“क्या हुआ?” रूपाली ने बिस्तर से उठते हुए पुचछा
“बड़े मलिक आपको याद कर रहे हैं” भूषण की आवाज़ आई
“अभी आती हूँ” कहते हुए रूपाली अपने बिस्तर से उठी
उसका ध्यान अपने सपने की और चला गया. पुरुषोत्तम से ये उसकी आखरी मुलाकात थी. इसके बाद पुरुषोत्तम जो गया तो फिर ज़िंदा लौटके नही आया. रूपाली की मोटी मोटी आँखों से आँसू बह निकले.जीतने समय वो पुरुषोत्तम की बीवी रही हमेशा यही होता था जो उसने सपने में देखा था.वो हमेशा उसके करीब आने की कोशिश करता और वो यूँ ही टाल मटोल करती. कभी बिस्तर पे उसका साथ ना देती. उसके लिए चुदाई का मतलब सिर्फ़ टांगे खोलके लेट जाना था. बस इससे ज़्यादा कुच्छ नही पर पुरुषोत्तम ने उसके साथ कभी बदसुलूकी नही की. वो हमेशा की तरह उससे आखरी वक़्त तक वैसे ही प्यार करता रहा और ना ही उसने बिस्तर पर कभी ज़्यादा की ज़िद की. पूछ ता ज़रूर था पर रूपाली के मना कर देने पे हमेशा रुक जाता था. कभी ज़बरदस्ती नही करता था. वो भारी कदमों से अपनी पति की तस्वीर की तरफ गयी और उसपे हाथ फिराती तस्वीर से बातें करने लगी.
“आप फिकर ना करें. जो भी आपकी मौत का ज़िम्मेदार है वो अब ज़्यादा दिन साँसें नही लेगा” उसने भारी आवाज़ में अपने पति की तस्वीर से कहा.
“अपने पति को हमेशा प्यासा रखा और अपने ससुर पे डोरे डाल रही हूँ. वाह रे भगवान” सोचते हुए रूपाली नीचे आई.
भूषण काम ख़तम करके जा चुक्का था. अब हवेली में सिर्फ़ रूपाली और शौर्या सिंग रह गये थे. रूपाली नीचे आई तो शौर्या सिंग बड़े कमरे में बैठे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.
“आओ बहू. बैठो” शौर्या सिंग ने पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा. ”एक बात बताओ. तुमने आखरी बार नये कपड़े कब लिए थे.
ससुर ने पुचछा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने पिच्छले 10 साल में एक नया कपड़ा नही खरीदा. आखरी बार नये कपड़े उसे पुरुषोत्तम ने ही लाके दिए थे.
“जी याद नही. कभी ज़रूरत ही नही पड़ी. हमारे पास पहले से ही इतने कपड़े हैं के हमने सारे पहने ही नही. और वैसे भी जिसे सफेद सारी पहन नी हो उसे नये कपड़े लाके क्या करना” रूपाली ने कहा.
“अब ऐसा नही होगा. आपको सफेद सारी पहेन्ने की कोई ज़रूरत नही.पुरुषोत्तम के चले जाने से आपकी ज़िंदगी ख़तम हो जाए ऐसा हम नही चाहते. हम आपके लिए कुच्छ कपड़े लाए हैं. ये ले जाइए और कल से ये पहना कीजिए.” शौर्या ने पास रखे कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कहा.
“पर लोग क्या कहेंगे?” रूपाली थोड़ा झिझक रही थी.
“उसकी आप चिंता ना करें. वैसे भी अब यहाँ आता कौन है. यहाँ सिर्फ़ आप और हम हैं. आप ये कपड़े ले जाएँ” ठाकुर ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे कोई फ़ैसला सुनाया हो. मतलब सॉफ था. रूपाली आगे कुच्छ नही कह सकती थी. उसे अपने ससुर की बात मान लेनी थी.
रूपाली ने आगे बढ़के कपड़े उठाए.
“और एक बात और” शौर्या सिंग ने कहा”घर में आपको घूँघट करने की ज़रूरत नही. आपका चेहरा हमसे छुपा नही है.”
