जहाज के इस विकट खौफनाक सिचुएशन मे पैसेंजर के भय , खौफ , जान बचाने की आखिरी कोशिश , गाॅड को याद करना , पल मे सदियों जी लेने की भावना इत्यादि का बहुत ही खुबसूरत और जीवंत वर्णन किया है आपने ।
ऐसी चीजें फिल्मों मे दिखाना सहज है पर कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करना अत्यंत ही दुष्कर कार्य है ।
एक बार फिर से आपने अपनी लेखनी का लोहा मनवा लिया । आउटस्टैंडिंग डियर ।
लेकिन इस जहाज को हुआ क्या है ? चलते चलते जहाज अचानक से रूक क्यों गई ? जहाज के सभी मशीनरी चाक-चौबंद है , सभी मशीनरी अच्छी तरह से कार्य कर रही है और जहाज क्षतिग्रस्त भी नही हुआ है । फिर जहाज रूका तो रूका , समंदर मे भी समाने लगा है ; ऐसा क्यों ?
लेकिन आपने बात की कि लगता है जैसे जहाज दलदल मे धंसते हुए जा रहा है । समंदर मे दलदल कहां से आ गया ?
शायद यह बरमूडा ट्राइंगल का एक और आश्चर्यजनक क्षेत्र है !
सुयश साहब ने फिर से एज ए कैप्टन हमे निराश किया । इस बार दो कर्मचारी की आहूति उन्होने ले ली । उनके लिए जहाज के धनवान पैसेंजर की जान मायने तो रखती है लेकिन इस जहाज के साधारण और गरीब कर्मचारी की जान बिल्कुल ही मायने नही रखती ।
खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।