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Incest हवेली by The_Vampire (Completed)

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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हवेली ..14

रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.

हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.

रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.

शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.

उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.

"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था

"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.

"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.

भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.

थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा

"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा "नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.

"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.

"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.

"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"

रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.

रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.

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रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.

उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.

"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?

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andyking302

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हवेली ..2



पर जब शौर्य सिंह ने उसे पहली बार देखा तो देखते ही रह गये. वो सादगी में भी बला की खूबसूरत लग रही थी. ऐसी ही तो बहू वो ढूँढ भी रहे थे अपने बेटे के लिए. जो उनके बेटे की तरह सीधी साधी हो, पूजा पाठ करती हो और उनके परिवार का ध्यान रख सके. बस फिर क्या था, बात आगे बढ़ी और 2 महीनो में रूपाली हवेली की सबसे बड़ी बहू बनकर आ गयी.

उसके जीवन में पुरुष का संपर्क पहली बार सुहागरात को उसके पति के साथ ही था. वो कुँवारी थी और अपनी टाँगें ज़िंदगी में पहली बार पुरुषोत्तम के लिए ही खोली. पर उस रात एक और सच उस पर खुल गया. सीधा साधा दिखनेवाला पुरुषोत्तम बिस्तर पर बिल्कुल उल्टा था. उसने रात भर रूपाली को सोने ना दिया. दर्द से रूपाली का बुरा हाल था पर पुरुषोत्तम था कि रुकने का नाम ही नही ले रहा था. वो बहुत खुश था के उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली और रूपाली हैरत में अपने पति को देखती रह गयी.

यही समस्या अगले 3 साल तक उनकी शादी में आती रही. पुरुषोत्तम हर रात उसे चोदना चाहता था और रूपाली की रतिक्रिया में रूचि बस नाम भर की थी. वो बस नंगी होकर टांगे खोल देती और पुरुषोत्तम उसपर चढ़कर धक्के लगा लेता. यही हर रात होता रहा और धीरे धीरे पुरूषोत्तम उससे दूर होता चला गया.

रूपाली को इस बात का पूरा ज्ञान था कि उसका पति उससे दूर जा रहा है पर वो चाहकर भी कुछ ना कर सकी. पुरुषोत्तम बिस्तर पे जैसे एक शैतान का रूप ले लेता और वो उसके आक्रामक अंदाज़ का सामना ना कर पाती. उसके लिए इन सब कामों की ज़रूरत बस बच्चे पैदा करने के लिए थी, ना की ज़िंदगी का मज़ा लेने के लिए. धीरे धीरे बात यहाँ तक आ पहुँची के दोनो बिस्तर पे नंगे होते पर बात नही करते थे. और फिर एक दिन जब पुरुषोत्तम की हत्या का पता चला तो रूपाली की दुनिया ही लूट गयी. वो इतनी बड़ी हवेली में जैसे अकेली रही गयी और पहली बार उसे अपने पति की कमी का एहसास हुआ.

उसके बाद जो हुआ वो उसने बस एक मूक दर्शक बनके देखा. खून में सनी तलवार जैसे हवेली में आम बात हो गयी थी. कोई किसी से बात नही करता था. अगले दस साल तक यही सन्नाटा हवेली में छाया रहा और इन सबका सबसे बुरा असर उसकी सास सरिता देवी पर हुआ जो बिस्तर से जा लगी. हर तरह की दवा की गयी पर उनकी बीमारी का इलाज ना हो सका. और 10 साल बाद उन्होने दम तोड़ दिया.

उस रात रूपाली अपनी सास के पास ही थी. घर में और कोई भी ना था. ठाकुर शौर्य सिंह शराब के नशे में कहीं बाहर निकल गये थे. दूसरा बेटा तो कई दिन तक घर ना आता था और बेटी कामिनी अपने भाई कुलदीप के पास विदेश में थी. नौकर तो कबके हवेली छोड़के भाग चुके थे. बस एक वही थी जो अपनी सास को मरते हुए देख रही थी, वहीं उनके पास बैठे हुए. सरिता देवी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था जब उन्होने आखरी साँस ली, पर उससे पहले उन्होने जो कहा उसने रूपाली को हैरत में डाल दिया. मरने से ठीक पहले सरिता देवी ने उसकी आँखों में देखा और उससे एक वादा लिया के वो इस हवेली की खुशियाँ वापस लाएगी. रूपाली की समझ में नही आया के कैसे पर एक मारती हुई औरत का दिल रखने के लिए उसने वादा कर दिया. फिर सरिता देवी ने जो कहा वो रूपाली की समझ में बिल्कुल नही आया. उनके आखरी शब्द अब भी उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे “ बेटी, औरत का जिस्म दुनिया में हर फ़साद की सबसे बड़ी जड़ है और ऐसा हमेशा से होता आया है. महाभारत और रामायण तक इसी औरत के जिस्म की वजह से हुई. पर इस जिस्म के सहारे फ़साद ख़तम भी किया जा सकता है” और इसके बाद सरिता देवी कुछ ना कह सकी.


उसकी सास की कही बात का मतलब अब उसे समझ आ रहा था. मरती हुई उस औरत ने उससे एक वादा लिया और ये भी बता गयी के उस वादे को पूरा कैसे करना है. कैसे इस पूरे परिवार को एक साथ फिर इस हवेली की छत के नीचे लाना है. ये बात अगर आज से दस साल पहले रूपाली ने सुनी होती तो शायद वो अपनी सास को ही थप्पड़ मार देती पर इन 10 सालों में जो उसने देखा था उसके कारण भगवान से उसकी श्रद्धा जैसे ख़तम ही हो गयी थी.

