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Incest सुहाना सफर और अनचाहे रास्ते

Power Ranger

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सुहाना सफर और अनचाहे रास्ते
Adultery & Incest


मां कुसुम 40 साल 32C 28 34
पापा आलोक 41 साल
चाचाजी विक्रम 45 साल
दादाजी कांतिलाल 65 साल
में 18 साल गोलू (वीर)
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Update 01

हमारे परिवार सहर के सुखी समृद्ध परिवार में से एक था...पापा दादाजी का बनाया हुआ हमारा फैमिली बिजनेस संभाल रहे थे और बड़े चाचा एक बड़े सरकारी अफसर थे...उनकी पत्नी की कुछ साल पहले मूर्ति हो गई और उनकी कोई संतान नहीं है हुए थी...में घर का इकलौता बेटा और बच्चा हु... दादाजी घर में सब बड़े है...

मां एक पड़ी लिखी औरत है.. स्वभाव से बड़ी दयालु और सरल..अपने परिवार से बेहत प्यार करती है...और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है...घर की इकलौती महिला मां ही थी...घर का काम तो नौकर नौकरानी कर लिए करते लेकिन खाना मां ही बनाती थी...

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ये ही मेरी मां कुसुम...मां को सजाना संवारना बड़ा भाता था...न ही उनको कोई रोक टोक थी वो खुल के अपनी खूबसूरती को बाहर आने देती...बीते कुछ सालों में मां ने घर के सारे मर्दों पर अपनी पकड़ बना ली थी... मां की एक पुकार पे सब दौड़ के आ जाते...घर को जैसे बांध के रखने में मां का बड़ा योगदान रहा था...

जैसे की मां के कहने पे ही चाचाजी हफ्ते में एक बार घर जरूर आते... और में अपनी पढ़ाई सिर्फ मां के लिए इसी सहर से करने के लिए तैयार हुआ...और दादाजी को मीठे से दूर मां ही रख पाती है...और उनकी तबियत ठीक रहती है...

मां के बिना घर का पत्ता भी नही हिल पाता...क्या कहा रखा है मां को हर चीज का पता होता है...

उन्हे घूमने फिरने का बड़ा सोख है...और उनका ये सोख हम सब मिलकर पूरा करते है...कभी चाचा उनको साथ ले जाते...कभी पापा...कभी में...और उन्हें सुबह सुबह योगा और दौड़ने जाने का सोख था जिसे दादाजी पूरा करते थे उनका साथ देके...

रात के 8 बजे घर के दरवाजे पर दस्तक्र हुए...मेने दरवाजा खोला तो सामने बड़े पापा...थे...वो बड़े थके हारे मालूम हुए.. उनका काला कठोर मुंह पे हल्की हल्की छेद हो गई थे...बड़ी सी घनी मूछ उन्हें और डरावना बना देती थी...और पुलिस की वर्दी में वो मुझे और डरावने मालूम हुए.....मेरे हाथ में अपनी बैग थमा दिए...और घर में घुस गई...और पापा और दादाजी मिल रहे थे और अपनी नजर घर के चारो और घुमा रहे थे..

"बेटा इतनी देर क्यों लगा दी जल्दी निकल जाता.." दादाजी ने कहा "बापूजी वो काम में याद ही नहीं रहा..." पापा को भी बड़े पापा से बड़ा डर लगता था...वो बड़े सिद्धांत वादी थे और उन्हें हसी मजाक करना जरा भी भाता नहीं था.."भैया कितने साल हो गई आप को वहा गई हुए...आप हमारे गांव वाले प्रधानजी से बात क्यू नही करते उनकी अच्छी पहचान है" पापा ने बोला..और यहां वहा देखने लगे..."तू अब इतने बड़ा हो गया की अपने बड़े भाई को बताएगा कि उसे क्या करना चाहिए..अपने काम से काम रख" बड़े पापा गुस्से से लाल हो गई... दादाजी भी कुछ बोले नही और एक सन्नाटा छा गया....

