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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

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Raj_sharma

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#152.

वेदांत रहस्यम्

(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।

शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।

शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।

कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।

लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।

शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।

शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।

पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।

शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।

शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।

उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।

कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।

शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।

आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।

एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।

आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।

तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।

वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।

इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।

“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।

“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”

“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।

“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।

“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।

“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।

“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।

“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”

“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”

“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।

आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।

चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।

आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।

चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।

अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।

सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।

अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।

कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।

चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।

आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।

“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।

शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।

नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।

कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।

शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।

“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।

“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”

“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”

आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।

“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।

“नहीं !”

“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।

“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।

तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।

वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।

यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”

आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।

यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।

“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”

आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।

तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”

शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।

कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।

धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।

अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............

“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।

कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।

“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।

“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।

“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।

“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।

“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”

“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”

“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।

“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।

“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”

यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।

पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।

शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।

“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।


जारी रहेगा______✍️
 

dhparikh

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वेदांत रहस्यम्

(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।

शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।

शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।

कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।

लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।

शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।

शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।

पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।

शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।

शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।

उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।

कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।

शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।

आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।

एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।

आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।

तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।

वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।

इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।

“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।

“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”

“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।

“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।

“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।

“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।

“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।

“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”

“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”

“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।

आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।

चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।

आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।

चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।

अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।

सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।

अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।

कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।

चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।

आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।

“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।

शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।

नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।

कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।

शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।

“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।

“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”

“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”

आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।

“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।

“नहीं !”

“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।

“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।

तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।

वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।

यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”

आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।

यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।

“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”

आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।

तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”

शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।

कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।

धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।

अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............

“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।

कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।

“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।

“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।

“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।

“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।

“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”

“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”

“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।

“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।

“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”

यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।

पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।

शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।

“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।


जारी रहेगा______✍️
Nice update....
 

Raj_sharma

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Bhai sach bolu to story to kal night se lekar parso tak khatam kar sakta hu par it's so interesting ki har part ko enjoy kar ke yaad rakh kar age badh raha hu bura mat mana dost

बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सुयश के टैटू का तो राज खुल गया लेकिन एक और राज सामने आ गया सबकी हैप्पी न्यू ईयर की जगह bad न्यू ईयर हो गई शैफाली के पास एक सिक्का मिला है वह शैफाली के पास कौन व क्यों रख के गया है जिसका पता किसी को भी नहीं है अल्बर्ट के हिसाब से यह सिक्का अटलांटिस सभ्यता का है ये सच हो सकता है और शैफाली का उनके साथ कुछ तो संबंध हो सकता है???

Oh toh kahani ka villan Makota :roll3: hai! Poore aarka 🏝️ dweep par raaj karne ke liye usne Jaigan 🐛 ka sahara liya.

Aakruti 🤵‍♀️ ko Shalaka 👸 banakar usne Lufasa 🦁 aur Sanura 🐈‍⬛ ko bhi behka diya.

Supreme 🛳️ ke Bermuda Triangle mei aane ke baad jo bhi musibate aayi woh kahina kahi usi ke wajah se hai.

Supreme par se sabhi laasho ke gayab hone ka raaz toh woh keede 🐛 hi thay.

Lekin Lufasa 🐀 aur Sanura 🐈‍⬛ ne Aakruti aur Makota ki baate sunn hi li. Shayad ab ab woh sahi raasta chune.

Iss Aarka / Atlantis ke chakkar mei hum Supreme par hue sab se pehle khoon ki baat toh bhool hi gaye Aur kyo Aslam ne jahaaz ko Bermuda Triangle ki taraf moda! Aur Woh Vega ki kahani bhi wahi chhut gayi.
Lekin aaj ke iss update mei kaafi sawaalo ke jawaab mil hi gaye. :cool3:





Nahi bhai esa nahi hai
Wo kya hai na is bar ki pehli holi Sasural me manaee bahut he ache se pocho mat bahut enjoy kia maine bhai kya batao bs busy tha usme he

I don't know ,aap padhakar batana kaisi lagi ,

Awesome update

Badhiya update bhai

To Toffik hi tha jisne sab kiya tha lekin loren ko kyun mar diya usne wo to usse pyar karta tha na or bechari loren bhi uske pyar me andhi hoker uski baten man rahi thi or jis jenith se badla lena chahta tha use abhi tak jinda rakha ha usne usse pyar ka natak karta ja raha ha Jenith ki sab sachhai pata pad gayi ha dekhte han kab tak Toffik babu apni sachhai chhupa pate han waise bure karm ki saja milti hi ha or jis jagah ye sab han usse lagta ha jaise Aslam miya ko saja mili usi prakar Toffik ka bhi number lag sakta ha

