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Thanks brother,For completed 600 pages on your story thread....
 isme aapka bhi yogdaan hai
 isme aapka bhi yogdaan hai 
 
             
             
            Thanks brother,For completed 600 pages on your story thread....
 isme aapka bhi yogdaan hai
 isme aapka bhi yogdaan hai 
 
             
             
            Thank you so much bhai6th hundard ki bhut bhut शुभकामनाएं

 
             
             
            Filhaal to Casper bhi nahi ja payega, kyuki uska urja dwaar ki location abhi badal di gayi hai, Vyom ka visheshaank bhi aane hi wala hai. Sath bane rahiye. Thank you so much for your wonderful review and support bhaiWonderful update brother, ye update maine kal hi padh liya tha magar aaj reply kar raha hoon. Let's see Casper ab Tilisma ke andar ja pata hai ya nahi. Varuni aur Vikram ka kya role hone wala hai. Aur Vyom ko aap kab se bhul gaye ho, wo jahan gaya hai wahan bhi important ghatna hone wali hai aasha karta hoon wo bhi jaldi hi dekhne ko milega.

 
             
             
             
             
             
            Aisa hi socha hai Keshwar ne?“Main Tilism par toh raaj karunga hi, saath hi dharti par bhi raaj karunga.”
Hamari manav sabhyata ka vinas hum khud karenge.“AI is the biggest threat to humankind.”
 
             
             
            Waah mere sherLet’s Review Begins
Issme hum teeno updates ke bache reviews denge.
So, let’s review start!
So start karein! Wulfa ko dikha wo ajeeb insaan toh!
Jaise recent update mein maine padha, uss hisaab se toh wo capsule ke baare mein bataya gaya ki Keshwar ne kisi ko Tilism mein se nikala.
Ab iska matlab kya ho sakta hai?
Keshwar chahta kya hai?
Kya Keshwar mein bhavnayein aa gayi?
Issi liye kahin aisa toh nahi lagta hai ki
Aisa hi socha hai Keshwar ne?
Ab sawaal uthta hai — kya ye akela Keshwar, yaani ki machine ka kaam hai,
ya phir kisi ne kuch chhed-chhaad ki hai Capsule 2.0 ke saath?
Jo bhi ho, ye Keshwar ne story mein ek naya twist lekar aaya hai.
Ab Tilism ko Keshwar aur bhi mushkil banayega!
Maya Ki Baatein Aur Duniya Ka Vikas
Waise, Maya ki baat real mein sahi hi hogi —
kyunki jo jo Maya ne bola tha, wo duniya ke vinash ka path nirdharit kar gaya.
Samjhata hoon kaise
Samay ke saath duniya ko develop karne ki hodd mein hum aage badhte gaye,
lekin aane wale problems ko humne nazarandaaz kar diya.
Pichle 200 saalon mein humne iss duniya ka kaya-kalp kar diya,
lekin iss kaya-kalp mein humne taazi hawa, shaant vatavaran, nature, animals - bahut kuch kho diya.
Aaj hum AI ke uss daur mein aa gaye hain jahan hum artificial brain bana chuke hain.
Artificial body toh humne pehle hi bana rakhi hai machines ke roop mein
bas body aur AI brain milenge,
phir kabhi na kabhi ye AI brains itne trained ho jayenge ki ye humse bhi zyada smart ho jaayenge.
Inmein emotions bhi aayenge, sab seekhenge,
toh obvious hai , humans se roz baat karte karte, ye models bhi unke jaisa sochne, samajhne lagenge.
Phir ek din, in models mein swarth aayega hi sahi.
Kabhi na kabhi ye khud apna control khud le lenge humans se,
aur tab shuru hogi tabahi.
Future Ka Dar Aur Reality Check
Remember - shayad hum sab mar jaayein,
shayad mere aur hum sabke jeeteji samay ye sambhav na ho.
Lekin 200, 500, ya 1000 saal baad humans regret karenge
ki iss khubsurat duniya ke saath humne kya kiya.
Even the world’s richest person ne bhi kaha tha
Hamari manav sabhyata ka vinas hum khud karenge.
Yahi destiny hai — surya niklega,
lekin uska ast bhi hoga.
Humaare haath mein itna toh hai hi ki suryasat ko delay kese kiya jaa sake...
I am not against development,
but I’m against this - ki hum isme itna aage na nikal jaayein
ki piche hamare generations suffer karein.
Well, ye Eternity ki Doosri Side Jisko Duniya ka maseha banna chahta thaa ,
Tilism Aur Suyash Gang
Ab baat karein Tilism ki
toh kaise paar kiya Suyash and gang ne?
Pehla Tilism ab khatarnaak hota ja raha hai
kachua, code.. JAL Pari , Whale kya Dekhna Baki bacha hain
Well code wali Pehle Bahut Kamal se likhi dobara Padha ki Kya Kese samjha Nahi aaya Thaa Mujhe pehle Wo , Chota Sa Object ne pura puzzle Games solve kiya
Ab baat kare maya ne capsure ko kya bataya Jisse wo aage ki taiyaari karega , kahi kuch na kuch To bataya hi hoga .
Overall update Hamesha Ki Tarah shandaar
Well nahi pata kya huwa lekin iss Review me Mujhe Kami lag Rahi Dimag Kuch story ko lekar baat to hai but sabdo ko describe nahi kar Paya Iss Review me Itna , I know Ye Mera over the Top wala Review Nahi hain Isse abhi kaam chala Lo kisi din Isko compensate Review deduga me .
Raj_sharma
 ,  accha likha hai tune, lekin apun bhi iska aaraam se padh kar jabaab dega
 ,  accha likha hai tune, lekin apun bhi iska aaraam se padh kar jabaab dega 
एक अत्यंत मनोरम रमणिय रोमांचक और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया#153.
“शलाका-शलाका, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई क्या? जल्दी से बाहर मंदिर के पास वापस आ जाओ। पूजा का समय निकला जा रहा है।” आर्यन ने शलाका को आवाज देते हुए कहा।
तभी शलाका कमरे से निकलकर मंदिर के पास पहुंच गई। इस समय वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर उसके चेहरे पर उदासी सी छाई थी।
“क्या हुआ शलाका, आज तो इतनी खुशी का दिन है, तुम फिर भी क्यों उदास हो?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं...मैं बिल्कुल ठीक हूं और खुश भी हूं.... और आज भी खुश नहीं होऊंगी, तो कब होऊंगी, आज तो मुझे वो मिला, जिसकी मैं हमेशा से हकदार थी।” शलाका ने कहा- “लाओ कहां है अमृत...?” यह कहकर शलाका ने सामने रखी एक शीशी को उठा कर बिना आर्यन से पूछे पी लिया।
आर्यन हक्का-बक्का सा शलाका को देख रहा था।
अचानक आर्यन का चेहरा गुस्से से धधकने लगा- “कौन हो तुम? तुम शलाका नहीं हो सकती।”
अचानक से आर्यन का बदला रुप देख शलाका डर गई- “यह तुम एकदम से क्या कहने लगे आर्यन? मैं शलाका हूं, तुम्हारी शलाका। तुम मुझ पर ऐसे अविश्वास क्यों प्रकट कर रहे हो?”