"गोलू जा पानी तो लेता आ" पापा ने मेरी और देख बोला..."रहने दे गोलू...में कमरे में ही जा रहा हु नहाने जाते हुए पी लूंगा.." बड़े पापा ने तुरत अपनी गहरी आवाज़ में कहा...और रसोई घर की और जाने लगे....

बड़े पापा दरवाजे पे आके अपनी ठहर से गई...उनकी दिल की धड़कने बढ़ रही थी... सामने मां एक लाल रंग की बैकलेस सारी में रसोई बना रही थी...बड़े पापा मां की हल्की सी सवाली सुनहरी पीठ को निहार रहे थे... और दिल में कही अरमान लिए मां को पीछे से पकड़ कर अपनी मजबूत बाहों में जकड़ लिया...

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मां की हल्की सी चीख निकली... बाहर से मेने मां की चीख सुनी और में मां की फिकर में उठा और रसोई घर की और जाने लगा कि दादाजी ने मुझे रोकते हुए कहा "गोलू कुछ नही हुआ यही बैठ... तेरे बड़े पापा गई होंगे तेरी मां के पास उनको अकेला छोड़ दे परेशान मत करना उनको कोई सेतानी नहीं दो दिन...और आलोक बेटा.. तू भी दो दिन ध्यान रखना बहु और विक्रम को अकेला रहने दे..."

वहा बड़े पापा ने मां के गले को चूमते हुए उनके स्तन को अपने हाथ में लेकर सहलाया...मां की हल्की हल्की मुस्कान आ रही थी..."आह चोड़िये जेठ जी...कोई आ जाएगा.."
"कोई नही आएगा...कुसुम कितने दिन के बाद तुन्हारे बदन की खुसबू नसीब हुए है.." बड़े पापा बड़े प्यार से मां को सहलाते हुए अपनी गहरी आवाज में मां के कानो में बोले...

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मां – चलिए आप नहा लीजिए...कितनी बदबू आ रही है..लगता है हफ्ते से नहाए नही हो...(मां तेज तेज हस रही थी ये बोल के... मुझे बाहर तक आवाज और मेरा दिल जैसे बैचेन हो गया...मुझे बड़ी जलन हो रही थी और गुस्सा आया कि बड़े पापा मां के साथ ऐसा क्या कर रहे है कि मां इतना खिल खिला के हस रही है)

बड़े पापा को मां का मजाक अच्छा नही लगता और वो मां को अपनी बाहों से आजाद कर अपने कमरे में चल दिए...बड़े पापा को मां की सेतानया बड़ी तंग करती...वो सब के सामने भी बड़े पापा को छेड़ देती...जो कोई सोच भी न पाई...बड़े पापा को बड़ी सरमिंदगी होती लेकिन मां के आगे नतमस्तक हो जाते... आखिर वही थी जो उन्हें इतना बड़ा दिया करती थी...नहीं तो बड़े पापा जैसे खडूस आदमी से कोई बात भी नहीं करे... हा दिल के अच्छे और ईमानदार थे लेकिन बात करने की समझ उन्हें नहीं आई... वो घरवालों से भी अपने पुलिस वाले अंदाज में बात करते...किसी भी बाहर के मर्द औरत को सक की निगाह से देखते....

जैसे ही बड़े पापा रसोई से बाहर गई...में मां के पास पहुंच गया...और मां को पीछे से कस चिपक गया...मेने उनके कानों में प्यार से पूछा.."मां आज में आप के साथ सोऊंगा प्लीज.." मेने मां के स्तन को हाथ में लेकर सहलाया..."मेरे बच्चे आज नही" मां मेरी और हुए और उन्होंने मेरे माथे को चूम के बोला.."गोलू जा तो टेबल पे प्लेट लगा दे में खाना लेकर आई.." मां की मीठी मीठी आवाज ही मुझे उनका दीवाना बना दिया करती...में मां के हुकुम पे सब भूल काम करने लगा....