“जी जैसा आप कहें” रूपाली कपड़े उठाके कमरे से बाहर जाने लगी “आप कपड़े बदलके बाहर आ जाएँ. हम खाना लगा देते हैं”
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रूपाली कपड़े लेके उपेर अपने कमरे में पहुँची और कपड़े एक एक करके देखने लगी. सब कपड़े रंगीन थे. ब्लाउस सारे लो नेक थे और ज़्यादातर ट्रॅन्स्परेंट थे. केयी ब्लाउस तो बॅकलेस थे. उसने कपड़ो की तरफ देखा और मुस्कुरा उठीं. शौर्या सिंग को फसाना इतना आसान होगा ये उसने सोचा नही था पर अगले ही पल उसने अपने सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. 10 साल से वो इंसान सिर्फ़ शराब के नशे में डूबा रहा. किसी औरत के पास नही गया और आज जब एक जवान औरत खुद इतना नज़दीक आ गयी तो बहू बेटी का लिहाज़ कहाँ रह जाता है. फिर तो सामने सिर्फ़ एक जवान जिस्म नज़र आता है. और वो खुद कहाँ उससे अलग थी. क्या वो खुद गरम नही हो गयी थी अपने ससुर को नहलाते हुए. उसे भी तो 10 साल से मर्द की जिस्म की ज़रूरत थी.
रूपाली ने कपड़े समेटकर अलमारी में रखे और फिर नीचे आई. शौर्या सिंग खाने की टेबल पे उसका इंतेज़ार कर रहा था.
वो किचन में गयी और खाना लाके टेबल पे लगाने लगी. ऐसा करते हुए उसे कई बार शौर्या सिंग के नज़दीक आने पड़ा. उसने सॉफ महसूस किया के उसके ससुर की नज़र कभी सारी से नज़र आ रहा उसके नंगे पेट पे थी तो कभी ब्लाउस में बंद उसकी बड़ी बढ़ी छातियों की निहार रही थी. उसने खामोशी से खाना लगाया और खुद भी सामने बैठ कर खाने लगी.
“खाना अच्छा बना लेती हैं आप” शौर्या सिंग ने कहा
“जी शुक्रिया” रूपाली ने अपने ससुर के कहे अनुसार घूँघट हटा दिया. उसकी नज़र शौर्या सिंग की नज़र से टकराई तो उसमें वासना की ल़हेर सॉफ नज़र आई.
“हम जो कपड़े लाए थे वो नही पहने आपने?”
“जी सुबह पहेन लूँगी. फिलहाल खाना लगाना था तो ऐसे ही आ गयी”
रूपाली दोबारा उठकर शौर्या सिंग को खाना परोसने लगी. वो ठाकुर के दाई तरफ खड़ी प्लेट में खाना डालने के लिए झुकी तो सारी का पल्लू सरक कर सामने रखी दाल में जा गिरा.
“ओह….माफ़ कीजिएगा” रूपाली फ़ौरन सीधी खड़ी होकर सारी झटकने लगी.
शौर्या सिंग की नज़र मानो उसकी छाती से चिपक कर रह गयी. वो सारी का पल्लू हटाकर उसे सॉफ कर रही थी. ब्लाउस में बंद उसकी छातियों को देख कर शौर्या सिंग सिर्फ़ ये सोचते रह गये के ये छातियाँ नंगी कैसी दिखती होंगी, कितनी बड़ी होंगी, कितनी गोरी होंगी अंदर से.
“मैं कुच्छ और ला देती हूँ” रूपाली ने सारी का पल्लू ठीक किया. उसे पता था के शौर्या सिंग इतनी देर से क्या घूर रहा था.
“नही ठीक है. हम खा चुके” कहते हुए शौर्या सिंग उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गये.
रूपाली बर्तन उठा कर किचन की तरफ बढ़ चली. एक वक़्त था जब नौकरों की लाइन होती थी घर में और आज उसे खुद बर्तन सॉफ करने पड़ रहे थे. ये सोचते हुए वो किचन की सफाई करने लगी. एक बात जो सोचकर वो खुश हो रही थी वो ये थी के हमेशा नशे में डूबा रहने वाला उसका ससुर आज शराब के करीब तक नही गया था. पूरा दिन अपने पुर होश में रहा.
आहट सुनकर वो पाली तो देखा के शौर्या सिंग किचन के दरवाज़े पे खड़ा था.