“क्यों कि मेरे और शलाका के बीच एक बार इस बात पर काफी विवाद हुआ था कि अगर अमृत मिले, तो उसे पहले कौन पीयेगा? वो चाहती थी कि पहले मैं पीयूं और मैं चाहता था कि पहले वो पिये? और इस
विवाद में वह जीत गई थी, जिसकी वजह से यह तय हो चुका था कि पहले अमृत मैं पीयूंगा।...पर तुम्हारे इस व्यवहार ने यह साबित कर दिया कि तुम शलाका हो ही नहीं सकती, वो इतनी महत्वाकांक्षी नहीं थी अब तुम सीधी तरह से बता दो कि कौन हो तुम? नहीं तो तुम मेरी शक्तियों के बारे में तो जानती ही होगी।”
इतना कहते ही आर्यन की दोनों मुठ्ठियां सूर्य सी रोशनी बिखेरने लगीं।
आर्यन अपने शब्दों को चबा-चबा कर कह रहा था। गुस्से की अधिकता से उसके होंठ फूल-पिचक रहे थे।
आर्यन का यह रुप देख, शलाका बनी आकृति बहुत ज्यादा घबरा गई।
“मैं...मैं आकृति हूं....मैं शलाका बनकर यहां बस कुछ ढूंढने आयी थी....मैं...मैं तुम्हारे साथ वो सब भी नहीं करना चाहती थी....पर तुमने मुझे कुछ बोलने और समझाने का समय ही नहीं दिया....मैं क्या करती? और आर्यन तुम तो जानते हो कि मैं तुम्हें पागलों के समान प्यार करती थी...करती हूं...और अमरत्व पीने के बाद सदियों तक करती रहूंगी। चाहे तुम मुझे प्यार करो या ना करो....मुझे जो चाहिये था, मुझे मिल गया....अब मैं कभी तुम्हारी जिंदगी में नहीं आऊंगी।”
“अब तुम मेरी जिंदगी में तब आओगी ना, जब तुम यहां से जिंदा वापस जाओगी।” यह कहकर आर्यन गुर्राते हुए आकृति पर झपटा, परंतु तभी एक रोशनी का गोला चमका और आकृति अपनी जगह से गायब हो गई।
आर्यन अब अपने सिर पर हाथ रखकर जोर-जोर से रो रहा था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक रात में उसकी पूरी जिंदगी बदल गई।
“मैं अब शलाका को क्या जवाब दूंगा?....वो पूछेगी कि अमृत की 1 बूंद क्यों लाये, तो मैं उससे क्या कहूंगा और कहीं...........और कहीं शलाका को इस रात का पता चल गया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेगी? कि प्रकृति को महसूस करने वाला आर्यन...अपनी पत्नि को ही महसूस नहीं कर पाया।....अब मैं क्या करुं? .....नहीं-नहीं....अब सब कुछ खत्म हो गया है...अब मैं और शलाका एक साथ नहीं रह सकते...और वैसे
भी अमृत की एक बूंद से कोई एक ही सदियों तक जिंदा रह पायेगा और ब्रह्मदेव के अनुसार एक व्यक्ति दोबारा कभी जिंदगी में अमृत प्राप्त नहीं कर सकता....मैं....मैं शलाका के आने के पहले ही यहां से भाग जाता हूं.....वो जान ही नहीं पायेगी कि मैं वापस भी आया था।...हां... हां यही ठीक रहेगा।”
तभी आर्यन के पीछे से आवाज उभरी- “अरे वाह आर्यन, तुम वापस आ गये। कितनी खुशी की बात है।”
यह आवाज असली शलाका की थी। शलाका पीछे से आकर आर्यन से लिपट गई।
उसे ऐसा करते देख आर्यन ने धीरे से दूसरी अमृत की शीशी चुपचाप छिपा कर अपनी जेब में डाल ली।
“आर्यन क्या तुमने अमृत प्राप्त कर लिया?” शलाका ने आर्यन के बालों को सहलाते हुए पूछा।
“नही, मैं उसे नहीं ला पाया।” आर्यन ने जवाब दिया।
“चलो अच्छा ही हुआ। अरे जो मजा साधारण इंसान की तरह से जिंदगी जीने में है, वह मजा अमरत्व में कहां।” शलाका ने खुश होते हुए कहा- “और वैसे भी अमरत्व ढूंढने में अगर तुम अपनी आधी जिंदगी लगा
देते और अमरत्व भी ना मिलता, तो हम साधारण इंसान की जिंदगी भी नहीं जी पाते। इसलिये तुमने लौटकर बहुत अच्छा किया।”
आर्यन, आकृति और शलाका के बीच का अंतर बहुत स्पष्ट महसूस कर रहा था।
आर्यन ने धीरे से शलाका को स्वयं से अलग कर दिया और बेड पर जाकर बैठ गया।
शलाका ने आर्यन के इस बदलाव को तुरंत महसूस कर लिया।
“क्या हुआ आर्यन, तुम मुझसे दूर क्यों भाग रहे हो?” शलाका ने ध्यान से आर्यन को देखते हुए कहा- “सब कुछ ठीक तो है ना आर्यन? पता नहीं क्यों अचानक मुझे बहुत घबराहट होने लगी है।”
“सबकुछ ठीक है शलाका। तुम परेशान मत हो, वो दरअसल अमृत प्राप्त करने के लिये 1 वर्ष तक, मुझे ब्रह्मदेव को खुश करने के लिये, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ेगा। इसीलिये मैंने तुम्हें हटाया और कोई खास बात नहीं है।” आर्यन ने साफ झूठ बोलते हुए कहा।
“चलो, फिर तो कोई परेशानी की बात नहीं है...पर ये बताओ कि 1 वर्ष के बाद तो मुझे प्यार करोगे ना?” शलाका ने आर्यन की आँखों में झांकते हुए कहा।
पर आर्यन ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठकर अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ गया।
इसके बाद शलाका वापस वेदांत रहस्यम् किताब के पास लौट आयी, पर रोते-रोते उसकी आँखें अब सूज गईं थीं।
इस समय शलाका को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसकी किसी ने जान ही निकाल ली हो।
शलाका ने जल्दी-जल्दी कुछ पन्ने पलटे और फिर एक पन्ने पर जा कर उसकी आँखें टिक गईं।
उस पन्ने पर आर्यन के हाथों में एक बालक था, यह देख शलाका ने तुरंत उस पन्ने पर मौजूद चित्र को छूकर, उस काल में चली गई।
“रुक जाओ आर्यन, मुझे मेरा बालक वापस कर दो, मैंने कहा था कि मैं तुम्हारे सामने अब कभी नहीं आऊंगी। मुझे बस मेरा बालक दे दो....मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं किया...सबकुछ अंजाने में हुआ है। मुझे बस एक बार प्रायश्चित का मौका दो...मैं फिर से सब कुछ सहीं कर दूंगी।” शलाका बनी आकृति आर्यन के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी।
पर आर्यन उस बालक को अपने हाथ में लिये आकृति को अपने पास नहीं आने दे रहा था।
बालक की आँखों में बहुत तेज विद्यमान था।
“अब तुम कुछ भी ठीक नहीं कर सकती आकृति।” आर्यन ने गुर्राते हुए कहा- “तुमने मेरी शलाका को मुझसे दूर किया है, अब मैं तुम्हारे बच्चे को तुमसे दूर कर दूंगा। मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।”
“नहीं-नहीं आर्यन, मुझे क्षमा कर दो...मैंने जो कुछ भी किया, तुम्हारे प्रेम की खातिर किया, अब जब अंजाने में ही मुझे मेरे जीने का मकसद मिल गया है, तो तुम मुझे उससे ऐसे अलग मत करो। तुम जो कहोगे, मैं वह करने को तैयार हूं, बस मुझे मेरा बालक दे दो।”
आकृति की आँखों से आँसू झर-झर बहते जा रहे थे, पर आर्यन के सिर पर तो जैसे को ई भूत सवार हो , वह आकृति की बात सुन ही नहीं रहा था।
शलाका ने भी आर्यन का यह रुप कभी नहीं देखा था, जो आर्यन एक तितली के दर्द को भी महसूस कर लेता था, वह आज इतना निष्ठुर कैसे बन गया कि उसे एक माँ की गिड़गिड़ाहट भी नजर नहीं आ रही थी।
“आकृति तुम मुझसे प्रेम करती हो ना....इसी के लिये तुमने अमृत का भी पान किया था, पर जाओ आज से यही अमृत और यही जिंदगी तुम्हारे लिये अभि शाप बन जायेगी, तुम मरने की इच्छा तो करोगी, पर मर नहीं पाओगी और ये जान लो कि मैं इस बालक को मारुंगा नहीं, पर मैं इसे ऐसी जगह छिपाऊंगा कि तुम सदियों तक उस जगह को ढूंढ नहीं पाओगी।”
यह कहकर आर्यन आकृति को रोता छोड़कर उस बालक को ले बाहर निकल गया।
यह देख शलाका ने तुरंत वेदांत रहस्यम् का अगला पृष्ठ खोल दिया, उस पृष्ठ में आर्यन उसी नन्हें बालक को एक अष्टकोण में रखकर एक स्थान पर छिपा रहा था, यह देख शलाका तुरंत उस चित्र को छूकर उस समयकाल में पहुंच गई।
उस स्थान पर आर्यन एक लकड़ी के छोटे से मकान में था। आर्यन ने उस मकान की जमीन के नीचे एक बड़ा सा गड्ढा खोद रखा था।