रूपाली अपने बिस्तर से उठी और कुछ सोचती हुई खिड़की तक गयी. खिड़की से बाहर का नज़ारा देखकर उसका रोना छूट पड़ा. आज जो आँगन शमशान जैसा लग रहा है कभी इसी आँगन में देर रात तक महफ़िल जमा होती थी. नाच गाना होता था. हसी गूंजा करती थी. उसने अपने आँसू पोंछते हुए खिड़की पर पर्दे डाल दिए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. फिर उसने पलटके कमरे में लगे बड़े शीशे में अपने आप को देखा.
वो 33 साल की हो चुकी थी. पिछले 10 साल में उसने सिर्फ़ और सिर्फ़ दुख देखे थे पर इन सबके बावजूद जो एक चीज़ नही बदली थी वो था उसका हुश्न. वो आज भी वैसे ही खूबसूरत थी जैसे आज से 13 साल पहले जब दुल्हन बनकर इस कमरे में पहली बार आई थी. हन उस वक़्त थोड़ी दुबली पतली थी और अब उसका पूरा जिस्म गदरा गया था. तब वो एक लड़की थी और आज एक औरत. कमरे में ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी फेली हुई थी और नीले रंग की साड़ी में उसका रूप ऐसा खिल रहा था जैसे चाँदनी में किसी झील का पानी.
रूपाली ने अपना हाथ अपने कंधे पे रखा और साड़ी का पल्लू सरका दिया. दूसरे ही पल शरम से खुद उसकी अपनी आँखें झुक गयी. पहली बार आज उसने अपने आपको इस नज़र से देखा था. ये नज़र तो उसने अपने आप पर तब भी नही डाली थी जब वो शादी के जोड़े में तैय्यार हो रही थी. उसने धीरे से अपनी नज़र उठाई और फिर अपने आप को देखा. नीले रंग का ब्लाउस और उसमें क़ैद उसके 36 साइज़ की छातियाँ और नीचे उसकी गोरी नाभि. उसके होंठो पे एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने टेढ़ी होकर अपनी छातियों को निहारा. जैसे दो पर्वत सर उठाए खड़े हों. गौरव के साथ और नीचे उसकी नाभि जैसे धूप में सॉफ सफेद चमकता कोई रेगिस्तान. उसने अपना एक हाथ अपने पेट पे फेरते हुए अपने दाई तरफ के स्तन पे रखा और जैसे अपने आप ही उसके हाथ ने उसकी छाति को दबा दिया. दूसरे ही पल उसके शरीर में एक ल़हेर से दौड़ गयी और उसके घुटने कमज़ोर से होने लगे. पहली बार उसने अपने आप को इस अंदाज़ में छुआ था और आज जो महसूस कर रही थी वो तो तब भी महसूस ना किया था जब यही छातियाँ उसके पति के हाथों में होती थी, जब वो इनको अपने मुँह में लेके चूसा करता था.

रूपाली ने जैसे एक नशे की सी हालत में अपने ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. उसे 10 साल से किसी मर्द ने नही छुआ था और 10 साल में ना ही कभी उसके जिस्म ने कोई ख्वाहिश की पर आज उसकी सास की कही बात ने सब कुछ बदल दिया. एक एक करके ब्लाउस के सारे बटन खुल गये और अगले ही पर वो सरक कर नीचे ज़मीन पे जा गिरा. ब्रा में अपनी छातियों को देखकर रूपाली एक बार फिर शर्मा सी गयी पर अगले ही पल नज़र उठाकर अपने आपको देखने लगी. सफेद रंग की ब्रा में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ जैसे खुद उसपर ही क़यामत ढा रही थी. ब्रा उसकी छातियों पे कसा हुआ था और आधे स्तन ब्रा से उभरकर बाहर आ रहे थे. जैसे किसी ग्लास में शराब ज़रूरत से ज़्यादा डाल दी गयी हो और अब छलक कर बाहर गिर रही हो. रूपाली अपना एक हाथ कमर तक ले गयी और ब्रा के हुक को खोलने की कोशिश करने लगी. जैसे ही खुद उसके हाथ का स्पर्श उसकी नंगी कमर पे हुआ, उसे फिर अपने घुटने कमज़ोर होते से महसूस हुए.

धीरे से ब्रा का हुक खुला और अगले ही पल उसके दोनो स्तन आज़ाद थे. दो पर्वत जो 33 साल की उमर होने के बाद भी ज़रा नही झुके थे. आज भी उसी अकड़ से अपना सर उठाए मज़बूत खड़े थे. रूपाली को खुद अपने अप्पर ही गर्व महसूस होने लगा. उसके दोनो हाथों ने उसकी छातियों को थाम लिया और धीरे धीरे सहलाने लगे. उसके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी और पहली बार उसे अपनी टाँगो के बीच नमी का एहसास हुआ और उसका ध्यान अपने शरीर के निचले हिस्से की तरफ गया. उसकी टांगे मज़बूती से एक दूसरे से चिपक गयी जैसे बीच में उठती ख्वाहिश को पकड़ना चाह रही हो और छातियों पर उसकी पकड़ और सख़्त हो गयी, जैसे दबके बरसो से दबी आग को बाहर निकलना चाह रही हो.उसने फ़ौरन अपनी साड़ी को पेटिकोट से निकाला और बिस्तर की तरफ उछाल दिया. फिर उसके हाथ पेटिकोट को ऐसे उतरने लगे जैसे उसमें आग लग गयी हो. थोड़ी ही देर बाद उसका पेटिकोट भी बिस्तर पर पड़ा था और और वो सिर्फ़ एक पॅंटी पहने अपने आप को निहार रही थी. और तब उसे एहसास हुआ के उसने पिच्छले 10 साल में अपने उपेर ज़रा भी ध्यान नही दिया. पॅंटी ने उसकी चूत को तो ढक लिया था पर दोनो तरफ से बॉल बाहर निकल रहे थे. वजह ये थी के 10 साल में उसने एक बार भी नीचे शेव नही किया था. पति के मरने के बाद कभी ज़रूरत ही महसूस नही हुई. जब वो अपनी आर्म्स के नीचे के बॉल सॉफ करती तो बस वही रुक जाती . कभी चूत की तरफ ध्यान ही ना जाता. यही सोचते हुए उसने अपनी पॅंटी उतारी और पहली बार अपने आपको पूरी तरह से नंगी देखा.

