स्थान बना लिया है।”
माया ने कैस्पर को प्यार से देखते हुए कहा- “अब तुम्हारे सिवा इस मणि को कोई भी तुम्हारे मस्तक से नहीं निकाल सकता। क्या अब तुम इसके प्रयोग के लिये तैयार हो कैस्पर?”

“हां...मैं इसका प्रयोग करने के लिये तैयार हूं।” कैस्पर ने कहा।

“ठीक है...तो अब अपने दोनों हाथों को सामने फैलाकर, अलग-अलग दिशा में गोल-गोल लहराओ।” माया ने कहा।

कैस्पर ने ऐसा ही किया।

कैस्पर के ऐसा करते ही वातावरण में उपस्थित कण, हवा में गोल-गोल नाचने लगे।

जैसे-जैसे कैस्पर अपने हाथों को नचा रहा था, कणों की संख्या बढ़ती जा रही थी।

“जब तुम्हें लगे कि अब वातावरण में पर्याप्त कण हो गयें हैं, तो अपने दोनों हाथों से उन कणों को धक्का देकर दूर भेज देना और फिर अपनी आँख बंद करके, किसी भी प्रकार के निर्माण के बारे में सोचना....जब तुम आँख खोलोगे तो निर्माण हो चुका होगा।” माया ने कैस्पर को समझाते हुए कहा।

कैस्पर माया की बात को सुनकर कुछ देर तक हवा में अपने दोनों हाथ हिलाता रहा, फिर उसने एक धक्के से हवा में नाच रहे उन कणों को दूर धकेला और आँख बंदकर कुछ कल्पना करने लगा।

माया और मैग्ना की उत्सुक निगाहें, सामने कणों से हो रही उस रचना पर थी।

उस रचना के आधा बनते ही, माया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

वह एक शानदार ऊंची कद काठी वाला, सफेद रंग का पंखों वाला घोड़ा था।

कुछ देर तक कल्पना करने के बाद, कैस्पर ने अपनी आँखें खोलीं।
उसके सामने दूध सा सफेद पंखों वाला घोड़ा खड़ा था।

कैस्पर से आँख मिलते ही घोड़े ने हिनहिना कर, अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।

कैस्पर मंत्रमुग्ध सा उस विलक्षण घोड़े को निहार रहा था कि तभी वह घोड़ा बोल उठा- “कृपया मुझे मेरा नाम बताएं।”

“तुम्हारा नाम जीको होगा...तुम आसमान में अपने पंख पसार कर उड़ सकोगे और पानी में समुद्री घोड़े का रुप लेकर तैर सकोगे... तुम्हारी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। तुम मेरी सवारी बनोगे।” कैस्पर ने घोड़े को छूते हुए कहा।

“जो आज्ञा कैस्पर। क्या तुम अभी मुझ पर बैठकर सवारी करना चाहोगे?” जीको ने पूछा।



जारी रहेगा..........✍️
Bhut hi jabardast update bhai

Maya shabyta Ke bare me hame aur jankari mili
Vahi maya ke dvara di gayi bharham shakti se Casper ne jiko ki rachna ki
Dhekte hai aage kya hota hai
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
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Update 142-144
Let's Review Starts
To wilmar Bada Hi Chutiya person hai. jisko Lalacha Pasand aagaya aur shalaka We Gift mein sunhari Dhaal ki wish Demand ki.

Lekin Jisne Kiya Lalach Uska Huwa Banta Thaa Dhaar , Yaha Aakriti Wilmar se Jeet Jayegi aur Dhal Dhaaal Lejayegi Gaya Wilmar aur Gayi Uski Dhaal .
Lalach mein huwa Wilmaare ka Barbad .

Isse acha Wilmare Gold Diamond Mang leta issePesa bhi Earn kar sakta Thaa Aur Itna Bada Panga Bhi Nahi Rehta

Wese uss Wilmar Ko Malum Na Thaa Kya Ki Itni Magic waigraa dekha To ye Na Malum Thaa kya Dhaal Mein Bhi Magic hone Ke Chance Reh Sakte Thee .