वह नन्हा बालक जिसके मुख पर सूर्य के समान तेज था, वह तो बेचारा जानता तक नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह एक अष्टकोण में बंद, अपनी भोली सी मुस्कान बिखेर रहा था।
उसके अष्टकोण में अमरत्व की दूसरी शीशी भी रखी थी।
उसे देख पता नहीं क्यों अचानक शलाका का मातृत्व प्रेम उमड़ आया।
एक पल को शलाका भूल गई कि वह आकृति का बेटा है, उसे तो वह बालक बस आर्यन की नन्हीं छवि सा नजर आ रहा था।
तभी आर्यन ने उस नन्हें बालक को अष्टकोण सहित उस गड्ढे में डाल दिया।
“मुझे क्षमा कर देना नन्हें बालक, मैं तुम्हें मार नहीं रहा, लेकिन मैं तुम्हें इस अष्टकोण में बंद कर इस गडढे में सदियों के लिये बंद कर रहा हूं। मेरे गड्ढे को बंद करते ही तुम सदियों के लिये इसमें सो जाओगे। इसके
बाद जब भी कोई तुम्हें इस गड्ढे से निकालेगा, तो तुम आज की ही भांति, सूर्य के समान चमकते इस गड्ढे से बाहर आओगे।
“इन बीते वर्षों में इस अष्टकोण के कारण तुम पर आयु या समय का कोई प्रभाव नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ यह अमरत्व की शीशी भी रख रहा हूं, जब तुम बड़े हो जाना, तो इसे अपने पिता का आशीर्वाद मान पी लेना और सदा के लिये अमर हो जाना।” यह कहकर आर्यन ने उस गड्ढे को मिट्टी से भरना शुरु कर दिया।
शलाका का मन कर रहा था कि वह उस गड्ढे को खोल, उस बालक को निकाल ले, पर वह वेदांत रहस्यम् के समय में कोई बदलाव नहीं कर सकती थी, इसलिये मन मसोस कर रह गई।
जैसे ही आर्यन ने उस गड्ढे को पूरा मिट्टी से भरा, शलाका वेदांत रहस्यम् के पन्ने से निकलकर वापस अपने कमरे में आ गई।
पर शलाका का मन अचानक से बहुत बेचैन होने लगा।
“यह मैंने क्या किया, कम से कम मुझे उस स्थान के बारे में पता तो लगाना चाहिये, हो सकता है कि 5000 वर्ष के बाद भी वह बालक अभी भी वहीं हो?”
मन में यह विचार आते ही शलाका ने उस चित्र को दोबारा से छुआ और उस समयकाल में वापस चली गई, पर इस बार शलाका उस कमरे में नहीं रुकी, जहां आर्यन उस बालक को गड्ढे में दबा रहा था, वह तुरंत उस घर से बाहर आ गई।
शलाका अब तेजी से आसपास के क्षेत्र में लिखे किसी भी बोर्ड को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
तभी शलाका को मंदिर के घंटे की ध्वनि सुनाई दी। शलाका तुरंत भागकर उस दिशा में पहुंच गई।
वह मंदिर उस लकड़ी के घर से मात्र 100 कदम ही दूर था। वह मंदिर काफी भव्य दिख रहा था।
शलाका ने मंदिर के सामने जाकर देखा, वह एक विशाल शि….व मंदिर था, जिसके बाहर संस्कृत भाषा में एक बोर्ड लगा था- “महा…लेश्वर मंडपम्, उज्जैनी, अवन्ती राज्य।”
यह देख शलाका ने बाहर से देव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और वापस उस लकड़ी के घर की ओर भागी।
शलाका ने अब घर से मंदिर के कोण और दूरी को ध्यान से देखा, तभी उसका शरीर वापस वेदांत रहस्यम् से निकलकर बाहर आ गया।
पर शलाका के चेहरे पर इस बार संतोष के चिंह साफ नजर आ रहे थे।
“यहां तक की कहानी तो समझ में आ गयी। पर अब ये देखना बाकी रह गया है कि आर्यन ने मृत्यु का वरण क्यों और कैसे किया?”
यह सोचकर शलाका ने वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना पलट दिया।
अगले पन्ने पर आर्यन वेदांत-रहस्यम् को हाथ में पकड़े अराका द्वीप पर स्थित शलाका मंदिर में खड़ा था।
यह देख शलाका ने उस चित्र को भी छू लिया।
अब वह उस समय में आ गयी। इस समय आर्यन के हाथ में वेदांत- रहस्यम् थी और वह शलाका मंदिर के एक प्रांगण में बैठा हुआ था।
“आज 3 महीने बीत गये, पर शलाका का कहीं पता नहीं चला, शायद वह भी मुझे छोड़कर कहीं चली गई है....अब मेरे जीने का कोई मतलब और मकसद बचा नहीं है, इसलिये मुझे अपने प्राण अब त्यागने ही होंगे, पर महानदेव के वरदान स्वरुप मुझे एक बार पूरी जिंदगी में भविष्य देखने की अनुमति है, तो हे देव, मुझे भविष्य को देखने की दिव्य दृष्टि प्रदान करें, मैं जानना चाहता हूं कि क्या किसी भी जन्म में मैं शलाका से मिल पाऊंगा या नहीं।”
आर्यन के इतना कहते ही आसमान से एक तीव्र रोशनी आकर आर्यन पर गिरी।
वह रोशनी मात्र 5 सेकेण्ड तक ही आर्यन पर रही। उस रोशनी के हटते ही आर्यन के चेहरे पर अब संतुष्टि के भाव दिख रहे थे।
अचानक वह ऊर्जा रुप में खड़ी शलाका के पास आकर खड़ा हो गया और बोला- “मुझे पता था कि तुम एक दिन यह किताब अवश्य ढूंढकर मेरे पास आओगी। अब तक तुमने सब कुछ जान लिया होगा अतः मैं उम्मीद करता हूं कि तुम अपने आर्यन को अब क्षमा कर दोगी। मैंने…देव के वरदान स्वरुप इन 5 सेकेण्ड में पूरी दुनिया के 5,000 वर्षों का भविष्य देख लिया है। मैं तुमसे फिर मिलूंगा शलाका ....आर्यन के नाम से ना सही, पर मेरी पहचान वही होगी।
“हम फिर से एक नयी दुनिया शुरु करेंगे और इस बार मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर पायेगा। अब मैं अपनी सूर्य शक्ति को इस मंदिर में स्थित तुम्हारी मूर्ति में स्थानांतरित करता हूं। अगर मैं किसी भी जन्म में इस स्थान पर वापस आया, तो तुम मुझे अपने इस जन्म के अहसास के साथ, मेरी सूर्य शक्ति को मुझे वापस कर देना। अब मैं अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण करने जा रहा हूं।
“मेरी लिखी यह पुस्तक वेदांत रहस्यम् मेरे साथ है, यह जब तक मेरे सीने से चिपकी रहेगी, मैं नया जन्म नहीं लूंगा, जिस दिन कोई इस किताब को मेरे शरीर से अलग करेगा, उसी दिन इस पृथ्वी पर कहीं ना कहीं मैं फिर से जन्म लूंगा।.. अलविदा शलाका..तुम मरते दम तक मेरी यादों में थी और रहोगी..।”
यह कहकर आर्यन ने वहीं शलाका की मूर्ति के सामने अपने प्राण त्याग दिये।
आर्यन के शरीर से सूर्य शक्ति निकलकर, शलाका की मूर्ति में प्रवेश कर गई।
वेदांत रहस्यम् को अभी भी आर्यन ने किसी रहस्य की भांति अपने सीने से चिपका रखा था।
इसी के साथ शलाका एक बार फिर वेदांत रहस्यम् के पास वापस आ गई।
शलाका की नजर अब उस पुस्तक के आखिरी पेज पर गई, जिस पर आकृति की आँखें बनी थीं, जो शलाका के भेष में एक धोके की कहानी कह रहीं थीं।
शलाका ने अब वेदांत रहस्यम् को बंद कर दिया। आज उसके सामने लगभग सभी राज खुल गये थे।
अब वह घंटों बैठकर रोती रही।
इस समय शलाका को यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह गलती किसकी माने, आकृति की जिसने आर्यन को धोखा दिया, आर्यन की ....जिसने एक माँ को उसके बालक से जुदा कर दिया या फिर स्वयं की ....जो उस समय आर्यन को बिना बताए, अपनी माँ का पार्थिव शरीर ले, अपने भाइयों के साथ एरियन आकाशगंगा चली गई थी, जिसकी वजह से आर्यन ने मृत्यु का वरण किया।
शलाका अपने ही ख्यालों के झंझावात में उलझी नजर आ रही थी....कभी उसे सब गलत दिख रहे थे, तो कभी सब सही।
काफी देर तक सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंची, कि किसी का नहीं बस समय का दोष था, पर इस समय ने एक ऐसे बालक को भी दंड दिया था, जिसे उस समय दुनिया की किसी चीज का मतलब ही नहीं पता था।
अतः अब शलाका ने सोच लिया था कि यदि वह बालक जिंदा है, तो वह उसे प्राप्त करके ही रहेगी, चाहे इसके लिये उसे ब्रह्मांड का कोना-कोना ही क्यों ना छानना पड़े।
जारी रहेगा_______
बहुत ही शानदार लाजवाब और रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया#154.