शीशे में नज़ारा देखकर रूपाली के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसे अपनी पूरी जवानी कभी एहसास ना हुआ के वो इतनी खूबसूरत है. कभी पूजा पाठ से ध्यान ही ना हटा. जैसे आज उसने अपने आपको पहली बार पूरी तरह नंगी देखा हो. उसका लंबा कद,36 साइज़ के बड़े बड़े भारी स्तन, पतली कमर और भारी उठी हुई गांद. दो लंभी लंबी सफेद टाँगें और उनकी बीच बालों में छिपि उसकी चूत. वो पलटी और अपनी कमर से लेके अपनी गांड तक को निहारा. वो जो देख रही थी वो किसी भी मर्द को पागल कर देने के लिए काफ़ी थी. ये सोचते हुए वो मुस्कुराइ. बस एक चीज़ से छूट कारा पाना है और वो थे उसकी चूत को छिपा रहे लंबे बाल. उसने अपना एक हाथ उठे हुए बालों पे फिराया और चौंक पड़ी. बॉल गीले थे. उसका हाथ टाँगो के बीच आया तो एहसास हुए के खुद अपने आपको देख कर उसकी चूत गीली हो चुकी थी. जैसे ही उसने अपनी चूत को थोड़ा सहलाया उसके घुटने जवाब दे गये और वो ज़मीन पे गिर पड़ी. आज पहली बार उसने जाना के चूत गीला होना किसे कहते हैं और क्यूँ उसका पति उसे चोदने से पहले लंड पे तेल लगता था. क्यूंकी कभी भी उसकी चूत गीली नही होती थी और इसलिए उसे लंड लेने में तकलीफ़ होती थी.


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Bohot hi kamuk drushya tha last vaal
 

andyking302

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हवेली ..3



रूपाली ने ज़मीन पे पड़े पड़े ही अपने घुटने मोड और टांगे फैलाई. चूत खुलते ही उसे एसी की ठंडक का एहसास अपनी चूत पे हुआ. हाथ चूत तक आया और फिर धीरे धीरे उपर नीचे होने लगा. उसकी आँखें आनंद के कारण बंद होती चली गयी और मुँह से एक लंबी आ निकल गयी. हाथ थोड़ा और नीचे आया तो वो जगह मिली जहाँ उसके पति का लंड अंदर घुसता था. जगह मिली तो एक अंगुली अपने आप ही अंदर चली गयी. जोश में रूपाली ने गर्देन झटकी तो शीशे में फिर खुदपे नज़र पड़ी. नीचे कालीन पे पड़ा उसका नंगा जिस्म जैसे दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ लग रहा था. बिखरे बॉल, मूडी कमर, छत की तरफ उठे हुए स्तन, जोश और एसी की ठंडी हवा के कारण सख़्त हो चुके निपल्स, खोली हुई लाबी टाँगें, गीली खुली हुई उसकी चूत और उसकी चूत को सहलाता उसका हाथ. इस नज़रे ने खुद उसके जोश को सीमा के पार पहुँचा दिया और फिर जैसे उसकी चूत और हाथ में एक जंग छिड़ गयी. मुँह से लंबी आह निकालने लगी और बदन अकड़ता चला गया.

जब जोश का तूफान ठंडा हुआ तो रूपाली के जिस्म में जान बाकी ना रही थी. उसने अपने आपको इतना कमज़ोर कभी महसूस ना किया था. बदन में जो ल़हेर उठी थी आज से पहले कभी ना उठी थी. उसकी चूत से पानी निकल कर उसकी गांद तक को गीला कर चुक्का था. उसने फिर अपने आप को शीशे में निहारा तो मुस्कुरा उठी. आज जैसे उसने अपने आप को पा लिया था. वो थोड़ी देर वैसे ही पड़ी अपने नंगे जिस्म को देखती रही और फिर जब उठने की कोशिश की तो दर्द की एक ल़हेर उसके सर में उठी. अपने सर पे हाथ फेरा तो 2 बातों को एहसास हुआ. एक के उसने जोश में अपना सर ज़मीन पे पटक लिया था जिसकी वजह से सर में दर्द हो रहा था और दूसरा चूत सहलाते गर्मी इतनी ज़्यादा हो गयी थी के चूत से बाल तक तोड़ लिए थे जो अभी भी उसकी उंगलियों के बीच फसे हुए थे. उसने अपने सर को सहलाया और अचानक उसकी हसी छूट पड़ी. आज उसे पता था के उसे क्या करना है.

रूपाली यूँ ही ज़मीन पे काफ़ी देर तक नंगी ही पड़ी रही और उसे पता ही नही चला के कब उसकी आँख लग गयी. जब नींद खुली तो सुबह के 5 बाज रहे थे.उसने कल रात ही सोच लिया था के उसे क्या करना है और कैसे करना है. अब तो बस सोच को अंजाम देने का वक़्त आ गया था.

उसने उठकर अपने कपड़े पहने और बॉल ठीक करके नीचे आई. घर में अभी भी हर तरफ सन्नाटा था. वो खामोश कदम रखते अपने ससुर के कमरे तक पहुँची. दरवाज़ा खुला था. वो अंदर दाखिल हो गयी. ठाकुर शौर्या सिंग नशे में धुत सोए पड़े थे. शराब की बॉटल अभी तक हाथ में थी. एक नज़र उनपर डालकर रूपाली का जैसे रोना छूट पड़ा. एक वक़्त था जब शौर्या सिंग का शौर्या हर तरफ फेला था. हर कोई उन्हें इज़्ज़त की नज़र से देखता था, उनका अदब करता था. शराब को कभी उन्हें कभी भी हाथ ना लगाया था. और आज उसी इंसान से हर कोई नफ़रत करता है, हर तरफ उसके नाम पे थुका जाता है.

रूपाली ने अपने ससुर के हाथ से शराब की बॉटल लेके एक तरफ रख दी. अगर हवेली की इज़्ज़त को दोबारा लाना है तो सबसे पहले उसे अपने ससुर को इस 10 साल की लंबी नींद से जगाना होगा, ये बात वो बहुत आछे से जानती थी. एक शौर्या सिंग ही हैं जो सब कुच्छ दोबारा ठीक कर सकते हैं और अभी तो एक सवाल का जवाब उसे और चाहिए थे, के उसके पति को मारने की हिम्मत किसने की थी. किसकी जुर्रत हुई थी के हवेली की खुशियों पे नज़र लगाए.