 

Ajju Landwalia

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हमारे परिवार सहर के सुखी समृद्ध परिवार में से एक था...पापा दादाजी का बनाया हुआ हमारा फैमिली बिजनेस संभाल रहे थे और बड़े चाचा एक बड़े सरकारी अफसर थे...उनकी पत्नी की कुछ साल पहले मूर्ति हो गई और उनकी कोई संतान नहीं है हुए थी...में घर का इकलौता बेटा और बच्चा हु... दादाजी घर में सब बड़े है...

मां एक पड़ी लिखी औरत है.. स्वभाव से बड़ी दयालु और सरल..अपने परिवार से बेहत प्यार करती है...और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है...घर की इकलौती महिला मां ही थी...घर का काम तो नौकर नौकरानी कर लिए करते लेकिन खाना मां ही बनाती थी...

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ये ही मेरी मां कुसुम...मां को सजाना संवारना बड़ा भाता था...न ही उनको कोई रोक टोक थी वो खुल के अपनी खूबसूरती को बाहर आने देती...बीते कुछ सालों में मां ने घर के सारे मर्दों पर अपनी पकड़ बना ली थी... मां की एक पुकार पे सब दौड़ के आ जाते...घर को जैसे बांध के रखने में मां का बड़ा योगदान रहा था...

जैसे की मां के कहने पे ही चाचाजी हफ्ते में एक बार घर जरूर आते... और में अपनी पढ़ाई सिर्फ मां के लिए इसी सहर से करने के लिए तैयार हुआ...और दादाजी को मीठे से दूर मां ही रख पाती है...और उनकी तबियत ठीक रहती है...

मां के बिना घर का पत्ता भी नही हिल पाता...क्या कहा रखा है मां को हर चीज का पता होता है...

उन्हे घूमने फिरने का बड़ा सोख है...और उनका ये सोख हम सब मिलकर पूरा करते है...कभी चाचा उनको साथ ले जाते...कभी पापा...कभी में...और उन्हें सुबह सुबह योगा और दौड़ने जाने का सोख था जिसे दादाजी पूरा करते थे उनका साथ देके...

रात के 8 बजे घर के दरवाजे पर दस्तक्र हुए...मेने दरवाजा खोला तो सामने बड़े पापा...थे...वो बड़े थके हारे मालूम हुए.. उनका काला कठोर मुंह पे हल्की हल्की छेद हो गई थे...बड़ी सी घनी मूछ उन्हें और डरावना बना देती थी...और पुलिस की वर्दी में वो मुझे और डरावने मालूम हुए.....मेरे हाथ में अपनी बैग थमा दिए...और घर में घुस गई...और पापा और दादाजी मिल रहे थे और अपनी नजर घर के चारो और घुमा रहे थे..

"बेटा इतनी देर क्यों लगा दी जल्दी निकल जाता.." दादाजी ने कहा "बापूजी वो काम में याद ही नहीं रहा..." पापा को भी बड़े पापा से बड़ा डर लगता था...वो बड़े सिद्धांत वादी थे और उन्हें हसी मजाक करना जरा भी भाता नहीं था.."भैया कितने साल हो गई आप को वहा गई हुए...आप हमारे गांव वाले प्रधानजी से बात क्यू नही करते उनकी अच्छी पहचान है" पापा ने बोला..और यहां वहा देखने लगे..."तू अब इतने बड़ा हो गया की अपने बड़े भाई को बताएगा कि उसे क्या करना चाहिए..अपने काम से काम रख" बड़े पापा गुस्से से लाल हो गई... दादाजी भी कुछ बोले नही और एक सन्नाटा छा गया....

"गोलू जा पानी तो लेता आ" पापा ने मेरी और देख बोला..."रहने दे गोलू...में कमरे में ही जा रहा हु नहाने जाते हुए पी लूंगा.." बड़े पापा ने तुरत अपनी गहरी आवाज़ में कहा...और रसोई घर की और जाने लगे....