Uski Jagah mein Rehta To demand Rakhta Mujhe Aremika ka President banao . Duniya Ka Bhala Karega Mein .
Fikar not, apun banayega ju ko udhar ka maalik :roll3:
Wilmar wakai me chutia hi hai, sach hi hai ki laalach gala katwa deta hai, ab uski bhi watt lagegi, khaya piya kuch nahi, glass toda, barah aana:dazed:
Then baat Kare Wilmer ke baad James ki bada Hi Samjh Daar Vyakti Aagr mere bhi Achi Choice mein kuch Demand Rehti To mein bhi God ka Assistant Mein Khus Rehta.
:good:
Khair Ju ne Yaha James Ko shalaka Ka Assistant Banaya MATLAB Kuch Important character Hi Warna Usko Aisa Assistant Kyu banate .
:roll3:
Then Baat Kare Roger Wale Matter Ki aakriti Lomdi ne Bechare Roger Ko akele Nahi Sath hi Megalite , Survarya ko Bhi Pakad Rakha Thaa.
Bohot ghaagh hai wo :chandu:
Aur Ye Lufasa Kya Game Khelne Ki Koshsish kar Raha . Sunera Ke Sath Kahi Lufasa pala To Nahi Badal Raha kahi Sunera Ke Sath Milkar Lufasa makota ki Gaddi Ko Hatiyana Chahta Hain.
Aapko lagta hai ye ho payega? Ya fir wo aisa hi chahta hai:D
Ya Fir lufasa Roger Megalite Survarya Ke Sath Milkar Aage Ladai Mein , suyash And Team Aur Yugaka claat Ki Team Se Bidhne Ke Liye Sabko Sath Juta Raha.
In Other words Lufasa samara senor ki Fight mein Roger ko Apni side mein Rakhma chahata Hain.
Aigar aisa ho bhi jaye, to kya Roger Suyash and company ke khilaaf jayega kya? Apun ko to nahi lagta, baaki niyati jaane, kya karwa de :dazed:
Megalite wo Hiran ka To Roger se Taka bhid Gaya. megalite ki Wo Muskurat sab baya kar di.

Ye Devi Armthiese Ka Jikar pehle Bhi huwa hai aur Abhi bhi Megalite Jiss Rath ko Khichti wo Rath bhi Armthiese ka .
Ya iska Jikar multiple times Hona kuch Kehta hain Ki Olympus Mountain ki devi Aage story mein appear Hogi shayad Tilms mein suyash and company se bidhat Ho uski .
I don't think so :shy:
Jhopdi scene ki Pura scene wakayi dimag ke Ghode Dodhane Jese Thaa ,sabse pehle Pank Aaye Jhopdi ke Then Usko control ek Car ya Vehicles ki Tarah Thaa .
Khumb Rashi Ka Meaning samjhaya Then mujhe Laga Shaffile Hogi ye Problem ke Solution ke Liye Then Jenith ke Jariye Kaam Huwa ye .Isse Pata Chal Jata Ju Shafffali ko Main Dikhaya Lekin Side Character ki Importance Kaam Na Hone Di .
Thanks man :thank_you:
Then Matka , Khopdi Dono ye To dimag Ka Dhahi Hogaya Kya se Kya Tarkeeb Banayi
Khopdi ki Mala se Jhopdi Se Bhara Ja Sakte Thee .Sath Hi Suyash Ke Time Fir Dimag Ghum Gaya ki ab Suyash Kese Bahar Aayega .
Apun poori koshish karta hai ki pathak logo ko kisi bhi tarah ka disappointment na ho, isi liye dimaak thoda jyada lagana padta hai:smarty:
Overall Ye Part khatam Shandaar Thaa Ye Part
Tilism Wala Chapter ka Mujhe Eagerly waiting
Thank you very much for your such a wonderful review and support bhai.:thank_you:
 
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