रूपाली बाहर बड़े कमरे में रखे सोफे पे आके बैठ गयी. उसे इंतेज़ार था घर के एकलौते नौकर भूषण का. भूषण ने अपनी सारी ज़िंदगी इसी हवेली की सेवा करते गुज़ार दी थी और बुढ़ापे में भी अपने ज़िंदगी के आखरी दीनो में हवेली का वफ़ादार रहा. उसने वो सब देखा जो हवेली में हुआ पर कभी गया नही. यूँ तो अब वो ही हवेली का सारा काम करता था पर अब उसके कामों में एक काम और जुड़ गया था. 24 घंटे नशे में धुत ठाकुर का ख्याल रखना. उसके दिन की शुरुआत भी ठाकुर की जगाने और उनके नहाने का इन्तेजाम करने से ही होती थी.
थोड़ी ही देर में रूपाली को नौकर के कदमों की आहट सुनाई दे गयी.
“अरे बहू आप? इतनी सुबह?” भूषण ने पुचछा.

“हां वो आपसे कुच्छ काम था. मेरा कल का व्रत था और आज पूजा के बाद ही मैं कुच्छ खा सकती हूँ. अभी देखा तो घर में पूजा का समान ही नही है. आप जाकर पूजा की सामग्री ले आइए. क्या क्या लाना है मैं सब इस काग़ज़ पे लिख दिया है” रूपाली ने काग़ज़ का एक टुकड़ा भूषण की तरफ बढ़ाते हुए कहा. लाल मंदिर हवेली से तकरीबन 100 किलोमीटर की दूरी पे था और भूषण 4-5 घंटे से पहले वापिस नही आ सकता था ये बात रूपाली अच्छी तरह जानती थी.

“जैसा आप कहें” भूषण ने काग़ज़ का टुकड़ा लेते हुए कहा. “ पर घर का काम?”

“वो सब मैं देख लूँगी. आप जल्दी ये सब समान ले आइए” रूपाली ने उसे जाने का इशारा करते हुए कहा.
बहू की भगवान में कितनी श्रद्धा है. कितना पूजा पाठ करती है और फिर भी उपेरवाले ने बेचारी को भरी जवानी में ऐसे दिन दिखाए. ये सोचता हुआ भूषण धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ गया.

बाहर सवेरे का सूरज दिखना शुरू हो गया था. अब वक़्त था ठाकुर को जगाने का. रूपाली अपने कमरे में पहुँची और अपनी ब्रा और पॅंटी उतार फेंकी. विधवा होने के कारण उसे हमेशा सफेद सारी में ही रहना पड़ता था पर उसमें भी उसका हुस्न देखते ही बनता था. ब्रा ना होने के कारण सफेद ब्लाउस में उसकी दोनो छातियाँ हल्की हल्की नज़र आने लगी थी. रूपाली ने आईने में एक नज़र अपने उपेर डाली और सारी का पल्लू थोड़ा सा एक तरफ कर दिया और ब्लाउस का उपेर का एक बटन खोल दिया. सफेद ब्लाउस में अब उसकी चूचियाँ पल्लू ना होने के कारण और ज़्यादा नज़र आने लगी थी. निपल तो सॉफ देखा जा सकता था और ब्लाउस का एक बटन खुल जाने के बाद उसका क्लीवेज किसी की भी धड़कन रोक देने के लिए काफ़ी था.

अपने आप को देखकर रूपाली फिर मुस्कुरा उठी.वो अभी ठाकुर को जाकर जगाने का सोच ही रही थी के नीचे से शौर्य सिंह की आवाज़ आई. वो चिल्लाकर भूषण को आवाज़ दे रहे थे. रूपाली ने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया, सर पे घूँघट डाला और तेज़ कदमो से चलती नीचे बड़े कमरे में आई.

“जी पिताजी”

उसकी आवाज़ सुन शौर्य सिंह पलटे.

“भूषण कहाँ है बहू”

“जी उन्हें मैने लाल मंदिर भेजा है. घर में पूजा की सामग्री नही है. मेरा कल से व्रत था जो मुझसे पूजा के बाद ख़तम करना है” रूपाली ने सोचा समझा जवाब दिया.

“ह्म. ठीक है” शौर्य सिंह एक नज़र बहू पे डाली और कुच्छ कह ना सके पर चेहरे पे आई झुंझलाहट रूपाली ने देख ली थी.

“आपके नहाने का पानी हमने गरम कर दिया है और बाथरूम में है. आप नहा लीजिए तब तक हम नाश्ता बना देते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्य सिंह अब भी नशे में धुत थे ये बात रूपाली से छुपि नही. कदम अब भी लड़खड़ा रहे थे.
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Rupali ki to shurwat kar dali hey
 

andyking302

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हवेली ..4



“ठीक है” कहते हुए शौर्य सिंह वापिस अपने कमरे में जाने के लिए पलटे और लड़खड़ा गये. घुटना सामने रखे सोफे से टकराया और वो गिरने लगे. रूपाली ने फ़ौरन आगे बढ़के सहारा दिया और इस चक्कर में उसकी साड़ी का पल्लू उसका सर से सरक कर नीचे जा गिरा.

“संभलके पिताजी” रूपाली ने अपने ससुर के सीने के दोनो तरफ बाहें डाली और उन्हें गिरने से बचाया. शौर्य सिंह का एक हाथ उसके सारी के बीच नंगे पेट पे आया और दूसरा उसके कंधे पे. कुच्छ पल के लिए उसका सीना रूपाली की चुचियों से दब गया. जब संभले तो एक नज़र रूपाली पे डाली. वो अभी तक उन्हें सहारा दे रही थी इसलिए सारी का पल्लू ठीक नही किया था. शौर्य सिंह ने आज दूसरी बार उसका चेहरा देखा था.
पहली बार जब उसे पहली बार उसके बाप के घर देखा था और आज. वो आज भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा. और फिर नज़र चेहरे से हटके उसके गले से होती उसकी चुचियों पे आ गयी जो ब्रा से बाहर निकलके गिरने को हो रही थी. सफेद रंग के ब्लाउस में निपल सॉफ नज़र आ रहे थे. दूसरे ही पल उन्होने शरम से नज़र फेर ली.