“बहू ज़रा भूषण को बाहर उसके कमरे से बुला लाओ. हमारे पैरों में दर्द हो रहा है. थोड़ा मालिश कर देगा आकर.” ठाकुर ने कहा
“पर वो तो अब तक सो चुके होंगे” रूपाली पलटकर बोली
“तो क्या हुआ. जगा दो” शौर्या सिंग ने ठाकुराना अंदाज़ में कहा.
“इस उमर में क्यूँ उनकी नींद खराब करें. हम ही कर देते हैं” रूपाली ज़रा शरमाते हुए बोली
“आप? आप कर सकेंगी?” शौर्या सिंग ज़रा चौंकते हुए बोला
“हां क्यूँ नही. आप कमरे में चलिए. हम तेल ज़रा गरम करके ले आते हैं” रूपाली ने कहा
शौर्या सिंग पलटकर अपने कमरे में चले गये. रूपाली ने एक कटोरी में थोड़ा तेल लिया और उसे हल्का सा गरम करके ससुर के पिछे पिछे कमरे में दाखिल हो गयी.
शौर्या सिंग सिर्फ़ अपनी धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो उतार चुके थे.
“हमने सोचा के जब आप कर ही रही तो ज़रा कमर पे भी तेल लगा देना” ठाकुर ने कहा
“जी ज़रूर” कहते हुए रूपाली ने अपने सारी का पल्लू अपनी कमर में घुसा लिया.
शौर्या सिंग कमरे के बीच में खड़ा हुआ था. रूपाली ने बिस्तर की तरफ देखा और जैसे इशारे में ठाकुर को लेट जाने के लिए कहा. बदले में शौर्या सिंग ने कहा के खड़े हुए ही ठीक है.
रूपाली ठाकुर के सामने जाकर अपने घुटनो पे बैठ गयी.
ठाकुर ने अपनी धोती खींचकर अपने घुटनो के उपेर कर ली.रूपाली ने अपने हाथों में थोड़ा तेल लिया और अपने ससुर की पिंदलियों पे लगाके मसल्ने लगी. उसके च्छुने भर से ही ठाकुर के मुँह से एक लंबी आह छूट गयी. जाने कितने अरसे बाद एक औरत आज दूसरी बार उनके इतना करीब आई थी. उसके हाथ जिस्म पे लगे ही थे के ठाकुर के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी थी. समझ नही आ रहा था के अपने आपको कोसें के अपने मरे हुए बेटे की बीवी का सोचकर लंड खड़ा हो रहा है या फिर सिर्फ़ सामने बैठे हुए एक जवान खूबसूरत जिस्म पे ध्यान दें. रूपाली अब उनके घुटनो के उपेर तक तेल लगाके हाथों से रगड़ रही थी. ठाकुर ने नीचे की तरफ देखा तो लंड ने जैसे आंदोलन कर दिया हो. रूपाली सामने बैठी हुई थी. उसने सारी का पल्लू साइड में पेटिकोट के अंदर घुसा रखा था जिससे वो एक तरफ को सरक गया था. उसका क्लीवेज पूरी तरह से नज़र आ रहा था और उपेर से देखने के कारण ठाकुर की नज़र उसकी छातियों के बीच गहराई तक उतर गयी और वो ये अंदाज़ा लगाने लगे के इन चुचियों का साइज़ क्या होगा. लंड अब पुर जोश पे था.
रूपाली सामने बैठी अपने ससुर की टाँगो की सख़्त हाथों से मालिश कर रही थी. उसे पूरी तरह खबर थी के खड़े उसे उसके ससुर की नज़र उसके ब्लाउस के अंदर तक जा रही थी और वो उसकी छातियों का नज़ारा कर रहा था. उसने जान भूझ कर अपनी सारी को इस तरह से लपेटा था के उसका क्लीवेज खुल जाए और जो वो करना चाहती थी वो हो गया. उसका ससुर खड़ा हुआ उसकी चुचियाँ निहार रहा था और गरम हो रहा था. इस बात का सबूत उसका खड़ा होता लंड था जो धोती में एक टेंट जैसा आकर बना रहा था. रूपाली की साँसें उखाड़ने लगी थी. एक तो मरद की इतना नज़दीक, उपेर से ऐसी हालत में जिसमें उसकी छातियों की नुमाइश हो रही थी, तीसरे वो एक मर्द के जिस्म को काफ़ी वक़्त बाद हाथ लगा रही थी और सबसे ज़्यादा उसके ससुर का खड़ा होता लंड जिसे रूपाली बड़ी मुश्किल से नज़र अंदाज़ कर रही थी. दिल तो कर रहा था के बस नज़र जमाएँ उसे देखती ही रहे.