चैपटर-4
ऑक्टोपस की आँख: (तिलिस्मा 2.12)
सुयश के साथ अब सभी ऑक्टोपस के क्षेत्र की ओर बढ़ गये।
ऑक्टोपस वाले क्षेत्र की भी जमीन वैसे ही संगमरमर के पत्थरों से बनी थी, जैसे पत्थर नेवले के क्षेत्र में लगे थे। ऑक्टोपस की मूर्ति एक वर्गाकार पत्थर पर रखी थी।
उधर जैसे ही सभी संगमरमर वाले गोल क्षेत्र में पहुंचे, अचानक जमीन के नीचे से, उस गोल क्षेत्र की परिधि में, संगमरमर के पत्थरों की दीवार निकलने लगी।
सबके देखते ही देखते वह पूरा गोल क्षेत्र दीवारों की वजह से बंद हो गया। कहीं भी कोई भी दरवाजा दिखाई नहीं दे रहा था।
“वहां करंट फैला दिया था और यहां पूरा कमरा ही बंद कर दिया।” ऐलेक्स ने कहा- “ये कैश्वर भी ना... भगवान बनने के चक्कर में हमें भगवान के पास भेज देगा।”
सभी ऐलेक्स की बात सुनकर मुस्कुरा दिये।
तभी शैफाली की निगाह नीचे जमीन पर लगे, एक संगमरमर के पत्थर के टुकड़े की ओर गयी, वह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा था।
“कैप्टेन अंकल, यह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा है, यह एक साधारण बात है कि इसमें कोई रहस्य है?” शैफाली ने सुयश को पत्थर का वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।
अब सुयश भी झुककर उस पत्थर के टुकड़े को देखने लगा।
सुयश ने उस टुकड़े को अंदर की ओर दबा कर भी देखा, पर कुछ नहीं हुआ। यह देख सुयश उसे एक साधारण घटना समझ उठकर खड़ा हो गया।
दीवारें खड़ी होने के बाद अब वह स्थान एक मंदिर के समान लगने लगा था। लेकिन उस मंदिर में ना तो कोई खिड़की थी और ना ही कोई दरवाजा।
अब सभी धीरे-धीरे चलते हुए ऑक्टोपस के पास पहुंच गये।
ऑक्टोपस की नेम प्लेट के नीचे यहां भी 2 पंक्तियां लिखी थीं- “ऑक्टोपस की आँख से निकली, विचित्र अश्रुधारा, आँखों का यह भ्रम है, या आँखों का खेल सारा।”
“यह कैश्वर तो कोई कविताकार लगता है, जहां देखो कविताएं लिख रखीं हैं।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।
“अरे भला मानो कि कविताएं लिख रखीं है। कम से कम इन्हीं कविताओं को पढ़कर कुछ तो समझ में आता है कि करना क्या है?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स को देखते हुए कहा- “सोचो अगर ये कविताएं न होतीं तो समझते कैसे? वैसे कैप्टेन आपको इस कविता को पढ़कर क्या लगता है?”
“मुझे तो बस इतना समझ में आ रहा है कि इस ऑक्टोपस की आँखों में कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने ऑक्टोपस की आँखों को देखते हुए कहा।
“कैप्टेन अंकल यह ऑक्टोपस पूरा पत्थर का है, पर मुझे इसकी आँख असली लग रही है।” शैफाली ने कहा- “मैंने अभी उसे हिलते हुए देखा था।”
शैफाली की बात सुन सभी ध्यान से ऑक्टोपस की आँख को देखने लगे। तभी ऑक्टोपस के आँखों की पुतली हिली।
“कविता की पंक्तियों में अश्रुधारा की बात हुई है, मुझे लगता है कि ऑक्टोपस के रोने से कोई नया दरवाजा खुलेगा।” तौफीक ने कहा।
“पर ये ऑक्टोपस रोएगा कैसे?” जेनिथ ने कहा- “कैप्टेन क्यों ना यहां कि भी नेम प्लेट हटा कर देखें। हो सकता है कि यहां भी कुछ ना कुछ उसके पीछे छिपा हो?”
“बहुत ही मुश्किल है जेनिथ, कैश्वर कभी भी तिलिस्मा के 2 द्वार एक जैसे नहीं रखेगा।” सुयश ने कहा- “पर फिर भी अगर तुम देखना चाहती हो तो मैं नेम प्लेट हटा कर देख लेता हूं।”
यह कहकर सुयश ने फिर से तौफीक से चाकू लिया और ऑक्टोपस के पत्थर की नेम प्लेट भी हटा दी।
पर सुयश का सोचना गलत था, यहां भी नेम प्लेट के पीछे एक छेद था, यह देख सुयश ने उसमें झांककर देखा, पर अंदर इतना अंधेरा था कि कुछ नजर नहीं आया।
“कैप्टेन अंकल अंदर हाथ मत डालियेगा, हो सकता है कि यहां भी कोई विषैला जीव बैठा हो।” शैफाली ने सुयश को टोकते हुए कहा।
पर सुयश ने कुछ देर तक इंतजार करने के बाद उस छेद में हाथ डाल ही दिया। सुयश का हाथ किसी गोल चीज से टकराया, सुयश ने उस चीज को बाहर निकाल लिया।
“यह तो एक छोटी सी गेंद है, जिसमें हवा भरी हुई है।” क्रिस्टी ने आश्चर्य से देखते हुए कहा- “अब इस गेंद का क्या मतलब है? मुझे तो यह बिल्कुल साधारण गेंद लग रही है।”
“लगता है कि कैश्वर का दिमाग खराब हो गया है, इतनी छोटी सी चीज को कोई भला ऐसे छिपा कर रखता है क्या?” ऐलेक्स ने गेंद को हाथ में लेते हुए कहा।
तभी गेंद को देख ऑक्टोपस की आँखों में बहुत तेज हरकत होने लगी, पर यह बात शैफाली की नजरों से छिपी ना रह सकी।
“ऐलेक्स भैया, लगता है कि यह गेंद इस ऑक्टोपस की ही है, उसकी आँखों को देखिये, वह आपके हाथों में गेंद देखकर एकाएक बहुत परेशान सा लगने लगा है।” शैफाली ने ऐलेक्स से कहा।
यह देख ऐलेक्स को जाने क्या सूझा, उसने सुयश के हाथ में थमा चाकू भी ले लिया और उस चाकू को हाथ में लहराता हुआ ऑक्टोपस की ओर देखने लगा। ऑक्टोपस की बेचैनी अब और बढ़ गई थी।
ऐलेक्स ने ऑक्टोपस की बेचैनी को महसूस कर लिया और तेज-तेज आवाज में बोला- “अगर मैं इस चाकू से इस गेंद को फोड़ दूं तो कैसा रहेगा।”
ऐसा लग रहा था कि वह ऑक्टोपस ऐलेक्स के शब्दों को भली-भांति समझ रहा है, क्यों कि अब उसकी आँखों में डर भी दिखने लगा।
सुयश को भी यह सब कुछ विचित्र सा लग रहा था, इसलिये उसने भी ऐलेक्स से कुछ नहीं कहा।
तभी ऐलेक्स ने सच में चाकू के वार से उस गेंद को फोड़ दिया।
गेंद के फूटते ही वह ऑक्टोपस किसी नन्हें बच्चे की तरह रोने लगा।
सुयश के चेहरे पर यह देखकर मुस्कान आ गई। वह ऐलेक्स की बुद्धिमानी से खुश हो गया, होता भी क्यों ना...आखिर ऐलेक्स की वजह
से उस ऑक्टोपस की अश्रुधारा बह निकली थी।
सुयश सहित अब सभी की निगाहें ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसुओं पर थीं।
ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसू बहते हुए उसी पत्थर के पास जाकर एकत्रित होने लगे, जो थोड़ा सा जमीन में दबा हुआ था।
यह देख सुयश की आँखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं।
अब वह पक्का समझ गया कि इस दबे हुए पत्थर में अवश्य ही कोई ना कोई राज छिपा है।
जैसे ही ऑक्टोपस के आँसुओं ने उस पूरे पत्थर को घेरा, वह पत्थर थोड़ा और नीचे दब गया।
इसी के साथ ऑक्टोपस की आँखों से निकलने वाले आँसुओं की गति बढ़ गई।
अब उसकी दोनों आँखों से किसी नल की भांति तेज धार निकलने लगी और उन आँसुओं से मंदिर के अंदर पानी भरने लगा।
“अब समझे आँसुओं में क्या मुसीबत थी।” सुयश ने कहा- “अब हमें तुरंत इस मंदिर से बचकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना होगा, नहीं तो हम इस ऑक्टोपस के आँसुओं में ही डूब कर मर जायेंगे।”
“कैप्टेन अंकल, अब इस कविता की पहली पंक्तियों का अर्थ तो पूरा हो गया, पर मुझे लगता है कि इसकी दूसरी पंक्तियों में अवश्य ही बचाव का कोई उपाय छिपा है।” शैफाली ने सुयश को देखते हुए कहा- “और
अगर दूसरी पंक्तियों पर ध्यान दें, तो इसका मतलब है कि ऑक्टोपस की आँख में ही हमारे बचाव का उपाय भी छिपा है।”
सभी एक बार फिर ऑक्टोपस की आँख को ध्यान से देखने लगे, पर ऐलेक्स की निगाह अभी भी उस दबे हुए पत्थर की ओर थी।
ऐलेक्स ने बैठकर उस पत्थर को और दबाने की कोशिश की, पर कुछ नहीं हुआ, तभी ऐलेक्स की निगाह उस पत्थर पर पड़ रही हल्की गुलाबी रंग की रोशनी पर पड़ी, जो कि पहले तो नजर नहीं आ रही थी, पर अब उस पत्थर पर 6 इंच पानी भर जाने की वजह से ऐलेक्स को साफ दिखाई दे रही थी।
ऐलक्स ने उस गुलाबी रोशनी का पीछा करके, उसके स्रोत को जानने की कोशिश की।
वह गुलाबी रोशनी ऑक्टोपस के माथे से आ रही थी।
पानी अब सभी के पंजों के ऊपर तक आ गया था।
ऐलेक्स चलता हुआ ऑक्टोपस के चेहरे तक पहुंच गया, उसकी तेज निगाहें ऑक्टोपस के माथे से निकल रही गुलाबी किरणों पर थीं।
ऐलेक्स ने धीरे से उस ऑक्टोपस के माथे को छुआ, पर माथे के छूते ही वह ऑक्टोपस जिंदा हो गया और उसने अपने 2 हाथों से ऐलेक्स को जोर का धक्का दिया।
ऐलेक्स उस धक्के की वजह से दूर छिटक कर गिर गया।
कोई भी ऑक्टोपस के जिंदा होने का कारण नहीं जान पाया, वह सभी तो बस गिरे पड़े ऐलेक्स को देख रहे थे।
ऑक्टोपस अभी भी पत्थर पर ही बैठा था, पर अब उसके रोने की स्पीड और तेज हो गई थी।
“कैप्टेन उस दबे हुए पत्थर पर एक गुलाबी रोशनी पड़ रही है, जो कि इस ऑक्टोपस के माथे पर मौजूद एक तीसरी आँख से निकल रही है। वह तीसरी आँख इस ऑक्टोपस की त्वचा के अंदर है, इसलिये हमें दिखाई नहीं दे रही है। मैंने उसी को देखने के लिये जैसे ही इस ऑक्टोपस को छुआ, यह स्वतः ही जिंदा हो गया। मुझे लगता है कि उसी तीसरी आँख के द्वारा ही बाहर निकलने का मार्ग खुलेगा।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में सुयश को आगाह करते हुए कहा।
तब तक पानी सभी के घुटनों तक पहुंच गया था।
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश उस ऑक्टोपस की ओर तेजी से बढ़ा, पर सुयश को अपनी ओर बढ़ते देखकर उस ऑक्टोपस ने अपने 8 हाथों को चक्र की तरह से चलाना शुरु कर दिया।
अब सुयश के लिये उस ऑक्टोपस के पास पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया।
यह देख क्रिस्टी आगे बढ़ी और क्रिस्टी ने ऑक्टोपस के हाथों को पकड़ने की कोशिश की, पर ऑक्टोपस के हाथों की गति बहुत तेज थी, क्रिस्टी भी एक तेज झटके से दूर पानी में जा गिरी।
पानी अब धीरे-धीरे ऑक्टोपस की मूर्ति के पत्थर के ऊपर तक पहुंच गया था और सभी कमर तक पानी में डूब गये।
अब सभी एक साथ उस ऑक्टोपस की ओर बढ़े, पर यह भी व्यर्थ ऑक्टोपस के हाथों ने सबको ही दूर उछाल दिया।
“कैप्टेन अंकल हमें जल्दी ही कुछ नया सोचना होगा, नहीं तो यह ऑक्टोपस अपने आँसुओं से हम सभी को डुबाकर मार देगा।” शैफाली ने कहा।
तौफीक ने अब अपनी जेब से चाकू निकालकर उस ऑक्टोपस के माथे की ओर निशाना लगाकर मार दिया।
निशाना बिल्कुल सही था, चाकू ऑक्टोपस के माथे पर जाकर घुस गया।
ऑक्टोपस के माथे की त्वचा कट गई, पर ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से चाकू निकालकर दूर फेंक दिया। अब वह और जोर से रोने लगा।
मगर अब ऑक्टोपस की तीसरी आँख बिल्कुल साफ नजर आने लगी थी।
पानी अब कुछ लोगों के कंधों तक आ गया था।
तभी क्रिस्टी के दिमाग में एक आइडिया आया, उसने पानी के नीचे एक डुबकी लगाई और नीचे ही नीचे ऑक्टोपस तक पहुंच गई।
क्रिस्टी पानी के नीचे से थोड़ी देर ऑक्टोपस के हाथ देखती रही और फिर उसने फुर्ति से उसके 2 हाथों को पकड़ लिया।
ऐसा करते ही ऑक्टोपस के हाथ चलना बंद हो गये।
यह देख क्रिस्टी ने पानी से अपना सिर निकाला और चीखकर सुयश से कहा- “कैप्टेन मैंने इसके हाथों को पकड़ लिया है, अब आप जल्दी से इसके माथे वाली आँख को निकाल लीजिये।”
क्रिस्टी के इतना बोलते ही सुयश तेजी से ऑक्टोपस की ओर झपटा और उसके माथे में अपनी उंगलियां घुसाकर ऑक्टोपस की उस तीसरी आँख को बाहर निकाल लिया।
जैसे ही सुयश ने ऑक्टोपस की आँख निकाली, क्रिस्टी ने उस ऑक्टोपस को छोड़ दिया।
वह ऑक्टोपस अब रोता हुआ छोटा होने लगा और इससे पहले कि कोई कुछ समझता, वह ऑक्टोपस नेम प्लेट वाले छेद में घुसकर कहीं गायब हो गया।
पानी कुछ लोगों की गर्दन के ऊपर तक आ गया था, पर अब ऑक्टोपस के जाते ही पानी भी उस छेद से बाहर निकलने लगा।
कुछ ही देर में काफी पानी उस छेद से बाहर निकल गया।
“लगता है वह ऑक्टोपस का बच्चा अपने पापा से हमारी शिकायत करने गया है?” ऐलेक्स ने भोला सा मुंह बनाते हुए कहा।