उचित समय आने पर, अवश्य ही

चौदह वर्ष पूर्व कलिका - जो दिल्ली के एक मैग्जीन की संपादक थी - ने यक्षलोक के प्रहरी युवान के कठिन सवालों का जो जवाब दिया वह बिल्कुल महाभारत के एक प्रसंग ( युधिष्ठिर और यक्ष संवाद ) की तरह था ।
क्या ही कठिन सवाल थे और क्या ही अद्भुत जवाब थे ! यह सब कैसे कर लेते है आप शर्मा जी ! पहले तो दिमाग मे कठिन सवाल लाना और फिर उस सवाल का जवाब ढूंढना , यह कैसे कर लेते है आप !
यह वाकई मे अद्भुत था । इस अपडेट के लिए आप की जितनी तारीफ की जाए कम है ।

शायद सम्राट शिप से चौदह साल पहले जो शिप बरमूडा ट्राइंगल मे डुब गया था , उस शिप मे ही कलिका की बेटी सफर कर रही होगी । वह लड़की आकृति हो सकती है । वह आकृति जो शलाका का क्लोन धारण कर रखी है ।

दूसरी तरफ सामरा प्रदेश मे व्योम साहब पर कुदरत बहुत ही अधिक मेहरबान हो रखा है । वगैर मांगे छप्पर फाड़ कर कृपा बरसा रहा है । पहले अमृत की प्राप्ति हुई और अब राजकुमारी त्रिकाली का दिल उनपर धड़क गया है ।
मंदिर मे जिस तरह दोनो ने एक दूसरे को रक्षा सूत्र पहनाया , उससे लगता है यह रक्षा सूत्र नही विवाह सूत्र की प्रक्रिया थी ।


इन दो घटनाक्रम के बाद तीसरी तरफ कैस्पर का दिल भी मैग्ना पर मचल उठा है और खास यह है कि यह धड़कन हजारों वर्ष बाद हुआ है । लेकिन सवाल यह है कि मैग्ना है कहां !
कहीं शैफाली ही मैग्ना तो नही ! शैफाली कहीं मैग्ना का पुनर्जन्म तो नही !

कुकुरमुत्ता को छाते की तरह इस्तेमाल करते हुए सुयश साहब और उनकी टीम का तेजाबी बारिश से खुद को रक्षा करना एक और खुबसूरत अपडेट था । पांच लोग बचे हुए हैं और एलेक्स को मिला दिया जाए तो छ लोग । तौफिक साहब की जान जाते जाते बची , लेकिन लगता नही है यह साहब अधिक दिन तक जीवित रह पायेंगे ।
कुछ मिलाकर पांच प्राणी ही सम्राट शिप के जीवित बचेंगे , बशर्ते राइटर साहब ने कुछ खुराफाती न सोच रखा हो ।
ये मिश्रित पांडव जीवित रहने चाहिए पंडित जी ! :D

सभी अपडेट बेहद खुबसूरत थे ।
रोमांच से भरपूर ।
एक अलग तरह की कहानी , एक अद्भुत कहानी ।
और आउटस्टैंडिंग राइटिंग ।

Out of station tha bhai kaam ki wajah se !

Radhe Radhe guruji,, break pe chala gya tha uske baad is id ka password issue ho gya tha so sign in nahi tha itne time se ab wapas aaya hu to dubara se updates ki demand rakhunga...waise stock to abhi full hai kuch time ke liye so read karta hu

Waada kiya tha puri story padhunga aur dhang se review dunga kab ye wait karna padega darling brother

Lo bhai, jal kavach bhi paar ho gaya sab ki sammilit shakti se, jaisa ki suyash bhi bol raha hai, tilisma me yahi sangathit sakti kaam aayegi. Aur wo jhopdi kahi wahi to nahi, jo jise vyom ne udte hue dekha tha?🤔
Khair, dekhte hain aage kya hota hai?
Mind blowing update sir ji 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

Shandar update bro

Shandaar update and nice story

शानदार अपडेट राज भाई

Awesome update
Ab maza ayega

Brilliant update and nice story

Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai

Is update se ek baat to clear ho gayi he ki apne dar se jo jit gaya vo manjil bhi jarur paa lega...........

Sabhi ke miljule efforts se ye pehla dwar to paar ho gaya.........

Keep posting Bro

अरे मेरे भाई - ऐसा कुछ भी नहीं है।
आज कल एक व्यक्तिगत सरोकार के चलते बेहद व्यस्त हूँ। समय ही नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति आगे एक महीना तक रहने वाली लगती है।
न तो कुछ लिख रहे हैं और न ही पढ़ रहे हैं। ऐसा न सोचिए कि कोई नाराज़गी वाराज़गी है।
हाँ - संजू भाई का नहीं कह सकता। 😂 😂

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सुयश और टीम ने अपनी सुजबुझ दृढ इच्छाशक्ती और एक दुसरे के प्रति विश्वास साथ ही साथ अदम्य साहस से निलकमल को तोडकर तिलिस्मा के प्रथम व्दार पर विजय प्राप्त कर ली
बडा ही शानदार और जानदार अपडेट

Nice update....