पर ससुर की नज़र को रूपाली से बची नही. वो जानती थी के ससुर जी ने वो सब देख लिया है जो वो दिखाना चाहती थी. जब शौर्य सिंह संभले तो उसने अलग हटके अपने सारी ठीक करी.

“आप थोड़ी देर यहीं बैठ जाइए. मैं तब तक आपके लिए चाय ला देती हूँ” कहते हुए उसने ससुर जी को वहीं बिठाया और किचन की तरफ बढ़ गयी. किचन में जाकर उसने एक प्याली में चाय निकाली और फिर ब्लाउस में से वो छोटी सी बॉटल निकाली जो उसकी माँ ने शादी से पहले उसे दी थी.

“ये एक जड़ी बूटी है. ये पुरुष में काम उत्तेजना जगाती है.इसे अपने पास रखना. अगर कभी तेरा पति बिस्तर पे तेरा साथ ना दे रहा हो तो उसे ये पिला देना. फिर वो तुझे रात भर सोने नही देगा” ये बात उसकी माँ ने उसे मुस्कुराते हुए बताई थी. उस वक़्त रूपाली ये बात सुनके शरम से गड़ गयी थी और उसका दिल किया था के इसे फेंक दे. पर फिर जाने क्या सोचकर रख ली थी और आज यही चीज़ उसके काम आ रही थी. माँ तो रही नही पर उनकी चीज़ आज काम आई सोचते हुए रूपाली ने आधी बॉटल चाय की प्याली में मिला दी.
ठाकुर को चाय की प्याली थमाकर वो उनके नहाने का पानी बाथरूम में रखने चली गयी. वापिस आई तो ठाकुर चाय ख़तम कर चुके थे.

“हमें तो पता ही नही था के आप इतनी अच्छी चाय बनाती हैं बेटी” शौर्य सिंह ने कहते हुए चाय की प्याली नीचे रखी “शुक्रिया पिताजी” कहते हुए रूपाली चाय की प्याली उठाने को झुकी और शौर्य सिंह का कलेजा उनके मुँह को आ गया. बहू के झुकते ही उसका क्लीवेज फिर उनकी आँखो के सामने एक पल के लिए आया और उन्होने अपने जिस्म में एक हरकत महसूस की. लंड ने जैसे एक ज़माने के बाद आज अंगड़ाई ली हो. ठाकुर को अपने ऊपर आश्चर्य हुआ. वो हमेशा सोचते थे के अपने काम पे उन्हें पूरा काबू है पर आज उनकी बेटी समान बहु को देख कर उनका जिस्म उन्हें धोखा दे रहा था. उन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नही था के ये कमाल उनकी चाय में मिली जड़ी बूटी का था.

रूपाली चाय की प्याली रखकर वापिस आई तो देखा के ठाकुर उठने की कोशिश कर रहे हैं पर नशे के कारण कदम लड़खड़ा रहे थे. उसने फिर आगे बढ़के सहारा दिया.

“आइए हम आपको बाथरूम तक ले चलते हैं” कहते हुए रूपाली ने ठाकुर को सहारा दिया. ठाकुर शौर्य बहू का कंधा पकड़के खड़े हुए. रूपाली ने एक हाथसेउनका पेट पकड़कर एक हाथ से उनका दूसरा हाथ पकड़ रखा था जो उसके कंधे पे था. उसके हाथ की नर्माहट और उसके जिस्म की गर्माहट शौर्य सिंह सॉफ महसूस कर सकते थे. अंजाने में ही उनकी नज़र फिर बहु के ब्लाउस पे चली गयी. क्लीवेज तो ना दिखा क्यूँ साड़ी पूरी तरफ से चुचियों के ऊपर थी पर इस बात का अंदाज़ा ज़रूर हो गया के ब्लाउस का अंदर बहु की छातियाँ कितनी बड़ी बड़ी हैं.

धीरे कदमों से दोनो बाथरूम तक पहुँचे. ठाकुर को अंदर छ्चोड़कर रूपाली बाहर कमरे में आई ही थी के अंदर बाथरूम में ज़ोर की एक आवाज़ आई. वो भागकर फिर बाथरूम में पहुँची तो देखा के शौर्य सिंह नीचे गिरे पड़े थे.

“ओह पिताजी. आपको चोट तो नही आई” उसने अपने ससुर को उठाके बिठाया.

“नही कोई ख़ास नही. पैर फिसल गया था पर मैने दीवार का सहारा ले लिया इसलिए ज़्यादा ज़ोर से नही गिरा.” ठाकुर ने अपनी कमर सहलाते हुए जवाब दिया.

“ये कम्बख़्त भूषण. इसे पता है के हमें नहलाने का काम इसका है फिर भी सुबह सुबह गया ” ठाकुर ने गुस्से में कहा.

“ग़लती हमारी है पिताजी. हमने भेजा था.” रूपाली ने कहा“फिर भी. उसे सोचना चाहिए था.” ठाकुर ने फिर अपनी कमर पे हाथ फिराया.

“लगता है आपकी कमर में चोट आई है. हमें दिखाइए” कहते हुए रूपाली ठाकुर के पिछे आई और इससे पहले के वो कुच्छ कहते उनके कुर्ते को ऊपर उठाकर कमर देखने लगी शौर्य सिंह जैसे हक्के बक्के रह गये. वो मना करना चाहते थे पर बहू ने इंतेज़ार ही नही किया.

“ज़्यादा चोट नही आई पिताजी. हल्की सी खरोंच है” रूपाली ने कुर्ता फिर नीचे करते हुए कहा.

“ह्म्*म्म्म…” ठाकुर बस इतना ही कह सके.