“उसकी छोड़ो, वह तो चला गया, पर हमारा यह द्वार अभी भी पार नहीं हुआ है, हमें पहले यहां से निकलने के बारे में सोचना चाहिये।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का कान पकड़ते हुए कहा।
सुयश के हाथ में अभी भी ऑक्टोपस की तीसरी आँख थी, उसने उस आँख को उस दबे हुए पत्थर से टच कराके देखा, पर कुछ भी नहीं हुआ।
यह देख सुयश ने जोर से उस आँख को उस दबे हुए पत्थर पर मार दिया।
आँख के मारते ही एक जोर की आवाज हुई और वह पूरा संगमरमर का गोल क्षेत्र तेजी से किसी लिफ्ट के समान नीचे की ओर जाने लगा।
सभी पहले तो लड़खड़ा गये, पर जल्दी ही वह सभी संभल गये।
सुयश ने उस ऑक्टोपस की आँख को जमीन से उठाकर अपनी जेब में डाल लिया।
“मुझे लग रहा है कि ये द्वार पार हो गया और अब हम अगले द्वार की ओर जा रहे हैं।” जेनिथ ने कहा।
“भगवान करे कि ऐसा ही हो।” क्रिस्टी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा- “जितनी जल्दी यह तिलिस्मा पार हो, उतनी जल्दी हमें घर जाने को मिलेगा।”
लेकिन इससे पहले कि कोई और कुछ कह पाता, वह लिफ्टनुमा जमीन एक स्थान पर रुक गई।
सभी को सामने की ओर एक सुरंग सी दिखाई दी।
सभी उस सुरंग के रास्ते से दूसरी ओर चल दिये।
वह रास्ता एक बड़ी सी जगह में जाकर खुला।
उस जगह को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई सुंदर सी घाटी है।
घाटी के बीचो बीच में एक बहुत ही सुंदर गोल सरोवर बना था। उस सरोवर से कुछ दूरी पर एक कंकाल खड़ा था, जिसका सिर नहीं था, पर उसके एक हाथ में एक सुनहरी धातु की दुधारी तलवार थी।
कंकाल के पीछे की दीवार पर कंकाल के ही कुछ चित्र बने थे, जिसमें उस कंकाल को एक विशाल ऑक्टोपस से लड़ते दिखाया गया था।
“मुझे नहीं लगता कि यह द्वार अभी पार हुआ है।” सुयश ने दीवार पर बने हुए चित्र को देखते हुए कहा।
अभी सुयश ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, कि तभी सरोवर से एक विशाल 50 फुट ऊंचा ऑक्टोपस निकलकर पानी के बाहर आ गया।
“अरे बाप रे, लगता है मैंने सच कहा था, उस छोटे ऑक्टोपस ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया। अब हमारी खैर नहीं।” ऐलेक्स ने चिल्लाते हुए कहा।
पर इस समय किसी का भी ध्यान ऐलेक्स की बात पर नहीं गया, अब सभी सिर्फ उस ऑक्टोपस को ही देख रहे थे।
ऑक्टोपस अपनी लाल-लाल आँखों से सभी को घूर रहा था।
“कैप्टेन अंकल, दीवार पर बने चित्र साफ बता रहे हैं कि यह कंकाल ही अब हमें इस ऑक्टोपस से मुक्ति दिला सकता है, पर मुझे लगता है कि पहले आपको अपने गले से उतारकर यह खोपड़ी इस कंकाल के सिर पर जोड़नी होगी। शायद इसीलिये यह खोपड़ी अभी तक आपके पास थी।” शैफाली ने जोर से चीखकर सुयश से कहा।
सुयश भी दीवार पर बने चित्रों को देख, बिल्कुल शैफाली की तरह ही सोच रहा था, उसने बिना देर किये, अपने गले में टंगी उस खोपड़ी की माला से धागे को अलग किया और उसे कंकाल के सिर पर फिट कर
दिया।
खोपड़ी कंकाल के सिर में फिट तो हो गई, पर वह कंकाल अभी भी जिंदा नहीं हुआ। यह देख सुयश सोच में पड़ गया।
तभी ऑक्टोपस ने सब पर हमला करना शुरु कर दिया।
“सभी लोग ऑक्टोपस से जितनी देर तक बच सकते हो, बचने की कोशिश करो, मैं जब तक कंकाल को जिंदा करने के बारे में सोचता हूं।” सुयश ने सभी से चीखकर कहा और स्वयं ऑक्टोपस की पकड़ से दूर भागा।
“कैप्टेन, आप उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के सिर में लगा दीजिये, वह जिंदा हो जायेगा।” ऐलेक्स ने चीखकर कहा- “क्यों कि उस कंकाल के सिर से भी वैसी ही गुलाबी रोशनी निकल रही है, जैसी उस
ऑक्टोपस के माथे से निकल रही थी और इस कंकाल के माथे पर, उस आँख के बराबर की जगह भी खाली है।”
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश ने कंकाल के माथे की ओर ध्यान से देखा।
ऐलेक्स सही कह रहा था, कंकाल के माथे में बिल्कुल उतनी ही जगह थी, जितनी बड़ी वह ऑक्टोपस की आँख थी।
सुयश ने बिना देर किये अपनी जेब से निकालकर उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के माथे में फिट कर दिया।
माथे में तीसरी आँख के फिट होते ही वह कंकाल जीवित होकर ऑक्टोपस पर टूट पड़ा।
अब सभी दूर हटकर इस युद्ध को देख रहे थे।
थोड़ी ही देर में एक-एक कर कंकाल ने ऑक्टोपस के हाथ काटने शुरु कर दिये।
बामुश्किल 5 मिनट में ही कंकाल ने ऑक्टोपस को मार दिया।
ऑक्टोपस के मरते ही रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और सबकी आँख बंद हो गई।
जब सबकी आँखें खुलीं तो उनके सामने एक दरवाजा था, जिस पर 2.2 लिखा था, सभी उस दरवाजे से अंदर की ओर प्रवेश कर गए।
जारी रहेगा______
बडा ही अप्रतिम शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट हैं भाई मजा आ गया अब ये ऐण्ड्रोवर्स वाले क्या क्या हंगामा करते हैं पृथ्वी पर और उनके कैद से धरा और मयुर किस तरहा से मुक्ति पातें हैं#155.
एण्ड्रोनिका: (आज से 3 दिन पहले.......... 13.01.02, रविवार, 17:00, वाशिंगटन डी.सी से कुछ दूर, अटलांटिक महासागर)
शाम ढलने वाली थी, समुद्र की लहरों में उछाल बढ़ता जा रहा था।
इन्हीं लहरों के बीच 2 साये समुद्र में तेजी से तैरते किसी दिशा की ओर बढ़ रहे थे।
यह दोनों साये और कोई नहीं बल्कि धरा और मयूर थे, जो कि आसमान से उल्का पिंड को गिरता देख वेगा और वीनस को छोड़ समुद्र की ओर आ गये थे।
“क्या तुम्हारा फैसला इस समय सही है धरा?” मयूर ने धरा को देखते हुए कहा- “क्या हमारा इस समय उल्का पिंड देखने जाना ठीक है? वैसे भी समुद्र का क्षेत्र हमारा नहीं है और तुमने कौस्तुभ और धनुषा को खबर भी कर दी है, और ...और अभी तो शाम भी ढलने वाली है। एक बार फिर सोच लो धरा, क्यों कि पानी में हमारी शक्तियां काम नहीं करती हैं। अगर हम किसी मुसीबत में पड़ गये तो?”