बैठे बैठे उसके घुटने में दर्द हुआ तो रूपाली ने ज़रा अपनी पोज़िशन बदली और अगले पल जो हुआ उसने उसके दिल की धड़कन को दुगना कर दिया. जैसे ही वो उपेर की उठी उसके ससुर का खड़ा लंड सीधा उसके माथे पे लगा. 10 साल बाद कोई लंड उसके जिस्म से लगा था. हल्के से टच ने ही रूपाली के अंदर वासना की लहरें उठा दी और उसे अपनी टाँगों के बीच होती नमी का एहसास होने लगा. जब बात बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो वो उठकर शौर्या सिंग के पिछे आ गयी और पिछे बैठ कर टाँगो पे तेल मलने लगी.
रूपाली का माथा उनके लंड से टकराया तो शौर्या सिंग का जिस्म काँप उठा. लगा के लंड को अभी धोती से आज़ाद करके बहू के हाथ में थमा दें पर दिल पे काबू रखा. लंड खड़ा है इस बात का अंदाज़ा तो बहू को हो गया होगा. जाने क्या सोच रही होगी ये सोचकर शौर्या सिंग थोड़ा झिझके पर अगले ही पल जब रूपाली उठकर पिछे जा बैठी तो ठाकुर का दिल डूबने लगा. बहू को लंड का अंदाज़ा हो गया था इसलिए वो पिछे की तरफ चली गयी. ज़रूर इस वक़्त मुझे दिल में गालियाँ दे रही होगी. नफ़रत कर रही होगी मुझसे. सोच रही होगी के कितना गिरा हुआ इंसान हूँ मैं जो खुद अपनी बहुर के लिए ऐसा सोच रहा हूँ.
रूपाली अब अपने ससुर की टाँगो पे तेल लगा चुकी थी. उसने फिर तेल की कटोरी उठाई खड़ी हो गयी. उसने अपनी हथेली में तेल लिया और ठाकुर की कमर पे तेल लगाने लगी.हाथ ससुर की कमर पे फिसलने लगे. पीछे से भी धोती में खड़ा हुआ ठाकुर का लंड उसे सॉफ दिख रहा था और उसके अपने घुटने जवाब दे रहे थे. टाँगो के बीच की नमी बढ़ती जा रही थी. उसने कमर पे तेल और लगाकर सख़्त हाथो से मालिश शुरू कर दी और ऐसी ही एक कोशिश में उसका हाथ कमर से फिसल गया और वो लड़खड़ा कर पिछे से शौर्या सिंग के साथ जा चिपकी. उसने दोनो हाथों से अपने ससुर के जिस्म को थाम लिया ताकि गिरे नही और शौर्या सिंग के साथ लिपट सी गयी. दोनो चूचियों ठाकुर की कमर पे जाकर दब गयी और रूपाली के मुँह से आह निकल गयी. वो एक पल के लिए वैसे ही ठाकुर को थामे खड़ी रही और फिर शर्माके अलग हो गयी.
पर इन कुच्छ पलों ने ही ठाकुर को काफ़ी कुच्छ समझा दिया. अचानक से बहू का हाथ फिसला और फिर जैसे कमाल हो गया. बहू की दोनो चुचियों उनकी कमर पे आके दब गयी और बहू उनसे लिपट गयी. वो जानते थे के ऐसा उसने गिरने से बचने के लिए किया है पर जब वो अगले कुच्छ पल अलग नही हुई तो शौर्या सिंग को अजीब लगा. कमर पे छातियाँ अभी भी दबी हुई थी और ठाकुर का खुद पे काबू करना मुश्किल हो रहा था. बहुत दिन बाद चुचियों का स्पर्श उनके जिस्म को मिला था. उनकी साँसें उखाड़ने लगी और पूरा ध्यान कमर पे दबी चुचियों पे चला गया. और फिर जो हुआ वो सुनके ठाकुर के दिमाग़ में केयी बातें सॉफ हो गयी. उन्हें थामे थामे बहू के मुँह से निकली आह की आवाज़ वो बखूबी जानते थे. ऐसी आह औरत के मुँह से तब ही निकलती है जब वो गरम होती है. तो आग दोनो तरफ बराबर थी. अगर उनका लंड खड़ा हो रहा था तो रूपाली की चूत में भी आग लग रही थी.