Bhut hi badhiya update Bhai
Alanka samayshakti ko pakar sabhi garho par vijay pana chahta hai aur iske liye pritex ne andronika ko us garh par bhej diya jis par samayshakti hai
Jo ki sayad is vakt jenith ke pass hai
Vahi vidhumna ne ma...dev se vardan me trisarfmukhi dand prapt kar liya
Aur vahi vidhumna aur banketu dono hi ek dusre par mohit ho gaye
Dhekte hai ab aage kya hota hai

Let's Review Starts

Ye Nilkamal Ka Tilism Aakhir Pura Huwa, Itna Bhi Muskil Nahi Thaa Bina Dravya Ko Nikle Pankudi Todhna Pana .

Sheffali Ki chalaki Ne Fir bacha Liya warna Ye Tilism Shuru Se Muskil Lag Raha Hain Mujhe Lekin Mene Notice Kiya Ki Jenith aur Taufikk Ne Ek Dusre Se baat Ki Kya Hamm Samjhe ki Inke Bich Ye Dewaar Tilism Jesa Aage Badhege Wese Tootegi .

Mene Ek Aur point Notice kiya ye Kankal Ki Mala Shayad Aage Kuch Na Kuch Rahsya Kholegi , Kyuki mujhe Ye Simple mala To Nahi Lagti Jarooor Kuch Raaz Hoga .

Sabka Ka Contribution Thaa Tilism Ko Todhne me Jenith cristi ne Pankdi Todhi, Suyash Tauffik Ne Unhe NILkamal Tak Pahuchaya, Alex Shaffali Ne apni Dimagi Shaktiya Ka Istemaal Kiya .

Wese Purane character Ke Name Yaad aaye To Kya kuch surprise se purane Character Jinda bache Jese wo suyash ka assistant brad aur Albert kahi dinosaur se kabhi Jinda bach Gaya Ho .

Overall update hamesha ki Tarah shandaar .
Waiting for more

Wonderful update brother! You are doing a great job, itna Maha....dev ki bhakti koi karega toh Maha....v apna trishul bhi usko de denge.

Abhi bhi ye padav paar nahi hua hai brother! Let's see aage aapne kya soch rakha hai??? Ya Taufiq aur Suyash ka iss tarah se ek round complete karna kuchh ajeeb tha, dono ne milkar Kai-keshwar ko murkh hi babaya hai jo khud ko god samajh raha hai. Wonderful update brother.

Nice update.....

Shaandar Update

Hamesha ki tarah lajawab update..... 1 नेवला तो पार कर लिया. अब अगला कदम की और देखते हैं क्या मुसीबत आती हैं सामने

Awesome update❤❤

Superb update and nice story

lovely update. alex aur christy tension me bhi ek dusre ki khichai karke mahaul ko halka kar diye .
suyash ne dimag daudaya aur nevle ka chakkar pura kar liya apne saathi ke saath milke .ab octopus ki paheli me kya hota hai dekhte hai .

nice update

waiting for the next update.....

Besabari se intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai.....
Update posted friends :declare:
 

Sushil@10

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#152.

वेदांत रहस्यम्

(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।

शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।

शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।

कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।

लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।

शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।

शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।

पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।

शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।

शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।

उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।

कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।

शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।

आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।

एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।

आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।

तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।

वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।

इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।

“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।

“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”

“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।

“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।

“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।

“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।

“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।

“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”

“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”

“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।

आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।

चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।

आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।

चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।

अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।

सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।

अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।

कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।

चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।

आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।

“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।

शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।

नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।

कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।

शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।

“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।

“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”

“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”

आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।

“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।

“नहीं !”

“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।

“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।

तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।

वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।

यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”

आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।

यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।

“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”

आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।

तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”

शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।

कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।

धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।

अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............

“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।

कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।

“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।

“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।

“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।

“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।

“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”

“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”

“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।

“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।

“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”

यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।

पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।

शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।

“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।


जारी रहेगा______✍️
Dhamakedaar update and great story
 

Raj_sharma

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वेदांत रहस्यम्

(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)

विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।

शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।

शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।

कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।

लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।

शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।

शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।

पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।

शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।

शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।

उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।

कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।

शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।

आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।

एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।

आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।

तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।

वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।

इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।

“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।

“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”

“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।

“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।

“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।

“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।

“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।

“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”

“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”

“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।

आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।

चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।

आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।

चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।

अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।

सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।

अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।

कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।

चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।

आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।

“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।

शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।

नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।

कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।

शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।

“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।

“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”

“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”

आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।

“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।

“नहीं !”

“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।

“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।

तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।

वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।

यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”

आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।

यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।

“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”

आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।

तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”

शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।

कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।

धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।

अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............

“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।

कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।

“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।

“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।

“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।

“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।

“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”

“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”

“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।

“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।

“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”

यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।

पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।

शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।

“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।


जारी रहेगा______✍️
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 
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