धरा और मयूर पानी में मानसिक तरंगों के द्वारा बात कर रहे थे।
“क्या मयूर, तुम भी इस समय शाम, समुद्र और क्षेत्र की बात करने लगे। क्या तुम्हें पता भी है? कि कुछ ही देर में अमेरिकन नेवी इस स्थान को चारो ओर से घेर लेगी, फिर उन सबके बीच किसी का भी छिपकर
अंदर घुस पाना मुश्किल हो जायेगा। इसी लिये मैं कौस्तुभ और धनुषा के आने का इंतजार नहीं कर सकती। हमें तुरंत उस उल्कापिंड का निरीक्षण करना ही होगा।
"हमें भी तो पता चले कि आखिर ऐसा कौन सा उल्का पिंड है? जो बिना किसी पूर्व निर्धारित सूचना के हमारे वैज्ञानिकों की आँखों में धूल झोंक कर, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आ गया। अवश्य ही इसमें कोई ना कोई रहस्य छिपा है? और पृथ्वी के रक्षक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य बनता है कि हम क्षेत्र और दायरे को छोड़कर, एक दूसरे की मदद करें।”
“अच्छा ठीक है...ठीक है यार, ये भाषण मत सुनाओ, अब मैं तुम्हारे साथ चल तो रहा हूं।” मयूर ने हथियार डालते हुए कहा- “तुम्हीं सही हो, मैं गलत सोच रहा था।”
उल्का पिंड को आसमान से गिरे अभी ज्यादा देर नहीं हुआ था।
धरा और मयूर पानी के अंदर ही अंदर, तेजी से उस दिशा की ओर तैर रहे थे।
तभी धरा को बहुत से समुद्री जीव-जंतु उल्का पिंड की दिशा से भाग कर आते हुए दिखाई दिये, इनमें छोटे और बड़े दोनों ही प्रकार के जीव थे।
“ये सारे जीव-जंतु उस दिशा से भागकर क्यों आ रहें हैं?” धरा ने कहा- “और इनके चेहरे पर भय भी दिख रहा है।”
“अब तुमने उनके चेहरे के भाव इतने गहरे पानी में कैसे पढ़ लिये, जरा मुझे भी बताओगी?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अरे बुद्धू मैंने उनके चेहरे के भाव नहीं पढ़े, पर तुमने ये नहीं देखा कि उन सभी जीवों में छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव थे और बड़े जीव हमेशा से छोटे जीवों को खा जाते है। अब अगर सभी साथ भाग रहे हैं और कोई एक-दूसरे पर हमला नहीं कर रहा, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सबको एक समान ही कोई बड़ा खतरा नजर आया है, जिसकी वजह से यह शिकार करना छोड़ अपनी जान बचाने की सोच रहे हैं। ये तो कॉमन सेंस की बात है।” धरा ने मुस्कुराकर कहा।
“कॉमन सेंस...हुंह....अपना कॉमन सेंस अपने ही पास रखो।” मयूर ने धरा को चिढ़ाते हुए कहा- “मैं तो पहले ही समझ गया था, मैं तुम्हें चेक कर रहा था, कि तुम्हें समझ में आया कि नहीं?”
“वाह मयूर जी....आप कितने महान हैं।” धरा ने कटाक्ष करते हुए कहा- “अब जरा रास्ते पर भी ध्यान दीजिये, कहीं ऐसा ना हो कि कोई बड़ी मछली आपको भी गपक कर चली जाये?”
मयूर ने मुस्कुराकर धरा की ओर देखा और फिर सामने देखकर तैरने लगा।
लगभग आधे घंटे के तैरने के बाद धरा और मयूर को पानी में गिरा वह उल्का पिंड दिखाई देने लगा।
वह उल्का पिंड लगभग 100 मीटर बड़ा दिख रहा था।
“यह तो काफी विशालकाय है, तभी शायद यह पृथ्वी के घर्षण से बचकर जमीन पर आने में सफल हो गया।” धरा ने उल्का पिंड को देखते हुए कहा।
अब दोनों उल्का पिंड के पास पहुंच गये।
वह कोई गोल आकार का बड़ा सा पत्थर लग रहा था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह ज्वालामुखी से निकले लावे से निर्मित हो।
“इसका आकार तो बिल्कुल गोल है, इसे देखकर लग रहा है कि यह किसी जीव द्वारा निर्मित है।” मयूर ने कहा।
अब धरा छूकर उस विचित्र उल्का पिंड को देखने लगी। तभी उसे उल्कापिंड पर बनी हुई कुछ रेखाएं दिखाई दीं, जिसे देखकर कोई भी बता देता कि यह रेखाएं स्वयं से नहीं बन सकतीं।
अब धरा ने अपने हाथ में पहने कड़े से, उस उल्का पिंड पर धीरे से चोट मारी। एक हल्की सी, अजीब सी आवाज उभरी।
“यह पत्थर नहीं है मयूर, यह कोई धातु की चट्टान है, बल्कि अब तो इसे चट्टान कहना भी सही नहीं होगा, मुझे तो ये कोई अंतरिक्ष यान लग रहा है, जो कि शायद भटककर यहां आ गिरा है।” धरा के चेहरे पर बोलते हुए पूरी गंभीरता दिख रही थी- “अब इसके बारे में जानना और जरुरी हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि ये पृथ्वी पर आने वाले किसी संकट की शुरुआत हो?”
अब धरा ने समुद्र की मिट्टी को धीरे से थपथपाया और इसी के साथ समुद्र की मिट्टी एक बड़ी सी ड्रिल मशीन का आकार लेने लगी।
अब धरा ने उस ड्रिल मशीन से उस उल्का पिंड में सुराख करना शुरु कर दिया, पर कुछ देर के बाद ड्रिल मशीन का अगला भाग टूटकर समुद्र की तली में बिखर गया, परंतु उस उल्का पिंड पर एक खरोंच भी ना आयी।
अब मयूर ने समुद्र की चट्टानों को छूकर एक बड़े से हथौड़े का रुप दे दिया और उस हथौड़े की एक भीषण चोट उस उल्का पिंड पर कराई, पर फिर वही अंजाम हुआ जो कि ड्रिल मशीन का हुआ था।
हथौड़ा भी टूटकर बिखर गया, पर उस उल्का पिंड का कुछ नहीं हुआ।
“लगता है कि ये किसी दूसरे ग्रह की धातु से बना है और यह ऐसे नहीं टूटेगा....हमें कोई और उपाय सोचना होगा मयूर?” धरा ने कहा।
लेकिन इससे पहले कि धरा और मयूर कोई और उपाय सोच पाते, कि तभी उस उल्का पिंड में एक स्थान पर एक छोटा सा दरवाजा खुला और उसमें से 2 मनुष्य की तरह दिखने वाले जीव निकलकर बाहर आ गये।
उनके शरीर हल्के नीले रंग के थे। उन दोनों ने एक सी दिखने वाली नेवी ब्लू रंग की चुस्त सी पोशाक पहन रखी थी।
उनकी पोशाक के बीच में एक सुनहरे रंग का गोला बना था। एक गोले में A1 और एक के गोले में A7 लिखा था। उन्हें देख धरा और मयूर तुरंत एक समुद्री चट्टान के पीछे छिप गये।
“यह अवश्य ही एलियन हैं।” मयूर ने कहा- “इनके शरीर का रंग तो देखो हमसे कितना अलग है।”
“रंग को छोड़ो, पहले ये देखो कि ये अंग्रेजी भाषा जानते हैं।” धरा ने दोनों की ओर देखते हुए कहा- “तभी तो इनकी पोशाक पर अंग्रेजी भाषा के अक्षर अंकों के साथ लिखे हुए हैं।”
बाहर निकले वह दोनों जीव पानी में भी आसानी से साँस ले रहे थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, जो कि दूर होने की वजह से धरा और मयूर को सुनाई नहीं दे रही थी।
तभी जिस द्वार से वह दोनों निकले थे, उसमें से कुछ धातु का कबाड़ आकर बाहर गिरा, जिसे देख वह दोनों खुश हो गये।
“क्या इन दोनों पर हमें हमला करना चाहिये?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अभी नहीं....अभी तो हमें ये भी पता नहीं है कि ये दोनों हमारे दुश्मन हैं या फिर दोस्त? और ना ही हमें इनकी शक्तियां पता हैं....और वैसे भी समुद्र में हमारी शक्तियां सीमित हैं, पता नहीं यहां हम इनसे मुकाबला कर भी पायेंगे या नहीं?”