रूपाली अपने ससुर से अलग हुए और फिर कमर पे तेल लगाने लगी. फिर उसने अपने हाथों से ठाकुर को इशारा किया के वो अपनी दोनो बाँहे उपेर उठाए. ठाकुर ने आर्म्स उपेर उठाई और रूपाली जिस्म के दोनो तरफ तेल लगाने लगी. इस कोशिश में वो ठाकुर के काफ़ी करीब आ चुकी थी और उसकी चुचियाँ फिर ठाकुर की कमर पे दबने को तैय्यार थी. रूपाली से और रहा नही गया. उसकी अपनी वासना उसे पागल कर रही थी. उसने हाथ जिस्म ठाकुर के साइड से सरका कर उसकी छाती पे तेल लगाने लगी. ऐसा करने से उसे अपने ससुर के और करीब आना पड़ा और उसकी छातियाँ फिर ठाकुर की कमर से जा लगी.उसके जिस्म में जैसे गर्मी और ठंडक एक साथ उठ गयी. ठंडक मर्दाना जिस्म के इतना करीब होके और गर्मी उसकी टाँगो के बीच उसकी चूत में. वो ठाकुर के सीने पे तेल मलने लगी और पिछे हाथ हिलने से उसकी दोनो छातियाँ ठाकुर की कमर पे घिसने लगी.
शौर्या सिंग का अब खुद पे काबू रखना मुश्किल हो गया था. रूपाली अब उनकी कमर पे तेल लगा रही थी और पिछे से उसकी दोनो छातियाँ उनकी कमर पे दब रही थी. ये बात सॉफ थी के बहू अपनी चुचियों को उनकी कमर पे और ज़्यादा घिस रही थी, और उनके करीब होके चुचियाँ कमर पे दबा रही थी. उसके मुँह से निकलती आह सीधा उनके कानो में पड़ रही थी. ठाकुर ने अपना हाथ बहू के हाथ पे रखा और उसे सहलाने लगे. दूसरे हाथ से उन्होने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और लंड को बाहर निकाला. रूपाली उनसे लगी खड़ी थी. हाथ छाती पे तेल लगा रहे थे, चुचियाँ कमर पे दब रही थी और उसका सिर उनके कंधे पे टेढ़ा रखा हुआ था. उन्हें रूपाली का हाथ धीरे से पकड़के नीचे किया और अपने लंड पे ले जाके टीका दिया.
रूपाली की वासना से हालत खराब थी. वो और ज़ोर से अपने ससुर के साथ चिपक गयी थी और छातियाँ ज़ोर ज़ोर से उनकी कमर पे रगड़ रही थी. वो जानती थी के अब तक शौर्या सिंग जान गये होंगे के वो भी गरम हो चुकी है पर इस बात की अब उसे कोई परवाह नही थी. वो उनकी छाती को अब मालिश के लिए नही सहला रही थी. अब इस सहलाने में सिर्फ़ और सिर्फ़ वासना थी. उसके मुँह से निकलती आह इस बात का सॉफ सबूत थी के वो चुदना चाहती थी. लंड लेना चाहती थी अपने अंदर. टाँगो खोल देना चाहती थी आज 10 साल बाद. उसने अपना सर ठाकुर के कंधे पे रख दिया और अपने ससुर के जिस्म से चिपक गयी. फिर धीरे से उसे एहसास हुआ के ठाकुर ने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया है. मतलब आग दोनो तरफ लग चुकी थी और दोनो को ही इस बात का अंदाज़ा था के आग पुर जोश पे है. ठाकुर के हाथ ने रूपाली के हाथ को नीचे सरकाना शुरू किया और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसके हाथ में एक लंबा सख़्त डंडा सा कुच्छ आ गया.
ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.
रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.
बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.