“आप बैठिए. हम आपको नहला देते हैं वरना आप फिर गिर जाएँगे.” रूपाली ने कहा
ठाकुर उसे मना करना चाहते थे पर शरीर में उठी काम उत्तेजना ने चुप कर दिया. रूपाली ने उनका कुर्ता पकड़के उतारा और ठाकुर ने अपने दोनो हाथ हवा में उठाकर उसकी मदद की. अब जिस्म पे सिर्फ़ एक धोती रह गयी.

“घूँघट में नहलाओगी? कुच्छ नज़र आएगा?” ठाकुर ने मुस्कुराते हुए पुचछा.

रूपाली ने अपने चेहरे से घूँघर हटा दिया और सारी का पल्लू अपनी कमर में पेटिकोट के साथ फँसा लिए. अब उसका पल्लू उसके ब्लाउस के बीच से जा रहा था और एक भी छाती को नही ढक रहा था. शौर्या सिंग ने उसका चेहरे को सॉफ तरह इतनी नज़दीक से पहली बार देखा था. उन्होने उसपे एक भरपूर नज़र डाली और दिल ही दिल में तारीफ किए बिना ना रह सके. और फिर नज़र जैसे अपने आप उसकी छातियो से आके चिपक गयी जो अब पल्लू हट जाने के वजह से ब्लाउस में सॉफ नज़र आ रही थी.

रूपाली ने अपने ससुर के शरीर पे पानी डालना शुरू किया. पानी वो इस अंदाज़ में डाल रही थी के आधा पानी ठाकुर के ऊपर गिरता और आधा उसके अपने ऊपर. थोड़ी ही देर में ठाकुर के साथ साथ वो भी पूरी तरह भीग चुकी थी. उसका ब्लाउस उसकी छातियों से चिपक गया था. अंदर ब्रा ना होने के कारण अब उस ब्लाउस का होना ना होना एक बराबर था. वो ठाकुर के सामने खड़ी थी जिसकी वजह से उसकी छातियों का भरपूर नज़ारा उसके ससुर को मिल रहा था. उसने साबुन उठाया और अपने ससुर के सर पे लगाना शुरू किया.

उधर शौर्य सिंह का अपने ऊपर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. सालों से उन्होने किसी को नही चोदा था और आज एक औरत का जिस्म इतने करीब था. उनकी बहू झुकी हुई उनके सर पे साबुन लगा रही थी. पानी से भीगा ब्लाउस अब जैसे था ही नही. उसकी दोनो चूचियाँ उनके सामने सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली उनके इतना करीब थी के वो अगर अपना मुँह हल्का सा आगे कर दें तो उसके क्लीवेज को चूम सकते थे.
रूपाली घूमकर ठाकुर के पिछे आई और कमर पे साबुन लगाने लगी. बुढ़ापे में भी अपने ससुर का जिस्म देखकर उसकी मुँह से जैसे वाह निकल पड़ी थी. इस उमर में इतना तन्द्रुस्त जिस्म. बुढ़ापे का कहीं कोई निशान नही,चौड़ी छाती, मज़ब्बूत कंधे. उसे इस बात का भी अंदाज़ा था के ठाकुर एकटूक उसकी चूचियों को ही घूर रहे थे और यही तो वो चाहती भी थी. अचानक वो आगे को गिरी और और अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर के कंधो पे रखके दबा दी.

“माफ़ कीजिएगा पिताजी. पेर फिसल गया था” कहते हुए तो खड़ी हुई और पानी डालकर साबुन धोने लगी.
अचानक उसकी नज़र बैठे हुए ठाकुर की टाँगो की तरफ पड़ी और उसकी आँखें खुली रह गयी. उसके ससुर का लंड खड़ा हुआ था ये धोती में भी सॉफ देखा जा सकता था. सॉफ पता चलता था के लंड कितना लंबा और मोटा है. रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के लंड इतना लंबा और मोटा भी हो सकता है. उसके पति का तो शायद इसका आधा भी नही था. एक बार को तो उसे ऐसा लगा के हाथ आगे बढ़के पकड़ ले.अपने दिल पे काबू करके रूपाली ने नहलाने का काम ख़तम किया और मुड़कर बाथरूम से बाहर निकल गयी.

शौर्य सिंह की नज़र तो जैसे बहू की छातियों से हटी ही नही. जब वो नहलाकर जाने के लिए मूडी तो उनका कलेजा जैसे फिर उनके मुँह को आ गया. साड़ी भीग जाने की वजह से रूपाली की गांड से चिपक गयी थी और गांड के बीच की दरार में जा फसी थी. उसकी उठी हुई गांड की गोलैईयों को देखकर ठाकुर के दिल में बस एक ही बात आई.

“बहुत सही नाम रखा इसके माँ बाप ने इसका. रूपाली”

पानी में भीगी रूपाली जैसे भागती हुई अपने कमरे में पहुँची. इस सारे कार्यक्रम में उसका खुद का जिस्म जैसे दहक उठा था. अगर वो 2 मिनट और बाथरूम में रुक जाती तो उसे पता था के वो खुद अपने ससुर का लंड अपने हाथ में ले लेती. कमरे में घुसते ही उसे अपने जिस्म से भीगे कपड़े उतार के फेकने शुरू किए. नंगी होकर वो बिस्तर पे जा गिरी और एक बार फिर उसकी उंगलियो की चूत से जुंग शुरू हो गयी.

उधर रूपाली के जाते ही शौर्य सिंह का हाथ अपनी धोती तक पहुँच गया. उन्हें याद भी ना था के आखरी बार अपने हाथ से कब काम चलाया था उन्होने. शायद बचपन में कभी. और आज बहू ने उनसे ये काम बुढ़ापे में करवा दिया. लंड को हाथ से हिलाते शौर्य सिंह ने जैसे ही बहू के नंगे जिस्म की कल्पना अपने नीचे की तो पुरे शरीर में जैसे रोमांच की एक ल़हेर सर से पावं तक दौड़ गयी.