बड़े पापा दरवाजे पे आके अपनी ठहर से गई...उनकी दिल की धड़कने बढ़ रही थी... सामने मां एक लाल रंग की बैकलेस सारी में रसोई बना रही थी...बड़े पापा मां की हल्की सी सवाली सुनहरी पीठ को निहार रहे थे... और दिल में कही अरमान लिए मां को पीछे से पकड़ कर अपनी मजबूत बाहों में जकड़ लिया...

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मां की हल्की सी चीख निकली... बाहर से मेने मां की चीख सुनी और में मां की फिकर में उठा और रसोई घर की और जाने लगा कि दादाजी ने मुझे रोकते हुए कहा "गोलू कुछ नही हुआ यही बैठ... तेरे बड़े पापा गई होंगे तेरी मां के पास उनको अकेला छोड़ दे परेशान मत करना उनको कोई सेतानी नहीं दो दिन...और आलोक बेटा.. तू भी दो दिन ध्यान रखना बहु और विक्रम को अकेला रहने दे..."

वहा बड़े पापा ने मां के गले को चूमते हुए उनके स्तन को अपने हाथ में लेकर सहलाया...मां की हल्की हल्की मुस्कान आ रही थी..."आह चोड़िये जेठ जी...कोई आ जाएगा.."
"कोई नही आएगा...कुसुम कितने दिन के बाद तुन्हारे बदन की खुसबू नसीब हुए है.." बड़े पापा बड़े प्यार से मां को सहलाते हुए अपनी गहरी आवाज में मां के कानो में बोले...

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मां – चलिए आप नहा लीजिए...कितनी बदबू आ रही है..लगता है हफ्ते से नहाए नही हो...(मां तेज तेज हस रही थी ये बोल के... मुझे बाहर तक आवाज और मेरा दिल जैसे बैचेन हो गया...मुझे बड़ी जलन हो रही थी और गुस्सा आया कि बड़े पापा मां के साथ ऐसा क्या कर रहे है कि मां इतना खिल खिला के हस रही है)

बड़े पापा को मां का मजाक अच्छा नही लगता और वो मां को अपनी बाहों से आजाद कर अपने कमरे में चल दिए...बड़े पापा को मां की सेतानया बड़ी तंग करती...वो सब के सामने भी बड़े पापा को छेड़ देती...जो कोई सोच भी न पाई...बड़े पापा को बड़ी सरमिंदगी होती लेकिन मां के आगे नतमस्तक हो जाते... आखिर वही थी जो उन्हें इतना बड़ा दिया करती थी...नहीं तो बड़े पापा जैसे खडूस आदमी से कोई बात भी नहीं करे... हा दिल के अच्छे और ईमानदार थे लेकिन बात करने की समझ उन्हें नहीं आई... वो घरवालों से भी अपने पुलिस वाले अंदाज में बात करते...किसी भी बाहर के मर्द औरत को सक की निगाह से देखते....

जैसे ही बड़े पापा रसोई से बाहर गई...में मां के पास पहुंच गया...और मां को पीछे से कस चिपक गया...मेने उनके कानों में प्यार से पूछा.."मां आज में आप के साथ सोऊंगा प्लीज.." मेने मां के स्तन को हाथ में लेकर सहलाया..."मेरे बच्चे आज नही" मां मेरी और हुए और उन्होंने मेरे माथे को चूम के बोला.."गोलू जा तो टेबल पे प्लेट लगा दे में खाना लेकर आई.." मां की मीठी मीठी आवाज ही मुझे उनका दीवाना बना दिया करती...में मां के हुकुम पे सब भूल काम करने लगा....

Sabse pehle to ek nayi kahani shuru karne ke liye Hardik Shubhkamnaye Power Ranger Bro

Agli updates ka besabri se intezar rahega
 
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