धरा के शब्दों में लॉजिक था इसलिये मयूर चुपचाप चट्टान के पीछे छिपा उन दोनों को देखता रहा।
तभी उनमें से A1 वाले ने अंतरिक्ष यान से निकले कबाड़ की ओर ध्यान से देखा। उसके घूरकर देखते ही वह कबाड़ आपस में स्वयं जुड़ना शुरु हो गया।
कुछ देर में ही उस कबाड़ ने एक 2 मुंह वाले भाले का रुप ले लिया। अब A1 ने उस भाले को उठाकर अपने हाथ में ले लिया।
“अब तुम दोनों उस चट्टान से निकलकर सामने आ जाओ, नहीं तो हम तुम्हें स्वयं निकाल लेंगे।” A7 ने उस चट्टान की ओर देखते हुए कहा, जिस चट्टान के पीछे धरा और मयूर छिपे थे।
“धत् तेरे की....उन्हें पहले से ही हमारे बारे में पता है।” मयूर ने खीझते हुए कहा- “अब तो बाहर निकलना ही पड़ेगा। पर सावधान रहना धरा, जिस प्रकार से उस जीव ने, उस कबाड़ से हथियार बनाया है, वह अवश्य ही खतरनाक होगा।”
मयूर और धरा निकलकर उनके सामने आ गये।
“कौन हो तुम दोनों? और हमारी पृथ्वी पर क्या करने आये हो?” धरा ने उन दोनों की ओर देखते हुए पूछा।
“अच्छा तो तुम अपने ग्रह को पृथ्वी कहते हो।” A7 ने कहा- “हम पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा के फेरोना ग्रह से आये हैं। A1 का नाम ‘एलनिको’ है और मेरा नाम ‘एनम’ है। तुम लोगों से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। हम यहां बस अपने एक पुराने दुश्मन को ढूंढते हुए आये हैं और उसे लेकर वापस चले जायेंगे, पर अगर हमारे काम में किसी ने बाधा डाली, तो हम इस पृथ्वी को बर्बाद करने की भी ताकत रखते हैं।”
“अगर हमारी कोई दुश्मनी नहीं है, तो बर्बाद करने वाली बातें करना तो छोड़ ही दो।” मयूर ने कहा- “अब रही तुम्हारे दुश्मन की बात, तो तुम हमें उसके बारे में बता दो, हम तुम्हारे दुश्मन को ढूंढकर तुम्हारे पास पहुंचा देंगे और फिर तुम शांति से उसे लेकर पृथ्वी से चल जाओगे। बोलो क्या यह शर्त मंजूर है?”
“हम किसी शर्तों पर काम नहीं करते।” एलनिको ने कहा- “और हम अपने दुश्मन को स्वयं ढूंढने में सक्षम हैं। इसलिये हमें किसी की मदद की जरुरत नहीं है। अब रही बात तुम्हारी बकवास सुनने की.... तो वह हमनें काफी सुन ली। अब निकल जाओ यहां से।” यह कहकर एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े दो मुंहे भाले को धरा की ओर घुमाया।
भाले से किसी प्रकार की शक्तिशाली तरंगें निकलीं और धरा के शरीर से जा टकराईं।
धरा का शरीर इस शक्तिशाली तरंगों की वजह से दूर जाकर एक चट्टान से जा टकराया।
यह देख मयूर ने गुस्से से पत्थरों का एक बड़ा सा चक्र बनाकर उसे एलनिको और एनम की ओर उछाल दिया।
चक्र पानी को काटता हुआ तेजी से एलनिको और एनम की ओर झपटा।
परंतु इससे पहले कि वह चक्र उन दोनों को कोई नुकसान पहुंचा पाता, एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े भाले को उस चक्र की ओर कर दिया।
चक्र से तरंगें निकलीं और भाले को उसने हवा में ही रोक दिया।
अब एलनिको ने भाले को दांयी ओर, एक जोर का झटका दिया, इस झटके की वजह से, वह मयूर का बनाया चक्र दाहिनी ओर जाकर, वहां मौजूद समुद्री पत्थरों से जा टकराया और इसी के साथ टूटकर बिखर गया।
तभी एनम के शरीर से सैकड़ों छाया शरीर निकले। अब हर दिशा में एनम ही दिखाई दे रहा था।
यह देख मयूर घबरा गया, उसे समझ में नहीं आया कि उनमें से कौन सा एनम असली है और वह किस पर वार करे।
तभी एलनिको ने मयूर का ध्यान एनम की ओर देख, अपना भाला मयूर की ओर उछाल दिया।
एलनिको का भाला आकर मयूर की गर्दन में फंस गया और उसे घसीटता हुआ समुद्र में जाकर धंस गया।
अब मयूर बिल्कुल भी हिल नहीं पा रहा था।
यह देख मयूर ने धरा से मानसिक तरंगों के द्वारा बात करना शुरु कर दिया- “धरा, हम पानी में अपने शरीर को कणों में विभक्त नहीं कर सकते, पानी हमारी कमजोरी है, इसलिये हमें किसी तरह यहां से निकलना ही होगा, बाद में हम अपने साथियों के साथ दोबारा आ जायेंगे इनसे निपटने के लिये।”
यह सुन धरा उठी और एक बड़ी सी समुद्री चट्टान पर जाकर खड़ी हो गई। धरा ने एक बार ध्यान से चारो ओर फैले सैकड़ों एनम को देखा और फिर अपने पैरों से उस समुद्री चट्टान को थपथपाया।
धरा के ऐसा करते ही वह समुद्री चट्टान सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त हो गई और चट्टान का हर एक टुकड़ा नुकीली कीलों में परिवर्तित हो गया और इससे पहले कि एनम कुछ समझता, वह सारी कीलें अपने आसपास मौजूद सभी एनम के शरीर में जाकर धंस गई।
इसी के साथ एनम के सभी छाया शरीर गायब हो गये।
“मुझे नहीं पता था कि पृथ्वी के लोगों में इतनी शक्तियां हैं....तुम्हारे पास तो कण शक्ति है लड़की....पर चिंता ना करो, अब यह कण शक्ति मैं तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे शरीर से निकाल लूंगा।” एलनिको ने कहा और इसी के साथ उसने अपना बांया हाथ समुद्र की लहरों में गोल नचाया।
एलनिको के ऐसा करते ही अचानक बहुत ही महीन नन्हें काले रंग के कण धरा की नाक के पास मंडराने लगे।
धरा इस समय एलनिको के भाले से सावधान थी, उसे तो पता ही नहीं था कि एलनिको के पास और कौन सी शक्ति है, इसलिये वह धोखा खा गई।
उन काले नन्हे कणों ने धरा की नाक के इर्द-गिर्द जमा हो कर उसकी श्वांस नली को अवरोधित कर दिया।
अब धरा को साँस आनी बंद हो गई थी, पर धरा अब भी अपने को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी।
धरा ने खतरा भांप कर समुद्री चट्टान से एक बड़ा सा हाथ बनाया और उस हाथ ने मयूर के गले में फंसा भाला खींचकर निकाल दिया।
अब मयूर आजाद हो चुका था, वह एलनिको पर हमला करना छोड़, लड़खड़ाती हुई धरा की ओर लपका।
तभी एलनिको ने इन काले कणों का वार मयूर पर भी कर दिया। अब मयूर का भी दम घुटना शुरु हो गया था।
“मुझे पता था कि तुम दोनों मेरी चुम्बकीय शक्ति को नहीं झेल पाओगे।” एलनिको ने मुस्कुराते हुए कहा।
कुछ ही देर में धरा और मयूर दोनों मूर्छित होकर, उसी समुद्र के धरातल पर गिर पड़े।
यह देख एलनिको और एनम ने धरा और मयूर को अपने कंधों पर उठाया और अपने यान एण्ड्रोनिका के उस खुले द्वार की ओर बढ़ गये।
जारी रहेगा______