चूत में लगी आग ठंडी होकर जब उंगलियों पे बहने लगी तो रूपाली ने उठकर अपने कपड़े समेटे. दिल तो चाह रहा था के अभी ससुर जी के सामने जाके टांगे खोल दे पर उसने अपने उपेर काबू रखा. पहल उसने शौर्य सिंह से ही करनी थी वरना सारा खेल बिगड़ सकता था. उसे ऐसी बनना था के शौर्य सिंह लट्टू की तरह उसी की आगे पिछे घूमता रहे. कपड़े बदलकर भीगे हुए कपड़ो को सूखने के लए वो अपने कमरे की बाल्कनी में आई तो उसे अपना पहले देवर तेजवीर सिंह की गाड़ी आती दिखाई दी.
तेजवीर सिंह को ज़्यादातर लोग कुल का कलंक कहते थे. वजह थी उसकी अययाशी की आदत. औरतों के बाज़ार में उसका आना जाना था, नशे की उसे लत थी. अक्सर हफ्तों तक घर वापिस नही आता था पर किसी की हिम्मत कभी नही हुई के उसे पलटके कुच्छ कहे. ऐसा रौब था उसका. उसका बाप तक उसके आगे कुच्छ नही कहता था. तेज अपनी मर्ज़ी का आदमी था. जो चाहा करता. आज भी वो 2 हफ्ते बाद घर वापिस आया था.

तेज का कमरा जहाँ था वहाँ तक जाने के लिए उसे रूपाली के कमरे की आगे से होके गुज़रना पड़ता था. वो हमेशा रुक कर पहले अपनी भाभी का हाल पुछ्ता था और फिर अपने कमरे तक जाता था. आज भी ऐसा ही होगा ये बात रूपाली जानती थी. वो पलटकर अपने कमरे तक वापिस पहुँची और कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. कार पार्क करके यहाँ तक पहुँचने में तेज को कम से कम 5 मिनट्स का टाइम लगेगा. ये सोचे हुए वो बाथरूम में पहुँची. अपने सारे बाल गीले किए और अपनी सारी और ब्लाउस उतार दिया. अब सिर्फ़ एक काले रंग के पेटिकोट और उसी रंग के ब्रा में वो शीशे के सामने आके खड़ी हो गयी, जैसे अभी नहा के निकली हो. दरवाज़ा उसके पिछे था और वो शीशे में देख सकती थी. थोड़ी देर वक़्त गुज़रा और उसे तेज के कदमो के आवाज़ आई. जैसे जैसे कदम रखने की आवाज़ नज़दीक आती रही वैसे वैसे रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ती रही. उसके जिस्म में शरम, वासना और डर की अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और उसे तेज का चेहरा नज़र आया.

तेजविर सिंह 2 हफ्ते बाद घर कुच्छ पैसे लेने के लिए लौटा था. जो पैसे वो लेके गया था वो रंडी चोदने और शराब पीने में उड़ा चुक्का था. उसने गाड़ी हवेली के सामने रोकी और अंदर दाखिल हुआ. सामने ही उसके बाप का कमरा था पर उसने वहाँ जाना ज़रूरी नही समझा. वैसे भी वो सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए आया था. पैसे लेके उसने वापिस चले जाना था. वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. रास्ते में भाभी का कमरा पड़ता था. उनका हाल वो हमेशा पुछ्ता था. रूपाली पे उसे दया आती थी. बेचारी भारी जवानी में इस वीरान हवेली में क़ैद होके रह गयी थी. वो रूपाली के कमरे के सामने रुका और दरवाज़ा हल्का सा खोला ही था के उसका गला सूखने लगा.


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Bohot hi badiya लाजवाब update bhai jann

Ab rupali ek kadm badhaye ja rahi hey
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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हवेली ..14

रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.

हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.

रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.

शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.

उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.

"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था

"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.

"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.

भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.

थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा

"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा "नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.

"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.

"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.

"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"

रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.

रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.

रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.

उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.

"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?

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Gajab Kya hi kahu is story ka
Shandar👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
Thanks to kaamdev Bhai
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Kamdev Bhai, aaj sabhi updates padhi, ek se badhkar ek he sabhi.........

Rupali ka itne saalo baad ye janane ka utsuk hona ki uske pati ka hatyara kaun he............kuch ajib sa hi laga...(mujhe)

Fir pati ke hatyare ko dhundhane ke liye apne sasur aur apne naukar se bhi sex karna...........aur apne devar ko bhi dana dalna..........

Lekin is beech ye note kiya ki.........is kahani me bhushan ka kirdar bahut hi aham he............ye jaisa dikhta he, vaisa to bilkul bhi nahi he..........

Agle updates ki pratiksha rahegi
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हवेली ..14

रूपाली के अंदर जान बाकी नही थी. वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. बश झुकी खड़ी थी. पीछे से उसके ससुर ने एक हाथ से उसकी गांद और दूसरे हाथ से उसकी एक चूची पकड़ रखी थी. थोड़ी दूर खड़ा भूषण अब ज़ोर ज़ोर से हस रहा था. एक लंबी मोटी से चीज़ उसकी चूत में अब भी और अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी.

हड़बड़ा कर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो एक सपना देख रही. उसके पूरा बदन पसीने से भीग चुका था और वो सूखे पत्ते की तरफ काँप रही थी. ठाकुर अब उसकी साइड में नही थे और वो अकेली ही बिस्तर पे आधी नंगी पड़ी थी. उसे बहुत ज़ोर से सर्दी लग रही थी. हाथ लगाया तो देखा के उसका माथा किसी तवे की तरह गरम हो चुका था. सपना जैसे अब भी उसकी आँखों के सामने घूम रहा था और भूषण के हस्ने की आवाज़ अब भी उसके कान में थी.

रूपाली लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठी. खड़ी होते ही खुली हुई साड़ी ज़मीन पे जा गिरी. रूपाली ने झुक कर उसे उठाया पर बाँधने की कोई कोशिश नही की. सामने से ब्लाउस खुला हुआ था और उसकी चूचियाँ बाहर लटक रही थी. रूपाली ने साडी को अपने सामने पकड़ा और चूचियों को ढका. वो धीरे धीरे चलती ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और इधर उधर देखा. हवेली सुनसान पड़ी थी. भूषण भी कहीं नज़र नही आ रहा था. वो धीमे कदमों से सीढ़ियाँ चढ़ते अपने कमरे में पहुँची और फिर जाकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. उसके जिस्म में बिल्कुल जान नही थी. पूरा बदन आग की तरह गरम हो रहा था. सर्दी भी उसे बहुत लग रहा था. माथा गरम हो चुका था और बुखार की वजह से आँखें भी लाल हो रही थी. रूपाली बिस्तर पे पड़े पड़े ही अपने जिस्म से कपड़े हटाए और नंगी होकर बाथरूम में आई. दरवाज़े का सहारा लिए लिए ही उसने बाथटब में पानी भरा और नहाने के लिए टब में उतर गयी.

शाम ढल चुकी थी. रूपाली अब भी अपने कमरे में ही थी. उसने सुबह से कुच्छ नही खाया था और ना ही अपने कमरे से निकली थी. बुखार अब और तेज़ और हो चुका था और रूपाली के मुँह से कराहने की आवाज़ निकलने लगी थी. उसने कई बार बिस्तर से उठने की कोशिश की पर नाकाम रही. गर्मी के मौसम में भी उसने अलमारी से निकालकर रज़ाई ओढ़ रखी थी पर सर्दी फिर भी नही रुक रही थी. वो बिस्तर पे सिकुड सी गयी. जब दर्द की शिद्दत बर्दाश्त नही हुई तो उसकी आँखो से आँसू बह चले और वो बेज़ार रोने लगी.

उसे याद था के पुरुषोत्तम के मरने से पहले जब वो एक बार बीमार हुई थी तो किस तरह उसके पति ने उसका ख्याल रखा था और आज वो अकेली बिस्तर पे पड़ी कराह रही थी. पति की याद आई तो उसका रोना और छूट पड़ा. वो बराबर रज़ाई के अंदर रोए जा रही थी पर जानती थी के ये रोना सुनने वाला अब कोई नही है. उसे खुद ही रोना है और खुद ही चुप हो जाना है. आँसू अब उसके चेहरे से लुढ़क कर तकिये को गीला कर रहे थे.

"बहू" दरवाज़े पे दस्तक हुई. बाहर भूषण खड़ा था

"खाना तैय्यार है. आके खा लीजिए." वो उसे रात के खाने पे बुला रहा था.

"नही मुझे भूख नही है" रूपाली ने हिम्मत बटोरकर कहा.

भूषण वापिस चला गया तो रूपाली को फिर अपने उपेर तरस आ गया. आज बीमार में उसे कोई खाने को पुच्छने वाला भी नही है. उसे अपनी माँ और भाई की याद आई जो कैसे उसे लाड से ज़बरदस्ती खिलाया करते थे, उसे अपने पति की याद आई जो उसकी कितनी देखभाल करता था.

थोड़ी देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई तो रूपाली ने रज़ाई से सर निकालकर बाहर देखा. दरवाज़े पे उसके ससुर खड़े थे जो हैरानी से उसे देख रहे थे. वजह शायद रज़ाई थी जो उसने गर्मी के मौसम में भी अपने उपेर पूरी लपेट रखी थी.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने पुचछा

"जी कुच्छ नही. बस थोड़ी तबीयत खराब है" रूपाली ने उनकी तरफ देखते हुए कहा
ठाकुर धीरे से उसके नज़दीक आए और उसके माथे को छुआ. अगले ही पल उन्होने हाथ वापिस खींच लिया.
"हे भगवान. तुम्हें तो बहुत तेज़ बुखार है बहू" ठाकुर ने कहा "नही बस थोड़ा सा ऐसे ही बदन टूट रहा है. आप फिकर ना करें" रूपाली ने उठने की कोशिश करते हुए कहा.
ठाकुर ने उसका कंधा पकड़कर उसे वापिस लिटा दिया.

"हमें माफ़ कर दो बेटी. हम जानते हैं के ये हमारी वजह से हुआ है. कल रात हमने तुम्हें बहुत तकलीफ़ पहुँचाई थी." ठाकुर की आवाज़ भी भारी हो चली. जैसे अभी रोने को तैय्यार हों.
रूपाली ने जवाब में कुच्छ ना कहा.

"बहू, कल रात जो हुआ हम उसके लिए माफी माँगते हैं. कल रात.............." ठाकुर बोल ही रहे थे की रूपाली ने उनकी बात बीच में काटी दी.

"पिताजी कल रात जो हुआ वो मर्ज़ी से होता है, ज़बरदस्ती से नही. ज़रा सोचिए के जब आपको मर्ज़ी हासिल हो चुकी थी तो बलात्कार की क्या ज़रूरत थी"

रूपाली के मुँह से निकली इस बात ने बहुत कुच्छ कह दिया था. उसने अपने ससुर के सामने सॉफ कर दिया था के वो खुद चुदवाने को तैय्यार है, उन्हें उसे ज़बरदस्ती हासिल करने की कोई ज़रूरत नही है. वो खुद उनके साथ सोने को तैय्यार है तो उन्हें खुद उसे पकड़के गिराने की क्या ज़रूरत है. उसने सॉफ कह दिया था के असली मज़ा तो तब है जब वो खुद भी अपनी मर्ज़ी से चुदवाके साथ दे रही हो. उसमें क्या मज़ा के जब वो नीचे पड़ी दर्द से कराह रही हो.

रूपाली के बात सुनकर ठाकुर ने उसकी आँख में आँख डालकर देखा. जवाब में रूपाली ने भी अपना चेहरा पक्का करके नज़र से नज़र मिला दी, झुकाई नही. दोनो इस बात को जानते थे के अब उनके बीच हर बात सॉफ हो चुकी है. ठाकुर ने प्यार से फिर उसका सर सहलाया और पास पड़ा फोन उठाकर डॉक्टर का नंबर डायल करने लगे.

रूपाली यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.

उसे कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश् ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी हुई थी.

"कामिनी और सिगेरेत्टेस?" रूपाली सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?

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🤔

कुछ बीच से गायब जैसा लग रहा है, कोई कनेक्शन ही नही मिल रहा।
 
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